FUN-MAZA-MASTI
कुँवारी बुर
मेरा नाम सचिन है, मैं तीस साल का शादीशुदा मर्द हूँ, लखनऊ में रहता हूँ, रेलवे में टी सी हूँ।
करीब 6 महीने पहले मेरी बदली भोपाल की हो गई, मैंने ड्यूटी जॉइन की और स्टेशन के पास ही बने क्वाटर लेकर अपना समान वहाँ रख लिया।
समान क्या बस रोज़ मर्रा की चीज़ें ही थी, बाकी परिवार को मैं साथ नहीं लाया। हर छुट्टी पर मैं खुद ही घर चला जाता था।
मेरे साथ वाला क्वाटर जो था उसमें मिश्रा जी रहते थे, छोटा सा परिवार था, मियां बीवी और दो बेटियाँ।
छोटी बेटी शादीशुदा थी, मगर बड़ी कुमुद कुँवारी थी। कुमुद करीब 26-27 साल की, साँवली मगर बहुत ही भरपूर बदन की लड़की थी, नैन नक़्श साधारण थे, मगर बदन बहुत ही खूबसूरत, गदराया हुआ, जैसे भुने हुये खोये का पेड़ा हो।
सच कहूँ तो उसे देख कर मुँह में पानी आ गया। आते जाते मिश्रा जी से बातचीत होती रहती थी। थोड़े दिनों में घर में भी आना जाना हो गया।
एक दिन रात के डेढ़ दो बजे मिश्रा जी के घर से बहुत ही शोर शराबा सुना जैसे कोई बर्तन फेंक फेंक के मार रहा हो।
मैं उठ कर उनके घर गया।
कमाल की बात यह कि इतने शोर के बावजूद और कोई पड़ोसी उनके घर नहीं गया, न ही किसी ने अपने घर की बत्ती ही जलाई।
मैंने जाकर मिश्रा जी के घर का दरवाज़ा खटखटाया, मिश्राजी बाहर आए- अरे सचिन भाई आप?
मैंने कहा- मिश्रा जी आपके घर से बहुत शोर आ रहा था तो मैं देखने चला आया, सब ठीक है न?
उसके बाद मिश्रा जी ने मुझे अपनी दुखभरी कहानी सुनाई कि कैसे उनकी बेटी पर एक प्रेत का साया है और जब प्रेत का असर होता है तो वो कैसे सारे घर को सर पे उठा लेती है।
मैंने मन ही मन में सोचा कि मिश्रा जी आपकी बेटी को कोई भूत प्रेत नहीं लगा, उसको तगड़ा लण्ड चाहिए।
मैं मिश्रा जी के साथ उनके घर के अंदर गया, अंदर घर का काफी समान बिखरा पड़ा था, आगे बेडरूम में उनकी बेटी फर्श पे लेटी पड़ी थी और उसकी माँ उसके पास बैठी थी।
काली स्लेक्स और सफ़ेद कुर्ता पहने, कुर्ता सामने से पूरा ऊपर उठा हुआ था, जिस वजह से उसकी मोटी गुदाज़ टाँगें बहुत खूबसूरत लग रही थी, उसके गोल भरे हुये मम्मे एक बड़ा सा क्लीवेज बना रहे थे।
मुझे देख कर मिश्राईन ने अपनी लड़की के कपड़े ठीक किए, मगर हरामी नज़र सब कुछ ताड़ चुकी थी।
मैंने मिश्रा जी के साथ मिल कर लड़की को उठा कर बेड पे लिटाया।
मिश्रा जी ने मुझे थैंक यू कहा, मैंने मन में सोचा ‘साले, थैंक यू तो मुझे कहना चाहिए, तेरी बेटी को उठाने के बहाने उसके नर्म जिस्म को छूने को जो मिला।’
खैर बेड पर लेटा कर मैं साइड में खड़ा हो गया। मिश्रा जी कोई दवाई लेने चले गए और मिश्राईन चाय बनाने के लिए किचन में चली गई। मेरे पास एक मिनट से कम का समय था, मैंने बिजली की फुर्ती से उस लड़की के दोनों मम्मे पकड़ के दबा दिये सिर्फ दो बार , जब वो नहीं हिली और चित्त लेटी रही तो मैंने बाहर को देखा, उसका कुर्ता ऊपर उठाया और और उसकी स्लेक्स नीचे खींच दी।
वो थोड़ा सा कसमसाई, मगर मैंने जो देखा वो लाजवाब था।
भरी हुई चर्बी वाली मोटी कमर, दो संगमरमरी जांघें, और दोनों जांघों के बीच में एक छोटी सी चूत। छोटी सी, साँवली सी, शेव की
हुई चूत, जैसे पेंसिल से एक बारीक सी लकीर खींच दी हो। मैंने झट से एक चुम्मी उसकी चूत पे ली, उसकी स्लेक्स ऊपर चड़ाई, कुर्ता ठीक किया और ऐसे उस से दूर जा कर खड़ा हो गया, जैसे मुझे तो बहुत ही दुख हो रहा हो, उस बेचारी लड़की की हालत देख कर।
इस सारी कारवाई में मैंने 10 से भी कम सेकंड लिए। थोड़ी देर बाद, मिश्रा जी आ गए दवाई लेकर, फिर मिश्राईन आ गई, चाय और पानी का गिलास ले कर।
मिश्रा जी ने अपनी लड़की को हिला जुला कर उठाया और उसे दवाई खिला दी। लड़की फिर से सो गई या क्या, पता नहीं। चाय पीते पीते हमने कुछ देर बातें की और उसके बाद मैं अपने क्वाटर में आ गया, आकर मैं बेड पे लेट गया, मगर मेरे मन में तो उस साँवली सलोनी का कुँवारा बदन ही घूम रहा था।
सच कहूँ तो मैं तो उसे चोदने के सपने मन में सँजो रहा था और न जाने कब सो गया।
उसके बाद मैंने कई बार उस लड़की को घर में बाहर खड़े देखा, मैं देख रहा था कि जैसे जैसे मैं उससे नज़रें मिला रहा था, उसका भी मुझे देखने का नज़रिया बदलता जा रहा था।
एक दिन शाम को मैं अपने क्वाटर में बैठा था, तो वो मेरे घर आई, उसके हाथ में एक कटोरी थी, वो बोली- माँ ने हलवा बनाया था, बोली आपको देकर आऊँ।
‘अरे वाह, हलवा तो मुझे बहुत पसंद है, माँ ने बनाया है, तुम नहीं बनाती?’ मैंने बात को आगे बढ़ाया।
‘बनाती हूँ, कभी कभी, पर माँ ज़्यादा अच्छा बनाती है।’ वो थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली।
मेरे मन में कई विचार आ रहे थे, कभी सोचता कि इससे पूछूं कि इसे क्या होता है, या यह पूछूँ, उस रात का इसे कुछ याद है या नहीं, या यह पूछूँ कि मुझसे दोस्ती करेगी के नहीं, या तुम्हारी शादी अभी तक क्यों नहीं हुई, मगर मैंने ऐसा कुछ भी नहीं पूछा।
मैं कुछ भी कहता इस से पहले वो उठी और बोली- आप अपना घर साफ क्यों नहीं रखते?
यह कह कर वो मेरे कमरे में यहाँ वहाँ गिरे सामान को उठा कर ठीक से रखने लगी।
5 मिनट में ही उसने मेरे कमरे को साफ सुथरा कर दिया।
मैं उसे काम करते देखता रहा, उसके बदन की गोलाइयाँ, लम्बाइयाँ और चौड़ाइयाँ घूरता रहा।
वो भी कभी कभी मुझे देख लेती थी, मगर मैंने उस पर से अपनी नज़र नहीं हटाई, मैं चाहता था कि उसको पता चल जाए कि मैं कितना कमीना हूँ, आगे से अगर आना हो तो आए, नहीं तो न आए।
जब तक उसने अपना काम खत्म किया, मैंने हलवा खा लिया।
जब वो कटोरी लेने मेरे पास आई तो मैंने कटोरी देते वक़्त उसका हाथ पकड़ लिया।
वो चिहुंकी- यह क्या कर रहे हैं आप, कोई देख लेगा!
बस उसका ये कहना था और मैंने उसका हाथ ज़ोर से अपनी तरफ खींच लिया, और वो सीधी मेरी आगोश में आ गिरी।
मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया।
‘नहीं… छोड़ो मुझे, मुझे जाने दो!’ उसने विनती की।
‘ठीक है, जाओ अगर मेरा दिल तोड़ कर जाना चाहती हो तो जाओ!’ मैंने कह तो दिया मगर अपनी बाहों का घेरा नहीं खोला, दरअसल मैं उसके दिल की बात जानना चाहता था।
वो बोली- नहीं, दिल तोड़ कर तो नहीं जा सकती, पर आप मुझे जाने दो।
मतलब वो भी मुझे पसंद करती थी।
मैंने कहा- एक चुंबन दो तो मैं तुम्हें जाने दे सकता हूँ।
वो कुछ नहीं बोली, बस नीचे देखती रही। मैंने इसे उसकी मौन स्वीकृति समझा और उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया, उसने भी बड़े आराम से अपने होंठ मेरी तरफ कर दिये, मैंने एक भरपूर चुंबन उसके होंठों पे किया, चुंबन क्या मैं तो उसके होंठों को अपने मुँह में लेकर चूस गया।
एक भरपूर चुम्बन के बाद हम दोनों के होंठ अलग हुये, हम दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा, मोहब्बत का रंग दोनों की आँखों में था।
वो उठ कर खड़ी हुई और दरवाजे के पास जाकर बोली- आप बहुत गंदे हो।
‘क्यों, मैंने ऐसा क्या कर दिया?’ मैंने हैरान हो कर पूछा।
उसकी आँखों में शरारत तैर गई और बोली- उस रात?
और कह कर भाग गई।
मैं भी उठ कर उसके पीछे भागा- अरे रुक कुमुद, रुक ना!
मगर वो चली गई।
मैं आकर वापिस बेड पे लेट गया।
शाम को खाना खाकर जब मैं वापिस अपने क्वाटर लौटा तो कुमुद बाहर ही खड़ी मिली।
मैंने उसे हैलो कही, वो भी मुस्कुरा दी।
मैंने कहा- तुम्हारे लिए एक बहुत ही रामबाण इलाज है मेरे पास, उसके बाद कोई तुम्हें तंग नहीं कर सकेगा।
‘क्या…’ उसने पूछा।
‘आज रात को 12 बजे के बाद नहा धोकर मेरे क्वाटर में आ जाना, एक बार करवा लो, दुबारा कभी कोई तकलीफ नहीं होगी।’ मैंने उसको समझाया।
‘क्या सच में?’ उसने बड़ी हैरानी से पूछा।
मैंने कहा- हाँ, आज दिन बहुत अच्छा है, आज ही आना, और मिस मत कर देना, पक्का आना।
वो सिर हिला कर अंदर चली गई और मैं सोचने लगा कि आज अगर यह आ गई तो कुँवारी चूत भोगने को मिल जाएगी।
खैर मैं भी नहा धो कर, अपना बेड अच्छे से सजा कर उसका इंतज़ार करने लगा।
करीब सवा बारह बजे मुझे बाहर कोई आहट सुनी। मैंने अपने घर का दरवाजा खुला ही रखा था, वो अंदर आ गई।
मैंने देखा, उसने पिंक साड़ी पहन रखी थी, होंठों पे लिपस्टिक, चेहरे पे पूरा मेक अप। मांग में सिंदूर भी, जैसे सुहागरात मनाने आई हो।
मैं उसे हाथ पकड़ कर अपने बेड पे ले आया, हम दोनों बैठ गए, पहले मैं सोच रहा था कि कुछ बात करूँ। मगर मैंने सोचा कि बातों में वक़्त ज़ाया करने का कोई फायदा नहीं।
मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ी और अपने होंठ उसके होंठों के पास ले गया, आधी दूरी मैंने तय की तो आधी उसने कर दी, हम दोनों के होंठ मिल गए।
मैंने अपने दोनों हाथ उसके कंधों पे रख दिये, कुछ देर हम दोनों अपने अपने तरीके से एक दूसरे को चूमते चूसते रहे।
मैंने देखा जितना मैं उसे चूस रहा था उतना ही वो भी मुझे चूस रही थी।
मैंने उसके होंठ चूसते हुये अपनी जीभ से उसके होंठ चाटे तो उसने भी ऐसा ही किया।
जब वो मेरे होंठ पे अपनी जीभ फिरा रही थी, तो मैंने उसकी जीभ को अपनी जीभ से छूआ। उसने अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और अपनी जीभ मेरे होंठों के बीच रख दी।
मैंने भी उसे बेड पे लेटा दिया और उसकी जीभ को अपने होंठों में लेकर चूस डाला। एक हाथ से मैंने उसकी गर्दन को सहारा दे रखा था और दूसरे हाथ से मैं उसकी पीठ सहला रहा था, बहुत ही चिकनी और गदराई हुई पीठ थी उसकी।
फिर मैंने उसकी कमर और जांघों को भी सहलाया।
मैंने उसे चूमना छोड़ कर सिर्फ अपने गले से लगाया और इतनी ज़ोर से कि हवा भी हमारे बदनों के बीच में से न गुज़र सके।
मैंने उसके कान में कहा- आई लव यू कुमुद!
वो भी बोली- मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ सचिन!
मैंने उसके कान के पास अपनी जीभ से सहलाया, गुदगुदी से वो मचल उठी। मैंने उसकी कनपट्टी से लेकर जबड़े सो होते हुये पहले उसकी ठुड्डी तक, फिर ठुड्डी से नीचे जाते हुये, गर्दन सो होकर उसके सीने तक चाट गया।
जब उसका आँचल हटाया, तो नीचे दो विशाल और भरपूर स्तन, और ब्लाउज़ से बाहर झाँकता उसका छोटा सा क्लीवेज… मैंने उसके क्लीवेज की दरार में भी अपनी जीभ डाल कर चाटा। वो सिर्फ मुझे देखे जा रही थी और अपने हाथों से मेरा सर सहला रही थी।
मैंने एक एक करके उसके ब्लाउज़ के हुक खोले, जैसे जैसे हुक खुलते गए, उसके स्तनों की विशालता मेरे सामने बेपर्दा होती गई, नीचे से उसने डिज़ाइनर ब्रा पहना था, मैंने उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों में पकड़ा और खूब दबाया, चूमा और अपने दांतों से काटा।
अब सब्र का बांध टूटता जा रहा था, मैंने उसे खड़ा किया और उसकी साड़ी खोल दी, बल्कि उसने खुद ही साड़ी उतारने में साथ दिया। उसके बाद मैंने उसका ब्लाउज़ भी उतार दिया, बेशक उसका रंग सांवला था, मगर थी वो बहुत ही भरपूर और चिकनी।
मैंने उसके पेटीकोट का नाड़ा खोला तो पेटीकोट खुल कर नीचे गिर गया।
‘या खुदा…’ मेरे मुँह से निकला, क्या कयामत बदन था उसका, कौन कहता है कि खूबसूरती सिर्फ गोरे रंग में होती है।
मैं उससे थोड़ा पीछे हट गया और थोड़ी दूर से उसके बदन को निहारने लगा… नाज़ुक सी कमर और उसके नीचे ये मोटी मोटी जांघें, एकदम से कसा हुआ जिस्म।
‘ज़रा घूमना…’ मैंने कहा।
‘क्यों?’ उसने पूछा।
‘तेरी गाँड देखनी है!’ मैंने कहा।
‘धत्त, ऐसे नहीं कहते!’ कह कर वो घूम गई, पीछे से वाह क्या गोल और विशाल चूतड़ थे उसके।
मैंने उसे पीछे से ही जाकर अपनी बाहों में भर लिया और अपना तना हुआ लण्ड उसके चूतड़ों की दरार से सटा दिया।
पीछे से मैं उसके चूतड़ों पे अपना लण्ड घिसा रहा था और आगे एक हाथ से उसके स्तनों से खेल रहा था और दूसरे हाथ से मैं उसकी चड्डी के ऊपर से उसकी चूत को सहला रहा था।
उसने भी एक हाथ घूमा कर मेरी गर्दन में डाल दिया और दूसरे हाथ मेरे पाजामे में डाल कर मेरा अकड़ा हुआ लण्ड पकड़ लिया।
हम दोनों के होंठ फिर मिल गए, उसके होंठ चूम कर मैंने अपने कपड़े भी उतार दिये और उसके ब्रा पेंटी भी उतार दिये।
वो मेरे पाँव के पास बैठ गई और मेरे लण्ड को दोनों हाथों से पकड़ कर देखने लगी।
‘क्या देख रही हो कुमु?’ मैंने पूछा।
‘मैंने आज ज़िंदगी में पहली बार किसी पुरुष का लिंग इतनी नजदीक से देखा है।’
‘इसे मुँह में लेकर चूस कुमु डार्लिंग!’ मैंने कहा।
‘नहीं…’ वो बोली- मैं यह नहीं कर सकती।
‘तो ठीक है अगर ऊपर के होंठों से नहीं चूस सकती तो नीचे के होंठों से चूस लो।’ मैं उसे बिस्तर पे ले गया और उसे बिस्तर के बीचों बीच लेटा दिया और खुद भी उसके ऊपर लेट गया।
‘इसे अपनी चूत पर तो रख सकती हो?’ मैंने पूछा।
‘हाँ…’ कह कर उसने मेरा लण्ड पकड़ा और अपनी चूत पर रख लिया, मैंने धीरे से ज़ोर लगाया, मगर लण्ड सही से नहीं बैठा था, तो मैंने उसे अपने हाथ से सेट किया।
मेरी नज़र उसके चेहरे पर थी, जब मैंने दोबारा ज़ोर लगाया तो लण्ड अंदर को घुसा, उसके चेहरे पे दर्द के भाव दिखे, मगर मैंने उसके दर्द की परवाह किए बिना और ज़ोर लगाया, जैसे वो दर्द से बिलबिला उठी हो।
इससे पहले कि उसके मुँह से कोई आवाज़ निकले, मैंने उसके दोनों होंठ अपने होंठों में कैद कर लिए।
पत्थर की तरह सख्त लण्ड का अगला भाग उसकी चूत में घुस गया और मुझे लगा के जैसे उसके मुँह से एक हल्की चीख या आवाज़ निकली थी जो मेरे मुँह में समा के रह गई।
जब अगला भाग घुस गया तो मैंने आगे पीछे करते हुये करीब करीब आधा लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया।
‘क्या सेक्स में इतना दर्द होता है?’ उसने पूछा।
‘नहीं मेरी जान, सिर्फ पहली बार…’ मैंने उसे समझाया- क्या तुमने कभी कुछ भी नहीं किया, मतलब अगर सेक्स नहीं तो कोई और चीज़ भी अपनी चूत में डाल के नहीं देखी? मैंने पूछा।
‘नहीं, मैं ऐसी बातों को ठीक नहीं समझती, ये गंदी बातें हैं।’ वो बोली।
“चलो कोई बात नहीं, अब जो ले रही हो वही सबसे सही चीज़ है। मेरा आधा लण्ड तेरी चूत में घुस चुका है, अब बाकी का भी डालूँगा, मेरा साथ दो, इसे अंदर जाने दो, टाँगें भींच के इसे रोको मत!’ कह कर मैंने अपना बाकी का लण्ड भी उसकी चूत में घुसाना शुरू किया।
बेशक उसके दर्द को मैं भी महसूस कर रहा था मगर उसने मेरी बात मान कर मेरा पूरा साथ दिया और मैंने अपना पूरा लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया।
जब मैंने देखा कि लण्ड जड़ तक पूरा उसकी कुँवारी चूत को फाड़ के अंदर घुस चुका है तो मैंने आधे के करीब अपना लण्ड बाहर निकाला और फिर से पूरा डाला, इस तरह मैं उसे धीरे धीरे से उसे प्यार से पुचकारते हुये चोदने लगा।
उसकी आँखों से आँसू निकल आए।
‘क्या दर्द हो रहा है?’ मैंने पूछा।
‘नहीं दर्द तो थोड़ा सा है, मगर मैं जिस सुख से आज तक वंचित थी, वो मुझे आज मिला है शायद…’ वो बोली- वादा करो, तुम मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगे, मैं आज से अभी से तुम्हें अपना सब कुछ मानती हूँ इसी लिए अपनी मांग में तुम्हारे नाम का सिंदूर भर के आई हूँ।
मैंने भी कह दिया- तुम मेरी सबसे प्यारी सबसे कीमती चीज़ हो, मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा।
वो मुझसे किसी बेल की तरह लिपट गई और मैं उसे आराम आराम से चोदने लगा, मगर ज्यों ज्यों चोदने का आनन्द बढ़ रहा था, मेरी स्पीड बढ़ रही थी।
थोड़ी देर बाद तो मैं उसे ताबड़तोड़ चोदने लगा, वो तो बेचारी नीचे लेटी ‘उफ़्फ़, आह, हाए, आह, मर गई, हाये मेरी माँ… धीरे सचिन प्लीज़ दर्द हो रहा है।’ ही बोलती रही।
मगर जब काम दिमाग में चढ़ा हो और माल छूटने को हो तो दूसरे के दर्द की कौन परवाह करता है, मैंने काट काट कर उसके बोबों पर ना जाने कितने दाँतों के गहरे निशान बना दिये थे, मेरे सख्त हाथों के मसलने से उसकी बाजुओं पर, उसके कंधों, पीठ, बगलों और कमर पर साफ निशान देखे जा सकते थे। मेरे दोनों हाथ उसके मोटे मोटे स्तनों पर थे जिन्हे मैं दबा दबा के नर्म कर रहा था और नीचे से पूरा लण्ड बाहर निकाल कर फिर से अंदर डाल रहा था, ताकि बाहर होंठों से लेकर अंदर बच्चेदानी तक उसकी पूरी चूत मेरे खुरदुरे लण्ड से छिल जाए।
बेशक पहली चुदाई होने के बावजूद उसकी चूत से खून नहीं निकला था मगर दर्द में कोई कमी नहीं थी। सारा समय वो मेरे नीचे लेटी दर्द से बिलबिलाती, तड़पती, रोती रही, मगर उसने मुझे न तो रोका, न ही मैं रुका।
खैर, हर चीज़ का अंत होता है, मेरी इस मज़ेदार चुदाई का भी अंत हो गया। करीब 8-9 मिनट की मज़ेदार चुदाई के बाद मेरा लण्ड झड़ गया, अपना सारा माल मैंने उसकी चूत में ही गिरा दिया और खुद भी उसके ऊपर गिर गया।
उसके लिए ये सब कैसा रहा मुझे नहीं पता, पर मेरे लिए सब बहुत ही बढ़िया रहा। कुँवारी बुर हमेशा ही मर्द को अजीब सुकून देती है। मैं उसे एक बार फिर से चोदने के लिए रोकना चाहता था मगर वो चली गई।
उसके बाद तो मैंने उसे अगले डेढ़ साल में जी भर के भोगा, इतना तो मैंने 5 साल की अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में अपनी बीवी को नहीं
चोदा होगा, जितना उसे डेढ़ साल में चोद दिया।
पर यह बात भी सच है कि जिस दिन से उसको चोदा था, उसके बाद उसे न तो कभी कोई दौरा पड़ा, न किसी भूत ने उसे तंग किया। यह सिर्फ लड़कियों का बताने का तरीका होता है कि हमारी शादी कर दो, इससे पहले कि कोई सच का भूत चिमट जाए!
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कुँवारी बुर
मेरा नाम सचिन है, मैं तीस साल का शादीशुदा मर्द हूँ, लखनऊ में रहता हूँ, रेलवे में टी सी हूँ।
करीब 6 महीने पहले मेरी बदली भोपाल की हो गई, मैंने ड्यूटी जॉइन की और स्टेशन के पास ही बने क्वाटर लेकर अपना समान वहाँ रख लिया।
समान क्या बस रोज़ मर्रा की चीज़ें ही थी, बाकी परिवार को मैं साथ नहीं लाया। हर छुट्टी पर मैं खुद ही घर चला जाता था।
मेरे साथ वाला क्वाटर जो था उसमें मिश्रा जी रहते थे, छोटा सा परिवार था, मियां बीवी और दो बेटियाँ।
छोटी बेटी शादीशुदा थी, मगर बड़ी कुमुद कुँवारी थी। कुमुद करीब 26-27 साल की, साँवली मगर बहुत ही भरपूर बदन की लड़की थी, नैन नक़्श साधारण थे, मगर बदन बहुत ही खूबसूरत, गदराया हुआ, जैसे भुने हुये खोये का पेड़ा हो।
सच कहूँ तो उसे देख कर मुँह में पानी आ गया। आते जाते मिश्रा जी से बातचीत होती रहती थी। थोड़े दिनों में घर में भी आना जाना हो गया।
एक दिन रात के डेढ़ दो बजे मिश्रा जी के घर से बहुत ही शोर शराबा सुना जैसे कोई बर्तन फेंक फेंक के मार रहा हो।
मैं उठ कर उनके घर गया।
कमाल की बात यह कि इतने शोर के बावजूद और कोई पड़ोसी उनके घर नहीं गया, न ही किसी ने अपने घर की बत्ती ही जलाई।
मैंने जाकर मिश्रा जी के घर का दरवाज़ा खटखटाया, मिश्राजी बाहर आए- अरे सचिन भाई आप?
मैंने कहा- मिश्रा जी आपके घर से बहुत शोर आ रहा था तो मैं देखने चला आया, सब ठीक है न?
उसके बाद मिश्रा जी ने मुझे अपनी दुखभरी कहानी सुनाई कि कैसे उनकी बेटी पर एक प्रेत का साया है और जब प्रेत का असर होता है तो वो कैसे सारे घर को सर पे उठा लेती है।
मैंने मन ही मन में सोचा कि मिश्रा जी आपकी बेटी को कोई भूत प्रेत नहीं लगा, उसको तगड़ा लण्ड चाहिए।
मैं मिश्रा जी के साथ उनके घर के अंदर गया, अंदर घर का काफी समान बिखरा पड़ा था, आगे बेडरूम में उनकी बेटी फर्श पे लेटी पड़ी थी और उसकी माँ उसके पास बैठी थी।
काली स्लेक्स और सफ़ेद कुर्ता पहने, कुर्ता सामने से पूरा ऊपर उठा हुआ था, जिस वजह से उसकी मोटी गुदाज़ टाँगें बहुत खूबसूरत लग रही थी, उसके गोल भरे हुये मम्मे एक बड़ा सा क्लीवेज बना रहे थे।
मुझे देख कर मिश्राईन ने अपनी लड़की के कपड़े ठीक किए, मगर हरामी नज़र सब कुछ ताड़ चुकी थी।
मैंने मिश्रा जी के साथ मिल कर लड़की को उठा कर बेड पे लिटाया।
मिश्रा जी ने मुझे थैंक यू कहा, मैंने मन में सोचा ‘साले, थैंक यू तो मुझे कहना चाहिए, तेरी बेटी को उठाने के बहाने उसके नर्म जिस्म को छूने को जो मिला।’
खैर बेड पर लेटा कर मैं साइड में खड़ा हो गया। मिश्रा जी कोई दवाई लेने चले गए और मिश्राईन चाय बनाने के लिए किचन में चली गई। मेरे पास एक मिनट से कम का समय था, मैंने बिजली की फुर्ती से उस लड़की के दोनों मम्मे पकड़ के दबा दिये सिर्फ दो बार , जब वो नहीं हिली और चित्त लेटी रही तो मैंने बाहर को देखा, उसका कुर्ता ऊपर उठाया और और उसकी स्लेक्स नीचे खींच दी।
वो थोड़ा सा कसमसाई, मगर मैंने जो देखा वो लाजवाब था।
भरी हुई चर्बी वाली मोटी कमर, दो संगमरमरी जांघें, और दोनों जांघों के बीच में एक छोटी सी चूत। छोटी सी, साँवली सी, शेव की
हुई चूत, जैसे पेंसिल से एक बारीक सी लकीर खींच दी हो। मैंने झट से एक चुम्मी उसकी चूत पे ली, उसकी स्लेक्स ऊपर चड़ाई, कुर्ता ठीक किया और ऐसे उस से दूर जा कर खड़ा हो गया, जैसे मुझे तो बहुत ही दुख हो रहा हो, उस बेचारी लड़की की हालत देख कर।
इस सारी कारवाई में मैंने 10 से भी कम सेकंड लिए। थोड़ी देर बाद, मिश्रा जी आ गए दवाई लेकर, फिर मिश्राईन आ गई, चाय और पानी का गिलास ले कर।
मिश्रा जी ने अपनी लड़की को हिला जुला कर उठाया और उसे दवाई खिला दी। लड़की फिर से सो गई या क्या, पता नहीं। चाय पीते पीते हमने कुछ देर बातें की और उसके बाद मैं अपने क्वाटर में आ गया, आकर मैं बेड पे लेट गया, मगर मेरे मन में तो उस साँवली सलोनी का कुँवारा बदन ही घूम रहा था।
सच कहूँ तो मैं तो उसे चोदने के सपने मन में सँजो रहा था और न जाने कब सो गया।
उसके बाद मैंने कई बार उस लड़की को घर में बाहर खड़े देखा, मैं देख रहा था कि जैसे जैसे मैं उससे नज़रें मिला रहा था, उसका भी मुझे देखने का नज़रिया बदलता जा रहा था।
एक दिन शाम को मैं अपने क्वाटर में बैठा था, तो वो मेरे घर आई, उसके हाथ में एक कटोरी थी, वो बोली- माँ ने हलवा बनाया था, बोली आपको देकर आऊँ।
‘अरे वाह, हलवा तो मुझे बहुत पसंद है, माँ ने बनाया है, तुम नहीं बनाती?’ मैंने बात को आगे बढ़ाया।
‘बनाती हूँ, कभी कभी, पर माँ ज़्यादा अच्छा बनाती है।’ वो थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली।
मेरे मन में कई विचार आ रहे थे, कभी सोचता कि इससे पूछूं कि इसे क्या होता है, या यह पूछूँ, उस रात का इसे कुछ याद है या नहीं, या यह पूछूँ कि मुझसे दोस्ती करेगी के नहीं, या तुम्हारी शादी अभी तक क्यों नहीं हुई, मगर मैंने ऐसा कुछ भी नहीं पूछा।
मैं कुछ भी कहता इस से पहले वो उठी और बोली- आप अपना घर साफ क्यों नहीं रखते?
यह कह कर वो मेरे कमरे में यहाँ वहाँ गिरे सामान को उठा कर ठीक से रखने लगी।
5 मिनट में ही उसने मेरे कमरे को साफ सुथरा कर दिया।
मैं उसे काम करते देखता रहा, उसके बदन की गोलाइयाँ, लम्बाइयाँ और चौड़ाइयाँ घूरता रहा।
वो भी कभी कभी मुझे देख लेती थी, मगर मैंने उस पर से अपनी नज़र नहीं हटाई, मैं चाहता था कि उसको पता चल जाए कि मैं कितना कमीना हूँ, आगे से अगर आना हो तो आए, नहीं तो न आए।
जब तक उसने अपना काम खत्म किया, मैंने हलवा खा लिया।
जब वो कटोरी लेने मेरे पास आई तो मैंने कटोरी देते वक़्त उसका हाथ पकड़ लिया।
वो चिहुंकी- यह क्या कर रहे हैं आप, कोई देख लेगा!
बस उसका ये कहना था और मैंने उसका हाथ ज़ोर से अपनी तरफ खींच लिया, और वो सीधी मेरी आगोश में आ गिरी।
मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया।
‘नहीं… छोड़ो मुझे, मुझे जाने दो!’ उसने विनती की।
‘ठीक है, जाओ अगर मेरा दिल तोड़ कर जाना चाहती हो तो जाओ!’ मैंने कह तो दिया मगर अपनी बाहों का घेरा नहीं खोला, दरअसल मैं उसके दिल की बात जानना चाहता था।
वो बोली- नहीं, दिल तोड़ कर तो नहीं जा सकती, पर आप मुझे जाने दो।
मतलब वो भी मुझे पसंद करती थी।
मैंने कहा- एक चुंबन दो तो मैं तुम्हें जाने दे सकता हूँ।
वो कुछ नहीं बोली, बस नीचे देखती रही। मैंने इसे उसकी मौन स्वीकृति समझा और उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया, उसने भी बड़े आराम से अपने होंठ मेरी तरफ कर दिये, मैंने एक भरपूर चुंबन उसके होंठों पे किया, चुंबन क्या मैं तो उसके होंठों को अपने मुँह में लेकर चूस गया।
एक भरपूर चुम्बन के बाद हम दोनों के होंठ अलग हुये, हम दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा, मोहब्बत का रंग दोनों की आँखों में था।
वो उठ कर खड़ी हुई और दरवाजे के पास जाकर बोली- आप बहुत गंदे हो।
‘क्यों, मैंने ऐसा क्या कर दिया?’ मैंने हैरान हो कर पूछा।
उसकी आँखों में शरारत तैर गई और बोली- उस रात?
और कह कर भाग गई।
मैं भी उठ कर उसके पीछे भागा- अरे रुक कुमुद, रुक ना!
मगर वो चली गई।
मैं आकर वापिस बेड पे लेट गया।
शाम को खाना खाकर जब मैं वापिस अपने क्वाटर लौटा तो कुमुद बाहर ही खड़ी मिली।
मैंने उसे हैलो कही, वो भी मुस्कुरा दी।
मैंने कहा- तुम्हारे लिए एक बहुत ही रामबाण इलाज है मेरे पास, उसके बाद कोई तुम्हें तंग नहीं कर सकेगा।
‘क्या…’ उसने पूछा।
‘आज रात को 12 बजे के बाद नहा धोकर मेरे क्वाटर में आ जाना, एक बार करवा लो, दुबारा कभी कोई तकलीफ नहीं होगी।’ मैंने उसको समझाया।
‘क्या सच में?’ उसने बड़ी हैरानी से पूछा।
मैंने कहा- हाँ, आज दिन बहुत अच्छा है, आज ही आना, और मिस मत कर देना, पक्का आना।
वो सिर हिला कर अंदर चली गई और मैं सोचने लगा कि आज अगर यह आ गई तो कुँवारी चूत भोगने को मिल जाएगी।
खैर मैं भी नहा धो कर, अपना बेड अच्छे से सजा कर उसका इंतज़ार करने लगा।
करीब सवा बारह बजे मुझे बाहर कोई आहट सुनी। मैंने अपने घर का दरवाजा खुला ही रखा था, वो अंदर आ गई।
मैंने देखा, उसने पिंक साड़ी पहन रखी थी, होंठों पे लिपस्टिक, चेहरे पे पूरा मेक अप। मांग में सिंदूर भी, जैसे सुहागरात मनाने आई हो।
मैं उसे हाथ पकड़ कर अपने बेड पे ले आया, हम दोनों बैठ गए, पहले मैं सोच रहा था कि कुछ बात करूँ। मगर मैंने सोचा कि बातों में वक़्त ज़ाया करने का कोई फायदा नहीं।
मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ी और अपने होंठ उसके होंठों के पास ले गया, आधी दूरी मैंने तय की तो आधी उसने कर दी, हम दोनों के होंठ मिल गए।
मैंने अपने दोनों हाथ उसके कंधों पे रख दिये, कुछ देर हम दोनों अपने अपने तरीके से एक दूसरे को चूमते चूसते रहे।
मैंने देखा जितना मैं उसे चूस रहा था उतना ही वो भी मुझे चूस रही थी।
मैंने उसके होंठ चूसते हुये अपनी जीभ से उसके होंठ चाटे तो उसने भी ऐसा ही किया।
जब वो मेरे होंठ पे अपनी जीभ फिरा रही थी, तो मैंने उसकी जीभ को अपनी जीभ से छूआ। उसने अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और अपनी जीभ मेरे होंठों के बीच रख दी।
मैंने भी उसे बेड पे लेटा दिया और उसकी जीभ को अपने होंठों में लेकर चूस डाला। एक हाथ से मैंने उसकी गर्दन को सहारा दे रखा था और दूसरे हाथ से मैं उसकी पीठ सहला रहा था, बहुत ही चिकनी और गदराई हुई पीठ थी उसकी।
फिर मैंने उसकी कमर और जांघों को भी सहलाया।
मैंने उसे चूमना छोड़ कर सिर्फ अपने गले से लगाया और इतनी ज़ोर से कि हवा भी हमारे बदनों के बीच में से न गुज़र सके।
मैंने उसके कान में कहा- आई लव यू कुमुद!
वो भी बोली- मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ सचिन!
मैंने उसके कान के पास अपनी जीभ से सहलाया, गुदगुदी से वो मचल उठी। मैंने उसकी कनपट्टी से लेकर जबड़े सो होते हुये पहले उसकी ठुड्डी तक, फिर ठुड्डी से नीचे जाते हुये, गर्दन सो होकर उसके सीने तक चाट गया।
जब उसका आँचल हटाया, तो नीचे दो विशाल और भरपूर स्तन, और ब्लाउज़ से बाहर झाँकता उसका छोटा सा क्लीवेज… मैंने उसके क्लीवेज की दरार में भी अपनी जीभ डाल कर चाटा। वो सिर्फ मुझे देखे जा रही थी और अपने हाथों से मेरा सर सहला रही थी।
मैंने एक एक करके उसके ब्लाउज़ के हुक खोले, जैसे जैसे हुक खुलते गए, उसके स्तनों की विशालता मेरे सामने बेपर्दा होती गई, नीचे से उसने डिज़ाइनर ब्रा पहना था, मैंने उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों में पकड़ा और खूब दबाया, चूमा और अपने दांतों से काटा।
अब सब्र का बांध टूटता जा रहा था, मैंने उसे खड़ा किया और उसकी साड़ी खोल दी, बल्कि उसने खुद ही साड़ी उतारने में साथ दिया। उसके बाद मैंने उसका ब्लाउज़ भी उतार दिया, बेशक उसका रंग सांवला था, मगर थी वो बहुत ही भरपूर और चिकनी।
मैंने उसके पेटीकोट का नाड़ा खोला तो पेटीकोट खुल कर नीचे गिर गया।
‘या खुदा…’ मेरे मुँह से निकला, क्या कयामत बदन था उसका, कौन कहता है कि खूबसूरती सिर्फ गोरे रंग में होती है।
मैं उससे थोड़ा पीछे हट गया और थोड़ी दूर से उसके बदन को निहारने लगा… नाज़ुक सी कमर और उसके नीचे ये मोटी मोटी जांघें, एकदम से कसा हुआ जिस्म।
‘ज़रा घूमना…’ मैंने कहा।
‘क्यों?’ उसने पूछा।
‘तेरी गाँड देखनी है!’ मैंने कहा।
‘धत्त, ऐसे नहीं कहते!’ कह कर वो घूम गई, पीछे से वाह क्या गोल और विशाल चूतड़ थे उसके।
मैंने उसे पीछे से ही जाकर अपनी बाहों में भर लिया और अपना तना हुआ लण्ड उसके चूतड़ों की दरार से सटा दिया।
पीछे से मैं उसके चूतड़ों पे अपना लण्ड घिसा रहा था और आगे एक हाथ से उसके स्तनों से खेल रहा था और दूसरे हाथ से मैं उसकी चड्डी के ऊपर से उसकी चूत को सहला रहा था।
उसने भी एक हाथ घूमा कर मेरी गर्दन में डाल दिया और दूसरे हाथ मेरे पाजामे में डाल कर मेरा अकड़ा हुआ लण्ड पकड़ लिया।
हम दोनों के होंठ फिर मिल गए, उसके होंठ चूम कर मैंने अपने कपड़े भी उतार दिये और उसके ब्रा पेंटी भी उतार दिये।
वो मेरे पाँव के पास बैठ गई और मेरे लण्ड को दोनों हाथों से पकड़ कर देखने लगी।
‘क्या देख रही हो कुमु?’ मैंने पूछा।
‘मैंने आज ज़िंदगी में पहली बार किसी पुरुष का लिंग इतनी नजदीक से देखा है।’
‘इसे मुँह में लेकर चूस कुमु डार्लिंग!’ मैंने कहा।
‘नहीं…’ वो बोली- मैं यह नहीं कर सकती।
‘तो ठीक है अगर ऊपर के होंठों से नहीं चूस सकती तो नीचे के होंठों से चूस लो।’ मैं उसे बिस्तर पे ले गया और उसे बिस्तर के बीचों बीच लेटा दिया और खुद भी उसके ऊपर लेट गया।
‘इसे अपनी चूत पर तो रख सकती हो?’ मैंने पूछा।
‘हाँ…’ कह कर उसने मेरा लण्ड पकड़ा और अपनी चूत पर रख लिया, मैंने धीरे से ज़ोर लगाया, मगर लण्ड सही से नहीं बैठा था, तो मैंने उसे अपने हाथ से सेट किया।
मेरी नज़र उसके चेहरे पर थी, जब मैंने दोबारा ज़ोर लगाया तो लण्ड अंदर को घुसा, उसके चेहरे पे दर्द के भाव दिखे, मगर मैंने उसके दर्द की परवाह किए बिना और ज़ोर लगाया, जैसे वो दर्द से बिलबिला उठी हो।
इससे पहले कि उसके मुँह से कोई आवाज़ निकले, मैंने उसके दोनों होंठ अपने होंठों में कैद कर लिए।
पत्थर की तरह सख्त लण्ड का अगला भाग उसकी चूत में घुस गया और मुझे लगा के जैसे उसके मुँह से एक हल्की चीख या आवाज़ निकली थी जो मेरे मुँह में समा के रह गई।
जब अगला भाग घुस गया तो मैंने आगे पीछे करते हुये करीब करीब आधा लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया।
‘क्या सेक्स में इतना दर्द होता है?’ उसने पूछा।
‘नहीं मेरी जान, सिर्फ पहली बार…’ मैंने उसे समझाया- क्या तुमने कभी कुछ भी नहीं किया, मतलब अगर सेक्स नहीं तो कोई और चीज़ भी अपनी चूत में डाल के नहीं देखी? मैंने पूछा।
‘नहीं, मैं ऐसी बातों को ठीक नहीं समझती, ये गंदी बातें हैं।’ वो बोली।
“चलो कोई बात नहीं, अब जो ले रही हो वही सबसे सही चीज़ है। मेरा आधा लण्ड तेरी चूत में घुस चुका है, अब बाकी का भी डालूँगा, मेरा साथ दो, इसे अंदर जाने दो, टाँगें भींच के इसे रोको मत!’ कह कर मैंने अपना बाकी का लण्ड भी उसकी चूत में घुसाना शुरू किया।
बेशक उसके दर्द को मैं भी महसूस कर रहा था मगर उसने मेरी बात मान कर मेरा पूरा साथ दिया और मैंने अपना पूरा लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया।
जब मैंने देखा कि लण्ड जड़ तक पूरा उसकी कुँवारी चूत को फाड़ के अंदर घुस चुका है तो मैंने आधे के करीब अपना लण्ड बाहर निकाला और फिर से पूरा डाला, इस तरह मैं उसे धीरे धीरे से उसे प्यार से पुचकारते हुये चोदने लगा।
उसकी आँखों से आँसू निकल आए।
‘क्या दर्द हो रहा है?’ मैंने पूछा।
‘नहीं दर्द तो थोड़ा सा है, मगर मैं जिस सुख से आज तक वंचित थी, वो मुझे आज मिला है शायद…’ वो बोली- वादा करो, तुम मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगे, मैं आज से अभी से तुम्हें अपना सब कुछ मानती हूँ इसी लिए अपनी मांग में तुम्हारे नाम का सिंदूर भर के आई हूँ।
मैंने भी कह दिया- तुम मेरी सबसे प्यारी सबसे कीमती चीज़ हो, मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा।
वो मुझसे किसी बेल की तरह लिपट गई और मैं उसे आराम आराम से चोदने लगा, मगर ज्यों ज्यों चोदने का आनन्द बढ़ रहा था, मेरी स्पीड बढ़ रही थी।
थोड़ी देर बाद तो मैं उसे ताबड़तोड़ चोदने लगा, वो तो बेचारी नीचे लेटी ‘उफ़्फ़, आह, हाए, आह, मर गई, हाये मेरी माँ… धीरे सचिन प्लीज़ दर्द हो रहा है।’ ही बोलती रही।
मगर जब काम दिमाग में चढ़ा हो और माल छूटने को हो तो दूसरे के दर्द की कौन परवाह करता है, मैंने काट काट कर उसके बोबों पर ना जाने कितने दाँतों के गहरे निशान बना दिये थे, मेरे सख्त हाथों के मसलने से उसकी बाजुओं पर, उसके कंधों, पीठ, बगलों और कमर पर साफ निशान देखे जा सकते थे। मेरे दोनों हाथ उसके मोटे मोटे स्तनों पर थे जिन्हे मैं दबा दबा के नर्म कर रहा था और नीचे से पूरा लण्ड बाहर निकाल कर फिर से अंदर डाल रहा था, ताकि बाहर होंठों से लेकर अंदर बच्चेदानी तक उसकी पूरी चूत मेरे खुरदुरे लण्ड से छिल जाए।
बेशक पहली चुदाई होने के बावजूद उसकी चूत से खून नहीं निकला था मगर दर्द में कोई कमी नहीं थी। सारा समय वो मेरे नीचे लेटी दर्द से बिलबिलाती, तड़पती, रोती रही, मगर उसने मुझे न तो रोका, न ही मैं रुका।
खैर, हर चीज़ का अंत होता है, मेरी इस मज़ेदार चुदाई का भी अंत हो गया। करीब 8-9 मिनट की मज़ेदार चुदाई के बाद मेरा लण्ड झड़ गया, अपना सारा माल मैंने उसकी चूत में ही गिरा दिया और खुद भी उसके ऊपर गिर गया।
उसके लिए ये सब कैसा रहा मुझे नहीं पता, पर मेरे लिए सब बहुत ही बढ़िया रहा। कुँवारी बुर हमेशा ही मर्द को अजीब सुकून देती है। मैं उसे एक बार फिर से चोदने के लिए रोकना चाहता था मगर वो चली गई।
उसके बाद तो मैंने उसे अगले डेढ़ साल में जी भर के भोगा, इतना तो मैंने 5 साल की अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में अपनी बीवी को नहीं
चोदा होगा, जितना उसे डेढ़ साल में चोद दिया।
पर यह बात भी सच है कि जिस दिन से उसको चोदा था, उसके बाद उसे न तो कभी कोई दौरा पड़ा, न किसी भूत ने उसे तंग किया। यह सिर्फ लड़कियों का बताने का तरीका होता है कि हमारी शादी कर दो, इससे पहले कि कोई सच का भूत चिमट जाए!
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