FUN-MAZA-MASTI
चुलबुली पड़ोसन--4
डॉली की दूधिया चूत को चूसते हुए मेरा लौड़ा पूरी तरह से सख्त हो चुका था और इस बार ललिता ने बड़े ही प्यार से उसे हाथ में पकड़ कर शेक किया.. और फिर वो अपनी जीभ मेरे लंड की नोक पर घुमाने लगी।
मैं अब पूरी तरह से जन्नत में था.. एक तरफ मैं एक मदमस्त चूत को चाट रहा था.. तो दूसरी तरफ बहुत प्यारे से मुलायम होंठ मेरे लंड को चूस रहे थे।
ललिता ने स्पीड बढ़ा दी और वो अब ज़ोर-ज़ोर से मेरे लंड को चूसने लगी और मेरा सुपारा उसके गले को टच किए जा रहा था.. मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था.. पर मैं उसे बर्दाश्त किए जा रहा था..
डॉली मेरे बालों में हाथ डाल कर मेरा मुँह और खींच रही थी.. मुझे समझ आ गया कि वो जल्द ही झड़ने वाली है.. तो मैंने भी अपनी जीभ को ज़ोर-ज़ोर से चूत के अन्दर घुमाना शुरू कर दिया।
तभी डॉली झड़ गई.. उसने अपनी चूत का पूरा रस मेरे मुँह में छोड़ दिया।
इधर ललिता ने मेरा लंड मुँह से निकाला और हाथ में पकड़ कर खींच लिया.. और लंड के ऊपर एक थप्पड़ भी मार दिया।
अब तक डॉली का मुँह मेरे मुँह की तरफ था.. वो अब उठी और मेरी तरफ पीठ करके वो फिर से मेरे मुँह पर बैठ गई।
अब उसकी चूत और गाण्ड के छेद दोनों मेरे मुँह के दायरे में थे.. उसका मुँह ललिता की तरफ था और ललिता भी उसी की तरफ देखते हुए मेरे लंड पर बैठने लगी।
डॉली ने मेरा तना हुआ लंड हाथ में ले लिया और बिल्कुल ललिता के चूत के छेद पर टिका दिया.. और तभी ललिता नीचे की तरफ बैठ गई.. चूत और लंड दोनों गीले होने के कारण वो मेरा पूरा लंड निगल गई..
इधर मैं फिर से डॉली की चूत और गाण्ड का छेद बारी-बारी से चूसने और चाटने लगा था.. वो भी मचल रही थी, उसके नितंबों की दरार मेरी आँखों के सामने थी।
जब ललिता ने धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ाना शुरू किया.. तब शायद वो दोनों एक-दूसरे को किस भी कर रही थीं।
अब हॉल में सिर्फ़ ‘पच.. पच..’ की आवाजें गूँज रही थीं। ललिता ज़ोर-ज़ोर से मेरे लंड को उछल-कूद कर रही थी।
तभी मैंने उसकी आवाज़ सुनी- राज.. याद रख.. अगर अब तू मेरे चूत में झड़ गया तो तुझे पूरी रात नंगा बाल्कनी में मुर्गा बना कर खड़ा कर दूँगी.
मैंने डॉली के नितंबों को थोड़ा ऊपर उठा कर बात करने के लिए जगह बनाई और कहा।
मैं- नहीं.. अब मैं दोबारा वो ग़लती नहीं करूँगा.. अगर मुझे ऐसा लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ.. तो मैं डॉली के नितंबों पर एक चमाट लगा दूँगा.. तब तुम रुक जाना..
ललिता- ठीक है.. आआहह.. आआअहह..
लगभग 15-20 मिनट तक लगातार उठक-बैठक करने से ललिता झड़ने की कगार पर थी, उसने नीचे बैठ कर मेरे लंड को अन्दर खींच लिया और वो झड़ गई.. अपना रस मेरे लंड के ऊपर छोड़कर वो दो मिनट वैसे ही पड़ी रही।
उसके रस की गर्माहट से मुझे ऐसा लगा कि मैं झड़ जाऊँगा.. तभी मैंने डॉली के नितंबों पर ज़ोर से चमाट मार दी.. और उन्हें सिग्नल मिल गया। वे दोनों उठकर खड़ी हो गईं..
शायद ललिता दो बार मेरे मुँह में और एक बार मेरे लंड पर झड़ने के बाद अब थक गई थी.. तो वो सोफे पर जाकर लेट गई और हमें देखने लगी।
अब डॉली पूरे खुमार में थी और वो मेरी तरफ मुँह करके मेरे लंड पर बैठ गई.. ललिता के रस में भीगा हुआ मेरा बिना झड़ा हुआ लंड फटाक से डॉली की चूत में दाखिल हो गया.. और अब मैं भी नीचे से झटके मारने लगा।
दोनों तरफ से झटकों की वजह से हम दोनों बहुत एंजाय कर रहे थे, ‘फट.. फटा.. फट..’ की आवाजें गूँज रही थीं.. मैंने हाथ बढ़ाकर डॉली के उछलते हुए मम्मों को अपने हाथ में पकड़ लिया.. और उन्हें ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा।
डॉली और मस्त हुए जा रही थीं.. लगभग 10-15 मिनट तक चुदाई करने के बाद वो भी ललिता की तरह ही मेरे लंड पर बैठ गई और उसने लंड को पूरे ज़ोर से अन्दर खींच लिया.. कुछ समझ में आने से पहले ही वो झड़ गई और उसने खुद को ढीला छोड़ दिया।
अब उसकी चूत की गरमी और ज़ोरदार पकड़ से मैं भी झड़ने वाला था.. इसलिए मैंने कहा- डॉली.. मैं भी झड़ने वाला हूँ.. जल्दी बताओ.. कहाँ झड़ना है?
यh सुनते ही डॉली उठकर खड़ी हो गई और सोफे पर जा बैठी.. साथ ही में ललिता भी उठ गई और डॉली ने कहा- आओ.. हम दोनों के मुँह में झड़ जाओ..
मैं यह सुनकर खुश हो गया.. जल्दी से उन दोनों की तरफ जाकर मैंने अपना लंड बिल्कुल उन दोनों के मुँह के सामने रख कर हिलाने लगा.. केवल 2-3 बार मुठियाते ही मैंने वीर्य छोड़ दिया और उन दोनों के मुँह में बारी-बारी से गिरा दिया।
वे दोनों पूरा का पूरा वीर्य निगल गईं और दोनों ने मेरा लंड बारी-बारी से चाट कर साफ़ कर दिया।
दो बार झड़ने से और लगभग सारा वीर्य बाहर निकल जाने से मैं भी थक गया था और मेरा लंड भी सिकुड़ गया।
यह देखकर वे दोनों हँसने लगीं..
अब हम तीनों पूरी तरह से संतुष्ट हो चुके थे और थक चुके थे, अब हमें नींद की सख्त ज़रूरत थी.. हम जैसे-तैसे एक-दूसरे का सहारा लेकर बेडरूम में चले गए और उसी नंगी हालत में एक-दूसरे की बांहों में बेड पर सो गए।
एक डॉक्टर और एक एचआर इतनी बड़ी चुदक्कड़ और स्ट्रेट फॉर्वर्ड निकलेंगी.. यह मैंने कभी सोचा नहीं था!
दूसरे दिन लगभग सुबह 9 बजे हम लोगों की आँख खुली.. जब दूध वाले ने डोरबेल बजाई.. उस दिन हम लोगों ने क्या-क्या किया और किस तरह उन लोगों ने फिर से मुझे सता कर मेरा अपमान किया और कैसे अपनी आग बुझाई.. यह आगे लिखूँगा..
आशा है.. आपको यह कहानी भी पसंद आई होगी और आप लोग अपनी राय जरूर भेज दीजिएगा।
राज शर्मा स्टॉरीज पर पढ़ें हजारों नई कहानियाँ
No comments:
Post a Comment