Wednesday, January 2, 2013

दाल अगर इतनी जायकेदार हो तो


 
दाल अगर इतनी जायकेदार हो तो

सूनसान घर में, सोफे के ऊपर रखा एक खूबसूरत मोबाइल एकाएक बजा-

तुझे देखा तो ये जाना सनम......

ये उस मोबाइल का रिंग टोन था।
घर के किसी कोने में पदचापों की आवाज गूंजी।

किसी गोरे चिट्ठे हाथ ने उस मोबाइल को बड़े ही आहिस्ते से उठाया,
फिर बड़ी ही मीठी आवाज गूंजी-
"हलो......"
दूसरी तरफ एक खामोशी थी।
लेकिन किसी के भारी सांसों का शोर उभर रहा था।
"हलो.......कौन है?"
"........................"
एक खामोशी।
"मैं फोन काट रही हूँ....."
और जैसे ही वो फोन काटने वाली थी, वैसे ही-
"क्या मैं आपसे बात कर सकता हूँ?......"
लड़की की आवाज का टोन थोड़ा सा बदला-
"आप हैं कौन?"
"मेरा नाम है कलश.....कलश मल्होत्रा....."
"सॉरी मैं किसी कलश को नहीं जानती...."
इतना बोलने के बाद उस लड़की ने फोन काट दिया।
मोबाइल वापस सोफे पर आराम फरमाने लगा था।
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लगभग 5 मिनट बाद,

तुझे देखा तो ये जाना सनम......
फोन एक बार फिर बजा।
पगचापों की आवाज इस बार काफी देर से उभरी।
फोन उसी लड़की द्वारा उठाया गया।
स्क्रीन पर वहीं नम्बर था।
'उफ हो...'
पहले तो वो कॉल को काटने जा रही थी।
लेकिन,
"मिस्टर.....जो भी आपका नाम है....प्लीज आप दुबारा कॉल मत कीजिये......मै किसी अननोन से बात नहीं करती.....और अगर आपने मुझे दुबारा तंग किया तो मैं फोन स्विच ऑफ कर दूंगी....."
"प्लीज आप ऐसा मत कीजियेगा.......मुझे सिर्फ एक मिनट चाहिये.....प्लीजSSSSS"
"जब मैं आपको जानती नहीं तो मैं आपको एक सेकेण्ड भी क्यों दूं .......नाऊ डोन्ट कॉल मी अगेन....."
एक बार फिर फोन काट दिया गया।
मोबाइल को स्विच ऑफ करने का इरादा छोड़ कर उसने उसे वाइब्रेट मोड पर लगा दिया।
इस बार मोबाइल सोफे पर नहीं था।
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लगभग एक घण्टे बाद,

घड़ी की सूईयों के अनुसार रात के दस बजने को थे।
एकाएक,

बूSSSSS.बूSSSSSSS

मोबाइल वाइब्रेट हुआ।
सो रहीं पलकों में कम्पन्न हुआ।
मोबाइल बेड के सिरहाने पर ही रखा हुआ था।
नींद से बोझिल आंखों ने मोबाइल को उठा कर स्क्रीन को देखा।
'अ न्यु मैसेज'
नम्बर वही था।
"ये लड़का पागल हो गया है......ईडियट!"
बिना मैसेज को पढ़े उसने मोबाइल को यथा स्थान रख दिया।
सिर एक बार फिर नर्म तकिये पर था और पलकें बंद हो चुकी थी।
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कुछ मिनट बाद,

बूंSSSSSS...बूSSSSSS

मोबाइल पर एक नया मैसेज आया।
लेकिन बंद पलकों के नीचे चल रहे स्वप्न में कोई हलचल नहीं हुई।
नींद कुछ गहरी थी।
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'सुबह-सुबह..........ये क्या हुआ......'

ये गाना कमरे में स्टैन्ड बाई मोड पर रखे स्टीरियों सिस्टम पर मध्यिम आवाज में बजने लगा था।

ठीक उसी वक्त,

बूSSSSSSS...बूSSSSSSSSSS

मोबाइल भी लगातार वाइब्रेट होने लगा।
किसी की कॉल आ रही थी।

"ओह शिट्........"
नींद खुल चुकी थी लेकिन झुंझलाहट का स्पर्श चेहरे को सहला रहा था।
सबसे पहले रिमोट उठाया गया।
स्टिरियो का अलार्म साउण्ड मध्यम हो चुका था।
फिर फोन की बारी थी।
स्क्रीन पर नम्बर जाना-पहचाना था।

"हाय मॉम.......गुड मार्निंग......"
"गुड मार्निंग सन्......उठ गई....."- दूसरी तरफ से कहा गया।
"जस्ट नाऊ........"
"ओ.के.........मैं देखना चाहती थी की तुम उठ गई हो या नहीं.....घर के काम कर लेना ......शाम तक हम लोग आ जायेंगे.....टेक केयर.."
"आई विल.....बॉय मॉम..."
फोन कट जाने के बाद जब स्क्रीन पर नजर स्थिर हुई।
"ओह माई गॉड.....87 मैसेज़ेज.......हू द हेल इज दिस.......पागल हो गया है क्या ये लड़का..........नो....नो....नो......इससे तो अब बात करनी ही पड़ेगी वरना लगातार मैसेजेज ही भेजता रहेगा............."
तभी,

'स्विटSSSSSSSSS'
खुली हुई खिड़की से किसी के होंठों द्वारा बजाई गई सीटी की आवाज गूंजी।
लड़की ने खिंड़की पर टंगे पर्दों को सरकाकर बाहर झांका।
सड़क के उस पार बाइक पर दो लड़के खड़े थे।
एक ने काले रंग का चश्मा लगा रखा था जिसके बालों की स्टाइल काफी हद तक तेरे नाम में सलमान खान जैसी थी और दूसरे ने जल्दी से सुलग रही सिगरेट को पीछे छिपा लिया था और एक हाथ से अपने बालों को संवारने लगा था।
खिड़की पर टंगे पर्दों में हलचल होते देख मानों दोनों के अरमानों को हवा मिल गई हो।
सिगरेट पीने वाले लड़के ने अधजली सिगरेट को सड़क पर फेंका और उसे जूते से कुचल दिया फिर खिड़की की तरफ देखते हुये हाथ जोड़कर सॉरी की एक्टिंग की। अपने कानों को भी पकड़ा।
जबकी दूसरे लड़के ने खिड़की की तरफ देखकर पहले बड़ी स्टाइल से अपने बालों को झटका दिया फिर हाथों को खिड़की की तरफ करके धीरे से हिलाया फिर होठों के पास हथेली को रखकर फूंक मारी।

सुबह के ठीक से 6 भी नहीं बजे थे। इसलिये सड़क पर लगभग सन्नाटा था।
"ओह हो........इन सड़कछाप लड़कों से पीछा नहीं छूटेगा......."
अभी वह पर्दे को बंद करके वापस जाने ही वाली थी की तभी उसकी नजर सिगरेट पीने वाले लड़के की एक हरकत पर गई।
उसने जेब से कुछ निकाला और उसे खिड़की की तरफ उछाल दिया।
निशाना संयोग से काफी सटीक निकला।
वह चीज खुले हुये पर्दों से ठीक अंदर आकर गिरी।
ठीक तभी सड़क पर दो अधेड़ आते हुये दिखे।
लड़कों ने बाइक स्टार्ट की और सड़क के एक छोर पर गुम होते चले गये।
वो पत्थर में लिपटा एक कागज था। जो ठीक बेड पर आकर गिरा था।
उसने उसे उठाया।
खिड़की से बाहर फेंकने को हुई।
लेकिन जिग्यासा के किसी तन्तु ने उसे उकसाया।
कि वो उस कागज को खोल कर देखे।

कागज पर लिखा था-

यू आर सो ब्युटिफुल, आई लव यु सो मच।
प्लीज कॉल मी।
माई नम्बर 945.....00.
आई विल वेट फॉर योर कॉल।
नितिन ठाकुर।
एम.बी.ए।

पढ़ने के बाद कागज के बारीक टुकड़े हवा में उड़ते हुये फिजाओं में बिखर गये।
जिसकी श्रद्धान्जलि में उस लड़की के होठों से सिर्फ इतना ही निकला-
"बॉय-बॉय मिस्टर एम.बी.ए......बेटर लक नेक्ट टाइम.....ईडियट!.......डफर!"
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उस वक्त वो लड़की किचन में चाय बना रही थी जब उसे दूध की कमी महसूस हुई।
उसने घड़ी की तरफ देखा-
"ये दूध वाला अभी तक आया क्यों नहीं...."

'डिंग'-'डांग'

ये एक सुखद संयोग था कि उसी वक्त कॉल बेल बजी।

"इसकी उम्र तो काफी लम्बी है....."

दरवाजे पर वही था।
एक लड़का।
जिसकी उम्र लगभग 14-15 साल के आस-पास थी।
दरवाजा खुलने पर जब उसकी नजर लड़की पर गई तो उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
"मुंह बंद करो नहीं तो मच्छर चला जायेगा...."
वो लड़का शायद एक नम्बर का मुंह फट था।
"इतने टाइट कपड़े मत पहना करो मैडम वरना किसी लड़के का चला जायेगा......"
"व्हाट!!!......"-वो मानों चीख ही पड़ी।
"मेरा मतलब था किसी लड़के की जान चली जायेगी....एक तो आप इतनी खूबसूरत हैं और ऊपर से इस तरह के कपड़े पहनने पर उतनी ही सेक्सी लगती हैं तो फिर लड़को का क्या होगा....."
"मेरी तारीफ कर रहे हो या बेइज्जती....."
"लड़कियों की बेइज्जती ऐसे थोड़ी ही न होती है......उसके लिये तो कपड़े ऊतारने पड़ते हैं....."
लड़के के कानों मे दर्द इसलिये हुआ क्योंकि उसे उमेठा गया-
"अभी भाटा जैसे हो और चले हो कपड़े उतारने......"

लड़की दूध से भरा डिब्बा अंदर लेकर चली गई।
अपने लाल पड़ चुके कानों को सहलाते हुये वो लड़का बड़बड़ा रहा था-
"चलो इसी बहाने छुआ तो......लेकिन इतना भी भाटा नहीं हूं......कभी हात्थे चढ़ोगी तब बताऊंगा.......चिकनी मुर्गी....जो हिरोइन बनकर मटकती हो न.....बिस्तर से उठ नहीं पाओगी..."

लड़की खाली डिब्बा लेकर वापस लौटी।
"डिब्बा लो और फूटो यहाँ से......"
लड़के ने डिब्बा लेने के बहाने लड़की का हाथ धीरे से छु लिया।
"दोगी?......"
"तुम पिटोगे किसी दिन......."-लड़की ने दांत मिसमिसा  कर घुड़का।
"मैं तो पैसे मांग रहा था.....आपको हमेशा गलत ही लगता है...."
"मॉम आयेगी तब मिलेगा....."

'भड़ाकSSSSSSSSSS'
इसी के साथ दरवाजा बंद हो गया।
लेकिन,
'चिंउSSSSSS'
दरवाजा फिर खुला।
लड़की ने देखा की लड़का साइकिल लेकर आयरन गेट के पास तक पहुंच चुका है।
लेकिन जैसे ही वो गेट को क्रास कर रहा था वैसे ही उसने पीछे मुड़ कर देखा।
'भड़ाकSSSSSSSSS'
लड़की ने एक झटके से दरवाजा बंद कर लिया।
उसके दिल की धड़कने बढ़ गई थीं।
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चाय की चुसकियों के संग लड़की ने पहला मैसेज पढ़ा-

'सॉरी मैनें आपसे झूठ बोला
मेरा नाम कलश नहीं है।
आपसे बात करने के लिये मेरे मुंह से अनायास ही ये नाम निकल गया'

दूसरा मैसेज था-

'मैं कौन हूं?
ये मैं आपको नहीं बता सकता
शायद मैं अपने बारे में कुछ भी नहीं बता सकता लेकिन.....'

तीसरा मैसेज था-

'एक बात जरूर बताना चाहूंगा....
मुझे एक बिमारी है
लवफोबिया.......'

चौथा मैसेज था-

'इस बिमारी की वजह से मुझे प्यार से डर लगता है....
डाक्टरों के मुताबिक मुझे कभी किसी से प्यार नहीं करना चाहिये...
वरना मेरी जान जा सकती है.....लेकिन....'

अभी वो पांचवा मैसेज पढ़ने ही जा रही थी कि ठीक तभी-
'डिंग-डांग'
कॉल बेल एक बार फिर बजी।
लेकिन इस बार दरवाजे पर कौन होगा? इसका अनुमान लगाना कठिन था।
उसने दरवाजा खोला-
काफी हद तक परिचित लेकिन कुछ अपरिचित चेहरा दरवाजे पर था।
उस लड़की ने चेहरे को देखा।
पहचानने की कोशिश जैसे भाव उसके चेहरे पर थे।
"मेरा अखबार पता नहीं कौन चुरा ले जाता है?......चाय के साथ अखबार न पढ़ुं तो लगता है अभी सुबह ही नहीं हुई......अगर आपका पेपर खाली हो तो....."
"ओह.....मनोज अंकल आप है.....मैं तो आप को पहचान ही नहीं पाई...."
कुछ शर्म और झेप जैसे भाव व्यस्क के चेहरे पर उभरे।
"एक्चुअली में हमारे फ्रेन्ड की शादी थी कल तो इसीलिये अपने फ्रेन्ड की रिक्वेस्ट पर मैने मुस्टैंग(मूंछे) कटवा ली और बालों में थोड़ा सा गार्नियर करवा लिया.......ऐम आई लुक गुड आर फनी......"
एक झूठ से अगर किसी को खुशी मिलती है तो वो झूठ बोल देना चाहिये लेकिन वो झूठ ऐसा नहीं होना चाहिये की सामने वाले को लगे की आप बस खानापूरी कर रहे हैं।
"यू लुक सो स्मार्ट अंकल बट......बालों कि स्टाइल कुछ अलग होनी चाहिये..."
"ओह या ऑफकोर्स.....मुझे भी कुछ पसंद नहीं आया था.....सैलून वाले को मैने बोला भी कुछ अलग करो बट मुझे लगा कि लोग क्या सोचेगे बस इसीलिये........लेकिन तुमने कहा है तो करवा ही लेता हूं......जिसको जो सोचना है सोचे....आखिर किसी को तो अच्छा लगेगा......राइट!"
"अंकल, जो चीज अच्छी है वो तो सभी को अच्छी लगेगी.....इसमें इतना क्यों सोचना।"
"जैसे की तुम....."
ठीक तभी उस व्यस्क का मोबाइल बजा।
"हैलो..."
"दूसरी तरफ से कुछ कहा गया...."
"हाँ बस अभी आया...."
लड़की बड़े गौर से उस व्यस्क का चेहरा देख रही थी।
"क्या हुआ अंकल किसका फोन था?"
"मिसेज का.....कुछ जरूरी काम है...."
"आपको अखबार चाहिये बट आजकल हमारे यहाँ न्युजपेपर नहीं आता..."
"ओह कोई बात नहीं.....मैं कहीं और से मांग लूंगा.."
इधर वो व्यस्क गया। उधर दरवाजा बंद हुआ।
"ओह गॉड.....बच्चे तो बच्चे बूढ़े भी मुझे लेकर सीरियस होने लगे हैं....क्या होगा इन लोगों का......सभी ईडियट और डफर हैं..."
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पांचवा मैसेज-

'पर ऐसी जिन्दगी भी क्या जिन्दगी जिसमें आप किसी से प्यार नहीं कर सकते.....वैसे भी किसी ने कहा है कि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है. कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है...पर....'

छठवां मैसेज था-

'आगे जो कुछ भी लिखने जा रहा हूं शायद तुमको पसन्द ना आये लेकिन न चाहते हुये भी मुझे ये रिस्क लेना पड़ेगा.......उम्मीद करता हूं कि पसन्द न आने पर तुम गुस्सा नहीं करोगी....'

सातवां मैसेज था-

'खुद को बहुत रोका, बहुत समझाया लेकिन वहीं हुआ जो रोमियों को जूलियट से, लैला को मजनूं से, सिरी को फरिहाद से और अब मुझे तुमसे हुआ है.....मैं तुमको कितना चाहने लगा हूं इस बात का अंदाजा तुम इसी बात से लगा सकती हो कि तुम्हारे लिये मेरा ये प्यार........'

'तुझे देखा तो ये जाना सनम'
मोबाइल पर किसी अंजान नम्बर से कॉल आने लगी।
उसने जल्दी से कॉल को निषेध कर दिया।
क्योंकि मैसेज को पूरा पढ़ने से वो खुद को न रोक पाई-
'.......तुम्हारे लिये मेरा ये प्यार, मेरी जान भी ले सकता है...पर...'

'तुझे देखा तो ये जाना सनम'
आठवां मैसेज पढ़ने से पहले एक बार फिर उसी नम्बर से कॉल आने लगी।
इस बार उसने फोन को उठा लिया-
"हैलो....."
"तुमको क्या लगा....मुझे फोन नहीं करोगी तो मुझे तुम्हारा नम्बर ही नहीं मिलेगा...."
"सॉरी मैंने पहचाना नहीं......आप हैं कौन?"
"थोड़ी देर पहले मैने ही वो कागज तुम्हारी खिड़की से अंदर फेंका था....पता नहीं तुमने वो कागज पढ़ा भी था या नहीं......"
"देखिये मिस्टर......आप जो कोई भी हो यक्स, वाई, जेड....मुझे इससे कोई मतलब नहीं....दुबारा आपकी कॉल मेरे मोबाइल पर नहीं आनी चाहिये वरना....काइन्ड फॉर योर इन्फॉरमेशन मेरे अंकल पुलिस में हैं....मैं क्या करुंगी ये बताने की मुझे जरूरत नहीं...."
इतना बोलकर उस लड़की ने फोन काट दिया।
फोन काटने के बाद वो मोबाइल को अनवरत देखती रही।
कुछ सेकेन्ड बाद स्क्रीन पर क्लॉक का आइकॉन उभरा-
"ओह माई गॉड..........आई एम गेटिंग लेट......."
वह जल्दी से उठी और किचन की तरफ भागी।
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फ्राइंग पैन में एक अण्डा अपने सफेद ढाँचे के बीच में फंसे एकलौते दिल को बार-बार उछाल रहा था।

आठवां मैसेज था-
'अब तो ऐसा लगता है जैसे मेरी जान मुझमें नहीं बल्कि तुममें बसी हो......अगर मरना ही है तो क्यों न किसी की चाहत में जान दी जाय....कम से कम मरने के बाद कोई तो उस जान की कीमत समझेगा...."

"ईडियट........मैं क्या चेहरे से गधी दिखती हूँ जो इस तरह के ड्रामेटिक मैसेजेज पढ़कर इम्प्रेस हो जाऊंगी.......लवफोबिया.......ग्रेट! क्या नाम रखा है...."

'चिड़...चिड़SSSSSS'
खुद से बतियाने में वो इस तरह खोई की हाफफ्राई, हाफ से कुछ ज्यादा ही फ्राई हो गया था।
"ओह सिम.....तेरा ध्यान कहाँ है?.....जस्ट कन्सन्टे्ट हनी.....वरना मुर्गी अपने एग की ऐसी इन्सल्ट देख कर गालियाँ बकेगी...."
फ्राईंग पैन ने अण्डे का वजन प्लेट तक ढोया।
तब तक मोबाइल किचन के शेल्फ पर विश्रामरत था।
**********************************************************
दो सिके हुये ब्रेड के बीच में अण्डे की कुरमुरी सी पर्त।
जिसका एक हिस्सा दांतों के बीच फंसा कुतरा जा रहा था।
"हूSSSSSSSSS....."
स्वाद की उत्तम भवाभिव्यक्ति।

नौवां मैसेज था-
'मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ शायद ये बताने के लिए मैं जिन्दा न रहूँ इसलिए बस इतना ही कहना चाहूंगा कि अगर मौत मेरे नसीब में लिखी है तो मौत से सिर्फ इतनी दरखास्त करूंगा कि वो मुझे इतनी मोहलत दे कि मैं तुम्हारे साथ कुछ लम्हें गुजार सकूं ताकि ऊपर जाने के बाद अगर मुझे नरक भी मिले तो मैं तुम्हारे साथ गुजारे हसीन पलों के साथ नर्क की पीड़ा को भी हंसते-हंसते' बरदास्त कर लूं.....'
"ओह हो क्या बात है,लगता है मुझे अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करवानी पड़ेगी ताकि लोग मुझे देखकर बेवकूफ समझने की गलती न करें"
ठीक तभी-
'डिंग-डांग'
कालबेल बजी।
"कौन?"
"पुलिस"
"उफ हो ये फिर से आ गया.."-लड़की बुदबुदाई।
उसने अनमने भाव से दरवाजा खोला,
सामने एक इंस्पेक्टर खड़ा था।
थोड़े साँवले रंग का था लेकिन हट्टा-कट्टा। घनी मूँछे और लाल आंखें। उसके मुँह से शराब की बदबू आ रही थी।
"क्या है?"-आवाज में उपेक्षा का भाव था।
इं. ने उसे सिर से लेकर पाँव तक देखा-
"आज किसी लड़के ने आपको परेशान तो नहीं किया मैडम?"
"जी नहीं..."
"क्या बात है आप थोड़ा गुस्से में हैं?"-होठों पर जुबान फेरते हुए उसकी नजर लड़की के उन्नत उरोजों पर थी।
"जी हाँ....क्योंकि पिछले दो हप्तों से आप रोज यही सवाल पूछने यहाँ आते हैं?...हालाकि उस दिन कालेज से आते वक्त जिन लड़कों ने मेरे साथ बदतमीजी की थी उनको आपने डाँट कर मेरी बहुत हेल्प की लेकिन प्लीज आप रोज इस तरह आयेंगे तो लोग गलत समझेंगे।.....आइंदा अगर किसी ने मुझे परेशान किया तो आपका नम्बर है मेरे पास आपको फोन करके बुला लूंगी...."
"क्या करें मैडम, आप जैसी खूबसूरत लड़कियों की हिफाजत करना हम लोगों का फर्ज है।....आये दिन आप अखबारों में तो पढ़ती ही रहती होंगी कि लड़कियों के साथ कहीं न कही बदतमीजी हो रही है और आप तो सिर से पाँव तक इतनी खूबसूरत हैं आपको तो स्पेशल प्रोटेक्शन की जरूरत है।....वैसे आपको यहाँ नहीं मुम्बई में होना चाहिए था। मैं शर्त लगाकर काह सकता हूँ कि अगर आप वहाँ चली जाए तो बाकी सब की छुट्टी हो जायेगी। "
"थैक्यू फॉर द काम्पलिमेन्ट लेकिन अब क्या आप जायेंगे मुझे घर का ढेर सारा काम करना है।"
"आज आपकी मम्मी नहीं दिखाई दे रही हैं?"
"व..वो भीतर किचन में हैं"- लड़की ने सुरक्षात्मक कारणों से ये छोटा सा झूठ बोला क्योंकि शराब के नशे में किसी भी पुरूष का भरोसा नहीं किया जा सकता।
"ओ.के मैडम...आंटी को मेरी तरफ से हैलो बोल दीजिएगा.....और आगे से कोई आपको..."
'भड़ाक'
इससे पहले इं. अपना वाक्य पूरा कर पाता दरवाजा बहुत तेजी से बंद हो चुका था।
जो इं. के लिए इस बात का संकेत था कि- यहाँ दाल नहीं गलने वाली.
पर दाल अगर इतनी जायकेदार हो तो भला छोड़ने का मन कैसे होगा!

अगला भाग बहुत ही जल्द आयेगा.....
....बस इंतजार कीजिए!

--
Raj Sharma

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