Wednesday, January 2, 2013

कामुक तरंग



कामुक तरंग


मैं एक अच्छे खाते-पीते परिवार की बहु हूँ। मेरा नाम प्रियंका है। मैं एक 22 बाईस वर्षीय युवती हूँ। मेरी शादी को मात्र दो वर्ष बीते हैं। मैं अपने घर में एकमात्र लड़की थी। मेरे दो बड़े भाई थे। दोनों विदेश में रहते थे। मेरे पिता सरकारी अफसर थे। इतने बड़े अफसर थे कि उन्हें बंगला मिला हुआ था। मेरी माँ एक पढ़ी-लिखी स्त्री थी जो अपना अधिकतर समय तरह तरह के सामाजिक कार्यों या क्लबों में बिताती थी। मेरे बड़े भाइयों ने शादी भी विदेशी लड़कियों से की थी।

मैं स्कूल से ही आवारा हो गई थी। मैं कान्वेंट स्कूल में पढ़ती थी। जब मैं अठारहवें वर्ष मैं पहुंची। उस समय मैं ग्यारहवीं कक्षा में थी। तब से मेरी बर्बादी की कहानी आरम्भ हुई। जो इस प्रकार है-

मैं विज्ञान के विषय में जरा कमजोर थी। विज्ञान के टीचर मिस्टर ठाकुर मुझे तथा एक अन्य लड़की श्वेता को हमेशा डांटा करते थे। श्वेता तो मुझसे भी ज्यादा कमज़ोर थी। वह भी एक सम्पन्न परिवार से थी। अच्छी खासी सुंदर थी।

परिक्षाएँ निकट आ रही थी। मुझे ठाकुर सर की वार्निंग रह रह कर सता रही थी।

उन्होंने कहा था- "प्रियंका और श्वेता तुम दोनों ने अगर विज्ञान में ध्यान नहीं दिया तो तुम दोनों का रिजल्ट बहुत खराब आएगा !"

मैं चिंताग्रस्त हो उठी थी।

लेकिन एक दिन जब मैं स्कूल पहुंची। तो मैने श्वेता को बहुत ही प्रसन्न अवस्था में पाया। मैने श्वेता से पूछा- "क्या बात है श्वेता। तुम कैसे इतनी प्रसन्न हो। क्या तुम्हें ठाकुर सर की बात याद नहीं है?"

"अरे छोड़ो ठाकुर सर का खौफ और भूल जाओ विज्ञान में फेल होने का भय....!" श्वेता ने लापरवाही से कहा।

मुझे सख्त हैरानी हुई। मैने गौर से उसके चेहरे को देखा। उसकी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों में चंचलता विराजमान थी और गुलाबी अधरों पर मुस्कराहट !

उसके ऐसे तेवर देख कर मैने पूछा- "क्या बात है। ऐसी बातें कैसे कर रही है तू...क्या अपने विज्ञान को सुधार लिया है या फिर विज्ञान में पास होने जाने की गारंटी मिल गई है?"

"ऐसा ही समझ प्रियंका डार्लिंग ! श्वेता ने मेरी कमर में चिकोटी काटी।"

मैं तो हतप्रभ रह गई।

"क्या मतलब...?"-मैने स्वाभाविक ढंग से पूछा।

"मतलब जानना चाहती है तो एक वादा कर कि तू किसी को यह बात बताएगी नहीं ! जो मैं तुझे बताने जा रही हूँ !" श्वेता धीमे स्वर में बोली।

"ठीक है नहीं बताउंगी !" मैं बोली।

"और हाँ.....अगर तुझे भी विज्ञान में अच्छे नंबर लेने है तो तू भी वो तरकीब अपना सकती है जो मैने आजमाई है !" श्वेता बोली।

"अच्छा.....ऐसी क्या तरकीब है?" मैने पूछा।

"सुन.......! ठाकुर सर ने ही मुझे बताया था और मैने उन्होंने जैसा कहा था वैसा ही किया....बस मेरे विज्ञान में पास होने की गारण्टी हो गई....."-श्वेता बोली।

"अच्छा...अगर तूने वह तरकीब आसानी से अपना ली है तो फिर मैं भी आजमा सकती हूँ। ज्यादा कठिन थोड़े ही होगी...!"-मैं बोली।

"कठिन.....? अरे कठिन तो बिलकुल भी नहीं है....बल्कि इतनी आसान है कि पूछ मत....लेकिन थोड़ी अजीब जरूर है......!" श्वेता बोली।

"अच्छा.....फिर बता...."-मेरी जिज्ञासा बढ़ गई थी।

"अपने ठाकुर सर हैं न......उन्हें डांस देखने का बहुत शौक है......अकेले रहते हैं न अपने फ्लैट में....बस उनके सामने डांस करना होता है......"- श्वेता बोली।

"क्या.....डांस.........कैसा डांस.....?" और फिर डांस से विज्ञान में पास होने का क्या सम्बन्ध ?" मैने उलझते हुए कहा।

"अरे......डांस तो डांस होता है....बस ये है कि थोड़ा थोड़ा कैबरे करना होता है......वो तो मैं तुझे करवा दूंगी। और इसका पास फेल से सीधा सम्बंध है। क्योंकि ठाकुर सर ने ही पिछले साल छः स्टूडेंट्स को उनके डांस से खुश होकर ही पास करवा दिया था। अब मैं भी पास हो जाउंगी क्योंकि वे मेरे डांस से भी खुश हो गए हैं...."-श्वेता बोली।

"डांस कैसे करना होता है? मेरा मतलब है कि कपड़े पहन कर करना होता है या बिन कपड़ों के.....?"- मैने आशंकित स्वर मैं पूछा। क्योंकि कैबरे तो लगभग नंगा ही होता है।

"अरे पागल....कपड़े पहन कर...ये अपनी शर्ट और स्कर्ट की ड्रेस पहने हुए ही.....बस कुछ इस तरह के स्टेप्स लेने पड़ते है कि स्कर्ट के ऊपर उठने से जांघों की झलक दिखाई दे और शर्ट के अन्दर स्तन हीलें......"-श्वेता ने कहा।

"क्या.....?"- मैं चौंकी और फिर बोली- "ऐसा क्यों....?"

"तू तो बिलकुल अनाड़ी है....अरे ठाकुर सर को ऐसा अच्छा लगता है बस....इसलिए ! अब ज्यादा ना सोच !अगर तुझे विज्ञान में पास होना हो तो मुझे कल बता देना...!" इतना कह कर श्वेता मेरे निकट से उठ गई।

मैं उसके बाद सारा दिन और रात को सोते समय तक सोचती रही। अगले दिन मैने श्वेता से कह दिया कि मुझे मंजूर है। पर मेरे साथ तू भी डांस के लिए चलेगी ठाकुर सर के घर पर !वह तैयार हो गई।

बस फिर क्या था। हम दोनों उसी शाम ठाकुर सर के फ्लैट पर पहुँच गये। ठाकुर सर ने दरवाजा खोला। सामने हम दोनों लड़कियों को पाकर उनकी छोटी--छोटी आँखें चमक उठीं। मेरे मन में ख्याल आया कि मैं कहीं कुछ गलत तो नहीं करने जा रही ? लेकिन श्वेता के चेहरे पर छाये आत्मविश्वास ने मुझे भय मुक्त कर दिया। हम दोनों को अन्दर करके ठाकुर सर ने दरवाजा बन्द कर दिया।

ठाकुर सर ने कुर्ते के नीचे लुंगी बाँध रखी थी- "आओ श्वेता.......अन्दर चलो.....वहाँ कालीन बिछा है। वहीं बैठेंगे !"-ठाकुर सर ने कहा।

श्वेता मेरे हाथ को थामे एक दूसरे कमरे में घुस गई। मैने उस कमरे का वातावरण देखा तो चिहुँक उठी। कमरे में ट्यूब लाइट की रौशनी बिखरी हुई थी। दीवारों पर हालीवुड की सेक्सी हिरोइनों के अत्ति उत्तेजक पोस्टर चिपके हुए थे। तीन पोस्टरों में से एक पर बहुत ही सेक्सी शरीर वाली हीरोईन ने मात्र निक्कर और छोटा सा टॉप पहना हुआ था। जिसके दोनों पल्ले उसने अपने हाथों से खोल कर पकड़े हुए थे। उसके बिलकुल गोलाई में तने स्तन अनावृत थे। दूसरे पोस्टर की हीरोईन ने अपने नितंब ताने हुए थे। वह आगे को झुकी हुई थी। उसके चिकने नितंबों के मध्य बिकनी की बारीक सी पट्टी जाकर खो गई थी। तीसरे पोस्टर में हीरोईन ने अपने कमनीय शरीर पर मात्र एक पारदर्शी गाउन पहना हुआ था। उसका शरीर उसमें से पूरी तरह झलक रहा था। उसने अजीब से ढंग से आँखें बंद करके एक खंबे को पकड़े हुआ था। फर्श पर कालीन बिछा हुआ था। एक कोने में एक म्यूजिक सिस्टम रखा था।

इससे पहले कि मैं कमरे की डैकोरेशन पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करती। श्वेता ने मेरा हाथ छोड़ कर म्यूजिक सिस्टम पर एक तेज रफ़्तार के संगीत का अंग्रेजी गानों का कैसेट चढ़ा दिया। कमरे में स्वर लहरियां गूँजने लगी और श्वेता बिना किसी पूर्व सूचना के थिरकने लगी। मैने गौर किया कि वह अश्लील ढंग से मटक रही थी और भांति-भांति का चेहरा बना रही थी।

"अरे...तू खड़ी क्यूँ है ?.....शुरू हो जा....!"- श्वेता ने मटकते हुए कहा।

मैं चुप रही और उसके अंदाज देखने लगी। उसकी घुटनों से ऊँची स्कर्ट बार-बार ऊपर उड़ती थी और उसकी केले के तने जैसी चिकनी और गोरी जाँघें बार-बार चमक रही थी। उसके चौड़े कूल्हे भी उत्तेजक ढंग से संचालित हो रहे थे। शर्ट में कैद अर्ध-विकसित स्तन जो कि अमरुद के आकार के थे। बार-बार हील रहे थे। उसने शर्ट के तीन बटन भी खोल रखे थे। जहां से गोरे-चिट्टे सीने का गुलाबी रंग स्पष्ट नजर आ रहा था।

उसी समय ठाकुर सर कमरे में आये। उनके हाथों में दो बीयर थी और तीन गिलास थे।

वे श्वेता से बोले- "श्वेता....! पहले कुछ पी लो ! फिर नाचना। कम..आन.......बैठो प्रियंका तुम भी बैठो !"- ठाकुर सर ने कहा।

श्वेता ने नाचना बंद कर दिया और मेरा हाथ पकड़ कर बैठती हुई बोली- "बैठ न यार ! कैसे अजनबी की तरह खड़ी है....भूल जा सब कुछ......इस समय ठाकुर सर हमारे टीचर नहीं बल्कि हमारे फ्रेन्ड हैं....कम....आन....."

मैं उसके साथ बैठ गई।

श्वेता ने एक टाँग पूरी फैला ली थी। दूसरी का घुटना ऊपर को मोड़ लिया था और एक हाथ को कालीन पर टिका दिया था। टांगों की विपरीत मुद्रा के कारण उसकी स्कर्ट उसकी चिकनी जाँघों से काफी ऊपर तक हट गई थी यहाँ तक कि उसकी आसमानी रंग की पेंटी की किनारी भी दिख रही थी। मगर उसे इस बात की खबर ही नहीं थी।

ठाकुर सर ने तीनों गिलास में बीयर डाली और हम दोनों से कहा- उठाओ भई अपने गिलास !

उन्होंने खुद भी एक गिलास उठा लिया था। श्वेता ने भी एक गिलास उठाया तो मैने भी गिलास उठा लिया।

मैं पलथी मारकर बैठी थी इसलिए मेरी स्कर्ट में मेरी टाँगे छुपी हुई थी। मेरी शर्ट के भी सभी बटन लगे हुए थे। बीयर मेरे लिए नई चीज नहीं थी। मैं पहले कह चुकी हूँ कि मैं एक धनी परिवार से हूँ। इसलिए कई बार कई पार्टियों में मैं बीयर चख चुकी हूँ।

ठाकुर सर ने हमारे गिलास से अपना गिलास टकराकर कहा- "चियर्स.....! तुम दोनों के विज्ञान में पास हो जाने की गारंटी की ख़ुशी में......"-यह कह कर उन्होंने अपना गिलास अपने मुख से ना लगाकर श्वेता के मुख से लगा दिया तो श्वेता ने उसमें से एक घूंट भर लिया। श्वेता ने अपना गिलास मेरे होठों से लगा दिया। मैंने असमंजस की स्थिति में उसमे से एक घूंट भर लिया और यंत्रवत अपने गिलास को ठाकुर सर के होंठों से लगा दिया। ठाकुर सर ने एक घूंट भर लिया और फिर हम अपने-अपने गिलास से बीयर पीने लगे।

ठाकुर सर पैंतीस छत्तीस साल के आकर्षक व्यक्ति थे। उनका कद साढ़े पांच फुट या उससे दो एक इंच ज्यादा था। शरीर गठीला था इसलिए हरेक ड्रेस में जंचते थे। इस समय उन्होंने कुर्ते के नीचे लुंगी पहनी हुई थी। कुर्ते के चांदी के बटन खुले हुए थे। जहां से उनके चौड़े सीने के काले-काले घुंघराले बाल दिख रहे थे। यूँ तो मैंने इससे पहले अपने पिता के सीने के बाल देखे थे पर जैसी फीलिंग मुझे इस समय हुई वैसी फीलिंग पहले कभी नहीं हुई थी। उन्होंने भी एक घुटने की पालथी मारी हुई थी और दूसरे को ऊपर उठाया हुआ था। ऊपर उठे घुटने से लुंगी नीचे ढलक गई थी। इस कारण उनकी जांघ भी अंतिम छोर तक दिख रही थी। यूँ तो पूरी टाँग पर ही घुंघराले बाल थे पर जांघ पर कुछ ज्यादा ही थे। वयस्क पुरुष की जांघ इस हद तक नंगी मैं पहली बार देख रही थी।

"कैसे चुप हो प्रियंका.....क्या कुछ सोच रही हो?" ठाकुर सर ने कहा।

"जी....जी.....नहीं तो......!"-मैंने अपनी नजर उनकी जांघ से हटा कर कहा और गिलास में से अंतिम घूंट भर कर गिलास खाली किया।

हालांकि सीलिंग फेन चल रहा था फिर भी मुझे कुछ गर्मी महसूस हुई। बगलों में पसीना भी महसूस हो रहा था। ऐसी ही स्थिति शायद श्वेता ने भी महसूस की। तभी तो उसने अपनी शर्ट का एक बटन और खोल कर कहा- "उफ ! ज़रा से स्टेप्स में ही कितनी गर्मी लग रही है !" एक और बटन के खुल जाने से उसकी शमीज का जरा सा हिस्सा प्रकट हो गया और स्तनों का ऊपरी भाग जहां शमीज नहीं थी उजागर हो गया।

"अब नाचो भई ! जब थोड़ा थक जाओ तो फिर बीयर का दौर चल जाएगा !...."- सर ने कहा।

श्वेता तुरंत खड़ी हो गई और उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे भी उठा लिया। मैं यंत्रवत सी उठ गई।

श्वेता ने म्यूजिक सिस्टम की आवाज जरा बढ़ा दी और फिर थिरकने लगी। वह मुझे भी अपने साथ नचाने लगी। मेरे भी पांव उठ गए। कमरे में गूंजती अंग्रेजी संगीत की स्वर लहरियां कामुकता के स्वर में डूबती जा रही थी और मेरे साथ थिरकती श्वेता की हरकतें शरारतों का रूप लेती जा रही थी। वह जब-तब मेरी कमर में हाथ डाल कर उसे मेरे सुडौल नितंबों तक ले जाती। वहाँ से स्कर्ट को उपर सरका कर अपने हाथ उपर ले आती। कभी स्कर्ट को कमर तक घसीट लाती और मेरी जांघें पूरी की पूरी नग्न हो जाती या फिर मेरे गालों पर चुम्बन ही जड़ देती या मेरी बगल में हाथ डाल कर मेरे उन्नत व कठोर स्तनों को ही दबा जाती।

मेरे युवा शरीर में उसकी इन छेड़खानियों से एक रस सा घुलता जा रहा था। उसी रस के नशे में डूब कर मैं उसकी किसी भी हरकत का विरोध नहीं कर रही थी बल्कि स्वयं भी कई बार उसकी हरकतों का अनुसरण करते हुए उसके घुटनों पर हाथ ले जाकर हाथ को उसकी स्कर्ट में डाल देती या फिर उसकी कमर में हाथ डाल कर उसके हिलते स्तनों को पुश कर देती। हम दोनों के इस डांस का ठाकुर सर आँख फाड़-फाड़ आनंद ले रहे थे।

पन्द्रह मिनट तक लगातार नाच कर श्वेता ने मेरा साथ छोड़ दिया और ठाकुर सर के पास जाकर बैठ गई। मैं भी रुक गई और उसके पास जाकर बैठ गई।

"उफ....यार ठाकुर !....गर्मी बहुत है !....शर्ट उतारनी पड़ेगी !.....तुम बीयर डालो....!"- श्वेता ने लापरवाही से यह कहते हुए शर्ट के सारे बटन खोल कर उतार दिया और एक कोने में डाल दिया।

उसके तने हुए स्तनों पर एक मात्र पारदर्शी शमीज रह गई। शमीज में से स्तनों के गुलाबीपन का पूरा नजारा हो रहा था। स्तनों की कठोर घुन्डियाँ शमीज में उभरी हुई थी।

ठाकुर सर तीनों गिलास में बीयर डाल रहे थे। पसीना मुझे भी आ रहा था। मेरी कनपटियाँ बगलें और सीना पसीने से भीग रहे थे।

श्वेता ने अचानक ही मुझसे कहा- "अरे पसीने में तो तू भी नहा रही है। उतार दे ये शर्ट !......थोड़ी हवा लगने दे बदन को !........"-यह कहते हुए उसने अपने हाथ बढ़ाये और फुर्ती से मेरी शर्ट के बटन खोलती चली गई।

मैं गुमसुम की स्थिति में उसे रोक न पाई और देखते ही देखते उसने मेरी शर्ट मेरे बाजुओं से निकाल कर अपनी शर्ट के पास फेंक दी। मेरे स्तन श्वेता से जरा भारी थे। उनका रंग भी शमीज से बाहर झाँक रहा था। दोनों स्तनों के अनछुए मगर कठोर निप्पल शमीज में अलग से ही उभर रहे थे। मुझे यह इतना बुरा नहीं लग रहा था कि मैं श्वेता और ठाकुर सर से विदा ले लेती। अब सवाल विज्ञान में पास या फेल होने का नहीं रह गया था बल्कि अब तो मेरा युवा शरीर अपनी सामयिक आवश्यकता के हाथों मुझे विवश कर चुका था और मैं श्वेता और ठाकुर सर का साथ ना चाह कर भी दे रही थी।

ठाकुर सर ने भी अपना कुर्ता उतार दिया। उनका चौड़ा सीना अनावृत हो गया। उनके सीने के दोनों छोटे-छोटे निप्पल अनायास ही मुझे आकर्षित कर गये थे। सीने से मेरी नजर फिसली तो फिसलती चली गई। उनके सपाट पेट के नीचे गहरी नाभि और फिर नाभि से काले-काले बालों का क्षेत्र आरंभ हुआ तो लुंगी के ढीले बंधन के नीचे जाकर ही लुप्त हो रहा था। मेरे मन में तीव्र उत्कंठा उत्पन्न हुई यह जानने की कि लुंगी के नीचे ये बालों का क्षेत्र कहाँ तक गया है ! उन्होने लुंगी के नीचे कुछ पहना भी नहीं था अगर अंडरवियर पहना होता तो उसका नेफा तो दिखाई देता ही !

हम तीनों ने बीयर का एक-एक गिलास और पिया। ठंडी बीयर मेरे सीने में ठंडक बिछाती चली गई।

"तूने देखा प्रियंका....अपने ठाकुर सर का सीना कैसा फौलादी है और बाल कैसे घुंघराले हैं ! किसी भी लड़की का ईमान डिगा देने वाली कठोर सीना हैं इनकी !"- श्वेता ने उन्मुक्त शब्दों का प्रयोग किया।

मुझे तनिक अचरज हुआ। मैने चौंकती नजर से ठाकुर सर के चेहरे को देखा कि शायद श्वेता के उन्मुक्त शब्दों पर कुछ कठोर प्रतिक्रिया करें पर वहाँ तो प्रसन्नता के भाव थे। उल्टे ठाकुर सर ने श्वेता की नंगी जांघ पर हाथ की थपकी देकर रंगीन से स्वर में कहा- "इन मरमरी जाँघों से तो हार्ड नहीं है मेरा सीना !" उनके स्वर में मजाक का पुट था। श्वेता तुरंत उठ खड़ी हुई और संगीत की स्वर लहरियों पर थिरकने लगी।

अचानक उसने उस कैसेट को निकाल कर एक अन्य कैसेट लगा कर स्विच ऑन कर दिया। इस कैसेट मैं फीमेल सिंगरों की कामुक आवाजों में उत्तेजक गाने थे। मेरी अंग्रेजी अच्छी थी। गानों के बोल मेरी समझ में आ रहे थे। कुछ लड़कियाँ लड़कों के शारीरिक सौन्दर्य के बारे में अपनी बे-बाक राय को गीत की शक्ल में गा रही थी। मैं भी उस माहौल की गिरफ्त में आती जा रही थी।

श्वेता ने देखा कि मैने अपना गिलास खाली कर दिया है तो उसने मेरी और हाथ बढ़ाया। मैने उसके हाथ को थाम लिया और उठ खड़ी हुई। हल्का-हल्का सुरूर मेरी नसों में घुलने लगा था। श्वेता की भांति मेरी आँखों में भी सुर्ख डोरे उभरने लगे थे। मैं भी नाचने में उसका सहयोग करने लगी थी। संगीत की स्वर लहरियां यौनोत्तेजना को बढ़ाती जा रही थी।

अचानक श्वेता ने अपनी स्कर्ट का हुक ओर जिप खोल कर उसे टांगों से निकाल दिया। उसकी चिकनी ओर गोरी जांघें ट्यूब लाइट के दूधिया प्रकाश में रौशन हो उठी। वह बड़े ही उत्तेजक ढंग से अंग संचालन हर रही थी। आसमानी रंग की पेंटी उसके नितंबों पर मढ़ी हुई सी प्रतीत हो रही थी। उसने मेरी बगल में हाथ डाल कर मेरी शमीज को जरा उपर सरका कर मेरा सपाट पेट अनावृत करके उसे आहिस्ता-आहिस्ता सहलाना शुरु कर दिया था। उसके स्पर्श ने मेरे शरीर में एक विशेष प्रकार की अग्नि भड़का डाली थी। जिसे मैंने पहली ही दफा महसूस किया था और मेरी दीवानगी यह थी कि मैं खुद उस अग्नि में जल जाने को बेताब हुई जा रही थी। मेरा हाथ स्वतः ही उसके चिकने नितंबों पर फिसल रहा था। मेरा हलक सूखने लगा था और बजाय रुकने के मेरे पांवों में और तेजी आती जा रही थी।

अचानक श्वेता मेरे साथ नाचना छोड़ कर ठाकुर सर के पास जाकर लहराई और ठाकुर सर को हाथों से पकड़ कर अपने साथ नाचने के लिए उठा लिया। ठाकुर सर जैसे ही खड़े हुए उनकी लुंगी नीचे गिर गई। वह बंधी हुई नहीं थी बस ऐसे ही उनकी जाँघों के जोड़ पर लिपटी हुई थी शायद और उनकी जाँघों के मध्य लटकते उनके काले रंग के काफी लंबे अंग को देख कर मैं ठिठक सी गई। मैं जानती थी कि यह उनका लिंग है मगर किसी पुरुष का लिंग इतना बड़ा हो सकता है। यह मेरे लिए आश्चर्य का विषय था।

श्वेता और ठाकुर सर एक दूसरे के शरीर पर हाथों से संवेदनशील स्पर्श देते हुए नाचने लगे। उनका नृत्य धीमा था लेकिन था अति-कामुक !

उनके स्टेप्स देख कर मेरे शरीर में चींटियाँ सी दौड़ने लगी। मैं नाचना भूल गई थी और चुपचाप आश्चर्य और अजीब से आकर्षण में बंधी उन दोनों के क्रियाकलाप देखने लगी।

ठाकुर सर ने देखते ही देखते श्वेता की शमीज की जिप खींच कर उसे उसके गोरे शरीर से अलग कर दिया। श्वेता के स्तन किसी फ़ूल की भाँति खिल उठे। ठाकुर सर ने उन्हें अपने हाथों में संभाल लिया। वे उन्हें बड़े प्रेम से सहलाने लगे। श्वेता उनके पुष्ट नितंबों पर हथेलियाँ टिका कर आँखें बंद किये धीरे-धीरे नाच रही थी। ठाकुर सर भी हल्के-हल्के थिरकते हुए उसके स्तनों को तो कभी गहरे गुलाबी रंग के निप्पलों को चुटकियों से मसल रहे थे। श्वेता के होंठ बार-बार खुल रहे थे और उसके कंठ से मादक सिसकारियां उभर रही थी।

अचानक ही ठाकुर सर ने अपना सर झुका कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसके अधरों का रस पान करने लगे। श्वेता का शरीर हल्के-हल्के कंपन से भरने लगा था। उसका हाथ अभी भी ठाकुर सर के नितंबों पर गर्दिश कर रहे थे। सर का लगभग बारह इंच का लिंग अपने पूरे आकार में तन गया था। वह बार - बार झटके लेकर श्वेता की पेंटी के उस स्थान से टकरा रहा था जिसके नीचे उसकी योनि छिपी थी।

मैं भी उत्तेजना के भंवर में फंसती जा रही थी। मेरे हाथ अपनी शमीज में घुस गए थे और अपने कठोर स्तनों को मैं स्वयं ही मसलने लगी थी। इस क्रिया ने मेरे मस्तिष्क को झंकृत कर दिया था। मैं उन्मादित हुई जा रही थी। जाने कब मेरे हाथों ने मेरी शमीज को शरीर से निकाल दिया था। मैं अपने स्तनों को मसलते हुए बार-बार आनंद की हिलोरों में अपनी आँखें बंद कर लेती थी। मेरा हलक प्यास के कांटों से भर गया था। मैं कामोत्तेजना की तरंग के घूंट से पी रही थी। मेरी आँखें खुली तो देखा की अब ठाकुर सर ने अपने होंठ श्वेता के स्तनों पर लगा दिए थे। वे बारी-बारी से दोनों काम पुष्पों का मानो रस पी रहे थे। श्वेता उनके सर को सहला रही थी और मादक सिसकारियों से उसका कंठ भर गया था। अब उसके हाथों में सर का काफी लंबा और काफी मोटा लिंग मानो एक नई शक्ल पाने जा रहा था।

मैं अपने आप को रोक ना सकी और आगे बढ़ कर श्वेता से लिपट सी गई। मैने भी उसके एक स्तन को थाम लिया और निप्पल को चूसने लगी। अब ठाकुर सर ने मेरे भारी स्तन थाम लिए और उन्हे मसलते हुए मेरे अधरों को चूसने लगे। श्वेता का एक हाथ मेरी स्कर्ट को नीचे खिसकाने की असफल कोशिश करने लगा तो मैने स्वयं ही अपनी स्कर्ट उतार दी। अब वह मेरी गुलाबी रंग की पेंटी को नीचे खिसकाते हुए मेरे नितंबों में आग जैसी भरने लगी।

ठाकुर सर ने मुझे नीचे झुकाया तो झुकाते चले गए। मैं पेट के बल झुक गई। श्वेता मेरे बीच पीठ के बल लेट गई। मेरे हाथ कालीन पर टिक गए। मैने अपने नितंब नीचे करने चाहे तो ठाकुर सर ने उन्हें उपर ही रोक दिया। मेरे घुटने कालीन में जम गए तो ठाकुर सर मेरे नितंबों को सहलाने लगे। उन्होंने पेंटी पहले ही नीचे कर दी थी जिसे मैने टांगों से निकाल दिया। ठाकुर सर अपनी जीभ से मेरी योनि चाटने लगे थे। मेरे शरीर में बिजलियाँ दौड़ने लगी थी। श्वेता मेरे नीचे लेटी मेरे स्तनों को मसले जा रही थी। मैं कामुक सीत्कार कर रही थी।

मेरी योनि में मौजूद भगांकुर को मानो चूस-चूस समाप्त कर देने की कसम ही खा ली थी ठाकुर सर ने ! उनकी इस क्रिया ने मेरी नस-नस सुलगा दी थी।

अचानक उन्होंने मेरी योनि में ढेर सारा थूक लगाया और अपने चिकने लिंग मुंड को योनि द्वार पर टिका कर धक्का मारा। मुझे भारी दर्द महसूस हुआ। लेकिन लिंग-मुंड के फिसल जाने के कारण ज्यादा पीड़ा नहीं हुई।

ठाकुर सर ने अपने हाथों से मेरी जाँघों को चौड़ा किया और अपनी दो उंगलियों से योनि को चौड़ा कर लिंग-मुंड को फिर से फंसा कर धक्का मारा तो मैं धम्म से श्वेता पर गिर पड़ी। श्वेता भी चीख पड़ी। लिंग मुंड फिर भी नहीं घुस पाया।

"ओफ्फो.......तुम जरा अपना वजन अपने हाथों पर नहीं रोक सकती ?.....श्वेता इसकी हेल्प करो जरा !....."- ठाकुर सर ने मेरे नितंबों को पकड़ कर फिर से उठाते हुए कहा।

मैं भी परेशान सी हो गई थी। शरीर में आग लगी थी और अभी तक लिंग भी प्रवेश नहीं हुआ था।

"जरा आराम से करो !....."- श्वेता मेरे कंधों को थाम कर बोली।

ठाकुर सर ने इस बार फिर योनि के द्वार को चौड़ा कर लिंग मुंड फंसाया और मेरी पतली कमर पकड़ कर हल्का सा धक्का दिया। लिंग मुंड योनि को लगभग फाड़ते हुए उसमें उतर गया।

दर्द के मारे मेरी चीख निकल गई- ".....आ ई ई ई ऊई माँ मर गई मैं तो !.....लिंग है या जलता हुआ लोहा !....प्लीज....निकालो इसे !..."- मैं टूटे शब्दों में इतना ही कह पाई थी कि ठाकुर सर ने मेरी पतली कमर पकड़ कर थोड़ा पीछे हट कर एक धक्का और मारा। मैं बुरी तरह चीखी- "उफ.....आई...माँ प्लीज...सर प्लीज ओह...."

और दर्द के मारे मैं आगे कुछ नहीं कह पाई। और अपने सर को कालीन से सटा लिया। मेरी आँखों के आगे तारे से नाच गए थे।

श्वेता मेरे नीचे से निकल गई थी उसने मेरी पीठ को सहलाते हुए कहा- "बस....यार...! हो गया काम !....तू तो बड़ी हिम्मत वाली है ! पूरा का पूरा अन्दर ले गई ! इतनी हिम्मत तो मुझमें भी नहीं थी।"

"पूरा चला गया....?"- मैं कराहती सी बोली।

"हाँ बस एक दो इंच बचा है......!"- श्वेता मेरे नितंबों को चूमते हुए बोली।

"ओह्ह....उफ...अब इतना दर्द नहीं है.....सर...एक दो इंच ही रह गया है तो.....उसे भी अन्दर कर दीजिये...मैं झेल लूंगी...."- मैने कहा।

अब मुझे क्या पता था कि श्वेता झूठ बोल रही है। लिंग अभी आधा बाहर ही है। मैने इसलिए पूरे के लिए कह दिया था कि उसके द्बारा मिला दर्द अब अनोखी सी ठण्डक में बदल गया था।

"गुड...तुम तो बहुत ताकतवर हो प्रियंका....आई लव यू..."- इतना कह कर ठाकुर सर ने मेरे नितंब थपथपाये और लिंग को दो तीन इंच पीछे खीच कर एक जोर का धक्का मारा। मेरा चेहरा कालीन पर घिसटता हुआ सा आगे सरक गया। मुझे लगा लिंग मुंड मेरी पसलियों से टकरा गया है। मेरे हलक से मर्माहत चीख निकली। मेरा हाथ मेरे पेडू पर पहुँच गया। सपाट पेट में एक राड सी चीज का सहज ही आभास हो रहा था। पसलियों से चार छः अंगुल ही दूर रह गया था शायद वह जलता हुआ माँस-दंड !

"उफ.....ओह्ह...सर मैं मर जाउंगी !...आपने झूठ कहा था.....कि....उफ.....ज़रा सा रह गया है........यह तो पूरा फुटा है.....उफ...मेरी योनि में इतनी जगह कहाँ है !....उफ...निकालिए इसे....."- मैं रोती हुई कह रही थी। मेरा हाथ मेरी दर्द से बिलबिलाती योनि पर चला गया। हाथ चिपचिपे से द्रव्य से सन गया। मैने हाथ को आँखों के सामने ला कर देखा तो और डर गई अंगुलियाँ रक्त से लाल थी- "उफ.....मेरी योनि तो जख्मी हो गई....अब क्या होगा.......उफ !"

अचानक ठाकुर सर के हाथ मेरे पेट पर होकर उरोज पर आये और उन्होंने मुझे उठा लिया। अब मैं उनकी गोद में बैठी थी।

उनका मीठा स्वर मेरे कानों में पड़ा- "अब तो वाकई पूरा अन्दर चला गया है....ये तो थोड़ी सी ब्लीडिंग कुमारी छिद्र फटने से होती है.....अब तुम्हें आनंद ही आनंद आएगा !"

उनके हाथ मेरे पेट और उरोज को सहला रहे थे। उनकी बात सच ही थी- अब मेरा दर्द आनंद में बदलने लगा था। मैने अपने हाथ उनकी जाँघों पर टिका कर ऊपर नीचे उठना बैठना शुरू किया तो इसी क्रिया में इतना आनंद आया कि मेरे कंठ से ही नहीं बल्कि ठाकुर सर के होंठों से भी कामुक ध्वनियाँ फ़ूट रही थी। मैंने अपनी टांगों को पूरी तरह फैला लिया था।

श्वेता भी लगी पड़ी थी। वह पूरी तन्मयता से मेरे स्तनों को चूस रही थी। मैं तो हांफने लगी थी। ठाकुर सर भी हांफ रहे थे। बस श्वेता कुछ संयत थी।

कुछ देर बाद ठाकुर सर ने मुझे अपने आगे चित्त लिटा दिया और मेरी एक जांघ पर अपना घुटना रख कर दूसरी जांघ अपने कंधे पर रख ली और संगीतमय अंदाज में अपने लंबे लिंग को अन्दर-बाहर करने लगे। मैं बुरी तरह कांपने लगी थी। मेरे मुख से कामुक आवजें फ़ूट रही थी। श्वेता ने मुद्रा बदल ली थी। उसने मेरे मुख के आगे अपनी योनि कर ली थी और मेरी योनि पर अपना मुख लगा लिया था। वह लंबे से लिंग को झेलती मेरी योनि को चूमने लगी थी। मैं भी पीछे नहीं रही मैने उसकी जाँघों को कस कर पकड़ लिया और उसकी योनि को चूसने लगी।

श्वेता मचल उठी उसने एक टांग मेरी कनपटी पर रख ली। मैं उसके नितंबों की गहराई में छुपी उसकी गुदा (गांड) को भी चाटने लगी।

"सर ! ज़रा जोर-जोर से कीजिये ! उफ....उफ...!"- मैं टूटे शब्दों में बोली।

ठाकुर सर ने रफ़्तार बढ़ा दी। मेरी सिसकारियां और भी कामुक हो गई। वो जैसे निर्दयी हो गए थे। उनके नितंबों के मेरे नितंबों से टकराने पर एक अजीब सी थरथराहट होने लगी थी। उत्तेजना में मैंने कालीन में मुट्ठी सी भरी। श्वेता ने पुनः अपनी मुद्रा बदली। उसने मेरे स्तनों को और मेरे अधरों को चूसना शुरु कर दिया। मैं हुच..हुच.की आवाजों के साथ कालीन पर रगड़ खा रही थी। ठाकुर सर अपने पूरे जोश में थे। वह मेरे नितंबों को सहलाते तो कभी मेरे पेडू को सहलाते हुए आगे पीछे हो रहे थे।

"श्वेता.....किचन में गोले का तेल है जरा लाकर मेरे लिंग पर डाल दो !"- ठाकुर सर ने श्वेता से कहा।

श्वेता तुंरत रसोई में गई और गोले का तेल एक कटोरी में ले आई और उसने तेल की कुछ बूंदें ठाकुर सर के पिस्टन की तरह चलते लिंग पर डाल दी। अब उसकी गति में और तेजी आ गई। मैं दांतों तले होंठों को दबाये उनके लिंग द्वारा प्राप्त आनंद के सागर में हिलोरें ले रही थी।

ठाकुर सर चित्त लेट गए और मुझे अपने लिंग पर बिठा लिया मैं स्वयं उपर नीचे होने लगी। हम तीनों को ही पसीना आ गया था। श्वेता ने अपनी योनि ठाकुर सर के मुख पर लगा दी थी और खुद उनके शरीर पर लेट कर मेरी योनि चाट रही थी। ठाकुर सर उसकी योनि को अपने हाथों से चौड़ा कर चाट रहे थे।

अचानक ठाकुर सर का तेवर बदला और उन्होंने बैठ कर मुझे फिर पीठ के बल लिटा दिया और जोर जोर से धक्के मारने लगे। मैं अपने चरम पर आ चुकी थी। अचानक उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि से निकाल लिया और श्वेता के मुख में देकर जोर जोर से धक्के मारे और फिर श्वेता के सर को थाम कर ढेर से होते चले गए। वह श्वेता के मुख में ही स्खलित हो गए।

मेरी योनि में अपार आनंद के साथ साथ एक कसक सी रह गई।

श्वेता ने उनके लिंग को छोड़ा नहीं बल्कि उसे चूस चूस कर दोबारा उत्तेजित करने लगी।

ठाकुर सर ने मेरे स्तनों से खेलना शुरू कर दिया और बोले- "क्यों प्रियंका कैसा रहा.....?"

"बहुत मजा आया सर !....लेकिन मेरी जाँघों का जोड़ तो जैसे सुन्न हो गया है....."- मैंने उनके बालों को सहलाते हुए कहा।

यह सुन्नपन तो ख़त्म हो जायेगा थोड़ी देर में। पहली बार में तो थोड़ा कष्ट उठाना ही पड़ता है। अब तुम श्वेता को देखना इसके साथ इतनी परेशानी नहीं होगी और अगली बार से तुम्हें भी परेशानी नहीं होगी बल्कि सिर्फ मजा आएगा। ठाकुर सर ने मेरे स्तन को चूसते हुए कहा।

"उफ सर.......इन्हें आप चूसते हैं तो कैसी घंटियाँ सी बजती है मेरे शरीर में !.....प्लीज सर चूसिये इन्हें !.........."- मैं कामुक तरंग में खेलती हुई बोली।

"अच्छा लो में जब तक तुम चाहो। तब तक चूसता हूँ......"- यह कह कर ठाकुर सर मेरे गहरे गुलाबी रंग के निप्पलों को बारी बारी चूसने लगे। मैं आनंदित होने लगी।

उधर श्वेता ने उनके लिंग को फिर लोहे की गर्म रॉड की शक्ल दे दी थी और अब स्वयं ही अपनी योनि उस पर टिका कर धीरे धीरे धक्के देने लगी थी। लिंग-मुंड के उसकी योनि में प्रवेश करते ही वह सिसक उठी- "उफ....माई डीयर.........ठाकुर !.....उफ............! कम आन प्रियंका ! तू इधर आकर मेरे स्तनों को संभाल...ज़रा ! ठाकुर यार को दूसरा काम करने दे...."- श्वेता ने मुझसे कहा।

मैंने तुंरत उसके स्तनों को अपनी हथेलियों में संभाला और उसके अधरों का रसपान करने लगी। ठाकुर सर की मशीन आन हो गई थी। कमरे में अब श्वेता की कामुक चीखें गूंजने लगी थी।

मैंने देखा कि श्वेता की योनि में ठाकुर सर का लिंग आसानी से आगे पीछे हो रहा था लेकिन फिर भी लिंग की मोटाई के आगे उसकी योनि भी एक तंग सुरंग थी।

थोड़ी देर में ही ठाकुर सर पुनः चरम सीमा पर आ गये और इस बार उन्होंने जब श्वेता की योनि से लिंग निकाला तो मैने उसे अपने मुँह में ले लिया। लिंग कई बार मेरे हलक से टकराया और फिर कुछ गर्म बूंदें मेरे हलक में गिरी। मैं उस स्वादिष्ट पदार्थ को पी गई। इस तरह मेरे विज्ञान में पास होने के बहाने से मैने प्रथम यौन संबंध का सुख पाया।

कई दिनों तक मैं लंगडा कर चलती रही। श्वेता मेरी इस हालत को देख कर मुस्करा देती। ठाकुर सर ने अब किसी भी बात पर हम दोनों को क्लास रूम में डांटना छोड़ दिया था। मेरे घर में मेरी माँ ने मेरी लंगडाहट पर एक बार प्रश्न उठाया तो मैंने सीढ़ियों से गिर जाने का बहाना कर दिया। उन्होंने फिर नहीं पूछा।

इस घटना के पन्द्रह दिनों के बाद जब मेरी हालत ठीक हो गई थी।

स्कूल हाफ में मैं लंच कर रही थी। तब श्वेता ने बताया कि तुझे चपरासी पूछ रहा था। तुझे प्रिंसीपल साहब ने बुलाया है।

मैंने प्रश्न किया- "क्यों....?"

तो उसने अनजाने पन का ढोंग कर दिया। मैं जल्दी-जल्दी लंच निपटा कर प्रिंसीपल साहब के ऑफिस पहुंची तो वहां अधेड़ उम्र के प्रिंसीपल को अपने इन्तजार में पाया।

"प्रियंका.....दरवाजे की सिटकनी चढ़ा दो। मुझे तुमसे कुछ स्पेशल बात करनी है !..."- प्रिंसीपल ने कुर्सी पर बैठे बैठे कहा।

मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया।

"इधर आओ हमारे पास !......"- प्रिंसीपल ने दूसरी आज्ञा दी।

मैं उनके निकट पहुँच गई।

हमें पता है तुमने मिस्टर ठाकुर को केवल इस लिये खुश किया है कि उसने तुम्हारे विज्ञान में पास होने का वादा किया है। लेकिन हम भी तो कुछ अहमियत रखते हैं। क्या हमें तुम्हारा हुस्न देखने का हक़ नहीं है ! प्रिंसीपल ने ऐसा कहा तो उनकी आँखें चमक उठीं और भद्दे होंठों पर मुस्कान दौड़ गई।

"जी....."- मैं पीछे को सिमटी। मेरे जेहन में खतरे की घण्टियाँ बज उठीं और यही विचार दिमाग में आया कि यहाँ से तुरंत भाग लेना चाहिये। इसी विचार के तहत मैं पलटी मगर प्रिंसिपल के शक्तिशाली हाथों ने मेरी कमर पकड़ ली और मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया। मैं चीखने को हुई तो उनकी एक हथेली मेरे खुले मुँह पर आ जमी। उनके ठंडे से स्वर में ये शब्द मुझे खामोश कर गये कि अगर तुमने हमारा सहयोग नहीं किया तो हम तुम्हारे कैरेक्टर को गलत साबित करके तुम्हारा रेस्टीकेशन कर देंगे।

मैं विवश हो गई। इस विवशता में एक बात का हाथ और था वह यह कि प्रिंसिपल के हाथ ने मेरी शर्ट में छुपे मेरे स्तनों को क्षण भर में ही मसल डाला था और उस मसलन ने मुझे आनंद से झंकृत कर दिया था। पन्द्रह दिन बाद आज फिर एक प्यास महसूस हो गई थी।

मुझे शान्त जान प्रिंसीपल मेरी शर्ट के बटन खोलते चले गये। उन्होंने मेरी शर्ट के पल्लों को इधर उधर कर के मेरी समीज को स्तनों के ऊपर कर दिया और मेरे तने हुए स्तनों को मसलने लगे। मैं हल्के हल्के सिसकारने लगी। मैने उनकी गोद में ही मुद्रा बदली और अब मेरे स्तन उनके सीने से भिड़ने लगे। प्रिंसीपल मेरे कांपते लरजते अधरों को भी चूसने लगे थे। मेरे हाथ उनकी पीठ पर चले गये थे। मेरा युवा शरीर तो जैसे पुरुष शरीर के स्पर्श को तलाश ही रहा था। उनके हाथ मेरी स्कर्ट के भीतर मेरे नितंबों और जाँघों को सहला रहे थे। उनकी साँसें गर्म होने लगी थी और फिर उन्होने अपने होंठों को मेरे अधरों से हटा कर मेरी गर्दन को चूमते हुए मेरे स्तनों पर ले आये। उनकी इस क्रिया ने मुझे और अधिक उत्तेजित कर डाला।

"ओह सर !......क्यों तड़पा रहे हैं !......ऐसे कुर्सी पर कैसे कुछ होगा? उफ...ओह....आह !"- मैं उनके कान मैं सरसराई।

"ओह....! तुम ऐसा करो ! टेबल पर लेट कर अपनी टांगें नीचे लटका लो.....उठो.....!"- प्रिंसीपल ने कहा।

तो मैं उनकी गोद से उतर कर टेबल पर अधलेटी सी हो गई।

प्रिंसीपल ने खडे होकर मेरी स्कर्ट ऊपर करके मेरी पेंटी को भी जरा ऊपर को करके मेरी योनि को सहलाया और भंगाकुर को भी छेड़ दिया। मैं मचल उठी। मेरे मुख से कामुक ध्वनि फूटी और मैंने खड़े होकर उनके हाथों को पकड़ कर अपने स्तनों पर रख लिया। उनके हाथों ने मेरे स्तनों को मसलते हुए मुझे पीछे को ही लिटा दिया और पेंटी को जरा सा योनि छिद्र से हटा कर अपने लिंग-मुंड को योनि के मुख में फंसा कर धक्का दिया तो मुझे ऐसी पीड़ा हुई जैसे मेरी जांघें फट जायेंगी।

मैं चीख पड़ी। मैने दर्द के मारे फिर उठने का प्रयास किया तो उन्होंने हाथों के दबाव से मुझे उठने नहीं दिया और एक और धक्का मारा। मुझे दर्द तो हुआ पर गजब का आनंद भी आया। उनका लिंग दो तीन इंच तक मेरी योनि में उतर गया था।

"सर.....! उफ....! लगता है....! ओह........! लगता है कि आपका लिंग बहुत मोटा है......क्या लंबा भी ज्यादा है.....?"- मैने अपने स्तनों पर जमे उनके हाथों को दबा कर कहा।

"नहीं....हाँ मोटा तो काफी है। लेकिन लंबाई आठ इंच से ज्यादा नहीं है।"- उन्होंने लिंग को और आगे ठेल कर पीछे करके फिर ठेलते हुए कहा।

"बस.....आठ इंची....तब तो आप खूब जोर जोर से धक्के मारिये.....! ऑफ़....! तभी मजा आयेगा !"- मैं उत्तेजना के वशीभूत होकर बोली।

"अच्छा....! तुम्हें तेज तेज शॉट पसंद है ! तब तो यहाँ से हटो और दीवार से हाथ टिका कर खड़ी हो जाओ....! यहाँ तो टेबल गिर जायेगी।"- उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि से निकाल कर कहा।

मैं मेज से उठ कर दीवार पर पंजे जमाकर उनकी और पीठ करके खड़ी हो गई तो उन्होंने मेरे नितंबों को सहलाते हुए अपने मोटे ताजे लिंग को मेरी योनि में डाल दिया और फिर तेज तेज धक्के मारने लगे। मेरा पूरा शरीर जोर जोर से हिल रहा था। उनकी जांघें मेरे नितंबों से आवाज के साथ टकरा रही थी। वे धक्के मारते मारते हांफने लगे। लेकिन खूब धक्के मारने पर भी वे स्खलित नहीं हो रहे थे। यहाँ तक कि वो आगे को शाट मारते तो मैं पीछे को हटती। मुझे लिंग के योनि में होते घर्षण से और लिंग की संवेदनशील नसों से भंगाकुर पर होते घर्षण से मैं आनंद की चरम सीमा तक पहुच गई थी। मैं उन्हें और प्रोत्साहित कर रही थी- "और अन्दर तक करो सर......! और अन्दर तक......! और जोर से....! उफ...उफ...ओह.....यस्....! आई लव इट....ओ..."- मैं हर तरह से उनके साथ सहयोग करते हुए बोली।

मेरी साँसें भी तूफानी हो चकी थी।

और फिर प्रिंसीपल सर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गये। मेरे गर्भाशय में एक शीतलता सी छाती चली गई। तब पता चला मुझे की पुरुष के खौलते वीर्य की धार जब स्त्री के गर्भ से टकराती है तो कैसा अदभुत आनंद प्राप्त होता है ! मैं पागलों की भांति प्रिंसीपल से लिपट गई और उनके लिंग को भी बेतहाशा चूमा। कुछ देर बाद अपने वस्त्र ठीक करके मैं प्रिंसीपल रूम से निकल गई।

इस घटना के बाद मैं खुद ही सेक्स संबंधों के प्रति आवश्यकता से अधिक झुकती चली गई।

जब तक उस स्कूल में रही तब तक प्रिंसीपल और ठाकुर सर के साथ मैने अनेक बार सम्बन्ध बनाये। किसी नये व्यक्ति से संबंध बनाने की जिज्ञासा तो मुझे रहती थी किन्तु मैं नये व्यक्ति से जुड़ने की पहल नहीं करती थी। हालांकि कई हम-उम्र लड़के कई बार मुझसे फ्रेंडशिप करने का प्रयास कर चुके थे। लेकिन जो परिपक्व अनुभव मुझे ठाकुर सर और प्रिंसीपल से मिला था उसकी तुलना में ये लड़के बिलकुल मूर्ख लगते थे।

एक लड़का जो कि काफी हेंडसम और अच्छी शक्ल सूरत का था। उसका नाम राजेन्द्र था। उसने कई बार मुझे अनेक प्रकार से अप्रोच किया कि मैं उससे एकांत में सिर्फ एक बार मुलाक़ात कर लूँ ! अंततः एक दिन मैने उससे मिलने का फैसला कर ही लिया और मौका देख कर स्कूल की काफी बड़ी बिल्डिंग के उस कमरे में उसे बुला लिया जो हमेशा ही सूना पड़ा रहता था।

राजेद्र ठीक समय पर कमरे में पहुँच गया। उसके चेहरे पर प्रसनत्ता के भाव टपक रहे थे। उसने मुझे पहले ही से वहाँ पाया तो एकदम घबरा कर बोला- "हेलो....! हेलो.....प्रियंका !........सोरी....! मुझे आने में जरा देर ही गई।

मैं उसकी घबराहट को देख कर मुस्कुराई। मुझे ठाकुर सर और प्रिंसीपल सर के अनुभव ने मेरी उम्र से काफी आगे निकाल दिया था।

कमरे का दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ा दो ! मैने कहा।

मैं एक मेज़ से नितंब टिकाये खड़ी थी। राजेन्द्र ने दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ा दी और मेरे पास आ खड़ा हुआ।

"हाँ....! अब बताओ राजेन्द्र कि तुम मुझसे अकेले में क्यों मिलना चाहते थे?"- मैं उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में झाँक कर बोली।

राजेन्द्र एक उन्नीस बीस की उम्र का अच्छे शरीर का लड़का था। उसने स्कूल ड्रेस वाली पेंट शर्ट पहन रखी थी।

"वो क्या है कि.....मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ....."- राजेन्द्र बोला।

"दोस्ती...? वो किसलिए.......?"- मैंने प्रश्न किया।

"अं...."- मेरे प्रश्न पर वो थोड़ा चौंका और फिर बोला- "जिस लिए की जाती है उस लिये..!!."

"यही तो मैं भी जानना चाहती हूँ कि दोस्ती किस लिए की जाती है और वो दोस्ती ख़ास कर जो तुम जैसे हेंडसम और स्मार्ट लड़के मेरी जैसी भारी सेक्स अपील वाली लड़की से करते हैं....."- मैंने होठों पर एक रह्स्यमयी मुस्कान सजा कर कहा।

"क्या....क्या मतलब है तुम्हारे कहने का....!"- उसने बिगड़ने का अभिनय किया।

मैंने कहा- "मतलब तो आइने की भाँति बिलकुल साफ़ है ! हाँ यह बात अलग है कि तुम आसानी से उसे स्वीकार नहीं करोगे.....इसलिए तुम्हारे मुझसे दोस्ती करने के उद्देश्य को मैं ही बता देती हूँ- तुम या स्कूल के कई अन्य लड़के मुझसे इसलिए दोस्ती करना चाहते हो ताकि वो मेरी उभरती जवानी का मजा लूट सकें। मेरे उफनते यौवन के समुद्र में गोते लगा सकें !"

मैंने आगे कहना जारी रखा- "केवल हाँ या नहीं में उत्तर देना....क्या मैंने गलत कहा है.......! क्या तुम्हारी नजरें मेरी शर्ट में से उत्तेजक ढंग से उभरते भारी स्तनों को ताकती नहीं रहती? क्या तुम स्कर्ट में ढके मेरे नितंबों पर दृष्टि टिका कर यह हसरत नहीं महसूस करते कि काश यह सुडौल ढलान हमारे सामने साक्षात प्रकट हो जाएँ !"

मैंने ऐसा कहा तो वह चुप होकर दृष्टि चुराने लगा।

मैंने मन ही मन उसकी मनःस्थिति का मजा सा चखा !

फिर बोली- "चुप क्यों हो गए? अरे भई। ये तो एक कॉमन सी बात है..जैसे तुम मुझसे सिर्फ इसलिए दोस्ती करना चाहते हो कि मेरे यौवन को चख सको। वैसे ही मैंने भी तुम्हें आज अकेले में इस लिए बुलाया है कि मैं भी देख सकूँ कि तुम्हारे जैसे लड़के में कितना दम है! क्या तुम मुझे वो आनंद दे सकते हो जिसकी मुझे जरुरत है ! कम-ऑन ! जो तुम देखना चाहते हो मैं स्वयं ही दिखा देती हूँ।"

यह कहते हुए मैंने अपनी शर्ट को स्कर्ट में से निकाल कर उसके सारे बटन खोल दिये।

अब मेरे स्तन पहले से काफी भारी हो गये थे। इसलिए जालीदार ब्रा पहनने लगी थी।

शर्ट के खुलने से मेरी गुलाबी रंग की ब्रा दिखने लगी। उसकी झीनी कढ़ाईदार जाली में से भरे भरे गुलाबी स्तन झाँक रहे थे। गहरे गुलाबी रंग की उनकी चोटियाँ थोड़ी और ऊँची उठ आई थी। कारण था ठाकुर द्वारा इनका अत्यधिक पान। यानी मेरी योनि से ज्यादा वे मेरे स्तनों को चूसा करते थे। इस कारण चोटियाँ भी नुकीली हो गई थी और स्तन भी वजनी हो गये थे।

राजेन्द्र की आँखें फटे फटे से अंदाज में मेरे ब्रा से ढके स्तनों पर जम गई। उसने अपने शुष्क होते होठों पर जीभ फिराई।

"कम-ऑन....तुम्हें पूरी छूट है.....जो करना है करो....."- मैंने उससे कहा और शर्ट को बाजुओं से निकाल कर मेज़ पर रख दिया।

"ओह प्रियंका.......! यू आर सो ग्रेट !"- यह उद्दगार व्यक्त करता हुआ राजेन्द्र बढ़ा और उसने मेरे स्तनों को हाथों में संभालते हुए अपने शुष्क होंठों को मेरे लरजते नर्म अधरों पर रख दिये। मैंने उसकी कमर में हाथ डाल दिये और उसकी शर्ट का हिस्सा उसकी पेंट में से खींच कर उसकी टी शर्ट में हाथ डाल उसकी पीठ को सहलाने लगी। मेरी पतली अंगुलियां उसकी पेंट की बेल्ट के नीचे जाकर उसके नितंबों को छू आती थी।

राजेन्द्र ने काम-प्रेरित होते हुए मेरी ब्रा के हूक खोल दिये। मेरी ब्रा ढीली हो गई। राजेन्द्र ने दोनों कपों को स्तनों से नीचे कर दिये। मेरे गुलाबी रंग के दोनों काम पर्वत इधर उधर तन गये। राजेन्द्र उन्हें मसलने लगा तो मैं बोली- "उफ....ओह्ह.....इनके निप्पलों को चूसो.....! चूसो राजेन्द्र !.....हाथ की जगह अपने होंठों से काम लो.....उफ....."

यह कहते हुए मेरे हाथों ने उसकी पेंट की बेल्ट खोल कर उसकी पेंट को नीचे सरका दिया। पेंट उसकी मजबूत जांघों में फंस कर रुक गई। उसने एक टाईट फ्रेंची अंडरवियर पहन रखा था। मैं उसकी फ्रेंची को भी नीचे सरकाने लगी।

राजेन्द्र भी पीछे नहीं रहा था। उसने मेरे स्तनों को दुलारते दुलारते मेरी स्कर्ट को ऊपर करके मेरी पेंटी नीचे सरका दी थी जिसे मैंने पैरों से बिलकुल निकाल दिया। उसके हाथ अब मेरी जाँघों को सहलाते सहलाते मेरी फड़फड़ाती योनि से भी अठखेलियाँ कर आते थे। मैं बार बार मचल उठती थी। मेरे शरीर में कामुक प्यास जागृत हो चुकी थी।

उसी प्यास ने मुझे बुरी तरह झुलसाना शुरू कर दिया था। राजेन्द्र के अंडरवीयर को नीचे करके मैंने उसके लिंग को अपने हाथों में ले लिया। लिंग तप रहा था मानो जैसे मेरे हाथों में जलती हुई लकड़ी आ गई हो।

लेकिन यह क्या मैं चिहुंक उठी !

राजेन्द्र का लिंग तो मुश्किल से छः साढ़े छः इंच का था वह भी पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में। मोटाई भी कोई ख़ास नहीं थी। इतने छोटे आकार प्रकार के लिंग से मेरी योनि क्या खाक संतुष्ट होनी थी। मुझे तो कम से कम आठ नौ इंच का लण्ड चाहिए था और अगर ठाकुर सर के जैसा बलिष्ठ हो तब तो कहना ही क्या ! इतने छोटे लिंग से ना तो मुझे ही कुछ मज़ा आना था और ना ही राजेन्द्र को !

मैं उसके लिंग-मुंड को सहला कर बोली- "राजेन्द्र ये क्या ! तुम्हारा लिंग तो बहुत ही छोटा है। मुझे तो उम्मीद थी कम से कम नौ इंच का लिंग तो होगा ही ! इसीलिए तो मैने तुम्हें यहाँ बुलाया !"

"क्या ?...."- राजेन्द्र चौंक उठा। उसने मेरे स्तनों से अपना मुख हटा लिया। उसकी आँखों में अपमान के से भाव थे। उसे मेरे शब्दों पर सख्त हैरानी हुई थी।

"क्या......क्या ? तुम अपने लिंग को मेरी योनि में डाल कर देख लो। ना तो तुम्हे मज़ा आएगा और ना ही मुझे। तुम्हें तो मज़ा मैं मज़ा फिर भी दे दूंगी.......लेकिन मेरा क्या होगा।"- मैंने उसके लिंग को सहलाना नहीं छोड़ा था।

"तो क्या इतनी बड़ी है तुम्हारी योनि.....?"- उसने हैरत से प्रश्न किया।

"तुम डाल कर स्वयं देख लो.....!"- मैंने कहा।

मेरे उकसाने पर राजेन्द्र नें अपना लिंग मेरी योनि में लगा कर एक हल्का सा सा ही धक्का दिया था की उसका पूरा का पूरा लिंग मेरी योनि में ऐसे समा गया जैसे वह किसी पुरुष का लिंग ना हो कर कोई पैन हो। मुझे कुछ अहसास भी नहीं हुआ।

"हैं.....!!!"- राजेन्द्र चौंका। उसने लिंग बाहर निकाल लिया।

"क्यों....? क्या हुआ....?"- मैंने कहा। तो वह शरमा गया। उसे अपने लिंग के छोटे आकार पर शर्म आ रही थी।

"इधर आओ....!"- मैंने उसका हाथ पकड़ कर दीवार की और बढ़ते हुए कहा- "तुम्हें तो मज़ा आ जायेगा ! मैं अपनी जाँघों को बिलकुल भींच कर दीवार से पीठ लगा कर खड़ी हो जाउंगी तब तुम अपने लिंग को मेरी योनि में डाल कर घर्षण करना ! लेकिन हाँ....शाट ऐसे जबरदस्त होने चाहिए कि पता लगे कुछ.......! दूसरी बात। मेरे स्तनों को चूसते रहना...........! मुझे स्तन पान में बहुत मज़ा आता है......!"

यह कहते हुए मैं दीवार से पीठ लगा कर खड़ी हो गई और मैंने अपनी जांघें भींच ली और राजेन्द्र के लिंग को अपनी टाइट हो गई योनि के मुख पर लगा लिया। अब कुछ पता लगा कि योनि में कुछ प्रविष्ट हुआ है।

राजेन्द्र ने अपने हाथों से मेरी कमर पकड़ कर मेरे स्तनों को चूसना भी शुरू कर दिया था। वह कामुक ध्वनियाँ छोड़ने लगा था। उसकी साँसें भभकने लगी थी।

वह तेज तेज शाट मारने लगा तो मैं भी सिसकारियों के भंवर में फंस गई। उसका लिंग बेशक छोटा था किन्तु उसके शाट इतने बेहतरीन होते जा रहे थे कि मैं उस पर फ़िदा हो गई। मुझे आनंद आने लगा था। मेरे हाथ राजेन्द्र के कन्धों पर जम गए थे और राजेन्द्र ने उत्तेजना के वशीभूत मेरे स्तनों पर अपने दांत के निशान तक डाल दिए थे।

चरम सीमा पर पहुँच कर राजेन्द्र के धक्के इतने शक्तिशाली हो गए थे कि मुझे अपनी हड्डियाँ कड़कडाती महसूस होने लगी। मेरे कंठ से कामुक ध्वनियाँ तीव्र स्वर में फूटने लगी। अचानक ही मैंने अपनी जांघें खोल दी। राजेन्द्र का तपता लिंग बाहर निकाल कर अपने मुंह में डाल लिया।

राजेन्द्र ने मेरे मुंह में ही अंतिम धक्के मारे और स्खलित हो गया। उसका उबलता वीर्य मेरे कंठ में उतर गया। वह मेरे ऊपर निढाल सा हो गया। मैं उसके लिंग को चाटने लगी।

फिर जब दो चार क्षणों में उसकी चेतना लोटी तो मैंने उससे कहा- "राजेन्द्र। वो उस कोने में जो फावड़े का लकड़ी का दस्ता पड़ा है वो उठा लाओ....."

इस कमरे में ऐसी छोटी-मोटी अनेक चीजें पड़ी रहती थी। जैसे फावड़ा। तसला। रस्सी। टूटी बेंचें या चटकी टेबल। उन्हीं चीजों में से एक फावड़े का लकड़ी का दस्ता मुझे दिखाई दे गया था। मेरी आँखें उसे देखते ही चमक उठी थी।

"क्यों.....?"- राजेन्द्र ने पूछा।

"लेकर तो आओ.....!"- मैं बोली।

मैंने अपने नग्न तन को ढकने का प्रयास नहीं किया। शरीर पर मात्र स्तनों के नीचे फंसी ब्रा थी और नितंबों पर स्कर्ट थी जिसके नीचे पेंटी नहीं थी।

राजेन्द्र अपनी पेंट ऊपर कर चुका था। वह फावड़े का दस्ता ले आया। यह ढाई तीन फुट का गोलाई वाला डंडा था। एक ओर की मोटाई दो-ढाई इंच थी। दूसरी ओर की तीन चार इंच थी।

मैंने उसके हाथ से डंडा ले लिया और गंदे फर्श पर ही चित्त लेट गई। मैंने स्कर्ट पेट पर चढ़ा कर डंडे के पतले वाले सिरे को अपने ढेर सारे थूक में भिगो कर अपनी योनि पर लगाया और हल्के से दबाव से ही डेढ़ दो इंच तक योनि में समाँ गया। मुझे उसकी कठोर मोटाई के कारण अपनी जांघें पूरी खोलनी पड़ी।

"राजेन्द्र ! इसे धीरे धीरे आगे पीछे करते हुए मेरी योनि में घुसाओ.....!"- मैंने राजेन्द्र से कहा।

राजेन्द्र हैरत से मुझे देख रहा था। वह मेरे निकट बैठ गया और उसने डंडा पकड़ लिया और मेरे कहे अनुसार उसे आगे पीछे करने लगा। वह बड़े ही संतुलन के साथ यह क्रिया कर रहा था। उसे मालूम था कि डंडे के टेढे-मेढे होने से मेरी नाजुक योनि को नुकसान पहुँच सकता है इसलिए वो बहुत एहतियात के साथ डंडे को आगे बढ़ा रह था।

मैं अब सिसकारी भरने लगी थी। मुझे जांघें और ज्यादा या यूँ कहिये की संपूर्ण आकार में खोलनी पड़ रही थी। मैं अपने हाथों से ही अपने स्तनों को मसले डाल रही थी। डंडे के कठोर घर्षण ने मुझे शीघ्र ही चरम पर पहुंचा दिया और मैं स्खलित हो कर शांत पड़ती चली गई।

राजेन्द्र ने डंडे को योनि से निकाल कर उसके उतने हिस्से को जितना कि मेरी योनि में समाने में सफल हो गया था उसे देख कर कहा-"........ग्यारह बारह इंच.....माई गाड.....प्रियंका डार्लिंग तुम्हारे आगे कौन पुरुष ठहरेगा ! तुम तो पूरी कलाई डलवा सकती हो अन्दर....क्या तुम्हें दर्द नहीं होता इतनी लंबाई से?"

"उफ...मैं बैठ गई और बोली- कैसा दर्द डीयर......! मेरा तो वश नहीं चलता वरना ऐसे कई डंडे अन्दर कर लूँ.....! मेरी योनि में जितनी लंबी और जितनी मोटी चीज जाती है मुझे उतना ही ज्यादा मजा आता है। चलो अब....! काफी देर हो गई !"

मेरे शब्दों पर वह मुझे आश्चर्य से घूरता रह गया था। उसके बाद हम वहाँ से चले आये थे।

इस प्रकार अपनी योनि के साथ भाँति भाँति के अजीब ढंग के प्रयोग करते करते मेरा समय निकल ही रहा था कि विदेश से मेरी दोनों भाभियाँ आ गई। वे अंग्रेज थीं। वे एक माह के लिए हिन्दुतान घूमने आई थी।
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Raj Sharma

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