Wednesday, January 2, 2013

न अब्बा, न भाई, सब साले कसाई!


न अब्बा, न भाई, सब साले कसाई!
मेरा नाम काशिश खान है। मैं इलाहाबाद में रहती हूँ। आज कल मेरे घर में मेरी छोटी मौसी और मौसा जी आये हुए हैं। मैं रात को रोज़ उनकी चुदाई देखती हूँ, और मजा लेती हूँ। पर हां, उसके एवज में मुझे हाथ से अपनी प्यास बुझानी पड़ती है। मेरा घर पुराना और साधारण सा है, अब्बा एक परचूनी की दुकान चलाते हैं, भाई जान उनकी मदद करते हैं।

मेरे घर पर कमरों के बीच में दरवाजा नहीं है, बस एक परदा रहता है। रात अधिक बीत जाने के बाद यह निश्चित हो जाने के बाद कि सभी सो गये होंगे तभी चुदाई का कार्यक्रम चालू किया जाता था। अभी तो मौसा और मौसी रात को छ्त पर चले जाते थे, और वहाँ पर चुदाई किया करते थे। मेरे लिये भी यह और सरल था कि मैं चुपके से ऊपर जा कर मजे देखती। मुझे ऊपर आकर उन्हें झांक कर देखना पड़ता था। यही मुझसे बस गलती हो गई। मेरे पड़ोस के लड़के शफ़ीक ने मुझे देखते हुए पकड़ लिया और मौके का पूरा फ़ायदा उठा कर मुझे उसने चोद दिया।

वैसे यह कोई नई बात नहीं थी मेरे लिये। मेरे साथ ऐसा कितनी ही बार हो चुका था और मैं कई बार चुद भी चुकी हूँ, पर अधिकतर मेरी गाण्ड ही मारी है। शायद यहा गाण्ड मारना सभी को अच्छा लगता है। मुझे ठीक से तो याद नहीं पर चुदी तो मैं दस बारह बार ही हूँ, पर मेरी गाण्ड तो लोगों ने पता नहीं कितनी बार बजाई है। अब आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि कोई तवायफ़ या वेश्या हूँ, जी नहीं, बिल्कुल नहीं, मैं एक साधारण सी लड़की हूँ, सुन्दर भी हूँ और सब की चहेती भी हूँ। किसी का भी लण्ड खड़ा होता है तो एक बार तो वो मुझ पर ट्राई करने तो जरूर ही आता है।

यहां इलाहाबाद में हमारी घनी बस्ती में सारे घर आपस में जुड़े हुए हैं और यह तो यहा आम बात है, बस जिसका सिक्का चला वही मजे कर जाता है, सबसे बड़ी बात- कुंवारी को चोद जाओ, कोई कुछ नहीं कहेगा पर शादीशुदा को कोई चोद जाये तो हंगामा हो जाता है। पर हाँ मैं अपना चुनाव खुद करती थी। यहा हर बात में गाली देना तो आम बात थी। यानी यही हमारी बोलचाल की भाषा थी। बिना गाली के तो बात पूरी होती ही नहीं थी। मैं भी इससे अछूती नहीं थी, साधारण सी बातों में भी खूब गालियाँ देने की मेरी भी आदत थी। बात बात पर गन्दी गालियाँ देती थी और गालियाँ देने की इतनी अभ्यस्त हो गई थी कि मुझे लगता ही नहीं था कि मेरे बोल गालियों से भरे हुये हैं।

शफ़ीक ने मुझे हाथ हिलाया। मैंने उसे ऊपर की ओर देखा।

"दीदी, शीऽऽऽ , इधर आओ !" शफ़ीक ने फ़ुसफ़ुसा कर कहा।

"हाय, मैं मर गई, तुम...?" मैं धीरे से दीवार कूद कर उसके पास आ गई।

"आओ जल्दी आओ, मामला चल रहा है"

मुझे ले कर वो दूसरी मन्जिल की छत पर आ गया। ऊपर दीवार के पास से चांदनी रात में सब कुछ ठीक से दिख रहा था।

"दीदी, यहा से देखो, मौसा जी लगता है पोंद के शौकीन है" उसने बताया। देख कर मैं शरमा गई। काफ़ी दिनों से शफ़ीक मेरे पीछे था, मुझे पता था कि अब यह भी मुझे नहीं छोड़ेगा।

"तू रोज़ देखता है क्या?"

"हां, और आपको भी देखता हूँ। भेन-चोद बड़ा मजा आता है ना, वो देखो तो सही !" मौसा जी, अब गाण्ड मार रहे थे। मौसी के बड़े बड़े चूतड़ नजर आ रहे थे। शफ़ीक ने मुझे इशारों से दिखाया। पर मेरा ध्यान तो शफ़ीक पर था कि भेनचोद ये मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा, शायद मुझे चोदने की सोच रहा होगा। इतना कुछ हो जाये तो और मेरी जैसी लड़की को कोई छोड़ दे तो मुझे वो चूतिया ही लगेगा।

इतना सब देखने से मेरा मन भी मचल उठा था और मैं ऊपर उसके पास आई ही चुदने के लिये थी। मौसा जी कुत्ते की तरह मौसी की गाण्ड चोद रहे थे। मेरी चूत भी गीली हो उठी। इतने में शफ़ीक ने उत्तेजित हो कर मेरी गाण्ड की गोलाई पर हाथ फ़ेर दिया। मेरे तन में झुरझुरी छूट गई। मैंने उसे सीधे देखा, शायद कोई इशारा करे, वो चूतिया तो नहीं था, उसने मेरी तरफ़ देखा और और एक गोलाई में धीरे से हाथ मार दिया। मुझे यकीन हो गया कि अब ये मेरी मारेगा जरूर।

मैंने हंस कर कहा,"धीरे मार, चपटी हो जायेगी, भेनचोद तू भी मजा ले रहा है?"

"हां आपा, कितना मजा आ रहा है ना !" शफ़ीक अब बार बार मेरे चूतड़ों का जायजा ले रहा था। मुझे मजा आने लगा था। मुझे उसका लण्ड भी खड़ा हुआ नजर आने लगा था। यानि कि मैं चुदूंगी तो जरूर ही अब, लौड़ा भी उफ़ान पर आ रहा था।

मैंने उसे और बढ़ावा देने के लिये उससे चिपक सी गई, और अपनी बड़ी बड़ी आंखे उठा कर उसे देखा और कहा,"देख किसी को कहना नहीं कि अपन ने ये सब देखा है।" मैंने उसे धीरे से कहा।

"अरे ये कोई कहता है क्या? तेरे पोन्द तो मस्त है री !" मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए बोला।

"और सुन तू जो कर रहा है वो भी मत बताना !" मैंने झिझकते हुए कहा।

उसने यह सुनते ही मेरी गाण्ड दबा डाली और मसलने लगा। मुझे मस्ती आने लगी।

"कशिश, अपन भी ऐसा करें?" मौसा मौसी को चोदते देख कर उसने मेरे शरीर पर लौड़ा दबाते हुए कहा।

"क्या करें...?" मैंने जान कर उसके मुख से कहलवाया।

"तुम पोन्द मराओगी ?" मेरे चूंचक जोर से दबा दिये।

"पर बताना नहीं किसी को कि मैंने पोन्द मराई है।" मेरी चुदवाने की इच्छा बलवती होने लगी। आखिर इतने दिनो से मौसा मौसी की चुदाई देख रही थी और बहुत दिनों से मुझे किसी ने चोदा भी नहीं था। सो मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया। मेरा अंग अंग वासना से भर रहा था। फिर उसका कड़क और मोटा लण्ड, लम्बा तो नहीं था, हाँ, मुझे लगा कि साढ़े पांच इन्च का मूसल तो होगा ही। मुझे कड़क लण्ड से चुदाई की बहुत इच्छा हो रही थी। चूत में से पानी चू पड़ा था। मौसा जी का कार्यक्रम समाप्त हो चुका था, पर हमारा कार्यक्रम परवान चढ़ रहा था।

मैंने शफ़ीक का लण्ड पकड़ लिया। हाय, एकदम कड़क, और प्यासा लग रहा था। बस उसे घुसा ही डालू चूत मे। पर वो तो मेरी पोन्द मारने पर तुला था। पोन्द यानी कि चूतड़ ।

"कशिश, तेरे चूंचे बड़े प्यारे हैं, जरा कुर्ता तो ऊपर कर दे, थोड़ा मचका दूँ इन भेन चोदों को !"

"चूचे मचकाना तुझे अच्छा लगता है क्या ?" मैंने कुर्ता उतारते हुए कहा। मेरी चूंचिया बाहर निकलते ही उछल पड़ी। मेरे चूंचक कड़े हो उठे। उसने मेरी चूंचियो को पकड़ कर दबा दिया।

"पीठ मेरी तरफ़ कर ले, तेरी गाण्ड का मजा लूँ !" उसने मुझे घुमा दिया और लौड़ा मेरी पोंद के बीच दबाने लगा।

"मादर चोद ! क्या मेरी फ़ाड़ डालेगा... धीरे दबा ना !"

"कशिश जान, पजामा उतार दे अब, ... अब रहा नहीं जाता है, तेरी पोंद मरवा ले अब !" मेरा पजामा उसने ही उतार दिया। चांदनी रात में मेरी गोल गोल गाण्ड चमक उठी। उसका उफ़नता हुआ लण्ड और भूरे रंग का सुपाड़ा चमक उठा। उसके लण्ड की खलड़ी कटी हुई थी। फ़ुफ़कार भरते हुए मेरी पोंद की दरारों के घुस पड़ा। छेद पर लण्ड को ऊपर नीचे रगड़ा, फिर अपनी अंगुली में थूक लगा कर मेरी गाण्ड के छेद पर मल दिया और लौड़े को छेद पर रख कर अन्दर घुसेड़ दिया। थोड़ा सा रगड़ खाता हुआ अन्दर घुस पड़ा। गाण्ड मराने की मैं अभ्यस्त थी, गाण्ड का छेद भी गाण्ड मरवा कर बड़ा हो चुका था, सो मुझे तो मजा आ गया। उसने लण्ड बाहर निकाला तो गाण्ड का छेद खुला ही रह गया। अन्दर मुझे हवा की ठण्डक सी लगी, लेकिन जल्दी ही लण्ड वापिस उसमें समा गया।

"हाय, भाई जान, मोटा लौड़ा है, मजा आ गया !" मैंने अपनी गाण्ड में मूसल जैसा लण्ड फ़न्सा हुआ महसूस किया।

"कशिश जान, ये तो रगड़ी हुई है, लगता है खूब लौड़े खाये है?" उसके मूसल जैसे लण्ड की धचक अन्दर तक छा गई।

"और क्या ? माजिद चाचा तो जम के मेरी पोंद मारता है, हरामी हर दो तीन दिनों में लण्ड ठोक जाता है, पर मजा तो खूब दे जाता है !" मैं उसके लण्ड का भरपूर मजा ले रही थी।

"साला लण्ड तो यूं जा रहा है जैसे चिकनी चूत में जाता है, गाण्ड का छेद है या कोई आम रास्ता !!" उसकी रफ़्तार बढ़ने लगी। गाण्ड को रगड़ता हुआ लौड़ा फ़काफ़क अन्दर बाहर आ जा रहा था।

"तो चूत ही मार दे ना, इस गाण्ड में क्या रखा है, सारा सुख तो इसी भोसड़े में है।" मुझे चुदने की आस लगी थी।

"अरे हम कनपुरिया हैं ! गाण्ड देख कर ही मन डोलता है, वरना ये मादरचोद लौड़ा खड़ा ही नहीं होता है।" मेरी गाण्ड में मीठा मीठा मजा आ रहा था। पर मुझे अब चूत का असली मजा चाहिये था। मेरी गाण्ड खुली हवा में चुद रही थी। ठण्डी हवा बदन को सहला रही थी और बड़ा मीठा सा अहसास हो रहा था। मेरे चूचों को मल मल कर उसने लाल कर दिये थे। वो हरामी लण्ड पेले ही जा रहा था। मैंने सहूलियत के लिये अपनी टांगे और चौड़ी कर दी ताकि लण्ड की चाल तूफ़ानी हो सके। अचानक उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और आह भरते हुए वीर्य छोड़ दिया।

"भेनचोद सारा माल गाण्ड पर निकाल दिया, अब चल साफ़ कर अपनी बनियान से !" मेरी चूत वासना से बेकाबू हो रही थी और इस मादरचोद साला हरामी ने अपना तो माल ही निकाल दिया। मैंने उससे कहा,"अब चूतिये, मेरी चूत क्या तेरा भाई चोदेगा, रख दिया ना मेरी चूत को कुंवारी, देख कैसी चू रही है, साला हरामी !"

"अरे तू क्या समझ रही है, मैं तुझे छोड़ दूंगा क्या, देख तेरे भोसड़े को कैसे मस्त करता हूँ चोद चोद कर !" उसने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और सीढ़ियों के पास ही पत्थर की एक बैठने की बैन्च बना रखी थी, जिस पर बिस्तर बिछा कर शफ़ीक रात को सोता था, पर लेटा दिया। उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया। मुझे चुदाना था सो उसका लौड़ा चूस चूस कर उसे फिर से खड़ा कर दिया। लण्ड खड़ा होते ही उसने बिस्तर पर से खींच कर किनारे कर लिया और प्यार से मेरी चिकनी चूत में लण्ड घिसने लगा। मैंने उसकी बनियान से ही अपनी चूत का रस पोंछ लिया और अपनी चूत की कलियों को दोनो हाथों से पूरी खोल दी। उसने अपना कड़क लण्ड हाथ से पकड़ा और मेरी चूत में घुसा डाला। मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी। चिकनाहट मैंने पोंछ दी थी सो लण्ड मेरी चूत को रगड़ता हुआ अन्दर चला गया। सूखी चूत में मजा आ गया। क्या मस्त रगड़ लगी कि मैं स्वर्ग में पहुंच गई।

"अब चोद दे भाई जान, लगा दे पूरा जोर लौड़े का !" उसके धक्के लगाने शुरू कर दिये। मैं मस्त हो उठी और अपनी पोंद नीचे से उछालने लगी। धच्च धच्च करके लौड़ा पूरी ताकत से अन्दर तक उतर रहा था। फिर वो मेरे चूंचे को भी मल मल कर मुझे मस्त किये दे रहे थे। मेरे चूंचक को घुमा घुमा कर मसल रहा था। चूत एक बार फिर लसलसा उठी, पानी छोड़ने लगी थी, अब चूत के पानी के साथ फ़च फ़च की आवाजें आने लगी थी।

"मस्त चूत है कशिश जान, मलाई है ये तो, हाय रे मेरी छिनाल, मेरी रंडी, ले ले मेरा पूरा लौड़ा घुसेड़ ले !"

"पेल दे भेनचोद, मार दे मेरी चूत को, दे... दे ... मार लण्ड को, फ़ाड़ दे हरामी को !" मैं तो चुद कर मदहोश हुई जा रही थी। मेरे दिल की भड़ास भी निकली जा रही थी। मेरी चूत उसके लण्ड को अन्दर से लपेट रही थी। मेरी चूत के अन्दर की चमड़ी उसके लण्ड को जैसे चूस रही थी। मेरी चूत अब कसने लगी थी। पानी निकालने ही वाला थी, उसे भी तेज मजा आने लगा था। उसके मुँह से एक से एक नई नई गालियाँ निकल रही थी। मेरी जबान तो गन्दी थी ही सो खूब गालियां दे देकर चूतड़ों की रफ़्तार बढ़ा दी। उसने अब मेरी चूत पर पूरा दबाव डाल दिया और लण्ड को जड़ तक दबा डाला।

"माई री, भाई जान, गई मैं तो, मेरा तो निकला रे, हाय रे... आह्... ऊईऽऽऽऽऽ" कहते हुए मेरी चूत में लहरें उठ पड़ी और पानी छूट गया। मैं झड़ने लगी। अचानक उसका भी वीर्य निकल पड़ा और चूत के अन्दर ही भरने लगा। हम दोनो एक दूसरे को चूमते जा रहे थे और झड़ते जा रहे थे। कुछ ही देर हम सामान्य हो गये और उसी बिस्तर पर बैठ गये।

"मां की लौड़ी, मस्त है रे तू, देख मेरा लौड़ा आज तो मस्त हो गया, कल भी चुदायेगी ना?"

"अपनी मां को चोदना भोसड़ी के, अब कल किसी और का नम्बर है, अलग अलग लौड़े का मजा लेने में ही सुकून मिलता है, तू भी अलग अलग चूत और गाण्ड ट्राई किया कर !"

"साली रण्डी, तेरी भोसड़ी मारूँ, मुझे चिढ़ाती है, अभी रुक तेरी गाण्ड एक बार फ़ाड़नी पड़ेगी।" और वो मेरे पर लपक उठा। मैं जल्दी से उठी और उसे अपना हाथ का लण्ड बना कर उसे चिढ़ाया और हंसती हुई भाग खड़ी हुई।

"ले ले... मेरी भोसड़ी ले ले... अब कर अपने हाथ से... मुठ मार ले... !" हंसी करते हुए छलांगें मारती हुई सीढ़ियाँ उतर कर मैंने अपनी दीवार फ़ांद ली। वो ऊपर छत से हंसते हुए हाथ हिला रहा था।
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मैं उन दिनों अपने चाचा जान के यहाँ वाराणसी आई हुई थी। उनके लड़का अब्दुल बड़ा ही खूबसूरत था। गोरा चिट्टा, दुबला सा, लम्बा सा, उसे देखते ही मेरा दिल उस पर आ गया था।

यूँ तो इलाहाबाद में मुझे चोदने वाले कम नहीं थे, पर उनमें ज्यादातर तो गाण्ड मारने के शौकीन थे। गाण्ड मरवाने में मुझे अच्छा तो लगता था पर असल में तो चूत चुद जाये उसका तो कोई मुकाबला ही नहीं है ना।

अब्दुल को देख कर मुझे उससे चुदवाने की इच्छा बलवती होने लगी। अब्दुल भी मेरी हसीन जवानी पर फ़िदा तो था, पर रिश्ते में उसकी बहन जो लगती थी मैं !!!

उसे यह पता नहीं था कि इलाहाबाद में तो कोई यह रिश्ता रखता ही नहीं था। उसे यह बात बताना जरूरी था वरना तो मुझे देख कर बस मुठ ही मार कर रह जायेगा। रात को मैं बिस्तर के अन्दर ही घुस कर उसके नाम की अंगुली चूत में घुसा कर पानी निकाल देती थी।

कहावत है ना, दिल को दिल से राहत होती है, यह बात हम में ज्यादा दिनों तक अन्दर नहीं रह पाई। एक दूसरे की नजरें आपस में लड़ती और दिल का फ़ूल खिल उठता था। नजरें आपस में आपस में सब कुछ कह जाती थी, पर दिल तड़प कर रह जाते थे।

मैं जान बूझ कर के कसी जीन्स और तंग और चिपका हुआ बनियान-नुमा टॉप सिर्फ़ उसके लिये ही पहनती थी, इसमें मेरे जिस्म की सारी गोलाईयाँ उभर कर सामने दिखने लग जाती थी। मेरी मस्त चूंचिया देख कर तो वो अपनी नजरें हटा ही नहीं पाता था। अब मैं हिम्मत करके उसे देख कर मतलब से मुसकराया करती थी।

उस बेचारे को यह नहीं पता था कि मैं उसे सिर्फ़ अपनी वासना शान्त करने के लिये काम में लाना चाहती हूँ, एक नया जिस्म, एक नया मस्त कड़क लण्ड, नई जवानी, नया अनुभव, नया सुख, नई मस्ती.... सभी को यही तो चाहिये ना।

एक दिन शाम को सभी घर वाले शादी के खाने पर गए हुए थे। मैंने सोचा- खाने का समय नौ बजे का होता है तो मैं देरी से चली जाऊंगी। पर वहाँ पर घर वालों का कार्यक्रम बदल गया, वो लोग जल्दी खाना खाने के बाद दूसरी शादी में भी हाजिरी देना चाह रहे थे। उन्होने अब्दुल को मुझे लेने घर भेज दिया।

मैं उस समय अकेलेपन का फ़ायदा उठा कर कम्प्यूटर पर हिंदी सेक्सी कहानियाँ पर कहानी पढ़ रही थी। किसी को आया देख कर मैंने कम्प्यूटर बन्द कर दिया और बाहर आ गई। अकेले अब्दुल को देख कर मैं चौंक गई। मन में सोचा कि शायद इसको मेरे अकेले होने का फ़ायदा उठाना है, इसलिये इसने मौका देख कर इधर आया है। मैं भी इस मौके को नहीं जाने देना चाह रही थी। मैं दिल ही दिल में इसके लिये मैं अपने आप को तैयार करने लगी।

मैं ढीला ढाला पुराना सा कुरता पहने थी और अच्छी भी नहीं लग रही थी, मुझे अपने आप पर बहुत खीज आई।

"अरे ! ऐसे ही हो अब तक, तैयार तो हो लो, जल्दी चलना है।" उसने मेरे जिस्म को ऊपर से नाचे तक देखा।

"हां, अन्दर आ जाओ, अभी तैयार हो जाती हूँ !" मैं उसे मतलब से घूरने लगी।

"मैं कुछ मदद करूं क्या, कुछ लाना हो तो ?"

"बस दरवाजा बन्द कर दो.... और कुछ नहीं !" उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर दिया।

"बस, ठीक है ना.... सुनो कशिश, नाराज नहीं हो तो एक बात कहूं ?" उसने हिम्मत दिखाई और मेरा दिल धक धक करने लगा।

"अरे कहो ना, भाई हो, शरमाते क्यूँ हो ?" भाई का शब्द सुनते ही उसका सारा जोश ठण्डा पड़ गया।

"नहीं बस यूँ ही, कुछ नहीं !" उसका प्यारा सा मुखड़ा लटक गया।

"अच्छा भाई नहीं दोस्त हो बस, अब कहो...."

"मैं चाहता हूँ कि बस एक बार .... बस एक बार.... मेरे गाल पर प्यार कर लो !"

"बस इतनी सी बात ...?"

मुझे लगा मौका है, बात आगे बढ़ा लो ....

मैं उसके पास गई, और उसके गाल पर एक गहरा सा चुम्मा ले लिया।

"थेंक्स.... अच्छा लगा !"

"बस एक ही....एक दो बार और कर दूँ ...." मैंने एक किस गाल पर और दूसरा होंठ पर कर दिया। इतना उसे भड़काने के लिये बहुत था।

"मुझे भी करने दो ना सिर्फ़ एक बार !" मैंने अपनी आंखे बन्द कर दी और चेहरा ऊपर कर दिया।

उसने धीरे से मेरे निचले होंठ दबा कर चूस लिये और उसके हाथ मेरी कमर पर कस गए।

उसका लम्बा किस खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरे मन की कली खिल उठी। मैंने सोचा कि ये तो गया काम से, चक्कर में आ ही गया। हो सकता है शायद वो यह सोच रहा हो कि उसने मैदान मार लिया।

"अब्दुल, बस कर न, कोई आ जायेगा....हाय अब्बा.... चल छोड़ दे अब !"

"कशिश, बस थोड़ा सा और.... ! ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा ना, सब घर में रहते हैं और आप ऊपर मेरे कमरे में आती ही नहीं हैं !"

"हायऽऽ बसऽऽ मेरे अरमान जाग जायेंगे, अब्दुल, बस कर !" मैंने उसे और भड़काया।

मेरा मन खुशी के मारे उछल रहा था। उसे छोड़ने का दिल बिल्कुल ही नहीं कर रहा था। हम दोनों प्यार में एक दूसरे से लिपट पड़े। वो मेरे होंठो को बेतहाशा चूमने लग गया था, जैसे सब्र का बांध टूट गया हो। उसका जिस्म मेरे जिस्म से रगड़ खा कर उत्तेजित होने लगा था। जाने कब उसके हाथ मेरे उभरे अंगों तक पहुंच गए और उसे सहलाने और दबाने लगे।

ढीले कुरते का यह फ़ायदा हुआ कि उसके हाथ मेरी नंगी चूंचियों तक सरलता से पहुंच गये और अब मुझे भरपूर मजा दे रहे थे। मेरी चूत गीली हो उठी।

"अब्दुल अब तक तू कहाँ था रे ? मुझसे दूर क्यों रहा था? हाय तुझे पा कर मुझे कितना अच्छा लग रहा है ! कब से तो मैं तुझे लाईन मार रही थी !" मैंने अपनी दिल की बात उससे कह दी।

"मैं भी कबसे आपको प्यार करता हूँ.... मैंने भी तो कितनी बार आपको देखा, पर हिम्मत नहीं होती थी, .... कशिश सच तुम मेरी हो, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है !"

"हाय अब्दुल, सच में मुझे प्यार करोगे.... करो ना.... मेरे दिल की हसरत निकाल दो, प्लीज !" मुझे लग रहा था कि शादी वादी की ऐसी की तैसी, अभी टांगे चौड़ी करके उसका लण्ड घुसा लूँ।

"देर हो जायेगी कशिश, रात को आ जाना ऊपर मेरे कमरे में.... मुझे भी अपनी दिल की हसरतें पूरी करनी हैं !"

"मेरे अब्दुल.... !" और एक बार फिर से हम लिपट कर चुम्मा चाटी करने लगे।

उसके लण्ड का भी बुरा हाल था और मेरी चूत तो पानी टपकाने लगी थी। प्यार और वासना की एक मिली जुली आग लगी हुई थी, जिस्म मीठी आग में झुलसने लगा था। लग रहा था कि अभी चुदवा कर सारा पानी निकाल दूँ पर मेरे रब्बा ....हाय.... अभी इस आग में मुझे थोड़ी देर और जलना था।

रात को लगभग घर लौटते लौटते साढ़े ग्यारह बज रहे थे। मेरा मन सब जगह खाली खाली सा लग रहा था, बस अब्दुल ही नजर आ रहा था। इंतजार खत्म हुआ। हम सभी कपड़े बदल कर सोने की तैयारी करने लगे ....

और मैं ....

जी हाँ, चुदने की तैयारी कर रही थी। चूत में और गाण्ड में चिकनाई लगा कर मल रही थी। चूंचियो में भी क्रीम लगा कर उसे खुशबूदार और चमकदार बना लिया था। बस एक हल्का सा नाईट गाऊन ऊपर से यूँ ही लटका लिया और समय का इन्तजार करती रही।

साढ़े बारह बजे तक जब मुझे यकीन हो गया कि अपने अपने कमरों में सब सो गये होंगे। तब मैं दबे पांव बैठक में से निकल पड़ी। पास के कमरे में सिसकारियों की आवाज से लगा कि भाभी और भैया का चुदाई का कार्यक्रम चल रहा था। आज सब औरते फ़्रेश थी, घर के काम से छुट्टी थी, सारी ताकत को चुदाई में लगा रही थी।

मैं बरामदे की सीढ़ियों से ऊपर आ गई। अब्दुल के कमरे की लाईट जली हुई थी। मैंने दरवाजा खोला तो अब्दुल तौलिया लपेटे खड़ा था। शायद अभी नहाया था, साबुन की खुशबू से मैंने अन्दाजा लगाया। मुझे ये अच्छा लगा,कि अब मैं उसके साफ़ सुथरे शरीर का पूरा आनद ले पाउंगी।

"कशिश, तेरा तो अन्दर का सब कुछ दिख रहा है, बड़ी मस्त लग रही है तू !"

"तू भी तो मस्त लग रहा है, ये सिर्फ़ तौलिया ही है ना या अन्दर और भी है कुछ?" मैंने उसका तौलिया खींच लिया।

वो नंगा हो गया। उसका कड़क लण्ड सीधा खड़ा था। मेरा मन डोल उठा चुदने के लिये।

"चल आ मस्ती करें ! शावर के नीचे पानी में चलें, गीली गीली में करने से मजा आयेगा !"

मैंने देखा उसकी सांसे उखड़ने लगी थी। उसकी धड़कनें बढ़ गई थी। मैंने उसका हाथ पकड़ा और जा कर शावर के नीचे खड़ी हो गई। मैंने उसका लण्ड पकड़ा और नीचे बैठ गई। उसके लौड़े को हाथ से सहलाने लगी। उसकी सुपाड़े की स्किन फ़टी हुई थी, मतलब वो पूरा मर्द था, किसी को चोद चुका था।

"किसी के साथ किया था.... बता ना !" मैंने लण्ड मुँह में लेते हुए कहा।

"नहीं अभी तक तो नहीं .... पर ये क्या कर रही हो, हटो !" उसने अपना लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाल लिया। शायद उसे ये अच्छा नहीं लगा।

"क्यूँ क्या हुआ....मजा नहीं आ रहा है क्या ?"

"बस ये नहीं करो...." मुझे बाहों से पकड़ कर उठा लिया, और हम पानी की बौछार में फिर से लिपट पड़े।

"अच्छा पर तुमने कुछ तो किया है ना, अन्दर तो घुसाया ही है तुमने?"

"कशिश, तुमने तो पकड़ लिया मुझे ! पर सच में ! वो यूसुफ़ है ना वो बड़ा खराब है !"

"अच्छा, क्या गाण्ड मरवाई थी उसने ?" मैंने उसे और खोलने की कोशिश की।

"चुप कशिश, ऐसे क्या बोलती है !" उसने मुझे ऐसे कहने से मना किया।

"बोल ना, गाण्ड मारी थी उसकी....?" मुझे तो मजा लेना था।

"हाँ, कोशिश की थी, पर जोर से लग गई थी यहाँ पर ! बहुत तकलीफ़ हुई थी !"

"तो फिर क्या उसने तेरी गाण्ड चोदी थी ?"

"अब तुमने गाली बोली तो ठीक नहीं होगा !" उसने मुझे आगाह किया। पर मैं तो वासना में बह निकली थी। मुझे चुदाई की ऐसी बातें ही चाहिये थी।

"बता ना ! तूने गाण्ड मराई थी ना?" मैंने फिर जिद की।

"हाँ, उसने मेरी गाण्ड मार दी थी, बहुत दर्द हुआ था !" उसने शिकायत भरे लहजे में कहा।

"मुझे गीली करके चूत मारेगा या गाण्ड मारेगा?" मेरी चूत लपलपा उठी, चिकना पानी भर गया चूत में।

मेरी बातों को सुनकर वो नाराज हो गया और वहां से कमरे में आ गया और बिस्तर पर लेट गया।

"कशिश क्या हो गया है तुम्हें ? ऐसी गालियाँ क्यूँ निकाल रही हो?" उसने फिर से शिकायत की।

पर मुझे अपना मजा लेना था।

मैं उसके पास आ गई और अपनी एक टांग ऊपर उठा कर उसके गले के पास रख दी और अपनी भीगी हुई चूत को उसके मुँह से लगा दिया। मेरी चिकनी चूत का पानी उसके मुँह के आस पास लग कर फ़ैल गया। वो कुलबुला उठा।

"अब्दुल, चल चूस ले, मुझे मस्त कर दे भेन-चोद, ये दाना हौले से मसल डाल !" मैं अपनी असलियत पर आती जा रही थी।

"चल हट ना, तू तो बेशरम हो गई है !"

"भोसड़ी के ! गाण्ड मरवा सकता है, चूत से परहेज कर रहा है? चूतिया है तू तो !"

मैंने उसके दुबले शरीर को कस कर भींच लिया। और उस पर चढ़ गई। उसका लौड़ा तो पहले से ही तन्ना रहा था। उसे अपनी चूत में दबा लिया और देखते ही देखते वो चूत में घुस गया।

"हरामी साले ! बड़े नखरे दिख रहा है रे ! एक लौड़ा क्या मिल गया तेरे को ! तो क्या खुदा हो गया है रे? मादरचोद ! तेरे जैसे सौ लौड़ों से चुद चुकी हूँ मैं !!" मैं उत्तेजना में बह चली।

मै ऊपर को धक्के लगाने लगी।

"अरे छोड़ दे रण्डी, छिनाल मुझे ! तेरी भेन चोदूँ ! साली हरामी, हट जा !"

"लगा ले जोर, तुझे आज मैं नहीं छोड़ने वाली, साला बड़ा आया था आशिकी झाड़ने।" मैंने उसे और कस कर जकड़ लिया। उसने भी अपनी ताकत लगा दी। जैसे जैसे वो ताकत लगाता, उसका लण्ड भी जोर मारता।

मुझे बड़ा मजा आ रहा था। मेरे में जाने कहा से इतनी ताकत आ गई कि उसे मैंने बुरी तरह से दबा लिया। वो कराह उठा। मेरी चूत तेजी से भड़क उठी, और कस कस के उसके लौड़े पर चूत पटकने लगी। मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी।

अचानक मेरा पानी निकल पड़ा और मैं झड़ने लगी। मैंने उसे और जोर से नीचे भींच लिया।

"कशिश मेरी सांस रुक रही है, छोड़ दे प्लीज !" मुझे अचानक लगा कि अरे मैंने ये क्या कर दिया। अब्दुल का तो जैसे बलात्कार कर ही कर दिया। मैंने उसका कड़क लण्ड बाहर निकाला और उस पर से हट गई।

अब्दुल थका सा उठा, पर उठते मुझ पर झपट पड़ा और मुझे बिस्तर पर उल्टा पटक दिया।

"तेरी मां का भोसड़ा, अब बताता हू मैं...." उसने मुझे गाली देते हुये मेरी गाण्ड में अपना लण्ड घुसेड़ दिया। पर उसे क्या पता था कि मैं तो पूरी तैयारी से आई थी। लण्ड गाण्ड में घुसते ही मुझे मजा आ गया।

"हाय रे.... मेरी गाण्ड बजायेगा ना, देख धीरे बजाना, लग जायेगी मुझे !"

"हरामी तेरी माँ चुद जायेगी अब, तेरी गाण्ड फ़ाड़ कर रख दूंगा.... साली चुद्दक्कड़ .... मेरी माँ चोद दी तूने.... तेरी तो फ़ोड़ कर रख दूंगा !" गुस्से में वो कस के गाण्ड चोद रहा था। मुझे मस्त किये दे रहा था। मुझे इसी तरह की चुदाई चाहिए थी। मुझे ऐसी ही तूफ़ानी तरीके से चुदना अच्छा लगता था।

हां मेरे चूंचे जरूर उसने रगड़ कर रख दिये थे जो टीस रहे थे। पर उसमें भी मजा था। वो मेरे चूंचे अभी भी बुरी तरह से खींचे जा रहा था। बहुत दर्द होने लगा था। गाण्ड में भी आस पास दुखने लगा था। मेरे गालों पर उसने काट लिया था। मेरे चूचुकों को दांतो से कुचल दिया था।

और अब वो अंतिम चरण में था। कुछ ही देर में उसके लण्ड ने फ़ुफ़कार भरी और पिचकारी छोड़ दी, ढेर सारा वीर्य निकल पड़ा और मेरे चूतड़ो पर फ़ैल गया। वो बार बार जोर मार कर लौड़े से अपना वीर्य बाहर फ़ेंक रहा था। कुछ ही पलो में वो पूरा झड़ गया।

मैं तुरन्त उसे धक्का दे कर अलग हो गई और खड़ी हो गई।

"मजा आया मेरे अब्दुल?"

"आप बहुत खराब हैं कशिश, तुम भी युसुफ़ की तरह ही निकली.... देख मेरा लौड़ा, अब दर्द कर रहा है।"

"तू तो साला न तो लण्ड पीने दे और ना ही चूत का रस पीए, तो फिर जबरदस्ती करनी ही पड़ती है ना ! कोई एक और साथ में होती तो तेरे से जबरदस्ती अपनी रसीली चूत चुसवाती।"

"हाँ और ये लण्ड में दर्द जो हो रहा है, साली ऊपर से मुझे पूरा चोद दिया।" उसने अपना लौड़ा मुझे दिखाया। उसकी शिकायत पर मैं हंस पड़ी।

"दर्द तो तूने मेरी गाण्ड फोड़ी है ना उसका है, मेरी चूत तो देख अब तक रस से भरी खान है, लग ही नहीं सकती है तुझे।"

"तू अब जा कशिश, मेरी तो तूने आज ऐसी तैसी कर दी !"

"और ये देख तूने तो मेरे चूचे लाल कर दिये, देख दोनों सूज के दुगने मोटे हो गए हैं, मर साले .... सुन अब्दुल, कल फ़िर ऐसे ही एक दूसरे को बजायेंगे !" कह कर मैं हंसी और धीरे से दरवाजा खोल कर दबे पांव नीचे अपने कमरे में आ गई।

मैंने जल्दी से अन्दर पेंटी पहनी और ब्रा डाल ली और बिस्तर में घुस गई। सब कुछ याद करके मुझे हंसी आ रही थी और खुशी भी हो रही थी अब्दुल को चोद कर, आज चुदाई करके मुझे मजा आ गया था, ऐसा जबरदस्ती वाला सुख मुझे जाने फिर कब मिलेगा।

मेरे चेहरे पर सुकून और शान्ति थी, चेहरे पर मुस्कान थी, दिल राजी था कि आज अब्दुल से चुदवा लिया, उसे फ़ड़फ़ड़ाता देख कर मजा भी आया था, पर हरामी ने मेरे चूंचो पर उसकी कसर निकाल दी थी........
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मैंने आज अब्दुल को शाम को बुलाया था। उसे यह पता था कि कशिश ने बुलाया है तो जरूर कुछ ना कुछ मजा आयेगा। कुछ नहीं तो चूंचे तो दबवायेगी ही। अब्दुल सही समय पर शाम को अपनी छत पर आ गया था और बेसब्री से मेरा इन्तज़ार कर रहा था। मैंने भी मौका देखा और छत पर आ गई।

"बोल क्या है कशिश, क्यूं बुलाया मुझे?"
"बड़ा भाव खा रहा है रे भेनचोद ? बुला लिया तो क्या हो गया ?"

"चूतिया बात मत कर, बता क्या बात है?"

"पहले मेरे चूंचे तो दबा, फिर बताती हूं !" मैंने उसे धक्का देते हुये कहा।

"भोसड़ी की, नीचे आग लग रही क्या ?"

"सच बताऊँ क्या ... लग तो रही है ... पर तेरे नाम की आग नहीं है !" मैंने साफ़ कहना ही ठीक समझा।

"नाम तो बता, साले को जमीन में गाड़ दूंगा !"

"बताऊँ ? यूसुफ़ से मिला दे मुझे, बस एक बार चुदना है उससे !" मैंने उसे धीरे से कहा।

"मां की चूत उसकी ! रांड ! मेरा क्या होगा? उसी के पीछे भागेगी तू तो ... ?" उसने शंका जताई।

"चुप रह ... मुझे तो तेरा लन्ड भी तो चाहिये ... प्लीज मिला दे ना ... !" मैंने उसे समझाया।

थोड़ा सोच कर बोला,"अभी बात करू या कल ... ?"

"चूत तो अभी लपलपा रही है, भोसड़ी के कल चुदवायेगा ... ? तू भी ना ... !"

अब्दुल समझ गया कि मामला अभी गरम है, उसे भी चूत मिल जायेगी। वो जल्दी से नीचे चला गया। मैं भी नीचे आ गई।

रात का खाना खा कर हम सभी घर वाले बैठे थे। पर मेरा दिल तो कहीं ओर था ... यूँ कहिये कि यूसुफ़ के पास था। चूत बार बार मचक मचक कर रही थी। इतने में मिस कॉल आ गया। मैंने देखा तो अब्दुल का ही था। मैं बहाना बना कर सभी के बीच से चली आई। फिर लपक कर छत पर आ गई। छत पर दो साये नजर आ गये। मेरा दिल खिल उठा। शायद अब्दुल ने अपना काम कर दिया था।

मैं दीवार कूद कर वहां पहुंच गई। जैसे ही मेरी नजरें यूसुफ़ से मिली, वो शरमा गया। मैं भी शरमा गई।

अब्दुल ने मौका देखा और कहा,"यूसुफ़, कशिश तुझसे मिलना चाह रही थी ... क्या मामला है ... ?

" बेचारा यूसुफ़ क्या कहता, उसे तो कुछ पता ही नहीं था ... बस वो तो मेरा आशिक था।

"मुझे क्या पता भोसड़ी के ... कशिश ही बतायेगी ना !" उसने शरमाते हुए कहा।

" मैं बताता हूँ यूसुफ़ ... यह कशिश तेरी आशिक है ... ।"

"चल झूठे ... ये झूठ कह रहा है यूसुफ़ !" मैंने अपनी सफ़ाई दी।

"तो लग जाओ ... मैं अभी आया ... !" वो खिलखिला कर हंसा और पीछे मुड़ कर चला गया। उसे मौके की नजाकत पता थी, कि दो जवान जिस्म मिलने को बेताब है और मुझे तो अब्दुल जानता ही था, यूसुफ़ ना भी करे तो मैं उसे छोड़ने वाली नहीं थी।

"यूसुफ़ ... बुरा मत मानना ... ये तो मजाक करता है !"

"उसने मुझे सब बता दिया है ... कशिश, अब शरमाने से क्या फ़ायदा !" यूसुफ़ ने साफ़ की कह दिया।

मुझे लगा कि ये तो काम बन गया अब तो चुदने की ही बारी है ...

"यूसुफ़, क्या कहा उसने ... ?" मैंने शरमाते हुए पूछा।

"यही कि आप हमें एक चुम्मा देंगी ... " उसने मेरी बांह पकड़ ली ... " देखो मस्त चुम्मा देना !" और उसने मुझे खुद से सटा लिया। मैंने अपने होंठ उसकी तरफ़ बढ़ा दिये। पर ये क्या?? मैं क्या चुम्मा देती, उसने तो खुद ही चूमना चालू कर दिया। मैं कुछ कहती उसके पहले उसका हाथ मेरे चूंचो पर आ गये और उन्हें मसल दिये।

हाय रे ... मेरी दिल की इच्छा तो अपने आप ही पूरी होने लगी। मैं कब से यूसुफ़ से चुदाना चाह रही थी ...

अब्दुल ने तो मेरा काम पूरा कर दिया था। उसका लण्ड भी फूलने लगा था। मेरी चूत भी पनिया गई थी। मेरे पोन्द दबने के लिये मचल उठे। मैंने अपने आपको उसके हवाले कर दिया। उसका हाथ अब मेरी चूत पर आ गया, मेरी चूत दबाने लगा। मैं मस्ती में डूबने लगी। मैंने अपने पांव और खोल दिये। चूत में भी मीठी मीठी लहर उठने लगी थी। मैंने अपनी चूत को उसके हाथ पर और दबाव डाल दिया। मेरा पजामा गीला हो उठा।

"भेन की लौड़ी, भाग ... अब्बू बुला रहा है तुझे, कशिश, बाद में चुदवा लेना !"

अब्दुल ने बाहर से आवाज लगाई। मैं हड़बड़ा गई। मेरी सारी हवस हवा में उड़ गई। सारा नशा काफ़ूर हो गया। अब्बू को अभी ही बुलाना था ...

"यूसुफ़, रात को यहीं रहना, सब के सोने के बाद आ जाउंगी !"

यूसुफ़ मुस्कुरा उठा।

मैं लपक के दीवार फ़ान्द कर अपने घर में आ गई और नीचे उतरने लगी।

"कहां मर गई थी, भेन-चोदों को आवाज देते रहो, कोई सुनता ही नहीं !" अब्बू गुस्सा हो रहे थे।

रात गहरा गई। सब लोग सो चुके थे। मैंने इधर उधर झान्क कर देखा और दबे पांव सीढियों को पार कर गई। छत पर कोई नहीं था। मैं धीरे से दीवार कूद कर अब्दुल के घर में आ गई। सोचा, चलो अब्दुल से ही चुदा लूं। अब्दुल दूसरी छत पर सोता था।

मैं दूसरी छत पर गई तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब्दुल और यूसुफ़ दोनों ही बिस्तर पर थे। अब्दुल नंगा था और यूसुफ़ ने अपना लण्ड अब्दुल की गाण्ड में घुसा रखा था, और मस्ती कर रहे थे।

"करते रहो ... मुझे देखने दो ... मजा आ रहा है !" मुझे उनकी मस्त गाण्ड चुदाई देख कर मजा आने लगा था। मेरी गाण्ड में भी तरावट आने लगी थी।

"यूसुफ़ चोद यार ... साली मेरी गाण्ड की मां चोद दे, लगा लौडा ... !"

"यूसुफ़ कैसा लग रहा है गाण्ड मारते हुए?" मैंने पूछा, मेरा जी गाण्ड चुदाई के लिये मचलने लगा था ।

"साले की गाण्ड है या मक्खन मलाई ... क्या लन्ड चलता है !" यूसुफ़ कराहते हुये बोला।

"लगा ना, जोर लगा, मेरी गाण्ड में लण्ड का बहुत मजा आ रहा है।" अब्दुल गाण्ड मराने के मजे ले रहा था। मुझे भी लगा कि यूसुफ़ मेरी गाण्ड भी ऐसे ही चोद दे ...

"यूसुफ़ ... मेरी गान्ड भी चोद दे ना ... अब्दुल को देख कर मेरी गान्ड भी मचलने लगी है" मुझ से रहा नहीं गया तो बोल पड़ी।

"आजा कशिश, तू क्यो पीछे रहे ... तेरी भी बजा देता हूं " यूसुफ़ तो जैसे तैयार ही था।

"सच में ... " मैंने तुरन्त अपना पजामा उतार दिया और कमीज़ ऊपर करके उल्टी लेट गई। यूसुफ़ तुरन्त मेरी पीठ पर चढ़ गया और मेरी पोन्द खोल दी। अन्दर का गुलाब खिल उठा। उसका सूजा हुआ मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड के गुलाब पर रगड़ मारने लगा और कुछ ही क्षणों में मेरी चिकनी गान्ड के छेद में समा गया। मेरा मन खुश हो गया। उसका लण्ड बड़ा और भारी था। उसका बाहर आना और अन्दर जाना ही मुझे मस्त किये दे रहा था।

"भोसड़ी के, मेरी गाण्ड तो मार पहले ... लौंडिया देखी और पलट गया हरामी ?" अब्दुल निराश सा हो गया था।

"क्यूँ नाराज हो रहा है ... पीछे आ जा ... मेरी मार ले ना ... ये भी तेरी जैसी ही चिकनी है, तीनो मजा लेंगे !" अब्दुल को यह ठीक लगा। अब्दुल पीछे आ कर यूसुफ़ की पोन्द पर लण्ड रगड़ने लगा और ... और ... यूसुफ़ कराह उठा ... "मार दी रे मेरी ... मादर चोद धीरे कर ... !"

"यूसुफ़ ... मेरी तो मार ना ... मेरी पोंद तो फ़ुलफ़ुला रही है !" वो दोनों ही अपने आप को एडजस्ट करने में लगे थे, मैंने अपने पांव और खोल दिये। अब स्थिति यह थी कि यूसुफ़ मेरी गाण्ड चोद रहा था और अब्दुल यूसुफ़ की गाण्ड मार रहा था। यूसुफ़ मेरे चूंचे मसल रहा था।

मेरा जिस्म वासना की मीठी मीठी जलन से सुलग उठा था। पर मैं हिल नहीं सकती थी, दोनों तरफ़ से मस्त धक्के चल रहे थे। मेरी चूत से पानी टपकने लगा था। गाण्ड तो चुद ही रही थी, पर अब चूत भी मचलने लगी थी। मुझे अब लगने लगा था कि अब मेरी चुदाई भी हो जाये तो स्वर्ग में पंहुच जाऊँ।

पर ये क्या ... जैसे मेरी यूसुफ़ ने सुन ली।

"अब्दुल ... चल हट ... भेन चोद ... इस रंडी की चूत का भी मजा लेने दे ... खड़े हो कर चोदेंगे यार !"

हम तीनों ही खड़े हो गये। अब्दुल ने मेरी टांग उठाई और मेरी गाण्ड में लण्ड घुसेड़ दिया ... और सामने से यूसुफ़ ने बड़े प्यार से अपना लम्बा लण्ड चूत में पेल दिया। मेरे मुँह से आह निकल पड़ी ... मेरी चूत में और गाण्ड में दो दो लण्ड फ़ंस चुके थे। लण्डों का भारीपन मुझे बडा मजा दे रहा था। एक ही साथ दोनों छेदो में लौड़े घुसे हुए थे ... कैसा सुहाना एहसास था।

"यूसुफ़ ... अब मजा आया भेनचोद ... दो दो लण्ड फ़ंसा कर ... चोद मादरचोद, जोर लगा, याद करेगा कि कशिश की मारी थी !" मैंने मस्ती में उन्हे बढावा दिया।

अब्दुल में मेरे चूंचे पकड कर मसलने लगा और यूसुफ़ ने मेरे होंठ अपने होंठ में दबा लिया। दोनों प्यार से मुझे चोद रहे थे। लण्ड फ़चाफ़च चूत में चल रहा था। अब्दुल के लण्ड से थोड़ी थोड़ी चिकनाई छूट रही थी जो मेरी गान्ड में लगती जा रही थी। गाण्ड के छेद में लण्ड का मोटापन महसूस हो रहा था। दोनों मुझे मस्त किये दे रहे थे।

"तेरी तो, छिनाल !... क्या चूत है ... फाड़ दूँ तेरे भोसड़े को ... !" यूसुफ़ ने मेरी चूत की तारीफ़ की।

" यूसुफ़ भाई ... गाण्ड में लण्ड चला कर तो देख ... कशिश की चूत जैसी नरम है।" अब्दुल ने भी मेरी तारीफ़ की ।

"हाय रे ... लड़की की गाण्ड है नरम तो होगी ही ...

मादरचोदो ! चोद डालो ना मेरी इस भोसड़ी को ... पानी निकाल दो इस हरामजादी चूत का !" मैं अपनी कमर को एक मंजी हुई चुद्दक्कड़ की तरह हौले हौले हिला हिला कर दोनों लण्ड का मजा ले रही थी।

अचानक अब्दुल ने पीछे से मेरी कमर खींच ली और अपना लौड़ा पूरा पेल दिया। मेरी गाण्ड में जलन सी हुई, थोड़ा सा दर्द हुआ ... अब्दुल के लण्ड ने अपना वीर्य मेरी गाण्ड में छोड़ दिया, वो झड़ चुका था। मेरे चूंचे भी उसने साथ ही छोड़ दिये। तभी मेरे शरीर में मीठापन भरने लगने लगा।

अब मेरी बारी थी झड़ने की।

"यूसुफ़ ... भेन-चोद ... मै मर गई !... चोद ओर जोर से चोद ...! मादरचोद ठोक दे चूत को ...! आह्ह्ह् ... आह्ह्ह्ह् ... ईईईई ... चल रे ... चला लौड़ा ... मर गई ... साले हारमजादे ... पकड़ ले मुझे ... मेरा निकला !" तभी यूसुफ़ ने जोर से मुझे भींच लिया

"मार दिया रे छिनाल तूने मुझे ... ! निकला मेरा भी रे ... " और मेरी चूत में लण्ड जोर से गड़ा दिया।

मैं सीमा तोड़ कर उससे लिपट गई। ... दोनों ही झड़ रहे थे। उसका वीर्य मेरी चूत में भर कर कर नीचे टपकने लगा। ग़ाण्ड से भी वीर्य की बरसात हो रही थी। मुझे वहीं बिस्तर पर उन्होनें लेटा दिया। मैं खड़े खड़े थक गई थी। मेरी सांस धीरे धीरे अब काबू में आने लगी थी। दोनों ही मेरे चूंचो से और पोन्द से खेल रहे थे। कभी चूत की दरार पर हाथ फ़ेर रहे थे और कभी गाण्ड की दरार पर।

यूसुफ़ से चुद कर मेरी सन्तुष्टि हो चुकी थी। मेरा काम हो गया था। मैंने उठ कर अपने कपड़े पहने।

"कशिश ! एक बार और चुदवा जा ... मेरा लन्ड शान्त हो जायेगा !" यूसुफ़ ने विनती की ...

पर यहाँ मैं तो मजा ले चुकी थी ...

"दोस्तो अब अपनी मां चुदाओ ... घर जा कर अपनी बहन को चोद ! मारो ना गाण्ड यूसुफ़ की अब ... मै तो चली ... !" मैंने अपने दोनों पोन्द मटकाये और हंसते हुये कल का वादा कर लिया।

मैं चुपचाप दीवार कूद कर नीचे आ गई। बिना किसी आहट के मैं दबे पांव अपने कमरे में आ गई। अन्धेरे में बिस्तर में घुस कर रजाई खींच ली।

मैं अचानक छटपटा उठी। मेरे मौसा जी पहले ही मेरे बिस्तर पर मेरा इन्तज़ार कर रहे थे। मौसा जी ने मुझे कमर से जकड़ लिया था।

"मेरे से भी तो चुदा ले रांड ... ये देख मेर लौड़ा तेरे भोसड़े में जाने के लिये तैयार है !" वो फ़ुसफ़ुसा कर बोले।

"मौसा ! ...साले ! तेरी मां की चूत ! ... छोड़ मुझे !... तेरी मां चोद दूंगी ! साले ... हरामी ! बहन के लौड़े !" हमारे घर में गाली दे कर बात करना तो आम बात थी।

मौसा जी के बलिष्ठ जिस्म ने मुझे जकड़ लिया था और एक हाथ से उनका कमाल देखने लायक था। मेरा कुर्ता उपर उठ चुका था और नाड़ा खिंच चुका था। उनके हाथ मेरे बोबे पर कस चुके थे। मैं तड़पती रह गई।

मेरा पजामा नीचे आ चुका था। मौसा जी ताकतवर थे, मैं कुछ ना कर कर पाई। मौसा का लण्ड बहुत ही मोटा लगा।

स्पर्श पाते ही, मन ही तो है ... ललचा गया।

उनका लण्ड मेरी चूत लगते ही मेरे पांव अपने आप उठने लगे। लण्ड चूत में समाने लगा। मौसा जी से छूटना मुश्किल था। अब लण्ड का साईज़ महसूस करके छूटना किसको था। लौड़ा आधा तो घुस ही चुका था, ऐसा मस्त मोटा लण्ड का चूत में घुसना ... मेरा मन उन पर आ गया।

मैंने अपनी चूत ढीली छोड़ दी और लण्ड को सीधा ही अन्दर घुसने दिया। लण्ड चूत की खाई में पूरा ही कूद चुका था। मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी ... नरम मोटा सुपाड़ा गद्दीदार था, सुहाना मजा दे रहा था।

"मौसाजी ... आप बडे वो हैं ... इतना मोटा लण्ड ... हाय रे ... फ़ाड डालोगे क्या ?"

"चुप धीरे धीरे चोदूंगा ... शोर मत मचाना ... वर्ना एक हाथ पड़ जायेगा ... भोसड़ी की !!"

यहाँ तो मजा आ रहा था इतने मोटे लण्ड का। ... मौसा जी की धमकी कोई मायने नहीं रखती थी, लौड़ा तो वो पेल ही चुके थे। मेरी चूत की दीवारें भारी लण्ड से रगड़ खा रही थी। चूत मस्ता उठी, पानी से गीली हो गई।

"मौसा जी, मुझे पहले चोदना था ना, मैं तो आपको मौसी को चोदते हुये रोज़ देखती हूँ ... आज तो मेरा नम्बर भी आ ही गया !"

"तो इशारा क्यों नहीं किया छिनाल ... लौड़ा तो होता ही चूत के लिये है ...! "

मौसा का लौड़ा मस्त मुस्टन्डा था। खूब कसता हुआ अन्दर आ जा रहा था। मेरी तो मन की चुदाई आज हो रही थी। चूत में थोड़ा दर्द भी हुआ पर मस्ती के आगे वो कुछ नहीं था। मौसा ने मेरी सहमति पा कर जोर जोर से चोदना चालू कर दिया। चुदते चुदते इस दौरान मैं दो बार झड़ गई, पर मोटे लण्ड से बार बार चुदने की चाह होने लगी थी।

तभी मौसा ने लण्ड ने ढेर सारा वीर्य उगल दिया। मेरा सारा बिस्तर गीला कर दिया। कभी कभी कोई दिन ऐसा भी आता था कि जब ज्यादा बार चुद जाती थी और काफ़ी बार झड़ भी जाती थी, तब मैं थक कर चूर हो जाती थी। आज भी मैं चुदने के बाद थकान के मारे जाने कब सो गई।

सुबह मौसा जी आये और मुझे जगा दिया,"कपड़े तो पहन ले ... ।"

और फिर वो मुस्कराते हुए चले गये।

मुझे घर में ही एक सोलिड मोटा मस्त लण्ड मिल चुका था ... आज से अब मुझे मस्त चुदने का मौका मिलेगा ये सोच कर मैं खुश हो उठी ... ।

साला मौसा हारामी ... अपनी ही बेटी समान को चोद कर मस्त कर गया।
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शादी के बाद से नज़मा भाभी की चुदाई बहुत ही कम हुई थी। जवान तन लण्ड का प्यासा था। मुझे रोज चुदते देख कर उसका मन भी मचल उठा। वो रोज छुप छुप कर अब्दुल से मेरी चुदाई देखा करती थी। जब वो गाण्ड मारता था तो भाभी का दिल हलक में अटक जाता था। भैया को बस धंधे से मतलब था। रात को दारू पीता और थकान के मारे जल्दी सो जाता था। सात दिन पहले वो मुम्बई चला गया था।

नज़मा भाभी आज तो ठान रखी थी कि मुझसे बात करके कुछ काम तो फ़िट कर ही लेगी।

भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा,"कशिश छत पर चल, एक जरूरी काम है !"

"यहीं बोल दे ना ... !"

"अब तू भी गाण्ड फ़ुला कर नखरे दिखा ! ... कहा ना जरूरी काम है !"

"चूतिया टाईप बातें मत कर ... गाण्ड जैसा अपना मुँह खोल ... बोल क्या बात है !"

"साली हारामजादी ... मां चुदा ! ... नहीं बताती ... !"

"हाय मेरी भाभी जान ... चल फिर ... लगता है जरूर कोई बात है !"

भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और लगभग खींचती हुई छत की ओर छलांगें मारती हुई सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। छ्त पर पहुंचते ही वो हांफ़ने लगी। उसकी छातियाँ ऊपर नीचे होने लगी।

"सुन ... एक बात कहूँ ... बुरा तो नहीं मानेगी ना ... " उसने बड़ी मुश्किल से उखड़ती आवाज में कहा।

"बोल ना ... दिल में इतनी बेचैनी ... क्या बात है ... किसी ने चोद मारा है क्या ... ?"

"बात ही कुछ ऐसी है ... देख नाराज मत होना ... !"

मैंने उसे हैरानी से देखा ... "बोल ना ... ऐसा क्या है?"

"बहुत दिन हो गये, तेरे भाई जान तो यहाँ है नहीं ... !" वो अटकते हुए बोली।

"हाँ तो ... आ जायेंगे ना ...! "

"वो तेरा दोस्त है ना, अब्दुल ... उससे मेरी दोस्ती करवा दे !" भाभी ने जमीन की ओर देखते हुये कहा।

"ओह हो ... मेरी भाभी की चूत चुदासी हो गई है ... चुदना है क्या?"

"कशिश ! ... प्लीज़ देख मजाक मत कर ... मेरी हालत बहुत खराब हो रही है ... देख, चूत में से पानी टपक रहा है !"

"अच्छा ... पहले देखूँ तो कितनी बैचेन है भाभी की चूत ... " मैंने उसकी चूत दबा दी।

सच में रसीली हो चुकी थी।

तो भोसड़ी की ! रान्ड को चुदवाना है ? मैंने कहा।

"सच रे ... ये तो बहुत ही चुदासी है ... साली पहले क्युँ नहीं चुदवा लिया ... कब चुदवाओगी ... ... कब बुलाऊँ उसे ...??? "

"आज रात को ही चुदवा दे ना मुझे ... "भाभी ने कातर नजरो से मुझे देखा। मुझे उस पर दया आ गई ...

अब्दुल तो शाम को सात बजे ही घर पर आ गया था। शाम का धुंधलका बढ़ गया था। हम दोनों छत पर आ गये। दूसरी छतों पर लोग थे।

"कशिश, भाभी आये उसके पहले कुछ हो जाये ... ?" अब्दुल बोला।

मुझे डर सा लगा, पर तुरन्त आईडिया आ गया। दीवार की आड़ में मस्ती कर लेते हैं।

"अच्छा तो नीचे बैठ जा और मेरी चूत खोल ले ... ऊपर तो कुछ दिखेगा नहीं"

मैं दीवार पर खड़ी हो गई ताकि कमर तक दीवार आ जाये ... वो नीचे बैठ गया और मेरी सफ़ेद पेन्टी नीचे उतार दी। मेरी चूत उसके सामने थी। उसने नीचे कुर्सी की गद्दी लगा ली और वो दीवार से टिक कर आराम से बैठ गया, और मेरी चूत से खेलने लगा। कभी मेरी चूत को सहलाता, तो कभी मेरे दाने को छू लेता ...

फिर दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर दबा देता और मेरे गाण्ड के छेद में अंगुली डाल देता। बड़ा मजा आ रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो गया था। सो जिप खोल कर उसने लौड़ा बाहर निकाल लिया और मुठ मारने लगा। उसके हाथ कभी कभी मेरे टॉप के अन्दर भी घुस जाते थे। मुझे डर लगता कि कोई मादरचोद मुझे देख ना ले, सो उसका हाथ पकड़ कर वापस नीचे ले जाती।

"चूतिये ... ऊपर मत कर ... कोई देख लेगा तो ... मेरी तो माँ चुद जायेगी !"

"कशिश धीरे से नीचे बैठ जा ... तब तो कोई नहीं देखेगा ना !" मैं उसकी तरकीब समझ नहीं पाई। मैने नीचे देखा और धीरे से बैठ गई और उसका लण्ड सीधा मेरी चूत में घुस गया। लण्ड चूत में घुसते ही मुझे उसकी बात पल्ले पड़ गई और हंस दी।

"भोसड़ी के ... मुझे चोदेगा क्या ... ? भाभी को आने दे ना ... !" मैंने उसका लौड़ा बाहर निकाल दिया।

तभी छत के कमरे में से मुझे खिड़की से झांकती हुई भाभी नजर आ गई। वो वहाँ खड़ी खड़ी अपनी चूंचियाँ मसल रही थी। जाने वो कब से खड़ी हो कर हमें देख रही थी। उसने मेरे देखते ही इशारा किया। मैंने अब्दुल को दूर हटा दिया।

"सुन रे गाण्डू, कपड़े पहन ले ... भाभी आने वाली है !" मैंने अब्दुल को लताड़ा।

अब्दुल ने कपड़े पहन लिये और खड़ा हो गया। मैंने भी अपने कपड़े सही कर लिए। सब कुछ सही देख कर भाभी कमरे में से बाहर छत पर आ गई।

भाभी जान के आते ही अब्दुल जैसे तैयार हो गया। मैने भाभी को इशारा किया कि क्या शुरु करें कार्यक्रम?

वो तो जैसे पहले ही गरम हो चुकी थी। उसका हाथ तो चूत पर ही था और उसे दबा रखा था ... मानो पेटीकोट दबा रखा हो।

"अब्दुल, यह है नजमा भाभी ... तुम्हें याद कर रही थी !"

"सलाम, भाभी जान ... आप तो बड़ी खूबसूरत हैं !"

प्रत्युत्तर में भाभी मुस्कराई और बोली,"मुझे तो कशिश ने बताया कि आप तो कमाल के हैं !"

"यह भोसड़ी का तो बस ... चुदाई में कमाल दिखाता है ... " मैंने उन दोनों को खोलने की कोशिश की।

"चल हट री भेन की लौड़ी ... वो तो सभी मर्द होते हैं !" भाभी ने खुलना ही मुनासिब समझा।

"भाभी जान ... आपकी बात तो अलग लग रही है ... आपके पोन्द तो कैसे मस्त हैं !" अब्दुल ने पास आते हुए कहा।

"हाय अल्लाह ... आप तो पोंद पर ही आ गए ... मैंने तो आपके बारे में अभी कुछ नहीं कहा ?"

अब्दुल ने सीधा आक्रमण कर दिया। भाभी के उभरे हुए मस्त पोंद दबा दिये।

"भाभी इसे यानि पोंद मरवा कर देखो ... " गाण्ड में अब्दुल ने अंगुली करते हुये कहा।

"आईईई ... कशिश ... मेरी पोंद दबा दी इसने ... !"

"अब्दुल चूंचे भी दबा दे ... जल्दी कर ... " मैंने अब्दुल को इशारा किया।

अब्दुल ने उसके पीछे आ कर दोनों चूंचिया दबा दी। भाभी के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी।

"अरे हट छोड़ मुझे, किसी ने देख लिया तो रट्टा हो जायेगा !" भाभी ने यहां वहां देखा और घबरा कर कहा ... "चल वहीं बैठ जा, जहां तू कशिश की चूस रहा था।"

अब्दुल तुरन्त वहीं जा कर बैठ गया और भाभी जान अब्दुल के पास गई और अपना पेटीकोट उठाया और उस पर डाल दिया।

"कशिश, शुक्रिया मेरी जान ... अब तो अब्दुल से मैं चुदा लूंगी ... चल रे अब्दुल ... शुरू हो जा ... " भाभी ने मुस्करा कर मुझे देखा और आंख मार दी और भाभी के मुख से आह निकल पड़ी। मैं समझ गई कि अब्दुल ने कुछ अन्दर किया है।

"हाय अब्बा ... डाल दे अंगुली ... पूरी घुसेड़ दे रे ... "

भाभी ने मुझे पकड़ लिया। मैं भाभी की चूंचियाँ दबाने लगी। उसने मुझे वासना भरी नजर से देखा और सिसकारी भरने लगी। " कशिश, यह तो मस्त लड़का है रे ... चूत का पानी ही निकाल देगा !"

"भाभी जान ... मस्त हो जा ... अब तेरे पेटीकोट में क्या हो रहा है मैं क्या जानू रे ... "

"हाँ कशिश ... ये अन्दर की बात है ... साला गजब चूत चूसता है ... हाय मुझे मूत आ रहा है !" नजमा भाभी मचलती हुई बोली।

"मूत दे भाभी ... मैं चूत खोलता हूँ ... "अब्दुल पेटीकोट के अन्दर से बोला।

"हाय मेरी अम्मा ... " भाभी ने जरा सा जोर लगाया और मूतना चालू कर दिया। अब्दुल अन्दर ही अन्दर उसके पेशाब का आनन्द लेने लगा। अपना मुँह गीला कर लिया और अपना मुँह खोल कर पेशाब भर लिया।

"और निकाल मूत ... भाभी ... क्या स्वाद है ... " उसने चूत में अपना मुँह घुसा कर चाटने लगा।

"बैठ जा भाभी जान ... आजा ... " भाभी धीरे से उकडू बैठ गई और मुख से एक आनन्द भरी सीत्कार निकल गई ... "हाय रे ... लण्ड घुस गया चूत में ... " अब्दुल ने लण्ड घुसते ही पेटीकोट अपने ऊपर से हटा लिया और भाभी को जकड़ लिया। अब्दुल का लण्ड चूत में पूरा घुस गया था। मैंने तुरन्त वहा फ़ैला हुआ पेशाब साफ़ किया और दौड़ कर दरी ले आई और भाभी के पीछे लगा दी। अब्दुल ने भाभी को कसे हुए दरी पर लेटा दिया और लण्ड को चूत में फिर से घुसेड़ दिया।

"हाय अब्दुल ... तेरा लौड़ा कितना प्यारा है ... पूरा ही अन्दर तक उतर गया ... अह्ह्ह्ह"

अब्दुल अब ठीक से सेट हो कर उस पर लेट गया और चोदने का आनन्द लेने लगा। मैंने भी भाभी की गाण्ड में अपनी अंगुली डाल दी।

"कशिश ... मजा आ गया ... एक अंगुली और डाल दे ...! "

मैंने भाभी की गाण्ड में दो अंगुलियां डाल दी और घुमाने लगी। मुझे एक शरारत और सूझी, अब्दुल की गाण्ड में भी दूसरे हाथ की अंगुली डाल दी।

"कशिश, तू साली चुपचाप नहीं बैठ सकती है ना ... साला युसुफ़ गाण्ड चोद जाता है वो कम है क्या ?"

"क्या, युसुफ़ भी तुम्हारा दोस्त है ... ?"

"हां भाभी, और फ़िरोज भी है ... " मैने फ़िरोज का नाम और जोड़ दिया

"हाय रे, कशिश ... मुझे भी अपनी टोली में मिला लो ना ... " भाभी चुदते हुये बोली।

"भाभी चलो, अब हम भी तीन और ये भी तीन ... नसीम को भी बताना चाहिये !"

"नसीम भी ... ।" भाभी तो इतने सारे चुदाई के साथी मिल जायेंगे यकीन भी नहीं हो रहा था। भाभी चुदवा कर मदमस्त हो रही थी। उसे लण्ड क्या मिला मानो दुनिया मिल गई हो। वो बहुत ही उत्तेजित हो कर आनन्द ले रही थी। मैंने गाण्ड में अंगुली पेलना चालू रखा, दोनों ही डबल मार से बहुत उत्तेजित हो गये थे ... अब्दुल सटासट लण्ड चला रहा था। अब्दुल का लौड़ा कड़कने लगा था, उसका डण्डा लोहे जैसा हो गया था। दोनों की कमर एक तालमेल के साथ तेजी से चल रही थी। चूत गीली होने से फ़च फ़च की आवाजें भी सुनाई पड़ रही थी। उत्तेजित भाभी के जिस्म में ऐंठन होने लगी थी।

मैंने भाभी और अब्दुल की गाण्ड में से अंगुली निकाल दी और भाभी की चूंचियां और निपल मसलने लगी, भाभी के मुँह से एक गहरी आह निकली और उसकी चूत ने रस छोड़ दिया। इधर अब्दुल भी लण्ड का जोर लगा कर वीर्य छोड़ने की कोशिश कर रहा था। मैं भाभी को छोड़ कर अब्दुल के चूतड़ों को दबा कर मसलने लगी। ... बस अब्दुल ने अपना लौड़ा बाहर निकाला और पिचकारी छोड़ दी। मैंने तुरन्त उसका लौड़ा मुठ में भर लिया और उसे निचोड़ने लगी और मुठ मार मार कर बाकी का वीर्य बाहर निकालने लगी। भाभी नीचे पडी हांफ़ रही थी और अब अब्दुल भी ठण्डा पड़ रहा था।

"भोसड़ी के ... अब ऊपर से तो हट जा भाभी के ... " मैने अब्दुल को पीछे खींचा।

अब्दुल खड़ा हो गया। भाभी भी उठ बैठी। भाभी ने पेटीकोट नीचे किया और मुझसे लिपट पड़ी।

"कशिश, शुक्रिया इस शानदार चुदाई का ... एक बात कहूँ ? प्लीज मना मत करना ... !"

"हां बोलो ... नज्जो भाभी ...! "

"मुझे भी, अपने दोस्तों में शामिल कर लो ... फ़िरोज, हाय कितना चिकना है ... युसुफ़ का लौड़ा तो सोलिड है और अब्दुल तो कितना प्यारा है !"

"भाभी ... फिर तो आप रोज चुदोगी, होशियार ... भैया को भूल जाओगी ...! " मैंने भाभी को मजाक में कहा।

"हाय कशिश ... ये लो मैंने तो पेटीकोट अभी से ऊपर उठा दिया ... चोदो ... मुझे जी भर कर चोदो !"

हम तीनों ही हंस पड़े ... और फिर सभी दोस्त बन गये । चुदाई सिलसिला शुरू हो गया ... भला चढ़ती जवानी के जोश को कोई रोक सका है ... ।
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मैं अपने कॉलेज में होने वाले टेस्ट की तैयारी कर रही थी। तभी अब्दुल का फोन आया,"कशिश, क्या कर रही है ? जल्दी से ऊपर आजा... एक काम है !"

"अभी आती हूँ... " मैंने मोबाईल पजामें में रखा और कमरे से बाहर निकली।

"मां की लौड़ी, कहा जा रही है? पढ़ना नहीं है क्या... " अब्बू ने हांक लगाई।

"अब्बू, अब्दुल भैया ने बुलाया है... अभी आई !" कह कर मैं सीढ़ियों की तरफ़ भाग चली।

"चुदवाने जा रही है भेन की लौड़ी ... ।" रास्ते में मौसा जी ने टोका।

"मादरचोद, टोक दिया ना... साला रोज़ तो चोदता है और फिर भी लार टपकाता है... "

"अरे, बुला रिया है तो मर... भोसड़ी की मेरा ही लौड़ा चाटती है और मुझे ही गाली देती है !"

"मां के लौड़े, आगे और नहीं चोदना है क्या ? चल रास्ता ले... गांडू साला !" मैंने उसे प्यार से दुलारा और छलांगे भरती हुई छत पर आ गई। अब्दुल अपनी छत पर खड़ा था। उसने ऊपर आने का इशारा किया। मैं दीवार फ़ांद कर उसकी ऊपर की छत पर आ गई। सामने वही कमरा था जहा अब्दुल या युसुफ़ मेरे साथ मस्ती करते थे।

"रात को मस्ती करनी है क्या... ?"

"नहीं रे ! मेरे तो कल टेस्ट है... वैसे एक ही टोपिक है... चल बता प्रोग्राम...? "

"देख तुझे पैसे भी मिलेंगे और चुदना भी नहीं है... बोल मस्ती करना है?"

"भेनचोद कोई जादू है जो बिना चोदे पैसे दे जायेगा?"

"देख एक खेल है, उसमें तुझे दो हज़ार रुपया मिलेगा, पांच सौ मेरे... !"

"यानी डेढ़ हजार मेरे... बोल बोल जल्दी बोल ... मजा आ जायेगा !"

उसने मुझे खेल के बारे में बता दिया, मैं खुश हो गई पर शंकित मन से पूछा,"मुझे चूतिया तो नहीं बना रहा है ना, मालूम पड़ा कि भोसड़ी का मजे भी कर गया और माल भी नहीं मिला?"

"बस तू आजा... रात को वही ग्यारह बजे... "

मैंने सर हिलाया और वापस लौट आई। रात को दस बजे मैंने खाना खाया फिर अपने बिस्तर पर आराम करने लगी। साले अब्दुल के दिमाग में क्या है? उन लड़कों के नाम भी नहीं बता रहा है... और कहता भी है कि तू जानती है... मुझे वो अच्छे भी लगते हैं... पर कौन ?

मोबाईल की घण्टी बजी, अब्दुल का मिस कॉल था। मैंने चुप से लाईट बन्द की और चुपके से छत पर चली गई। उपर घना अंधेरा था, शायद, अमावस की रात थी। कुछ ही देर में मेरी आंखें अंधेरे की अभ्यस्त हो गई। मैं दीवार फ़ांद कर ऊपर पहुंच गई। मुझे पता था चुदना तो है ही सो कम से कम कपड़े पहन रखे थे। कमरे के दरवाजे पर ही अब्दुल ने कहा,"ये पांच सौ रुपये... ! अंधेरे कमरे में घुस जा और दो लड़कों में से किसी एक का लण्ड पकड़ कर मुठ मारना है... ज्यादा समय, ज्यादा रुपया... ये पांच मिनट का पांच सौ है !"

"क्या बात है... अब्दुल, तेरे लण्ड को तो मैं प्यार से पियूँगी।"

मैंने रुपये लिये और अंधेरे कमरे में घुस गई, अब्दुल ने बाहर से दरवाजा बन्द कर दिया। अन्दर जमीन पर ही एक मोटा बिस्तर डाल रखा था। पहले तो घुप अंधेरे में मुझे कुछ नहीं दिखा फिर धीरे धीरे दो साये नजर आये। मैं उनकी ओर बढ़ी और एक का हाथ थाम लिया। मेरा हाथ नीचे फ़िसला तो लगा वो तो पहले से नंगे थे। मुझे पांच मिनट से अधिक लगाने थे ताकि मुझे ज्यादा पैसा मिल सके। मैंने उसका लौड़ा थाम लिया और उसे मसलने लगी। उसकी आह निकल पड़ी। मेरे सतर्क कान उनकी आवाज पहचानने में लगे थे। मैंने नीचे बैठ कर उसका तना हुआ लण्ड अपने मुख में ले लिया और चूसने लगी। सब कुछ धीरे धीरे कर रही थी। उसकी सिसकारियाँ बढ़ती ही जा रही थी। उसके लण्ड की स्किन कटी हुई थी, यानि था वो मेरी ही जात का...

पता नहीं कैसे मेरा प्यार उस पर उमड़ पड़ा और उसका लण्ड के छल्ले को कस कर रगड़ दिया और उसने बाल पकड़ कस कर पकड़ लिये और वीर्य छोड़ दिया। मेरा मुख उसके यौवन रस से भर गया। जिसे मैंने प्यार से पी लिया। तभी अब्दुल ने पांच मिनट का सिग्नल दिया। मैंने बाहर आ कर अब्दुल को बता दिया अब दूसरा लड़का और था। मैंने उसे थाम कर उसका मुठ मारना शुरू कर दिया। वो साला तगड़ा निकला, मैं मुठ मारती रही, साला दस मिनट से ज्यादा हो गये झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। पर अगले पाँच मिनट में वो झड़ गया। मुझे पन्द्रह सौ और पांच सौ यानी दो हजार मिल चुके थे।

"मजा आया कशिश... देख तूने तो एक ही बार में दो हज़ार कमा लिये... और अभी तो आधा ही कार्यक्रम हुआ है। चल अब बस गाण्ड मराना है। तेल लगाया है ना गाण्ड पर?"

"अरे मेरी गाण्ड तो गुफ़ा के बराबर है... कितनी ही बार घुसो... पता ही नहीं चलता है... पर हां, मस्ती खूब ही आती है।"

"तो चल... जा अन्दर... और मरा ले अपनी गाण्ड !"

मैंने अपने कपड़े उतारे और फिर से अंधेरे कमरे में घुस पड़ी। पहले वाले ने प्यार से मुझे पीठ से चिपका लिया और मेरे बोबे पकड़ लिये। मैं घोडी बन गई और नीचे घुटने टेक दिये और बिस्तर पर हाथ रख दिये, मैंने अपनी दोनों टांगें फ़ैला कर अपने चूतड़ खोल दिये। उसका ठण्डा और क्रीम से पुता लण्ड मेरे गाण्ड की छेद से छू गया। देखते ही देखते लौड़ा मेरी गाण्ड में उतर गया। मुझे अब मीठी सी गाण्ड में गुदगुदी सी हुई और मैं सी सी करने लगी। वो मेरी चूंचियां मसलने लगा और लण्ड की मार तेज करने लगा। मुझे भी मस्ती आने लगी। मैं अपनी गाण्ड के छेद को कभी कसना और ढीला करने लगी, कभी अपनी गाण्ड को हिला कर और मस्ती करती ... पर साला का लण्ड कमजोर निकला... उसने मेरे बोबे दबा कर अपना वीर्य छोड़ दिया... मेरी गाण्ड में उसका वीर्य भर गया। फिर उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

अब दूसरे की बारी थी... मेरी गाण्ड में वीर्य का फ़ायदा यह हुआ कि उसका मोटा लण्ड मेरी गाण्ड में वीर्य की वजह से सीधा ही गाण्ड में घुस गया। उसका लण्ड मोटा और लम्बा भी था। थोड़ी ही देर में वो मेरे बोबे दबा दबा कर सटासट चोदने लगा। पर ये मेरा दाना भी सहला देता था। इससे मुझे भी तेज उत्तेजना होती जा रही थी। कुछ देर बाद वो भी झड़ गया। उसका वीर्य भी मेरी गाण्ड में सुरक्षित था, पर सीधे खड़े होते ही वो तो मेरी टांगो से लग कर बह निकला।

"अब्दुल भोसड़ी के, अब तो लाईट जला... " मेरी आवाज उनमें से एक पह्चान गया।

"अरे शमीम कशिश... तुम...? !!"

मेरी आवाज सुनते ही उसमें एक बोल पड़ा। मैं चौंक गई। इतने में अब्दुल ने लाईट जला दी। मैं नंगी ही मुड़ कर उससे लिपट गई। ये मेरा आशिक रफ़ीक था। सुन्दर था, सेक्सी था, पर शर्मा-शर्मी में हम बस एक दूसरे को देखते ही थे। बात नहीं हो पाती थी, उसने मुझे लिपटा लिया।

"कशिश, मेरी कशिश... देखा भोसड़ी की, तू मुझे मिल ही गई, ये मेरा दोस्त खलील है !" रफ़ीक भावावेश में बह गया।

इतने में अब्दुल हिसाब करता हुआ बोला,"खेल खत्म हुआ... देखो... आपने मुझे पांच हज़ार दिये थे... इसमें से तीन हज़ार कशिश के हुए... और ये दो हज़ार आपके वापस !"

रफ़ीक ने पैसे लेकर मुझे दे दिये... "नहीं ये कशिश के हैं... इसका दीदार हुआ... मेरा भाग्य जागा... !"

मैंने पांच हज़ार लिये और पजामे की जेब में डाले। रफ़ीक को चूम कर मैं अब्दुल से लिपट गई।

"अब्दुल, इस गाण्डू रफ़ीक ने मेरी चूत में खलबली मचा दी है... मुझे चोद दे यार अब... "

अब्दुल से रफ़ीक की शिकयत करने लगी। मैं उसके बिस्तर पर चित लेट गई। अब्दुल मेरे ऊपर चढ़ गया और मुझे कस लिया और एक झटके से मुझे अपने ऊपर ले लिया।

"ले कशिश... चोद दे मुझे आज तू... रफ़ीक... एक बार और इसकी गाण्ड फ़ोड डाल !"

मैंने अपनी चूत निशाने में रख कर लण्ड पर दबा दिया और हाय रे ... मेरी चूत में रंगीन तड़पन होने लगी। लगा सारी मिठास चूत में भर गई हो, इतने में गाण्ड में रफ़ीक का मोटा लण्ड घुसता हुआ प्रतीत हुआ। मैं सुख से सरोबार हो उठी। तभी खलील ने आना लण्ड मेरे मुख में दे डाला...

"हाय रे मादरचोदो...! आज तो फ़ाड दो मेरी गाण्ड... इधर डाल दे रे मुँह में तेरा लौड़ा... "

"कशिश, सह लेगी ये भारी चुदाई... ।" मेरे मुँह में तो लण्ड फ़ंसा हुआ था, क्या कहती, बस सर हिला दिया। इतना कहना था कि भोसड़ी के अब्दुल ने लण्ड दबा कर चूत में घुसा डाला। उधर रफ़ीक ने भी गाण्ड में अपना मोटा लण्ड घुसेड़ मारा। लगा कि अन्दर ही अन्दर दोनों के लण्ड टकरा गये हों। मेरे जिस्म में दोनों लण्ड शिरकत कर रहे थे और दोनों ही मुझे उनके मोटेपन का सुहाना अहसास दिला रहे थे। मैं दोनों के बीच दब चुकी थी। दोनों लण्डों का मजा मेरे नसीब में था। अधिक नशा तो मुझे पांच हज़ार रुपया मिलने का था जो मुझे मस्ती के साथ फ़्री में ही मिल गया था। खलील अपने लण्ड से मेरा मुख चोद रहा था। मेरे बोबे पर रफ़ीक ने कब्जा कर रखा था। मैंने खलील के दोनों चूतड़ों को दबा कर पकड़ रखा था। और मेरी अंगुली कभी कभी उसकी गाण्ड में भी उतर जाती थी।

पर साला मरदूद... हांफ़ते हांफ़ते उसने मेरी तो मां ही चोद दी... उसके लण्ड ने वीर्य उगल दिया और सीधे मेरी हलक में उतर गया। लण्ड को मेरे मुख में दबाये हुये वीर्य उगलता रहा और मुझे अचानक खांसी आ गई। उसने अपना स्खलित हुआ लण्ड बाहर निकाल लिया। अब मेरी चूत और गाण्ड चुद रही थी। मेरा जिस्म भी आग उगल रहा था। सारा जिस्म जैसे सारे लण्डों को निगलना चाह रहा था। अन्दर पूरी गहराई तक चुद रही थी... और अन्त में सारी आग चूत के रास्ते बाहर निकलने लगी। लावा चूत के द्वार से फ़ूट पडा। मैं बल खाती हुई अपने आप को खल्लास करने लगी। इतने में अब्दुल भी तड़पा और वो भी खल्लास होने लगा... उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और मुझे चिपटा लिया... उसका लावा भी निकल पड़ा... अब सिर्फ़ रफ़ीक मेरी गाण्ड के मजे ले रहा था... कुछ ही देर में उसका माल भी छूट पड़ा और मेरी गाण्ड में भरने लगा। मैं अब्दुल के ऊपर सोई थी और रफ़ीक मेरी पीठ से चिपका हुआ था।

"मेरी कशिश... आज तू मुझे मिल गई... बस रोज मिला कर !"

"तू तो है चूतिया एक नम्बर का... भोसड़ी के, मेरे तो पचास आशिक है... तू भी बस मेरा एक प्यारा आशिक है... बस चोद लिया कर... ज्यादा लार मत टपका...! " मैंने कपड़े पहनते हुये कहा।

अब्दुल और खलील दोनों ही हंस दिये... उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई... उसने मेरी चूत पर चुम्मा लिया और चाट कर बोला... "कशिश, यार तू है मस्त... मेरी जरूरत हो तो बस अब्दुल को बोल देना... " मेरा पाजामा थूक से गीला हो गया।

"अरे जा... तेरे जैसे गाण्ड मारने वाले तो बहुत है, पर हां... तू तो मुझे भी प्यार करता है ना... !"

"हट जाओ सब... अब बस मैं अकेला ही कशिश को अभी चोदूंगा... " वो जोश में आ गया।

मैं उछल कर बाहर की ओर दौड़ पड़ी...

"अरे रुक जा... छिनाल... रण्डी... मेरी कशिश... !"

पर मैंने एक ना सुनी... मैं फ़ुर्ती से जीना उतर कर दीवार लांघ कर अपने घर में चली आई...

अब मैं पाच हज़ार कैसे खर्च करूँ, यह सोच रही थी...
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इलाहाबाद में कहावत है कि किसी जवान लड़की की गाण्ड देख कर अगर लौड़ा खड़ा नहीं हुआ तो वो इलाहाबादी नहीं है। यहाँ लोग गाण्ड के दीवाने होते हैं। कोई चिकना लौण्डा हो तो भी लण्ड फ़ड़फ़ड़ा उठता है। फिर मैं और नसीम तो जवान, कम उम्र, और सुपर गोल गाण्ड वाली लड़कियाँ थी, किसी की नजर पड़ गई तो समझो लण्ड से नहीं तो उनकी नजरों से तो चुद ही जाती थी। हम दोनों ऐसी नजरें खूब पहचानती थी।

मैं और मेरी रिश्ते की बहन नसीम, जो मेरी अच्छी सहेली भी थी, हम दोनों बाल्कनी में खड़ी बाते कर रही थीं। नीचे ही देख रही थी कि मुझे दो लड़के नज़र आये।

"नसीम, ये दो नये लौण्डे कौन हैं?"

"वो तो अनवर है और ये जीन्स वाला फ़िरोज़ है, अपने ही रिश्ते में है।"

"यार, मस्त लौण्डे हैं, आज इनको पटाते हैं..."

"यार, तेरी तो बहुत जल्दी फ़ड़कने लगती है कशिश..."

"सच कह रही हूँ, मुझे इन चिकने लौण्डों से चुदवाने में बड़ा मजा आता है..."

"हाय, दो सहेलियां खड़ी खड़ी, दोनों चुदायें घड़ी घड़ी ..."

हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़ी। नीचे से दोनों ने हंसी सुन कर ऊपर देखा और दोनों हमें देखते ही रह गये। फिर दोनों ने एक दूसरे को मुस्कुरा कर देखा।

"लगा तीर दिल पर...!" मैंने कहा,"अब ये तो गये काम से...समझ लो आज रात का काम बन गया !"

नसीम मुझे हैरानी से देखने लगी..."देख, वो फ़िरोज़ मेरा वाला है...!"

"भेनचोद, तुझे लण्ड चाहिये या शकल... जो पट जाये वही ठीक है... चल अब एक्टिंग शुरू करें !"

नसीम भी पटाने की अपनी तरह से तैयारी करने लगी। मैंने भी अपना मूड बना लिया और अन्दर जा कर तंग काली वाली कैप्री पहन ली और एक नीचे गले वाला छोटा सा स्लीवलेस टॉप डाल लिया। ऐसा टॉप था कि जरा सा पास आने से चूंचियो के दर्शन हो जाते थे। थोड़ा सा मेक-अप किया और कंटीली नार बन कर नीचे उतर कर आ गई। उनमें से एक युवक अन्दर की ओर आ रहा था। मैंने आव देखा ना ताव, सीधे उससे टकरा गई।

"हाय अल्लाह, आह्ह्ह, ..." मैंने कराहते हुए उसे देखा।

"सॉरी...सॉरी... लगी तो नहीं...?" उस युवक ने कहा।

"हाय अम्मी... आप देख कर नहीं चलते...?" मैंने अपनी बड़ी बड़ी आंखे धीरे से उठाई... उसने ज्योंही मुझे देखा ... उसका दिल धक से रह गया... आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर मुझे देखने लगा...

"या खुदा... रहम कर... ये हूर... आप कौन हैं...?"

उसके मुख से आह सी निकली। लगा कि काम बन गया।

"मैं... मैं.. शमीम कशिश... " नाटक चालू था... मैंने अपनी आंखे धीरे से झुका ली... और जान करके उसके और पास आ गई। उसके दिल पर कई कांटे गड़ चुके थे। उसकी नज़र मेरे पास आते ही मेरे टॉप के अन्दर पड़ गई, जहाँ मेरे उभार उसकी आंखो को रस पिलाने के लिये बेताब हो रहे थे। उसे समय दिये बिना डोरे डाले जा रही थी।

"सुभान अल्लाह... ये जिस्म है या जादू ... !!" मेरा अगला तीर भी निशाने पर बैठा। मेरी नजर अचानक नसीम पर पड़ी तो बराबर हाथ हिला कर कुछ कहना मांग रही थी, पर मैं मौके की नजाकत को समझ रही थी, मुर्गा फ़ंसने को तैयार था...

"हाय... ये क्या कह रहे है आप..." मैं हाथ से छूटे कपड़े उठाने के लिये यूं झुकी कि कैप्री में से चूतड़ की दोनों गोलाईयां उभर कर उसके चेहरे के सामने आ गई। दोनों चूतड़ खुल कर खिल उठे... उसकी नजर ने इसका पूरा जायजा लिया, मेरे उठते ही काप्री मेरे चूतडों की दरार में घुस गई... उसके मुख से आह पर आह निकलती गई। तीर जिगर में धंसते चले गये।

"कशिश, मैं फ़िरोज़... आपने तो जाने क्या जादू कर डाला ?" मैं नसीम का इशारा अब समझी। पर काम तो हो चुका था। मैंने तुरन्त उसकी तरफ़ कंटीली चिलमन से मुसकरा कर देखा।

"जादू... देखो आपने तो मुझे चोट लगा दी..." मैंने तिरछी नज़रों का एक वार और कर डाला।

"और मुझे जो चोट लगी है वो...?" घायल सा वो बोला।

"ओह... सॉरी... कहां लगी है...बताईये तो...!" मैंने अनजान बनते हुए कहा। उसका लण्ड का उठान शुरू हो चुका था, और पैंट में से उभर रहा था।

"यहां पर...!" उसने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा।

"धत्त... हाय अल्लाह... !!" मैं कह कर नसीम वाले कमरे में भाग आई। फ़िरोज वहीं घायल सा तड़फता खड़ा रह गया। जाने कितने तीर लग चुके थे उसके दिल पर...।

नसीम ने मुझे देखते ही नाराजगी जाहिर की..."वो तो मेरा वाला था... साला बेईमान निकला... देखा नहीं तुझे देख कर मादरचोद ने लण्ड हिलाना चालू कर दिया।"

"अभी तो लण्ड हिला रहा है...देखना भेनचोद रात को यही लण्ड खड़ा मिलेगा... फिर क्या तेरी चूत और क्या मेरी चूत... सबको चोद देगा !"

"कशिश, तू बड़ी खराब है... अब अनवर को मुझे पटाना पड़ेगा...!"

"सॉरी नसीम... साला वो पहले सामने आ गया... इरादा तो अनवर को पटाने का ही था!"

मैं ऊपर अपने कमरे में चली आई... । फ़िरोज मेरा पीछा कर रहा था। मेरे पीछे पीछे फ़िरोज भी आ गया। मैं कपड़े बदल चुकी थी और सिर्फ़ एक गाऊन जान करके डाल रखा था, अन्दर कुछ नहीं पहना था। पर अब तक वो आया क्यूं नहीं। उसने दरवाजा खटखटाया और अन्दर झांका... मैं उसके अचानक आने का मैंने घबराने का नाटक किया।

"आप... फ़िरोज जी..."

"खुदा कसम... मन नहीं माना... तो आपके पास आ गया...।"

"कहिये... क्या हुआ..." मुझे पता था कि हरामी का लौड़ा खड़ा हो रहा होगा... तो पीछे पीछे आ गया आशिकी झाड़ने। पर मुझे तो उसका पूरा आनन्द जो लेना था। सोचा चलो शुरुआत अभी कर लेते है...रात को चुदवा लेंगे। मेरी तैयारी पूरी थी, अन्दर से मैं पूरी नंगी थी, बस काम चालू होते ही मेरे नंगे जिस्म को मसल देगा वो...।

"कशिश... आप मेरे मन को भा गई है... देखिये खुदा के लिये इन्कार मत करना..."

मैंने अपना मुख दोनों हाथों से ढक लिया...और शर्माने का भरपूर नाटक करने लगी।

"ऐसे मत कहिये... खुदा की मार मुझ पर... आप तो मेरे लिये खुद ही खुदा है..."

"क्या कहा... कबूल है... ओह्ह मेरी किस्मत... अल्लाह रे... आपने बन्दे की सुन ली..."

साला मरा जा रहा था मेरे पर... पर मुर्गा इतनी जल्दी लपेटे में आ जायेगा यकीन नहीं हो रहा था। मेरा जिस्म फ़ड़कने लगा कि अब उसके हाथ मेरे तन को सहलायेंगे। इतना सुन्दर, गोरा, लम्बा और सुडोल शरीर वाला लड़का... बिलकुल जैसे खजाने में से निकाला हो, नया नया जवान ... 18-19 साल का... हाय... बेचारा गया काम से। आगे बढ़ कर मेरे हाथो को उसने पकड़ लिया। मैंने जैसे कांपने का नाटक किया।

"हाय अल्लाह, ना छुओ ... मैं मर जाऊंगी" मैंने शरमाने का भरपूर नाटक किया। उसने जोश में मेरा मुख चूम लिया और उसके हाथ मेरी चूंचियों पर आकर उसे नापने लगे। मैंने शरम से झुक गई और उसे दूर हटाने लगी... "फ़िरोज... बस करो... छोड़ दो मुझे..."

"पहले वादा करो, रात को मेरे कमरे में मिलोगी ना..."

"बस करो ना... हाँ आ जाउंगी ना... बस" कहते ही फ़िरोज ने मुझे छोड़ दिया। मुझे निराशा हुई कि मेरा बदन तो कोरा ही रह गया। लेकिन नहीं ... वो इतनी जल्दी मानने वाला नहीं था। फिर से नजदीक आया और मुझे लिपटा लिया। गाऊन के अन्दर उसके हाथ पहुंचने लगे। मेरा तन पिघल उठा। मेरा अंग अंग नपा तुला सा दबा जा रहा था। सभी उभारों को उसने एक कली की तरह मसल दिया। मेरी सिसकियाँ गूंज उठी। चूत पानी टपकाने लगी। मैं उसकी बाहों में तड़प उठी। फिर धीरे से उसने छोड़ दिया। मैंने अपना गाऊन ठीक किया। वो मुझे प्यार से निहारते हुए जाने लगा।

"तो फिर रात को...। बाय ...बाय..." वो जैसे ही मुड़ा तो मुझे लगा कि मैंने तो उसे झटका दिया ही नहीं।

"फ़िरोज, रुको तो..." जैसे ही वो रुका , मैं उसके पास आ गई और उससे चिपक गई। वो कुछ समझता मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया और दबाने लगी।

"कशिश... मैं मर गया... छोड़ दे रे..."

"फ़िरोज प्लीज... दबाने दो... मेरी बहुत इच्छा थी इसे हाथ में लेकर दबाने की... बहुत मोटा और लंबा है?"

उसका लण्ड तन्ना उठा। वो तड़प उठा। मेरा हाथ हटाने लगा पर मैं कोई कच्ची खिलाड़ी थोड़े ही थी। जम के उसक लौड़ा पकड़ा और मसलने लगी। उसका डन्डा था भी लम्बा और हाथ में ऐसे फ़िट आया कि उसका मुठ ही मार दिया। वो लहरा उठा...

"कशिश, अरे मेरा लण्ड तो छोड़ दे, हाय रे"

"प्लीज फ़िरोज... बहुत अच्छा है... मसलने दे ना" मैंने जिद करके मसलना चालू रखा। कुछ ही पलों में पेण्ट में एक काला धब्बा उभर आया। उसका वीर्य निकल पड़ा था। मेरा काम हो गया था। उसके मुंह से एक आह निकली...

मैंने कहा,"फ़िरोज... शाम को मेरा निकाल देना बस..." और हंस पड़ी।

"मेरी तो मां चोद दी कशिश... तुझे भी नहीं छोड़ने वाला... तेरी भी फ़ोकी चोद डालूंगा देखना !" फ़िरोज़ भी झड़ने से थोड़ा शर्मिन्दा हो गया था।

रात के एक बज रहे थे। मेरे मोबाईल का अलार्म बज उठा, सुस्ती के मारे उठने का मन नहीं कर रहा था। पर फ़िरोज़ के मोटे लण्ड का ख्याल आते ही जिस्म तरावट से भर गया। मैं झट से उठी। मैंने नसीम के कमरे में झांक कर देखा और धीरे से उसे जगाया। हम दोनों ही दबे पांव कमरे से बाहर आ गये। हम दोनों ही रात के सोने वाले वाले कपड़े पहने थे। बस एक झीना सा पजामा और एक उटंगा सा कुर्ता...

"चल यार चुदना ही तो है क्या मेक-अप करना..." मैंने कहा और सीढ़ियां चढ़ कर फ़िरोज के कमरे के बाहर आ गई।

"अभी तू बाहर से देखना, फिर मैं तुझे बुला लूंगी" मैंने नसीम को तरकीब बताई।

"नहीं, मैं अनवर को बुलाती हूँ... तू जा..."

"पर अनवर... "

"मैंने उसे पटा लिया है... दिन को एक बार चुदा भी चुकी हूँ।" नसीम में फ़ुसफ़ुसा कर कहा। मुझे जलन हो उठी... साली भोसड़ी की... मेरे से पहले ही चुदा लिया। मैं तो चाह रही थी कि अनवर पर भी लाईन मार कर उसे फ़ंसा लेती और उससे भी खूब चुदाती...।

नसीम साईड वाले कमरे में अनवर के पास चली गई। मैंने फ़िरोज़ का दरवाजा खोला। मुझे किसी ने अचानक ही पीछे से दबोच लिया। सामने फ़िरोज़ खड़ा था... तो फिर मेरी गाण्ड में ये लण्ड किसका गड़ा जा रहा था।

"आज तो कशिश की मां चोदनी है... साली ने मेरा दिन को मेरा माल निकाल दिया था" फ़िरोज़ ने मुस्करा कर कहा।

"चल तू क्या चोद रहा है..." ये आवाज अनवर की थी... मेरा मन मयूर नाच उठा... अनवर तो बिन पटाये ही लण्ड लिये हुए खड़ा है।

"मैं इसकी चूत चोदता हूँ और तू गाण्ड चोद इस... नमकीन की..." फ़िरोज़ बोला।

"साला हरामी, चोदने का मुझे वादा किया और चूत कशिश की चोदेगा..." कमरे में अनवर को नहीं पा कर नसीम आ चुकी थी। मैं एक बार फिर ईर्ष्या से जल उठी। ये माँ की लौड़ी यहाँ कैसे मर गई। दो दो लण्ड की आश खत्म हो गई थी। फ़िरोज़ ने ज्योंही नसीम को देखा , वो उसकी ओर लपक उठा...

"अनवर , मेरे दिल की रानी आ गई..." और नसीम को अपनी बाहों में उठा कर बिस्तर पर आ गया। फ़िरोज़ का लण्ड देखते ही बनता था, नसीम को देखते ही वो फ़नफ़ना उठा था। मैं अब और निराश हो चली थी कि ये हरामी तो नसीम का आशिक निकला।

"मेरा पजामा मत फ़ाड़ना... नहीं तो नीचे नहीं जा पाउंगी !" नसीम में खुद ही अपना पजामा उतार दिया। मुझे भी अपना पजामा उतारने में भलाई ही लगी। अब कौन हमें छोड़ता... फ़िरोज़ ने नसीम को दबा डाला और लण्ड चूत में घुसेड़ दिया। नसीम ने फ़िरोज़ को जोर से कस लिया और सिसक उठी। मुझे नीचे पड़े बिस्तर पर अनवर ने प्यार से लेटाया और अपना खड़ा लण्ड मेरी चूत पर हौले हौले घिसने लगा। डबलरोटी की तरह फ़ूली हुई मेरी चूत के पट खुलने लगे। दोनों फ़ांकें खुल गई। बीच की पलकें जो हल्की भूरी सी, टेढी मेढी सी लहराती हुई मांसल चमड़ी और बीच में पानी का गीलापन और फिर झाग से बुलबुले से भरी मेरी रसीली चूत पर अनवर मर मिटा। उसके होंठ मेरी चूत से लग गये और उनका रसपान करने लगा। मेरी चूत से लगा मेरा दाना फ़ड़क उठा, उसके होंठ बार बार मेरे दाने को भी चूस लेते थे...

"अनवर मियां... मैं मर जाउंगी... प्लीज फ़िरोज की तरह चोद डालो ना..."

"नहीं, कशिश... चोदेगा तो तुम्हें फ़िरोज ही, मैं तो गाण्ड का दीवाना हूँ..."

मुझे फिर थोड़ी सी निराशा हुई, पर कुछ ही देर में नसीम को चोद कर फ़िरोज़ मेरे पास हाज़िर हो चुका था। चूस चूस कर लगा था कि झड़ना बाकी है। पर मैंने अपने आप को कंट्रोल किया। फ़िरोज़ का खड़ा लण्ड, सुपाड़े की चमड़ी कटी हुई, सच्चा मुसलमान लग रहा था... उसकी मर्दानगी भी एक पठान की तरह लग रही थी। अनवर सामने से हट गया और फ़िरोज़ ने कमाण्ड सम्हाल ली। वो मेरे पर चढ़ गया और मुझे नीचे दबा लिया। मेरा सारा जिस्म कसमसा उठा। उसका भार बड़ा प्यारा लग रहा था। कुछ ही क्षणों में उसका गरम गरम लण्ड मेरे जिस्म के भीतर समाने लगा। मैं तड़प उठी।

"मेरे खसम... मजा आ गया... पूरा समा दे अन्दर... हाय..." उसने मेरा मुख अपने मुख से दबा लिया और निचले होंठ दबा कर चूसने लगा। अब उसका लण्ड अन्दर बाहर होने लगा। उधर नसीम की गाण्ड को अनवर लण्ड घुसेड़ कर चोद रहा था। नसीम भी मेरी ही तरह गाण्ड चुदाने में माहिर थी।

"कशिश, आज आई है नीचे तू... तेरी आस तो मुझे कब से थी रे...अब तो चोद ही दिया !"

" हाय रे मेरे जिगर... तेरे नाम से ही मर मिटी थी जानू...मेरे दिल, मेरी जान... आह रे..." मैं भी अपने मन के लड्डू फ़ोड़ रही थी... साला ऐसा जवां मर्द कहाँ मिलेगा मुझे।

"मैंने कहा था ना तेरी फ़ोकी चोद कर मजा लूंगा... मस्त भोसड़ी है !"

"बस कुछ मत बोल, बस जोर से चोद दे..." मेरी बेताबी बढ़ती जा रही थी, पर मेरी चूत को और गहरी चुदाई चाहिये थी। उसके धक्के तेजी से चल रहे थे। मुझे भी वासना की आग घेर चुकी थी। जिस्म आग में सुलगने लगा था। मीठी मीठी आग तन को जला रही थी। पर मुझे और दबा कर चुदना था। मुझे लगा कि अभी लण्ड पूरा दम लगा कर नहीं चोद रहा है। बिना हल्के दर्द के कैसा चुदना। मैंने दांत भींचते हुये फ़िरोज को दबाया और पलटी मार कर उसके ऊपर आ गई।

"मादरचोद... लौड़े में दम नहीं है क्या... लौड़ा तो साले का मस्त दिखता है..." मैंने फ़िरोज़ को दबाते हुये चूत में उसका सुपाड़ा फ़ंसा लिया और उस पर सीधे बैठ गई और चूत पर पूरा जोर लगा कर लण्ड को अन्दर समा लिया। मुझे लगा कि अब सुपाड़ा की गद्दी ने जड़ में ठोकर मार दी है तब मैंने कस कस कर उसके लण्ड पर अपनी चूत पटक पटक कर मारनी चालू कर दी। हर बार मेरे मुख से आह निकल जाती... चूत की गहराई को उसका लण्ड और गहरा कर रहा था। गहराई की चोट एक अलग ही मजा दे रही थी, थोड़ा सा दर्द और खूब सारा मजा...। उसका लण्ड फ़ूलता सा लगा उसकी पकड़ मजबूत होने लगी। तभी अनवर ने मेरी गाण्ड थपथपा कर इशारा किया। मैं फ़िरोज पर लेट गई और गाण्ड ऊंची कर ली। मेरी गाण्ड में अनवर का लण्ड सरसराता हुआ घुस पड़ा। अनवर के लण्ड के झटके, मेरी चूत को फ़िरोज के लण्ड पर मार कर रहे थे।

फ़िरोज तो झड़ने के कगार पर था... और तभी फ़िरोज के मुख से सिसकारी निकल पड़ी और उसके लण्ड ने वीर्य छोड़ दिया। उसके बलिष्ठ हाथों ने मुझे जकड़ लिया। उसका लण्ड मेरी चूत में गरम गरम लावा भरने लगा... तभी मेरा शरीर भी गर्मी पा कर लहरा उठा और मेरा रज भी छूट पड़ा। मैंने अनवर को धक्का मार कर पीठ पर से उतार दिया और

फ़िरोज के ऊपर लेट कर सुस्ताने लगी। तभी अनवर अपना मुठ मार कर अपना वीर्य मुझ पर उछालने लगा। मेरा चेहरा और बदन उसके वीर्य से भीग उठा......

फ़िरोज़ ने मुझे अलग कर दिया और बाथ रूम में चला गया। मैंने भी सुस्ती छोड़ी और उठ खड़ी हुई, नसीम सो चुकी थी, उसको उठाया और हम दोनों ने अपने चूतडों और चूत के आस पास लगे वीर्य को धो कर साफ़ कर लिया। थोड़ा सा पानी से मैंने अपनी पीठ और सामना साफ़ कर लिया।

"शब्बा खैर... मेरे जानू..." फ़िरोज़ और अनवर ने मुसकरा कर हमें विदा किया। पर नसीम मुड़ मुड़ कर चुदासी आंखों से उन्हे निहार रही थी... मुझे हंसी आ गई...

"अरे कल फिर और चुदा लेना... अब चल साली, नहीं तो सुबह हो जायेगी..."

हम दोनों भारी मन से चुदने की इच्छा लिये दरवाजे से दोनों को एक बार और देखा और अंधेरे में कदम बढ़ा दिये...।
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जब मैंने एम ए करने के लिये दाखिला लिया तो मुझे होस्टल में जाना पड़ा। डर के मारे मेरी जान निकली जा रही थी। जाने वहाँ लड़कियाँ कैसा व्यवहार करेंगी। वहां से कहीं जाने को मिलेगा या नहीं। यहां जब तब चुदने वाली लड़की को अब लण्ड नसीब होगा या नहीं ? मैं यही सब सोच कर उलझन में थी। मुझे आराम से सिन्गल रूम मिल गया था। आज मुझे होस्टल जोईन करना था। मैं सीधे स्टेशन से टेक्सी ले कर होस्टल पहुंच गई। डरते डरते मैंने होस्टल में कदम रखा। पर मुझे वहाँ दूसरी लड़कियों ने मदद करके मेरा सामान वगैरह कमरे में सजा दिया। मुझे वहाँ अच्छा लगने लगा। यहाँ ना तो अब्बू था, ना ही अम्मी जान, ना ही खाला और ना ही मेरी छोटी बहन, यानी टोकने और परेशान करने वाला कोई नहीं था। सभी कुछ मनमोहक सा लगने लगा था। मेरी सोच से बिल्कुल उल्टा। मैंने पहले क्यो नहीं होस्टल में प्रवेश नहीं लिया, अब ये सोच कर मैं अफ़सोस करने लगी। मैं होस्टल में अपना डिल्डो लाना नहीं भूली थी। मुझे पता था कि लड़कियों के होस्टल में मुझे कोई लड़का नहीं मिलने वाला है।

शाम का खाना मेस में खा कर मैं जैसे ही कमरे में गई और अपना हल्का सा पजामा पहना कि दरवाजे में किसी ने खटखटाया। मैंने कहा,"दरवाजा खुला है, अन्दर आ जाईये !"

तुरन्त दो लड़कियाँ अन्दर आ गई और भीतर से दरवाजा बन्द कर दिया।

"मेरा नाम शिल्पा है और यह सोनल है... और तुम हमें दीदी कहोगी !"

मैं डर सी गई।

"आप कौन हैं... और मुझसे क्या काम है?"

"डरो मत... बस आपने हमें अपना परिचय देना है !"

"ओह कहिये शिल्पा दीदी... मेरा नाम कशिश खान है और मैं इलाहाबाद की हूँ !"

"अच्छा, बड़ी स्मार्ट हो... इसे परिचय नहीं कहते हैं... हम पूरा नीचे से ऊपर तक परिचय लेते हैं !"

"जी...कहिये..."

"ये टॉप उतारो... जरा हमें भी तो जलवे दिखाओ !" सोनल बोली।

"अरे जाओ, बड़ी आई हो टॉप उतरवाने वाली..."

सोनल बड़ी और ताकतवर लड़की थी... उसने मेरे बाल पकड़ लिये,"भेन चोद... क्या कहा... ये देख..." उसने मेरा टॉप ऊंचा कर दिया और कहा,"पिटना हो तो बोल देना !"

"मुझे उसमे मर्दों वाली ताकत दिखाई दी। आवाज भी अलग सी थी। पर कितनी ही लड़कियाँ ऐसी होती हैं।

उसकी बातों से मैं सहम गई। मैं समझ गई थी कि मेरी रेगिंग हो रही है। कुछ खटपट सुन कर सोनल ने दरवाजा खोला। एक दम से कई लड़कियाँ अन्दर आ गई।

"अरे वाह सोनू, तुम यहां... क्या किया... साली अभी तक कपड़े में है?"

"तुम जाओ... यह तो मेरी शिकार है... मेरे ही सबजेक्ट की है" सोनल ने कहा। सभी लड़कियाँ दूसरे की रेगिन्ग लेने चली गई। मेरे में अब तो उसका सामना करने की हिम्मत भी नहीं रही।

"चल उतार कपड़े... दिखा अपनी मस्त चूंचियां...!"

मैंने धीरे से टॉप और शमीज उतार दिया मेरे दोनों बोबे बाहर छलक पड़े। यूं तो अभी छोटे ही थे पर दूसरो को आकर्षित करने का दम रखते थे।

"तेरे काम की चीज़ है सोनू... जरा सहला कर तो देख..." शिल्पा बोली।

सोनू आगे बढ़ी और मेरी चूंचियों पर हाथ रख दिया। मैं चौंक पड़ी... मर्द का हाथ मैं अच्छी तरह से पहचानती थी। कई बार मैं चुदवा चुकी थी... और मर्दो का स्पर्श मैं जानती थी। पर चुप रही... उसके हाथो में जैसे जादू था। उसने बड़े प्यार से मेरे बोबे सहलाये... मुझे झुरझुरी आने लगी। उसने मुझे चूम लिया। अब कोई शक नहीं था कि वो लड़की नहीं लड़का है। मुझे असली मजा मिल रहा था... मैंने उसे रोका नहीं। उसके होंठ मेरे होंठ से लग गये। उसका एक हाथ मेरे पजामे के ऊपर मेरे चूतड़ो पर आ गया और दबाने लगा।

"बस करो सोनल दीदी...मुझे कुछ हो रहा है !" मेरे तन में ये जान कर और आग लग गई थी कि ये तो लड़का है और मुझे नई लड़की जानकर चोदने आया है।

"क्यों मजा आ रहा है ना... अभी और आयेगा...!" शिल्पा ने मुस्करा कर कहा।

" हाय दीदी... और दबा दो ना !" मैंने उससे आग्रह किया। शिल्पा ने सोनू की ओर देखा और मतलब से मुस्करा उठी।

"मैं जा रही हूँ... जब रेगिंग समाप्त हो जाये तो मेरे रूम में आ जाना... बाय !" कह्कर शिल्पा चली गई।

मुझे अब पूरी आज़ादी मिल गई। मैं अपनी असलियत पर आ गई।

"कशिश, तेरे मम्मे तो बड़े कठोर हैं... और तेरे चूतड़ तो मस्त हैं.." सोनू ने कसकते अन्दाज में कहा।

"मां की लौड़ी, बोल तो ऐसे रही है कि जैसे मुझे चोद डालेगी !" मैंने अपने तेवर बदले। मेरी भाषा सुन कर पहले तो हक्का बक्का रह गया। पर उसने मुझे भांप लिया कि शायद मेरी भाषा ही ऐसी है।

"क्यू चुदना है क्या भोसड़ी की... बोल तो दे...!" उसने भी मेरी ही भाषा का प्रयोग किया।

"सच भड़्वी, तूने मुझे मस्त कर दिया है... और मस्त कर दे... ला मैं भी तेरी भोसड़ी सहला दूँ !" मैंने उसे और उकसाया।

मेरी कशिश... ले सहला दे मेरी भोसड़ी और कर मुझे भी मस्त...!" सोनू ने अपनी कमर यूँ आगे कर दी जैसे कोई लण्ड लेने को तैयार हो।

मेरी आशा के मुताबिक लड़का ही निकला वो... हरामी का लण्ड तनतना रहा था...

"चूतिये... पहले ही बता देता ना कि लड़का है... इस लण्ड की हालत तो देख... गांडू मरा जा रहा है !" मैंने हंसते हुये कहा।

"कशिश ऐसे क्या बोलती है... तेरे बातों में गालियां ही गालियां हैं... ऐसी लड़की तो मैंने आज तक कहीं नहीं देखी !"

"आये हाये... साला बड़ा सीधा बन रहा है... तेरे कड़क लौड़े का मजा तो लेने दे !" मैं उसका लण्ड अपने हाथ में लेकर सहलाने और मसलने लगी और पूछा,"तेरा नाम क्या है रे...मादरचोद!"

"सोनू... ये लड़कियाँ प्यार से मुझे सोनू कहती हैं... वैसे मेरा नाम सलमान है !"

"अब ये तो उतार दे... चल बिस्तर पकड़ और उठा अपना लौड़ा और मार दे मेरी चूत !"

"अरे तू तो साली बड़ी मस्तानी निकली...!"

मैं उसकी हालत देख कर हंस पड़ी... उसका मस्त लौड़ा उफ़न रहा था। सुपाड़ा रह रह कर फ़ुफ़कार रहा था। सुपाड़े की ऊपर की चमड़ी कटी हुई थी। उसने अपने पूरे कपड़े उतार दिये थे...

"तू यहां आया कैसे... मतलब होस्टल में..."

"इन लड़कियों के साथ उनके ही कपड़े पहन कर आ जाता हूँ... यहा बहुत सी लड़कियाँ मुझसे चुदाती हैं !"

"वाह रे सोनू... साले तेरी तो लाईफ़ बन गई... फ़्री की चूतें मिल जाती हैं...!"

"नहीं... ये सब मुझे पैसा देती हैं... जो मुझे नहीं जानता है इनके साथ देख कर लड़की जान कर मुझ पर शक नहीं करता है और ये मस्ती से कमरा बन्द करके खूब चुदवाती हैं..."

अब तक मैं उसके साथ बिस्तर पर आ चुकी थी... और वो मेरे ऊपर चढ़ गया था। मैंने अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा ली थी। मेरे हाथ मेरी चूत का द्वार खोल रहे थे... कुछ ही पलों में उसका लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था।

"हाय मेरे मौला... आह्ह... स्स्स्स्सी सीऽऽऽऽऽ... मजा आ गया सलमान..."

"लगता है तू तो बहुत बार चुदा चुकी है...!"

"अरे चुप... चल लगा लौड़ा... मादरचोद... चूतिये की तरह क्या पूछता है !"

"कशिश रे कशिश... तुझसे बोलना ही पाप है !" मैंने उसे कस लिया... और मुझे होस्टल के पहले दिन ही चुदने का आनंद मिल गया। उसका लण्ड भीतर चूत की गहराई नापने लगा और मैं भी उसे पूरी चुदने में सहायता करने लगी। मेरे बोबे वो खींच खींच कर घुमाने और दबाने लगा। मैंने अपनी दोनो टांगे उसकी कमर से लपेट कर चूत उठा कर चलाने लगी। बीच बीच में आदत के अनुसार उसके चूतड़ो पर भी पीछे से लात मार रही थी। उसका लण्ड थोड़ा सा मोटा था, इसलिये वो अन्दर बाहर कसता हुआ जा रहा था।

"भेन चोद तेरा लौड़ा मोटा है रे...हाय... मेरा रस जल्दी निकाल देगा..."

"इसीलिये तो यहाँ की लड़कियाँ मुझ पर मरती है... फिर कशिश तेरी चूत नई है ना इसलिये टाईट है..."

"भोसड़ी के चूतिये... मेरी चूत तो मेरे दोस्त रोज मारते हैं... तुझे नई लग रही है?"

"क्या... अच्छा... तो ये ले तेरी भेन की चूत..." वो अब नरमाई छोड़ कर कड़ाई पर आ गया। अब मुझे भी मजा आने लगा। उसने पूरा दम लगा कर जो लण्ड चूत में मारा, मेरी तो चीख निकल गई।

"हरामी... मजा आ गया... लगा ... मां चोद दे मेरी !"

"तेरी तो गण्डमरी... फ़ाड़ के रख दूंगा ... देखना..."

"दे ...दे... मदरचोद... दे लण्ड... चोद दे हरामजादे..." मैं खुशी से चीखती बोल रही थी। वास्तव में मैं चरमसीमा पर पहुंच चुकी थी। मुझे जन्नत की खुशी नसीब हो रही थी। अन्दर जड़ तक चुद गई थी...

"ही... ईईऽऽऽऽ... तेरी तो मां की चूत... फ़ाड़ दे आज... सोनू मैं तो गई... हरामी... निकला मेरा तो..." और आह रे... मेरा रस जोर से निकल पड़ा... तभी सलमान ने भी हुंकारा भरा... और लण्ड बाहर निकाल कर फ़व्वारा छोड़ दिया। उसका वीर्य हवा में लहरा उठा... झटके खा खा कर उसका रस बरसता रहा... मैंने उसे कस कर पकड़ लिया। अब वो मेरे पर लेटा हुआ हांफ़ रहा था। मेरी धड़कन भी अब सामान्य होने लगी थी। मुझे चूमता हुआ वो मेरे पास ही लेट गया। मैं अपनी दोनों टांगें चौड़ी किये पड़ी हुई थी।

मैं नंगी बिस्तर से उठी और उसके शरीर को निहारने लगी। उसका शरीर वास्तव में गठीला था। बस कमर जरूर लड़कियों जैसी थी। मैंने उसका लण्ड पकड़ा औए मुँह में डाल लिया और सुपाड़े के रिंग को अपने होंठो से रगड़ने लगी। साला लण्ड तो लण्ड, सोनू खुद भी तड़प कर खड़ा हो गया।

"बस अब आखिर में मेरी सुन्दर सी गोल गोल गाण्ड चोद दे राजा..." मैंने अपनी सुन्दर सी गाण्ड उसके चेहरे के सामने घुमा दी। किसकी क्या मजाल कि इलाहाबादी रसीली गाण्ड सामने हो और कोई उसे ना चोदे...।

उसने मुझे फिर से बिस्तर पर खींच लिया और मुझे उल्टा लेटा कर चूत के नीचे मोटा सा तकिया लगा दिया। मेरी गाण्ड खिल उठी... उसने चूतड़ों के पार्टीशन को खींच कर अलग किया और पास में पड़ी मेरी फ़ेस क्रीम को गाण्ड में भर दी। मेरी प्यारी सी, दुलारी सी चिकनी सी खाई जैसे खड्डे में अपना मोटा सा लौड़ा टिका दिया। उसके लण्ड ने ओखली में सर घुसा ही डाला। मेरी गाण्ड का छेद पहले तो सिकुड़ कर छोटा हो गया फिर मैंने उसे ढीला करके उसे स्वागत किया। गाण्ड मराने की अभ्यत होने से मुझे उससे गाण्ड चुदाने में कोई तकलीफ़ नहीं हुई। उसका मस्त लौड़ा फ़िसलता हुआ चिकने छेद में अन्दर जाने लगा और मुझे मजा आने लगा, मेरी गाण्ड और खुलने लगी। चूतड़ो के पट और ढीले करके लण्ड को पूरा अन्दर लेने की कोशिश करने लगी। सलमान भी एक नम्बर का चोदने वाला निकला... बड़ी नरमाई से उसने मेरी गाण्ड में लण्ड पूरा उतार दिया। उसका गहराई तक फ़न्सा हुआ लण्ड मेरी गान्ड में कसा हुआ बहुत भा रहा था। डण्डे का अह्सास मुझे मस्त किये दे रहा था।

अब वो पहले तो धीरे धीरे लण्ड गाण्ड में मारने लगा फिर उसकी स्पीड बढ़ती गई। वो अपने घुटनों के बल बैठा हुआ था और मेरी चूत उसके सामने खुली हुई थी। वो मेरी चूत के दाने को सहलाते हुये लण्ड चला रहा था। उसकी अंगुली भी मेरी चूत में अन्दर जा कर मुझे मस्त कर रही थी थी। मैंने अपनी आंखें बन्द कर ली और चुदाई का भरपूर आनन्द लेने लगी। मेरे अंगों का संचालन अपने आप हो रहा था, मस्ती बढ़ती जा रही थी। उसके हाथ मेरी चूत को रगड़ रगड़ कर मुझे मदहोश कर रहे थे... उसकी दो दो अंगुलियाँ मेरी चूत को लण्ड की तरह चोद रही थी और लण्ड मेरी गाण्ड में मस्ती से चोद रहा था। आंखें बन्द किये हुये मैं होश खोने लगी और चूत में से पानी छूट पड़ा। मैं उत्तेजना से झड़ने लगी, मेरा रस निकलता जा रहा था। सलमान अनुभवी था उसे पता चल गया था मैं झड़ चुकी हूँ... अब वो भी गाण्ड में लण्ड तेजी से चलाने लगा और और उसने गाण्ड के अन्दर ही अपनी पिचकारी छोड़ दी। मुझे गरम गरम सा और लण्ड की लहरें अपनी गाण्ड में महसूस होने लगी। कुछ ही देर में वो पूरा झड़ चुका था... और उसका लण्ड सिकुड़ने लगा था। लण्ड अपने आप बाहर आ गया था।

सलमान अब बिस्तर से उतर चुका था और मोबाईल से उसने शिल्पा को मिस काल किया। कुछ ही देर में शिल्पा मेरे कमरे में आ गई थी। हमारी हालत देख कर वो बड़ी खुश हुई,"कशिश, चुद गई ना ... अब तू हमारी क्लब में शामिल हो गई है... हमारे एक दो दोस्त और हैं... उसका भी मजा लेना..." सलमान और मैंने तब तक कपड़े पहन लिये थे। शिल्पा ने अपने पर्स में से कुछ काजू बादाम निकाले और कहा,"अपनी सेहत का ख्याल रखना ... मैं दूध भिजवाती हूँ..." सलमान वापिस लड़की के भेष में आ गया था। उसने मुझे प्यारी सी स्माईल दी और दोनों बाहर चले आये।

मुझे पहले ही दिन चुदाई का भरपूर मजा मिल चुका था... और खुश थी कि होस्टल में अब मैं आराम से चुदाई करवा सकूंगी।
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Raj Sharma

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