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Wednesday, January 2, 2013
अरे चुदवा ले ना... लण्ड है तो
अरे चुदवा ले ना... लण्ड है तो
दो तीन वर्ष गाँव में अध्यापन कार्य करने के बाद मेरा स्थानान्तरण फिर से शहर में हो गया था। मैं कानपुर में आ गई थी। यह स्कूल पिछले गांव वाले स्कूल से बड़ा था। मैं इसी स्कूल में गणित विषय की अध्यापिका थी।
वहाँ पर मेरे पापा के एक मित्र का घर भी था जो उन्होंने पहले तो किराये पर दे रखा था फ़िर बहुत कोशिशों के बाद न्यायालय द्वारा उन किरायेदार को वे निकालने में सफ़ल हुये थे। अब वे किसी को भी अपना मकान किराये पर नहीं देते थे। बस उन्होंने उसे मरम्मत करवा कर, रंग रोगन करवा कर नया जैसा बना दिया था। मेरे जाने पर उन्होंने वो पूरा तीन कमरों का मकान मुझे बिना किराये के दे दिया था। मैं उन्हें अंकल कहती थी। उनका भरा पूरा परिवार था। उनका एक लड़का दीपक बाहरवीं कक्षा में पढ़ता था, बस मैं उसी को संध्या को एक दो घण्टे गणित पढ़ा दिया करती थी।
कुछ ही दिनों के बाद मेरी एक अन्य सहेली विभा जो कि उसी स्कूल में विज्ञान की अध्यापिका थी, वो भी इसी स्कूल में आ गई थी। वो शादीशुदा थी। मैंने अंकल से कहकर उसे अपने साथ ही उसी मकान में रख लिया था। पर वो उसके बदले में दीपक को विज्ञान पढ़ाया करती थी।
कुछ ही समय में हम कानपुर में अब रम से गये थे। अच्छा शहर था... यहाँ समय बिताने के सभी साधन थे। पर इस महीने भर में विभा उदास रहने लगी थी... उसके अनुसार उसे अपने पति की बहुत याद आती थी... पर उनके कुवैत जाने के बाद वो जैसे अकेली हो गई थी। मैं तो अब तक कुवांरी थी और सोचा था कि शादी नहीं करूंगी। सहेलियों से मैंने कई शादी के बारे में भ्रांतियाँ सुन रखी थी। मैं डर सी गई थी। मुझे सेक्स की बातों से, अश्लील विचरण करने से नफ़रत सी थी। मैं तो मन में भी उन बातों का ख्याल भी नहीं आने देती थी।
पर विभा बिल्कुल विपरीत थी। रात को वो अक्सर अश्लील मूवी कम्प्यूटर पर देखा करती थी, फिर उसकी सिसकारियों की आवाज से कमरा गूंजने लगता था... और फिर वो शान्त हो जाती थी। मुझे उसके इन कार्यों से कोई बाधा नहीं उत्पन्न नहीं होती थी और ना ही मैं उसे कोई शिक्षा देती थी। वो दूसरे कमरे में अपने में मस्त रहा करती थी।
एक बार तो वो किसी लड़के को चुदवाने के लिये साथ ले आई थी, पहले तो मुझे पता ही नहीं था कि वो लड़का क्यूं आया है पर सवेरे मैंने उसी लड़के को उसके बिस्तर पर देखा तो सब समझ गई। उसके जाने के बाद मैंने उसे आगाह कर दिया कि अगर अंकल को पता चल गया तो हम दोनों इस घर से निकाल दिये जायेंगे। फिर काफ़ी दिन गुजर गये थे।
एक दिन तो वो उदास सी मेरे बिस्तर पर लेटी हुई थी।
"उनकी याद आ रही है क्या?"
"भाड़ में गये वो... भड़वा साला खुद तो वहाँ मजे मार रहा होगा और मैं यहाँ..."
"सब्र करो... तुम ऐसा सोचती हो... ये मन का भ्रम है... उनको भी तुम्हरी याद आती होगी !"
"अरे कौन उनको याद करता है यार? मुझे तो बस मात्र एक अदद लौड़े की जरूरत है... बस फिर शान्ति... पर तू है कि बस अंकल..."
"अरे चुप ! यह सब तुझे अच्छा लगता है?"
"अरे मेरी कम्मो... एक बार चुदा कर तो देख... साली दीवानी हो जायेगी देखना। अच्छा चल आ... तुझे आज चुदाई क्या होती है देख..."
वो मुझे अपने कमरे में ले गई और अपने बिस्तर पर मुझे बैठा दिया। उसने कम्प्यूटर ऑन कर दिया। फिर एक साईट पर उसने कोई ब्ल्यू मूवी लगा दी। एक मर्द और लड़की दोनों अश्लील हरकतें कर रहे थे। लड़की लड़के का लण्ड चूस रही थी। मेरा दिल तो धक से रह गया ये सब देख कर...
"विभा... बन्द कर ये सब... छी: कितना गन्दा है ये...!"
"अरे कम्मो... यह क्यों नहीं कहती कि कितना रोमान्टिक है ये... ये लण्ड चूसना... ये चूचियाँ दबाना... तुझे नहीं लगता कि कोई तेरे साथ भी ये सब करे...?"
"तेरा तो दिमाग खराब हो गया है..."
विभा मेरे पास आ कर लेट गई और पीठ से चिपक गई। मेरी पीठ वो सहलाने लगी।
"वो देख तो... उसका लण्ड... उफ़्फ़ साला कैसा चूत में घुसता ही चला जा रहा है।"
वो सीन देख कर तो मेरे दिल में भी हलचल सी मचने लग गई। मेरे शरीर में जैसे तरावट सी आने लगी।
"ये घुसता है तो लगती नहीं है क्या?" मैंने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
"लगती है कम्मो रानी, लगती है... खूब जोर की मस्ती लगती है..." वो जैसे बात पलटती हुई बोली
"अरे क्या चिपके जा रही है... दूर रह... मैं तो चोट के बारे में पूछ रही थी..."
"बहुत लगती है जानू... जोर से लगती है दिल में चोट... अरे वो तो घायल हो जाता है..." फिर से उसने रोमांटिक अंदाज में मेरे दिल को गुदगुदाया।
उसकी चूत तो जैसे मेरी गाण्ड से चिपकी जा रही थी। उसके हाथ मेरी कमर में सहला सहला कर गुदगुदी मचा रहे थे। मूवी में वो लड़की मस्ती से सिसकारियाँ भर रही थी। मैंने तो ये पहली बार देखा था सो मैं खूब ध्यान से ये सब देख रही थी। विभा के हाथ अब मेरी कमर से हट कर मेरे सीने पर आने लगे थे। मैं जैसे तैसे तैसे करके उन्हें अलग भी करती जा रही थी। पर चुदाई के सीन मेरे दिल में एक रस सा भरने लगे थे। धीरे धीरे मुझे विभा की हरकतें भी आनन्दित करने लगी थी। मैंने उसका विरोध करना भी बन्द कर दिया था। विभा की हरकतें बढ़ने लगी। मेरे शरीर में रोमांच भरी तरावट भी बढ़ने लगी।
अब तो मुझे अपनी चूत में भी गुदगुदी सी लगने लगी थी। मेरा सीना कठोर होने लगा था। मेरी निपल भी कड़ी हो कर फ़ूलने लगी थी। मेरी ये हालत विभा ने जान ली थी। उसने मेरे गालों को मसल दिया और लिपट कर मेरे गले को चूमने लगी।
"हाय विभा रानी ! ये क्या कर रही है..." मुझे तो लग रहा था वो मुझे खूब गुदगुदाये।
"बहुत मजा आ रहा है कम्मो... साली तेरी चूंचियाँ... हाय राम कितनी कठोर है..."
"विभा... उफ़्फ़्फ़... बस कर... मुझे मार डालेगी क्या?"
"साली, तेरी चूत को मसलने का मन कर करता है... जोर से मसल दूँ तो... उह्ह्ह पानी ही निकाल दूँ..."
कहकर उसने मेरी चूत को दबा दिया। मैं आनन्द से कराह उठी। मुझसे भी रहा नहीं गया। मैं पलटी और उससे लिपट गई और उसके चेहरे को दोनों हाथों में दबा लिया... उसकी आँखों में वासना भड़की हुई साफ़ नजर आ रही थी। उसकी आँखें गुलाबी हो चुकी थी। मैंने उसे धीरे से चूम लिया। उसने भी मेरी आँखों को एक बार चूमा, फिर तो मै उसे बेतहाशा चूमने लगी... जैसे सब्र का बांध टूट गया हो।
विभा ने मेरे कुर्ते को ऊपर किया और मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया।
"उफ़्फ़... अरे यार... ये क्या क्या पहन रखा है... चड्डी है क्या... साली तू भी ना..."
मैंने चड्डी का नाड़ा खोल दिया और नीचे सरका दी। उसने तो बस अपना गाऊन ऊपर किया और नंगी हो गई। ओह ! कितना मजा आ रहा था... वो मुझे अपनी वासना की गिरफ़्त में लेने में सफ़ल हो गई थी। पहली बार मेरा नंगा जिस्म किसी नंगे जिस्म से टकराया था। जैसे आग सी भर गई थी। हम दोनों एक दूसरे के ऊपर लिपटे हुये थे। उसकी चूत मेरे जिस्म से रगड़ खा रही थी और वो आहें भर रही थी। वो बार बार अपनी चूत को उभार कर मेरी चूत से घिसने की कोशिश कर रही थी। बरबस ही मेरी चूत का उभार भी उसकी चूत से भिंचकर टकराने लगा। उसने मेरे चेहरे को अपने पास करके होंठ से होंठ चिपका दिये... उसकी जीभ लहराती हुई मेरे मुख को टटोलने लगी। मुझे एक असीम सा आनन्द आने लगा। अब मुझे समझ में आ रहा था कि दुनिया इस खेल में इतनी दिलचस्पी क्यों लेती है?मैं तो स्वयं भी आश्चर्य में थी कि मैंने अपनी जवानी का इतना कीमती समय नष्ट क्यूँ कर दिया?
उसके हाथ मेरी चूचियों को हौले हौले से दबा कर मुझे बहुत आनन्दित कर रहे थे। तभी जाने कैसे मेरी चूत उसकी चूत से दबाव से रगड़ खा गई। शायद चूत का दाना रगड़ खा रहा था। दिल में ज्वाला सी भड़क गई। एक तेज मस्ती सी आ गई। मैंने कोशिश करके अपनी चूत फिर उसकी चूत पर दबा दी। दोनों चूतों के झांटों की रगड़ से एक तेज मस्ती की टीस उठी। फिर तो हम दोनों ने अपनी एक दूसरे की चूत से दबा कर रगड़ने लगी। हम दोनों के मुख से अब चीत्कार सी निकलने लगी थी। दोनों के हाथ एक दूसरे की चूचियों को बेरहमी से मसलने लगी थी। नीचे चूत की रगड़ से हम स्वर्ग में विचरण करने लगे। तभी मुझे लगा कि जैसे विभा झड़ रही हो।
"देख विभा मुझे छोड़ना नहीं... प्लीज जोर से कर... और जोर से चोद दे राम..."
विभा वास्तव में झड़ चुकी थी, उसने अपनी एक अंगुली मेरी चूत में घुसा दी।
मैं चीख सी पड़ी..."हाय राम... ये क्या डाल दिया तूने...?"
तभी दूसरी अंगुली उसने मेरी गाण्ड में घुसा दी। मैं तड़प सी उठी। मारे मीठी गुदगुदी के मैं बेहाल हो गई। अब उसकी चूत में अंगुली डाल कर चोदना और गाण्ड में अंगुली डाल कर गुदगुदाना... मैं आनन्द से छटपटा उठी। मेरा जिस्म अकड़ने लगा... शरीर में एक तेज मीठापन तैरने लगा... कसक बढ़ने लगी। मेरी हालत वो समझ गई और फिर वो मुझसे लिपट गई। मेरे शरीर को उसने अपनी बाहों में कस लिया। मैं जोर से झड़ने लगी।
"उफ़्फ़... अह्ह्ह... रानी... मैं तो गई... अरे ह्ह्ह्ह्ह... ये कैसा आराम सा लगने लगा..." मेरी आंखे बन्द होने लगी।
फिर मुझे एक झपकी सी आ गई।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद मेरी आँख खुली। मैं अब भी नंगी ही थी। विभा मेरे पास बैठी हुई दूध के गिलास में बोर्नविटा मिला रही थी।
"लो यह पी लो... लगता है कमजोरी आ गई।"
मैं झेंप सी गई और दूध का गिलास उसके हाथ से ले लिया। मैंने चादर खींच कर अपने ऊपर फ़ैला ली।
"तू तो बहुत बेशरम हो गई है राम !!!"
"क्यूँ ! मजा नहीं आया... कैसे तो उछल उछल कर मस्ती ले रही थी।"
"चुप हो जा बेशरम..."
वो मेरे साथ ही बिस्तर पर लेट गई और मेरी चूत को सहलाने लगी- कम्मो, वो दीपक का लण्ड कैसा रहेगा? नया नया जवान लड़का है... मजा आयेगा ना...?"
"अरे चुप छिनाल... अंकल क्या कहेंगे?" मैंने उसे चेतावनी देते हुये कहा।
"हाय राम, वो कहेंगे कि... हे चूत वालियों ! मेरे पास भी एक अदद लौड़ा है..."
हंसी रोकते रोकते भी मैं खिलखिला कर हंस पड़ी।
वो मेरे साथ ही बिस्तर पर लेट गई और मेरी चूत को सहलाने लगी- कम्मो, वो दीपक का लण्ड कैसा रहेगा? नया नया जवान लड़का है... मजा आयेगा ना...?"
"अरे चुप छिनाल... अंकल क्या कहेंगे?" मैंने उसे चेतावनी देते हुये कहा।
"हाय राम, वो कहेंगे कि... हे चूत वालियों ! मेरे पास भी एक अदद लौड़ा है..."
हंसी रोकते रोकते भी मैं खिलखिला कर हंस पड़ी।
दीपक आ चुका था। लम्बा लड़का, काले लहराते बाल, टाईट जीन्स और सफ़ेद कमीज... मैंने तो आज ही उसे ध्यान से देखा था... पहली बार मुझे वो सेक्सी लगा था। पर मुझे लगा कि वो छोटा है इस काम के लिये।
"विभा, क्या दीपक इस काम के लिये छोटा नहीं है?"
"मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि उसका लण्ड मस्त चोदने लायक है।"
"तू तो ऐसे कह रही है जैसे कि तूने उसका लण्ड देखा है..."
"अरे जब वो झांक कर मेरे बोबे देखता है ना तो पैंट में उसका लण्ड जोर मारने लगता है, उसका आकार तो बाहर से ही मालूम हो जाता है॥"
"चल हट... कितनी चालू है तू..." विभा तो लगता था कि पहले से ही उसे फ़्लर्ट कर रही थी।
"अच्छा तो मैं चली... देख कैसे उसे कैसे चक्कर में लेती हूँ !"
मुझे तो पता था कि वो तो उसे चक्कर में ले ही लेगी।
मैं उसी कमरे में काम करने लग गई और तिरछी नजर से उन्हें भी देखती जा रही थी। तभी मुझे भी विचार आया कि मैं भी तो उस पर डोरे डाल कर देखूँ... देखूँ तो वो क्या करता है... पर मेरे पास ऐसा कोई टॉप भी नहीं था... हाँ एक पुरानी टी शर्ट थी पर वो जरा अधिक ही खुली हुई थी। चलो उसे ही ट्राई कर लेती हूँ। मैंने अन्दर जा कर जल्दी से बनियाननुमा टॉप और ब्रा उतारी और वो गहरे गले की खुली खुली सी टी शर्ट पहन ली। पहले तो मैंने खुद ही आईने में उसे देखा। हाय राम ! इतनी खुली... मुझे तो खुद ही शर्म आ गई। पर कोशिश तो करूँ... देखू तो वो क्या करता है?
मैं जैसे ही दीपक के पास गई तो देखा कि विभा अपनी चूचियाँ हिला हिला कर उसे रिझा रही थी। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था। फिर मैं और वहाँ पहुँच गई।
विभा ने मुझे देखा तो उसकी आँखें फ़टी रह गई। वो मुस्कराई और सीधे खड़ी हो गई। दीपक आँखें फ़ाड़े मेरे दुद्दू देखता ही रह गया। अनायास ही उसके हाथ मेरे वक्ष की ओर बढ़ने लगे। मैंने अपने बोबे और ही उसकी तरफ़ उभार दिये। उसने बेशर्मी से मेरे दुद्दू दबा दिये। विभा खिलखिला कर हंस पड़ी। मेरे मुख से एक मीठी सी सिसकारी निकल पड़ी।
विभा ने एकदम से कहा- दीपक... सॉरी बोलो... तुमने मिस की चूची क्यूँ दबा दी।
"ओह... सॉरी मिस... मैं... मैं...!"
"ये मैं मैं क्या लगा रखी है... इनकी तो इतनी जोर से दबा दी, देखो कैसी दर्द कर रही है।"
"सॉरी कहा ना मिस..."
"अच्छा कोई बात नहीं... दर्द हो रहा है... चलो अब सहला दो इसे... जल्दी करो..."
"जी कैसे...?"
"मिस के दुद्दू पर हाथ रखो और धीरे धीरे सहलाओ..."
"जी..."
विभा की डांट सुन कर दीपक मेरे पास आया और शर्ट के ऊपर से मेरे दुद्दू पर हाथ रख कर सहलाने लगा। मेरे तो तन बदन में आग सी लग गई। एक मर्द का कोमल हाथ... उफ़्फ़ बाबा... शरीर में झुनझनी सी उठने लगी। मेरी मनचाही मुराद तो अपने आप ही पूरी हो रही थी। पर दीपक तो मुझे चालू ही समझेगा ना। उंह ! समझने दो... साला खुद भी तो मस्ती मार रहा है।
"अरे ऐसे क्या सहला रहे हो... दबाई तो अन्दर से थी ना... अन्दर हाथ डाल कर सहलाओ।"
"आह्ह्ह्ह... ये विभा क्या करवा रही है?" उसके गर्म-गर्म हाथों ने मेरे नंगे दुद्दू को जैसे ही छुआ... मैं तो पिघलने सी लगी... लगा कि दीपक से लिपट जाऊँ। दीपक अब सबकुछ समझ चुका था... उसने अब बेशर्मी से मेरे दोनों दुद्दू पकड़ लिये और दबाने लगा।
"और दबा मिस के... जरा जोर से..."
"हाय दीपक ! बहुत मजा आ रहा है... जरा अच्छी तरह से दबा दे..." मेरे मुख से अनायास ही निकल गया।
मैंने उसकी कमर पर हाथ रख दिया... मेरे बोबे दबाने से मेरी चूत में पानी उतरने लगा था। मेरी आँखें गुलाबी होने लगी थी। दीपक भी बार बार अपना चेहरा मेरे नजदीक लाकर मुझे चूमने की कोशिश करने लगा था। दीपक का उतावलापन समझ में आ रहा था। इतनी सी उमर में उसे एक साथ दो दो जवान लड़कियों का साथ जो मिल रहा था। मेरी चूत गीली हो कर पानी छोड़ने लगी थी। चूत का पानी मेरी जांघों पर से बह कर नीचे की तरह बह निकला था। मैंने भी अब शर्म छोड़ कर उससे लिपट गई।
"क्या बात है कम्मो... इतना उतावलापन... पानी तो मेरी चूत भी छोड़ रही है... पर अब तो लगता है नम्बर लगाना पड़ेगा। कोई बात नहीं पहले तू ही सही... मैं तेरे बाद चुदवा लूंगी।"
मैंने अपना हाथ बढ़ा कर उसकी टाईट जीन्स के ऊपर से ही उसके लण्ड पर हाथ फ़ेरा। उफ़्फ़ ! कितना कड़क... लोहे जैसा... जैसे पैंट फ़ाड़ कर बाहर ही आ जायेगा।
"दीपक, बहुत जोर का है तुम्हारा लण्ड तो...?"
दीपक जोश में बार बार अपना लण्ड कुत्ते की तरह से मेरी चूत पर मारने लगा था।
"दीपक, अब कब तक यूँ ही तड़पते रहोगे... या कुछ करोगे भी... अच्छा तो चलो बिस्तर पर... मिस को चोद डालो... देखो कितना लण्ड लेने को तड़प रही है..." विभा के लिये भी ये नज़ारा असहनीय होने लगा था।
विभा ने बिस्तर के पास आते ही दीपक को कहा- अब अपने ये कपड़े उतार दो और बिल्कुल नंगे हो जाओ...
"जी... मिस्... शरम आती है..."
"तो मिस को नंगी कर दो..."
"वो तो और ही मुश्किल है मिस..."
"तो ये देखो..."
विभा ने अपना सलवार कुर्ता उतार दिया और नंगी हो कर खड़ी हो गई।
"अब तो नंगे हो जाओ... "
"मिस... आपकी चूत में से तो पानी निकल रहा है?"
"सब तुम्हारी वजह से... वो तो कामिनी मिस की चूत से भी निकल रहा होगा... भले ही देख लो।"
मैं दीपक से बचती रही, पर विभा और दीपक ने मिलकर मुझे नंगी कर ही दिया। फिर वो स्वयं भी नंगा हो गया। मैंने देखा कि उसके लण्ड के सुपारे पर चिकनाई की बून्दें निकल आई थी। मेरी चूत तो झांट समेट भीग कर रस टपका रही थी।
"मिस... जरा देखो तो... ये तो मिस की चूत से चिकना चिकना लेस सा निकल रहा है..."
"अरे तो कितना तड़पायेगा उसे... चोद डाल ना साली को..."
विभा ने और दीपक ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। कैसे मना करती... चूत तो जैसे सुलग रही थी। सारा शरीर मीठी सी कसक में डूबा हुआ था। मैंने बिना किसी विरोध के अपनी दोनों टांगें खोल दी... दीपक ने अपनी गीली अंगुली को चूसा फिर से मेरी चिकनी गांड में घुसा दिया।
उफ़्फ़ ! यह मस्ताना अन्दाज, मेरी गाण्ड में एक जोर की गुदगुदी हुई। मुझे मदहोश दशा में देख दीपक जल्दी से मेरे ऊपर चढ़ गया। मेरी चूत तो जोर जोर से फ़ड़फ़ड़ा रही थी... लपलपा रही थी। उसका लाल सुर्ख सुपारा सामने हिलता हुआ मेरे दिल को घायल किये दे रहा था।
"चोद दे साली रांड को... बना दे चूत का भोसड़ा..."
उसका सख्त डण्डा मेरी चूत के ऊपर आ गया... एक मीठी सी कसक सी लगी... उसके लण्ड की चिकनाई... मेरी चूत की निकली हुई लसलसी लार... जैसे ही चूत और लण्ड का टकराव हुआ... दोनों प्यार से गले मिले... और चूत ने उसे अपनी गहराई में समेट लिया। मेरे मुख से एक ठण्डी सी आह निकल गई।
"दीपक धीरे से प्लीज... लग ना जाये..."
वो तो खुद भी इस मामले में अधिक अनुभवी नहीं था। मेरे कमर से खींचने पर वो तो अपने आप मुझ पर पूरा बोझ डाल कर लेट गया। उसका लण्ड अन्दर मन्थर गति से सरक रहा था। अचानक उसने अपने पर जोर डाल दिया। शायद जल्दी से पूरा घुसाने की कोशिश में ...
हम दोनों के मुख से एक हल्की सी चीख निकल गई।
"अरे धीरे से ना... मार डालेगा क्या... लग रही है ना..."
"मिस मुझे भी मीठी सी कसक हो रही है..."
"तो बस ऐसे ही लेटे रह..."
विभा से रहा ना गया...
"तो भड़वे... चोदेगा कौन... तेरा बाप..."
दीपक ने इस उलाहने पर मुझे जोर का झटका मार दिया। मेरे मुख से चीख निकल गई।
"चोद दे साली रांड को... घुसेड़ दे लौड़ा भेनचोद की भोसड़ी में..."
वो जोर जोर से मुझे चोदने लगा... दर्द से मैं चीखती रही। विभा को इसमे बहुत आनन्द आ रहा था।
"चिल्ला... रांड चिल्ला... भड़वी को चोद डाल... कहती है आज तक तो लौड़ा लिया नहीं है... अब ले ले..."
"अरे विभा... मेरी तो फ़ाड़ ही डाली इसने... दीपक जरा धीरे से कर ना..."
"मिस कैसे रोकूँ अपने आप को... बहुत महीनों बाद ऐसी चिकनी झांटों भरी चूत मिली है।"
विभा हंसने लगी- ...भड़वा चालू है... इतनी सी उमर में खेला खाया है !
फिर दीपक के पास आकर उसने उसके लण्ड के नीचे हाथ घुमाया और उसकी गोलियाँ थाम ली और हौले हौले उसे सहलाने लगी। अपनी एक अंगुली से दीपक की गाण्ड में डाल कर उसे मस्ताने लगी। मुझे अब मजा आने लगा था। लण्ड की चुदाई वाला मजा... मोटा सा लण्ड मुझे चूत में अन्दर बाहर आता जाता साफ़ महसूस हो रहा था। अब तो मेरी चूत भी मीठी कसक से जलने लगी थी... लग रहा था कि वो जोर के भचीड़े मार मार कर मुझे मस्त कर दे।
विभा तो मस्ती में आकर उसके मुख को चूमे जा रही थी। दीपक के हाथ मेरे दोनों बोबे को कस कर मसल रहे थे। तभी विभा और दीपक मेरे ऊपर छा गये। दीपक मुझे चूमने लगा और विभा मेरी गाण्ड के पीछे पड़ गई। मुझमें अब जबरदस्त उबाल जैसा आने लगा ... शरीर आनन्द के मारे जोश में आ गया। मैंने दीपक को जोर से दबा लिया...
"तेरी तो साले... उह्ह्ह्ह माँ चोद दे मेरी... मर गई राम जी... ओह्ह्ह... फ़ोड़ डाल भड़वे... जोर से चोद..."
मेरी तड़प देख कर विभा जान गई थी कि यह तो गई... उसने मेरी गाण्ड में जोर से अंगुली घुमाने लगी। दीपक का लण्ड भी फ़ूल कर कसा सा महसूस होने लगा था।
"आह्ह्ह... मेरी तो जान निकली... मर गई रे... सीऽऽऽऽऽऽऽऽऽ... उईईई... बस कर रे... हो गई... हो गई मैं तो... इस्स्स्स्स बस कर दीपक..."
मैं झर झर करके झड़ने लगी थी। तभी दीपक का लण्ड मेरी पनीली चूत में से बाहर निकल कर अपने जलवे बिखेरने लगा था। उसकी रस भरी फ़ुहार मेरी छाती पर गिर रही थी... मैं निढाल सी अपनी आँखें बन्द किये स्वर्ग सा अनुभव ले रही थी। लम्बी लम्बी सांसें... धड़कन तेज से सामान्य होती हुई... जिस्म की अकड़न शान्त होती हुई... उह्ह्ह्ह... मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली।
विभा ने दीपक का लण्ड अपने मुख में ले रखा था और वो उसका बचा खुचा वीर्य सुड़क रही थी।
मैंने फिर से अपनी आँखें बन्द कर ली। पता नहीं कैसे मुझे एक झपकी सी आ गई... और मैं सो गई। तभी एक तेज दर्द ने मुझे झकझोर दिया। दीपक का लण्ड मेरी चूत में फिर से फ़ंस गया था। मैंने उसे रोकने की कोशिश की पर वो कहाँ मानने वाला था। एक दो शॉट ने तो मेरी जान निकाल दी थी।
"विभा, जरा इसे रोक तो..."
"कम्मो रानी, जवानी के जोश को कोई रोक सका है..."
"अरे बहुत तेज दर्द है... दीपक... प्लीज..."
"पर दीपक का लण्ड तो खड़ा है ना..."
"तो तू चुदा ले ना..."
"पर इसे तो तेरी ही मारनी है... अच्छा चल गाण्ड चुदा ले..."
"अरे बाबा, छोड़ ना मेरा पीछा रे..."
पर तब तक उन्होंने मुझे जोर से धक्का देकर पलट दिया। मैं कुछ कहती उसके पहले दीपक ने पीछे से अपनी टांगों की कैंची बना कर मुझे जकड़ लिया। विभा ने मेरे चूतड़ों के दोनों पट खींच कर खोल दिये। गाण्ड का छेद चमक उठा।
"आह्ह्ह्हा... कामिनी मिस कितना चमकीला और चिकना है..."
फिर उसका लण्ड मेरी गाण्ड के छल्ले पर जोर लगाने लगा... उसे अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी। मैंने गाण्ड का छेद ढीला कर दिया था और लण्ड घुसाने की अनुमति दे दी थी। लण्ड मेरी गाण्ड में फ़ंस गया और दीपक के मुख से एक आनन्द भरी सिसकी निकल गई। "ओह्ह, यहाँ भी दर्द !"
"अरे बाबा, धीरे से ना, फ़ट जायेगी..."
"बस मिस कुछ ना बोलो, बहुत आनन्द आ रहा है..."
धक्कों के साथ उसका लण्ड भीतर और भीतर घुसता ही चला जा रहा था। मैं दर्द सह कर चुपचाप से उसके शरीर के नीचे दबी पड़ी थी। उसने अपना लण्ड आखिर पूरा घुसा ही डाला। मैं अपनी आँखें बन्द किये चुप से पड़ी रही। बस अब मेरे शरीर को उसके लण्ड के दर्द भरे धक्के ही ऊपर नीचे हिला रहे थे। मेरी गाण्ड दर्द से भरी हुई चुद रही थी। कुछ ही देर के बाद जैसे अचानक दर्द समाप्त हो गया और चूत में मिठास भरने लगी। मुझे आनन्द आने लगा... मैंने अपना हाथ बढ़ा कर विभा का हाथ जोर से पकड़ लिया।
"ओह्ह्ह विभा... अब आया मजा... जोर का मजा आया..."
"आदत हो जायेगी ना तो बस फिर मजा ही मजा आयेगा।"
"उफ़्फ़्फ़, थेन्क्स विभा... मजा आ रहा है..."
तभी मैं झड़ गई। पर दीपक तो मेरी गाण्ड चोदता रहा... मुझे फिर से उत्तेजना चढ़ने लगी। जब तक वो झड़ता... मै फिर से झड़ गई ...। उसने जोश में मुझे अपने ऊपर खींच लिया और जैसे मेरे नीचे दब सा गया। ऊपर से उसने मुझे कस कर भींच लिया।
"अरे मुझे उतार... मुझे तो जोर की लगी है..."
"नहीं मिस मजा आ रहा है..."
फिर मेरा धीरज छूट गया और मेरा पेशाब निकल पड़ा... चुर्रर्रर्र करके मेरी पेशाब की धार निकल पड़ी। मैंने उठने कोशिश भी बहुत की पर मेरा पेशाब दीपक के शरीर पर फ़ैलता चला गया। फिर मैंने भी जान कर के चूत ऊपर उठाई और उसके मुख को तर कर दिया। ज्यों ही उसका मुख खुला मैंने धार का निशाना बनाया और उसके मुख पूरा पेशाब से भर दिया। धीरे धीरे पेशाब का जोर कम हुआ। आधा मूत तो दीपक पी ही चुका था।
विभा खूब हंसी थी...
"वाह कम्मो रानी... मजा आ गया... क्या नज़ारा था !"
तभी मैं चौंक गई... दीपक बिस्तर पर खड़ा हुआ अपना लण्ड पकड़ कर मुझ पर मूतने लगा था। पर मैं भागी नहीं... मुझे एक अजीब सा नशा हो गया था... मैंने मुख खोल कर उसका मूत मुख में भर लिया... विभा ने भी मेरा साथ दिया और वो भी मेरे साथ उस बौछार के नीचे आ गई...
"आह्ह्ह दीपक... मजा आ रहा है... कितना गरम गरम सा नमकीन है..."
मैंने अपना मुख उसके पेशाब से तर कर लिया और फिर अपने शरीर को जैसे स्नान कराने लगी।
"बस मिस बस... कोई टन्की तो नहीं है... अब बस... हो गया..."
मैंने और विभा ने उसे पकड़ कर उस मूत भरे बिस्तर पर गिरा लिया और उससे लिपट गये। उसका बिस्तर मूत की खुशबू से भर गया था। हम उसी में लोटपोट हो कर मस्ता रहे थे। कुछ ही देर में विभा अपनी चूत में दीपक से अंगुली घुसवा कर अपना मुठ्ठ मरवा रही थी।
"अरे चुदवा ले ना... लण्ड है तो..."
"लण्ड का सारा रस तो तू पी गई... अब क्या धरा है भला? कल मैं नम्बर लगाऊँगी और मेरी तरह तू देखती रहना..."
मैंने अब आगे बढ़ कर उसकी चूचियों की घुण्डी को मसलना चालू कर दिया। विभा की आनन्द भरी सीत्कारें कमरे में गूंज उठी।
--
Raj Sharma
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