दो अनमोल 'फल'
मैं 22 साल की हूँ. कुछ बरस पहले तक में बिल्कुल 'फ्लैट' थी.. आगे से भी.. और पीछे से भी. पर स्कूल बस में आते जाते; लड़कों के कंधों की रगड़ खा खा कर मुझे पता ही नहीं चला की कब मेरे कूल्हों और छातीयों पर चर्बी चढ़ गयी.. बाली उमर में ही मेरे चूतड़ बीच से एक फांक निकाले हुए गोल तरबूज की तरह उभर गये. मेरी छाती पर भगवान के दिये दो अनमोल 'फल' भी अब 'अमरूदों' से बढ़कर मोटी मोटी 'सेबों' जैसे हो गये थे. मैं कई बार बाथरूम में नंगी होकर अचरज से उन्हें देखा करती थी.. छू कर.. दबा कर.. मसल कर. मुझे ऐसा करते हुए अजीब सा आनंद आता .. 'वहाँ भी.. और नीचे भी.
मेरे गोरे चिट्टे बदन पर उस छोटी सी खास जगह को छोड़कर कहीं बालों का नामो-निशान तक नहीं था.. हल्के हल्के मेरी बगल में भी थे. उसके अलावा गरदन से लेकर पैरों तक मैं एकदम चिकनी थी. क्लास के लड़कों को ललचाई नजरों से अपनी छाती पर झूल रहे 'सेबों' को घूरते देख मेरी जाँघों के बीच छिपी बैठी हल्के हल्के बालों वाली, मगर चिकनाहट से भारी तितली के पंख फडफडाने लगते और छातीयों पर गुलाबी रंगत के अनारदाने' तन कर खड़े हो जाते. पर मुझे कोई फरक नहीं पड़ा. हाँ, कभी कभार शर्म आ जाती थी. ये भी नहीं आती अगर मम्मी ने नहीं बोला होता,"अब तू बड़ी हो गयी है अंजु.. ब्रा डालनी शुरू कर दे और चुन भी लिया कर!"
सच कहूँ तो मुझे अपने उन्मुक्त उरोजों को किसी मर्यादा में बांध कर रखना कभी नहीं सुहाया और न ही उनको चुन से परदे में रखना. मौका मिलते ही मैं ब्रा को जानाबूझ कर बाथरूम की खूँटी पर ही टांग जाती और क्लास में मनचले लड़कों को अपने इर्द गिर्द मंडराते देख मजे लेती.. मैं अक्सर जान बूझ अपने हाथ उपर उठा अंगडाई सी लेती और मेरी छातियाँ तन कर झूलने सी लगती. उस वक्त मेरे सामने खड़े लड़कों की हालत खराब हो जाती... कुछ तो अपने होंठों पर ऐसे जीभ फेरने लगते मानों मौका मिलते ही मुझे नोच डालेंगे. क्लास की सब लड़कियां मुझसे जलने लगी.. हालाँकि 'वो' सब उनके पास भी था.. पर मेरे जैसा नहीं..
मैं पढाई में बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी पर सभी मेल-टीचर्स का 'पूरा प्यार' मुझे मिलता था. ये उनका प्यार ही तो था की होम-वर्क न करके ले जाने पर भी वो मुस्कराकर बिना कुछ कहे चुपचाप कापी बंद करके मुझे पकड़ा देते.. बाकी सब की पिटाई होती. पर हाँ, वो मेरे पढाई में ध्यान न देने का हर्जाना वसूल करना कभी नहीं भूलते थे. जिस किसी का भी खाली पीरियड निकल आता; किसी न किसी बहाने से मुझे स्टाफरूम में बुला ही लेते. मेरे हाथों को अपने हाथ में लेकर मसलते हुए मुझे समझाते रहते. कमर से चिपका हुआ उनका दूसरा हाथ धीरे धीरे फिसलता हुआ मेरे चूतड़ों पर आ टिकता. मुझे पढाई पर 'और ज्यादा' ध्यान देने को कहते हुए वो मेरे चूतड़ों पर हल्की हल्की चपत लगाते हुए मेरे चूतड़ों की थिरकन का मजा लुटते रहते.. मुझे पढाई के फायेदे गिनवाते हुए अक्सर वो 'भावुक' हो जाते थे, और चपत लगाना भूल चूतड़ों पर ही हाथ जमा लेते. कभी कभी तो उनकी उंगलियाँ स्कर्ट के उपर से ही मेरी 'दरार' की गहराई मापने की कोशिश करने लगती...
उनका ध्यान हर वक्त उनकी थपकियों के कारण लगातार थिरकती रहती मेरी छातीयों पर ही होता था.. पर किसी ने कभी 'उन' पर झपट्टा नहीं मारा. शायद 'वो' ये सोचते होंगे की कहीं में बिदक न जाऊँ.. पर मैं उनको कभी चाहकर भी नहीं बता पाई की मुझे ऐसा करवाते हुए मीठी-मीठी खुजली होती है और बहुत आनंद आता है...
हाँ! एक बात मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी.. मेरे हिस्ट्री वाले सर का हाथ ऐसे ही समझाते हुए एक दिन कमर से नहीं, मेरे घुटनों से चलना शुरू हुआ.. और धीरे धीरे मेरी स्कर्ट के अंदर घुस गया. अपनी केले के तने जैसी लंबी गोरी और चिकनी जाँघों पर उनके 'काँपते' हुए हाथ को महसूस करके मैं मचल उठी थी... खुशी के मारे मैंने आँखें बंद करके अपनी जांघें खोल दी और उनके हाथ को मेरी जाँघों के बीच में उपर चड़ता हुआ महसूस करने लगी.. अचानक मेरी फूल जैसी नाजुक चूत से पानी सा टपकने लगा..
अचानक उन्होंने मेरी जाँघों में बुरी तरह फंसी हुई 'कच्छी' के अंदर उंगली घुसा दी.. पर हड़बड़ी और जल्दबाजी में गलती से उनकी उंगली सीधी मेरी चिकनी होकर टपक रही चूत की मोटी मोटी फांकों के बीच घुस गयी.. मैं दर्द से तिलमिला उठी.. अचानक हुए इस प्रहार को मैं सहन नहीं कर पाई. छटपटाते हुए मैंने अपने आपको उनसे छुड़ाया और दीवार की तरफ मुँह फेर कर खड़ी हो गयी... मेरी आँखें डबडबा गयी थी..
मैं इस सारी प्रक्रिया के 'प्यार से' फिर शुरू होने का इंतजार कर ही रही थी की 'वो' मास्टर मेरे आगे हाथ जोड़कर खड़ा हो गया,"प्लीज अंजलि.. मुझसे गलती हो गयी.. मैं बहक गया था... किसी से कुछ मत कहना.. मेरी नौकरी का सवाल है...!" इससे पहले मैं कुछ बोलने की हिम्मत जुटाती; बिना मतलब की बकबक करता हुआ वो स्टाफरूम से भाग गया.. मुझे तडपती छोड़कर..
निगोड़ी 'उंगली' ने मेरे यौवन को इस कदर भड़काया की मैं अपने जलवों से लड़कों के दिलों में आग लगाना भूल अपनी नन्ही सी फ़ुदकती चूत की प्यास भुझाने की जुगत में रहने लगी. इसके लिये मैंने अपने अंग-प्रदर्शन अभियान को और तेज कर दिया. अनजान सी बनकर, खुजली करने के बहाने मैं बेंच पर बैठी हुई स्कर्ट में हाथ डाल उसको जाँघों तक उपर खिसका लेती और क्लास में लड़कों की सीटियाँ बजने लगती. अब पूरे दिन लड़कों की बातों का केंद्र मैं ही रहने लगी. आज अहसास होता है की चूत में एक बार और मर्दानी उंगली करवाने के चक्कर में मैं कितनी बदनाम हो गयी थी.
खैर; मेरा 'काम' जल्द ही बन जाता अगर 'वो' (जो कोई भी था) मेरे बैग में निहायत ही अश्लील लैटर डालने से पहले मुझे बता देता. काश लैटर मेरे छोटू भैया से पहले मुझे मिल जाता! 'गधे' ने लैटर सीधा मेरे शराबी पापा को पकड़ा दिया और रात को नशे में धुत्त होकर पापा मुझे अपने सामने खड़ी करके लैटर पढ़ने लगे:
"हाय जाने-मन!
क्या खाती हो यार? इतनी मस्त होती जा रही हो की सारे लड़कों को अपना दीवाना बना के रख दिया. तुम्हारी 'पपीते' जैसे चूचियों ने हमें पहले ही पागल बना रखा था, अब अपनी गोरी चिकनी जांघें दिखा दिखा कर क्या हमारी जान लेने का इरादा है? ऐसे ही चलता रहा तो तुम अपने साथ 'इस' साल एक्साम में सब लड़कों को भी ले डूबोगी..
पर मुझे तुमसे कोई गिला नहीं है. तुम्हारी मस्तानी चूचियाँ देखकर मैं धन्य हो जाता था; अब नंगी चिकनी जांघें देखकर तो जैसे अमर ही हो गया हूँ. फिर पास या फेल होने की परवाह कीसे है अगर रोज तुम्हारे अंगों के दर्शन होते रहें. एक रीकुएस्ट है, प्लीज मान लेना! स्कर्ट को थोड़ा सा और उपर कर दिया करो ताकि मैं तुम्हारी गीली 'कच्छी' का रंग देख सकूं. स्कूल के बाथरूम में जाकर तुम्हारी कल्पना करते हुए अपने लंड को हिलाता हूँ तो बार बार यही सवाल मन में उभरता रहता है की 'कच्छी' का रंग क्या होगा.. इस वजह से मेरे लंड का रस निकलने में देरी हो जाती है और क्लास में टीचर्स की सुननी पड़ती है... प्लीज, ये बात आगे से याद रखना!
तुम्हारी कसम जाने-मन, अब तो मेरे सपनों में भी प्रियंका चोपड़ा की जगह नंगी होकर तुम ही आने लगी हो. 'वो' तो अब मुझे तुम्हारे सामने कुछ भी नहीं लगती. सोने से पहले 2 बार ख्यालों में तुम्हे पूरी नंगी करके चोदते हुए अपने लंड का रस निकालता हूँ, फिर भी सुबह मेरा 'कच्छा' गीला मिलता है. फिर सुबह बिस्तर से उठने से पहले तुम्हे एक बार जरूर याद करता हूँ.
मैंने सुना है की लड़कियों में चुदाई की भूख लड़कों से भी ज्यादा होती है. तुम्हारे अंदर भी होगी न? वैसे तो तुम्हारी चुदाई करने के लिये सभी अपने लंड को तेल लगाये फिरते हैं; पर तुम्हारी कसम जानेमन, मैं तुम्हे सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ, असली वाला. किसी और के बहकावे में मत आना, ज्यादातर लड़के चोदते हुए पागल हो जाते हैं. वो तुम्हारी कुंवारी चूत को एकदम फाड़ डालेंगे. पर मैं सब कुछ 'प्यार से करूँगा.. तुम्हारी कसम. पहले उंगली से तुम्हारी चूत को थोड़ी सी खोलूँगा और चाट चाट कर अंदर बाहर से पूरी तरह गीली कर दूँगा.. फिर धीरे धीरे लंड अंदर करने की कोशिश करूँगा, तुमने खुशी खुशी ले लिया तो ठीक, वरना छोड़ दूँगा.. तुम्हारी कसम जानेमन.
अगर तुमने अपनी चुदाई करवाने का मूड बना लिया हो तो कल अपना लाल रुमाल लेकर आना और उसको रिसेस में अपने बेंच पर छोड़ देना. फिर मैं बताऊंगा की कब कहाँ और कैसे मिलना है!
प्लीज जाना, एक बार सेवा का मौका जरूर देना. तुम हमेशा याद रखोगी और रोज रोज चुदाई करवाने की सोचोगी, मेरा दावा है.
तुम्हारा आशिक!
लैटर में शुद्ध 'कामरस' की बातें पढ़ते पढ़ते पापा का नशा कब काफूर हो गया, शायद उन्हें भी अहसास नहीं हुआ. सिर्फ इसीलिए शायद मैं उस रात कुंवारी रह गयी. वरना वो मेरे साथ भी वैसा ही करते जैसा उन्होंने बड़ी दीदी 'निम्मो' के साथ कुछ साल पहले किया था.
मैं तो खैर उस वक्त छोटी सी थी. दीदी ने ही बताया था. सुनी सुनाई बता रही हूँ. विश्वास हो तो ठीक वरना मेरा क्या चाट लोगे?
पापा निम्मो को बालों से पकड़कर घसीटते हुए उपर लाये थे. शराब पीने के बाद पापा से उलझने की हिम्मत घर में कोई नहीं करता. मम्मी खड़ी खड़ी तमाशा देखती रही. बाल पकड़ कर 5-7 करारे झापड़ निम्मो को मारे और उसकी गरदन को दबोच लिया. फिर जाने उनके मन में क्या ख्याल आया; बोले," सजा भी वैसी ही होनी चाहिए जैसी गलती हो!" दीदी के कमीज को दोनों हाथों से गले से पकड़ा और एक ही झटके में तार तार कर डाला; कमीज को भी और दीदी की 'इज्जत' को भी. दीदी के मेरी तरह मस्ताये हुए गोल गोल कबूतर जो थोड़े बहुत उसके शमीज ने छुपा रखे थे; अगले झटके के बाद वो भी छुपे नहीं रहे. दीदी बताती हैं की पापा के सामने 'उनको' फडकते देख उन्हें खूब शर्म आई थी. उन्होंने अपने हाथों से 'उन्हें' छिपाने की कोशिश की तो पापा ने 'टीचर्स' की तरह उसको हाथ उपर करने का आदेश दे दिया.. 'टीचर्स' की बात पर एक और बात याद आ गयी, पर वो बाद में सुनाऊंगी....
हाँ तो मैं बता रही थी.. हाँ.. तो दीदी के दोनों संतरे हाथ उपर करते ही और भी तन कर खड़े हो गये. जैसे उनको शर्म नहीं गर्व हो रहा हो. दानों की नोक भी पापा की और ही घूर रही थी. अब भला मेरे पापा ये सब कैसे सहन करते? पापा के सामने तो आज तक कोई भी नहीं अकड़ा था. फिर वो कैसे अकड़ गये? पापा ने दोनों चूचियों के दानों को कसकर पकड़ा और मसल दिया. दीदी बताती हैं की उस वक्त उनकी चूत ने भी रस छोड़ दिया था. पर कम्बक्त 'कबूतरों' पर इसका कोई असर नहीं हुआ. वो तो और ज्यादा अकड़ गये.
फिर तो दीदी की खैर ही नहीं थी. गुस्से के मारे उन्होंने दीदी की सलवार का नाडा पकड़ा और खींच लिया. दीदी ने हाथ नीचे करके सलवार सँभालने की कोशिश की तो एक साथ कई झापड़ पड़े. बेचारी दीदी क्या करती? उनके हाथ उपर हो गये और सलवार नीचे. गुस्से गुस्से में ही उन्होंने उनकी 'कच्छी' भी नीचे खींच दी और घूरते हुए बोले," कुतिया! मुर्गी बन जा उधर मुँह करके".. और दीदी बन गयी मुर्गी.
हाय! दीदी को कितनी शर्म आई होगी, सोच कर देखो! पापा दीदी के पीछे चारपाई पर बैठ गये थे. दीदी जांघों और घुटनों तक निकली हुई सलवार के बीच में से सब कुछ देख रही थी. पापा उसके गोल मटोल चूतड़ों के बीच उनके दोनों छेदों को घूर रहे थे. दीदी की चूत की फांकें डर के मारे कभी खुल रही थी, कभी बंद हो रही थी. पापा ने गुस्से में उसके चूतड़ों को अपने हाथों में पकड़ा और उन्हें बीच से चीरने की कोशिश करने लगे. शुक्र है दीदी के चूतड़ सुडोल थे, पापा सफल नहीं हो पाये!
"किसी से मरवा भी ली है क्या कुतिया?" पापा ने थक हार कर उन्हें छोडते हुए कहा था.
दीदी ने बताया की मना करने के बावजूद उनको विश्वास नहीं हुआ. मम्मी से मोमबत्ती लाने को बोला. डरी सहमी दरवाजे पर खड़ी सब कुछ देख रही मम्मी चुपचाप रसोई में गयी और उनको मोमबत्ती लाकर दे दी.
जैसा 'उस' लड़के ने खत में लिखा था, पापा बड़े निर्दयी निकले. दीदी ने बताया की उनकी चूत का छेद मोटी मोमबत्ती की पतली नोक से ढूंढ कर एक ही झटके में अंदर घुसा दी. दीदी का सर सीधा जमीन से जा टकराया था और पापा के हाथ से छूटने पर भी मोमबत्ती चूत में ही फंसी रह गयी थी. पापा ने मोमबत्ती निकाली तो वो खून से लथपथ थी. तब जाकर पापा को यकीन हुआ की उनकी बेटी कुंवारी ही है (थी). ऐसा है पापा का गुस्सा!
दीदी ने बताया की उस दिन और उस 'मोमबत्ती' को वो कभी नहीं भूल पाई. मोमबत्ती को तो उसने 'निशानी' के तौर पर अपने पास ही रख लिया.. वो बताती हैं की उसके बाद शादी तक 'वो' मोमबत्ती ही भारी जवानी में उनका सहारा बनी. जैसे अंधे को लकड़ी का सहारा होता है, वैसे ही दीदी को भी मोमबत्ती का सहारा था शायद
खैर, भगवान का शुक्र है मुझे उन्होंने ये कहकर ही बख्स दिया," कुतिया! मुझे विश्वास था की तू भी मेरी औलाद नहीं है. तेरी मम्मी की तरह तू भी रंडी है रंडी! आज के बाद तू स्कूल नहीं जायेगी" कहकर वो उपर चले गये.. थैंक गोद! मैं बच गयी. दीदी की तरह मेरा कुँवारापन देखने के चक्कर में उन्होंने मेरी सील नहीं तोड़ी.
लगे हाथों 'दीदी' की वो छोटी सी गलती भी सुन लो जिसकी वजह से पापा ने उन्हें इतनी 'सख्त' सज़ा दी...
दरअसल गली के 'कल्लू' से बड़े दिनों से दीदी की गुटरगू चल रही थी.. बस आँखों और इशारों में ही. धीरे धीरे दोनों एक दूसरे को प्रेमपत्र लिख लिख कर उनका 'जहाज' बना बना कर एक दूसरे की छतों पर फैंकने लगे. दीदी बताती हैं की कई बार 'कल्लू' ने चूत और लंड से भरे प्रेमपत्र हमारी छत पर उडाये और अपने पास बुलाने की प्राथना की. पर दीदी बेबस थी. कारण ये था की शाम 8:00 बजते ही हमारे 'सरियों' वाले दरवाजे पर ताला लग जाता था और चाबी पापा के पास ही रहती थी. फिर न कोई अंदर आ पता था और न कोई बाहर जा पता था. आप खुद ही सोचिये, दीदी बुलाती भी तो बुलाती कैसे?
पर एक दिन कल्लू तैश में आकर सन्नी देओल बन गया. 'जहाज' में लिख भेजा की आज रात अगर 12:00 बजे दरवाजा नहीं खुला तो वो सरिये उखाड़ देगा. दीदी बताती हैं की एक दिन पहले ही उन्होंने छत से उसको अपनी चूत, चूचियाँ और चूतड़ दिखाये थे, इसीलिए वह पगला गया था, पागल!
दीदी को 'प्यार' के जोश और जज्बे की परख थी. उनको विश्वास था की 'कल्लू' ने कह दिया तो कह दिया. वो जरूर आयेगा.. और आया भी. दीदी 12 बजने से पहले ही कल्लू को मनाकर दरवाजे के 'सरिये' बचाने नीचे पहुँच चुकी थी.. मम्मी और पापा की चारपयीइओं के पास डाली अपनी चारपाई से उठकर!
दीदी के लाख समझाने के बाद वो एक ही शर्त पर मना "चूस चूस कर निकालना पड़ेगा!"
दीदी खुश होकर मान गयी और झट से घुटने टिका कर नीचे बैठ गयी. दीदी बताती हैं की कल्लू ने अपना 'लंड' खड़ा किया और सरियों के बीच से दीदी को पकड़ा दिया.. दीदी बताती हैं की उसको 'वो' गरम गरम और चूसने में बड़ा खट्टा मीठा लग रहा था. चूसने चूसने के चक्कर में दोनों की आंख बंद हो गयी और तभी खुली जब पापा ने पीछे से आकर दीदी को पीछे खींच लंड मुश्किल से बाहर निकलवाया.
पापा को देखते ही घर के सरिये तक उखाड़ देने का दावा करने वाला 'कल्लू देओल' तो पता ही नहीं चला कहाँ गायब हुआ. बेचारी दीदी को इतनी बड़ी सजा अकेले सहन करनी पड़ी. साला कल्लू भी पकड़ा जाता और उसके छेद में भी मोमबत्ती घुसती तो उसको पता तो चलता मोमबत्ती अंदर डलवाने में कितना दर्द होता है.
खैर, हर रोज की तरह स्कूल के लिये तैयार होने का टाइम होते ही मेरी कासी हुई छातियाँ फडकने लगी; 'शिकार' की तलाश का टाइम होते ही उनमे अजीब सी गुदगुदी होने लग जाती थी. मैंने यही सोचा था की रोज की तरह रात की वो बात तो नशे के साथ ही पापा के सर से उतर गयी होगी. पर हाय री मेरी किस्मत; इस बार ऐसा नहीं हुआ," किसलिए इतनी फुदक रही है? चल मेरे साथ खेत में!"
"पर पापा! मेरे एक्साम सर पर हैं!" बेशर्म सी बनते हुए मैंने रात वाली बात भूल कर उनसे बहस की.
पापा ने मुझे उपर से नीचे तक घूरते हुए कहा," ये ले उठा टोकरी! हो गया तेरा स्कूल बस! तेरी हाजिरी लग जायेगी स्कूल में! रामफल के लड़के से बात कर ली है. आज से कॉलेज से आने के बाद तुझे यहीं पढ़ा जाया करेगा! तैयारी हो जाये तो पेपर दे देना. अगले साल तुझे गर्ल'स स्कूल में डालूँगा. वहाँ दिखाना तू कच्छी का रंग!" आखिरी बात कहते हुए पापा ने मेरी और देखते हुए जमीन पर थूक दिया. मेरी कच्छी की बात करने से शायद उनके मुँह में पानी आ गया होगा.
काम करने की मेरी आदत तो थी नहीं. पुराना सा लहंगा पहने खेत से लौटी तो बदन की पोर पोर दुःख रही थी. दिल हो रहा था जैसे कोई मुझे अपने पास लिटाकर आटे की तरह गूंथ डाले. मेरी उपर जाने तक की हिम्मत नहीं हुई और नीचे के कमरे में चारपाई को सीधा करके उस पर पसरी और सो गयी.
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Raj Sharma
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