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Wednesday, January 2, 2013
उई माँ बहुत कल्ला रही है
उई माँ बहुत कल्ला रही है
उस वक्त मेरी उम्र सिर्फ 16 साल थी जब मेरी बड़ी दीदी की शादी हुई।
शादी के पहले कभी-कभार जीजू से फोन पर बात हो जाया करती थी।
शुरू में तो वो सामान्य बातें ही करते थे लेकिन एक दिन उन्होंने मुझसे एक ऐसी बात कहीं जो मेरे दिल में गुदगुदी कर गई।
'ईशिका अगर तुम्हारी दीदी की शादी हो चुकी होती तो मैं तुमसे शादी कर लेता। पहली ही नजर में तुम मुझे पसंद आ गई थी। तुम्हारे पास हर वो चीज है जो मेरी कमज़ोरी है। एक राज की बात आज मैं तुमसे कहना चाहता हूँ कि सिर्फ तुम्हें हासिल करने के लिए मैंने तुम्हारी दीदी से शादी की थी। ये सोचकर कि आज नहीं तो कल साली होने के नाते तुम्हें अपनी पूरी घर वाली बना ही लूँगा।'
मुझे आज भी याद है कि उनकी ये बात सुनकर मैंने डर के मारे फोन काट दिया था।
उसके बाद मेरी उनसे बात करने की कभी हिम्मत ही नहीं हुई। हर वक्त उनके द्वारा बोला गया अल्फाज मेरे दिमाग के कोने-कोने में मंदिर की घंटियों की तरह बजता रहता था।
रात को जब मैं सोने के लिए बिस्तर पर लेटती तो न जाने क्यों उनकी बातें याद आते ही खुद ब खुद मेरे जिस्म में नशा सा छाने लगता था।
लेकिन कुछ भी हो मैं अपनी दीदी से बहुत प्यार करती थी और कभी भी उनके विश्वास को तोड़ नहीं सकती थी।
जब जब जीजा जी की बातें मुझे बहकाने लगती तो मैं अपने आप को ये कह कर संभाल लेती थी कि अगर मैं इतनी ही सुन्दर हूँ तो जीजा जी जैसे पचासों लोग मुझे मिल जायेंगे और वैसे भी वो तो काले हैं और काले लोग मुझे बिल्कुल भी नहीं सुहाते। मेरा पति तो कोई सलमान खान जैसा हैन्डसम और रितिक जैसा स्टाइलिश होगा। जिसे देखते ही मेरे दिल के सारे वायलिन बजने लगेंगे। मेरे सपनों का शहज़ादा। वो तो किसी महल का राजकुमार होगा जो मेरी जैसी परी लड़की का हकदार बनेगा। काले-कलूटे जीजू नहीं।
मुझे आज भी याद है वो 1 जनवरी की रात जब नये साल पर दीदी की शादी हुई और वो हमेशा के लिए शादीशुदा हो गई। दीदी की शादी के अगले दिन उनकी विदाई हुई और २ दिन बाद वो घर लौट आयी।
उनके घर आते ही हम उन्हें छेड़ने लगें कि दीदी बताओ न क्या क्या हुआ...? तो पता चला की दीदी की माहवारी चल रही थी इसलिए उनका अभी शारीरिक सम्बन्ध नहीं हो पाया है।
पूरे सात दिन के बाद जीजू दीदी को लेने ले लिए आए तो उनकी सुहागरात तो हमारे यहाँ ही होनी थी क्योंकि जीजू अगले दिन दिल्ली जाने वाले थे। सो रात में हमने उनका कमरा खूब सजाया।
मेरा कमरा और दीदी का कमरा आपस में सटा हुआ था। हम दोनों के कमरे में एक खिड़की थी। जो दोनों के लिए कॉमन थी। यानि अगर खिड़की खुली हो तो मैं दीदी के कमरे में देख सकती हूँ और दीदी मेरे कमरे में। आज से पहले ये खिड़की हमेशा खुली रहती थी। दीदी और मेरे बीच में अभी तक कोई भी राज नहीं था और न ही कोई पर्दा करने की नौबत आई थी। इसलिए आज ये बदलाव पता नहीं क्यों दिल में एक कसक की तरह चुभ रहा था। ये शादी होती ही क्यों हैं? हम जिनके साथ पैदा होते हैं उनके ही साथ अपनी पूरी जिन्दगी क्यों नहीं गुजार सकते। एक अजनबी आता है और सारे रिश्ते और उसके मायने ही बदल जाते हैं। उफ़ ये पुरुष! काश कि भगवान ने इन्हें बनाया ही न होता।
खैर जो नये रिश्ते बनते हैं उनको तो निभाना ही पड़ता है। शायद यही दुनिया का दस्तूर है।
जैसे-जैसे रात करीब आती जा रही थी ये सोच-सोच कर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ती जा रहीं थीं कि आज मेरे बगल के कमरे में क्या होगा?
दीदी की सुहागरात और मेरे बीच में सिर्फ एक खिड़की का ही फासला था।
ये सब सोचकर अनायास ही जीजू की वही पुरानी बात फिर से याद आने लगी।
लेकिन मैंने खुद को काबू में किया और जीजू से अपनी सहेलियों के साथ इस तरह से हंसी मजाक करने लगी जैसे आज के पहले उन्होने मुझसे जो कुछ भी कहा था वो सब मैं भूल गई हूँ। मैने जीजू को मजाक में कहा भी की अगर कुछ जरूरत हो तो बताना हम भी बगल वाले कमरे में ही हैं। पर मेरी आंखों में नींद नहीं थी। मैं यही सब सोच रही थी की अन्दर क्या चल रहा होगा?
और आख़िरकार मैने फ़ैसला कर ही लिया, दीदी के कमरे में खुलने वाली एक खिड़की की झिर्री में अपनी आँख लगा दीं, और देखा....
दीदी लाल रंग की साड़ी में पलंग पर बैठी थी। जीजू कुरते पायजामे में थे। जीजू के आते ही वो थोड़ा सा हिली और उनकी चूड़ियाँ और पायल बज उठी। उन्होंने दीदी को एक डायमंड की अंगूठी दीं और दीदी बोली-
"इसकी क्या जरूरत थी?. "
तो जीजू ने कहा- "अरे यह तो तुम्हारी मुंह दिखायी है, वैसे भी आज तुम बहुत सुंदर दिख रही हो." और उन्होंने दीदी को अपनी बाहों में भर लिया और उनके माथे , गाल, और होंठों को चूमना करना शुरू कर दिया। ऐसा लग रहा था कि दो प्रेमी बड़े दिनों के बाद मिले हों। शुरू में उनके हाथ स्थिर थे पर जैसे जैसे वासना का तूफ़ान परवान चढ़ रहा था वैसे वैसे दोनों के हाथ एक दूसरे को खोज रहे थे। दीदी के हाथ जीजू की पीठ पर थे और जीजू के हाथ दीदी के पीठ पर से होते हुए कूल्हों पर आए और उन्हें कस लिया। जीजू ने अपने एक हाथ को दीदी के एक स्तन पर रखा तो दीदी ने जीजू को देखा और फिर से चूमने लगीं। शायद यह एक हाँ थी जीजू को जिन्होंने हाँ मिलते ही अपने दोनों हाथों से दीदी के स्तनों को साड़ी के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया था और जल्दी ही उन्होंने दीदी की साड़ी भी निकाल दीं।
इधर मेरा एक हाथ भी मेरी स्कर्ट के अन्दर मेरी योनि पर पहुँच चुका था। जीजू ने दीदी के पेटीकोट का नारा ढूँढ लिया और उसे खोल दिया। ऐसा करते ही उनका पेटीकोट खुलकर उनके पैरों में नीचे गिर गया और दीदी उसमे से बाहर निकल कर खड़ी हो गयी। दीदी ने चमकते लाल रंग की एक पैंटी पहन राखी थी जिसमे से उनके कूल्हों का उभार खूब चमक रहा था। अब वो जीजू की पकड़ में थीं। एक ब्लाऊज, पैंटी और एक ब्रा पहने हुए।
जीजू ने दीदी को घुमाया और उनका मुँह ड्रेसिंग टेबल के शीशे की ओर कर दिया और पीछे से हाथ आगे लाकर दीदी के स्तनों को अपनी हथेलियों में जकड़ लिया। दीदी भी कराहने लगीं जब उन्होंने दीदी के गले, गर्दन और कान के नीचे किस करना शुरू कर दिया। दीदी शायद बड़ी ही उत्तेजना में थी, क्योंकि उन्होंने भी तुरंत ही पायजामे के ऊपर से जीजू का लंड अपने हाथों में ले लिया. उधर जीजू में दीदी के ब्लाऊज भी खोल दिया और दीदी अब ब्रा में उनके सामने थीं.
"यह आप क्या कर रहे हो ?"- दीदी ने बोला।
जीजू ने कहा- "अब तुम मेरी बीवी हो और में तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता हूँ तुम्हेँ कोई ऐतराज है?"
दीदी ने बोला -"नहीं..." और वापस घूम कर जीजू की ओर मुँह कर लिया।
जीजू ने अपने लिंग को धीरे धीरे स्ट्रोक करना शुरू कर दिया। जीजू ने दीदी की ब्रा भी उतार दीं और बेड पर फेंक दीं और दोनों स्तन अपने हथेलियों में भर लिए। दीदी के मुंह से आह निकल ही जा रही थी। वो बीच-बीच में दीदी की घुण्डियों को भी चूस रहे थे। अब दीदी सिर्फ़ लाल रंग की एक पैंटी में थीं। जीजू ने उन्हें पलंग पर लिटा दिया।
दीदी के स्तन एकदम गोल गोल और ऊपर उठे हुए थे। जीजू ने अपने कपड़े खोलने शुरू कर दिए और सिर्फ़ अंडरवियर में वो भी पलंग पर आ गए। उनका लिंग उस अंडरवियर में से बाहर आ जाना चाह रहा था। दोनों एक दूसरे के शरीर से लिपट गए थे।
जीजू दीदी की टांगों के बीच में उनकी योनि पर हाथ फेर रहे थे और उनके सीने के नीचे दीदी के स्तन दबे हुए थे। जीजू ने दीदी की पैंटी के अन्दर हाथ डाला और उनके नंगे कूल्हों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। दीदी ने जीजू के अंडरवियर को उतार दिया और काले लिंग को पकड़ कर रगड़ना शुरू कर दिया।
पहली बार अहसास हो रहा था कि लिंग चाहे काला हो या गोरा अगर दिख जाये तो किसी भी लड़की का दिमाग खराब कर सकता है। जैसे कि इस वक्त मेरा हो रहा था। मेरी योनि भी चिपचिपाने लगी थी। मैंने स्कर्ट के नीचे कक्षी में हाथ डालकर उसे थपथपाकर फुसलाया कि दूसरे का माल देखकर लालच नहीं करना चाहिए। सब्र रख इससे भी प्यारा लिंग मिलेगा। लेकिन काश कि भगवान ने योनि को भी दिमाग दिया होता ताकि ये हमारी बात सुन लेती। उस वक्त तो मेरी कक्षी की छोटी सी पट्टी बुरी तरह से भींग गई थी। यहाँ तक की मेरी ज़ाघों से पानी नीचे रिसने लगा था। उफ़! काला हो या गोरा, नंगे पुरुष को देखकर किसी भी लड़की को नशा हो जायेगा और अगर सुहागरात पर देख लो उफ़.....बेकाबू!
उधर जीजू ने भी दीदी की पैंटी उतारनी शुरू कर दी। दीदी ने अपनी कमर ऊपर उठाकर जीजू की मदद कर दी। बस अब दोनों पूरे नंगे थे।
यह सब मेरी आँखे देख रही थी। मेरी योनि नल की तरह पानी छोड़े जा रही थी।
जब जीजू दीदी को घूरने लगे तो दीदी ने अपना मुँह अपनी हथेलियों से ढक् लिया। कमरे में बल्ब जल रहा था सो मैं साफ़-साफ़ देख पा रही थी कि दीदी के गोरे बदन पर सिर्फ़ योनि के ठीक ऊपर हलके हलके बाल थे और जीजू उसमें अपनी उंगलियाँ फेर रहे थे। जीजू का लिंग एकदम कड़ा था लोहे के रोड की तरह। जीजू ने दीदी की टाँगे फैलाई और उनके बीच में बैठ गए और नीचे झुककर योनि पर किस कर लिया। दीदी इसके लिए तैयार नहीं थी और अपने दोनों हाथों से अपनी योनि को ढकने लगीं। वो अपना सर हिलाकर मना करने लगी- "वहां नही...!".
लगता था कि शायद वहां बाल होने की वजह से वो किस नही करने देना चाहती थी। पर जीजू ने जिद नही कि और उनके पेट पर किस करते हुए बूब्स कि और बढ़ने लगे। जल्द ही अपने दोनों हाथों से वो स्तनों का मर्दन करने लगे और दीदी के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं। फिर एक स्तन को चूसते हुए दूसरे निप्पल को उँगलियों से रगड़ने लगते। दीदी के हाथ जीजू कि पीठ पर लिपटे हुए थे इसलिए जीजू ने दीदी का एक हाथ फिर से अपने लिंग पर रख दिया। उधर जीजू ने तकिये के नीचे से कंडोम का पैकेट निकाल लिया।
फिर एक कंडोम निकाल कर अपने लिंग पर चडा लिया। फिर एक डिब्बी निकली जो कि एक जेली थी और उसमे से थोडी सी जेली निकाल कर दीदी कि गीली योनि पर मल दीं।
इसके कुछ ही देर बाद जीजू दीदी के ऊपर थे और उनका लंबा मोटा लिंग दीदी कि जाँघों के बीच में ठीक योनि के सामने टिका हुआ था।
"इसे जानती हो क्या कहते हैं?"-जीजू ने लिंग की तरफ इशारा करके कहा।
"हाँ..."-दीदी ने धीरे से जवाब दिया।
"क्या?"-जीजू योनि पर धीरे-धीरे लिंग को रगड़ रहे थे।
"लिंग..सीSSSS"-दीदी सिसियाते हुए बोली।
जीजू की इस हरकत पर किसी लड़की की क्या हालत हो सकती है ये मैं भली भाँति समझ सकती थी। क्योंकि इस वक्त मेरी योनि में भी अजीब सी गुदगुदी मची हुई थी।
"और कोई नाम..."
"ल....ल...लंड...उई"-जीजू ने जैसे ही लिंग को योनि मुँह पर रखकर दबाया तो दीदी सिसिया पड़ी।
"देहाती में क्या कहते हैं?"
"आहSSSS...वो बहुत गंदा है...आपने उस दिन फोन पर बताया तो था।"-दीदी का शरीर धीरे-धीरे कांप रहा था।
"अभी बोल....."-जीजू के चेहरे पर मैंने एक अजीब सी कठोरता देखी जैसे धीरे-धीरे उनके भीतर कोई जानवर जाग रहा हो।
"ल...लौड़ा..उई माँ.....प्लीज ऐसे नहीं"-मैं ये देख तो नहीं पाई की जीजू ने क्या किया था लेकिन दीदी ने एक झटके से अपनी टाँगें बंद कर लीं थीं।
"अपनी वाली का नाम बोल..."-जीजू ने जबरजस्ती दीदी की टाँगों को फैला कर उनकी एक गोरी, चिकनी जाँघ को अपनी काली और बालों से भरी सख्त मर्दाना जाँघ से दबा दिया।
"योनि.....आह...दर्द हो रहा है...सीSSSSS"
"और...."
"बुर....आई...माँ"-जीजू ने कसकर दीदी की गोरी जाँघ पर चिकोटी काटी और दीदी के ऊपर लेट कर उन्हें कसकर अपने सीने से चिपका लिया फिर जो हरकत जीजू ने की उसे देखते ही मेरी बुर से भी पानी का फव्वारा छूट गया।
जीजू ने अपनी कमर पूरी तरह से ऊपर उठा कर बहुत कसकर धक्का मारा और-
"आई मम्मीSSSSSSSSमर गईSSSSS...सीSSSSSSSछोड़ दीजिए...आह..."
लेकिन जीजू तो जैसे पूरे जानवर बन गये थे।
उन्होंने दीदी को कसकर दबोचे रखा और किसी कुत्ते की तरह जल्दी-जल्दी कम से कम 5-6 बार कमर चलाई और फिर दीदी से अलग हो गये।
उधर दीदी की हालत बहुत खराब थी।
उन्होंने अपनी दोनों टाँगों को आपस में कसकर भींच रखा था।
"आई मम्मी....बहुत दर्द हो रहा है...मर जाउंगी.."
"ठीक हो जाएगा चिल्ला मत...."-जीजू दीदी की कक्षी से अपने लिंग पर लगा खून साफ करते हुए बोले-"अच्छा हुआ कुँवारी निकली नहीं तो यहीं पर तलाक दे देता......जरा टाँग खोल ठीक से देखने दे......कहीं कोई रंग-वंग तो नहीं लगाया...."
जीजू ने दीदी की चिपकी हुई टाँगों को जबरन खोलकर देखा।
दोनों टाँगों को पूरी तरह से फैलाकर जीजू ने बुर की फाँकों को चीरकर अच्छे से अपनी तसल्ली की।
"अब बोल....अब तेरी बुर क्या हो गई..."
"च..चूत....उई माँ बहुत कल्ला रही है...प्लीज कुछ कीजिए...बरदास्त नहीं हो रहा है..."
"रुक अभी तेरा इलाज करता हूँ..."
इतना बोल कर जीजू एकबार फिर से दीदी के ऊपर पसर गये और दोनों टाँगों को अपने कंधे पर लादकर किसी साँड़ की तरह से हुमकने लगे और दीदी तो जैसे सिसियाने की मशीन बन गई थीं-
"आईSSSSSSउईईईईई..मर गई.......धीरे-धीरे.....दुःख रही है.....कल्ला रही है.....जल रही है.... बस....सीईईईईईईईईई"
और पता नहीं क्या-क्या उनके मुँह से निकल रहा था।
ये सब देखकर मेरी उंगलियाँ मेरी चूत के दाने को जोर जोर से रगड़ रही थी और चूत में से पानी बहे जा रहा था। मन तो ऊँगली को चूत के अन्दर डालने को हो रहा था पर मजबूर थी चूँकि अभी तक मैं कुंवारी ही थी, मेरा मतलब मेरी योनि में झिल्ली टूटी नही थी इसलिए ऊँगली नही डालना चाहती थी।
उधर कुछ ही देर में जीजू किसी कुत्ते की तरह हांफते हुए दीदी से अलग हो गये। शायद उनका पानी निकल कर दीदी की बुर में चला गया था।
दीदी चुपचाप लेटी हुई गहरी-गहरी सांसें भर रहीं थीं। उन्होंने एक तकिये को अपनी टाँगों के बीच में ले रखा था। शायद दीदी को अभी भी दर्द हो रहा था। उफ ये पुरुष भी न कभी रहम नहीं करते। जानवर होते हैं पूरे जानवर।
थोड़ी देर बाद दीदी ने रूम का बल्ब बंद कर दिया और में भी खिड़की से हट कर अपने बेड पर लेट गयी....
इसके बाद क्या हुआ अगले भाग में......
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Raj Sharma
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