Wednesday, January 2, 2013

चुदाई का दर्द--1


चुदाई का दर्द--1
मेरा नाम है भीमा बहादुर। मैं बिहार का रहने वाला हूँ। निरा देहाती लंठ गवार। आये दिन अपने माँ बाप से मार खाता रहता था कि स्कूल क्यों नहीं जाता? हमेशा मार-पीट क्यों करता रहता है? कई बार दूसरों की दुकान का ताला तोड़ते हुए पकड़ा गया था।
गाँव में मेरा दो ही पसंदीदा अड्डा था। एक आम का पेड़ जहाँ मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ गांजा पीता और जुआ खेलता। दूसरा था लौडियों के स्कूल के सामने पनवाड़ी की एक दुकान जहाँ मैं अपने दोस्तों के साथ कोरी-कोरी कलियों को आते-जाते हुए ताड़ा करता था।
भगवान ने शक्ल तो कुछ अच्छी बनाई नहीं थी। ऊपर से कंगाल और लोफड़ भी था फिर भला लौडिया क्यों घास डालती।
लौडियों की स्कर्ट के नीचे चिकनी-चिकनी टाँग देखकर जब लौड़ा पैन्ट में हिनहिनाने लगता तो किसी गोरे-चिकने लौडे को पटाकर खेत में ले जाता और अरहर के खेत में थुक लगाकर पीछे से उसकी गाँड़ को हुमक कर चोद देता। 10 मिनट में ही गाँड़ नगाड़े की तरह बजने लगती। लेकिन मेरा तब नहीं झड़ता था जब तक कि लौड़ा ये न बोल दे कि मैं लड़की हूँ..आहSSS..बहुत दर्द हो रहा है....प्लीज झड़ जाओ...
तब जाकर मेरा पानी उसकी गांड़ में छूटता था। उसके बाद उसे तब तक नहीं जाने देता था जब तक मेरे लंड को चूस-चाट कर एकदम साफ न कर दे।
जब तक मैं गाँव में रहा कोई भी गोरा लौडा ऐसा नहीं था जिसकी गाँड़ मारकर मैंने उसे गाड़ू न बना दिया हो।
एक दिन ऐसे ही गाँव के एक चरसी ने अपने मोबाइल में एक ब्लू फिल्म दिखा दी।
जिसमें एक काला-कलूटा निगरो एक 14 साल की गोरी लड़की की छोटी सी चूत को फाड़ रहा था।
मादरचोद देखकर ही दिमाक पूरी तरह से गरमा गया।
अब तो कोई गाँड़ ही मेरे इस सनक को झेल सकती थी। लेकिन मेरी किस्मत जोर मार गई।
एक लौडे को पटाकर खेत में ले गया लेकिन वहाँ पर गाँव के ठाकुर की लौडिया लोटा लेकर बैठी थी। उसकी गोरी-गोरी चिकनी गाँड़ देखकर मैंने लौडे को डरा कर भगा दिया और फिर उस लड़की को वही खेत में दबोचकर इतनी कसकर चोदा की उसकी बुर फट गई।
लौड़ा झड़ने के बाद मुझे होश आया।
फिर मैं गाँव में रुका नहीं सीधा ट्रेन पकड़ कर मुम्बई आ गया।
यहाँ लोग मुझे बहादुर के नाम से पुकारते हैं। आज मेरी उमर यही कोई २४ साल हो चुकी है। मैं यहाँ पर एक प्राइवेट कार चलाता हूँ। यहाँ आते ही मुझे एक गैराज में खलासी की नौकरी मिल गयी थी। दो वर्ष में ही मैं एक मैकेनिक बन गया और बहुत अच्छा ड्राइवर भी। फिर तीन साल उसी गैराज में मैने और नौकरी की। फिर मिश्रा साहब ने जो हमारे गैराज के बहुत पुराने ग्राहक थे, मुझे अपने पास पर्सनल ड्राइवर के रूप में रख लिया।
मिश्रा साहब के यहाँ बहुत आराम का काम था। साहब का नाम अमित मिश्रा था। वो दूसरे ज़िले में ड्यूटी करते हैं और वहीं रहते भी हैं। वो केवल शनिवार को आते हैं और सोमवार को वापस चले जाते हैं। घर पर उनकी बीवी और उनकी दो लड़कियाँ रहती हैं। मेम साहब का नाम रजनी मिश्रा और उनकी दो लड़कियाँ माधवी और पल्लवी है। उन सभी का रंग गोरा, बदन एक दम भरा-भरा, बॉल काले रंग के और कटे हुए हैं। वो सभी दिखने में बहुत ही सेक्सी लगती हैं।
मैं जब उनके यहाँ नया नया आया था तो कुछ दिनो के बाद एक दिन बाज़ार जाते हुए मालकिन ने मेरे घर परिवार के बारे में पूछ्ना शुरू किया। मैने उन्हें सब कुछ बता दिया कि मैं नेपाल के गाँव का रहने वाला हूँ। मेरे माँ और बाप गाँव में ही रहते हैं। मैं शहर के बाहर हाइवे के किनारे एक किराए के रूम में अकेला ही रहता हूँ। मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है। रजनी मेम साहब बीच में कुछ उल्टे सीधे सवाल भी पूछ लेती थी और मैं शरम के मारे चुप हो जाता था। एक दिन रजनी मेम साहब को कुछ काम से शहर से बाहर जाना था और 2 दिन बाद वापस आना था। मेम साहब ने मुझे बुलाया और कहा-
"बहादुर, तुम गाड़ी तैयार करो और मेरे साथ चलो। मुझे 2 दिन के लिए बाहर जाना है।"
मैने कहा- "ठीक है, मेम साहब"
मैने बाहर जा कर गाड़ी साफ की और उनका इंतज़ार करने लगा। कुछ देर बाद वो आकर गाड़ी में बैठ गयी और चलने को कहा। मैने गाड़ी स्टार्ट की और चल दिया। जब हम शहर से बाहर आ गये तो रजनी मुझसे पूछने लगी-
"तुमने अभी तक शादी क्यों नहीं की?"
मैने कहा-"अभी तक मेरे पास रिश्ते के लिए कोई आया ही नहीं"
फिर वो इधर उधर की बातें करने लगी। थोड़ी देर बाद उन्होने अचानक मुझसे पूछा कि-
"तुम्हें बीवी की ज़रूरत नहीं महसूस होती"
मैने झिझकते हुए कहा- "होती क्यों नहीं"
वो बोली- "तब तुम क्या करते हो।"
मैं चुप रह गया।
वो बोली- "तुमने सुना नहीं मैने क्या कहा।"
मैने कहा कि- "मेरे घर के पास ही एक औरत रहती है, उसी से मेरा संबंध है।"
वो बोली- "उसके घर में कोई और नहीं है।"
मैने कहा- " उसका पति है और वो एक फ़ैक्टरी में नाइट ड्यूटी पर चला जाता है।"
वो बोली- "दिखने में वो कैसी है?"
मैने कहा- "वो गाँव की आम औरतों की तरह ही है। शकल-सूरत से ठीक-ठाक है।"
फिर वो चुप हो गयी। 1 घंटे के बाद हम उस शहर में पहुंच गये तो मेम साहब ने एक होटल का पता बताया और वहाँ चलने को कहा।
मेम साहब के लिए उस होटल में रूम बुक था।
हम सीधे उस होटल पर आ गये।
रात के 9 बजने वाले थे। मैं उनके साथ रूम में आ गया और बैठ कर टीवी देख रहा था।
रात के 10 बजे मेम साहब ने खाना मँगाया।
हम दोनो ने खाना खाया। खाना खाने के बाद मैं नीचे गाड़ी में सोने के लिए जाने लगा तो मेम साहब बोली-
"बहादुर, तुम यहीं सोफे पर सो जाओ. मुझे अकेले में डर लगता है।"
इतना बोलकर वो खुद बेड पर सोने चली गयी। मैं सोफे पर सो गया।
रात के लगभग 12 बजे मौसम खराब हो गया। ज़ोर ज़ोर से आँधी चलने लगी और बिजली भी कडकने लगी।
मेम साहब ने उठ कर मुझे जगाया और बोली-"बहादुर, मुझे बहुत डर लग रहा है।"
मैने कहा-"मैं तो यहीं हूँ। आप आराम से सो जाइए।"
वो बोली- "नहीं, तुम मेरे साथ चल कर बेड पर एक किनारे सो जाओ। मुझे बिजली कडकने से बहुत डर लगता है।"
मैं चुप-चाप उठ कर उनके साथ बेड पर आ गया। मैने एक चद्दर ओढ़ ली और बेड के एक किनारे सो गया।
मेम साहब बेड के दूसरे किनारे पर सोने की कोशिश करने लगी।
कुछ देर बाद बहुत ज़ोर से बिजली कड़की तो मेम साहब ने मुझे पीछे से पकड़ लिया और चिपक गयी।
उनकी चूचियों को मैं अपने पीठ पर महसूस कर रहा था। मुझे भी जोश आने लगा पर मैं चुप रहा।
थोड़ी देर बाद वो मेरे सीने के बालों को सहलाने लगी। मुझे और ज़्यादा जोश आने लगा और मेरा लंड खड़ा हो गया।
मुझे मज़ा आ रहा था इसलिए मैं कुछ नहीं बोल रहा था।
कुछ देर तक मेरे सीने को सहलाने के बाद उनका हाथ धीरे धीरे मेरे पेट पर आ गया और वो मेरा पेट सहलाने लगी।
थोड़ी ही देर बाद उनका हाथ मेरे लंड पर था। मेरा लंड तो पहले से ही खड़ा था।
जैसे ही मेम साहब का हाथ मेरे लंड पर पड़ा तो वो उसे टटोलने लगी और बोली-
"बहादुर, तुम्हारा तो बहुत लंबा चौड़ा लग रहा है। क्या साइज़ होगा इसका।"
मैने कहा- "यही कोई 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा "
वो चौंक कर बोली- "मुझे विश्वास नहीं होता। तुम अपना मुँह मेरी तरफ करो, मैं इसे अभी देखना चाहती हूँ।"
मैने करवट बदल ली। उन्होने मेरा पैजामा खोल दिया और मेरे लंड को अपने हाथों से पकड़ लिया।
मेरे सारे बदन में आग सी लग गयी। मेरा दिल तेज़ी के साथ धड़कने लगा।
वो अपने हाथ से मेरे लंड को सहलाने लगी।
मेरा लंड तो पहले से ही खड़ा था, उनके सहलाने से एक दम तन गया।
वो मुझसे एक दम चिपक गयी।
कुछ देर तक मेरे लंड को सहलाने के बाद बोली
"तुम्हारे झाँट के बाल बहुत बड़े-बड़े हैं। तुम साफ नहीं करते हो क्या।"
"अभी 1 महीना पहले ही साफ किया था।"
"मुझे नीचे के बाल नहीं पसंद हैं। मैं अभी तुम्हारे बाल साफ कर देती हूँ।"
वो उठी और लाइट ऑन करके ड्रेसिंग टेबल से शेविंग किट निकाल कर ले आई और बोली-
"तुम लेटे रहो, मैं तुम्हारे बाल साफ कर देती हूँ।"
मैं लेटा रहा और मेम साहब मेरे बाल साफ करने लगी। बाल साफ करने के बाद उन्होने मेरे लंड पर हाथ फिराया और कहा-
"अब यह और अच्छा लग रहा है।"
कुछ देर तक मेरे लंड पर हाथ फिराने के बाद उन्होने मेरे लंड को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर देर बाद वो बोली-
"बहादुर, तुम्हारा लंड तो बहुत ही बड़ा है। जब तुम अपनी पड़ोसन को चोदते हो तो उसे दर्द नहीं होता।"
मैने कहा- "पहली बार हुआ था पर अब वो मेरे लंड की आदी हो चुकी है और खूब मज़े के साथ चुदवाती है। एक बार मैं नंगा नहा रहा था तो उसने मेरा लंड देख लिया था। मेरे लंड की साइज़ को देख कर वो मुझ पर फिदा हो गयी थी। हमेशा किसी ना किसी बहाने मेरे पास आती थी और खूब बातें करने लगी थी। एक दिन उसने मुझसे बिना किसी शरम के कह दिया कि वो मुझसे चुदवाना चाहती है। मैने बिना कोई मौका गँवाए उसे दबोच लिया और हचक कर खूब कसके चोद डाला। पहली बार उसकी चूत से खून भी आ गया था।"
मेम साहब बोली- "तुम्हारा लंड तो है ही इस काबिल की कोई भी औरत इसे देख कर तुमसे चुदवाना चाहेगी। मेरे पति का लंड तुम्हारे लंड से छोटा है। वो लगभग 6 इंच का होगा।"
मेम साहब ने मेरे लंड को चूसना शुरू कर दिया और कुछ देर बाद बोली-
"क्या तुमने कभी किसी औरत की चूत को चाटा है।"
"नहीं.....मुझे चूत को फाड़ने का शौक है...चाटने का नहीं। जो चूत चाटता है उसे भंगी कहते हैं और जो बुर को फाड़कर भोषड़ा बनाता है उसे साँड़ कहते हैं।....मुझे साँड़ पसंद है, भंगी नहीं।"
"उफ़...तुम तो सच में ज़ालिम हो। भला किसी औरत से कोई ऐसे बोलता है।"
"क्यों?.."
"साँड़ का नाम किसी मर्द के मुँह से सुनकर औरत बहक जाती है।...."
"अच्छा"
"एक बात बोलूं?"
"बोलिये..."
"आई लव यू....."-इतना बोलकर वो मेरे सीने से चिपक गई।
मैंने भी उनके नाजुक कोमल बदन को अपने आगोश में भर लिया।
"ऊई माँ....बहुत ताकत है तुम्हारे पास..."
"अभी आप ने देखा कहाँ हैं?"-मैंने और कसकर जकड़ लिया।
मेम साहब की बड़ी-बड़ी चूचियाँ मेरे सीने में धँसती हुई जान पड़ रही थी।
उस वक्त मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मान रहा था जो इतनी अमीर, खूबसूरत, सेक्सी और अंग्रेजी बोलने वाली पढ़ी-लिखी महिला मेरे आगोश में आकर ये जता रही थी कि उसे मुझसे प्यार करती है।
पर मेरे पास था क्या - एक विशाल, काला, मोटा लंड।
"प्लीज मुझे नंगी कर दो....आज से मैं तुम्हारी हूँ...मुझे अपना बना लो।...प्लीज मुझे कभी छोड़कर मत जाना।"
ऐसी बात सुनकर साला मेरा भेजा भन्ना गया।
ये तो वही बात हुई कि लंगूर के मुँह में अंगूर वो भी एक नहीं बल्कि पूरा घौंद।
पहली बार पता चला कि देहाती और शहरी माल में क्या फर्क है।
देहाती औरत तब अच्छी लगती है जब उसकी बुर में लौड़ा घुस जाय और शहरी माल कि तो हर एक अदा ही जानमारू होती है।
मैं और जोश में आ गया। मैने उनकी साड़ी उपर कर दी। नीचे उन्होने कक्षी पहन रखी थी। मैने कक्षी भी उतार दी।
उनकी चूत एक दम गोरी और चिकनी थी। मैने अभी तक ऐसी चूत नहीं देखी थी।
थोड़ी देर बाद मेम साहब बोली- "क्या तुमने ऐसी चूत अभी तक नहीं देखी है।"
मैने कहा- "मैने इतनी गोरी और चिकनी चूत कभी नहीं देखी है। मेरी पड़ोसन की चूत तो साँवली है और बालों से भरी रहती है। बाल भी काले काले हैं।"
वो बोली- "आज से ये तुम्हारी....जो मन हो करो."
मैने उनकी चूत पर काली सी मोटी उंगली फिराना शुरू कर दिया। वो जोश में आ कर सिसकारियाँ भरने लगी। फिर एक उंगली उनकी चूत में डाल दी और अंदर बाहर करने लगा। वो मेरा लंड चूस रही थी।
थोड़ी देर बाद मैं बहुत ज़्यादा जोश में आ गया और मेरे लंड ने उनके मुँह में पानी छोड़ना शुरू कर दिया।
मेम साहब वो सारा पानी पी गयी। 5 मिनिट बाद उनकी चूत से भी पानी निकला।
जिसे अपनी उंगली पर लगाकर मैंने उन्हें ही सारा पानी चटवा दिया।
साली ये शहर की औरतें बुर का पानी भी कैसे चाट जाती है। जबकि गाँव वालियाँ तो साली बुरा सा मुँह बनाकर नाक भौं सिकोड़ लेती है।
आज पता चला कि शहरी मजा क्या होता है। जीते जी अगर आदमी शहरी औरत की बुर का पानी अपने लौड़े पर लगाकर खुद औरत को न चटवाये तो लानत है उसके मर्द होने पर।
मेम साहब मेरे लंड का पानी निगलने के बाद मेरे लंड को फिर चूसने लगी और मैं उनकी चूत को मुट्ठी में भरकर भींचता रहा।
लगभग 10 मिनिट के बाद मेरा लंड फिर तैयार हो गया। वो बोली-
"बहादुर अब बरदास्त नहीं हो रहा है। जल्दी से चोद कर मुझे अपनी रखैल बना लो।"
मैं उठ कर उनके टाँगों के बीच आ गया। मैं जानता था कि मेरा मोटा और लंबा लंड उनकी बुर के अंदर आराम से नहीं जाएगा और उनको बहुत तकलीफ़ होगी।
मैं अपनी पड़ोसन की हालत पहली बार की चुदाई के समय देख चुका था। लेकिन मैं मेम साहब की गोरी और चिकनी चूत को बिना कोई तेल या क्रीम लगाए चोदना चाहता था।
ताकि बुर के गुलाबी लाल कसे छल्ले का पूरा मजा मिले और जब मैं कसकर पेलूं तो मेम साहब के चेहरे पर चुदाई का दर्द दिखाई पड़े। मैं देखना चाहता था कि शहर की औरतें जब मोटा लौड़ा बुर में लेती हैं तो उनको कितना दर्द होता है। चोदते वक्त जब मैं औरत का चेहरा देखता हूँ तो मेरा जोश चौगुनी रफ्तार से बढ़ता है। फिर तो मैं एकदम साँड़ की तरह ही पेल डालता हूँ।
मैने उनके चूतर के नीचे दो तकिये रख दिए और उनकी टाँगों को पकड़ कर फैला दिया। अब उनकी चूत उपर उठ गई और उसका मुँह खुल गया।
मैंने अपने लंड के सुपाड़े को उनकी चूत के बीच रखा। वो एक दम मस्त हो गयी थी और बोली-
"इतनी देर क्यों लगा रहे हैं आप.... जल्दी डालो अपना लंड मेरी चूत में। मुझसे अब ज़्यादा बरदास्त नहीं होता। डाल दो अपना पूरा लंड एक ही झटके से मेरी चूत में। फाड़ दो मेरी चूत को।"
मैं और ज़्यादा जोश में आ गया। मैने लंड को उनकी चूत में एक झटके से डाल दिया। लेकिन वो उनकी चूत में केवल 5 इंच ही घुस पाया और उनको दर्द होने लगा। उन्होने दर्द की वजह से अपने होठों को ज़ोर से जकड़ लिया। मैने फिर एक धक्का मारा तो वो दर्द नहीं बरदास्त कर पाई और उनके मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गयी। अब तक मेरा लंड उनकी चूत में 6" तक घुस चुका था। मैने फिर धक्का लगाया तो वो ज़ोर से चीखी और बोली-
"आह्श्श्श्श्श अब नहीं बरदास्त हो रहा है, बाहर निकाल लीजिए अपना लंड......"
मैने अपना आधा से ज़्यादा लंड बाहर निकाल लिया। मैं उनकी गोरी और चिकनी चूत को तकलीफ़ देकर चोदना चाहता था इसलिए वो कुछ और बोल पाती इसके पहले मैने अपने लंड को वापस उनके चूत में एक जोरदार धक्के के साथ घुसा दिया। वो बहुत ज़ोर से चीखी और फिर कुछ बोल पाती कि मैने अपनी पूरी ताक़त लगाकर एक हुमक कर चाप दिया।
अब मेरा 8 इंच का पूरा लंड उनकी चूत में जड़ तक घुस चुका था। वो अभी भी चीख रही थी। उन्होने मुझसे फिर अपना लंड बाहर निकालने को कहा तो मैं बोला-
"रखैल बनना इतना आसान नहीं है मेम साहब, मेरी रखैल बनना है तो इस तरह का दर्द रोज झेलना पड़ेगा वो भी तब तक जब तक मेरा माल निकल कर तुम्हारी भोषड़ी में न भर जाए....अब तो ये पूरी तरह से चूत में अंदर ससक गया है। कुछ और हुमक्के के बाद सारा दर्द ख़तम हो जाएगा....लो अब मजा लो....बहादुर की चँपाई का"
मैने हचाहच चोदना शुरू कर दिया। 5 मिनट तक चोदने के बाद उनका दर्द कम हो गया और उन्हें मज़ा आने लगा। तब वो बोली-
"बहादुर, खूब ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाओ और कसके चोदो मुझे।"
अब मैं पूरा साँड़ बन गया। वो और तेज और तेज कहती रही और मैं अपनी घस्से पर घस्से देता रहा। अब मैं पूरी ताकत के साथ उनकी चूत की धुनाई कर रहा था।
लगभग 10 मिनट तक चोदने के बाद मेरे लंड ने उनकी चूत को भरना शुरू कर दिया। अब तक वो भी 3 बार झाड़ चुकी थी।
मैं उनके उपर ही लेट गया और उनके होंठ चूसने लगा। वो भी मेरे होंठ चूमने लगी।
"मैं कितनी खुश किस्मत हूं कि मुझे आज ज़िंदगी में दूसरी बार सुहागरात का मज़ा मिला। आज मुझे ज़िंदगी में पहली बार चुदवाने में बहुत मज़ा आया। मैने जब तुमसे लंड को बाहर निकालने को कहा था, अगर तुम रुक जाते और अपना लंड बाहर निकाल लेते तो मैं ये मज़ा कभी भी नहीं ले पाती।"
थोड़ी देर बाद मैं उनके उपर से हट गया। उन्होने एक कपड़ा उठा कर अपनी चूत को साफ किया तो उस पर कुछ खून के धब्बे भी लग गये। उन धब्‍बों को देख कर वो और खुश हो गयी और बोली-
"ये धब्बे तो किसी कुँवारी चूत की पहली बार की चुदाई के निशान जैसे ही हैं। मेरी चूत भी तो तुम्हारे लंड के लिए कुँवारी चूत जैसी ही थी।"
20 मिनिट बाद वो मेरा लंड फिर से चूसने लगी। मैं समझ गया कि वो मुझसे दोबारा चुदवाना चाहती हैं। मैने उसकी चूचियों को मसलना शुरू कर दिया और वो मेरा लंड चूसने लगी। 5 मिनिट में ही मेरा लंड पूरी तरह से फिर तैयार हो गया। वो बेड पर ही कुतिया स्टाइल में हो गयी और बोली-
"बहादुर, पीछे से आकर चो दो मुझे। खूब ज़ोर ज़ोर से चोदना। मुझे अगर तकलीफ़ होने लगे तो तुम उसकी परवाह मत करना।"
मैं उनके पीछे आ गया। मैने उनकी गोरी और चिकनी चूत को फैला कर अपने लंड के सुपाड़े को बीच में रखा और एक जोरदार धक्का मारा।
उनकी चीख निकल गयी। मेरा आधा लंड उनकी चूत में घुस चुका था। मैने बिना रुके तेज़ी के साथ उनको चोदना शुरू कर दिया।
वो चीखती रही और मैं अपना लंड उनकी चूत में घुसाता रहा। रजनी को बहुत दर्द हो रहा था लेकिन इस बार उसने मुझसे एक बार भी अपना लंड बाहर निकालने को या रुकने को नहीं कहा बस केवल चीखती रही।
मैने चोदना जारी रखा। कुछ ही धक्कों के बाद मेरा पूरा लंड उनकी चूत में घुस गया। मैं अपना आधे से ज़्यादा लंड बाहर निकाल कर पूरी ताक़त के साथ वापस उनकी चूत में गहराई तक घुसा देता था। फ़च-फ़च की आवाज़ें रूम में गूँज रही थी। वो आवाज़ सुनकर मुझे और जोश आने लगा और मैने और बहुत ही तेज़ी के साथ उनके चूत की धुनाई शुरू कर दी।
थोड़ी देर बाद उन्हें भी मज़ा आने लगा।
वो अपने गाँड़ को आगे पीछे करके मेरा साथ दे रही थी। इस बार मैने उनको लगभग २० मिनट तक चोदा और वो मेरे झड़ने के पहले ही 2 बार झड़ चुकी थी।
लंड का पानी पूरी तरह निकल जाने के बाद मैने अपना लंड बाहर निकाल लिया।
वो पलट कर मेरे लंड के पास आई और अपनी जीभ से उसे चाट चाट कर साफ करने लगी।
रजनी की चुदाई दूसरे दिन भी जारी रही। मैने उन्हें 48 घंटों में 5 बार चोदा। वो मेरी चुदाई से बहुत संतुष्ट थी। 2 दिन बाद हम वापस आ गये।
और..................
मैंने उनकी लड़कियों को किस तरह से चोदा वो अगले भाग में।
 



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Raj Sharma

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