FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--128
स्पेशल एक्सप्लोसिव
उसी दिन उस की बात डेल्टा फोर्सेज के हेडक्वारटर्स से हुयी और उसने अपनी सारी शंका , आशंका बतायी।
पर कुछ ख़ास पॉजिटिव रिस्पांस नहीं मिला। हाँ उस के एक साथी ने एक बात जरूर बतायी की एक्सप्लोसिका कंपनी ने , एक एक्सप्लोसिव डेवलप किया है और जिसका वो एक इनफॉर्मल ट्रायल और ओपिनियन चाहते हैं। हाँ बस एक बात का ध्यान रखना होगा की ये एकदम पर्सनल लेवल पे है और पेंटागन का उसमें कोई भी इन्वॉल्वमेंट नहीं होना चाहिए।
दूसरे किसी भी हालत में ये एक्सप्लोसिव दुश्मन के हाथ नहीं लगना चाहिए।
डाल्टन के मन में एक आशा की किरण जागी। उसे एक प्लान बनता हुआ दिखाई दिया , उसने जब सुना की एक्सप्लोसिव्स चट्टानों तोड़ने में सक्षम हैऔर अब तक अब के किसी भी एक्सप्लोसिव्स से ४० गुना ज्यादा असरदार है।
उसने तुरंत हाँ कर दी।
उसे ये बताया गया की आज ही एक्सप्लोसिव का डिटेल उसे मेल कर दिया जाएगा। और अगले ४८ घण्टे में वो एक्सप्लोसिव्स बाकी सप्लाइज के साथ उसे मिल जाएगा।
और जब मेल आया तो उसका दिमाग चकरा गया।
नैनो रोबोटिक्स , आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या नहीं था इस एक्सप्लोसिव में।
नॉर्मली , एक्सप्लोसिव की सबसे बड़ी बात होती है ,बैंग बैंग। वो एक बार एक्सप्लोड होता है और सारा असर उसी की स्ट्रेंथ पर डिपेंड करता है , शाकवेव्स , शार्पनेल या इन्सेन्डियरी मैटेरियल का इम्पैक्ट उसी पर निर्भर करती है। अगर उस में मल्टिपल वेव्स जेनरेट हों और जो स्ट्रक्चर वीक हों उनपर बार बार आघात करें तो उसका असर और प्रभावी होगा।
इस एक्सप्लोसिव में ये और उसके अलावा और भी कई ख़ास बातें थीं।
ये लेयर्ड एक्सप्लोसिव था। मल्टी लेयर्ड , इसमें सात लेयर थी यानी सात बार ये ये शाक वेव्स जेनरेट करता।
लेकिन इससे भी ज्यादा ख़ास बात थी , नैनो रोबोटिक्स का इस्तेमाल।
ये नैनो रोबो सुपर सानिक स्पीड से फ्लाई करते. इनके अंदर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस थी , जिससे टारगेट प्री प्रोग्राम्ड हो सकते थे और ये रोबो अपने टारगेट को पहचान कर उन पर ज़ीरो इन कर सकते थे।
और सबसे बड़ी बात ये की फिर ये बाकी नैनो रोबो को मेसेज देते जिनमें एक्सप्लोसिव्स लोड होते और वो टारगेट पे आके एक्सप्लोड होते। इस तरह कुछ माइक्रो सेकेंड्स में ४-५ किलोमीटर की परिधि में जो भी टारगेट होते वहां पर भी एक्सप्लोसिव्स पहुँच जाते और मेन एक्सप्लोजन के साथ ये भी एक्सप्लोजन करते।
लेकिन इनके एक्सप्लोजिव दो तरह के होते , एक तो ट्रेडिशनल जो एक्सप्लोड करते और इनसेंडियरी ऐक्शन करते। और दूसरे वो , जो मेटा मैटीरीअल से लैस होते और जिस मैटीरीअल पे अटैक करते उसके , मॉलिक्यूलर बांड को तोड़ देते , जिससे स्ट्रांग से स्ट्रांग मैटीरीयल की जोड़ने की शक्ति कमजोर पड़ जाती और वो टुकड़े टुकड़े हो जाता।
इस एक्सप्लोसिव में जो मेटा मैटेरियल था , वो आदमियों से ज्यादा प्रॉपर्टी और मैटीरीअल को नुक्सान पहुंचाता।
लेकिन इसको और प्रभावी बनाने के लिए मेटा मैटीरियल नैनो रोबोटिक्स के साथ कन्वेंशल टेक्नोलॉजी के मैटीरीअल और एक्सप्लोसिव का भी इस्तेमाल हुआ था , वही जिसका प्रयोग , जी बी यु -43 /बी , एम ओ ए बी में किया जाता है , और ये उसकी संहारक ताकत को और बढ़ा देता।
लेकिन इसमें सबसे बड़ी बात थी नैनो रोबोटिक्स का इस्तेमाल डिटोनेटर और ट्रिगर में।
अगर एक बार उसे एक्सप्लोजन की कमांड कम्युनिकेट हो गयी तो हजारों नैनो रोबोज अपने आप एक्टिवेट हो जाते और नियत समय पर वो एक्स्प्लोड करते , और साथ आर्टिफिसयल इंटेलिजेंस की मदद से वो डिफ्यूज करने के किसी भी कोशिश को पहचान लेते और एक्सप्लोजन ट्रिगर कर देते।
अगले दिन वो एक्सप्लोसिव्स आ गए ,चार कंटेनर में , और उसने अपना प्लान बना लिया।
ग्रेट एस्केप , भागा रे भागा
अगले दिन वो एक्सप्लोसिव्स आ गए ,चार कंटेनर में , और उसने अपना प्लान बना लिया।
वो दिन बहुत कन्फ्यूजिंग थे।
१३ दिसंबर को नार्दर्न अलायन्स ने सीज फायर घोषित कर रखा था। उनका कहना था की वो तालिबान को सरेंडर के लिए टाइम देना चाहते हैं।
सिग्नल कोर ने ओसामा के कई मेसेज इन्टर सेप्ट किये लेकिन उसमें उसकी लोकेशन अलग अलग थी और तोरा बोरा के उस हिस्से से थी , जहाँ से रेगुलर फायरिंग हो रही थी। उन का यह मानना था , की ओसामा अपने सिपाहियों को मोटिवेट कर रहा है , और उनके साथ है। लेकिन सीज फायर होने के कारण वो बॉम्बिंग नहीं कर पा रहे हैं।
लेकिन डाल्टन के पास जो सूचना थी वो उसके ठीक उलटी थी।
सिग्नल इंटेलिजेंस के कुछ लोगों ने उसे बताया की दाल में कुछ काला है बल्कि बहुत काला है. उसके मेसेज प्री रिकार्डेड लग रहे हैं। और ये पुराने मेसेज के स्प्लाइसेज को जोड़ के बनाये गए हैं।
जो म्यूल , तालिबान को सामान सप्लाई करते थे , और उसमे से एक दो को उसने अपना इंफॉर्मेंट बना लिया था , उनकी सूचना भी यही थी की वो और उसके काफी साथी , तोरा बोरा माउंटेन के पूर्वी हिस्से में पहुंच गए है , और सिरफ कुछ लड़ाके उन्होंने पश्चिमी हिस्से में छोड़ दिए हैं।
इसका मतलब ये था की अब वो किसी भी समय एस्केप कर सकते हैं।
डालटन ने ये इन्फो , कमांड सेंटर को बतायी , लेकिन उलटे उसे डांट पड़ी की उसे जो इंस्ट्रक्शन है उसके मुताबिक़ काम करे।
अब डाल्टन ने अपने प्लान पर काम करना शुरू किया।
उसने शिनवारी ट्राइब जो ईस्टर्न अफगानिस्तान और वेस्टर्न पाकिस्तान में खैबर दर्रे के आस पास रहते थे , अफरीदी और मुलागोरी ट्राइब में अपनी पैठ बना ली थी।
ये वो लोग थे जो खैबर दर्रे के आस पास के इलाके को सैकड़ों साल से अपने कब्जे में रखे थे और उनकी इज्जाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था। और अगर ओसामा और उसके साथियों को उस इलाके से निकलना होगा , और ये पता चल गया था की तालिबान के लोग वहां पर स्काउटिंग कर रहे थे।
१४ दिसंबर की शाम से ही पाकिस्तानी फौजें , पूर्वी सीमा से हटने लगी और १५ दिसम्बर की शाम तक जलालाबाद और खैबर दर्रे के पास का इलाका एकदम खाली सा हो गया। और उसी के साथ नार्दर्न अलायन्स ने सीज फायर खत्म कर के हमला शुरू कर दिया।
१५ दिसम्बर की लड़ाई से अंदाज लग रहा था की एकाध दिन में तोरा बोरा की पहाड़ियों पर से तालिबानी कब्जा खत्म होने वाला है.
लेकिन असली कहानी तो डाल्टन को मालूम थी , की ज्यादातर अल कायदा से जुड़े लोग केव्स छोड़ चुके हैं। वो कभी भी पाकिस्तान में घुस सकते हैं।
और उस ने अपना अलग प्लान कर लिया। उस एक्सप्लोसिव मैटिरयल की मदद से।
ये साफ था की वो लोग खैबर दर्रे से नहीं जाएंगे , बल्कि अगल बगल के रैवाइन्स में बने तीन दर्रों में से किसी एक का या तीनो का इस्तेमाल करेंगे। दो दर्रों पे अफरीदी ट्राइब का कब्जा था और एक पर शिनवारी ट्राइब का। दोनों से उसने कम्युनिकेशन चॅनेल ओपन कर रखे थे।
और उस को पक्की खबर मिल गयी थी की १६ दिसंबर को फर्स्ट लाइट पे वो लोग दर्रा पार करेंगे।
ये साफ था की पहले ग्रूप में ओसामा नहीं होगा।
डाल्टन ने अपने टीम के तीन लोगों को उन तीन दर्रो पे लगाया और जो एक्सप्लोसिव था वो चार कैन्स में था , उसे फिट किया।
ये तय हुआ था की जो दर्रा बीच का था , और जिससे ओसामा के जाने के चांसेज ज्यादा थे , वहां दो एक्सप्लोसिव्स लगाये जाएंगे। एक वॉचर पोस्ट नाइट विजन है पावर टेलिस्कोपिक ग्लासेज के साथ थी जो करीब एक मिल से उन लोगो पे नजर रखती और जैसे ही वो नजर आ जाते , एक्सप्लोसिव्स ट्रिगर करने के वो इंडिकेशन दे देता।
एक्सप्लोसिव इस तरह सेट था की ट्रिगर करने के तीन मिनट बाद वो एक्सप्लोड होता और तब तक वो लोग दर्रे से दूर अफगानिस्तान की दिशा में आ जाते।
एस्प्लोसिव उन रैवाइन्स की कटिंग में सेट थे और आस पास की छोटी मोटी पहाड़ियों के पत्थर गिर के रास्ता ब्लाक कर देते। पहाड़ों में अगर एक बार पत्थर गिरना शुरू हो जाए तो एक के बाद एक पत्थर गिरते रहते हैं , और एस्केप करने वाल ग्रुप का रास्ता बाद हो जाता।
और ये एम्बुश के लिए आइडियल सिचुएशन होती।
वो तीन लोग जो एक्सप्लोसिव के साथ थे , वो सामने से लाइट फायर आर्म्स से पहले खच्चर पे फायर करते जिससे उनकी मोबिलिटी अफेक्ट होती।
डाल्टन और उस के साथ की टीम पीछे से हैवी फायर आर्म्स और ग्रेनेड्स से उनपर हमला करती।
दोनों और के क्रास फायर में , जब तक वो सम्हलते , काफी कैजुअलिटी होती।
लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
डाल्टन क्रैक डेल्टा फोर्स के साथ वेट कर रहा था , लेकिन न तो वॉचर ने कोई इंडिकेशन दिया और न ही एक्सप्लोजन हुआ।
इंस्ट्रक्शन ये थे की अगर वॉचर की पोस्ट से कोई इंडिकेशन नहीं मिलेगा , तब भी फर्स्ट लाइट होते ही वो एक्सप्लोड कर देंगे , जिससे कम से कम उन का रुट ब्लाक हो जाय।
डाल्टन ने अपने टेलिस्कोप से एक कारवाँ को उन्ही रैवाइन्स से गुजरते देखा जहाँ उन्होंने एक्सप्लोसिव्स प्लांट किया था। लेकिन अब वो कुछ नहीं कर सकते थे। आगे से रास्ता नहीं ब्लाक होना पे , एम्बुश करना मुश्किल था।
डाल्टन खुद क्राल कर के वॉचर की पोस्ट के पास पहुंचा और उस की आँख फटी रह गयी।
उस की गरदन किसी तेज धार के हथियार से काटी गयी थी और उसे रिएक्ट करने का भी मौका नहीं मिला था। काम से काम चार घंटे पहले रात में ही ये काम हो चुका था , जब तेज बर्फ गिर रही थी। बाद में गिरी बर्फ से मारने वाले के पैरों के निशान ढँक गए थे।
डाल्टन और उस के साथी , रैवाइन्स की और छुपते हुए आगे बढे , और बाकी तीन की भी वही हालत थी। देर रात में किसी ने उनकी गरदन काट दी थी।
लेकिन सबसे बड़ी बात , एक्स्प्लोसिव्स के सारे कैन्स गायब थे।
और ये बात वो किसी को बता नहीं सकता था।
और वो दिन घटनाओ से भरा हुआ था।
तोरा बोरा की पहाड़ियों पे घनघोर लड़ाई शुरू हो गयी थी। और ये तय था की आज अंतिम कब्ज़ा हो जाएगा।
लेकिन डाल्टन के लिए मुश्किल था की वो ऐसी बात बिना हेड कमांड को बताये बिना नहीं रह सकता था।
लेकिन उसने एक्सप्लोसिव या ओसामा के एस्केप प्लान की बात नहीं बतायी , सिर्फ ये बताया की उसे लगा की वो लोग , रैवाइन्स से निकल सकते है , इसलिए बस चेक करने के लिए चार लोगों को वहां लगाया था।
उसने ये नहीं बताया की एम्बुश का उसका प्लान था या उसने ओसामा और उसके साथियों को उसने एस्केप करते हुए देखा।
उसके ऊपर नान सबआर्डिनेशन का, ऑपरेशनल गोल डिस्टर्ब करने का इल्जाम लगा।
शायद दूसरा वक्त होता तो उसे कोर्ट मार्शल किया जाता , लेकिन उस समय लड़ायी चल रही थी। और कुछ सोच कर उसे नान कॉम्बैट ड्यूटीज दे दी गयीं।
तोरा बोरा की लड़ाई उसी दिन खत्म हो गयी। ऊपर चढ़ने पर १८ बंकर और कुछ फुट सोल्जर्स की बॉडीज , एम्युनिशन मिले।
लड़ाई खत्म होने के बाद , डाल्टन को डी कमीशन कर दिया गया और रजिस्ट्री में , आफिस बाबू की तरह पोस्ट कर दिया गया। और अगले छ साल तक वो वही रहा।
लेकिन उसे वो सवाल सालता रहा , कौन था इस बात के पीछे की रियर एस्केप रुट नहीं बंद किया गया।
उसके साथ उसका प्लान कैसे लीक हुआ?
डेल्टा फोर्स के लोग कैसे मारे गए ?
कौन था जिम्मेदार
१३ दिसम्बर , इण्डिया
लेकिन उसे वो सवाल सालता रहा , कौन था इस बात के पीछे की रियर एस्केप रुट नहीं बंद किया गया।
उसके साथ उसका प्लान कैसे लीक हुआ?
डेल्टा फोर्स के लोग कैसे मारे गए ?
लेकिन रजिस्ट्री में पोस्ट होने का डाल्टन को फायदा हुआ।
अब सारे रिकॉर्ड्स की उसे एक्सेस हो गयी।
रिकॉर्ड्स , जो वहां नहीं थी , उन्हें भी कंप्यूटर के थ्रू वो सर्च कर सकता था।
और कुछ दिनों बाद निजाम भी बदल गया।
पहली चीज , जो उसने पकड़ी वो थी तारीखें।
तोरा बोरा की लड़ाई में दस से १६ दिसंबर तक की तारीखें महत्वपूर्ण थीं।
और अब डाल्टन को पता चला की वो तारीखें अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भी कितनी महत्वपूर्ण थीं।
१० दिसम्बर को ही , सेक्रेटरी डिफेंस , रम्सफील्ड ने जनरल हैंक्स को ईराक की लड़ाई का ब्ल्यू प्रिंट तैयार करने को बोला था। उनके अनुसार पूरी लड़ाई में ओसामा का महत्व सीमित था।
उसी के आसपास उस ने और लोकल सी आई ए यूनिट ने , रियर लाइन को रोकने के लिए फोर्सेज की मांग की थी , जिसे रम्सफील्ड ने ठुकरा दिया था।
और ये बात सारे रिकॉर्ड्स से अब साफ थी , की अगर उस समय ओसामा पकड़ लिया जाता या मार दिया जाता तो ९/११ की लड़ाई का एक लॉजिकल अंत हो जाता , और , फिर और देशो पर हमले की बात नहीं उठती।
१३ दिसंबर को एक बड़ा आतंकवादी हमला , भारत की पार्लियामेंट पे हुआ।
यही वो तारीख थी जब तोरा बोरा की पहाड़ियों पे सीज फायर हो गया था। और नार्दन अलायन्स की फोर्सेज ने ओसामा को निकलने का मौका दे दिया था।
और सीमा पर बढ़ते टेंशन का नाम ले के , अपनी पश्चिमी सीमाओं से , पाकिस्तान ने सेना हटाकर, भारत की ओर लगा ली , और ओसामा और उसके साथियों को बार्डर पार करना आसान हो गया।
१६ दिसम्बर तक पाकिस्तानी सेनाएं , काफी कुछ अफगानिस्तान की सीमा छोड़ के पाकिस्तान की और चली गयी थीं। और अलायन्स की सेना लड़ाई में लगी थीं। इस मौके का फायदा उठा के ओसामा निकल भागा।
जो डाक्यूमेंट , बातचीत की रिकार्डिंग , उसके हाथ लगी , उससे ये साफ था की उसके पीछे , मिलेट्री -इंडस्ट्रियल काम्प्लेक्स का हाथ था। और अब उसे साफ हो गया की रम्सफील्ड ने क्यों अतिरिक्त सेना , ओसामा के एस्केप को रोकने के लिए नहीं लगाई। उनके अलावा , डिक शेनी हैलीबर्टन कंपनी से जुड़े हुए थे। और ईराक की लड़ाई से उस कंपनी का सम्बद्ध साफ था।
अगर ओसामा , पकड़ा या मारा जाता तो शायद ईराक की लड़ाई नहीं हो पाती क्योंकि वार ओन टेरर का वो एक लॉजिकल कन्क्ल्यूजन होता।
डाल्टन की इन जानकारियों का लोगों की पता चल गया और उसे जॉब छोड़ना पड़ा , और उसकी जान को भी खतरा था।
वो कैरिबियन चला गया और उसने फिक्शन लिखना शूरु कर दिया।
इसी बीच निजाम बदला और २००७ में उसने फिर सेमी आफिशिएल कैपिसिटी में फिर ज्वाइन किया।
अब उसकी इस थ्योरी की सी आई ए के कुछ रोग फोर्स और आई इस आई के रोग ग्रुप में सम्बन्ध है और ये तालिबान से मिले हैं के कुछ समर्थक मिल गए।
इसी बीच गिटमो में बंद तालिबान के लोगों ने ओसामा के तोरा बोरा से एक्स्केप के बारे में जो बताया , उससे भी डाल्टन की ही थ्योरी की पुष्टि हुयी।
और इस लिए वो फिर पाकिस्तान आया , उन लिंक्स की जांच पड़ताल के लिए एक खुफिया मिशन पे.
लेकिन उसके साथ दो बातें और थीं , वो उस एक्सप्लोसिव मैटीरीअल का पता लगाना चाहता था की उसे किसने गायब किया और अब वो कहाँ है।
दूसरा , उसकी प्लानिंग कैसे फेल हुयी , और उसके डेल्टा फोर्स के साथी कैसे मारे गए।
और वही , आई इस आई का जो रोग ग्रूप था , जो तालिबान से मिला हुआ था , उन्होंने उसे पकड़ लिया।
और उस की मुलाक़ात करन से हुयी।
करन को उसने मैटीरियल के बारे में बताया।
डेल्टा फोर्स के लोग जो मारे गए थे वो रहस्य उसे पता चल गया था। जो सी आई ए का वॉचर था , वो उसी ग्रुप का था जिसे सीधे ऊपर से एस्केप को सपोर्ट करने के इंस्ट्रक्शन थे।
और उसी ने डेल्टा फोर्सेज के लोगों को मारा था। वो टीम का पार्ट था इसलिए किसी को उस के ऊपर शक नहीं हुआ। लेकिन उसके बाद तालिबान के लोगों ने उसे मार दिया।
उन्हें मैटेरियल के इम्पोर्टेंस के बारे में भी पता चल गया था।
करन , डाल्टन के बारे में सोच भी रहा था , और उसे कांटैक्ट करने की कोशिश भी कर रहा था।
चार लोगों को फोन करने के बाद एक एस एम एस आया , जिसमे एक सिक्योर नंबर था , और उसे करन ने अपना नंबर दिया।
पांच मिनट में डाल्टन फोन पे था।
करन ने उन कंटेनर बाम्ब्स के फोटोग्राफ , स्पेक्ट्रोग्राफी और बाकी डिटेल्स उस के बातये नंबर पे तुरंत मेल कर दिए।
कुछ देर में उसका फिर फोन आया।
"हाँ ये वही एक्सप्लोसिव मैटेरियल है और अब उसे डिफ्यूज नहीं किया जा सकता , लेकिन आप उसे रिलोकेट कर सकते हो। और वो भी एक घंटे के अंदर , और बहुत प्रिकॉशन के साथ। "
करन के बिना पूछे , डाल्टन से सारे आपरेशनल डिटेल बता दिए और फिर सिर्फ एक सवाल पुछा और एक बात बताई।
" कंटेनर के बारे में पक्की इन्फो कहाँ से मिली ""
करन ने सीमा पार कमांड कंट्रोल सेंटर में सेंध लगाने से , उसके पेरीफेरल कंट्रोल रूम की बात बताई , और ये भी बोला की इस आपरेशन के डिटेल्स अबोटाबाद में थे। "
डाल्टन ने गहरी सांस ली और बोला ,
" इसका मतलब , ये आपरेशन कश्मीर से जुड़े ग्रुप्स का नहीं है , बल्कि सीधे अल कायदा का है। वो मैटीरियल किसी और को नहीं देते। अब अल कायदा , आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। और हाँ अबोटाबाद , अब ये नाम इम्पोरटेंट हो गया। एक बात और। इस इंफॉमर्ेंशन के लिए अमेरिकन गवर्मेंट हमेशा आभारी रहेगी। अब तुम्हे वो इन्फो मिलेंगी जो मिलाना लगभग इम्पॉसिबल था।
डाल्टन ने फोन रखा की , रीत का मेसेज आ गया।
"सब मैरीन निकल गयी है , दस से पन्दरह मिनट में पहुँच जायेगी। "
करन ने हल ढूंढ लिया था और अब उसका इरादा पक्का था।
भागो नहीं , लड़ो।
और कोई चारा भी नहीं था। लड़ने के सिवाय.
उसने सारे टर्मिनल आपरेटर्स , क्रेन आपरेटर्स , सिक्योरिटी एजेंसीज के लोगों को बुलाया। बहुत से लोग बचे भी नहें थे।
और उन्हें समझाना शुरू किया।
सामने दीवाल पर लगी घड़ी की सूइयां तेज रफतार से दौड़ रही थी , और करन की निगाह बार बार वहीँ जा चिपकती थी।
सिर्फ डेढ़ घंटे का समय था , पोर्ट को बचाने और पूर्ण विनाश के बीच में।
और यह सिर्फ एक पोर्ट नहीं था। भारत का आयात निर्यात , ऊर्जा सुरक्षा का मुद्दा था। और लम्बे समय के लिए इंफ्रा स्ट्रक्चर के समाप्त होने का खतरा था , जो आर्थिक विकास पर बुरा असर डालता।
पहले तो उसने दो बार्ज और टग बोट्स लाने के लिए बोला।
उसके सामने सी सी टीवी के कैमरे उन चारो कंटेनर बॉम्ब को दिखा रहे थे।
और फिर तीनो आपरेटर्स के बेस्ट क्रेन आपरेटर्स से बात की।
सबसे पहले गेटवे टर्मिनल के दो कंटेनर को हैंडल करने का फैसला किया गया।
रेल माउंटेड गैन्ट्री क्रेन ( आर एम जी सी ) का इस्तेमाल किया गया। ये पोस्ट पनामेक्स क्रेन , ४,००० टन तक उठा सकती थी , इसलिए वजन की कोई समस्या नहीं थी।
समस्या थी , उसे सिर्फ ऊपर से पकड़ के उठाना था और टिल्ट १० डिग्री से ज्यादा नहीं होना था।
डाल्टन से जो उसकी बात हुयी थी , और उसके अपने आबजरवशन के आधार पे उसने देखा था की मोशन सेंसर साइड्स में थे , ऊपर और नीचे नहीं।
इसलिए उन बाम्ब्स की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस , ऊपर और नीचे के मूवमेंट को एसेस नहीं कर पायेगा।
जेटी के पास तक की दूरी , आर एम जी सी क्रेन ने पूरी की , और फिर रीच स्टैकर ने उसे उठाया।
ये आपरेशन का सबसे सेंसिटिव हिस्सा था।
करन कंट्रोल रूम से देख रहा था। उसका कलेजा मुंह को आ रहा था।
सेफ लिमिट १० डिग्री थी ,लेकिन उसने क्रेन आपरेटर को ५ डिग्री टिल्ट मैक्सिमम बोल रखा था।
और वो कंटेनर बार्ज पर रख दिया गया।
और सबने चैन की सांस ली।
और उसी तरह रिफर यार्ड में रखा कंटेनर भो बार्ज पर आ गया।
अब ,मामला उन दोनों कंटेनर का था जो लिक्विड कार्गो जेटी के पास थे , और जहाँ पेट्रोलियम से लदा वी एल सी सी ( वेरी लार्ज क्रूड कैरियर ) शिप खड़ा था , और पास में ही पेट्रोलियम स्टोरेज भी था।
उस पेट्रोलियम शिप को तुरंत जेटी से जाने के लिए बोल दिया गया था।
करन ने तय किया की आपरेशन वो खुद देखेगा।
और जब वो वहां पहुंचा तो उसकी जान सूख गयी।
पेट्रोलियम शिप अभी भी जेटी में खड़ा था।
उसने शिप के कैप्टेन को बुलवाया।
शिप का इंजन भी अभी स्टार्ट नहीं हुआ था।
और कैप्टेन ने उसे बताया की शिप अभी नहीं जा सकता ,क्योंकि , जो लोग पायलेटेज करते हैं , वो सारे पोर्ट छोड़ के चलेगये हैं।
वो खुद बहुत कोशिश कर रहा है , लेकिन पोर्ट एडमिन का काम पायलेट प्रोवाइड करना है और उन्होंने असमर्थता जाहिर की ही।
एन एस आई सी टी के सी ओ ओ करन के साथ ही थे , और उन्होंने सर हिलाकर हामी भरी।
और करन की जान सूख गयी।
उसने सोचा था की एक बार शिप हट गया तो बड़ा खतरा टल जायेगा।
ये पूरा शिप ही एक बड़े पेट्रोलियम बॉम्ब में तब्दील होना था।
आर्टिफिसयल इंटेलिजेंस से लैस नैनो रोबोस सबसे पहले इस पेट्रोलियम शिप को 'स्मेल'करते , और फिर कंटेनर बॉम्ब अगर दोचार किलोमीटर दूर भी हो जाता तो कोई फायदा नहीं था।
इतनी दूरी तक उनकी पहुँच होती ही।
और एक बार वो बॉम्ब शिप पे एक्सप्लोड तो इतने हाई प्रेशर पे भरा पेट्रोल एक्सप्लोड करता और उसका असर स्टोरेज टैंकस तक पहुंचता।
उसकी सारी प्लानिंग फेल होती नजर रही थी।
उसने सोचा था की कंटेनर को बार्ज पे लाद के टग बोट्स की मदद से जेटी के बाहर कर देगा और उसे जहाँ तक हो सकेगा , समुद्र में दूर भेजने की कोशिश करेगा .
लेकिन एक बार्जेज की स्पीड बहुत कम होती है।
दूसरे लहरें भी इस समय तट की ओर थीं , जो उसकी स्पीड कर कम करती , और तीसरे एक्सप्लोजन के समय के कमसे कम १५ -२० मिनट पहले , उसे बार्ज आपरेटर को वहां से हटाना होता।
उसके अनुसार कंटेनर , करीब ५ माइल पोर्ट से दूर होते , एक्सप्लोजन के समय।
लेकिन अब पेट्रोलियम शिप के न हटने से वो सेफ नहीं था ,
एक्सप्लोजन के समय आइडीयली उसे कम से कम 10-12 माइल दूर होना चाहिए , और वो किसी हालत में नहीं सकता था।
करन उधेड़बुन में लगा था।
तब तक दोनों कंटेनर , दूसरे बार्ज पे लोड हो गए।
आगे क्या करे , करन की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
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फागुन के दिन चार--128
स्पेशल एक्सप्लोसिव
उसी दिन उस की बात डेल्टा फोर्सेज के हेडक्वारटर्स से हुयी और उसने अपनी सारी शंका , आशंका बतायी।
पर कुछ ख़ास पॉजिटिव रिस्पांस नहीं मिला। हाँ उस के एक साथी ने एक बात जरूर बतायी की एक्सप्लोसिका कंपनी ने , एक एक्सप्लोसिव डेवलप किया है और जिसका वो एक इनफॉर्मल ट्रायल और ओपिनियन चाहते हैं। हाँ बस एक बात का ध्यान रखना होगा की ये एकदम पर्सनल लेवल पे है और पेंटागन का उसमें कोई भी इन्वॉल्वमेंट नहीं होना चाहिए।
दूसरे किसी भी हालत में ये एक्सप्लोसिव दुश्मन के हाथ नहीं लगना चाहिए।
डाल्टन के मन में एक आशा की किरण जागी। उसे एक प्लान बनता हुआ दिखाई दिया , उसने जब सुना की एक्सप्लोसिव्स चट्टानों तोड़ने में सक्षम हैऔर अब तक अब के किसी भी एक्सप्लोसिव्स से ४० गुना ज्यादा असरदार है।
उसने तुरंत हाँ कर दी।
उसे ये बताया गया की आज ही एक्सप्लोसिव का डिटेल उसे मेल कर दिया जाएगा। और अगले ४८ घण्टे में वो एक्सप्लोसिव्स बाकी सप्लाइज के साथ उसे मिल जाएगा।
और जब मेल आया तो उसका दिमाग चकरा गया।
नैनो रोबोटिक्स , आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या नहीं था इस एक्सप्लोसिव में।
नॉर्मली , एक्सप्लोसिव की सबसे बड़ी बात होती है ,बैंग बैंग। वो एक बार एक्सप्लोड होता है और सारा असर उसी की स्ट्रेंथ पर डिपेंड करता है , शाकवेव्स , शार्पनेल या इन्सेन्डियरी मैटेरियल का इम्पैक्ट उसी पर निर्भर करती है। अगर उस में मल्टिपल वेव्स जेनरेट हों और जो स्ट्रक्चर वीक हों उनपर बार बार आघात करें तो उसका असर और प्रभावी होगा।
इस एक्सप्लोसिव में ये और उसके अलावा और भी कई ख़ास बातें थीं।
ये लेयर्ड एक्सप्लोसिव था। मल्टी लेयर्ड , इसमें सात लेयर थी यानी सात बार ये ये शाक वेव्स जेनरेट करता।
लेकिन इससे भी ज्यादा ख़ास बात थी , नैनो रोबोटिक्स का इस्तेमाल।
ये नैनो रोबो सुपर सानिक स्पीड से फ्लाई करते. इनके अंदर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस थी , जिससे टारगेट प्री प्रोग्राम्ड हो सकते थे और ये रोबो अपने टारगेट को पहचान कर उन पर ज़ीरो इन कर सकते थे।
और सबसे बड़ी बात ये की फिर ये बाकी नैनो रोबो को मेसेज देते जिनमें एक्सप्लोसिव्स लोड होते और वो टारगेट पे आके एक्सप्लोड होते। इस तरह कुछ माइक्रो सेकेंड्स में ४-५ किलोमीटर की परिधि में जो भी टारगेट होते वहां पर भी एक्सप्लोसिव्स पहुँच जाते और मेन एक्सप्लोजन के साथ ये भी एक्सप्लोजन करते।
लेकिन इनके एक्सप्लोजिव दो तरह के होते , एक तो ट्रेडिशनल जो एक्सप्लोड करते और इनसेंडियरी ऐक्शन करते। और दूसरे वो , जो मेटा मैटीरीअल से लैस होते और जिस मैटीरीअल पे अटैक करते उसके , मॉलिक्यूलर बांड को तोड़ देते , जिससे स्ट्रांग से स्ट्रांग मैटीरीयल की जोड़ने की शक्ति कमजोर पड़ जाती और वो टुकड़े टुकड़े हो जाता।
इस एक्सप्लोसिव में जो मेटा मैटेरियल था , वो आदमियों से ज्यादा प्रॉपर्टी और मैटीरीअल को नुक्सान पहुंचाता।
लेकिन इसको और प्रभावी बनाने के लिए मेटा मैटीरियल नैनो रोबोटिक्स के साथ कन्वेंशल टेक्नोलॉजी के मैटीरीअल और एक्सप्लोसिव का भी इस्तेमाल हुआ था , वही जिसका प्रयोग , जी बी यु -43 /बी , एम ओ ए बी में किया जाता है , और ये उसकी संहारक ताकत को और बढ़ा देता।
लेकिन इसमें सबसे बड़ी बात थी नैनो रोबोटिक्स का इस्तेमाल डिटोनेटर और ट्रिगर में।
अगर एक बार उसे एक्सप्लोजन की कमांड कम्युनिकेट हो गयी तो हजारों नैनो रोबोज अपने आप एक्टिवेट हो जाते और नियत समय पर वो एक्स्प्लोड करते , और साथ आर्टिफिसयल इंटेलिजेंस की मदद से वो डिफ्यूज करने के किसी भी कोशिश को पहचान लेते और एक्सप्लोजन ट्रिगर कर देते।
अगले दिन वो एक्सप्लोसिव्स आ गए ,चार कंटेनर में , और उसने अपना प्लान बना लिया।
ग्रेट एस्केप , भागा रे भागा
अगले दिन वो एक्सप्लोसिव्स आ गए ,चार कंटेनर में , और उसने अपना प्लान बना लिया।
वो दिन बहुत कन्फ्यूजिंग थे।
१३ दिसंबर को नार्दर्न अलायन्स ने सीज फायर घोषित कर रखा था। उनका कहना था की वो तालिबान को सरेंडर के लिए टाइम देना चाहते हैं।
सिग्नल कोर ने ओसामा के कई मेसेज इन्टर सेप्ट किये लेकिन उसमें उसकी लोकेशन अलग अलग थी और तोरा बोरा के उस हिस्से से थी , जहाँ से रेगुलर फायरिंग हो रही थी। उन का यह मानना था , की ओसामा अपने सिपाहियों को मोटिवेट कर रहा है , और उनके साथ है। लेकिन सीज फायर होने के कारण वो बॉम्बिंग नहीं कर पा रहे हैं।
लेकिन डाल्टन के पास जो सूचना थी वो उसके ठीक उलटी थी।
सिग्नल इंटेलिजेंस के कुछ लोगों ने उसे बताया की दाल में कुछ काला है बल्कि बहुत काला है. उसके मेसेज प्री रिकार्डेड लग रहे हैं। और ये पुराने मेसेज के स्प्लाइसेज को जोड़ के बनाये गए हैं।
जो म्यूल , तालिबान को सामान सप्लाई करते थे , और उसमे से एक दो को उसने अपना इंफॉर्मेंट बना लिया था , उनकी सूचना भी यही थी की वो और उसके काफी साथी , तोरा बोरा माउंटेन के पूर्वी हिस्से में पहुंच गए है , और सिरफ कुछ लड़ाके उन्होंने पश्चिमी हिस्से में छोड़ दिए हैं।
इसका मतलब ये था की अब वो किसी भी समय एस्केप कर सकते हैं।
डालटन ने ये इन्फो , कमांड सेंटर को बतायी , लेकिन उलटे उसे डांट पड़ी की उसे जो इंस्ट्रक्शन है उसके मुताबिक़ काम करे।
अब डाल्टन ने अपने प्लान पर काम करना शुरू किया।
उसने शिनवारी ट्राइब जो ईस्टर्न अफगानिस्तान और वेस्टर्न पाकिस्तान में खैबर दर्रे के आस पास रहते थे , अफरीदी और मुलागोरी ट्राइब में अपनी पैठ बना ली थी।
ये वो लोग थे जो खैबर दर्रे के आस पास के इलाके को सैकड़ों साल से अपने कब्जे में रखे थे और उनकी इज्जाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था। और अगर ओसामा और उसके साथियों को उस इलाके से निकलना होगा , और ये पता चल गया था की तालिबान के लोग वहां पर स्काउटिंग कर रहे थे।
१४ दिसंबर की शाम से ही पाकिस्तानी फौजें , पूर्वी सीमा से हटने लगी और १५ दिसम्बर की शाम तक जलालाबाद और खैबर दर्रे के पास का इलाका एकदम खाली सा हो गया। और उसी के साथ नार्दर्न अलायन्स ने सीज फायर खत्म कर के हमला शुरू कर दिया।
१५ दिसम्बर की लड़ाई से अंदाज लग रहा था की एकाध दिन में तोरा बोरा की पहाड़ियों पर से तालिबानी कब्जा खत्म होने वाला है.
लेकिन असली कहानी तो डाल्टन को मालूम थी , की ज्यादातर अल कायदा से जुड़े लोग केव्स छोड़ चुके हैं। वो कभी भी पाकिस्तान में घुस सकते हैं।
और उस ने अपना अलग प्लान कर लिया। उस एक्सप्लोसिव मैटिरयल की मदद से।
ये साफ था की वो लोग खैबर दर्रे से नहीं जाएंगे , बल्कि अगल बगल के रैवाइन्स में बने तीन दर्रों में से किसी एक का या तीनो का इस्तेमाल करेंगे। दो दर्रों पे अफरीदी ट्राइब का कब्जा था और एक पर शिनवारी ट्राइब का। दोनों से उसने कम्युनिकेशन चॅनेल ओपन कर रखे थे।
और उस को पक्की खबर मिल गयी थी की १६ दिसंबर को फर्स्ट लाइट पे वो लोग दर्रा पार करेंगे।
ये साफ था की पहले ग्रूप में ओसामा नहीं होगा।
डाल्टन ने अपने टीम के तीन लोगों को उन तीन दर्रो पे लगाया और जो एक्सप्लोसिव था वो चार कैन्स में था , उसे फिट किया।
ये तय हुआ था की जो दर्रा बीच का था , और जिससे ओसामा के जाने के चांसेज ज्यादा थे , वहां दो एक्सप्लोसिव्स लगाये जाएंगे। एक वॉचर पोस्ट नाइट विजन है पावर टेलिस्कोपिक ग्लासेज के साथ थी जो करीब एक मिल से उन लोगो पे नजर रखती और जैसे ही वो नजर आ जाते , एक्सप्लोसिव्स ट्रिगर करने के वो इंडिकेशन दे देता।
एक्सप्लोसिव इस तरह सेट था की ट्रिगर करने के तीन मिनट बाद वो एक्सप्लोड होता और तब तक वो लोग दर्रे से दूर अफगानिस्तान की दिशा में आ जाते।
एस्प्लोसिव उन रैवाइन्स की कटिंग में सेट थे और आस पास की छोटी मोटी पहाड़ियों के पत्थर गिर के रास्ता ब्लाक कर देते। पहाड़ों में अगर एक बार पत्थर गिरना शुरू हो जाए तो एक के बाद एक पत्थर गिरते रहते हैं , और एस्केप करने वाल ग्रुप का रास्ता बाद हो जाता।
और ये एम्बुश के लिए आइडियल सिचुएशन होती।
वो तीन लोग जो एक्सप्लोसिव के साथ थे , वो सामने से लाइट फायर आर्म्स से पहले खच्चर पे फायर करते जिससे उनकी मोबिलिटी अफेक्ट होती।
डाल्टन और उस के साथ की टीम पीछे से हैवी फायर आर्म्स और ग्रेनेड्स से उनपर हमला करती।
दोनों और के क्रास फायर में , जब तक वो सम्हलते , काफी कैजुअलिटी होती।
लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
डाल्टन क्रैक डेल्टा फोर्स के साथ वेट कर रहा था , लेकिन न तो वॉचर ने कोई इंडिकेशन दिया और न ही एक्सप्लोजन हुआ।
इंस्ट्रक्शन ये थे की अगर वॉचर की पोस्ट से कोई इंडिकेशन नहीं मिलेगा , तब भी फर्स्ट लाइट होते ही वो एक्सप्लोड कर देंगे , जिससे कम से कम उन का रुट ब्लाक हो जाय।
डाल्टन ने अपने टेलिस्कोप से एक कारवाँ को उन्ही रैवाइन्स से गुजरते देखा जहाँ उन्होंने एक्सप्लोसिव्स प्लांट किया था। लेकिन अब वो कुछ नहीं कर सकते थे। आगे से रास्ता नहीं ब्लाक होना पे , एम्बुश करना मुश्किल था।
डाल्टन खुद क्राल कर के वॉचर की पोस्ट के पास पहुंचा और उस की आँख फटी रह गयी।
उस की गरदन किसी तेज धार के हथियार से काटी गयी थी और उसे रिएक्ट करने का भी मौका नहीं मिला था। काम से काम चार घंटे पहले रात में ही ये काम हो चुका था , जब तेज बर्फ गिर रही थी। बाद में गिरी बर्फ से मारने वाले के पैरों के निशान ढँक गए थे।
डाल्टन और उस के साथी , रैवाइन्स की और छुपते हुए आगे बढे , और बाकी तीन की भी वही हालत थी। देर रात में किसी ने उनकी गरदन काट दी थी।
लेकिन सबसे बड़ी बात , एक्स्प्लोसिव्स के सारे कैन्स गायब थे।
और ये बात वो किसी को बता नहीं सकता था।
और वो दिन घटनाओ से भरा हुआ था।
तोरा बोरा की पहाड़ियों पे घनघोर लड़ाई शुरू हो गयी थी। और ये तय था की आज अंतिम कब्ज़ा हो जाएगा।
लेकिन डाल्टन के लिए मुश्किल था की वो ऐसी बात बिना हेड कमांड को बताये बिना नहीं रह सकता था।
लेकिन उसने एक्सप्लोसिव या ओसामा के एस्केप प्लान की बात नहीं बतायी , सिर्फ ये बताया की उसे लगा की वो लोग , रैवाइन्स से निकल सकते है , इसलिए बस चेक करने के लिए चार लोगों को वहां लगाया था।
उसने ये नहीं बताया की एम्बुश का उसका प्लान था या उसने ओसामा और उसके साथियों को उसने एस्केप करते हुए देखा।
उसके ऊपर नान सबआर्डिनेशन का, ऑपरेशनल गोल डिस्टर्ब करने का इल्जाम लगा।
शायद दूसरा वक्त होता तो उसे कोर्ट मार्शल किया जाता , लेकिन उस समय लड़ायी चल रही थी। और कुछ सोच कर उसे नान कॉम्बैट ड्यूटीज दे दी गयीं।
तोरा बोरा की लड़ाई उसी दिन खत्म हो गयी। ऊपर चढ़ने पर १८ बंकर और कुछ फुट सोल्जर्स की बॉडीज , एम्युनिशन मिले।
लड़ाई खत्म होने के बाद , डाल्टन को डी कमीशन कर दिया गया और रजिस्ट्री में , आफिस बाबू की तरह पोस्ट कर दिया गया। और अगले छ साल तक वो वही रहा।
लेकिन उसे वो सवाल सालता रहा , कौन था इस बात के पीछे की रियर एस्केप रुट नहीं बंद किया गया।
उसके साथ उसका प्लान कैसे लीक हुआ?
डेल्टा फोर्स के लोग कैसे मारे गए ?
कौन था जिम्मेदार
१३ दिसम्बर , इण्डिया
लेकिन उसे वो सवाल सालता रहा , कौन था इस बात के पीछे की रियर एस्केप रुट नहीं बंद किया गया।
उसके साथ उसका प्लान कैसे लीक हुआ?
डेल्टा फोर्स के लोग कैसे मारे गए ?
लेकिन रजिस्ट्री में पोस्ट होने का डाल्टन को फायदा हुआ।
अब सारे रिकॉर्ड्स की उसे एक्सेस हो गयी।
रिकॉर्ड्स , जो वहां नहीं थी , उन्हें भी कंप्यूटर के थ्रू वो सर्च कर सकता था।
और कुछ दिनों बाद निजाम भी बदल गया।
पहली चीज , जो उसने पकड़ी वो थी तारीखें।
तोरा बोरा की लड़ाई में दस से १६ दिसंबर तक की तारीखें महत्वपूर्ण थीं।
और अब डाल्टन को पता चला की वो तारीखें अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भी कितनी महत्वपूर्ण थीं।
१० दिसम्बर को ही , सेक्रेटरी डिफेंस , रम्सफील्ड ने जनरल हैंक्स को ईराक की लड़ाई का ब्ल्यू प्रिंट तैयार करने को बोला था। उनके अनुसार पूरी लड़ाई में ओसामा का महत्व सीमित था।
उसी के आसपास उस ने और लोकल सी आई ए यूनिट ने , रियर लाइन को रोकने के लिए फोर्सेज की मांग की थी , जिसे रम्सफील्ड ने ठुकरा दिया था।
और ये बात सारे रिकॉर्ड्स से अब साफ थी , की अगर उस समय ओसामा पकड़ लिया जाता या मार दिया जाता तो ९/११ की लड़ाई का एक लॉजिकल अंत हो जाता , और , फिर और देशो पर हमले की बात नहीं उठती।
१३ दिसंबर को एक बड़ा आतंकवादी हमला , भारत की पार्लियामेंट पे हुआ।
यही वो तारीख थी जब तोरा बोरा की पहाड़ियों पे सीज फायर हो गया था। और नार्दन अलायन्स की फोर्सेज ने ओसामा को निकलने का मौका दे दिया था।
और सीमा पर बढ़ते टेंशन का नाम ले के , अपनी पश्चिमी सीमाओं से , पाकिस्तान ने सेना हटाकर, भारत की ओर लगा ली , और ओसामा और उसके साथियों को बार्डर पार करना आसान हो गया।
१६ दिसम्बर तक पाकिस्तानी सेनाएं , काफी कुछ अफगानिस्तान की सीमा छोड़ के पाकिस्तान की और चली गयी थीं। और अलायन्स की सेना लड़ाई में लगी थीं। इस मौके का फायदा उठा के ओसामा निकल भागा।
जो डाक्यूमेंट , बातचीत की रिकार्डिंग , उसके हाथ लगी , उससे ये साफ था की उसके पीछे , मिलेट्री -इंडस्ट्रियल काम्प्लेक्स का हाथ था। और अब उसे साफ हो गया की रम्सफील्ड ने क्यों अतिरिक्त सेना , ओसामा के एस्केप को रोकने के लिए नहीं लगाई। उनके अलावा , डिक शेनी हैलीबर्टन कंपनी से जुड़े हुए थे। और ईराक की लड़ाई से उस कंपनी का सम्बद्ध साफ था।
अगर ओसामा , पकड़ा या मारा जाता तो शायद ईराक की लड़ाई नहीं हो पाती क्योंकि वार ओन टेरर का वो एक लॉजिकल कन्क्ल्यूजन होता।
डाल्टन की इन जानकारियों का लोगों की पता चल गया और उसे जॉब छोड़ना पड़ा , और उसकी जान को भी खतरा था।
वो कैरिबियन चला गया और उसने फिक्शन लिखना शूरु कर दिया।
इसी बीच निजाम बदला और २००७ में उसने फिर सेमी आफिशिएल कैपिसिटी में फिर ज्वाइन किया।
अब उसकी इस थ्योरी की सी आई ए के कुछ रोग फोर्स और आई इस आई के रोग ग्रुप में सम्बन्ध है और ये तालिबान से मिले हैं के कुछ समर्थक मिल गए।
इसी बीच गिटमो में बंद तालिबान के लोगों ने ओसामा के तोरा बोरा से एक्स्केप के बारे में जो बताया , उससे भी डाल्टन की ही थ्योरी की पुष्टि हुयी।
और इस लिए वो फिर पाकिस्तान आया , उन लिंक्स की जांच पड़ताल के लिए एक खुफिया मिशन पे.
लेकिन उसके साथ दो बातें और थीं , वो उस एक्सप्लोसिव मैटीरीअल का पता लगाना चाहता था की उसे किसने गायब किया और अब वो कहाँ है।
दूसरा , उसकी प्लानिंग कैसे फेल हुयी , और उसके डेल्टा फोर्स के साथी कैसे मारे गए।
और वही , आई इस आई का जो रोग ग्रूप था , जो तालिबान से मिला हुआ था , उन्होंने उसे पकड़ लिया।
और उस की मुलाक़ात करन से हुयी।
करन को उसने मैटीरियल के बारे में बताया।
डेल्टा फोर्स के लोग जो मारे गए थे वो रहस्य उसे पता चल गया था। जो सी आई ए का वॉचर था , वो उसी ग्रुप का था जिसे सीधे ऊपर से एस्केप को सपोर्ट करने के इंस्ट्रक्शन थे।
और उसी ने डेल्टा फोर्सेज के लोगों को मारा था। वो टीम का पार्ट था इसलिए किसी को उस के ऊपर शक नहीं हुआ। लेकिन उसके बाद तालिबान के लोगों ने उसे मार दिया।
उन्हें मैटेरियल के इम्पोर्टेंस के बारे में भी पता चल गया था।
करन , डाल्टन के बारे में सोच भी रहा था , और उसे कांटैक्ट करने की कोशिश भी कर रहा था।
चार लोगों को फोन करने के बाद एक एस एम एस आया , जिसमे एक सिक्योर नंबर था , और उसे करन ने अपना नंबर दिया।
पांच मिनट में डाल्टन फोन पे था।
करन ने उन कंटेनर बाम्ब्स के फोटोग्राफ , स्पेक्ट्रोग्राफी और बाकी डिटेल्स उस के बातये नंबर पे तुरंत मेल कर दिए।
कुछ देर में उसका फिर फोन आया।
"हाँ ये वही एक्सप्लोसिव मैटेरियल है और अब उसे डिफ्यूज नहीं किया जा सकता , लेकिन आप उसे रिलोकेट कर सकते हो। और वो भी एक घंटे के अंदर , और बहुत प्रिकॉशन के साथ। "
करन के बिना पूछे , डाल्टन से सारे आपरेशनल डिटेल बता दिए और फिर सिर्फ एक सवाल पुछा और एक बात बताई।
" कंटेनर के बारे में पक्की इन्फो कहाँ से मिली ""
करन ने सीमा पार कमांड कंट्रोल सेंटर में सेंध लगाने से , उसके पेरीफेरल कंट्रोल रूम की बात बताई , और ये भी बोला की इस आपरेशन के डिटेल्स अबोटाबाद में थे। "
डाल्टन ने गहरी सांस ली और बोला ,
" इसका मतलब , ये आपरेशन कश्मीर से जुड़े ग्रुप्स का नहीं है , बल्कि सीधे अल कायदा का है। वो मैटीरियल किसी और को नहीं देते। अब अल कायदा , आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। और हाँ अबोटाबाद , अब ये नाम इम्पोरटेंट हो गया। एक बात और। इस इंफॉमर्ेंशन के लिए अमेरिकन गवर्मेंट हमेशा आभारी रहेगी। अब तुम्हे वो इन्फो मिलेंगी जो मिलाना लगभग इम्पॉसिबल था।
डाल्टन ने फोन रखा की , रीत का मेसेज आ गया।
"सब मैरीन निकल गयी है , दस से पन्दरह मिनट में पहुँच जायेगी। "
करन ने हल ढूंढ लिया था और अब उसका इरादा पक्का था।
भागो नहीं , लड़ो।
और कोई चारा भी नहीं था। लड़ने के सिवाय.
उसने सारे टर्मिनल आपरेटर्स , क्रेन आपरेटर्स , सिक्योरिटी एजेंसीज के लोगों को बुलाया। बहुत से लोग बचे भी नहें थे।
और उन्हें समझाना शुरू किया।
सामने दीवाल पर लगी घड़ी की सूइयां तेज रफतार से दौड़ रही थी , और करन की निगाह बार बार वहीँ जा चिपकती थी।
सिर्फ डेढ़ घंटे का समय था , पोर्ट को बचाने और पूर्ण विनाश के बीच में।
और यह सिर्फ एक पोर्ट नहीं था। भारत का आयात निर्यात , ऊर्जा सुरक्षा का मुद्दा था। और लम्बे समय के लिए इंफ्रा स्ट्रक्चर के समाप्त होने का खतरा था , जो आर्थिक विकास पर बुरा असर डालता।
पहले तो उसने दो बार्ज और टग बोट्स लाने के लिए बोला।
उसके सामने सी सी टीवी के कैमरे उन चारो कंटेनर बॉम्ब को दिखा रहे थे।
और फिर तीनो आपरेटर्स के बेस्ट क्रेन आपरेटर्स से बात की।
सबसे पहले गेटवे टर्मिनल के दो कंटेनर को हैंडल करने का फैसला किया गया।
रेल माउंटेड गैन्ट्री क्रेन ( आर एम जी सी ) का इस्तेमाल किया गया। ये पोस्ट पनामेक्स क्रेन , ४,००० टन तक उठा सकती थी , इसलिए वजन की कोई समस्या नहीं थी।
समस्या थी , उसे सिर्फ ऊपर से पकड़ के उठाना था और टिल्ट १० डिग्री से ज्यादा नहीं होना था।
डाल्टन से जो उसकी बात हुयी थी , और उसके अपने आबजरवशन के आधार पे उसने देखा था की मोशन सेंसर साइड्स में थे , ऊपर और नीचे नहीं।
इसलिए उन बाम्ब्स की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस , ऊपर और नीचे के मूवमेंट को एसेस नहीं कर पायेगा।
जेटी के पास तक की दूरी , आर एम जी सी क्रेन ने पूरी की , और फिर रीच स्टैकर ने उसे उठाया।
ये आपरेशन का सबसे सेंसिटिव हिस्सा था।
करन कंट्रोल रूम से देख रहा था। उसका कलेजा मुंह को आ रहा था।
सेफ लिमिट १० डिग्री थी ,लेकिन उसने क्रेन आपरेटर को ५ डिग्री टिल्ट मैक्सिमम बोल रखा था।
और वो कंटेनर बार्ज पर रख दिया गया।
और सबने चैन की सांस ली।
और उसी तरह रिफर यार्ड में रखा कंटेनर भो बार्ज पर आ गया।
अब ,मामला उन दोनों कंटेनर का था जो लिक्विड कार्गो जेटी के पास थे , और जहाँ पेट्रोलियम से लदा वी एल सी सी ( वेरी लार्ज क्रूड कैरियर ) शिप खड़ा था , और पास में ही पेट्रोलियम स्टोरेज भी था।
उस पेट्रोलियम शिप को तुरंत जेटी से जाने के लिए बोल दिया गया था।
करन ने तय किया की आपरेशन वो खुद देखेगा।
और जब वो वहां पहुंचा तो उसकी जान सूख गयी।
पेट्रोलियम शिप अभी भी जेटी में खड़ा था।
उसने शिप के कैप्टेन को बुलवाया।
शिप का इंजन भी अभी स्टार्ट नहीं हुआ था।
और कैप्टेन ने उसे बताया की शिप अभी नहीं जा सकता ,क्योंकि , जो लोग पायलेटेज करते हैं , वो सारे पोर्ट छोड़ के चलेगये हैं।
वो खुद बहुत कोशिश कर रहा है , लेकिन पोर्ट एडमिन का काम पायलेट प्रोवाइड करना है और उन्होंने असमर्थता जाहिर की ही।
एन एस आई सी टी के सी ओ ओ करन के साथ ही थे , और उन्होंने सर हिलाकर हामी भरी।
और करन की जान सूख गयी।
उसने सोचा था की एक बार शिप हट गया तो बड़ा खतरा टल जायेगा।
ये पूरा शिप ही एक बड़े पेट्रोलियम बॉम्ब में तब्दील होना था।
आर्टिफिसयल इंटेलिजेंस से लैस नैनो रोबोस सबसे पहले इस पेट्रोलियम शिप को 'स्मेल'करते , और फिर कंटेनर बॉम्ब अगर दोचार किलोमीटर दूर भी हो जाता तो कोई फायदा नहीं था।
इतनी दूरी तक उनकी पहुँच होती ही।
और एक बार वो बॉम्ब शिप पे एक्सप्लोड तो इतने हाई प्रेशर पे भरा पेट्रोल एक्सप्लोड करता और उसका असर स्टोरेज टैंकस तक पहुंचता।
उसकी सारी प्लानिंग फेल होती नजर रही थी।
उसने सोचा था की कंटेनर को बार्ज पे लाद के टग बोट्स की मदद से जेटी के बाहर कर देगा और उसे जहाँ तक हो सकेगा , समुद्र में दूर भेजने की कोशिश करेगा .
लेकिन एक बार्जेज की स्पीड बहुत कम होती है।
दूसरे लहरें भी इस समय तट की ओर थीं , जो उसकी स्पीड कर कम करती , और तीसरे एक्सप्लोजन के समय के कमसे कम १५ -२० मिनट पहले , उसे बार्ज आपरेटर को वहां से हटाना होता।
उसके अनुसार कंटेनर , करीब ५ माइल पोर्ट से दूर होते , एक्सप्लोजन के समय।
लेकिन अब पेट्रोलियम शिप के न हटने से वो सेफ नहीं था ,
एक्सप्लोजन के समय आइडीयली उसे कम से कम 10-12 माइल दूर होना चाहिए , और वो किसी हालत में नहीं सकता था।
करन उधेड़बुन में लगा था।
तब तक दोनों कंटेनर , दूसरे बार्ज पे लोड हो गए।
आगे क्या करे , करन की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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