FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--168
सपने में रंगपंचमी
मैं भी था , गुड्डी हमेशा की तरह मेरे बगल में और दूसरी ओर गूंजा , मुझे चिकोटी काटती , पड़ोस की गुड्डी की रिश्ते में भाभी लगने वाली और भी ,
बात मुझसे की जा रही थी , लेकिन फोकस रंजी पे था।
" निक किहा जौंन एन्हे ले आया। माल ता जबरदस्त बा। और गाल केतना चिक्कन बा , एकदम कटकटौवा। "
चंदा भाभी रंजी के गोरे गुलाबी गाल सहलाते बोल रही थीं , और अचानक कचाकचा कर जोर से गाल पे एक चिकोटी उन्होंने काट ली और अड़ोस पड़ोस की औरतों से मेरी ओर इशारा करके बोली ,
" एंनकर बहिन हैं , बिन्नो क ननद। बिन्नो बोली थीं , मस्त माल भेज रही हूँ होली का तोहफा ,यहां कालिंनगंज वालों क बजार ठंडी हो गयी है एकरे मारे और यहां दालमंडी वालीन क टक्कर दीहें। "
" माल तो एकदम मस्त है , एहमें कौनो शक्क नहीं अब ता बनारस के लौंडन क चांदी हाउ। " दूसरी औरत बोली।
" अरे होली में आई हैं तनी टिका उका तो कर दो , तुम लोग एकदम बिचारी हमारी ननद के पीछे पड़ गयी हो। "
तभी दूबे भाभी भी आ गयीं और सब के साथ रंजी की खिंचाई में शामिल हो गयीं
एकदम , चंदा भाभी बोलीं , और सिन्दूर की डिबिया उन्हें गूंजा ने पास कर दी।
बिचारी रंजी , पड़ोस की एक भाभी ने उसका हाथ पीछे से पहले ही दबोच रखा था।
बहुत प्यार से रंजी की मांग में ढेर सारा सिन्दूर ले के , चंदा भाभी ने डाल दिया और आशीषा ,
" सब कर सुहागन रहो " और मतलब भी समझा दिया ,
" सब कर सुहागन मतलब , यहां के जितने लौंडे है , सब , और गुड्डी के जितने भाई लगेंगे , उसके गाँव के जित्ते मर्द होंगे , सब तुम्हारा सुहाग हैं , तो जो हक़ पती का पत्नी है पर बस वही हक़ आज से बनारस के , गुड्डी के गाँव के सारे लड़कों , मर्दों का तुम्हारे ऊपर। "
पीछे से हाथ पकड़ी भाभी बोलीं ,
" अरे बिन्नो की ननद की तो चांदी हो गयी , सबके तो एक पिया इनके तो दस , दस। एक थके तो दूसरा , नाड़ा हरदम खुला रहेगा। "
" अरे दस नहीं अनगिनत , जैसे खाने के समय रोटी नहीं गिनते , उसी तरह ई बाँटते समय मरद नहीं गिनती। एकदम सदाबर्त खोल देंगी बनारस में , जो आवे सबका भला। इनके पोखरा तालाब में जो चाहे उ डुबकी लगावे आज से , दूकान खुल गयी है। "
चंदा भाभी , रंजी के गाल पे झड़े सिन्दूर को थोड़ा और फैलातें बोली।
और अब सबने रंजी को पकड़ के कुर्सी पे बैठा दिया था , और चंदा भाभी ने गूंजा से बोला , ज़रा पानी वानी ला।
लेकिन गूंजा के जाने के पहले एक हादसा हो गया।
फागुन के दिन चार--168
सपने में रंगपंचमी
मैं भी था , गुड्डी हमेशा की तरह मेरे बगल में और दूसरी ओर गूंजा , मुझे चिकोटी काटती , पड़ोस की गुड्डी की रिश्ते में भाभी लगने वाली और भी ,
बात मुझसे की जा रही थी , लेकिन फोकस रंजी पे था।
" निक किहा जौंन एन्हे ले आया। माल ता जबरदस्त बा। और गाल केतना चिक्कन बा , एकदम कटकटौवा। "
चंदा भाभी रंजी के गोरे गुलाबी गाल सहलाते बोल रही थीं , और अचानक कचाकचा कर जोर से गाल पे एक चिकोटी उन्होंने काट ली और अड़ोस पड़ोस की औरतों से मेरी ओर इशारा करके बोली ,
" एंनकर बहिन हैं , बिन्नो क ननद। बिन्नो बोली थीं , मस्त माल भेज रही हूँ होली का तोहफा ,यहां कालिंनगंज वालों क बजार ठंडी हो गयी है एकरे मारे और यहां दालमंडी वालीन क टक्कर दीहें। "
" माल तो एकदम मस्त है , एहमें कौनो शक्क नहीं अब ता बनारस के लौंडन क चांदी हाउ। " दूसरी औरत बोली।
" अरे होली में आई हैं तनी टिका उका तो कर दो , तुम लोग एकदम बिचारी हमारी ननद के पीछे पड़ गयी हो। "
तभी दूबे भाभी भी आ गयीं और सब के साथ रंजी की खिंचाई में शामिल हो गयीं
एकदम , चंदा भाभी बोलीं , और सिन्दूर की डिबिया उन्हें गूंजा ने पास कर दी।
बिचारी रंजी , पड़ोस की एक भाभी ने उसका हाथ पीछे से पहले ही दबोच रखा था।
बहुत प्यार से रंजी की मांग में ढेर सारा सिन्दूर ले के , चंदा भाभी ने डाल दिया और आशीषा ,
" सब कर सुहागन रहो " और मतलब भी समझा दिया ,
" सब कर सुहागन मतलब , यहां के जितने लौंडे है , सब , और गुड्डी के जितने भाई लगेंगे , उसके गाँव के जित्ते मर्द होंगे , सब तुम्हारा सुहाग हैं , तो जो हक़ पती का पत्नी है पर बस वही हक़ आज से बनारस के , गुड्डी के गाँव के सारे लड़कों , मर्दों का तुम्हारे ऊपर। "
पीछे से हाथ पकड़ी भाभी बोलीं ,
" अरे बिन्नो की ननद की तो चांदी हो गयी , सबके तो एक पिया इनके तो दस , दस। एक थके तो दूसरा , नाड़ा हरदम खुला रहेगा। "
" अरे दस नहीं अनगिनत , जैसे खाने के समय रोटी नहीं गिनते , उसी तरह ई बाँटते समय मरद नहीं गिनती। एकदम सदाबर्त खोल देंगी बनारस में , जो आवे सबका भला। इनके पोखरा तालाब में जो चाहे उ डुबकी लगावे आज से , दूकान खुल गयी है। "
चंदा भाभी , रंजी के गाल पे झड़े सिन्दूर को थोड़ा और फैलातें बोली।
और अब सबने रंजी को पकड़ के कुर्सी पे बैठा दिया था , और चंदा भाभी ने गूंजा से बोला , ज़रा पानी वानी ला।
लेकिन गूंजा के जाने के पहले एक हादसा हो गया।
रंजी बनारस में ( सपने सुहाने )
और अब सबने रंजी को पकड़ के कुर्सी पे बैठा दिया था , और चंदा भाभी ने गूंजा से बोला , ज़रा पानी वानी ला।
लेकिन गूंजा के जाने के पहले एक हादसा हो गया।
रॉकी , दूबे भाभी का बड़ा सा कुत्ता , (किसी विदेशी ब्रीड का , जो गुड्डी ,रीत , गूंजा सबसे बहुत हिला हुआ था और वहां गालियां तब तक पूरी नहीं होती थी , जब तक रॉकी का नाम लगा के गाली न दी जाय , और रीत कहती भी थी , आखिर ये भी हमारे भाई की तरह है , हमारी रक्षा करता है), तेजी से दुम हिलाता हुआ आ गया और सारी औरतों , लड़कियों के बीच सीधे रंजी के पास ।
बिचारी रंजी घबड़ा के दुबकने लगी तो चंदा भाभी बोलीं , अरे हिलो मत , तुमसे दोस्ती करने आया है , एक बार पहचान लेगा तो फिर ,…
राकी थोड़े देर तक तो रंजी का पैर चाटता रहा और फिर रंजी भी उसे सहलाने लगी।
लेकिन पैर चाटते चाटते वह पिंडलियों तक फिर घुटनो तक ऊपर पहुँच गया।
रंजी अपने पैरों को सिकोड़ने लगी तो गुड्डी ने समझाया , अरे हिल मत , कुछ नहीं करेगा , हाँ कुछ बोलोगी ,हिलो डुलोगी तो पता नहीं।
बिचारी रंजी वैसे ही बैठी रही और चाटते हुए वो रंजी की जांघो तक पहुँच गया।
घबडा कर रंजी ने टाँगे खोल दीं।
और रॉकी की जैसे चांदी हो गयी ,उसने सीधे स्कर्ट के बीच मुंह डाल दिया ,
और स्कर्ट भी कौन सी बड़ी थी।
आलमोस्ट माइक्रो स्कर्ट , मुश्किल से १० -१२ इंच की।
घुटने से कम से कम डेढ़ बित्ते ऊपर और टांग फैलाने से वो और ऊपर सरक गयी थी। साथ में साइड स्पलिट भी थी।
आलमोस्ट सब कुछ दिखता है वाली हालत थी और अब राकी का मुंह सीधे भरतपुर के स्टेशन पर था।
" हिलना मत जरा सा भी वरना , " गुड्डी ,रंजी के कान में समझा रही थी।
हिम्मत थी रंजी की जो हिले लेकिन दो चार मिनट में ही रंजी के चेहरे से जो रस टपक रहा था , उससे ,… साफ साफ लग रहा था , कुछ कुछ होता है।
और रॉकी भी , ८-१० मिनट तक ,
सब औरतें मुस्करा रही थी , चिढ़ा रही थीं।
१० मिनट के बाद बहुत मुश्किल से गूंजा उसे फुसला कर पुचका कर हटा कर लेगयी ,
और उसके बाद तो सब ने रंजी की ऐसी ली ,
" बिन्नो , ये जिसकी चाट लेता है उसपे बिना चढ़े छोड़ता नहीं है। " एक भौजाई बोली तो जवाब चंदा भाभी ने दिया ,
" अरे तुम क्या समझती हो , हमारी बिन्नो को ,ई आई ही इसलिए आई हैं रंगपंचमी में सबका मन रखने के लिए और देखो कितना रस टपक रहा है , जब चटवाने में इतना मजा या तो सोचो जब हचक के ठेलेगा तो कितना मजा आएगा। और देखो , ई खुदे उसके आगे आपन जांघ खोल दीं। मन तो उनहुँ का कर रहा है , मजा लेने का। "
" बिन्नो मुट्ठी भर ऐसी मोटी गाँठ बनेगी , और घंटा भर डाल के घेररायेगा। " वही भाभी फिर बोलीं और जवाब फिर चंदा भाभी ने दिया ,
" ता का हुआ। जब खुदे जांघ खोल के चटवाय रही थी , सबके सामने तो ,चोदवाने में कौन , और हमार ननद कौनो कमजोर नहीं है देखना रॉकी का भी मन रखेंगी " लेकिन फिर अचानक वो गुड्डी के पीछे पड़ गयीं ,
" तुझे बोला था न , की अपनी छुटकी ननदिया की सील इसके मायके से इसके भाई से खुलवा के लाना , वरना यहां बेकार का सरसों का तेल का खर्च होगा। "
" अरे भाभी ,आपकी बात टालने की हमारी हिम्मत , ई तो खुदे पनिया रही थीं , अरे इनके भैया कम सैयां ज्यादा ने आगे पीछे दोनों ओर की सील खोल दी है , एहलिये मत सोचिये की नेवान रॉकी करेगा।
और सबूत के तौर पे ई सीडी है , इन लोगन क सुहागरात क पूरी कहानी , बिना सेंसर क।“
और गुड्डी ने जाने कहाँ से निकाल के सीडी चंदा भाभी के हवाले।
मेरी तो जान सूख गयी , ये सीडी , ये तो वही है जो गुड्डी ने उस रात मेरी रंजी की शूटिंग की थी , एडिट भी उस दुष्ट ने मुझी से करवाया था , साउंड इफेक्ट्स के साथ। पूरे तीन घंटे ४० मिनट , कोई क्लोज अप बचा नहीं था , न मेरा न रंजी का यहाँ तक की जब उस की फटी थी तब की चीखने की आवाज ,फ़चफ़चा के जो खून निकला था , और जब पिछवाड़े , गांड का छल्ला ,दरेरते रगड़ते अंदर गया था यहाँ तक की गुड्डी ने भी जब मंतर पढ़ते हुए मेरी सारी मायकेवालियों को लपेट लिया ,था सब कुछ तो था।
मैंने हाथ बढ़ा के उसे रोकने की कोशिश की तो गुड्डी ने आराम से उसे मुझे पकडा दिया और बोली ले लो तुम ही तो हीरो हो इस फिललम के।
और दो और निकाल ली , और आँख नचा के मुझे चिढ़ाते हुए बोली , " कोई नहीं पूरी दर्जन भर हैं। "
चंदा भाभी ने गुड्डी से कहा , हे एक गूंजा को पकड़ा दे और गूंजा से कहा
" सुन जोअपना मुन्ना है न केबल वाला ,बस उसको दे देना। बोलना आज रात को चलनी चाहिए१२ से तीन के शो में। कहा देना नयी हीरोइन आयी है मस्त माल , एकदम कटीली छमिया है बस उसी की फ़िल्म है। "
गूंजा सी डी ले के , १, २,३ हो गयी।
और जब तक मैं उसे रोकने की सोचता , वो सीढ़ी के दरवाजे पे।
' रुक , जरा उस को बोलना शुरू में और बीच में , इस माल का नंबर और बुकिंग के लिए इनके भैया का नंबर भी चला देगा। " चंदा भाभी ने और पलीता लगाया।
" दे दूंगी , मेरे पास दोनों के नंबर है। " और वह धड़धड़ाती हुयी सीढ़ी से नीचे।
इधर किसी भाभी ने जो पिलाने के लिए पानी ले रखा था , सीधे रंजी के ऊपर डाल दिया बल्कि टॉप के अंदर और दूसरी ने सूखाने के बहाने हाथ अंदर।
रंजी का जोबन मर्दन और बनारस की होली शुरू हो गयी थी।
और मैं गूंजा के पीछे , नीचे भागा।
और अब सबने रंजी को पकड़ के कुर्सी पे बैठा दिया था , और चंदा भाभी ने गूंजा से बोला , ज़रा पानी वानी ला।
लेकिन गूंजा के जाने के पहले एक हादसा हो गया।
रॉकी , दूबे भाभी का बड़ा सा कुत्ता , (किसी विदेशी ब्रीड का , जो गुड्डी ,रीत , गूंजा सबसे बहुत हिला हुआ था और वहां गालियां तब तक पूरी नहीं होती थी , जब तक रॉकी का नाम लगा के गाली न दी जाय , और रीत कहती भी थी , आखिर ये भी हमारे भाई की तरह है , हमारी रक्षा करता है), तेजी से दुम हिलाता हुआ आ गया और सारी औरतों , लड़कियों के बीच सीधे रंजी के पास ।
बिचारी रंजी घबड़ा के दुबकने लगी तो चंदा भाभी बोलीं , अरे हिलो मत , तुमसे दोस्ती करने आया है , एक बार पहचान लेगा तो फिर ,…
राकी थोड़े देर तक तो रंजी का पैर चाटता रहा और फिर रंजी भी उसे सहलाने लगी।
लेकिन पैर चाटते चाटते वह पिंडलियों तक फिर घुटनो तक ऊपर पहुँच गया।
रंजी अपने पैरों को सिकोड़ने लगी तो गुड्डी ने समझाया , अरे हिल मत , कुछ नहीं करेगा , हाँ कुछ बोलोगी ,हिलो डुलोगी तो पता नहीं।
बिचारी रंजी वैसे ही बैठी रही और चाटते हुए वो रंजी की जांघो तक पहुँच गया।
घबडा कर रंजी ने टाँगे खोल दीं।
और रॉकी की जैसे चांदी हो गयी ,उसने सीधे स्कर्ट के बीच मुंह डाल दिया ,
और स्कर्ट भी कौन सी बड़ी थी।
आलमोस्ट माइक्रो स्कर्ट , मुश्किल से १० -१२ इंच की।
घुटने से कम से कम डेढ़ बित्ते ऊपर और टांग फैलाने से वो और ऊपर सरक गयी थी। साथ में साइड स्पलिट भी थी।
आलमोस्ट सब कुछ दिखता है वाली हालत थी और अब राकी का मुंह सीधे भरतपुर के स्टेशन पर था।
" हिलना मत जरा सा भी वरना , " गुड्डी ,रंजी के कान में समझा रही थी।
हिम्मत थी रंजी की जो हिले लेकिन दो चार मिनट में ही रंजी के चेहरे से जो रस टपक रहा था , उससे ,… साफ साफ लग रहा था , कुछ कुछ होता है।
और रॉकी भी , ८-१० मिनट तक ,
सब औरतें मुस्करा रही थी , चिढ़ा रही थीं।
१० मिनट के बाद बहुत मुश्किल से गूंजा उसे फुसला कर पुचका कर हटा कर लेगयी ,
और उसके बाद तो सब ने रंजी की ऐसी ली ,
" बिन्नो , ये जिसकी चाट लेता है उसपे बिना चढ़े छोड़ता नहीं है। " एक भौजाई बोली तो जवाब चंदा भाभी ने दिया ,
" अरे तुम क्या समझती हो , हमारी बिन्नो को ,ई आई ही इसलिए आई हैं रंगपंचमी में सबका मन रखने के लिए और देखो कितना रस टपक रहा है , जब चटवाने में इतना मजा या तो सोचो जब हचक के ठेलेगा तो कितना मजा आएगा। और देखो , ई खुदे उसके आगे आपन जांघ खोल दीं। मन तो उनहुँ का कर रहा है , मजा लेने का। "
" बिन्नो मुट्ठी भर ऐसी मोटी गाँठ बनेगी , और घंटा भर डाल के घेररायेगा। " वही भाभी फिर बोलीं और जवाब फिर चंदा भाभी ने दिया ,
" ता का हुआ। जब खुदे जांघ खोल के चटवाय रही थी , सबके सामने तो ,चोदवाने में कौन , और हमार ननद कौनो कमजोर नहीं है देखना रॉकी का भी मन रखेंगी " लेकिन फिर अचानक वो गुड्डी के पीछे पड़ गयीं ,
" तुझे बोला था न , की अपनी छुटकी ननदिया की सील इसके मायके से इसके भाई से खुलवा के लाना , वरना यहां बेकार का सरसों का तेल का खर्च होगा। "
" अरे भाभी ,आपकी बात टालने की हमारी हिम्मत , ई तो खुदे पनिया रही थीं , अरे इनके भैया कम सैयां ज्यादा ने आगे पीछे दोनों ओर की सील खोल दी है , एहलिये मत सोचिये की नेवान रॉकी करेगा।
और सबूत के तौर पे ई सीडी है , इन लोगन क सुहागरात क पूरी कहानी , बिना सेंसर क।“
और गुड्डी ने जाने कहाँ से निकाल के सीडी चंदा भाभी के हवाले।
मेरी तो जान सूख गयी , ये सीडी , ये तो वही है जो गुड्डी ने उस रात मेरी रंजी की शूटिंग की थी , एडिट भी उस दुष्ट ने मुझी से करवाया था , साउंड इफेक्ट्स के साथ। पूरे तीन घंटे ४० मिनट , कोई क्लोज अप बचा नहीं था , न मेरा न रंजी का यहाँ तक की जब उस की फटी थी तब की चीखने की आवाज ,फ़चफ़चा के जो खून निकला था , और जब पिछवाड़े , गांड का छल्ला ,दरेरते रगड़ते अंदर गया था यहाँ तक की गुड्डी ने भी जब मंतर पढ़ते हुए मेरी सारी मायकेवालियों को लपेट लिया ,था सब कुछ तो था।
मैंने हाथ बढ़ा के उसे रोकने की कोशिश की तो गुड्डी ने आराम से उसे मुझे पकडा दिया और बोली ले लो तुम ही तो हीरो हो इस फिललम के।
और दो और निकाल ली , और आँख नचा के मुझे चिढ़ाते हुए बोली , " कोई नहीं पूरी दर्जन भर हैं। "
चंदा भाभी ने गुड्डी से कहा , हे एक गूंजा को पकड़ा दे और गूंजा से कहा
" सुन जोअपना मुन्ना है न केबल वाला ,बस उसको दे देना। बोलना आज रात को चलनी चाहिए१२ से तीन के शो में। कहा देना नयी हीरोइन आयी है मस्त माल , एकदम कटीली छमिया है बस उसी की फ़िल्म है। "
गूंजा सी डी ले के , १, २,३ हो गयी।
और जब तक मैं उसे रोकने की सोचता , वो सीढ़ी के दरवाजे पे।
' रुक , जरा उस को बोलना शुरू में और बीच में , इस माल का नंबर और बुकिंग के लिए इनके भैया का नंबर भी चला देगा। " चंदा भाभी ने और पलीता लगाया।
" दे दूंगी , मेरे पास दोनों के नंबर है। " और वह धड़धड़ाती हुयी सीढ़ी से नीचे।
इधर किसी भाभी ने जो पिलाने के लिए पानी ले रखा था , सीधे रंजी के ऊपर डाल दिया बल्कि टॉप के अंदर और दूसरी ने सूखाने के बहाने हाथ अंदर।
रंजी का जोबन मर्दन और बनारस की होली शुरू हो गयी थी।
और मैं गूंजा के पीछे , नीचे भागा।
गुंजा
( बाद में पता चला की राकी की हरकत के पीछे गूंजा और गुड्डी की मिली जुली बदमाशी थी। रास्ते भर ,गुड्डी रंजी की चुनमुनिया की अपनी एक्सपर्ट उँगलियों से रगड़ घिस करती रही। कम से कम ४-५ बार बिचारी रंजी झड़ी होगी , बनारस पहुँचने तक। छोटी सी पैंटी चूत रस में लथपथ। और ये सब पिलानिंग थी बनारसवालियों की। वहां पहुँच के गुड्डी ने रंजी के हाथ पकड़े दोनों पीछे से और गूंजा ने , झट से रंजी के चूत के पानी से एकदम गीली ,पैंटी निकाल कर बाहर।
लेकिन असली शरारत तो अभी बाकी थी। राकी , गूंजा से खूब हिला था। बस , गूंजा ने रंजी की रस से भीगी पैंटी , ५ मिनट तक उसके नथुनों में लगा के उसकी महक अच्छी तरह सुंघा दी। और जब रंजी की अच्छी खिंचाई हो रही थी ,बस उसने रॉकी को इशारा किया। महक तो उसने सूंघ ही रखी थी ,बस वो रंजी के पीछे , और सबको मौक़ा मिल गया , रंजी को जमकर छेड़ने का )
रंजी का जोबन मर्दन और बनारस की होली शुरू हो गयी थी।
और मैं गूंजा के पीछे , नीचे भागा।
और जब नीचे पहुंचा तो देर हो चुकी थी ,
एक लड़के को गूंजा सीडी दे चुकी थी और नैन मटक्का करते बोल रही थी ,
"चुन्नू सुन , मुन्ना को देना तेरे रंगपंचमी स्पेशल फुल नाइट शो के लिए। धमाका। और इसमें जो पटाखा है न और उसके बुकिंग एजेंट दोनों का मोबाइल सी डी पे लिख दिया , चला देना वो भी। होली के मजे आ जाएंगे पूरे बनारस के और तेरे केबल की चांदी हो जायेगी। "
"अरे जानू , मेरे मजे कब करा रही है , एक बार कम से कम यार हाथ तो लगाने दे ," चुन्नू जो इंटर बीए के लौंडो की उम्र का होगा।
एक हाथ से उस चुन्नू ने सी डी पकड़ी और दूसरे से गूंजा के चिकने गाल को सहलाते बोला।
गूंजा ने जोर से उस का हाथ झटका औरशोख अदा से बोली ,
" जाज्जा , अपनी बहना चुन्नी के हाथ लगा और चाहे जो लगा , पूरे मोहल्ले में बांटती फिरती है ,मुन्ना को बोल देना , आज रात आग लगा देगी ये पटाखा। "
चुन्नू भी , बोला ,
" चल यार मेरी किस्मत नहीं तो मुन्ना से ही अपनी सील तुड़वा ले न , तेरे बचपन का यार है वो। "
" चल चल्ल , मेरी सील तोड़ने वाला आ गया है अपनी बहन का नंबर लगवा दे उससे "
कह के गूंजा ने उसके मुंह पे दरवाजा बंद कर सिटकनी भी लगा दे।
तब तक मैं एकदम उसके पीछे आ गया था और जोर से मैंने उसे दबोच लिया , उसकी कच्ची अमिया अब मेरे हाथ में थी। पिछली बार जब बनारस में था तो मेरे होंठ और और उंगलिया दोनों उन कच्ची अमियों का स्वाद ले चुके थे और उसको ही याद करके , जंगबहादुर एकदम तन्ना गए। सीधे पिछवाड़े की दरार में सेट हो गए।
हलके से गाल काटते मैंने बोला ,
" हे कौन है , वो साल्ला , खुशकिस्मत , तेरी सील तोड़ने वाला। "
झट से चक्कर घिन्नी काट के वो मुड़ी और और अब मैं उसकी बाँहों में था , जोर से मुझे भींचते अपनी कच्ची अमिया मेरे सीने में दबाती बोली।
" है कोई तुझे क्या ,हैंडसम है तगड़ा है , और पिछली बार आग लगा के चला गया था अबकी मैं बिना आग बुझवाये उसे जाने नहीं दूंगी। गाली मत दो उसे बहुत प्यारा है , 'मुझे।
हाँ लेकिन साल्ला , बहनचोद तो है ही , इत्ता मस्त छिनार माल लाया है , अपने साथ। आज एक बार फ़िल्म चल जाने दो ऐसे मशहूर होगी वो , सारा बनारस चढ़ेगा उसकी बहिनिया के ऊपर तो साल्ला , साला तो हुआ ही। "
मैंने अब सीधे उसके छोटे छोटे टॉप में हाथ डाल दिया और कककचा के उसकी छोटे छोटे , बस उभरते जुबना को दबोचते , मसलते मैंने पूछा ,
" लेकिन है कहाँ वो किस्मत वाला , जिसकी चाभी से खुलेगा तेरा ताला। "
एक हाथ से मुझे भींचते और दूसरे से मेरी शर्ट के बटन खोलते , बड़े प्यार से मुझे किस करते वो बोली ,
" है न यही , इसी कमरे में , मेरी बाहों की कैद में "
मेरी शर्ट और उसका टॉप एक साथ देह से दूर हुए। पास के पड़े सोफे पे और मेरे हलके से धक्के से हम दोनों पलंग पे थे।
" तूने बाहर वाला दरवाजा बोल्ट क्यों किया ," उसकी टीन ब्रा के हुक खोलते मैंने कहा.
" तूने अंदर घुसने वाला दरवाजा क्यों बोल्ट किया "
खिलखिलाते मेरी बनयान उतारते हंस के वो बोली। और फिर सीधे जोर से अपने लम्बे नाखून मेरी पीठ में गड़ाते बोली ,
" अरे यार तू दरवाजा न बंद करता तो भी कुछ नहीं होता। अगले दो ढाई घंटे तक इधर आने की सुध किसी को नहीं ,सारी तेरी साली और सलहजें अपनी नयकी ननदिया का मजा लूट रही होंगी। "
" सिवाय एक के " उसकी स्कर्ट देह से अलग करते मैं बोला।
" हाँ एकदम मेरा इरादा तो पक्का था आते ही बस तेरी ले लेनी है। जब तक और कोई नंबर लगाये मेरे जीजू पे " हंस के वो बोली। मेरी पेंट अलग हो चुकी थी।
अब बस एक छोटी सी पैंटी उसकी देह पे थी और मेरे जंंगबहादुर बामुश्किल ढंके थे।
"अच्छा जी तू मेरी ,लेगी देखूं तो ," ये कह के कस के मैंने उसकी कच्ची अमिया को जोर से कचकचा के काट लिया।
उईइइइइइइइइइइ जोर से चीखी वो , फिर हंस के बोली ,
" लम्बी लेनी है तेरे लिए यहाँ पे लेकिन सबको मैंने बोल दिया था , खबरदार जीजू मेरे , इसलिये पहला नंबर मेरा। "
" कौन छोरी दीवानी है नाम तो बोल " जोर जोर से उसकी कसी चुन्मुनिया को पैंटी के अंदर हाथ डाल के रगड़ते मैं बोला।
वो कौन कम थी बनारस की बिंदास बाला , उसने मेरी चड्ढी में हाथ डाल के तन्नाये जंगबहादुर को मसलना शुरू कर दिया , और बोली ,
" एक हों तो गिनाउँ , सबसे पहले तो महक , जो तेरे आगे खड़ी थी , जब गोलियां चल रही थी और तू उसके उभार दबाने में मस्त था। "
" अरे इत्ते मस्त उभार होंगे तो कोई भी दबायेगा , और तेरे नाते तो वो भी मेरी साली हुयी न " गुंजा के निपल चूसते मैं बोला। फिर पुछा , चल महक तो मस्त माल है और कौन
" महक की भाभी , बोलने लगी तुम सब कच्ची कलियाँ हो , फट वट गयी तो मुसीबत हो जायेगी , पहले मैं एक बार चख लेती हूँ उस मोटे गन्ने का रस , फिर तू सब नंबर लगाना। लेकिन मैंने साफ साफ बोल दिया , पहला नंबर मेरा , और फिर फटनी तो है ही एक दिन तो जीजू से फटे।
और गुड्डी दी को भी मैंने बोल दिया था आप इस बार बनारस रहोगे ,वो हाथ भी नहीं लगा सकती , बस दूर से ललचाती रहे , अब बस सालियों का नंबर है इसपर "
और ये कहके तन्नये जंगबहादुर को उसने बाहर खींच लिया।
और पैंटी तो मैंने पहले ही सरका दी थी.
( बाद में पता चला की राकी की हरकत के पीछे गूंजा और गुड्डी की मिली जुली बदमाशी थी। रास्ते भर ,गुड्डी रंजी की चुनमुनिया की अपनी एक्सपर्ट उँगलियों से रगड़ घिस करती रही। कम से कम ४-५ बार बिचारी रंजी झड़ी होगी , बनारस पहुँचने तक। छोटी सी पैंटी चूत रस में लथपथ। और ये सब पिलानिंग थी बनारसवालियों की। वहां पहुँच के गुड्डी ने रंजी के हाथ पकड़े दोनों पीछे से और गूंजा ने , झट से रंजी के चूत के पानी से एकदम गीली ,पैंटी निकाल कर बाहर।
लेकिन असली शरारत तो अभी बाकी थी। राकी , गूंजा से खूब हिला था। बस , गूंजा ने रंजी की रस से भीगी पैंटी , ५ मिनट तक उसके नथुनों में लगा के उसकी महक अच्छी तरह सुंघा दी। और जब रंजी की अच्छी खिंचाई हो रही थी ,बस उसने रॉकी को इशारा किया। महक तो उसने सूंघ ही रखी थी ,बस वो रंजी के पीछे , और सबको मौक़ा मिल गया , रंजी को जमकर छेड़ने का )
रंजी का जोबन मर्दन और बनारस की होली शुरू हो गयी थी।
और मैं गूंजा के पीछे , नीचे भागा।
और जब नीचे पहुंचा तो देर हो चुकी थी ,
एक लड़के को गूंजा सीडी दे चुकी थी और नैन मटक्का करते बोल रही थी ,
"चुन्नू सुन , मुन्ना को देना तेरे रंगपंचमी स्पेशल फुल नाइट शो के लिए। धमाका। और इसमें जो पटाखा है न और उसके बुकिंग एजेंट दोनों का मोबाइल सी डी पे लिख दिया , चला देना वो भी। होली के मजे आ जाएंगे पूरे बनारस के और तेरे केबल की चांदी हो जायेगी। "
"अरे जानू , मेरे मजे कब करा रही है , एक बार कम से कम यार हाथ तो लगाने दे ," चुन्नू जो इंटर बीए के लौंडो की उम्र का होगा।
एक हाथ से उस चुन्नू ने सी डी पकड़ी और दूसरे से गूंजा के चिकने गाल को सहलाते बोला।
गूंजा ने जोर से उस का हाथ झटका औरशोख अदा से बोली ,
" जाज्जा , अपनी बहना चुन्नी के हाथ लगा और चाहे जो लगा , पूरे मोहल्ले में बांटती फिरती है ,मुन्ना को बोल देना , आज रात आग लगा देगी ये पटाखा। "
चुन्नू भी , बोला ,
" चल यार मेरी किस्मत नहीं तो मुन्ना से ही अपनी सील तुड़वा ले न , तेरे बचपन का यार है वो। "
" चल चल्ल , मेरी सील तोड़ने वाला आ गया है अपनी बहन का नंबर लगवा दे उससे "
कह के गूंजा ने उसके मुंह पे दरवाजा बंद कर सिटकनी भी लगा दे।
तब तक मैं एकदम उसके पीछे आ गया था और जोर से मैंने उसे दबोच लिया , उसकी कच्ची अमिया अब मेरे हाथ में थी। पिछली बार जब बनारस में था तो मेरे होंठ और और उंगलिया दोनों उन कच्ची अमियों का स्वाद ले चुके थे और उसको ही याद करके , जंगबहादुर एकदम तन्ना गए। सीधे पिछवाड़े की दरार में सेट हो गए।
हलके से गाल काटते मैंने बोला ,
" हे कौन है , वो साल्ला , खुशकिस्मत , तेरी सील तोड़ने वाला। "
झट से चक्कर घिन्नी काट के वो मुड़ी और और अब मैं उसकी बाँहों में था , जोर से मुझे भींचते अपनी कच्ची अमिया मेरे सीने में दबाती बोली।
" है कोई तुझे क्या ,हैंडसम है तगड़ा है , और पिछली बार आग लगा के चला गया था अबकी मैं बिना आग बुझवाये उसे जाने नहीं दूंगी। गाली मत दो उसे बहुत प्यारा है , 'मुझे।
हाँ लेकिन साल्ला , बहनचोद तो है ही , इत्ता मस्त छिनार माल लाया है , अपने साथ। आज एक बार फ़िल्म चल जाने दो ऐसे मशहूर होगी वो , सारा बनारस चढ़ेगा उसकी बहिनिया के ऊपर तो साल्ला , साला तो हुआ ही। "
मैंने अब सीधे उसके छोटे छोटे टॉप में हाथ डाल दिया और कककचा के उसकी छोटे छोटे , बस उभरते जुबना को दबोचते , मसलते मैंने पूछा ,
" लेकिन है कहाँ वो किस्मत वाला , जिसकी चाभी से खुलेगा तेरा ताला। "
एक हाथ से मुझे भींचते और दूसरे से मेरी शर्ट के बटन खोलते , बड़े प्यार से मुझे किस करते वो बोली ,
" है न यही , इसी कमरे में , मेरी बाहों की कैद में "
मेरी शर्ट और उसका टॉप एक साथ देह से दूर हुए। पास के पड़े सोफे पे और मेरे हलके से धक्के से हम दोनों पलंग पे थे।
" तूने बाहर वाला दरवाजा बोल्ट क्यों किया ," उसकी टीन ब्रा के हुक खोलते मैंने कहा.
" तूने अंदर घुसने वाला दरवाजा क्यों बोल्ट किया "
खिलखिलाते मेरी बनयान उतारते हंस के वो बोली। और फिर सीधे जोर से अपने लम्बे नाखून मेरी पीठ में गड़ाते बोली ,
" अरे यार तू दरवाजा न बंद करता तो भी कुछ नहीं होता। अगले दो ढाई घंटे तक इधर आने की सुध किसी को नहीं ,सारी तेरी साली और सलहजें अपनी नयकी ननदिया का मजा लूट रही होंगी। "
" सिवाय एक के " उसकी स्कर्ट देह से अलग करते मैं बोला।
" हाँ एकदम मेरा इरादा तो पक्का था आते ही बस तेरी ले लेनी है। जब तक और कोई नंबर लगाये मेरे जीजू पे " हंस के वो बोली। मेरी पेंट अलग हो चुकी थी।
अब बस एक छोटी सी पैंटी उसकी देह पे थी और मेरे जंंगबहादुर बामुश्किल ढंके थे।
"अच्छा जी तू मेरी ,लेगी देखूं तो ," ये कह के कस के मैंने उसकी कच्ची अमिया को जोर से कचकचा के काट लिया।
उईइइइइइइइइइइ जोर से चीखी वो , फिर हंस के बोली ,
" लम्बी लेनी है तेरे लिए यहाँ पे लेकिन सबको मैंने बोल दिया था , खबरदार जीजू मेरे , इसलिये पहला नंबर मेरा। "
" कौन छोरी दीवानी है नाम तो बोल " जोर जोर से उसकी कसी चुन्मुनिया को पैंटी के अंदर हाथ डाल के रगड़ते मैं बोला।
वो कौन कम थी बनारस की बिंदास बाला , उसने मेरी चड्ढी में हाथ डाल के तन्नाये जंगबहादुर को मसलना शुरू कर दिया , और बोली ,
" एक हों तो गिनाउँ , सबसे पहले तो महक , जो तेरे आगे खड़ी थी , जब गोलियां चल रही थी और तू उसके उभार दबाने में मस्त था। "
" अरे इत्ते मस्त उभार होंगे तो कोई भी दबायेगा , और तेरे नाते तो वो भी मेरी साली हुयी न " गुंजा के निपल चूसते मैं बोला। फिर पुछा , चल महक तो मस्त माल है और कौन
" महक की भाभी , बोलने लगी तुम सब कच्ची कलियाँ हो , फट वट गयी तो मुसीबत हो जायेगी , पहले मैं एक बार चख लेती हूँ उस मोटे गन्ने का रस , फिर तू सब नंबर लगाना। लेकिन मैंने साफ साफ बोल दिया , पहला नंबर मेरा , और फिर फटनी तो है ही एक दिन तो जीजू से फटे।
और गुड्डी दी को भी मैंने बोल दिया था आप इस बार बनारस रहोगे ,वो हाथ भी नहीं लगा सकती , बस दूर से ललचाती रहे , अब बस सालियों का नंबर है इसपर "
और ये कहके तन्नये जंगबहादुर को उसने बाहर खींच लिया।
और पैंटी तो मैंने पहले ही सरका दी थी.
लेकिन बिचारी गूंजा , जंगबहादुर के पहले मेरी उँगलियों ने
धावा बोल दिया लेकिन गुड्डी , रंजी के एक्सपीरियंस के बाद मैं समझ गया था
कच्ची कली का भोग लगाना इतना आसान नहीं। इसलिए बगल में रखी कोल्ड क्रीम की
शीशी की क्रीम मेरी उंगली में पहले चुपड़ गयी थी और कलाई की पूरी ताकत से
एक साथ दो पोर ऊँगली का अंदर ,
गूंजा अपने दांतों से होंठों को दबाये हुए थी की कहीं चीख न निकल जाय , लेकिन चीख तो वो रोक ले गयी लेकिन मजे की सिसकियों को रोकना उसके बस का भी नहीं था।
मैंने भी तीतरफा हमला शुरू कर दिया था , गूंजा के छोटे छोटे निपल , क्लिट और चूत के अंदर बाहर होती ऊँगली , थोड़ी देर में ही वह पूरी तरह पनिया गयी थी , सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी।
और अब मौका आ गया था भरतपुर के लूटने का।
लेकिन उसी समय छत पर हो रहा हंगामा कुछ ज्यादा तेज हो गया था।
इत्ती ढेर सारी भौजाइयां , वो भी बनारस की , और रंजी अकेले ,
एक से एक गालियां , और जित्ती रंजी को उतनी ही मुझे।
" साली , भाईचोद , हरामी की , तेरी फुद्दी में बनारस के सारे लंड , यहाँ आई है कसी चूत लेके जायेगी भोंसड़ी वाली बन के "
और उस शोर में गूंजा की चीख दब गयी।
गूंजा की दोनों लम्बी टाँगे मेरे कंधे पे , उसके होंठों के बीच मैंने अपनी जीभ घुसेड़ रखी थी , होंठों से उसके होंठ सील कर दिए थे , दोनों हाथो से उसकी पतली कलाई को जोर से पकड़ रखा था , और पूरी ताकत से दूसरे धक्के में मेरा मोटा सुपाड़ा , रगड़ता दरेरता अंदर घुस गया।
एक पल के लिए मैं रुका।
ऊपर छत पर से गालियों का जोगीडे का शोर और बढ़ गया था।
और उसी शोर के बीच मैंने छक्का मार दिया , पूरा हेलीकाप्टर शॉट।
और गूंजा कली से फूल बन गयी।
फटी झिल्ली से खून की चुहचुहा आयीं।
गूंजा की आँखों में आंसू तैर रहे थे।
चेहरा दर्द से डूबा था , लेकिन उसकी क्रेडिट थी की उसने चीख दबा ली।
अब कुछ रुक कर तीव्र से मैं मद्धम पर आ गया। धक्को की तेजी भी , धक्को का जोर भी।
लेकिन कुछ देर में जब दर्द कम हो गया तो मेरे होंठ और उंगलिया एक बार फिर पूरी तेजी से मैदान में आगये। होंठ उसे चूम रहे थे , चाट रहे थे , चूस रहे थे उंगलिया कभी निपल्स छेड़ती तो कभी उसकी क्लिट और अब , गूंजा मजे में सिसक रही थी नीचे से चूतड़ उचका रही थी।
" जानती हो जीजा साली की होली कैसे होती है , बिना रंगो के ,उसके गाल चूम के मैंने बोला।
" कैसे जीजू " जवाब में उसने दूने जोर से मुझे चूम लिया।
" गाल करूँगा लाल चूम के
चूंची होंगी लाल मीज के काट के
और चूत होगी लाल चोद के फाड़ के "
और उसी के साथ मैंने धकापेल चुदाई शुरू कर दी . ८-१० धक्कों के बाद सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी पे धक्के दे रहा था और हर धक्के के बाद वो काँप जाती लेकिन कुछ देर बाद उसने भी धक्को का जवाब धक्को से देना शुरू कर दिया।
आखिर बनारसी साली थी।
हम दोनों गुथ्थमगुथा थे।
आधे घंटे की हचक के चुदायी के बाद ही मैं झड़ा।
और उसके पहले वो दो बार झड़ चुकी थी।
गूंजा अपने दांतों से होंठों को दबाये हुए थी की कहीं चीख न निकल जाय , लेकिन चीख तो वो रोक ले गयी लेकिन मजे की सिसकियों को रोकना उसके बस का भी नहीं था।
मैंने भी तीतरफा हमला शुरू कर दिया था , गूंजा के छोटे छोटे निपल , क्लिट और चूत के अंदर बाहर होती ऊँगली , थोड़ी देर में ही वह पूरी तरह पनिया गयी थी , सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी।
और अब मौका आ गया था भरतपुर के लूटने का।
लेकिन उसी समय छत पर हो रहा हंगामा कुछ ज्यादा तेज हो गया था।
इत्ती ढेर सारी भौजाइयां , वो भी बनारस की , और रंजी अकेले ,
एक से एक गालियां , और जित्ती रंजी को उतनी ही मुझे।
" साली , भाईचोद , हरामी की , तेरी फुद्दी में बनारस के सारे लंड , यहाँ आई है कसी चूत लेके जायेगी भोंसड़ी वाली बन के "
और उस शोर में गूंजा की चीख दब गयी।
गूंजा की दोनों लम्बी टाँगे मेरे कंधे पे , उसके होंठों के बीच मैंने अपनी जीभ घुसेड़ रखी थी , होंठों से उसके होंठ सील कर दिए थे , दोनों हाथो से उसकी पतली कलाई को जोर से पकड़ रखा था , और पूरी ताकत से दूसरे धक्के में मेरा मोटा सुपाड़ा , रगड़ता दरेरता अंदर घुस गया।
एक पल के लिए मैं रुका।
ऊपर छत पर से गालियों का जोगीडे का शोर और बढ़ गया था।
और उसी शोर के बीच मैंने छक्का मार दिया , पूरा हेलीकाप्टर शॉट।
और गूंजा कली से फूल बन गयी।
फटी झिल्ली से खून की चुहचुहा आयीं।
गूंजा की आँखों में आंसू तैर रहे थे।
चेहरा दर्द से डूबा था , लेकिन उसकी क्रेडिट थी की उसने चीख दबा ली।
अब कुछ रुक कर तीव्र से मैं मद्धम पर आ गया। धक्को की तेजी भी , धक्को का जोर भी।
लेकिन कुछ देर में जब दर्द कम हो गया तो मेरे होंठ और उंगलिया एक बार फिर पूरी तेजी से मैदान में आगये। होंठ उसे चूम रहे थे , चाट रहे थे , चूस रहे थे उंगलिया कभी निपल्स छेड़ती तो कभी उसकी क्लिट और अब , गूंजा मजे में सिसक रही थी नीचे से चूतड़ उचका रही थी।
" जानती हो जीजा साली की होली कैसे होती है , बिना रंगो के ,उसके गाल चूम के मैंने बोला।
" कैसे जीजू " जवाब में उसने दूने जोर से मुझे चूम लिया।
" गाल करूँगा लाल चूम के
चूंची होंगी लाल मीज के काट के
और चूत होगी लाल चोद के फाड़ के "
और उसी के साथ मैंने धकापेल चुदाई शुरू कर दी . ८-१० धक्कों के बाद सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी पे धक्के दे रहा था और हर धक्के के बाद वो काँप जाती लेकिन कुछ देर बाद उसने भी धक्को का जवाब धक्को से देना शुरू कर दिया।
आखिर बनारसी साली थी।
हम दोनों गुथ्थमगुथा थे।
आधे घंटे की हचक के चुदायी के बाद ही मैं झड़ा।
और उसके पहले वो दो बार झड़ चुकी थी।
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