FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--169
सपनो के कुछ नियम कायदे थोड़े ही होते हैं अगले पल हम और गूंजा छत पे थे और दो चार भाभियों के बीच रंगो से लिपी पुती रंजी , और वो भी सिर्फ एक झीनी झीनी साडी में।
भौजाइयां , गूंजा और एक दो और मोहल्ले की लड़कियां उसे पकड़े थीं , सब के कपडे , चेहरे पूरी देह रंग से लिथड़ी ,
और नीचे हुरियारों की भीड़ जोगीड़ा गाती
सरर सरर हो जोगीड़ा सरर , हो जोगीड़ा सरर,
होली में जोगीड़ा गावें , नाच दिखावें लौंडा।
अरे कौन छिनरो टांग उठावे चढ़े , बनारस के पंडा।
अरे वाह भाई वाह , वाह भाई वाह
सरर सरर हो जोगीड़ा सरर , हो जोगीड़ा सरर,
होली में जोगीड़ा गावें , नाच दिखावें लौंडा।
अरे रंजी छिनरो टांग उठावे चढ़े , बनारस के पंडा।
सरर सरर
अरे दिन में निकरे सूरज और रात में निकरे चंदा
अरे चूंची पकड़ के हचक के चोदा ,
जोगीड़ा सरर हो जोगीड़ा सरर
और रंजी भी भांग के नशे में चूर जबरदस्त गंदे खुल के इशारे कर के उनका जवाब दे रही थी।
रंगो से भीगी झीनी साडी एकदम उसके उभारों से चिपकी थी , निपल तक साफ दिख रही थी।
गुड्डी की एक सहेली ने जैसे कोई मर्द रगड़े पीछे से रंजी के जोबन रगड़ने शुरू किये और एक भौजाई ने बोली लगवानी शुरू की ,
कितने में लेबा हो ई जोबन का मजा ,
नीचे से एक हुरियारे ने आवाज लगाई ,
" अरे तापल ढाकल न , तानी खोल के दिखावा ,"
और भौजाई ने रंजी का आँचल नीचे ढलका दिया ,
और नीचे से एक सामूहिक जोर की आह निकल गयी ,
और फिर बोली लगनी शुरू हो गयी ,
फिर तो अगवाड़ा पिछवाड़ा , सब
लेकिन जैसा होना था जब रंजी पीछे घूम के मुड़ी और निहुर के अपने मस्त चूतड़ मचकाए तो एकदम से आग लग गयी।
जैसे किसी इकोनोमिक रिफार्म की घोषणा के बाद धड़ाक से सेंसेक्स ऊपर चढ़ जाता है , बस उसी तरह , बोली ऊपर चढ़ गयी।
और जल्द ही धड़ धड़ सीढ़ी से चढ़ के ,रंजी के ऊपर चढ़ ने के लिए एक बनारसी ऊपर चढ़ आया।
फागुन के दिन चार--169
सपनो के कुछ नियम कायदे थोड़े ही होते हैं अगले पल हम और गूंजा छत पे थे और दो चार भाभियों के बीच रंगो से लिपी पुती रंजी , और वो भी सिर्फ एक झीनी झीनी साडी में।
भौजाइयां , गूंजा और एक दो और मोहल्ले की लड़कियां उसे पकड़े थीं , सब के कपडे , चेहरे पूरी देह रंग से लिथड़ी ,
और नीचे हुरियारों की भीड़ जोगीड़ा गाती
सरर सरर हो जोगीड़ा सरर , हो जोगीड़ा सरर,
होली में जोगीड़ा गावें , नाच दिखावें लौंडा।
अरे कौन छिनरो टांग उठावे चढ़े , बनारस के पंडा।
अरे वाह भाई वाह , वाह भाई वाह
सरर सरर हो जोगीड़ा सरर , हो जोगीड़ा सरर,
होली में जोगीड़ा गावें , नाच दिखावें लौंडा।
अरे रंजी छिनरो टांग उठावे चढ़े , बनारस के पंडा।
सरर सरर
अरे दिन में निकरे सूरज और रात में निकरे चंदा
अरे चूंची पकड़ के हचक के चोदा ,
जोगीड़ा सरर हो जोगीड़ा सरर
और रंजी भी भांग के नशे में चूर जबरदस्त गंदे खुल के इशारे कर के उनका जवाब दे रही थी।
रंगो से भीगी झीनी साडी एकदम उसके उभारों से चिपकी थी , निपल तक साफ दिख रही थी।
गुड्डी की एक सहेली ने जैसे कोई मर्द रगड़े पीछे से रंजी के जोबन रगड़ने शुरू किये और एक भौजाई ने बोली लगवानी शुरू की ,
कितने में लेबा हो ई जोबन का मजा ,
नीचे से एक हुरियारे ने आवाज लगाई ,
" अरे तापल ढाकल न , तानी खोल के दिखावा ,"
और भौजाई ने रंजी का आँचल नीचे ढलका दिया ,
और नीचे से एक सामूहिक जोर की आह निकल गयी ,
और फिर बोली लगनी शुरू हो गयी ,
फिर तो अगवाड़ा पिछवाड़ा , सब
लेकिन जैसा होना था जब रंजी पीछे घूम के मुड़ी और निहुर के अपने मस्त चूतड़ मचकाए तो एकदम से आग लग गयी।
जैसे किसी इकोनोमिक रिफार्म की घोषणा के बाद धड़ाक से सेंसेक्स ऊपर चढ़ जाता है , बस उसी तरह , बोली ऊपर चढ़ गयी।
और जल्द ही धड़ धड़ सीढ़ी से चढ़ के ,रंजी के ऊपर चढ़ ने के लिए एक बनारसी ऊपर चढ़ आया।
रंजी पर चढ़ाई बनारस में
और जल्द ही धड़ धड़ सीढ़ी से चढ़ के ,रंजी के ऊपर चढ़ ने के लिए एक बनारसी ऊपर चढ़ आया।
शर्त उसकी एक थी ,वो सिर्फ लेटेगा , और पहले भौजाइयां उसकी मीठी शूली को मुठिया के खड़ा करेंगी और फिर रंजी खुद चढ़ेगी उस ८ इंच के भाले पे और वो भी पिछवाड़े से।
उस हंगामे में हर चीज मंजूर थी।
थोड़ी देर में वो नीचे लेटा था उसका मोटा लंड हवा में तना उठा खड़ा ,
और नीचे से हुरियारों का कबीर और जोगीड़ा एकदम खुल के रंजी के चूतड़ों का गुण गान कर रहा था।
दो बनारसी गुड्डी की भौजाइयों , मेरी सलहजों ने , रंजी के चूतड़ फैला के , उसके मोटे सुपाड़े पे सेट किया ,
लेकिन अभी तक तो उसके गुदा द्वार में सिर्फ मेरे जंगबहादुर घुसे थे , इतनी आसान नहीं थी वहां एंट्री।
" हे जोर लगा साली छिनार , कस के नीचे बैठ " भौजाइयों ने चढ़ाया , ललकारा।
लेकिन इत्ती कसी किशोर गांड , और इत्ता मोटा बियर के कैन साइज का बनारसी बांस , कैसे घुसता।
" तुम हेल्प कर दो न बिचारी की देख छिनार कैसे चियार के बैठी है। " गूंजा मुझसे बोली और जब तक मैं कुछ सोच पाता उसने खींच के एक हाथ मेरा रंजी के कंधे पे रख दिया और खुद मेरा हाथ जोर जोर से दबाने लगी।
कुछ ही देर में , एक कंधा जोर जोर से मैं दबा रहा था , और दूसरा गूंजा ,
और सरक सरक के सूत सूत मोटा सुपाड़ा , रंजी की गांड में जा रहा था।
बिचारी रंजी जोर जोर से चीख रही थी तड़प रही थी , लेकिन नीचे से जोगीडे का हल्ला और ऊपर से भौजाइयों , गुड्डी की सहेलियों का शोर और उस की चीख उस में दब जा रही थी।
कुछ ही देर में रंजी की गांड ने पूरा सुपाड़ा घोंट लिया।
" साल्ली , अब लाख चूतड़ पटके ये मूसल गांड से नहीं निकलने वाला। मारो गांड हचक हचक के। " एक भौजाई ने ललकारा।
लेकिन गांड का छल्ला अभी मुश्किल से पार हुआ था।
" अरे सारी ताकत का तोहार बहिनिया चूस ली है का ससुरी छिनार। लगाव जोर वरना कुहनी तक तोहरे गांड में पेल देबे " चंदा भौजी बोलीं। गूंजा ने भी घूर कर देखा और मैंने पूरी ताकत से रंजी के कंधे दबाये।
फाड़ता , दरेरता बांस ऐसा लंड गांड में घुस गया। आधे से ज्यादा।
" अरे हमरी छिनार ननद को समझे का हो , छोडो उसको अभी खुदे उचक उचक के गांड मरवाएगी , बुर चुदवायेगी , तभी तो रंगपंचमी का असली मजा आएगा। " कोई बोला तो साथ में दूबे भाभी ने जोर से हड़काया ,
" साली , भोंसड़ी की , अगर पांच मिनट में पूरा लंड गांड में न घुसा तो एक देख रही हो हमार हाथ , कुहनी तक पेल दूंगी गांड में। चल घोंट उछल उछल के "
रंजी जानती थी ये सिर्फ घुड़की नहीं थी
और अगले ही पल पूरी ताकत से जोर लगा के बिचारी जैसे किसी बांस पे चढ़ रही हो।
दोनों हाथों का जोर वो जमींन पे लगा के अपनी पूरी देह उस मोटे बनारसी बांस के ऊपर दबा रही। उसके चेहरे पे मजे के दर्द के भाव के साथ पसीने की बूंदे चुहचुहा रही थीं।
' और जोर लगा साल्ली , मादरचोद, तेरी सारी खानदान की गांड मारूं , कुत्ते से चुदवाऊँ गदहा चोदी " भाभियाँ , लड़कियां एक से एक गालियां , रंग बरसा रही थीं और चुदने वाली, चोदने वाला दोनों रंग से सराबोर हो रहे थे।
बिचारी रंजी , अपनी पूरी ताकत से मोटे लंड को घोंटने की कोशिश कर रही थी , लेकिन उसकी कच्ची कसी किशोर गांड में , वो मोटा पिस्टन ऐसा मुश्किल से इंच इंच करता हुआ आधे से ज्यादा घुस गया था।
"अरे चल ऊपर नीचे कर साली , अब निकाल के फिर घुसा। " चंदा भाभी ने हुक्म दिया और रंजी ने दोनों हाथ के जोर से लंड को बाहर निकालना शुरू किया , और साड़ी भौजाइया , लड़कियां मुस्कराने लगी।
रंजी की गांड में घुसा घूंसे ऐसा मोटा लंड , जो अब तक रंग से एक भभक्क लाल हो रहा था , थोड़ी देर में एकदम अलग रंग का बाहर निकल रहा था , रंजी के गांड जूस में लगा भीगा , मक्खन से लिथड़ा चुपड़ा।
" चल अब नीचे कर , घोन्ट जल्दी " चंदा भाभी फिर बोलीं और रंजी फिर उस पोल पे सरकने लगी।
और धीरे धीरे तीन चौथाई लंड उसकी गांड में घुस गया।
लेकिन तभी , उसने बाजी पलट दी।
अब रंजी निहरी हुयी थी , एकदम कुतिया की तरह।
और वह कुत्ते की तरह चढ़ा , खूब ताकत के साथ रंजी की गांड हचक हचक के मार रहा था और रंजी के गोल गोल खूब भारी भरे हुए चूतड़ देख के सारे हुरियारों की हालत खराब थी।
" बढ़िया है , अच्छी प्रैक्टिस हो रह , रंजी की एही पोज में हमारे रॉकी से भी " गूंजा ने छेड़ा।
" और क्या बिना रॉकी से मजा लिए वापस थोड़ी जायेगीं ये , बस ऐसे निहुरने की प्रैक्टिस कर लें , बाकी काम रॉकी कर लेगा। " उसकी एक सहेली ने टुकड़ा लगाया।
" और क्या फागुन में कातिक का मजा " खिलखिलाती हुयी गूंजा बोली।
" लेकिन कैपेसिटी बहुत है , गुड्डी दी की छुटकी ननदिया में देख पूरा खूंटा पिछवाड़े कैसे लील लिया। " गूंजा की एक और सहेली विस्मय से बोली।
" ई तो कुछ नहीं है रॉकी की गाँठ तो एहु से बहुत मोटी है , डलवाने में ता ई डलवा लेगी लेकिन जब फूल के मुक्के से भी मोटा हो जाएगा न भीतर और ई लाख गांड पटकेगी , बाहर नहीं निकलेगा , तब आएगा इसको बनारस का मजा। " गूंजा ने जवाब दिया और जोड़ा ,
" लेकिन असली क्रेडिट गुड्डी दी की है , इत्ता मस्त माल पटा के ले आयीं , पूरे बनारस क मजा।
और अब वो बनारसी सांड हचक के फुल स्पीड से रंजी की गांड मार रहा था। दोनों हाथ जोर जोर से उसकी छोटी छोटी लेकिन कड़ी चूंचियों को दबा मसल रहे थे।
और बाकी हुरियारे देख रहे थे ललचा रहे थे , एक दो चंदा भाभी से बतिया रहे थे , उन्हें पटाने की कोशिश कर रहे थे।
चंदा भाभी ने क्या इशारा किया मैं देख नहीं पाया , लेकिन पिछवाड़े वाले ने पलटी खायी और अगले पल , रंजी की सैंडविच बन गयी थी , एक आगे से एक पीछे से।
और जो अगवाडे से चढ़ा था ,वो पिछवाड़े वाले से २१ ही था।
जुबना दोनों ने बाँट लिया था ,एक गांड मारने वाले के कब्जे में और दूसरा चूत चोदने वाले के।
जैसे दोनों बाजी बद के चोद रहे थे की पहले गांड के चिथड़े उड़ते हैं की चूत का भोंसड़ा बनता है।
लेकिन रंजी कौन कम थी और अब तो मंतर का असर भी था उसके ऊपर। दूनी ताकत से वो हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी , गांड और चूत सिकोड़ रही थी। दोनों मूसल एक साथ निचोड़ रही थी।
बाजी बराबर की थी , ओखली और मूसल में।
साथ में भाभियों ,गूंजा और उसकी सहेलियों के कमेंट गालियां रंगो की बौछार ,
और जब वो दोनों झडे तो साथ में दरजनो हुरियारों ने अपनी पिचकारी खोल दी।
रंजी गाढ़ी सफेद मलाई में नहा गयी। कोई जगह उसकी देह की बची नहीं होगी।
ऊपर से एक भौजाई गूंजा को पकड़ के ले गयी और चेहरे पे पड़े मलाई के गाढ़े थक्के उसके गोरे गुलाबी गालों पे फैला दिए , और भौजाई ने गाल दबाये तो रंजी ने मुंह चियार दिया , पूरी तरह।
खिलखिलाते हुए भौजाई ने गूंजा से कुछ इशारा किया , और गूंजा ने सीधे मेरी तनी पिचकारी का निशाना सीधे , रंजी के खुले मुंह की ओर
६१,६२,६४ ,.... ८७,८८,८९ अबतक की सबसे गाढ़ी मलाई सीधे रंजी के खुले मुंह में।
और वो मुंह खोल के मुस्कराती , गटक गयी।
मजा आया सफेद रंग की होली का , सब भाभियों ने एक साथ बोला।
और अभी भौजाइयों की होली बाकी है , पीले गाढ़े रंग की , हँसते हुए दूबे भाभी ने जोड़ा।
"और अभी स्पेशल गाढ़े बेसन से भी तो भौजी लोग रगड़ेंगी " आँख नचाकर चंदा भाभी बोलीं।
" और क्या तभी तो लोग कहेंगे ' रूप निखर आया है चन्दन और हल्दी से दुल्हन का ", हँसते हुए गूंजा ने छेड़ा।
और जल्द ही धड़ धड़ सीढ़ी से चढ़ के ,रंजी के ऊपर चढ़ ने के लिए एक बनारसी ऊपर चढ़ आया।
शर्त उसकी एक थी ,वो सिर्फ लेटेगा , और पहले भौजाइयां उसकी मीठी शूली को मुठिया के खड़ा करेंगी और फिर रंजी खुद चढ़ेगी उस ८ इंच के भाले पे और वो भी पिछवाड़े से।
उस हंगामे में हर चीज मंजूर थी।
थोड़ी देर में वो नीचे लेटा था उसका मोटा लंड हवा में तना उठा खड़ा ,
और नीचे से हुरियारों का कबीर और जोगीड़ा एकदम खुल के रंजी के चूतड़ों का गुण गान कर रहा था।
दो बनारसी गुड्डी की भौजाइयों , मेरी सलहजों ने , रंजी के चूतड़ फैला के , उसके मोटे सुपाड़े पे सेट किया ,
लेकिन अभी तक तो उसके गुदा द्वार में सिर्फ मेरे जंगबहादुर घुसे थे , इतनी आसान नहीं थी वहां एंट्री।
" हे जोर लगा साली छिनार , कस के नीचे बैठ " भौजाइयों ने चढ़ाया , ललकारा।
लेकिन इत्ती कसी किशोर गांड , और इत्ता मोटा बियर के कैन साइज का बनारसी बांस , कैसे घुसता।
" तुम हेल्प कर दो न बिचारी की देख छिनार कैसे चियार के बैठी है। " गूंजा मुझसे बोली और जब तक मैं कुछ सोच पाता उसने खींच के एक हाथ मेरा रंजी के कंधे पे रख दिया और खुद मेरा हाथ जोर जोर से दबाने लगी।
कुछ ही देर में , एक कंधा जोर जोर से मैं दबा रहा था , और दूसरा गूंजा ,
और सरक सरक के सूत सूत मोटा सुपाड़ा , रंजी की गांड में जा रहा था।
बिचारी रंजी जोर जोर से चीख रही थी तड़प रही थी , लेकिन नीचे से जोगीडे का हल्ला और ऊपर से भौजाइयों , गुड्डी की सहेलियों का शोर और उस की चीख उस में दब जा रही थी।
कुछ ही देर में रंजी की गांड ने पूरा सुपाड़ा घोंट लिया।
" साल्ली , अब लाख चूतड़ पटके ये मूसल गांड से नहीं निकलने वाला। मारो गांड हचक हचक के। " एक भौजाई ने ललकारा।
लेकिन गांड का छल्ला अभी मुश्किल से पार हुआ था।
" अरे सारी ताकत का तोहार बहिनिया चूस ली है का ससुरी छिनार। लगाव जोर वरना कुहनी तक तोहरे गांड में पेल देबे " चंदा भौजी बोलीं। गूंजा ने भी घूर कर देखा और मैंने पूरी ताकत से रंजी के कंधे दबाये।
फाड़ता , दरेरता बांस ऐसा लंड गांड में घुस गया। आधे से ज्यादा।
" अरे हमरी छिनार ननद को समझे का हो , छोडो उसको अभी खुदे उचक उचक के गांड मरवाएगी , बुर चुदवायेगी , तभी तो रंगपंचमी का असली मजा आएगा। " कोई बोला तो साथ में दूबे भाभी ने जोर से हड़काया ,
" साली , भोंसड़ी की , अगर पांच मिनट में पूरा लंड गांड में न घुसा तो एक देख रही हो हमार हाथ , कुहनी तक पेल दूंगी गांड में। चल घोंट उछल उछल के "
रंजी जानती थी ये सिर्फ घुड़की नहीं थी
और अगले ही पल पूरी ताकत से जोर लगा के बिचारी जैसे किसी बांस पे चढ़ रही हो।
दोनों हाथों का जोर वो जमींन पे लगा के अपनी पूरी देह उस मोटे बनारसी बांस के ऊपर दबा रही। उसके चेहरे पे मजे के दर्द के भाव के साथ पसीने की बूंदे चुहचुहा रही थीं।
' और जोर लगा साल्ली , मादरचोद, तेरी सारी खानदान की गांड मारूं , कुत्ते से चुदवाऊँ गदहा चोदी " भाभियाँ , लड़कियां एक से एक गालियां , रंग बरसा रही थीं और चुदने वाली, चोदने वाला दोनों रंग से सराबोर हो रहे थे।
बिचारी रंजी , अपनी पूरी ताकत से मोटे लंड को घोंटने की कोशिश कर रही थी , लेकिन उसकी कच्ची कसी किशोर गांड में , वो मोटा पिस्टन ऐसा मुश्किल से इंच इंच करता हुआ आधे से ज्यादा घुस गया था।
"अरे चल ऊपर नीचे कर साली , अब निकाल के फिर घुसा। " चंदा भाभी ने हुक्म दिया और रंजी ने दोनों हाथ के जोर से लंड को बाहर निकालना शुरू किया , और साड़ी भौजाइया , लड़कियां मुस्कराने लगी।
रंजी की गांड में घुसा घूंसे ऐसा मोटा लंड , जो अब तक रंग से एक भभक्क लाल हो रहा था , थोड़ी देर में एकदम अलग रंग का बाहर निकल रहा था , रंजी के गांड जूस में लगा भीगा , मक्खन से लिथड़ा चुपड़ा।
" चल अब नीचे कर , घोन्ट जल्दी " चंदा भाभी फिर बोलीं और रंजी फिर उस पोल पे सरकने लगी।
और धीरे धीरे तीन चौथाई लंड उसकी गांड में घुस गया।
लेकिन तभी , उसने बाजी पलट दी।
अब रंजी निहरी हुयी थी , एकदम कुतिया की तरह।
और वह कुत्ते की तरह चढ़ा , खूब ताकत के साथ रंजी की गांड हचक हचक के मार रहा था और रंजी के गोल गोल खूब भारी भरे हुए चूतड़ देख के सारे हुरियारों की हालत खराब थी।
" बढ़िया है , अच्छी प्रैक्टिस हो रह , रंजी की एही पोज में हमारे रॉकी से भी " गूंजा ने छेड़ा।
" और क्या बिना रॉकी से मजा लिए वापस थोड़ी जायेगीं ये , बस ऐसे निहुरने की प्रैक्टिस कर लें , बाकी काम रॉकी कर लेगा। " उसकी एक सहेली ने टुकड़ा लगाया।
" और क्या फागुन में कातिक का मजा " खिलखिलाती हुयी गूंजा बोली।
" लेकिन कैपेसिटी बहुत है , गुड्डी दी की छुटकी ननदिया में देख पूरा खूंटा पिछवाड़े कैसे लील लिया। " गूंजा की एक और सहेली विस्मय से बोली।
" ई तो कुछ नहीं है रॉकी की गाँठ तो एहु से बहुत मोटी है , डलवाने में ता ई डलवा लेगी लेकिन जब फूल के मुक्के से भी मोटा हो जाएगा न भीतर और ई लाख गांड पटकेगी , बाहर नहीं निकलेगा , तब आएगा इसको बनारस का मजा। " गूंजा ने जवाब दिया और जोड़ा ,
" लेकिन असली क्रेडिट गुड्डी दी की है , इत्ता मस्त माल पटा के ले आयीं , पूरे बनारस क मजा।
और अब वो बनारसी सांड हचक के फुल स्पीड से रंजी की गांड मार रहा था। दोनों हाथ जोर जोर से उसकी छोटी छोटी लेकिन कड़ी चूंचियों को दबा मसल रहे थे।
और बाकी हुरियारे देख रहे थे ललचा रहे थे , एक दो चंदा भाभी से बतिया रहे थे , उन्हें पटाने की कोशिश कर रहे थे।
चंदा भाभी ने क्या इशारा किया मैं देख नहीं पाया , लेकिन पिछवाड़े वाले ने पलटी खायी और अगले पल , रंजी की सैंडविच बन गयी थी , एक आगे से एक पीछे से।
और जो अगवाडे से चढ़ा था ,वो पिछवाड़े वाले से २१ ही था।
जुबना दोनों ने बाँट लिया था ,एक गांड मारने वाले के कब्जे में और दूसरा चूत चोदने वाले के।
जैसे दोनों बाजी बद के चोद रहे थे की पहले गांड के चिथड़े उड़ते हैं की चूत का भोंसड़ा बनता है।
लेकिन रंजी कौन कम थी और अब तो मंतर का असर भी था उसके ऊपर। दूनी ताकत से वो हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी , गांड और चूत सिकोड़ रही थी। दोनों मूसल एक साथ निचोड़ रही थी।
बाजी बराबर की थी , ओखली और मूसल में।
साथ में भाभियों ,गूंजा और उसकी सहेलियों के कमेंट गालियां रंगो की बौछार ,
और जब वो दोनों झडे तो साथ में दरजनो हुरियारों ने अपनी पिचकारी खोल दी।
रंजी गाढ़ी सफेद मलाई में नहा गयी। कोई जगह उसकी देह की बची नहीं होगी।
ऊपर से एक भौजाई गूंजा को पकड़ के ले गयी और चेहरे पे पड़े मलाई के गाढ़े थक्के उसके गोरे गुलाबी गालों पे फैला दिए , और भौजाई ने गाल दबाये तो रंजी ने मुंह चियार दिया , पूरी तरह।
खिलखिलाते हुए भौजाई ने गूंजा से कुछ इशारा किया , और गूंजा ने सीधे मेरी तनी पिचकारी का निशाना सीधे , रंजी के खुले मुंह की ओर
६१,६२,६४ ,.... ८७,८८,८९ अबतक की सबसे गाढ़ी मलाई सीधे रंजी के खुले मुंह में।
और वो मुंह खोल के मुस्कराती , गटक गयी।
मजा आया सफेद रंग की होली का , सब भाभियों ने एक साथ बोला।
और अभी भौजाइयों की होली बाकी है , पीले गाढ़े रंग की , हँसते हुए दूबे भाभी ने जोड़ा।
"और अभी स्पेशल गाढ़े बेसन से भी तो भौजी लोग रगड़ेंगी " आँख नचाकर चंदा भाभी बोलीं।
" और क्या तभी तो लोग कहेंगे ' रूप निखर आया है चन्दन और हल्दी से दुल्हन का ", हँसते हुए गूंजा ने छेड़ा।
बनारस की रंगपंचमी...सपने में
" और क्या तभी तो लोग कहेंगे ' रूप निखर आया है चन्दन और हल्दी से दुल्हन का ", हँसते हुए गूंजा ने छेड़ा।
" दुल्हन तो हयी है , हाँ केहु एक की नहीं पूरे बनारस की और गुड्डी के मायके वालों की दुल्हन है " एक भौजाई बोली।
" देखा नहीं अभी एक साथ दो दो से , कैसे मजे में घोंट रही थी। " दूसरी ने और घी डाला।
लेकिन कुछ देर में नजारा बदल गया था , मैं भौजाइयों के कब्जे में था और रंजी बनारसी सांडो के।
होली जमकर हो रही थी।
चंदा भाभी , दूबे भाभी सब मेरे पीछे , और जम के हो रही थी रगड़ाई।
पांच मिनट में मेरे कपडे चिथड़े हो के भौजाइयों में बंट गए थे।
कही किसी की ऊँगली , कही किसी का हाथ ,
लेकिन मैं भी घाटे में नहीं था , एक से एक गदराये जोबन , मस्त नितम्ब और जांघो के बीच की केसर क्यारी ,
हचाक से पिछवाड़े दूबे भाभी की वार्निश पेंट लगी घुसी और मैं जोर से चिहुंक के उचक गया।
" अरे बबुआ ई होली का ट्रेलर है , असली होली क रगड़ाई अगले साल होएगी , जब शादी के बाद पहली होली खेले , ससुरारी जयबा। और जेतना साल्ली , सलहज रगड़हियें ओहसे ज्यादा सास तोहार ऊपर नीचे एक करीहें। "
दूबे भाभी पिछवाड़े घुसी ऊँगली गोल गोल घुमाते बोली। उनका,
दूसरा हाथ जोर जोर से मुठिया रहा था।
बात उनकी एकदम सही थी लेकिन किसी ने कुछ उनसे कुछ मुझसे पुछा ,
" का पिछवाड़े का दरवाजा बंद हाउ इतना चिकन लौंडा ,… "
" हाँ और एनके सास की मनाही , उ खुलेगा धूम धड़ाके से , २५ मई को कोहबर में " जवाब दूबे भाभी ने दिया।
तब तक मेरी और सबकी निगाह छत के दूसरे कोने की ओर गयी,
" क्या मस्त नाच रही है , मुजरा करेगी तो पूरे दालमंडी में आग लगाएगी। "
किसी ने बोला।
रंजी ने एक साडी बहुत मस्त अंदाज में लपेट लिया था और किसी ने उसके पैर में घुंघरू भी बाँध दिए और क्या मस्त ठुमके लगा रही थी , अपने भारी भारी चूतड़ मटका कर , ललचा कर गा रही थी।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
मोरे आगा से आगा सटाय दिया रे ,
मोरे जुबना दोनों दबाय दिया रे
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
उह्ह ओह्ह , हाय दइया
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
पहिले साया सरकाया , हाथ भीतर घुसाया
मैं बहुत चिल्लाई , मोरा मुंह वो दबाया ,
मोरी जांघन से जांघन सटाया दिया रे।
मोरे दोनों जुबना दबाय दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
मजा बहुते मोहे आया जब भीतर घुसाया
एक फिट की पिचकारी घुसाय दिया रे।
सटासट , फचफच रंगवा चलाय दिया रे।
मोरो दोनों जुबना दबाय दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
क्या जम के मस्ती हो रही थी।
मैं भी उस हुड़दंग में घुस गया।
सारा आसमान अबीर गुलाल से भरा था ,कोई जोगीडे का लौंडा गा रहा था
थूकवा लगाय के रतियों में ठोंके सैयां
पिया परदेशी सखी बड़ा रंग रसिया ,
बुलावे हमें आधी आधी रतिया
हचक के पेलै सैयां , सयवा उठाय के।
और उसी के धुन पे अब मैं रंजी और गूंजा के साथ डांस कर रहा था , गुड्डी बगल में खड़ी मजे ले रही थी।
" और क्या तभी तो लोग कहेंगे ' रूप निखर आया है चन्दन और हल्दी से दुल्हन का ", हँसते हुए गूंजा ने छेड़ा।
" दुल्हन तो हयी है , हाँ केहु एक की नहीं पूरे बनारस की और गुड्डी के मायके वालों की दुल्हन है " एक भौजाई बोली।
" देखा नहीं अभी एक साथ दो दो से , कैसे मजे में घोंट रही थी। " दूसरी ने और घी डाला।
लेकिन कुछ देर में नजारा बदल गया था , मैं भौजाइयों के कब्जे में था और रंजी बनारसी सांडो के।
होली जमकर हो रही थी।
चंदा भाभी , दूबे भाभी सब मेरे पीछे , और जम के हो रही थी रगड़ाई।
पांच मिनट में मेरे कपडे चिथड़े हो के भौजाइयों में बंट गए थे।
कही किसी की ऊँगली , कही किसी का हाथ ,
लेकिन मैं भी घाटे में नहीं था , एक से एक गदराये जोबन , मस्त नितम्ब और जांघो के बीच की केसर क्यारी ,
हचाक से पिछवाड़े दूबे भाभी की वार्निश पेंट लगी घुसी और मैं जोर से चिहुंक के उचक गया।
" अरे बबुआ ई होली का ट्रेलर है , असली होली क रगड़ाई अगले साल होएगी , जब शादी के बाद पहली होली खेले , ससुरारी जयबा। और जेतना साल्ली , सलहज रगड़हियें ओहसे ज्यादा सास तोहार ऊपर नीचे एक करीहें। "
दूबे भाभी पिछवाड़े घुसी ऊँगली गोल गोल घुमाते बोली। उनका,
दूसरा हाथ जोर जोर से मुठिया रहा था।
बात उनकी एकदम सही थी लेकिन किसी ने कुछ उनसे कुछ मुझसे पुछा ,
" का पिछवाड़े का दरवाजा बंद हाउ इतना चिकन लौंडा ,… "
" हाँ और एनके सास की मनाही , उ खुलेगा धूम धड़ाके से , २५ मई को कोहबर में " जवाब दूबे भाभी ने दिया।
तब तक मेरी और सबकी निगाह छत के दूसरे कोने की ओर गयी,
" क्या मस्त नाच रही है , मुजरा करेगी तो पूरे दालमंडी में आग लगाएगी। "
किसी ने बोला।
रंजी ने एक साडी बहुत मस्त अंदाज में लपेट लिया था और किसी ने उसके पैर में घुंघरू भी बाँध दिए और क्या मस्त ठुमके लगा रही थी , अपने भारी भारी चूतड़ मटका कर , ललचा कर गा रही थी।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
मोरे आगा से आगा सटाय दिया रे ,
मोरे जुबना दोनों दबाय दिया रे
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
उह्ह ओह्ह , हाय दइया
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे
पहिले साया सरकाया , हाथ भीतर घुसाया
मैं बहुत चिल्लाई , मोरा मुंह वो दबाया ,
मोरी जांघन से जांघन सटाया दिया रे।
मोरे दोनों जुबना दबाय दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
मजा बहुते मोहे आया जब भीतर घुसाया
एक फिट की पिचकारी घुसाय दिया रे।
सटासट , फचफच रंगवा चलाय दिया रे।
मोरो दोनों जुबना दबाय दिया रे।
रंग बनारस के छोरा ने लगाय दिया रे।
क्या जम के मस्ती हो रही थी।
मैं भी उस हुड़दंग में घुस गया।
सारा आसमान अबीर गुलाल से भरा था ,कोई जोगीडे का लौंडा गा रहा था
थूकवा लगाय के रतियों में ठोंके सैयां
पिया परदेशी सखी बड़ा रंग रसिया ,
बुलावे हमें आधी आधी रतिया
हचक के पेलै सैयां , सयवा उठाय के।
और उसी के धुन पे अब मैं रंजी और गूंजा के साथ डांस कर रहा था , गुड्डी बगल में खड़ी मजे ले रही थी।
और उसी के धुन पे अब मैं रंजी और गूंजा के साथ डांस कर रहा था , गुड्डी बगल में खड़ी मजे ले रही थी।
खूब रंग उड़ रहा था
और तभी धीरे धीरे आसमान का रंग बदलने लगा , अबीर गुलाल की जगह , आसमान गुलाबी से खूनी रंग का हो गया। एकदम लाल जैसे खून से भर गया हो।
सारे लोग उसी तरह नाच गान में मग्न लेकिन उस खुनी रंग के आसमान में अचानक एक गिद्ध आया , बड़ा , भयानक विशालकाय ,और तेज चीखे गूंजने लगी।
लेकिन रंजी उसी तरह मस्त , बेखबर नाचती रही।
गिद्ध एकदम नीचे उड़ रहा था , और उसके पंखो से सूरज छिप गया।
मटमैला , गंदला , और उसकी चोंच खून से लथपथ थी।
उसके पंजे ठीक मेरे ऊपर आ गए थे।
वो मुझे पकड़ने ही वाला था की गुड्डी बीच में आ गयी। उसके हाथ में एक गुलेल थी और वो उसे पत्थर मार रही थी ,
जोर से चिल्ला रही थी , उसे भगा रही थी ,
भाग भाग भाग।
और तभी मेरी नींद खुली
खूब रंग उड़ रहा था
और तभी धीरे धीरे आसमान का रंग बदलने लगा , अबीर गुलाल की जगह , आसमान गुलाबी से खूनी रंग का हो गया। एकदम लाल जैसे खून से भर गया हो।
सारे लोग उसी तरह नाच गान में मग्न लेकिन उस खुनी रंग के आसमान में अचानक एक गिद्ध आया , बड़ा , भयानक विशालकाय ,और तेज चीखे गूंजने लगी।
लेकिन रंजी उसी तरह मस्त , बेखबर नाचती रही।
गिद्ध एकदम नीचे उड़ रहा था , और उसके पंखो से सूरज छिप गया।
मटमैला , गंदला , और उसकी चोंच खून से लथपथ थी।
उसके पंजे ठीक मेरे ऊपर आ गए थे।
वो मुझे पकड़ने ही वाला था की गुड्डी बीच में आ गयी। उसके हाथ में एक गुलेल थी और वो उसे पत्थर मार रही थी ,
जोर से चिल्ला रही थी , उसे भगा रही थी ,
भाग भाग भाग।
और तभी मेरी नींद खुली
1 comment:
KAHANI KE PART KO AAGE BHEJO
URJENT
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