FUN-MAZA-MASTI
मेरी बीती जिंदगी की कहानी --7
सीमा - हाँ सच में करती थी....कई बार किया है..लेकिन किसी को छूने नहीं दिया कभी....बस दूर दूर से दर्शन करवाया है....और आप मुनिया को नहीं जानते??
मैं – नहीं.बताओ न कौन है मुनिया? तुम्हारी सहेली है कोई?
सीमा – सहेली नहीं. मेरी दुश्मन है. इस मुनिया के कारन इतनी मुश्किल होती है की जीना मुश्किल है..कभी कभी तो लगता है की मुनिया होती ही नहीं तो कितना अच्चा होता...आराम से रहती..ये न तो खुद जीती है न मुझे जीने देती है....है तो इतनी सी लेकिन इसके अरमान बहुत बड़े बड़े हैं..जब देखो तब इसे अपनी ही चिंता लगी रहती है...
मैं – उससे बहुत गहरी दोस्ती है तुम्हारी??? गाँव में रहती है???
सीमा – नहीं. गाँव में कैसे रहेगी. जहाँ मैं रहूंगी वही रहेगी न मेरी मुनिया..मेरे साथ साथ रहती है.
मैं – तुम्हारे साथ तो मैं रहता हूँ. मुझे तो कभी नहीं दिखी कौन है ये मुनिया? सच बताओ न ठीक से बताओ.
सीमा – कितनी बार तो देखा है आपने...दूर से भी और पास से भी....
मैं – मुझे नहीं समझ आ रहा....
सीमा – क्यों?? सीटी नहीं सुनी?? जो सीटी सीटी करते रहते हो दिन भर वो सीटी कौन बजाता है? मुझसे तो बजती नहीं. वो सीटी मेरी मुनिया ही तो बजाती है. वही तो है मुनिया. उसी का नाम है मुनिया.
मैं – हा हा हा हा हा उसे तुम मुनिया कहती हो...
सीमा – मैं नहीं सब कोई उसे मुनिया ही कहते हैं.
मैं – जी नहीं. सब कोई नहीं कहते...उसे तो भोसड़ा कहते हैं. मुनिया तो तुम कह रही हो बस.
सीमा – अरे बाप रे...मैं तो आपको बड़ा भोला समझती थी लेकिन आप तो बड़े तेज निकले....बोले भी तो क्या...सीधे भोसड़ा बोले....वाह..कहाँ से सीखा ?
मैं – अरे ये तो सब जानते हैं की उसको भोसड़ा कहते हैं.
सीमा – सैंयाँ जी.....आप रहने दो ये सब. आप मत सीखो ये सारी चीजें. आपके बस की बात नहीं है.
मैं – क्यों? मैंने कुछ गलत कहा क्या? उसे भोसड़ा नहीं कहते क्या?
सीमा – छी कितना गन्दा शब्द है....आज के बाद कभी मत कहना ये शब्द.
मैं – अच्चा मैं कहूँ तो गन्दा. और तुम जो इतनी देर से मुनिया ये मुनिया वो कह रही हो वो सब गन्दा नहीं है...
सीमा – बिलकुल नहीं है. वो तो सुनने में कितना सुन्दर लगता है...अच्छा छोटा सा शब्द...लेकिन आपका शब्द तो एकदम गन्दा है.और ये भी जां लो की जो मैं कह रही हूँ वो सबको होता है लेकिन जो आप कह रहे हैं वो सबके पास नहीं होता.
मैं – अब देखो बातों को घुमाव मत....ठीक ठीक बताओ..एकदम साफ़ साफ़ शब्दों में...
सीमा – पहले बताओ आप कड़क होने लगे न?
मैं – नहीं तो.
सीमा – झूठे मैं अभी पजामा खोल के देख लूंगी तो कड़क दिखेगा सब कुछ...बोलो हो रहे हो न कड़क..
मैं – हाँ....अपने आप ही हो गया....वो तुम जाने दो..पहले मुझे ठीक से बताओ की ये मुनिया और भोसड़ा का क्या खेल है....
सीमा – ये सब उम्र का खेल है....देखो..मेरी है मुनिया...फिर जब चिपक लूंगी हो तो हो जाएगी चूत...और फिर उसके बाद दूसरी चीज...
मैं – चूत??? हाँ ये शब्द भी सुना है बहुत बार....मुझे लगा की चूत पीछे वाले को कहते हैं...
सीमा – आपको पता है आज मैं आप से बहुत खुश हूँ इसीलिए फायदा उठा रहे हो न...
मैं – हाँ. बता दो न सबका नाम...तुम्हारे मुंह से सुन के कितना अच्चा लग रहा है...बता दो न...
सीमा – जानती हूँ बहुत अच्छा लग रहा होगा आपको..आप तो हो ही ऐसे.......जब लड़की चिपक ले और घुसवा ले अपने अन्दर तो उसकी मुनिया खुल जाती है..फिर उसे चूत कहते हैं....
मैं – वो तो समझ गया...भोसड़ा किसे कहते हैं...
सीमा – कितने उतावले हुए जा रहे हो...हा हा हा हा हा
मैं – बता दो न...बता दो न..
सीमा – जब बहुत बार चिपक ले और बहुत लोगों से चिपक ले और बहुत ज्यादा चिपके तो फिर चूत बहुत ज्यादा खुल जाती है...उसे भोसड़ा कहते हैं..इसलिए हर किसी को भोसड़ा नहीं होता. भोसड़ा उसी को होता है जो कई कई साल तो खूब चिपके. इतना चिपके की उसकी खुल जाए....तब बनती है भोसड़ा.
मैं – तुम्हें चूत चाहिए की भोसड़ा?
सीमा – हट....कुछ भी बोलते हो. अब बस. बहुत हो गया. अब चुप हो के सो जाओ. मुझे नहीं बात करनी.
मैं – बताओ न....तुम्हे भी तो कितना मजा आता है ये सब बात करने में....तुम्हारी सांस कैसे तेज हो गयी है...मुझे कहती हो और अपने को तो देखो..खुद भी तो कितना सी सी कर के बताती हो ये सब...बताओ न...
सीमा – क्यों? मुझे मजा नहीं आना चाहिए क्या??? मैं तो बहुत मजा लूंगी. पहले से बताये देती हो.....मुझे खूब मजा चाहिए..जी भर भर के......और सुनो...भोसड़ा हर औरत को नहीं होता.क्योंकि औरत तो सिर्फ एक से ही चिपकती है. तो एक से चिपक के कभी चूत भोसड़ा नहीं बनती. भोसड़ा तो तब बनती है जब उससे बहुत लोग चिपकें...जब बहुत सरे लोग चिपकते हैं तब कहीं भोसड़ा बनती है.....समझे ?
मैं – हाँ.
सीमा – अगर अभी भी न समझ में आये तो ये जां लो की भोसड़ा औरत को नहीं होता..भोसड़ा रंडी को होता है....अब समझ में आया?
मैं – हाँ. आ गया.
सीमा – अब बताओ..मुझे क्या दोगे? चूत या भोसड़ा?
मैं – चूत.
सीमा – हा हा हा हा क्यों भोसड़ा क्यों नहीं ??
मैं – क्योंकि तुमसे सिर्फ मैं चिपकुंगा.
सीमा – हाँ तो आप खुद ही इतने ताकतवर हो की अकेले अपने दम पर ही मेरी मुनिया का भोसड़ा बना देना...
मैं – हाँ...
अब मेरे मुंह से हाँ हाँ के सिवा कुछ और निकल नहीं रहा था.....आज दिन भर की उथल पुथल के बाद रात में ऐसा रंग बरसेगा ये तो मैंने सोचा नहीं था...वैसे सीमा का ये तरीका हमेशा ही काम करता था...वो अचानक ही ऐसी गरम गरम बातें शुरू कर देती थी और मैं कब उसके चक्कर में गरम हो जाता था मुझे पता भी नहीं चलता था...फिर से वही हुआ जो हर बार होता था.मेरा पूरा खून मेरे अण्डों में भर गया...लेकिन इस बार सीमा ने कुछ ऐसा किया जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी...उसे भी अंदाजा हो गया था की मेरा लंड फट जाने की हद तक कड़क हो चूका है.....उसने मुझसे पूछा भी और मैं हाँ कह दिया...उसने खुद ही मेरा कुरता और पैजामा उतर दिया....फिर मेरी चड्डी भी निकाल दी....मैं बस खड़ा था और उसे ये सब करता देख रहा था....सीमा मुझे ले के छत के उस हिस्से पर आ गयी जहाँ भैया के घर के पानी की टंकी राखी हुई थी.....उसने मुझे इशारा किया की मैं इसके ऊपर आ जाऊं.....मुझे कुछ समझ में नहीं आया लेकिन मैंने कुछ सोचा नहीं और उस टंकी के उपर चढ़ गया....टंकी ज्यादा ऊँची नहीं थी.मेरी कमर तक की ऊँचाई की थी इसलिए आसानी से चढ़ गया.....सीमा ने टंकी का ढक्कन हटाया..और मुझसे इशारे में कहा की इसके अन्दर करो.......मुझे तब समझ आया की उसने मुझे उपर चढ़ने को क्यों कहा था.....मुझे एक पल के लिए भी ये नहीं लगा की इसमें कुछ गलत है...आज इतना कुछ पहले ही हो चूका था और अपने भैया और भाभी का हमने वो रूप देख लिया था की अब ये सब करना मुझे जायज ही लग रहा था.....सो मैंने बिना किसी देरी के अपने लंड को निशाने पर लगाया और उस पानी की टंकी में अपना योगदान देने लगा.......मेरी टंकी तो खाली हो गयी..भले ही उस टंकी में उफान न आया हो...मैं नीचे उतर आया...इस काम से मैं बड़ा रोमांचित था.....लेकिन सीमा के होते रोमांच इतनी जल्दी ख़त्म कैसे हो सकता है......मैं अभी नीचे उतर के खड़ा ही हुआ था की सीमा ने अपनी साड़ी खोलनी शुरू कर दी.....मुझे समझ में आ गया की वो क्या करने वाली है...
वो टंकी मेरे लिए तो ठीक थी लेकिन उस पर चढ़ना अकेले सीमा के बस की बात नहीं थी...मैं अभी इस झटके से ही नहीं उबार पाया था की आज सीमा पहली बार मेरे सामने एकदम नंगी थी...एकदम नंगी...उसकी कमर में बंधे उस काले रेशमी धागे के सिवा उसके शरीर पर एक भी कपडा नहीं था..और उसने मुझसे कुछ छुपाने की कोशिश भी नहीं की थी.....उसने मुझे कहा की मैं उसे ऊपर चढाओं.....मैं तो राजी था ही...वो टंकी के ऊपर झुकी हुई थी..चढ़ने की कोशिश में उसने एक पैर ऊपर रखा और अपने हाथों से खुद को ऊपर खीचना चाह रही थी.....मैं उसे एकटक देखता रह गया..एक टांग ऊपर औए एक टांग नीचे....मैं उसके पीछे था और इस तरह से खड़े होने के कारण उसके पोंद एकदम खिंच गए थे....उसकी पूरी जवानी छलक के बाहर आ रही थी..उसे भी पता था की मैं किस काम में खोया हुआ हूँ...उसने मुझसे कहा भी की मुझे बाद में देख लेना.आज तो पूरी नंगी हुई हूँ आपके लिए. लेकिन अभी मुझे ऊपर करो..........मैं भी होश में आया और उसके दोनों पोंद अपने हाथ में ले लिए...उसने अपने आप को ऊपर खीचने की कोशिश की और इधर मैंने उसके पोंद पकड़ के उसे ऊपर को धकेला......वो इस बार आसानी से टंकी के ऊपर चढ़ गयी......टंकी के मुंह के दोनों तरफ एक एक टांग रखने के बाद जब वो झुकी तो मैं उसके और पास आ गया.......इस जगह से मैं उसकी धार को एक नए कोण से देख सकता था....मुझे पास में देख के उसने मेरे माथे पर हलके से धकेल के कहा “ मेरे पोंद पकड़ना जरुरी था? पीठ पकड़ के भी तो धकेल सकते थे न. बहुत बदमाश हो..” उसकी आवाज में शिकायत थी लेकिन नाराजगी नहीं थी..मैं हलके से हंसा और फिर मेरी नज़र टिक गयी उसकी मुनिया पर......और फिर वही मधुर सीटी की आवाज.....और इस बार तो नीचे टंकी में भरे पानी में उसका पानी गिरने से और भी तेज छल छल की आवाज हो रही थी...फिर उसे भी मैंने नीचे उतार लिया....
मेरी बीती जिंदगी की कहानी --7
सीमा - हाँ सच में करती थी....कई बार किया है..लेकिन किसी को छूने नहीं दिया कभी....बस दूर दूर से दर्शन करवाया है....और आप मुनिया को नहीं जानते??
मैं – नहीं.बताओ न कौन है मुनिया? तुम्हारी सहेली है कोई?
सीमा – सहेली नहीं. मेरी दुश्मन है. इस मुनिया के कारन इतनी मुश्किल होती है की जीना मुश्किल है..कभी कभी तो लगता है की मुनिया होती ही नहीं तो कितना अच्चा होता...आराम से रहती..ये न तो खुद जीती है न मुझे जीने देती है....है तो इतनी सी लेकिन इसके अरमान बहुत बड़े बड़े हैं..जब देखो तब इसे अपनी ही चिंता लगी रहती है...
मैं – उससे बहुत गहरी दोस्ती है तुम्हारी??? गाँव में रहती है???
सीमा – नहीं. गाँव में कैसे रहेगी. जहाँ मैं रहूंगी वही रहेगी न मेरी मुनिया..मेरे साथ साथ रहती है.
मैं – तुम्हारे साथ तो मैं रहता हूँ. मुझे तो कभी नहीं दिखी कौन है ये मुनिया? सच बताओ न ठीक से बताओ.
सीमा – कितनी बार तो देखा है आपने...दूर से भी और पास से भी....
मैं – मुझे नहीं समझ आ रहा....
सीमा – क्यों?? सीटी नहीं सुनी?? जो सीटी सीटी करते रहते हो दिन भर वो सीटी कौन बजाता है? मुझसे तो बजती नहीं. वो सीटी मेरी मुनिया ही तो बजाती है. वही तो है मुनिया. उसी का नाम है मुनिया.
मैं – हा हा हा हा हा उसे तुम मुनिया कहती हो...
सीमा – मैं नहीं सब कोई उसे मुनिया ही कहते हैं.
मैं – जी नहीं. सब कोई नहीं कहते...उसे तो भोसड़ा कहते हैं. मुनिया तो तुम कह रही हो बस.
सीमा – अरे बाप रे...मैं तो आपको बड़ा भोला समझती थी लेकिन आप तो बड़े तेज निकले....बोले भी तो क्या...सीधे भोसड़ा बोले....वाह..कहाँ से सीखा ?
मैं – अरे ये तो सब जानते हैं की उसको भोसड़ा कहते हैं.
सीमा – सैंयाँ जी.....आप रहने दो ये सब. आप मत सीखो ये सारी चीजें. आपके बस की बात नहीं है.
मैं – क्यों? मैंने कुछ गलत कहा क्या? उसे भोसड़ा नहीं कहते क्या?
सीमा – छी कितना गन्दा शब्द है....आज के बाद कभी मत कहना ये शब्द.
मैं – अच्चा मैं कहूँ तो गन्दा. और तुम जो इतनी देर से मुनिया ये मुनिया वो कह रही हो वो सब गन्दा नहीं है...
सीमा – बिलकुल नहीं है. वो तो सुनने में कितना सुन्दर लगता है...अच्छा छोटा सा शब्द...लेकिन आपका शब्द तो एकदम गन्दा है.और ये भी जां लो की जो मैं कह रही हूँ वो सबको होता है लेकिन जो आप कह रहे हैं वो सबके पास नहीं होता.
मैं – अब देखो बातों को घुमाव मत....ठीक ठीक बताओ..एकदम साफ़ साफ़ शब्दों में...
सीमा – पहले बताओ आप कड़क होने लगे न?
मैं – नहीं तो.
सीमा – झूठे मैं अभी पजामा खोल के देख लूंगी तो कड़क दिखेगा सब कुछ...बोलो हो रहे हो न कड़क..
मैं – हाँ....अपने आप ही हो गया....वो तुम जाने दो..पहले मुझे ठीक से बताओ की ये मुनिया और भोसड़ा का क्या खेल है....
सीमा – ये सब उम्र का खेल है....देखो..मेरी है मुनिया...फिर जब चिपक लूंगी हो तो हो जाएगी चूत...और फिर उसके बाद दूसरी चीज...
मैं – चूत??? हाँ ये शब्द भी सुना है बहुत बार....मुझे लगा की चूत पीछे वाले को कहते हैं...
सीमा – आपको पता है आज मैं आप से बहुत खुश हूँ इसीलिए फायदा उठा रहे हो न...
मैं – हाँ. बता दो न सबका नाम...तुम्हारे मुंह से सुन के कितना अच्चा लग रहा है...बता दो न...
सीमा – जानती हूँ बहुत अच्छा लग रहा होगा आपको..आप तो हो ही ऐसे.......जब लड़की चिपक ले और घुसवा ले अपने अन्दर तो उसकी मुनिया खुल जाती है..फिर उसे चूत कहते हैं....
मैं – वो तो समझ गया...भोसड़ा किसे कहते हैं...
सीमा – कितने उतावले हुए जा रहे हो...हा हा हा हा हा
मैं – बता दो न...बता दो न..
सीमा – जब बहुत बार चिपक ले और बहुत लोगों से चिपक ले और बहुत ज्यादा चिपके तो फिर चूत बहुत ज्यादा खुल जाती है...उसे भोसड़ा कहते हैं..इसलिए हर किसी को भोसड़ा नहीं होता. भोसड़ा उसी को होता है जो कई कई साल तो खूब चिपके. इतना चिपके की उसकी खुल जाए....तब बनती है भोसड़ा.
मैं – तुम्हें चूत चाहिए की भोसड़ा?
सीमा – हट....कुछ भी बोलते हो. अब बस. बहुत हो गया. अब चुप हो के सो जाओ. मुझे नहीं बात करनी.
मैं – बताओ न....तुम्हे भी तो कितना मजा आता है ये सब बात करने में....तुम्हारी सांस कैसे तेज हो गयी है...मुझे कहती हो और अपने को तो देखो..खुद भी तो कितना सी सी कर के बताती हो ये सब...बताओ न...
सीमा – क्यों? मुझे मजा नहीं आना चाहिए क्या??? मैं तो बहुत मजा लूंगी. पहले से बताये देती हो.....मुझे खूब मजा चाहिए..जी भर भर के......और सुनो...भोसड़ा हर औरत को नहीं होता.क्योंकि औरत तो सिर्फ एक से ही चिपकती है. तो एक से चिपक के कभी चूत भोसड़ा नहीं बनती. भोसड़ा तो तब बनती है जब उससे बहुत लोग चिपकें...जब बहुत सरे लोग चिपकते हैं तब कहीं भोसड़ा बनती है.....समझे ?
मैं – हाँ.
सीमा – अगर अभी भी न समझ में आये तो ये जां लो की भोसड़ा औरत को नहीं होता..भोसड़ा रंडी को होता है....अब समझ में आया?
मैं – हाँ. आ गया.
सीमा – अब बताओ..मुझे क्या दोगे? चूत या भोसड़ा?
मैं – चूत.
सीमा – हा हा हा हा क्यों भोसड़ा क्यों नहीं ??
मैं – क्योंकि तुमसे सिर्फ मैं चिपकुंगा.
सीमा – हाँ तो आप खुद ही इतने ताकतवर हो की अकेले अपने दम पर ही मेरी मुनिया का भोसड़ा बना देना...
मैं – हाँ...
अब मेरे मुंह से हाँ हाँ के सिवा कुछ और निकल नहीं रहा था.....आज दिन भर की उथल पुथल के बाद रात में ऐसा रंग बरसेगा ये तो मैंने सोचा नहीं था...वैसे सीमा का ये तरीका हमेशा ही काम करता था...वो अचानक ही ऐसी गरम गरम बातें शुरू कर देती थी और मैं कब उसके चक्कर में गरम हो जाता था मुझे पता भी नहीं चलता था...फिर से वही हुआ जो हर बार होता था.मेरा पूरा खून मेरे अण्डों में भर गया...लेकिन इस बार सीमा ने कुछ ऐसा किया जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी...उसे भी अंदाजा हो गया था की मेरा लंड फट जाने की हद तक कड़क हो चूका है.....उसने मुझसे पूछा भी और मैं हाँ कह दिया...उसने खुद ही मेरा कुरता और पैजामा उतर दिया....फिर मेरी चड्डी भी निकाल दी....मैं बस खड़ा था और उसे ये सब करता देख रहा था....सीमा मुझे ले के छत के उस हिस्से पर आ गयी जहाँ भैया के घर के पानी की टंकी राखी हुई थी.....उसने मुझे इशारा किया की मैं इसके ऊपर आ जाऊं.....मुझे कुछ समझ में नहीं आया लेकिन मैंने कुछ सोचा नहीं और उस टंकी के उपर चढ़ गया....टंकी ज्यादा ऊँची नहीं थी.मेरी कमर तक की ऊँचाई की थी इसलिए आसानी से चढ़ गया.....सीमा ने टंकी का ढक्कन हटाया..और मुझसे इशारे में कहा की इसके अन्दर करो.......मुझे तब समझ आया की उसने मुझे उपर चढ़ने को क्यों कहा था.....मुझे एक पल के लिए भी ये नहीं लगा की इसमें कुछ गलत है...आज इतना कुछ पहले ही हो चूका था और अपने भैया और भाभी का हमने वो रूप देख लिया था की अब ये सब करना मुझे जायज ही लग रहा था.....सो मैंने बिना किसी देरी के अपने लंड को निशाने पर लगाया और उस पानी की टंकी में अपना योगदान देने लगा.......मेरी टंकी तो खाली हो गयी..भले ही उस टंकी में उफान न आया हो...मैं नीचे उतर आया...इस काम से मैं बड़ा रोमांचित था.....लेकिन सीमा के होते रोमांच इतनी जल्दी ख़त्म कैसे हो सकता है......मैं अभी नीचे उतर के खड़ा ही हुआ था की सीमा ने अपनी साड़ी खोलनी शुरू कर दी.....मुझे समझ में आ गया की वो क्या करने वाली है...
वो टंकी मेरे लिए तो ठीक थी लेकिन उस पर चढ़ना अकेले सीमा के बस की बात नहीं थी...मैं अभी इस झटके से ही नहीं उबार पाया था की आज सीमा पहली बार मेरे सामने एकदम नंगी थी...एकदम नंगी...उसकी कमर में बंधे उस काले रेशमी धागे के सिवा उसके शरीर पर एक भी कपडा नहीं था..और उसने मुझसे कुछ छुपाने की कोशिश भी नहीं की थी.....उसने मुझे कहा की मैं उसे ऊपर चढाओं.....मैं तो राजी था ही...वो टंकी के ऊपर झुकी हुई थी..चढ़ने की कोशिश में उसने एक पैर ऊपर रखा और अपने हाथों से खुद को ऊपर खीचना चाह रही थी.....मैं उसे एकटक देखता रह गया..एक टांग ऊपर औए एक टांग नीचे....मैं उसके पीछे था और इस तरह से खड़े होने के कारण उसके पोंद एकदम खिंच गए थे....उसकी पूरी जवानी छलक के बाहर आ रही थी..उसे भी पता था की मैं किस काम में खोया हुआ हूँ...उसने मुझसे कहा भी की मुझे बाद में देख लेना.आज तो पूरी नंगी हुई हूँ आपके लिए. लेकिन अभी मुझे ऊपर करो..........मैं भी होश में आया और उसके दोनों पोंद अपने हाथ में ले लिए...उसने अपने आप को ऊपर खीचने की कोशिश की और इधर मैंने उसके पोंद पकड़ के उसे ऊपर को धकेला......वो इस बार आसानी से टंकी के ऊपर चढ़ गयी......टंकी के मुंह के दोनों तरफ एक एक टांग रखने के बाद जब वो झुकी तो मैं उसके और पास आ गया.......इस जगह से मैं उसकी धार को एक नए कोण से देख सकता था....मुझे पास में देख के उसने मेरे माथे पर हलके से धकेल के कहा “ मेरे पोंद पकड़ना जरुरी था? पीठ पकड़ के भी तो धकेल सकते थे न. बहुत बदमाश हो..” उसकी आवाज में शिकायत थी लेकिन नाराजगी नहीं थी..मैं हलके से हंसा और फिर मेरी नज़र टिक गयी उसकी मुनिया पर......और फिर वही मधुर सीटी की आवाज.....और इस बार तो नीचे टंकी में भरे पानी में उसका पानी गिरने से और भी तेज छल छल की आवाज हो रही थी...फिर उसे भी मैंने नीचे उतार लिया....
अब इस समय छत पर हम दोनों नंगे थे..न उसने कुछ पहना न मैंने...न उसने कुछ कहा न मैंने.....न उसकी साँसें धीमी हो रही थी न मेरी..न उसकी धड़कन शांत हो रही थी न मेरी...चरों तरफ सन्नाटा...हलकी हलकी रौशनी से ज्यादा कुछ नहीं था...हम एक दुसरे को देख रहे थे...मैं बुरी तरह से बेचैन था उसे जकड लेने के लिए और जनता था की वो भी चिपक जाने के लिए एकदम तैयार थी...लेकिन न उसने पहल की और ना ही मैंने...हम ऐसे ही एक दुसरे के सामने बहुत देर तक बैठे रहे.....शायद ये भी हमारे काबू करने का कोई इम्तिहान ही था....हमें कोई जल्दीबाजी नहीं थी....आज मैं इस बात से ही खुश था की सीमा आज पहली बार मेरे सामने अपनी इच्छा से एकदम नंगी हुई है..और उसने अभी भी खुद को ढंका नहीं था......मैं इस बात से भी खुश था की आज उसके शरीर के एक हिस्से को मैंने छुआ भी थ...न सिर्फ छुआ था बल्कि ऊपर चढाने के बहाने बढ़िया ढंग से दबा भी लिया था.........मुझे ये भी समझ में आया की आज सीमा ने इतना ज्यादा पानी क्यों पिया था और मुझे भी पिलाया था.....रात भर हम यही करते रहे..उनकी टंकी को हमने अच्छी तरह से भर दिया....जब जब सीमा को ऊपर चढ़ना होता मैं उसे पीछे से धक्का देता और वो बिना किसी हिचक के मुझे अपने पोंद दबाने का पूरा मौका देती.......जब सुबह की पहली किरण फूटने लगी तो हमने उस टंकी का एक बार और प्रयोग किया..इस बार अपना पेट भी साफ़ किया और फिर कपडे पहन के तैयार हो गए....भैया और भाभी के जागने के पहले ही हम वहां से निकल जाना चाहते थे..और हमने वही किया.....
कर्फ्यू हट गया था और जैसे जैसे सूरज की रौशनी बढ़ रही थी सड़क पर लोगों की चहल पहल बढ़ रही थी.....मेरा मन कुछ शांत था..और मन के शांत होते ही पीठ के दर्द ने अपनी दस्तक दे दी थी.........ये भी एक आश्चर्य की बात थी की दिन भर और रात भर लगातार इतना कुछ हो रहा था की पीठ के दर्द की तरफ ध्यान ही नहीं गया...और अब जैसे ही मन कुछ शांत हुआ तो दर्द एकदम से जाग गया....सीमा मेरे बगल में चल रही थी.......हम लोग इस बार बस अड्डे नहीं गए.....बल्कि राह पूछते पूछते उस जगह पहुचे जहाँ उन साहब ने अपने ठेकेदार दोस्त के काम के बारे में बताया था...अभी उस जगह पर कोई भी नहीं था....वहां के काम करने वाले शायद अभी पहुचे नहीं थे.....हमने देखा की ये कोई कॉलोनी बन रही थी....बहुत सरे घर एक साथ बन रहे थे..हालांकि अभी काम पूरा नहीं हुआ था.....लेकिन अपने सामने फैली उस लम्बी घरों की श्रंखला को देख के हम दोनों के ही मन में ये ख्याल आया की किसी न किसी दिन इन्ही में से एक घर हमारे नाम का भी होगा........अपना झोला लिए हम उस कॉलोनी के दरवाजे के किनारे बैठ के और लोगों के आने का इन्तेजार करते रहे....
कर्फ्यू हट गया था और जैसे जैसे सूरज की रौशनी बढ़ रही थी सड़क पर लोगों की चहल पहल बढ़ रही थी.....मेरा मन कुछ शांत था..और मन के शांत होते ही पीठ के दर्द ने अपनी दस्तक दे दी थी.........ये भी एक आश्चर्य की बात थी की दिन भर और रात भर लगातार इतना कुछ हो रहा था की पीठ के दर्द की तरफ ध्यान ही नहीं गया...और अब जैसे ही मन कुछ शांत हुआ तो दर्द एकदम से जाग गया....सीमा मेरे बगल में चल रही थी.......हम लोग इस बार बस अड्डे नहीं गए.....बल्कि राह पूछते पूछते उस जगह पहुचे जहाँ उन साहब ने अपने ठेकेदार दोस्त के काम के बारे में बताया था...अभी उस जगह पर कोई भी नहीं था....वहां के काम करने वाले शायद अभी पहुचे नहीं थे.....हमने देखा की ये कोई कॉलोनी बन रही थी....बहुत सरे घर एक साथ बन रहे थे..हालांकि अभी काम पूरा नहीं हुआ था.....लेकिन अपने सामने फैली उस लम्बी घरों की श्रंखला को देख के हम दोनों के ही मन में ये ख्याल आया की किसी न किसी दिन इन्ही में से एक घर हमारे नाम का भी होगा........अपना झोला लिए हम उस कॉलोनी के दरवाजे के किनारे बैठ के और लोगों के आने का इन्तेजार करते रहे....
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