FUN-MAZA-MASTI
मेरी बीती जिंदगी की कहानी --9
मैं – मुझे समझ नहीं आया...
सीमा – ओफ्फ ओ...अब कैसे बताऊँ....सुनिए मैं परसों से बहुत ज्यदा गरम रहूंगी...
मैं – मौसम ही गरम है.मैं भी तो गरम हूँ. मैं तो आज ही गरम हूँ तुम तो परसों गरम होगी. दिन भर धुप लगी है.
सीमा – मैं उस वाले गरम की बात नहीं कर रही.
मैं – तो फिर?
सीमा – मैं चिपकने के लिए कहूँगी आपको....जैसा मर्द और औरत चिपकते हैं न ..वैसे चिपकने के लिए....और बहुत तेज आग जलेगी मेरे अन्दर ऐसा कने की..इसलिए आप से कह रही हूँ की मेरी बात मन सुनियेगा और मुझसे दूर रहिएगा...अभी आपको तीन महीने और इन्तेजार करना है..उसके बाद चिपकने का समय आएगा...लेकिन अभी नहीं. अभी किसी भी हाल में नहीं...आप समझ रहे हैं न.....
मैं – हाँ.
मैंने हाँ तो कह दिया था लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आया था.......खैर...मैं अपने काम पर चला आया...आज भी खाना मैंने ही बना दिया था....वो दिन भी निकल गया.....मेरा काम लगातार ठीक चल रहा था..मुंशी जो रोज मुझे देखते और मेरा काम देख के बहुत खुश होते...बाकी के लोग भी अब धीरे धीरे मेरे बारे में जान गए थे....वहां काफी लोग काम करते थे..कुछ मिस्त्री भी थे...कुछ सिर्फ मजदूर थे...सब धीरे धीरे मुझे पहचान गए थे और मैं भी उनके नाम जान गया था...कभी कभी किसी के साथ बैठ के थोड़ी बहुत बात भी हो जाती थी.....इन लोगों से बात कर के मेरा मन थोड हलका होता था वरना तो दिन भर ही मेरे मन में सीमा की तबियत का ख्याल ही रहता था..कई बार मन हुआ की किसी से इस बारे में पूछ लूं...अगर ये सब औरतों को होता है तो शायद इन लोगों को इस बारे में कुछ मालूम होगा...लेकिन ऐसा करने में बहुत झिझक महसूस हुई...फिर ये भी लगा की पता नहीं किसकी नीयत कैसी हो और कौन क्या जवाब देगा.....मैं अपने मन की शंका मन में ही लिए रहा....एक दिन और बीता.....अगली सुबह....मुझसे पहले सीमा उठ गयी थी...वो आज एकदम ठीक दिख रही थी..उसने तीन दिन के बाद अपने कपडे बदले थे..मुझे उठाने के पहले ही उठ गयी थी..नाहा ली थी...और खिचड़ी भी रख दी थी बन्ने के लिए.....मुझे उठा के उसने फुर्सत होने के लिए भेज दिया....मैं फुर्सत हो के आया तो उसे देख के बहुत खुश हुआ..आज वो फिर से पुराणी वाली सीमा दिख रही थी...चेहरा एकदम शैतानी से भरा हुआ.......आज सब काम खुद ही कर रही थी..मुझे देख के मुस्कुरा भी रही थी....
सीमा – खिचड़ी खा के आपको काम पे जाना होगा न.
मैं – हाँ. क्यों?
सीमा – नहीं. ऐसे ही पूछा....सुनो......आज अगर मैं कुछ भी करूँ या कहूँ तो मुझे करने मत देना...
मैं – क्यों?
सीमा - बताया था न. बस मत करने देना...एक दो दिन की बात है. उसके बाद मैं एकदम ठीक हो जाउंगी.
मैं – हाँ हाँ चिपकने वाली बात.
सीमा – हां चिपकने वाली बात....सुनो सिर्फ उतना ही नहीं...बल्कि मुझे कुछ भी मत करने देना....
मैं – और क्या क्या नहीं करने देना है?
सीमा – जैसे मैं आपको कहूँ की आओ मेरी सीटी सुन लो...तो मत आना..मैं आपसे कहूँ की मुझे सटा के सो जाओ तो मत सोना...मैं कहूँ की मुझे गर्मी लग रही है मैं नंगी सोयुंगी तो मुझे नंगी मत होने देना..मैं किसी भी बात पर सी सी करने लगूं तो वो बात बंद कर देना....
मैं – हाँ. ठीक है. चलो अब मैं जाता हूँ काम पे...
मैं उठ के चलने को हुआ....सीमा मुझे ही देख रही थी.......मुझे शरारत सूझी...मैंने अपना कुरता ऊपर किया और पैजामे में हाथ डालते हुए बोला “सुनो आज बड़ी खुजली हो रही है यहाँ....” मैं अपने हाथ से अपने लंड को मसल रहा था और सीमा मुझे देख रही थी...अभी उसने मुझे ये सब नहीं करने को कहा था और मैं ठीक यही कर रहा था...जरुर उसके अन्दर की आग और तेज भड़की होगी...उसके चेहरे का रंग ही बदल गया...मुझे उसके चेहरे का वो भाव कभी नहीं भूलता....उसकी आँखों में इस कदर वासना तैर रही थी की उसका बस चलता तो उसी समय कूद कर मेरे ऊपर चढ़ जाती और कभी उतरती ही नहीं....मैं हँसता हुआ वहां से बाहर आ गया......जब उसकी तबियत ख़राब थी तब भी मेरा दिल नहीं लग रहा था काम करने में और आज जब की उसकी तबियत कुछ अलग ही रंग की है तब भी मेरा ध्यान बार बार उसकी बातों पर जा रहा था...मैं दोपहर के खाने कि छुट्टी का इंतजार कर रहा था.....दोपहर में जब वापस आया तो अपना कुरता उतार दिया और जान बुझकर सिर्फ पैजामा पहने हुए पैर फैला के बैठ गया...लंड तो खड़ा था ही....सीमा भी एकदम गरम थी....उसने भी अपनी साड़ी घुटनों तक ऊपर कर राखी थी....और वो भी पैर पुरे फैला के बैठी हुई थी....एक दिन हम इतने खुश थे की कोई बात नहीं की और आज हम इतने गरम थे की कोई बात नहीं की...बस एक दुसरे की आँखों में देखते और फिर एक दुसरे के फैले हुए पैरों के बीच से शरीर का अंदाजा करते...और फिर अपना खाना खाने लगते......मैं वापस काम पर आ गया....आज मुंशी जी से बात हुई तो उन्होंने मुझसे कहा की यहाँ के चौकीदार का काम ठीक नहीं है. अगर मैं चहुँ तो वो बड़े साहब से कह के मुझे चौकीदारी का काम भी दिलवा देंगे. मुझे चौकीदार का कमरा मिल जायेगा लेकिन अलग से पैसा नहीं मिलेगा. पैसा सिर्फ मजदूरी का ही मिलेगा....मैंने उनसे कहा की मैं अपनी पत्नी से पूछ के बताऊंगा...मुंशी जी ने मुझे थोडा चौंक के देखा पर कुछ बोले नहीं.....रात में घर आकर यही बात मैंने सीमा को बताई...
सीमा – आपने उनसे ये क्यों कहा की मैं अपनी पत्नी से पूछ के बताऊंगा?
मैं – क्यों? तुमसे पूछना तो था ही. इसलिए कह दिया.
सीमा – देखिये आज सब काम मुझसे पूछ के करते हैं लेकिन ये बात कभी किसी से कहियेगा नहीं....
मैं – क्यों?
सीमा – क्योंकि सब लोग आपको जोरू का घुलाम समझेंगे....मर्द अगर औरत की बात मान के चले तो उसे कमजोर समझा जाता है. सब आपका मजाक उड़ायेंगे.
मैं – लेकिन मैं तो तुमसे पुछु के ही करूँगा न सब काम. किसी को जो सोचना है वो सोचे. मुझे क्या.
सीमा – हाँ करेंगे तो आप मुझसे पपूछ के ही. लेकिन किसी और को नहीं बताएँगे की आप ऐसा करते हैं....बस जो कह रही हूँ वो सुन लीजिये.
मैं – ठीक है. सुन लिया. अब सोने दोगी या अभी और ज्ञान देना है.
सीमा – ज्ञान तो नहीं देना. हाँ कुछ है देने को. लेकिन अभी आप लेने लायक नहीं हुए...
(मैं समझ गया की उसका ध्यान फिर से उसकी गरमी की तरफ खिंच गया है...हम लोग खिचड़ी खा चुके थे और अब बस सोना ही बाकी था )
मैं – क्या देने लायक है तुम्हारे पास?
सीमा – कुछ नहीं. अब सो जाईये. सुनिए आप इतनी दूर क्यों सोते हैं?
मैं – क्यों? दूर न सोया करूँ? तुमसे चिपक के सोया करूँ???
सीमा – नहीं. नहीं. आप दूर ही सोयिये.
मैं – हा हा हा हा सीमा तुम्हें हुआ क्या है....
सीमा – मेरा मन कर रहा है की आप मुझे जोर से दबा लीजिये अपने नीचे.....मेरा बहुत ज्यादा मन कर रहा है.
मैं – और क्या मन कर रहा है बताओ...ठीक से बताओ.....
सीमा – मेरा मन कर रहा है की आप आज मुझे अपनी बीवी बना लीजिये...मैं ही मना करती हूँ हमेशा की अभी नहीं अभी नहीं. लेकिन आज मैं ही कह रही हूँ..बना लीजिये मुझे अपना. मुझे अपने नीचे ले लीजिये.मेरी आग बुझा दीजिये. मेरे साथ सुहागरात मना लीजिये.
मैं – और क्या मन कर रहा है?
सीमा – और मेरा मन कर रहा है की मैं आपको अपने ऊपर चिपका लूं...आपका पूरा वजन मेरे शरीर पर पड़े..मेरे शरीर में जो अकडन सी हो रही है वो ख़त्म हो जाए....आप बहुत जोर जोर से मुझे अपना बना लीजिये.....रात भर अपना बनाते रहिये....मैंने रोने लग जाऊं तब भी मत रुकिए..बना लीजिये न अपना.........
मैं – और क्या मन कर रहा है?
सीमा – आप तो बस बात ही करते हैं..क्या क्या बताऊँ आपको.....इस समय तो मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ...
मैं – अभी तो कर लोगी लेकिन बाद में तुम्हें ही लगेगा की नहीं करना चाहिए था. है न? लगेगा न?
सीमा – हाँ...लेकिन अभी तो एकदम पागल हुयी जा रही हूँ...क्या करूँ इस मुनिया का....आप कुछ कर दीजिये न मेरी मुनिया का...मेरी मुनिया...मेरी मुनिया..क्यों मुझे ऐसे पागल कर रही है रे...तुझे तेरा साथी मिलेगा.....कुछ दिन सबर कर ले.....सुनिए न...मुझसे नहीं रहा जा रहा...कुछ कीजिये न मेरे साथ.....
सीमा आज एकदम अलग लग रही थी....बिलकुल ही अलग..अभी तक किसी भी दिन कभी भी उसके इस रूप की झलक नहीं देखि थी....आज उसे इस हाल में देख के एक बार तो खुद मैं भी पागल होने लगा था......मैं बाहर आया और ठीक से देखा की कोई है तो नहीं.....फिर अन्दर आया...और अपने कपडे उतारने लगा......मुझे देख के सीमा ने भी अपनी चोली खोलनी शुरू की लेकिन मैंने उसे मना कर दिया...मैंने अपने पुरे कपडे उतारे..मैं एकदम नंगा था...लेकिन सीमा अपने पुरे कपड़ों में थी...सीमा बार बार मेरे लंड को देख रही थी और उसके मुंह से लार टपक रही थी....सीमा इस समय किसी जानवर की तरह हो गयी थी...मैं अपना नंगा बदन ले के उसके ठीक सामने जा के बैठ गया........वो मुझे देखती फिर मेरे लंड को देखती....न उसे समझ आ रहा था की अब क्या करें और ना ही मुझे...कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे..मेरा लंड बार बार ठुनकी मार रहा था..सीमा की साँसे लगातार तेज चल रही थी...फिर सीमा ने मुझे अपने ऊपर खीच लिया और लेट गयी...उसने एक ही झटके में ये काम किया...वो पूरी लेटी हुई थी और मैं उसके ऊपर था.....उसने अपनी टाँगे थोड़ी फैला ली थी...इससे मेरी टाँगे उसकी टांगों के बीच घुस गयी थी......
फिर काफी देर तक हम ऐसे ही लेते रहे...दिमाग ने तो काम करना ही बंद कर दिया था.....लेकिन हमारे शरीर अलग नहीं होना चाह रहे थे....हम एक दुसरे को देख रहे थे....लेकिन हमें ये नहीं पता था उस समय की चुम्बन भी एक चीज होती है..शरीर को दबाना उसे चाटना भी एक चीज होती है....हम सिर्फ इतना जानते थे की अन्दर घुसा देना ही सब कुछ होता है...और अभी हम वही नहीं करना चाहते थे...उसके बदले एक दुसरे से खेलना और एक दुसरे को चूमना हमें पता नहीं था.....अब अजीब हालत हो गयी थी...जो करना जानते थे वो कर नहीं सकते थे.....मेरा लंड भी अकड़ा हुआ था बहुत देर से..उसकी बुर तो खैर सुबह से ही जल रही थी...ऐसे ही हम एक दुसरे के ऊपर लेते रहे...फिर जब कुछ समझ में नहीं आया तो मैं अलग हट गया...........मैंने सीमा से कहा तुम भी नंगी हो जाओ....सीमा तो जैसे इस बात का इन्तजार ही कर रही थी...उसे नंगी होने में एक पल भी नहीं लगा....
मैं – अब इसके आगे क्या करते हैं?
सीमा – मैंने जिनको चिपके हुए देखा है वो तो बस अन्दर डाल के हिलते हैं.
मैं – हम तो अभी अन्दर नहीं डाल सकते. हम क्या करें?
सीमा – वो लोग एक दुसरे को चुम्मा चाटी करते हैं...
मैं – कहाँ चुमते हैं?
सीमा – दूध के ऊपर.
मैं – तुम्हारे तो अभी दूध ही नहीं निकले हैं. छोटे छोटे तो हैं. इन्हें कैसे चुम्मा चाटी करूँ?
सीमा – हाँ. अभी तो बहुत छोटे हैं.
मैं – और क्या करते हैं?
सीमा – बस मुझे इतना ही पता है....पहले दूध को चाट लेते हैं फिर अन्दर डाल देते हैं. फिर आगे पीछे हिलते हैं.
मैं – मैं कब तुम्हारे अन्दर डालने लायक होऊंगा?
सीमा – आप तो हो गए हो. मैं नहीं हूँ अभी अन्दर लेने लायक.....
मैं – अभी और कितना समय लगेगा?
सीमा – बस दो तीन महीने और....उसके बाद मैं बी हो जाउंगी...
मैं – लेकिन ये समय कैसे बीतेगा...
सीमा – नहीं पता..मेरा तो आज इतना ज्यादा मन हो रहा है..अभी आप जब ऊपर लेटे हुए थे तो पुरे शरीर को राहत मिल रही थी...कुछ दिनों से शरीर एकदम अकड़ रहा था मेरा....आपको अपने ऊपर ले के बहुत अच्छा लग रहा थ...
मैं – मुझे भी तुम्हारे ऊपर लेट के बहुत अच्चा लगा...ऐसे लेटने पर मेरा ये दब जाता है..इस पर जोर पड़ता है तो बहुत अच्छा लगता है...तुम्हारे दूध कब बड़े होंगे?
सीमा – दो तीन साल में बड़े हो जायेंगे. अभी तो शुरू हुए हैं न...
मैं – अपने आप बड़े हो जायेंगे.?
सीमा – हाँ अपने आप ही हो जाते हैं..पता नहीं मुझे...आप जब मेरे अन्दर डालोगे तो ये अपने आप बड़े होने लगेंगे.
मैं – खूब बड़े बड़े हो जायेंगे?
सीमा – आपको खूब बड़े बड़े अच्छे लगते हैं?
मैं – हाँ....जैसे भाभी के हैं न.
सीमा – हाँ भाभी के तो बहुत बड़े बड़े हैं.....आपने उनके दूध देखे हैं?
मैं – नहीं. ऐसे ही कभी कभी पल्लू नीच होता है तो दिख जाते हैं.
सीमा – हाँ उनके तो बहुत बड़े बड़े हैं.जरुर भैया रोज उनके अन्दर डालते होन्ग...तभी तो इतने बड़े हो गए.
मैं – मैं भी रोज तुम्हारे अन्दर डाला करूँगा फिर तुम्हारे भी इतने बड़े हो जायेंगे...
सीमा – हाँ...लेकिन अभी क्या करें...अभी के लिए कुछ सोचो न.....
मैं – मैं क्या सोचूं? सब कुछ तो तुम जानती हो. जब तुम्हें ही कुछ नहीं सूझ रहा तो मुझे क्या पता होगा...तुम बताओ न कुछ...कभी किसी को कुछ और करते देखा होगा...
सीमा – बस ऐसे एक दुसरे से चिपक के हिलाते देखा है. और कुछ नहीं. सच में.....
हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे.....ये अपने आप में बड़ी उदासी वाला समय था..हम दोनों एकदम गरम थे लेकिन हमें ये समझ नहीं आ रहा था की करें क्या.......और ऊपर से अभी और इंतजार करना बाकी है ये ख्याल भी जान खाए जा रहा था....ऐसे ही सो जाने के सिवा हमारे पास कोई चारा नहीं बचा था.......हम सोने लगे तो सीमा ने कहा की मैं फिर से कुछ देर के लिए उसके ऊपर आ जाऊ......लेकिन हम दोनों तो नंगे थे इसलिए सीमा ने अपनी साड़ी उठाई और अपनी मुनिया के ऊपर रख ली...मैं फिर से उसके ऊपर लेट गया....लेकिन इसके सिवा कुछ और नहीं किया..क्योंकि इसके बाद क्या करना है ये न उसे समझ आ रहा था न मुझे...बस एक दुसरे के बदन को इतने करीब से छू कर जितना सुकून मिल सकता था हमें उसी में गुजारा करना था......
अगले दिन मैंने मुंशी जी को बता दिया की मुझे चौकीदारी भी दे दी जाए.....हम लोग उस कोने से उठ कर चौकीदार को दिए जाने वाले कमरे में आ गए....ये सिर्फ एक कमरा था..कोई खिड़की नहीं....ज्यादा बड़ी जगह नहीं थी....हाँ इतना जरुर था की चार दीवारे थी और सर पर छत थी....पहले के जैसे हमें खुले में नहीं रहना था.....सीमा ने इसे ही अपने ढंग से सजा लिया था..कमरे के एक कोने में उसने अपना चूल्हा बना लिया था..हाँ इस कमरे की सबसे बड़ी बात ये थी की इसमें एक बाथरूम था....उसमे दरवाजा भी लगा हुआ था.....बाथरूम कमरे के अन्दर से ही था तो कहीं बहार से जाने की जरुरत नहीं थी.....मुझे पैसा सिर्फ मेरी मजदूरी के हिसाब से ही मिलने वाला था...लेकिन इतना हमारे लिए बहुत था....हम हफ्ते में एक बार बाहर जाते और अपने लिए चावल और नमक ले आते.....अभी तक हम सिर्फ खिचड़ी ही खा रहे थे क्योंकि वही सबसे सस्ती पड़ती थी....ऐसा ही कई हफ़्तों तक चलता रहा...उस जगह पर मेरे काम से सभी प्रभावित थे..मुंशी जी तो हम दोनों से इतने खुश थे की काम ख़त्म होने के बाद वो अपना हिसाब किताब हमारे यहाँ बैठ के ही करते थे..कभी कभी हमें वो अपने घर से कुछ खाना भी ला के दे देते थे........कई हफ़्तों तक लगातार सब कुछ ठीक रहा...कोई दिक्कत नहीं हुई किसी भी काम में.......पैसा लगातार मिल ही रहा था और सीमा उसमे से बहुत कुछ बचा भी लेती थी........हाँ हमारे बीच ज्यादा कुछ हो नहीं पा रहा था..हम दोनों ही एक दुसरे से एकदम खुल गए थे..हमारे बीच कोई शर्म या झिझक नहीं थी..लेकिन हमें पता ही नहीं था की अन्दर डालने के अलावा और क्या क्या किया जा सकता है....सीटी तो हमारे बीच एक नियम जैसा था...अब तो बाथरूम भी था हमारे पास....रोज सुबह उसकी सीटी देख के शुरू होती और रोज रत को सोने से पहले उसी सीटी के दर्शन होते थे....लेकिन सीटी से आगे कैसे बढ़ें ये समझ में नहीं आ रहा था....हम दोनों ही दिनों के बीतने की उलटी गिनती गिन रहे थे.......
एक दिन जब काम के बाद घर लौटा तो सीमा ने मुझे कुछ पैसे दिए और मुझे कहा की बस अड्डे जाईये..और वहां से कुछ किताबें ले आईये.....मैंने उससे किताबों का नाम पूछा तो उसने बताया की कोक शास्त्र और सचित्र सुहागरात के नाम से जो किताबें होंगी वो लेते आईयेगा...
मेरी बीती जिंदगी की कहानी --9
मैं – मुझे समझ नहीं आया...
सीमा – ओफ्फ ओ...अब कैसे बताऊँ....सुनिए मैं परसों से बहुत ज्यदा गरम रहूंगी...
मैं – मौसम ही गरम है.मैं भी तो गरम हूँ. मैं तो आज ही गरम हूँ तुम तो परसों गरम होगी. दिन भर धुप लगी है.
सीमा – मैं उस वाले गरम की बात नहीं कर रही.
मैं – तो फिर?
सीमा – मैं चिपकने के लिए कहूँगी आपको....जैसा मर्द और औरत चिपकते हैं न ..वैसे चिपकने के लिए....और बहुत तेज आग जलेगी मेरे अन्दर ऐसा कने की..इसलिए आप से कह रही हूँ की मेरी बात मन सुनियेगा और मुझसे दूर रहिएगा...अभी आपको तीन महीने और इन्तेजार करना है..उसके बाद चिपकने का समय आएगा...लेकिन अभी नहीं. अभी किसी भी हाल में नहीं...आप समझ रहे हैं न.....
मैं – हाँ.
मैंने हाँ तो कह दिया था लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आया था.......खैर...मैं अपने काम पर चला आया...आज भी खाना मैंने ही बना दिया था....वो दिन भी निकल गया.....मेरा काम लगातार ठीक चल रहा था..मुंशी जो रोज मुझे देखते और मेरा काम देख के बहुत खुश होते...बाकी के लोग भी अब धीरे धीरे मेरे बारे में जान गए थे....वहां काफी लोग काम करते थे..कुछ मिस्त्री भी थे...कुछ सिर्फ मजदूर थे...सब धीरे धीरे मुझे पहचान गए थे और मैं भी उनके नाम जान गया था...कभी कभी किसी के साथ बैठ के थोड़ी बहुत बात भी हो जाती थी.....इन लोगों से बात कर के मेरा मन थोड हलका होता था वरना तो दिन भर ही मेरे मन में सीमा की तबियत का ख्याल ही रहता था..कई बार मन हुआ की किसी से इस बारे में पूछ लूं...अगर ये सब औरतों को होता है तो शायद इन लोगों को इस बारे में कुछ मालूम होगा...लेकिन ऐसा करने में बहुत झिझक महसूस हुई...फिर ये भी लगा की पता नहीं किसकी नीयत कैसी हो और कौन क्या जवाब देगा.....मैं अपने मन की शंका मन में ही लिए रहा....एक दिन और बीता.....अगली सुबह....मुझसे पहले सीमा उठ गयी थी...वो आज एकदम ठीक दिख रही थी..उसने तीन दिन के बाद अपने कपडे बदले थे..मुझे उठाने के पहले ही उठ गयी थी..नाहा ली थी...और खिचड़ी भी रख दी थी बन्ने के लिए.....मुझे उठा के उसने फुर्सत होने के लिए भेज दिया....मैं फुर्सत हो के आया तो उसे देख के बहुत खुश हुआ..आज वो फिर से पुराणी वाली सीमा दिख रही थी...चेहरा एकदम शैतानी से भरा हुआ.......आज सब काम खुद ही कर रही थी..मुझे देख के मुस्कुरा भी रही थी....
सीमा – खिचड़ी खा के आपको काम पे जाना होगा न.
मैं – हाँ. क्यों?
सीमा – नहीं. ऐसे ही पूछा....सुनो......आज अगर मैं कुछ भी करूँ या कहूँ तो मुझे करने मत देना...
मैं – क्यों?
सीमा - बताया था न. बस मत करने देना...एक दो दिन की बात है. उसके बाद मैं एकदम ठीक हो जाउंगी.
मैं – हाँ हाँ चिपकने वाली बात.
सीमा – हां चिपकने वाली बात....सुनो सिर्फ उतना ही नहीं...बल्कि मुझे कुछ भी मत करने देना....
मैं – और क्या क्या नहीं करने देना है?
सीमा – जैसे मैं आपको कहूँ की आओ मेरी सीटी सुन लो...तो मत आना..मैं आपसे कहूँ की मुझे सटा के सो जाओ तो मत सोना...मैं कहूँ की मुझे गर्मी लग रही है मैं नंगी सोयुंगी तो मुझे नंगी मत होने देना..मैं किसी भी बात पर सी सी करने लगूं तो वो बात बंद कर देना....
मैं – हाँ. ठीक है. चलो अब मैं जाता हूँ काम पे...
मैं उठ के चलने को हुआ....सीमा मुझे ही देख रही थी.......मुझे शरारत सूझी...मैंने अपना कुरता ऊपर किया और पैजामे में हाथ डालते हुए बोला “सुनो आज बड़ी खुजली हो रही है यहाँ....” मैं अपने हाथ से अपने लंड को मसल रहा था और सीमा मुझे देख रही थी...अभी उसने मुझे ये सब नहीं करने को कहा था और मैं ठीक यही कर रहा था...जरुर उसके अन्दर की आग और तेज भड़की होगी...उसके चेहरे का रंग ही बदल गया...मुझे उसके चेहरे का वो भाव कभी नहीं भूलता....उसकी आँखों में इस कदर वासना तैर रही थी की उसका बस चलता तो उसी समय कूद कर मेरे ऊपर चढ़ जाती और कभी उतरती ही नहीं....मैं हँसता हुआ वहां से बाहर आ गया......जब उसकी तबियत ख़राब थी तब भी मेरा दिल नहीं लग रहा था काम करने में और आज जब की उसकी तबियत कुछ अलग ही रंग की है तब भी मेरा ध्यान बार बार उसकी बातों पर जा रहा था...मैं दोपहर के खाने कि छुट्टी का इंतजार कर रहा था.....दोपहर में जब वापस आया तो अपना कुरता उतार दिया और जान बुझकर सिर्फ पैजामा पहने हुए पैर फैला के बैठ गया...लंड तो खड़ा था ही....सीमा भी एकदम गरम थी....उसने भी अपनी साड़ी घुटनों तक ऊपर कर राखी थी....और वो भी पैर पुरे फैला के बैठी हुई थी....एक दिन हम इतने खुश थे की कोई बात नहीं की और आज हम इतने गरम थे की कोई बात नहीं की...बस एक दुसरे की आँखों में देखते और फिर एक दुसरे के फैले हुए पैरों के बीच से शरीर का अंदाजा करते...और फिर अपना खाना खाने लगते......मैं वापस काम पर आ गया....आज मुंशी जी से बात हुई तो उन्होंने मुझसे कहा की यहाँ के चौकीदार का काम ठीक नहीं है. अगर मैं चहुँ तो वो बड़े साहब से कह के मुझे चौकीदारी का काम भी दिलवा देंगे. मुझे चौकीदार का कमरा मिल जायेगा लेकिन अलग से पैसा नहीं मिलेगा. पैसा सिर्फ मजदूरी का ही मिलेगा....मैंने उनसे कहा की मैं अपनी पत्नी से पूछ के बताऊंगा...मुंशी जी ने मुझे थोडा चौंक के देखा पर कुछ बोले नहीं.....रात में घर आकर यही बात मैंने सीमा को बताई...
सीमा – आपने उनसे ये क्यों कहा की मैं अपनी पत्नी से पूछ के बताऊंगा?
मैं – क्यों? तुमसे पूछना तो था ही. इसलिए कह दिया.
सीमा – देखिये आज सब काम मुझसे पूछ के करते हैं लेकिन ये बात कभी किसी से कहियेगा नहीं....
मैं – क्यों?
सीमा – क्योंकि सब लोग आपको जोरू का घुलाम समझेंगे....मर्द अगर औरत की बात मान के चले तो उसे कमजोर समझा जाता है. सब आपका मजाक उड़ायेंगे.
मैं – लेकिन मैं तो तुमसे पुछु के ही करूँगा न सब काम. किसी को जो सोचना है वो सोचे. मुझे क्या.
सीमा – हाँ करेंगे तो आप मुझसे पपूछ के ही. लेकिन किसी और को नहीं बताएँगे की आप ऐसा करते हैं....बस जो कह रही हूँ वो सुन लीजिये.
मैं – ठीक है. सुन लिया. अब सोने दोगी या अभी और ज्ञान देना है.
सीमा – ज्ञान तो नहीं देना. हाँ कुछ है देने को. लेकिन अभी आप लेने लायक नहीं हुए...
(मैं समझ गया की उसका ध्यान फिर से उसकी गरमी की तरफ खिंच गया है...हम लोग खिचड़ी खा चुके थे और अब बस सोना ही बाकी था )
मैं – क्या देने लायक है तुम्हारे पास?
सीमा – कुछ नहीं. अब सो जाईये. सुनिए आप इतनी दूर क्यों सोते हैं?
मैं – क्यों? दूर न सोया करूँ? तुमसे चिपक के सोया करूँ???
सीमा – नहीं. नहीं. आप दूर ही सोयिये.
मैं – हा हा हा हा सीमा तुम्हें हुआ क्या है....
सीमा – मेरा मन कर रहा है की आप मुझे जोर से दबा लीजिये अपने नीचे.....मेरा बहुत ज्यादा मन कर रहा है.
मैं – और क्या मन कर रहा है बताओ...ठीक से बताओ.....
सीमा – मेरा मन कर रहा है की आप आज मुझे अपनी बीवी बना लीजिये...मैं ही मना करती हूँ हमेशा की अभी नहीं अभी नहीं. लेकिन आज मैं ही कह रही हूँ..बना लीजिये मुझे अपना. मुझे अपने नीचे ले लीजिये.मेरी आग बुझा दीजिये. मेरे साथ सुहागरात मना लीजिये.
मैं – और क्या मन कर रहा है?
सीमा – और मेरा मन कर रहा है की मैं आपको अपने ऊपर चिपका लूं...आपका पूरा वजन मेरे शरीर पर पड़े..मेरे शरीर में जो अकडन सी हो रही है वो ख़त्म हो जाए....आप बहुत जोर जोर से मुझे अपना बना लीजिये.....रात भर अपना बनाते रहिये....मैंने रोने लग जाऊं तब भी मत रुकिए..बना लीजिये न अपना.........
मैं – और क्या मन कर रहा है?
सीमा – आप तो बस बात ही करते हैं..क्या क्या बताऊँ आपको.....इस समय तो मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ...
मैं – अभी तो कर लोगी लेकिन बाद में तुम्हें ही लगेगा की नहीं करना चाहिए था. है न? लगेगा न?
सीमा – हाँ...लेकिन अभी तो एकदम पागल हुयी जा रही हूँ...क्या करूँ इस मुनिया का....आप कुछ कर दीजिये न मेरी मुनिया का...मेरी मुनिया...मेरी मुनिया..क्यों मुझे ऐसे पागल कर रही है रे...तुझे तेरा साथी मिलेगा.....कुछ दिन सबर कर ले.....सुनिए न...मुझसे नहीं रहा जा रहा...कुछ कीजिये न मेरे साथ.....
सीमा आज एकदम अलग लग रही थी....बिलकुल ही अलग..अभी तक किसी भी दिन कभी भी उसके इस रूप की झलक नहीं देखि थी....आज उसे इस हाल में देख के एक बार तो खुद मैं भी पागल होने लगा था......मैं बाहर आया और ठीक से देखा की कोई है तो नहीं.....फिर अन्दर आया...और अपने कपडे उतारने लगा......मुझे देख के सीमा ने भी अपनी चोली खोलनी शुरू की लेकिन मैंने उसे मना कर दिया...मैंने अपने पुरे कपडे उतारे..मैं एकदम नंगा था...लेकिन सीमा अपने पुरे कपड़ों में थी...सीमा बार बार मेरे लंड को देख रही थी और उसके मुंह से लार टपक रही थी....सीमा इस समय किसी जानवर की तरह हो गयी थी...मैं अपना नंगा बदन ले के उसके ठीक सामने जा के बैठ गया........वो मुझे देखती फिर मेरे लंड को देखती....न उसे समझ आ रहा था की अब क्या करें और ना ही मुझे...कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे..मेरा लंड बार बार ठुनकी मार रहा था..सीमा की साँसे लगातार तेज चल रही थी...फिर सीमा ने मुझे अपने ऊपर खीच लिया और लेट गयी...उसने एक ही झटके में ये काम किया...वो पूरी लेटी हुई थी और मैं उसके ऊपर था.....उसने अपनी टाँगे थोड़ी फैला ली थी...इससे मेरी टाँगे उसकी टांगों के बीच घुस गयी थी......
फिर काफी देर तक हम ऐसे ही लेते रहे...दिमाग ने तो काम करना ही बंद कर दिया था.....लेकिन हमारे शरीर अलग नहीं होना चाह रहे थे....हम एक दुसरे को देख रहे थे....लेकिन हमें ये नहीं पता था उस समय की चुम्बन भी एक चीज होती है..शरीर को दबाना उसे चाटना भी एक चीज होती है....हम सिर्फ इतना जानते थे की अन्दर घुसा देना ही सब कुछ होता है...और अभी हम वही नहीं करना चाहते थे...उसके बदले एक दुसरे से खेलना और एक दुसरे को चूमना हमें पता नहीं था.....अब अजीब हालत हो गयी थी...जो करना जानते थे वो कर नहीं सकते थे.....मेरा लंड भी अकड़ा हुआ था बहुत देर से..उसकी बुर तो खैर सुबह से ही जल रही थी...ऐसे ही हम एक दुसरे के ऊपर लेते रहे...फिर जब कुछ समझ में नहीं आया तो मैं अलग हट गया...........मैंने सीमा से कहा तुम भी नंगी हो जाओ....सीमा तो जैसे इस बात का इन्तजार ही कर रही थी...उसे नंगी होने में एक पल भी नहीं लगा....
मैं – अब इसके आगे क्या करते हैं?
सीमा – मैंने जिनको चिपके हुए देखा है वो तो बस अन्दर डाल के हिलते हैं.
मैं – हम तो अभी अन्दर नहीं डाल सकते. हम क्या करें?
सीमा – वो लोग एक दुसरे को चुम्मा चाटी करते हैं...
मैं – कहाँ चुमते हैं?
सीमा – दूध के ऊपर.
मैं – तुम्हारे तो अभी दूध ही नहीं निकले हैं. छोटे छोटे तो हैं. इन्हें कैसे चुम्मा चाटी करूँ?
सीमा – हाँ. अभी तो बहुत छोटे हैं.
मैं – और क्या करते हैं?
सीमा – बस मुझे इतना ही पता है....पहले दूध को चाट लेते हैं फिर अन्दर डाल देते हैं. फिर आगे पीछे हिलते हैं.
मैं – मैं कब तुम्हारे अन्दर डालने लायक होऊंगा?
सीमा – आप तो हो गए हो. मैं नहीं हूँ अभी अन्दर लेने लायक.....
मैं – अभी और कितना समय लगेगा?
सीमा – बस दो तीन महीने और....उसके बाद मैं बी हो जाउंगी...
मैं – लेकिन ये समय कैसे बीतेगा...
सीमा – नहीं पता..मेरा तो आज इतना ज्यादा मन हो रहा है..अभी आप जब ऊपर लेटे हुए थे तो पुरे शरीर को राहत मिल रही थी...कुछ दिनों से शरीर एकदम अकड़ रहा था मेरा....आपको अपने ऊपर ले के बहुत अच्छा लग रहा थ...
मैं – मुझे भी तुम्हारे ऊपर लेट के बहुत अच्चा लगा...ऐसे लेटने पर मेरा ये दब जाता है..इस पर जोर पड़ता है तो बहुत अच्छा लगता है...तुम्हारे दूध कब बड़े होंगे?
सीमा – दो तीन साल में बड़े हो जायेंगे. अभी तो शुरू हुए हैं न...
मैं – अपने आप बड़े हो जायेंगे.?
सीमा – हाँ अपने आप ही हो जाते हैं..पता नहीं मुझे...आप जब मेरे अन्दर डालोगे तो ये अपने आप बड़े होने लगेंगे.
मैं – खूब बड़े बड़े हो जायेंगे?
सीमा – आपको खूब बड़े बड़े अच्छे लगते हैं?
मैं – हाँ....जैसे भाभी के हैं न.
सीमा – हाँ भाभी के तो बहुत बड़े बड़े हैं.....आपने उनके दूध देखे हैं?
मैं – नहीं. ऐसे ही कभी कभी पल्लू नीच होता है तो दिख जाते हैं.
सीमा – हाँ उनके तो बहुत बड़े बड़े हैं.जरुर भैया रोज उनके अन्दर डालते होन्ग...तभी तो इतने बड़े हो गए.
मैं – मैं भी रोज तुम्हारे अन्दर डाला करूँगा फिर तुम्हारे भी इतने बड़े हो जायेंगे...
सीमा – हाँ...लेकिन अभी क्या करें...अभी के लिए कुछ सोचो न.....
मैं – मैं क्या सोचूं? सब कुछ तो तुम जानती हो. जब तुम्हें ही कुछ नहीं सूझ रहा तो मुझे क्या पता होगा...तुम बताओ न कुछ...कभी किसी को कुछ और करते देखा होगा...
सीमा – बस ऐसे एक दुसरे से चिपक के हिलाते देखा है. और कुछ नहीं. सच में.....
हम दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे.....ये अपने आप में बड़ी उदासी वाला समय था..हम दोनों एकदम गरम थे लेकिन हमें ये समझ नहीं आ रहा था की करें क्या.......और ऊपर से अभी और इंतजार करना बाकी है ये ख्याल भी जान खाए जा रहा था....ऐसे ही सो जाने के सिवा हमारे पास कोई चारा नहीं बचा था.......हम सोने लगे तो सीमा ने कहा की मैं फिर से कुछ देर के लिए उसके ऊपर आ जाऊ......लेकिन हम दोनों तो नंगे थे इसलिए सीमा ने अपनी साड़ी उठाई और अपनी मुनिया के ऊपर रख ली...मैं फिर से उसके ऊपर लेट गया....लेकिन इसके सिवा कुछ और नहीं किया..क्योंकि इसके बाद क्या करना है ये न उसे समझ आ रहा था न मुझे...बस एक दुसरे के बदन को इतने करीब से छू कर जितना सुकून मिल सकता था हमें उसी में गुजारा करना था......
अगले दिन मैंने मुंशी जी को बता दिया की मुझे चौकीदारी भी दे दी जाए.....हम लोग उस कोने से उठ कर चौकीदार को दिए जाने वाले कमरे में आ गए....ये सिर्फ एक कमरा था..कोई खिड़की नहीं....ज्यादा बड़ी जगह नहीं थी....हाँ इतना जरुर था की चार दीवारे थी और सर पर छत थी....पहले के जैसे हमें खुले में नहीं रहना था.....सीमा ने इसे ही अपने ढंग से सजा लिया था..कमरे के एक कोने में उसने अपना चूल्हा बना लिया था..हाँ इस कमरे की सबसे बड़ी बात ये थी की इसमें एक बाथरूम था....उसमे दरवाजा भी लगा हुआ था.....बाथरूम कमरे के अन्दर से ही था तो कहीं बहार से जाने की जरुरत नहीं थी.....मुझे पैसा सिर्फ मेरी मजदूरी के हिसाब से ही मिलने वाला था...लेकिन इतना हमारे लिए बहुत था....हम हफ्ते में एक बार बाहर जाते और अपने लिए चावल और नमक ले आते.....अभी तक हम सिर्फ खिचड़ी ही खा रहे थे क्योंकि वही सबसे सस्ती पड़ती थी....ऐसा ही कई हफ़्तों तक चलता रहा...उस जगह पर मेरे काम से सभी प्रभावित थे..मुंशी जी तो हम दोनों से इतने खुश थे की काम ख़त्म होने के बाद वो अपना हिसाब किताब हमारे यहाँ बैठ के ही करते थे..कभी कभी हमें वो अपने घर से कुछ खाना भी ला के दे देते थे........कई हफ़्तों तक लगातार सब कुछ ठीक रहा...कोई दिक्कत नहीं हुई किसी भी काम में.......पैसा लगातार मिल ही रहा था और सीमा उसमे से बहुत कुछ बचा भी लेती थी........हाँ हमारे बीच ज्यादा कुछ हो नहीं पा रहा था..हम दोनों ही एक दुसरे से एकदम खुल गए थे..हमारे बीच कोई शर्म या झिझक नहीं थी..लेकिन हमें पता ही नहीं था की अन्दर डालने के अलावा और क्या क्या किया जा सकता है....सीटी तो हमारे बीच एक नियम जैसा था...अब तो बाथरूम भी था हमारे पास....रोज सुबह उसकी सीटी देख के शुरू होती और रोज रत को सोने से पहले उसी सीटी के दर्शन होते थे....लेकिन सीटी से आगे कैसे बढ़ें ये समझ में नहीं आ रहा था....हम दोनों ही दिनों के बीतने की उलटी गिनती गिन रहे थे.......
एक दिन जब काम के बाद घर लौटा तो सीमा ने मुझे कुछ पैसे दिए और मुझे कहा की बस अड्डे जाईये..और वहां से कुछ किताबें ले आईये.....मैंने उससे किताबों का नाम पूछा तो उसने बताया की कोक शास्त्र और सचित्र सुहागरात के नाम से जो किताबें होंगी वो लेते आईयेगा...
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