FUN-MAZA-MASTI
मेरी बीती जिंदगी की कहानी --5
बिना किसी बहस के हमने उनकी बात सुनी और किसी तरह से उस पेड़ के सहारे छत पर चढ़ गए.....अभी पूरी धुप शुरू नहीं हुई थी..दिन धीरे धीरे बढ़ रहा था...उस दिन तो लग रहा था जैसे आज का दिन कभी ख़त्म ही नहीं होगा...समय था की कट ही नहीं रहा था...छत पर पहुच के जब नज़र दौडाई तो देखा की कुछ बेकार फेंका हुआ सामान पड़ा हुआ है...कहीं छाँव नाम की चीज नहीं है..अभी तो धुप नहीं थी लेकिन जब दिन में धुप तेज होगी तो कहीं एक इंच भी छाँव नहीं मिलेगी.....आसपास के घर लगभग सब एक ही ऊँचाई के थे....इसलिए सब की छत भी एक ही ऊँचाई पर थी..वहां बैठे बैठे हमें दुसरे घरों की छतें भी दिख रही थी......किसी किसी छत में कुछ बैठने का सामान भी रखा हुआ था.....देख के लगता था की लोग वहां धुप सेंकने के लिए आते होंगे..लेकिन हमारी छत पर ऐसा कुछ नहीं था......सुबह सुबह अपने ही सगे भाई से जो अमृत वचन सुनने को मिले थे वो अब फिर से कान में गूंजने लगे थे......देखिये कई बार आदमी को ये पता नहीं होता की कब उसकी जिंदगी में कोई दूसरा शामिल हो गया और कब वो उसके लिए सबसे जरुरी हो गया.......मुझे अपने शादीशुदा होने का एहसास बहुत गहरे से नहीं होता था....मेरे और सीमा के बीच पति पत्नी वाले रिश्ते नहीं बने थे....लेकिन फिर भी आज जो भी हुआ उसमे सबसे ज्यादा पीड़ा देने वाली बात ये थी की मेरे साथ सीमा थी और भाभी ने उसे एक गिलास पानी को भी नहीं पूछा..मुझे नहीं दिया न सही..मुझे कोसा वो भी ठीक..लेकिन सीमा ने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था.....उसके साथ भी उनका ये सुलूक देख के मेरे पुरे बदन में आग लगी हुई थी.......शायद ये बात मेरे चेहरे पर भी जाहिर थी...सीमा ने उसे पढ़ लिया...उस नादान को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा होगा की क्या कर के मेरा ध्यान उस सबसे हटाये........उसने कुछ इधर उधर की बात करने की कोशिश की लेकिन मैंने कोई जवाब नहीं दिया...मेरे दिमाग में तो तूफ़ान सा उठ रहा था....मुझे अभी भी अपने ख्यालों में खोये देख कर उसने मुद्दा बदला...और इस बार उसका पैंतरा चल निकला...
सीमा – अच्छा कल रात को मैं बात कर रही थी और आप सो गए थे...
मैं – हाँ वो कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला...क्या बात कर रही थी तुम?
सीमा – आपको कहाँ तक की बात याद है?
मैं – तुम बता रही थी की तुम्हारी सौतेली माँ तुमसे घर का सारा काम करवाती थी....उसके बाद मुझे नींद लग गयी..मैं कब सोया ये भी याद नहीं...
सीमा – हाँ मैं तो आपको सब अन्दर की बात सुनाती रही...अपने सब राज खोल दिए मैंने कल बातों बातों में...लेकिन फिर आपकी तरफ देखा तो आप तो एकदम नींद में डूबे हुए थे...मैं भी कितनी बुद्धू हूँ...सोच रही थी की आप सब सुन रहे हैं लेकिन आप तो सो रहे थे...
मैं – हाँ.
सीमा – जानते हैं कल बातों बातों में मैंने सोचा की हम लोग तो पति पत्नी हैं तो हमारे बीच तो कुछ छुपा है नहीं..इसलिए मैंने कल सारी बात बता दी आपको....
मैं – हाँ......( मैं अभी भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे पा रहा था,...बस जैसी ही उसकी बात ख़त्म होती मैं धीरे से हाँ बोल देता था....सीमा को पता चल गया की अभी भी मेरा ध्यान कहाँ अटका हुआ है...)
सीमा – क्या हाँ हाँ कर रहे हैं..कुछ बोलते क्यों नहीं?
मैं – मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है...मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है...
सीमा – मेरी बात मानिए...ये गुस्सा अपने अन्दर रखिये..यही गुस्सा हमें बहुत आगे ले के जायेगा...अगर हम अपने इस गुस्से को काबू नहीं कर पाएंगे तो हमारी जिंदगी एकदम बिखर जाएगी..इसलिए अगर गुस्सा आये तो उसे अपने अन्दर रखना सीखिए...आज इन लोगों का दिन है..कभी न कभी हमारा दिन भी जरुर आएगा....बस हमें इन्तेजार करना है....
मैं – हाँ ठीक कह रही हो....
सीमा – हाँ मैं जानती हूँ की मैं ठीक कह रही हूँ...अच्छा वो सब अब जाने दीजिये.....और ये देखिये....
मैंने जैसे ही सीमा की तरफ नज़र फेरी..मेरी आँखें फटी की फटी रह गयीं...और पूरा खून एक बार फिर से मेरे अण्डों में भरने लगा....सीमा को अपनी साड़ी ऊपर करने में मुश्किल से एक या दो पल लगे होंगे....उसने पूरी कमर तक उठा ली थी साड़ी और वो उकडू बैठी हुई थी....उसने पिचली बार की तरह उठाई हुई साड़ी को अपने घुटनों के ऊपर डाल कर कुछ छुपाने की कोशिश भी नहीं की थी....मैं उससे सिर्फ एक हाथ दूर था......मुझे उसका नजारा एकदम साफ़ दिख रहा था..और फिर ये भी ख्याल आया की कहीं कोई और तो नहीं है जो दूर से ये नजारा देख रहा हो..मैंने फ़ौरन चरों तरफ नज़र दौडाई तो सीमा ने ही कहा की “कोई नहीं है मैंने पहले ही देख लिया है आप आराम से इसे देखिये....” मैं वापस मुड़ा और बैठा बैठा सामने खुली हुई उस जन्नत को देखने लगा...उसे छू नहीं सकता था...हाँ मन बहुत था की उसे छू लूं लेकिन छूने के बाद क्या करना है ये तो पता नहीं था....तो मैं बस देख सकता था......उसकी बुर बहुत छोटी सी थी.....हाँ बुर के ऊपर के होंठ बहुत मोटे मोटे थे.......और उन दो फांकों के बीच एक लम्बी लकीर सी दिखाती थी....सबसे ऊपर एक छोटी कच्ची केरी जैसी घुंडी थी...........झांटें लगभग नहीं के बराबर थी...बाल थे लेकिन बहुत कम और बहुत हलके हलके.........मैं उसके इस नज़ारे में खोया हुआ था की तभी उसने पूछा ....” सीटी बजाऊं......?”” मैंने कुछ नहीं कहा..मैं जिस जगह पर अभी तक बैठा हुआ था वहीँ अब लेटने लगा..लेटने के बाद अब मेरी आँखें और उसकी बुर एक स्तर पर आ गए थे..इससे मुझे और भी ज्यादा अच्छे से दिख रहा था सब कुछ.......सीमा ने अपनी टाँगे थोड़ी और फैला ली और उसने अपना वजन पीछे की तरफ कर लिया....ऐसा करने से उसकी कमर थोडा ऊपर उठी और उसकी बुर अब और भी ज्यादा खुल के मेरे सामने थी...और फिर वही मधुर सीटी की छल छल आवाज सुनाई दी मुझे......इतने दिनों में आज पहली बार मुझे इतनी साफ़ दिखाई दी थी वो जन्नत....और मैं एकदम मंत्रमुग्ध उसे देखे जा रहा था........वो लम्बी धार धीरे धीरे छोटी होने लगी और कुछ अंतिम बूदें तो उसकी बुर से सरकती हुई गिरी जमीन पर.....सीमा ने अपने एक हाथ से अपनी बुर के होठों को पकड़ा...अपनी दो उँगलियों के बीच अपनी बुर के होठों को दबाया और जैसे हम नीबू निचोड़ते हैं वैसे ही अपनी बुर के दोनों होठों को उसने निचोड़ सा दिया...एक दो बूँदें और गिरी...और फिर उसने हलके से अपनी बुर को छोड़ दिया....उसके ऐसा करने से उसके वो दोनों होंठ हलके हलके लाल हो गए......उन होठों का वो कंपन और उनका वो सुर्ख लाल रंग मुझे आज भी याद है........
सीमा ने अब अपनी साडी ठीक कर ली थी..और अब वो मेरे सामने ही बैठी हुई थी.......उसके चेहरे पर शर्म और शरारत एक साथ झलक रहे हे..बहुत ही कातिल लग रही थी....
सीमा – अब बताओ आप....मेरी सीटी ज्यादा प्यारी है या अपना गुस्सा? क्योंकि दोनों में से एक ही मिल सकता है...अगर आपको गुस्सा ही रहना है तो फिर मेरी सीटी नहीं मिलेगी आज के बाद...और अगर आप को मेरी सीटी सुन्नी है तो फिर आज के बाद आप गुस्सा नहीं करेंगे....
मैं – लेकिन गुस्सा आएगा तो क्या करूँगा?
सीमा – तो उस गुस्से को अपने अन्दर रखेंगे..उसे बाहर नहीं निकालेंगे....हमेशा याद रखेंगे की बुरे दिन कभी न कभी ख़त्म हो जाते हैं...हमें कम से कम इस बात की पहचान तो हो गयी की कौन हमारा अपना है और कौन नहीं...इसलिए अगर गुस्सा आये भी तो उसे अपने अन्दर रखना है और गुस्से में अपना आपा नहीं खोना है....
मैं – ठीक है....अगर मैं अपने गुस्से को काबू में रखूं तो मुझे क्या मिलेगा?
सीमा – जो अभी मिला वो तो मिलेगा ही....और कल रात को जो मैं बता रही थी न वो सब भी मिलेगा और जी भर भर के मिलेगा..दिन दिन भर रात रात भर....
मैं – क्या बता रही थी रात को??????
सीमा – हाँ आप तो सो गए थे...आपने तो वो सब सुना ही नहीं होगा...अच्छा अब जाने दो उस बात को...रात गयी बात गयी....
मैं – नहीं नहीं.बता दो न फिर से ...क्या बता रही थी रात में...
सीमा – यही की हमारे गाँव में किस किस चीज की खेती होती है....
मैं – झूठ.
सीमा – सच. यही बता रही थी की हमारे गाँव में किसके पास बड़े बड़े खेत हैं..और वो कौन कौन सी फसल लगाते हैं..
मैं – झूठ..
सीमा – सच. और ये भी बता रही थी की खेतों में चरवाहे कब कब रहते हैं और कब कब खेत खाली रहते हैं..
मैं – झूठ.
सीमा – सच. और ये भी बता रही थी की सब लड़के लड़की जानते हैं की कौन सा खेत कब खली रहता है.
मैं – झूठ एकदम झूठ. तुम झूठ बोल रही हो. ये सब क्यों बताओगी तुम मुझे?
सीमा – सैंयाँ जी...जब लड़का लड़की जानेंगे की कौन सा खेत कब खाली है तब ही न वहां जा के एक दुसरे से चिपकेंगे.......यही तो बता रही थी की मर्द और औरत शादी करने के पहले भी चिपक लेते हैं...शादी के बाद तो चिपकते ही हैं...मैंने तो कितनो को देखा है चिपके हुए...मेरी ही खूब सारी सहेलियां थी जो मौका मिलते ही किसी को भी चिपकवा लेती थी.....इसी चिपकम चिपकी में तो मजा मिलता है ऐसे लोगों को......
सीमा ये सब कहती जा रही थी और मेरा लंड अकड़ के लोहा हुआ जा रहा था....वो जानबूझ के बीच बीच में सिसकारी लेती जैसी कितनी खट्टी चीज खा ली हो कोई..कभी ऐसे सी सी करती जैसे मिर्ची खा ली हो.....उसकी ये सब अदाएं मुझे और भी ज्यादा पागल किये दे रही थी...और ये भी सच है की उस पागलपन में मैं ये भूल गया था की कुछ देर पहले मेरे मन में क्या चल रहा था..मेरा सारा गुस्सा सारा दुःख दर्द सब हवा हो चूका था.....सीमा को भी ये बात समझ आई की अब मेरा दिमाग ठिकाने पर है..और अब दिन भी निकल आया था....उसने ये बात यही बंद की और मुझसे कहा की “ अब कब तक ऐसे बन्दर जैसे मुंह फुला के बैठे रहोगे. हम लोग मोहल्ले में हैं.यहाँ तो कितने सारे घर हैं. कोई बाहर जाने की सोचेगा नहीं लेकिन सब को बाहर का कुछ न कुछ काम तो होगा ही न. तो जाओ और पूछो सबसे. कुछ काम मिले तो खाने का इतेजम करें कुछ और हाँ जहाँ कहीं जगह मौका मिले वहां पेट साफ़ कर लेना..मैं तो यहीं तुम्हारे भैया की छत पर सब करुँगी...इन्होने हमें इतना भला बुरा कहा हम इनके उपर बोझ है न तो चलो इनके सर पर अपना कुछ बोझ और डाल दिया जाये..आप जाओ और कुछ काम खोजो..मैं यहीं बैठी आपका इन्तेजार करुँगी...”
मैं उसी पेड़ से झूलता हुआ नीचे उतर आया और पीछे वाले दरवाजे से ही बाहर निकल आया....उन लोगों ने मुझे बाहर जाते हुए तो देखा लेकिन कुछ कहा नहीं....ये कोई बड़ा मोहल्ला नहीं था...घर तो खूब सरे थे लेकिन कोई भी बड़ा हवेली जैसा घर नहीं था...सब औसत दर्जे वाले लोग ही थे....सड़क के दोनों तरफ घर थे...मैं उसी सड़क पर चल रहा था..और फिर एक घर के बाहर एक साहब अख़बार पढ़ते हुए दिखे..मैंने उनसे बात की और उन्हें अपने बारे में बताया....उन्हें ये बताया की यहीं पीछे शंकर बाबू जी के यहाँ रहता हूँ. कुछ काम हो तो बता दीजिये मैं कर दूंगा बदले में कुछ भी दी दीजियेगा.....उन साहब ने अपने यहाँ तो कोई काम नहीं बताया लेकिन अपने बगल वाले घर में एक दुसरे साहब को आवाज दी और कहा की ये एक काम वाला फिर रहा है देख लो कोई काम हो तो...उनके यहाँ गया तो पता चला की उनका परिवार कई दिनों से बाहर है....और आज उनके नौकर लोग भी नहीं आये हैं...मुझे उन्होंने घर की सफाई का पूरा काम दे दिया......मैं लग भी गया....पूरा एक घंटा लगा होगा सब कुछ करने में..कपडे बर्तन झाड़ू पोचा सब कर डाला....साहब ने बदले में पांच रुपये दिए..मैं पैसे ले के कहाँ जाता...बाजार तो सब बंद था..मैंने उसने कहा की साहब कुछ खाने को हो तो दे दीजिये मैं पैसे ले के बाजार से कुछ ले भी नहीं पाउँगा....साहब अच्चा आदमी था...उसने ज्यादा नखरा नहीं किया...बोला की कल रात का कुछ खाना बचा हुआ है.चाहो तो ले जाओ.......अँधा क्या चाहे दो आँखें...खाना लेने में न चाहने वाली तो कोई बात ही नहीं थी..मैंने तुरंत वो सारा खाना एक थैली में बाँध लिया....उन्होंने कह दिया की जब तक उनके नौकर लौट के नहीं आ जाते मैं उनके यहाँ रोज सुबह आता रहूँ........मुझे तो मजा आ गया....बस अड्डे से कहीं ज्यादा आराम का काम था ये तो..कपडे धोने में झाड़ू करने में तो जरा सी मेहनत नहीं लगी थी मुझे और खाना भी मिल गया था....मैं आगे के घरों की तरफ बढ़ा....एक दो छोटे छोटे काम तो मिले लेकिन उनसे कुछ आमदनी नहीं हुई....मैंने बता दिया की मैं शाम को फिर से एक चक्कर लगाने आऊंगा..तब बता दीजियेगा कोई काम हो तो......
कुछ देर में मैं वापस लौटा....और फिर से उस पेड़ के सहारे छत पर आ गया...अब तक अच्छी खासी धुप हो आई थी और सीमा छत के बीच में ही बैठी हुई थी...चादर उसने नीचे बिछा ली थी और अपनी एक साड़ी को झोले से निकल के उपर ओढ़ लिया था...मैं पंहुचा तो उसी चादर में थोड़ी जगह मुझे भी मिल गयी बैठने को...बैठने पर एहसास हुआ की ये चादर एकदम तपी हुई है...उपर से धुप भी कड़ी थी...फिर भी और कोई चारा हमारे पास था नहीं...जो खाना मैं उन साहब के यहाँ से लाया था वो थैली मैंने आगे बढाई तो सीमा बहुत खुश हुई...हमने खाना खाया...साहब के घर का खाना था....अच्चा था..उस होटल के खाने से तो अच्छा ही था...ज्यादा नहीं था..फिर भी इतना था की खाली पेट कुछ देर के लिए शांत हो गया....अब क्या करें? खाना तो खा लिया....अब कहीं काम खोजने भी जा नहीं सकते...सड़कें एकदम खली पड़ी हुई थी....अभी तक हमें ये नहीं मालूम था की ये सब हुआ किस वजह से है...लेकिन ये समझ आ रहा था की शहर का माहौल ही एकदम बदला हुआ था.....शाम होने तक क्या किया जाय ये अपने आप में एक बड़ा सवाल था....अभी भी करीब चार पांच घंटे बाकी थे धुप के...इस धुप में ऐसे बैठना पड़ा तो जल के राख हो जायेंगे.......इस मोहल्ले के बाकी घरों की छतें बहुत नजदीक नहीं थी लेकिन फिर भी उन तक पंहुचा जा सकता था..हमने सोचा की किसी दुसरे की छत से कुछ बैठने का सामान उठा लेते हैं..फिर शाम को वापस रख देंगे...पहले सीमा ने मना किया..लेकिन फिर जैसे जैसे धुप और तेज हुई उसकी भी हिम्मत टूट गयी और उसने भी हाँ कह दी...मुझे ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा....इस छत से अगली छत पर ही कार्डबोर्ड के दो तीन डब्बे पड़े हुए थे..मैं सावधानी के साथ छत से दूसरी छत पर गया और वो डब्बे उठा ले आया....उसे फाड़ के हमने अपने सर के ऊपर रख लिया....कुछ तो धुप से राहत मिल ही गयी...लेकिन साथ ही ये डर भी था की किसी ने देख लिया तो बवाल मच जायेगा.......पूरी दोपहर हम लोग उंघते बैठे रहे....न सीमा ने कुछ कहा न मैंने..हमारी पानी की बोतल में जो पानी था वो भी ख़त्म हो चूका था....अब शाम का इन्तेजार था बस.....
शाम हुई....मैं सीधा उस साहब के घर गया जिसके यहाँ दिन में काम किया थ..लेकिन उनके यहाँ अभी कोई काम नहीं था....उनके दुसरे पडोसी के यहाँ गया तो उन्होंने ऐसे स्वागत किया जैसे मैं कोई फ़रिश्ता हूँ..मैं भी थोडा हैरान रह गया..फिर जब उन्होंने अपना काम बताया तो समझ में आया की ऐसा क्यों कर रहे थे....वो साहब रोज पीने वालों में से थे...उन्हें कर्फ्यू का पहले से अंदाजा नहीं था तो उनके पास पीने का सामन जमा करने का मौका ही नहीं था..अब बेचारे इसी तलब में मरे जा रहे थे...शायद उन्हें सुबह वाले साहब ने मेरे बारे में बताया होगा..मेरे जाते ही बोले की ये काम है..मैंने साफ़ मना कर दिया....अजनबी शहर..उपर से पुलिस ऐसे फिर रही है हर जगह...किसी ने पकड़ लिया तो मुसीबत हो जाएगी......मैं ना नुकुर करता रहा और साहब मुझे सम्ह्जाते रहे की कुछ नहीं होगा...फिर उन्होंने उस शराब के दूकान वाले से बात की फ़ोन पर...और उसे कहा की वो अपना एक आदमी भेज रहे हैं....फ़ोन पर ही उसे मेरा हुलिया बताया.......मैं मना करता जा रहा था लेकिन उन्होंने सुना नहीं....फिर फ़ोन काट के अपनी जेब में हाथ डाला और एक सौ रुपये का नोट निकाल के मुझे देते हुए बोले की ये मेरे लिए है...मैंने उनका काम कर दिया तो ये पूरा का पूरा मेरा.....मैंने मन ही मन सोचा की ये पहले बोल दिए होते तो अब तक तो इनका काम निपटा दिया होता मैंने.....मैंने तुरंत हाँ कह दी....कोई दिक्कत नहीं थी अब...सौ रुपये मिलने वाले थे...कुछ देर में जब अँधेरा हो गया बाहर तो उनके बताये रस्ते पर चला और सही जगह पर वो दूकान वाला भी मिल गया...वो भी सड़क के किनारे छुपा हुआ था एक थैली लिए..मैंने उससे थैली ली उसने मुझे कहा की साहब को बता देना की हिसाब में चढ़ा लूँगा....मैंने थैली ली और तेज कदमों से वापस चलने लगा..जब कुछ दूर पंहुचा तो पीछे से एक आवाज आई....” ए रुक कहाँ जा रहा है “......मैंने पीछे मुड के देखा तो दो हवलदार मेरे बहुत करीब थे......मैंने आव देखा न ताव भाग खड़ा हुआ......पीछे पीछे वो लोग भागे....सुनसान रास्ता और मैं अपनी पूरी ताकत लगा के भागा.......उन्हें भी लग गया होगा की वो मुझे पकड़ नहीं पाएंगे...लेकिन फिर भी ठहरे तो पुलिस वाले ही.......मैं अपनी धुन में भाग रहा था और तभी मुझे पीठ पर एक चोट लगी और मेरी पूरी पीठ सुन्न हो गयी.....एक तरफ सुन्न पीठ और दूसरी तरफ वो चमकता हुआ सौ रुपये का नोट.....मैंने पीठ की परवाह नहीं की और भागता रहा....कुछ देर में मुझे लगा की मैं अब अकेला ही दौड़ रहा हूँ और उन लोगों ने मेरा पीछा करना बंद कर दिया है.......मैं अब पैदल चलने लगा ताकि किसी और को शक न हो....जब साहब के घर आया तो वो आदमी दरवाजे के पास खड़ा मेरी राह देखा रहा था..पहली बार किसी को नशे में इतना बेचैन देखा था...उसे बोतल दी..साहब ने पूरी इमानदारी से मुझे मेरे पैसे दिए और पूछा भी की कुछ चाहिए हो तो ले लो.....मैंने उन्हें अपनी बात बताई....उन्होंने अपने घर के पीछे की बगिया में जा के कुछ फल तोड़ लेने को कह दिया......मैं पीछे आया तो देखा की बहुत सरे फल थे..मैंने उनकी शराब को बहुत दुआ दी और अपने दोनों हाथों में जितने फल समा सकते थे उतने फल तोड़ के चल दिया....
अभी रात नहीं हुई थी....पर कहीं कुछ काम मिलना नहीं था..और फल मिल ही गए थे...सो मैं वापस आ गया...कभी बस के पीछे हमारी जगह थी अब एक खुली छत पर है.....सीमा वही बैठी हुई थी....बल्ब तो कोई था नहीं...वैसे रात अँधेरी नहीं थी..चाँद था..पूरा नहीं था फिर चाँद की रौशनी और इधर उधर से आती दूसरी रौशनी मिल जुल के बस इतना कर रही थी की हमें बहुत ध्यान देने पर चीजें दिख जाती थी.......मैं जैसे ही सीमा के पास मेरी पीठ ने भी अपनी हाजिरी लगा दी..अभी तक तो सुन्न थी लेकिन अब उसमे भी लहक उठने लगी..और वो दर्द हुआ की मेरी आँखें भीग गयी,....उस हवालदार ने पता नहीं किसे याद कर के वो लाठी घुमाई थी...पीठ पर जहाँ पड़ी थी वहां की चमड़ी साथ ले गयी थी....मैंने फल सीमा को दिए..वो कुछ कह रही थी लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा था....सीमा को भी अंदाजा हुआ की कुछ गड़बड़ है..मैंने उसे पूरी बात बताई……….. हम लोग कुछ देर शांत बैठे रहे...एक दुसरे को साफ़ साफ़ नहीं देख सकते थे लेकिन एक दुसरे की तेज चल रही साँसें साफ साफ़ सुनाई दे रही थी........
सीमा – ऐसा नहीं करना चाहिए था आपको.अगर पुलिस पकड़ लेती तो?
मैं – मैं बहुत तेज भागता हूँ. उस हवलदार को देख के ही समझ गया था की इतना बड़ा पेट ले के ये मुझे पकड़ नहीं पायेगा.
सीमा – बहुत शेखी न बघरिये...अगर पकड़ ही लेता तो क्या करते? कैसे बाहर आते? कितनी मुसीबत हो जाती ? मुझ तक कैसे खबर पहुचती ? मैं यहं आपका इन्तेजार करती रहती न? आपको कौन छुड़ा के ले के आता थाणे से...??? आपके भाई भाभी आते क्या??? वो साहब आता क्या??? मुझे जवाब दीजिये की अगर कुछ हो जाता तो क्या करते?
मैं – पता नहीं. इतना सोचा नहीं. साहब ने कहा की सौ रूपये देंगे इसलिए मैं मान गया.
सीमा – ऐसे पैसे नहीं कमाने जिसके लिए इस तरह का कुछ करना पड़े...समझ रहे हैं आप?
मैं – हाँ समझ रहा हूँ. एक तो मेरी पीठ इतनी दुःख रही है और ऊपर से तुम डांट रही हो.
सीमा – मैं डांट नहीं रही हूँ लेकिन आपको अगर ये सब न कहूँ तो कल आप फिर से न जाने क्या कर के आयेंगे...लाईये मुझे देखने दीजिये कहाँ लगी है पीठ में...
मैं – रहने दो. पहले ये फल लाया हूँ ये खा लेन..फिर देखती रहना...
पानी मैं अपने साथ ले आया था.....उसी से हमने फल धोये और रात के खाने में वही खाए....अब तक रात भी शुरू हो ही चुकी थी..आसपास के घरों की बत्तियां बंद होने लगी थी और सड़क पर भी कोई हलचल नहीं थी.....हम लोग वैसे तो इतने दिन से साथ ही थे लेकिन ये शायद ऐसा पहला मौका था जब हम इस तरह के एकांत में थे...सन्नाटा तो बस अड्डे पर भी रहता था लेकिन वो खुली जगह थी..यहाँ छत पर होने के बाद एक निजता का एहसास था...aआसपास कोई और नहीं था.....खाना खाने के बाद सीमा ने मुझे अपना घाव दिखाने को कहा..मैंने अपना कुरता उतर दिया..अब मैं सिर्फ पैजामे में था....सीमा मेरी पीठ पर लगी चोट को देखने की कोशिश कर रही थी..उसे ठीक से तो नहीं दिखा लेकिन इतना समझ आ गया की पूरी पीठ पर एक टेढ़ी लकीर सी बन गयी है जो की एकदम सुर्ख लाल है...जरुर इसी जगह पर लाठी पड़ी होगी......मेरा दर्द लगातार बढ़ता जा रहा था...सीमा बेचारी भी कुछ कर सकती नहीं थी.......कुछ देर में मैं अपने पेट के बल लेट गया....रात में छत भी ठंडी हो गयी थी...हमने अपनी एक चादर बिछा ली और दूसरी सीमा की एक साड़ी बिछा ली..दोनों के लेटने के लिए पर्याप्त जगह थी..मैं लेता तो सीमा ने कहा की पैर दबा दूं..मैंने मना कर दिया...उस दिन कुछ ज्यादा काम नहीं किया था तो पैर में दर्द भी नहीं था.....मुझे बस बार बार ये पीठ परेशां कर रही थी...बार बार उसमे दर्द की एक लहर सी उठती थी....हमारे पास न कोई मरहम था न कोई और इलाज इस दर्द का..इसे रात भर सहना ही था...और रात भर क्या जब तक वो अपने आप ठीक नहीं होता तब तक सहना ही था......दर्द कम करने के लिए मैं ये सोच लेता था की सौ रुपये मिले हैं......लेकिन ये नुस्खा भी कुछ देर में ख़त्म हो गया...सीमा मेरे बगल में लेटी हुई थी..नींद उसे भी नहीं आ रही थी..उसे भी पता था की मैं कितने दर्द में हूँ.....फिर उसी ने बात शुरू की...
सीमा – आप ऐसे चुप हो के लेटे रहेंगे तो आपको और दर्द होगा/
मैं – क्यों?
सीमा – आपका ध्यान बार बार अपनी पीठ पर जायेगा..
मैं – तो क्या करूँ? आज तो नींद भी नहीं आ रही...
सीमा – हाँ नींद आ जाती तो कुछ आराम मिलता...सुनिए जब तक नींद न आये आप बात करते रहिये...इससे आपका ध्यान भी बंटा रहेगा...
मैं – मैं क्या बात करूँ...तुम करो न...तुम बताओ न कुछ...
सीमा – ठीक है....क्या बताऊँ?
मैं – अपने घर के बारे में..अपने बचपन के बारे में...
सीमा – वो सब तो और भी ज्यादा दर्द देने वाली बातें हैं..वो सब नहीं करनी...
मैं – तो फिर हमारे आने वाले कल के बारे में बताओ..
सीमा – उसके बारे में क्या बताऊँ?
मैं – यही की तुमने क्या सोचा है..हमारे अच्छे दिन कब आयेंगे...हम कैसे रहेंगे...ये सब कुछ...
सीमा – सोचा तो मैंने बहुत कुछ है...हमारा अपना घर होगा....एक स्कूटर होगा आपके पास...आपका अपना..उसमे बैठ के घुमा करेंगे...आपका काम अच्छा चलेगा..हमारे पास जरुरत भर का पैसा होगा...
मैं – सिर्फ जरुरत भर का? ज्यादा नहीं?
सीमा – नहीं . ज्यदा पैसा दिमाग ख़राब कर देता है. हमें जरुरत भर का चाहिए बस...
मैं – ठीक है..और क्या क्या होगा...
सीमा – हम लोग हर हफ्ते सिनमा देखने जायेंगे,....मैं अपने लिए बहुत सारे कपडे खरीदूंगी. आप मना करेंगे फिर भी खरीदूंगी.
मैं – मैं क्यों मना करूँगा?
सीमा – क्यों इतने पैसे खर्च होंगे तो मना नहीं करेंगे.?
मैं – पैसे तो कमा ही तुम्हारे लिए रहा हूँ तो तुम्हारे खर्च करने से क्यों रोकूंगा?
सीमा – ठीक है. याद रखियेगा अपनी ये बात. ऐसा ना हो की आप फिर भूल जाएँ...
मैं – हाँ हाँ...और बताओ न...अच्छा हमारे बच्चे कितने होंगे?
सीमा – हा हा हा हा हा हा...
मैं – इसमें हंसने की क्या बात है?
सीमा – बच्चों की बात क्यों की?
मैं – क्यों? पति पत्नी के तो बच्चे होते ही है न...
सीमा – बड़े आये पति पत्नी वाले...बच्चे कैसे होते हैं ये भी जानते हो?
मैं – हाँ जनता हूँ...शादी करने से बच्चे होते हैं. हमारी शादी हो गयी तो हमारे भी बच्चे होंगे...
सीमा – हा हा हा हा हा हा हा हा वाह वाह बस इतने से बच्चे हो जायेंगे क्या?
मैं – तो जो जो भी करना होता है वो सब करेंगे न...तुम बताओ न क्या क्या करना होता है...
सीमा – आपको ये सब बात करना बहुत अच्चा लगता है न...
मैं – हाँ..तुम्हें नहीं लगता..
सीमा – धत...लड़की से ऐसे नहीं पूछते...
मैं – तो कैसे पूछते हैं?
सीमा – कैसे भी नहीं पूछते..लड़की अगर साथ दे रही है तो मतलब उसे अच्चा लग रहा है..नहीं लग रहा होता तो साथ नहीं देती...
मैं – मतलब तुम्हें भी अच्चा लगता है न.....
सीमा – सुबह बताया तो था....अच्छा नहीं लगता तो मैं क्यों करती?
मैं – देखो अब मेरी पीठ का दर्द बहुत कम हो गया है.तुम जल्दी जल्दी मुझे खूब सारी बातें बता दो.....मेरा दर्द एकदम ख़त्म हो जायेगा....अच्चा ये बताओ हम चिपकेंगे कब?
सीमा – हा हा हा हा हा हा हा हा ह
मैं – तुम हर बात पर हंसती क्यों हो???
सीमा – आप ऐसे पूछ रहे हैं जैसे ये सब कितनी आम बात हो...किसी भी पति पत्नी के बीच ऐसी बातें नहीं होती हैं...
मैं – अच्छा??? चिपक सकते हैं लेकिन चिपकने की बात नहीं कर सकते??? ये क्या बात हुई?
सीमा – जी हाँ. यही बात हुई....कोई लाज लिहाज है की नही? और जब हमारा घर बन जायेगा तब ये आपका सीटी सुनना ये सब कुछ भी बंद...तब मैं बदन से भी आपकी पत्नी बन जाउंगी न..तो मुझे बहुत शर्म आया करेगी...समझे भोंदू साहब...
मैं – नहीं समझा. और ना ही समझूंगा....सीटी तो मैं सुनूंगा...हमेशा सुनूंगा ...औए तुम इस बारे में कभी शर्माना नहीं...
सीमा – मैं आप के जैसी बेशर्म नहीं हूँ....मैं तो बहुत शर्माउंगी....आपके साथ चिप्कुंगी भी तो पुरे कपडे पहन के चिपकुंगी...
मैं – नहीं नहीं. कपडे पहन के नहीं....बिना कपड़ों के...
सीमा – हा हा हा हा हा अब बस करिए न...ये सब बात नहीं करनी चाहिए हमें. अभी आप 6 महीने और इन्तेजार कर लीजिये...फिर तो मैं बदन से तैयार हो जाउंगी आपकी पत्नी बन्ने के लिए..फिर कीजियेगा न..
मैं – करो न.....करो नहीं तो मेरी पीठ फिर से दुखने लगेगी...
सीमा – आप न अव्वल दर्जे के चालू आदमी हो....गन्दी गन्दी बात तो बड़े मजे से करते हो....अब बस करो न ये बात..सो जाओ न...मुझे बहुत जोर से गर्मी लगने लगी है...मुइझे पता है आप भी एकदम कड़क हो गए होगे न...ऐसी बातें मत करो न....थोडा सा सबर कर लो न....फिर कुछ महीने बाद तो मैं खुद ही आपसे चिपकी रहूंगी..कहीं जाने नहीं दूँगी...घर में रहना हर समय..मेरे उपर रहना..मुझसे चिपके रहना...मेरे सैयां....दिन भर प्यार दूँगी रात भर प्यार लूंगी........मेरी एक सहेली ने बताया था की उसकी सुहागरात में उसे बहुत दर्द हुआ था.....मैं भी ये सपना देखती हूँ की मेरी सुहागरात में मुझे बहुत दर्द हो...रात भर दर्द हो...आप हमेशा चिपके रहो मुझसे..मुझे रात भर घुसा के रखो...अपने नीचे दबा के रखो.....अगले दिन मुझसे चलते भी न बने.....मेरे सैंयाँ....बस कुछ महीने और रुक जाओ..फिर मैं आपको बहुत मजा दूँगी....
सीमा अचानक इस तरह से बोलने लगी की मेरी तो साँसे ही रुक गयीं..वो बार बार सिसकारी लेती..बार बार अपना होंठ दबाती....अभी भी हमारे शरीर कुछ दूरी पर थे..हम एक दुसरे को छू नहीं रहे थे..लेकिन मुझे पता चल रहा था की सीमा भी बहुत ज्यादा बेसब्र है सब कुछ करने के लिए...मैं तो शुरू से ही बेसब्र था......सीमा बड़ी देर तक सी सी करती रही और जोर जोर से सांस लेती रही..उसे इस रूप में देख के मैं अपना दर्द अपना कड़कपन सब भूल गया...उसे ही देखता रहा....उसके ये रूप मेरे मन में बस गया था...वो मेरी बगल में लेती जोर जोर से सांस ले रही थी. सी सी कर रही थी और मैं उसे देखता देखता कब सो गया मुझे पता नहीं चला.....
मेरी बीती जिंदगी की कहानी --5
बिना किसी बहस के हमने उनकी बात सुनी और किसी तरह से उस पेड़ के सहारे छत पर चढ़ गए.....अभी पूरी धुप शुरू नहीं हुई थी..दिन धीरे धीरे बढ़ रहा था...उस दिन तो लग रहा था जैसे आज का दिन कभी ख़त्म ही नहीं होगा...समय था की कट ही नहीं रहा था...छत पर पहुच के जब नज़र दौडाई तो देखा की कुछ बेकार फेंका हुआ सामान पड़ा हुआ है...कहीं छाँव नाम की चीज नहीं है..अभी तो धुप नहीं थी लेकिन जब दिन में धुप तेज होगी तो कहीं एक इंच भी छाँव नहीं मिलेगी.....आसपास के घर लगभग सब एक ही ऊँचाई के थे....इसलिए सब की छत भी एक ही ऊँचाई पर थी..वहां बैठे बैठे हमें दुसरे घरों की छतें भी दिख रही थी......किसी किसी छत में कुछ बैठने का सामान भी रखा हुआ था.....देख के लगता था की लोग वहां धुप सेंकने के लिए आते होंगे..लेकिन हमारी छत पर ऐसा कुछ नहीं था......सुबह सुबह अपने ही सगे भाई से जो अमृत वचन सुनने को मिले थे वो अब फिर से कान में गूंजने लगे थे......देखिये कई बार आदमी को ये पता नहीं होता की कब उसकी जिंदगी में कोई दूसरा शामिल हो गया और कब वो उसके लिए सबसे जरुरी हो गया.......मुझे अपने शादीशुदा होने का एहसास बहुत गहरे से नहीं होता था....मेरे और सीमा के बीच पति पत्नी वाले रिश्ते नहीं बने थे....लेकिन फिर भी आज जो भी हुआ उसमे सबसे ज्यादा पीड़ा देने वाली बात ये थी की मेरे साथ सीमा थी और भाभी ने उसे एक गिलास पानी को भी नहीं पूछा..मुझे नहीं दिया न सही..मुझे कोसा वो भी ठीक..लेकिन सीमा ने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था.....उसके साथ भी उनका ये सुलूक देख के मेरे पुरे बदन में आग लगी हुई थी.......शायद ये बात मेरे चेहरे पर भी जाहिर थी...सीमा ने उसे पढ़ लिया...उस नादान को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा होगा की क्या कर के मेरा ध्यान उस सबसे हटाये........उसने कुछ इधर उधर की बात करने की कोशिश की लेकिन मैंने कोई जवाब नहीं दिया...मेरे दिमाग में तो तूफ़ान सा उठ रहा था....मुझे अभी भी अपने ख्यालों में खोये देख कर उसने मुद्दा बदला...और इस बार उसका पैंतरा चल निकला...
सीमा – अच्छा कल रात को मैं बात कर रही थी और आप सो गए थे...
मैं – हाँ वो कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला...क्या बात कर रही थी तुम?
सीमा – आपको कहाँ तक की बात याद है?
मैं – तुम बता रही थी की तुम्हारी सौतेली माँ तुमसे घर का सारा काम करवाती थी....उसके बाद मुझे नींद लग गयी..मैं कब सोया ये भी याद नहीं...
सीमा – हाँ मैं तो आपको सब अन्दर की बात सुनाती रही...अपने सब राज खोल दिए मैंने कल बातों बातों में...लेकिन फिर आपकी तरफ देखा तो आप तो एकदम नींद में डूबे हुए थे...मैं भी कितनी बुद्धू हूँ...सोच रही थी की आप सब सुन रहे हैं लेकिन आप तो सो रहे थे...
मैं – हाँ.
सीमा – जानते हैं कल बातों बातों में मैंने सोचा की हम लोग तो पति पत्नी हैं तो हमारे बीच तो कुछ छुपा है नहीं..इसलिए मैंने कल सारी बात बता दी आपको....
मैं – हाँ......( मैं अभी भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे पा रहा था,...बस जैसी ही उसकी बात ख़त्म होती मैं धीरे से हाँ बोल देता था....सीमा को पता चल गया की अभी भी मेरा ध्यान कहाँ अटका हुआ है...)
सीमा – क्या हाँ हाँ कर रहे हैं..कुछ बोलते क्यों नहीं?
मैं – मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है...मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है...
सीमा – मेरी बात मानिए...ये गुस्सा अपने अन्दर रखिये..यही गुस्सा हमें बहुत आगे ले के जायेगा...अगर हम अपने इस गुस्से को काबू नहीं कर पाएंगे तो हमारी जिंदगी एकदम बिखर जाएगी..इसलिए अगर गुस्सा आये तो उसे अपने अन्दर रखना सीखिए...आज इन लोगों का दिन है..कभी न कभी हमारा दिन भी जरुर आएगा....बस हमें इन्तेजार करना है....
मैं – हाँ ठीक कह रही हो....
सीमा – हाँ मैं जानती हूँ की मैं ठीक कह रही हूँ...अच्छा वो सब अब जाने दीजिये.....और ये देखिये....
मैंने जैसे ही सीमा की तरफ नज़र फेरी..मेरी आँखें फटी की फटी रह गयीं...और पूरा खून एक बार फिर से मेरे अण्डों में भरने लगा....सीमा को अपनी साड़ी ऊपर करने में मुश्किल से एक या दो पल लगे होंगे....उसने पूरी कमर तक उठा ली थी साड़ी और वो उकडू बैठी हुई थी....उसने पिचली बार की तरह उठाई हुई साड़ी को अपने घुटनों के ऊपर डाल कर कुछ छुपाने की कोशिश भी नहीं की थी....मैं उससे सिर्फ एक हाथ दूर था......मुझे उसका नजारा एकदम साफ़ दिख रहा था..और फिर ये भी ख्याल आया की कहीं कोई और तो नहीं है जो दूर से ये नजारा देख रहा हो..मैंने फ़ौरन चरों तरफ नज़र दौडाई तो सीमा ने ही कहा की “कोई नहीं है मैंने पहले ही देख लिया है आप आराम से इसे देखिये....” मैं वापस मुड़ा और बैठा बैठा सामने खुली हुई उस जन्नत को देखने लगा...उसे छू नहीं सकता था...हाँ मन बहुत था की उसे छू लूं लेकिन छूने के बाद क्या करना है ये तो पता नहीं था....तो मैं बस देख सकता था......उसकी बुर बहुत छोटी सी थी.....हाँ बुर के ऊपर के होंठ बहुत मोटे मोटे थे.......और उन दो फांकों के बीच एक लम्बी लकीर सी दिखाती थी....सबसे ऊपर एक छोटी कच्ची केरी जैसी घुंडी थी...........झांटें लगभग नहीं के बराबर थी...बाल थे लेकिन बहुत कम और बहुत हलके हलके.........मैं उसके इस नज़ारे में खोया हुआ था की तभी उसने पूछा ....” सीटी बजाऊं......?”” मैंने कुछ नहीं कहा..मैं जिस जगह पर अभी तक बैठा हुआ था वहीँ अब लेटने लगा..लेटने के बाद अब मेरी आँखें और उसकी बुर एक स्तर पर आ गए थे..इससे मुझे और भी ज्यादा अच्छे से दिख रहा था सब कुछ.......सीमा ने अपनी टाँगे थोड़ी और फैला ली और उसने अपना वजन पीछे की तरफ कर लिया....ऐसा करने से उसकी कमर थोडा ऊपर उठी और उसकी बुर अब और भी ज्यादा खुल के मेरे सामने थी...और फिर वही मधुर सीटी की छल छल आवाज सुनाई दी मुझे......इतने दिनों में आज पहली बार मुझे इतनी साफ़ दिखाई दी थी वो जन्नत....और मैं एकदम मंत्रमुग्ध उसे देखे जा रहा था........वो लम्बी धार धीरे धीरे छोटी होने लगी और कुछ अंतिम बूदें तो उसकी बुर से सरकती हुई गिरी जमीन पर.....सीमा ने अपने एक हाथ से अपनी बुर के होठों को पकड़ा...अपनी दो उँगलियों के बीच अपनी बुर के होठों को दबाया और जैसे हम नीबू निचोड़ते हैं वैसे ही अपनी बुर के दोनों होठों को उसने निचोड़ सा दिया...एक दो बूँदें और गिरी...और फिर उसने हलके से अपनी बुर को छोड़ दिया....उसके ऐसा करने से उसके वो दोनों होंठ हलके हलके लाल हो गए......उन होठों का वो कंपन और उनका वो सुर्ख लाल रंग मुझे आज भी याद है........
सीमा ने अब अपनी साडी ठीक कर ली थी..और अब वो मेरे सामने ही बैठी हुई थी.......उसके चेहरे पर शर्म और शरारत एक साथ झलक रहे हे..बहुत ही कातिल लग रही थी....
सीमा – अब बताओ आप....मेरी सीटी ज्यादा प्यारी है या अपना गुस्सा? क्योंकि दोनों में से एक ही मिल सकता है...अगर आपको गुस्सा ही रहना है तो फिर मेरी सीटी नहीं मिलेगी आज के बाद...और अगर आप को मेरी सीटी सुन्नी है तो फिर आज के बाद आप गुस्सा नहीं करेंगे....
मैं – लेकिन गुस्सा आएगा तो क्या करूँगा?
सीमा – तो उस गुस्से को अपने अन्दर रखेंगे..उसे बाहर नहीं निकालेंगे....हमेशा याद रखेंगे की बुरे दिन कभी न कभी ख़त्म हो जाते हैं...हमें कम से कम इस बात की पहचान तो हो गयी की कौन हमारा अपना है और कौन नहीं...इसलिए अगर गुस्सा आये भी तो उसे अपने अन्दर रखना है और गुस्से में अपना आपा नहीं खोना है....
मैं – ठीक है....अगर मैं अपने गुस्से को काबू में रखूं तो मुझे क्या मिलेगा?
सीमा – जो अभी मिला वो तो मिलेगा ही....और कल रात को जो मैं बता रही थी न वो सब भी मिलेगा और जी भर भर के मिलेगा..दिन दिन भर रात रात भर....
मैं – क्या बता रही थी रात को??????
सीमा – हाँ आप तो सो गए थे...आपने तो वो सब सुना ही नहीं होगा...अच्छा अब जाने दो उस बात को...रात गयी बात गयी....
मैं – नहीं नहीं.बता दो न फिर से ...क्या बता रही थी रात में...
सीमा – यही की हमारे गाँव में किस किस चीज की खेती होती है....
मैं – झूठ.
सीमा – सच. यही बता रही थी की हमारे गाँव में किसके पास बड़े बड़े खेत हैं..और वो कौन कौन सी फसल लगाते हैं..
मैं – झूठ..
सीमा – सच. और ये भी बता रही थी की खेतों में चरवाहे कब कब रहते हैं और कब कब खेत खाली रहते हैं..
मैं – झूठ.
सीमा – सच. और ये भी बता रही थी की सब लड़के लड़की जानते हैं की कौन सा खेत कब खली रहता है.
मैं – झूठ एकदम झूठ. तुम झूठ बोल रही हो. ये सब क्यों बताओगी तुम मुझे?
सीमा – सैंयाँ जी...जब लड़का लड़की जानेंगे की कौन सा खेत कब खाली है तब ही न वहां जा के एक दुसरे से चिपकेंगे.......यही तो बता रही थी की मर्द और औरत शादी करने के पहले भी चिपक लेते हैं...शादी के बाद तो चिपकते ही हैं...मैंने तो कितनो को देखा है चिपके हुए...मेरी ही खूब सारी सहेलियां थी जो मौका मिलते ही किसी को भी चिपकवा लेती थी.....इसी चिपकम चिपकी में तो मजा मिलता है ऐसे लोगों को......
सीमा ये सब कहती जा रही थी और मेरा लंड अकड़ के लोहा हुआ जा रहा था....वो जानबूझ के बीच बीच में सिसकारी लेती जैसी कितनी खट्टी चीज खा ली हो कोई..कभी ऐसे सी सी करती जैसे मिर्ची खा ली हो.....उसकी ये सब अदाएं मुझे और भी ज्यादा पागल किये दे रही थी...और ये भी सच है की उस पागलपन में मैं ये भूल गया था की कुछ देर पहले मेरे मन में क्या चल रहा था..मेरा सारा गुस्सा सारा दुःख दर्द सब हवा हो चूका था.....सीमा को भी ये बात समझ आई की अब मेरा दिमाग ठिकाने पर है..और अब दिन भी निकल आया था....उसने ये बात यही बंद की और मुझसे कहा की “ अब कब तक ऐसे बन्दर जैसे मुंह फुला के बैठे रहोगे. हम लोग मोहल्ले में हैं.यहाँ तो कितने सारे घर हैं. कोई बाहर जाने की सोचेगा नहीं लेकिन सब को बाहर का कुछ न कुछ काम तो होगा ही न. तो जाओ और पूछो सबसे. कुछ काम मिले तो खाने का इतेजम करें कुछ और हाँ जहाँ कहीं जगह मौका मिले वहां पेट साफ़ कर लेना..मैं तो यहीं तुम्हारे भैया की छत पर सब करुँगी...इन्होने हमें इतना भला बुरा कहा हम इनके उपर बोझ है न तो चलो इनके सर पर अपना कुछ बोझ और डाल दिया जाये..आप जाओ और कुछ काम खोजो..मैं यहीं बैठी आपका इन्तेजार करुँगी...”
मैं उसी पेड़ से झूलता हुआ नीचे उतर आया और पीछे वाले दरवाजे से ही बाहर निकल आया....उन लोगों ने मुझे बाहर जाते हुए तो देखा लेकिन कुछ कहा नहीं....ये कोई बड़ा मोहल्ला नहीं था...घर तो खूब सरे थे लेकिन कोई भी बड़ा हवेली जैसा घर नहीं था...सब औसत दर्जे वाले लोग ही थे....सड़क के दोनों तरफ घर थे...मैं उसी सड़क पर चल रहा था..और फिर एक घर के बाहर एक साहब अख़बार पढ़ते हुए दिखे..मैंने उनसे बात की और उन्हें अपने बारे में बताया....उन्हें ये बताया की यहीं पीछे शंकर बाबू जी के यहाँ रहता हूँ. कुछ काम हो तो बता दीजिये मैं कर दूंगा बदले में कुछ भी दी दीजियेगा.....उन साहब ने अपने यहाँ तो कोई काम नहीं बताया लेकिन अपने बगल वाले घर में एक दुसरे साहब को आवाज दी और कहा की ये एक काम वाला फिर रहा है देख लो कोई काम हो तो...उनके यहाँ गया तो पता चला की उनका परिवार कई दिनों से बाहर है....और आज उनके नौकर लोग भी नहीं आये हैं...मुझे उन्होंने घर की सफाई का पूरा काम दे दिया......मैं लग भी गया....पूरा एक घंटा लगा होगा सब कुछ करने में..कपडे बर्तन झाड़ू पोचा सब कर डाला....साहब ने बदले में पांच रुपये दिए..मैं पैसे ले के कहाँ जाता...बाजार तो सब बंद था..मैंने उसने कहा की साहब कुछ खाने को हो तो दे दीजिये मैं पैसे ले के बाजार से कुछ ले भी नहीं पाउँगा....साहब अच्चा आदमी था...उसने ज्यादा नखरा नहीं किया...बोला की कल रात का कुछ खाना बचा हुआ है.चाहो तो ले जाओ.......अँधा क्या चाहे दो आँखें...खाना लेने में न चाहने वाली तो कोई बात ही नहीं थी..मैंने तुरंत वो सारा खाना एक थैली में बाँध लिया....उन्होंने कह दिया की जब तक उनके नौकर लौट के नहीं आ जाते मैं उनके यहाँ रोज सुबह आता रहूँ........मुझे तो मजा आ गया....बस अड्डे से कहीं ज्यादा आराम का काम था ये तो..कपडे धोने में झाड़ू करने में तो जरा सी मेहनत नहीं लगी थी मुझे और खाना भी मिल गया था....मैं आगे के घरों की तरफ बढ़ा....एक दो छोटे छोटे काम तो मिले लेकिन उनसे कुछ आमदनी नहीं हुई....मैंने बता दिया की मैं शाम को फिर से एक चक्कर लगाने आऊंगा..तब बता दीजियेगा कोई काम हो तो......
कुछ देर में मैं वापस लौटा....और फिर से उस पेड़ के सहारे छत पर आ गया...अब तक अच्छी खासी धुप हो आई थी और सीमा छत के बीच में ही बैठी हुई थी...चादर उसने नीचे बिछा ली थी और अपनी एक साड़ी को झोले से निकल के उपर ओढ़ लिया था...मैं पंहुचा तो उसी चादर में थोड़ी जगह मुझे भी मिल गयी बैठने को...बैठने पर एहसास हुआ की ये चादर एकदम तपी हुई है...उपर से धुप भी कड़ी थी...फिर भी और कोई चारा हमारे पास था नहीं...जो खाना मैं उन साहब के यहाँ से लाया था वो थैली मैंने आगे बढाई तो सीमा बहुत खुश हुई...हमने खाना खाया...साहब के घर का खाना था....अच्चा था..उस होटल के खाने से तो अच्छा ही था...ज्यादा नहीं था..फिर भी इतना था की खाली पेट कुछ देर के लिए शांत हो गया....अब क्या करें? खाना तो खा लिया....अब कहीं काम खोजने भी जा नहीं सकते...सड़कें एकदम खली पड़ी हुई थी....अभी तक हमें ये नहीं मालूम था की ये सब हुआ किस वजह से है...लेकिन ये समझ आ रहा था की शहर का माहौल ही एकदम बदला हुआ था.....शाम होने तक क्या किया जाय ये अपने आप में एक बड़ा सवाल था....अभी भी करीब चार पांच घंटे बाकी थे धुप के...इस धुप में ऐसे बैठना पड़ा तो जल के राख हो जायेंगे.......इस मोहल्ले के बाकी घरों की छतें बहुत नजदीक नहीं थी लेकिन फिर भी उन तक पंहुचा जा सकता था..हमने सोचा की किसी दुसरे की छत से कुछ बैठने का सामान उठा लेते हैं..फिर शाम को वापस रख देंगे...पहले सीमा ने मना किया..लेकिन फिर जैसे जैसे धुप और तेज हुई उसकी भी हिम्मत टूट गयी और उसने भी हाँ कह दी...मुझे ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा....इस छत से अगली छत पर ही कार्डबोर्ड के दो तीन डब्बे पड़े हुए थे..मैं सावधानी के साथ छत से दूसरी छत पर गया और वो डब्बे उठा ले आया....उसे फाड़ के हमने अपने सर के ऊपर रख लिया....कुछ तो धुप से राहत मिल ही गयी...लेकिन साथ ही ये डर भी था की किसी ने देख लिया तो बवाल मच जायेगा.......पूरी दोपहर हम लोग उंघते बैठे रहे....न सीमा ने कुछ कहा न मैंने..हमारी पानी की बोतल में जो पानी था वो भी ख़त्म हो चूका था....अब शाम का इन्तेजार था बस.....
शाम हुई....मैं सीधा उस साहब के घर गया जिसके यहाँ दिन में काम किया थ..लेकिन उनके यहाँ अभी कोई काम नहीं था....उनके दुसरे पडोसी के यहाँ गया तो उन्होंने ऐसे स्वागत किया जैसे मैं कोई फ़रिश्ता हूँ..मैं भी थोडा हैरान रह गया..फिर जब उन्होंने अपना काम बताया तो समझ में आया की ऐसा क्यों कर रहे थे....वो साहब रोज पीने वालों में से थे...उन्हें कर्फ्यू का पहले से अंदाजा नहीं था तो उनके पास पीने का सामन जमा करने का मौका ही नहीं था..अब बेचारे इसी तलब में मरे जा रहे थे...शायद उन्हें सुबह वाले साहब ने मेरे बारे में बताया होगा..मेरे जाते ही बोले की ये काम है..मैंने साफ़ मना कर दिया....अजनबी शहर..उपर से पुलिस ऐसे फिर रही है हर जगह...किसी ने पकड़ लिया तो मुसीबत हो जाएगी......मैं ना नुकुर करता रहा और साहब मुझे सम्ह्जाते रहे की कुछ नहीं होगा...फिर उन्होंने उस शराब के दूकान वाले से बात की फ़ोन पर...और उसे कहा की वो अपना एक आदमी भेज रहे हैं....फ़ोन पर ही उसे मेरा हुलिया बताया.......मैं मना करता जा रहा था लेकिन उन्होंने सुना नहीं....फिर फ़ोन काट के अपनी जेब में हाथ डाला और एक सौ रुपये का नोट निकाल के मुझे देते हुए बोले की ये मेरे लिए है...मैंने उनका काम कर दिया तो ये पूरा का पूरा मेरा.....मैंने मन ही मन सोचा की ये पहले बोल दिए होते तो अब तक तो इनका काम निपटा दिया होता मैंने.....मैंने तुरंत हाँ कह दी....कोई दिक्कत नहीं थी अब...सौ रुपये मिलने वाले थे...कुछ देर में जब अँधेरा हो गया बाहर तो उनके बताये रस्ते पर चला और सही जगह पर वो दूकान वाला भी मिल गया...वो भी सड़क के किनारे छुपा हुआ था एक थैली लिए..मैंने उससे थैली ली उसने मुझे कहा की साहब को बता देना की हिसाब में चढ़ा लूँगा....मैंने थैली ली और तेज कदमों से वापस चलने लगा..जब कुछ दूर पंहुचा तो पीछे से एक आवाज आई....” ए रुक कहाँ जा रहा है “......मैंने पीछे मुड के देखा तो दो हवलदार मेरे बहुत करीब थे......मैंने आव देखा न ताव भाग खड़ा हुआ......पीछे पीछे वो लोग भागे....सुनसान रास्ता और मैं अपनी पूरी ताकत लगा के भागा.......उन्हें भी लग गया होगा की वो मुझे पकड़ नहीं पाएंगे...लेकिन फिर भी ठहरे तो पुलिस वाले ही.......मैं अपनी धुन में भाग रहा था और तभी मुझे पीठ पर एक चोट लगी और मेरी पूरी पीठ सुन्न हो गयी.....एक तरफ सुन्न पीठ और दूसरी तरफ वो चमकता हुआ सौ रुपये का नोट.....मैंने पीठ की परवाह नहीं की और भागता रहा....कुछ देर में मुझे लगा की मैं अब अकेला ही दौड़ रहा हूँ और उन लोगों ने मेरा पीछा करना बंद कर दिया है.......मैं अब पैदल चलने लगा ताकि किसी और को शक न हो....जब साहब के घर आया तो वो आदमी दरवाजे के पास खड़ा मेरी राह देखा रहा था..पहली बार किसी को नशे में इतना बेचैन देखा था...उसे बोतल दी..साहब ने पूरी इमानदारी से मुझे मेरे पैसे दिए और पूछा भी की कुछ चाहिए हो तो ले लो.....मैंने उन्हें अपनी बात बताई....उन्होंने अपने घर के पीछे की बगिया में जा के कुछ फल तोड़ लेने को कह दिया......मैं पीछे आया तो देखा की बहुत सरे फल थे..मैंने उनकी शराब को बहुत दुआ दी और अपने दोनों हाथों में जितने फल समा सकते थे उतने फल तोड़ के चल दिया....
अभी रात नहीं हुई थी....पर कहीं कुछ काम मिलना नहीं था..और फल मिल ही गए थे...सो मैं वापस आ गया...कभी बस के पीछे हमारी जगह थी अब एक खुली छत पर है.....सीमा वही बैठी हुई थी....बल्ब तो कोई था नहीं...वैसे रात अँधेरी नहीं थी..चाँद था..पूरा नहीं था फिर चाँद की रौशनी और इधर उधर से आती दूसरी रौशनी मिल जुल के बस इतना कर रही थी की हमें बहुत ध्यान देने पर चीजें दिख जाती थी.......मैं जैसे ही सीमा के पास मेरी पीठ ने भी अपनी हाजिरी लगा दी..अभी तक तो सुन्न थी लेकिन अब उसमे भी लहक उठने लगी..और वो दर्द हुआ की मेरी आँखें भीग गयी,....उस हवालदार ने पता नहीं किसे याद कर के वो लाठी घुमाई थी...पीठ पर जहाँ पड़ी थी वहां की चमड़ी साथ ले गयी थी....मैंने फल सीमा को दिए..वो कुछ कह रही थी लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा था....सीमा को भी अंदाजा हुआ की कुछ गड़बड़ है..मैंने उसे पूरी बात बताई……….. हम लोग कुछ देर शांत बैठे रहे...एक दुसरे को साफ़ साफ़ नहीं देख सकते थे लेकिन एक दुसरे की तेज चल रही साँसें साफ साफ़ सुनाई दे रही थी........
सीमा – ऐसा नहीं करना चाहिए था आपको.अगर पुलिस पकड़ लेती तो?
मैं – मैं बहुत तेज भागता हूँ. उस हवलदार को देख के ही समझ गया था की इतना बड़ा पेट ले के ये मुझे पकड़ नहीं पायेगा.
सीमा – बहुत शेखी न बघरिये...अगर पकड़ ही लेता तो क्या करते? कैसे बाहर आते? कितनी मुसीबत हो जाती ? मुझ तक कैसे खबर पहुचती ? मैं यहं आपका इन्तेजार करती रहती न? आपको कौन छुड़ा के ले के आता थाणे से...??? आपके भाई भाभी आते क्या??? वो साहब आता क्या??? मुझे जवाब दीजिये की अगर कुछ हो जाता तो क्या करते?
मैं – पता नहीं. इतना सोचा नहीं. साहब ने कहा की सौ रूपये देंगे इसलिए मैं मान गया.
सीमा – ऐसे पैसे नहीं कमाने जिसके लिए इस तरह का कुछ करना पड़े...समझ रहे हैं आप?
मैं – हाँ समझ रहा हूँ. एक तो मेरी पीठ इतनी दुःख रही है और ऊपर से तुम डांट रही हो.
सीमा – मैं डांट नहीं रही हूँ लेकिन आपको अगर ये सब न कहूँ तो कल आप फिर से न जाने क्या कर के आयेंगे...लाईये मुझे देखने दीजिये कहाँ लगी है पीठ में...
मैं – रहने दो. पहले ये फल लाया हूँ ये खा लेन..फिर देखती रहना...
पानी मैं अपने साथ ले आया था.....उसी से हमने फल धोये और रात के खाने में वही खाए....अब तक रात भी शुरू हो ही चुकी थी..आसपास के घरों की बत्तियां बंद होने लगी थी और सड़क पर भी कोई हलचल नहीं थी.....हम लोग वैसे तो इतने दिन से साथ ही थे लेकिन ये शायद ऐसा पहला मौका था जब हम इस तरह के एकांत में थे...सन्नाटा तो बस अड्डे पर भी रहता था लेकिन वो खुली जगह थी..यहाँ छत पर होने के बाद एक निजता का एहसास था...aआसपास कोई और नहीं था.....खाना खाने के बाद सीमा ने मुझे अपना घाव दिखाने को कहा..मैंने अपना कुरता उतर दिया..अब मैं सिर्फ पैजामे में था....सीमा मेरी पीठ पर लगी चोट को देखने की कोशिश कर रही थी..उसे ठीक से तो नहीं दिखा लेकिन इतना समझ आ गया की पूरी पीठ पर एक टेढ़ी लकीर सी बन गयी है जो की एकदम सुर्ख लाल है...जरुर इसी जगह पर लाठी पड़ी होगी......मेरा दर्द लगातार बढ़ता जा रहा था...सीमा बेचारी भी कुछ कर सकती नहीं थी.......कुछ देर में मैं अपने पेट के बल लेट गया....रात में छत भी ठंडी हो गयी थी...हमने अपनी एक चादर बिछा ली और दूसरी सीमा की एक साड़ी बिछा ली..दोनों के लेटने के लिए पर्याप्त जगह थी..मैं लेता तो सीमा ने कहा की पैर दबा दूं..मैंने मना कर दिया...उस दिन कुछ ज्यादा काम नहीं किया था तो पैर में दर्द भी नहीं था.....मुझे बस बार बार ये पीठ परेशां कर रही थी...बार बार उसमे दर्द की एक लहर सी उठती थी....हमारे पास न कोई मरहम था न कोई और इलाज इस दर्द का..इसे रात भर सहना ही था...और रात भर क्या जब तक वो अपने आप ठीक नहीं होता तब तक सहना ही था......दर्द कम करने के लिए मैं ये सोच लेता था की सौ रुपये मिले हैं......लेकिन ये नुस्खा भी कुछ देर में ख़त्म हो गया...सीमा मेरे बगल में लेटी हुई थी..नींद उसे भी नहीं आ रही थी..उसे भी पता था की मैं कितने दर्द में हूँ.....फिर उसी ने बात शुरू की...
सीमा – आप ऐसे चुप हो के लेटे रहेंगे तो आपको और दर्द होगा/
मैं – क्यों?
सीमा – आपका ध्यान बार बार अपनी पीठ पर जायेगा..
मैं – तो क्या करूँ? आज तो नींद भी नहीं आ रही...
सीमा – हाँ नींद आ जाती तो कुछ आराम मिलता...सुनिए जब तक नींद न आये आप बात करते रहिये...इससे आपका ध्यान भी बंटा रहेगा...
मैं – मैं क्या बात करूँ...तुम करो न...तुम बताओ न कुछ...
सीमा – ठीक है....क्या बताऊँ?
मैं – अपने घर के बारे में..अपने बचपन के बारे में...
सीमा – वो सब तो और भी ज्यादा दर्द देने वाली बातें हैं..वो सब नहीं करनी...
मैं – तो फिर हमारे आने वाले कल के बारे में बताओ..
सीमा – उसके बारे में क्या बताऊँ?
मैं – यही की तुमने क्या सोचा है..हमारे अच्छे दिन कब आयेंगे...हम कैसे रहेंगे...ये सब कुछ...
सीमा – सोचा तो मैंने बहुत कुछ है...हमारा अपना घर होगा....एक स्कूटर होगा आपके पास...आपका अपना..उसमे बैठ के घुमा करेंगे...आपका काम अच्छा चलेगा..हमारे पास जरुरत भर का पैसा होगा...
मैं – सिर्फ जरुरत भर का? ज्यादा नहीं?
सीमा – नहीं . ज्यदा पैसा दिमाग ख़राब कर देता है. हमें जरुरत भर का चाहिए बस...
मैं – ठीक है..और क्या क्या होगा...
सीमा – हम लोग हर हफ्ते सिनमा देखने जायेंगे,....मैं अपने लिए बहुत सारे कपडे खरीदूंगी. आप मना करेंगे फिर भी खरीदूंगी.
मैं – मैं क्यों मना करूँगा?
सीमा – क्यों इतने पैसे खर्च होंगे तो मना नहीं करेंगे.?
मैं – पैसे तो कमा ही तुम्हारे लिए रहा हूँ तो तुम्हारे खर्च करने से क्यों रोकूंगा?
सीमा – ठीक है. याद रखियेगा अपनी ये बात. ऐसा ना हो की आप फिर भूल जाएँ...
मैं – हाँ हाँ...और बताओ न...अच्छा हमारे बच्चे कितने होंगे?
सीमा – हा हा हा हा हा हा...
मैं – इसमें हंसने की क्या बात है?
सीमा – बच्चों की बात क्यों की?
मैं – क्यों? पति पत्नी के तो बच्चे होते ही है न...
सीमा – बड़े आये पति पत्नी वाले...बच्चे कैसे होते हैं ये भी जानते हो?
मैं – हाँ जनता हूँ...शादी करने से बच्चे होते हैं. हमारी शादी हो गयी तो हमारे भी बच्चे होंगे...
सीमा – हा हा हा हा हा हा हा हा वाह वाह बस इतने से बच्चे हो जायेंगे क्या?
मैं – तो जो जो भी करना होता है वो सब करेंगे न...तुम बताओ न क्या क्या करना होता है...
सीमा – आपको ये सब बात करना बहुत अच्चा लगता है न...
मैं – हाँ..तुम्हें नहीं लगता..
सीमा – धत...लड़की से ऐसे नहीं पूछते...
मैं – तो कैसे पूछते हैं?
सीमा – कैसे भी नहीं पूछते..लड़की अगर साथ दे रही है तो मतलब उसे अच्चा लग रहा है..नहीं लग रहा होता तो साथ नहीं देती...
मैं – मतलब तुम्हें भी अच्चा लगता है न.....
सीमा – सुबह बताया तो था....अच्छा नहीं लगता तो मैं क्यों करती?
मैं – देखो अब मेरी पीठ का दर्द बहुत कम हो गया है.तुम जल्दी जल्दी मुझे खूब सारी बातें बता दो.....मेरा दर्द एकदम ख़त्म हो जायेगा....अच्चा ये बताओ हम चिपकेंगे कब?
सीमा – हा हा हा हा हा हा हा हा ह
मैं – तुम हर बात पर हंसती क्यों हो???
सीमा – आप ऐसे पूछ रहे हैं जैसे ये सब कितनी आम बात हो...किसी भी पति पत्नी के बीच ऐसी बातें नहीं होती हैं...
मैं – अच्छा??? चिपक सकते हैं लेकिन चिपकने की बात नहीं कर सकते??? ये क्या बात हुई?
सीमा – जी हाँ. यही बात हुई....कोई लाज लिहाज है की नही? और जब हमारा घर बन जायेगा तब ये आपका सीटी सुनना ये सब कुछ भी बंद...तब मैं बदन से भी आपकी पत्नी बन जाउंगी न..तो मुझे बहुत शर्म आया करेगी...समझे भोंदू साहब...
मैं – नहीं समझा. और ना ही समझूंगा....सीटी तो मैं सुनूंगा...हमेशा सुनूंगा ...औए तुम इस बारे में कभी शर्माना नहीं...
सीमा – मैं आप के जैसी बेशर्म नहीं हूँ....मैं तो बहुत शर्माउंगी....आपके साथ चिप्कुंगी भी तो पुरे कपडे पहन के चिपकुंगी...
मैं – नहीं नहीं. कपडे पहन के नहीं....बिना कपड़ों के...
सीमा – हा हा हा हा हा अब बस करिए न...ये सब बात नहीं करनी चाहिए हमें. अभी आप 6 महीने और इन्तेजार कर लीजिये...फिर तो मैं बदन से तैयार हो जाउंगी आपकी पत्नी बन्ने के लिए..फिर कीजियेगा न..
मैं – करो न.....करो नहीं तो मेरी पीठ फिर से दुखने लगेगी...
सीमा – आप न अव्वल दर्जे के चालू आदमी हो....गन्दी गन्दी बात तो बड़े मजे से करते हो....अब बस करो न ये बात..सो जाओ न...मुझे बहुत जोर से गर्मी लगने लगी है...मुइझे पता है आप भी एकदम कड़क हो गए होगे न...ऐसी बातें मत करो न....थोडा सा सबर कर लो न....फिर कुछ महीने बाद तो मैं खुद ही आपसे चिपकी रहूंगी..कहीं जाने नहीं दूँगी...घर में रहना हर समय..मेरे उपर रहना..मुझसे चिपके रहना...मेरे सैयां....दिन भर प्यार दूँगी रात भर प्यार लूंगी........मेरी एक सहेली ने बताया था की उसकी सुहागरात में उसे बहुत दर्द हुआ था.....मैं भी ये सपना देखती हूँ की मेरी सुहागरात में मुझे बहुत दर्द हो...रात भर दर्द हो...आप हमेशा चिपके रहो मुझसे..मुझे रात भर घुसा के रखो...अपने नीचे दबा के रखो.....अगले दिन मुझसे चलते भी न बने.....मेरे सैंयाँ....बस कुछ महीने और रुक जाओ..फिर मैं आपको बहुत मजा दूँगी....
सीमा अचानक इस तरह से बोलने लगी की मेरी तो साँसे ही रुक गयीं..वो बार बार सिसकारी लेती..बार बार अपना होंठ दबाती....अभी भी हमारे शरीर कुछ दूरी पर थे..हम एक दुसरे को छू नहीं रहे थे..लेकिन मुझे पता चल रहा था की सीमा भी बहुत ज्यादा बेसब्र है सब कुछ करने के लिए...मैं तो शुरू से ही बेसब्र था......सीमा बड़ी देर तक सी सी करती रही और जोर जोर से सांस लेती रही..उसे इस रूप में देख के मैं अपना दर्द अपना कड़कपन सब भूल गया...उसे ही देखता रहा....उसके ये रूप मेरे मन में बस गया था...वो मेरी बगल में लेती जोर जोर से सांस ले रही थी. सी सी कर रही थी और मैं उसे देखता देखता कब सो गया मुझे पता नहीं चला.....
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