Thursday, April 16, 2015

FUN-MAZA-MASTI मेरी बीती जिंदगी की कहानी --4

FUN-MAZA-MASTI


 मेरी बीती जिंदगी की कहानी --4


 मैं तो वही करने पर मजबूर था जो सीमा कहती....उसकी बात मान ली मैंने....वो बैठने के लिए तैयार हुई और मैं उसके पीछे आ गया...मैंने भी अपना पजामा उतार दिया था और लंड तो खड़ा था ही.....जिसे ही सीमा ने बैठना शुरू किया उसकी कमर झुकी और उसकी गांड पीछे हुए तो वो सीधे मेरे लंड से टकरा गयी....उस एक पल के स्पर्श ने मुझे जन्नत दिखा दी.....लेकिन सीमा तुरंत ही उछल के खड़ी हो गयी.....मुझे खूब गुस्से से घूरा..उसने अपनी साड़ी नीचे कर ली थी लेकिन मैंने अपना पजामा ऊपर नहीं किया था.......वो मुझे और मेरे लंड दोनों को नज़र भर के देख चुकी तब बोली की ऐसे नहीं....ऐसे तो सब गड़बड़ हो जायेगा....आप अपनी पीठ मेरी पीठ से चिपको..और फिर बैठेंगे हम..........मैंने उसकी ये बात भी मान ली...मैं पीछे मुड गया...उसने अपनी साडी उठाई और मेरी पीठ से एकदम चिपक गयी...पीठ में चिपकने पर तो मजा नहीं आया लेकिन फिर उसका पोंद मेरे पोंद से जैसे ही छुआ मेरे लंड ने फिर से ग़दर मचा दिया.....हम दोनों ऐसे ही बैठे और इस बैठने के दौरान हमारे बदन ने भरपूर एक दुसरे का जायका लिया होगा.....मुझे तो कुछ याद नहीं...मेरा तो सारा खून मेरे अण्डों में भर गया था....फिर वही सुरीली सीटी सुनाई दी...वही खुला हुआ नल......वही छलकता हुआ पानी.....लेकिन मैंने पीछे मुड के उसे देख नहीं सकता था..........हर चीज का अंत होता ही है...इसका भी अंत हुआ...और जब तक मैं हाथ धो कर वापस मुड़ा तब तक उसकी साडी सही हो चुकी थी......लेकिन अभी एक चीज और बाकि थी..उसी ने कहा था की आज हम कपडे भी बदल लेंगे...मैं इन्तेजार करने लगा....सीमा ने एक बार किनारे पर जा के नीचे की तरफ झाँका और मैं दुसरे किनारे पर जा के दूसरी तरफ से सब देखने लगा की हम लोग अभी भी अकेले ही है या नहीं....हालाँकि अब रौशनी पहले से थोड़ी ज्यादा थी..सूरज थोडा थोडा निकल आया था लेकिन फिर भी अभी कोई हलचल नहीं थी कहीं.....आसपास हमें कोई दूसरा आदमी दिखाई नहीं दिया...और वो चौकीदार भी मस्ती में सो रहा था.......सीमा ने मुझसे कहा की वो उस ईंट के पीछे जा के अपने कपडे बदलेगी और मैं तब तक नज़र रखूँगा की कोई आ तो नहीं रहा है......मैंने कहा की तुमने तो कहा था की मेरे सामने...तुम वो हो के......मैं इतना कह के रुक गया...मेरी जुबान पता नहीं क्यों मेरा साथ नहीं देती थी लेकिन मेरा लंड मुझसे एक कदम आगे चलता था.....सीमा थी तो मुझसे छोटी लेकिन मुझसे ज्यादा शातिर थी..और उसे बीते दो तीन दिनों में मेरी फितरत समझ में आ गयी थी....मुझे सताने का कोई मौका नहीं जाने देती थी वो अपने हाथ से.....

मुझे छेड़ते हुए उसने कहा हाँ बताओ क्या कहा था मैंने.........मैंने सर झुका के कहा की तुमने कहा था की तुम नंगी हो के कपडे बदलोगी.....मैंने जब ‘नंगी’ बोल रहा था तो मेरी आवाज एकदम कंपकपा गयी...और मुझे सीमा की हंसी सुनाई दी.........वो मुझे और छेड़ते हुए बोली......नंगी मतलब क्या होता है जानते हो? मैंने कुछ नहीं कहा....उसने फिर से पुचा...बताओ न आप....नंगी मतलब क्या होता है? आपने कभी किसी लड़की को या औरत को नंगी देखा है? आप मुझे नंगी देखना चाहते हैं???........मेरा सर घुमने लगा था...वो बार बार नंगी नंगी बोल रही थी और हर बार ये शब्द सुन के मेरे शरीर में एक तरंग सी दौड़ जाती थी.....मुझे लगा की मुझे फिर से पेशाब लगी है....मेरा लंड भी अजीब तरह से अकड़ रहा था...यहाँ तक की मेरे मन ये ख्याल भी आ गया की ये सब क्या हो रहा है....ये सब जल्दी से ख़त्म क्यों नहीं होता.....लेकिन सीमा थी की मुझे छेड़े ही जा रही थी.....उसने अपनी साडी खोलनी शुरू कर दी.......अभी एक पल पहले ही मैं ये सब ख़त्म होने की सोच रहा था और जैसे ही उसने साडी खोलनी शुरू की मैं सोचने लगा की अभी ये ख़त्म न हो अभी कुछ देर और चले....वाह रे दिमाग...वाह रे वासना....सीमा ने अपनी साडी पूरी खोल दी थी..अब वो चोली और पेटीकोट में थी.......उसने अपनी चोली खोली....बटन तो खोल दी लेकिन उतारी नहीं.....वो पीछे मुड गयी...और फिर गर्दन मेरी तरफ घुमा के बोली की गुस्सा मत होना...मैं कहाँ गुस्सा होने के लायक था..मेरे दिमाग में तो खून था ही नहीं..मेरा सारा खून तो मेरे अण्डों में भरा हुआ था....उसकी पीठ अब मेरी तरफ थी..मैंने देखा की उसने एक हाथ से अपने पेटीकोट का नाडा खोला और उसे उपर उठा लिया...

उसने अपने पेटीकोट को शायद अपने दांतों में दबा लिया था....उसकी पीठ और कमर दोनों उसके पेटीकोट में छुप गयी थी लेकिन अब उसकी जांघे खुली हुई थी..वो दिख रही थी मुझे....फिर उसने अपनी चोली उतार दी....अब उसके बदन पर सिर्फ वो एक पेटीकोट ही था जो उसने अपने दांतों में दबाया हुआ था...जिसने उसके बदन का काफी हिस्सा छुपा भी लिया था और काफी हिस्सा दिखा भी रहा था..उसने नया पेटीकोट लिया और उसे अपने दोनों हाथों में फंसा लिया..उसे घडी करती हुई वो अपने सर के ऊपर लायी और फिर बहुत ही फुर्ती से उसने अपने दांतों में फंसा हुआ पेटीकोट छोड़ा और नया पेटीकोट सर के ऊपर से अपने ऊपर दाल लिया....ये बड़ा ही फुर्ती से किया था उसने लेकिन फिर भी एक पल के लिए उसका निचला बदल तो नंगा हो ही गया था....नए पेटीकोट के आने के पहले एक पल के लिए मैंने उसके वो नंगे पोंद देखे........और फिर सब कुछ पेटीकोट के अन्दर छुप गया..,...सीमा ने बाकी के कपडे भी उसी तरफ मुड़े मुड़े पहन लिए...मेरी नज़र में उसके वो पोंद घूम रहे थे......उसका शरीर बहुत भरा हुआ नहीं था...लेकिन भरना शुरू हो गया था.....ये पता चल जाता था की कहाँ कहाँ क्या क्या भरने वाला है......बड़ा ही कमसिन शरीर था उसका...रंग गोरा नहीं थाई...गाँव में गोर रंग के लोग कम ही होते हैं.....सांवला रंग था....और मैंने देखा था की उसकी कमर में रेशम का काला धागा बंधा हुआ था....वो नजारा मुझे कभी नहीं भूलता.....जब सीमा ने अपने कपडे पहन लिए तो मेरी तरफ मुड़ी और मुझे कहा की वहां ईंट के ढेर के पीछे जा के मैं भी बदल लूं.....मैं ठहरा गाँव का गंवार गधा...मुझे क्या किसी से लाज शर्म..मैंने वही अपने कपडे उतारे...पुरे उतारे...मेरा लंड उसके सामने खुला हुआ था...और बिना किसी जल्दी के दुसरे कपडे पहन लिए........सीमा ने मुझे जी भर के देखा..........और फिर हम लोग वापस बस अड्डे की तरफ चल पड़े...देखना था की आज का दिन कैसा जाता है...आज कुछ काम मिलता है या नहीं........


उस दिन मुझे काफी काम मिला.....उस किताब की दुकान वाले के यहाँ का काम भी किया.....कुछ होटल वालों ने भी अपने छोटे मोटे काम करवाने के लिए बुला लिया..और सबसे बड़ी बात ये की उस दिन मुझे लगभग हर थोड़ी थोड़ी देर में बस वालों ने बुलाया....मुझसे पहले भी वहां और लोग मजदूरी करते थे...सामन रखते उतारते थे...लेकिन वो सब शहर के मजदूर थे जो बीडी दारू पी पी के ख़त्म हो चुके थे...वो एक काम करते और दस बार हाँफते थे.....मैं अकेला ही उन सबसे ज्यादा काम कर सकता था....उन लोगों को मेरा नाम भी याद हो गया..और जब कोई मुझे मेरा नाम ले के काम के लिए बुलाता तो मुझे कुछ गर्व जैसा महसूस होता था.....मुझे वहां अपना काम शुरू किये सिर्फ एक ही दिन तो हुआ था...लेकिन उस एक दिन में ही वहां के इतने सरे लोगों को मेरा नाम याद था और वो मुझे नाम से बुलाते थे इस बात से मुझे बहुत ज्यादा ख़ुशी थी.....देखिये जिंदगी में परेशानी हर कदम पर रहती हैं...आदमी आज के समय में खुश रह ले उसके लिए वही बहुत है..कल की ख़ुशी कहाँ से आएगी ये सब सोचने में कुछ नहीं रखा...लेकिन ऐसा सोचना सिर्फ हम मर्दों का काम होता है..क्योंकि औरतें हमेशा कल के बारे में सोच के चलती हैं....एक तरफ जहाँ मैं अपना नाम सुन सुन के खुश हो रहा था वहीँ सीमा मेरा काम देख देख के ये सोच रही थी की जितनी मेहनत मैं यहाँ कर रहा हूँ उतना मुझे यहाँ पैसा नहीं मिलेगा.....हालांकि उसने उस दिन मुझसे ऐसा कुछ नहीं कहा था....सुबह से काम पर लगे लगे कब दोपहर हो गयी पता नहीं चला.......आज तो भूख भी लग आई थी.....एक बस का काम निपटा कर मैं उतरा तो सामने एक ठेले पर खीर बिक रहा था..उसके यहाँ से मैंने तीन रुपये के खीरे ले लिए...उसे अच्छे से कटवाया और नामक मिर्ची लगवा के ले आया...सीमा एक जगह किनारे बैठी हुई थी..मुझे आते देख के वो भी खुश हुई...हम दोनों ने बैठ के मजे से वो खीर खाया........ये पहला मौका था जब हम दिन में भी कुछ खा रहे थे.........भैया से जो पैसे मिले थे आज उसका अंतिम दिन था....आज की रात खाना खाने के बाद वो सरे पैसे ख़त्म हो जाने वाले थे और मैंने अभी तक इतना नहीं कमाया था की अगले दिन का इन्तेजाम हो सकता....अभी भी दिन काफी बाकी था और रात भी थी..मुझे उम्मीद थी की जिस तरह से आज काम मिल रहा है मुझे कल रात आते आते तक इतना मिल जायेगा की हमें भूखे नहीं रहना पड़ेगा...मैं इस बरे में सोच के परेशां नहीं होना छह रहा था...मैं तो बस जल्दी जल्दी खीर खा के फिर से काम पर जाने की सोच रहा था.......मैं वापस काम पर लौटा और सीमा वहीँ बैठी रही...वो ऐसी जगह पर थी जहाँ मैं उसे देख सकता था और वो भी मुझे सब काम करते देख सकती थी.......

और फिर ऐसे ही काम करते करते शाम ख़त्म हुई और रात आ गयी....मुझे भी लगा की अब कहीं कुछ काम नहीं मिलने वाला है..मैं अपनी जगह पर लौट आया...खुली जगह को घर तो कहा नहीं जा सकता..लेकिन वहां सीमा मेरे साथ होती थी तो वो जगह बहुत अपनी अपनी सी लगाती थी......हमने बैठ के दिन की कमाई गिनने की सोची..मैंने जेब से वो सरे पैसे निकाले...एक एक दो दो के सिक्के थे खूब सरे...सब कुछ जोड़ के हमें 27 रुपये मिले थे एक दिन में....एक दिन की कमाई में इतना हमें बहुत लग रहा था..और इस बात का यकीन था की ऐसे ही अगर सब चलता रहा तो बहुत जल्दी ही बस अड्डे के बाकी लोग भी हमें काम देने लगेंगे......हम लोगों ने पुरे पैसे कई बार गिने....अपने पैसे गिनने का मजा ही कुछ और होता है..भले ही कम हों लेकिन हैं तो अपने ही.....उस दिन मुझे पहली बार अपनी कमाई की कीमत का एहसास हुआ..और ये समझ में आया की क्यों सीमा सुलभ शौचालय का तीन चार रूपया भी नहीं देना चाहती थी...जब वही एक एक रुपये कमाने के लिए कमर तोडनी पड़ी तो मुझे भी उसकी बात सही जान पड़ी.......हम लोग रात को खाना खाने गए....दुसरे के दिए पैसे से ये हमारा अंतिम खाना था..हमें भी इस बात का एहसास था की आज के बाद से हम वही खायेंगे जो कमाएंगे....नहीं कमा पाएंगे तो भूखे रहना पड़ेगा.....रात में खाना खाने के बाद हम वापस अपनी जगह पर आ गए थे...बस अड्डे के काफी लोगों ने हमें देख लिया था और मेरा काम देख लिया था शायद इसलिए किसी ने हमें उस जगह से हटने को नहीं कहा था.......बसें जहाँ खड़ी होती थीं वहीँ उन्ही बसों के पीछे हम बैठ जाया करते थे सो जाया करते थे...जाहिर सी बात है आज भी वही होने वाला था...मुझे दिन से ज्यादा रात का इन्तेजार रहता था....क्योंकि रात में सीमा और मैं एक दुसरे के काफी करीब रहते थे...दिन भर तो हमारा ऐसे ही बीत गया था...रात में ही बात हो पाई.....

सीमा – आज बहुत थक गए होगे न..
मैं – अरे ये तो कुछ भी नहीं है. ये सब तो मेरे बाएं हाथ का काम है.
सीमा – हाँ जानती हूँ. फिर भी थकान तो होती है न.
मैं – तुम कहोगी तो मुझे सुन सुन के सच में थकान का एहसास होने लगेगा....अभी तो नहीं हो रहा है...
सीमा – जब हमारा घर होगा न तो मैं रोज रात को आपके पैर दबाया करुँगी.
मैं – क्यों?
सीमा – उससे आपको आराम मिलेगा...और अगले दिन काम ठीक से कर पाओगे...
मैं – तो आज क्यों नहीं दबा देती?
सीमा – दबा दूं? मुझे कोई परेशानी नहीं है. मैं तो दबा दूँगी...आप थोडा लेट जाओ....
( अपनी चादर बिछा के मैं लेट गया और सीमा मेरे पैर के पास बैठ गयी और मेरा पैर दबाने लगी.....वो अगर ऐसा नहीं भी करती तो भी ठीक था..मुझे ज्यादा दर्द नहीं हो रहा था लेकिन सीमा का मन था...इसलिए मैंने भी मना नहीं किया.....)
सीमा – आज पहले आप सो जाओ..मैं बाद में सो जाउंगी...आपको नींद की ज्यादा जरुरत है..



मैं – मैं तो तब तक नहीं सो सकता जब तक तुम्हारी सीटी न सुन लूं...
सीमा – धत.....जब देखो आपको सीटी की याद रहती है..इतना क्या मजा आता है सीटी सुनने में....
मैं – बहुत मजा आता है सीमा....सच बहुत मजा आता है...
सीमा – आप तो एकदम पागल हैं....ये भी कोई मजे वाली बात है...
मैं – अच्छा सच सच बताओ...तुम्हें मजा नहीं आता?
सीमा – आप सो जाईये न..
मैं – नहीं. आज तो तुम्हे बताना ही होगा..मैं तुम्हें वो सब करते देखता हूँ तो तुम्हें बुरा तो नहीं लगता न...
सीमा – ऐसी बातें मैं आपके जैसे खुल खुल के नहीं कह सकती. मुझे शर्म आती है. आप को तो न शर्म न लाज..
मैं – बहाना मत बनाओ..आज मुझे बताओ.
सीमा – ठीक है...कुछ बता देती हूँ बाकी आप खुद सोच लीजियेगा..
मैं – ठीक है. बताओ..
सीमा – मैं सिर्फ रात में पेशाब करने जाती हूँ न......लेकिन पेशाब तो मुझे दिन में भी लगती है..फिर भी मैं नहीं जाती..रोक के रखती हूँ....
मैं – क्यों रोक के रखती हो?
सीमा – जिससे बहुत सारी जमा हो जाये...
मैं – तो उससे क्या होगा???
सीमा – जब करुँगी तो बहुत मोटी धार निकलेगी..ज्यादा छल छल की आवाज होगी और ज्यादा तेज सीटी बजेगी...आपको ज्यादा मजा आएगा......इसलिए दिन में नहीं करती...क्योंकि दिन में आप देख नहीं पाएंगे......हे राम मुझसे क्या क्या बात करते हैं और करवाते हैं.. धत..मैं नहीं बताती...चलो बहुत पैर दबा दिए...अब सो जाओ..सुबह जल्दी उठाना भी है न...याद है न हमें सुबह कहाँ जाना होता है...
मैं – हाँ याद है..इसीलिए तो कह रहा हूँ की जल्दी से सुना दो न...मैं सो जाऊंगा..मुझे नींद भी आ रही है.....और फिर तुम भी सो जाना....
सीमा – हम साथ में कैसे सोयेंगे? झोले में पैसे रखे हैं..इन्हें कौन देखेगा...
मैं – तुम पैसे अपने वहां डाल लो न..पहले भी तो वहीँ डाल के रखती थी तुम,...
सीमा – वो तो नोट थे..ये तो सब खुल्ले पैसे हैं..वहां डालते नहीं बनेगा...इन्हें तो झोले के जेब में ही रखना पड़ेगा.....इसलिए बरी बरी से सोयेंगे....और आप चिंता मत करो..जब सब ठीक हो जायेगा न तब हम एक साथ भी सोया करेंगे..जैसे मर्द और औरत सोते हैं न...वैसे ही...
मैं – कैसे सोते हैं सीमा?
सीमा – दोनों चिपक के सोते हैं...चिपके रहते हैं बहुत बहुत देर तक...
मैं – तुम्हें कैसे पता?
सीमा – मत पूछिए इतना सब कुछ......अब आप सो जाईये...
मैं – नहीं. बताओ न. तुम्हें कैसे पता की मर्द और औरत कैसे चिपक के सोते हैं…..या तो मुझे ये बताओ या फिर सीटी सुनाओ...तब ही मैं सोयुन्गा....
सीमा – आप भी कैसी जिद करते हैं..ये कोई जगह है ऐसी जिद करने की..सुबह सुनी था न...देखि भी थी न..अब रात में नहीं..खुले में नहीं..
मैं – सुबह कुछ भी तो नहीं देखने दिया तुमने...
सीमा – हाँ हाँ जैसे मुझे कुछ पता ही न हो...क्या मैं नहीं जानती की आप अपना पीछे वाला हिस्सा मेरे हिस्से पर जानबूझ के घिस रहे थे दबा रहे थे....अब इससे ज्यदा और क्या करना चाहते हैं?
मैं – पता नहीं...इसीलिए तो पुच रहा हूँ की बताओ की मर्द औरत कैसे चिपकते हैं...फिर मैं भी चिपकुंगा वैसे ही...
सीमा – आपको सच में नहीं पता या आप मेरी खिचाई कर रहे हैं...
मैं – सच में नहीं पता...तुम बताओ न तुम्हें ये सब कैसे पता है...
सीमा – मुझे तो अपनी सहेलियों से पता चला..और फिर गाँव में तो न चाहकर भी ये सब दिख ही जाता है...आपके गाँव में भी तो आपके दोस्त रहे होंगे न..वो नहीं करते थे ऐसी बातें...
मैं – पता नहीं..मुझे तो पिता जी किसी से दोस्ती करने ही नहीं देते थे....तो मुझे नहीं पता की क्या कैसे होता है...
सीमा – आप और आपके पिताजी....एक तरफ आप लोग हैं और दूसरी तरफ मेरे पिताजी थे...वो जब मेरी सौतेली माँ को ब्याह के लाये थे तब मैं न बहुत छोटी थी न बहुत बड़ी थी....इतनी छोटी भी नहीं थी की घर का काम न कर सकूँ और इतनी बड़ी भी नहीं थी की मेरी शादी कर के दुसरे घर भेज देते और वो लोग चैन से रहते...मेरी सौतेली माँ बहुत ही दुष्ट थी.....वो बहुत जवान तो थी ही...उसके अन्दर साजिश ही साजिश भरी रहती थी हर समय....अगर दिन में मुझसे किसी काम में जरा सी भी गलती हो जाती तो मुझे बहुत पीटती थी और फिर रात में पेट भर खाना भी नहीं देती थी..शुरू शुरू में मैं रात में उठ उठ के रोती भी थी...एक दो बार तो पिता जी उठ के आये भी..पुचा भी की क्या बात है..और फिर मुझे खाना भी दिया खाने को...लेकिन उस औरत ने....अपने बदन की नुमाईश कर कर के मेरे पिताजी को इतना बहला लिया था की धीरे धीरे उनका मुझ पर से ध्यान उठ गया...फिर तो जैसा मेरी सौतेली माँ चाहती वैसा ही घर में होता था....मेरे होने का एकमात्र मकसद इतना था की मैं घर के सब काम करूँ और अपनी सौतेली माँ की सेवा करू.....उसकी मालिश करूँ....मैं अपने ही घर में नौकरानी थी......मैंने अपने पिताजी को उसके साथ चिपके हुए भी कई बार देखा था....


सीमा अपनी ही धुन में बोले जा रही थी....और मैं उसकी बात सुनते सुनते कब सो गया था मुझे पता भी नहीं चला था...शायद दिन भर की थकान ने अपना असर दिखा दिया था......सीमा भी कब मेरे बगल में ही आ के सो गयी मुझे कुछ पता नहीं चला....काफी रात बीत जाने के बाद मेरी नींद खुली..मुझे एहसास हुआ की कोई मेरे पैर के ऊपर किसी डंडे जैसे चीज से मार रहा है...मैं एकदम से हडबडा के उठा....देखता हूँ की एक हवालदार खड़ा हुआ है..मैंने चरों तरफ नज़र दौड़ा के देखा की पुरे बस अड्डे पर जगा जगह पर पुलिस खड़ी है...कई सारी गाड़ियाँ हैं पुलिस की....फिर ध्यान आया सीमा का..वो अभी भी मेरे बगल में ही सोयी हुई थी....नींद में उसकी साडी बिखर गयी थी...मैंने तुरंत उसकी साडी ठीक की और अपनी जगह पर खड़ा हो गया....हवलदार ने मुझसे मेरे बारे में पूछताछ की और फिर मुझे अपने साहब के पास ले गया...मैंने सीमा को तब तक जगाया नहीं था...उस हवालदार ने ही कहा था की सोने दो...हम दोनों पास ही में खड़े साहब के पास गए..उन्होंने मुझसे मेरे बारे में पूरी जानकारी ली और फिर मुझसे कहा की कुछ दिनों के लिए शहर में कर्फ्यू लगा हुआ है...बस अड्डा रेलबे टेशन सब बंद रहेगा....उन्होंने मुझसे कहा की मैं भी यहाँ न रहूँ और किसी के घर में चला जाऊं. ऐसे बाहर रहना ठीक नहीं है. शहर में दंगे हो रहे हैं.....उस साहब ने मुझसे बहुत अच्छे से बात की थी..मुझे न तो मारा न ही किसी और प्रकार की कोई तकलीफ दी..बल्कि बहुत अच्छे से नसीहत दी की कहीं रहने की जगह खोज लो..ऐसे बाहर रहोगे तो खतरा है.....लेकिन फिर भी खाकी वर्दी का अपना एक खौफ होता है...और उस खौफ ने मुझ पर भी असर दिखाया की मेरे पैर काँप रहे थे.....उस साहब की बात सुन कर मैं वापस अपनी जगह आ गया.......सीमा को उठाया और उसे धीरे धीरे सब बात बता दी....वो सुन कर और भी ज्यादा परेशां हो गयी...अब जब सारा शहर ही बंद है तो हम जायेंगे कहाँ...कैसे रहेंगे....ये सरे सवाल सामने आ खड़े हुए....लेकिन फिलहाल सबसे पहला काम तो वहां से हटना था नहीं तो पुलिस वालो का दिमाग ख़राब होते देर नहीं लगाती..एक बार तो उन्होंने अच्छे से समझा दिया था लेकिन दूसरी बार कैसे समझायेंगे ये भगवान् ही जाने..हम लोगों ने अपनी चादर समेत के अपने झोले में डाली...धीरे से झोले की जेब में हाथ डाल के अंदाज लगाया की पैसे हैं या नहीं..और फिर उठ के चल दिए.....

चल तो दिए लेकिन जाने के लिए कोई मंजिल तो थी नहीं....फिर ख्याल आया की जिस जगह वो इमारत बन रही थी.जहाँ हम गए थे...वहां चलते हैं..वहां तो बहुत जगह है...शायद हमारा कुछ काम बन जाए...हम उसी दिशा में चल रहे थे...वैसे अभी दिन शुरू नहीं हुआ था...सवेरा नहीं हुआ था लेकिन फिर भी सड़क पर अजीब तरह का सन्नाटा था..और थोड़ी थोड़ी देर में पुलिस की कोई गाडी गुजरती और उसकी पीं पीं वाली आवाज बहुत देर तक गूंजती रहती थी....हम दोनों को डर तो बहुत लग रहा था लेकिन हमारे पास डरने की फुर्सत नहीं थी...हमारे कदम अपने आप ही तेजी से चल रहे थे..कुछ देर में हम उस जगह पर पहुच गए जहाँ वो ईमारत बन रही थी...लेकिन यहाँ भी किस्मत ने साथ नहीं दिया...वो चौकीदार जाग रहा था और आज तो उसके साथ और भी कुछ लोग थे......कुछ देर हम वहीँ रुके इस बात के इन्तेजार में की शायद ये चौकीदार सो जाये और ये लोग वहां से हट जाएँ तो हमें मौका मिल जायेगा...लेकिन ऐसा हुआ नहीं....पुलिस का डर भी था और कहीं छुप जाने की जल्दी भी थी..हमने वहां और इन्तेजार नहीं किया.....जब कुछ समझ नहीं आया तो फिर एक ही रास्ता बचा....अपने उसी भाई का घर जिसने हमें निकाल दिया था......यहाँ बात इच्छा की रह ही नहीं गयी थी...पुलिस वाले ने मुझे ये समझा दिया था की तुम्हारे साथ लड़की है..इसे ऐसे अकेले ले के मत घूमना..माहौल बहुत ख़राब है कुछ भी हो सकता है.....हम दोनों ही अपने भाई के घर नहीं जाना चाहते थे लेकिन उसके सिवा कोई और रास्ता समझ नहीं आ रहा था.....पैदल चलते चलते हम उस मोहल्ले में आ गए और फिर हमारे भाई का घर भी हमारे सामने आ गया...अभी ज्यादा सुबह नहीं हुई थी....शायद 7 बजे होंगे....हम लोगों को बस अड्डे से निकले और पैदल चलते करीब तीन चार घंटे हो गए थे.....कुछ देर हम घर के बाहर ही खड़े रहे....दरवाजा खटखटाने के पहले हमें अपनी पूरी ताकत लगा देनी पड़ी तब कहीं पैर उठे....शरीर का एक रोम भी नहीं चाहता था की हम उस घर में सहारा मांगने जाएँ....दरवाजा खटखटाया तो भाभी ने दरवाजा खोला.....हमें सामने देख के एक पल के लिए तो उनकी जुबान पर ताला सा लग गया....

लेकिन वो ताला अगले ही पल खुल भी गया...और फिर भाभी की जुबान से जो शब्द निकले वो हमें अन्दर तक भेद गए.....भाभी हमें देखते हुए अन्दर ही तरफ बोलीं.....”लो जी ये हरामखोर तो फिर लौट के आ गए..मैं न कहती थी की इन्हें तो हराम की खाने और पड़े पड़े खटिया तोड़ने की आदत लगी है ये कहीं नहीं जाने वाले इसी दरवाजे पर आयेंगे मरने के लिए...अब देख लो खुद ही..इन्हें निकाले एक हफ्ता नहीं हुआ और वापस आ गए फिर से अपनी मनहूस सूरत ले के.सुबह सुबह इनका मुंह दिख गया अब न जाने दिन कैसा बीतेगा...बहुत बड़ा अपशगुन हो गया आज सुबह ही.......” भाभी अपनी रौ में बोलती हुई अन्दर चली गयी..हमें अंदर आने को नहीं कहा तो हम अन्दर गए भी नहीं...कुछ देर तक अन्दर से कुछ बकबक की आवाज आती रही..शायद भैया और भाभी की आपस में कुछ बहस हो रही थी....हम दोनों वहीँ दरवाजे पर खड़े रहे......कुछ देर में भैया बाहर निकले....उन्होंने हमसे हमारा हाल तक नहीं पुछा और बहुत ही कड़क आवाज में बोले....” मैं तुम्हें पाल नहीं सकता ये मैंने बता दिया था पहले ही. अभी शहर में कर्फ्यू चल रहा है इसलिए जब तक कर्फ्यू खुल नहीं जाता तब तक यहाँ रहने की जगह दे सकता हूँ लेकिन मेरे पास तुम्हें देने के लिए खाना नहीं है. तुम कहा खाओगे कैसे खाओगे ये सब मेरी जिम्मेदारी नहीं है....तुम्हें रहने के लिए जगह दे रहा हूँ ये भी अपने ऊपर एहसास ही समझो. और खबरदार किसी से कहा की तुम मेरे भाई हो तो ठीक नहीं होगा. मेरा बाप तो मर गया मेरे ऊपर इस निकम्मे का बोझ छोड़ गया....अब खड़े खड़े मेरा मुंह न देखो...पीछे के दरवाजे से अन्दर आओ..” ........इतना कह के वो भी अन्दर चले गए...सीमा ने अपने हाथ में मेरा हाथ थाम लिया..मेरी हथेली को उसने जोर से दबा दिया..जैसे ये कहना चाह रही हो की थोड़ी सी तकलीफ और बाकी है..इसे भी सह लो.....मैं झोला उठाये और सीमा का हाथ थामे पीछे के दरवाजे से अन्दर चला गया....भाभी आँगन में ही थी.....उसने हमें इशारा कर के कहा की इस पेड़ के सहारे हम लोग ऊपर छत पर चढ़ जाएँ और वहीँ रहें...नीचे नहीं आना है....हम उनके साथ नहीं रहेंगे. हमें अन्दर नही रखा जायेगा....हमें रहने के लिए छत दी गयी थी.....
 

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