Thursday, April 16, 2015

FUN-MAZA-MASTI मेरी बीती जिंदगी की कहानी --6

FUN-MAZA-MASTI


 मेरी बीती जिंदगी की कहानी --6

अभी सुबह ठीक से नहीं हुई थी जब सीमा ने मुझे उठाया....पिचली रात उसकी कामुक बातों ने ऐसा जोरदार असर किया था की सुबह जब नींद खुली तब भी अपने आप को कड़क ही पाया....सीमा को भी कल रात की याद तो होगी ही...लेकिन वो शर्मा नहीं रही थी..बल्कि धीरे धीरे मुझे देख के मुस्कुरा रही थी..जैसे कह रही हो की अभी आपने देखा ही क्या है......खैर...सुबह सुबह हमें सुबह के काम भी करने थे....भैया और भाभी के बर्ताव ने हमारे अन्दर उनके प्रति काफी आक्रोश भर दिया था...लेकिन उसे किसी और तरीके से निकाला नहीं जा सकता था....उनसे जा के तो हम कुछ कह नहीं सकते थे..जो भी हो हम रह तो उन्ही की छत पर रहे थे....हमने अपना आक्रोश तो नहीं निकाला लेकिन पेट में जो कुछ था वो सब निकाल दिया..उन्ही के छत के उपर.....छत इतनी छोटी भी नहीं थी की हमारे रहने के लिए और काम करने के लिए जगह कम पड़ जाए....सुबह सुबह के उस काम में हमें मजा बहुत आया..हालांकि सीमा ने साफ कह दिया था की नीचे वाले लोग उठ गए लगते हैं इसलिए चुपचाप काम करो...कोई शैतानी करने की जरुरत नहीं है...कल रात में उसका रंग देख के तो मैं भी एकदम निश्चिंत हो गया था की मुझे सिर्फ कुछ ही महीनो का इन्तेजार करना है बस..उसके बाद तो सीमा खुद ही इतनी तेज है की मुझे कुछ करने की जरुरत नहीं पड़ेगी..वो खुद ही मुझसे सब कुछ करवा लेगी.....

सुबह तो हो गयी...अब दिन का क्या होता..कैसे गुजरता? ये भी एक सवाल था....यही फैसला किया की उन्ही दोनों साहब लोगों के यहाँ जा के देखता हूँ.....जिनके यहाँ पहले काम मिला था..उन्होंने आज भी काम दे दिया..वही सारा काम निपटाया उनका..लेकिन आज उनके पास मुझे देने के लिए रात का खाना नहीं था....उन्होंने पैसे देने को कहा तो मैंने मना कर दिया...ये विनती कर ली उनसे की अगर दिन में कुछ बच जाए तो मुझे रात में दे दीजियेगा...साहब ने हाँ कह दी...कुछ और घरों में घुमा लेकिन कुछ काम मिला नहीं.......फिर उन्ही पियक्कड़ साहब के यहाँ जाने की सोची....उनके यहाँ गया...साहब जाग रहे थे...मुझसे अच्छे से मिले...मैंने उन्हें बताया की कैसे कैसे मुश्किल से उनकी दारु मिली है कल..सुनकर वो बहुत प्रभावित हुए से लगे...मेरा पीठ का जख्म भी देखा....मेरी पीठ रह रह के सुलग उठती थी..कुछ देर ठीक रहती लेकिन फिर अचानक ही उसमे दर्द की एक लहर सी उठती और लगता की पूरी चमड़ी सिकुड़ के एक जगह पर जमा हुई जा रही है....साहब को अपना दर्द दुखड़ा सुना तो सकता नहीं था..उनसे आज के लिए कुछ काम माँगा तो वो पूछ बैठे की काम करने लायक हो...? इतना दर्द हो रहा है आराम क्यों नहीं कर लेते?......इन्हें कौन समझाता की पीठ से ज्यादा पेट में दर्द होता है जब रोटी नहीं मिलाती समय से.....मैंने उनसे काम माँगा तो बोले की आज तो कोई काम नहीं है.......मैं उनके यहाँ से भी मायूस हो के जाने लगा तो उन्होंने मुझे आवाज लगायी और कहा की उनका एक मित्र ठेकेदार है...उसके यहाँ मुझे मजदूर की नौकरी मिल सकती है..फिर रोज रोज काम खोजने नहीं जाना पड़ेगा.......उन्होंने मुझसे कहा की जब ये कर्फ्यू ख़त्म हो जाए तो मैं आ के उनसे मिलूं.....मुझे लगा की पुलिस का डंडा एक काम तो आ ही गया......कल मुझे उन साहब ने जो सौ रुपये दिए थे वो मेरे पास रखे हुए थे..मैंने सोचा की जा के देख लेता हूँ शायद कोई दुकान खुली हो....सड़क पर आ के कुछ दूर चला तो एक कोने में एक टपरे जैसी दूकान दिखी....वहां गया तो उस आदमी ने अन्दर बुला लिया....उसके पास सिर्फ भजिया और चाय थी....उसके यहाँ से पुरे दस रुँपये का भजिया लिया मैंने...उस समय दस रुपये में इतने भजिये मिल जाते थे की दो आदमी का पेट भर जाये.....भले ही कुछ देर के लिए लेकिन पेट भर तो जायेगा ही......

अभी तक का दिन ठीक ही बीत रहा था.....भजिया ले के मैंन वापस लौट आया....चढ़ना तो उसी पेड़ के सहारे ही था......पेड़ पर आधा चढ़ा ही था की इतने में भाभी आँगन में आ गयी...मुझे देख के बोली....
भाभी – कहाँ से आ रहे हो लाट साहब 
मैं – बस भाभी जी ऐसे ही बाहर गया था.
भाभी – और ये हाथ में क्या लिए हो?
मैं – भजिया है भाभी जी. आप खायेंगी? 
भाभी – रहने दो. और मेरी ज्यादा चापलूसी करने की जरुरत नहीं है. 
मैं – मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था भाभी जी. आपने गलत समझ लिया. 
भाभी – हाँ हम तो गलत ही समझेंगे. सही समझने की अकल तो तुम में और तुम्हारी बीवी में है....हम लोग तो मूर्ख ठहरे.
मैं – आप ऐसा क्यों कह रही हैं भाभी? ऐसा न कहें. 
भाभी – अब तू मुझे बताएगा की मैं क्या कहूँ क्या न कहूँ.....अपने खुद के सर पर छत का ठिकाना नहीं है और तू मुझे बताएगा....तेरी औकात है इतनी? तेरी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी रे?

 मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा था की ये बात कहाँ से शुरू हुई और कहाँ पहुच गयी....ये क्या हो रहा है? भाभी का ये बर्ताव तो एकदम ही अजीब था.....मैं अभी भी आधा पेड़ पर चढ़ा हुआ था....मुझे लगा की ऐसे झूलते हुए कब तक बात होगी.इसलिए मैं पेड़ से कूद गया नीचे..और आँगन में आ गया...उपर छत से सीमा ये सब कुछ देख और सुन रही थी...मैं तो बात करने के लिए ही आँगन में कूदा था लेकिन उसका क्या परिणाम होगा ये मैंने सोचा नहीं था...मैं जैसे ही आँगन में कूदा वैसे ही भाभी ने जोर जोर से शोर मचाना शुरू कर दिया........”अजी सुनते हो देख लो अपने भाई की करतूत ....बहार निकालो जल्दी यहाँ आओ नहीं तो ये मेरी इज्जत ले लेगा....इसे ही घर में रखने को कह रहे थे न अब देख लो ये तुम्हारी घर की इज्जत को मिटटी में मिला देना चाहता है...कहाँ हो जल्दी से बाहर आओ...”...........मैं जहाँ कूदा था वही जम सा गया......भाभी की आवाज कान में गूंज रही थी और ये समझ में आ रहा था की अब बहुत गलत होने वाला है लेकिन उससे कैसे बचूं क्या करूँ ये नहीं जनता था......इतने में भैया भी बाहर आ ही गए....उन्हें भी अपनी बीवी की ही बात सुन्नी थी......इतनी देर में भाभी ने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा लिया था और अपने बाल थोड़े बिखेर लिए थे....भैया ने आते ही उनसे पुचा की क्या हुआ.....भाभी ने ये बताया की वो जैसे ही नहाने के लिए बाहर आयीं मैं ऊपर पेड़ पर था...उन्होंने अपने कपडे खोलने शुरू ही किये थे की मैं एकदम से आँगन में कूद आया और उनका हाथ पकड़ कर उनके साथ जबरदस्ती करने लगा..........जाहिर सी बात है की भैया को अपनी बीवी की बात ही सही लगी होगी...फिर उन्होंने देखा भी की भाभी का पल्लू नीचे गिरा हुआ था और उनके बाल बिखरे हुए थे...लेकिन उन्हें ये नहीं दिखा की मैंने एक हाथ में पानी की बोतल ली हुई है और दुसरे हाथ में एक थैली है...तो मैं उनके साथ ये सब कैसे कर सकता हूँ....सबसे बड़ी बात ये की वो मेरे भैया हैं...और उन्होंने तो मुझे जनम से देखा है...उन्हें तो मेरी नीयत और मेरी फितरत के बारे में पता होगा...उन्हें तो मालूम होगा की मैं ऐसी हरकत कभी सपने में भी नहीं कर सकता.........लेकिन उन्हें अपनी बीवी के सिवा किसी और की बात कैसे सही लग सकती थी.......

भैया ने भी भाभी के साथ मिल कर मुझे उल्टा बकना शुरू कर दिया और मेरी तरफ आगे बढे...उन्हें अपनी तरफ आता देख मैं पीछे नहीं हटा बल्कि अपनी ही जगह पर खड़ा रहा....मुझे भी देखना था की आज ये लोग किस हद तक गिरेंगे.....भैया आगे आये और उन्होंने मेरे गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर दिया...फिर मेरा हाथ पकड़ के मुझे कुछ देर हिलाते रहे और एक दो थप्पड़ और लगा दिए...इस सब में मेरे हाथ से वो भजिया की थैली गिर गयी और सब फ़ैल गया.......दोनों मियां बीवी मुझे एक साथ कोस रहे थे और दुनिया भर की गालियाँ जो उन्हें आती होगी वो मुझे दे रहे थे.....मैं चुपचाप सब सुन रहा था...और फिर अंत में भैया की आवाज सुनाई दी की कर्फ्यू खुले या न खुले मैं अभी अपना सब सामान ले के उनके यहाँ से चला जाऊं और फिर कभी उनके सामने न आऊंगा...........मैंने जमीन पर से वो सब बिखरे हुए भजिये उठाये.....और चुपचाप बिना कुछ कहे पेड़ से चदकर ऊपर आ गया.........गुस्सा मुझे भी खूब आता था...लेकिन उस दिन जैसा गुस्सा मैंने खुद अपने अन्दर कभी नहीं देखा था..जब भैया मुझे मार रहे थे तब मैं अपने मन ही मन एक ही बात याद कर रहा था की सीमा ने कहा है की गुस्सा नहीं करना है...गुस्सा अगर आये भी तो उसे बाहर नहीं आने देना है..मैं अपने ऊपर संयम किये खड़ा रहा...कुछ किया नहीं..लेकिन इसका ये मतलब नहीं की मुझे गुस्सा आया ही नहीं......मारे गुस्से के मेरी आँखें लाल हो गयी थी..मैं जब ऊपर आया तो सीमा ने दोनों ही चीजें मेरे हाथ से ले ली..हम लोग वही छत पर बैठ गए....न उसने कुछ कहा न मैंने......हम कह भी क्या सकते थे एक दुसरे से.......सीमा ने थैली खोली और मेरी तरफ की....मेरा मन नहीं था कुछ खाने का.......

सीमा – खाने से क्या दुश्मनी है? खाना खा लो. 
मैं – मन नहीं है. तुम कुछ देर कुछ न बोलो..
सीमा – नहीं.मैं चुप नहीं रहूंगी. मैं तो बोलूंगी. मैं चुप रही तो आप का गुस्सा शांत हो जायेगा. 
मैं – तो क्या चाहती हो? मेरा गुस्सा शांत न हो? तुम्हारी बातों ने मुझे रोक दिया वरना आज मैं इन दोनों को इनकी औकात याद करवा ही देता. 
सीमा – जानती हूँ...बल्कि मुझे तो ये डर था की कहीं आप का हाथ उठ गया तो भैया तो एक हाथ में ही ढेर हो जायेंगे..फिर क्या होगा....अच्चा हुआ की आपने काबू रखा खुद पर...
मैं – तुम्हें मजाक लग रहा है? भाभी ने क्या आरोप लगाया मेरे उपर वो सुना नहीं तुमने?
सीमा – सुना. सब कुछ सुना. इसीलिए तो कह रही हूँ की मैं सच में बहुत खुश हूँ की आपने अपने गुस्से पर काबू रखा.......वरना आज कुछ भी हो सकता था...
मैं – हम यहाँ एक पल भी नहीं रहेंगे सीमा..अभी सब सामान उठाओ और चलो यहाँ से.
सीमा – नहीं. हम कहीं नहीं जायेंगे..हम आज की रात यही रहेंगे..हाँ कल सुबह जरुर चले जायेंगे....

मैं – मैं यहाँ एक पल भी नहीं ठहर सकता सीमा..मुझे अभी ही यहाँ से जाना है...इस घर में रहना मेरे लिए मुश्किल है.
सीमा – आसान तो मेरे लिए भी नहीं है. लेकिन हम यहीं रहेंगे...आज की रात हम यहीं रहेंगे...आपको मेरी बात अभी सही नहीं लगेगी. इसलिए मैं आपसे कह रही हूँ की अभी इस बारे में कुछ न कहिये..बस मेरी बात मान लीजिये...आपने मेरी इतनी बातें मानी है...एक बात और सही....
मैं – मेरी भी अपनी एक हद है सीमा..मैं कहाँ तक सहन करूँ? मैं कभी भाभी के बारे में ऐसा सोच सकता हूँ जैसा उन्होंने मेरे ऊपर आरोप लगा दिया? और वो तो मेरा बड़ा भाई है....उसे तो समझ में आना चाहिए न की क्या सही है और क्या गलत है...लेकिन उसे भी अपनी बीवी के सिवा कुछ नहीं दिखता..कुछ समझ नहीं आया उसे..मुझ पर हाथ उठा दिया मुझे इस बात का दुःख नहीं है. लेकिन इस तरह का आरोप मेरे ऊपर लगाया....
सीमा – हाँ...उन्होंने सही नहीं किया.
मैं – मैं अब उस आदमी की इज्जत नहीं कर सकता सीमा. मैंने अभी तक उसे अपना बड़ा भाई माना लेकिन अब वो मेरे लिए मर चूका है.....मेरा न कोई भाई है और ना ही कोई भाभी......तुम तो सब सुन रही थी न...सब देखा न तुमने..मैं तो सीधे ऊपर आ रहा था..भाभी ने ही मुझे रोका..उसी ने मुझसे बात की....मैं तो बात करने के लिए नीचे उतरा था न...फिर क्यों उसने ये सब कहा मेरे बारे में? मेरा ऐसा तो कोई इरादा था ही नहीं न ही कभी हो सकता है...फिर क्यों उसने ऐसा किया मेरे साथ....
सीमा – ये आप समझ नहीं सकते. ये औरत का ही एक रूप है......मैं समझ सकती हूँ की उसने ऐसा क्यों किया....लेकिन अभी आप मेरी बात मानिये..और इस सबमे न पदिये..जहाँ इतना सब सह लिया है वहां थोडा सा और सही.....हम कहीं नहीं जायेंगे..हम आज रात यही रहेंगे....हाँ कल सुबह जरुर हम यहाँ से निकल जायेंगे...

मैं काफी देर तक चुप बैठा रहा....सीमा ने भी इस बीच कुछ नहीं कहा...इस छत पर कल हमें इस समय बहुत तेज धुप लग रही थी..और आज इसी छत पर हमें धुप का ख्याल भी नहीं था...आज मन के अन्दर ही इतनी तेज आग जल रही थी की उसके सामने ये बाहर की धुप कोई असर नहीं कर रही थी.....दिन भर मैं वहीँ बैठा रहा..कहीं काम खोजने नहीं गया..हम जैसे तैसे वो भजिये खाए....न भूख लग रही थी न प्यास...सब कुछ पहले ही हराम हो चूका था.....जब शाम होने को आई तो सीमा ने फिर से बात करना शुरू किया.....मुझे ध्यान आया की मैंने उसे दिन वाली बात नहीं बताई थी जो उस बड़े साहब ने कही थी..मैंने उसे बताया की उन साहब ने मिलने को कहा है..ठेकेदारी के काम हैं उनके....उनके यहाँ रोज का काम मिल जायेगा....सीमा सुन के बड़ी खुश हुई....फिर हम लोग बहुत देर तक चुप बैठे रहे....अब धीरे धीरे अँधेरा होने लगा था....अभी तक भैया या भाभी ने और कोई बात नहीं कही थी......सीमा ने मुझसे कहा की मैं जा के उनसे कहूँ की हमें आज रात को यहाँ रुकने देन..हम लोग कल सुबह चले जायेंगे......मुझसे ये बात बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हुई...एक तो उन लोगों ने मेरे साथ ऐसी हरकत की ऊपर से अब मैं ही उनके पास विनती करता हुआ जाऊंगा....मैं नहीं मान रहा था..लेकिन सीमा ने मुझे जबरदस्ती वहां भेज ही दिया....उसकी बात मानने के सिवा कोई और चारा मेरे पास था नहीं.....मैं फिर से अपने भैया और भाभी के सामने खड़ा था..दोनों मुझे देख नहीं बल्कि घूर आहे थे....मैंने बहुत धीमे से उनसे कहा की मुझे आज रात को रुक लेने दीजिये मैं सुबह होते ही निकल जाऊंगा.......दोनों ने न तो हाँ कहा न ना कहा..मुझे लगा की इससे ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए...मैं वापस मुड के चलने लगा तो पीछे से भाभी की आवाज आई...”दूसरों के घर जा जा के काम करता है अगर यहाँ रहना है तो हमारे घर का काम करने में क्या शर्म आती है? बाहर आँगन में जा के सब कपडे धो देना और सब बर्तन धो देना. सुन लिया की नहीं? “.....सुन तो मैंने लिया था....मैं बाहर आँगन में आ गया..

सीमा छत के कोने पर बैठी नीचे ही देख रही थी.....मैं नीचे बैठ के काम में लग गया....कभी बीच बीच में ऊपर देखता तो उसे देखता हुआ ही पाता..उसकी नज़र लगातार मुझ पर ही टिकी हुई थी..मैं शांति से सब काम कर रहा था..मन में गुस्सा तो बहुत था लेकिन सीमा की बात काटने का मन नहीं था.....भाभी ने शायद मुझे ऊपर देखते हुए देख लिया होगा...उसे तो एक और मौका मिल गया..वो कैसे चूक सकती थी...तुरंत बाहर आई और एकदम से उसने ऊपर देखा...सीमा को पता नहीं था....भाभी ने सीमा को मुझे देखते हुए देख लिया....और फिर उसकी आकाशवाणी शुरू हो गयी.....” ये देखो मेरे ही घर में इनका नैन मटक्का चल रहा है...खाने के पैसे नहीं हैं लेकिन इनकी मस्ती ख़त्म नहीं होती..क्यों रे मोहन तू कैसे शांत करता है इसको? काबू में रहती है तेरे? तू जो ये पैसा ले के आता है कहाँ से मिलता है तुझे/ बता/ कहाँ से लाया था ये भजिया? अपनी बीवी को दूसरों के पास भेजना शुरू कर दिया है क्या?? अच्छा है....कच्ची कलियों के दाम बहुत मिलते होंगे..और इस कलमुही को देखो....ऊपर बैठे बैठे नज़र कैसी तीखी चला रही है...बहुत गर्मी चढ़ी हुई है इसे...ये तुझसे न सम्हालती हो तो इसे धंधे पर लगा देना..इसकी गर्मी भी शांत हो जाएगी और तुझे पैसे भी मिल जायेंगे...वैसे भी तू तो पांचवी फेल है तुझे कौन नौकरी देगा अपने यहाँ...तू इसका भडवा बन जाना...वही तेरे लिए सबसे सही नौकरी है..तू तो है ही भडवे जैसा..तेरी शकल में ही लिखा है....”......भाभी बिना किसी विराम के बोले जा रही थी...ऊपर सीमा भी ये सब सुन रही थी और नीचे मैं भी.....लेकिन न उसने कुछ कहा न मैंने.....आज भाभी को मुफ्त का नौकर मिला हुआ था..अपने घर के सब काम करवा लिए मुझसे......अपने यहाँ का गुसलखाना भी मुझी से साफ़ करवाया....मैं सब काम कर रहा था..मुझे भी देखना था की ये कहाँ तक जा सकते हैं..किस हद तक इनके अन्दर मेरे लिए नफ़रत भरी हुई है.....शायद सीमा ने मुझे यही जानने के लिए भेजा था...ताकि मुझे समझ में आ जाये की अपने सगों की नज़र में मेरी क्या अहमियत है........जब सब काम ख़त्म हुए तो मैं ऊपर आने लगा....अब तक भाभी अन्दर जा चुकी थी....सीमा ने उपर से ही पानी का बोतल नीचे फेंका और कुछ खाने को ले आने को कहा....मुझे पता था की अभी कुछ देर सीमा मुझे घर से बाहर रखना चाहती है ताकि और कोई नया बखेड़ा न खड़ा हो..मैं पीछे के दरवाजे से बाहर निकल गया......उसी भजिये वाले के यहाँ गया सीधा...उसके पास जो भी था वो सब ले के वापस आ गया....आते समय एक बोतल पानी और ले आया था.......वापस आ के मैं सीमा के पास बैठ गया...अब थोड़ी थोड़ी रात हो गयी थी...सीमा ने मुझसे पानी की बोतल ली और पूरी बोतल एक सांस में पी गयी.....बोतल खली हो गयी तो उसने मुझे और पानी लाने को कहा......


मैं भी परेशां था सुबह से ऊपर से उसकी हरकतें मुझे समझ नहीं आ रही थी....मैं कोई बहस नहीं की....मैं जब नीचे जाने लगा तो बोली की भले ही मुझे प्यास हो चाहे न हो मैं आने के पहले एक बोतल पानी खुद पियूँगा और एक बोतल ले के आऊंगा......मैं सुबह से इतना ज्यादा थक चूका था मानसिक रूप से की न तो मुझमे शक्ति थी बहस करने की और ना ही कुछ सोचने की..मैं उसकी बात मान के चला गया..और कुछ देर में पानी ले के वापस आया......हम लोग कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे........अभी रात इतनी ज्यादा भी नहीं थी की हमें दूर से एक रिक्शे पर बैठा हुआ कोई आता दिखाई दिया.....ये घोसना करने वाले लोग थे..और वो ये बता रहे थे की कल सुबह से कर्फ्यू खुल जायेगा..लेकिन कल सुबह तक कोई बाहर न निकले वरना उसे फ़ौरन गिरफ्तार कर लिया जायेगा.......जैसे जैसे वो रिक्सा पास आ रहा था उसकी आवाज साफ़ सुनाई दे रही थी और जब हमने ये घोसना सुनी तो हमें ऐसा लगा जैसे कितना बड़ा खजाना मिल गया हो हमें.....कर्फ्यू का खुलना अच्छी खबर थी.....इस जगह से ज्यादा हमें वो बस अड्डा अपना लगता था.......दिन भर की बुरी बातें एक ही पल में दूर हो गयीं....ऐसा लग रहा था जैसे किसी जेल से रिहा होने वाले हैं हम लोग....जो मेरे मन में चल रहा था वही सीमा भी सोच रही थी...उसे भी इस बात से बहुत ख़ुशी हुई थी.......हम लोग कुछ देर बैठे रहे और फिर हमने रात के खाने के नाम पर जो कुछ भी हमारे पास था वो खा लिया....अब रात गहरी हो चुकी थी...पास के घरों की बत्तियां भी बंद हो गयी थीं....भैया और भाभी ने इस बीच हमें न तो कुछ कहा ना ही हमसे कुछ पूछा...सोचने पर अजीब सा भी लगता था की क्या उनके मन में इतना भी भाव नहीं आया होगा की एक बार हमसे खाने को कुछ पूछ ही लेते......जब अँधेरा बढ़ गया तो सीमा ने कहा....

सीमा – लगता है सब घरों की बत्तियां बंद हो गयी हैं.
मैं – हाँ. काफी रात हो गयी होगी अब तो...सब सो गए होंगे..
सीमा – आज मैं आपसे बहुत खुश हूँ.
मैं – क्यों? मैंने क्या किया आज?
सीमा – आज आपने मेरे कहने पर अपने अहं की परवाह नहीं की और मेरी बात को पुरे मन से माना.
मैं – तो ये तो मैं रोज ही करता हूँ..
सीमा – हाँ लेकिन रोज आप का इतना अपमान नहीं होता और रोज आपको इतना गुस्सा नहीं आता. अपने अपमान को और अपने गुस्से को आपने नीचे रख कर मेरी कही गयी बात को ऊपर रखा इस बात से मैं बहुत खुश हूँ.
मैं – मुझे भी अपने गुस्से पर काबू कर के अच्छा लगा. लेकिन सीमा ऐसा करने से मेरा गुस्सा ख़त्म नहीं हुआ...
सीमा – मैं चाहती भी नहीं की आपका गुस्सा ख़त्म हो....अगर हमने कोई गलती की होती तो हम उसकी सजा जरुर भुगतते...लेकिन जब हमने इन दोनों का कुछ बिगाड़ा नहीं तो फिर इन्हें कोई हक नहीं है हमें इस तरह से रखने का और हमारे साथ ये सब करने का...लेकिन अभी वक़्त उनके साथ है. हमारे पास तो वैसे भी इतनी सारी दिक्कतें हैं..हम पहले अपने पैरों पर ठीक से खड़े हो जाएँ उसके बाद इनका हिसाब करेंगे...लेकिन तब तक आपका गुस्सा न तो ठंडा होना चाहिए और ना ही ख़त्म होना चाहिए..गुस्से की आग जब मन में जलती है तो वो आदमी को बहुत आगे ले जाती है..उसे सही तरह से इस्तेमाल किया जाए तो वही गुस्सा अपने आप में बहुत बड़ी प्रेरणा और शक्ति बन जाता है.....बदले की भावना को हम भले ही बुरा समझते हों लेकिन अपने ऊपर किये गए अत्याचार को भूल जाना भी उतनी ही बुरी बात है..
मैं – जब तुम इस तरह की बात करने लगती हो तो मुझे डर लगने लगता है...लगता है तुम्हारे अन्दर बहुत कुछ ऐसा भरा हुआ है जो तुम बाहर नहीं निकलना चाहती....न जाने कैसे कैसे दिन देखे होंगे तुमने बचपन में जो तुम्हारे मन में इतनी जल्दी इतनी कठोर बाते आ गयी हैं...
सीमा – आपने अपने गाँव में भी देखा होगा...बच्चियां ज्यादा कपडे कहाँ पहनती हैं..कुछ भी हलका सा पहन लेती हैं बस...वैसे भी दिन में इतने काम होते हैं...तो पुरे कपडे पहन के तो काम किये नहीं जा सकते.....देखा होगा न?
मैं – हाँ. क्यों?
सीमा – मेरी सौतेली माँ मुझे पहनने के लिए कपडे नहीं देती थी....मुझे सिर्क एक कमीज दे दी जाती थी..न उसके साथ सलवार मिलती थी न दुपट्टा...सिर्फ एक कमीज..उसे पहन के ही मुझे सारे काम करने होते थे..उसे पहन के ही मुझे खेतों में जा के फसल भी काटनी होती थी..उसे पहन के मुझे पानी भी भर के लाना होता था..कमीज तो देखि होगी आपने..उसमे कमर से दो पल्ले हो जाते हैं कमीज के....वो टांगों तक तो आती है लेकिन उसके दोनों पल्ले हवा में उड़ाते रहते हैं.....जरा सोचिये मैं कैसे सब कुछ करती थी....मुझे नीचे पहनने के लिए चड्डी भी नहीं देती थी वो....इसी एक कमीज को पहन के सब काम करना और फिर नहाने के लिए नदी जाना...वहां भी इसी कमीज को धोना और फिर उसके सूखने तक किसी पत्थर के पीछे नंगे छुप के बैठे रहना..इस डर से की कहीं कोई देख न ले...कोई आ न जाए...पानी ले के चलती थी तो एक मटकी सर पर होती थी और दूसरी कमर पर....राह में चलते मेरी कमीज उड उड के कहाँ जा रही है मुझे कुछ पता नहीं होता था..मैं चाहकर भी अपने आप को ढांक नहीं सकती थी.....गाँव के लोग वैसे अपने गाँव की बच्चियों को बहुत प्यार से रखते हैं लेकिन हैं तो आखिर वो सब भी इंसान ही न...किसी की नज़र अपने आप ख़राब नहीं होती..लेकिन अपने आप कुछ नज़र आ जाये तो फिर उसे देखने से बाज भी नहीं आते........इतने सालों तक मैंने गाँव में अपनी इज्जत कैसे बचायी है वो सिर्फ मैं ही जानती हूँ....


मैं – तुम्हारे बाप ने कभी कुछ कहा नहीं?
सीमा – आपको बताया था न की आदमी अपनी औरत से चिपकने के लिए दुनिया का कोई भी काम करने को तैयार हो सकता है..उसे हर कीमत पर बस चिपकने का मौका चाहिए......जब जब मेरे पिताजी मेरी कुछ मदद करते या मेरे लिए अपनी बीवी से कुछ कहते तब तब उन्हें बाहर सोने को कह दिया जाता..कुछ दिनों के बाद पिताजी को न मैं याद आती न मेरी भलाई न मेरी जिंदगी..उन्हें सिर्फ अपनी बीवी का शरीर याद आता था..और वो बार बार उससे मिन्नतें करते थे.....और वो इतनी घटिया औरत था की ये सब कुछ घर के बीचों बीच आँगन में करती और करवाती थी..ताकि मैं जहाँ कहीं भी हूँ उसकी सब बात सुन लूं और अपनी औकात पहचान लूं...मुझे भी बहुत गुस्सा आता था.....जो आज आपने अपने ऊपर सहा वो मैं हर रोज सहती थी.......मेरा अपना काबू है मेरे गुस्से पर जो मुझे आज तक जिन्दा रखे हुए हैं..इस उम्मीद में की एक न एक दिन मेरी जिंदगी भी बदलेगी और मैं भी कुछ अच्चा करुँगी..और फिर मेरा समय आएगा तो मैं इन सबसे एक एक कर के बदला लूंगी...और मैं सच में बदला लेना चाहती हूँ...मुझमे इन लोगों के प्रति कोई दया का भाव नहीं है..ना है और न ही कभी होगा......
मैं – मैं भी कभी इन लोगों को माफ़ नहीं करूँगा..
सीमा – आप कभी करना भी चाहेंगे तो भी नहीं करने दूँगी....इसीलिए आपको आज शाम को फिर से उन लोगों के पास भेजा था मैंने..ताकि आप भी देख लेन की ये लोग किस हद तक गिर सकते हैं और आपके मन में इनके प्रति कोई शंका न रहे..आप इन्हें अपना सगा न समझे..कभी ये न समझें की ये आपको सहारा देंगे.....सुन रहे थे न जब वो आपको मेरा भडवा बन्ने के लिए कह रही थी....जानते हो न की भडवा क्या होता है???? 
मैं – हाँ.
सीमा – भाभी तो माँ सामान होती है न...लेकिन आपकी भाभी मुझे रंडी बनाना चाहती है....वो चाहती है की मेरे जिस्म की कमाई खाएं आप....ये लोग हमें घर बसाते नहीं बल्कि बाजार में बिकते हुए देखना चाहते हैं...अप कहते हैं न की आपको समझ नहीं आता की इनकी आपसे क्या दुश्मनी है...दुश्मनी आपसे नहीं बल्कि आपके होने से है..आप के होते ये लोग उस संपत्ति के अकेले हक़दार नहीं बन सकते थे..इसीलिए उन्होंने पिताजी को बहला फुसला कर सबा कुछ बेच दिया...और उनसे कह दिया की वो आपका ख्याल रखेंगे...वैसे तो आपका भी हक है न उस पैसे पर..लेकिन आपको देंगे नहीं..
मैं – तो मैंने उनसे पैसा माँगा ही कब है?
सीमा – नहीं माँगा लेकिन उनके मन में तो चोर है न..वो तो हमको भी अपने जैसा ही समझते हैं..और जरुर भाभी को ये डर लगता होगा की कहीं किसी दिन आप या मैं उस पैसे का हिसाब न मांगने लग जाएँ..इसलिए हमें वो अपनी जिंदगी से एकदम दूर कर दने चाहते हैं.....
मैं – मुझे ये सब दुनियादारी में पड़ना ही नहीं है. मैं ये सब नहीं जनता न ही जानना चाहता हूँ.
सीमा – आप मत जानिए. लेकिन मुझे जानना है..मुझे हर उस एक आदमी से बदला लेना है जिसने हमारी जिंदगी पर एक भी बुरा असर डाला है...
मैं – हाँ तुम्हारे बारे में सोच कर तो मुझे भी बहुत दुःख हुआ..तुम बिना कपड़ों के कैसी रहती होगी वहां....
सीमा – बिना कपड़ों के नहीं. कम कपड़ों में..बिना कपड़ों के तो नंगी हो जाउंगी न...फिर तो मुझे कोई भी बचा नहीं सकता...सब लोग मेरा स्वाद चख लेते...
मैं – तुम कितनी आसानी से अपना मन बदल लेती हो न....अभी तो कितने गुस्से में थी और अब एकदम से फिर वही शरारत करें लगी...
सीमा – मैंने क्या शरारत की? बस इतना ही कहा की मैं नंगी नहीं थी. नंगी होती तो सब लोग मेरा भोग लगा लेते. ये तो सच बात है. इसमें शरारत क्या है? 
मैं – तुम बार बार वो शब्द बोल रही हो न जानबूझ के. 
सीमा – कौन सा शब्द? नंगी ?? ये शब्द आपको अच्चा नहीं लगता क्या? इसमें ऐसा क्या खास है? सीधा सा तो शब्द है..नंगी. क्यों आप नंगे नहीं होते कभी? जब देखो तब तो नंगे हो जाते हो...मौका मिला नहीं की हो गए नंगे...होने में शर्म नहीं आती लेकिन सुनने में शर्म आती है...वाह जी.,
मैं – तुम बहुत ज्यादा शैतान होती जा रही हो...
सीमा – होती जा रही नहीं बल्कि हूँ...शुरू से हूँ..आप ये न समझें की मैंने अपने उन कपड़ों का फायदा नहीं उठाया.....जब कभी कुछ खाने का मन होता तो मेरे लिए बहुत आसान होता थ दुकान में जा के कुछ भी ले लेना...बस ये देखना होता था की दूकान में बनिए के सिवा कोई और न हो...बस गयी...थोडा सा झुकी....अगर कमीज हट गयी तो ठीक नहीं तो किसी बहाने से अपने हाथ से हटा दी....जैसे ही बनिए ने दर्शन किये वैसे ही अपनी मन की चीज ली और पूछ लिया की ये ले लूं क्या...और उस समय तो वो लोग मुनिया के दर्शन में इतने खोये रहते थे की न पैसा मांगते न हिसाब में लिखते...
मैं – सच में ऐसा करती थी तुम??? और ये मुनिया कौन है? 
 



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