Tuesday, April 21, 2015

FUN-MAZA-MASTI मेरी बीती जिंदगी की कहानी --8

 FUN-MAZA-MASTI

 मेरी बीती जिंदगी की कहानी --8


कुछ देर बाद वहां लोगों का आना शुरू हुआ...लेकिन वो सब लोग भी मजदूर ही थे...सब अपने साथ कुछ न कुछ सामान लिए हुए थे....और आके सब एक जगह पर जमा हो रहे थे...सीमा ने मुझसे कहा की अभी रुको जब यहाँ के साहब आ जाएँ तो उनसे जा के मिलना....काफी देर तक हम लोग बैठे रहे और वहां का काम देखते रहे....देखते ही देखते वहां मजदूरों की एक फ़ौज जैसी जमा हो गयी थी..इतना बड़ा काम चल रहा था तो उसमे इतने ज्यादा लोग तो लगने ही थे...जल्दी ही काम पूरी गति से शुरू हो गया.....लेकिन अभी भी वहां किसी साहब जैसे आदमी का कोई नाम निशाँ नहीं था.....कुछ देर में एक कार आई और उसी के साथ साथ एक आदमी मोटरबाइक से आया.......सीमा ने सोचा की यही लोग यहाँ के साहब होंगे..उसने मुझे उनसे मिलने को कहा...मैं तुरंत भाग के उनके पास गया...साहब अभी अपनी कार से उतर के खड़े ही हुए थे की मैं उनके पास पहुच कर उन्हें अपने बारे में बताने लगा....उस साहब ने मुझे बड़े अजीब ढंग से देखा.....मैं कोई देखने लायक चीज तो था नहीं लेकिन फिर भी इस नजर से किसी ने नहीं देखा था अब तक जैसे इन साहब ने देखा..मैं खुद ही थोडा झेंप गया....उनके पीछे जो आदमी मोटरबाइक से आया था उसने मुझे चुप रहने और पीछे चलने का इशारा किया..मैं उनके साथ चल दिया....वो साहब जहाँ जहाँ जाते मैं उनके पीछे पीछे चलता..कुछ देर में वहां चल रहे काम का जायजा लेने के बाद वो साहब एक जगह आ के बैठ गए....फिर उन्होंने मेरी तरफ देखा....मैंने फिर से उन्हें अपना परिचय दिया और उन दारू वाले साहब के बारे में भी बताया....इन साहब को तुरंत बात याद आ गयी और उन्होंने इस दुसरे आदमी को मुझे काम देने के लिए कह दिया......ये दूसरा आदमी जो मोटरबाइक से आया था ये वहां का मुंशी था...वहां का सब काम यही देखता था सारा हिसाब किताब इसी के हाथ में रहता था.....मुंशी ने मुझे कुछ देर बाद उससे मिलने को कहा..मैं वहां से लौट के वापस उसी दरवाजे के पास बैठी सीमा के पास आ गया और उसे पूरी बात बताई....

सीमा – वहां क्या क्या काम चल रहा है?
मैं – पता नहीं. बहुत सारा काम चल रहा है.
सीमा – आपको कौन सा काम देंगे?
मैं – नहीं बताया.
सीमा – कितना पैसा देंगे?
मैं – नहीं बताया.
सीमा – कब से काम देंगे? रहने की जगह देंगे क्या?
मैं – अरे तुम पागल हो क्या? मैं उनसे वहां गप्प मार रहा था क्या? उन्होंने कहा की कुछ देर बाद आ के मिलना तो मैं वापस चला आया. मेरी इतनी बात नहीं हुई उनसे.
सीमा – तो क्या बिना बात किये काम करने लग जायेंगे?
मैं – काम मिल रहा है ये क्या कम है?
सीमा – काम दे रहे हैं तो कोई एहसान नहीं कर रहे हैं. पैसा देंगे तो आपकी मेहनत का पैसा देंगे. कोई हराम का पैसा नहीं देंगे. इसलिए आपका हक है की आप सब कुछ ठीक से पूछ देख लीजिये.
मैं – अच्छा? और अगर कम पैसा दे रहे होंगे तो क्या हम काम छोड़ देंगे?? हमारे पास तो कितने सारे काम हैं करने के लिए. है न? कोई और काम मिल जायेगा? क्यों??
सीमा – नहीं मिलेगा काम तो न सही. लेकिन अपनी मेहनत का पैसा पूरा लेंगे. वहां बस अड्डे जैसा काम मत करना यहाँ की दिन भर कमर तोड़ो और हाथ में आये दो रुँप्या.
मैं – सब धीरे धीरे होता है सीमा. तुम पैसे की इतनी चिंता न किया करो. बड़े लोग हैं. काम दे रहे हैं यही बहुत बड़ी बात है.
सीमा – कोई बड़ी बात नहीं है यही तो मैं आपको समझा रही हूँ.पैसे की बात ठीक से करना....बड़े साहब से न सही मुंशी से तो कर ही लेना. 


 मुझे पता था की सीमा अपनी बात पर अडिग है..और कुछ हद तक उसकी बात सही भी थी....कुछ देर बाद जब मुझे वो साहब और मुंशी दोनों खली दिखे तो मैंने उनके पास फिर से गया...उनसे काम के बारे में पूछने के लिए...बड़े साहब ने तो फिर से ऐसे देखा जैसे उनके सामने कोई अजूबा आ के खड़ा हो गया हो....मुंशी समझ गया की उसके साहब का अब दिमाग ख़राब होने वाला है....उसने मुझे एक कोने में खीचा....और बोला की”.... कैसे आदमी हो यार तुम....साहब से ऐसे बात कर रहे हो जैसे उन्होंने तुमसे कर्जा लिया हुआ है. एक बार कह दिया न की काम मिल जायेगा तो बस मिल जायेगा. अब क्या वो तुमको जवाब देते बैठे रहेंगे. तुम्हें बुलाया नहीं तुम फिर भी आ गए. आ के उनके बगल में खड़े हो गए. उनके बगल में तो मैं भी खड़ा नहीं होता. भैया तुम मजदूर हो मजदूर जैसे रहो.साहब के रिश्तेदार न बनो. समझ गए की नहीं? और आगे से जो भी बात हो वो मुझसे पूछना. साहब से न पूछना कुछ भी. वो तुम लोगों से बात नहीं करते. “ मैंने तो कुछ कहा ही नहीं था...मैं तो बस जा के खड़ा हुआ था की ये मुंशी अपने आप ही चालू हो गया...फिर मुझे सीमा के सारे सवाल याद आ गए और मैंने एक सांस में ही वो सारी बातें मुंशी से पूछ ली...अब तो मुंशी भी उतना ही हैरान हो के मुझे देख रहा था....उसने बोला “ भैया तुम्हें काम मिल रहा है ये कम है क्या? की तुम्हें अब हम घर भी देन...खाना भी देन....तुम्हें एक दो नौकर भी चाहिए होंगे? क्यों? काम पे आने जाने के लिए गाडी की जरुरत तो नहीं है?? अगर हो तो वो भी बता दो. मैं साहब से कह देता हूँ वो अपनी गाडी तुम्हें दे देंगे. तुम्हें तो ये सब चाहिए है......” .....अब मेरा भी दिमाग ख़राब हो गया......मैं बिना कुछ कहे वापस चला आया.....

आ के सीमा को पूरी बात बताई...तो सीमा ने भी कहा की गलती मेरी है..मुझे तो समझ नहीं आ रहा था..मैंने क्या गलती की? सीमा ने कहा की जा के ये सब पुच के आना तो मैं गया था. मैं खुद से नहीं गया था. अब सीमा ही कह रही है की मैंने गलती की.....मैंने कुछ नहीं कहा चुपचाप बैठा रहा...दोपहर हो गयी थी..हमने थोड़ी थोड़ी भूख भी लगने लगी थी.....पैसे बस एक बार का खाना खाने के लिए बचे थे...तो वो रात में काम आते...अभी तो सब लोगों को देखते रहे बैठे रहे बस.....कुछ देर में बड़े साहब वापस चले गए अपनी कार में बैठ के...फिर उस मुन्सी ने मुझे अपने पास बुलाया...सीमा ने कह दिया था की जा के कुछ कहना मत बस सुन लेना उनकी पूरी बात....तो मैं जा के उनकी बात सुनने लगा....मुझे काम दिया गया था सामान ढ़ोने का....ईंट रेत ये सब उठाने रखने का काम था...मैंने हाँ कह दी..फिर मुंशी ने ही कहा की रोज के 120 रुपये मिलेंगे...ये सुन के तो मैं हवा में उड गया...रोज का 120 रुपये मतलब मैं तो अमीर हो गया.....फिर उसने कहा की रहने की जगह नहीं है.....घर या कमरा नहीं दिया जायेगा....चाहो तो यहाँ कहीं भी सो सकते हो...मेरे लिए ये भी ठीक था.....ये तो सब अच्छी अच्छी खबर ही थी..मैं हंसी ख़ुशी वापस सीमा के पास आ गया...आज का दिन तो आधा निकल चूका था....तो मेरा काम कल से शुरू होना था....सीमा को मैंने पूरी बात बताई...वो भी सुन के बहुत खुश हुई....उसने कहा भी की उसे मुझे उकसा के वो सब बात करने के लिए नहीं भेजना चाहिए था. उसके कारन मुझे मुंशी की इतनी सारी बात सुन्नी पड़ी...लेकिन अभी तो इतनी बढ़िया खबर मिल गयी थी की बाकि बातें मैं खुद ही भूल गया था.....सीमा और मैं कुछ देर बाद वहां आसपास घूमते रहे और ऐसे ही चलते चलते हमें एक जगह दिख गयी...वहां कुछ लोहे का सामान पड़ा हुआ था...एक कोना था वो.....तीन तरफ से घिरा हुआ था......हमें लगा की यहाँ हम आराम से सो सकते हैं और रात के रहने के लिए यही जगह ठीक रहेगी..मैंने मुंशी से जा के पुच भी लिया..उसने भी हाँ कह दिया.....

पिछले दिन भैया और भाभी के घर में जो भी बुरा हुआ था हम उससे बाहर आना चाहते थे....कल के दिन से मुझे काम मिलने वाला था..सीमा ने तो पहले से ही सोच लिया था की 120 रुपये रोज के मिलेंगे तो उससे वो क्या क्या करेगी....रात में पास के होटल से जा के मैं खाना ले आया...हम लोग खाना खा के अपने उसी कोने में बैठे हुए थे.......आज कुछ भी चल नहीं रहा था मन में...एक अजीब तरह की शांति थी...न कोई ख्याल न कोई डर न कोई चिंता.....पेट भर के खाना खा लिया था.कल से काम मिलने वाला था....अब रोज काम मिला करेगा..रोज पैसा मिला करेगा....ऐसा लग रहा था की हमारे बुरे दिन ख़त्म हो गए है.......दोनों को बहुत जल्दी नींद आ गयी....अगली सुबह मुझे सीमा ने ही उठाया....सुबह का सवाल फिर से सामने आ खड़ा हुआ था...अब कहाँ जाएँ..यहाँ न तो सुलभ शौचालय है और ना ही किसी के घर की छत.....मैं तो अभी आँख मींज रहा था लेकिन सीमा बहुत देर की उठी हुई लगती थी..उसने बहुत कुछ सोचा हुआ था शायद..मुझे उठा के मुझे एक किनारे ले गयी...वहां उसने जमीन पर एक गड्ढा खोदा हुआ था और उसके दोनों तरफ एक एक ईंट रख दी थी......एक तरह से उसने एक काम चलाऊ लेट्रिन सीट बना दी थी.......हमारे बीच ये तय हुआ की अब हमें काम मिलने लगा है तो रोज रोज हम सीटी बजाने और एक दुसरे को नंगा देखने के चक्कर में नहीं पड़ेंगे बल्कि ठीक से काम पर ध्यान देंगे.......उस समय हमें काम की सच में इतनी ज्यदा जरुरत थी की सीमा की इस बात को स्वीकार करने में एक पल की भी देरी नहीं की.......जल्दी जल्दी सब काम ख़त्म कर के मैं काम के लिए तैयार हो गया.....मैं तो वहीँ रहता था इसलिए जल्दी तैयार हो गया..लेकिन बाकी लोग तो सब कुछ देर से आये....मुंशी भी देर से आया...तब तक मैं बैठा सब का इन्तेजार कह रहा था...उनके आते ही मुझे मेरा काम बता दिया गया..मैं अपने काम में लग गया...और बाकि लोग भी अपने काम में लग अगये..दोपहर में सभी लोग खाना खाने के लिए रुके...मेरे पास खाना तो था नहीं..मैं उतनी देर के लिए अपने कोने में आ गया..वही कोना जो हमारा घर बन गया था...सीमा वहीँ बैठी थी.....उसे पता था की मुझे छुट्टी क्यों मिली है..लेकिन वो भी कुछ नहीं कर सकती थी..न तो हमारे पास खाने को कुछ था न ही हम किसी से मांग सकते थे.....कुछ देर बाद काम फिर से शुरू हो गया....मैं वापस लौट गया...अबकी सीधे शाम को छुट्टी हुई..जब काम ख़त्म हो गया था....सब मजदूर एक लाइन में खड़े हो गए...और मुंशी एक टेबल कुर्सी पर बैठ गया.....बरी बरी से सब का नाम लिखता और रोज के पैसे देता ...फिर मेरा भी नाम आया..मेरी भी बारी आई....मुझे भी पैसे दिए.......मैं पैसा ले के सीधा सीमा के पास गया....आज के काम की तो छुट्टी हो ही गयी थी.........सीमा ने पैसे लिए और अपनी चोली में डाल लिए...फिर उसने सब सामान बाँधा और झोले में डाल लिया...मैं देख रहा था की ये क्या कर रही है......सीमा मुझे अपने साथ चलने को बोली तो मैं पूछ बैठा की कहाँ जा रहे हैं हम....उसने बताया की रस्ते में उसने एक मंदिर देखा था.....हम मंदिर जा रहे थे....सीमा को ले के मैं चल दिया....अभी हम बाहर नहीं निकले थे की मुंशी जी मिल गए...



मुंशी – क्यों कहा जा रहे हो? काम नहीं करना क्या?
मैं – करना है मुंशी जी. लेकिन आज काम का पहला दिन था तो मेरी बीवी ने कहा की पहली कमाई मंदिर में देंगे.
मुंशी – ये तुम्हारी बीवी है???
मैं – जी.
मुंशी – अबे क्यों झूठ बोल रहा है तू? खुद तो मूंगफली जितना है तेरी कहाँ से बीवी हो गयी अभी से?
मैं – नहीं मुंशी जी. झूठ नहीं. ये सच में मेरी बीवी है. गाँव में शादी जल्दी होती है न.
मुंशी – क्यों री लड़की ? ये ठीक कह रहा है? तू सच में इसकी बीवी है या ये जबरदस्ती रखे हुए है तुझे?
सीमा – नहीं साहब. मैं सच में इनसे शादी कर के आई हूँ. हमारे गाँव में शादी जल्दी हो जाती है.
मुंशी – अबे जल्दी तो हमारे गाँव में भी होती है लेकिन वहां लड़के लड़की को पहले जमीन से उठने दिया जाता है. तुम तो साले एक एक बित्ते के हो शादी कर के बैठ गए. अबे कुछ जानते भी शादी के बारे में की ना? की बस ऐसे ही शादी शादी खेलने लगे? क्यों बे मोहन परेशां तो नहीं करता इसे?
मैं – नहीं मुंशी जी.
सीमा – नहीं मुंशी जी. हमारी शादी हमारे घर वालों ने की थी. फिर उनका देहांत हो गया तो हम लोग काम खोजने शहर आ गए.
मुंशी – ठीक है. सुन लड़की....मैं रोज यहाँ आता हूँ. तुझे कभी इस मोहन के बच्चे से कोई परेशानी हो तो मुझे जरुर बता देना. और तू भी सुन ले मोहन अपने साथ इस तरह लड़की ले के घूम रहा है ये ठीक बात नहीं. तू मन लगा के काम कर मैं बड़े साहब से कह के कुछ अच्चा काम दिलवा दूंगा तुझे......पता नहीं कैसे बेवकूफ माँ बाप थे तुम लोगों के. जब मरना ही था तो तुम लोगों की शादी करवा के तुम्हें फंसाने का क्या फायदा......दाढ़ी मूछ तक निकली नहीं है और पति बन के बैठे हैं ये लाट साहब...

मुंशी की उम्र कुछ 45-50 साल की रही होगी.....देखने में ही लगता था की बहुत समय से ये काम कर रहा है..वो ऐसे ही बोलते हुए अपनी गाड़ी से चले गए.....उनकी बातें हमें बुरी नहीं लगी....बल्कि सच कहूँ तो कुछ अच्चा ही लगा था उनकी बात सुन के...बहुत लम्बे दिनों बाद किसी ने हमसे हमारे बारे में बात की थी.....भले ही बहुत मीठी बात न हो लेकिन हमें उस बात में बहुत अपनापन दिख रहा था...हम लोग उसी ख़ुशी में मंदिर गए......वहां भगवन को प्रसाद चढ्या....लौटते में सीमा ने एक बड़ा सा पतीला ले लिया....एक किलो चावल ले लिया और एक कॉपी और पेन ले लिया.....उसने मेरे कमाए पैसे से ये चीजें खरीदी थी.....बिछाने के लिए अभी भी हमारे पास चादर एक ही था. हमने दूसरा नहीं लिया...पहनने के लिए कपडे उतने ही थे. सीमा ने वो भी नहीं लिए....आज की कमाई आधी तो इतना सामान लेने में खर्च हो गयी और बाकी सीमा ने बचा के अपने पास रख ली.......जब उसने एक पेन और कॉपी ली तब मुझे अपने स्कूल की याद आ गयी...बहुत ही गन्दा समय था मेरा स्कूल में.....मैंने सीमा से इस बारे में कुछ नहीं कहा...हम लोगों ने होटल में खाना नहीं खाया....अपने कोने में वापस लौट के आये.....सीमा ने कुछ और ईंटों को जोड़ के एक कच्चे चूल्हे जैसा कुछ बना लिया.....काम की जगह पर जो बेकार लकड़ियाँ पड़ी हुई थी वो लेती आई...और बहुत मेहनत से उसने आग जला ली.....वहां पानी था ही....चावल हम ले ही आये थे...और कुछ देर में खिचड़ी पकनि शुरू हो गयी......अब तक की हमारी जिंदगी में ये पहला मौका था जब हम अपना बनाया खाना खाने वाले थे......

दोस्तों जिंदगी में कुछ मौके ऐसे आते हैं जब आवाज साथ नहीं देती...लफ्ज़ साथ नहीं देते.....उनकी जरुरत ही नहीं पड़ती..दिल में इतनी सारी खुशियाँ या इतना सारा दुःख एकसाथ समा जाता है की फिर न कुछ बोलने को बाकी बचता है और ना ही बोलने सुनने लायक हालत बचती है....आज का हमारा दिन ऐसी ही ख़ुशी वाला दिन था....उस कोने में जिसे हमने अपना घर बना लिया था...आज हमारा पहला खाना पक रहा था....पहली बार मैं अपनी बीवी के हाथ का बनाया खाना खाने वाला था..पहली बार मेरी बीवी अपने पति को अपने हाथ से बना के खिलने वाली थी.....हम दोनों बार बार एक दुसरे को देखते और मुस्कुराते....कभी उसकी आँखें नाम हो जाती कभी मेरी....और फिर जब खिचड़ी बन गयी तो हमने उसी बर्तन में ही उसे खाने का फैसला किया....हमारे पास इतने पैसे नहीं आ गए थे की एक ही दिन में सारा गृहस्थी आ जाये...फिर भी जो आ गया था हम उसमे ही खुश थे....कुछ देर में जब पतीला ठंडा हो गया तो हमने उसी में खाना शुरू किया और पहला कौर खाते ही हम दोनों ने हंस हंस के पेट पकड़ लिया.....कहाँ एक पल पहले तक हम इतने भावुक थे और वहीँ अब हम जोर जोर से हंस रहे थे....हम बाजार से नमक नहीं ले के आये था...और बिना नमक के ये खिचड़ी कुछ अलग ही स्वाद दे रही थी.....कुछ देर अपनी बेकूफी पर हंसने के बाद हमने पूरी खिचड़ी खा ली...और फिर सोने का समय आ गया..........नया नया काम और नयी नयी तरह की जिंदगी में हमें एकदम से घेर सा लिया था...सुबह मुझे जल्दी उठा दिया जाता..मैं लोगों के आने के पहले ही काम पर लग जाता था....सीमा मुझे उठाने के पहले ही खुद निपट लेती थी और फिर खिचड़ी बनाने में लग जाती थी...मैं तैयार हो के खिचड़ी खता और काम पर चला जाता...बाकि लोगों के आने के पहले ही मैं अकेला ही काफी काम कर लेता था..फिर दोपहर में भी लौट के आता तो वही खिचड़ी मिलिती.....और फिर रात में भी वही खाना...रात होते होते तक तो थक के एकदम चूर हो चूका होता था..मेरी मेहनत बेकार नहीं जा रही थी...मुंशी जी को पता चल रहा था की मैं कितना काम कर् रहा हूँ और हर काम मन लगा के करता हूँ.........फिर एक दिन मैं सुबह जब सो के उठा...



 मैंने देखा की सीमा बगल में ही सिकुड़ी हुई लेटी है....उसकी आँखें बंद हैं लेकिन उसका शरीर हिल रहा है..पता चल रहा है की वो जाग रही है...मुझे समझ नहीं आया..मैंने उससे कहा भी की आज उठाना नहीं है क्या...वो कुछ नहीं बोली...मैं उस जगह आ गया जहाँ हमने सुबह फुर्सत होने की व्यवस्था की हुई थी...मुझे कुछ अजीब लगा तो मैंने ध्यान से देखा तो पाया की वहां कुछ लाल रंग का पड़ा हुआ है..मैंने नीचे झुक के देखा तो समझ आया की ये लाल रंग नहीं बल्कि खून है....ये खून किसका हो सकता है? यहाँ तो हमारे सिवा कोई आता नहीं..मैं वापस अन्दर गया तो इस बार मैंने सीमा को सामने से देखा..उसने अपने पैर मोड़े हुए थे और उसकी कमर के ठीक नीचे का हिस्सा मुझे हलके लाल रंग का दिख रहा था..मुझे कुछ समझ नहीं आया लेकिन ये शंका हो गयी की शायद सीमा को कोई चोट लग गयी है....ये खून उसी का है....एकदम से मेरी जां जैसी निकल गयी..मैं तुरंत उसके पास गया उसे उठाया और उससे एक सांस में ही कई सारे सवाल पुच लिए...क्या बात है क्या कोई चोट लग गयी है...तुम्हें खून क्यों निकल रहा है..तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है...तुम्हें दर्द हो रहा है...तुमने मुझे क्यों नहीं बताया.....” मैं उससे एक के बाद एक सवाल कर रहा था लेकिन वो कुछ नहीं कह रही थी.....शायद सीमा को उम्मीद थी की मुझे पता होगा की ये क्या है और क्यों है.....इसलिए उसने मुझसे सिर्फ इतना पुचा की “ क्या आप नहीं जानते? “....मैंने कहा क्या नहीं जनता? क्या बात है मुझे ठीक से बताओ?.....जब सीमा को इस बात का एहसास हुआ की मुझे सच में नहीं पता है तो उसके चेहरे पर एक मायूसी सी दिखाई दी मुझे....उसने बहुत ही हलकी आवाज में मुझसे कहा की थोड़ी देर मुझे लेटे रहने दीजिये मुझे आराम करने की जरुरत है आज आप बिना कुछ खाए ही काम पर चले जाईये मैं दोपहर तक कुछ खाने को बना दूँगी....” सीमा की आवाज इतनी कमजोर थी इतनी हलकी थी की मुझसे रहा नहीं गया..मेरे सरे सवाल एक किनारे हो गए..मैंने उसे वापस लेता दिया.....झोले से अपना एक कुरता निकाल के उसे गोल गोल मोड़ के तकिया जैसा बना के उसके सर के नीचे रख दिया.....सीमा ने मुझे बहार जाने को कह दिया..मैं बाहर आ गया....

मैं रोज के अपने काम में लग तो गया लेकिन मेरा ध्यान बार बार सीमा की तरफ ही जा रहा था....मुझे कभी चोट लगे और खून बहे तो मैं तो एकदम पागल हो जाता था....उसे इतना खून चल रहा है उसे कितना ज्यादा दर्द हो रहा होगा...वो मुझे ये भी नहीं बता रही है की उसे क्या चोट लग गयी....बार बार मन में यही सब बातें दौड़ रही थी......आज उसे इतना कमजोर देख कर मेरा दिल एकदम बैठा सा जा रहा था...किसी तरह से दोपहर हुई...खाने की छुट्टी हुई तो मैं दौड़ अपने कोने में आया और सीमा के पास बैठ गया...वो अभी भी वैसे ही आँखें मूंदे लेटी हुई थी.....मेरी आहट सुन के उसने आँखें खोली..उसे समय का अंदाजा हुआ होगा..उसे ध्यान आया की उसने खाने के लिए कुछ भी नहीं बनाया है..वो उठने की कोशिश करने लगी तो मैंने उसे लेटे रहने को कहा.....मैं फिर से उससे वही सब सवाल करने लगा और इस बार भी उसने जवाब में सिर्फ नजरें झुका ली....मैं भी सोच रहा था की ये वही सीमा है जो मुझे हर बात एकदम साफ़ साफ़ समझाया करती है तो फिर आज इसे क्या हुआ है जो इतना बड़ी बात मुझसे छुपा रही है....सीमा ने फिर से अपनी हलकी आवाज में कहा की अभी मैं उससे कुछ न पूछूं......मैंने फिर से उसकी बात मान ली....उसकी ये हालत मुझसे देखि नहीं जा रही थी और मैं बिलकुल भी नहीं चाहता था की उससे किसी बात को लेकर कोई बहस करूँ....मैंने बहुत जिद की तब जा के वो तैयार हुई की आज खिचड़ी मैं ही बना लूँगा......मैंने वैसे तो बहुत काम किये लेकिन खाना बनाने का कोई काम कभी नहीं किया था.....सीमा लेटे लेटे ही मुझे सब बता रही थी और मैं उसी हिसाब से सब कर रहा था...इस दौरान मेरी हरकतें देख देख के कभी कभी वो जरा सा मुस्कुरा भी देती थी....लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर बिखरा हुआ दर्द साफ़ दिखाई देता था.......उसने मुझसे फिर से कहा की मैं अपने काम पर ध्यान दूं..उसे किसी प्रकार का कोई जोखिम नहीं है. कोई चोट नहीं लगी है.उसे क्या हुआ है वो बाद में बताएगी. कोई परेशानी की बात नहीं है......उसने मुझसे ये सब कह के मुझे वापस काम पर भेज दिया..

रात को भी वही हुआ.....खिचड़ी मैंने ही बनायीं...वो बस लेटी हुई थी..कभी कभी करवट बदल लेती लेकिन बहुत कराहती ऐसा करते हुए...मैं देख रहा था की उसकी साडी अब धीरे धीरे एकदम गाढ़ी लाल होती जा रही थी.....लेकिन उससे कुछ कह नहीं सक्कता था..उसी ने मना किया था......रात में हम लोग जल्दी सो गए.....सुबह मेरी आँख खुली तो मैंने पाया की मेरे सर पर कुछ रेंग रहा है..मैं झटके से उठ बैठा...सीमा मेरे बगल में लेटी हुई थी....रोज तो एकदम साथ में लेटा करती थी लेकिन आज कुछ दूर हो के लेटी थी...


 सीमा – क्या हुआ? ऐसे क्यों उठ गए?
मैं – मुझे लगा की मेरे सर पर कुछ रेंग रहा है..
सीमा – अच्चा वो? नहीं कुछ रेंग नहीं रहा था मैं लेटे लेटे आपके बालों में उँगलियाँ फेर रही थी,
मैं – अच्छा...मुझे लगा की मेरे सर पर कुछ है....आज तुम्हारी तबियत कैसी है?
सीमा – कल से ठीक हूँ.
मैं – आज भी कल वाली तकलीफ है?
सीमा – हाँ.
मैं – कब तक रहेगी?
सीमा – कल तक.
मैं – उसके बाद?
सीमा – उसके बाद मैं ठीक हो जाउंगी.
मैं – पहले जैसी हो जोगी?
सीमा – हाँ. पहले जैसी हो जाउंगी.
मैं – फिर कभी ये दिक्कत नहीं होगी?
सीमा – होगी. ऐसी दिक्कत हर महीने होती है.
मैं – क्या कहा? हर महीने होती है? तुम्हें इसके पहले भी ये दिक्कत हो चुकी है? तुम इसका कुछ इलाज क्यों नहीं करवा लेती? अब तो हमें पैसे भी मिलने लगे हैं...तुम ठीक हो जाओ फिर मैं तुम्हें दवाखाने ले चलूँगा. ऐसे हर महीने थोड़ी न तुम्हारी तबियत ख़राब होने दूंगा...
सीमा – मुझे तकलीफ हुई तो आपको अच्छा नहीं लगा?
मैं – मुझे अच्छा लग सकता है क्या? कल दिन भर मैं ठीक से काम नहीं कर पाया. मुझे जरा सा कहीं चोट लग जाये एक बूँद खून भी गिर जाये तो मैं तो एकदम हल्ला मछाने लगता हूँ...फिर तुमको तो इतना खून गिर रहा था...
सीमा – सुनिए कुछ बातें हैं जो औरतों के बीच ही होती हैं. आप मर्दों के समझने की बातें नहीं हैं वो.
मैं – न तो मैं मर्द हूँ और न ही तुम औरत.....मैं लड़का और तुम लड़की. अब मुझे ठीक से बताओ ये सअब क्या हो रहा है?
सीमा – ऐसा हर लड़की को होता है. हर औरत को होता है. हमें हर महीने के दो तीन दिन ये दिक्कत होती है.इसमें कोई बड़ी बात नहीं है.
मैं – बड़ी बात कैसे नहीं है? इतना सारा खून बहना कोई आम बात है क्या? बिलकुल बड़ी बात है.तुम मुझे ये बताओ की इसका इलाज करने में कितने पैसे लगते हैं?
सीमा – इसका कोई इलाज नहीं होता. ये जरुरी चीज होती है. ये हर एक को होती है.मैं कह रही हूँ न. धीरे धीरे आप सब समझ जायेंगे.
मैं – नहीं. बिलकुल नहीं. इसका कोई तो इलाज होगा.मैंने तो नहीं देखा किसी लड़की को या किसी औरत को इस हालत में.
सीमा – आप भी न एकदम पागल हैं..इस हालत में हम लोग अन्दर रहते हैं.बाहर नहीं जाते. और ये किसी को दिखाने की चीज नहीं है. लेकिन मेरा यकीन कीजिये ये हर लड़की को होता है. हर औरत को होता है.
मैं – इसमें दर्द भी होता है?
सीमा – हाँ दर्द भी होता है. लेकिन वो ऐसा दर्द नहीं होता जैसा चोट लगने पर होता है. दर्द भी अपने आप ठीक हो जाता है.
मैं – तुम सब सच कह रही हो न? तुम्हें कोई चोट तो नहीं लगी है न?
सीमा – हाँ मैं सच कह रही हूँ. कोई चोट नहीं लगी है.......अब आप इस बारे में चिंता न कीजिये...इसके बारे में बाकी बातें मैं आपको बाद में बतौंगी...अभी मुझे भी थोड़ी शर्म आ रही है...
मैं – इसमें शर्म वाली क्या बात है.?
सीमा – सुनिए..मेरी एक बात बहुत ध्यान से सुनिए.....कल से मैं ठीक हो जाउंगी...लेकिन परसों से मेरे अन्दर बहुत तेज इच्छाएं पैदा होंगी...मैं बहुत ज्यादा वो हो जाउंगी...और ऐसे में आपको ध्यान रखना होगा...आपको सब सम्हलना होगा.
मैं – बहुत ज्यादा क्या हो जोगी??
सीमा – कुछ हो जाउंगी बस. ज्यादा नाम न पुचा कीजिये हर चीज का. आप बस इतना ध्यान रखिये की अगले दो तीन दिन तक मैं कितनी भी कोशिश करूँ लेकिन आप मेरे पास नहीं आयेंगे. मुझे कुछ करेंगे नहीं और ना ही मुझे करने देंगे.

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