FUN-MAZA-MASTI
मेरी बीती जिंदगी की कहानी --3
अगली सुबह हुई.....बस अड्डे पर धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी...हमें आज फिर से सुलभ शौचालय का उपयोग करना पड़ा...लेकिन आज सीमा ने मुझसे साफ़ शब्दों में कह दिया था की यह अंतिम बार है..हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं की हम इस काम के लिए भी पैसे चुकाएं.......उस समय उसकी बात का क्या परिणाम होगा ये सोचने का समय नहीं था....सीमा ने मुझे कहा की मैं सभी दुकानों पर जा के उन्हें अपने बारे में बताऊँ और उनसे कहूँ की किसी भी तरह का काम हो तो वो मुझे बुला सकते हैं.....मुझे अकेले जाने में बड़ा डर सा लग रहा था....तो सीमा भी मेरे साथ चलने को राजी हो गयी.....आप सभी ने देखा होगा की बस अड्डे पर कई तरह की दुकानें होती हैं...किताबों की...खाने की..होटल..पान की दूकान....यह सब उस बस अड्डे पर भी था...जिस सबसे पहली दुकान पर मैं गया वो एक किताबों की दूकान थी...मुझे ये याद था की सीमा ने कहा है की अपने बारे में बताना है...तो मैं उस दुकानदार को अपनी कहानी सुनाने लग गया की मैं किस गाँव से हूँ और मेरे पिताजी ने मुझे कैसे पाला है...दुकानदार को अपनी दूकान छोड़कर मेरी कहानी सुनना कुछ अजीब ही लगा होगा..इसलिए उसने झल्ला के मुझसे कहा की क्या चाहिए तुमको? मैं थोडा सहम गया और उसे जवाब दिया की आपके पास किसी भी तरह का काम हो तो मुझे बुला लीजियेगा...मैंने उसे अपना नाम बताया और बताया की मैं कहाँ बैठता हूँ....
वहां से आगे बढे तो सीमा ने मुझे रोक के समझाया की उसे अपनी जिंदगी की कहानी सुनाने की जरुरत नहीं है...सबको सिर्फ इतना बताओ की तुम और मैं पति पत्नी हैं और हम यही इसी बस अड्डे पर ही रहते हैं हर समय..हम काम खोज रहे हैं..और हम किसी भी तरह का काम करने को राजी हैं....तो उनके पास जब भी कोई भी काम हो वो हमें बुला सकते हैं.......मैंने उसकी बार याद कर ली और फिर एक एक दुकान वाले को जा के यही बात रट्टू तोते की तरह सुना दी.......देखिये ये सब बहुत पहले की बात है..तब के जमाने में और अब में बहुत फर्क है...तब लोग एक दुसरे की मदद करने में पीछे नहीं रहते थे...मैंने जिस जिस दूकान वाले से बात की उसमे से किसी ने भी मुझे कुछ गलत नहीं कहा..बल्कि सभी ने मेरी बात सुनी और कहा भी की अगर कोई काम हुआ तो हम बुला लेंगे.....उनसे बात करके मुझे बुरा नहीं लगा..अपने लिए काम मांगने का ये मेरा पहला अनुभव था लेकिन इसमें कुछ भी बुरा नहीं था.....अच्चा अनुभव था....दोपहर हो आई थी...हम लोगों ने सोचा की आज दिन में खाना नहीं खायेंग....अब हमारे पास सिर्फ इतने पैसे बचे थे की उससे रात का खाना और अगले दिन एक बार का खाना ही मिल सकता था...हमारे लिए ये जरुरी था की अब हमें कहीं से कुछ पैसे मिलने लगें....हम लोग दोपहर में अपनी ही जगह पर बैठे रहे....सीमा को उम्मीद थी की इस बस अड्डे में किसी न किसी को तो काम की जरुरत पड़ती ही होगी और वो जरुर हमें आवाज देगा......मैं तो बस वो कर रहा था जो सीमा मुझसे करवा रही थी.....दोपहर बीत गयी...शाम होना शुरू हो गयी थी लेकिन किसी ने हमें एक आवाज भी नहीं दी थी....हम दोनों के बीच ज्यादा बात नहीं हो रही थी..शायद दोनों के मन में ही ये चल रहा था की अगर यहाँ काम नहीं मिला तो क्या करेंगे..........
हम दोनों ही अपना उदास मन लिए चुपचाप बैठे हुए थे की कुछ देर में एक बस आ के रुकी...उसमे से जब सब सवारी उतर चुकी थी तब एक मोटा सा सेठ निकला और उसने बस के कंडक्टर को अपना सामना ऊपर से उतारने के लिए कहा..बस के ऊपर देखने पर पता चला रहा था की बहुत सामन है...बेचारा कंडक्टर भी सोच रहा होगा की कहाँ फंस गए....वो इधर उधर कुछ लोगों को खोज रहा था शायद जो उसकी मदद कर सकें....एक साथ मैंने और सीमा ने उसे ऐसा करते हुए देखा और सीमा ने मुझसे कहा की मैं उसे पास जा के उसका सामान उतरवा दूं.....मैंने एक पल की भी देरी नहीं की....उस बस के पास गया और उस कंडक्टर से कहा की मैं सामान उतरवा दूंगा....उसने मुझे हाँ कह दिया लेकिन यह भी कहा की और लोग भी चाहिए..ये अकेले के बस की बात नहीं है....मुझे लगा की और लोग न आयें तो अच्चा है..मैंने कह दिया की आप दोनों लोग नीचे हो जाओ मैं उपर से सामन उतर के देता जाऊंगा....दोनों माने नहीं लेकिन जब कोई और आदमी नहीं मिला तो मान गए..मैं ऊपर गया और मैंने सामान देखा...पास से देखने पर पता चला की ये तो मेरे बाएं हाथ का काम है,...गाँव में अनाज की 40-40 किलो की बोरियां मैं दो दो एक साथ उठा लिया करता था..यह तो कुछ भी नहीं है........जो लोग मेरी तरह गधे होते हैं उन्हें कुछ काम करने को मिल जाये तो बड़े खुश होते हैं..मैंने उन दोनों को नीचे से हट जाने को कह दिया..मैं ऊपर से एक एक बोरी लेता और उसे अपने कंधे पर रख के नीचे आता...फिर ऊपर जाता...आप लोगों ने बस के पीछे वाली सीढियां देखि होंगी..वो एकदम सीधी होती हैं. हर कोई चढ़ नहीं पता.....लेकिन गधों के लिए ऐसे काम बहुत आसान होते हैं जो इंसानों के बस के नहीं होते....वो बस कंडक्टर और वो सेठ दोनों ही ये देख के हैरान थे की जिस काम में उन्हें बहुत मुश्किल जान पड़ रही थी वो ऐसे आसानी से हो रहा है.....मैंने सब सामान उतर दिया...सेठ ने मुझे पुरे तीन रुपये दिए....उस समय इस तरह के काम के लिए इससे ज्यादा कुछ नहीं मिलता था.......बस कंडक्टर ने कहा की ये सेठ हर दुसरे तीसरे दिन बड़े शहर जा के इतना सामन लता है...उसे हमेशा ही मेरे जैसे आदमी की जरुरत होगी..मैंने उसे वही रटा रटाया पाठ सुना दिया की मैं काम खोज रहा हूँ और हर काम करूँगा....कंडक्टर मुझे तोते जैसा बोलता देख के थोडा हंसा भी...और फिर वो ये कह के चला गया की तुम मेहनती आदमी हो...तुम्हारे लिए काम की कोई कमी नहीं होगी.....बस पैसे के पीछे मत भागना और मेहनत करने से डरना मत.....
मैं वापस लौट के अपनी जगह पर आया...सीमा वहां बैठे बैठे सब देख रही थी......मैंने अपनी पहली कमाई उसके हाथ में दे दी...उसने उपर देख के भगवन को प्रणाम किया और फिर वो पैसे अपने अन्दर दाल लिए......उस समय मुझे ये नहीं पता था की उसे चोली कहते हैं.....बाद में पता चला था की उसका नाम क्या है....
सीमा – देखा...काम मिलना शुरू हो गया न...मैं न कहती थी की हम कुछ न कुछ कर ही लेंगे अपने लिए...
मैं – तीन रुपये तो मिले हैं.इसमें इतना क्या खुश हो रही हो. इतने में तो दो रोटी आएँगी बस.
सीमा – पैसा जरुरी नहीं है. जरुरी है काम. एक बार काम मिलने लगे तो पैसा अपने आप मिलने लगेगा. अच्छा ये बताओ उस सेठ से के कह रहे थे......
मैं- हाँ वो सेठ हर दुसरे तीसरे दिन इतना सामान ले के आता जाता है....और बस के कंडक्टर को भी बता दिया अपने बारे में जो आप सब को बताया था न...उसने भी कहा की मुझे खूब काम मिल जायेगा..
सीमा – ये तो बड़ी अच्छी खबर है....अब हमें दुखी नहीं होना चाहिए...इसी बस अड्डे पर हमें सब मिल जायेगा....
मैं – हाँ लेकिन यहाँ तो सब मेहनत वाले काम ही होंगे न...इसी तरह के काम की ये उठाओ वो रखो...
सीमा – तो आप कौन सा मीट्रिक पास हो की कोई आपको बाबु बना देगा...
मैं – हाँ ये भी ठीक कह रही हो....सुनो बहुत जोर से भूख लग रही है..सुबह से कुछ नहीं खाया और फिर अभी ये काम कर लिया तो भूख बहु तेज लग आई है..
सीमा – कुछ देर और रुक जाओ..फिर रात में खाना खाना ही है...
मैं – अभी क्यों नहीं?
सीमा – अभी से खा लोगे तो फिर रात में भूख लग आएगी..फिर क्या खाओगे? इसलिए थोडा रुक जाओ...
मैं – ठीक है...
सीमा – हमें हर दिन कम से कम 50 रुपये कमाने हैं तब ही हमारा काम चल सकेगा..
मैं – इतने में दोनों बार खाना मिलेगा ?
सीमा – नहीं. सिर्फ एक बार. रात में...दोनों बार खाने के लिए तो हमें कम से कम १०० रुपये चाहिए रोज के..
फिर हम दोनों ही चुप हो गए......शाम बीत चुकी थी...रात शुरू हो गयी थी....और इसी बीच मुझे एक काम और मिल गया..उसी किताब वाले की दूकान में कुछ सामान रखना था...वो काम भी कर दिया मैंने....हालाँकि वो काम बहुत छोटा सा था और उसने मुझे एक रुपये भी नहीं दिया लेकिन ये जरुर कहा की रोज सुबह चार से पांच बजे के बीच में उसके यहाँ अख़बार आता है...वो उठा के रखना और अक्सर कोई न कोई परचा उस अख़बार में डालना होता है...तो वो भी एक काम है...अगर मैं चहुँ तो सुबह उसकी दूकान पर आ जाऊंगा वो मुझे ये काम दे देगा.....मैंने लौट के ये बात सीमा को बताई..मुझे लगा की अच्छा है..सुबह सुबह ये काम मिल जायेगा तो ठीक है क्योंकि और कहीं तो उतनी सुबह काम मिलने से रहा...लेकिन सीमा ने मना कर दिया....
मैं – क्या हर्ज है उसकी दूकान का काम करने में..? उतनी सुबह हमें और कोई काम नहीं मिलेगा.
सीमा – जानती हूँ. लेकिन वो महीने भर के काम के दस रुपये देगा..
मैं – हाँ तो काम भी तो सिर्फ एक घंटे का है और उसमे तो कोई मेहनत भी नहीं लगेगी. जरा सा काम है.
सीमा – नहीं. उस समय हमें एक दूसरा काम होगा.
मैं – उस समय और कौन सा काम होगा?
सीमा – हम रोज सुबह अपने नित्य कर्म के लिए चार रुपये खर्च कर देते हैं...ये हमें बंद करना होगा.
मैं – तो क्या करेंगे? क्या वो चीज ही बंद कर देन? वो तो कर नहीं सकता. सुबह सुबह जरुरत तो पड़ेगी ही.
सीमा – जानती हूँ. लेकिन हम उस काम के लिए पैसे नहीं खर्च कर सकते.
मैं – बिना पैसे खर्च किये वो आदमी हमें अन्दर नहीं जाने देगा.
सीमा – बिना पैसे खर्च किये भी ये काम हो सकता है.
मैं – कैसे हो सकता है??? वो सुलभ शौचालय वाला आदमी हमें बिना पैसे दिए अन्दर नहीं जाने देगा.
सीमा – बिना पैसे खर्च किये भी ये काम हो सकता है.
मैं – कैसे हो सकता है??? वो सुलभ शौचालय वाला आदमी हमें बिना पैसे दिए अन्दर नहीं जाने देगा.
सीमा – तो क्या अभी तक हम हमेशा वहां जा के ही करते आये हैं? जब से जनम लिया है हमारे घर में सुलभ शौचालय था क्या? हमारे गाँव में था क्या? नहीं था न. हमेशा बिना पैसा दिए किये न ये काम..तो अब भी वैसे ही करेंगे.
मैं – वो तो गाँव था. ये तो शहर है. यहाँ ऐसे कहीं बैठ जायेंगे तो कोई कुछ कहेगा नहीं?
सीमा – कहेगा. इसिलए हमें सुबह सुबह ही अपना काम ख़त्म कर लेना होगा. इसीलिए कह रही हूँ की हम उस किताब वाले के यहाँ काम नहीं कर सकते..क्योंकि हमें कहीं अपने काम के लिए जगह खोजनी होगी और किसी के देखने के पहले ही हमें रोज फारिग होना होगा.
मैं – ये तो गलत बात है....हम कोई जानवर नहीं हैं जो सड़क के किनारे ऐसे कहीं भी कर लेन...
सीमा – गाँव में तो करते थे न. तो अब क्यों नहीं?
मैं – ये तो शहर है. मैं ऐसे नहीं कर सकता. मैं तो वहीँ जाऊंगा. हमें पैसा मिलना लगा है न अब. अब हम जा सकते हैं वहां. हम वहीँ जायेंगे. हम ऐसे खुले में नहीं बैठेंगे.
सीमा – आज हमें सिर्फ तीन रुपये मिले हैं...वो तो कमर तोड़ मेहनत करने के बाद..उसे हम इस तरह के काम में खर्च कर दें ? मैं नहीं करुँगी. आपने ही कहा था न की सोचने का काम मेरा है..तो मैंने सोच लिया है.....और फिर जरा ये सोचिये की मैं लड़की हो के भी इसके लिए राजी हूँ तो आप आदमी हो के इतना क्यों नाटक कर रहे हैं? आपसे ज्यादा तो मुझे दिक्कत होनी चाहिए इस काम में...लेकिन मैं तो नहीं कुछ कह रही....अभी हमारी दशा ऐसी ही है. हमें ऐसे ही रहना होगा. हमें इस तरह की अकड़ नहीं दिखानी चाहिए. और यहाँ हमें जानता ही कौन है..किसी दिन किसी ने देख भी लिया तो कौन सी हमारी बदनामी हो जाएँगी...न आपके भाई भाभी को आपसे कुछ लेना देना है और ना ही मेरे माँ बाप को मुझसे कुछ मतलब है....फिर जब आगे चल के हमारी दशा ठीक हो जाएगी तो हम कुछ और सोच लेंगे....
मैं – नहीं. मैंने कुछ और सोच लिया है. मैं अभी उस आदमी से जा के बात करता हूँ...उसके यहाँ मैं काम कर लूँगा और बदले में वो हमें जाने देगा....
मैं बिना सीमा की बात सुने आगे चल दिया...सीमा वही बैठी रही...सुलभ शौचालय के पास जा के मैंने वहां के चौकीदार से अपनी पूरी बात कही...चौकीदार पहले तो बहुत ना नुकुर करता रहा..लेकिन फिर आख़िरकार उसने मेरी बात मान ली....हमारे बीच ये समझौता हो गया की मैं उसके यहाँ की पूरी सफाई करूँगा और बदले में वो हमें दिन में एक बार वहां का इस्तेमाल करने देगा...लेकिन ये बात उसके मालिक को पता नहीं चलनी चाहिए.....उसने मुझे कह दिया की अभी सफाई कर दो..फिर कल से रोज सुबह और रात में आ जाना सफाई करने.....मुझे लगा की मैंने तो खुद अपने दम पर एक काम खोज लिया....सीमा तो मुझे मना कर रही थी..लेकिन मैंने काम खोज लिया...और अपनी इस बेहूदा सफलता पर मैं बहुत ज्यादा खुश था....मन ही मन सोच रहा था की सब मुझे गधा समझते हैं लेकिन मैं तो इतना होशियार हूँ......इसी ख़ुशी में मैं अन्दर गया..और मुझे उस चौकीदार ने सफाई करने का सामान दे दिया.....कुछ ही देर हुई होगी मैं उस जगह से नाक दबा के भागता हुआ बाहर आया....वो चौकीदार मुझे देख के हंस रहा था और मेरा जी बहुत बुरी तरह से मचला रहा था...ऐसा लग रहा था की उलटी हो जाएगी लेकिन हो नहीं रही थी....कितना गन्दा था वहां सब कुछ.......मैं गधा जरुर था लेकिन ये काम कभी नहीं किया था मैंने..ऐसा कभी देखा भी नहीं था.....मुझसे वो सब देखना करना सहन ही नहीं हुआ.....शायद चौकीदार को मेरी हालत देख के कुछ रहम आ गया होगा...उसने मेरे हाथ से सब सामान लिया और मुझे कहा की हमारी कमाई ही वही एक दो रुपये की है. हमें तुम्हारी दिक्कत समझ में आती है लेकिन बताओ हम तुमसे न लें तो खुद क्या खाएं? हमारा भी तो इसी कमाई से पेट चलता है न........मुझे उस चौकीदार पर गुस्सा नहीं आया...मुझे सीमा पर गुस्सा नहीं आया...मुझे खुद पर भी गुस्सा नहीं आया.....जब दशा इतनी बुरी हो तो गुस्सा नहीं आता...रोना आता है....मुझे लगा की अभी अभी इतना खुश था की मैंने एक काम और खोज लिया और अभी ये हालत है की अपने आप पे रोना आ रहा है.....मैं वापस लौट आया....और सीमा को पूरी बात बता दी...
सीमा – तो इसमें इतना दुखी होने की क्या बात है??
मैं – मुझे लगा की मैं ये काम कर लूँगा तो हमें रोज रोज परेशां नहीं होना पड़ेगा.
सीमा – आपको किसने कहा की आप कुछ सोचिये? बेकार में आप परेशान हो रहे हैं...थोड़ी देर का काम रहा करेगा..हम किसी तरह से कोई रास्ता निकाल लेंगे..आप दुखी न हों...
मैं – ठीक है...जैसा तुम कहो..
सीमा – मुझे तो लग रहा था की आप इस बात से खुश होंगे की रोज सुबह सुबह आपको सीटी सुनने को देखने को मिलेगी...लेकिन आप तो जरा भी खुश नहीं हैं.
मेरे दिमाग में और मेरे शरीर में और ना जाने कहाँ कहाँ कितनी सारी घंटियाँ बज गयी......हाँ इस बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं था....अरे वाह ये तो कितना मजेदार होगा.....एक ही पल में सब दुःख दर्द दूर हो गया और मैं राजी हो गया की हाँ अब रोज सुबह ऐसा ही किया जायेगा......सीमा ने मेरे चेहरे की ख़ुशी को पहचान लिया..उसकी भी मुस्कराहट छुपाये नहीं छुप रही थी.....
हम लोग फिर से उसी होटल में गए और रात का खाना खाया....इस बार उस होटल के मालिक ने हमसे कुछ बात भी की....उसने बताया की उसके यहाँ भी काम करने वाले लोग सब रोज के वेतन पर काम करते हैं....और अगर उसके पास कोई काम हुआ तो वो जरुर मुझे बुलाएगा...हम लोग खाना खा के वापस आ गए....दिन में कुछ खाया नहीं था...रात में भी खाते समय भूख से ज्यादा पैसे का ध्यान था..सीमा ने हिसाब लगा के पहले ही बता दिया की कितना खाना खा सकते हैं हम लोग...उतना ही खाया..पेट तो नहीं भरा लेकिन फिर भी.....वहां से हम अपनी जगह पर वापस आ गए...रात हो गयी थी और फिर से बस अड्डे में अँधेरा होने लगा था......हम लोगों ने तय किया की हम बारी बारी से सो जायेंगे......पहले सीमा सोएगी और फिर जब वो उठ जाएगी तो फिर मैं सोऊंगा..........कुछ देर में सीमा मेरे बगल में लेट के सो गयी...हमारे पास एक चादर थी..हमने वही बिछा ली थी जमीन पर...मैं उसी के पास बैठा हुआ जाग रहा था...करीब दो घंटे बाद वो सो क उठी........
मैं – क्या हुआ? क्यों जाग गयी?
सीमा – अब आप सो जाओ.
मैं – नहीं. अभी कुछ देर और सो लो तुम. मैं उसके बाद सो जाऊंगा. मुझे अभी नींद नहीं आ रही है.
सीमा – ठीक है. लेकिन मुझे अभी उठाना पड़ेगा.
मैं – क्यों? अब क्यों उठ रही हो?
सीमा – अरे आज वो बिना किये सो गयी न..अब बहुत जोर से लगी है....आप देखो जल्दी से की कोई है तो नहीं.
मेरे अन्दर तो बिजली की फुर्ती आ गयी थी..मैंने फ़ौरन देखा की आसपास कोई है तो नहीं और फिर सीमा को ले के उसी अँधेरे कोने में बस के पीछे आ गया...सीमा अभी भी कुछ कुछ नींद में ऊंघ सी रही थी.......हम लोग जब एकदम कोने में आ गए तो सीमा ने मुझसे फिर से कहा की उसे कोई बाहर चलता हुआ दिख रहा है...मैंने उससे कहा की वहां कोई नहीं है मैंने देख लिया है...लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी......उसने मुझे जबरदस्ती भेज दिया...और कहा की बस के चरों तरफ देख के आना..ठीक से देखना की कहीं कोई हो न.....मैं चल दिया चक्कर लगाने की कहीं कोई है तो नहीं...मैं जैसे ही बस के सामने वाले हिस्से के पास पंहुचा मुझे लगा की कहीं से कुछ आवाज आ रही है...बहुत ही हलकी आवाज...मैंने जल्दी से दोनों तरफ देखा की कहाँ क्या हो रहा है..कौन शोर कर रहा है...लेकिन वहां कोई था नहीं तो शोर कौन करता..और फिर मुझे ध्यान आया की ये आवाज कहाँ से आ रही है..मैं तुरंत भगा और बस के पीछे आया...तब तक सीमा की सीटी बज चुकी थी और वो खड़ी हो के अपनी साडी नीचे कर रही थी..मैं उसके पास आ के रुक गया......मुझे बहुत बुरा लगा....मुझे उसकी ये बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी..अगर उसे नहीं पसंद था तो मुझसे साफ़ साफ़ कह देती..ऐसे चालाकी करने की क्या जरुरत थी......मैंने उससे कुछ नहीं कहा और वापस आ के अपनी जगह पर बैठ गया....वो भी आ के अपनी चादर पर लेट गयी....उसे पता चल गया था की उसकी इस हरकत से मैं बहुत नाराज हुआ हूँ...उसने मुझे मनाने की कोशिश नहीं की बल्कि चुपचाप सो गयी.........
ये भी अपने आप में एक विचित्र बात ही थी....आखिर क्यों मुझे ये देखना पसंद था और क्यों मुझे लगता था की ये तो मेरा हक है ये सब मुझे नहीं पता.......सीमा की उस हरकत से मैं इतना नाराज हुआ की कब मेरी नींद लग गयी मुझे नहीं पता....हम दोनों ही सो रहे थे..और सुबह सुबह करीब चार बजे सीमा की आँख खुली.....उसने हड़बड़ी में मुझे भी जगाया...
सीमा – उठिए. हम दोनों एक साथ सो रहे हैं मेरी तो आँख ही नहीं खुली समय से...आप कब सोये? अब उठ जाईये.
मैं – हाँ. मुझे पता नहीं कब नींद आ गयी....
सीमा – देखिये अभी उजाला थोडा थोडा ही हुआ है..मतलब कुछ देर में सुबह होने वाली है.हमें जल्दी चलना चाहिए.
मैं – कहाँ जाना है?
सीमा – भूल गए क्या? हमें सुलभ शौचालय नहीं मिलेगा. हमें अपना इन्तेजाम बाहर ही करना होगा. अब जल्दी से उठिए आप.
मैं – मुझे नींद आ रही है.
सीमा – देखिये मुझे पता है की आप मुझसे नाराज हैं....वो तो मैं ऐसे ही आपको छेड़ रही थी. आप तो बुरा मान गए....अब जल्दी से उठिए न....मुझे कितनी जोर की लगी है...जल्दी से चल के कहीं जगह ढूंढते हैं नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी....उठिए न...
मैं – थोडा सो लेने दो..
सीमा – नहीं .अब बिलकुल नहीं. इससे पहले की सूरज निकल आये हमें सब निपटा लेना चाहिए वरना फिर कहीं जगह ही नहीं मिलेगी....उठिए..आज कपडे भी बदल लेंगे..तीन दिन से इसी कपडे में हैं हम लोग..अब तो बदबू आने लगी है...उसके लिए कपडे उतारने होंगे न...तो कहीं ऐसी सुनसान जगह खोजने में भी समय लगेगा...अब जल्दी से उठिए न....उठ जाईये न...मुझे नंगी हो के कपडे बदलते नहीं देखना है क्या आपको?
( मैं तो वैसे भी सोने का नाटक ही कर रहा था....लेकिन ‘नंगी’ शब्द सुनते ही मेरे शरीर का एक और हिस्सा भी जाग गया....)
मैं – हाँ हाँ चलो....
सीमा – हा हा हा हा ...अब कैसे एकदम से आँख खुल गयी.....आप भी न बहुत चालू चीज हो...
हमें पता तो था नहीं की कहाँ जाना है....बस चले जा रहे थे.....कुछ दूर चलने पर एक जगह दिखी जहाँ एक ईमारत बन रही थी...बड़ी सी जगह थी...एक चौकीदार था लेकिन वो सो रहा था...और उसके सिवा हमें वहां कोई दूसरा दिखाई नहीं दिया....सीमा ने ही कहा की ये जगह ठीक रहेगी. यहाँ कोई है भी नहीं...हम ऊपर वाले माले पर चले जायेंगे....ईमारत बन रही है तो यहाँ जानवर का भी डर नहीं रहेगा....पेड़ पौधे खोजने से अच्छा है की यहीं कर लेन...मुझे भी उसकी बात ठीक लगी और हम उस चौकीदार से छुप के उस ईमारत के अन्दर आ गए....सीढियां बनी हुई थी...पूरी ईमारत ही खुली हुई थी....कहीं कोई दरवाजा खिड़की जैसी चीज नहीं लगी थी..हम ऊपर वाले माले में चले गए....उस ऊँचाई पर हमें कोई देख नहीं सकता था.......वहां ईंट गिट्टी जैसी बहुत सारी चीजें पड़ी हुई थी...हमें लगा की ये तो बहुत अच्छी जगह मिल गयी है हमने...अपना बैग हमने एक तरफ रख दिया...पानी हम बोतल में भर के ले ही आये थे.....कुछ ईंटें उठा के हमने उकडू बैठने के लिए जगह बना ली....अब ये हुआ की पहले कौन बैठे...सीमा ने मुझे कहा और मैंने सीमा को कहा....दोनों में से कोई नहीं माना..कोई भी राजी नहीं..वो मुझे कहती रही और मैं उसे कहता रहा.......सीमा जानती थी की मैं क्या चाहता हूँ....लेकिन आज न जाने क्यों वो मुझे अपनी सीटी से दूर ही रखना चाहती थी...मैं अभी इतना आगे नहीं बढ़ा था की उससे खुल के साफ़ साफ़ कह दूं की मुझे तुम्हारी चूत देखनी है.......वो भी मेरी इस झिझक को जानती थी और आज उसका भरपूर फायदा भी उठा रही थी......हमारी बहस बड़ी देर तक चलती रही और फिर ये तय हुआ की हम एकसाथ बैठेंगे....लेकिन आमने सामने नहीं बल्कि एक दुसरे के पीछे......जिससे हम एक दुसरे को देख न पायें....
मेरी बीती जिंदगी की कहानी --3
अगली सुबह हुई.....बस अड्डे पर धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी...हमें आज फिर से सुलभ शौचालय का उपयोग करना पड़ा...लेकिन आज सीमा ने मुझसे साफ़ शब्दों में कह दिया था की यह अंतिम बार है..हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं की हम इस काम के लिए भी पैसे चुकाएं.......उस समय उसकी बात का क्या परिणाम होगा ये सोचने का समय नहीं था....सीमा ने मुझे कहा की मैं सभी दुकानों पर जा के उन्हें अपने बारे में बताऊँ और उनसे कहूँ की किसी भी तरह का काम हो तो वो मुझे बुला सकते हैं.....मुझे अकेले जाने में बड़ा डर सा लग रहा था....तो सीमा भी मेरे साथ चलने को राजी हो गयी.....आप सभी ने देखा होगा की बस अड्डे पर कई तरह की दुकानें होती हैं...किताबों की...खाने की..होटल..पान की दूकान....यह सब उस बस अड्डे पर भी था...जिस सबसे पहली दुकान पर मैं गया वो एक किताबों की दूकान थी...मुझे ये याद था की सीमा ने कहा है की अपने बारे में बताना है...तो मैं उस दुकानदार को अपनी कहानी सुनाने लग गया की मैं किस गाँव से हूँ और मेरे पिताजी ने मुझे कैसे पाला है...दुकानदार को अपनी दूकान छोड़कर मेरी कहानी सुनना कुछ अजीब ही लगा होगा..इसलिए उसने झल्ला के मुझसे कहा की क्या चाहिए तुमको? मैं थोडा सहम गया और उसे जवाब दिया की आपके पास किसी भी तरह का काम हो तो मुझे बुला लीजियेगा...मैंने उसे अपना नाम बताया और बताया की मैं कहाँ बैठता हूँ....
वहां से आगे बढे तो सीमा ने मुझे रोक के समझाया की उसे अपनी जिंदगी की कहानी सुनाने की जरुरत नहीं है...सबको सिर्फ इतना बताओ की तुम और मैं पति पत्नी हैं और हम यही इसी बस अड्डे पर ही रहते हैं हर समय..हम काम खोज रहे हैं..और हम किसी भी तरह का काम करने को राजी हैं....तो उनके पास जब भी कोई भी काम हो वो हमें बुला सकते हैं.......मैंने उसकी बार याद कर ली और फिर एक एक दुकान वाले को जा के यही बात रट्टू तोते की तरह सुना दी.......देखिये ये सब बहुत पहले की बात है..तब के जमाने में और अब में बहुत फर्क है...तब लोग एक दुसरे की मदद करने में पीछे नहीं रहते थे...मैंने जिस जिस दूकान वाले से बात की उसमे से किसी ने भी मुझे कुछ गलत नहीं कहा..बल्कि सभी ने मेरी बात सुनी और कहा भी की अगर कोई काम हुआ तो हम बुला लेंगे.....उनसे बात करके मुझे बुरा नहीं लगा..अपने लिए काम मांगने का ये मेरा पहला अनुभव था लेकिन इसमें कुछ भी बुरा नहीं था.....अच्चा अनुभव था....दोपहर हो आई थी...हम लोगों ने सोचा की आज दिन में खाना नहीं खायेंग....अब हमारे पास सिर्फ इतने पैसे बचे थे की उससे रात का खाना और अगले दिन एक बार का खाना ही मिल सकता था...हमारे लिए ये जरुरी था की अब हमें कहीं से कुछ पैसे मिलने लगें....हम लोग दोपहर में अपनी ही जगह पर बैठे रहे....सीमा को उम्मीद थी की इस बस अड्डे में किसी न किसी को तो काम की जरुरत पड़ती ही होगी और वो जरुर हमें आवाज देगा......मैं तो बस वो कर रहा था जो सीमा मुझसे करवा रही थी.....दोपहर बीत गयी...शाम होना शुरू हो गयी थी लेकिन किसी ने हमें एक आवाज भी नहीं दी थी....हम दोनों के बीच ज्यादा बात नहीं हो रही थी..शायद दोनों के मन में ही ये चल रहा था की अगर यहाँ काम नहीं मिला तो क्या करेंगे..........
हम दोनों ही अपना उदास मन लिए चुपचाप बैठे हुए थे की कुछ देर में एक बस आ के रुकी...उसमे से जब सब सवारी उतर चुकी थी तब एक मोटा सा सेठ निकला और उसने बस के कंडक्टर को अपना सामना ऊपर से उतारने के लिए कहा..बस के ऊपर देखने पर पता चला रहा था की बहुत सामन है...बेचारा कंडक्टर भी सोच रहा होगा की कहाँ फंस गए....वो इधर उधर कुछ लोगों को खोज रहा था शायद जो उसकी मदद कर सकें....एक साथ मैंने और सीमा ने उसे ऐसा करते हुए देखा और सीमा ने मुझसे कहा की मैं उसे पास जा के उसका सामान उतरवा दूं.....मैंने एक पल की भी देरी नहीं की....उस बस के पास गया और उस कंडक्टर से कहा की मैं सामान उतरवा दूंगा....उसने मुझे हाँ कह दिया लेकिन यह भी कहा की और लोग भी चाहिए..ये अकेले के बस की बात नहीं है....मुझे लगा की और लोग न आयें तो अच्चा है..मैंने कह दिया की आप दोनों लोग नीचे हो जाओ मैं उपर से सामन उतर के देता जाऊंगा....दोनों माने नहीं लेकिन जब कोई और आदमी नहीं मिला तो मान गए..मैं ऊपर गया और मैंने सामान देखा...पास से देखने पर पता चला की ये तो मेरे बाएं हाथ का काम है,...गाँव में अनाज की 40-40 किलो की बोरियां मैं दो दो एक साथ उठा लिया करता था..यह तो कुछ भी नहीं है........जो लोग मेरी तरह गधे होते हैं उन्हें कुछ काम करने को मिल जाये तो बड़े खुश होते हैं..मैंने उन दोनों को नीचे से हट जाने को कह दिया..मैं ऊपर से एक एक बोरी लेता और उसे अपने कंधे पर रख के नीचे आता...फिर ऊपर जाता...आप लोगों ने बस के पीछे वाली सीढियां देखि होंगी..वो एकदम सीधी होती हैं. हर कोई चढ़ नहीं पता.....लेकिन गधों के लिए ऐसे काम बहुत आसान होते हैं जो इंसानों के बस के नहीं होते....वो बस कंडक्टर और वो सेठ दोनों ही ये देख के हैरान थे की जिस काम में उन्हें बहुत मुश्किल जान पड़ रही थी वो ऐसे आसानी से हो रहा है.....मैंने सब सामान उतर दिया...सेठ ने मुझे पुरे तीन रुपये दिए....उस समय इस तरह के काम के लिए इससे ज्यादा कुछ नहीं मिलता था.......बस कंडक्टर ने कहा की ये सेठ हर दुसरे तीसरे दिन बड़े शहर जा के इतना सामन लता है...उसे हमेशा ही मेरे जैसे आदमी की जरुरत होगी..मैंने उसे वही रटा रटाया पाठ सुना दिया की मैं काम खोज रहा हूँ और हर काम करूँगा....कंडक्टर मुझे तोते जैसा बोलता देख के थोडा हंसा भी...और फिर वो ये कह के चला गया की तुम मेहनती आदमी हो...तुम्हारे लिए काम की कोई कमी नहीं होगी.....बस पैसे के पीछे मत भागना और मेहनत करने से डरना मत.....
मैं वापस लौट के अपनी जगह पर आया...सीमा वहां बैठे बैठे सब देख रही थी......मैंने अपनी पहली कमाई उसके हाथ में दे दी...उसने उपर देख के भगवन को प्रणाम किया और फिर वो पैसे अपने अन्दर दाल लिए......उस समय मुझे ये नहीं पता था की उसे चोली कहते हैं.....बाद में पता चला था की उसका नाम क्या है....
सीमा – देखा...काम मिलना शुरू हो गया न...मैं न कहती थी की हम कुछ न कुछ कर ही लेंगे अपने लिए...
मैं – तीन रुपये तो मिले हैं.इसमें इतना क्या खुश हो रही हो. इतने में तो दो रोटी आएँगी बस.
सीमा – पैसा जरुरी नहीं है. जरुरी है काम. एक बार काम मिलने लगे तो पैसा अपने आप मिलने लगेगा. अच्छा ये बताओ उस सेठ से के कह रहे थे......
मैं- हाँ वो सेठ हर दुसरे तीसरे दिन इतना सामान ले के आता जाता है....और बस के कंडक्टर को भी बता दिया अपने बारे में जो आप सब को बताया था न...उसने भी कहा की मुझे खूब काम मिल जायेगा..
सीमा – ये तो बड़ी अच्छी खबर है....अब हमें दुखी नहीं होना चाहिए...इसी बस अड्डे पर हमें सब मिल जायेगा....
मैं – हाँ लेकिन यहाँ तो सब मेहनत वाले काम ही होंगे न...इसी तरह के काम की ये उठाओ वो रखो...
सीमा – तो आप कौन सा मीट्रिक पास हो की कोई आपको बाबु बना देगा...
मैं – हाँ ये भी ठीक कह रही हो....सुनो बहुत जोर से भूख लग रही है..सुबह से कुछ नहीं खाया और फिर अभी ये काम कर लिया तो भूख बहु तेज लग आई है..
सीमा – कुछ देर और रुक जाओ..फिर रात में खाना खाना ही है...
मैं – अभी क्यों नहीं?
सीमा – अभी से खा लोगे तो फिर रात में भूख लग आएगी..फिर क्या खाओगे? इसलिए थोडा रुक जाओ...
मैं – ठीक है...
सीमा – हमें हर दिन कम से कम 50 रुपये कमाने हैं तब ही हमारा काम चल सकेगा..
मैं – इतने में दोनों बार खाना मिलेगा ?
सीमा – नहीं. सिर्फ एक बार. रात में...दोनों बार खाने के लिए तो हमें कम से कम १०० रुपये चाहिए रोज के..
फिर हम दोनों ही चुप हो गए......शाम बीत चुकी थी...रात शुरू हो गयी थी....और इसी बीच मुझे एक काम और मिल गया..उसी किताब वाले की दूकान में कुछ सामान रखना था...वो काम भी कर दिया मैंने....हालाँकि वो काम बहुत छोटा सा था और उसने मुझे एक रुपये भी नहीं दिया लेकिन ये जरुर कहा की रोज सुबह चार से पांच बजे के बीच में उसके यहाँ अख़बार आता है...वो उठा के रखना और अक्सर कोई न कोई परचा उस अख़बार में डालना होता है...तो वो भी एक काम है...अगर मैं चहुँ तो सुबह उसकी दूकान पर आ जाऊंगा वो मुझे ये काम दे देगा.....मैंने लौट के ये बात सीमा को बताई..मुझे लगा की अच्छा है..सुबह सुबह ये काम मिल जायेगा तो ठीक है क्योंकि और कहीं तो उतनी सुबह काम मिलने से रहा...लेकिन सीमा ने मना कर दिया....
मैं – क्या हर्ज है उसकी दूकान का काम करने में..? उतनी सुबह हमें और कोई काम नहीं मिलेगा.
सीमा – जानती हूँ. लेकिन वो महीने भर के काम के दस रुपये देगा..
मैं – हाँ तो काम भी तो सिर्फ एक घंटे का है और उसमे तो कोई मेहनत भी नहीं लगेगी. जरा सा काम है.
सीमा – नहीं. उस समय हमें एक दूसरा काम होगा.
मैं – उस समय और कौन सा काम होगा?
सीमा – हम रोज सुबह अपने नित्य कर्म के लिए चार रुपये खर्च कर देते हैं...ये हमें बंद करना होगा.
मैं – तो क्या करेंगे? क्या वो चीज ही बंद कर देन? वो तो कर नहीं सकता. सुबह सुबह जरुरत तो पड़ेगी ही.
सीमा – जानती हूँ. लेकिन हम उस काम के लिए पैसे नहीं खर्च कर सकते.
मैं – बिना पैसे खर्च किये वो आदमी हमें अन्दर नहीं जाने देगा.
सीमा – बिना पैसे खर्च किये भी ये काम हो सकता है.
मैं – कैसे हो सकता है??? वो सुलभ शौचालय वाला आदमी हमें बिना पैसे दिए अन्दर नहीं जाने देगा.
सीमा – बिना पैसे खर्च किये भी ये काम हो सकता है.
मैं – कैसे हो सकता है??? वो सुलभ शौचालय वाला आदमी हमें बिना पैसे दिए अन्दर नहीं जाने देगा.
सीमा – तो क्या अभी तक हम हमेशा वहां जा के ही करते आये हैं? जब से जनम लिया है हमारे घर में सुलभ शौचालय था क्या? हमारे गाँव में था क्या? नहीं था न. हमेशा बिना पैसा दिए किये न ये काम..तो अब भी वैसे ही करेंगे.
मैं – वो तो गाँव था. ये तो शहर है. यहाँ ऐसे कहीं बैठ जायेंगे तो कोई कुछ कहेगा नहीं?
सीमा – कहेगा. इसिलए हमें सुबह सुबह ही अपना काम ख़त्म कर लेना होगा. इसीलिए कह रही हूँ की हम उस किताब वाले के यहाँ काम नहीं कर सकते..क्योंकि हमें कहीं अपने काम के लिए जगह खोजनी होगी और किसी के देखने के पहले ही हमें रोज फारिग होना होगा.
मैं – ये तो गलत बात है....हम कोई जानवर नहीं हैं जो सड़क के किनारे ऐसे कहीं भी कर लेन...
सीमा – गाँव में तो करते थे न. तो अब क्यों नहीं?
मैं – ये तो शहर है. मैं ऐसे नहीं कर सकता. मैं तो वहीँ जाऊंगा. हमें पैसा मिलना लगा है न अब. अब हम जा सकते हैं वहां. हम वहीँ जायेंगे. हम ऐसे खुले में नहीं बैठेंगे.
सीमा – आज हमें सिर्फ तीन रुपये मिले हैं...वो तो कमर तोड़ मेहनत करने के बाद..उसे हम इस तरह के काम में खर्च कर दें ? मैं नहीं करुँगी. आपने ही कहा था न की सोचने का काम मेरा है..तो मैंने सोच लिया है.....और फिर जरा ये सोचिये की मैं लड़की हो के भी इसके लिए राजी हूँ तो आप आदमी हो के इतना क्यों नाटक कर रहे हैं? आपसे ज्यादा तो मुझे दिक्कत होनी चाहिए इस काम में...लेकिन मैं तो नहीं कुछ कह रही....अभी हमारी दशा ऐसी ही है. हमें ऐसे ही रहना होगा. हमें इस तरह की अकड़ नहीं दिखानी चाहिए. और यहाँ हमें जानता ही कौन है..किसी दिन किसी ने देख भी लिया तो कौन सी हमारी बदनामी हो जाएँगी...न आपके भाई भाभी को आपसे कुछ लेना देना है और ना ही मेरे माँ बाप को मुझसे कुछ मतलब है....फिर जब आगे चल के हमारी दशा ठीक हो जाएगी तो हम कुछ और सोच लेंगे....
मैं – नहीं. मैंने कुछ और सोच लिया है. मैं अभी उस आदमी से जा के बात करता हूँ...उसके यहाँ मैं काम कर लूँगा और बदले में वो हमें जाने देगा....
मैं बिना सीमा की बात सुने आगे चल दिया...सीमा वही बैठी रही...सुलभ शौचालय के पास जा के मैंने वहां के चौकीदार से अपनी पूरी बात कही...चौकीदार पहले तो बहुत ना नुकुर करता रहा..लेकिन फिर आख़िरकार उसने मेरी बात मान ली....हमारे बीच ये समझौता हो गया की मैं उसके यहाँ की पूरी सफाई करूँगा और बदले में वो हमें दिन में एक बार वहां का इस्तेमाल करने देगा...लेकिन ये बात उसके मालिक को पता नहीं चलनी चाहिए.....उसने मुझे कह दिया की अभी सफाई कर दो..फिर कल से रोज सुबह और रात में आ जाना सफाई करने.....मुझे लगा की मैंने तो खुद अपने दम पर एक काम खोज लिया....सीमा तो मुझे मना कर रही थी..लेकिन मैंने काम खोज लिया...और अपनी इस बेहूदा सफलता पर मैं बहुत ज्यादा खुश था....मन ही मन सोच रहा था की सब मुझे गधा समझते हैं लेकिन मैं तो इतना होशियार हूँ......इसी ख़ुशी में मैं अन्दर गया..और मुझे उस चौकीदार ने सफाई करने का सामान दे दिया.....कुछ ही देर हुई होगी मैं उस जगह से नाक दबा के भागता हुआ बाहर आया....वो चौकीदार मुझे देख के हंस रहा था और मेरा जी बहुत बुरी तरह से मचला रहा था...ऐसा लग रहा था की उलटी हो जाएगी लेकिन हो नहीं रही थी....कितना गन्दा था वहां सब कुछ.......मैं गधा जरुर था लेकिन ये काम कभी नहीं किया था मैंने..ऐसा कभी देखा भी नहीं था.....मुझसे वो सब देखना करना सहन ही नहीं हुआ.....शायद चौकीदार को मेरी हालत देख के कुछ रहम आ गया होगा...उसने मेरे हाथ से सब सामान लिया और मुझे कहा की हमारी कमाई ही वही एक दो रुपये की है. हमें तुम्हारी दिक्कत समझ में आती है लेकिन बताओ हम तुमसे न लें तो खुद क्या खाएं? हमारा भी तो इसी कमाई से पेट चलता है न........मुझे उस चौकीदार पर गुस्सा नहीं आया...मुझे सीमा पर गुस्सा नहीं आया...मुझे खुद पर भी गुस्सा नहीं आया.....जब दशा इतनी बुरी हो तो गुस्सा नहीं आता...रोना आता है....मुझे लगा की अभी अभी इतना खुश था की मैंने एक काम और खोज लिया और अभी ये हालत है की अपने आप पे रोना आ रहा है.....मैं वापस लौट आया....और सीमा को पूरी बात बता दी...
सीमा – तो इसमें इतना दुखी होने की क्या बात है??
मैं – मुझे लगा की मैं ये काम कर लूँगा तो हमें रोज रोज परेशां नहीं होना पड़ेगा.
सीमा – आपको किसने कहा की आप कुछ सोचिये? बेकार में आप परेशान हो रहे हैं...थोड़ी देर का काम रहा करेगा..हम किसी तरह से कोई रास्ता निकाल लेंगे..आप दुखी न हों...
मैं – ठीक है...जैसा तुम कहो..
सीमा – मुझे तो लग रहा था की आप इस बात से खुश होंगे की रोज सुबह सुबह आपको सीटी सुनने को देखने को मिलेगी...लेकिन आप तो जरा भी खुश नहीं हैं.
मेरे दिमाग में और मेरे शरीर में और ना जाने कहाँ कहाँ कितनी सारी घंटियाँ बज गयी......हाँ इस बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं था....अरे वाह ये तो कितना मजेदार होगा.....एक ही पल में सब दुःख दर्द दूर हो गया और मैं राजी हो गया की हाँ अब रोज सुबह ऐसा ही किया जायेगा......सीमा ने मेरे चेहरे की ख़ुशी को पहचान लिया..उसकी भी मुस्कराहट छुपाये नहीं छुप रही थी.....
हम लोग फिर से उसी होटल में गए और रात का खाना खाया....इस बार उस होटल के मालिक ने हमसे कुछ बात भी की....उसने बताया की उसके यहाँ भी काम करने वाले लोग सब रोज के वेतन पर काम करते हैं....और अगर उसके पास कोई काम हुआ तो वो जरुर मुझे बुलाएगा...हम लोग खाना खा के वापस आ गए....दिन में कुछ खाया नहीं था...रात में भी खाते समय भूख से ज्यादा पैसे का ध्यान था..सीमा ने हिसाब लगा के पहले ही बता दिया की कितना खाना खा सकते हैं हम लोग...उतना ही खाया..पेट तो नहीं भरा लेकिन फिर भी.....वहां से हम अपनी जगह पर वापस आ गए...रात हो गयी थी और फिर से बस अड्डे में अँधेरा होने लगा था......हम लोगों ने तय किया की हम बारी बारी से सो जायेंगे......पहले सीमा सोएगी और फिर जब वो उठ जाएगी तो फिर मैं सोऊंगा..........कुछ देर में सीमा मेरे बगल में लेट के सो गयी...हमारे पास एक चादर थी..हमने वही बिछा ली थी जमीन पर...मैं उसी के पास बैठा हुआ जाग रहा था...करीब दो घंटे बाद वो सो क उठी........
मैं – क्या हुआ? क्यों जाग गयी?
सीमा – अब आप सो जाओ.
मैं – नहीं. अभी कुछ देर और सो लो तुम. मैं उसके बाद सो जाऊंगा. मुझे अभी नींद नहीं आ रही है.
सीमा – ठीक है. लेकिन मुझे अभी उठाना पड़ेगा.
मैं – क्यों? अब क्यों उठ रही हो?
सीमा – अरे आज वो बिना किये सो गयी न..अब बहुत जोर से लगी है....आप देखो जल्दी से की कोई है तो नहीं.
मेरे अन्दर तो बिजली की फुर्ती आ गयी थी..मैंने फ़ौरन देखा की आसपास कोई है तो नहीं और फिर सीमा को ले के उसी अँधेरे कोने में बस के पीछे आ गया...सीमा अभी भी कुछ कुछ नींद में ऊंघ सी रही थी.......हम लोग जब एकदम कोने में आ गए तो सीमा ने मुझसे फिर से कहा की उसे कोई बाहर चलता हुआ दिख रहा है...मैंने उससे कहा की वहां कोई नहीं है मैंने देख लिया है...लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी......उसने मुझे जबरदस्ती भेज दिया...और कहा की बस के चरों तरफ देख के आना..ठीक से देखना की कहीं कोई हो न.....मैं चल दिया चक्कर लगाने की कहीं कोई है तो नहीं...मैं जैसे ही बस के सामने वाले हिस्से के पास पंहुचा मुझे लगा की कहीं से कुछ आवाज आ रही है...बहुत ही हलकी आवाज...मैंने जल्दी से दोनों तरफ देखा की कहाँ क्या हो रहा है..कौन शोर कर रहा है...लेकिन वहां कोई था नहीं तो शोर कौन करता..और फिर मुझे ध्यान आया की ये आवाज कहाँ से आ रही है..मैं तुरंत भगा और बस के पीछे आया...तब तक सीमा की सीटी बज चुकी थी और वो खड़ी हो के अपनी साडी नीचे कर रही थी..मैं उसके पास आ के रुक गया......मुझे बहुत बुरा लगा....मुझे उसकी ये बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी..अगर उसे नहीं पसंद था तो मुझसे साफ़ साफ़ कह देती..ऐसे चालाकी करने की क्या जरुरत थी......मैंने उससे कुछ नहीं कहा और वापस आ के अपनी जगह पर बैठ गया....वो भी आ के अपनी चादर पर लेट गयी....उसे पता चल गया था की उसकी इस हरकत से मैं बहुत नाराज हुआ हूँ...उसने मुझे मनाने की कोशिश नहीं की बल्कि चुपचाप सो गयी.........
ये भी अपने आप में एक विचित्र बात ही थी....आखिर क्यों मुझे ये देखना पसंद था और क्यों मुझे लगता था की ये तो मेरा हक है ये सब मुझे नहीं पता.......सीमा की उस हरकत से मैं इतना नाराज हुआ की कब मेरी नींद लग गयी मुझे नहीं पता....हम दोनों ही सो रहे थे..और सुबह सुबह करीब चार बजे सीमा की आँख खुली.....उसने हड़बड़ी में मुझे भी जगाया...
सीमा – उठिए. हम दोनों एक साथ सो रहे हैं मेरी तो आँख ही नहीं खुली समय से...आप कब सोये? अब उठ जाईये.
मैं – हाँ. मुझे पता नहीं कब नींद आ गयी....
सीमा – देखिये अभी उजाला थोडा थोडा ही हुआ है..मतलब कुछ देर में सुबह होने वाली है.हमें जल्दी चलना चाहिए.
मैं – कहाँ जाना है?
सीमा – भूल गए क्या? हमें सुलभ शौचालय नहीं मिलेगा. हमें अपना इन्तेजाम बाहर ही करना होगा. अब जल्दी से उठिए आप.
मैं – मुझे नींद आ रही है.
सीमा – देखिये मुझे पता है की आप मुझसे नाराज हैं....वो तो मैं ऐसे ही आपको छेड़ रही थी. आप तो बुरा मान गए....अब जल्दी से उठिए न....मुझे कितनी जोर की लगी है...जल्दी से चल के कहीं जगह ढूंढते हैं नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी....उठिए न...
मैं – थोडा सो लेने दो..
सीमा – नहीं .अब बिलकुल नहीं. इससे पहले की सूरज निकल आये हमें सब निपटा लेना चाहिए वरना फिर कहीं जगह ही नहीं मिलेगी....उठिए..आज कपडे भी बदल लेंगे..तीन दिन से इसी कपडे में हैं हम लोग..अब तो बदबू आने लगी है...उसके लिए कपडे उतारने होंगे न...तो कहीं ऐसी सुनसान जगह खोजने में भी समय लगेगा...अब जल्दी से उठिए न....उठ जाईये न...मुझे नंगी हो के कपडे बदलते नहीं देखना है क्या आपको?
( मैं तो वैसे भी सोने का नाटक ही कर रहा था....लेकिन ‘नंगी’ शब्द सुनते ही मेरे शरीर का एक और हिस्सा भी जाग गया....)
मैं – हाँ हाँ चलो....
सीमा – हा हा हा हा ...अब कैसे एकदम से आँख खुल गयी.....आप भी न बहुत चालू चीज हो...
हमें पता तो था नहीं की कहाँ जाना है....बस चले जा रहे थे.....कुछ दूर चलने पर एक जगह दिखी जहाँ एक ईमारत बन रही थी...बड़ी सी जगह थी...एक चौकीदार था लेकिन वो सो रहा था...और उसके सिवा हमें वहां कोई दूसरा दिखाई नहीं दिया....सीमा ने ही कहा की ये जगह ठीक रहेगी. यहाँ कोई है भी नहीं...हम ऊपर वाले माले पर चले जायेंगे....ईमारत बन रही है तो यहाँ जानवर का भी डर नहीं रहेगा....पेड़ पौधे खोजने से अच्छा है की यहीं कर लेन...मुझे भी उसकी बात ठीक लगी और हम उस चौकीदार से छुप के उस ईमारत के अन्दर आ गए....सीढियां बनी हुई थी...पूरी ईमारत ही खुली हुई थी....कहीं कोई दरवाजा खिड़की जैसी चीज नहीं लगी थी..हम ऊपर वाले माले में चले गए....उस ऊँचाई पर हमें कोई देख नहीं सकता था.......वहां ईंट गिट्टी जैसी बहुत सारी चीजें पड़ी हुई थी...हमें लगा की ये तो बहुत अच्छी जगह मिल गयी है हमने...अपना बैग हमने एक तरफ रख दिया...पानी हम बोतल में भर के ले ही आये थे.....कुछ ईंटें उठा के हमने उकडू बैठने के लिए जगह बना ली....अब ये हुआ की पहले कौन बैठे...सीमा ने मुझे कहा और मैंने सीमा को कहा....दोनों में से कोई नहीं माना..कोई भी राजी नहीं..वो मुझे कहती रही और मैं उसे कहता रहा.......सीमा जानती थी की मैं क्या चाहता हूँ....लेकिन आज न जाने क्यों वो मुझे अपनी सीटी से दूर ही रखना चाहती थी...मैं अभी इतना आगे नहीं बढ़ा था की उससे खुल के साफ़ साफ़ कह दूं की मुझे तुम्हारी चूत देखनी है.......वो भी मेरी इस झिझक को जानती थी और आज उसका भरपूर फायदा भी उठा रही थी......हमारी बहस बड़ी देर तक चलती रही और फिर ये तय हुआ की हम एकसाथ बैठेंगे....लेकिन आमने सामने नहीं बल्कि एक दुसरे के पीछे......जिससे हम एक दुसरे को देख न पायें....
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