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Wednesday, January 2, 2013
एक नम्बर के हरामी बूढ़े
एक नम्बर के हरामी बूढ़े
कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिसमें आदमी खूद-ब-खुद खिंचता चला जाता है। चाहे वो चाहे या न चाहे। आदमी कितना भी समझदार हो लेकिन कभी-कभी उसकी समझदारी उसे ले डूबती है। ऐसी ही एक घटना मेरे साथ हुई थी। जिसे आज तक मेरे अलावा कोई नही जानता है। आज मैं यही बात आपसे शेयर करती हूँ।
मैं रितुका, मेरे पति का नाम है रोहन, उम्र 32 साल, मुम्बई के विले पारले में रहती हूँ। मेरे पति एक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में काम करते हैं। मैं भी एक छोटी सी सॉफ्टवेर कंपनी में काम करती हूँ। ये बात काफ़ी साल पहले की है तब हम शहर से दूर मलाड के पास एक फ्लैट में रहते थे। हमारी शादी उसी फ्लैट में हुई थी। मीया बीवी अकेले ही उस फ्लैट में रहते थे। उस फ्लैट में हमसे ऊपर एक परिवार रहता था। उस परिवार में एक जवान कपल थे नाम था सपना और दीपांकर। उनके कोई बच्चा नही था। साथ में उनके ससुर जी भी रहते थे। उनकी उम्र कोई 60 साल के आस पास थी उनका नाम कैलाश शर्मा था मैं सपना से बहुत जल्दी काफ़ी घुल मिल गयी। अक्सर वो हमारे घर आती या मैं उसके घर चली जाती थी। मैं अक्सर घर में स्कर्ट और टी शर्ट में रहती थी। मैं स्कर्ट के नीच छोटी सी एक कक्षी पहनती थी। मगर टी शर्ट के नीचे कुछ नही पहनती थी। इससे मेरे बड़े बड़े बूब्स हल्की हरकत से भी उछल उछल जाते थे। मेरे निपल्स टी शर्ट के बाहर से ही सॉफ सॉफ नज़र आते थे।
सपना के ससुर का नाम मैं जानती थी। उन्हे बस शर्मा अंकल कहती थी। मैने महसूस किया शर्मा अंकल मुझ में कुछ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट लेते थे। जब भी मैं उनके सामने होती उनकी नज़रें मेरे बदन पर फिरती रहती थी। मुझे उन पर बहुत गुस्सा आता था। मैं उनकी बहू की उम्र की थी मगर फिर भी वो मुझ पर गंदी नियत रखते थे। लेकिन उनका हँसमुख और लापरवाह स्वाभाव धीरे धीरे मुझ पर असर करने लगा। धीरे धीरे मैं उनकी नज़रों से वाकिफ़ होती गयी। अब उनका मेरे बदन को घूरना अच्छा लगने लगा। मैं उनकी नज़रों को अपनी चूचियो पर या अपने स्कर्ट के नीचे से झाँकती नग्न टाँगों पर पाकर मुस्कुरा देती थी
सपना थोड़ी आलसी किस्म की थी इसलिए कहीं से कुछ भी मंगवाना हो तो अक्सर अपने ससुर जी को ही भेजती थी। मेरे घर भी अक्सर उसके ससुर जी ही आते थे। वो हमेशा मेरे संग ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुजारने की कोशिश में रहते थे। उनकी नज़रे हमेशा मेरी टी शर्ट के गले से झाँकते बूब्स पर रहती थी। मैं पहनावे के मामले में थोड़ा बेफ़िक्र ही रहती थी। अब जब भगवान ने इतना सेक्सी शरीर दिया है तो थोड़ा बहुत एक्सपोज़ करने में क्या हर्ज़ है। वो मुझे अक्सर छुने की भी कोशिश करते थे लेकिन मैं उन्हे ज़्यादा लिफ्ट नही देती थी।
अब असल घटना पर आया जाय। अचानक खबर आई कि मम्मी की तबीयत खराब है। मैं अपने मायके इन्दौर चली आई। उन दिनो मोबाइल नही था और टेलिफोन भी बहुत कम लोगों के पास होते थे। कुछ दिन रह कर मैं वापस मुंबई आ गयी। मैने रोहन को पहले से कोई सूचना नही दी थी क्योंकि हमारे घर में टेलिफोन नही था। मैं शाम को अपने फ्लैट में पहुँची तो पाया की दरवाजे पर ताला लगा हुआ है। वहीं दरवाजे के बाहर समान रख कर रोहन का इंतजार करने लगी। रोहन शाम 8 बजे तक घर आ जाता था। लेकिन जब 9 हो गये तो मुझे चिंता सताने लगी। फ्लैट में ज़्यादा किसी से जान पहचान नही थी। मैने सपना से पूछने का विचार किया। मैने ऊपर जा कर सपना के घर की कालबेल बजाई। अंदर से टी.वी. चलने की आवाज़ आ रही थी। कुछ देर बाद दरवाजा खुला। मैने देखा सामने शर्मा जी खड़े हैं।
" नमस्ते…वो सपना है क्या?" मैने पूछा।
" सपना तो दीपांकर के साथ हफ्ते भर के लिए गोवा गयी है घूमने। वैसे तुम कब आई?"
" जी अभी कुछ देर पहले। घर पर ताला लगा है रोहन…?"
" रोहन तो गुजरात गया है अफीशियल काम से कल तक आएगा।" उन्होंने मुझे मुस्कुरा कर देखा- "तुम्हे बताया नही"
" नही अंकल उनसे मेरी कोई बात ही नही हुई। वैसे मेरी प्लानिंग कुछ दिनो बाद आने की थी।"
"तुम अंदर तो आओ" उन्होंने कहा मैं असमंजस सी अपनी जगह पर खड़ी रही।
"सपना नही है तो क्या हुआ मैं तो हूँ। तुम अंदर तो आओ।" कहकर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अंदर खींचा। मैं कमरे में आ गयी। उन्होंने आगे बढ़ कर दरवाजे को बंद करके कुण्डी लगा दी। मैने झिझकते हुए ड्रॉयिंग रूम में कदम रखा। जैसे ही सेंटर टेबल पर नज़र पड़ी मैं थम गयी। सेंटर टेबल पर बियर की बॉटल्स रखी हुई थी। आस पास स्नॅक्स बिखरे पड़े थे। एक सिंगल सोफे पर कामदार अंकल बैठे हुए थे। उनके एक हाथ में बियर का गिलास था। जिसमें से वो हल्की हल्की चुस्कियाँ ले रहे थे। मैं उस महौल को देख कर चौंक गयी। शर्मा अंकल ने मेरी झिझक को समझा और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा-
" अरे घबराने की क्या बात है। आज इंडिया- पाकिस्तान मैच चल रहा है ना। सो हम दोनो दोस्त मैच को एंजाय कर रहे थे।" मैने सामने देखा टीवी पर इंडिया पाकिस्तान का मैच चल रहा था। मेरी समझ में नही आ रहा था कि मेरा क्या करना उचित होगा। यहाँ इनके बीच बैठना या किसी होटेल में जाकर ठहरना। घर के दरवाजे पर इंटरलॉक था इसलिए तोडा भी नही जा सकता था। मैं वहीं सोफे पर बैठ गयी। मैने सोचा मेरे अलावा दोनो आदमी बुजुर्ग हैं इनसे डरने की क्या ज़रूरत है। लेकिन रात भर रुकने की बात जहाँ आती है तो एक बार सोचना ही पड़ता है। मैं इन्ही विचारों में गुमसुम बैठी थी लेकिन उन्होंने मानो मेरे मन में चल रहे उथल पुथल को भाँप लिया था।
"क्या सोच रही हो? कहीं और रुकने से अच्छा है रात को तुम यहीं रुक जाओ। तुम सपना और दीपांकर के बेड रूम में रुक जाना मैं अपने कमरे में सो जाउन्गा। भाई मैं तुम्हे काट नही लूँगा। अब तो बूढ़ा हो गया हूँ। हा..हा..हा.."
उनके इस तरह बोलने से महौल थोड़ा हल्का हुआ। मैने भी सोचा कि मैं बेवजह एक बुजुर्ग आदमी पर शक कर रही हूँ। मैं उनके साथ बैठ कर मैच देखने लगी। पाकिस्तान बैटिंग कर रही थी। खेल काफ़ी काँटे का था इसलिए रोमांच पूरा था। मैने देखा दोनो बीच बीच में कनखियों से स्कर्ट से बाहर झाँकती मेरी गोरी टाँगों को और टी शर्ट से उभरे हुए मेरे बूब्स पर नज़र डाल रहे थे। पहले पहले मुझे कुछ शर्म आई लेकिन फिर मैने इस ओर गौर करना छोड़ दिया। मैं सामने टीवी पर चल रहे खेल का मज़ा ले रही थी। जैसे ही कोई आउट होता हम सब खुशी से उछल पड़ते और हर शॉट पर गलियाँ देने लगते। ये सब इंडिया पाकिस्तान मैच का एक कामन सीन रहता है। हर बॉल के साथ लगता है सारे हिन्दुस्तानी खेल रहे हों।
कुछ देर बाद शर्मा अंकल ने पूछा, "रितुका तुम कुछ लोगी? बियर या जिन…?"
मैने ना में सिर हिलाया लेकिन बार बार रिक्वेस्ट करने पर मैने कहा, "बियर चल जाएगी...."
उन्होंने एक बॉटल ओपन कर के मेरे लिए भी एक गिलास भरा फिर हम "चियर्स" बोल कर अपने अपने गिलास से सीप करने लगे।
शर्मा अंकल ने दीवार पर लगी घड़ी पर निगाह डालते हुए कहा" अब कुछ खाने पीने का इंतेज़ाम किया जाय"-उन्होने मेरे चेहरे पर निगाह गढ़ाते हुए कहा-" तुमने शाम को कुछ खाया या नही?"
मैं उनके इस प्रश्न पर हड़बड़ा गयी- " हां मैने खा लिया था।"
"तुम जब झूठ बोलती हो तो बहुत अच्छी लगती हो। पास के होटेल से तीन खाने का ऑर्डर दे दे और बोल कि जल्दी भेज देगा" कंदर अंकल ने फोन करके। खाना मंगवा लिया।
एक गिलास के बाद दूसरा गिलास भरते गये और मैं उन्हे सीप कर कर के ख़तम करती गयी। धीरे धीरे बियर का नशा नज़र आने लगा। मैं भी उन लोगों के साथ ही चीख चिल्ला रही थी, तालियाँ बजा रही थी।
कुछ देर बाद खाना आ गया । हमने उठकर खाना खाया फिर वापस आकर सोफे पर बैठ गये। शर्मा अंकल और कामदार अंकल अब बड़े वाले सोफे पर बैठे। वो सोफा टीवी के ठीक सामने रखा हुआ था। मैं दूसरे सोफे पर बैठने लगी तो शर्मा अंकल ने मुझे रोक दिया-
"अरे वहाँ क्यों बैठ रही हो। यहीं पर आजा यहाँ से अच्छा दिखेगा। दोनो सोफे के दोनो किनारों पर सरक कर मेरे लिए बीच में जगह बना दिए। मैं दोनो के बीच आकर बैठ गयी। फिर हम मैच देखने लगे। वो दोनो वापस बियर लेने लगे। मैं बस उनका साथ दे रही थी। बातों बातों में आज मैने ज़्यादा ले लिया था इसलिए अब मैं कंट्रोल कर रही थी जिससे कहीं बहक ना जाउ। आप सब तो जानते ही होंगे कि इंडिया-पाकिस्तान के बीच मैच हो तो कैसा महौल रहता है। शारजाह के मैदान में मैच हो रहा था। इंडियन कैप्टन था अज़हरुद्दीन।
" आज इंडियन्स जीतना ही नही चाहते हैं।" शर्मा जी ने कहा
" ये ऐसे खेल रहे हैं जैसे पहले से सट्टेबाज़ी कर रखी हो।" कंदर अंकल ने कहा।
"आप लोग इस तरह क्यों बोल रहे हैं? देखना इंडिया जीतेगी।" मैने कहा
" हो ही नही सकता। शर्त लगा लो इंडिया हार कर रहेगी" शर्मा अंकल ने कहा।
तभी एक और छक्का लगा। " देखा…देखा…. " शर्मा अंकल ने मेरी पीठ पर एक हल्के से धौल जमाया " मेरी बात मानो ये सब मिले हुए हैं।"
खेल आगे बढ़ने लगा। तभी एक विकेट गिरा तो हम तीनो उछल पड़े। मैं खुशी से शर्मा अंकल की जाँघ पर एक ज़ोर की थपकी दे कर बोली "देखा अंकल? आज इनको कोई नही बचा सकता। इनसे ये स्कोर बन ही नही सकता।" मैं इसके बाद वापस खेल देखने में बिज़ी हो गयी। मैं भूल गयी थी कि मेरा हाथ अभी भी शर्मा अंकल की जांघों पर ही पड़ा हुआ है। शर्मा अंकल की निगाहें बार बार मेरी हथेली पर पड़ रही थी। उन्होंने सोचा शायद मैं जान बूझ कर ऐसा कर रही हूँ। उन्होंने भी बात करते करते अपना एक हाथ मेरा स्कर्ट जहाँ ख़त्म हो रहा था वहाँ पर मेरी नग्न टांग पर रख दिया। मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ और मैने जल्दी से अपना हाथ उनकी जांघों पर से हटा दिया। उनका हाथ मेरी टाँगों पर रखा हुआ था। कंदार अंकल ने मेरे कंधे पर अपनी बाँह रख दी। मुझे भी कुछ कुछ मज़ा आने लगा।
अब लास्ट तीन ओवर बचे हुए थे। खेल काफ़ी टक्कर का हो गया था। एक तरफ जावेद मियाँदाद खेल रहा था। लेकिन उसे भी जैसे इंडियन बौलर्स ने बाँध कर रख दिया। खेल के हर बॉल के साथ हम उछल पड़ते। या तो खुशियाँ मनाते या बेबसी में साँसें छोड़ते। उछल कूद में कई बार उनकी कोहनियाँ मेरे बूब्स से टकराई। पहले तो मैने सोचा शायद ग़लती से उनकी कोहनी मेरे बूब्स को छू गयी होगी लेकिन जब ये ग़लती बार बार होने लगी तो उनके ग़लत इरादे की भनक लगी।
आख़िरी ओवर आ गया अज़हर ने बॉल चेतन शर्मा को पकड़ाई।
" इसको लास्ट ओवर काफ़ी सोच समझ कर करना होगा सामने मियाँदाद खेल रहा है।"
" अरे अंकल देखना ये मियाँदाद की हालत कैसे खराब करता है।" मैने कहा
"नही जीत सकती इंडिया की टीम नही जीत सकती लिख के लेलो मुझसे। आज पाकिस्तान के जीतने पर मैं शर्त लगा सकता हूँ।" शर्मा अंकल ने कहा।
" और मैं भी शर्त लगा सकती हूँ की इंडिया ही जीतेगी" मैने कहा। आख़िरी दो बॉल बचने थे खेल पूरी तरह इंडिया के फेवर में चला गया था।
"मियाँदाद कुछ भी कर सकता है। कुछ भी। इसे आउट नही कर सके तो कुछ भी हो सकता है।" शर्मा अंकल ने फिर जोश में कहा।
" अब तो मियाँदाद तो क्या उसके फरिश्ते भी आ जाएँ ना तो भी इनको हारने से नही बचा सकते।"
"चलो शर्त हो जाए।" शर्मा अंकल ने कहा।
" हां हां हो जाए।।" कंदर अंकल ने भी उनका साथ दिया। मैने पीछे हटने को अपनी हार मानी और वैसे भी इंडिया की जीत तो पक्की थी। लास्ट बॉल बचा था और जीतने के लिए पाँच रन चाहिए थे। अगर एक चोका भी लगता तो दोनो टीम टाइ पर होते। जीत तो सिर्फ़ एक सिक्स ही दिला सकती थी जो कि इतने टेन्स मोमेंट में नामुमकिन था।
"बोलो अब भगोगे तो नहीं। आख़िरी बॉल और पाँच रन। चार रन भी हो गये तो दोनो बराबर ही रहेंगे। जीतने के लिए तो सिर्फ़ छक्का चाहिए।" मैने गर्व से गर्दन अकड़ा कर शर्मा जी की तरफ देखा। शर्मा अंकल ने अपने कंधे उचकाय कहा कुछ नही। उनको भी लग गया था कि आज इंडिया ही जीतेगी। फील्डर्स सारे बाउंड्री पर लगा दिए गये थे। मैने उनसे पूछा-
"सोच लो...। अब शर्त लगाओगे क्या। 99% तो इंडिया जीत ही चुकी है।"
"शर्त तो हम लगाएँगे ही। देखना मियाँदाद बैटिंग कर रहा है। वो पूरी जान लगा देगा।" शर्मा अंकल ने अपनी हाथ से फिसलती हुई हेकड़ी को वापस बटोरते हुए कहा।
"ठीक है हो जाए शर्त।" कह कर मैने अपने एक हाथ शर्मा अंकल के हाथ में दिया और एक हाथ कंदर अंकल के हाथ में दिया।
"अगर इंडिया जीती तो……………….?" शर्मा अंकल ने बात मेरे लिए अधूरी छोड़ दी।
"तो आप दोनो अलग अलग मुझे ट्रीट देंगे। साथ में हम लोगों की फॅमिली भी रहेगी। मक्डोनल्ड्स मे। मंजूर?" मैने उनसे कहा। दोनो ने तपाक से हामी भर दी।
"और अगर पाकिस्तान जीत गयी तो…...?"-कंदर अंकल ने भी शर्त में शामिल होते हुए कहा।
"तो रितुका वही करेगी जो हम दोनो कहेंगे। मंजूर है?" शर्मा अंकल ने कहा
"क्या करना पड़ेगा?" मैने हंसते हुए पूछा। मैं सोच भी नही पा रही थी कि मैं किस तरह इन दोनो बूढो के चंगुल में फँसती जा रही हूँ।
"कुछ भी जो हमें पसंद होगा।" कंदर ने कहा।
"अरे कंदर छोड़ शर्त-वर्त ये लगा नही सकती।" शर्मा अंकल ने कहा।
"ठीक है हो जाए शर्त।" कह कर मैने अपना एक हाथ शर्मा अंकल के हाथ में दिया और एक हाथ कंदर अंकल के हाथ में दिया। दोनो ने अपने हाथ में मेरे हाथों को पकड़ लिया। दोनो मेरे बदन से सॅट गये। मैं दोनो के बीच सॅंडविच बनी हुई थी। ऐसे महौल में चेतन शर्मा ने दौड़ना शुरू किया। कमरे में महौल गर्म हो गया था। कुछ तो मैच के रोमांच से और कुछ हमारे बदन के एक दूसरे से सटने से। चेतन शर्मा दौड़ता हुआ आया और उसने पता नही क्यों एक फुलटोस गेंद जावेद मियाँदाद को फेंकी। हमारी साँसे थम गयी थी। जावेद मियाँदाद ने आख़िरी बॉल के पीछे आते हुए अपने बैट को लिफ्ट किया और बॉल तेजी से नीचे आती हुई बैट से टकराई। सब ऐसा लग रहा था जैसे स्लो मोशन में चल रहा हो। बॉल बैट से लग कर आसमान में उछली और लाखों करोड़ों दर्शक सिर्फ़ साँस रोके देखते ही रह गये। बॉल बिना ड्रॉप के बाउंड्री के बाहर जा कर गिरी। अंपाइयर ने छक्के का इशारा किया और पाकिस्तान जीत गयी। मुझे तो समझ में ही नही आया कि ये सब क्या चल रहा है। मैं बस मुँह फाडे टीवी की तरफ देख रही थी। यकीन तो मेरे साथ बैठे दोनो बुजुर्गों को भी नही हो रहा था कि ऐसे पोज़िशन से इंडिया हार भी सकती है। कुछ देर तक इसी तरह रहने के बाद दोनो चिल्ला उठे,
"हुरर्राह....हम जीत गये।" मैने मायूसी के साथ दोनो की ओर देखा।
"हम जीत गये।" मैं उनकी तरफ देख कर एक उदास सी मुस्कान दी "अब तुम हमारी शर्त पूरी करो।" शर्मा जी ने कहा।
"ठीक है बोलो क्या करना है।" मैने उनसे कहा।
"सोच लो फिर से बाद में अपने वादे से मुकर मत जाना।" शर्मा अंकल ने कहा।
" नही मैं नही मुकुरूँगी अपने वादे से। बोलो मुझे क्या करना पड़ेगा।" शर्मा जी ने मुस्कुराते हुए कंदर अंकल की तरफ देखा। दोनो की आँखें मिली और संवादों का कुछ आदान प्रदान हुआ।
"तू बोल कंदर.......इसे क्या करने को कहा जाए।" शर्मा अंकल ने कंदर अंकल से कहा।
" नही तूने शर्त लगाया है शर्मा तू ही इसके इनाम की घोषणा कर।"
शर्मा अंकल ने मेरी तरफ मुड़कर अपनी आवाज़ में रहस्यमयता लाते हुए कहा-" तुम हम दोनो को एक एक किस दोगी। फ्रेंच किस। तब तक जब तक हम तुम्हारे होंठों से अपने होंठ अलग नही करें।"
मुझे अपने चारों ओर पूरा कमरा घूमता हुआ सा लगा। मुझे समझ में ही नही आ रहा था कि क्या करूँ। मैं इन दोनो आदमियों के चंगुल में फँस गयी थी। मैने कुछ देर तक अपनी नज़रें ज़मीन पर गड़ाए रखीं फिर धीरे से कहा, "सिर्फ़ किस"
दोनो ने एक साथ कहा, "ठीक है।" मैं उठ कर खड़ी हो गयी।
" ठहरो इस तरह नही। जिंदगी में पहली बार इतना हसीन मौका मिला है तो इसका पूरा एंजाय करेंगे। " शर्मा अंकल ने कहा "कांदार पहले ये मुझे किस देगी" कंदर अंकल ने सिर हिलाया।
शर्मा अंकल डाइनिंग टेबल के पास से एक कुर्सी खींच कर उस पर बैठ गये। बिना हत्थे वाली कुर्सी पर बैठ कर मुझ से कहा, " आओ तुम मेरी गोद में बैठ कर मुझे किस करो।"
मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी। ऐसी बुरी स्थिती में अपने आप को पहली बार महसूस कर रही थी। वैसे तो मेरे पति के अलावा भी मेरे एक और आदमी से संबंध थे और मैं शादी से पहले ही अपने बॉयफ़्रेंड से सेक्स का मज़ा ले चुकी थी, लेकिन इतने बुजुर्ग आदमियों के साथ इस तरह का मौका पहली बार ही आया था।
मैं आकर उनकी गोद में बैठने लगी तो उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा, "ऐसे नही। अपने दोनो पैरों को फैला कर मेरी टाँगों के दोनो ओर अपने पैर रख कर मेरी गोद में बैठो। मैने वैसा ही किया। स्कर्ट पहना होने की वजह से टाँगें चौड़ी करने में किसी प्रकार की भी परेशानी नही हुई।
जैसे ही मैं उनकी गोद में बैठी उन्होंने मेरे कमर की इर्द-गिर्द अपनी बाहें डाल कर मुझे खींच कर अपने बदन से सटा लिया। मेरी तनी हुई चूचियाँ उनके सीने से दब गयी। मेरी कक्षी में छिपि योनि उसके लिंग से जा सटी। मैने महसूस किया की उनका लिंग तन चुका था। ये जानते ही मेरी नज़रें झुक गयी। मैने अपने काँपते हुए होंठ आगे बढ़ा कर उनके होंठों के सामने लाई। कुछ पल तक हम एक दूसरे के चेहरों को देखते रहे फिर मैने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उन्होंने अपने हाथों से मेरे चेहरे को सम्हाल रखा था। मैने भी अपने हाथों से उसके सिर को पीछे से पकड़ कर अपने होंठों पर दबा दिया। कुछ देर तक हम एक दूसरे के होंठों पर अपने होंठ फिराते रहे। शर्मा अंकल मेरे होंठों को हल्के हल्के अपने दन्तो से चबाते रहे। फिर मैने अपनी जीभ निकाली और उनके मुँह में डाल दिया। मेरी जीभ वहाँ उनकी जीभ से मिली। उनके मुँह से फ्रेश मिंट का स्मेल आ रहा था। हम दोनो की जीभ एक दूसरे के साथ लिपटने खेलने लेगे। उनके हाथ मेरे पूरे पीठ पर फिर रहे थे। एक हाथ से उन्होंने मेरे सिर को अपने मुँह पर दाब रहा था और दूसरा हाथ मेरी पीठ पर फिराते हुए नीचे की ओर गया। अचानक शर्मा अंकल के हाथ को मैने अपनी स्कर्ट के भीतर महसूस किया। उनके हाथ मेरी कक्षी के ऊपर फिर रहे थे। मैंने अचानक अपने दोनो बगलों के पास से दो हाथों को हम दोनो के बदन के बीच पहुँचा कर मेरे बूब्स को थामते हुए महसूस किया। ये कंदर अंकल के हाथ थे। उनके हाथ मेरे बूब्स को सहलाने लगे।
मेरी योनि गीली होने लगी। मुझे लग गया कि आज इन बूढो से अपना दामन बचाकर निकलना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। शर्मा जी अपने हाथों से मेरी कक्षी को एक ओर सरका कर मेरे एक नितंब को सहलाने लगे। शर्मा जी ने मेरे दोनो नितंब सहलाने और मसलने के बाद अब उंगलिया मेरी कक्षी के भीतर डालने की कोशिश करने लगे। मैं उनके चंगुल से निकलने की जी तोड़ कोशिश कर रही थी। मुझे लग रहा था मानो उनका ये किस सारी जिंदगी ख़त्म नही होगा लेकिन उन्होने आख़िर में मुझे आज़ाद कर ही दिया। मैं उनकी गोद में बैठे बैठे ही लंबी लंबी साँसे लेने लगी। अपने हार्ट बीट्स को कंट्रोल करने लगी जो कि किसी राजधानी एक्सप्रेस की तरह दौड़ा जा रहा था।
कंदर अंकल ने मेरी बाहों के नीचे से हाथ ले जाकर मेरे बदन को ठीक मेरे बूब्स के नीचे से पकड़ा। जिससे मेरे बड़े बड़े बूब्स शर्मा अंकल की तरफ उँचे हो गये। शर्मा अंकल ने ये देखकर मेरे बूब्स की चोटियों पर एक एक किस दिया। कंदर अंकल ने मुझे उनकी गोद से उठाया।
" शर्मा उठ अब मेरी बारी है।" मैं उनके सामने सिर झुकाए हुए खड़ी थी। शर्मा अंकल चेयर से उठ गये। उन की जगह कंदर अंकल कुर्सी पर बैठ गये। मैं वापस अपने पैरों को फैला कर उनकी गोद में जा बैठी। मैने अपने होंठ अब कंदर अंकल के होंठों पर लगा दिए। इनके मुँह से शर्मा अंकल की तरह मिंट की स्मेल नही बल्कि बियर की बदबू आ आ रही थी। मैने अपनी साँस को रोक कर उनके मुँह में अपनी जीभ डाल दी। कंदर अंकल के सीने से अब मेरे उँचे उँचे शिखर दबे हुए छटपटा रहे थे। शर्मा अंकल मेरे पीछे ज़मीन पर बैठ गये और मेरी पेंटी के दोनो टाँगों के बीच के जोड़ को खींच कर तोड़ दिया। मेरी पेंटी के दोनो पल्ले अलग हो कर मेरे कमर से झूल रहे थे। उन्होंने मेरे निवस्त्र नितंबों के ऊपर से पेंटी के झूलते टुकड़े को ऊपर उठा कर मेरे नितंबों पर अपने होंठ लगा दिए। उनके होंठ अब मेरे नितंबों पर फिर रहे थे। कंदार अंकल के हाथ मेरे टॉप को ऊपर उठा कर मेरी नग्न पीठ पर हाथ फिराने लगे। उनके हाथ मेरे ब्रा के हुक पर आकर ठहरे और मेरे ब्रा के हुक को खोल कर मेरे बूब्स को आज़ाद कर दिया। फिर सामने की तरफ हाथ लाकर मेरे ब्रा को सीने से ऊपर कर के मेरे नग्न बूब्स को अपने हाथों में लेकर मसलने लगे। मेरे बूब्स को बुरी तरह मसलते हुए मेरे खड़े हो चुके निपल्स को अपनी उंगलियों के बीच लेकर ज़ोर ज़ोर से दबाने और खींचने लगे। मेरे मुँह से कराह की आवाज़ निकल कर उनके होंठों के बीच क़ैद हो जा रही थी।
उधर शर्मा अंकल की जीभ अब मेरी योनि के दोनो ओर फिर रही थी। कंदर अंकल ने बैठे बैठे अपने दोनो पैरों को फैला दिया था जिसके कारण मेरे पैर भी फैल गये थे और मेरी योनि अब शर्मा अंकल की हरकतों के लिए बेपर्दा थी। मैं उनकी हरकतों से गर्म हो गयी थी। अब मेरा अंग अंग छटपटा रहा था इनके लंड के लिए। कुछ देर तक इसी तरह मुझे किस करते रहने के बाद हम तीनो उठे। दोनो ने सबसे पहले मुझे पूरी तरह नग्न किया। मैंने उनका किसी तरह भी विरोध किए बिना उनके काम में मदद की जब मैं पूरी तरह नग्न हो गयी तो मैने पहले शर्मा अंकल के और उसके बाद कंदर अंकल के सारे कपड़े उतार दिए। मैने पहली बार दोनो के लिंग को देखा। दोनो के लिंग इस उम्र में भी किसी 30 साल के नौजवान से बड़े और मोटे ताजे थे। शर्मा अंकल का लिंग तो पूरी तरह ताना हुआ झटके खा रहा था। उनके लिंग से एक एक बूँद लासा निकल रहा था। कंदर अंकल का लिंग अभी तक पूरी तरह खड़ा नही हुआ था। मैने दोनो के लिंग अपने हाथों से थाम लिए और बारी बारी से दोनो के लिंग के टिप को अपने होंठों से चूमा। उनके लिंग को सहलाते हुए मैने नीचे लटकते हुए उनकी गेंदों को भी अपनी मुट्ठी में भर कर सहलाया।
फिर हम तीनो बेड रूम की ओर बढ़े मानो हमारे बीच पहले से ही तय हो की अब क्या होने वाला है। बेडरूम में जाकर मैं पलंग पर लेट गयी। अपने हाथों को उठा कर मैने उन्हे बुलाया। दोनो कूद कर बिस्तर पर चढ़ गये।
" एक एक करके।" मैने दोनो से कहा।
"ठीक है" कहते हुए शर्मा अंकल मेरी टाँगों के बीच आ गये और उन्होंने अपने हाथों से मेरी दोनो टाँगों को फैलाया। फिर आगे बढ़कर झुकते हुए मेरी योनि पर अपने होंठ रख दिए। उनकी जीभ पहले मेरी योनि के ऊपर फिरी फिर उन्होंने अपने हाथों से मेरी योनि की फांकों को अलग किया और मेरी रस टपकाती हुई योनि में अपनी जीभ डाल कर उसे चाटने लगे। मैं उत्तेजना में उनके अधपके बालो को सख्ती से अपनी मुट्ठी में भर कर उनके मुँह को अपनी योनि पर दबा रही थी। साथ साथ अपनी कमर को ऊपर उठाकर उनके जीभ को जितना अंदर तक हो सके उतना अंदर घुसा लेना चाहती थी। इस प्रकार का सेक्स मैने पहले कभी महसूस नही किया था। रोहन के लिए सेक्स भी एक तरह से ऐसा काम था जिसे पूरी गंभीरता से अपनी मर्यादा में रहकर करना चाहिए। जब की सेक्स चीज़ ही ऐसी है की इसमें जितनी सीमाओं का उल्लंघन होता है उतना ही मज़ा आता है।
"आआआआअहह....म्म्म्ममममममम म.........उंकलीईई.......ऊऊफोफ़ फ्फूफ्फ.........नहियीईईईई.......म्म्म्मममममाआआ.........
क्य्आअ काआरररर रहीई हूऊऊऊओ.....चछूड्डू.........मुझीईए"इस तरह की आवाज़ें मेरे मुँह से निकल रही थी।
कंदर अंकल कुछ देर तक हम दोनो के खेल देखते रहे। उनका लिंग पूरी तरह तन चुका था। पूरी तरह तना हुआ उनका लिंग काफ़ी मोटा और लंबा था। वो अपने लिंग को हाथों में लेकर सहला रहे थे। मुझे उनपर दया आ गयी और मैने हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को अपने हाथों में थाम लिया। अब मैं अपने हाथों से उनके लिंग को सहला रही थी। मेरी आँखें उत्तेजना से बंद हो गयी थी। कंदर अंकल मेरे बूब्स को सहला रहे थे। फिर उन्होंने झुक कर मेरे निपल को अपने मुँह में भर लिया और हाथों से उस बूब को मसलते हुए मेरे निपल को चूसने लगे। मानो मेरे स्तन से दूध पी रहे हों।
अचानक मेरे बदन में ऐसा लगा मानो किसी ने बिजली का तार छुआ दिया हो। मैं ज़ोर से तड़पी और मेरी योनि से रस बह निकला। मैं खल्लास हो कर बिस्तर पर गिर पड़ी। अब कंदर अंकल ने आगे बढ़ कर मेरे सिर को बालो से पकड़ा और मेरे होंठों पर अपने लिंग को रगड़ने लगे।
" ले मुँह खोल। इसे मुँह में लेकर चूस" मैने अपना मुँह खोल दिया और उनका मोटा लिंग मेरे मुँह में घुस गया। मैने उनके लिंग को अपने हाथों से पकड़ रखा था जिससे एक बार में पूरा लिंग मेरे मुँह में ना ठूंस दें। पहले वो धीरे धीरे अपने कमर से धक्के मार रहे थे लेकिन कुछ ही देर में उनके धक्कों की गति बढ़ती गयी। वो अब ज़ोर ज़ोर से मेरे मुँह में धक्के लगाने लगे। मेरे हाथ को अपने लिंग से उन्होंने हटा दिया जिससे उनका लिंग जड़ तक मेरे मुँह में घुस सके। उनका लिंग मेरे मुँह को पार करके मेरे गले के अंदर तक घुस रहा था। लेकिन आगे कहीं फँस जाने के कारण लिंग का कुछ भाग बाहर ही रह रहा था। मैं चाह रही थी की वो मुँह में ही खल्लास हो जाए जिससे मेरी योनि को करने लायक दम नही बचे। लेकिन उनका इरादा तो कुछ और ही था।
" शर्मा तू रुक क्यों गया फाड़ दे साली की चूत।" कंदर अंकल ने कहा। शर्मा अंकल कुछ देर सुस्ता चुके थे सो अब वापस मेरी टाँगों के बीच आकर उन्होंने अपने लिंग को मेरी योनि के छेद पर सटाया और एक धक्के में पूरे लिंग को जड़ तक अंदर डाल दिया। अपने लिंग को पूरा अंदर करके वो मेरे ऊपर लेट गये। उनके बॉल्स मेरी योनि के नीचे गाँड़ के छेद के ऊपर सटे हुए थे। मैने उनके लिंग को अपनी योनि में काफ़ी अंदर तक महसूस किया। कंदर अंकल मेरे मुँह में अपना लिंग ठूंस कर धक्के मारना कुछ समय के लिए भूल कर शर्मा अंकल के लिंग को मेरी योनि के अंदर घुसता हुआ देख रहे थे। फिर दोनो एक साथ धक्के लगाने लगे। दोनो दो तरफ से ज़ोर ज़ोर से धक्के लगा रहे थे। मेरा बदन दोनो के धक्कों से बीच में आगे पीछे हो रहा था। कुछ देर इसी तरह करने के बाद कंदर अंकल का लिंग फूलने लगा। मुझे लगा की अब उनका रस निकलने वाला ही है। मैं उनके लिंग को अपने मुँह से उगल देना चाहती थी लेकिन उन्होंने खुद ही अपना लिंग मेरे मुँह से निकाल लिया। वो मेरे मुँह में नही शायद मेरी चूत में अपना रस डालना चाहते थे। दो मिनिट अपने उत्तेजना को काबू में कर के वो शर्मा अंकल के करीब आए।
" शर्मा ऐसे नही दोनो एक साथ करेंगे।" कंदर अंकल ने कहा।
" दोनो कैसे करेंगे एक साथ।" शर्मा अंकल ने मेरी योनि में ठोकते हुए कहा। " मैं इसकी गाँड़ में डालता हू और तू इसकी चूत फाड़" कह कर कंदर अंकल मेरे बगल में लेट गये। शर्मा अंकल ने अपना लिंग मेरी योनि से निकाल लिया।
मैं बिस्तर से उठी। मैने देखा की कंदर अंकल का मोटा लंड छत की ओर ताने हुए खड़ा है।
" आजा मेरे ऊपर आजा।" कंदर अंकल ने मुझे बाँह से पकड़ कर अपने ऊपर खींचा। मैं उठ कर उनके कमर के दोनो ओर पैर रख कर बैठ गयी। उन्होंने मेरी दोनो नितंबों को अलग कर मेरे आस होल के ऊपर अपना लिंग टिकाया।
" अंकल मैने कभी इसमें नही लिया। बहुत दर्द होगा। " मैने उनसे हल्के से मना किया। मुझे मालूम था की मेरे मना करने पर भी दोनो में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नही होगा।
मुझे कमर से पकड़ कर उन्होंने नीचे खींचा। लेकिन उसका लिंग थोड़ा भी अंदर नही घुस पाया।
" शर्मा तेल लेकर आ। साली इस होल में अभी भी कुँवारी है। काफ़ी टाइट छ्ल्ला है।"
शर्मा अंकल बिस्तर से उतर कर किचन में जाकर एक तेल की कटोरी ले आए। कंदर अंकल ने ढेर सारा तेल अपने लिंग पर लगाया और एक उंगली से कुछ तेल मेरे गुदा के अंदर भी लगाया। एक उंगली जाने से ही मुझे दर्द होने लगा था। मैं "आआहह" कर उठी।
वापस उन्होंने मेरे दोनो चूतरों को अलग करके मेरे गुदा द्वार पर अपना लिंग सेट करके मुझे नीचे की ओर खींचा। इसमें शर्मा अंकल भी मदद कर रहे थे। मेरे कंधे पर अपना हाथ रख कर मुझे नीचे की ओर धकेल रहे थे। मुझे लगा मानो मेरी गुदा फट जाएगा। लेकिन इस बार भी उनका लिंग अंदर नही जा पाया। अब उन्होंने मुझे उठा कर चौपाया बनाया और पीछे से मेरे छेद पर अपना लिंग टीका कर एक ज़ोर का धक्का मारा। दर्द से मेरी चीख निकल गयी। लेकिन इस बार उनके लिंग के आगे का सूपाड़ा अंदर घुस गया। मुझे बहुत तेज दर्द हुआ और मेरी चीख निकल गई-"उईईईईईई माआआआआ मररर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर गैईईईईईईईईईईईईईईईईई"
"माआआअ…………ऊऊऊफफफफफफफफ्फ़……माआआअ" मैं कराह उठी।
धीरे धीरे उनके लिंग में हरकत आ गयी और वो मेरी गुदा के अंदर आगे पीछे होने लगी। धीरे धीरे दर्द भी कम हो गया। कुछ देर बाद मैने अपने हाथ से छू कर देखा तो पाया उनका लिंग पूरा मेरे होल में समा चुका था। अब इसी तरह मेरे गुदा में धक्के मारते हुए उन्होंने मेरी कमर को अपनी बाहों में लिया और पीछे की ओर लुढ़क गये। अपनी गुदा में उनका लिंग लिए-लिए ही मैं उनके ऊपर लेट गयी। अब शर्मा अंकल ने मेरी टाँगों को उठा कर मेरे सीने पर मोड़ दिया। इससे मेरी चूत उनके सामने हो गयी। उन्होंने अब मेरी चूत की फांकों को अलग करके मेरे अंदर अपना लिंग प्रवेश कर दिया। अब दोनो आगे और पीछे से मेरे दोनो होल में धक्के मारने लगे। मैं उनके बीच में सॅंडविच बनी हुई थी। दोनो इस तरह ज़्यादा देर नही कर पाए। कुछ ही देर में कंदर अंकल ने अपना रस मेरी गुदा के अंदर डाल दिया और नीचे से निकल कर अलग हो गये। अब शर्मा अंकल ही सिर्फ़ धक्के लगा रहे थे। काफ़ी देर तक धक्के देने के बाद उनके लिंग ने मेरी योनि में पिचकारी की तरह रस छोड़ दिया। हम तीनो अब बिस्तर पर लेटे लेटे हाँफ रहे थे। कंदर अंकल उठ कर फ्रीज से ठंडे पानी की बॉटल निकाल कर ले आए। हम तीनो अपनी अपनी प्यास बुझा कर थोड़े शांत हुए। मगर मैं इतनी जल्दी शांत होने वाली थी नही। मैं दोनो के लिंग सहला कर वापस उन्हे उत्तेजित कर रही थी। दोनो शांत पड़े हुए थे। मुझे गुस्सा तो तब आया जब मैने कंदर अंकल के ख़र्राटों की आवाज़ सुनी।
" क्या अंकल इतनी जल्दी सो गये क्या।" मैने उन्हे हिलाया मगर उनकी आँख नही खुली।
" चल छोड़ इन्हे। मैं हूँ ना। तू तो मेरे लिंग से खेल। " कह कर वो मेरे बूब्स को मसल्ने लगे। मैं करवट बदल कर पूरी तरह उनके बदन के ऊपर लेट गयी। मेरा सिर उनके बालों भरे सीने पर रखा हुआ था चूचिया उनके छाती की ऊपर चपटी हो रही थी। और योनि के ऊपर उनका लिंग था। इसी तरह कुछ देर हम लेटे रहे। फिर मैने अपनी दोनो कोहनी को मोड़ कर उनके सीने पर रखी और उसके सहारे अपने चेहरे को उठाया। कुछ देर तक हमारी नज़रें एक दूसरे में खोई रही फिर मैने पूछा।
"अब तो आपकी मुराद पूरी हो गयी?" मैने पूछा
" हां… जब से तुम इस बिल्डिंग में रहने आई हो मैं तो बस तुम्हे ही देखता रहता था। रात को तुम्हारी याद कर के करवटें बदलता रहता था। लेकिन तुम मेरी बहू के उम्र की थी इसलिए मुझमें साहस नही हो पाता था कि मैं तुम्हे कुछ कहूँ।…… मुझे क्या मालूम था कि गीदड़ की किस्मत में कभी अंगूर का गुच्छा टूट कर भी गिर सकता है।"
"एक बात बताओ? सपना भी तो इतनी खूबसूरत और सेक्सी है। उसे चोदा है कभी?" मैने उन्हे उनकी पुत्रवधू के बारे में पूछा।
"नही, कभी मौका ही नही मिला। एक बार कोशिश की थी। लेकिन उसने इतनी खरी खोटी सुनाई की मेरी पूरी गर्मी शांत हो गयी। उसने दीपू से शिकायत करने की धमकी दी थी। इसलिए मैने चुप रहना ही उचित समझा।"
"बेचारी…उसे क्या मालूम कि वो क्या मिस कर रही है।" मैने उनके हल्के हल्के से उभरे निपल्स पर अपनी जीभ फिराते हुए कहा।
फिर हम दोनो एक दूसरे को चूमने चाटने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे बिस्तर से उठाया और अपने साथ लेकर ड्रेसिंग टेबल के पास गये। मुझे ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा करके मेरे बदन से पीछे की ओर से लिपट गये। हम दोनो एक दूसरे में हमारे गूँथे हुए अक्स देख रहे थे। मुझे बहुत शर्म आ रही थी। उनके हाथ मेरे बूब्स को मसल रहे थे, मेरे निपल्स को खींच रहे थे, मेरी योनि में उंगलियाँ डाल कर अंदर बाहर कर रहे थे। मैने महसूस किया कि उनका लिंग अब वापस खड़ा होने लगा है। फिर वो मुझे लेकर बिस्तर के किनारे पर आकर मुझे झुका दिया। उनके झुकने से मैं बिस्तर पर सोए हुए कंदर अंकल पर झुक गयी थी। मेरे पैर ज़मीन पर थे। पीछे से शर्मा अंकल ने अपने लिंग को मेरे योनि के द्वार पर सेट किया। एक धक्का देते ही उनका लिंग योनि में घुस गया। अब तो योनि में घुसने में उसे कोई भी तकलीफ़ नही हुई। वो पीछे से धक्के लगाने लगे। साथ साथ वो अपने दोनो हाथों से मेरे बूब्स को भी मसल रहे थे। मेरा सिर कंदर अंकल के लिंग के कुछ ऊपर हिल रहा था। मैने एक हाथ से उनके ढीले पड़े लिंग को खड़ा करने की नाकाम कोशिश की मगर मेरे बहुत चूसने और सहलाने के बाद भी उनके लिंग में कोई जान नही आई। शर्मा अंकल ने उसी तरह से काफ़ी देर तक धक्के मारे। मेरा वापस रस बह निकला। मैं निढाल हो कर बिस्तर पर गिर पड़ी। शर्मा अंकल ने अपने हाथों से पकड़ कर मेरी कमर को अपनी ओर खींचा और वापस धक्के मारने लगे। कुछ ही देर में उनका भी रस निकल गया। हम वापस बिस्तर पर आकर सो गये। सुबह सबसे पहले कंदर अंकल की नींद खुली। मैने अपने शरीर पर उनकी कुछ हरकत महसूस की तो मैने अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल कर देखा की वो मेरी टाँगों को अलग कर के मेरी योनि को देख रहे थे। मैं बिना हीले दुले पड़ी रही। कुछ देर बाद वो मेरे निपल्स को चूसने लगे। उनके चूसे जाने पर नरम पड़े निपल्स फिर से खड़े होने लगे। कुछ देर बाद वो उठ कर मेरे सीने के दोनो तरफ अपनी टाँगे रख कर मेरे दोनो बूब्स के बीच अपने लिंग को रखा फिर मेरे दोनो बूब्स को पकड़ कर अपने लिंग को उनके बीच दाब लिया फिर अपने कमर को आगे पीछे करने लगे। मानो वो मेरी दोनो चूचियो के बीच की खाई नही होकर मेरी योनि हो। उनकी हरकतों से मुझे भी मज़ा आने लगा। मैं भी फिर से गर्म होने लगी। लेकिन मैने उसी तरह से पड़े रहना उचित समझा।
कुछ देर बाद वो उठ कर मेरे दोनो टाँगों के बीच आ गये। अब तक उनके उस मोटे लिंग को मैने अपनी योनि में नही लिया था। मैं उनके लिंग का अपनी योनि में इंतजार करने लगी। वो शायद जान गये थे कि मैं जाग चुकी हूँ इसलिए वो मेरी योनि और गुदा के ऊपर अपने लिंग को कुछ देर तक फिराते रहे। मैं हार मान कर अपनी कमर को ऊपर उठाने लगी। लेकिन उन्होंने अपने लिंग को मेरी योनि से हटा लिया। मैने तड़प कर उनके लिंग को अपने हाथों में थाम कर अपनी योनि में डाल लिया। उनके लिंग को लेने एक बार में हल्की सी दर्दीली चुभन महसूस हुई लेकिन उसके बाद उनके धक्कों से तो बस आनंद आ गया। मैं भी उनका पूरी तरह सहयोग देने लगी। वो मेरे ऊपर लेट गये। उनके होंठ मेरे होंठों पर फिरने लगे। उनके मुँह से बासी मुँह की बदबू आ रही थी। लेकिन इस समय उस बदबू की किसे परवाह थी। मुझे तो सिर्फ़ उनके धक्के याद रहे। काफ़ी देर इसी तरह करने के बाद उन्होंने अपना रस छोड़ दिया।
तब तक शर्मा अंकल भी उठ गये थे। वो भी हम दोनो के साथ हो लिए। शाम तक इसी तरह खेल चलते रहे। हम तीनो एक दूसरे को हराने की पूरी कोशिश में लगे हुए थे। उस दिन उन बूढो ने मुझे वो मज़ा दिया जिस की मैने कभी कल्पना भी नही की थी। कंदर अंकल के साथ फिर तो कभी सहवास का दुबारा मौका नही मिला लेकिन जब तक मैं उस अपार्टमें ट में रही तब तक मैं शर्मा अंकल से चुदवाती रही। आखिर दोंनों ही एक नम्बर के हरामी बूढ़े थे।
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Raj Sharma
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