Saturday, November 22, 2014

FUN-MAZA-MASTI पापा प्लीज........10

FUN-MAZA-MASTI

 पापा प्लीज........10                          

शहर में एस.पी. परेशान कि अभी तक कोई कॉन्टेक्ट क्यों नहीं कर रहा है... आखिर मेरी बेटी किडनैप करने का मकसद क्या हो सकता है... उसे अब थोड़ी मायूसी जरूर होने लगी थी...

उसकी बीवी तो रो रोकर बुरा हाल कर ली थी... तुरंत ही बेहोश हो जाती... उसकी देखभाल में एक डॉक्टर तो 24 घंटे मौजूद रहते थे... रात में करीब 10 बजे एस.पी. के घर के फोन पर अचानक रिंग बजी...

एस.पी. तुरंत भागा लपक के फोन उठाया पर उसी पल फोन कट गई... एस.पी. हैलो-हैलो चिल्लाता रह गया... वो समझ गया कि ये उसी का फोन है... वो रिसीवर रख वहीं पर बैठ गया... करीब दस मिनट बाद एक बार फिर रिंग बजी...

एस.पी. तुरंत रिसीवर उठा बोला,"हैलो.." पर उधर से कोई आवाज नहीं... एस.पी. कई बार हैलो किया पर कोई जवाब नहीं... फोन अभी भी कटा नहीं था... वो कुछ देर तक यूं शांत हो गया और उसके बोलने का इंतजार करने लगा...

"अगर तेरी बेटी चाहिए तो भाई पर जो तूने लूट का केस किया है वो फाइल फाड़ के फेकना होगा और दोबारा कोई एक्शन नहीं लेने का... चालाकी नहीं करने को..." उधर से आवाज अचानक सुनाई पड़ी तो एस.पी. सुना और बीच में ही उसे रोकते हुए बोला...

"अरे, तुम्हें किसने कह दिया कि मैंने केस किया है... अभी तक सिर्फ सनहा दर्ज है जो कि अगर तुम चाहते तो यहीं से ये बात क्लोज हो जाती... बस मेरी बेटी के कुछ कागजात और सामान वापस कर देते तो... पर तुमने तो. ."एस.पी. बोल ही रहा था कि बीच में उसने लगभग चीख मार उसे चुप करा दिया...

"ऐ एस.पी., अब क्या किया मैंने..., शाले तु कुत्ते के माफिक पीछे पड़ गया था तो क्या करता... साला खुद तुमलोग लाख दो लाख एक बार गटकता है तो कोई बात नहीं और साला अपुन तेरे घर जब छोटा सा हाथ मारा तो फट गई... वो भी अनजाने में हो गया... पहचानता नहीं था ना इसलिए..." गुस्से से लबालब दूसरी तरफ से सटासट एस.पी. के कानों में पड़ी...

एस.पी. तो अभी किसी शिकार की तरह था वर्ना वो ऐसी जिल्लत कभी भी नहीं सह सकता था... अच्छे काम के लिए उसे आज तक हर साल अलार्ड मिले हैं और वो उस पर कीचड़ उछाल रहा है... अगर मैं पैसे खाता तो अपनी एकलौती बेटी को यहां नहीं पढ़वाता, विदेश भेजता... उसके अंदर तो क्रोध की ज्वाला भड़क उठी थी पर किसी तरह चुप रहने में ही भलाई समझी...

"देखो, तुम विश्वास करो मैं अभी तक केस नहीं किया हूँ... हाँ तुम मेरी बेटी और लूटे हुए सामान हाजिर कर दो मैं कुछ नहीं कहूँगा... " एस.पी. उसे लुभाने के लिए बिल्कुल एक मासूम बच्चा बन गया था, वो भी डरा हुआ बच्चा जो हर बात मानने को तैयार... पर उसके अंदर क्या चल रही थी ये कोई नहीं जानता था...

एस.पी. की बात सुन दूसरी तरफ से हंसी छूट पड़ी... और आवाज,"सामान, सॉरी सर वो यो हम सब ने बेच दिए तो सब खत्म... पर तुम्हारी बेटी अभी जिंदा है... बस मुझे वो केस की फाइल दो और अपनी बेटी..."

एस.पी. पुनः परेशान होते हुए बोला," ओफ्फ...कितना समझाऊं तुम्हें मैं कि केस नहीं हुआ है अभी... अगर विश्वास नहीं है तो ठीक है.. कल सुबह मैं केस फाइल कर दूँगा तुम सब पर...फिर तुम्हें वो फाइल दे दूंगा... तब फाइल के साथ जो करना होगा वो करना..."

एस.पी. की बात सुन दूसरी तरफ सन्नाटा छा गया... कुछ देर बाद वो बोला,"सच कह रहे हो..?" एस.पी. इतना सुनते ही समझ गया कि ये बिल्कुल ही बेवकूफ है... ये सच में लफंगे चोर हैं जो आजतक बस चोरी ही किया है वो भी गंवार की तरह... एस.पी. तुरंत "हां.." कह दिया...

"ठीक है,मैं भाई से बात कर के कल फिर फोन करता हूँ..." और इतना कह उसने फोन काट दिया... आखिरी बात सुनते ही एस.पी. का माथा ठनक गया... मतलब ये वो नहीं उसका चमचा है... शाला फिर तो...शिट्...

फिर एस.पी. ने तुरंत उसी वक्त नम्बर का पता लगाया तो किसी दूसरे शहर के पब्लिक बूथ का था...अब तो उसे थोड़ा यकीं हो गया था कि मेरी बेटी इस शहर में नहीं,बल्कि दूसरे शहर में है... तो उसने रातोंरात ही अपने गुप्त टीमों को वहां भेज दिया और उस शहर के एस.पी. से बात कर मामला साझा कर दिया...

दूसरे शहर के एस.पी. पुलिस ने गुप्त तरीके से हर जगह निगरानी रखनी शुरू कर दी... अगर छापे मारता और उसकी बेटी नहीं मिलती तो सारा गुड़ गोबर हो जाता... बस उस फोन बूथ और उसके आसपास भी सारे फोन बूथ पर नजर रखने लगा...

रत्ना और कालिया की नींद करीब 10 बजे खुली तो दोनों पहले फ्रेश हुए... फिर उन्हें तेज भूख लगी... तो खाना मंगवाया और भर पेट खाया... फिर कालिया फोन घुमा कर अपने आदमी से एस.पी. के बारे में जानकारी लिया कि क्या कहा?

उसकी बात सुन दोनों का हंस हंस के बुरा हाल था... दोनों ये सोच के हंस रहा था कि एस.पी. हमें इतना बुद्धू समझ रहा है...कालिया हंसते हुए बोला,"साला... उसकी बेटी सही कहती थी कि मुझेे छोड़ेगा नहीं वो... जेल जाना ही होगा..." उसकी बात सुन रत्ना उसे समझाने की कोशिश की...

"देख भाई, अब भी कहता हूँ... तुम यहीं मेरे साथ रह जाओ... कोई दिक्कत नहीं है इधर... मानो अगर तुम सरेंडर कर भी देते हो या ये सब छोड़ भी देते हो तो आराम से नहीं रह पाओगे... जेल से बाहर आने के बाद जब भी क्राइम होगा या कोई पागल पुलिस वाला आया तो तुम्हें बेवजह परेशान करेगा और मनमानी करेगा तुम पर..."

कालिया कुछ सोचने लगा...उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें... उसे अब अफसोस भी हो रहा था कि बेकार ही तिल से ताड़ बना दिया...पहली बार पकड़े जाने वाला हूँ... पहले तो कभी पकड़ा ही नहीं गया क्योंकि हर शिकार बाहरी होता था... कोई थाने में केस भी करते तो कुछ ले दे के मामला को खत्म करवा देता था...

मगर इस बार मामला ही गड़बड़ हो गया... दूसरा शिकार होता तो इतनी टेंशन नहीं होती... एस.पी. की बेटी ही गले आ गई तो शाला कोई ले दे भी नहीं करेगा... अब तो यही उपाय है कि इधर ही डेरा जमा दूँ... उसने रत्ना की तरफ देख हामी भर दी और बोला,"..पर इस लड़की को ऐसे नहीं छोड़ूंगा भाई..."

रत्ना,"अबे तो मैं कहां ऐसे छोड़ने वाला भाई... कम से कम लड़की जो खाना खाती है उसका तो बिल करना ही होगा... एक दिन का बिल एक लाख फिक्स है इधर तो हिसाब लगा लो कितना दिन रखना है... अब कल किसी दूसरे को बता देना कि एस.पी. से पैसे लेना है...बाकी का काम मेरा आदमी कर देंगेे..."

कालिया,"ठीक है दोस्त, साले एस.पी. से कम से कम दस लाख की डिमांड तो होनी ही चाहिए...क्या कहते?" कालिया की बात सुनते ही रत्ना खुशी से झूमता उसे शाबासी दी गैंग में शामिल होने की...


फिर दोनों ने कुछ और बातें की, फिर डॉली और रिंकी की जबरदस्त चुदाई में भिड़ गए... देर रात तक लूम में धमाचौकड़ी मचाते रहे... इस धमाचौकड़ी में एक वो भी थी जो बिल्कुल अपनी कोरी जवानी को लिए सुलग रही थी... रिंकी और डॉली ने इसे सुलगा जो गई थी...

बेचारी करवट बदल बदल कर सोने की कोशिश करती पर नाकामयाब... रात के सन्नाटे में कभी कभी जंगली जानवरों की आवाज सुनाई देती पर उससे ज्यादा बगल के रूम से आती हुई मादक और वहशी भरी आहें... जो सीधी इसके दिल तक चली जाती और एक टिस सी उठती...

काफी कोशिश की समझाने की इस नादान दिल को पर वो खुद हार गई और बिस्तर से उठ आहिस्ते से गेट खोली और इधर उधर चोर निगाहों से मुआयना करने लगी... जब संतुष्ट हो गई कि कोई नहीं है इस वक्त तो बिल्ली पंजों से रत्ना के रूम की तरफ बढ़ गई...

ज्यों ज्यों गेट के पास पहुँचती जाती उसकी धड़कनें तेज होती जा रही थी... आखिर गेट के पास पहुँच ही गई तो गेट बंद थी... वो इत्मीनान से वहाँ खड़ी रहने की सोच गेट के बिल्कुल निकट चिपक गई और अपने कान गेट पर लगा दी ताकि अंदर की हर एक चीजें साफ सुनाई दे...

हालांकि पूरी तरह तो नहीं पर पहले से काफी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी... अंदर से आ रही सिसकियों के साथ रत्ना व कालिया की गंदी गंदी गालिया सुन वो तो सिहर गई पर खुद को अकेले सोच वो अलग नहीं हो सकी वरना वो एक पल भी गाली सुनना बर्दाश्त नहीं करती थी...

कुछ ही पलों में पुष्पा खुद को अंदर बेड पर महसूस करने लगी उन दोनों के साथ...अगले ही पल वो चौंकती हुई सर झटक ली और खुद को कोसने लगी कि छिः, किसके साथ तू अपनी जवानी मसलवाने चल दी पुष्पा... उन दो टके के चोरों से जो डर से छुपे फिरते हैं...

पर वो थोड़ी गरम भी हो गई थी और उसकी प्यास बढ़ती ही जा रही थी तो उसने किसी और के संग करने की सोची... हाँ मेरे कॉलेज को वो लड़का कितना हैंडसम है...उसके पीछे तो ना जाने कितनी लड़किया मंडराती रहती थी पर वो किसी को घास तक नहीं डालता था..और उसकी वजह सिर्फ वो खुद पुष्पा थी...

खैर वो कॉलेज की बात है... अभी तो फिलहाल मुझे अच्छी नींद मंगवानी है बस... वो उसी लड़के को जेहन में रख आंखें बंद की और फिर अंदर की बात सुनने लगी... उफ्फ्फ्फ... अदर से तो अब रिंकी और डॉली चीख रही थी और गालियां बकती हुई और चोदने की बात कह रही थी... पुष्पा अपनी कान पर यकीं नहीं कर रही थी कि कोई लड़की ऐसे कैसे कह सकती है...

वो और रोमांचित हो गई और अनायास ही उसके हाथ शार्ट्स के नीचे चूत तक चली गई और उसे आहिस्ते आहिस्ते मसलने लगी... वो जल्द ही मदहोशी में डूब गई और अपने होंठों को चबाती हुई तड़पने लगी... इस तड़प ने उसे जल्द ही चुचियों से भी नंगी कर दी और वो एक हाथ से अपनी चुची को बारी बारी रगड़ रही थी जबकि दूसरी हाथ बूर को शांत करने में लगी थी...

दो मिनट में ही जवानी की स्वाद कैसी होती है जानने वाली पुष्पा चरम सुख के करीब पहुँच गई और वो थोड़ी हट के दीवाल के सहारे हो ली और कसमसाती हुई जोर जोर खुद पर सितम बरपाने लगी... उसकी साँस उखड़ने लग गई थी और आंखों से हल्की नमी उभरने लगी थी चरम सुख की निकटता को देख...

और वो पल आ ही गई जब पुष्पा अपनी जिंदगी की पहली चरम सुख प्राप्त की... वो चीखती हुई थड़थड़ाती हुई धम्म से नीचे बैठ गई और अपनी बूर से पानी की बौछारें शुरू कर दी... वो उपर की तरफ मुँह किए हाणफ रही थी और पानी फर्श पर बिखेड़ी जा रही थी... उसकी हाथ पूरी भींग चुकी थी पर वो अभी भी हटाई नहीं थी...

कुछ पलों बाद जब वो शांत हुई तो कुछ देर यूं ही पड़ी रही...फिर जब उसे याद आई कि वो कहां है तो स्प्रिंग माफिक जम्प करती खड़ी हो गई और वो तुरंत अपने कान गेट पर लगा दी... ये क्या अंदर बिल्कुल शांत था बस सबकी तेज साँसें सुनाई पड़ रही थी... वो अब वहां रूकने की सोच भी नहीं सकती थी... उसके कदम अपने रूम की तरफ बढ़ा
रूख कर ली...

रूम में घुसते ही वो बाथरूम में घुस फ्रेश हो ली... फिर बिस्तर पर आ पसर ली और कुछ देर पहले की हरकत को याद करने लगी... सारा वाक्या नजरों के सामने घूमने लग गई जिससे वो खुद ही शर्मा गई और मुस्कुरा कर अपने मुँह तकिये में औंध कस के भींच ली... वो इसी अवस्था में ही नींद की आगोश में भी पहुंच गई...

सुबह गेट पर हो रही तेज नॉक से वो हड़बड़ा कर उठ कर बैठ गई... बाहर रिंकी बार बार पुष्पा-पुष्पा कह कर उसे जगा रही थी... उसने दीवाल घड़ी पर नजर डाली तो 9 बज रहे थे... वो अपने कपड़े की सही करती हुई "आ रही हूँ.." कहती हुई बेड से उतर गेट की तरफ बढ़ गई...

आँख मलते हुए गेट खोली तो सामने रिंकी और डॉली दोनों खड़ी थी जबकि उससे कुछ फासले पर खड़ा कालिया था... इन दोनों की तो सही थी पर कालिया पर नजर पड़ते ही वो पहले तो अवाक् रह गई...वो मुँह और आंखें एक साथ फाड़े उसे देखे जा रहा था...तभी उसे अपने ड्रेस पर ध्यान चली गई... ओहहह..तो ये बात है... जनाब ये भी मुझे देख हैरान रह गए...

फिर वो शरारत से हल्की मुस्कान बिखेड़ दी और वो सब पर एक नजर डाल पीछे मुड़ वापस बाथरूम की तरफ चल दी... पीछे पीछे रिंकी बोलती हुई घुस गई,"क्या मैडम जी, रात भर मेहनत हम सब किए और नींद आपकी नहीं खुल रही... इसकी वजह जान सकती हूँ..."

रिंकी की बात सुन पुष्पा बिना कुछ बोले सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई और बाथरूम में घुस अंदर से लॉक हो गई... बाहर कालिया खड़ा मूक बना उसी तरह खड़ा था जैसे पुष्पा को देखा था इस ड्रेस में... अंदर जब दोनों लड़की चेयर पर जा के पसर गई तो उनकी नजर कालिया पर गई, जिससे दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ी...

तेज हंसी की गूंज से कालिया की तंगभद्रा टूट तो वो झेंप सा गया और आगे बढ़ उन दोनों लड़की के समीप मुस्कुराते हुए जा बेड पर पसर गया..


रिंकी,"क्या हुआ आपको..? आप ऐसे मुँह बना कर क्यों खड़े थे जनाब..." रिंकी कालिया की तरफ देख कर अपने दोनों हाथ गालों पर रख नीचे बेड पर केहुनी टिकाती हुई पूछी... कालिया उसकी बात सुन अपना चेहरा ठीक रिंकी के पास सोए हुए ही लाता हुआ बोला...

कालिया,"यार, सच कहूं तो मैं इसकी सुंदरता का दिवाना तो था ही पर अब इसे ऐसे कपड़ों में देख मैं पागल हो रहा हूँ...उफ्फ्फ्फ... क्या गजब की लगती है... हाय..." और फिर कालिया किसी मजनूं की तरह पुष्पा की हर एक अंगों ढ़ेरों व्याख्यां करनी शुरू कर दी...

रिंकी और डॉली तो सुन के हंस हंस के लोट पोट हो रही थी... वो जानती थी कि सच में अगर पुष्पा ऐसे कपड़ो में बाहर गई तो ना जाने कितने लड़के मजनूं बन जाएंगें.... और उधर इन दोनों के साथ पुष्पा भी अपनी तारीफ कान लगा कर सुन रही थी...

कालिया ये भूल ही गया था कि पुष्पा इसी रूम के बाथरूम में है... कालिया बिना वॉल्यूम डॉउन किए; बके जा रहा था... पुष्पा को गुस्सा आता पर कालिया उसकी तारीफ कर रहा था तो वो अपनी तारीफ सुन मंद मंद मुस्कुरा रही थी तो कभी कुछ तारीफ सुन शर्मा भी रही थी...

कालिया अनलिमिटेड बोले जा रहा था... डॉली को जब ध्यान आया कि बाथरूम में पुष्पा इतनी देर से क्यों है तो वो रिंकी को धीरे से बोली... जिसे सुनते ही रिंकी तेजी से कालिया के मुंह पर हाथ रख तेजी से बोली,"पुष्पा अंदर सुन रही है और कहीं गुस्सा हो कुछ कर ली तो...."

कालिया सुनते ही चौंक पड़ा अपनी बेवकूफी पर साला अब तो गया... ये तीखी मिर्ची मेरी खैर ले लेगी अच्छी से... फिर कुछ सोचते हुए रिंकी के हाथ हटा बोला,"रहने दो, सच कह रहा हूँ तो गुस्सा होके क्या कर लेगी..." फिर कालिया के साथ रिंकी और डॉली भी पुष्पा के प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी...

जबकि अंदर तो कुछ और ही चल रहा था... पुष्पा अपनी तारीफ सुन उसकी दिल की घंटियाँ बज चुकी थी... वो हैरान रह गई कि अचानक कालिया क्यों चुप हो गया... कुछ और कहे... इसका काम बुरा है पर दिल का अच्छा है... कोई छलकपट नहीं... वो छटपटा कर रह गई...

फिर करीब आधे घंटे बाद कामक्रिया से निपुण हो वो अपने चेहरे को नॉर्मल करती हुई गेट खोलती हुई ऐसे बाहर निकली जैसे कुछ सुनी ही ना हो... पुष्पा सरपट तीनों पर नजर डाली और आगे बढ़ दूसरी तरफ आइने के समीप जा बालों को सही करने लगी...कालिया मंत्रमुग्ध हो उसकी हर एक हरकत को अपनी आंखों में कैद किए जा रहा था...

पुष्पा,"मुझे कब पहुँचा रहे हो घर... मुझे घर जाना है..." पुष्पा बिना पीछे मुड़े कालिया से सवाल पूछ बैठी... कालिया उसकी बात से हड़बड़ा सा गया और मुस्कुराते हुए बोला,"तेरा बाप जब पैसा दे दे..." ये सुनते ही पुष्पा गुस्से से कालिया की तरफ पलटते हुए बोली..

पुष्पा,"कमीने तुम नहीं सुधरोगे..?" पुष्पा की हर बात कालिया को सुरीली ही सुनाई पड़ती थी.. वो अपनी गलती को स्वीकारते हुए बोला,"क्या करें.? चमड़े की जबान है,फिसल जाती है..." जिससे पुष्पा हल्की सी मुस्कान बिखेड़ कर वापस पलट गई...

पुष्पा,"अब पैसे किस चीज के.."
कालिया,"मैडम बात कुछ बिगड़ गई है... तेरा बाप मुझे जेल भेजने की कसम खा ली है तो जब जेल जानी ही है तो कुछ माल पानी का बंदोवस्त कर ही लेते हैं...ताकि बाहर आने में जो खर्च आएगा वो कहीं से लेना नहीं पड़ेगा...समझी."

पुष्पा उसकी फिरौती की बात सुन ठिठक सी गई... वो एकटक शांत हो आइने में खुद को देखने लगी पर इस मर्तबा उसके चेहरे पर उदासी साफ नजर आ रही थी... कुछ पल कमरे में खामोशी सी छा गई...

पुष्पा,"साले , गलती करो तुम लोग और कीमत उसकी हम अदा करें... मेरे पापा इमानदार एस.पी. हैं और कोई भी फिरौती देने के पक्ष में नहीं होंगे..."

कालिया,"नहीं देंगे तो तुम भी नहीं जाओगी.."

पुष्पा गुस्से में पैर पटकती हुई कालिया के पास पहुँची और उसके कॉलर पकड़ती हुई बोली,"मैं तो जाऊंगी ही और साथ ही तुम्हें भी नहीं छोड़ूंगी..." और फिर कॉलर छोड़ कालिया को पीछे की तरफ धकेल दी... ये तेवर देख रिंकी और डॉली तो अवाक रह गए पर कालिया इन सब से थोड़ी बहुत परिचित था तो वो हंस पड़ा...

कालिया खुद को संभाल बेड से खड़ा हुआ और एक ही झटके में अपने हाथ आगे बढ़ा पुष्पा की कमर पर रख अपने से चिपका लिया... पुष्पा के मुख से हल्की चीख निकल पड़ी पर इस चीख में दर्द कम मस्ती ज्यादा झलक रही थी... पुष्पा मर्द स्पर्श पाते ही सिहर गई... वो छूटने की कोशिश ना कर कालिया की आँखों में झांकने लगी...

कालिया,"जैसा बाप,वैसी बेटा... कान खोल के सुन ले अगर तेरा बाप पैसे नहीं दिया तो मैं भी तुम्हें नहीं पहुंचाने वाला... और तुम अगर ज्यादा दिमाग लगाने की कोशिश की तो यहाँ या तो जंगली जानवर तुम्हें नोंच डालेंगे या फिर जंगल में फैले रत्ना के आदमी... सोच लेना.."

पुष्पा उसकी बात सुन डर से कांप गई और बूत बनी अपनी आंसूं को रोकनी कि कोशिश करने लगी... कालिया उसे ऐसे देख एक बार फिर भावुक हो परेशान हो गया और खुद को मन ही मन गालियां देने लगा... वो परेशान हो पुष्पा को समझाने की कोशिश करने लगा...

कालिया,"हे पुष्पा..तुम भी ना... अरे मैं तो यूं ही कह रहा था.... रोना नहीं..पुष्पा..." कालिया अब दोनों हाथों से उसके चेहरे को पकड़ अपनी तरफ कर बोले जा रहा था पर पुष्पा की आंखों से जख्म निकल रही थी शांति से...

कालिया,"ओके,ओके... मैं दो दिन तक देख लेता हूँ... पैसे मिले या ना मिले पर तुम्हें पक्का वापस शहर छोड़ आऊंगा..अब खुश.. हे तुम रोती बिल्कुल अच्छी नहीं लगती हो...अब चुप हो जाओ.."

पुष्पा बिना आंसू पोंछे कालिया की आंखों में झांकने लगी...कालिया उसे अपनी तरफ देख फिर से प्रॉमिस पर प्रॉमिस करने लगा... जिसे वो बस सुने जा रही थी... जब पुष्पा काफी देर तक कुछ नहीं बोली तो कालिया भी चुप हो गया और उसकी आँखों में देखने लगा...

दोनों की नजरें आपस में रंगरलियां मनाने लगी... तब से कालिया समझ रहा था कि वो तो बस यूँ ही देख रही थी पर जब उसकी आंखों की गहराई में उतर के देखा तो अंदर ढ़ेर सारा प्यार ही प्यार था... बुरा ही सही पर पुष्पा ने पढ़ ली थी कि वो उसे कितना चाहता है... उसकी आंखों में एक बूंद भी आंसूं वो देखना नहीं चाहता था...

एक बारगी तो वो सोच भी ली थी कि इस कमजोरी से वो यूं घर जा सकती है पर उसके बाद उसे ये कभी मिल पाएगा... इतना केयर करने वाला कभी मिल पाएगा... जो एक बूंद आंसू पर भी परेशान हो जाता है... दोनों बेफिक्र हो खड़े थे...कमरे में रिंकी और डॉली भी है वो शायद भूल ही गई थी.... अभी तक इस प्यार की पहल किसी ने नहीं की थी... इतनी हरी झंडी पर तो अंधा भी इजहार कर देता पर ये तो..................!!!!!!!






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