FUN-MAZA-MASTI
ट्रक ड्राइवर की पत्नी--1
मेरा नाम सनी है. कुछ एक महीने पहले ही हमने नया घर खीरदा था. जहा पर हमारा हमारा नया घर था. वो एरिया उस समय जयादा डेवेलप नहीं था. काफी जगह वहाँ अभी खली थी. वैसे तोह कुछ लोग वह पर कई सालो से रह रहे थे. पर सिटी से बहार होने के कारन वह विकास बहुत कम हुआ था. बरसतो का मौसम था. मोहले से बहार निकलते तोह, पीछे बड़े -२ ग्राउंड खली नज़र आते थे. जहा पर मैं अपने दोस्तों के साथ अकसर क्रिकेट खेलने जाता था. मैं अपने पड़ोस मैं रहने वाले दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने निकल जाता था. वह पर कई और लड़के यहाँ तक के अधेड़ उम्र के आदमी भी क्रिकेट खेलने आते थे.
क्रिकेट ग्राउंड मे ही मेरी पहचान दिनेश से हुई. वो ट्रक ड्राइवर था. जब फ्री होता तोह, क्रिकेट खेलने हमारे पास चला आता. मेरे और दिनेश के आपस मे बहुत जमने लगी थी. कुछ ही मुलाकातों में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे. एक दिन के बात है. शाम का ६ बज रहे थी. आस्मां मे बादल छाए हुए थे. सुब्हे से बारिश शुरू हुई थी. जो थोड़ी देर पहले ही थमी थी. तोह हम सब दोस्त लोग वह खेलने पहुंच गए. पर जब वह पहुंचे तोह वह ग्राउंड मे बारिश का पानी भरा हुआ था.
मैं और मेरे दोस्त उदास हो गए. और फिर मैं अपने दोस्तों के साथ जैसे ही वापिस जाने लगा तोह, दिनेश ने मुझे पीछे से आवाज़ दी. मैं दिनेश के आवाज़ सुन कर रुक गया. "तुम चलो मैं आता हूँ." मेने अपने दोस्तों को कहा तोह वो सब जाने लगे. दिनेश मेरे पास आया. मुझसे हाथ मिला कर हाल चाल पूछने लगा.
दिनेश: और सनी कैसा है ?
मैं: मैं ठीक हूँ. तुम कैसे हो. ?
दिनेश: मैं भी ठीक हूँ.
मैं: कोई काम था क्या ?
दिनेश: हाँ यार तेरी छोटी से हेल्प चाहये.
मैं: हाँ बोलो क्या काम है....
दिनेश: यार मेरा एक दोस्त है. वो भी ट्रक चलता है. मेरे तरह....
मैं: हाँ तोह.
दिनेश: यार उसके पत्नी की सेटिंग है मेरे साथ.
मैं : (एक दम से चौंकते हुए ) क्या ? तेरे सेटिंग है.
दिनेश: हाँ यार उसका पति आज गया हुआ गाड़ी भर कर. चार दिन बाद आएगा. मेने उसे मिलाने के लए बुलाया है.
मैं: अच्छा कहा पर. ?
दिनेश: यार वो उधर जो खाली जगह है ना वहाँ पर....
मैं: यार अगर उसका पति घर पर नहीं है तोह, उसके घर चला क्यों नहीं जाता.
दिनेश: नहीं जा सकता यार. उसके सास है घर पर. और बचे भी है उसके .....
मैं: अच्छा तोह मैं क्या कर सकता हूँ.....
दिनेश: यार वो सामने माकन देख रहा है. (उसने एक मकान की तरफ इशारा करते हुए कहा. जो अभी बन रहा था. )
मैं: हाँ देख रहा हूँ.....
दिनेश: उसी के पास बुलाया है.
मैं: फिर.
दिनेश: यार तुम अगर साथ चलोगे तोह मकान के बहार नज़र रखना. यही एक रास्ता जाता है. वैसे तोह वहाँ इस समाये कोई नहीं आता. पर फिर भी तुम धयान रखोगे. तोह मैं आसानी से एक बार उसकी फुदी मार लूंगा.
अब दिनेश के बातें सुन कर मेरे लंड में भी हलचल होने लगी थी. आज तक चूत तोह कभी मरी नहीं थी. सोचा चलो कुछ देखने को ही मिल जाये. इसलिए में दिनेश के बात मान गया. और उसके साथ वही बैठ गया. अब धीरे-२ अँधेरा होने लगा था. तभी दिनेश ने मेरे घुटने पर हाथ रख कर हिलाया. और धीरे से बोला. "वो देख आ रही है. मेरे डार्लिंग..." मैंने पीछे मुड़ कर देखा.... पीछे से एक औरत चली आ रही थी. उसके साथ एक लड़की भी थी. उस औरत ने पिंक कलर का सलवार कमीज पहना हुआ था. और लड़की ने रेड कलर के कमीज और नीचे वाइट कलर के चूड़ीदार पजामी पहनी हुई थी. "कौन से वाली है ? " मैंने उन दोनों के तरफ देखते हुए पुछा.
दिनेश: वो पिंक सूट वाली...
में: और ये साथ में दूसरी कौन है ?
दिनेश: यार उसके भतीजी है. इसके पति की बहन की बेटी . चल अब उस तरफ चलते है.
जब वो दोनों हमारे पास से गुजरी तोह , मैंने दोनों को धयान से देखा. उस औरत के उम्र करीब तीस साल की थी. और वो लड़की करीब अठरा साल की रही होगी. वो हमारे पास से गुजर कर उस बन रहे मकान की तरफ जाने लगी. सात बज चुके थी. इसलिए वहां किसी और के होने के सभावना नहीं थी. जब हम दोनों उठ कर उनके पीछे जाने लगी तोह, बारिश के बार फिर से शुरू हो गए. बारिश शुरू होते ही, उन दोनों ने अपनी चलने के रफतार को बढ़ाया. और हमने भी. थोड़ी देर बाद हम उस माकन के पास पहुंच गए थी. बारिश के बूंदा बंदी अब तेज हो चली थी.
उस माकन में अभी मैन गेट नहीं लगा था. इसलिए हम अंदर चले गए. पर जैसे ही अंदर पहुंचे तोह, पता चला की, अंदर कमरो तक जाने के लिए जिस हाल से अंदर जाना था. वहां का दरवाजा बंद था. बहार की तरफ बने हुए कमरे में जो खिड़क्यों के लगाने के जगह थी. वह पर अभी खिड़कायां नहीं लगी थी. इसलिए उससे अंदर जाया जा सकता था. "ये लड़का कौन है. ?" उस औरत ने दिनेश से पुछा. "मेरा दोस्त है...." दिनेश ने मेरे तरफ देखते हुए कहा. तोह उस औरत ने भी एक बार मुझे देखा और फिर मुस्कराई. " सनी तुम दोनों यही खड़े रहना. और धयान रखना. ये कह कर वो दोनों खिड़की फांध कर अंदर चले गए. हम वही बहार खड़े थी. गनीमत थी की, ऊपर छत थी. नहीं तोह बारिश में मैं तोह भीग ही जाता. और वो लड़की भी.
मैंने उस लड़की के तरफ देखा. वो नीचे सर को झुकाये हुए खड़ी थी. उसके होंटो पर हलकी से मुस्कान फैली हुई थी. शायद वो अपने आप को इस स्तिति में पाकर शर्मा रही थी. हलकी वो उम्र में मुझसे लगभग ३ साल बड़ी थी. उसके वाइट कलर के पजामी उसके झांगो से एक दम चिपके हुई थी. उसकी ३२ साइज के मम्मे उसके रेड कलर के कमीज में एक दम कैसे हुए दिखाई दे रहे थे. उसके ब्रा की लाइन भी साफ़ नज़र आ रही थी....उसने अपने सर को ऊपर उठा कर एक बार मेरे तरफ देखा, और फिर जब उसको महसूस हुआ की, में उसके बदन का घूर रहा हूँ. तोह, उसने फिर से शरमाते हुए अपने सर को नीचे झुका लाया. उसके होंटो पर फैली हुई मुस्कान से मुझे थोड़ा सा होंसला मिला तोह, मेने हिम्मत करते हुए उससे पुछा
में : आपका नाम क्या है....
वो: जी साक्षी...
मैं: और मेरा नाम सनी है.
साक्षी: पता है मुझे...दिनेश ने अभी आपका नाम लिया था.
मैं: ओह्ह हाँ......
वो फिर से मुस्कारी, और मेरे तरफ देखने लगी....बारिश अब पूरे जोर से हो रही थी. तभी अंदर से उस औरत के सिसकने के आवाज़ आयी......"आह दिनेश धीरे ओह्ह्ह्ह सीईईईईईइ हाईईई मार दिता अह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ्फ़ हाआआन पूरा पा दे अंदर अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हयीईईए चला गया उफ्फ्फ्फ् ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी फुदी......अंदर से आ रही उस औरत के कामुक आवाज़ें सुन कर तोह मेरे लंड ने पेंट के अंदर बगवात कर दी थी. साला ऐसे खड़ा होगया के सामने कड़ी साक्षी को भी पेंट में बना हुआ टेंट साफ़ नज़र आ गया होगा. वो भी अपनी मासी के सिसकने के आवाज़ सुन कर शर्म से लाल हो गए थी. अंदर से थाप -२ के थपेड़ो के आवाज़े आने लगी थी. "ओह्ह्ह पिंकी प्लीज एक बार बिना कंडोम के फुदी मरने दे ना. " अंदर से दिनेश के आवाज़ आयी तोह, मेने चौंकते हुए साक्षी के तरफ देखा. वो बुरी तरह शरमा रही थी....अंदर धुंआ धार चुदाई चल रही थी....जिसकी आवाज़ हम दोनों को बहार तक आ रही थी.
साक्षी भी पूरी गरम हो चुकी थी.... "नहीं दिनेश अभी नहीं.....दो दिन बाद मेने ऑपरेशन करवा लेना है. थोड़े दिन ठहर जा....फिर तेरा जितना दिल करे.....कंडोम के बिना फुदी मार लेना....." अब वह का माहोल एक दम गरम हो चूका था. "अहह तुजे तोह पता है. मैंने ६ दिन बाद दुबई चले जाना है. फिर तोह दो साल बाद वापिस आऊंगा. “अंदर से फिर वही थप-२ के आवाज़ आने लगी...."अह्ह्ह्ह हाई ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह फिर क्या हुआ, पिंकी दो साल भी तुजे यही मिलेगी...." अब तोह चुदाई पूरी रफ़्तार से हो रही थी. फिर थोड़ी देर बाद दोनों बहार आ गए. बारिश थमी तोह, हम सब जल्दी से वहा से निकल कर अपने -२ घर के तरफ चल पड़े. धीरे -२ सात दिन गुजर गए. दिनेश दुबई जाने से पहले मुझे एक बार मिला. पिंकी का घर हमारी गली से पीछे वाली गली में था. उसके घर के दोनों तरफ बहुत सरे प्लॉट्स खाली थी. उस समय में स्कूल में था. इसलिए पिंकी और साक्षी को कभी दोबारा नहीं देखा. हाँ एक दो बार पिंकी को अपने घर के गेट के बहार किसी औरत से बात करते हुए हुए देखा. पर उसका धयान मेरे तरफ नहीं गया.
दिन पर दिन बीत रहे थी. उस घटना को हुए ३ महीने गुजर चुके थे. अब मैं तकरीबन पिंकी आंटी को भूल ही चूका था. सर्दियों के शुरवात हो चुकी थी. एक दिन मैं अपने दोस्तों के साथ बहार गाली में ही क्रिकेट खेल रहा था. तभी एक लड़का हमारे पास आया. और कहने लगा की, उसे भी हमारे साथ खेलना है. तभी मेरा एक दोस्त बोला की, चल इसे खेला लेते है . फिर वो लड़का भी हमारे साथ खेलने लगा.....फिर तकरबीन वो रोज हमें ग्राउंड में भी मिलाने लगा. क्रिकेट खेलने का उसे बहुत शौंक था. इसलिए वो भी अक्सर हमारे साथ खेलने आने लगा.
एक दिन में अपने घर से थोड़ी दूर एक खली प्लाट के तरफ गया. कभी-२ कभार हम वह भी क्रिकेट खेल लिया करते थे. उस दिन और कोई तोह नहीं आया. पर वो लड़का वही खड़ा था. उसका नाम मनोज था. मैं अपने साथ बैट और टेनिस के बॉल लेकर आया था. हम दोनों ने ही वह खेलना शुरू कर दिया. सोचा जब तक बाकि के दोस्त लोग नहीं आ जाते. तब तक टाइम पास करते है. मनोज ने बोल्लिंग शुरू की. और मैंने पहले ही बॉल पर ऐसा धनधनता हुआ शॉट मारा की टेनिस की बॉल थप के आवाज़ से फट गयी. मनोज ने बॉल उठाई. और मुझे देखते हुए बोला. "सनी भया इसका तोह काम हो गया है. "
मई: अब क्या करें. पैसे भी नहीं है. नए बॉल लाने के लिए....
मनोज : भय्या मेरे पास घर पर बॉल है. चलो लेकर आते है.
मनोज ने मेरे पास आते हुए कहा. तोह मैंने हाँ कर दी. और उसके साथ उसके घर के तरफ चल पड़ा. जैसे ही मैं उसके साथ उसके घर के बहार पहुंचा. तोह मैं एक दम से चोंक गया. तीन महीने पहले के यादें ताज़ा हो गए. ये पिंकी का घर ही था. उसने बेल्ल बजाई. तोह थोड़ी देर बाद गेट खुला. सामने पिंकी खड़ी थी. एक बार तोह वो भी मुझे देख कर चोंक गए. "मम्मी वो मेरे बॉल कहा पर है. " मनोज ने पिंकी को कहा. तोह मुझे समझ में आया के मनोज पिंकी का बेटा है. उसने मेरे हाथ में पकड़े हुए बैट को देखा. और फिर मुस्कराते हुए मुझे अंदर आने को कहा. मनोज तोह पहले ही अंदर जा चूका था.
में अंदर चला गया. पिंकी ने गेट बंद किया. और फिर मुझे अंदर की तरफ आने का इशारा किया. तोह में उसके पीछे चलता हुआ, पीछे बने रूम में आ गया. जब वह पहुंचा तोह, मनोज ने बॉल ढूंढ ली थी. उसने मुझे बॉल दिखाते हुए कहा. "मिल गए....चलें सनी भय्या...." मैंने हाँ में सर हिला दिया. और जैसे ही बहार जाने लगा तोह, पिंकी ने मनोज को रोक लिया. "मनोज अपने दोस्त को पहली बार घर लाये हो. कोई चाय पानी नहीं पूछोगे. क्या हमने तुम्हे यही सिखाया है. " मनोज ने अपनी मम्मी की तरफ देखा और बोला. "सॉरी माँ "
पिंकी: चलो बैठो. में चाय बनती हूँ.
ये कह कर पिंकी किचन में चली गए. मनोज ने मुझे बैठने को कहा. तोह में वही चेयर पर पर बैठ गया. यकीन मनो दोस्तों. उस समाये में बहुत जयादा एक्ससितेद फील कर रहा था. मेरे पैर काँप रहे थे. तभी थोड़ी देर बाद पिंकी ने मनोज को किचन से आवाज़ दी. तोह मनोज उठ कर किचन में चला गया. थोड़ी देर बाद मनोज किचन से बहार निकला और बहार गेट के तरफ गया. गेट खोला और बहार निकल कर फिर से गेट बंद कर दिया. जैसे ही गेट बंद होने के आवाज़ आयी. पिंकी ने बहार निकल कर गेट की तरफ देखा. और फिर रूम में आ गयी.... उसके होंटो पर अजीब से मुस्कान थी. वो मेरे पास आकर चेयर पर बैठ गयी.
पिंकी: चाय रखी है. थोड़ी देर में बन जाये गई.
में: वो मनोज कहा गया है.....(मेने थोड़ा सा घबराते हुए पुछा....)
पिंकी: वो समोसे लेने गया है. क्यों तुम्हे मुझसे डर लग रहा है. (पिंकी ने कामुकता भरी मुस्कान के साथ कहा. )
में: नहीं ऐसे ही पुछा था.
पिंकी: दिनेश से बात होती है तुम्हारी. ?
में: जी जी नहीं...
पिंकी: अच्छा ! उस दिन के बाद तुम भी दिखाई नहीं दिए.
में: जी मुझे नहीं पता था की, आप यहाँ रहती है.
पिंकी: अच्छा अब तोह पता चल गया है ना .....आ जाया करना अब.
में: जी.
पिंकी: अच्छा ये बातो की तुमने उस दिन वाली बात किसी को बताई तोह नहीं.
में: जी नहीं.
पिंकी: अच्छा एक बात पूछूं. (पिंकी ने अपने होंटो को अपने दांतो के नीचे दबाते हुए कहा.)
में: जी....
पिंकी: तुमने कभी वो सब किया है.
मैं पिंकी के बात सुनकर हैरान हो गया. मुझे जरा भी अंदाज़ा नहीं था. की वो मुझसे ये भी पूछ सकती है. और मैं उस समय उसके सवाल का जवाब देने के लिए बिलकुल भी तैयार ना था. मेरी पेरशानी को देख कर वो मुस्कारी और धीरे से मेरे करीब खिसकते हुए बोली. "बताओ ना....घबरा क्यों रहे हो. " मैं एक दम से चोंक गया था. मैंने हड़बड़ाते हुए कहा. "न नहीं कभी नहीं किया. " वो मेरे बात सुन कर मुस्कारी और फिर बहार गेट के तरफ देखते हुए बोली. "क्यों तुम्हारा दिल नहीं करता वो सब करने को. " अब तोह ऐसे हो गया. जैसे मेरे मूह मैं जुबान ना हो. वो मेरे हालत समझ रही थी. उसके होंटो पर ऐसे मुस्कान पहेली हुई थी. जैसे कोई बिल्ली चूहे को देख कर मुस्करा रही हो.
पिंकी: अच्छा ये बाताओं की, तुम्हारी कभी किसी लड़की से बात हुई है. मतलब कोई गर्ल फ्रेंड है तुम्हारी. ?
मैं: जी नहीं है.......
पिंकी : सनी तुम (तभी बहार गेट खुला. मनोज समोसे लेकर आ गया था. वो रूम मैं आया.
पिंकी: मनोज बेटा जा इसे प्लेट्स मैं डाल कर ले आ.
मनोज किचन में चला गया. तोह पिंकी मेरे और करीब खिसक कर धीरे से बोली. "सनी कल छुट्टी ले सकते हो . " मैंने पिंकी की तरफ हैरानी से देखा और धीरे बोला. "क्यों. " तोह उसने एक बार किचन की तरफ देखा और फिर धीरे से बोली " अगर वो सब करना है तोह कल नौ बजे यहाँ आ jana. " मैंने पिंकी के तरफ देखा. वो होंटो पर मुस्कान लिए हुए मुस्करा रही थी...."वो पापा छूटी नहीं करने देंगे . " मैंने भी धीरे से कहा. इतने में मनोज प्लेट में समोसे लेकर आ गया. फिर चाय पी और समोसे खा कर हम दोनों खेलने के लिए चले गए. वो दिन ऐसे ही कट गया. अगले दिन में स्कूल चला गया. नजाने क्यों मुझसे हिम्मत नहीं हो रही थी. मेरे जिगसा सेक्स की तरफ बढाती जा रही थी. में मन ही मन अपने आप को कोस रहा था. की आखिर क्यों मैंने इतना अच्छा मौका गवा दिया.....
किसी तरह छूटी हुई. और मैंने घर पहुंच कर खाना खाया. और फिर पिंकी के घर की तरफ चल पड़ा. बहाना तोह मेरे पास था ही. की में अपने दोस्त से मिलाने आया हूँ. इसलिए में बेधड़क उसके घर जा सकता था. में उसके घर के बहार पहुंचा और बेल बजाई. तोह थोड़ी देर बाद पिंकी ने गेट खोला. वो मुझे देख कर मुस्कारी और फिर पीछे की तरफ एक बार देखा. और फिर धीरे से फुसफुसाते हुए बोली. "सुब्हे क्यों नहीं आये....?"
में: वो मम्मी पापा छुट्टी नहीं लेने देते. (मेने हकलाते हुए कहा. )
पिंकी: अच्छा चल अंदर आ जा.
मैंने अंदर चला गया. पिंकी ने गेट बंद किया. और मेरे आगे चलते हुए रूम में चली गए. में भी उसके पीछे रूम में चला गया. वह अंदर बैड पर मनोज बैठा हुआ था. मैंने उसके पास जाकर बैठ गया. " आज इसे बुखार हो गया है. आज ये खेलने नहीं जायेगा. " पिंकी ने बैड पर बैठते हुए कहा. "मम्मी प्लीज जाने दो ना. अब में ठीक हूँ. " मनोज ने मिनतें करते हुए कहा. "एक बार मना कर दिया ना...नहीं जाना तोह मतलब नहीं जाना. आज तुन इस कमरे से बहार पैर रख कर तोह देख....तेरी टाँगे ना तोड़ दी तोह. " पिंकी के फटकार सुन कर मनोज एक दम से चुप होकर बैठ गया. में भी थोड़ा सा घबरा गया.
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मेरा नाम सनी है. कुछ एक महीने पहले ही हमने नया घर खीरदा था. जहा पर हमारा हमारा नया घर था. वो एरिया उस समय जयादा डेवेलप नहीं था. काफी जगह वहाँ अभी खली थी. वैसे तोह कुछ लोग वह पर कई सालो से रह रहे थे. पर सिटी से बहार होने के कारन वह विकास बहुत कम हुआ था. बरसतो का मौसम था. मोहले से बहार निकलते तोह, पीछे बड़े -२ ग्राउंड खली नज़र आते थे. जहा पर मैं अपने दोस्तों के साथ अकसर क्रिकेट खेलने जाता था. मैं अपने पड़ोस मैं रहने वाले दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने निकल जाता था. वह पर कई और लड़के यहाँ तक के अधेड़ उम्र के आदमी भी क्रिकेट खेलने आते थे.
क्रिकेट ग्राउंड मे ही मेरी पहचान दिनेश से हुई. वो ट्रक ड्राइवर था. जब फ्री होता तोह, क्रिकेट खेलने हमारे पास चला आता. मेरे और दिनेश के आपस मे बहुत जमने लगी थी. कुछ ही मुलाकातों में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे. एक दिन के बात है. शाम का ६ बज रहे थी. आस्मां मे बादल छाए हुए थे. सुब्हे से बारिश शुरू हुई थी. जो थोड़ी देर पहले ही थमी थी. तोह हम सब दोस्त लोग वह खेलने पहुंच गए. पर जब वह पहुंचे तोह वह ग्राउंड मे बारिश का पानी भरा हुआ था.
मैं और मेरे दोस्त उदास हो गए. और फिर मैं अपने दोस्तों के साथ जैसे ही वापिस जाने लगा तोह, दिनेश ने मुझे पीछे से आवाज़ दी. मैं दिनेश के आवाज़ सुन कर रुक गया. "तुम चलो मैं आता हूँ." मेने अपने दोस्तों को कहा तोह वो सब जाने लगे. दिनेश मेरे पास आया. मुझसे हाथ मिला कर हाल चाल पूछने लगा.
दिनेश: और सनी कैसा है ?
मैं: मैं ठीक हूँ. तुम कैसे हो. ?
दिनेश: मैं भी ठीक हूँ.
मैं: कोई काम था क्या ?
दिनेश: हाँ यार तेरी छोटी से हेल्प चाहये.
मैं: हाँ बोलो क्या काम है....
दिनेश: यार मेरा एक दोस्त है. वो भी ट्रक चलता है. मेरे तरह....
मैं: हाँ तोह.
दिनेश: यार उसके पत्नी की सेटिंग है मेरे साथ.
मैं : (एक दम से चौंकते हुए ) क्या ? तेरे सेटिंग है.
दिनेश: हाँ यार उसका पति आज गया हुआ गाड़ी भर कर. चार दिन बाद आएगा. मेने उसे मिलाने के लए बुलाया है.
मैं: अच्छा कहा पर. ?
दिनेश: यार वो उधर जो खाली जगह है ना वहाँ पर....
मैं: यार अगर उसका पति घर पर नहीं है तोह, उसके घर चला क्यों नहीं जाता.
दिनेश: नहीं जा सकता यार. उसके सास है घर पर. और बचे भी है उसके .....
मैं: अच्छा तोह मैं क्या कर सकता हूँ.....
दिनेश: यार वो सामने माकन देख रहा है. (उसने एक मकान की तरफ इशारा करते हुए कहा. जो अभी बन रहा था. )
मैं: हाँ देख रहा हूँ.....
दिनेश: उसी के पास बुलाया है.
मैं: फिर.
दिनेश: यार तुम अगर साथ चलोगे तोह मकान के बहार नज़र रखना. यही एक रास्ता जाता है. वैसे तोह वहाँ इस समाये कोई नहीं आता. पर फिर भी तुम धयान रखोगे. तोह मैं आसानी से एक बार उसकी फुदी मार लूंगा.
अब दिनेश के बातें सुन कर मेरे लंड में भी हलचल होने लगी थी. आज तक चूत तोह कभी मरी नहीं थी. सोचा चलो कुछ देखने को ही मिल जाये. इसलिए में दिनेश के बात मान गया. और उसके साथ वही बैठ गया. अब धीरे-२ अँधेरा होने लगा था. तभी दिनेश ने मेरे घुटने पर हाथ रख कर हिलाया. और धीरे से बोला. "वो देख आ रही है. मेरे डार्लिंग..." मैंने पीछे मुड़ कर देखा.... पीछे से एक औरत चली आ रही थी. उसके साथ एक लड़की भी थी. उस औरत ने पिंक कलर का सलवार कमीज पहना हुआ था. और लड़की ने रेड कलर के कमीज और नीचे वाइट कलर के चूड़ीदार पजामी पहनी हुई थी. "कौन से वाली है ? " मैंने उन दोनों के तरफ देखते हुए पुछा.
दिनेश: वो पिंक सूट वाली...
में: और ये साथ में दूसरी कौन है ?
दिनेश: यार उसके भतीजी है. इसके पति की बहन की बेटी . चल अब उस तरफ चलते है.
जब वो दोनों हमारे पास से गुजरी तोह , मैंने दोनों को धयान से देखा. उस औरत के उम्र करीब तीस साल की थी. और वो लड़की करीब अठरा साल की रही होगी. वो हमारे पास से गुजर कर उस बन रहे मकान की तरफ जाने लगी. सात बज चुके थी. इसलिए वहां किसी और के होने के सभावना नहीं थी. जब हम दोनों उठ कर उनके पीछे जाने लगी तोह, बारिश के बार फिर से शुरू हो गए. बारिश शुरू होते ही, उन दोनों ने अपनी चलने के रफतार को बढ़ाया. और हमने भी. थोड़ी देर बाद हम उस माकन के पास पहुंच गए थी. बारिश के बूंदा बंदी अब तेज हो चली थी.
उस माकन में अभी मैन गेट नहीं लगा था. इसलिए हम अंदर चले गए. पर जैसे ही अंदर पहुंचे तोह, पता चला की, अंदर कमरो तक जाने के लिए जिस हाल से अंदर जाना था. वहां का दरवाजा बंद था. बहार की तरफ बने हुए कमरे में जो खिड़क्यों के लगाने के जगह थी. वह पर अभी खिड़कायां नहीं लगी थी. इसलिए उससे अंदर जाया जा सकता था. "ये लड़का कौन है. ?" उस औरत ने दिनेश से पुछा. "मेरा दोस्त है...." दिनेश ने मेरे तरफ देखते हुए कहा. तोह उस औरत ने भी एक बार मुझे देखा और फिर मुस्कराई. " सनी तुम दोनों यही खड़े रहना. और धयान रखना. ये कह कर वो दोनों खिड़की फांध कर अंदर चले गए. हम वही बहार खड़े थी. गनीमत थी की, ऊपर छत थी. नहीं तोह बारिश में मैं तोह भीग ही जाता. और वो लड़की भी.
मैंने उस लड़की के तरफ देखा. वो नीचे सर को झुकाये हुए खड़ी थी. उसके होंटो पर हलकी से मुस्कान फैली हुई थी. शायद वो अपने आप को इस स्तिति में पाकर शर्मा रही थी. हलकी वो उम्र में मुझसे लगभग ३ साल बड़ी थी. उसके वाइट कलर के पजामी उसके झांगो से एक दम चिपके हुई थी. उसकी ३२ साइज के मम्मे उसके रेड कलर के कमीज में एक दम कैसे हुए दिखाई दे रहे थे. उसके ब्रा की लाइन भी साफ़ नज़र आ रही थी....उसने अपने सर को ऊपर उठा कर एक बार मेरे तरफ देखा, और फिर जब उसको महसूस हुआ की, में उसके बदन का घूर रहा हूँ. तोह, उसने फिर से शरमाते हुए अपने सर को नीचे झुका लाया. उसके होंटो पर फैली हुई मुस्कान से मुझे थोड़ा सा होंसला मिला तोह, मेने हिम्मत करते हुए उससे पुछा
में : आपका नाम क्या है....
वो: जी साक्षी...
मैं: और मेरा नाम सनी है.
साक्षी: पता है मुझे...दिनेश ने अभी आपका नाम लिया था.
मैं: ओह्ह हाँ......
वो फिर से मुस्कारी, और मेरे तरफ देखने लगी....बारिश अब पूरे जोर से हो रही थी. तभी अंदर से उस औरत के सिसकने के आवाज़ आयी......"आह दिनेश धीरे ओह्ह्ह्ह सीईईईईईइ हाईईई मार दिता अह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ्फ़ हाआआन पूरा पा दे अंदर अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हयीईईए चला गया उफ्फ्फ्फ् ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी फुदी......अंदर से आ रही उस औरत के कामुक आवाज़ें सुन कर तोह मेरे लंड ने पेंट के अंदर बगवात कर दी थी. साला ऐसे खड़ा होगया के सामने कड़ी साक्षी को भी पेंट में बना हुआ टेंट साफ़ नज़र आ गया होगा. वो भी अपनी मासी के सिसकने के आवाज़ सुन कर शर्म से लाल हो गए थी. अंदर से थाप -२ के थपेड़ो के आवाज़े आने लगी थी. "ओह्ह्ह पिंकी प्लीज एक बार बिना कंडोम के फुदी मरने दे ना. " अंदर से दिनेश के आवाज़ आयी तोह, मेने चौंकते हुए साक्षी के तरफ देखा. वो बुरी तरह शरमा रही थी....अंदर धुंआ धार चुदाई चल रही थी....जिसकी आवाज़ हम दोनों को बहार तक आ रही थी.
साक्षी भी पूरी गरम हो चुकी थी.... "नहीं दिनेश अभी नहीं.....दो दिन बाद मेने ऑपरेशन करवा लेना है. थोड़े दिन ठहर जा....फिर तेरा जितना दिल करे.....कंडोम के बिना फुदी मार लेना....." अब वह का माहोल एक दम गरम हो चूका था. "अहह तुजे तोह पता है. मैंने ६ दिन बाद दुबई चले जाना है. फिर तोह दो साल बाद वापिस आऊंगा. “अंदर से फिर वही थप-२ के आवाज़ आने लगी...."अह्ह्ह्ह हाई ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह फिर क्या हुआ, पिंकी दो साल भी तुजे यही मिलेगी...." अब तोह चुदाई पूरी रफ़्तार से हो रही थी. फिर थोड़ी देर बाद दोनों बहार आ गए. बारिश थमी तोह, हम सब जल्दी से वहा से निकल कर अपने -२ घर के तरफ चल पड़े. धीरे -२ सात दिन गुजर गए. दिनेश दुबई जाने से पहले मुझे एक बार मिला. पिंकी का घर हमारी गली से पीछे वाली गली में था. उसके घर के दोनों तरफ बहुत सरे प्लॉट्स खाली थी. उस समय में स्कूल में था. इसलिए पिंकी और साक्षी को कभी दोबारा नहीं देखा. हाँ एक दो बार पिंकी को अपने घर के गेट के बहार किसी औरत से बात करते हुए हुए देखा. पर उसका धयान मेरे तरफ नहीं गया.
दिन पर दिन बीत रहे थी. उस घटना को हुए ३ महीने गुजर चुके थे. अब मैं तकरीबन पिंकी आंटी को भूल ही चूका था. सर्दियों के शुरवात हो चुकी थी. एक दिन मैं अपने दोस्तों के साथ बहार गाली में ही क्रिकेट खेल रहा था. तभी एक लड़का हमारे पास आया. और कहने लगा की, उसे भी हमारे साथ खेलना है. तभी मेरा एक दोस्त बोला की, चल इसे खेला लेते है . फिर वो लड़का भी हमारे साथ खेलने लगा.....फिर तकरबीन वो रोज हमें ग्राउंड में भी मिलाने लगा. क्रिकेट खेलने का उसे बहुत शौंक था. इसलिए वो भी अक्सर हमारे साथ खेलने आने लगा.
एक दिन में अपने घर से थोड़ी दूर एक खली प्लाट के तरफ गया. कभी-२ कभार हम वह भी क्रिकेट खेल लिया करते थे. उस दिन और कोई तोह नहीं आया. पर वो लड़का वही खड़ा था. उसका नाम मनोज था. मैं अपने साथ बैट और टेनिस के बॉल लेकर आया था. हम दोनों ने ही वह खेलना शुरू कर दिया. सोचा जब तक बाकि के दोस्त लोग नहीं आ जाते. तब तक टाइम पास करते है. मनोज ने बोल्लिंग शुरू की. और मैंने पहले ही बॉल पर ऐसा धनधनता हुआ शॉट मारा की टेनिस की बॉल थप के आवाज़ से फट गयी. मनोज ने बॉल उठाई. और मुझे देखते हुए बोला. "सनी भया इसका तोह काम हो गया है. "
मई: अब क्या करें. पैसे भी नहीं है. नए बॉल लाने के लिए....
मनोज : भय्या मेरे पास घर पर बॉल है. चलो लेकर आते है.
मनोज ने मेरे पास आते हुए कहा. तोह मैंने हाँ कर दी. और उसके साथ उसके घर के तरफ चल पड़ा. जैसे ही मैं उसके साथ उसके घर के बहार पहुंचा. तोह मैं एक दम से चोंक गया. तीन महीने पहले के यादें ताज़ा हो गए. ये पिंकी का घर ही था. उसने बेल्ल बजाई. तोह थोड़ी देर बाद गेट खुला. सामने पिंकी खड़ी थी. एक बार तोह वो भी मुझे देख कर चोंक गए. "मम्मी वो मेरे बॉल कहा पर है. " मनोज ने पिंकी को कहा. तोह मुझे समझ में आया के मनोज पिंकी का बेटा है. उसने मेरे हाथ में पकड़े हुए बैट को देखा. और फिर मुस्कराते हुए मुझे अंदर आने को कहा. मनोज तोह पहले ही अंदर जा चूका था.
में अंदर चला गया. पिंकी ने गेट बंद किया. और फिर मुझे अंदर की तरफ आने का इशारा किया. तोह में उसके पीछे चलता हुआ, पीछे बने रूम में आ गया. जब वह पहुंचा तोह, मनोज ने बॉल ढूंढ ली थी. उसने मुझे बॉल दिखाते हुए कहा. "मिल गए....चलें सनी भय्या...." मैंने हाँ में सर हिला दिया. और जैसे ही बहार जाने लगा तोह, पिंकी ने मनोज को रोक लिया. "मनोज अपने दोस्त को पहली बार घर लाये हो. कोई चाय पानी नहीं पूछोगे. क्या हमने तुम्हे यही सिखाया है. " मनोज ने अपनी मम्मी की तरफ देखा और बोला. "सॉरी माँ "
पिंकी: चलो बैठो. में चाय बनती हूँ.
ये कह कर पिंकी किचन में चली गए. मनोज ने मुझे बैठने को कहा. तोह में वही चेयर पर पर बैठ गया. यकीन मनो दोस्तों. उस समाये में बहुत जयादा एक्ससितेद फील कर रहा था. मेरे पैर काँप रहे थे. तभी थोड़ी देर बाद पिंकी ने मनोज को किचन से आवाज़ दी. तोह मनोज उठ कर किचन में चला गया. थोड़ी देर बाद मनोज किचन से बहार निकला और बहार गेट के तरफ गया. गेट खोला और बहार निकल कर फिर से गेट बंद कर दिया. जैसे ही गेट बंद होने के आवाज़ आयी. पिंकी ने बहार निकल कर गेट की तरफ देखा. और फिर रूम में आ गयी.... उसके होंटो पर अजीब से मुस्कान थी. वो मेरे पास आकर चेयर पर बैठ गयी.
पिंकी: चाय रखी है. थोड़ी देर में बन जाये गई.
में: वो मनोज कहा गया है.....(मेने थोड़ा सा घबराते हुए पुछा....)
पिंकी: वो समोसे लेने गया है. क्यों तुम्हे मुझसे डर लग रहा है. (पिंकी ने कामुकता भरी मुस्कान के साथ कहा. )
में: नहीं ऐसे ही पुछा था.
पिंकी: दिनेश से बात होती है तुम्हारी. ?
में: जी जी नहीं...
पिंकी: अच्छा ! उस दिन के बाद तुम भी दिखाई नहीं दिए.
में: जी मुझे नहीं पता था की, आप यहाँ रहती है.
पिंकी: अच्छा अब तोह पता चल गया है ना .....आ जाया करना अब.
में: जी.
पिंकी: अच्छा ये बातो की तुमने उस दिन वाली बात किसी को बताई तोह नहीं.
में: जी नहीं.
पिंकी: अच्छा एक बात पूछूं. (पिंकी ने अपने होंटो को अपने दांतो के नीचे दबाते हुए कहा.)
में: जी....
पिंकी: तुमने कभी वो सब किया है.
मैं पिंकी के बात सुनकर हैरान हो गया. मुझे जरा भी अंदाज़ा नहीं था. की वो मुझसे ये भी पूछ सकती है. और मैं उस समय उसके सवाल का जवाब देने के लिए बिलकुल भी तैयार ना था. मेरी पेरशानी को देख कर वो मुस्कारी और धीरे से मेरे करीब खिसकते हुए बोली. "बताओ ना....घबरा क्यों रहे हो. " मैं एक दम से चोंक गया था. मैंने हड़बड़ाते हुए कहा. "न नहीं कभी नहीं किया. " वो मेरे बात सुन कर मुस्कारी और फिर बहार गेट के तरफ देखते हुए बोली. "क्यों तुम्हारा दिल नहीं करता वो सब करने को. " अब तोह ऐसे हो गया. जैसे मेरे मूह मैं जुबान ना हो. वो मेरे हालत समझ रही थी. उसके होंटो पर ऐसे मुस्कान पहेली हुई थी. जैसे कोई बिल्ली चूहे को देख कर मुस्करा रही हो.
पिंकी: अच्छा ये बाताओं की, तुम्हारी कभी किसी लड़की से बात हुई है. मतलब कोई गर्ल फ्रेंड है तुम्हारी. ?
मैं: जी नहीं है.......
पिंकी : सनी तुम (तभी बहार गेट खुला. मनोज समोसे लेकर आ गया था. वो रूम मैं आया.
पिंकी: मनोज बेटा जा इसे प्लेट्स मैं डाल कर ले आ.
मनोज किचन में चला गया. तोह पिंकी मेरे और करीब खिसक कर धीरे से बोली. "सनी कल छुट्टी ले सकते हो . " मैंने पिंकी की तरफ हैरानी से देखा और धीरे बोला. "क्यों. " तोह उसने एक बार किचन की तरफ देखा और फिर धीरे से बोली " अगर वो सब करना है तोह कल नौ बजे यहाँ आ jana. " मैंने पिंकी के तरफ देखा. वो होंटो पर मुस्कान लिए हुए मुस्करा रही थी...."वो पापा छूटी नहीं करने देंगे . " मैंने भी धीरे से कहा. इतने में मनोज प्लेट में समोसे लेकर आ गया. फिर चाय पी और समोसे खा कर हम दोनों खेलने के लिए चले गए. वो दिन ऐसे ही कट गया. अगले दिन में स्कूल चला गया. नजाने क्यों मुझसे हिम्मत नहीं हो रही थी. मेरे जिगसा सेक्स की तरफ बढाती जा रही थी. में मन ही मन अपने आप को कोस रहा था. की आखिर क्यों मैंने इतना अच्छा मौका गवा दिया.....
किसी तरह छूटी हुई. और मैंने घर पहुंच कर खाना खाया. और फिर पिंकी के घर की तरफ चल पड़ा. बहाना तोह मेरे पास था ही. की में अपने दोस्त से मिलाने आया हूँ. इसलिए में बेधड़क उसके घर जा सकता था. में उसके घर के बहार पहुंचा और बेल बजाई. तोह थोड़ी देर बाद पिंकी ने गेट खोला. वो मुझे देख कर मुस्कारी और फिर पीछे की तरफ एक बार देखा. और फिर धीरे से फुसफुसाते हुए बोली. "सुब्हे क्यों नहीं आये....?"
में: वो मम्मी पापा छुट्टी नहीं लेने देते. (मेने हकलाते हुए कहा. )
पिंकी: अच्छा चल अंदर आ जा.
मैंने अंदर चला गया. पिंकी ने गेट बंद किया. और मेरे आगे चलते हुए रूम में चली गए. में भी उसके पीछे रूम में चला गया. वह अंदर बैड पर मनोज बैठा हुआ था. मैंने उसके पास जाकर बैठ गया. " आज इसे बुखार हो गया है. आज ये खेलने नहीं जायेगा. " पिंकी ने बैड पर बैठते हुए कहा. "मम्मी प्लीज जाने दो ना. अब में ठीक हूँ. " मनोज ने मिनतें करते हुए कहा. "एक बार मना कर दिया ना...नहीं जाना तोह मतलब नहीं जाना. आज तुन इस कमरे से बहार पैर रख कर तोह देख....तेरी टाँगे ना तोड़ दी तोह. " पिंकी के फटकार सुन कर मनोज एक दम से चुप होकर बैठ गया. में भी थोड़ा सा घबरा गया.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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