Sunday, November 16, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--27

FUN-MAZA-MASTI

 होली का असली मजा--27

 बांस ऐसे लंड वाले जीजा का क्या फायदा अगर साल्ली , आधे तीहे लंड से चुदे।

जब तक बच्चेदानी पे धक्के पे धक्का न लगे , और दिन में तारे न नजर आएं तो चुदाई क्या।


रीतू भाभी ने पीछे से उन्हें पकड़ा और उनके टिट्स को स्क्रैच करती हुयी , इयर लोब्स काटती बोलीं ,

" अरे नंदोई भडुवे , ये बाकी का आधा लंड क्या मेरी ननद की ननदों के लिए बचा रखा है। "
" नहीं भौजी , आपकी ननद के सास के लिए " जवाब मैंने दिया।

और साथ ही रीतू भाभी की मंझली ऊँगली जो उनके पिछवाड़े को सहला रही थी , एक धक्के में हचक के पूरी तरह उनकी गांड में।



असर ये हुआ की उन्होंने भी पूरी ताकत से धक्का मारा और बचा हुआ लंड , छुटकी की चूत में।

पूरा ९ इंच।

वो बहुत जोर से चीखी , जैसे किसी ने चाक़ू मार दिया हो।



लेकिन मैंने तारीफ से उसकी ओर देखा , सुहागरात की पहली चुदाई में , जब इन्होने मेरी झिल्ली फाड़ी थी , मैं सिर्फ आठ इंच अंदर ले पायी थी।

उस रात की तीसरी चुदाई में जाकर , जड़ तक इनका एक बालिश्त का घोंटा था मैंने , और आज मेंरी बहन ने पहली बार में ही।

उसकी आँखों से फिर आंसू निकल रहे थे , वो दर्द से कराह रही थी

लेकिन मैं और रीतू भाभी मुस्करा रहे थे , उसकी हिम्मत बढ़ा रहे थे।

ये भी बजाय लंड अंदर बाहर करने के , जड़ तक घुसे बित्ते भर के लंड को दबा के , उसके बेस को उसकी चूत के पपोटों पे रगड़ रगड़ के मजा दे रहे थे।

साथ में उनकी उंगलियां भी कभी क्लिट को छेड़तीं तो कभी टिकोरों को मसलतीं।


और जब उसके आंसू सूख गए , कराहें कम हो गयी तो फिर हलके हलके धक्के मारने उन्होंने शुरू कर दिए।

झूले के पेंग की तरह और और अब छुटकी भी उनको बाहों में भींच रही थी , उनके चुम्बन का जवाब दे रही थी और बार बार मजे से सिसक रही थी।

धक्कों की रफ्तार धीरे धीरे तेज हो गयी।

और ऊपर से थी न रीतू भाभी , उकसाने वाली।

का हो नंदोई अरे हचक के पेला सबसे लहुरी साली हौ।


दर्द उसे अभी भी हो रहा था , लेकिन साथ में एक नया नया मजा भी आ रहा था।

जब वो उसे दुहरी कर पूरी ताकत से धक्का मारते , सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी से टकराता।

वो दर्द से कहर उठती , लेकिन साथ में मजे से सिहर भी उठती।

और अब उनके होंठों , उँगलियों का लंड के साथ मिलकर तिहरा हमला हो रहा था।

मस्त कच्चे टिकोरों पर , जोश में आके फूली क्लिट पर , और चूत की हचक कर चुदाई तो हो ही रही थी।


छुटकी दो बार झड़ी।

पहली बार लंड के मजे से वो झड़ रही थी , तूफान में पत्ते की तरह वो काँप रही थी।

और जैसे ही तूफान रुकता उसकी ओखली में मूसल फिर पूरी तेजी से चलने लगता।

२०-२५ मिनट फूल स्पीड चुदाई के बाद वो झड़े ,

छुटकी के पैर उनके कंधे पे थे , और लंड एक दम बच्चेदानी पर सटा ,

जैसे लहर पर लहर आ रही , सफेद गाढ़ी थक्केदार मलाई ,

छुटकी मजे में बेहोश शिथिल पड़ी थी ,


गाढ़ा , सफेद , चिपचिपा वीर्य निकल कर उसकी गोरी गोरी जाँघों पर बह रहा था।


और कुछ देर में वह भी , छुटकी के ऊपर निढाल , गिरे हुए , उसको अपनी देह दबाये , बाँहों में भींचे ,

वीर्य सरिता अभी भी अनवरत बह रही थी।



पहले सम्भोग रस , फिर वीर्य रस और उसके बाद शांत रस।


तूफान के बाद की शान्ति छायी थी।

मैंने और रीतू भाभी एक दूसरे को देख के मुस्करा रहे थे , काम हो गया था।

कली अब फूल बन चुकी थी। उसके जीवन में बसंत आ गया था , और अभी तो ये बस शुरुआत थी।



आज रात में ट्रेन में , फिर उसके कोरे पिछवाड़े के पीछे मेरे नंदोई पड़े थे , और ये भी तो ब्वायिश चूतड़ों के शौक़ीन। तो एक बार मेरी ससुराल जहाँ वह पहुंची , फिर तो ये भी पिछवाड़े का तबला जरूर बजायेंगे। और उसके बाद मेरे ससुराल के लडके , नयकी भौजी क छुटकी बहिनिया , कोई भी छोड़ने वाला नहीं है। फिर ऊपर से मेरी कन्या प्रेमी सास , ननदें , कच्ची कली का भोजन किये बिना ,…


छुटकी ने हलके से आँखे खोलीं और बोली , " जीजू ,… " और फिर जोर से उन्हें बाहों में भींच लिया।

आधे जागे आधे सोये , उन्होंने भी अपनी सबसे छोटी साली को कस के दबोच लिया।

दोनों गुथमगुथा , एक दूसरे के ऊपर चढ़े हुए थे।

और इनका मोटा लंड अभी भी जड़ तक छुटकी की चूत में घुसा था। आधा सोया आधा जागा।


रीतू भाभी ने अपना भौजाई का धर्म अदा किया।

पहले तो उंहोने , उनके गाल पे हलकी सी चुम्मी ली , और एक प्यारी सी बाइट भी।

बस , वो रीतू भाभी की और मुड़े और ,…


प्लाप , मोटा कड़ियल , आधा सोया आधा जाग लंड , छुटकी की चूत से बाहर निकल आया।

छुटकी की किशोर थकी थकी , खुली जांघे अभी भी पूरी तरह फैली थीं।

और वहां हुए हमले के पूरे निशान मौजूद थे।


रीतू भाभी ने उन्ही के रुमाल से , थक्के थक्के , जमे खून के दाग , और वीर्य में मिले खून को साफ किया , एक एक दाग।

अगर छुटकी वो खून देख लेती तो हदस जाती।

हाँ उस की चूत में भरे वीर्य , गाढ़ी बनारसी रबड़ी लच्छेदार रबड़ी की तरह उन्होंने छोड़ दिया , और कुछ ब्लड स्पॉट भी नहीं साफ होपाये।


लेकिन कच्ची कली चुदी थी , कुछ निशान तो रहने ही चाहिए थे।

तब तक वो फिर मुड़े और आधी नींद में , उन्होंने छुटकी को अपनी बाँहों में भींच लिया , और एकदम अपनी स्टाइल में , एक हाथ चूंची पे चूतड़ पे और लंड सीधे सेंटर पर।

और छुटकी भी आखिर मेरी ही बहन थी।

उसने उन्हें कस कर भींच लिया , और यही नहीं उसका एक कोमल कोमल हाथ , उनके लंड सीधे ,

मैंने और रीतू , भाभी ने दूसरे को देखा , मुस्कराईं और अपने कपडे ठीक किये।

वैसे कपडे ज्यादा ठीक करने के लिए तो थे नहीं , बस पेटीकोट पहन लिया , ब्लाउज के ज्यादातर बटन तो हम लोगों ने एकदूसरे ब्लाउज के तोड़ ही दिए थे , जो एक आध बचे थे बस उसी से जस का तस अपनी बड़ी बड़ी, मोटी मोटी चूंचियों पर टांग लिए।

साढ़े पांच बज गए थे।

मम्मी कभी भी सकती थीं।

चार बजे से ये जीजा साली लीला चालू हुयी थी।

रीतू भाभी ने किसी तरह दोनों को अलग किया।

सो वैसे भी वो नहीं रहे थे। छुटकी बस थक कर निढाल थी।


और छुटकी जब उठी , तो अपने जाँघों बीच खून के दाग देख कर देख चौंक उठी और घबड़ा गयी।

( गनीमत थी रीतू भाभी ने खून खच्चर साफ कर दिया था , और वो अगर पूरा हाल देख लेती तो शायद हदस जाती , और दुबारा चुदवाने का नाम नहीं लेती )

रीतू भाभी फिर मैदान में आयीं और उसे समझाने लगीं ,

" अरे मेरी प्यारी बिन्नो , ये तो तेरे जीजू के लिए ख़ुशी मनाने की बात है , की उन्होंने एक कच्ची कली को फूल बना दिया। यही खून तो इस बात की गवाही है , की आज से मेरी ननद अब मेरी और तुम्हारी दी की बिरादरी में गयी। "

तब तक नीचे से मम्मी की दस्तक सुनाई दी और मैं दरवाजा खोलने के लिए भागी।


किसीतरह डारे पर लटकी एक साडी उतार कर जल्दी से मैंने लपेटा और सिटकनी खोल दी।

मम्मी मेरी हालत देख कर मुस्कराई और जब तक मैं दरवाजा बंद करूँ , उन्होंने सवाल दाग दिया,

" दामाद जी , कहाँ है "

" ऊपर " मैंने बोला, उन की ओर मुड कर देखते हुए।

मेरी मुस्कराहट ही उन के अनपूछे सवाल का जवाब थी , लेकिन उन्होंने पूछ ही लिया ,

" खुश हैं ? "
'हाँ , बहोत मम्मी " मैंने मनभर उन्हें बाहों में भींच लिया।

और उन्होंने भी।


कल शाम को जब वो मुंह फुला कर बैठे थे , जब छुटकी ने पहले तो उन्हें ग्रीन सिग्नल दिया और जब गाडी स्टेशन में घुसने वाली थी , तभी दरवाजा बंद कर दिया, तो मम्मी भी एकदम परेशान होगयी थीं। और न उन्हें कुछ समझ में आ रहा था न मुझे , वो तो भला हो रीतू भाभी का उन्होंने मामला सलटा दिया। और छुटकी का भी , जिसने अपने जीजू को मना लिया।


मेरा इतना जवाब काफी था , मम्मी को समझाने के लिए की जो भरतपुर स्टेशन कल बच गया था गया था , आज अच्छी तरह लूट गया है।

और लूटने वाला और लुटवाने वाला दोनों खुश है।

दिल की बस्ती भी अजीब बस्ती है।

लूटने वाले को तरसती है।


' कितने बजे ट्रेन है तुम लोगों की ' मम्मी नेमुझसे अलग होते पुछा।


"साढ़े नौ बजे " .

और मम्मी किचन में घुस गयीं।

दामाद के फेवरिट पकवान बनाने। और मैं भी उन के साथ लग गयी।

" छुटकी का सामान एक बार चेक कर लेना , कहीं कुछ छूट न जाय। ' वो साथ में इंस्ट्रक्शन भी दिए जा रही थीं।

' चाय चढ़ा दू मम्मी " मैंने पुछा , तो बोलीं आने दो न दामाद जी को नीचे , अभी थोड़ा आराम कर लेने दो उसको , वो बोलीं।


कुछ देर हम लोग और काम में लगे रहे , तब तक मिश्रायिन भाभी आ गयीं।

मिश्रायिन भाभी , सब भौजाइयों की लीडर थीं।

मम्मी से दो चार साल ही छोटी , ३२ -३३ के आस पास और मम्मी की तरह की फिगर वाली , दीर्घ नितम्बा , भरे भरे चोली फाड़ उरोजों वाली , थीं मिश्रायिन भाभी।

रिश्ते में भले ही बहू लगें , लेकिन थीं वो मम्मी की पक्की सहेली।

किचेन के काम में उन्होंने हम लोगों का हाथ बटाना शुरू कर दिया , और छुटकी के बारे में पूछा।

जवाब उन्हें सामने से मिल गया , जहाँ सीढ़ी से छुटकी उतर रही थी।

और उसे देख के कोई नौसखिया भी समझ लेती , की हचक के चुदी है बिचारी।




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