FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--59
हम घर पहुंचे और भोजन के बाद पिताजी और बड़के दादा एक चारपाई पे बैठे बातें कर रहे थे| मैं भी वहीँ बैठ गया...अब पिताजी समझ तो चुके थे की कोई बात अवश्य है पर मेरे कहने का इन्तेजार कर रहे थे| करीब पाँच मिनट बड़के दादा को कोई बुलाने आया और वो चले गए| अब मैं और पिताजी अकेले बैठे थे, यही सही समय था बात करने का|
मैं: पिताजी....आपकी मदद चाहिए थी?
पिताजी: हाँ बोल?
मैं: वो पिताजी .... मैंने किसी को वादा कर दिया है|
पिताजी: कैसा वादा? और किसको कर दिया तूने वादा?
मैं: जी .... मैंने भौजी से वादा किया की मैं उन्हिएँ और नेहा को अयोध्या घुमाने ले जाऊँगा| अकेले नहीं....आपके और माँ के साथ|
पिताजी: अच्छा तो?
मैं: अब अकेले तो मैं जा नहीं सकता ..... तो आप ही प्लान बनाइये ना? प्लीज ...प्लीज.... प्लीज!!!
पिताजी: (हँसते हुए) ठीक है... पर पहले अपनी भौजी को बुला, उनसे पूछूं तो की तू सच बोल रहा है या जूठ?
मैंने भौजी को वहीँ बैठे-बैठे इशारे से बुलाया| भौजी डेढ़ हाथ का घुंगट काढ़े आके मेरे पास खड़ी हो गईं?
पिताजी: बहु....मैंने सुना है की लाडसाहब ने तुम्हें वादा किया है की वो तुम दोनों माँ-बेटी ओ अयोध्या घुमाने ले जायेंगे? ये सच है?
भौजी: जी....पिताजी|
पिताजी: (थोड़ा हैरान होते हुए) ठीक है... हम कल जायेंगे....सुबह सात बजे तैयार रहना|
बस भौजी चुप-चाप चलीं गईं| पर जाते-जाते मुड़ के मेरी और देखते हुए भाओें को चढ़ाते हुए पूछ रहीं थी की ये क्या हो रहा है?
मैं: तो पिताजी...मैंने पता किया है की वहाँ घूमने के लिए बहुत सी जगहें हैं .... तो हमें एक रात stay करना होगा वहीँ|
पिताजी: ह्म्म्म्म्म ... आजकल बहुत कुछ पता करने लगा है तू?
मैं झेंप गया और वहाँ से चल दिया| अब सब बातें क्लियर थीं| हम रात वहाँ रुकेंगे...तीन कमरे बुक होंगे...एक में पिताजी और माँ....एक में मैं...और एक कमरे में भौजी और नेहा| रात को मेरा फुल चाँस भौजी के साथ रात गुजारने का| इस तरह भौजी की Wish भी पूरी हो जाएगी| हाँ एक बात थी ... की मुझे भौजी को इस रात के Stay के बारे में कुछ नहीं बताना|
पर मैं नहीं जानता था की किस्मत को कहानी में कुछ और ही ट्विस्ट लाना है|
मैं भौजी के पास जब पहुंचा तो उन्होंने पूछा;
भौजी: सुनिए....आप जरा बताने का कष्ट करेंगे की अभी-अभी जो पिताजी ने कहा वो क्या था? आपने कब मुझसे वादा किया?
मैं: यार ... मैं आपको और नेहा को घुमाना चाहता था.... तो मैंने थोडा से जूठ बोला| That's it!!
भौजी: ओह्ह्ह्ह! तो ये सरप्राइज था..... !!! पर आपने ठीक नहीं किया... खुद भी माँ-पिताजी से जूठ बोला और मुझसे भी जूठ बुलवाया|
मैं: यार कहते हैं ना, everything is fair in Love and War!!!
रात में मेरा और भौजी दोनों का बहुत मन हो रहा था की हम एक साथ सोएं या प्यार करें पर कल सुबह मंदिर जाना था तो किसी तरह अपने मन को समझा बुझा के मना लिया|सबसे ज्यादा खुश तो नेहा थी| वो मुझसे चिपटी हुई थी और बहुत लाड कर रही थी| बार बार कहती... "पापा... वहां हम ये करेंगे...वो करेंगे.... ये खाएंंगे ...वहां जायेंगे" सबसे ज्यादा उतसाहित तो वही थी|अगली सुबह जल्दी-जल्दी तैयार हुए....और हाँ Good Morning Kiss भी मिली! निकलने से पहले माँ ने मुझे हजार रूपए दिए संभालने को| दरअसल मेरी माँ कुछ ज्यादा ही सोचती हैं...जब भी हम किसी भीड़ भाड़ वाली जगह जाते हैं तो वो आधे पैसे खुद रखतीं हैं| आधे पिताजी को देती हैं और थोड़ा बहुत मुझे भी देती हैं| ताकि अगर कभी जेब कटे तो एक की कटे...!!! खेर सवा सात तक हम घर से निकल लिए| माँ-पिताजी आगे-आगे थे और मैं और भौजी पीछे-पीछे थे| नेहा मेरी गोद में थी और सब से ज्यादा खुश तो वही थी| हम मैन रोड पहुंचे और वहां से जीप की ...जिसने हमें बाजार छोड़ा| वहाँ से दूसरी जीप की जिसने हमें अयोध्या छोड़ा| कुल मिला के हमें दो घंटे का असमय लगा अयोध्या पहुँचने में| वहाँ सब से पहले हम मंदिरों में घूमे, मैं नेहा को वहाँ की कथाओ के बारे में बताने लगा और घूमते-घूमते भोजन का समय हो गया| वहाँ एक ही ढंग का रेस्टुरेंट था जहाँ हम बैठ गए| खाना आर्डर मैंने किया ... टेबल पर हम इस प्रकार बैठे थे; एक तरफ माँ और पिताजी और दूसरी तरफ मैं, नेहा और भौजी| खाना आया और मैं नेहा को खिलाने लगा... भौजी ने इशारे से मुझे कहा की वो मुझे खाना खिला देंगी पर मैंने उन्हें घूर के देखा और जताया की पिताजी और माँ सामने ही बैठे हैं| भोजन अभी चल ही रहा था की मैंने होटल की बात छेड़ दी;
मैं: पिताजी इस रेस्टुरेंट के सामने ही होटल है...चल के वहाँ पता करें कमरों का?
पिताजी: नहीं बेटा हम Stay नहीं करेंगे|
मैं: (पिताजी का जवाब सुन मैं अवाक रह गया|) पर क्यों?....अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है?
पिताजी: फिर कभी आ जायेंगे....
मेरी हालत ऐसी थी मानो जैसे किसी ने जलते तवे पर ठंडा पानी डाल दिया हो! सारा प्लान फ्लॉप! मन में गुस्सा बहुत आया और मन कर रहा था की अभी भौजी को ले के भाग जाऊँ! पर मजबूर था!! इधर मेरे चेहरे पर उड़ रहीं हवाइयां भौजी समझ चुकीं थीं| पर किस्मत को कुछ और मंजूर था|
भोजन की उपरांत हम घाट पे बैठे थे| अभी घडी में दो बजे थे... पिताजी ने कहा की अब चलना चाहिए| हम सीढ़ियां चढ़ की ऊपर आये और टैक्सी स्टैंड जो वहाँ से करीब बीस मिनट की दूरी पर था उस दिशा में चल दिए| रास्ते में पिताजी को एक और मंदिर दिखा और हम वहीँ चल दिए| उसी दिन वाराणसी में "हनुमान गढ़ी" नमक मंडी है जहाँ आतंकवादियों ने बम रखा था| अयोध्या से वाराणसी की दूरी यही कोई चार घंटे के आस-पास की होगी, रेल से तो ये और भी काम है| वहाँ जब ये घटना घाटी तो उसका सेंक अयोध्या तक आया और अचानक से उसी समय वहाँ चौकसी बढ़ा दी गई| भगदड़ के हालत बनने लगी...खबर फेल गई की वाराणसी में बम धमाका हुआ है और इसके चलते अनेक श्रद्धालु भड़क गए ...पुलिस ने सबकी चेकिंग शुरू कर दी| भीड़ को रोक पाना मुश्किल सा हो रहा था| हम जहाँ खड़े थे वहाँ भी मंदिर हैं तथा किसी बेवकूफ ने बम की अफवाह फैला दी| भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई|
माँ-पिताजी आगे थे और पीछे से आये भीड़ के सैलाब ने हमें अलग कर दिया|फिर भी मैं दूरी से उन्हें देख पा रहा था... और सागर चाहता तो हम वापस मिल सकते थे| पर नाजाने मुझ पे क्या भूत सवार हुआ...मैंने भौजी का हाथ पकड़ा...और नेहा तो पहले से ही मेरी गोद में थी और सहमी हुई थी ...और मैं धीरे-धीरे पीछे कदम बढ़ाने लगा| भौजी मेरा मुँह टाक रहीं थी की आखिर मैं कर क्या रहा हूँ पर मैंने कुछ नहीं कहा और पीछे हत्ता रहा| पिताजी को लगा की भीड़ के प्रवाह से हम अलग हो रहे हैं| जब पिताजी और हमारे में फासला बढ़ गया तो मैं भौजी और नेहा को लेके कम भीड़ वाली गली में घुस गया|
भौजी: (चिंतित स्वर में) माँ-पिताजी तो आगे रह गए?
मैं: हाँ....
मैं इधर-उधर नजर दौड़ाने लगा... और आखिर में मुझे करीब सौ कदम की दूरी पर एक होटल का बोर्ड दिखाई दिया| मैं भौजी और नेहा को वहीँ ले गया, दरवाजा बंद था अंदर से और मैं जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगा| जब दरवाजा नहीं खुला तो मैंने चीख के कहा; "प्लीज दरवाजा खोलो...मेरे साथ मेरे बीवी और बच्ची है|" तब जाके एक बुजुर्ग से अंकल ने दरवाजा खोला|
मैं: प्लीज अंकल मदद कीजिये|
बुजुर्ग अंकल: जल्दी अंदर आओ|
हम जल्दी अंदर घुस गए और अंकल ने दरवाजा बंद कर दिया|
मैं: Thank You अंकल| हम यहाँ घूमने आये थे और अचानक भगदड़ में अपने माँ-पिताजी से अलग हो गए| आपके पास फ़ोन है?
बुजुर्ग अंकल: हाँ... ये लो|
मैंने तुरंत पिताजी का मोबाइल नंबर मिलाया|
मैं: पिताजी...मैं मानु बोल रहा हूँ|
पिताजी: (चिंतित होते हुए) कहाँ हो बेटा तुम? ठीक तो हो ना?
मैं: हमने यहाँ एक होटल में शरण ली है| यहाँ भीड़ बेकाबू हो गई है.. आप लोग ठीक तो हैं ना?
पिताजी: हाँ बेटा...भीड़ के धक्के-मुक्के में हम टैक्सी स्टैंड तक पहुँच गए और यहाँ पोलिसेवाले किसी को रुकने नहीं दे रहे हैं| उन्होंने हमें जीप में बिठा के भेज दिया है| तुम भी जल्दी से वहाँ से निकलो|
मैं: पिताजी .... पूरी कोशिश करता हूँ पर मुझे यहाँ हालत ठीक नहीं लग रहे| भगवान न करे अगर दंगे वाले हालत हो गए तो ....
पिताजी: नहीं...नहीं...नहीं.. तुम रुको और जैसे ही हालत सुधरें वहाँ से निकलो|
मैं: जी|
पिताजी: निकलने से पहले फोन करना|
मैं: जी जर्रूर|
मैंने फोन रख दिया और अंकल जी को आवाज दी|
मैं: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! आपने ऐसे समय पर हमारी मदद की|
बुजुर्ग अंकल: अरे बेटा मुसीबत में मदद करना इंसानियत का धर्म है|
मैं: अच्छा अंकल जी .... यहाँ कमरा मिलेगा?
बुजुर्ग अंकल: हाँ ..हाँ जर्रूर| ये लो रजिस्टर और अपना नाम पता भर दो|
मैंने रजिस्टर में Mr. and Mrs. Manu XXXX (XXXX का मतलब मेरा surname है|) लिखा|
बुजुर्ग अंकल: और इस गुड़िया का नाम क्या है?
मैं: नेहा
बुजुर्ग अंकल मुस्कुरा दिए और मुझे कमरे की चाभी दी| होटल का किराया ५००/- था.. शुक्र है की मेरे पास माँ के दिए हुए १०००/- रूपए थे वरना आज हालत ख़राब हो जाती| कमरा सेकंड फ्लोर पे था और एक दम कोने में था| जब हम कमरे में घुसे तो कमरे में एक सोफ़ा था... AC था.... TV था.... और एक डबल बैड| नेहा तो TV देख के खुश थी.... मैंने उसे कार्टून लगा के दिया और वो सोफे पे आलथी-पालथी मार के बैठ गई और मजे से कार्टून देखने लगी| मैं उसकी बगल में बैठा, अपने घुटनों पे कोणी रख के अपना मुँह हथेलियों में छुपा के कुछ सोचने लगा| भौजी दरवाजा अबंद करके आईं और मेरी बगल में बैठ गईं| उन्होंने अपने दोनों हाथों की मेरे कन्धों पे रखा और मुझे अपनी और खींचा| और मैं उनकी गोद में सर रख के एक पल के लेट गया| दिल को थोड़ा सकून मिला|
फिर मैं उठा और उनसे पूछा;
मैं: आप चाय लोगे?
भौजी: पहले आप बताओ की क्या हुआ आपको?
मैं: कुछ नहीं...मैं अभी चाय बोलके आता हूँ|
भौजी: नहीं चाय रहने दो...रात को खाना खाएंगे|
मैं: आप बैठो मैं अभी आया|
मैं नीचे भाग आया और दो कूप चाय और एक गिलास दूध बोल आया| वापस आके मैंने दरवाजा बंद किया और पलंग पे लेट गया|
भौजी: बात क्या है? आप क्या छुपा रहे हो मुझ से| (और भौजी उठ के मेरे पास पलंग पे बैठ गई)
मैं: दरअसल आपको घुमाने का मेरा प्लान नहीं था| मेरा प्लान था की एक रात हम साथ गुजारें ....जैसा आप चाहती थी| आपने कुछ दिन पहले कहा था ना...?
भौजी: ओह... तो ये बात है|
मैं: मैंने सोचा की घूमने के बहाने पिताजी तीन कमरे बुक करेंगे, एक में माँ-पिताजी ..एक में मैं और एक में आप और नेहा होंगे| रात को मैं आपके कमरे में आ जाता और एक रात हम साथ गुजारते| पर पिताजी ने मेरे सारे प्लान पे पानी फेर दिया| जब भगदड़ मची तो मैंने सोचा की हम अलग हो जायेंगे और हम रात एक साथ बिताएंगे| पर हालात और भी ख़राब हो चुके हैं...अगर दंगे भड़क उठे तो मैं कैसे आपको और नेहा को सम्भालूंगा... और अगर आप में से किसी को कुछ हो गया तो मैं भी जिन्दा नहीं रहूँगा| (ये कहते हुए मेरी आँखें भर आईं|)
भौजी: कुछ नहीं होगा हमें, आपके होते हुए कुछ नहीं होगा| मुझे आप पे पूरा भरोसा है....आप सब संभाल लेंगे| देख लेना हम सही सलामत घर पहुँच जायेंगे| अब आप अपना मूड ठीक करो!
इतना में दरवाजे पे दस्तक हुई|
मैं: चाय आई होगी|
भौजी: मैंने मना किया था न....
भौजी ने दरवाजा खोल के चाय और दूध ले लिया और मैं भी उठ के उनके पीछे खड़ा हो गया और उस लड़के को दस रुपये टिप भी दे दिए|
भौजी: दूध? आप ना पैसे बर्बाद करने से बाज नहीं आओगे!
मैं: बर्बाद....वो मेरी भी बेटी है|
हमने बैठ के चाय पी और नेहा को दूध पिलाया| नेहा को तो टॉम एंड जेरी देखने में बड़ा मजा आ अहा था और वो उन्हें देख हँस रही थी|
मैं: आपको इतना भरोसा है मुझ पे?
भौजी: जो इंसान मेरी एक खवाइश के लिए सब से लड़ पड़े उसपे भरोसा नहीं होगा तो किस पे होगा|
हमने चाय पी और पलंग पे सहारा ले के बैठे थे| भौजी बिलकुल मेरे साथ चिपक के बैठीं थीं और उनका सर मेरे कंधे पे था और वो भी टॉम एंड जेरी देखने लगीं| शायद उन्हें भी वो प्रोग्राम अच्छा लग रहा था| कुह देर में में आँख लग गई और जब मैं जाएगा तो मेरा सर उनकी गोद में था और वो बड़े प्यार से मेरे बालों को सहला रहीं थी| घडी सात बजा रही थी... मैं उठा और फ्रेश हो के आया और भौजी से पूछा;
मैं: खाना खाएं?
भौजी: अभी? आप बैठो मेरे पास| थोड़ा देर से खाते हैं|
मैं: As you wish!
अब भौजी की बारी थी उन्होंने मेरी गोद में सर रख लिया और TV देखने लगीं| मैं उनके बालों में उँगलियाँ फेरने लगा...मैं अपनी उँगलियों को चलते हुए उनके कान के पास ले आता और फिर एक उन्ग्लिस से उनके कान के पीछे के हिस्से को आहिस्ता-आहिस्ता सहलाता| भौजी को बड़ा अच्छा लग रहा था| फिर मैंने अपनी उँगलियों को उनके चेहरे की outline पे फिराने लगा|
भौजी: You’ve magical fingers! कहाँ सीखा ये सब?
मैं: बस आपको छूना अच्छा लगता है...और ये सब अपने आप होने लगता है!
आठ बजे तो नेहा मेरे पास आई और बोली;
नेहा: पापा...पापा... भूख लगी है!
मैं: ठीक है...बताओ आप क्या खाओगे?
भौजी: इससे क्या पूछ रहे हो आप...जो भी मिलता है बोल दो!
मैं: बेटा चलो मेरे साथ... हम खाना आर्डर कर के आते हैं|
भौजी: अरे इसे कहाँ ले जा रहे हो?
मैं: You’ve a problem with tha?
भौजी: No ... आपकी बेटी है... जहाँ चाहे ले जाओ| पर कुछ महंगा आर्डर मत करना!
भौजी जानती थी की खाने-पीने के मामले में मेरा हाथ खुला है और मैं पैसे खर्च करने से नहीं हिचकता| मैं नेहा को गोद में लिए रिसेप्शन पे गया और खाना आर्डर कर दिया| कुछ ससमय में खाना आया| खाना देख के भौजी को प्यार भरा गुस्सा आया|
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बदलाव के बीज--59
हम घर पहुंचे और भोजन के बाद पिताजी और बड़के दादा एक चारपाई पे बैठे बातें कर रहे थे| मैं भी वहीँ बैठ गया...अब पिताजी समझ तो चुके थे की कोई बात अवश्य है पर मेरे कहने का इन्तेजार कर रहे थे| करीब पाँच मिनट बड़के दादा को कोई बुलाने आया और वो चले गए| अब मैं और पिताजी अकेले बैठे थे, यही सही समय था बात करने का|
मैं: पिताजी....आपकी मदद चाहिए थी?
पिताजी: हाँ बोल?
मैं: वो पिताजी .... मैंने किसी को वादा कर दिया है|
पिताजी: कैसा वादा? और किसको कर दिया तूने वादा?
मैं: जी .... मैंने भौजी से वादा किया की मैं उन्हिएँ और नेहा को अयोध्या घुमाने ले जाऊँगा| अकेले नहीं....आपके और माँ के साथ|
पिताजी: अच्छा तो?
मैं: अब अकेले तो मैं जा नहीं सकता ..... तो आप ही प्लान बनाइये ना? प्लीज ...प्लीज.... प्लीज!!!
पिताजी: (हँसते हुए) ठीक है... पर पहले अपनी भौजी को बुला, उनसे पूछूं तो की तू सच बोल रहा है या जूठ?
मैंने भौजी को वहीँ बैठे-बैठे इशारे से बुलाया| भौजी डेढ़ हाथ का घुंगट काढ़े आके मेरे पास खड़ी हो गईं?
पिताजी: बहु....मैंने सुना है की लाडसाहब ने तुम्हें वादा किया है की वो तुम दोनों माँ-बेटी ओ अयोध्या घुमाने ले जायेंगे? ये सच है?
भौजी: जी....पिताजी|
पिताजी: (थोड़ा हैरान होते हुए) ठीक है... हम कल जायेंगे....सुबह सात बजे तैयार रहना|
बस भौजी चुप-चाप चलीं गईं| पर जाते-जाते मुड़ के मेरी और देखते हुए भाओें को चढ़ाते हुए पूछ रहीं थी की ये क्या हो रहा है?
मैं: तो पिताजी...मैंने पता किया है की वहाँ घूमने के लिए बहुत सी जगहें हैं .... तो हमें एक रात stay करना होगा वहीँ|
पिताजी: ह्म्म्म्म्म ... आजकल बहुत कुछ पता करने लगा है तू?
मैं झेंप गया और वहाँ से चल दिया| अब सब बातें क्लियर थीं| हम रात वहाँ रुकेंगे...तीन कमरे बुक होंगे...एक में पिताजी और माँ....एक में मैं...और एक कमरे में भौजी और नेहा| रात को मेरा फुल चाँस भौजी के साथ रात गुजारने का| इस तरह भौजी की Wish भी पूरी हो जाएगी| हाँ एक बात थी ... की मुझे भौजी को इस रात के Stay के बारे में कुछ नहीं बताना|
पर मैं नहीं जानता था की किस्मत को कहानी में कुछ और ही ट्विस्ट लाना है|
मैं भौजी के पास जब पहुंचा तो उन्होंने पूछा;
भौजी: सुनिए....आप जरा बताने का कष्ट करेंगे की अभी-अभी जो पिताजी ने कहा वो क्या था? आपने कब मुझसे वादा किया?
मैं: यार ... मैं आपको और नेहा को घुमाना चाहता था.... तो मैंने थोडा से जूठ बोला| That's it!!
भौजी: ओह्ह्ह्ह! तो ये सरप्राइज था..... !!! पर आपने ठीक नहीं किया... खुद भी माँ-पिताजी से जूठ बोला और मुझसे भी जूठ बुलवाया|
मैं: यार कहते हैं ना, everything is fair in Love and War!!!
रात में मेरा और भौजी दोनों का बहुत मन हो रहा था की हम एक साथ सोएं या प्यार करें पर कल सुबह मंदिर जाना था तो किसी तरह अपने मन को समझा बुझा के मना लिया|सबसे ज्यादा खुश तो नेहा थी| वो मुझसे चिपटी हुई थी और बहुत लाड कर रही थी| बार बार कहती... "पापा... वहां हम ये करेंगे...वो करेंगे.... ये खाएंंगे ...वहां जायेंगे" सबसे ज्यादा उतसाहित तो वही थी|अगली सुबह जल्दी-जल्दी तैयार हुए....और हाँ Good Morning Kiss भी मिली! निकलने से पहले माँ ने मुझे हजार रूपए दिए संभालने को| दरअसल मेरी माँ कुछ ज्यादा ही सोचती हैं...जब भी हम किसी भीड़ भाड़ वाली जगह जाते हैं तो वो आधे पैसे खुद रखतीं हैं| आधे पिताजी को देती हैं और थोड़ा बहुत मुझे भी देती हैं| ताकि अगर कभी जेब कटे तो एक की कटे...!!! खेर सवा सात तक हम घर से निकल लिए| माँ-पिताजी आगे-आगे थे और मैं और भौजी पीछे-पीछे थे| नेहा मेरी गोद में थी और सब से ज्यादा खुश तो वही थी| हम मैन रोड पहुंचे और वहां से जीप की ...जिसने हमें बाजार छोड़ा| वहाँ से दूसरी जीप की जिसने हमें अयोध्या छोड़ा| कुल मिला के हमें दो घंटे का असमय लगा अयोध्या पहुँचने में| वहाँ सब से पहले हम मंदिरों में घूमे, मैं नेहा को वहाँ की कथाओ के बारे में बताने लगा और घूमते-घूमते भोजन का समय हो गया| वहाँ एक ही ढंग का रेस्टुरेंट था जहाँ हम बैठ गए| खाना आर्डर मैंने किया ... टेबल पर हम इस प्रकार बैठे थे; एक तरफ माँ और पिताजी और दूसरी तरफ मैं, नेहा और भौजी| खाना आया और मैं नेहा को खिलाने लगा... भौजी ने इशारे से मुझे कहा की वो मुझे खाना खिला देंगी पर मैंने उन्हें घूर के देखा और जताया की पिताजी और माँ सामने ही बैठे हैं| भोजन अभी चल ही रहा था की मैंने होटल की बात छेड़ दी;
मैं: पिताजी इस रेस्टुरेंट के सामने ही होटल है...चल के वहाँ पता करें कमरों का?
पिताजी: नहीं बेटा हम Stay नहीं करेंगे|
मैं: (पिताजी का जवाब सुन मैं अवाक रह गया|) पर क्यों?....अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है?
पिताजी: फिर कभी आ जायेंगे....
मेरी हालत ऐसी थी मानो जैसे किसी ने जलते तवे पर ठंडा पानी डाल दिया हो! सारा प्लान फ्लॉप! मन में गुस्सा बहुत आया और मन कर रहा था की अभी भौजी को ले के भाग जाऊँ! पर मजबूर था!! इधर मेरे चेहरे पर उड़ रहीं हवाइयां भौजी समझ चुकीं थीं| पर किस्मत को कुछ और मंजूर था|
भोजन की उपरांत हम घाट पे बैठे थे| अभी घडी में दो बजे थे... पिताजी ने कहा की अब चलना चाहिए| हम सीढ़ियां चढ़ की ऊपर आये और टैक्सी स्टैंड जो वहाँ से करीब बीस मिनट की दूरी पर था उस दिशा में चल दिए| रास्ते में पिताजी को एक और मंदिर दिखा और हम वहीँ चल दिए| उसी दिन वाराणसी में "हनुमान गढ़ी" नमक मंडी है जहाँ आतंकवादियों ने बम रखा था| अयोध्या से वाराणसी की दूरी यही कोई चार घंटे के आस-पास की होगी, रेल से तो ये और भी काम है| वहाँ जब ये घटना घाटी तो उसका सेंक अयोध्या तक आया और अचानक से उसी समय वहाँ चौकसी बढ़ा दी गई| भगदड़ के हालत बनने लगी...खबर फेल गई की वाराणसी में बम धमाका हुआ है और इसके चलते अनेक श्रद्धालु भड़क गए ...पुलिस ने सबकी चेकिंग शुरू कर दी| भीड़ को रोक पाना मुश्किल सा हो रहा था| हम जहाँ खड़े थे वहाँ भी मंदिर हैं तथा किसी बेवकूफ ने बम की अफवाह फैला दी| भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई|
माँ-पिताजी आगे थे और पीछे से आये भीड़ के सैलाब ने हमें अलग कर दिया|फिर भी मैं दूरी से उन्हें देख पा रहा था... और सागर चाहता तो हम वापस मिल सकते थे| पर नाजाने मुझ पे क्या भूत सवार हुआ...मैंने भौजी का हाथ पकड़ा...और नेहा तो पहले से ही मेरी गोद में थी और सहमी हुई थी ...और मैं धीरे-धीरे पीछे कदम बढ़ाने लगा| भौजी मेरा मुँह टाक रहीं थी की आखिर मैं कर क्या रहा हूँ पर मैंने कुछ नहीं कहा और पीछे हत्ता रहा| पिताजी को लगा की भीड़ के प्रवाह से हम अलग हो रहे हैं| जब पिताजी और हमारे में फासला बढ़ गया तो मैं भौजी और नेहा को लेके कम भीड़ वाली गली में घुस गया|
भौजी: (चिंतित स्वर में) माँ-पिताजी तो आगे रह गए?
मैं: हाँ....
मैं इधर-उधर नजर दौड़ाने लगा... और आखिर में मुझे करीब सौ कदम की दूरी पर एक होटल का बोर्ड दिखाई दिया| मैं भौजी और नेहा को वहीँ ले गया, दरवाजा बंद था अंदर से और मैं जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगा| जब दरवाजा नहीं खुला तो मैंने चीख के कहा; "प्लीज दरवाजा खोलो...मेरे साथ मेरे बीवी और बच्ची है|" तब जाके एक बुजुर्ग से अंकल ने दरवाजा खोला|
मैं: प्लीज अंकल मदद कीजिये|
बुजुर्ग अंकल: जल्दी अंदर आओ|
हम जल्दी अंदर घुस गए और अंकल ने दरवाजा बंद कर दिया|
मैं: Thank You अंकल| हम यहाँ घूमने आये थे और अचानक भगदड़ में अपने माँ-पिताजी से अलग हो गए| आपके पास फ़ोन है?
बुजुर्ग अंकल: हाँ... ये लो|
मैंने तुरंत पिताजी का मोबाइल नंबर मिलाया|
मैं: पिताजी...मैं मानु बोल रहा हूँ|
पिताजी: (चिंतित होते हुए) कहाँ हो बेटा तुम? ठीक तो हो ना?
मैं: हमने यहाँ एक होटल में शरण ली है| यहाँ भीड़ बेकाबू हो गई है.. आप लोग ठीक तो हैं ना?
पिताजी: हाँ बेटा...भीड़ के धक्के-मुक्के में हम टैक्सी स्टैंड तक पहुँच गए और यहाँ पोलिसेवाले किसी को रुकने नहीं दे रहे हैं| उन्होंने हमें जीप में बिठा के भेज दिया है| तुम भी जल्दी से वहाँ से निकलो|
मैं: पिताजी .... पूरी कोशिश करता हूँ पर मुझे यहाँ हालत ठीक नहीं लग रहे| भगवान न करे अगर दंगे वाले हालत हो गए तो ....
पिताजी: नहीं...नहीं...नहीं.. तुम रुको और जैसे ही हालत सुधरें वहाँ से निकलो|
मैं: जी|
पिताजी: निकलने से पहले फोन करना|
मैं: जी जर्रूर|
मैंने फोन रख दिया और अंकल जी को आवाज दी|
मैं: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! आपने ऐसे समय पर हमारी मदद की|
बुजुर्ग अंकल: अरे बेटा मुसीबत में मदद करना इंसानियत का धर्म है|
मैं: अच्छा अंकल जी .... यहाँ कमरा मिलेगा?
बुजुर्ग अंकल: हाँ ..हाँ जर्रूर| ये लो रजिस्टर और अपना नाम पता भर दो|
मैंने रजिस्टर में Mr. and Mrs. Manu XXXX (XXXX का मतलब मेरा surname है|) लिखा|
बुजुर्ग अंकल: और इस गुड़िया का नाम क्या है?
मैं: नेहा
बुजुर्ग अंकल मुस्कुरा दिए और मुझे कमरे की चाभी दी| होटल का किराया ५००/- था.. शुक्र है की मेरे पास माँ के दिए हुए १०००/- रूपए थे वरना आज हालत ख़राब हो जाती| कमरा सेकंड फ्लोर पे था और एक दम कोने में था| जब हम कमरे में घुसे तो कमरे में एक सोफ़ा था... AC था.... TV था.... और एक डबल बैड| नेहा तो TV देख के खुश थी.... मैंने उसे कार्टून लगा के दिया और वो सोफे पे आलथी-पालथी मार के बैठ गई और मजे से कार्टून देखने लगी| मैं उसकी बगल में बैठा, अपने घुटनों पे कोणी रख के अपना मुँह हथेलियों में छुपा के कुछ सोचने लगा| भौजी दरवाजा अबंद करके आईं और मेरी बगल में बैठ गईं| उन्होंने अपने दोनों हाथों की मेरे कन्धों पे रखा और मुझे अपनी और खींचा| और मैं उनकी गोद में सर रख के एक पल के लेट गया| दिल को थोड़ा सकून मिला|
फिर मैं उठा और उनसे पूछा;
मैं: आप चाय लोगे?
भौजी: पहले आप बताओ की क्या हुआ आपको?
मैं: कुछ नहीं...मैं अभी चाय बोलके आता हूँ|
भौजी: नहीं चाय रहने दो...रात को खाना खाएंगे|
मैं: आप बैठो मैं अभी आया|
मैं नीचे भाग आया और दो कूप चाय और एक गिलास दूध बोल आया| वापस आके मैंने दरवाजा बंद किया और पलंग पे लेट गया|
भौजी: बात क्या है? आप क्या छुपा रहे हो मुझ से| (और भौजी उठ के मेरे पास पलंग पे बैठ गई)
मैं: दरअसल आपको घुमाने का मेरा प्लान नहीं था| मेरा प्लान था की एक रात हम साथ गुजारें ....जैसा आप चाहती थी| आपने कुछ दिन पहले कहा था ना...?
भौजी: ओह... तो ये बात है|
मैं: मैंने सोचा की घूमने के बहाने पिताजी तीन कमरे बुक करेंगे, एक में माँ-पिताजी ..एक में मैं और एक में आप और नेहा होंगे| रात को मैं आपके कमरे में आ जाता और एक रात हम साथ गुजारते| पर पिताजी ने मेरे सारे प्लान पे पानी फेर दिया| जब भगदड़ मची तो मैंने सोचा की हम अलग हो जायेंगे और हम रात एक साथ बिताएंगे| पर हालात और भी ख़राब हो चुके हैं...अगर दंगे भड़क उठे तो मैं कैसे आपको और नेहा को सम्भालूंगा... और अगर आप में से किसी को कुछ हो गया तो मैं भी जिन्दा नहीं रहूँगा| (ये कहते हुए मेरी आँखें भर आईं|)
भौजी: कुछ नहीं होगा हमें, आपके होते हुए कुछ नहीं होगा| मुझे आप पे पूरा भरोसा है....आप सब संभाल लेंगे| देख लेना हम सही सलामत घर पहुँच जायेंगे| अब आप अपना मूड ठीक करो!
इतना में दरवाजे पे दस्तक हुई|
मैं: चाय आई होगी|
भौजी: मैंने मना किया था न....
भौजी ने दरवाजा खोल के चाय और दूध ले लिया और मैं भी उठ के उनके पीछे खड़ा हो गया और उस लड़के को दस रुपये टिप भी दे दिए|
भौजी: दूध? आप ना पैसे बर्बाद करने से बाज नहीं आओगे!
मैं: बर्बाद....वो मेरी भी बेटी है|
हमने बैठ के चाय पी और नेहा को दूध पिलाया| नेहा को तो टॉम एंड जेरी देखने में बड़ा मजा आ अहा था और वो उन्हें देख हँस रही थी|
मैं: आपको इतना भरोसा है मुझ पे?
भौजी: जो इंसान मेरी एक खवाइश के लिए सब से लड़ पड़े उसपे भरोसा नहीं होगा तो किस पे होगा|
हमने चाय पी और पलंग पे सहारा ले के बैठे थे| भौजी बिलकुल मेरे साथ चिपक के बैठीं थीं और उनका सर मेरे कंधे पे था और वो भी टॉम एंड जेरी देखने लगीं| शायद उन्हें भी वो प्रोग्राम अच्छा लग रहा था| कुह देर में में आँख लग गई और जब मैं जाएगा तो मेरा सर उनकी गोद में था और वो बड़े प्यार से मेरे बालों को सहला रहीं थी| घडी सात बजा रही थी... मैं उठा और फ्रेश हो के आया और भौजी से पूछा;
मैं: खाना खाएं?
भौजी: अभी? आप बैठो मेरे पास| थोड़ा देर से खाते हैं|
मैं: As you wish!
अब भौजी की बारी थी उन्होंने मेरी गोद में सर रख लिया और TV देखने लगीं| मैं उनके बालों में उँगलियाँ फेरने लगा...मैं अपनी उँगलियों को चलते हुए उनके कान के पास ले आता और फिर एक उन्ग्लिस से उनके कान के पीछे के हिस्से को आहिस्ता-आहिस्ता सहलाता| भौजी को बड़ा अच्छा लग रहा था| फिर मैंने अपनी उँगलियों को उनके चेहरे की outline पे फिराने लगा|
भौजी: You’ve magical fingers! कहाँ सीखा ये सब?
मैं: बस आपको छूना अच्छा लगता है...और ये सब अपने आप होने लगता है!
आठ बजे तो नेहा मेरे पास आई और बोली;
नेहा: पापा...पापा... भूख लगी है!
मैं: ठीक है...बताओ आप क्या खाओगे?
भौजी: इससे क्या पूछ रहे हो आप...जो भी मिलता है बोल दो!
मैं: बेटा चलो मेरे साथ... हम खाना आर्डर कर के आते हैं|
भौजी: अरे इसे कहाँ ले जा रहे हो?
मैं: You’ve a problem with tha?
भौजी: No ... आपकी बेटी है... जहाँ चाहे ले जाओ| पर कुछ महंगा आर्डर मत करना!
भौजी जानती थी की खाने-पीने के मामले में मेरा हाथ खुला है और मैं पैसे खर्च करने से नहीं हिचकता| मैं नेहा को गोद में लिए रिसेप्शन पे गया और खाना आर्डर कर दिया| कुछ ससमय में खाना आया| खाना देख के भौजी को प्यार भरा गुस्सा आया|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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