Thursday, November 6, 2014

FUN-MAZA-MASTI घर का बिजनिस -24

FUN-MAZA-MASTI                

 घर का बिजनिस -24

उस वक़्त मेरे लण्ड को ऋतु की फुद्दी ने पूरी तरह से भींचा हुआ था जिससे मुझे भी हल्का सा दर्द हो रहा था। तभी बाजी थोड़ा आगे बढ़ी और ऋतु की फुद्दी की तरफ देखने लगी और फिर मेरे कान में कहा- “आलोक थोड़ा सा बाहर निकालकर पूरा घुसा दो। इस तरह इसे ज्यादा दर्द हो रही है…”

मैंने बाजी की तरफ देखा तो बाजी ने हाँ में सर हिला दिया। तो मैंने अपने लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकालकर फिर से ऋतु को थोड़ा मजबूती से जकड़ लिया और पूरी ताकत का एक तेज झटका लगा दिया। मेरे इस तूफानी झटके से लण्ड ऋतु की फुद्दी को पूरी तरह से खोलते हुये जड़ तक घुस गया। लण्ड के पूरा घुसते ही ऋतु के मुँह से- “अम्मी जीए आअह्ह… भाई निकालो बाहर… ऊओ मेरी फट गई भाई… मुझे नहीं करना है भाई… प्लीज़्ज़ बाहर निकालो… ऊओ बाजी… भाई को रोको प्लीज़्ज़…”

ऋतु उस वक़्त बुरी तरह से चिल्लाने के साथ रो भी रही थी कि तभी बाजी आगे बढ़ी और ऋतु की चूचियों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी और दबाने लगी। जिससे ऋतु कुछ ही देर में शांत हो गई। लेकिन उसकी आँखों से अभी भी पानी निकल रहा था।

अब मैंने अपने लण्ड को थोड़ा सा बाहर खींचा और फिर से अंदर घुसा दिया जिससे ऋतु के मुँह से सस्सीए की आवाज निकल गई लेकिन वो और कुछ नहीं बोली। अभी मेरा लण्ड ऋतु की फुद्दी में पूरी तरह से फँस के जा रहा था।

कोई दो मिनट तक आराम-आराम से चुदाई करने के बाद ऋतु ने भी अपनी गाण्ड को मेरे लण्ड की तरफ दबाना शुरू कर दिया। ऋतु के इस तरह गाण्ड हिला के मेरा साथ देते ही मैं समझ गया कि अब ऋतु को दर्द नहीं हो रहा, बलकि वो भी अब मजा ले रही है। तो मैंने अपनी स्पीड को थोड़ा सा बढ़ा दिया।

जिससे ऋतु के मुँह से- “आअह्ह… भाई जोर से नहीं… उंनमह… हाँ भाई बस इसी तरह प्यार से करो… उन्म्मह… ऊओ… भाई अब अच्छा लग रहा है… उन्म्मह… भाई ऊओ… मुझे कुछ हो रहा है आअह्ह…” की आवाज के साथ ही मेरे साथ लिपट गई और अपनी गाण्ड को मेरे लण्ड की तरफ जोर से दबाने लगी और कुछ ही देर में- “ऊओ भाई आअह्ह… मेरा हो गया…” की आवाज के साथ ही ऋतु का जिश्म अकड़ने लगा और फिर मुझे ऋतु की फुद्दी में अपने लण्ड पे गरम लावा सा गिरता महसूस हुआ और इसके साथ ही ऋतु बेड पे गिर गई और अपनी आँखें बंद करके लंबी-लंबी सांसें लेनी लगी।

ऋतु के फारिग़ होते ही मेरे लण्ड को भी ऋतु की फुद्दी ने आसानी से जगह देना शुरू कर दिया जिससे मैंने भी अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और कुछ ही देर में मैं भी अपनी छोटी बहन की फुद्दी में ही फारिग़ हो गया और ऋतु ने मुझे बड़ी जोर से अपने साथ भींच लिया और हम दोनों कुछ देर तक इसी तरह एक दूसरे के साथ लिपट के लेटे रहे।

कुछ देर के बाद बाजी ने मुझे हिलाया और कहा- “भाई चलो, अब उठो काफी देर हो रही है…”

मैं ऋतु के ऊपर से उठा और जैसे ही मेरा लण्ड मेरी प्यारी छोटी बहन की फुद्दी से पुच्चहक की आवाज के साथ बाहर निकला और मैं खड़ा हुआ तो मेरी नजर ऋतु की लाल और खून और मेरी मनी से सनी हुई फुद्दी पे पड़ी तो मैं काफी परेशान हो गया।

जब बाजी ने मुझे ऋतु की फुद्दी की तरफ परेशानी से देखते हुये पाया तो तो बाजी ने कहा- “आलोक, परेशानी की कोई बात नहीं है। ये सब नार्मल है। तुम चलो अपने कपड़े पहनो मैं देखती हूँ…”

मैं बाजी की बात सुनकर अपने कपड़े पहनकर खड़ा हो गया और बोला- बाजी, अब क्या करना है?

पायल- “कमीने, अभी जो तुमने अपनी मासूम बहन के साथ जुल्म किया है उसकी सफाई करनी है…” और हेहेहेहे करके हँसने लगी।

बाजी- “पायल, क्यों आलोक को परेशान कर रही हो? आलोक तुम जाओ घर, मैं अभी इसे नहला के अपने साथ लाती हूँ…?

मैं बाजी की बात सुनकर बोला- “जी बाजी, जैसे आप कहो…” और रूम से निकलकर घर आ गया जहाँ अम्मी और बुआ बैठी हमारा इंतजार कर रही थीं।

अम्मी- आलोक, क्या बात है? तुम अकेले आए हो? सब ठीक तो है ना? तुम्हारी बहनें कहाँ हैं?

मैं- “अम्मी, वो भी आ रही हैं और बाकी सब ठीक है…”

बुआ- आलोक, क्या बात है जानू? तुम कुछ परेशान लग रहे हो? कोई मसला है क्या?

मैं- “अरे नहीं बुआ, ऐसी कोई बात नहीं है बस जरा थक गया हूँ…”

बुआ- “क्यों? क्या आज उस एम॰पी॰ की जगह तू ने अपनी बहन की सील तोड़ी है जो थक गया है…” और हेहेहेहे करके हँसने लगी।


 अम्मी- “चल चुप कर कमीनी, हर वक़्त मेरे बेटे को तंग करती रहती है। मेरी तीनो बेटियां मेरे इस शेर के लिए ही तो हैं जब चाहे, जिसे चाहे, अपने पास सुला ले। इसे कोई भी मना नहीं करेगा…”

बुआ- “भाभी, मना तो मैंने भी कभी नहीं किया… लेकिन अब हमारा शेर हमारी तरफ देखता ही कहाँ हैं? जवान लौंडियों के पीछे पड़ा रहता है…”

मैं- “नहीं बुआ, ऐसी कोई बात नहीं है जैसा आप समझ रही हो…”

अम्मी- अच्छा, तो फिर कैसी बात है बता तो जरा?

मैं- “अम्मी, बस आपको तो पता ही है कि मैं खुद थक जाता हूँ इसीलिए आप लोगों को ज्यादा टाइम नहीं दे सका…?

बुआ- अच्छा जी, तो फिर कोई बात नहीं… वैसे बात क्या है? अभी तक तेरी बहनें नहीं आईं?

बाजी- “बुआ, आप कहीं और देखो तो हम नजर आयें ना…” बाजी और पायल ने जो कि ऋतु को सहारा देकर अभी रूम में दाखिल ही हुई थीं, बुआ को जवाब दिया।

अम्मी फौरन अपनी जगह से उठी और ऋतु को सहारा देकर अपने साथ ही बिठा लिया और बोली- “क्या हुआ? मेरी बच्ची ठीक तो हो ना?

पायल- “हाँ अम्मी, वैसे जिसकी सील आपका बेटा तोड़ेगा उसका हाल ये ही होना था ना…”

अम्मी हैरानी से मेरी और ऋतु की तरफ देखते हुये बोली- आलोक, पायल क्या बोल रही है? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रही?

बाजी- “अम्मी, उस एम॰पी॰ हरामी से तो कुछ हुआ नहीं और ऋतु की हालत खराब कर दी थी उसने तो हमने ऋतु को ठंडा करने के लिए भाई को बोल दिया…”

बुआ- लो भाई आलोक, तुम बड़े लकी निकले पैसे किसी ने दिए और सील तुमने खोली। हाँ और हमें बताया भी नहीं कमीने…”

अम्मी- “चलो कोई बात नहीं… लेकिन अपने बापू को नहीं बताना, समझ गये तुम लोग…”

मैं- “जी अम्मी, जैसे आप बोलो…” फिर हम वहाँ से उठे और अपने-अपने रूम में आ गये।
ये कहानी यहाँ खतम होती है।



*****समाप्त *****विराम *****THE END*****





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