Thursday, November 6, 2014

FUN-MAZA-MASTI पापा प्लीज........1

FUN-MAZA-MASTI

 पापा प्लीज........1

 पाँच मंजिले मकान के प्रथम तल के एक कमरे में सुबह के 5 बजे की अलार्म बजते ही बेड पर कुनमुनाती हुई अपना हाथ बढ़ा अलार्म बंद की और फिर चादर तान के सो गई...ये है रूपा...घर में सबकी लाडली...घर में सबसे सुंदर जो थी...

तीनों भाई तो अपने पापा पर गए काले सम्राट...पर रूपा अपने मम्मी के रंग पर चली गई...दूध की तरह सफेद रंग, तीखे और बड़ी बड़ी आँखें,लाल सुर्ख होंठ, लम्बी गर्दन, कमर तक रेशमी बाल,ललाट पर बिंदी की जगह चंदन लगाना,नाक में छोटी सी नथुनी, सुडौल और तराशा हुआ बदन....

ऊपर से नीचे तक नजर हजारों बार फिरा लो रूपा पर , पर शायद ही किसी बार आप बिना तारीफ के रह सको...जब कॉलेज के लिए अपने दोस्त के साथ घर से निकलती तो रास्ते भर ना जाने कितने दिल घायल होते और ना जाने कितनी आहें निकलती....

पर इन सब से बेखबर रूपा बस अपने काम से मतलब रखती...इसी वजह से वो आज तक कुंवारी कली की तरह खिल रही थी...रूपा को अपने आशिकों की खबर ना थी ऐसी बात नहीं थी...रूपा अपने सुंदर बदन के साथ साथ तेज और संतुलित दिमाग की भी मालकिन थी...

पर रूपा दिलफेंक आशिकों को अच्छी तरह जानती थी कि ऐसे लड़के अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं...और दूसरी बात
रूपा के पापा शहर के सबसे अमीर बिजनेस मैन हैं और उनकी शहर में अच्छी धाक है तो किसी की हिम्मत नहीं होती कि उनसे कोई पंगा ले...

रूपा की दोस्त भी सिर्फ और सिर्फ एक ही थी...कनक...जो कि थी तो दूर गाँव की पर उनके पिता इसी शहर में बैंक की नौकरी करते थे तो अब यहीं शिफ्ट हो गए थे...कनक भी दिखने में काफी सुंदर थी और पढ़ने में भी तेज तो इस वजह से दोनों में गहरी दोस्ती हो गई...

दोनों साथ हो तो सगी बहन जैसी लगती थी पर सच्चाई तो कुछ और ही थी...हाँ, इन दोनों में एक फर्क जरूर थी...कनक जहाँ चालू टाइप की बिंदास गर्ल थी तो वहीं रूपा सीधी-साधी शरीफ लड़की...फिर भी इन दो ध्रुवीय में कैसे इतनी गहरी दोस्ती हो गई...समझ से परे....

कनक स्कूल दिनों से आज तक पता नहीं कितने बॉयफ्रेंड बदले, वो खुद गिनते वक्त भूल जाती...हाँ, अपने बॉयफ्रेंड संग बिताए हर पल का बखान वो रूपा को जरूर सुनाती और रूपा भी सुन के मस्त होती...

पर कनक साथ में ये भी कहती कि रूपा, तुम मेरी तरह बन के मस्ती की मत सोचना...जब भी जिंदगी तुम्हें ऐसे मौके दे तो पहले अपने दिल की सुनना और फिर दिल जो कहे, बस वैसी ही करना...

यहीं पर रूपा कनक की कहनी से छिटक के बाहर आती तो उसे अपने मम्मी-पापा भैया-भाभी के दिल में अपने प्रति भावना आ जाती है और कनक की तरह मस्ती करने की सोचती भी नहीं...क्योंकि वो कभी भी ये नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से उसके फैमिली वालों पर कोई उंगली उठाए....

अब हम रूपा के कमरे से निकल दूसरे कमरे में चलते हैं...क्योंकि इसी तल के दूसरे कमरे में रूपा के मम्मी पापा गहरी नींद में सो रहे हैं...इनके रूम में 6 बजे अलार्म बजती है...रूपा के पापा कालीचरण और मम्मी पुष्पा...

कालीचरण अपने नाम की ही तरह बिल्कुल काला, जबकि पुष्पा दूध की धुली एकदम गोरी चिट्टी और बेमिसाल हुस्न की मल्लिका...कोई देख ले तो एक बार चौंक जरूर जाए कि आखिर कैसे...

इनकी कहानी भी अजीब है...बात तब की है जब कालीचरण अपने जीवन के 24वे साल में प्रवेश किया था...और तब वह कालीचरण नहीं, कालिया था...बदमाश कालिया...

बदमाश भी कोई ऊंचे दर्जे का नहीं था..बस अपने इसी शहर का नामी बदमाश था...और वो अपने गिरोह का सरगना था...काम मुसाफिरों के अटैची उड़ाना चाहे वो जैसे दे...मतलब मार खा कर या चाकू से घायल होकर या नशा का शिकार हो कर...

पर आज तक कालिया कभी मर्डर नहीं किया था और ना ही करना चाहता था... वो कहता था कि दो दिन अपना पेट भरने के लिए किसी की जिंदगी भर की पेट नहीं काट सकता...शायद यही अच्छाई उसे आज एक सफल व्यक्ति बना दिया..

एक दिन रात के करीब आठ बजे की बात है...वो अपने चार दोस्तों के साथ आखिरी बस के आने का वेट कर रहा था कि कोई फंसे तो आज की रात रंगीन हो जाएगी...पेट तो भर ही चुका था बस गले को गीली करना बाकी थी....

कुछ ही पलों में दूर से हॉर्न बजाती तेज गति से बस दनदनाती हुई आती नजर आई...नजर पड़ते ही सबने अपने-अपने पोजीशन ले लिए...और सबकी नजर बस से उतरने वाली मुसाफिर पर जम गई...

अगले ही पल बस अपनी जगह पर जा खड़ी हो गई...कालिया और उसका दोस्त साँस थामे नजरे गड़ाए बस की गेट पर देख रहा था...पहला यात्री...हाथ में बस एक फाइल पकड़े परेशान दिखता उतरा...दूसरा...हाथ में एक झोला और उसके अंदर एक टिफिन जिसकी हैंडल झोले से बाहर निकली थी...

उसके बाद दो और उतरे जो विद्यार्थी थे...कालिया विद्यार्थी की तरफ तो देखता भी नहीं था...अंगूठा छाप वालों की क्या हसरत होती है वो अच्छी तरह जानता था क्योंकि वो खुद अंगूठा छाप था...ऐसे में वो किसी को तंग कर पढ़ाई रूकवाने की जुर्रत कतई नहीं करना चाहता था...

तभी बस से एक लड़की बड़े से सूटकेस लिए उतरती नजर आई...सबकी नजर एकटक सूटकेस पर जम गई...नीचे उतरते ही उसने सूटकेस के हैंडल बाहर खींची और सूटकेस खींचती हुई बाहर की तरफ चल पड़ी...

दिखने में तो ये स्टूडेंट लग रही थी और इसी वजह से सब कालिया की तरफ देखने लगे कि क्या करें? कालिया अपना दिमाग लड़की के कदम से दस गुनी तेज चलाने लगा...जब लड़की कालिया और उसके साथी को क्रॉस कर रूकी और अपने फोन से किसी को कॉल करने लगी....

कालिया हल्की रोशनी में खड़ी उस लड़की के होंठ पर नजर गड़ाए पढ़ रहा था कि वो क्या बात कर रही है...अचानक उसके होंठो पर मुस्कान आई और वो अपने साथियों को इशारा कर दिया...

और अगले ही पल लड़की सड़क पर गिरी चीखने लगी," आहहहब.....चोर...चोर...मेरा सूटकेस....कोई पकड़ो....." पर जब तक कोई बस स्टैंड के अंदर कोई पहुंच पाता तब तक सब के सब फरार हो चुके थे...


करीब दस मिनट के अंदर ही वहां शहर के एस.पी. साहब पहुंच गए...ओह...ये तो एस.पी. की इकलौती बेटी थी जिसे कालिया ने लूटा था...पूरे शहर में कोहराम मच गया और रातों रात पूरे शहर से एक-एक लफंगे को पूछताछ के लिए दबोच लिया गया...

पर कालिया और उसके साथी कहाँ गायब हो गया, किसी को मालूम नहीं...रात भर कड़ी पूछताछ के बाद बाकी सब को छोड़ दिया और पूरी की पूरी पुलिस टीम फरार कालिया के पीछे पड़ गई...

उधर कालिया जब सुटकेस को तोड़ा तो उसके अनुमान के तहत ढ़ेर सारे जेवर,कुछ रूपए और कीमती कपड़े मिले...सब खुशी से फूले नहीं समा रहे थे...पर उसे मालूम नहीं था कि पुलिस उसके पीछे पड़ गई है....

सारे चीजों को आपस में बाँटने के बाद जब वो सूटकेस को पैरों से मार कर दूर धकेला तो सबकी नजर सूटकेस से बाहर निकल कर छिटकती कुछ पेपर पर नजर पड़ी...कालिया को कुछ शक हुआ और वो पेपर उठा लिए...

पढ़ना तो आता नहीं था जो देखता कि ये किस चीज की पेपर है...वो कुछ सोच पेपर को मोड़ कर जेब में डाला और चल पड़ा...शहर से बाहर की तरफ जाते देख कालिया का एक साथी पूछा,"भाई, अपन लोग किधर जा रहे हैं..."

"अबे शाले, भेजा काम नहीं करता है क्या? इतना बड़ा माल मारा है तो वो लड़की ऐसे चुप रहेगी क्या...पुलिस में कम्प्लेन लेके जाएगी...और फिर हम सब की धुलाई और जेल दोनों मिलेंगे...कुछ दिन दूसरे शहर चल फिर सारे माल को ठिकाने लगा वापस आएंगे...तब तक बात भी ठंडी पड़ जाएगी और सबका गुस्सा भी...मतलब पकड़े गए तो सजा भी हल्की ही मिलेगी...चल अब.."

कालिया भले ही दूर भागने की कोशिश कर रहा था पर वह जानता था कि बच नहीं पाएगा....बचने के लिए उसे कोई नायाब तरीका सोचना ही पड़ेगा...वो तरीके खोजने की सोच में आगे बढ़ रहा था...

अगले दिन वह दूसरे शहर में न्यूज में पढ़ा कि वो लड़की एस.पी. बेटी थी तो सबको ऐसा महसूस हुआ जैसे पिछवाड़े में बम फूट गया...सबके पसीने पर पसीने छूट रहे थे कि बेटा, अब तो खैर नहीं...कोई और होती तो कुछ चांस भी थे कम सजा की पर अब....

शाम तक कालिया सोचता रहा...आखिर उसने जोखिम से भरा एक रास्ता खोज ही लिया और बाहर निकल फोन बूथ पर जा धमका और फोन लगाने लगा...

वो अपने शहर किसी साथी को फोन कर कुछ पूछताछ कर अपने कुछ सवाल उसे कह दिया और कल सुबह तक जवाब के लिए हुक्म दे दिया...वापस आ सब रात भर वहीं रहने की सोच खा पीकर सो गया...

अगले दिन तय समय पर कालिया फोन घुमाया और बातचीत खत्म कर अपने साथ आए सभी को कह दिया कि आगे उन सब को क्या करना है...

दोपहर बाद कालिया के सब साथी कालिया के कहे अनुसार दूर गुप्त जगह कह भिजवा दिया और खुद वापस अपने शहर की तरफ निकल पड़ा...और सबको यह भी कह दिया कि वो सब बस अपने एक साथी के सम्पर्क में रहेगा और मैं उससे सम्पर्क में रहूंगा और जब तक मैं ना कहूँ तुम लोग इधर फटकोगे भी नहीं...

शाम के 5 बजे तक कालिया अपने शहर आ पहुँचा और अपने उसी फोन वाले साथी के गुप्त स्थान पर जा पहुँचा...

साथी,"भाई,सारा बंदोबस्त कर दिया हूँ और वो लड़की अपने कपड़े खरीदने मार्केट अपने मम्मी के साथ आई है...कल आपने उसके सारे कपड़े ले लिए थे सो....." इतनी बात कहते वो हँस पड़ा जिसे सुन कालिया भी अपनी हंसी रोक नहीं पाया...

"अच्छा, ठीक है..तुम अपना नम्बर चेंज मत करना...मैं बूथ से तुम्हें फोन करता रहूँगा...खुद फोन तो रखना नहीं है...शाला ये वैज्ञानिक लोग भी ना सुविधा तो करता है पर उतना ही खतरा भी पैदा कर देता है..."कालिया उसे समझाते हुए कहा..

और फिर कुछ और बात कर कालिया निकल पड़ा...बाहर निकलते ही एक 4 व्हीलर ठीक उसके आगे रूकी और कालिया तेजी से उसमें बैठ गया और चल पड़ा...छोटे मोटे चोरी करने वाला कालिया आज बचने के लिए बड़े काम को अंजाम देने चल पड़ा था...

कालिया अपने ड्राइवर साथी से पूछा,"किस जगह शॉपिंग कर रही है वो..."

उसने जवाब दिया और गाड़ी चलाने में मशगूल हो गया...जहाँ एस.पी. की बेटी शॉपिंग कर रही थी उधर भीड़ कुछ ज्यादा थी तो कालिया उससे पहले ही अपनी गाड़ी सड़क किनारे रोक ली...

"उसकी गाड़ी कौन सी है..?" कालिया उस तरफ गाड़ी के अंदर से ही झांकते हुए पूछा..

"भाई, वो सामने लगी है..."ड्राइवर साथी ने एक सफेद रंग की गाड़ी की तरफ इशारा करते हुए बोला...

"छोटे अपना काम किया..."कालिया अपने कमर से तमंचे निकाल उसके अंदर की गोलियाँ देखते हुए बोला...

"भाई, वो छोटे सामने गोलगप्पे खा रहा है...काम हो गया है..."उसने सड़क के दूसरे तरफ देखते हुए बोला..उसकी बात सुन कालिया भी उधर मुड़ा...छोटे ने गोलगप्पे की प्लेट रखते हुए काम हो गया का इशारा कर दिया ड्राइवर की तरफ....

कालिया,"..उसे निकल जाने बोल दो.."

ड्राइवर उसे जाने की इशारा करते हुए बोला,"वो अपने लोग का ही वेट कर रहा था..."

और फिर दोनों एक साथ उस सफेद गाड़ी की तरफ नजर जमा दिया और बीच बीच उस एस.पी. की बेटी को भी खोज रहा था...पर वो यहां से दिख रही किसी भी जगह नहीं थी...

तभी ड्राइवर का फोन घिनघिनाने लगा...वो जल्दी से रिसीव कर कान में लगाया...उधर की आवाज सुन वो कालिया की तरफ देखते हुए बोला,"भाई, एस.पी. की बेटी बिल पे कर निकलने वाली है..."

कालिया "हम्म्म्म्म..."करते हुए घड़ी पर नजर डाली तो 7 बजने वाले थे...अंधेरा पूरी तरह छा गई थी...वो आखिरी बार तमंचे पर नजर डाला और उसे अपने एक हाथ में कस के थाम लिया और सामने एस.पी. की बेटी के आने का इंतजार करने लगा....









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