FUN-MAZA-MASTI
एक भाई ऐसा भी -1
काजल को जैसे ही उसके भाई का फोन आया, वो उसी वक़्त अपने ऑफीस से निकल पड़ी..उसकी माँ पिछले 20 दिनों से हॉस्पिटल में है..उन्हें हार्ट अटॅक आया था..पर अब धीरे-2 सुधार हो रहा है..पर फिर भी डॉक्टर्स कह रहे हैं की 10 दिन और लगेंगे..
काजल एक प्राइवेट फर्म मे नौकरी करती थी और हॉस्पिटल मे उसका छोटा भाई केशव रहता था..वो एक आवारा किस्म का लड़का था और अपनी डील -डोल की वजह से गुंडागर्दी भी सीख गया था वो..इसलिए उसकी दोस्ती भी ऐसे लड़को के साथ ही थी..पर जब से उनकी माँ हॉस्पिटल मे थी वो आवारगार्दी कर ही नही पाता था..इसलिए 5:30 होते ही वो अपनी बहन को फोन खड़का देता और उसके आते ही अपने दोस्तो के साथ निकल जाता..ज़िम्मेदारी का ज़रा भी एहसास नही था उसमे..
दिल्ली में रोहिणी की एक डी डी ऐ कॉलोनी मे घर था उनका..बस यही 2 मंज़िला घर था जो उनके पिताजी छोड़ गये थे...उपर वाले हिस्से में दो बेडरूम और नीचे किचन और ड्रॉयिंग रूम.
काजल की उम्र तो शादी के लायक हो चुकी थी पर घर की पूरी ज़िम्मेदारी उसके उपर थी...इसलिए वो अभी शादी के बारे मे दूर -2 तक सोच भी नही सकती थी..
वो थी तो काफ़ी सुंदर पर बिना मेकअप के और सादे कपड़ो मे रहने की वजह से कोई उसपर ज़्यादा ध्यान नही देता था..लड़को को वो खुद ही अपने पास फटकने नही देती थी..क्योंकि प्यार-व्यार के चक्कर मे पड़कर वो अपनी ज़िम्मेदारियो से दूर नही होना चाहती थी.
कुल मिलाकर काफ़ी समझदार और घरेलू किस्म की सुंदर सी लड़की थी काजल..
कुल मिलाकर काफ़ी समझदार और घरेलू किस्म की सुंदर सी लड़की थी काजल....
और उसका भाई केशव, शक्ल से ही गुंडा टाइप का..हल्की दादी मूँछ मे रहता था हमेशा..बिखरे हुए बाल..सिगरेट की लत्त भी थी उसको...इसलिए होंठ भी चेहरे की तरह काले हुए पड़े थे..पर अपने मोहल्ले मे काफ़ी दबदबा था उसका..और वो अपने कसरती बदन को बुरे कामो मे इस्तेमाल करके थोड़ी बहुत कमाई भी कर लेता था...पर वो पैसे वो अपने दोस्तो और शराब मे ही उड़ाता..
घर का खर्चा चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ काजल की ही थी.
उनके घर का खर्चा वैसे ही बड़ी तंगी मे चल रहा था.. उपर से माँ की बीमारी ने भी काफ़ी पैसे ख़त्म कर दिए..
और साथ ही साथ दीवाली भी आने वाली थी..सिर्फ़ दस दिन बाद..ऐसी हालत मे काजल बस यही सोच रही थी की कैसे चलेगी ये जिंदगी..
पर उसे नही पता था की आने वाली दीवाली उसके लिए क्या-2 सर्प्राइज़ लाने वाली है..
काजल के हॉस्पिटल पहुँचते ही केशव फ़ौरन वहाँ से निकल गया...इतनी जल्दी मचाते हुए काजल ने उसे पहली बार देखा था..
रात के समय हॉस्पिटल मे किसी के भी रहने की मनाही थी..वैसे भी देखभाल के लिए नर्सेस रहती ही थी..इसलिए काजल भी घर आ जाती थी..
घर पहुंचकर उसने अपना लोवर और एक हल्की सी टी शर्ट पहनी और खाना बनाने मे लग गयी..वो रात के समय अपने अंडरगार्मेंट्स भी उतार देती थी..यही नीयम था उसका रोज का..10 बजे तक केशव भी आ जाता था और दोनों मिलकर खाना खाते थे...सुबह वो ऑफीस निकल जाती और केशव नहा धोकर हॉस्पिटल के लिए...पिछले दो महीने से यही नीयम चल रहा था..
पर आज 11 बजने को हो रहे थे और केशव का कहीं पता नही था...काजल को भी काफ़ी भूख लगी थी..उसने उसका नंबर कई बार ट्राइ किया पर हर बार वो काट देता...आख़िर मे जाकर जब उसने फोन उठाया तो सिर्फ़ इतना कहकर फोन रख दिया की 'दीदी , दस मिनिट मे आया बस...'
दस मिनिट के बाद जब केशव आया तो वो काफ़ी खुश लग रहा था...पर काजल के गुस्से वाले चेहरे को देखकर वो सहम सा गया और चुपचाप अपने कमरे मे जाकर चेंज करने लगा..और कपड़े बदल कर नीचे आया.
काजल : "ये हो क्या रहा है आजकल...ये जानते हुए भी की माँ हॉस्पिटल में है, तुम इतनी रात को मुझे अकेला छोड़कर बाहर रहते हो..आख़िर गये कहाँ थे..और मेरा फोन क्यो काट रहे थे..''
केशव : "वो...मैं ...जुआ खेलने गया था...''
वैसे तो जुआ खेलना उसका हमेशा का काम था, पर माँ हॉस्पिटल में है, ऐसी हालत मे भी वो जुआ खेलने से बाज नही आ रहा, ये काजल से बर्दाश्त नही हुआ..उसके मुँह मे जो भी आया, वो उसे कहती चली गयी..काफ़ी भला-बुरा सुनने के बाद अचानक केशव ने अपनी जेब से 500 के लगभग 20-30 नोट निकाल कर उसके सामने रख दिए..
और उन्हे देखते ही काजल की ज़ुबान पर एकदम से ताला सा लग गया..
केशव (मुस्कुराते हुए) : "ये जीते है मैने..दीदी, आपको पता है ना दीवाली आने वाली है...और इसी टाइम ऐसी बड़ी-2 गेम्स चलती है...और जब आप फोन पर फोन कर रहे थे,मेरी एक बड़ी सी गेम फंसी हुई थी...इसलिए फोन काट रहा था..और जैसे ही ये पैसे जीता, मैं वहाँ से निकल आया..''
इतने पैसे एकसाथ देखकर काजल हैरान थी...वो महीना भागा-दौड़ी करके सिर्फ़ 15000 कमाती थी...और उसके भाई ने लगभग उससे दुगने पैसे कुछ ही घंटो मे लाकर उसके सामने रख दिए थे..
वो जुए को हमेशा से बुरा मानती थी...पर उनके जो हालात थे, उसमे पैसे अगर जुआ खेलकर भी आए, तो उसे उसमे कोई प्राब्लम नज़र नही आ रही थी..
केशव ने वो सारे पैसे ज़बरदस्ती काजल के हाथों मे रख दिए और बोला : "दीदी, मैं उतना भी बुरा नही हू जितना आप मुझे समझती हो...मुझे भी माँ की फ़िक्र है..अब मुझे आप की तरह कोई जॉब तो देगा नही, इसलिए जो मेरी समझ मे आता है, मैं करता हू...और ये पहली बार नही है की मैने जुए में पैसे जीते हैं, पर हाँ , इतने पैसे एक साथ पहले कभी नही जीते..पर पहले मैं उन पैसों को उड़ा देता था..पर आज के बाद ऐसा नही करूँगा..मैं भी आपकी मदद करूँगा..
अपने भाई की ऐसी समझदारी भरी बाते सुनकर काजल एक दम से अपनी सीट से उठी और केशव के सिर को अपनी छाती से लगाकर सिसकने लगी : "मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई...मैने तुझे इतना बुरा-भला कहा..मैं वो माँ की वजह से इतनी परेशान थी की जो मेरे मुँह मे आया, वो कहती चली गयी...''
ये केशव के लिए पहला मौका था जब उसकी बहन के मुम्मे उसके चेहरे पर दबे पड़े थे...उसने आज तक अपनी बहन के बारे मे कोई ग़लत बात नही सोची थी..पर आज जिस तरह से उसने केशव के सिर को पकड़कर अपनी छाती से लगाया था..और जब केशव को ये महसूस हुआ की काजल ने पतली सी टी शर्ट के अंदर कुछ भी नही पहना है तो उसे ऐसा एहसास हुआ की उसका चेहरा सीधा उसके नंगे मुम्मो के उपर रखा हुआ है...इतने नर्म और मुलायम थे उसके मुम्मे ...और उसके जिस्म से निकल रही एक कुँवारी सी खुश्बू...वो तो बस अपनी आँखे बंद करके उस सुगंध को सूंघता ही रह गया..
काजल बोलती जा रही थी : "पर केशव, ये पैसा हराम का है...आगे से कोशिश करना की अपनी मेहनत का ही पैसा घर लाया करो..''
उसकी बात से सॉफ जाहिर था की वो इन पैसो को अभी के लिए मना नही कर रही ...करती भी कैसे..उसे पता था की उनसे हॉस्पिटल के बिल्स आसानी से दिए जा सकते हैं..
केशव ने अपना सिर उपर उठाया और बोला : "नही दीदी, आप ऐसा क्यो सोच रही है...ये दीवाली के दिन है, इन दिनों में जुए से जीते गये पैसे मेहनत किए हुए पैसों से कम थोड़े ही होते हैं...और आप कैसे कह सकती है की इसमे मेहनत नही है, इसमे बहुत दिमाग़ लगता है..और दिमाग़ लगाकर कमाई हुई रकम भी तो मेहनत से कमाए हुए पैसो के बराबर हुई ना..''
काजल के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था..उसके दोनो हाथों मे केशव का चेहरा था..जो उसकी दोनो छातियों के बीच से झाँकता हुआ उसकी तरफ देख रहा था..इतने करीब से और इतने प्यार से तो उसने आज तक नही देखा था अपने भाई को...उसने नीचे झुककर उसके माथे को चूम लिया और बोली : "ठीक है...पर मुझसे वादा कर, दीवाली के बाद तू ये जुआ नही खेलेगा..सिर्फ़ इन्ही दिनों के लिए खेल ले बस...और अपनी लिमिट मे रहकर..और बाद मे कोई अच्छा सा काम करके मेरी घर चलाने मे मदद करेगा..''
केशव : "ठीक है दीदी...अब जल्दी से खाना लगाओ...बड़ी भूख लगी है मुझे..''
और फिर हंसते हुए काजल उसके लिए खाना परोसने लगी..
खाना खाते हुए अचानक काजल ने कहा : "तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..''
केशव खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : "हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..''
काजल ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही केशव को उसमें हरा देती थी..
केशव : "हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ''
काजल : "ये कैसे होता है....''
केशव : "उम्म्म.....आप ऐसा करो...खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू...वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..''
काजल भी खुश हो गयी....वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी...ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी.
किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही केशव अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.
आने से पहले काजल अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी...ये काम वो रोज रात को करती थी...अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो केशव के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..
और मुँह धोने की वजह से उसकी टी शर्ट भी आगे से गीली हो गयी थी..और इसलिए उसके उभारों वाली जगह टी शर्ट से चिपक कर पारदर्शी हो गयी थी..पर निप्पल्स वाली जगह से नही, सिर्फ़ उपर-2 से..पर इतना गीलापन भी काफ़ी था केशव के लंड की नोक पर गीलापन लाने के लिए..आज उसके साथ लगातार दूसरी बार ऐसी घटना हो रही थी ,आज से पहले उसने अपनी बड़ी बहन को ऐसी नज़रों से देखा ही नही था...दोनो अलग-2 और अपने मे मस्त रहते थे..पर आज जिस तरह से उसने केशव के सिर को अपने सीने से लगाया और अब अपनी गीली चुचियों के दर्शन भी करवा रही है..ऐसे मे इंसान का अपने लंड पर बस चलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है.
काजल धम्म से आकर उसके सामने पालती मार कर बैठ गयी और बोली : "हांजी ...अब बताओ...क्या होता है ये तीन पत्ती''
केशव : "जीतने भी खेलने वाले होते हैं, उन्हे 3-3 पत्ते बाँट दिए जाते हैं...और जिसके पत्ते बड़े होंगे, वही जीत जाएगा..''
काजल : "बस....इतना सा ...ये तो बड़ी आसान सी गेम है...बिल्कुल बच्चों वाली...हा हा ..''
वो तो ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे वो एक ही बार मे सीख चुकी है..
केशव : "ये इतना भी आसान नही है, जितना लग रहा है...चलो,मैं पत्ते बाँटकर दिखाता हूँ ...''
और केशव ने गड्डी कटवाई और फिर 3-3 पत्ते आपस मे बाँट लिए..काजल ने फ़ौरन पत्ते उठा लिए.
केशव : "अरे....दीदी , ऐसे एकदम से नही उठाते...पहले ब्लाइंड चलनी पड़ती है... और अगर आपके पत्ते अच्छे हुए तो आप चाल चल सकती हो ''
और फिर केशव उसे ब्लाइंड और चाल के बारे मे बताने लगा..और ब्लाइंड और चाल के बारे मे अच्छी तरह से समझ कर वो बोली : "कोई बात नही...अगली बार से ध्यान रखूँगी..पर इन पत्तो का क्या करू...ये बड़े कहलाएँगे या नही..''
इतना कहकर उसने अपने तीनों पत्ते केशव के सामने फेंक दिए...वो तीनों इक्के थे..
केशव : "वाव दीदी...इक्के की ट्रेल...पहली बार मे ही आपके पास इक्के की ट्रेल आई ..बहुत बाड़िया...आपको पता है, इनके आगे कुछ भी नही चलता..ये सबसे बड़े होते हैं...सामने वाले के पास चाहे कुछ भी हो, आपसे जीत नही सकता...''
काजल (आँखे घुमाते हुए ) : "कुछ भी....आ हाँन...''
और ना चाहते हुए भी काजल की नज़रें घूमती हुई केशव के शॉर्ट्स की तरफ चली गयी...और वहाँ पर उठ रहा तंबू उसकी नज़रों से छुपा नही रह सका..
काजल को तो अपनी आँखो पर विश्वास ही नही हुआ...ऐसा उसने जान बूझकर नही किया था..ऐसे ही उसकी नज़रें घूमती हुई वहाँ चली गयी थी..और वो इतनी भी नासमझ नही थी की इतने बड़े उभार का मतलब ना समझ सके..
असल मे वो दुनिया के सामने तो भोली भाली बनकर रहती थी...पर अपनी जिंदगी मे वो एक नंबर की ठरकी थी..वो होती है ना घुन्नी टाइप की लड़कियाँ , जो अपने आप को दुनिया की नज़रों से छुपा कर रखती है...पर अंदर से बड़ी चालू होती है...ठीक वैसी ही थी काजल भी..उसने आज तक कभी भी सेक्स नही किया था..पर सेक्स से जुड़ी बाते उसे हमेशा उत्तेजित करती थी..स्कूल / कॉलेज में भी वो लड़को से दूर रहती थी..पर रोज रात को उन्ही लड़को के बारे मे सोच-सोचकर फिंगरिंग किया करती थी...ये उसका अभी तक का नीयम था, इसलिए उसे सोते-2 रोज 12 बज जाते थे...अपने मोबाइल पर वी चेट पर चेटिंग करना..फेक नाम से एफ बी पर अकाउंट भी बनाया हुआ था उसने और उसमें वो लड़को से रोज रात को चेटिंग करती थी...अपने मोबाइल से अपनी चूत की और मुम्मों की पिक्स उन्हे भेजकर उत्तेजित भी करती थी...पर किसी से फोन पर बात नही करती थी और ना ही किसी के सामने खुलकर आती थी..यानी अपना चेहरा हमेशा छुपा कर ही रखती थी..
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काजल को जैसे ही उसके भाई का फोन आया, वो उसी वक़्त अपने ऑफीस से निकल पड़ी..उसकी माँ पिछले 20 दिनों से हॉस्पिटल में है..उन्हें हार्ट अटॅक आया था..पर अब धीरे-2 सुधार हो रहा है..पर फिर भी डॉक्टर्स कह रहे हैं की 10 दिन और लगेंगे..
काजल एक प्राइवेट फर्म मे नौकरी करती थी और हॉस्पिटल मे उसका छोटा भाई केशव रहता था..वो एक आवारा किस्म का लड़का था और अपनी डील -डोल की वजह से गुंडागर्दी भी सीख गया था वो..इसलिए उसकी दोस्ती भी ऐसे लड़को के साथ ही थी..पर जब से उनकी माँ हॉस्पिटल मे थी वो आवारगार्दी कर ही नही पाता था..इसलिए 5:30 होते ही वो अपनी बहन को फोन खड़का देता और उसके आते ही अपने दोस्तो के साथ निकल जाता..ज़िम्मेदारी का ज़रा भी एहसास नही था उसमे..
दिल्ली में रोहिणी की एक डी डी ऐ कॉलोनी मे घर था उनका..बस यही 2 मंज़िला घर था जो उनके पिताजी छोड़ गये थे...उपर वाले हिस्से में दो बेडरूम और नीचे किचन और ड्रॉयिंग रूम.
काजल की उम्र तो शादी के लायक हो चुकी थी पर घर की पूरी ज़िम्मेदारी उसके उपर थी...इसलिए वो अभी शादी के बारे मे दूर -2 तक सोच भी नही सकती थी..
वो थी तो काफ़ी सुंदर पर बिना मेकअप के और सादे कपड़ो मे रहने की वजह से कोई उसपर ज़्यादा ध्यान नही देता था..लड़को को वो खुद ही अपने पास फटकने नही देती थी..क्योंकि प्यार-व्यार के चक्कर मे पड़कर वो अपनी ज़िम्मेदारियो से दूर नही होना चाहती थी.
कुल मिलाकर काफ़ी समझदार और घरेलू किस्म की सुंदर सी लड़की थी काजल..
कुल मिलाकर काफ़ी समझदार और घरेलू किस्म की सुंदर सी लड़की थी काजल....
और उसका भाई केशव, शक्ल से ही गुंडा टाइप का..हल्की दादी मूँछ मे रहता था हमेशा..बिखरे हुए बाल..सिगरेट की लत्त भी थी उसको...इसलिए होंठ भी चेहरे की तरह काले हुए पड़े थे..पर अपने मोहल्ले मे काफ़ी दबदबा था उसका..और वो अपने कसरती बदन को बुरे कामो मे इस्तेमाल करके थोड़ी बहुत कमाई भी कर लेता था...पर वो पैसे वो अपने दोस्तो और शराब मे ही उड़ाता..
घर का खर्चा चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ काजल की ही थी.
उनके घर का खर्चा वैसे ही बड़ी तंगी मे चल रहा था.. उपर से माँ की बीमारी ने भी काफ़ी पैसे ख़त्म कर दिए..
और साथ ही साथ दीवाली भी आने वाली थी..सिर्फ़ दस दिन बाद..ऐसी हालत मे काजल बस यही सोच रही थी की कैसे चलेगी ये जिंदगी..
पर उसे नही पता था की आने वाली दीवाली उसके लिए क्या-2 सर्प्राइज़ लाने वाली है..
काजल के हॉस्पिटल पहुँचते ही केशव फ़ौरन वहाँ से निकल गया...इतनी जल्दी मचाते हुए काजल ने उसे पहली बार देखा था..
रात के समय हॉस्पिटल मे किसी के भी रहने की मनाही थी..वैसे भी देखभाल के लिए नर्सेस रहती ही थी..इसलिए काजल भी घर आ जाती थी..
घर पहुंचकर उसने अपना लोवर और एक हल्की सी टी शर्ट पहनी और खाना बनाने मे लग गयी..वो रात के समय अपने अंडरगार्मेंट्स भी उतार देती थी..यही नीयम था उसका रोज का..10 बजे तक केशव भी आ जाता था और दोनों मिलकर खाना खाते थे...सुबह वो ऑफीस निकल जाती और केशव नहा धोकर हॉस्पिटल के लिए...पिछले दो महीने से यही नीयम चल रहा था..
पर आज 11 बजने को हो रहे थे और केशव का कहीं पता नही था...काजल को भी काफ़ी भूख लगी थी..उसने उसका नंबर कई बार ट्राइ किया पर हर बार वो काट देता...आख़िर मे जाकर जब उसने फोन उठाया तो सिर्फ़ इतना कहकर फोन रख दिया की 'दीदी , दस मिनिट मे आया बस...'
दस मिनिट के बाद जब केशव आया तो वो काफ़ी खुश लग रहा था...पर काजल के गुस्से वाले चेहरे को देखकर वो सहम सा गया और चुपचाप अपने कमरे मे जाकर चेंज करने लगा..और कपड़े बदल कर नीचे आया.
काजल : "ये हो क्या रहा है आजकल...ये जानते हुए भी की माँ हॉस्पिटल में है, तुम इतनी रात को मुझे अकेला छोड़कर बाहर रहते हो..आख़िर गये कहाँ थे..और मेरा फोन क्यो काट रहे थे..''
केशव : "वो...मैं ...जुआ खेलने गया था...''
वैसे तो जुआ खेलना उसका हमेशा का काम था, पर माँ हॉस्पिटल में है, ऐसी हालत मे भी वो जुआ खेलने से बाज नही आ रहा, ये काजल से बर्दाश्त नही हुआ..उसके मुँह मे जो भी आया, वो उसे कहती चली गयी..काफ़ी भला-बुरा सुनने के बाद अचानक केशव ने अपनी जेब से 500 के लगभग 20-30 नोट निकाल कर उसके सामने रख दिए..
और उन्हे देखते ही काजल की ज़ुबान पर एकदम से ताला सा लग गया..
केशव (मुस्कुराते हुए) : "ये जीते है मैने..दीदी, आपको पता है ना दीवाली आने वाली है...और इसी टाइम ऐसी बड़ी-2 गेम्स चलती है...और जब आप फोन पर फोन कर रहे थे,मेरी एक बड़ी सी गेम फंसी हुई थी...इसलिए फोन काट रहा था..और जैसे ही ये पैसे जीता, मैं वहाँ से निकल आया..''
इतने पैसे एकसाथ देखकर काजल हैरान थी...वो महीना भागा-दौड़ी करके सिर्फ़ 15000 कमाती थी...और उसके भाई ने लगभग उससे दुगने पैसे कुछ ही घंटो मे लाकर उसके सामने रख दिए थे..
वो जुए को हमेशा से बुरा मानती थी...पर उनके जो हालात थे, उसमे पैसे अगर जुआ खेलकर भी आए, तो उसे उसमे कोई प्राब्लम नज़र नही आ रही थी..
केशव ने वो सारे पैसे ज़बरदस्ती काजल के हाथों मे रख दिए और बोला : "दीदी, मैं उतना भी बुरा नही हू जितना आप मुझे समझती हो...मुझे भी माँ की फ़िक्र है..अब मुझे आप की तरह कोई जॉब तो देगा नही, इसलिए जो मेरी समझ मे आता है, मैं करता हू...और ये पहली बार नही है की मैने जुए में पैसे जीते हैं, पर हाँ , इतने पैसे एक साथ पहले कभी नही जीते..पर पहले मैं उन पैसों को उड़ा देता था..पर आज के बाद ऐसा नही करूँगा..मैं भी आपकी मदद करूँगा..
अपने भाई की ऐसी समझदारी भरी बाते सुनकर काजल एक दम से अपनी सीट से उठी और केशव के सिर को अपनी छाती से लगाकर सिसकने लगी : "मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई...मैने तुझे इतना बुरा-भला कहा..मैं वो माँ की वजह से इतनी परेशान थी की जो मेरे मुँह मे आया, वो कहती चली गयी...''
ये केशव के लिए पहला मौका था जब उसकी बहन के मुम्मे उसके चेहरे पर दबे पड़े थे...उसने आज तक अपनी बहन के बारे मे कोई ग़लत बात नही सोची थी..पर आज जिस तरह से उसने केशव के सिर को पकड़कर अपनी छाती से लगाया था..और जब केशव को ये महसूस हुआ की काजल ने पतली सी टी शर्ट के अंदर कुछ भी नही पहना है तो उसे ऐसा एहसास हुआ की उसका चेहरा सीधा उसके नंगे मुम्मो के उपर रखा हुआ है...इतने नर्म और मुलायम थे उसके मुम्मे ...और उसके जिस्म से निकल रही एक कुँवारी सी खुश्बू...वो तो बस अपनी आँखे बंद करके उस सुगंध को सूंघता ही रह गया..
काजल बोलती जा रही थी : "पर केशव, ये पैसा हराम का है...आगे से कोशिश करना की अपनी मेहनत का ही पैसा घर लाया करो..''
उसकी बात से सॉफ जाहिर था की वो इन पैसो को अभी के लिए मना नही कर रही ...करती भी कैसे..उसे पता था की उनसे हॉस्पिटल के बिल्स आसानी से दिए जा सकते हैं..
केशव ने अपना सिर उपर उठाया और बोला : "नही दीदी, आप ऐसा क्यो सोच रही है...ये दीवाली के दिन है, इन दिनों में जुए से जीते गये पैसे मेहनत किए हुए पैसों से कम थोड़े ही होते हैं...और आप कैसे कह सकती है की इसमे मेहनत नही है, इसमे बहुत दिमाग़ लगता है..और दिमाग़ लगाकर कमाई हुई रकम भी तो मेहनत से कमाए हुए पैसो के बराबर हुई ना..''
काजल के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था..उसके दोनो हाथों मे केशव का चेहरा था..जो उसकी दोनो छातियों के बीच से झाँकता हुआ उसकी तरफ देख रहा था..इतने करीब से और इतने प्यार से तो उसने आज तक नही देखा था अपने भाई को...उसने नीचे झुककर उसके माथे को चूम लिया और बोली : "ठीक है...पर मुझसे वादा कर, दीवाली के बाद तू ये जुआ नही खेलेगा..सिर्फ़ इन्ही दिनों के लिए खेल ले बस...और अपनी लिमिट मे रहकर..और बाद मे कोई अच्छा सा काम करके मेरी घर चलाने मे मदद करेगा..''
केशव : "ठीक है दीदी...अब जल्दी से खाना लगाओ...बड़ी भूख लगी है मुझे..''
और फिर हंसते हुए काजल उसके लिए खाना परोसने लगी..
खाना खाते हुए अचानक काजल ने कहा : "तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..''
केशव खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : "हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..''
काजल ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही केशव को उसमें हरा देती थी..
केशव : "हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ''
काजल : "ये कैसे होता है....''
केशव : "उम्म्म.....आप ऐसा करो...खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू...वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..''
काजल भी खुश हो गयी....वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी...ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी.
किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही केशव अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.
आने से पहले काजल अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी...ये काम वो रोज रात को करती थी...अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो केशव के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..
और मुँह धोने की वजह से उसकी टी शर्ट भी आगे से गीली हो गयी थी..और इसलिए उसके उभारों वाली जगह टी शर्ट से चिपक कर पारदर्शी हो गयी थी..पर निप्पल्स वाली जगह से नही, सिर्फ़ उपर-2 से..पर इतना गीलापन भी काफ़ी था केशव के लंड की नोक पर गीलापन लाने के लिए..आज उसके साथ लगातार दूसरी बार ऐसी घटना हो रही थी ,आज से पहले उसने अपनी बड़ी बहन को ऐसी नज़रों से देखा ही नही था...दोनो अलग-2 और अपने मे मस्त रहते थे..पर आज जिस तरह से उसने केशव के सिर को अपने सीने से लगाया और अब अपनी गीली चुचियों के दर्शन भी करवा रही है..ऐसे मे इंसान का अपने लंड पर बस चलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है.
काजल धम्म से आकर उसके सामने पालती मार कर बैठ गयी और बोली : "हांजी ...अब बताओ...क्या होता है ये तीन पत्ती''
केशव : "जीतने भी खेलने वाले होते हैं, उन्हे 3-3 पत्ते बाँट दिए जाते हैं...और जिसके पत्ते बड़े होंगे, वही जीत जाएगा..''
काजल : "बस....इतना सा ...ये तो बड़ी आसान सी गेम है...बिल्कुल बच्चों वाली...हा हा ..''
वो तो ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे वो एक ही बार मे सीख चुकी है..
केशव : "ये इतना भी आसान नही है, जितना लग रहा है...चलो,मैं पत्ते बाँटकर दिखाता हूँ ...''
और केशव ने गड्डी कटवाई और फिर 3-3 पत्ते आपस मे बाँट लिए..काजल ने फ़ौरन पत्ते उठा लिए.
केशव : "अरे....दीदी , ऐसे एकदम से नही उठाते...पहले ब्लाइंड चलनी पड़ती है... और अगर आपके पत्ते अच्छे हुए तो आप चाल चल सकती हो ''
और फिर केशव उसे ब्लाइंड और चाल के बारे मे बताने लगा..और ब्लाइंड और चाल के बारे मे अच्छी तरह से समझ कर वो बोली : "कोई बात नही...अगली बार से ध्यान रखूँगी..पर इन पत्तो का क्या करू...ये बड़े कहलाएँगे या नही..''
इतना कहकर उसने अपने तीनों पत्ते केशव के सामने फेंक दिए...वो तीनों इक्के थे..
केशव : "वाव दीदी...इक्के की ट्रेल...पहली बार मे ही आपके पास इक्के की ट्रेल आई ..बहुत बाड़िया...आपको पता है, इनके आगे कुछ भी नही चलता..ये सबसे बड़े होते हैं...सामने वाले के पास चाहे कुछ भी हो, आपसे जीत नही सकता...''
काजल (आँखे घुमाते हुए ) : "कुछ भी....आ हाँन...''
और ना चाहते हुए भी काजल की नज़रें घूमती हुई केशव के शॉर्ट्स की तरफ चली गयी...और वहाँ पर उठ रहा तंबू उसकी नज़रों से छुपा नही रह सका..
काजल को तो अपनी आँखो पर विश्वास ही नही हुआ...ऐसा उसने जान बूझकर नही किया था..ऐसे ही उसकी नज़रें घूमती हुई वहाँ चली गयी थी..और वो इतनी भी नासमझ नही थी की इतने बड़े उभार का मतलब ना समझ सके..
असल मे वो दुनिया के सामने तो भोली भाली बनकर रहती थी...पर अपनी जिंदगी मे वो एक नंबर की ठरकी थी..वो होती है ना घुन्नी टाइप की लड़कियाँ , जो अपने आप को दुनिया की नज़रों से छुपा कर रखती है...पर अंदर से बड़ी चालू होती है...ठीक वैसी ही थी काजल भी..उसने आज तक कभी भी सेक्स नही किया था..पर सेक्स से जुड़ी बाते उसे हमेशा उत्तेजित करती थी..स्कूल / कॉलेज में भी वो लड़को से दूर रहती थी..पर रोज रात को उन्ही लड़को के बारे मे सोच-सोचकर फिंगरिंग किया करती थी...ये उसका अभी तक का नीयम था, इसलिए उसे सोते-2 रोज 12 बज जाते थे...अपने मोबाइल पर वी चेट पर चेटिंग करना..फेक नाम से एफ बी पर अकाउंट भी बनाया हुआ था उसने और उसमें वो लड़को से रोज रात को चेटिंग करती थी...अपने मोबाइल से अपनी चूत की और मुम्मों की पिक्स उन्हे भेजकर उत्तेजित भी करती थी...पर किसी से फोन पर बात नही करती थी और ना ही किसी के सामने खुलकर आती थी..यानी अपना चेहरा हमेशा छुपा कर ही रखती थी..
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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