Wednesday, November 12, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--58

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--58

 भौजी: (हाँफते हुए) हाय... थक गई!

मैं: चलो मैं आपको नहला देता हूँ|

मैंने भौजी को स्नानघर में पटरे पे बिठाया और उनके हर एक अंग पर अच्छे से साबुन लगाया| साबुन लगते समय मैं जान-बुझ के नके अंगों को कभी सहला देता तो कभी प्यार से नोच देता| मेरा िासा करने पे भौजी मुस्कुरा देतीं या हलके से सिसिया देती|होम दोनों के नहाने के बाद मैंने उनके शरीर से पानी पोछा और तब भौजी ने चौथी बार कोशिश की मुझे Kiss करने की पर इस बार मैंने हम दोनों के होठों के बीच तौलिया रख दिया|

भौजी: अब मान भी जाओ न..... प्लीज!!!

मैं: ना!!! अभी तो आधा दिन बाकी है|

मैं इतना कहके, फटाफट कपडे पहने और मुस्कुराता हुआ बहार आ गया| कुछ समय बाद भौजी भी कपडे पहन के बहार आईं|





भौजी बार-बार मुंह बना के कह रहीं थी की एक Kiss ....बस एक Kiss ... पर मैं उन्हें तड़पाये जा रहा था| वो भोजन बनाते समय भी बार-बार अपनी जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी अपने होठों को काटते हुए "प्लीज" कहतीं| पर मैं हर बार ना में सर हिला देता| कुछ देर बाद नेहा स्कूल से आ गई, माँ और अम्मा भी घर आ गए, बड़के दादा और पिताजी भी खेत से घर आ गए| सब ने एक साथ खाना खाया और भोजन के पश्चात माँ और बड़की अम्मा तो छप्पर के नीचे लेटीं बातें कर रहीं थीं| वरुण और रसिका भाभी एक चारपाई पे पसरे हुए थे और मैं, नेहा और भौजी भौजी के घर के आँगन में दो चारपाइयों पे लेटे थे| एक चारपाई पे मैं और नेहा और दूसरी पे भौजी|

भौजी: नेहा देख ना...तेरे पापा मुझे Kissi नहीं देते!

मैं: Kissi तो आपको नहीं मिलेगी .... पर हाँ नेहा का जर्रूर मिलेगी| (और मैंने नेहा के गालों को चुम लिया)
बेटा आप जाके मम्मी को kiss करो और उन तक मेरी किश पहुँच जाएगी|

नेहा उठी और जाके भौजी के गाल पे kiss करके वापस आ गई और फिर मेरे पास लेट गई|

भौजी: अरे बेटा kissi तो हवा में उड़ गई| पापा से कहो की मुझे डायरेक्ट kiss करें|

मैं: ना... बेटे आज सुबह जब मैंने आप्पकी मम्मी से कहा की Good Morning Kiss दो तो उन्होंने मना कर दिया| अब आप भी तो रोज सुबह मुझे Godd Morning Kiss देते हो ना?

नेहा ने हाँ में सर हिलाया|

भौजी: Sorry बाबा! आजके बाद कभी मना नहीं करुँगी.... अब तो दे दो?

मैं: ना

भौजी: अच्छा नेहा अगर आप मुझे पापा से kissi दिलाओगे तो मैं आपको ये चिप्स का पैकेट दूंगी? (ये कहते हुए उन्होंने अपने तकिये के नीचे से एक चिप्स का पैकेट निकला|)

मैं: ओह तो अब आप मेरी बेटी को रिश्वत दोगे?

नेहा उठ के भौजी की तरफ जाने लगी तो मैंने नेहा का हाथ पलाद के रोक और उसके कान में खुसफुसाया; "बेटा ये लो दस रुपये और चुप-चाप चिप्स का पैकेट खरीद लाओ|" नेहा ने चुपके से पैसे अपने हाथ में दबाये और बाहर भाग गई| किस्मत से मेरी पेंट में दस का नोट था जो काम आगया|

भौजी: नेहा कहाँ गई?

मैं: चिप्स लेने !!!

भौजी: हैं??? (भौजी ने बड़े ताव से ये बोला ) ठीक है बहुत हो गया अब! सुबह से कह रहीं हूँ.... सीढ़ी ऊँगली से घी निकालना चाहा नहीं निकला...ऊँगली टेढ़ी की पर फिर भी नहीं ....अब तो घी का डिब्बा ही उल्टा करना होगा!!!

मैं: क्या मतलब?

भौजी: वो अभी बताती हूँ| 


मैं पीठ के बल लेटा हुआ था, भौजी एकदम से उठीं और मेरी चारपाई के नजदीक आके खडी हो गईं| वो एक दम से मुझपर कूद पड़ीं और जैसे मल युद्ध करते समय दो पहलवान हाथों को लॉक करते हैं, ठीक उसी तरह भौजी ने मेरे और अपने हाथों को लॉक किया| अब वो मेरे ऊपर बैठीं हुई थीं;

मैं: ही..ही...ही... वाह रे मेरी जंगली बिल्ली!

भौजी: मिऊ....

भौजी ने पूरी कोशिश की मुझे kiss करने की पर मैं हर बार मुंह फिरा लेता| उनका हर एक शॉट टारगेट मिस कर रहा था! अब बारी मेरी थी, मैंने अपना दाहिना हाथ छुड़ाया,और अचानक से करवट ली| हमला अचानक था इसलिए भौजी अब सीधा मेरे नीचे थीं| अब मैं ऊपर था और भौजी मेरे नीचे.... बीस सेकंड तक मैं भौजी की आँखों में देखता रहा| मुझे उनकी आँखों में ललक दिख रही थी| उनके होंठ थर-थारा रहे थे| एक बार को तो मन किया की उनके होंठों को चूम लूँ पर नहीं....अभी थोड़ा तड़पना बाकी था| कहते हैं ना ...बिरहा के बाद मिलने का आनंद ही कुछ और होता है!!! हम ऐसे ही एक दूसरे की आँखों में देखते रहे तभी वहाँ नेहा आ गई| मैं कूद के उनके ऊपर से हैट गया और भौजी की चारपाई पे बैठ हँसने लगा|

खेर नेहा जो चिप्स लाइ थी वो हम ने मिल के खाया और मैंने जानबूझ के बात बदल दी| शाम हुई... सब ने चाय पी... फिर रात हुई...भोजन खाया और सोने की तैयारी करने लगे|

पिताजी: अरे भई कभी हमारे पास भी सोया करो|

मैं: अब पिताजी घर में तीन ही तो "मर्द" हैं| तीनों यहाँ सो गए तो वहाँ बाकियों की रक्षा कौन करेगा?

मेरी बात सुन के बड़के दादा और पिताजी दोनों ठहाका मार के हँसने लगे| मैं जानबूझ के पिताजी और बड़के दादा के पास बैठा रहा और यहाँ-वहाँ की बातें करता रहा, कुछ न कुछ सवाल पूछता रहा| इसके पीछे मेरा मकसद ये था की ताकि भौजी मेरे सोने से पहले सो जाएँ वरना वो मेरे पहले सोने का फायदा उठाने से बाज़ नहीं आएँगी| और हुआ वही जो मैं चाहता था! घडी में रात के दस बजे थे| जब मैं बड़े घर के अंदर पहुँचा तो सब सो चुके थे| भौजी की चारपाई सब से पहले थी...उसके बगल में मेरी चारपाई और मेरे बगल में माँ लेटी थीं| मैं भौजी के सिरहाने रुका और अपने घुटनों पे बैठा| भौजी बिलकुल सीढ़ी लेटीं थी और मैंने झुक के उनके होंठों को चूम लिया| मैं उनके नीचले होंठ को मुंह में भर के चूस रहा था और भौजी भी अब तक समझ चुकीं थी की जिस kiss के लिए वो इतना व्याकुल थीं वो आखिर उन्हें मिल ही गई|

दो मिनट के "रसपान" के बाद हम अलग हुए और मैं अपनी चारपाई पे चुप-चाप लेट गया| कुछदेर बाद एक हाथ मेरी छाती पे था| ये किसी और का हाथ नहीं बल्कि माँ का हाथ था| एक पल के लिए तो मेरी धड़कन ही रूक गई थी| फिर मैंने थोड़ा गौर से देखा तो माँ और मेरी चारपािर पास-पास थी...या ये कहें की सटी हुई थीं| माँ गहरी नींद में थी और मैं बिना कुछ बोले सो गया| सुबह पाँच बजे Good Morning kiss के साथ भौजी ने मुझे जगाया|

भौजी: How’d you like my Good Morning Kiss?

मैं: Awesome !!!

पर आज सुबह के लिए मेरे पास एक जबरदस्त प्लान था| ऐसा प्लान जो मेरे दिमाग में रात भर चल रहा था|


कुछ दिन पहले बिस्तर लगाते समय भौजी ने कहा था की काश एक रात मैं और वो एक साथ बिता सकते| उस समय मैंने बात को टाल दिया था पर रात भर वो बात दिमाग में गूँजती रही| अब मेरा प्लान पूरी तरह से तैयार था| सुबह तैयार हो के मैं भौजी को ढूंढते हुए उनके घर पहुँच गया| भौजी उस वक़्त साडी पहन रही थी| उनके दांतों तले साडी का पल्लू दबा हुआ था...और वो बड़ी सेक्सी लग रहीं थी|

मैं: मुझे एक छोटा सा काम था आपसे?

भौजी: हाँ बोलिए....

मैं: आप बड़े सेक्सी लग रहे हो| ख़ास कर आपकी नाभि.....सीईईईईई ....मन कर रहा है Kiss कर लूँ?

भौजी: तो आप पूछ क्यों रहे हो?

मैं: नहीं....अभी नहीं..... खेर आपको मेरा एक छोटा सा काम करना होगा| आज जो भी बात में पिताजी के सामने आपसे पूछूँ आप बस उसमें हाँ में हाँ मिला देना?

भौजी: ठीक है...पर बात क्या है?

मैं: सरप्राइज है....अभी नहीं बता सकता|

भौजी: हाय...आप फिर से अपने सरप्राइज से तड़पाओगे?

मैं: हाँ... शायद आपको अच्छा भी लगे|

भौजी: आपका दिया हुआ हर सरप्राइज मुझे अच्छा लगता है| पर इस बार क्या चल रहा है आपे दिमाग में?

मैं: सब अभी बता दूँ?

ये कह के मैं बाहर भाग आया|आज पिताजी और बड़के दादा पास ही के गाँव में एक ठाकुर साहब के यहाँ गए थे| मैं उन्हें ढूंढते हुए वहाँ पहुँच गया|

ठाकुर साहब: अरे आओ बेटा! बैठो...अरे सुनती हो? जरा बेटे के लिए शरबत लाना|

पिताजी: बेटा ये अवधेश जी हैं|

मैं: पांयलागि ठाकुर साहब!

ठाकुर साहब: अरे भािशाब, बोली भाषा से तो आपका लड़काबिलकुल शहरी नहीं लगता? कोई घमंड नहीं.... वाह! अच्छे संस्कार डाले हैं आपने|

बड़के दादा: बहुत आज्ञाकारी है हमारा मानु| पर हाँ एक बात है....अन्याय बर्दाश्त नहीं करता|

ठाकुर साहब: वाह भई वाह! सोने पे सुहागा!!! लो शरबत पियो|

वहाँ सब बातों में व्यस्त थे .... और मैं इधर मारा जा रहा था अपनी बात कहने को| अब अगर में बीच में उन्हें टोकता तो सब को बुरा लगता| और वैसे भी अभी-अभी तारीफ हुई थी मेरी...इतनी जल्दी इज्जत का भाजी-पाला करना ठीक नहीं होता| इसलिए मैं चुप-चाप बैठा रहा और बातें सुनता रहा| कुछ ही देर में वहाँ ठाकुर साहब की बेटी आ गई| उसका नाम सुनीता था...वो आई और सब को प्रणाम किया और फिर ठाकुर साहब की बगल में बैठ गई|

ठाकुर साहब: अरे भाईसाहब ...अगर आपको बुरा ना लगे तो बच्चे जरा आस-पास टहल आएं?

पिताजी: जी इसमें बुरा मैंने वाली क्या बात है| जाओ बेटा

मेरी आखें बड़ी हो गईं...की आखिर ये हो क्या रहा है? कहीं पिताजी यहाँ मेरा रसिहत पक्का तो करने नहीं आये? पर अब अगर अपनी बात मनवानी थी तो जो पिताजी कहेंगे वो करना तो पड़ेगा ही| इसलिए मैं सुनीता के साथ उसके कमरे की ओर चल पड़ा|

सुनीता: आपका नाम क्या है?

मैं: मानु...ओर आपका?

सुनीता: सुनीता

मैं: कौन सी क्लास में पढ़ती हैं आप?

सुनीता: जी ग्यारहवीं| और आप?

मैं: बारहवीं| सब्जेक्ट्स क्या हैं आपके.....मेरा मतलब विषय?

सुनीता: जी मैं समझ गई...कॉमर्स|

मैं: (मन में सोचते हुए: इसे अंग्रेजी आती है) cool

सुनीता: और आपके?

मैं: कॉमर्स... तो कौन सा सब्जेक्ट बोरिंग लगता है आपको? (मैंने उसकी अकाउंट की बुक उठाते हुए कहा|)

सुनीता: जो आपके हाथ में है|

मैं: एकाउंट्स? This is the easiest subject.

सुनीता: That's because you're good in it.

मैं: आपको बस Debit - Credit की चीजें पता होनी चाहिए| इसका बहुत ही आसान तरीका है, All you’ve to do is remember the golden rules of accounting:
1. Debit what Comes in and Credit what goes out!
2. Debit the receiver and credit the giver!
3. Debit all Expenses and Losses and Credit all Incomes and Gains!

सुनीता: Easy for you to say!

अब चूँकि हम थोड़ा खुल चुके थे तो समय था अपने मन में उठ रहे सवाल का जवाब जानने का|

मैं: आपके पिताजी ने मुझे और आपको यहाँ अकेला भेज दिया....कहीं यहाँ शादी की बात तो नहीं चल रही?

सुनीता: पता नहीं.... पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहती|

मैं: Same Here !!!

हम वहीँ खड़े स्कूल और सब्जेक्ट्स पे बात कर रहे थे...तभी वहाँ सुनीता की माँ हमारे "दूध" ले आईं| हम बिलकुल दूर-दूर खड़े थे .... और बातें चल रहीं थी| बातों-बातों में पता चला की वो काफी हद्द तक मेरे टाइप की लड़की है... मेरा मतलब बातें काम करती है और इन बातों के दौरान उसने एक भी बार सेक्स, गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड आदि जैसे टॉपिक नहीं छेड़े| हमारी बातें बस Hobbies तक सीमित थीं| पर दिल में उस लड़की के लिए कोई जज्बात नहीं थे और ना ही मन कुछ कह रहा था| दिखने में लड़की बहुत simple थी...कोई दिखावा नहीं| बातों-बातों में पता चला की उसे गाना गाना (singing) अच्छा लगता है| थोड़ी देर में हम बहार अ गए और वापस अपनी-अपनी जगह बैठ गए| करीब एक घंटे बाद पिताजी ने विदा ली, हालाँकि ठाकुर साहब बहुत जोर दे रहे थे की हम भोजन कर के जाएँ पर पिताजी ने क्षमा माँगते हुए "अगली बार" का वादा कर दिया| ठाकुर साहब बातों से तो मुझे नरम दिखाई दिए पर इसके आगे का मैं उनके बारे में कुछ नहीं जान सका, और वैसे भी मुझे क्या करना था इस पचड़े में पड़ के|
 





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