FUN-MAZA-MASTI
एक भाई ऐसा भी -9
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अब आगे
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काजल के चेहरे की हँसी जाने का नाम ही नही ले रही थी...ऐसा अक्सर होता है, नये-2 जुआरियो के साथ...
अगली गेम के लिए बूट और ब्लाइंड की राशि 500 कर दी गयी...और 3-3 ब्लाइंड चलने के बाद जब एक बार और काजल की तरफ से केशव ने ब्लाइंड चली तो गणेश और बिल्लू का मन हुआ की पत्ते उठा कर देख ले...पर फिर ना जाने क्या सोचकर दोनो एक-2 बाजी और ब्लाइंड की खेल गये...यही तो केशव भी चाहता था..क्योंकि उसे तो पक्का विश्वास था की काजल के पत्ते तो अच्छे होंगे ही...इसलिए उसने इस बार ब्लाइंड की रकम भी दुगनी करते हुए 1000 कर दी.
अब तो सबसे पहले बिल्लू की फटी...क्योंकि पिछली गेम में वो काफ़ी पैसे हार चुका था...और ये ग़लती वो इस बार नही करना चाहता था..
उसने अपने पत्ते उठा लिए...उसके पास 2 का पेयर आया था...पत्ते तो काफ़ी छोटे थे...पर चाल चलने लायक थे...उसका एक मन तो हुआ की पेक कर दे..पर फिर रिस्क लेते हुए उसने 2000 बीच मे फेंक कर चाल चल दी.
गणेश की बारी आई तो उसने झट से अपने पत्ते उठा लिए...उसके पास इक्का और बादशाह आए थे...साथ में था 7 नंबर...कोई मेल ही नही था...चाल चलने का तो मतलब ही नही था. उसने पेक कर दिया..
अब एक चाल बीच मे आ ही चुकी थी...पर फिर भी केशव ने काजल के पत्ते देखे बिना एक और ब्लाइंड चल दी...और हज़ार का नोट बीच मे फेंक दिया..
इतनी डेयरिंग तो आज तक इनमे से किसी ने नही दिखाई थी...ऐसा लग रहा था की केशव को पूरा विश्वास था की वो ही जीतेगा...इतना कॉन्फिडेंस कही उसका ओवर कॉन्फिडेंस ना बन जाए..
अब बिल्लू के सामने चुनोती थी...पर एक तरह से देखा जाए तो उसका पलड़ा ही भारी था अब तक ...केशव ने पत्ते देखे नही थे...और उसके पास पेयर था 2 का...ऐसे में उसके मुक़ाबले के पत्ते होना एक रिस्क ही था केशव के लिए...पर फिर भी वो चाल के उपर ब्लाइंड खेल गया...शायद ये सोचकर की अगर जीत गया तो तगड़ा माल आएगा हाथ...और अगर हार भी गया तो कोई गम नही..क्योंकि पिछली गेम में वो काफ़ी माल जीत ही चुका था..
बिल्लू की नज़रें काजल के उपर थी...तो थोड़ी टेंशन मे आ चुकी थी अपने भाई को ऐसे ब्लाइंड पर ब्लाइंड चलते देखकर..
बिल्लू ने फिर से एक बार रिस्क लेते हुए 2000 की चाल चल दी...अब तो काजल की टेंशन और भी बढ़ गयी....टेंशन के मारे उसके निप्पल उबल कर बाहर की तरफ निकल आए...और उसने जाने अंजाने मे ही अपने दाँये निप्पल को पकड़कर ना जाने क्यो उमेठ दिया...
वैसे ये उसकी हमेशा की आदत थी...जब भी वो उत्तेजित होती थी...यानी रात के समय या फिर फ़िन्गरिंग करते समय...वो अपने खड़े हुए निप्पल्स की खुजली को मिटाने के लिए उन्हे ज़ोर-2 से उमेठ देती थी...ऐसा करने में उसकी खुजली भी मिट जाती थी और उसे अंदर तक एक राहत भी मिलती थी..
पर आज वो भले ही उत्तेजित नही थी..पर उसके निप्पल्स मे हो रही खुजली ठीक वैसी ही थी जैसी रात के समय हुआ करती थी....और इस टेंशन वाली खुजली को भी उसने अपनी उंगलियों के बीच दबोच कर मिटा दिया...
भले ही ये सब करते हुए उसका खुद पर नियंत्रण नही था..पर उसकी इस हरकत को देखकर सामने बैठे दोनो ठरकियों के लौड़े कबूतर की तरह फड़फड़ाने लगे..
अभी कुछ देर पहले ही मूँगफली की प्लेट नीचे रखते हुए जिस अदा के साथ काजल ने उन दोनो को देखा था और स्माइल किया था...अब उसे फिर से खुले आम अपने निप्पल को मसलते देखकर उन्हे पूरा विश्वास हो गया की वो उन्हे लाइन दे रही है...एक तो पहले से वो बिन ब्रा के और ऊपर से ऐसी रंडियों वाली हरकतें...उन्होने मन ही मन ये सोच लिया की एक बार वो भी अपनी तरफ से ट्राइ करके रहेंगे...शायद उनका अंदाज़ा सही हो और काजल जैसा माल उन्हे मिल जाए
केशव इन सब बातो से अंजान अपने गेम को खेलने मे लगा था...उसका एक मन तो हुआ की वो एक और ब्लाइंड चल दे...पर कही कुछ गड़बड़ हो गयी तो सारे पैसे एक ही बार मे जाएँगे..
ये सोचते हुए उसने अपने पत्ते उठा लिए..
और अपने पत्ते देखकर एक पल के लिए तो उसके माथे पर भी परेशानी का पसीना उभर आया..
उसके पास 3 का पेयर आया था.
अब देखा जाए तो वो जीत ही रहा था बिल्लू से...लेकिन उसे तो ये बात पता नही थी ना..
पत्ते भले ही केशव के पास चाल चलने लायक थे..पर वो और चाल चलकर खेल को आगे नही बढ़ाना चाहता था...क्योंकि सामने से बिल्लू 2 चालें चल ही चुका था...यानी उसके पास भी ढंग के पत्ते आए होंगे...केशव को चिंता सताने लगी की कहीं वो ये बाजी हार ना जाए...या फिर हारने से पहले वो पेक कर दे तो कम से कम शो करवाने के 2000 और बच जाएँगे...
वो कशमकश मे पड़ गया..
फिर उसने एक निश्चय किया....काजल को उसने वो पत्ते दिखाए...और धीरे से पूछा.. : "दीदी...आप बोलो...शो माँग लू या पेक कर दू ...''
अब काजल इतनी समझदार तो थी नही जो इस खेल को इतनी अंदर तक समझ पाती...पर उसने जब देखा की उनके पास 3 का पेयर है...और केशव ने यही सिखाया था की पेयर ज़्यादातर गेम्स जीता कर ही जाते हैं...उसने हाँ में सिर हिलाकर शो माँगने को कहा ...और केशव ने उसके बाद बिना कुछ सोचे समझे 2000 बीच मे फेंकते हुए शो माँग लिया...
अब ये गेम अगर वो हार जाते तो अभी तक के सारे जीते हुए पैसे एक ही बार मे चले जाने थे...पर ऐसा होना नही था..क्योंकि बिल्लू ने जैसे ही अपने पत्ते उन्हे दिखाए...केशव ने बड़े ही जोशीले तरीके से 2 के पेयर 3 का पेयर फेंकते हुए सारे पैसे अपनी तरफ करने शुरू कर दिए..
और इतने सारे पैसे एक बार फिर से अपनी तरफ आते देखकर काजल तो झल्ली हो गयी...और उसने खुशी के मारे उछलते हुए अपने भाई को गले से लगा लिया....
उसके दोनो मुम्मे बुरी तरह से बेचारे केशव के चेहरे से रगड़ खाते हुए पिस गये...
और उसकी ये हरकत देखकर बिल्लू और गणेश केशव की किस्मत को फटी हुई आँखो से देख रहे थे...
वो बड़े ही जोशीले तरीके से केशव के चेहरे को दबोच कर चिल्लाती जा रही थी : "हम जीत गये....याहूऊऊऊओ....हम जीत गये....''
केशव ने बड़ी ही मुश्किल से अपने आप को उसके नर्म मुलायम मुम्मे के हमले से छुड़वाया ...वो ऐसा करना तो नही चाहता था पर अपने दोस्तों को ऐसे मुँह फाड़कर उसे और अपनी बहन को हग करता देखकर वो खुद को छुड़वाने पर मजबूर हो गया.
अब केशव लगभग 20-25 हज़ार जीत चुका था...
काजल ने सारे नोटो को सलीके से एक के उपर एक रखकर गड्डी बनानी शुरू कर दी...और एक मोटी सी गड्डी बनाकर उसे अपने कुल्हों के नीचे दबा कर बैठ गयी..
उफफफ्फ़....काश...हम नोट होते...बस यही सोचते रह गये बिल्लू और गणेश.
आज काफ़ी पैसे हार चुके थे वो दोनो...और उन दोनो की जेबें लगभग खाली हो चुकी थी.
बिल्लू : "केशव भाई....आज के लिए यहीं ख़त्म करते हैं....अगर गेम लंबी चली गयी तो ज़्यादा चाल चलने के पैसे नही है आज....कल आएँगे हम...वैसे भी कल छोटी दीवाली है...और परसो दीवाली....अब तो उसके हिसाब से ही आएँगे...बस इन दो दिनों का ही खेल रह गया है अब तो...उसके बाद तो फिर से अपने धंधे पानी की तरफ देखना पड़ेगा...''
गणेश : "हाँ भाई....आज के लिए तो मैं भी चलूँगा...आज काफ़ी माल हार गया...पर कोई गम नही इसका...इसी बहाने काजल तो खुश हुई ना...''
वो जैसे काजल को मक्खन लगाने के लिए ये सब कह रहा था.
काजल भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा उठी...वैसे भी गणेश उसको शुरू से ही आकर्षक लगता था...उसकी डील डोल सबसे अलग थी...और शायद ये सोचकर की उसका लंड भी ऐसा होगा...वो अंदर से सिहर उठी.
जाते-2 बिल्लू एकदम से पलटा और बोला : "केशव...अगर तू कहे तो कल हम राणा को भी लेते आए....उसका फोन आया था आज सुबह और बोल रहा था खेलने के लिए...मैने तो बोल दिया की आजकल हम केशव के घर बैठते है...पर वो अगर कहेगा तभी आने के लिए कहूँगा ..''
केशव कुछ देर के लिए सोच मे पड़ गया..
राणा उनका पुराना साथी था...और एक नंबर का हरामी भी...लड़कियों को चोदने और उनके बारे मे बात करना, बस यही काम था उसका...एक-दो बार केशव ने उसके मुँह से काजल के बारे में सुन लिया था, कहासुनी भी हुई थी दोनों में, तबसे वो उसके साथ दूरी बनाकर रखता था...और ये बात सभी को मालूम थी..
पर जुआ खेलने मे वो एक नंबर का अनाड़ी था..चाल कब और कैसे चलनी है, इसका उसे अंदाज़ा नही था...उसे बस उपर के खेल की जानकारी थी..जैसी जानकारी काजल को थी..ठीक वैसी ही...
पर वो खुलकर पैसे लगाता था अपनी हर गेम में ...और आज जिस तरह से केशव के हाथ जुआ जीतने का मंत्र हाथ लगा था, उसके बाद तो ऐसे ही जुआरियों के साथ जुआ खेलने का मज़ा आता है
उसने हां दी...
उनके जाने के बाद काजल ने पूछा : "ये राणा कौन है...?''
केशव : "वो कल ही देख लेना...इनकी तरह ही एक दोस्त है वो भी...पर ज़्यादा खेलना नही आता उसको..''
काजल : "पर आज मज़ा बहुत आया केशव...इतने पैसे जीत गये हम....ये देखो...''
उसने अपनी गांड के नीचे से नोटो की गड्डी निकाल कर दिखाई...जो अच्छी तरह से दबने के बाद सीधे हो चुके थे..केशव भी उन नोटो की गर्मी से ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था की ये असल मे कौनसी गर्मी है...उसकी बहन की गांड की या हरे-2 नोटों की..
सारे पैसे केशव ने काजल को रखने के लिए दे दिए...वो पलटकर जैसे ही उपर अपने कमरे मे जाने लगी , केशव एकदम से बोला : "मूँगफली...''
और वो शब्द सुनकर काजल को एकदम से वो बात याद आ गयी जो किचन मे उसने केशव से बोली थी...की रात को वो अपनी मूँगफली खिलाएगी उसको..और वो याद करते ही उसकी दोनो मूंगफलियां यानि निप्पल्स टाइट हो गयी...वो गहरी साँसे लेने लगी...और उसका दिल ज़ोर-2 से धड़कने लगा..
अगर इस वक़्त केशव उसको पीछे से पकड़कर उसकी दोनो चुचियाँ ज़ोर से दबा देता तो वो वहीं के वहीं पिघल जाती...लिपट जाती उसके साथ...नोच फेंकती अपने और उसके कपड़े...और खिला देती अपने भाई को अपनी मूँगफलियाँ..
उसने हकलाते हुए कहा : "क....क्या कहा.....तुमने....''
केशव : "ये मूँगफलियाँ तो अंदर रख दो दीदी...बाहर पड़ी हुई सील जाएँगी....इनका करारापन चला जाएगा...''
उसने प्लेट मे रखी मूँगफलियों की तरफ इशारा किया.
काजल : "ओह्ह्ह .......मैं समझी......उम्म्म्मम..... ओक ...रख देती हू....''
और इतना कहकर उसने जल्दी से वो प्लेट उठाई और भागकर किचन मे चली गयी...फिर वो बाहर निकल कर जैसे ही अपने कमरे मे जाने लगी...पीछे से केशव ने धीरे से कहा : "और दीदी....उन मूँगफलियों का क्या...जो मुझे खिलाने वाली थी आज आप ....''
एक बार फिर से सुलग उठी काजल, अपने भाई की ये बात सुनकर...
उसने धीरे से पीछे देखा और बोली : "फ़िक्र मत करो...उनका करारापन नही जाएगा....''
केशव : "जब तक चेक ना कर लू...मुझे विश्वास नही होगा...''
काजल : "बदमाश.....तो तू नही मानेगा....''
काजल तो खुद यही चाह रही थी की आज वो ना ही माने...
केशव ने ना मे सिर हिला दिया...ऐसा मौका भला वो क्यो छोड़ता ...
काजल : "अभी माँ को चेक करके आती हूँ ...सोना मत....ह्म्म्म्म...''
और वो अपनी बड़ी सी गांड मटकाती हुई उपर चली गयी....और केशव खुशी-2 अपने कमरे की तरफ...
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काजल के चेहरे की हँसी जाने का नाम ही नही ले रही थी...ऐसा अक्सर होता है, नये-2 जुआरियो के साथ...
अगली गेम के लिए बूट और ब्लाइंड की राशि 500 कर दी गयी...और 3-3 ब्लाइंड चलने के बाद जब एक बार और काजल की तरफ से केशव ने ब्लाइंड चली तो गणेश और बिल्लू का मन हुआ की पत्ते उठा कर देख ले...पर फिर ना जाने क्या सोचकर दोनो एक-2 बाजी और ब्लाइंड की खेल गये...यही तो केशव भी चाहता था..क्योंकि उसे तो पक्का विश्वास था की काजल के पत्ते तो अच्छे होंगे ही...इसलिए उसने इस बार ब्लाइंड की रकम भी दुगनी करते हुए 1000 कर दी.
अब तो सबसे पहले बिल्लू की फटी...क्योंकि पिछली गेम में वो काफ़ी पैसे हार चुका था...और ये ग़लती वो इस बार नही करना चाहता था..
उसने अपने पत्ते उठा लिए...उसके पास 2 का पेयर आया था...पत्ते तो काफ़ी छोटे थे...पर चाल चलने लायक थे...उसका एक मन तो हुआ की पेक कर दे..पर फिर रिस्क लेते हुए उसने 2000 बीच मे फेंक कर चाल चल दी.
गणेश की बारी आई तो उसने झट से अपने पत्ते उठा लिए...उसके पास इक्का और बादशाह आए थे...साथ में था 7 नंबर...कोई मेल ही नही था...चाल चलने का तो मतलब ही नही था. उसने पेक कर दिया..
अब एक चाल बीच मे आ ही चुकी थी...पर फिर भी केशव ने काजल के पत्ते देखे बिना एक और ब्लाइंड चल दी...और हज़ार का नोट बीच मे फेंक दिया..
इतनी डेयरिंग तो आज तक इनमे से किसी ने नही दिखाई थी...ऐसा लग रहा था की केशव को पूरा विश्वास था की वो ही जीतेगा...इतना कॉन्फिडेंस कही उसका ओवर कॉन्फिडेंस ना बन जाए..
अब बिल्लू के सामने चुनोती थी...पर एक तरह से देखा जाए तो उसका पलड़ा ही भारी था अब तक ...केशव ने पत्ते देखे नही थे...और उसके पास पेयर था 2 का...ऐसे में उसके मुक़ाबले के पत्ते होना एक रिस्क ही था केशव के लिए...पर फिर भी वो चाल के उपर ब्लाइंड खेल गया...शायद ये सोचकर की अगर जीत गया तो तगड़ा माल आएगा हाथ...और अगर हार भी गया तो कोई गम नही..क्योंकि पिछली गेम में वो काफ़ी माल जीत ही चुका था..
बिल्लू की नज़रें काजल के उपर थी...तो थोड़ी टेंशन मे आ चुकी थी अपने भाई को ऐसे ब्लाइंड पर ब्लाइंड चलते देखकर..
बिल्लू ने फिर से एक बार रिस्क लेते हुए 2000 की चाल चल दी...अब तो काजल की टेंशन और भी बढ़ गयी....टेंशन के मारे उसके निप्पल उबल कर बाहर की तरफ निकल आए...और उसने जाने अंजाने मे ही अपने दाँये निप्पल को पकड़कर ना जाने क्यो उमेठ दिया...
वैसे ये उसकी हमेशा की आदत थी...जब भी वो उत्तेजित होती थी...यानी रात के समय या फिर फ़िन्गरिंग करते समय...वो अपने खड़े हुए निप्पल्स की खुजली को मिटाने के लिए उन्हे ज़ोर-2 से उमेठ देती थी...ऐसा करने में उसकी खुजली भी मिट जाती थी और उसे अंदर तक एक राहत भी मिलती थी..
पर आज वो भले ही उत्तेजित नही थी..पर उसके निप्पल्स मे हो रही खुजली ठीक वैसी ही थी जैसी रात के समय हुआ करती थी....और इस टेंशन वाली खुजली को भी उसने अपनी उंगलियों के बीच दबोच कर मिटा दिया...
भले ही ये सब करते हुए उसका खुद पर नियंत्रण नही था..पर उसकी इस हरकत को देखकर सामने बैठे दोनो ठरकियों के लौड़े कबूतर की तरह फड़फड़ाने लगे..
अभी कुछ देर पहले ही मूँगफली की प्लेट नीचे रखते हुए जिस अदा के साथ काजल ने उन दोनो को देखा था और स्माइल किया था...अब उसे फिर से खुले आम अपने निप्पल को मसलते देखकर उन्हे पूरा विश्वास हो गया की वो उन्हे लाइन दे रही है...एक तो पहले से वो बिन ब्रा के और ऊपर से ऐसी रंडियों वाली हरकतें...उन्होने मन ही मन ये सोच लिया की एक बार वो भी अपनी तरफ से ट्राइ करके रहेंगे...शायद उनका अंदाज़ा सही हो और काजल जैसा माल उन्हे मिल जाए
केशव इन सब बातो से अंजान अपने गेम को खेलने मे लगा था...उसका एक मन तो हुआ की वो एक और ब्लाइंड चल दे...पर कही कुछ गड़बड़ हो गयी तो सारे पैसे एक ही बार मे जाएँगे..
ये सोचते हुए उसने अपने पत्ते उठा लिए..
और अपने पत्ते देखकर एक पल के लिए तो उसके माथे पर भी परेशानी का पसीना उभर आया..
उसके पास 3 का पेयर आया था.
अब देखा जाए तो वो जीत ही रहा था बिल्लू से...लेकिन उसे तो ये बात पता नही थी ना..
पत्ते भले ही केशव के पास चाल चलने लायक थे..पर वो और चाल चलकर खेल को आगे नही बढ़ाना चाहता था...क्योंकि सामने से बिल्लू 2 चालें चल ही चुका था...यानी उसके पास भी ढंग के पत्ते आए होंगे...केशव को चिंता सताने लगी की कहीं वो ये बाजी हार ना जाए...या फिर हारने से पहले वो पेक कर दे तो कम से कम शो करवाने के 2000 और बच जाएँगे...
वो कशमकश मे पड़ गया..
फिर उसने एक निश्चय किया....काजल को उसने वो पत्ते दिखाए...और धीरे से पूछा.. : "दीदी...आप बोलो...शो माँग लू या पेक कर दू ...''
अब काजल इतनी समझदार तो थी नही जो इस खेल को इतनी अंदर तक समझ पाती...पर उसने जब देखा की उनके पास 3 का पेयर है...और केशव ने यही सिखाया था की पेयर ज़्यादातर गेम्स जीता कर ही जाते हैं...उसने हाँ में सिर हिलाकर शो माँगने को कहा ...और केशव ने उसके बाद बिना कुछ सोचे समझे 2000 बीच मे फेंकते हुए शो माँग लिया...
अब ये गेम अगर वो हार जाते तो अभी तक के सारे जीते हुए पैसे एक ही बार मे चले जाने थे...पर ऐसा होना नही था..क्योंकि बिल्लू ने जैसे ही अपने पत्ते उन्हे दिखाए...केशव ने बड़े ही जोशीले तरीके से 2 के पेयर 3 का पेयर फेंकते हुए सारे पैसे अपनी तरफ करने शुरू कर दिए..
और इतने सारे पैसे एक बार फिर से अपनी तरफ आते देखकर काजल तो झल्ली हो गयी...और उसने खुशी के मारे उछलते हुए अपने भाई को गले से लगा लिया....
उसके दोनो मुम्मे बुरी तरह से बेचारे केशव के चेहरे से रगड़ खाते हुए पिस गये...
और उसकी ये हरकत देखकर बिल्लू और गणेश केशव की किस्मत को फटी हुई आँखो से देख रहे थे...
वो बड़े ही जोशीले तरीके से केशव के चेहरे को दबोच कर चिल्लाती जा रही थी : "हम जीत गये....याहूऊऊऊओ....हम जीत गये....''
केशव ने बड़ी ही मुश्किल से अपने आप को उसके नर्म मुलायम मुम्मे के हमले से छुड़वाया ...वो ऐसा करना तो नही चाहता था पर अपने दोस्तों को ऐसे मुँह फाड़कर उसे और अपनी बहन को हग करता देखकर वो खुद को छुड़वाने पर मजबूर हो गया.
अब केशव लगभग 20-25 हज़ार जीत चुका था...
काजल ने सारे नोटो को सलीके से एक के उपर एक रखकर गड्डी बनानी शुरू कर दी...और एक मोटी सी गड्डी बनाकर उसे अपने कुल्हों के नीचे दबा कर बैठ गयी..
उफफफ्फ़....काश...हम नोट होते...बस यही सोचते रह गये बिल्लू और गणेश.
आज काफ़ी पैसे हार चुके थे वो दोनो...और उन दोनो की जेबें लगभग खाली हो चुकी थी.
बिल्लू : "केशव भाई....आज के लिए यहीं ख़त्म करते हैं....अगर गेम लंबी चली गयी तो ज़्यादा चाल चलने के पैसे नही है आज....कल आएँगे हम...वैसे भी कल छोटी दीवाली है...और परसो दीवाली....अब तो उसके हिसाब से ही आएँगे...बस इन दो दिनों का ही खेल रह गया है अब तो...उसके बाद तो फिर से अपने धंधे पानी की तरफ देखना पड़ेगा...''
गणेश : "हाँ भाई....आज के लिए तो मैं भी चलूँगा...आज काफ़ी माल हार गया...पर कोई गम नही इसका...इसी बहाने काजल तो खुश हुई ना...''
वो जैसे काजल को मक्खन लगाने के लिए ये सब कह रहा था.
काजल भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा उठी...वैसे भी गणेश उसको शुरू से ही आकर्षक लगता था...उसकी डील डोल सबसे अलग थी...और शायद ये सोचकर की उसका लंड भी ऐसा होगा...वो अंदर से सिहर उठी.
जाते-2 बिल्लू एकदम से पलटा और बोला : "केशव...अगर तू कहे तो कल हम राणा को भी लेते आए....उसका फोन आया था आज सुबह और बोल रहा था खेलने के लिए...मैने तो बोल दिया की आजकल हम केशव के घर बैठते है...पर वो अगर कहेगा तभी आने के लिए कहूँगा ..''
केशव कुछ देर के लिए सोच मे पड़ गया..
राणा उनका पुराना साथी था...और एक नंबर का हरामी भी...लड़कियों को चोदने और उनके बारे मे बात करना, बस यही काम था उसका...एक-दो बार केशव ने उसके मुँह से काजल के बारे में सुन लिया था, कहासुनी भी हुई थी दोनों में, तबसे वो उसके साथ दूरी बनाकर रखता था...और ये बात सभी को मालूम थी..
पर जुआ खेलने मे वो एक नंबर का अनाड़ी था..चाल कब और कैसे चलनी है, इसका उसे अंदाज़ा नही था...उसे बस उपर के खेल की जानकारी थी..जैसी जानकारी काजल को थी..ठीक वैसी ही...
पर वो खुलकर पैसे लगाता था अपनी हर गेम में ...और आज जिस तरह से केशव के हाथ जुआ जीतने का मंत्र हाथ लगा था, उसके बाद तो ऐसे ही जुआरियों के साथ जुआ खेलने का मज़ा आता है
उसने हां दी...
उनके जाने के बाद काजल ने पूछा : "ये राणा कौन है...?''
केशव : "वो कल ही देख लेना...इनकी तरह ही एक दोस्त है वो भी...पर ज़्यादा खेलना नही आता उसको..''
काजल : "पर आज मज़ा बहुत आया केशव...इतने पैसे जीत गये हम....ये देखो...''
उसने अपनी गांड के नीचे से नोटो की गड्डी निकाल कर दिखाई...जो अच्छी तरह से दबने के बाद सीधे हो चुके थे..केशव भी उन नोटो की गर्मी से ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था की ये असल मे कौनसी गर्मी है...उसकी बहन की गांड की या हरे-2 नोटों की..
सारे पैसे केशव ने काजल को रखने के लिए दे दिए...वो पलटकर जैसे ही उपर अपने कमरे मे जाने लगी , केशव एकदम से बोला : "मूँगफली...''
और वो शब्द सुनकर काजल को एकदम से वो बात याद आ गयी जो किचन मे उसने केशव से बोली थी...की रात को वो अपनी मूँगफली खिलाएगी उसको..और वो याद करते ही उसकी दोनो मूंगफलियां यानि निप्पल्स टाइट हो गयी...वो गहरी साँसे लेने लगी...और उसका दिल ज़ोर-2 से धड़कने लगा..
अगर इस वक़्त केशव उसको पीछे से पकड़कर उसकी दोनो चुचियाँ ज़ोर से दबा देता तो वो वहीं के वहीं पिघल जाती...लिपट जाती उसके साथ...नोच फेंकती अपने और उसके कपड़े...और खिला देती अपने भाई को अपनी मूँगफलियाँ..
उसने हकलाते हुए कहा : "क....क्या कहा.....तुमने....''
केशव : "ये मूँगफलियाँ तो अंदर रख दो दीदी...बाहर पड़ी हुई सील जाएँगी....इनका करारापन चला जाएगा...''
उसने प्लेट मे रखी मूँगफलियों की तरफ इशारा किया.
काजल : "ओह्ह्ह .......मैं समझी......उम्म्म्मम..... ओक ...रख देती हू....''
और इतना कहकर उसने जल्दी से वो प्लेट उठाई और भागकर किचन मे चली गयी...फिर वो बाहर निकल कर जैसे ही अपने कमरे मे जाने लगी...पीछे से केशव ने धीरे से कहा : "और दीदी....उन मूँगफलियों का क्या...जो मुझे खिलाने वाली थी आज आप ....''
एक बार फिर से सुलग उठी काजल, अपने भाई की ये बात सुनकर...
उसने धीरे से पीछे देखा और बोली : "फ़िक्र मत करो...उनका करारापन नही जाएगा....''
केशव : "जब तक चेक ना कर लू...मुझे विश्वास नही होगा...''
काजल : "बदमाश.....तो तू नही मानेगा....''
काजल तो खुद यही चाह रही थी की आज वो ना ही माने...
केशव ने ना मे सिर हिला दिया...ऐसा मौका भला वो क्यो छोड़ता ...
काजल : "अभी माँ को चेक करके आती हूँ ...सोना मत....ह्म्म्म्म...''
और वो अपनी बड़ी सी गांड मटकाती हुई उपर चली गयी....और केशव खुशी-2 अपने कमरे की तरफ...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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