Thursday, April 2, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--164

 FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--164


और वो बोले ,

" ये हमारे लिए लो कास्ट ऑप्शन था और उनके लिए हाई कास्ट। लो कास्ट इसलिए की मुझे शुरू से मालूम था की अफगानिस्तान का मोर्चा आज नहीं तो कल फतह होना है। आज तक कोई भी फॉरेन फोर्सेज , अफगानिस्तान में कामयाब नहीं हो पायीं , और रशिया की इकोनॉमिक कंडीशन भी बेइंतहा खराब था। १९८९ में वही हुआ , सारी ट्रेनिंग ,हथियार , जो सी आई ए ने मुहैया कराये थे बस हमने पश्चिम से पूरब की ओर कर दिया। और सब से बढकर , जो ढेर सारे लड़ाके थे जिनके पास अब कोई मकसद नहीं रहा गया था , चेचन्या , सऊदी , सबको हम ने एक नया बैटल ग्राउंड ,नया मकसद दे दिया और १९८९ से कश्मीर में इंसर्जेंसी एक नए मुकाम पे पहुँच गयी। और उनके लिए ये हाई कास्ट आपरेशन था क्यंकि लगातार कश्मीर में उन्हें अपनी फौज का एक बड़ा हिस्सा रखना पद रहा है और इसके इंटरनेशनल कॉन्सीक्वेंशेज है , लोकल लोग और अलीनेट हो रहे हैं , बिना हमारे कुछ किये। "

काफी खत्म करने के बाद उन्होंने सिगार सुलगा ली और बोले इसी लिए हम नहीं चाहते थे की बाजपाई -नवाज टाक्स सक्सेफुल हों और कारगिल करना पड़ा।

लेकिन सबसे बड़ी बात ये हुयी की वहां की इंटरनल कंडीशन का फायदा उठकर हम लोगों ने होम ग्रोन आपरेशन शुरू कर दिया जिससे हमारा कास्ट और रिस्क दोनों काम हो गया। "


मेजर ठंडी सांस ले के बोला , " इस बार तो हम लोगों का यही प्लान था , बनारस ,बड़ौदा और मुम्बई में लेकिन सबा चौपट हो गया। "

" एक्जैक्टली " मेजर ने सिगार की राख झाड़ते हुए कहा। और जोड़ा , " २६/११ के बाद से उनका काउंटर टेरर आपरेशन बहुत मुफीद हो गया था ,लेकिन इतनी पक्की प्लानिंग के बाद तुम्हारा फेल होना ये बताता है की कोई नया फैक्टर है। दूसरी बात , आज तक उन्होंने हमारे घर के अंदर घुस के हमला नहीं किया। और हम 'नान स्टेट एक्टर ' के जुमले की आड़ में छुपते रहते थे। अमेरिका को हमारी जरूरत थी , इसलिए इस फिग लीफ से वो भी खुश था। कारगिल में भी उन्होंने सब जानते हुए भी बार्डर नहीं क्रास किया और अब हम दोनों न्यूक्लियर पावर हैं तो इंटरेंशनल कम्युनिटी उन्हें करने भी नहीं देगी। लेकिन सोचो अगर अबकी जैसे हुआ वैसा आगे होगा तो क्या होगा। "

दोनों के पास कोई जवाब नहीं था।

" ये बेबी स्टेप है , एकदम शुरुआत , और ये अप्रोच अगर सक्सेसफुल रहा तो कल वो बार्डर पार कर के हमारे ट्रेनिंग कैम्पस , रिक्रूटमेंट ग्राउंड सब जगह हमला कर सकते हैं। और अगर एक बार ये हो गया तो उसकी पॉलिटिकल कास्ट बहुत होगी , और फिर सारे आपरेशन का बेस खत्म हो जाएगा। "

" हमारे सारे स्लीपर , नेटवर्क क्रैश हो गए हैं अगले चार पांच साल तक कुछ भी करना कम से कम रेस्ट ऑफ इंडिया में बहुत मुश्किल है। " दुखी मन से मेजर ने बोला।

" और अगर ये ट्रिक कश्मीर में कामयाब हो गयी तो , दूसरे जिस तरह से नेपाल और बंगला देश में उन्होंने घुस के हमारे बेस डिस्ट्राय किये हैं , वहां से भी इन्फिल्ट्रेशन मुश्किल है। " लेफ्टिनेंट जनरल बोले और कहा , " इस लिए इसे जड़ से खत्म करना होगा। "

रात बहुत हो चुकी थी। चारो ओर सिर्फ चुप्पी थी ,डर थी और अँधेरा था।

" एक बार की सक्सेस फ्ल्युक हो सकती है , लेकिन मुझे इस सोच से डर लग रहा है , और अगर ये सोच चली तो हमारी ३०-३५ साल की सारी मेहनत बेकार हो जायेगी। पर अगर हमने उसे खत्म कर दिया तो फिर वो लोग स्टीरियो टाइप रिस्पांस में लग जाएंगे और एकाध साल में हम फिर से खड़े हो जाएंगे। इस लिए उसका जवाब देना होगा। "लेफ्टिनेंट जनरल बोले।


" लेकिन हमारे फील्ड में रिसोर्सेज बहुत लिमिटेड है बस कुछ प्यादे बचे है और वो भी बिलों में घुसे हुए हैं। " दुखी मन से मेजर बोला .
रात धीरे धीरे ढल रही थी , तीनो चुपचाप बैठे थे ,अपनी सोच में डूबे।












फ्लाइट ८१४



और लेफ्टिंनेंट जनरल गुल उस दिन की याद में खो गए , वो आपरेशन भी ऐसे ही गडबड हो रहां था और बीच रास्ते में उन्हें सम्हालना पड़ा था। २४ दिसम्बर १९९९ , आई सी ८१४ की हाईजैकिंग , उसके बारे में मालूम उन्हें पहले से था जैसे बाकी चीजों के बारे में रहता है लेकिन तब तक वो सेमी रिटायर्ड जीवन गुजार रहे थे।

उन्हें ये मालूम था की इस में कौन कौन शामिल है , इब्राहिम अथहर भावलपुर वाला , शाहिद अख्तर , कराची का गुलशन इकबाल , सनी अहमद काजी कराची डिफेंस एरिया से , मिस्त्री ज़हूर इब्राहिम अख़्तर कालोनी कराची वाला और शकीर सुकुर से। एक दो से तो वो मिल चुके थे , बाकी के बारे में वाकिफ थे। जहाज अगवा करना एक बात थी और उसको सम्हालना दूसरी बात। और इनमे से ज्यादातर तो ऐसे थे जिनसे कोई लौंडिया तो भगाई नहीं जा सकती थी। वो तो आई एस आई और मिलेट्री इन्टैलीजैन्स वालों ने काठमांडू में थोड़े बहुत असलहा मुहैया करवा दिए , लेकिन मामला तब अटका जब जहाज लाहौर में उतरा। और फिर हुक्मरानो को गुल साहब की याद आई।

और उन्होंने तुरंत उन्हें १९७१ की याद दिलाई। पाकिस्तान आधी जंग उस हाईजैकिंग की वजह से हार गया था। हाईजैकर को लोगों ने हीरो बना दिया , और उसी का बहाना लेकर हिन्दुस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान की फ्लाइट बैन कर दी , जिससे सारी सप्लाई कोलम्बो हो के जानी पड़ती थी , और खर्चा बढ़ा सप्लाई लाइन कमजोर हुयी। उन लोगो ने बाद में ये स्टोरी प्लांट करने की कोशिश की , कि वो हाईजैकिंग हिन्दुस्तान ने कराया था , जिससे जंग का माहौल बन सके। लेकिन बहुत लोगों ने उस पे यकीन नहीं किया। और सबसे बड़ी बात ये गलती आई एस आई ने की थी की ,उन्होंने पैसेंजर लिस्ट नहीं चेक की थी और उसमें कई फ़रेनर्स थे , जिसके कारण बहुत फजीहत होने वाली थी। सबसे बड़ी बात ये थी की अमेरिका और यूरोप के मुल्क हाईजैकिंग के सख्त खिलाफ थे। खासतौर से जब उनके मुल्की विक्टिम होने वाले हों।

और उन्होंने फिर मुतवक्कील , जो तालिबान काउन्सिल के वजीर थे उनसे कांटैक्ट किया और फिर तो जो उन लोगों ने चाहां वो मिला।

ये बात साफ थी की जहाज को उड़ाना नामुमकिन था क्यंकि उसमे बहुत से गैर मुल्की थे , इसलिए पहला काम उन्होंने किया डिले।

पहले पांच दिन तक सिर्फ बाते और कोई स्पेसिफिक मांग नहीं।

उन्हें उम्मीद थी काम टी आर पी के लालच में हिन्दुस्तानी मीडिया कर देगा।

और वही हुआ। हर चैनेल २४ घंटे ,हाइजैक हुए लोगों की घर वालों की , परेशान लोगो की फोटो , इंटरव्यू दिखाते रहे और जितना प्रेशर हाईजैकर्स नहीं डाल सकते थे उससे ज्यादा प्रेशर मिडिया ने बनाया।

काठमांडू में तो उनके पास ज्यादा असलहा भी नहीं थे , प्लेन को डेटोनेट करने के लिए , ये सब उन्होंने कंधार में मुहैया करवाया। जान बूझ के प्लेन की सफाई नहीं करवाई की मुसाफिरों पर प्रेशर बढे।


टेरर का खेल असल में दिमाग का खेल है। बन्दूक , बम्ब चलाने वाले तो हजारो मिल जाते हैं।

और सबसे तगड़ा दांव था उनका तालिबानी मिलिट्री ने जहाज के चारो ओर टैंक , लांचर खड़े कर दिए जिससे कमांडो ऐक्शन के सारे चांसेज खत्म हो गए।

ये उनकी ही सलाह थी की , कोई कैबिनेट मिनिस्टर आये

और उन्हें पूरा यकीन था आज वो हीरो बन के लौटेगा लेकिन ५-१० साल में यही मिडिया , और पॉलीटीकल अपोनेंट उसे कायर करार देंगे।

चेस में ये जरुरी नहीं की आप क्या चलते है , जरुरी ये है की आप के सामने जो हो उसे आप मजबूर कर दें की वो वही चाल चले जो आप उससे चलवाना चाहते हों।


फिर तो आप घेर के उसे तब मारेंगे , जब उसे जरा भी इमकान न होगा। 

चेस






चेस में ये जरुरी नहीं की आप क्या चलते है , जरुरी ये है की आप के सामने जो हो उसे आप मजबूर कर दें की वो वही चाल चले जो आप उससे चलवाना चाहते हों।


फिर तो आप घेर के उसे तब मारेंगे , जब उसे जरा भी इमकान न होगा।

लेकिन आज बाजी बहुत फँसी थी और उन्हें पक्का यकीन था की इसमें सियासतदानों या फाइल पुश करने वालों का हाथ नहीं , बल्कि कोई ताजा नया दिमाग है।

कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने लगे हुए चेस बोर्ड की ओर देखा , और उसकी ओर चल पड़े ,पीछे पीछे जुनैद और मेजर।

" ये बाजी देख रहे हो न " उन्होंने पूछा।

जुनैद के साथ वो कितनी चेस की प्राब्लम सॉल्व करते थे। एक से एक मुश्किल ,

जुनेद की निगाहें वहीँ टिकी थी , बिना निगाह उठाये वो बोला , बड़ी फँसी बाजी है , अगली चाल ब्लैक की है न।

" हूँ " गुल साहेब बोले।


और फिर मेजर को समझाना शुरू किया , " ये देख रहे हो किंग , सिर्फ एक खाना चलता है , लेकिन लड़ाई इसी के लिए होती है , शह इसी की होती है और मात भी। क्वीन कितनी भी पावरफुल क्यों न हो , लेकिंन जंग का फैसला किंग की ही हार जीत से होता है। बांग्लादेश की जंग में दुशमन ने यही चालाकी बरती , जैसोर , चिटगॉन्ग , कीत्ति जगह की लड़ाई छोड़ के , वो सीधे ढाका पर चढ़ बैठे और ८३ हजार तकरीबन फौजों के रहते हुए , हमने सरेंडर किया। हमारी तवारीख का एक स्याह दिन। लेकिन उन्होंने सिर्फ किंग पर ही हमला किया और हमें भी वही करना होगा। "

और फिर उन्होंने ध्यान जुनैद की और दिया , " चाल हमारी या ब्लैक की है। "

" बड़ी फँसी बाजी है , कुछ भी करिये अगली चाल में मात है। " वो बोला।

" मान लो हम चार पांच चाल पीछे जा के अपनी गलती दुरुष्त कर लें। " गुल साहेब जुनैद से पूछा।

"उन्ह " उसने जोर से सर हिलाया और बोला , " मैं पीछे ७ चाल तक देख चुका हूँ कुछ नहीं हो सकता ये बाजी हाथ से गयी। "


एक बार फिर तीनो चुप थे।

बाहर रात की कालिख थोड़ी कम हो गयी थी ,.

अचानक लेफ्टिनेंट जनरल गुल मुस्कराये और सजी बाजी दूसरी ओर जा के खड़े होगये और बोले

" जो तुम कह रहे हो और मैं सोच रहा हूँ , वो एकदम सही है अगर हम गेम को गेम के रूल्स से खेलें। लेकिन हम गेम के रूल्स मानते ही कब हैं। मान लो , जीत की ख़ुशी में पल भर के लिए उसका ध्यान हट जाय और फिर ,… हम कोई ऐसा जाबिर मुहरा जो अभी गेम में न हो वो स्ट्रैटजिकली रख दें तो , "


और उन्होंने अपने हाथ में छुपा एक मुहरा बोर्ड पर रख दिया ,

" अब तो गेम का नक्शा ही बदल गया ,हमारी फतह अब यकीनन होगी। " खुश होके जुनेद बोला।




बाहर अब अँधेरा काफी कम हो गया था ,लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने दोनों से जाने को कहा।

और खुद बाजी देखते हुए सोचते रहे ,कौन हो सकता है ये मोहरा।












कुछ देर बैठ कर ढलती हुयी रात वो बाहर देखते रहे , और उन्होंने फैसला कर लिया।


वो अपनी स्टडी में थे।

तीन ऐड उन्होंने पोस्ट किये , अलग अलग आईपी एड्ड्रेस से ,

एक लोकान्तो पर " मेल लुकिंग फॉर मेल "

एक ई बे पर एक पुरानी किताब के सेल का

और एक क्रेग लिस्ट पर पर्सनल कालम में


अगर चार घंटे के बीच तीनो का जवाब आ जाता है तो इसका मतलब कांटेक्ट हो गया।

जवाब दो घंटे के अंदर ही आ गया। हाँ में।

अपनी सेफ खोल कर उन्होंने एक कोड बुक निकाली और केमैन आइलैंड में एक बैैंक को नेट पर पैसे ट्रांसफर कर दिए। अबकी सारे पैसे अड्वान्स देने थे।


और ये अकाउंट भी सेमी सरकारी था।


अगला कदम था ,उसे फोटो पहुंचाने का। और डिटेल देने का।


वो कदम सबसे आसान था , एक मेट्रिमोनियल साइट उन्होंने खोली , दूल्हा दुलहन और उस पर उस लड़के की फोटो उन्होंने पोस्ट कर दी।

और साथ में डिटेल भी।

आधे घंटे के पहले ही प्रपोजल आ गया।

लड़की की जगह कैटरिना कैफ का फोटो था।

इसका मतलब डील पक्की।

उसे डिटेल भी मिल गया था , पैसा भी।

उन्होंने ट्रिगर दबा दिया था , बस अब गोली लगने की देर थी। और उस पिस्तौल की गोली आज तक चुकी नहीं थी।

सुबह हो गयी थी , ,
अब वह निश्चिन्त थे।
फिर सोने चले गए।

उस समय वहां साढ़े सात बज रहे थे।


..............




और यहाँ ८ बज रहे थे , हलवाई कीदुकान पे अभी अभी बड़ी कड़ाही में समोसे तलने के लिए डाले गए थे और दूसरे चूल्हे पे गरम गरम लाल लाल जलेबी निकाली जा रही थी।

दूकान पर भीड़ थी लेकिन ज्यादा नहीं।
दुलहा दुल्हन के कालम में जिसकी फोटो छपी थी , वो लड़का , वही अपने आनंद बाबू इन सबसे अनजान समोसे की दूकान पे खड़े थे।
आनंद बाबू की एक निगाह , गरम छनते समोसों पर लगी थी और दूसरी सड़क पर थी। 
 
 
और शीला भाभी ने 'समोसे वाली' को अपने आगे दबोच कर खड़ी कर के रखा था
.
उस को देख के मेरा और तन्ना गया ...

दी के घर के बगल वाले घर में रहती थी ...


छोटी थी ..लेकिन ...गुड्डी की मझली बहन के बराबर या दो चार महीने छोटी ही रही होगी ...टिकोरे उस के लेकिन गुड्डी की बह्नसे थोड़े बड़े ही थे ...

बगल में एक समोसे वाले की दूकान थी वहां वो भी आती थी शाम को समोसे लेने ...और उस की अदा से उस समय भीड़ थोड़ी बढ़ जाती थी ...लोग बोलते भी ..ये समोसे लेने आती है या देने ...

एक दो बहादुर पीछे से हिप सहला भी देते या पिंच भी कर देते तो वो बुरा नहीं मानती ..

.वो हलवाई भी उसे एक समोसा एक्स्ट्रा ही दे देता एक दिन बारिश थी ...वो ''समोसे वाली"' एक दम भीग गयी थी दूकान भी खाली थी पहुंची तो उसके 'समोसे ' झलक रहे थे ...

हलवाई ने हिम्मत कर के बोल दिया हे सुन एक दिन तो तू अपने समोसे मुझे दे दे रोज ले जाती है मेरे

...उसने न ना बोली ना हाँ ...लेकिन और उसके पास सरक के खड़ी हो गयी और हलवाई ने हिम्मत कर के देते हुए ना सिर्फ छू दिया ...बल्कि उसके उभरते उभार कस के मींज भी दिया और निपल हलके से पिंच कर दिया .

.वो कुछ नहीं बोली लेकिन चलते चलते उस की ओर मुड़ के मुस्करा के बोली ...हे मेरे समोसे अच्छे है की तेरे ...

हलवाई हंस के बोला तेरे ..तब से उस को कालोनी वाले समोसे वाली ही कहते ...

और शीला भाभी के हाथ उस की फ्राक के अन्दर थे .समोसे पे .....फ्राक भी रंग की रगड़ाई में आधी फट गयी थी ..
...................





गुड्डी ने उस 'समोसेवाली ' का हाथ पकड़ के जबरन मेरे खूंटे पे पकडवा दिया और बोला ..चल अब ले मजा खुल के ...

उसने थोड़ा मुंह बनाया , थोड़ी ना नुकुर की , लेकिन गुड्डी के आगे किसी की चली है , जो उस की चलती

...और मन तो उस का भी कर रहा था ....फिर तो दोनों हाथों से पकड के उस कच्ची कली ने जिसके " छोटे छोटे समोसे ' के सब दीवाने थे , हलके हलके आगे पीछे करना शुरू कर दिया ....

लंड एकदम टन्न ...

लड़कियों ने भाभियों ने जोर जोर से शोर मचाना शुरू किया ...

वो सब भी ठंडाई , वोडका , रम और जिन के नशे में टुन्न थीं ...

खोलो खोलो ...
और उस छुटकी ने सबको ललचाते , दिखाते ...आखिर एक झटके में खोल ...दिया

सुपाड़ा बाहर ...

मस्त गुस्सैल पहाड़ी आलू ऐसा मोटा , लाल ...

एक बार फिर सन्नाटा छा गया ...सबकी आँखे वहीँ गड़ी ...

और फिर ...हो हो हो हो हो ....जोर का शोर ...

और गुड्डी ने 'समोसे वाली ' को पकड के घोषणा कर दी की अब ये इसे पूरा मुंह में ले के दिखायेगी ...

वो लाख ना नुकुर करती रही ...पर गुड्डी कहाँ ...और साथ साथ में आंगन में बैठी भाभियों का शोर गूंजा ....हाँ हाँ हाँ हाँ

और गुड्डी ने 'समोसे वाली ' को पकड के घोषणा कर दी की अब ये इसे पूरा मुंह में ले के दिखायेगी ...

वो लाख ना नुकुर करती रही ...पर गुड्डी कहाँ ...और साथ साथ में आंगन में बैठी भाभियों का शोर गूंजा ....हाँ हाँ हाँ हाँ

और गुड्डी का साथ देने रीतू भाभी मैदान में आगई ...

उस को समझा के बोली ..ज्यादा छिनारपन मत कर ..अभी तो ये खाली मुंह की बात कर रही है ...मैं होती तो नीचे वाले मुंह में घुसवाती ...ले ले मजा आयेगा ..

वो रीतु भाभी की ओर मुड के बोली ...नहीं भाभी नहीं जाएगा ...बहोटी मोटा है ...

गुड्डी ने हड़काया ...तो फिर मुट्ठ मार के खड़ा क्यों किया ..लेना तो पड़ेगा ही ....

रीतू भाभी ने समझाया ...

अरे यार लालीपॉप चूसती है की नहीं ...कार्नेटो का कोन लेती है की नहीं ..बस अच्छा चल थोडा सा ले ..बहुत थोडा सा ले ले ..फिर मैं गुड्डी को मना लुंगी जल्दी कर ....

'समोसे वाली ' बिचारी ...मन तो उसका भी कर रहा था ..उसने थोडा सा मुंह खोला ...और गुड्डी ने मेरा लंड सीधे उसके होंठों के बीच ...

फिर तो वो लाख गों गों करती रही ..सर हिलाती रही लेकिन रीतू भाभी के चंगुल में आ गई थी ...

वो जबरन उसका सर पकड़ पीछे से ठेल रही थीं ...और इधर गुड्डी भी जबरन मेरा लंड के बेस पे हाथ से पकड के उसे पूरी ताकत से पुश कर रही थी ...

करीब चार इंच ..आधा घुस गया तो दोनों रुकी और रीतू भाभी ने उसे ..'समोसे वाली ' को छेड़ा ..आखिर उनकी ननद लगती थी ....

क्यों कैसा लग रहा है भैया का लंड चूसने में ..आज होली में तूने अच्छी शुरुआत कर दी है अब चल ...अगली होली तक तेरे मुहल्ले के जीतते भैया लगते हैं ...सबके चुसवा दूंगी ....

और फिर मोबाइल के कैमरे सीधे क्लोज अप ...

और फिर रीतू भाभी मेरे पीछे ..साथ में साऱी भाभियाँ ...भी ..बहनचोद बहन चोद ...

जब थोड़ी देर वो चूस चुकी तो रीतू भाभी ने फिर उस का सर पीछे से पुश किया और अब तो मैं भी मेरे हाथ उसके 'समोसे' पे ..गुड्डी ने कब का उसका 'टाप उतार फेंका था ...

मैंने जोश में थोडा और पेला ...

करीब छ इंच तक उसने घोंट लिया और ..पांच छ मिनट तक रीतू भाभी ने उस कच्ची कली को चुसवाया ...

..................




हंस के उस कच्ची कली , 'समोसे वाली ' ने जवाब दिया ..

" अरे भाभी ...पहले आप ले लो मेरे भैया का मोटा सख्त ...फिर देखा जाएगा ..."
वो भी सोच रही थी ..बिना झड़े ..मैं थोड़ी रीतू भाभी ऐसे मस्त माल को छोड़ने वाला हूँ ..

सोचना उसका बिलकुल सही था ...ऐसी मस्त डी साइज चून्चिया रोज रोज थोड़े ही चोदने को मिलती हैं ...मैंने चूंची चोदन की रफ्तार बढ़ा दी

लेकिन तभी वो हुआ जिसे ना मैं सोच सकता था न वो ...भाभियों में सबसे कम उम्र की ..सबसे छोटी ...जो अभी बल्कि भाभी थी भी नहीं ...लेकिन जिसे सारी लड़कियां , छुटकी भाभी , नयकी भाभी कह के छेड़ रही थीं ..उससे नहीं रहा गया ...वो मैदान में आ गयी ...और उसने पीछे से ...

जी आपने सही गेस किया ...गुड्डी से नहीं रहा गया ...'समोसे वाली ' की ये बाते सुन के ...

और वो पीछे से ..उसने अंकवार में ऐसे दबोचा की वो 'समोसे वाली ...'...हिल भी नही सकती थी ...गुड्डी ने फिर एक झटके में उसका बचा खुचा टाप फाड़ के मेरे ऊपर फ़ेंक दिया ...

ब्रा तो पहले राउंड में ही भाभियों ने सारी ननदों का चीथ के अलग कर दिया था ...

उसके छोटे छोटे निपल मरोड़ के गुड्डी उसके गाल पे जोर से बाईट कर के बोली ..

' अरे छिनरो , बहुत तेरी चूत में मिर्च लग रही है ...ना तो अभी सारी आग ठंडी करती हूँ "

..............


गुड्डी ने मेरे तन्नाये बेताब , बावरे औजार को सीधे , उस के सेन्टर पे लगा दिया ...

जैसे शादी में नाउन , दुल्हे दुल्हन की गान्ठ जोडती है
बिलकुल उसी तरह ...

उधर रीतू भाभी ने ...अपनी कुंवारी किशोर ननद के दोनो गुलाबी सन्तरे के फांक की तरह रसीले , भगोष्ठ ...पूरी ताकत से फैला रखे थे ...और गुड्डी ने मेरा तन्नाया मोटा सुपाडा ...सीधे सेन्टर पे रख के ...घुसेड दिया ...

मेरी हिम्मत नही थी की मैं नही पुश करता ...क्योंकी मेरे पीछे मंजू खडी थी ...और मुझसे ज्यादा जोर से उसने पुश किया ...और उधर से यही काम रीतू भाभी ने ...

आधे से ज्यादा सुपाडा चला गया ...

उसने चीख रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन चीख निकल ही गयी ...
लेकिन मै रुकने वाला नही

...मैने पूरी ताकत से धक्का मारा ...और फिर दुबारा ...

मेरी हिम्मत भी नही थी , धक्को मे बेइमानी करने की ...पीछे से मंजू ने पकड रखा था और वो कान मे बोल रही थी ...

लाला , तनिको धीमे किहा ना ...ता इ मुट्ठी पूरी तोहरी गांड में ..दो उंगली तो उसने ठेल ही दी थी ...
और उससे भी बढ्कर ...गुड्डी ...उस की आंखे ...सात जनम तक तो मैं उन के हुकुम का गुलाम बन ही चुका था ..

गुड्डी गुनगुना रही थी ...

छोटी छोटी चुन्चियां , बुर बिना बाल की ...
चोदो मेरे राजा मेरी ननदी है कमाल कि ..

जो काम मन्जु मेरे साथ कर रही थीं वही रीतू भाभी उस के साथ कर रही थी ...और अभी कुछ देर पहले जो रीतू भाभी ने उसे ...कराया था ...उसके बाद तो उसकी हिम्मत भी नही पड सकती थी ( बाद मे मैने वो सारी फ़िल्म गुड्डी के मोबाइल
पे मैने देखी और रीतू भाभी उस के कान मे ये भी बोल रही थी कि शाम तक वो फिल्म यू ट्युब पे चल जायेगी )...

और साथ में रीतू भाभी ने भी उस के पिछवाडे ...एक उंगली ठेल रखी थी ..

अब सुपाडा अन्दर घुस चुका था ...इसलिये ...रीतू भाभी , और गुड्डी दोनो को मालुम था कि अब ये बान्की हिरनिया लाख चूतड पटके ...लन्ड बिना चोदे , मलाई अन्दर झाडे नही निकलने वाला था.

और मैने उसे अपने बाहों में भर लिया ...मेरे होंठ अब उसके होन्ठो पे थे , और हाथ उन समोसों पे जिन्होने सारे शहर को बेताब कर रखा था ...

छोटे जरूर थे ...लेकिन एक्दम रस गुल्ले

मैं कभी सहलाता , कभी दबाता तो कभी अपने होंठ वहां लगाता ...लेकिन उसने एक बात ये बोली कि ...बस मेरी चुदायी की रफ्तार दस गुनी हो गयी ...

मेरे कानो पे अपने रसीले होंठ लगा के वो बोली...तुम क्या सोचते हो देख के सिर्फ तुम्हारा ही मन करता था ...मेरे अन्दर तुझ से भी ज्यादा आग लगी थी ..."

अब मैं समझा ...ये बात कितनी सच है की लड़कियों की एड़ी में आँख होती है ...

और उन की झांटे बाद में आती हैं , चूत में खुजली पहले मचने लगती है ...

और उस आग का इलाज खडे खडे तो ठीक से हो नही सकता था ....तो मैने उसे वहीं रंगो से भरे आंगन में लिटा दिया ...लम्बी टांगे मेरे कन्धे पे ...

लेकिन गुड्डी के बिना कोयी काम हो सकता है क्या ...तो

गुड्डी ने आंगन मे फैले , ननदों के टाप, चिथडे हुये ब्रा और पैन्टी ...सब को इकट्ठा कर उस के चूतड के नीचे रख दिया ...अब चुदायी का इन्त्जाम पूरा था ...

और मैने जो उन ’समोसो’ को पकड के , हुमच के धक्का मारा ...आधे से ज्यादा लन्ड अन्दर था ...और साथ साथ ही उस कि सील भी टूट गयी ...


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