Thursday, April 2, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--166

 FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--166

 फुल टाइम छुट्टी








और मैं क्या करता , फिर कंप्यूटर से लस लिया।

ढेर सारे सिक्योर कोड जो मेरे दिमाग में रच बस गए थे ,अपने आप उँगलियाँ वैसे ही चलती रहीं की बोर्ड पर , और एक साइट खुल गयी।

ये एक सिक्योर विंडो थी दुनिया के सबसे मशहूर ,ब्लैक हैट #@*% , मेरे मित्र की जिसके बिना ये आपरेशन शुरू ही नहीं हो सकता था।

लेकिन खुला क्या , पेरिसियन कैट , एक पेड़ पॉर्न साइट का पेज।


और अचानक मेरी चमकी ये मैं क्या कर रहा था।

ये बड़ी मानी हुयी प्रैक्टिस थी और इस बार भी ये तय था की जो मेरे हैकर मित्र , या जिन्होंने कोड ब्रेकिंग में मदद की या सरवायलैंस में , सब आपरेशन खत्म होने के १२ घंटे के अंदर अपनी साइट बंद कर उस जगह से हजारों किलोमीटर दूर एक नए नाम , नए पासपोर्ट और पर्सनालिटी के साथ होंगे जिसकी लम्बी हिस्ट्री होगी।


और कम से कम दस बारह दिन , वो आपरेशन, हैकिंग , कोड ब्रेकिंग से दूर नार्मल लाइफ बितायेंगे। और उस दौरान न वो न मैं , उनसे कोई संबंध रख सकेंगे। बल्कि उनके किसी फ्रेंड को जो भले ही आपरेशन से न जुड़ा हो , उन्हें भी वो कहाँ गए है उसका पता नहीं होगा।

इसका एक कारण था।

हम मान के चल रहे थे की ऐसा नहीं है की सामने वाले के सामने हमारी काट नहीं है। बस हमें सरप्राइज का फायदा था और वो हमने भरपूर उठाया। लेकिन एक बार आपरेशन खत्म होने पर अपोजिट फोर्सेज रीग्रुप होंगी , वो कोशिश करेंगी जानने की, कि उनकी पतंग किसने काट दी।


वो भी नान गवर्नमेंट और गवर्नमेन्ट दोनों फोर्सेज होंगी और उनके भी इंटरनेशनल कांटेक्ट थे। इसलिए ट्रेल को तुरंत ठंडा करना जरुरी था। ये हमने माना था की वो पांच -छ घंटे तो शाक में रहेंगे और उसके बाद पता करेंगे जिसमें भी ८-१० घंटे लगेंगे। इसलिए १२ घंटे के अंदर ही सब कुछ बंद कर देना था।

मेरा वो ब्लैक हैट फ्रेंड जिसके कनेक्शन पर पेरीशियन कैट की साइट खुलती थी , वो कल सुबह ही पेरिस के लिए चला गया था और उसके बाद आल्प्स पर स्कीइंग के लिए। वहां उससे कांटेक्ट करना असंभव था , क्योंकि उन पहाड़ों के बीच कोई भी नेटवर्क आपरेट नहीं करता था। जिस नाम से वो वहां गया था , उसी नाम से पिछले चार सालों से वो जा रहा था , एक ही होटल में रुकता , इसलिए उसकी हिस्ट्री भी सिक्योर थी।

एक और हैकर आज सुबह अमेजन के जंगलों में पहुँच गया होगा। वहां से भी किसी प्रकार का सम्बन्ध बनाना मुश्किल था।

एक कैरेबियन क्रूज पर जा रहा था।

यहाँ तक जिस क्लाउड सरवर का इस्तेमाल हमने डाटा रखने के लिए किया था , उसमें से सारा डाटा न सिर्फ हटा दिया गया था , बल्कि वह सरवर भी सील कर दिया गया था।

पिछले दिनों की बात मुझे याद आ रही थी , की चुम्मन का जो फोन मैंने उठाया था , और जिससे सारे तार एक के बाद एक जुड़े , उसकी सारी ट्रेसिंग इन्ही दोस्तों ने की थी। फिर सेटलाइट काल की ट्रेसिंग , नाव में जो फोन रीत ने ढूंढा उसकी ट्रेसिंग और सबसे बढ़कर परसों रात , जिस तरह उन्होंने टेरर के कमांड कंट्रोल सेंटर को न्यूट्रलाइज किया , ये सब इन्ही का कमाल था।

लेकिन ये प्रिकॉशन भी जरुरी थी और अगले हफ्ते दस दिन तक उनसे कोई सम्पर्क नहीं हो सकता था।


वही क्यों , मुम्बई में एन पी ( नो प्राब्लम सर ) और ए टी एस के चीफ से , जिनसे मैं लगातार मुम्बई पर हमले के दौरान टच में था , उनसे भी कल से मैंने बात नहीं की थी और बात हो भी नहीं सकती थी क्योंकि उन्होंने अपने फोन से मेरे कनेक्शन डिलीट कर दिए थे।

रा और आईबी ने पहले ही मुझसे पल्ला झाड़ रखा था।

जिस तार बनारस में रीत ने कहर बरसाया , देश के दुश्मनो पर , उसी दिन मुझे मेसेज दे दिया गया था की मेरी सारी प्रोटेक्शन , कवर सब कुछ हटा लिया गया है।

और ये सही भी था , वो ब्राउन सूट वाला मेरे पीछे पड़ा था। उसने रंजी और गुड्डी को बग किया , यहाँ तक की एक प्रोफेशनल पिक पॉकेट से मेरा मोबाइल चुरवाया। ये तो किस्मत थी की उस की सब चालें उलटी पड़ीं , इसलिए कोई भी सिक्योरटी , मेरा कवर ब्लो करने के लिए काफी थी।

और वैसे भी मेरा काम किले में घुसने तक का था , आगे के लिए रॉ और आई बी काफी थे।


और इस लिए अब न तो कोई मुझसे आपरेशन के बारे में बात करने वाला था और न मैं किसी से , कम से कम अगले दस पंद्रह दिनों तक।

क्योंकि इन दिनों में वो निश्चित रूप से पता करते और उन से बचने का एक ही तरीका था ,

फुल टाइम मस्ती , पहले यहाँ फिर रंगपंचमी तक बनारस में और किसी भी सिक्योरिटी एजेंसी से कोई कांटैक्ट नहीं ,

न ही कोई बात।

क्योंकि सिक्योर से सिक्योर फोन भले ही एन्क्रिप्टेड हो लेकिन बात करने के लिए उन्ही टावर का सहारा लेते हैं , सेटलाइट का इस्तेमाल करते हैं।

फिर सिम मैन्युफैक्चर करने वाली कम्पनी से अगर कोड का पता चल जाए , तो सारी बाते खुल सकती है ४०९६ बिट कोड जो मैं इस्तेमाल करता था , मुश्किल है असंभव नही।


मुझे भी अपने सिक्योर फोन के सिम को डिस्ट्राय करना था , जो रंजी और गुड्डी के चक्कर में मैं भूल गया था।


मैंने पहले उसे डिस्ट्राय किया , फिर सिक्योर मोबाईल को भी।

उसके बाद दो बार मैंने कंप्यूटर को क्लीन किया।

अब कोई साइबर कनेक्शन से मुझे ट्रेस नहीं कर सकता था।

और वैसे भी उस आपरेशन के बारे में बात करना दूर मुझे सोचना भी नहीं था।

कम से कम एक हफते।


तब तक गुड्डी और रंजी दोनों एक साथ कमरे में दाखिल हुईं ,

साढ़े ग्यारह बज गए थे। 


फागुन की दावत ...बनारस में भाग 1

"मेरे देवर कम नंदोई,
सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो,

तुमने बोला था की इस बार होली पे जरुर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ. देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है वही तुम्हारा पुराना माल...न सतरह से ज्यादा न सोला से कम ...क्या उभार हो रहे हैं उसके ...मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया इंटर में जा रही तो अब तो इंटर कोर्स करवाना ही होगा तो फिस्स से हंस के बोली...अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती अपने तो सैयां , देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और ...तो उसकी बात काट के मैं बोली अच्छा चल आरहा है होली पे एक .और कौन तेरा पुराना यार , लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा एकदम गाढा बहोत दिन तक असर रहता है. तो वो हँस के बोली अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आगया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन ...वो बाद के असर का खतरा नहीं रहता. और हां तुम मेरे लिए होली की साडी के साथ चड्ढी बनयान तो लेही आओगे उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना. मेरी साइज़ तो तुम्हे याद ही होगी मेरी तुम्हारी तो एक ही है...३४ सी और मालुम तो तुम्हे उसकी भी होगी...लेकिन चल मैं बता देती हूँ ...३० बी. हां होली के बाद जरूर ३२ हो जायेगी."

मैं समझ गया भाभी चिट्ठी मैं किसका जीकर कर रही थीं ...मेरी कजिन ... हाईस्कूल का इम्तहान दिया था उसने. जबसे भाभी की शादी हुयी थी तभी से उसका नाम लेके छेडती थीं आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी . शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम ले के और भाभी तो बाद में भी प्योर नान वेज गालियां पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में वो भी ...कम चुलबुली नहीं थी . कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलतीं, हे हो गयी है ना लेने लायक ...कब तक तडपाओगे बिचारी को कर दो एक दिन..आखिर तुम भी ६१-६२ करते हो और वो भी कैंडल करके...आखिर घर का माल घर में ...

पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियाँ चल रही थीं. छेड छाड़ थी मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी.

" माना तुम बहोत बचपन से मरवाते डलवाते हो और जिसे लेने में चार बच्चों की मां को पसीना आता है वो तुम हंस हंस के घोंट लेते हो...लेकिन अबकी होली में मैं ऐसा डालूंगी ना की तुम्हारी भी फट जायेगी, इसलिए चिट्ठी के साथ १० रुपये का नोट भी रख रही हूं, एक शीशी वैसलीन की खरीद लेना और अपने पिछवाडे जरूर लगाना... सुबह शाम दोनों टाइम वरना कहोगे की भाभी ने वार्निंग नहीं दी..."

लेकिन मेरा मन मयूर आखिरी लाइनें पढ़ कर नाच उठा,

" अच्छा सुनो, एक काम करना. आओगे तो तुम बनारस के ही रास्ते...रुक कर भाभी के यहाँ चले जाना. गुड्डी का हाईस्कूल का बोर्ड का इम्तहान ख़तम हो गया है. वो होली में आने को कह रही थी, उसे भी अपने साथ ले आना. जब तुम लौटोगे तो तुम्हारे साथ लौट जायेगी."

चिठ्ठी के साथ में १० रुपये का नोट तो था ही एक पुडिया में सिंदूर भी था और साथ में ये हिदायत भी की मैं रात में मांग में लगा लूं और बाकी का सिंगार वो होली में घर पहंचने पे करेंगी.

[b]आखिरी दो लाइनें मैंने १० बार पढ़ीं और सोच सोच के मेरा तम्बू तन गया. ..




साढ़े ग्यारह बज गए थे।

" नहाना नहीं है क्या ,ये क्या हाल बना रखा है " एक साथ डबल डांट।
…..

मैंने लाख कहा , पहले तुम दोनों नहा लो , लेकिन सुनता है कोई मेरी।

ऊपर से रंजी अलग , 'पैरेलल प्रोसेसीसँग में टाइम बचेगा , और फिर तुम अलग नहाओगे या बाथरूम में न जाने किसका नाम लेके या उस समोसे वाली को याद करके 'कुछ और ' करो तब। "

लेकिन सबसे पहले दुर्गत हुयी रंजी की ही , वो और गुड्डी बात टॉवेल में थीं और मैं अपने शॉर्ट्स में.

" हे शैम्पू करवा ले अपने भैया से , बाल एकदम रेशमी हो जाएंगे। " गुड्डी ने उसे चढ़ाया , और जब तक वो कुछ समझती , मैंने शैम्पू करना शुरू कर दिया था।

और रंजी के अनदेखे , मैंने और गुड्डी ने आँख मार के एक दूसरे से , प्लान तय कर लिया था।

और थोड़ी देर में शैम्पू का झाग रंजी की आँख में आने लगा तो वो जोर से चिल्लाई , आँख में लग रहा है।

" अरे तो मेरी नानी आँख बंद कर ले न , क्या शैम्पू लगाने वाले की सूरत देखना जरूरी है। " गुड्डी उससे भी जोर से चिल्लाई।

रंजी ने आँखे बंद कर ली और मैं दुसरे हाथ से साबुन उसके चेहरे पे लगाना शुरू कर दिया , बिचारी अब चाह के आँख नहीं खोल सकती थी।

अगला कदम बहुत सिम्पल था।



गुड्डी ने उसके बाथ टॉवेल की नाट खोल दी और टॉवेल बाथरूम के बाहर।

वो लाख चिल्लाई लेकिन अब बिचारी कर भी क्या सकती थी।

और उसने जब गुड्डी की टॉवेल खींचने की कोशिश की तो गुड्डी उसके पीछे।

और शैंपू और साबुन के चक्कर में रंजी बिचारी आँख कैसे खोलती।

ऊपर से गुड्डी के डायलॉग ,' अरे रात भर तो सब शरम तेरी गांड में घुस गयी थी , अब ,… अरे नहाना तुझे है या तेरी टॉवेल को , बेकार में गीली होती। "
" तुम भी न , एकदम लुल्ल हो , अरे यार गांड में जो चीज कल घुसी थी वो शर्म नहीं कुछ और ही थी ,अब तक परंपरा रही है। " रंजी भी कौन कम थी , जवाब देने में।

लेकिन मैं इन बेकार की बातों के चक्कर में नहीं पड़ने वाला था , कौन मुझे दो दो किशोरियों के बीच , इस तरह स्नान सुख मिलता। मैंने दोनों हाथों में साबुन लगा के रंजी के गुदाज गोरे उभारों पर साबुन लगाने के काम में लग गया।

साबुन लगाना तो एक बहाना था। थोड़े ही देर में , मेरे दोनों हाथ उसके किशोर उरोजों को कस कस के मसल रगड़ रहे थे , निपल पिंच कर रहे थे , और जोश में उस गदराई जवानी के स्तन पत्थर हो गए थे , निपल एकदम कड़े।


इस जोबन का तो पूरा शहर दीवाना था , आग लगी थी शहर में।

सब कुछ भूल कर मैं चूंची का मजा लूट रहा दबा रहा था और वो दबवा रही थी।


और हम दोनों की मस्ती के बीच

वो बनारसी छोरी मौके का फायदा क्यों न उठाती , तो उसने फायदा उठा लिया।

मेरे दोनो हाथ फंसे थे रंजी के जोबन मर्दन में और गुड्डी ने अपने दोनों हाथों से एक झटके में मेरा शार्ट खींच कर सीधे वाशिंग मशीन में डाल दिया और ऊपर से कमेंट भी मारा

" तेरे हाथ इस साल्ली रण्डी ,मेरा मतलब रंजी के जोबन का मजा ले रहे हैं , तो ये बिचारे बाबू जंगबहादुर लाल ही क्यों परदे में छुपे बैठे रहें ,"

और जंगबहादुर मारे खुसी के एकदम कड़क , सीधे उन्होंने रंजी के चूतड़ पे मुंह मारना शुरू कर दिया ,जहाँ कल रात उन्होंने ग़दर मचा दी थी। अब एक बार तो रास्ता देख ही लिया था बस , सूंघते सूंघते पहुँच गए गोलकुंडा के द्वार पर।

लेकिन अब मैं और रंजी एक हो गए , पॉलिटिक्स की तरह यहाँ भी गुलाटी मारते देर थोड़े ही लगती है।

" बहुत उछल रही है न ये इस की हालत भी अपने जैसी कर दें , क्यों। " रंजी ने इसरार किया और आज तक किसी डैमसेल इन डिस्ट्रेस की पुकार मैंने अनसुनी कर दी हो ऐसा नहीं हुआ।

तो इस बार मैं क्यों करता और खास तौर पे जब पुकार अपनी रंजी की हो ,

और पल भर में गुड्डी हम दोनों के बीच सैंड विच थी , मेरे हाथ फिर अपने काम में लग गए थे , रंजी के जोबन मर्दन में लेकिन रंजी के हाथ तो खाली थे , और वो चीर हरण लीला में लग गए।

और कुछ ही देर में जो काम मैं रंजी के साथ कर रहा था , दूने जोर से वही काम , रंजी गुड्डी के साथ कर रही थी , स्तन मर्दन का।

दो कन्याओं के कामरस को देख के जो हालत मेंरे खूंटे की होनी चाहिए वही हुआ , इंजिन गरम हो गया। और गाड़ी स्टार्ट होने से कोई रोक नहीं सकता था ,


लेकिन गुड्डी ने शावर स्टार्ट कर दिया और अब हम तीनों एक साथ शावर के नीचे थे।


और कुछ ही देर में रंजी के बाल और चेहरे से साबुन ,शैम्पू धुल गया।

लेकिन थोड़े देर में ही पॉलिटिकल अलाइनमेंट फिर बदल गए।


मैं और गुड्डी साथ थे।

गुड्डी ने जबरन रंजी को निहुरा दिया और उसके भारी भारी चूतड़ चियार कर के बोली ,

" अरे देखो रात का कुछ माल वाल बचा है क्या ,मक्खन मलाई। "

दोनों साफ साफ दिख रहे थे , लेकिन तबतक गुड्डी ने हैंड शावर का नोजल वहां लगा दिया और पानी की तेज धार सीधे पिछवाड़े के छेद से अंदर /

रात भर इतना मजा लिया ,अब जरा साबुन तो लगा दो वहां , गुड्डी ने चढ़ाया और मैंने दो ऊँगली में खूब ढेर सारा साबुन लगा के ठेल दिया पूरी ताकत से अंदर /


सिसकी और चीख एक साथ निकल गयी रंजी की।

ऊँगली गोल गोल घूम रही थी और वो निकली तो सीधे , शावर का नोजल अबकी गांड के छेद पे।


बिचारी रंजी।

' अरे चलो बनारस वहां रात भर गांड मरवाना और सुबह एनिमा लगा के सब माल साफ करवाउंगी , घबड़ाओ मत ये तो ट्रेलर भी नहीं था , यहाँ तो एक चढ़ा था वहां मेरे तीन तीन बनारस के भैया एक साथ चढ़ेंगे ,तब पता चलेगा। " नोजल अंदर धँसातीगुड्डी बोली।

" उईई कमीनी , तेरी तो मैं.… निकाल न , चल यहाँ अपने भैय्या को देख लिया कल वहां तेरे भाइयों को भी देख लूंगी। "

रंजी चिल्लाई।

गुड्डी क्यों उस की गांड से शावर निकालती इसलिए ये काम मुझे करना पड़ा और अब शावर को नोजल सीधे गुड्डी की लाल मुनिया पे।

और गुड्डी को रंजी ने दबोच कर बाथरूम के फ्लोर पर गिरा दिया था , और दोनों फैली जाँघों के बीच मैं बैठा कभी शावर का पूरा फोर्स गुड्डी की चूत की पुत्तियों पे तो कभी ठीक सेंटर पे ,

बिचारी गुड्डी उसकी गालियां भी बंद होगयी , क्योंकि उसके होंठ अब रंजी के होंठों कब्जे में थे और रंजी इत्ते जोर से चूस रही थी उसके मखमली मुंह में पाने जीभ ठेल रही थी की क्या कोई लड़का चूसेगा।


साथ में रंजी के दोनों हाथ गुड्डी के उभारों पे कभी सहलाते दबाते तो कभी निपल पिंच करते। 



शावर में : गुड्डी रंजी मैं



साथ में रंजी के दोनों हाथ गुड्डी के उभारों पे कभी सहलाते दबाते तो कभी निपल पिंच करते।

रंजी ने मुड़ के जो मुझे आँख मारी तो मैं इशारा समझ गया और फिर तो शावर के सिंगल धार वाले नोजल की चोट सीधे , गुड्डी के क्लिट पे।

वो काम कोई ऊँगली क्या करेगी जो वो नोजल कर रहा था।


बिचारी गुड्डी तड़प रही थी ,चूतड़ पटक रही थी ,सिसक रही थी , लेकिन न उसे रंजी छोड़ रही थी न मैं।


और अब रंजी ,गुड्डी के निपल को जोर जोर से चूस रही थी और मैं क्लिट के चारो ओर तो कभी सीधे क्लिट पे पानी की तेज धार ,

दो बार वो झड़ने के कगार पे पहुँच गयी , ;लेकिन हम दोनों उसे झड़ने भी नहीं दे रहे थे।


" हरामजादी , साल्ली ,कमीनी ,भैया चोदी ,मेरे सारे गाँव वाले तुझे न चोदे तो कहना। " गुड्डी गालियां दे रही थी और रंजी खिलखिला रही थी ,

" अरे नेकी और पूछ पूछ , निचोड़ के रख दूंगी तेरे सारे गाँव वालों का " रंजी ने बोला और अपनी दो ऊँगली घचाक से गुड्डी की गीली चूत में पेल दिया।

वो फिर एक बार झड़ने के कगार पे पहुँच गयी।

आधे घण्टे से ज्यादा हम बाथरूम में रहे , हाँ लेकिन न मैं झडा न वो दोनों।

बाहर निकले तो सवा बारह हो रहे थे।

एक बार फिर दोनों ने मुझे मेरे कमरे में धकेल दिया और खुद किचेन में। खाना लगाने।

मैं फिर अपने कंप्यूटर के पास लेकिन आज बात करने की भी कोई नहीं था। मेरे हैकर फ्रेंड्स , एन पी, सब इंकम्युनिकेडो थे। बस थोड़ी देर तक इधर उधर सर्फ करता रहा। फिर बनारस फोन लगा कर कार्लोस और फेलू दा से बात की तब तक आवाज आई खाना लग गया है।

रात भर की मेहनत के बाद भूख लगनी ही थी। और रंजी और गुड्डी ने खाना बनाया भी गजब का था। खाने की मेज पे चुहुल होती रही। अब रंजी और गुड्डी एक तरफ थीं और दोनों मुझे छेड़ रही थीं।
खाना खत्म होते ही गुड्डी को कुछ याद आया और वो दौड़ते हुए ऊपर गयी , भाभी के कमरे में। और मैंने और रंजी ने टेबल समेटी और बरतन किचेन में रखे।

वो बर्तन साफ कर रही थी और मैं पीछे से हेल्प कर रहा था और न जाने मुझे पे क्या सवार हो गया , मैंने पीछे से उसे दबोच लिया और गाल पे चूम लिया।

" दुष्ट , रात में मन नहीं भरा क्या। " पीछे मुड़ के मुस्करा के नैन नचा के वो बोली।

" उन्ह्ह , नहीं भरा लेकिन तू गुस्सा तो नहीं , तुझे बहुत दर्द हुआ था न " . मैं बोला।

" बहुत गुस्सा हूँ , जोर से गुस्सा हूँ और दर्द तो अबतक हो रहा है " वोबोली और काम खत्म कर के अचानक पीछे मुड़ी और मुझे दबोच के दो चार,…पांच ,दस चुम्मी सीधे मेरे होंठ पे।

" गुस्सा हूँ और बहुत जोर से गुस्सा हूँ , ये दर्द देने में इत्ता दिन क्यों लगा दिया। और तू न , " अब रंजी ने मेरी नाक पकड़ ली थी जोर से ," बुद्धू का बुद्धू ही रहेगा। पहली बार में लेकिन पूरा ठेल देना जरूरी था क्या , और आगे पीछे दोनों ओर वो भी , साल्ला अब तक परपरा रहा है। "

नाक रंजी की पकड़ में थी ,मैंने दोनों कान पकड़ लिए , खुद।

" गलती हो गयी , लेकिन मन बहुत कर रहा था था " मैंने गलती कबूल कर ली।

" चल माफ कर दिया , तू भी क्या याद करेगा किस दिल वाली से पाला पड़ा था " रंजी ने जोर से मुझे भींच लिया और अब उसके टॉप फाडू जोबन , भालेके नोक की तरह मेरे छाती में धंस रहे थे , और उसके कोमल कोमल हाथ पहले तो शार्ट के ऊपर से तन्नाये जंगबहादुर का हाल चाल पूछते रहे ,फिर शार्ट के अंदर डाल के जोर से लंड दबोच लिया और रगड़ते मसलते बोली,

" तेरा है भी तो ये , वो दिया भी न बहुत चबड़ चबड़ बोलती थी , मेरे भैया का इत्ता लम्बा है ,इत्ता मोटा है कोई घोंट नहीं सकता और जो घोंट लेगा उसका गुलाम हो जाएगा। क्या क्या बाजी लगाती थी ,अब बताउंगी उस कमीनी , हरामजादी को ,… मेरे प्यारे प्यारे भैय्या का उससे २० नहीं २२ है ,ज्यादा लंबा भी मोटा भी। फट जायेगी उस छिनार की , तेरा तो मेरे मुहल्ले ऐलवल के बाहर जो गदहे खड़े रहते हैं न , एकदम उनके टक्कर का है। "

अपनी तारीफ सुनकर कौन नहीं फूल जाता।

जंगबहादुर भी फूल कर कुप्पा हो गए ,एकदम टनाटन।

ऊपर से रंजी के लम्बे नाख़ून उसके 'पी होल ' में सुरसुरी भी कर रहे थे।

जोर से मैंने उसे भींच रखा था।

रंजी के गुलाबी दहकते पलाश से होंठ मेरे होंठों पे जोर जोर से रगड़ रहे थे।

बात कुछ और आगे बढती , तब तक उपर के कमरे से आकाशवाणी हो गयी ,

गुड्डी की।
 
 

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