FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--148
मेरी निगाह मंजू के पिछवाड़े से चिपक के रह गयी। खूब गोल मटोल , बड़े बड़े, भरे भरे , गोल गुदाज। साडी एकदम चिपकी , दोनों गोलाइयों के बीच दरार में धंसी। साफ था उसने पेटीकोट नहीं पहन रखा था और झीनी पतली घिसी हुयी साडी उसके गदराये दो तरबूजों से , नितम्बो से एकदम चिपकी।
ऐसे मस्त चूतड़ देखकर जंगबहादुर का जो हाल होना चाहिए था , वही हुआ।
सीधे ९० डिग्री। एकदम खड़े होकर मंजू की गांड की दरार को उन्होंने सैल्यूट दिया।
मेरी हालत से नावाकिफ वो आलू के पराठे बेल और सेंक रही थीं।
लेकिन जैसे ही मैं उनके पास पहुंचा , उन्होंने तुरंत मंजू भाभी टाइप रिस्पांस दिया , अपने हाथों में पकड़े मोटा बेलन दिखा के, खड़ा कर के बोलीं ,
" लाला , एक बार में पूरा अंदर कर दूंगी। वो भी बिना तेल लगाए। एक बार में सटाक से अंदर जाएगा। "
" भौजी बहुत भूख लगी है दो ना " और यह कहते हुए मैंने उनके दोनों हाथों के बीच अपना हाथ घुसेड़ कर सीधे ब्रा रहित ब्लाउज के ऊपर से जोर से दबा दिया
मंजू ब्रा कभी नहीं पहनती थी लेकिन उसके कड़े गुदाज स्तन , ब्लाउज को हरदम जैसे फाड़ते रहते थे। और आज सुबह जिस तरह से मैं थका था और उसने टिट फक किया था मैं भूल नहीं सकता।
“चलो न बाहर , मैं बना के इकट्ठे लाती हूँ बाहर। "
चूंचियां उसकी मस्त टाइट थीं , कड़ी ३८ डी डी।
दबाते हुए मैंने बोला , " नहीं भौजी , मैं तो यहीं लूंगा। "
खिलखिलाते अपने चूतड़ से मेरा तना लंड दबाते बोली , " उनसे माँगते न जो अबही ऊपर गयी हैं "
" अरे भौजी , उ ऊपर दे रही हैं आप नीचे दे दो न। " मैंने भी उसी तरह डबल मीनिंग अंदाज में बोला , और फिर एक हाथ से उसके ब्लाउज के दो बटन खोलते कहा " मेरे हाथ तो भौजी बिजी हैं , आप अपने हाथ से खिला दो न ".
" हाथ तो मेरे भी फंसे हुए है देवर जी ", तवे पर से पराठा उतारते वो बोली।
मेरा एक हाथ अब ब्लाउज में घुस के मंजू के कड़े निपल रोल कर रहा था और दूसरे ने साडी ऊपर तक सरका दी , और अब जंगबहादुर सीधे , चूतड़ की दरार के बीच में।
मंजू भी गिनगिना गयी।
" चलो लाला , तुंहु याद करबा की कौनो भौजी। "और उसने आलू के पराठे का एक बड़ा कौर तोड़ के अपने मुंह में भर लिया , उसे कूचने ,चुभलाने लगी।
चूंची मर्दन करते मैंने एक चुम्मी उसके भरे भरे गालों पे ले ली और कचकचा के काट लिया।
" देवर जी , ई बेलन देख रहे हो, पूरा गंडिया में पेल दूंगी। " मुझे बेलन दिखाती बोली।
और साथ ही मुझे बाँहों में भर के उसने अपने होंठ मेरे होंठ से अपने होंठ चिपका लिए और अपने मुंह का कूचा कुचाया , जूठा , थूक से लिथड़ा पराठा अपनी जीभ की सहायता से मेरे मुंह में ठेल दिया और फिर काम में लग गयी।
मैं रसभरा पराठा खाते खाते बोला , " ये हुयी न भौजी वाली बात , ऐसा रसीला पराठा तो आज तक हम नहीं खाए थे।
जवाब में मंजू ने पराठे का दूसरा कौर मेंरे मुंह में अपने मुंह से ठेल दिया।
मेरे हाथ अब मंजू के जोबन के रस ले रहे थे , पागल बौराया लंड उसकी गांड की खुली दरार में ठोकर मार रहा था और मुंह में मंजू के मुख रस से सना आलू का पराठा , इससे अच्छा ब्रंच और क्या हो सकता था।
थोड़ी देर में पूरे दो पराठे , उसके मुंह से मेरे मुंह में पहुँच चुके थे। और मंजू ने किचेन का काम बंद पूरा कर लिया था।
" क्यों मजा आया कूचा कुचाया का , " हंस के रस लेते वो बोली।
" एकदम भौजी , " उसके भरे हुए गाल को जोर से काट के मैं बोला।
" एक्दैन तोहैं पचा पचाया भी खिलाऊँगी तब असली मजा आई देवर जी "
समझ तो मैं रहा था लेकिन अनजान बन कर के पुछा , नहीं भौजी बोलो न।
" अरे जोअभी खा रहे हो वो कूचा कुचाया, मुंह से मुंह में और जउन , फिर जोर से अपनी गांड को मेरे लंड पे रगड़ती बोलो , एहर से मुंह में जाय , उ पचा पचाया। तोहरे ससुरारी में त पक्का तोहार सास खिहिेयेने , लेकिन चला चटनी हमहुँ चखायब एक दिन। "
मैं गिनगीना गया। सपने में ससुराल में हुयी रगडआई याद आ गयी। मम्मी ने तो हर चीज कबुलवा लिया था।
मेरा ना नुकुर करने पर भी मंजू तीसरा पराठा खिला के मानी , बोली सबेरे सबेरे तो तोहार कुल मलाई हम निकाल लिहे , कुछ ताकत वापस जाय के चाही न। "
तब तक सीढ़ियों पर भाभी के पैरों की आवाज सुनाई दी और हम दोनों अलग हो गए।
फागुन के दिन चार--148
मेरी निगाह मंजू के पिछवाड़े से चिपक के रह गयी। खूब गोल मटोल , बड़े बड़े, भरे भरे , गोल गुदाज। साडी एकदम चिपकी , दोनों गोलाइयों के बीच दरार में धंसी। साफ था उसने पेटीकोट नहीं पहन रखा था और झीनी पतली घिसी हुयी साडी उसके गदराये दो तरबूजों से , नितम्बो से एकदम चिपकी।
ऐसे मस्त चूतड़ देखकर जंगबहादुर का जो हाल होना चाहिए था , वही हुआ।
सीधे ९० डिग्री। एकदम खड़े होकर मंजू की गांड की दरार को उन्होंने सैल्यूट दिया।
मेरी हालत से नावाकिफ वो आलू के पराठे बेल और सेंक रही थीं।
लेकिन जैसे ही मैं उनके पास पहुंचा , उन्होंने तुरंत मंजू भाभी टाइप रिस्पांस दिया , अपने हाथों में पकड़े मोटा बेलन दिखा के, खड़ा कर के बोलीं ,
" लाला , एक बार में पूरा अंदर कर दूंगी। वो भी बिना तेल लगाए। एक बार में सटाक से अंदर जाएगा। "
" भौजी बहुत भूख लगी है दो ना " और यह कहते हुए मैंने उनके दोनों हाथों के बीच अपना हाथ घुसेड़ कर सीधे ब्रा रहित ब्लाउज के ऊपर से जोर से दबा दिया
मंजू ब्रा कभी नहीं पहनती थी लेकिन उसके कड़े गुदाज स्तन , ब्लाउज को हरदम जैसे फाड़ते रहते थे। और आज सुबह जिस तरह से मैं थका था और उसने टिट फक किया था मैं भूल नहीं सकता।
“चलो न बाहर , मैं बना के इकट्ठे लाती हूँ बाहर। "
चूंचियां उसकी मस्त टाइट थीं , कड़ी ३८ डी डी।
दबाते हुए मैंने बोला , " नहीं भौजी , मैं तो यहीं लूंगा। "
खिलखिलाते अपने चूतड़ से मेरा तना लंड दबाते बोली , " उनसे माँगते न जो अबही ऊपर गयी हैं "
" अरे भौजी , उ ऊपर दे रही हैं आप नीचे दे दो न। " मैंने भी उसी तरह डबल मीनिंग अंदाज में बोला , और फिर एक हाथ से उसके ब्लाउज के दो बटन खोलते कहा " मेरे हाथ तो भौजी बिजी हैं , आप अपने हाथ से खिला दो न ".
" हाथ तो मेरे भी फंसे हुए है देवर जी ", तवे पर से पराठा उतारते वो बोली।
मेरा एक हाथ अब ब्लाउज में घुस के मंजू के कड़े निपल रोल कर रहा था और दूसरे ने साडी ऊपर तक सरका दी , और अब जंगबहादुर सीधे , चूतड़ की दरार के बीच में।
मंजू भी गिनगिना गयी।
" चलो लाला , तुंहु याद करबा की कौनो भौजी। "और उसने आलू के पराठे का एक बड़ा कौर तोड़ के अपने मुंह में भर लिया , उसे कूचने ,चुभलाने लगी।
चूंची मर्दन करते मैंने एक चुम्मी उसके भरे भरे गालों पे ले ली और कचकचा के काट लिया।
" देवर जी , ई बेलन देख रहे हो, पूरा गंडिया में पेल दूंगी। " मुझे बेलन दिखाती बोली।
और साथ ही मुझे बाँहों में भर के उसने अपने होंठ मेरे होंठ से अपने होंठ चिपका लिए और अपने मुंह का कूचा कुचाया , जूठा , थूक से लिथड़ा पराठा अपनी जीभ की सहायता से मेरे मुंह में ठेल दिया और फिर काम में लग गयी।
मैं रसभरा पराठा खाते खाते बोला , " ये हुयी न भौजी वाली बात , ऐसा रसीला पराठा तो आज तक हम नहीं खाए थे।
जवाब में मंजू ने पराठे का दूसरा कौर मेंरे मुंह में अपने मुंह से ठेल दिया।
मेरे हाथ अब मंजू के जोबन के रस ले रहे थे , पागल बौराया लंड उसकी गांड की खुली दरार में ठोकर मार रहा था और मुंह में मंजू के मुख रस से सना आलू का पराठा , इससे अच्छा ब्रंच और क्या हो सकता था।
थोड़ी देर में पूरे दो पराठे , उसके मुंह से मेरे मुंह में पहुँच चुके थे। और मंजू ने किचेन का काम बंद पूरा कर लिया था।
" क्यों मजा आया कूचा कुचाया का , " हंस के रस लेते वो बोली।
" एकदम भौजी , " उसके भरे हुए गाल को जोर से काट के मैं बोला।
" एक्दैन तोहैं पचा पचाया भी खिलाऊँगी तब असली मजा आई देवर जी "
समझ तो मैं रहा था लेकिन अनजान बन कर के पुछा , नहीं भौजी बोलो न।
" अरे जोअभी खा रहे हो वो कूचा कुचाया, मुंह से मुंह में और जउन , फिर जोर से अपनी गांड को मेरे लंड पे रगड़ती बोलो , एहर से मुंह में जाय , उ पचा पचाया। तोहरे ससुरारी में त पक्का तोहार सास खिहिेयेने , लेकिन चला चटनी हमहुँ चखायब एक दिन। "
मैं गिनगीना गया। सपने में ससुराल में हुयी रगडआई याद आ गयी। मम्मी ने तो हर चीज कबुलवा लिया था।
मेरा ना नुकुर करने पर भी मंजू तीसरा पराठा खिला के मानी , बोली सबेरे सबेरे तो तोहार कुल मलाई हम निकाल लिहे , कुछ ताकत वापस जाय के चाही न। "
तब तक सीढ़ियों पर भाभी के पैरों की आवाज सुनाई दी और हम दोनों अलग हो गए।
भाभी का प्रोग्राम
तब तक सीढ़ियों पर भाभी के पैरों की आवाज सुनाई दी और हम दोनों अलग हो गए।
मंजू ताजे पराठे डिब्बे में रख रही थी।
भाभी ने आके मंजू से पुछा , " क्यों देवर को पेट भर के खिलाया की नहीं। "
" कहाँ तीन पराठे में चूं बोल गए। हम तो बोले की ऊपर वाले मुंह से नहीं खा पारहे हो तो नीचे वाले मुंह से खिला दें , आखिर जाएगा तो पेटवे में। "मंजू हँसते हुए बोली।
भाभी भी खिलखिलाने लगी और अब बेलन उनके हाथ में था। मुझे दिखा के मंजू से बोली
' सही आइडिया था , ठेल देती और नहीं जाता त ई बेलना से ढकेल देती पिछवाडे , गप्प से घोंट लेते। "
मंजू की कंपनी में भाभी भी उसी लेवल पे पहुँच जाती थीं।
मुझे भाभी ने इशारे से बाहर बुलाया और कमरे में ले गयी।
भाभी थोड़ी परेशान , कुछ उहापोह में , कुछ सकुचाई लग रही थीं।
" तुमसे एक बात कहनी है , एक काम है। " कुछ झिझकते हुए बोली।
" अरे भाभी एक क्या दो कहिये " कुछ सपने का असर कुछ मंजू का , मैं भी मूड में था।
भाभी का चेहरा खुश हो गया और मेरी नाक पकड़ के बोलीं ,
" चलो लाला , तुम भी क्या याद करोगे , अब दो ही कहूँगी। " फिर एक बार सीरियस होते उन्होंने बात आगे बढ़ाई ,
लेकिन वो फिर कुछ झिझकीं।
कुछ रुक कर सोच कर , बोलीं।
" तुम्हारे भैया का बहुत मन था , असल में वो कई साल से कह रहे थे लेकिन , हर बार , अबकी फिर , असल में , उनके बहुत से दोस्त उनकी वाइफ हर साल होली में , … अबकी तुम हो तो , मैं सोच रही थी " और वो फिर रुक गयीं।
मेरे कुछ समझ में आया कुछ नहीं। बस ये अंदाज लग गया है की कुछ है जिसका मन भाभी का भी उतना ही है , लेकिन वो झिझक रही हैं।
भाभी , भाभी से बढ़ कर मेरी दोस्त थीं। हम दोनों कोई भी बात नहीं छिपाते थे। मैंने पूछ ही लिया ,
" भाभी , मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा है ,साफ साफ बोलिए न "
" अरे इनको दोस्त और उनकी वाइफ सब , वो एक जगह है ना यहाँ से करीब ४०-५० किलोमीटर पर , जहाँ होली के बाद , होली की लम्बी पार्टी , फंक्शन सा होता है " भाभी रुकते रुकते बोलीं।
नाम तो मैंने भी उस होली पार्टी का सुन रखा था , लेकिन उड़ते उड़ते। दो दिन तक फुल नान स्टाप मस्ती होती थी। लेकिन सिर्फ कपल जा सकते थे वो भी मैरिड और आपस में परिचित। एक नया रिसार्ट खुला था , वहीँ।
मैं चुप रहा , भाभी कुछ रुक के बोलीं।
“ये हर बार बोलते थे , लेकिन मैं मना कर देती थी की दो दिन घर बंद कैसे रहेगा। एकाध बार तुम थे , लेकिन मैंने सोचा की फिर तुम्हारे खाने पीने का , लेकिन अबकी तुम्हारे भैया बहुत जिद कर रहे हैं। और मैंने भी सोचा की गुड्डी तो है ही। फिर मैंने तुम्हारे भैया से बोला है की हम लोग आज शाम कोजाएंगे और किसी हाल में कल सुबह आ जाएंगे। आज रात के लिए मैंने मंजू को बोल दिया है की वो पराठे बना देगी और कल तो मैं आ ही जाउंगी.”
"अरे भाभी , काहे के लिए , किचेन तो आप ने वैसे ही गुड्डी को सौंप दिया है। रोज खाना तो वही बनाती है , आप झूठे ही परेशान हो रही है। " मैंने भाभी को समझाया।
' असल में तुम्हारे भैया भी यही बोल रहे थे , की अबकी सही मौका है , तुम भी हो गुड्डी भी है। तुम दोनों के भरोसे छोड़कर जा सकते है , और कौन बहुत दूर जा रहे हैं। दो घण्टे का रास्ता मुश्किल से है। मोबाइल कर दोगे बस हम लोग तुरंत आ जायेंगे। मैंने कहा भी , कुछ भी हो गुड्डी अभी बच्ची है , और तुम्ही कौन से जिम्मेदार हो गए हो। " भाभी बोलीं , फिर रुक कर जोड़ा।
" मैंने सिर्फ ये कहा है की अगर तुम मान जाओ तुम्हे कोई परेशानी न हो तो और किसी भी हालत में मैं कल सुबह आ जाउंगी। बोलो , जैसा तुम कहो। "
" अरे नहीं भाभी , फिर खाना तो जैसा गुड्डी बनाती वही मिलता है , आप पूरे दो दिन के लिए जाइए ना " मैंने समझाया।
" नहीं , नहीं मैं तो जाना भी नहीं चाहती थी , तुम्हारे भैया ने बहुत जिद किया और मैंने आज तक उनकी कोई बात टाली नही , तुम तो जानते ही हो। परसो तुम सब को वापस बनारस भी जाना है और रंजी भी जायेगी तुम लोगों के साथ , "
अबकी उन की बात काट के मैंने बोला।
"भाभी , आप लोग वहां से परसों ब्रेकफास्ट कर के चलेंगी तो भी खाने तक तो आजायेगीं। और बनारस की सड़क अभी अच्छी हो गयी है। दो ढाई घंटे का रास्ता है बस। हम लोग तीन चार बजे जायेंगे। कोई देर नहीं होगी। " मैंने समझाया।
अभी भी वो झिझक रही थीं।
" तुम्हे कोई परेशानी तो नहीं होगी अकेले रहने में। " उन्होंने झिझकते हुए कहा।
"नहीं भाभी एकदम नहीं आप लोग आराम से जाइए। "
" ठीक है , मैंने गुड्डी को बोल दिया है। लेकिन उन्होंने कहा की वो अकेले बोर होगी तो मैं रंजी को भी बुला लूँ , गुड्डी का मन लगा रहेगा। वो दोनों तैयार हो रही हैं। अगर तुम जा के उन दोनों को ले आओ , मैं गुड्डी को घर की सारी जिम्मेदारी समझा दूंगी। '
मुश्किल से मैंने अपनी ख़ुशी छिपायी। नेकी और पूछ पूछ।
" कब जाना होगा भाभी। " मैंने पुछा।
भाभी की निगाह बार बार घडी की ओर पड़ रही थी।
" कब क्या , अभी जाओ न कौन तुम्हे तैयार होना है। वो दोनों तैयार होंगी , हाँ लौटते हुए कुछ शॉपिंग भी कर लेना मैंने गुड्डी को बोल दिया है। " भाभी ने हड़काया।
" एकदम , कब जाना है भाभी आप लोगो को। " मैंने पूछा।
"तुम्हारे भैया तो तैयार बैठे हैं , लेकिन किसी भी हालत में तीन बजे के पहले तो निकलना ही होगा। " भाभी बोलीं।
मैं मुड़ा लेकिन मुझे कुछ और याद आ गया।
तब तक सीढ़ियों पर भाभी के पैरों की आवाज सुनाई दी और हम दोनों अलग हो गए।
मंजू ताजे पराठे डिब्बे में रख रही थी।
भाभी ने आके मंजू से पुछा , " क्यों देवर को पेट भर के खिलाया की नहीं। "
" कहाँ तीन पराठे में चूं बोल गए। हम तो बोले की ऊपर वाले मुंह से नहीं खा पारहे हो तो नीचे वाले मुंह से खिला दें , आखिर जाएगा तो पेटवे में। "मंजू हँसते हुए बोली।
भाभी भी खिलखिलाने लगी और अब बेलन उनके हाथ में था। मुझे दिखा के मंजू से बोली
' सही आइडिया था , ठेल देती और नहीं जाता त ई बेलना से ढकेल देती पिछवाडे , गप्प से घोंट लेते। "
मंजू की कंपनी में भाभी भी उसी लेवल पे पहुँच जाती थीं।
मुझे भाभी ने इशारे से बाहर बुलाया और कमरे में ले गयी।
भाभी थोड़ी परेशान , कुछ उहापोह में , कुछ सकुचाई लग रही थीं।
" तुमसे एक बात कहनी है , एक काम है। " कुछ झिझकते हुए बोली।
" अरे भाभी एक क्या दो कहिये " कुछ सपने का असर कुछ मंजू का , मैं भी मूड में था।
भाभी का चेहरा खुश हो गया और मेरी नाक पकड़ के बोलीं ,
" चलो लाला , तुम भी क्या याद करोगे , अब दो ही कहूँगी। " फिर एक बार सीरियस होते उन्होंने बात आगे बढ़ाई ,
लेकिन वो फिर कुछ झिझकीं।
कुछ रुक कर सोच कर , बोलीं।
" तुम्हारे भैया का बहुत मन था , असल में वो कई साल से कह रहे थे लेकिन , हर बार , अबकी फिर , असल में , उनके बहुत से दोस्त उनकी वाइफ हर साल होली में , … अबकी तुम हो तो , मैं सोच रही थी " और वो फिर रुक गयीं।
मेरे कुछ समझ में आया कुछ नहीं। बस ये अंदाज लग गया है की कुछ है जिसका मन भाभी का भी उतना ही है , लेकिन वो झिझक रही हैं।
भाभी , भाभी से बढ़ कर मेरी दोस्त थीं। हम दोनों कोई भी बात नहीं छिपाते थे। मैंने पूछ ही लिया ,
" भाभी , मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा है ,साफ साफ बोलिए न "
" अरे इनको दोस्त और उनकी वाइफ सब , वो एक जगह है ना यहाँ से करीब ४०-५० किलोमीटर पर , जहाँ होली के बाद , होली की लम्बी पार्टी , फंक्शन सा होता है " भाभी रुकते रुकते बोलीं।
नाम तो मैंने भी उस होली पार्टी का सुन रखा था , लेकिन उड़ते उड़ते। दो दिन तक फुल नान स्टाप मस्ती होती थी। लेकिन सिर्फ कपल जा सकते थे वो भी मैरिड और आपस में परिचित। एक नया रिसार्ट खुला था , वहीँ।
मैं चुप रहा , भाभी कुछ रुक के बोलीं।
“ये हर बार बोलते थे , लेकिन मैं मना कर देती थी की दो दिन घर बंद कैसे रहेगा। एकाध बार तुम थे , लेकिन मैंने सोचा की फिर तुम्हारे खाने पीने का , लेकिन अबकी तुम्हारे भैया बहुत जिद कर रहे हैं। और मैंने भी सोचा की गुड्डी तो है ही। फिर मैंने तुम्हारे भैया से बोला है की हम लोग आज शाम कोजाएंगे और किसी हाल में कल सुबह आ जाएंगे। आज रात के लिए मैंने मंजू को बोल दिया है की वो पराठे बना देगी और कल तो मैं आ ही जाउंगी.”
"अरे भाभी , काहे के लिए , किचेन तो आप ने वैसे ही गुड्डी को सौंप दिया है। रोज खाना तो वही बनाती है , आप झूठे ही परेशान हो रही है। " मैंने भाभी को समझाया।
' असल में तुम्हारे भैया भी यही बोल रहे थे , की अबकी सही मौका है , तुम भी हो गुड्डी भी है। तुम दोनों के भरोसे छोड़कर जा सकते है , और कौन बहुत दूर जा रहे हैं। दो घण्टे का रास्ता मुश्किल से है। मोबाइल कर दोगे बस हम लोग तुरंत आ जायेंगे। मैंने कहा भी , कुछ भी हो गुड्डी अभी बच्ची है , और तुम्ही कौन से जिम्मेदार हो गए हो। " भाभी बोलीं , फिर रुक कर जोड़ा।
" मैंने सिर्फ ये कहा है की अगर तुम मान जाओ तुम्हे कोई परेशानी न हो तो और किसी भी हालत में मैं कल सुबह आ जाउंगी। बोलो , जैसा तुम कहो। "
" अरे नहीं भाभी , फिर खाना तो जैसा गुड्डी बनाती वही मिलता है , आप पूरे दो दिन के लिए जाइए ना " मैंने समझाया।
" नहीं , नहीं मैं तो जाना भी नहीं चाहती थी , तुम्हारे भैया ने बहुत जिद किया और मैंने आज तक उनकी कोई बात टाली नही , तुम तो जानते ही हो। परसो तुम सब को वापस बनारस भी जाना है और रंजी भी जायेगी तुम लोगों के साथ , "
अबकी उन की बात काट के मैंने बोला।
"भाभी , आप लोग वहां से परसों ब्रेकफास्ट कर के चलेंगी तो भी खाने तक तो आजायेगीं। और बनारस की सड़क अभी अच्छी हो गयी है। दो ढाई घंटे का रास्ता है बस। हम लोग तीन चार बजे जायेंगे। कोई देर नहीं होगी। " मैंने समझाया।
अभी भी वो झिझक रही थीं।
" तुम्हे कोई परेशानी तो नहीं होगी अकेले रहने में। " उन्होंने झिझकते हुए कहा।
"नहीं भाभी एकदम नहीं आप लोग आराम से जाइए। "
" ठीक है , मैंने गुड्डी को बोल दिया है। लेकिन उन्होंने कहा की वो अकेले बोर होगी तो मैं रंजी को भी बुला लूँ , गुड्डी का मन लगा रहेगा। वो दोनों तैयार हो रही हैं। अगर तुम जा के उन दोनों को ले आओ , मैं गुड्डी को घर की सारी जिम्मेदारी समझा दूंगी। '
मुश्किल से मैंने अपनी ख़ुशी छिपायी। नेकी और पूछ पूछ।
" कब जाना होगा भाभी। " मैंने पुछा।
भाभी की निगाह बार बार घडी की ओर पड़ रही थी।
" कब क्या , अभी जाओ न कौन तुम्हे तैयार होना है। वो दोनों तैयार होंगी , हाँ लौटते हुए कुछ शॉपिंग भी कर लेना मैंने गुड्डी को बोल दिया है। " भाभी ने हड़काया।
" एकदम , कब जाना है भाभी आप लोगो को। " मैंने पूछा।
"तुम्हारे भैया तो तैयार बैठे हैं , लेकिन किसी भी हालत में तीन बजे के पहले तो निकलना ही होगा। " भाभी बोलीं।
मैं मुड़ा लेकिन मुझे कुछ और याद आ गया।
दूसरी बात
मैं मुड़ा लेकिन मुझे कुछ और याद आ गया।
भाभी , आप ने कहा था दो बातें तो दूसरी बात,
अबकी बात काट के खिखिलाती वो बोलीं
" तेरे फायदे की बात है। अभी तेरी होने वाली सास से बात हुयी थी न , तूने ही तो फोन दिया था तो बस , अब तुम अप्रेल में दो दिन की छुट्टी ले के आजाना , बनारस। मैंने कैलेण्डर देख लिया है १६ अप्रेल को वैसे भी छुट्टी है। "
" बात क्या है भाभी , प्लीज बताइये न " उत्सुकता के मारे मेरी हालत ख़राब थी।
" तुमसे मतलब , लेडीज टाक। तुमसे बोला आ जाओ तो आजाओ। बस '
फिर कुछ रुक के मेरी नाक पकड़ के हँसते बोली ,
" अरे बुद्धू तेरी इंगेजमेंट , रिंग सेरिमनी , गोद भराई। सब एक साथ कर लेंगे। तुम्हारे भैया तो कहीं बाहर जा रहे हैं १० -१५ दिन के लिए , अप्रेल में वो तो आ नहीं पाएंगे। मैं आ जाउंगी और तुम आजाना। १६ को इंगेजमेंट है लेकिन १५ अप्रेल की सुबह तक आ जाना। मेरी देवरानी के कपडे जेवर खरीदने होंगे। अब तुम्हारे नाप से तो लिए नही जाएंगे ,और आज कल सिलने में भी टाइम लगता है। इसलिए मैं भी १५ अप्रेल को पहुँच जाउंगी। १५ को शॉपिंग और १६ को इंगेजमेंट। क्यों कोई परेशानी है क्या। "
मेरे चेहरे से वो अंदाज लगा रही थीं।
और मैं सपने के बारे में सोच रहा था, १६ अप्रेल। यही डेट तो सपने में भी थी। तो क्या सपने की सारी बातें सच होंगी। लेकिन भाभी की बात सुन के मैंने झटपट जवाब दिया
" नहीं भाभी , नहीं। छुट्टी मिलनी मुश्किल तो बहोत होगी , लेकिन मैं आ जाऊँगा १५ अप्रेल को। " मैंने बोला।
तब तक भैया की आवाज ऊपर से आई और भाभी मुझे घर के लगभग बाहर धकेलते ऊपर चली गयीं।
मैं मुड़ा लेकिन मुझे कुछ और याद आ गया।
भाभी , आप ने कहा था दो बातें तो दूसरी बात,
अबकी बात काट के खिखिलाती वो बोलीं
" तेरे फायदे की बात है। अभी तेरी होने वाली सास से बात हुयी थी न , तूने ही तो फोन दिया था तो बस , अब तुम अप्रेल में दो दिन की छुट्टी ले के आजाना , बनारस। मैंने कैलेण्डर देख लिया है १६ अप्रेल को वैसे भी छुट्टी है। "
" बात क्या है भाभी , प्लीज बताइये न " उत्सुकता के मारे मेरी हालत ख़राब थी।
" तुमसे मतलब , लेडीज टाक। तुमसे बोला आ जाओ तो आजाओ। बस '
फिर कुछ रुक के मेरी नाक पकड़ के हँसते बोली ,
" अरे बुद्धू तेरी इंगेजमेंट , रिंग सेरिमनी , गोद भराई। सब एक साथ कर लेंगे। तुम्हारे भैया तो कहीं बाहर जा रहे हैं १० -१५ दिन के लिए , अप्रेल में वो तो आ नहीं पाएंगे। मैं आ जाउंगी और तुम आजाना। १६ को इंगेजमेंट है लेकिन १५ अप्रेल की सुबह तक आ जाना। मेरी देवरानी के कपडे जेवर खरीदने होंगे। अब तुम्हारे नाप से तो लिए नही जाएंगे ,और आज कल सिलने में भी टाइम लगता है। इसलिए मैं भी १५ अप्रेल को पहुँच जाउंगी। १५ को शॉपिंग और १६ को इंगेजमेंट। क्यों कोई परेशानी है क्या। "
मेरे चेहरे से वो अंदाज लगा रही थीं।
और मैं सपने के बारे में सोच रहा था, १६ अप्रेल। यही डेट तो सपने में भी थी। तो क्या सपने की सारी बातें सच होंगी। लेकिन भाभी की बात सुन के मैंने झटपट जवाब दिया
" नहीं भाभी , नहीं। छुट्टी मिलनी मुश्किल तो बहोत होगी , लेकिन मैं आ जाऊँगा १५ अप्रेल को। " मैंने बोला।
तब तक भैया की आवाज ऊपर से आई और भाभी मुझे घर के लगभग बाहर धकेलते ऊपर चली गयीं।
१० मिनट में मैं रंजी के घर था। वो और गुड्डी वास्तव में तैयार थीं।
यहाँ तक की घर में ताला भी लटक रहा था , और चाभी का गुच्छा रंजी के हाथ में लटक रहा था।
और रंजी को देखा तो देखता रह गया।
मेरी निगाह चिपक कर रही गयी , और कहाँ , वहीँ जहाँ सारे शहर की निगाह चिपक के रह जाती थी।
उसके उभारों पर और आज तो वो एकदम जानमारु लग रहे थे।
खास तौर से जो उसने टॉप पहन रखा था , शियर पिंक , आलमोस्ट ट्रांसल्यूसेंट , सब कुछ दिखता है के अंदाज में। और वो भी शोल्ड़र लेस। उसके कंधो की गोलाइयाँ , आर्म पिट लम्बी बाहें सब कुछ दिख रही थी।
लेकिन जो आग लगा रही थी , वो उसकी अदा या शरारत। उसने टॉप को जींस में टक कर लिया था और पतली कमर पे चौड़ी से लेदर बेल्ट बाँध रखी थी , कस के।
नतीजा वही था जो होना था।
रंजी के मस्त उभार साफ उभर के सामने आ रहे थे। और पिंकशियर टॉप से उसकी गोलाइयाँ , कटाव ,गहराई , उभार सब कुछ साफ दिख रहा था।
यहाँ तक की व्हाइट हाफ कप लेसी टीन स्किन कलर की ब्रा भी जो उन उभारों को और उभार रही थी।
ऊपर से उस दुष्ट ने अपने दोनों हाथ सीने के ठीक नीचे कर के उन्हें थोड़ा और उभारते हुए कहा ,
" भैया क्या देख रहे हो। "
" वही जो देखने वाली चीज है। " मैंने भी उसी अंदाज में कहा।
" सिर्फ देखने की , या रगड़ने मसलने की , चूमने चाटने काटने की " गुड्डी क्यों मौका चूकती।
गयी
और रंजी ने जोर का धौल उसके पीठ पे जमाया और बोली , " रगड़ने मसलने की नानी , जल्दी से ये चाभी वर्मा आंटी के घर दे के आओ न। "
" दे , और इस मुक्के का जवाब रात में दूंगी। ऐसी ऐसी जगह मारूंगी न जहाँ कभी मरवाने की सोचा भी नहीं होगा। " गुड्डी बोली और चाभी लेकर हवा हो गयी।
और अब मेरी निगाह रंजी के चेहरे पर पड़ी।
उसके चेहरे पर पहले ही नमक बहुत ज्यादा था लेकिन आज तो
तुम मुखातिब भी हो, सामने भी हो,
तुमको देखूँ कि तुमसे बात करूँ।
एक लट गोरे गुलाबी गाल को अदा से सहला रही थी।
बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में काजल की रेख कटार मार रही थी।
रंजी के गुलाबी गाल पहले ही गुलाबों को शर्मिंदा करते थे और आज उसपे हलका सा रूज का टच भी
और हलकी गुलाबी लिपस्टिक , रसीले होंठों को और रसीला बना रही थी।
एकदम आग ,…
" आज लगता है कुछ हो जाएगा। " मेरे मुंह से निकल गया
गुड्डी चली गयी थी .
रंजी मेरे पास आके सट गयी और मेरे कंधे पे हाथ रख के बोली ,
" तो हो जाने दो न,… भैया "
फिर बड़ी अदा से उसने अपनी जीभ हलके से होंठों पे फिराई और बोली।
' कभी न कभी तो होना ही है , तो आज ही हो जाए। "
मेरी हिम्मत बढ़ गयी और मेरा एक हाथ उसके पिछवाड़े की नाप जोख करने लगा।
उस शियर पिंक टॉप के साथ उसने जींस भी लो कट टाइट पहन रखी थी , एकदम चिपकी हुयी। वही जिसकी उसने मॉडलिंग की थी।
हलके से उसके नितम्बो को दबा के ,उसे अपनी ओर खींचते मैं बोला,
" तू मना तो नहीं करेगी। "
वो और पास सट गयी और अपने टॉप फाड़ते उरोजों को मेरे सीने पे हलके से रगड़ते बोली।
" क्यों मना करुँगी , वो भी अपने प्यारे भैय्या को। "
फिर कुछ रुक कर वो खिलखिलाई, और बोली।
चांदी की हजार घंटिया एक साथ बज गयीं।
" एक बात बोलूं , अगर मैं मना भी करूँ तो तुम मानना मत। मुझे कई बार जबरदस्ती बहुत अच्छी लगती है। "
तब तक गुड्डी आ गयी और साथ में वो रिक्शा भी लायी और हम दोनों अलग हो गए।
और गुड्डी को देखते ही रंजी ने पाला बदल लिया , और झट से गुड्डी के बगल में धंस कर बैठ गयी।
और जब मैंने रिक्शे में उन दोनों के साथ बैठने की कोशिश की ,
' नहीं नहीं नहीं" दोनों ने एक साथ मना कर दिया।
यहाँ तक की घर में ताला भी लटक रहा था , और चाभी का गुच्छा रंजी के हाथ में लटक रहा था।
और रंजी को देखा तो देखता रह गया।
मेरी निगाह चिपक कर रही गयी , और कहाँ , वहीँ जहाँ सारे शहर की निगाह चिपक के रह जाती थी।
उसके उभारों पर और आज तो वो एकदम जानमारु लग रहे थे।
खास तौर से जो उसने टॉप पहन रखा था , शियर पिंक , आलमोस्ट ट्रांसल्यूसेंट , सब कुछ दिखता है के अंदाज में। और वो भी शोल्ड़र लेस। उसके कंधो की गोलाइयाँ , आर्म पिट लम्बी बाहें सब कुछ दिख रही थी।
लेकिन जो आग लगा रही थी , वो उसकी अदा या शरारत। उसने टॉप को जींस में टक कर लिया था और पतली कमर पे चौड़ी से लेदर बेल्ट बाँध रखी थी , कस के।
नतीजा वही था जो होना था।
रंजी के मस्त उभार साफ उभर के सामने आ रहे थे। और पिंकशियर टॉप से उसकी गोलाइयाँ , कटाव ,गहराई , उभार सब कुछ साफ दिख रहा था।
यहाँ तक की व्हाइट हाफ कप लेसी टीन स्किन कलर की ब्रा भी जो उन उभारों को और उभार रही थी।
ऊपर से उस दुष्ट ने अपने दोनों हाथ सीने के ठीक नीचे कर के उन्हें थोड़ा और उभारते हुए कहा ,
" भैया क्या देख रहे हो। "
" वही जो देखने वाली चीज है। " मैंने भी उसी अंदाज में कहा।
" सिर्फ देखने की , या रगड़ने मसलने की , चूमने चाटने काटने की " गुड्डी क्यों मौका चूकती।
गयी
और रंजी ने जोर का धौल उसके पीठ पे जमाया और बोली , " रगड़ने मसलने की नानी , जल्दी से ये चाभी वर्मा आंटी के घर दे के आओ न। "
" दे , और इस मुक्के का जवाब रात में दूंगी। ऐसी ऐसी जगह मारूंगी न जहाँ कभी मरवाने की सोचा भी नहीं होगा। " गुड्डी बोली और चाभी लेकर हवा हो गयी।
और अब मेरी निगाह रंजी के चेहरे पर पड़ी।
उसके चेहरे पर पहले ही नमक बहुत ज्यादा था लेकिन आज तो
तुम मुखातिब भी हो, सामने भी हो,
तुमको देखूँ कि तुमसे बात करूँ।
एक लट गोरे गुलाबी गाल को अदा से सहला रही थी।
बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में काजल की रेख कटार मार रही थी।
रंजी के गुलाबी गाल पहले ही गुलाबों को शर्मिंदा करते थे और आज उसपे हलका सा रूज का टच भी
और हलकी गुलाबी लिपस्टिक , रसीले होंठों को और रसीला बना रही थी।
एकदम आग ,…
" आज लगता है कुछ हो जाएगा। " मेरे मुंह से निकल गया
गुड्डी चली गयी थी .
रंजी मेरे पास आके सट गयी और मेरे कंधे पे हाथ रख के बोली ,
" तो हो जाने दो न,… भैया "
फिर बड़ी अदा से उसने अपनी जीभ हलके से होंठों पे फिराई और बोली।
' कभी न कभी तो होना ही है , तो आज ही हो जाए। "
मेरी हिम्मत बढ़ गयी और मेरा एक हाथ उसके पिछवाड़े की नाप जोख करने लगा।
उस शियर पिंक टॉप के साथ उसने जींस भी लो कट टाइट पहन रखी थी , एकदम चिपकी हुयी। वही जिसकी उसने मॉडलिंग की थी।
हलके से उसके नितम्बो को दबा के ,उसे अपनी ओर खींचते मैं बोला,
" तू मना तो नहीं करेगी। "
वो और पास सट गयी और अपने टॉप फाड़ते उरोजों को मेरे सीने पे हलके से रगड़ते बोली।
" क्यों मना करुँगी , वो भी अपने प्यारे भैय्या को। "
फिर कुछ रुक कर वो खिलखिलाई, और बोली।
चांदी की हजार घंटिया एक साथ बज गयीं।
" एक बात बोलूं , अगर मैं मना भी करूँ तो तुम मानना मत। मुझे कई बार जबरदस्ती बहुत अच्छी लगती है। "
तब तक गुड्डी आ गयी और साथ में वो रिक्शा भी लायी और हम दोनों अलग हो गए।
और गुड्डी को देखते ही रंजी ने पाला बदल लिया , और झट से गुड्डी के बगल में धंस कर बैठ गयी।
और जब मैंने रिक्शे में उन दोनों के साथ बैठने की कोशिश की ,
' नहीं नहीं नहीं" दोनों ने एक साथ मना कर दिया।
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