FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--151
लेकिन खजाने की ताली तो मेरी पास थी और आज कुछ भी हो उस खजाने का दरवाजा खुलना ही था।
गुड्डी की उंगलिया तो चार बच्चो की माँ को मिनटों में पिघला दें ,बिचारी रंजी तो नयी बछेड़ी थी।
गुड्डी कभी उसके खड़े निपल को दबाती , तो कभी नोच लेती। और नीचे शार्ट के ऊपर से गुड्डी , रंजी की प्रेमगली को अपनी हथेली से दबा दबा के रगड़ रही थी , सहला रही थी कभी दोनों फांको के बीच में उंगली घुसेड़ देती। शार्ट पर हल्का गीला धब्बा , रंजी की हालत दिखा रहा था।
मेरी निगाह एकदम अर्जुन की तरह उसी जगह चिपकी थी , चिड़िया की आँख पर।
लेकिन तभी कुछ हुआ जिससे फास्ट फारवर्ड होकर यह कन्या देह क्रीड़ा , अचानक कई पावदान पार पहुँच गयी।
गुड्डी ने कुछ कहा जिसके जवाब में रंजी ने बोला ' तेरी माँ की ,… "
और गुड्डी एकदम अल्ल्फ़ ,…
"साल्ली , भाईचोद , माँ तक पहुंचती है चल बताती हूँ तुझे ," और एक झटके में उसने एक हाथ से रंजी के दोनों हाथ मोड़ के , रंजी के पीठ के नीचे दबा दिए और खुद उसके ऊपर चढ़ बैठी , उसके खुले उरोजों के ठीक नीचे।
रंजी फड़फड़ा रही थी लेकिन अब वो न उठ सकती थी ,न अपने हाथ निकाल सकती थी , पूरी तरह अब गुड्डी के रहमोकरम पे।
और गुड्डी ने मुझे एक पल के लिए ऐसे देखा मानो बोल रही हो , देख तेरे सारे मायकेवालियों की यही हालत करुँगी।
मुझे सुबह का सपना याद आ गया।
गुड्डी हलके हलके प्यार भरे तमाचे रंजी के गाल पे मार रही थी और उससे होंठ खोलने के लिए कह रही थी।
मैं ध्यान से रंजी के चेहरे को देख रहा था।
वो हलके हलके मुस्करा रही थी और सर दायें बाये हिला के ना ना का इशारा कर रही थी।
साफ था इस खेल में और गुड्डी की गालियों में उसे भी मजा आ रहा है।
" खोलेगी सीधे से की नहीं , की एक दूँ कस के " गुड्डी थोड़ा चिढ के बोली।
और रंजी ने और जोर से अपने होंठ भींच लिए।
वो और चिढ़ा रही थी।
अबकी गुड्डी ने एक कस के लगाया , कान के नीचे और कस के एक हाथ से उसके नथुने भींच दिए।
बिचारी रंजी अब उसे सांस लेने में भी मुश्किल हो रही थी।
इतना काफी नहीं था , गुड्डी ने फिर दुहरा हमला किया। अपने लम्बे नाखूनों से जोर से उसने रंजी के पत्थर से कड़े , मस्ताये निपल पिंच किया और साथ ही अपनी उँगलियों से उसके गुलाबी डिम्पल वाले गाल को जोर से दबा दिया।
नतीजा वही हुआ जो होना था ,
रंजी ने चिड़िया के चोंच की तरह अपने होंठ खोल दिए।
" पूरा खोल , वरना नाक नहीं छोडूंगी " गुड्डी गरजी , और बिचारी रंजी ने कुछ देर किये पूरा मुंह खोल दिया।
और उसके बाद जो हुआ वो मैंने सिरफ नीली फिल्मों में देखा था और वो भी फेटिश वाली।
न मुझे उस का अंदाजा था न रंजी को।
जैसे बच्चे बबल गम मुंह में फुलाते है , गुड्डी ने थूक का एक बड़ा सा बबूला बनाया ,
रंजी बिना हिले देख रही थी , और कर भी क्या सकती थी। गुड्डी ने गाल जोर से दबा के उसका मुंह जबरन जो खुलवा रखा था।
मुझे मालूम हो गया था की अब क्या होना है और शायद रंजी को भी।
कुछ देर तक गुड्डी थूक का बड़ा सा गोला बनाये रही और फिर एक बार में ,… सीधे ,… रंजी के खुले मुंह में।
और रंजी उसे मुंह से निकालने की कोशिश की करती उसके पहले गुड्डी के होंठो ने रंजी के होंठ सील कर दिए और अब वो चूम नहीं रही थी , बल्कि कचकचा कर रंजी के होंठ चबा रही थी , काट रही थी।
साथ में गुड्डी की बनारस की कन्या क्रीड़ा पाठशाला की सीखी उंगलिया , रंजी के नवोदित उभारों पर तबले की थाप की तरह चल रही थीं।
रंजी के चेहरे से साफ लग रहा था उस पर और मस्ती चढ़ रही है।
कुछ देर के बाद गुड्डी ने होंठ हटाये , अपने हाथों का दबाव उसके गाल पे बढ़ाया और एक बार फिर रंजी के रसीले गुलाबी होंठ खुल गए ,
और एक और स्पिट बाल , पहले से भी बड़ा , रंजी के मुंह में।
एक के बाद एक ,… चार।
और गुड्डी ने मुस्करा के पूछा , क्यों हो गयी मुख शुद्धि।
और जब तक रंजी सम्हलती , थूक का एक और बडा सा गोला , लेकिन अबकी कुछ गाल पे भी पड़ गया।
गुड्डी ने उसे मक्खन से मुलायम गाल पे फैलाया और बोली , चल अब और चिक्कन हो गया. बाकी की मुख शुद्धि , चंदा भाभी कराएंगी बनारस में अभी तो ठीक से ट्रेलर भी नहीं है।
और मेरे कान में चंदा भाभी और मेरी भाभी के बीच की फोन की बात गूँज उठी , जिसमें भाभी ने चंदा भाभी से रंजी के बनारस जाने के बारे में कहा था और स्पीकर आन होने से दरवाजे के बाहर मुझे हर बात सुनाई दे रही थी चंदा भाभी की " अरे आवे दा ओह छिनार को। रोज काली काली झांट के छन्ने से छान कर सीधे मुंह में पीला नमकीन खारा शरबत पिलाऊंगी। लौट के जिले की सबसे नमकीन माल हो जायेगी। "
और शायद रंजी को भी यही बात याद आ रही थी।
लेकिन बातचीत का फायदा रंजी ने उठाया और बाजी पलट गयी।
अब रंजी ऊपर थी।
और वो गुड्डी से २१ नहीं तो उन्नीस भी नहीं थी।
( हालांकि दोनों उम्र में उन्नीस से कम थी , मिड टीन )
आँख नचा कर उसने गुड्डी को चिढ़ाया और मुझे दिखाते हुए गुड्डी के गाल जोर से दबा दिए और अब गुड्डी के होंठ खुल गए।
लेस्बियन रेस्लिंग में रंजी भी कम नहीं थी , आखिर कबड्डी क्वीन तो थी ही जी जी आई सी ( गवरमेंट गर्ल्स इंटर कालेज , रंजी का स्कूल ,) की। उसकी लम्बी गोरी टांगों के नीचे गुड्डी की बांहे दबी हुयी थीं अब वो हिल डुल नहीं सकती थी।
अबरंजी मुस्करा रही थी और बबल गम फुलाने की बारी उसकी थी।
रंजी ने गुड्डी का मुंह छोड़ दिया तब भी गुड्डी का मुंह खुला था और उसके चेहरे पर मुस्कराहट नाच रही थी।
और जब थूक का गोल गोल गोला रंजी ने उसके मुंह में छोड़ा , तो भी गुड्डी ने मुंह बंद नहीं किया , बल्कि लम्बी जीभ निकाल कर रंजी को दिखाया और चिढ़ाया भी।
लेकिन रंजी इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी। उसके मुंह ने गुड्डी की जीभ गड़प कर ली और उसे चूमने चूसने लगी।
और गुड्डी नीचे से अपनी जीभ उसके मुंह में ऐसे ठेल रही थी , जैसे विपरीत रति में कोई मर्द नीचे से अपना लिंग जोर जोर से जबरदस्ती ठेले।
और जब रंजी ने गुड्डी को छोड़ा , तो भी गुड्डी की जीभ बाहर निकली थी।
और कुछ देर ऊपर लेटी रंजी ने उसे तड़पाया , फिर उसके मुंह से लार का निकलता एक धागा सीधे गुड्डी के जीभ पे पहुँच गया , लेकिन तब भी रंजी ने लार टपकाना नहीं बंद किया
गुड्डी ने उठने की कोशिश की लेकिन रंजी ने धक्का देकर खिलखिलाते हुए वापस उसे पलंग पर गिरा दिया।
और एक हाथ से गुड्डी के बूब्स जोर जोर से दबाने लगी। और साथ में एक बार स्पिट बाल सीधे , गुड्डी के मुंह में
दोनों खिलंदड़ियों का यह खेल २०-२५ मिनट चला होगा की मैंने एक गलती कर दी.
वही गलती जो मर्दों से अक्सर होती है।
बीच में बोलने की गलती ,
वो भी बिना ये सोचे समझे की सामने कौन दो शोख बलाए हैं।
" मैं भी आ जाऊं " मैंने पूछ लिया।
दोनो जोर से खिलखिलाई जैसे सौ फुलझड़ियाँ एक साथ छूटी हों , फिर एक साथ बोलीं ,
" एकदम , तु्रन्त , देर किस बात की "
और तब मुझे अहसास हुआ , हाथ तो रंजी की गुलाबी टीन ब्रा से बंधे थे और पैर गुड्डी की ब्रा से।
आना क्या कुर्सी से हिलना डुलना भी असंभव था , दोनों दुष्टों ने गांठे इतनी कस के बाँधी थी
कुछ देर तक दोनों मुझे देखती रही , मुस्कारती रहीं , फिर गुड्डी ने आग उगली
" कैसे भैय्या हो , तेरी बहन का ये रसीला जोबन , ये गदराया मक्खन सा बदन , ये उफनती जवानी और तुम पास भी नहीं आ रहे हो। क्यों ये माल पसंद नहीं क्या ?" और ये कहते हुए एक बार फिर गुड्डी ने रंजी की चूंचियां दबा दी।
" अरे छोड़ यार हमी दोनों चलते हैं ना " रंजी ने उकसाया।
और पल भर में दोनों शोख हिरनियां मेरे पास कूद के आगयीं।
लेकिन मेरे पीछे, मैं उनकी बात सुन सकता था , उनकी कन्या गंध महसूस कर सकता था , लेकिन छूने को कौन कहे देख भी नहीं सकता था।
" तू पहले , तू पहले " दोनों में बहस चल रही थी।
" अरे यार तेरा भाई है ,कब से ललचा रहा है तुझे देख के " और इस बात ने शायद मामला तय कर दिया।
पहले रंजी के गरम गुलाबी होंठों ने मेरे इयर लोब्स को हलके से टच किया और वो फुसफुसाई , " भैय्या "
मैं तो जैसे आग पे लोट गया।
फिर सांप सी उसकी उंगलिया , मेरे पीछे गर्दन पर पीठ पर रेंगने लगी और साथ में मोटी नागिन सी रंजी की लटें मुझे छूने लगी।
बस पागल नहीं हुआ मैं।
और फिर रंजी के गाल मेरे गाल पेरगड़ने लगे।
मेरी आँखे अपने आप बंद हो गयीं।
" भैया सर पीछे करो न " वो प्यार से बोली , और मैंने सर पीछे कर लिया।
वो एक पल के लिए पीछे हट गयी।
और फिर सीधे उसके दहकते गुलाब मेरे होंठों पे ,
वो लब जिन्हे मैं सपने में भी छूने को तरसता था सीधे मेरे होंठों पर वो होंठ पर।
पहले तो उसने बस छू के हटा लिया , फिर जैसे हलके से सहलाते हुए फिर एक बार मेरे होंठों पे रख दिए , बस कुछ पलों के लिए , … और हटा लिए।
मैं तड़प के रह गया।
जैसे गरम तवे पे कोई पानी की छींटे मार दे और वो और दहक़ उठे , बस वैसे ही।
कर कुछ सकता नहीं था , हाथ पैर दोनों रंजी और गुड्डी की ब्रा से बंधे।
लेकिन अबकी जब घटा रंजी के लहराते बालों की झूम के मेरे चेहरे पे झुकी ,और अबकी उसके होंठों ने जोर की चुम्मी ली। और वो हटे भी नहीं , चूमते रहे चूसते रहे। फिर जैसे कोई आम की फांक उंगली से खोले , उसकी जीभ ने मेरे होंठ खोले और सीधे अंदर , मैं जोर जोर से उसकी जोभ चूस रहा था और वो मेरे होंठ।
वो चूसती रही , मैं चूसता रहां।
पांच -सात मिनट बाद गुड्डी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी ,
चल शुरू कर वरन दूँगी तेरे चूतड़ पे एक लात।
और रंजी ने होंठ हटा लिए और मेरे कान पेउन्हे रगड़ते बोली ,
" भैय्या , जरा अपना मुंह खोलो न ,और बड़ा , थोड़ा और एकदम लड्डू के लालच में जैसा खोलते हो न ,… हाँ हाँ ऐसा "
मैने खूब बड़ा सा मुंह खोल दिया।
और फिर एक खूब बड़ा सा स्पिट बाल , सीधे मेरे मुंह में।
रंजी के मुंह से
और आँख नचाकर वो शोख बोली।
" क्यों भैया , कैसा लगा बहन का स्वाद ,और फिर दूसरा स्पिट बाल ,सीधे फिर मुंह के अंदर।
" हे क्या खाली अपनी बहन के मजे लोगे , माना तुम हो पैदायशी बहनचोद , " खिलखिलाती हुयी गुड्डी बोली , और रंजी अब पीछे हट गयी।
और अब गुड्डी का नंबर था।
फिर तो ऐसी चांदमारी शुरू हुयी की पूछिये मत ,…
पहले बारी बारी से , फिर एक साथ।
फिर बाजी बद के , किसका निशाना पक्का है।
गुड्डी दो बार चुकी , फिर रंजी भी , सीधे चेहरे पे।
और ऊपर से भोला चेहरा बना के बोलती , सारी भैया।
गुड्डी ने उसे उकसाया , हे सिंहासन पे बैठ न फिर निशाना मार।
रंजी एकदम तन्नाये , खड़े बांस ऐसे शार्ट फाड़ते जंगबहादुर पे सट्ट से बैठ गयी और अपने चूत्तड हलके हलके रगड़ने लगी।
लेकिन रंजी की शैतानियाँ रुकने का नाम नहीं ले रही थीं।
कभी उसके होंठ झप्पटा मार के मेरे सीने पे काट लेते निपल को तो कभी वो अपने लम्बे नाखूनों से खरोंच लेती।
और कुछ देर ऐसे तंग करके ,अपने गदराये जोबन मेरे सीने पे रगड़ने लगी।
मैं पागल हो रहा था।
लेकिन हाथ पैर तो बंधे थे , एक मिनट के लिए हाथ पैर खुल जाते तो ,
और ये बात रंजी को भी मालूम थी , इसलिए वो मुस्करा रही थी , मुझे छेड़ रही थी।
और कुछ ही देर में डबल पेस अटैक के तौर पर गुड्डी भी शामिल हो गयी।
एक के उरोज सीने पे दूसरे के पीठ पे ,
एक एक गाल काटती तो दूसरी दूसरा।
और साथ में रंजी का अपनी गांड की दरार मेरे तन्नाये , शार्ट फाड़ते लंड पे जोर जोर से रगड़ रही थी।
" हे खोल दूँ , इसे बहुत तड़प रहा है " रंजी ने मेरी शार्ट की ओर ललचाई निगाह से देखते कहा।
"चल पहले तेरी खोलती हूँ , बहुत तेरी झांटे सुलग रही हैं " ये कह के गुड्डी ने रंजी को एक बार फिर डबल बेड पे खींच लिया।
उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइ रंजी बहुत जोर से चिल्लाई।" झांटे है कहाँ जो सुलगेंगी। सब पे तो वैक्सिंग हो गयी। और आने के पहले एक बार फिर रिमूवर लगाया था। एकदम चिकना है। "
वो शोख बोली।
चल अभी चेक करती हूँ और जब तक रंजी सम्हलती , उसकी शार्ट गुड्डी के हाथ में।
रंजी सिर्फ एक छोटी सी थांग में , वही जो मैं उसके लिए होली में बनारस से लाया था।
मुश्किल से दो अंगुल की रही होगी।
गुड्डी उसके पीछे पड़ गयी। दोनों हाथों से थांग खोलने के चक्कर में।
गुड्डी के दोनों हाथ उसी में फंसे थे। रंजी यही तो चाहती थी , मौका देख के उसने पलटा मारा और अब गुड्डी की शार्ट उसके हाथ में।
गुड्डी की छोटी सी लेसी पैंटी दिख रही थी।
लेकिन गुड्डी अगले पल रंजी के ऊपर सवार थी ,
दोनों ने एक दूसरे की शार्ट सीधे मेरे ऊपर फ़ेंक दी।
और गुत्थमगुथा चालु थी।
,
रंजी की दोनों टाँगे फैली थी और ठीक उसकी टांगो के बीच उसकी चुन्मुनिया पर अपनी गुलाबी परी को घिस्से मार मार कर रगड़ रही थी ,
सिसकियों के बीच दोनों फुसफुसा भी रही थीं
मुझे सिर्फ इतना सुनाई दिया , " तेरे प्यारे भैय्या हैं , तू कर न। "
रंजी के भारी भारी गदराये चूतड़ , उसने थोड़ा एक घिस्सा मारा और सरक के पलंग के किनारे आ गयी।
उसके दोनों लम्बे गोरे गोरे खूबसूरत पैर अब पलंग के बाहर आगये थे।
लेकिन मेरी निगाहें तो उन दोनों पैरों के बीच ,मखमली जाँघों के बीच एक दो इंच की गुलाबी थांग से मुश्किल से छुपे , ढंके कारूं के खजाने की ओर चिपकी थी , जिसके बारे में सोच सोच के मैंने न जाने कितनी बार मुट्ठ मारी थी। ( मुझे अब पता चला था की उनके बारे में सोच सोच के मुट्ठ मारने वाला मैं अकेला न था , शहर के सैकड़ों लड़के थे )
और मुझे क्या पता था की उन नटखट , शोख पैरों का निशाना क्या था।
और जबतक पता चले बहुत देर हो चुकी थी।
रंजी ने अपने गोरे गुलाबी पैरों से मेरा शार्ट खींच लिया।
और जंगबहादुर झट से बाहर आ गए।
एकदम तन्नाये , गुस्साए जैसे कोई शेर पिंजड़े से निकले , भूखा , शिकार के लिए बेचैन ,
शिकार तो सामने ही था , लेकिन मेरे हाथ पैर बंधे थे और शिकार खुद ललचा रहा था , छेड़ रहा था।
रंजी तो , बस आज आग लगाने पे तुली थी।
मेरी शार्ट सरक कर घुटने में फँसी थी ,हाथ कुर्सी के पीछे रंजी की गुलाबी टीन ब्रा से बंधे थे और पैर गुड्डी की हाफ कप लेसी ब्रा से।
और खूंटा खड़ा , कुतुबमीनार की तरह हवा में उठा , पूरे एक बित्ते का , रंजी की पतली कलाई से भी मोटा।
रंजी आज मेरे खूंटे की ऐसी की तैसी करने पे तुली थी।
उसके दोनों तलुओं ने मेरे तन्नाये लंड को दबोच लिया और जोर से वो दबाती रही।
फिर जैसे कोई गाँव की गोरी ग्वालन , अपने हाथों में मथानी ले के दही मथे , बस एकदम उसी तरह। सिर्फ हाथों की जगह रंजी के पैर थे ,न ताकत और पकडने में कोई कमी , न बिलोड़ने में।
और साथ में रुन झुन रुन झुन , चुरमुर चुरमुर , रंजी के पायल की हजार चांदी के घुंघरुओं की आवाजें।
बिचारे जंगबहादुर ,मजा तो उन्हें बहुत आ रहा था लेकिन हालत भी खराब हो रही थी , एक गोरी उफनते जोबन वाली किशोरी के पैरों के बीच दब के। पैरों के जोरसे उसने सुपाड़ा भी खोल दिया था , चमड़ी नीचे खींच के।
कुछ देर बाद रंजी ने पैंतरा बदला।
और अब उसका बायां अंगूठा , मेरे खुले , पहाड़ी आलू के बराबर सुपाड़े को प्रेस कर रहा था। फिर अचानक उसने अपने रंगे अंगूठे के नाख़ून से मूत्र छिद्र में सुरसुरी कर दी और मैं मारे जोश के उचक पड़ा।
लेकिन उस शोख को क्या फरक पड़ना था , आज तो बस क़त्ल की रात थी।
दूसरा पैर कौन शरीफ था।
मेरे मारे जोश के पागल , पेल्हड़ ( बाल्स ) को उसने निशाना बनाया और वहां से लेके पिछवाड़े के छेद तक रगड़घिस्स करने लगी।
मैं कभी सिसकियाँ भरता कभी चूतड़ उचकाता।
और तक सामने का सीन बदल गया था।
गुड्डी और रंजी दोनों 69 की पोज में थीं , गुड्डी ऊपर , रंजी नीचे।
लेकिन रंजी की नाफ़रमानियाँ कुछ कम नहीं हुयी।
अब जैसे जूते में कील ठोकते हुए मोची उसे निहाई पर रखता है और हथौड़े से ठोंकता है , बिलकुल उसी तरह।
दायें पैर को उसने लिंग और पैर के बीच में रखा और उससे सपोर्ट सा दिया और बाएं पैर से आगे पीछे आगे पीछे , तलवे को सुपाड़े से लेकर एकदम बेस तक जोर जोर से , बार बार रंजी रगड़ रही थी।
गुड्डी कौन कम थी।
अगर रंजी मेरी ऐसी की तैसी करने पे जुटी थी तो गुड्डी रंजी की ले रही थी , हचक के।
गुड्डी ने पहले तो थांग के ऊपर से ही रंजी की चुन्मुनिया को चूसना चुभलाना शुरू किया।
रंजी की पूरी देह गिनगिना रही थी ,पत्ते की तरह काँप रही थी।
फिर गुड्डी ने वोकिया जिसके लिए मैं न जाने कब से तड़प रहा था।
चूत दर्शन।
रंजी की थांग उसने जरा सी सरका दी और मुझे गुलाबी परी का दर्शन मिल गया।
एकदम कसे कसे दो गुलाबी होंठ , लेकिन जोर से चिपके , जैसे कभी अलग ही न होना चाहे।
हलके हलके गीले , जोश के पानी से जैसे लिप ग्लॉस थोड़ा ज्यादा लग गया हो।
एकदम चिकनी , एक भी बाल नहीं।
कुछ मस्ती में कुछ शरमा , हिचकिचा के रंजी अपनी दोनों खुली गोरी चिकनी जांघे समेटने की कोशिश कर रही थी , लेकिन गुड्डी ने उसे पूरी तरह नाकमायब कर दिया।
गुड्डी अपने जबरदस्त हाथों से रंजी के दोनों जांघो को दबाये हुए ,फैलाये हुए थी।
रंजी कसमसा रही थी , चूतड़ उचका रही थी , लेकिन न गुड्डी की पकड़ से निजात थी और न ही गुड्डी की नदीदी , शरारती जीभ से।
गुड्डी की जीभ की टिप रंजी की खुली गुलाबी कली के ऊपर लहर रही थी और सिर्फ टिप गुड्डी ने छुला दी।
रंजी को तो जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लग गया।
जोर से सिसकी वो।
और गुड्डी तो आज यही सुनना चाहती थी , रंजी की सिसकियाँ , मस्ती भरी चीखें।
आज घर पर सिरफ वो और रंजी थीं , पूरा कब्ज़ा था उसका।
गुड्डी ने दुहरा हमला बोल दिया और अब उसके दोनों हाथों के अंगूठे , रंजी की फुद्दी की पुत्तियों को बाहर से सहला रहे थे , दबा रहे।
और बीच की पतली सी दरार में , उसकी जीभ अब लपड़ लपड़ चाट रही थी।
रंजी गिनगिना रही थी , तेज हवा में पत्ते की तरह काँप रही थी।
लेकिन उससे रंजी की शरारतें कम नहीं हुयी थीं , बल्कि बढ़ गयी थी
उसके दोनों तलुवे अब और जोर से बिना रुके मथानी की तरह मेरे लंड को मथ रहे थे।
यह लंड मंथन दस मिनट से ज्यादा ही चल रहा था , बिना रुके।
मैं भी रंजी की तरह सिसक रहा था , चूतड़ उचका रहा था , लेकिन इससे ज्यादा मैं कुछ कर भी नहीं सकता था। मेरे हाथ पैर दोनों रंजी और गुड्डी की ब्रा से बंधे थे। मैंने बहुत कोशिश की , लेकिन गांठे उन दोनों ने बहुत कस के बाँध रखी थीं।
अगर एक पल के भी लिए मेरे हाथ पैर खुल जाते न तो मैं आज रंजी की ,…
और गुड्डी ने मेरे मन को भांप कर , अपना सर गुड्डी के कुंवारे अक्षत योनिद्वार से उठाया और मुझे दिखा के ललचा के बोली ,
" हे प्यारी बहना के प्यारे भैय्या , चाहिए इस बहना का ,… "
हाथ पैर भले बंधे हो , मुंह तो खुला था।
" नेकी और पूछ पूछ , " मैंने जोर से अपने खुले तन्नाये जंगबहादुर को उचका के जवाब दिया।
और अब गुड्डी ने रंजी के ऊपर से हटते हुए यही सवाल रंजी से किया।
" मेरे प्यारे भैया है , जब चाहे जित्ती बार चाहें जैसे चाहें , मैंने न कभी मना किया है , न करुँगी " अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचा के रंजी ,मेरी मेरी ममेरी बहन अपने मस्त किशोर उभारों को और उभार के मुझे ललचाते बोली।
" भैय्या की बहना आज बताती हूँ तुझे " गुड्डी बुदबुदाई और जोर जोर से अपनी हथेली से थांग के ऊपर से ही चुन्मुनिया रगड़ने लगी।
" उईइइइइइइइइइइइइ मेरी माँ क्या करती है , छोड़ न। ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह छोड़ छोड़ " रंजी जोर जोर से सिसक रही थी।
बिना रुके गुड्डी ने रगड़ना और तेज कर दिया और बोली
" साल्ली , नौटंकी। अभी तेरे भैया का बित्ते भर का घुसेगा न कलाई से भी मोटा , मूसल। दरेरता , रगड़ता , फाड़ता। बहुत परपरायेगी तेरी चुन्मुनिया तो भी हंस के रो के घोंट ही लेगी और मेरी जरा सी ऊँगली से मुंह बिचका रही है। "
और फिर गुड्डी ने मेरी ओर रुख किया है ,
" हे देखना है क्या कारूं का खजाना , जिसपे तेरे शहर के सारे लौंडों की नजर लगी है " और गुड्डी ने रंजी की थांग खोल दी।
अब मैं एकदम खुल के देख रहा था।
रंजी बैठी थी , और अब गुड्डी ने जबरन उसके पैरों में पैर फंसा के जांघे पूरी तरह खुलवा रखी थीं।
दो गुलाबी फांके , एकदम चिकनी और गुड्डी ने पूरी ताकत से उन्हें फैलाने की कोशिश की , लेकिन बहुत मुश्किल से जरा सी दरार दिखी।
बहुत टाइट है इसकी , मैंने मन में सोचा।
" तेरी तो लगता है कभी फिंगरिंग भी नही हुयी ढंग से " गुड्डी फुसफुसाई।
और सर हिलाके सिसकते रंजी ने हामी भरी।
मुश्किल से खुली गुलाबी दरार में , अपनी तरजनी की टिप ढकेलने की कोशिश करती , गुड्डी ने मुझे ललकारा ,
" मार लो अपनी बहना की। बहुत गरमायी है , साल्ली। '
रंजी की चूत खूब पनिया गयी थी।
मस्ती से मैं पगला रहा था। आखिर इत्ते दिनों से इसी के लिए तड़प रहा था मैं।
बोल न चहिये क्या। गुड्डी ने फिर चढ़ाया मुझको।
क्या चाहिए क्सिकी चहिये , खुल के बोल।
" इसकी " मैं बोला फिर मैं समझ गया गुड्डी क्या सुनना चाहती है और उसके बिना कुछ मिलने वाला नहीं।
" वही इसकी , रंजी मेरी बहन की , फिर मैंने थोड़ा थूक गटका और बोला ,
' इसकी रसीली चूत "
" अरे तो ले लो न , बहन चुदवासी चुदने को तैयार , भाई चोदने को बेचैन , तो मैं कौन होती हूँ , तुझे बहनचोद बनने से रोकने वाली। " गुड्डी खिलखिलाती हुयी बोली।
मुझे लगा की वो घडी आ गयी जिसका मुझे इतने दिनों से इन्तजार था।
लेकिन
तब तक किसी और घडी का अलार्म बज उठा बज उठा था घन घन घन घन।
और दोनों एक साथ उछल पड़ीं।
ब्रा दोनों कि मेरे हाथ पैरों में बंधी थी और थांग भी दोनों ने एकदूसरे की उतार के मेरे ऊपर फ़ेंक दी थी।
" जल्दी कर " गुड्डी बोली और बिना ब्रा थांग के दोनों ने तुरत फुरत शार्ट और शर्ट पहन ली और पलंग से उत्तर ली।
बल्कि रंजी ने तो मारे जल्दी के सिर्फ शॉर्ट्स पहन लिया और छोटी सी शर्ट कंधे पर टिका ली।
उसके उन्नत उरोज अभी भी मुझे चुनौती दे रहे थे।
गुड्डी ने हँसते हुए जोर से एक चपत उसके चूतड़ पे लगायी।
"अरे कहाँ भागी जा रही है एक सेल्फी तो ले ले , इत्ता मस्त खूंटा खड़ा किया है। "
और रंजी रुक कर बैठ गयी , मुस्कराती , अपने स्मार्ट फोन के साथ जो मैंने उसे गिफ्ट किया था।
मेरा खूंटा , सीधे उसकी तनी चूंची से रगड़ खा रहा था।
दुष्ट रंजी , उसने अपने तने निपल को मेरे सुपाड़े के छेद पे रगड़ा और दो सेल्फी ले ली।
" अरे एक चुम्मी तो ले ले बिचारे की , इतना तड़प रहा है बिचारा। " गुड्डी ने फिर छेड़ा।
"एकदम मेरे प्यारे भैय्या है , " मुझे देख कर वो मुस्करा के बोली और फिर एक चुम्मी सीधे होंठो पे।
लेकिन सेल्फी उसने ली , जंगबहादुर को किस करते हुए।
थोड़ी देर सुपाड़े पे उसने होंठ रगडा , सेल्फी ली और फिर , गप्प से आधा घोंट लिया और दुबारा एक सेल्फी ली।
बिचारे जंगबहादुर , सोच रहे थे की की चलो नीचे वाले होंठ का मजा नहीं मिला तो ऊपर का ही सही।
लेकिन , आज कल की लड़कियां सेल्फी खींची चलती बनी।
और रंजी भी धड़धड़ सीढ़ी से नीचे
और पीछे पीछे गुड्डी भी।
" हे पोस्ट किया " गुड्डी की आवाज सुनाई दी।
" बस जस्ट अभी पोस्ट किया फेसबुक पे , ये देख ४५ लाइक्स भी आ गए और दिया और जिया ने शेयर भी कर दिया। व्हाट्सऐप पे भेज रही हूँ। " रंजी खिखिलाते बोली।
और ऊपर मैं बंधा , छना हाथ पैर हिल भी नहीं सकते थे इस हालत में पड़ा। बौराये जंगबहादुर शॉर्ट्स से बाहर।
" अरे नालायको मुझे तो खोल दो। " मैं चिल्लाया पर अपनी मस्ती में मस्त वो दोनों कहाँ सुनने वाली।
फागुन के दिन चार--151
लेकिन खजाने की ताली तो मेरी पास थी और आज कुछ भी हो उस खजाने का दरवाजा खुलना ही था।
गुड्डी की उंगलिया तो चार बच्चो की माँ को मिनटों में पिघला दें ,बिचारी रंजी तो नयी बछेड़ी थी।
गुड्डी कभी उसके खड़े निपल को दबाती , तो कभी नोच लेती। और नीचे शार्ट के ऊपर से गुड्डी , रंजी की प्रेमगली को अपनी हथेली से दबा दबा के रगड़ रही थी , सहला रही थी कभी दोनों फांको के बीच में उंगली घुसेड़ देती। शार्ट पर हल्का गीला धब्बा , रंजी की हालत दिखा रहा था।
मेरी निगाह एकदम अर्जुन की तरह उसी जगह चिपकी थी , चिड़िया की आँख पर।
लेकिन तभी कुछ हुआ जिससे फास्ट फारवर्ड होकर यह कन्या देह क्रीड़ा , अचानक कई पावदान पार पहुँच गयी।
गुड्डी ने कुछ कहा जिसके जवाब में रंजी ने बोला ' तेरी माँ की ,… "
और गुड्डी एकदम अल्ल्फ़ ,…
"साल्ली , भाईचोद , माँ तक पहुंचती है चल बताती हूँ तुझे ," और एक झटके में उसने एक हाथ से रंजी के दोनों हाथ मोड़ के , रंजी के पीठ के नीचे दबा दिए और खुद उसके ऊपर चढ़ बैठी , उसके खुले उरोजों के ठीक नीचे।
रंजी फड़फड़ा रही थी लेकिन अब वो न उठ सकती थी ,न अपने हाथ निकाल सकती थी , पूरी तरह अब गुड्डी के रहमोकरम पे।
और गुड्डी ने मुझे एक पल के लिए ऐसे देखा मानो बोल रही हो , देख तेरे सारे मायकेवालियों की यही हालत करुँगी।
मुझे सुबह का सपना याद आ गया।
गुड्डी हलके हलके प्यार भरे तमाचे रंजी के गाल पे मार रही थी और उससे होंठ खोलने के लिए कह रही थी।
मैं ध्यान से रंजी के चेहरे को देख रहा था।
वो हलके हलके मुस्करा रही थी और सर दायें बाये हिला के ना ना का इशारा कर रही थी।
साफ था इस खेल में और गुड्डी की गालियों में उसे भी मजा आ रहा है।
" खोलेगी सीधे से की नहीं , की एक दूँ कस के " गुड्डी थोड़ा चिढ के बोली।
और रंजी ने और जोर से अपने होंठ भींच लिए।
वो और चिढ़ा रही थी।
अबकी गुड्डी ने एक कस के लगाया , कान के नीचे और कस के एक हाथ से उसके नथुने भींच दिए।
बिचारी रंजी अब उसे सांस लेने में भी मुश्किल हो रही थी।
इतना काफी नहीं था , गुड्डी ने फिर दुहरा हमला किया। अपने लम्बे नाखूनों से जोर से उसने रंजी के पत्थर से कड़े , मस्ताये निपल पिंच किया और साथ ही अपनी उँगलियों से उसके गुलाबी डिम्पल वाले गाल को जोर से दबा दिया।
नतीजा वही हुआ जो होना था ,
रंजी ने चिड़िया के चोंच की तरह अपने होंठ खोल दिए।
" पूरा खोल , वरना नाक नहीं छोडूंगी " गुड्डी गरजी , और बिचारी रंजी ने कुछ देर किये पूरा मुंह खोल दिया।
और उसके बाद जो हुआ वो मैंने सिरफ नीली फिल्मों में देखा था और वो भी फेटिश वाली।
न मुझे उस का अंदाजा था न रंजी को।
जैसे बच्चे बबल गम मुंह में फुलाते है , गुड्डी ने थूक का एक बड़ा सा बबूला बनाया ,
रंजी बिना हिले देख रही थी , और कर भी क्या सकती थी। गुड्डी ने गाल जोर से दबा के उसका मुंह जबरन जो खुलवा रखा था।
मुझे मालूम हो गया था की अब क्या होना है और शायद रंजी को भी।
कुछ देर तक गुड्डी थूक का बड़ा सा गोला बनाये रही और फिर एक बार में ,… सीधे ,… रंजी के खुले मुंह में।
और रंजी उसे मुंह से निकालने की कोशिश की करती उसके पहले गुड्डी के होंठो ने रंजी के होंठ सील कर दिए और अब वो चूम नहीं रही थी , बल्कि कचकचा कर रंजी के होंठ चबा रही थी , काट रही थी।
साथ में गुड्डी की बनारस की कन्या क्रीड़ा पाठशाला की सीखी उंगलिया , रंजी के नवोदित उभारों पर तबले की थाप की तरह चल रही थीं।
रंजी के चेहरे से साफ लग रहा था उस पर और मस्ती चढ़ रही है।
कुछ देर के बाद गुड्डी ने होंठ हटाये , अपने हाथों का दबाव उसके गाल पे बढ़ाया और एक बार फिर रंजी के रसीले गुलाबी होंठ खुल गए ,
और एक और स्पिट बाल , पहले से भी बड़ा , रंजी के मुंह में।
एक के बाद एक ,… चार।
और गुड्डी ने मुस्करा के पूछा , क्यों हो गयी मुख शुद्धि।
और जब तक रंजी सम्हलती , थूक का एक और बडा सा गोला , लेकिन अबकी कुछ गाल पे भी पड़ गया।
गुड्डी ने उसे मक्खन से मुलायम गाल पे फैलाया और बोली , चल अब और चिक्कन हो गया. बाकी की मुख शुद्धि , चंदा भाभी कराएंगी बनारस में अभी तो ठीक से ट्रेलर भी नहीं है।
और मेरे कान में चंदा भाभी और मेरी भाभी के बीच की फोन की बात गूँज उठी , जिसमें भाभी ने चंदा भाभी से रंजी के बनारस जाने के बारे में कहा था और स्पीकर आन होने से दरवाजे के बाहर मुझे हर बात सुनाई दे रही थी चंदा भाभी की " अरे आवे दा ओह छिनार को। रोज काली काली झांट के छन्ने से छान कर सीधे मुंह में पीला नमकीन खारा शरबत पिलाऊंगी। लौट के जिले की सबसे नमकीन माल हो जायेगी। "
और शायद रंजी को भी यही बात याद आ रही थी।
लेकिन बातचीत का फायदा रंजी ने उठाया और बाजी पलट गयी।
अब रंजी ऊपर थी।
और वो गुड्डी से २१ नहीं तो उन्नीस भी नहीं थी।
( हालांकि दोनों उम्र में उन्नीस से कम थी , मिड टीन )
आँख नचा कर उसने गुड्डी को चिढ़ाया और मुझे दिखाते हुए गुड्डी के गाल जोर से दबा दिए और अब गुड्डी के होंठ खुल गए।
लेस्बियन रेस्लिंग में रंजी भी कम नहीं थी , आखिर कबड्डी क्वीन तो थी ही जी जी आई सी ( गवरमेंट गर्ल्स इंटर कालेज , रंजी का स्कूल ,) की। उसकी लम्बी गोरी टांगों के नीचे गुड्डी की बांहे दबी हुयी थीं अब वो हिल डुल नहीं सकती थी।
अबरंजी मुस्करा रही थी और बबल गम फुलाने की बारी उसकी थी।
रंजी ने गुड्डी का मुंह छोड़ दिया तब भी गुड्डी का मुंह खुला था और उसके चेहरे पर मुस्कराहट नाच रही थी।
और जब थूक का गोल गोल गोला रंजी ने उसके मुंह में छोड़ा , तो भी गुड्डी ने मुंह बंद नहीं किया , बल्कि लम्बी जीभ निकाल कर रंजी को दिखाया और चिढ़ाया भी।
लेकिन रंजी इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी। उसके मुंह ने गुड्डी की जीभ गड़प कर ली और उसे चूमने चूसने लगी।
और गुड्डी नीचे से अपनी जीभ उसके मुंह में ऐसे ठेल रही थी , जैसे विपरीत रति में कोई मर्द नीचे से अपना लिंग जोर जोर से जबरदस्ती ठेले।
और जब रंजी ने गुड्डी को छोड़ा , तो भी गुड्डी की जीभ बाहर निकली थी।
और कुछ देर ऊपर लेटी रंजी ने उसे तड़पाया , फिर उसके मुंह से लार का निकलता एक धागा सीधे गुड्डी के जीभ पे पहुँच गया , लेकिन तब भी रंजी ने लार टपकाना नहीं बंद किया
गुड्डी ने उठने की कोशिश की लेकिन रंजी ने धक्का देकर खिलखिलाते हुए वापस उसे पलंग पर गिरा दिया।
और एक हाथ से गुड्डी के बूब्स जोर जोर से दबाने लगी। और साथ में एक बार स्पिट बाल सीधे , गुड्डी के मुंह में
दोनों खिलंदड़ियों का यह खेल २०-२५ मिनट चला होगा की मैंने एक गलती कर दी.
वही गलती जो मर्दों से अक्सर होती है।
बीच में बोलने की गलती ,
वो भी बिना ये सोचे समझे की सामने कौन दो शोख बलाए हैं।
" मैं भी आ जाऊं " मैंने पूछ लिया।
दोनो जोर से खिलखिलाई जैसे सौ फुलझड़ियाँ एक साथ छूटी हों , फिर एक साथ बोलीं ,
" एकदम , तु्रन्त , देर किस बात की "
और तब मुझे अहसास हुआ , हाथ तो रंजी की गुलाबी टीन ब्रा से बंधे थे और पैर गुड्डी की ब्रा से।
आना क्या कुर्सी से हिलना डुलना भी असंभव था , दोनों दुष्टों ने गांठे इतनी कस के बाँधी थी
कुछ देर तक दोनों मुझे देखती रही , मुस्कारती रहीं , फिर गुड्डी ने आग उगली
" कैसे भैय्या हो , तेरी बहन का ये रसीला जोबन , ये गदराया मक्खन सा बदन , ये उफनती जवानी और तुम पास भी नहीं आ रहे हो। क्यों ये माल पसंद नहीं क्या ?" और ये कहते हुए एक बार फिर गुड्डी ने रंजी की चूंचियां दबा दी।
" अरे छोड़ यार हमी दोनों चलते हैं ना " रंजी ने उकसाया।
और पल भर में दोनों शोख हिरनियां मेरे पास कूद के आगयीं।
लेकिन मेरे पीछे, मैं उनकी बात सुन सकता था , उनकी कन्या गंध महसूस कर सकता था , लेकिन छूने को कौन कहे देख भी नहीं सकता था।
" तू पहले , तू पहले " दोनों में बहस चल रही थी।
" अरे यार तेरा भाई है ,कब से ललचा रहा है तुझे देख के " और इस बात ने शायद मामला तय कर दिया।
पहले रंजी के गरम गुलाबी होंठों ने मेरे इयर लोब्स को हलके से टच किया और वो फुसफुसाई , " भैय्या "
मैं तो जैसे आग पे लोट गया।
फिर सांप सी उसकी उंगलिया , मेरे पीछे गर्दन पर पीठ पर रेंगने लगी और साथ में मोटी नागिन सी रंजी की लटें मुझे छूने लगी।
बस पागल नहीं हुआ मैं।
और फिर रंजी के गाल मेरे गाल पेरगड़ने लगे।
मेरी आँखे अपने आप बंद हो गयीं।
" भैया सर पीछे करो न " वो प्यार से बोली , और मैंने सर पीछे कर लिया।
वो एक पल के लिए पीछे हट गयी।
और फिर सीधे उसके दहकते गुलाब मेरे होंठों पे ,
वो लब जिन्हे मैं सपने में भी छूने को तरसता था सीधे मेरे होंठों पर वो होंठ पर।
पहले तो उसने बस छू के हटा लिया , फिर जैसे हलके से सहलाते हुए फिर एक बार मेरे होंठों पे रख दिए , बस कुछ पलों के लिए , … और हटा लिए।
मैं तड़प के रह गया।
जैसे गरम तवे पे कोई पानी की छींटे मार दे और वो और दहक़ उठे , बस वैसे ही।
कर कुछ सकता नहीं था , हाथ पैर दोनों रंजी और गुड्डी की ब्रा से बंधे।
लेकिन अबकी जब घटा रंजी के लहराते बालों की झूम के मेरे चेहरे पे झुकी ,और अबकी उसके होंठों ने जोर की चुम्मी ली। और वो हटे भी नहीं , चूमते रहे चूसते रहे। फिर जैसे कोई आम की फांक उंगली से खोले , उसकी जीभ ने मेरे होंठ खोले और सीधे अंदर , मैं जोर जोर से उसकी जोभ चूस रहा था और वो मेरे होंठ।
वो चूसती रही , मैं चूसता रहां।
पांच -सात मिनट बाद गुड्डी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी ,
चल शुरू कर वरन दूँगी तेरे चूतड़ पे एक लात।
और रंजी ने होंठ हटा लिए और मेरे कान पेउन्हे रगड़ते बोली ,
" भैय्या , जरा अपना मुंह खोलो न ,और बड़ा , थोड़ा और एकदम लड्डू के लालच में जैसा खोलते हो न ,… हाँ हाँ ऐसा "
मैने खूब बड़ा सा मुंह खोल दिया।
और फिर एक खूब बड़ा सा स्पिट बाल , सीधे मेरे मुंह में।
रंजी के मुंह से
और आँख नचाकर वो शोख बोली।
" क्यों भैया , कैसा लगा बहन का स्वाद ,और फिर दूसरा स्पिट बाल ,सीधे फिर मुंह के अंदर।
" हे क्या खाली अपनी बहन के मजे लोगे , माना तुम हो पैदायशी बहनचोद , " खिलखिलाती हुयी गुड्डी बोली , और रंजी अब पीछे हट गयी।
और अब गुड्डी का नंबर था।
फिर तो ऐसी चांदमारी शुरू हुयी की पूछिये मत ,…
पहले बारी बारी से , फिर एक साथ।
फिर बाजी बद के , किसका निशाना पक्का है।
गुड्डी दो बार चुकी , फिर रंजी भी , सीधे चेहरे पे।
और ऊपर से भोला चेहरा बना के बोलती , सारी भैया।
गुड्डी ने उसे उकसाया , हे सिंहासन पे बैठ न फिर निशाना मार।
रंजी एकदम तन्नाये , खड़े बांस ऐसे शार्ट फाड़ते जंगबहादुर पे सट्ट से बैठ गयी और अपने चूत्तड हलके हलके रगड़ने लगी।
लेकिन रंजी की शैतानियाँ रुकने का नाम नहीं ले रही थीं।
कभी उसके होंठ झप्पटा मार के मेरे सीने पे काट लेते निपल को तो कभी वो अपने लम्बे नाखूनों से खरोंच लेती।
और कुछ देर ऐसे तंग करके ,अपने गदराये जोबन मेरे सीने पे रगड़ने लगी।
मैं पागल हो रहा था।
लेकिन हाथ पैर तो बंधे थे , एक मिनट के लिए हाथ पैर खुल जाते तो ,
और ये बात रंजी को भी मालूम थी , इसलिए वो मुस्करा रही थी , मुझे छेड़ रही थी।
और कुछ ही देर में डबल पेस अटैक के तौर पर गुड्डी भी शामिल हो गयी।
एक के उरोज सीने पे दूसरे के पीठ पे ,
एक एक गाल काटती तो दूसरी दूसरा।
और साथ में रंजी का अपनी गांड की दरार मेरे तन्नाये , शार्ट फाड़ते लंड पे जोर जोर से रगड़ रही थी।
" हे खोल दूँ , इसे बहुत तड़प रहा है " रंजी ने मेरी शार्ट की ओर ललचाई निगाह से देखते कहा।
"चल पहले तेरी खोलती हूँ , बहुत तेरी झांटे सुलग रही हैं " ये कह के गुड्डी ने रंजी को एक बार फिर डबल बेड पे खींच लिया।
उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइ रंजी बहुत जोर से चिल्लाई।" झांटे है कहाँ जो सुलगेंगी। सब पे तो वैक्सिंग हो गयी। और आने के पहले एक बार फिर रिमूवर लगाया था। एकदम चिकना है। "
वो शोख बोली।
चल अभी चेक करती हूँ और जब तक रंजी सम्हलती , उसकी शार्ट गुड्डी के हाथ में।
रंजी सिर्फ एक छोटी सी थांग में , वही जो मैं उसके लिए होली में बनारस से लाया था।
मुश्किल से दो अंगुल की रही होगी।
गुड्डी उसके पीछे पड़ गयी। दोनों हाथों से थांग खोलने के चक्कर में।
गुड्डी के दोनों हाथ उसी में फंसे थे। रंजी यही तो चाहती थी , मौका देख के उसने पलटा मारा और अब गुड्डी की शार्ट उसके हाथ में।
गुड्डी की छोटी सी लेसी पैंटी दिख रही थी।
लेकिन गुड्डी अगले पल रंजी के ऊपर सवार थी ,
दोनों ने एक दूसरे की शार्ट सीधे मेरे ऊपर फ़ेंक दी।
और गुत्थमगुथा चालु थी।
,
रंजी की दोनों टाँगे फैली थी और ठीक उसकी टांगो के बीच उसकी चुन्मुनिया पर अपनी गुलाबी परी को घिस्से मार मार कर रगड़ रही थी ,
सिसकियों के बीच दोनों फुसफुसा भी रही थीं
मुझे सिर्फ इतना सुनाई दिया , " तेरे प्यारे भैय्या हैं , तू कर न। "
रंजी के भारी भारी गदराये चूतड़ , उसने थोड़ा एक घिस्सा मारा और सरक के पलंग के किनारे आ गयी।
उसके दोनों लम्बे गोरे गोरे खूबसूरत पैर अब पलंग के बाहर आगये थे।
लेकिन मेरी निगाहें तो उन दोनों पैरों के बीच ,मखमली जाँघों के बीच एक दो इंच की गुलाबी थांग से मुश्किल से छुपे , ढंके कारूं के खजाने की ओर चिपकी थी , जिसके बारे में सोच सोच के मैंने न जाने कितनी बार मुट्ठ मारी थी। ( मुझे अब पता चला था की उनके बारे में सोच सोच के मुट्ठ मारने वाला मैं अकेला न था , शहर के सैकड़ों लड़के थे )
और मुझे क्या पता था की उन नटखट , शोख पैरों का निशाना क्या था।
और जबतक पता चले बहुत देर हो चुकी थी।
रंजी ने अपने गोरे गुलाबी पैरों से मेरा शार्ट खींच लिया।
और जंगबहादुर झट से बाहर आ गए।
एकदम तन्नाये , गुस्साए जैसे कोई शेर पिंजड़े से निकले , भूखा , शिकार के लिए बेचैन ,
शिकार तो सामने ही था , लेकिन मेरे हाथ पैर बंधे थे और शिकार खुद ललचा रहा था , छेड़ रहा था।
रंजी तो , बस आज आग लगाने पे तुली थी।
मेरी शार्ट सरक कर घुटने में फँसी थी ,हाथ कुर्सी के पीछे रंजी की गुलाबी टीन ब्रा से बंधे थे और पैर गुड्डी की हाफ कप लेसी ब्रा से।
और खूंटा खड़ा , कुतुबमीनार की तरह हवा में उठा , पूरे एक बित्ते का , रंजी की पतली कलाई से भी मोटा।
रंजी आज मेरे खूंटे की ऐसी की तैसी करने पे तुली थी।
उसके दोनों तलुओं ने मेरे तन्नाये लंड को दबोच लिया और जोर से वो दबाती रही।
फिर जैसे कोई गाँव की गोरी ग्वालन , अपने हाथों में मथानी ले के दही मथे , बस एकदम उसी तरह। सिर्फ हाथों की जगह रंजी के पैर थे ,न ताकत और पकडने में कोई कमी , न बिलोड़ने में।
और साथ में रुन झुन रुन झुन , चुरमुर चुरमुर , रंजी के पायल की हजार चांदी के घुंघरुओं की आवाजें।
बिचारे जंगबहादुर ,मजा तो उन्हें बहुत आ रहा था लेकिन हालत भी खराब हो रही थी , एक गोरी उफनते जोबन वाली किशोरी के पैरों के बीच दब के। पैरों के जोरसे उसने सुपाड़ा भी खोल दिया था , चमड़ी नीचे खींच के।
कुछ देर बाद रंजी ने पैंतरा बदला।
और अब उसका बायां अंगूठा , मेरे खुले , पहाड़ी आलू के बराबर सुपाड़े को प्रेस कर रहा था। फिर अचानक उसने अपने रंगे अंगूठे के नाख़ून से मूत्र छिद्र में सुरसुरी कर दी और मैं मारे जोश के उचक पड़ा।
लेकिन उस शोख को क्या फरक पड़ना था , आज तो बस क़त्ल की रात थी।
दूसरा पैर कौन शरीफ था।
मेरे मारे जोश के पागल , पेल्हड़ ( बाल्स ) को उसने निशाना बनाया और वहां से लेके पिछवाड़े के छेद तक रगड़घिस्स करने लगी।
मैं कभी सिसकियाँ भरता कभी चूतड़ उचकाता।
और तक सामने का सीन बदल गया था।
गुड्डी और रंजी दोनों 69 की पोज में थीं , गुड्डी ऊपर , रंजी नीचे।
लेकिन रंजी की नाफ़रमानियाँ कुछ कम नहीं हुयी।
अब जैसे जूते में कील ठोकते हुए मोची उसे निहाई पर रखता है और हथौड़े से ठोंकता है , बिलकुल उसी तरह।
दायें पैर को उसने लिंग और पैर के बीच में रखा और उससे सपोर्ट सा दिया और बाएं पैर से आगे पीछे आगे पीछे , तलवे को सुपाड़े से लेकर एकदम बेस तक जोर जोर से , बार बार रंजी रगड़ रही थी।
गुड्डी कौन कम थी।
अगर रंजी मेरी ऐसी की तैसी करने पे जुटी थी तो गुड्डी रंजी की ले रही थी , हचक के।
गुड्डी ने पहले तो थांग के ऊपर से ही रंजी की चुन्मुनिया को चूसना चुभलाना शुरू किया।
रंजी की पूरी देह गिनगिना रही थी ,पत्ते की तरह काँप रही थी।
फिर गुड्डी ने वोकिया जिसके लिए मैं न जाने कब से तड़प रहा था।
चूत दर्शन।
रंजी की थांग उसने जरा सी सरका दी और मुझे गुलाबी परी का दर्शन मिल गया।
एकदम कसे कसे दो गुलाबी होंठ , लेकिन जोर से चिपके , जैसे कभी अलग ही न होना चाहे।
हलके हलके गीले , जोश के पानी से जैसे लिप ग्लॉस थोड़ा ज्यादा लग गया हो।
एकदम चिकनी , एक भी बाल नहीं।
कुछ मस्ती में कुछ शरमा , हिचकिचा के रंजी अपनी दोनों खुली गोरी चिकनी जांघे समेटने की कोशिश कर रही थी , लेकिन गुड्डी ने उसे पूरी तरह नाकमायब कर दिया।
गुड्डी अपने जबरदस्त हाथों से रंजी के दोनों जांघो को दबाये हुए ,फैलाये हुए थी।
रंजी कसमसा रही थी , चूतड़ उचका रही थी , लेकिन न गुड्डी की पकड़ से निजात थी और न ही गुड्डी की नदीदी , शरारती जीभ से।
गुड्डी की जीभ की टिप रंजी की खुली गुलाबी कली के ऊपर लहर रही थी और सिर्फ टिप गुड्डी ने छुला दी।
रंजी को तो जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लग गया।
जोर से सिसकी वो।
और गुड्डी तो आज यही सुनना चाहती थी , रंजी की सिसकियाँ , मस्ती भरी चीखें।
आज घर पर सिरफ वो और रंजी थीं , पूरा कब्ज़ा था उसका।
गुड्डी ने दुहरा हमला बोल दिया और अब उसके दोनों हाथों के अंगूठे , रंजी की फुद्दी की पुत्तियों को बाहर से सहला रहे थे , दबा रहे।
और बीच की पतली सी दरार में , उसकी जीभ अब लपड़ लपड़ चाट रही थी।
रंजी गिनगिना रही थी , तेज हवा में पत्ते की तरह काँप रही थी।
लेकिन उससे रंजी की शरारतें कम नहीं हुयी थीं , बल्कि बढ़ गयी थी
उसके दोनों तलुवे अब और जोर से बिना रुके मथानी की तरह मेरे लंड को मथ रहे थे।
यह लंड मंथन दस मिनट से ज्यादा ही चल रहा था , बिना रुके।
मैं भी रंजी की तरह सिसक रहा था , चूतड़ उचका रहा था , लेकिन इससे ज्यादा मैं कुछ कर भी नहीं सकता था। मेरे हाथ पैर दोनों रंजी और गुड्डी की ब्रा से बंधे थे। मैंने बहुत कोशिश की , लेकिन गांठे उन दोनों ने बहुत कस के बाँध रखी थीं।
अगर एक पल के भी लिए मेरे हाथ पैर खुल जाते न तो मैं आज रंजी की ,…
और गुड्डी ने मेरे मन को भांप कर , अपना सर गुड्डी के कुंवारे अक्षत योनिद्वार से उठाया और मुझे दिखा के ललचा के बोली ,
" हे प्यारी बहना के प्यारे भैय्या , चाहिए इस बहना का ,… "
हाथ पैर भले बंधे हो , मुंह तो खुला था।
" नेकी और पूछ पूछ , " मैंने जोर से अपने खुले तन्नाये जंगबहादुर को उचका के जवाब दिया।
और अब गुड्डी ने रंजी के ऊपर से हटते हुए यही सवाल रंजी से किया।
" मेरे प्यारे भैया है , जब चाहे जित्ती बार चाहें जैसे चाहें , मैंने न कभी मना किया है , न करुँगी " अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचा के रंजी ,मेरी मेरी ममेरी बहन अपने मस्त किशोर उभारों को और उभार के मुझे ललचाते बोली।
" भैय्या की बहना आज बताती हूँ तुझे " गुड्डी बुदबुदाई और जोर जोर से अपनी हथेली से थांग के ऊपर से ही चुन्मुनिया रगड़ने लगी।
" उईइइइइइइइइइइइइ मेरी माँ क्या करती है , छोड़ न। ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह छोड़ छोड़ " रंजी जोर जोर से सिसक रही थी।
बिना रुके गुड्डी ने रगड़ना और तेज कर दिया और बोली
" साल्ली , नौटंकी। अभी तेरे भैया का बित्ते भर का घुसेगा न कलाई से भी मोटा , मूसल। दरेरता , रगड़ता , फाड़ता। बहुत परपरायेगी तेरी चुन्मुनिया तो भी हंस के रो के घोंट ही लेगी और मेरी जरा सी ऊँगली से मुंह बिचका रही है। "
और फिर गुड्डी ने मेरी ओर रुख किया है ,
" हे देखना है क्या कारूं का खजाना , जिसपे तेरे शहर के सारे लौंडों की नजर लगी है " और गुड्डी ने रंजी की थांग खोल दी।
अब मैं एकदम खुल के देख रहा था।
रंजी बैठी थी , और अब गुड्डी ने जबरन उसके पैरों में पैर फंसा के जांघे पूरी तरह खुलवा रखी थीं।
दो गुलाबी फांके , एकदम चिकनी और गुड्डी ने पूरी ताकत से उन्हें फैलाने की कोशिश की , लेकिन बहुत मुश्किल से जरा सी दरार दिखी।
बहुत टाइट है इसकी , मैंने मन में सोचा।
" तेरी तो लगता है कभी फिंगरिंग भी नही हुयी ढंग से " गुड्डी फुसफुसाई।
और सर हिलाके सिसकते रंजी ने हामी भरी।
मुश्किल से खुली गुलाबी दरार में , अपनी तरजनी की टिप ढकेलने की कोशिश करती , गुड्डी ने मुझे ललकारा ,
" मार लो अपनी बहना की। बहुत गरमायी है , साल्ली। '
रंजी की चूत खूब पनिया गयी थी।
मस्ती से मैं पगला रहा था। आखिर इत्ते दिनों से इसी के लिए तड़प रहा था मैं।
बोल न चहिये क्या। गुड्डी ने फिर चढ़ाया मुझको।
क्या चाहिए क्सिकी चहिये , खुल के बोल।
" इसकी " मैं बोला फिर मैं समझ गया गुड्डी क्या सुनना चाहती है और उसके बिना कुछ मिलने वाला नहीं।
" वही इसकी , रंजी मेरी बहन की , फिर मैंने थोड़ा थूक गटका और बोला ,
' इसकी रसीली चूत "
" अरे तो ले लो न , बहन चुदवासी चुदने को तैयार , भाई चोदने को बेचैन , तो मैं कौन होती हूँ , तुझे बहनचोद बनने से रोकने वाली। " गुड्डी खिलखिलाती हुयी बोली।
मुझे लगा की वो घडी आ गयी जिसका मुझे इतने दिनों से इन्तजार था।
लेकिन
तब तक किसी और घडी का अलार्म बज उठा बज उठा था घन घन घन घन।
और दोनों एक साथ उछल पड़ीं।
ब्रा दोनों कि मेरे हाथ पैरों में बंधी थी और थांग भी दोनों ने एकदूसरे की उतार के मेरे ऊपर फ़ेंक दी थी।
" जल्दी कर " गुड्डी बोली और बिना ब्रा थांग के दोनों ने तुरत फुरत शार्ट और शर्ट पहन ली और पलंग से उत्तर ली।
बल्कि रंजी ने तो मारे जल्दी के सिर्फ शॉर्ट्स पहन लिया और छोटी सी शर्ट कंधे पर टिका ली।
उसके उन्नत उरोज अभी भी मुझे चुनौती दे रहे थे।
गुड्डी ने हँसते हुए जोर से एक चपत उसके चूतड़ पे लगायी।
"अरे कहाँ भागी जा रही है एक सेल्फी तो ले ले , इत्ता मस्त खूंटा खड़ा किया है। "
और रंजी रुक कर बैठ गयी , मुस्कराती , अपने स्मार्ट फोन के साथ जो मैंने उसे गिफ्ट किया था।
मेरा खूंटा , सीधे उसकी तनी चूंची से रगड़ खा रहा था।
दुष्ट रंजी , उसने अपने तने निपल को मेरे सुपाड़े के छेद पे रगड़ा और दो सेल्फी ले ली।
" अरे एक चुम्मी तो ले ले बिचारे की , इतना तड़प रहा है बिचारा। " गुड्डी ने फिर छेड़ा।
"एकदम मेरे प्यारे भैय्या है , " मुझे देख कर वो मुस्करा के बोली और फिर एक चुम्मी सीधे होंठो पे।
लेकिन सेल्फी उसने ली , जंगबहादुर को किस करते हुए।
थोड़ी देर सुपाड़े पे उसने होंठ रगडा , सेल्फी ली और फिर , गप्प से आधा घोंट लिया और दुबारा एक सेल्फी ली।
बिचारे जंगबहादुर , सोच रहे थे की की चलो नीचे वाले होंठ का मजा नहीं मिला तो ऊपर का ही सही।
लेकिन , आज कल की लड़कियां सेल्फी खींची चलती बनी।
और रंजी भी धड़धड़ सीढ़ी से नीचे
और पीछे पीछे गुड्डी भी।
" हे पोस्ट किया " गुड्डी की आवाज सुनाई दी।
" बस जस्ट अभी पोस्ट किया फेसबुक पे , ये देख ४५ लाइक्स भी आ गए और दिया और जिया ने शेयर भी कर दिया। व्हाट्सऐप पे भेज रही हूँ। " रंजी खिखिलाते बोली।
और ऊपर मैं बंधा , छना हाथ पैर हिल भी नहीं सकते थे इस हालत में पड़ा। बौराये जंगबहादुर शॉर्ट्स से बाहर।
" अरे नालायको मुझे तो खोल दो। " मैं चिल्लाया पर अपनी मस्ती में मस्त वो दोनों कहाँ सुनने वाली।
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