Tuesday, March 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--159

 FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--159
 बिना बेरहमी के गांड नहीं मारी जा सकती ,खास तौर पे पहली बार।
लेकिन चंदा भाभी ने ये भी कहा था की असली मर्द वो होता है जो अपने झड़ने से पहले लड़की को झाड़ देता है , चाहे उसकी चूत चोदे या गाँड मारे।

और एक और बात उन्होंने कहा था अपने मजे के साथ लड़की के मजे का भी ख्याल रखना चाहिए , तभी लड़की बार बार वापस आएगी चुदवाने।


और अब गांड फाड़ने का नशा , जोश कुछ कम हो गया था तो मुझे रंजी की ह्रदय विदारक चीखें सुनाई दीं , दर्द से डूबा उसका चेहरा ,पीड़ा में ऐंठती उसकी देह और आंसू जिससे न सिर्फ उसका चेहरा भरा हुआ था , बल्कि तकिया भी बहुत गीली हो गयी थी।

कुछ समझ में नहीं आया तो मैंने झुक के रंजी के आंसू से डूबे गालों को चूम लिया , लेकिन रंजी ने बुरा सा मुंह बनाकर देखा , जैसे कह रही हो ,

" क्या एकबार में ही पूरा मूसल ठेल देना जरूरी था। "

मुझे अपराध बोध तो नहीं हुआ , लेकिन ये जरूर लगा की ये गुस्सा है और बहुत अलफ गुस्सा है।


मनाने का काम मैंने होंठों और उँगलियों को सौंप दिया और जंगबहादुर को चुपचाप मना कर दिया , खबरदार अब इसे और जो तंग किया।

वो चुपचाप गांड के कैदखाने में बंद बैठे थे , और अब मेहनत मशक्कत मेरी उँगलियाँ और होंठ कर रहे थे।

कभी मैं उसके आंसू से डूबे गालों को खूब प्यार से सहलाता , तो कभी उन्हें चूम लेता।

कभी मेरी उंगलिया , उसके रुई के फाहों जैसे मुलायम उरोजों को सहलातीं ,हलके से दबाती ,तो कभी झुक के मेरे होंठ उसके निपल चूम लेते बहुत हलके से।


उसकी चीखें कराहें कब की बंद हो चुकी थी ,आंसू भी अब नहीं निकल रहे थे।

लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था की वो अब भी गुस्सा है की नहीं

अपनी गलती का इजहार कैसे करूँ उससे।




लेकिन झुक के मैंने जब उसके कानों कोचूमा और उसके कानो में अपनी गलती की स्वीकारोक्ति करने ही वाला था की ,

उसने एक गलती कर दी , मुस्कराकर , बहुत हलके से

मानों कह रही हो की बुद्धू कहीं के ,

दरद तो होता ही , होना था हुआ , तेरे लिए इत्ता दर्द क्या ,


बस फिर क्या था मेरे होंठों और उँगलियों ने हरकते तेज कर दी कभी चूमते कभी चाटते ,

कभी उसके निपल मरोड़ देते तो कभी क्लिट फ्लिक कर देते।


कुछ ही देर में वो फूल टाइम मस्ती में आ गयी।

उसकी चूंचियां पथरा गयीं , निपल एकदम कड़े , साँसे लम्बी लम्बी होने लगीं ,

चूत की पुत्तियाँ कांपने लगीं।

हाँ मैंने लंड को एकदम रोक रखा था , धक्का क्या , हिलना डुलना भी नहीं।


लेकिन मेरी उँगलियाँ जोर जोर से चूत की पुत्तियों को मसल रहे थे , क्लिट को रगड़ रहे थे।

दो बार वो झड़ते झड़ते रुकी ,


और उसकी गांड ने मेरे लंड को भींच लिया , पहले हलके फिर जोर से।


बस क्या था मैंने एक बार फिर से गांड मारना शुरू कर दिया ,लेकिन हलके हलके।

बस दो चार इंच लंड हलके हलके बाहर निकाल देता फिर ठेल देता।डॉगी पोजीशन के अपने बहुत फायदे हैं ,

पहला फायदा तो यही है की एक बार लौंडिया की चूत या गांड में लंड घुस जाय ,

फिर वो साल्ली लाख चूतड़ पटके , बिना चुदवाये बच नहीं सकती। और जिसका फायदा मैंने अभी उठाया और हचक हचक के उसकी कसी कुँवारी कच्ची गांड फाड़ के लंड पेल दिया , पूरी जड़ तक.

और इसी लिए ये पोज मुझे बहुत पसंद है।

लेकिन इसके और भी फायदे हैं और सबसे बड़ा ये की आप चूत और गांड दोनों पर एकसाथ हमला कर सकते हैं।

चोदने वाले को मजा
चुदवाने वाली को मजा


और यही काम मैंने उस समय किया।

एक हाथ रंजी के मस्त जोबन को लुभाने पटाने पे लगा था दूसरे हाथ ने भरतपुर का रास्ता पकड़ा।

हथेली से पहले उसकी रस से गीली गुलाबी परी को सहलाया , पुचकारा , दबाया , मसला और फिर गचाक से दो ऊँगली सीधे गीली बुर में पेल दिया। जड़ तक।


रंजी एक पल के लिए चिहुंकी , उँगलियों का मजा लेने लगी। दोनों उँगलियाँ गोल गोल उसकी कसी सहेली के अंदर घूम रही थीं। और साथ साथ अंगूठा , फूले जोश में मतवाले , क्लिट पर ताल दे रहा था।

कुछ ही देर में दर्द भूलकर उसकी चूत मेरी ऊँगली सिकुड़ने पिचकने लगी।

उसकी चूंचियां पथराने लगी , साँस लम्बी होने लगी।

और साथ साथ मेरी ऊँगली जोर जोर से रंजी की चूत चोदने लगी।

लेकिन लंड अभी भी गांड में पड़ा चुपचाप था।


और फिर हलके हलके मैंने गांड भी मारनी शुरू कर दी कर बस सुपाड़ा उसके गांड के छल्ले से बाहर नहीं निकाल रहा था।


कुछ देर में रंजी की गांड दूबदूबाने लगी।

उसे गांड मरवाने में मजा आने लगा था।




सटासट गपागप ,सटासट गपागप।
 मैंने गांड में थोड़ी धक्कों की रफ्तार बढ़ाई और जोर भी ,

साथ ही साथ मेरी उँगलियों ने चूत में छुपे जी प्वाइंट को ढूंढ लिया था और उसे कुरेद रही थीं। अंगूठा अब जोर जोर से क्लिट को दबा ,मसल रहा था।

बस रंजी बार बार झड़ने के कगार पर पहुँच जाती और मैं उसे रोक देता।

वो मचल रही थी तड़प रही थी सिसक रही थी।

गांड में लंड के धक्कों का दर्द अब भूल कर चूतड़ हिला हिला कर वो मजे ले रही थी।


अबकी जो वो झड़ने के कगार पर पहुंची तो मैंने एक साथ उसके जी प्वाइंट क्लिट को जोर से दबा दिया और निपल को मरोड़ दिया।

उसकी पूरी बदन में तरंग उठने लगी।

वो पत्ते की तरह काँप रही थी।

और जोर जोर से उसकी चूत मेरी उँगलियों को और गांड मेरे लंड को दबोच रही थी। निचोड़ रही थीं।


थोड़ी देर के लिए मैंने गांड में लंड के धक्के रोक दिए लेकिन उसका झड़ना खत्म होने के पहले ही मैंने अपने मोटे लंड को पूरी ताकत से गांड से बाहर खींचा , और

मेरा मोटा सुपाड़ा , गांड के छल्ले रगड़ता ,दरेरता बाहर आया ,

और मजे की सिसकियों के बीच उसकी दर्द की कराह निकल गयी ,

उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइ


लेकिन बिना रुके मैंने जोर का धक्का मार दिया और एक बार फिर गांड में रगड़ते घिसटते लंड जड़ तक घुस गया।


कुछ देर में उसका झड़ना बंद हो गया।

मैंने भी चूत से ऊँगली निकाल ली और कुछ देर रुक कर सिरफ गांड मारनी शुरू कर दी ,

पहले हलके हलके


और जब रंजी ने अपने चूतड़ के धक्के मेरे लंड पे मारने शुरू किये तो मैंने धक्को की रफ्तार बढ़ा दी।

अब बीच बीच में मैं आलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाल कर धक्के में लंड अंदर ठेल देता

और वो फिर कराह उठती लेकिन अगले ही पल देख के मुस्करा देती।

और मैं दुनी तेजी से उसकी गांड मारने लगता।

१० -१२ मिनट बाद एक बार फिर उसकी देह कांपने लगी , वो एक बार फिर झड़ने के कगार पर थी।

और इस बार न मेरी ऊँगली उसकी चूत पर थी न चूंची पर ,

सिर्फ मेरा मोटा मूसल हचक हचक के उसकी गांड मार रहा था।


और अब उसके झड़ने के साथ उसकी गांड जोर जोर से मेरे लंड को भींच रही थी , निचोड़ रही थी।

जैसे कोई अपनी सुकुमार मुट्ठी में लेकर उसे मुठियाए।


उसका झड़ना खत्म होने के पहले मैंने झड़ना शुरू कर दिया।

लेकिन एक बार मैं झड़ कर रुकता तो दुबारा उसकी कोमल मस्त गांड मेरे लंड को निचोड़ना शुरू कर देती

और मैं दुबारा , तिबारा ,… ।


मैं अपना होश खो चुका चुका था।

मेरा शरीर शिथिल पड़ चुका था।


उसी तरह , उस के अंदर धंसे आधे घंटे से ज्यादा निश्चेतन हम दोनों लता की तरह लिपटे पड़े रहे।
जब होश आया तो घड़ी में देखा साढ़े तीन बज रहे थे।

रंजी की आँख खुली तो मुझे देख के वो जोर से मुस्कराई।


लंड अभी भी गांड में धंसा था।

और जब मैंने लंड बाहर खींचा तो , गांड से मलाई की बूंदे उसके चूतड़ पर ,जांघो पर बहती ,चूत से निकली वीर्य के थक्कों दागों से मिल रही थीं।

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