FUN-MAZA-MASTI
गुमराह पिता की हमराह बेटी--6
अगली सुबह जब मनिका उठी तो सब कुछ उसे बहुत अच्छा-अच्छा लग रहा था. आँख खुलने के कुछ पल बाद पास लेटे जयसिंह को देख उसे रात की बातें याद आईं और वह अपने पापा से फिर से दोस्ती हो जाने का ख्याल करते ही ख़ुशी से चहकी,
'पापा! आप अभी तक सो रहे हो? देखो आज मैं आपसे पहले उठ गई...'
'उन्ह्ह हम्म...' उनींदे से जयसिंह ने आँखें खोलीं, दो दिन से काउच पर आराम से न सो पाने की वजह से आज उन्हें काफी गहरी नींद आई थी.
'उठो ना पापा...क्या आलस बिखरा रहे हो...' मनिका ने उन्हें हिला कर कहा.
मनिका जयसिंह को उठा कर ही मानी थी, वे दोनों बाथरूम जा कर आ चुके थे और ब्रेकफ़ास्ट ऑर्डर कर दिया था. जयसिंह एक बार फिर अखबार में स्टॉक-मार्केट की ख़बरें देख रहे थे. मनिका भी उनके पास ही बैठी रुक-रुक कर उनसे बातें करते हुए एक मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी जब रूम-सर्विस आ गई. मनिका ने जा कर गेट खोला,
'गुड मॉर्निंग मैम.' उसके सामने वह पहले दिन वाला ही वेटर खड़ा था.
'म..म..मॉर्निंग' मनिका उसकी कुटिल मुस्कान भूली नहीं थी.
वेटर अंदर आ गया और उनका नाश्ता टेबल पर लगाने लगा. मनिका जयसिंह के पास बैठ गई थी पर अब उसकी नज़र फर्श पर टिकी थी. वेटर ने खाना लगा दिया और एक मंद सी मुस्कुराहट लिए खड़ा रहा, जयसिंह ने उसे टिप देते हुए फारिग कर दिया. उसने अदब से झुक कर जयसिंह से कहा था,
'थैंक्यू सर.' और फिर मनिका से मुख़ातिब हो बोला 'थैंक्यू मैम...' मनिका की नज़र उससे मिली थी, वेटर के चेहरे पर फिर वही मुस्कान थी.
वेटर के चले जाने के बाद मनिका ने जयसिंह से कहा,
'आई डोंट लाइक हिम.'
'क्या? हू?' जयसिंह ने अखबार से नजर उठा कर पूछा.
'अरे यही जो अभी गया है...वो वेटर...' मनिका ने बताया.
'हैं? क्यूँ क्या बात हुई...?' जयसिंह ने अखबार साइड में रखते हुए पूछा.
'ऐसे ही बस...अजीब सा आदमी है वो...' मनिका भी उन्हें क्या बताती.
'हाहाहा...पता नहीं क्या हो जाता है तुम्हें चलते-चलते, अब बताओ मैडम को वेटर भी पसंद का चाहिए.' जयसिंह हँस कर बोले.
'क्या है पापा डोंट मेक फन ऑफ़ मी. चलो ब्रेकफास्ट करते हैं.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा था.
जब जयसिंह और मनिका ने नाश्ता कर लिया था तो मनिका ने पूछा था कि आज वे क्या करने वाले हैं? जिस पर जयसिंह ने आज-आज रूम में ही रहकर रेस्ट करने की इच्छा जताई थी. मनिका भी मान गई और बोली कि वह नहाने जा रही है. जयसिंह ने उसे मुस्कुरा कर देखा भर था, उनके मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गई थी.
जब मनिका नहा कर वापस निकली तो जयसिंह को काउच पर सुस्ताते पाया. दरअसल वे लेट कर नाटक कर रहे थे ताकि मनिका को नहा कर निकलते हुए देख सकें. मनिका ने बाहर आते ही उनकी और देखा था और उन्हें सोता समझ अपने सूटकेस के पास जा कर कपड़े रखने लगी.
'नहा ली मनिका?' जयसिंह ने थोड़ा सा सिर उठा उसकी तरफ देखते हुए कहा.
'हाँ पापा.' मनिका पीछे मुड़ बोली. जयसिंह ने पाया कि उसकी आवाज़ में पहले जैसी चहक नहीं थी.
कुछ देर बाद मनिका आ कर काउच के पास रखी सोफेनुमा कुर्सी पर बैठ गई. जयसिंह उसके चेहरे के भाव देख समझ गए कि वह कुछ कहना चाह रही है पर चुपचाप लेटे रहे और आँखें बंद कर फिर से सोने का नाटक करने लगे.
'आप नहीं ले रहे बाथ?' मनिका ने उनसे पूछा.
'म्मम्म...अभी थोड़ी देर में जाता हूँ... आज तो रूम पर ही हैं ना हम...' जयसिंह ने झूठा आलस दिखाया.
'पापा?' मनिका अपना तकियाकलाम संबोधन इस्तेमाल कर बोली.
'हम्म्?' जयसिंह ने नाटक जारी रखते हुए थोड़ी सी आँख खोल उसे देखा.
'पापा कल रात को...रात को आप शावर से नहाए थे क्या?' मनिका ने पूछा, उसकी नज़रें जमीन पर टिकीं थी और चेहरे पर लालिमा झलक रही थी.
मनिका ख़ुशी-ख़ुशी नहाने घुसी थी पर जैसे ही उसने शावर का पर्दा हटाया था उसे वह नज़र आया जिसने पिछली रात जयसिंह को साँप सुंघा दिया था, उसकी ब्रा और पैंटी जो नल पर लटक रही थी. मनिका एक बार तो सकपका गई, 'ये यहाँ कैसे पहुँची..?' फिर उसे याद आया कि कल रात नहाने के बाद उसने उन्हें वहीँ छोड़ दिया था. वह उन्हें उठाने को हुई थी जब उसे याद आया कि जयसिंह ने रात को आकर बाथ लिया था 'ओह शिट...' और इसलिए उसने बाहर निकल कर जयसिंह से टोह लेते हुए पूछा था कि क्या वे शावर में गए थे.
जब मनिका ने उनसे कहा था कि वह नहाने जा रही है तो जयसिंह को शावर में पड़े उसके अंतवस्त्रो का ख्याल आ गया था और वे मन ही मन प्रसन्न हो उठे थे. रात को अचानक मनिका के माफ़ी मांग लेने से यह बात उनके दीमाग से निकल गई थी. अब उन्होंने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा,
'नहीं तो, बाथटब यूज़ किया था मैंने तो...क्यूँ क्या हुआ?'
'ओह...अच्छा. कुछ नहीं पापा ऐसे ही पूछ रही थी.' मनिका ने राहत भरी साँस खींची. 'पापा ने कुछ नहीं देखा थैंक गॉड..' उसने मन ही मन सोचा.
'ऐसे ही?' जयसिंह ने सवाल पर थोड़ा जोर दे पूछा.
'हाँ पापा.' मनिका ने दोहराया.
'अच्छा भई मत बताओ...' जयसिंह ने खड़े होते हुए कहा और मनिका की तरफ देखा 'मैं नहा कर आता हूँ चलो...'
'ओके पापा.' मनिका ने उनकी आधी बात का ही जवाब दिया.
जयसिंह खड़े हो जिस कुर्सी पर वह बैठी थी उसके पास से गुजरते हुए रुक गए और मनिका के कँधे पर हाथ रखा, 'मनिका?'
'हम्म...हाँ पापा...?' मनिका अब पहले सी चहक कर बोली.
जयसिंह ने अपने चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान लाते हुए कहा 'कपड़े ही तो हैं...हैं ना?' और आगे बढ़ नहाने चले गए.
जयसिंह नहाने घुस गए, पर वे मनिका के मन में शरमो-हया के ज्वार उठा गए थे. उन्होंने पिछली रात की उसी की कही बात को इस तरह से कह दिया था कि मनिका न चाहकर भी मुस्का उठी थी 'हाआआआ...पापा ने देख लीं मेरी अंडरवियर..! हाय राम...' मनिका ने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा कर सोचा 'और तो और कैसे बन रहे थे...मैंने तो बाथटब यूज़ किया था...झूठे ना हों तो...' मनिका शरम से कुर्सी में गड़ी जा रही थी 'कल तक तो मैंने इतना बखेड़ा खड़ा किया हुआ था और अब अपनी ही बेवकूफी से बेइज्जती हो गई है...क्या सोचा होगा पापा ने भी...कि कैसी बेशरम हूँ मैं... हाय फूटी किस्मत...'
थोड़ी देर बाद जयसिंह नहा कर निकल आए. मनिका, जो कुर्सी पर ही बैठी थी, ने उठते हुए कहा,
'पापा...आई एम् सो एमबैरेस्ड...'
जयसिंह ने उसकी तरफ झूठे असमंजस से देखा. इस पर मनिका ने आगे सफाई पेश की,
'मैं भूल गई थी...कल जल्दी में...' मनिका अटकते हुए इतना ही कह पाई.
अब जयसिंह ने सीरियस सा अंदाज इख़्तियार कर लिया और उसके पास आ गए 'मनिका तुम इतना क्या सोचने लगी? कल रात तो बड़ा बड़प्पन दिखा रहीं थी; कि कपड़े ही तो हैं, अब ये अचानक क्या हुआ?'
मनिका से कुछ पल कुछ कहते ना बना पर जयसिंह के उसे ताकते रहने पर उसने धीरे से कहा, 'हाँ आई क्नॉ पापा...पर शरम तो आती ही है ना...आपने भी क्या सोचा होगा...कि कैसी बेशरम हूँ मैं...'
'ओह गॉड मनिका ये तुम क्या बोले जा रही हो..? मैं ऐसा क्यूँ सोचूँगा भला?' जयसिंह अब अचरज जता रहे थे 'कल जब तुमने मुझे अपना सॉरी बोलने का रीज़न दिया था तब तक मैं अपने आप को ही गलत मान रहा था...पर जब तुमने कहा कि अंडरवियर भी कपड़े ही तो होते हैं तो मुझे भी तुम्हारी बात की सच्चाई का इल्म हुआ, एवरीवन हैस अंडरवियर इसमें क्या एमबैरेसमेंट?...लेकिन अब तुम खुद ही अपनी बात काट रही हो...इस मतलब से तो फिर मैं ही गलत था...' जयसिंह ने मनिका को भावनाओं और तर्क के जाल में फंसाते हुए आगे कहा था.
'नो पापा ऐसा नहीं है...आप सही कह रहे हो बट आप भी समझो ना...अपने पापा से शरम नहीं आएगी क्या? इसीलिए इट्स सो एमबैरेसिंग फॉर मी...' मनिका ने सकुचाते हुए दलील दी.
'ओके मनिका...आई मीन लवली...इट्स ओके...' जयसिंह ने अपना ब्रह्मास्त्र चलाया.
मनिका की आनाकानी पर ब्रेक लग गया था 'पापा ऐसे तो मत कहो...'
'तो कैसे कहूँ?' जयसिंह ने जरा रूखी आवाज़ में कहा.
'प्लीज मेरी बात समझो ना...प्लीज?' मनिका ने मिन्नत की.
जयसिंह समझ गए थे कि अब उनका सामना अपने प्लान के सबसे आखिरी और जटिल हिस्से से हो रहा था. मनिका भले ही उनके साथ कितनी भी फ्रैंक हो चुकी थी पर अभी भी उसके मन में सामाज के नियम-कायदों का एहसास मजबूत था और अगर उन्होंने जबरदस्ती उसे बदलने की कोशिश की तो उनको कुएँ के पास आकर भी प्यासा लौटना पड़ सकता है. सो उन्होंने अभी के लिए पीछे हटना ही उचित समझा,
'ओके मनिका आई अंडरस्टैंड...पर जो हो गया सो हो गया. मैंने उस बात को बिल्कुल माइंड नहीं किया और बस इतना चाहता हूँ कि तुम भी उस पर इतनी फ़िक्र ना करो...कैन यू डू थैट?'
'ओके पापा...' मनिका ने हौले से कहा.
'देन गिव मी अ स्माइल...ऐसे उदासी नहीं चलेगी...' जयसिंह ने मुस्काते हुए उसे उकसाया.
'हेहे..पापा. मैं कहाँ उदास हूँ...' कह मनिका हँस दी.
'गुड़ गर्ल.' जयसिंह ने उसे स्माइल देते देख कहा था और फिर अपने सूटकेस की तरफ चले गए थे.
'हाय...पापा तो लिटरली कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हैं...इतना तो मैंने भी नहीं सोचा था. मैंने तो उन्हें मनाने के लिए कहा था बट उन्होंने तो मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकाल लिया...अफ्टेरॉल वो हैं तो मेरे पापा ही, उन्हें नहीं तो मुझे तो लाज आएगी ही...बट पापा तो इतना कूल एक्ट कर रहें हैं और मजाक में ले रहे हैं...और यहाँ मैं शरम से मरी जा रही हूँ...क्यूँकि बात सिर्फ अंडरवियर की नहीं है, आई वियर थोंगस् (छोटी और सेक्सी पैंटी)...इसलिए और ज्यादा एमबैरेस हो रही हूँ...' जयसिंह को स्माइल दे कर भी मनिका अपनी दुविधा में फंसी बैठी थी.
'मनिका जरा रूम-सर्विस पर कॉल करके लॉन्ड्री वाले को बुलाना. मेरे सारे कपड़े धोने वाले हो रहे हैं.' जयसिंह की आवाज़ सुन मनिका का ध्यान टूटा.
जयसिंह और मनिका को दिल्ली आए आज बारह दिन हो चले थे और उनके साथ लाए कपड़े एक-दो बार पहन लेने और दिल्ली के प्रदूषण भरे वातावरण के कारण अब धुलाई योग्य हो गए थे. मनिका को भी अपनी कुछ पोशाकें धुलने देने का ख्याल आया था. सो उसने कुर्सी से उठ, अपने मन की उलझन को एक ओर कर, जयसिंह के कहे अनुसार लॉन्ड्री वाले को बुलाने के लिए कॉल किया.
थोड़ी देर में लॉन्ड्री से एक लड़का आया और उनके कपड़े अगली शाम तक ड्राई-क्लीन कर वापस देने का बोल ले गया. अब जयसिंह और मनिका को बाकी का दिन साथ ही बिताना था और अभी तो उनका ब्रेकफास्ट भी नहीं हुआ था. जयसिंह ने सजेस्ट किया क़ि वे नीचे रेस्टॉरेंट में जा कर नाश्ता करें और मनिका को लेकर नीचे चल दिए.
रेस्टॉरेंट में जा उन्होंने ऑर्डर किया और बैठे बतियाने लगे. जयसिंह ने मनिका को याद दिलाया क़ि उसके इंटरव्यू का दिन करीब आ चुका था और उसे थोड़ी तैयारी कर लेनी चाहिए जिस पर मनिका बुरा मानते हुए बोली थी क़ि वे उसकी इंटेलिजेंस की कोई कद्र ही नहीं करते और उसे सब आता है. दरअसल मनिका के ताऊ कॉलेज में प्रोफेसर थे और उन्होंने उसे बहुत अच्छे से तैयारी करवाई थी सो मनिका का ओवर-कॉन्फिडेंट होना लाजमी था.
खैर इस तरह बातें करते हुए अब उन्हें एहसास हुआ कि उनका वापस घर जाने का समय भी आने वाला था. मनिका और जयसिंह की पिछली रात ही फिर से बढ़ी आत्मीयता और सुबह कमरे में हुई बातचीत ने मनिका को इमोशनली थोड़ा सेंसिटिव कर दिया था और घर वापस जाने की बात आने पर उसने वहाँ बैठे-बैठे जयसिंह से अपने मन की कुछ बातें शेयर कर दी थी, कि कैसे उसे उनके इतने खुले विचारों पर अचरज होता है और उनका उसे एक बच्चे की तरह नहीं बल्कि एक समझदार एडल्ट की तरह ट्रीट करना कितना अच्छा लगता है. उसने उन्हें यह भी बताया कि कैसे उसने सोचा था कि काश घर वापस जाने के बाद भी उनके बीच का ये बॉन्ड न टूटे लेकिन वह ये भी समझती थी कि घर जा कर उनके बीच कुछ दूरी आ ही जाएगी क्यूँकि वहाँ का माहौल अलग था व वे अपनी-अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में लगें होंगे.
मन ही मन खुश होते जयसिंह ने सोचा था 'साली कुतिया इतनी भोली भी नहीं है जितना मैंने समझा था. बस इसपर यह दोस्ती का भूत इसी तरह चढ़ा रहे तो आखिरी बाजी भी जीती जा सकती है.' और फिर उसे आश्वाशन दिया था कि वे बिल्कुल नहीं बदलेंगे और उनके बीच का यह दोस्ती का रिश्ता नहीं टूटने देंगे बशर्ते कि वह भी उन पर भरोसा बनाए रखे.
इसपर मनिका ने बहुत खुश हो कर उन्हें आश्वस्त किया था कि वह भी यही चाहती थी. जयसिंह ने उसे एक और दफा अपनी मम्मी के सामने थोड़ा सोच-समझ कर रहने की हिदायत दी थी. उनका वही पुराना तर्क था कि उसकी माँ संचिता सोचती है कि उन्होंने अपने लाड़-प्यार से मनिका को बिगाड़ दिया था, जिसपर मनिका ने भी उनसे हाँ में हाँ मिलाई थी. उनके यूँ बातें करते-करते उनका खाना भी आ गया था.
जयसिंह ब्रेकफास्ट के बाद मनिका को लेकर कुछ देर हॉटेल के गार्डन में घूमने निकल गए थे. एक बार फिर मनिका अब उनकी बाहँ थामे चल रही थी. जब वे गार्डन में घूम कर वापस लौट रहे थे तो मनिका की नज़र एक तरफ लगे बोर्ड पर गई. जिसपर हॉटेल के विभिन्न हिस्सों और फैसिलिटीज़ के नाम और डायरेक्शन लिखे हुए थे. उनमें से एक नाम ने उसका ध्यान आकर्षित किया था 'ब्यूटी एंड स्पा'.
एक-दो दिन से नहाते वक़्त मनिका ने पाया था कि उसके बदन पर फिर से वैक्सिंग करने की जरुरत थी, उसके बदन पर हलके रोएँ आने लगे थे. मनिका ने जवानी की देहलीज पर कदम रखने के साथ ही अपने बदन के सौंदर्य का अच्छे से ख्याल रखना शुरू कर दिया था और इस मामले में उसने कभी भी लापरवाही नहीं बरती थी. घर पर तो उसके पास अपना वैक्सिंग किट था लेकिन यहाँ दिल्ली में अपने पिता के साथ सिर्फ दो दिन का कार्यक्रम बना कर आई होने की वजह से वो उसे लेकर नहीं आई थी. फिर जयसिंह के साथ रूम शेयर करते हुए वह वैसे भी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकती थी. सो जब उसने वह साईन-बोर्ड देखा तो जयसिंह से बोली,
'पापा आज तो हम हॉटेल में ही हैं ना?'
'हाँ हैं तो...कहीं बाहर घूमने का मन है तुम्हारा?' जयसिंह ने पूछा.
'नहीं पापा...वो मैं इसलिए पूछ रही थी कि वहाँ पीछे -ब्यूटी एंड स्पा- का बोर्ड लगा था और मैं सोच रही थी कि हेयर-कट और फेशियल करा लूँ.' मनिका जयसिंह से वैक्सिंग का तो कैसे कहती सो उसने बाल कटवाने की बात कही थी, वैसे दोनों ही स्थितियों में कटने तो बाल ही थे.
'हाँ तो करा लो न...' जयसिंह ने कहा.
सो मनिका जयसिंह से उनका क्रेडिट-कार्ड ले उस सैलून में चल दी. जयसिंह, जो उसे गेट तक छोड़ने साथ आए थे, वहाँ से मुड़ कर अपने कमरे में चले गए और मनिका के वापस आने का इंतज़ार करने लगे. उधर मनिका ने सैलून के काउंटर पर जा वैक्सिंग, हेयर-कटिंग और ब्यूटी-फेशियल के लिए पूछा था, काउंटर मैनेज कर रही लड़की ने एक ब्यूटिशियन को बुला दिया था जो मनिका को अंदर ले गई थी.
जयसिंह कमरे में आ बेड पर लेट गए थे. मनिका ने उनसे कहा था कि उसे आने में थोड़ा वक़्त लग जाएगा सो उन्होंने सोचा कि वे थोड़ी देर सुस्ता लेंगे. वैसे भी टी.वी. देखने का उनका मन नहीं था और अब तो बस उनको मनिका को लेकर ख्याली पुलाव पकाने में ही मजा आता था. सो वे बिस्तर पर लेट मनिका की कही बातों और अपने आगे के क़दमों के बारे में सोच रहे थे. यह सब सोचते-सोचते वे उत्तेजित होने लगे और उनका लंड खड़ा हो गया. उन्होंने उसे हौले से दबा कर करवट बदली, सामने बेड के पास नीचे मनिका का सूटकेस पड़ा था. जयसिंह बेड से उठ खड़े हुए.
वे उठ कर मनिका के सूटकेस के पास पहुँचे और उसे उठा कर बेड पर रख खोल लिया. सूटकेस में नंबर-लॉक सिस्टम था और मनिका ने उसे लॉक नहीं कर रखा था. जयसिंह के दिल की धड़कने बढ़ गईं थी. सूटकेस खोलते ही उन्हें मनिका के कपड़ों में से उसके परफ्यूम और तन से आने वाली भीनी खुशबू का एहसास हुआ था. वे सूटकेस में उसके कपड़े टटोलने लगे, लेकिन जो वे ढूँढ़ रहे थे वो उन्हें नहीं मिला. वे थोड़े असमंजस में पड़ गए, आखिर उन्हें होना तो यहीं चाहिए था. अब उन्होंने जरा ध्यान से सूटकेस में रखी चीज़ें चेक करना शुरू की, उसमें मनिका के कुछ कपड़े थे जो उन्होंने उसे अभी तक पहने नहीं देखा था, बाकी तो आज उसने उनके साथ ही लॉन्ड्री में दिए ही थे. एक दो डिब्बों में झुमके-रिबन-बालों की क्लिप-बैंड इत्यादि सामान था. एक छोटा मेकअप किट भी उनके हाथ लगा. फिर उन्होंने सूटकेस के ऊपर वाले पार्टीशन में देखना शुरू किया. वहाँ भी मनिका के कुछ कपड़े और एक कपड़े व नायलॉन से बना किट रखा था. जयसिंह ने पाया कि उसने पहली रात जो शॉर्ट्स और गन्जी पहनी थी वे वहाँ रखे हुए थे. पहली रात के मनिका के हुस्न के दीदार की याद आते ही उनका कुछ शांत होता लंड फिर से उछल पड़ा था. अब उन्होंने वह किट बाहर निकाला, उसके साइड में ज़िप लगी हुई थी और वह एक बक्से की तरह खुलता था. जयसिंह ने उसे खोला और उन्हें अपने मन की मुराद मिल गई, उसमें मनिका के अंतवस्त्र थे. उस किट के अंदर लगे एक लेबल से जयसिंह को पता चला कि वह एक लॉनजुरे कैरिंग-केस था. जिसमे ब्रा रखने के लिए अलग से स्तननुमा जगह बनी हुई थी ताकि उनके कप मुड़े ना, और साइड में छोटी-छोटी पॉकेट्स थीं जिनमें मनिका ने बड़े करीने से अपनी पैंटीज़ समेट कर डाल रखीं थी 'कैसी-कैसी चीज़ें है इस रंडी के पास देखो जरा...ब्रा और कच्छियों के लिए भी अलग से केस...वाह'.
अपनी जवान बेटी के अंतवस्त्र हाथ में लेने का मौक़ा जयसिंह एक बार गँवा चुके थे लेकिन इस बार उन्होंने एक पल भी सोचे बिना मनिका की ब्रा-पैंटीयों को निकाल-निकाल कर देखना शुरू किया. कुल मिलाकर उसमे तीन जोड़ी रंग-बिरंगी ब्रा-पैंटीयाँ थीं (ब्रा: पर्पल, गुलाबी और सफ़ेद, पैंटी: पर्पल, हरी और स्काई-ब्लू). मनिका के ये सभी अंतवस्त्र बेहद छोटे-छोटे थे. जयसिंह मनिका की छोटी सी और कोमल पर्पल पैंटी को अपने हाथ में लेकर देख रहे थे. उसकी तीनों ही पैंटी थोंग स्टाइल की थीं 'और एक गुलाबी वाली जो चिनाल ने पहन रखी होगी' उन्होंने सोचा था. जयसिंह की पैंट में अब तक उनका लंड उनके अंडरवियर में छेद करने पर उतारू हो चुका था. जयसिंह रह नहीं सके और मनिका की पैंटी अपने नाक के पास ले जा कर उसकी गंध ली थी. पैंटी धुली हुई थी लेकिन फिर भी उसमें से एक हल्की मादा गंध आ रही थी 'आह्ह्ह...' एक जोरदार आह भर जयसिंह ने अपनी पैंट की ज़िप खोल अंडरवियर के अँधेरे से अपने लंड को आज़ाद किया. लंड उछल कर बाहर आ उनके हाथ से टकराया था और 'थप्प..' की आवाज़ आई थी. जयसिंह ने नीचे देखा और अपने काले घनघोर लंड पर अपनी बेटी की छोटी सी पैंटी लपेट बेड पर पीछे की ओर गिर पड़े.
जयसिंह बेसुध से हो गए थे. पैंटी का कोमल कपड़ा उनके खड़े लंड को गुदगुदा कर और उत्तेजित कर रहा था और उनका लंड फ़ुफ़कारें मार-मार हिल रहा था, उनके दोनों अंड-कोषों ने भी अपने अंदर भरी आग को बाहर निकालने की कोशिशें तेज़ कर दीं थी और दर्द से बिलबिला रहे थे. लेकिन आनंद की चरम् सीमा पर पहुँचने से पहले ही जयसिंह को अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा याद आ गई थी, कि वे मुठ नहीं मारेंगे, और उन्होंने किसी तरह अपने आप को संभाल लंड पर से हाथ हटा लिया.
कुछ देर हाँफते हुए पड़े रहने के बाद जयसिंह ने मनिका की पैंटी अपने लंड से उतारी और उसके सभी अंतवस्त्रों के साथ वापस पहले जैसे ही जँचा कर रख दीं. अब उनकी नज़र किट में ही रखे एक काले लिफाफे पर गईं. कौतुहलवश उन्होने उसे भी खोला, उसमें लड़कियोँ द्वारा पीरियड्स में लगाए जानेवाले पैड्स थे और दो कॉटन की नॉर्मल अंडरवियर भी रखी थी जिनका इस्तेमाल भी वे समझ गए 'साली की उन छोटी-छोटी पैंटीज़ में तो पैड टिकते नहीं होंगे...हम्म तो पीरियड्स का सामान अभी तक पैक पड़ा है...पर आज बारह दिन हमें यहाँ आए हो चुके हैं मतलब वक्त करीब है.' जयसिंह जानते थे कि पीरियड्स के वक्त लड़कियों के मन की स्थिति थोड़ी बदल जाती हैं और वे इमोशनल जल्दी हों जाने की प्रवृति में आ जातीं है. जयसिंह के खड़े लंड के मुहाने पर गीलापन आने लगा था.
मनिका के पास कमरे में घुसने के लिए दूसरा की-कार्ड था और उन्हें आए हुए थोड़ी देर हो चुकी थी. उसके लौट कर आने का अंदेशा होने पर उन्होंने धीरे-धीरे सारा सामान वापिस रखना शुरू किया. सामान रख जब वे सूटकेस बंद करने लगे थे तो उनकी नज़र एक बार फिर मनिका के मेकअप किट पर पड़ी. किट तो बंद था परन्तु उसके पास ही मनिका का लिप-ग्लॉस, जो वह रोज लगाया करती थी, बाहर ही रखा था. जयसिंह ने उसे उठाया और ढक्कन खोल उसकी खुशबू ले कर देखा, बिल्कुल वही खुशबू थी जो उन्होंने मनिका के होंठों से आते हुए महसूस की थी. जयसिंह ने अपने लंड के मुहाने पर आए पानी को अपने हाथ के अंगूठे पर लगाया और मनिका के लिप-ग्लॉस के ऊपर-ऊपर फैला कर ढक्कन लगा दिया. लिप-ग्लॉस और प्री-क्म दोनों में ही चिकनापन होने की वजह से किसी को भी देखने पर कोई अंतर पता नहीं लग सकता था. उन्होंने जल्दी से सूटकेस बन्द कर जस का तस रखा और फिर से बेड पर पीठ के बल गिर पड़े, अपनी उस हरकत ने उन्हें उत्तेजना से निढ़ाल कर दिया था.
कुछ पल बाद उनका अपने-आप पर कुछ काबू हुआ और उन्होंने उठ कर बाथरूम में जा अपने हाथ धोए, उनका लंड अभी भी बाहर लटक रहा था, जयसिंह ने पंजो के बल खड़े हो अपना लंड आगे कर वॉशबेसिन के नल के नीचे किया और उसे भी ठंडे पानी की धार से शांत करने लग गए. तभी कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई. जयसिंह हड़बड़ा गए, बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और जल्दी से अपना लंड अंदर ठूँस ज़िप बंद कर के हाथ धोए.
'पापा? क्या कर रहे हो? ' मनिका की आवाज़ आई.
'कुछ नहीं बस थोड़ा आलस आ रहा था तो हाथ-मुहँ धो रहा था. आ गईं तुम?' जयसिंह ने कहा.
'हाँ पापा...आ गई हूँ तभी तो आवाज़ आ रही है मेरी...' मनिका ने उनकी खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा.
'हाहाहा.. हाँ भई मान लिया...' जयसिंह बाथरूम से बाहर आते हुए बोले थे. मनिका बेड के पास अपना मोबाइल चार्ज लगा रही थी, उनकी आहट सुन वह पलटी और एक बार फिर जयसिंह के होश फाख्ता हो गए.
'आप कौन हैं मिस?' जयसिंह ने अचँभे से कहा.
'हीहीहाहाहा...पापा! क्या है आपको...इट्स मी ना...' मनिका ने कुछ हँसते कुछ लजाते हुए कहा.
जयसिंह वैसे तो अपने ज्यादातर इमोशन मनिका से दिखावे के लिए ही व्यक्त करते थे पर अपने सामने खड़ी खूबसूरत लड़की को देख वे आश्चर्यचकित रह गए थे. मनिका की खूबसूरती के कायल जयसिंह ने देखा कि ब्यूटी-सैलून जाने के बाद तो उसका काया-पलट ही हो गया था. मनिका ने बालों में स्टेप-कट करवाया था जिससे उसके बाल किसी मॉडल से प्रतीत हो रहे थे. उसका चेहरा भी मेकअप से दमक रहा था और गोरे-गोरे गालों पर लालिमा फैली थी. मनिका की आँखों को काले मस्कारा ने और अधिक मनमोहक बना दिया था व उसके होंठों पर एक गाजरी रंग की स्पार्कल-लिपस्टिक लगी थी जिससे वे काम-रस से भरे हुए जान पड़ रहे थे, जब वे उसे तकते रहे और कुछ नहीं बोले तो मनिका ने खीखियाते हुए फिर से कहा,
'पापा! स्टॉप इट ना...' वह तो बस मस्ती-मस्ती में हल्का सा मेकअप करवा आई थी और जयसिंह का रिएक्शन देख उसे लग रहा था कि वे उसकी टाँग खींच उसे सताने के लिए ऐसा कर रहे थे.
'पहले यह तो बता दो कि आप हैं कौन?' जयसिंह ने भी जरा मुस्कुरा कर मजाक करने के अंदाज़ से कहा.
कुछ देर तक यूँ ही उन दोनों के बीच खींच-तान चलती रही, उसकी खूबसूरती को निहारने के मारे जयसिंह रह-रह कर उसे देख मुस्काए जा रहे थे और उसके उनकी तरफ देखने पर कोई कमेंट कर उसे चिढ़ा रहे थे. आखिर मनिका को भी थोड़ी लाज आने लगी और वह बाथरूम में जा कर अपना मुहँ धो कर मेकअप साफ़ कर आई.
'अरे वो लड़की कहाँ गई जो अभी यहाँ बैठी थी?' जयसिंह ने मनिका को मेकअप उतारने के बाद देखते हुए पूछा.
'पापा आप फिर चालू हो गए...' मनिका हँसते हुए बोली.
'अरे भई इतनी सुन्दर लड़की के साथ बैठा था अभी मैं कि क्या बताऊँ?' जयसिंह ने उसे देखते हुए मुस्का कर कहा, 'पर पता नहीं कहाँ गई उठ कर अभी तुम्हारे आने से पहले...'
'हाहाहा पापा...भाग गई वो मुझे देख...' मनिका हँसते हुए बोली.
'ओह...मेरा तो दिल ही टूट गया फिर...' जयसिंह ने झूठा दुःख प्रकट किया.
'ऊऊऊ...क्यों पापा आपकी गर्लफ्रेंड थी क्या वो?' मनिका मजाक करते हुए बोली, जयसिंह को एक बार फिर मौके पर चौका मारने का चाँस मिल गया था.
'मेरी किस्मत में कहाँ ऐसी गर्लफ्रेंड...' जयसिंह ने मगर के आँसू बहाए.
'हाहाहा पापा...गर्लफ्रेंड चाहिए आपको? मम्मी को बता दूँ? बहुत पिटोगे देखना...' मनिका ने ठहाका लगाते हुए कहा था. उसे भी जयसिंह की टांग खिंचाई का मौका जो मिला था.
पर जयसिंह भी उसके पिता यूँ ही नहीं थे, 'बता दो भई...मेरा क्या है तुम ही फँसोगी.' जयसिंह ने शरारत से कहा.
'हैं? वो कैसे?' मनिका ने अचरज जताया.
'तुम ही तो कह रहीं थी उस दिन कि तुम्हारी सहेलियाँ मुझे तुम्हारा बॉयफ्रेंड कहती हैं.' जयसिंह बोले.
'हाँ...ओ शिट...पापा! कितने खराब हो आप...हमेशा मुझे हरा देते हो...' मनिका ने मुहँ बनाकर पाँव पटकते हुए नखरा किया.
'हाहाहा...' जयसिंह हँसते हुए बैठे रहे. 'और वो तो मेरी फ्रेंड्स कहतीं है मैं कोई सच्ची में आपकी गर्लफ्रेंड थोड़े ही ना हूँ...' मनिका ने नाराजगी दिखाते हुए उनके पास बैठते हुए कहा.
जयसिंह बस मुस्का दिए और उसकी तरफ हाथ बढ़ा दूसरे से अपनी जांघ थपथपा उसे गोद में आने का इशारा किया.
'जाओ मैं नहीं आती...गंदे हो आप...' मनिका नखरे कर ही थी.
'अरे भई सॉरी अब नहीं हँसता तुम पर...बस...' जयसिंह के चेहरे पर अभी भी शरारत थी.
'आप हँसोगे देख लेना...मुझे पता है ना...' मनिका ने उन्हें अविश्वास से देखते हुए कहा.
'अरे भई अभी तो नहीं हँस रहा ना...' जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे, 'सो अभी तो आ जाओ...' उन्होंने फिर अपनी जांघ पर हाथ रखते हुए उसे अपनी गोद में बुलाया.
'देख लेना पापा अगर आपने मुझे फिर तंग किया तो आपसे कभी बात नहीं करुँगी...' मनिका ने शिकायत भरे लहजे से कहा था पर उठ कर उनकी गोद में आ गई थी.
'लेकिन तुमने तो मुझसे नाराज ना होने का प्रॉमिस किया था न?' जयसिंह ने उसका मुहँ अपनी तरफ करते हुए पूछा.
'वो...वो तो मैंने ऐसे ही आपको उल्लू बनाने के लिए कर दिया था.' मनिका के चेहरे पर भी शरारती मुस्कान लौट आई थी.
'अच्छा ये बात थी...' जयसिंह ने मुस्का कर कहा और अपने दोनों हाथ मनिका के पेट पर ले जा उसे गुदगुदा दिया. 'आह क्या कच्चा बदन है...कुतिया हर वक़्त महकती भी रहती है...आह...' उन्होंने मनिका के जवान जिस्म पर इस तरह हाथ सेंकते हुए सोचा था, मनिका भी हिल-डुल रही थी सो उनका चेहरा उसके बालों में आ गया था.
'ईईईईईई...हाहाहा...पापाआआअ...नहीं नाराज होती...ईई...' मनिका उनकी गोद में उछलती हुई हँस रही थी.
जयसिंह ने उसे एक दो बार और गुदगुदा कर छोड़ दिया था क्यूंकि उसके इस तरह हिलने से उनकी पैंट में भी तूफ़ान उठने लगा था. मनिका अब खिलखिलाती हुई उनके साथ लग बैठी थी, उसकी साँस जरा फूली हुई थी. पहली बार उसका पूरा भार जयसिंह के शरीर पर था. जयसिंह अपने बदन पर इस तरह उसके यौवन भरे जिस्म का एहसास पाकर अपनी उत्तेजना को बड़ी मुस्किल से कंट्रोल कर पा रहे थे.
कुछ देर बाद जयसिंह की मुश्किल मनिका ने हल कर दी जब उसने उनकी गोद से उठते हुए उनसे भूख लगी होने का कहा था. सो आज एक बार फिर से वे नीचे रेस्टोरेंट में खाना खाने को चले गए थे.
गुमराह पिता की हमराह बेटी--6
अगली सुबह जब मनिका उठी तो सब कुछ उसे बहुत अच्छा-अच्छा लग रहा था. आँख खुलने के कुछ पल बाद पास लेटे जयसिंह को देख उसे रात की बातें याद आईं और वह अपने पापा से फिर से दोस्ती हो जाने का ख्याल करते ही ख़ुशी से चहकी,
'पापा! आप अभी तक सो रहे हो? देखो आज मैं आपसे पहले उठ गई...'
'उन्ह्ह हम्म...' उनींदे से जयसिंह ने आँखें खोलीं, दो दिन से काउच पर आराम से न सो पाने की वजह से आज उन्हें काफी गहरी नींद आई थी.
'उठो ना पापा...क्या आलस बिखरा रहे हो...' मनिका ने उन्हें हिला कर कहा.
मनिका जयसिंह को उठा कर ही मानी थी, वे दोनों बाथरूम जा कर आ चुके थे और ब्रेकफ़ास्ट ऑर्डर कर दिया था. जयसिंह एक बार फिर अखबार में स्टॉक-मार्केट की ख़बरें देख रहे थे. मनिका भी उनके पास ही बैठी रुक-रुक कर उनसे बातें करते हुए एक मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी जब रूम-सर्विस आ गई. मनिका ने जा कर गेट खोला,
'गुड मॉर्निंग मैम.' उसके सामने वह पहले दिन वाला ही वेटर खड़ा था.
'म..म..मॉर्निंग' मनिका उसकी कुटिल मुस्कान भूली नहीं थी.
वेटर अंदर आ गया और उनका नाश्ता टेबल पर लगाने लगा. मनिका जयसिंह के पास बैठ गई थी पर अब उसकी नज़र फर्श पर टिकी थी. वेटर ने खाना लगा दिया और एक मंद सी मुस्कुराहट लिए खड़ा रहा, जयसिंह ने उसे टिप देते हुए फारिग कर दिया. उसने अदब से झुक कर जयसिंह से कहा था,
'थैंक्यू सर.' और फिर मनिका से मुख़ातिब हो बोला 'थैंक्यू मैम...' मनिका की नज़र उससे मिली थी, वेटर के चेहरे पर फिर वही मुस्कान थी.
वेटर के चले जाने के बाद मनिका ने जयसिंह से कहा,
'आई डोंट लाइक हिम.'
'क्या? हू?' जयसिंह ने अखबार से नजर उठा कर पूछा.
'अरे यही जो अभी गया है...वो वेटर...' मनिका ने बताया.
'हैं? क्यूँ क्या बात हुई...?' जयसिंह ने अखबार साइड में रखते हुए पूछा.
'ऐसे ही बस...अजीब सा आदमी है वो...' मनिका भी उन्हें क्या बताती.
'हाहाहा...पता नहीं क्या हो जाता है तुम्हें चलते-चलते, अब बताओ मैडम को वेटर भी पसंद का चाहिए.' जयसिंह हँस कर बोले.
'क्या है पापा डोंट मेक फन ऑफ़ मी. चलो ब्रेकफास्ट करते हैं.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा था.
जब जयसिंह और मनिका ने नाश्ता कर लिया था तो मनिका ने पूछा था कि आज वे क्या करने वाले हैं? जिस पर जयसिंह ने आज-आज रूम में ही रहकर रेस्ट करने की इच्छा जताई थी. मनिका भी मान गई और बोली कि वह नहाने जा रही है. जयसिंह ने उसे मुस्कुरा कर देखा भर था, उनके मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गई थी.
जब मनिका नहा कर वापस निकली तो जयसिंह को काउच पर सुस्ताते पाया. दरअसल वे लेट कर नाटक कर रहे थे ताकि मनिका को नहा कर निकलते हुए देख सकें. मनिका ने बाहर आते ही उनकी और देखा था और उन्हें सोता समझ अपने सूटकेस के पास जा कर कपड़े रखने लगी.
'नहा ली मनिका?' जयसिंह ने थोड़ा सा सिर उठा उसकी तरफ देखते हुए कहा.
'हाँ पापा.' मनिका पीछे मुड़ बोली. जयसिंह ने पाया कि उसकी आवाज़ में पहले जैसी चहक नहीं थी.
कुछ देर बाद मनिका आ कर काउच के पास रखी सोफेनुमा कुर्सी पर बैठ गई. जयसिंह उसके चेहरे के भाव देख समझ गए कि वह कुछ कहना चाह रही है पर चुपचाप लेटे रहे और आँखें बंद कर फिर से सोने का नाटक करने लगे.
'आप नहीं ले रहे बाथ?' मनिका ने उनसे पूछा.
'म्मम्म...अभी थोड़ी देर में जाता हूँ... आज तो रूम पर ही हैं ना हम...' जयसिंह ने झूठा आलस दिखाया.
'पापा?' मनिका अपना तकियाकलाम संबोधन इस्तेमाल कर बोली.
'हम्म्?' जयसिंह ने नाटक जारी रखते हुए थोड़ी सी आँख खोल उसे देखा.
'पापा कल रात को...रात को आप शावर से नहाए थे क्या?' मनिका ने पूछा, उसकी नज़रें जमीन पर टिकीं थी और चेहरे पर लालिमा झलक रही थी.
मनिका ख़ुशी-ख़ुशी नहाने घुसी थी पर जैसे ही उसने शावर का पर्दा हटाया था उसे वह नज़र आया जिसने पिछली रात जयसिंह को साँप सुंघा दिया था, उसकी ब्रा और पैंटी जो नल पर लटक रही थी. मनिका एक बार तो सकपका गई, 'ये यहाँ कैसे पहुँची..?' फिर उसे याद आया कि कल रात नहाने के बाद उसने उन्हें वहीँ छोड़ दिया था. वह उन्हें उठाने को हुई थी जब उसे याद आया कि जयसिंह ने रात को आकर बाथ लिया था 'ओह शिट...' और इसलिए उसने बाहर निकल कर जयसिंह से टोह लेते हुए पूछा था कि क्या वे शावर में गए थे.
जब मनिका ने उनसे कहा था कि वह नहाने जा रही है तो जयसिंह को शावर में पड़े उसके अंतवस्त्रो का ख्याल आ गया था और वे मन ही मन प्रसन्न हो उठे थे. रात को अचानक मनिका के माफ़ी मांग लेने से यह बात उनके दीमाग से निकल गई थी. अब उन्होंने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा,
'नहीं तो, बाथटब यूज़ किया था मैंने तो...क्यूँ क्या हुआ?'
'ओह...अच्छा. कुछ नहीं पापा ऐसे ही पूछ रही थी.' मनिका ने राहत भरी साँस खींची. 'पापा ने कुछ नहीं देखा थैंक गॉड..' उसने मन ही मन सोचा.
'ऐसे ही?' जयसिंह ने सवाल पर थोड़ा जोर दे पूछा.
'हाँ पापा.' मनिका ने दोहराया.
'अच्छा भई मत बताओ...' जयसिंह ने खड़े होते हुए कहा और मनिका की तरफ देखा 'मैं नहा कर आता हूँ चलो...'
'ओके पापा.' मनिका ने उनकी आधी बात का ही जवाब दिया.
जयसिंह खड़े हो जिस कुर्सी पर वह बैठी थी उसके पास से गुजरते हुए रुक गए और मनिका के कँधे पर हाथ रखा, 'मनिका?'
'हम्म...हाँ पापा...?' मनिका अब पहले सी चहक कर बोली.
जयसिंह ने अपने चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान लाते हुए कहा 'कपड़े ही तो हैं...हैं ना?' और आगे बढ़ नहाने चले गए.
जयसिंह नहाने घुस गए, पर वे मनिका के मन में शरमो-हया के ज्वार उठा गए थे. उन्होंने पिछली रात की उसी की कही बात को इस तरह से कह दिया था कि मनिका न चाहकर भी मुस्का उठी थी 'हाआआआ...पापा ने देख लीं मेरी अंडरवियर..! हाय राम...' मनिका ने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा कर सोचा 'और तो और कैसे बन रहे थे...मैंने तो बाथटब यूज़ किया था...झूठे ना हों तो...' मनिका शरम से कुर्सी में गड़ी जा रही थी 'कल तक तो मैंने इतना बखेड़ा खड़ा किया हुआ था और अब अपनी ही बेवकूफी से बेइज्जती हो गई है...क्या सोचा होगा पापा ने भी...कि कैसी बेशरम हूँ मैं... हाय फूटी किस्मत...'
थोड़ी देर बाद जयसिंह नहा कर निकल आए. मनिका, जो कुर्सी पर ही बैठी थी, ने उठते हुए कहा,
'पापा...आई एम् सो एमबैरेस्ड...'
जयसिंह ने उसकी तरफ झूठे असमंजस से देखा. इस पर मनिका ने आगे सफाई पेश की,
'मैं भूल गई थी...कल जल्दी में...' मनिका अटकते हुए इतना ही कह पाई.
अब जयसिंह ने सीरियस सा अंदाज इख़्तियार कर लिया और उसके पास आ गए 'मनिका तुम इतना क्या सोचने लगी? कल रात तो बड़ा बड़प्पन दिखा रहीं थी; कि कपड़े ही तो हैं, अब ये अचानक क्या हुआ?'
मनिका से कुछ पल कुछ कहते ना बना पर जयसिंह के उसे ताकते रहने पर उसने धीरे से कहा, 'हाँ आई क्नॉ पापा...पर शरम तो आती ही है ना...आपने भी क्या सोचा होगा...कि कैसी बेशरम हूँ मैं...'
'ओह गॉड मनिका ये तुम क्या बोले जा रही हो..? मैं ऐसा क्यूँ सोचूँगा भला?' जयसिंह अब अचरज जता रहे थे 'कल जब तुमने मुझे अपना सॉरी बोलने का रीज़न दिया था तब तक मैं अपने आप को ही गलत मान रहा था...पर जब तुमने कहा कि अंडरवियर भी कपड़े ही तो होते हैं तो मुझे भी तुम्हारी बात की सच्चाई का इल्म हुआ, एवरीवन हैस अंडरवियर इसमें क्या एमबैरेसमेंट?...लेकिन अब तुम खुद ही अपनी बात काट रही हो...इस मतलब से तो फिर मैं ही गलत था...' जयसिंह ने मनिका को भावनाओं और तर्क के जाल में फंसाते हुए आगे कहा था.
'नो पापा ऐसा नहीं है...आप सही कह रहे हो बट आप भी समझो ना...अपने पापा से शरम नहीं आएगी क्या? इसीलिए इट्स सो एमबैरेसिंग फॉर मी...' मनिका ने सकुचाते हुए दलील दी.
'ओके मनिका...आई मीन लवली...इट्स ओके...' जयसिंह ने अपना ब्रह्मास्त्र चलाया.
मनिका की आनाकानी पर ब्रेक लग गया था 'पापा ऐसे तो मत कहो...'
'तो कैसे कहूँ?' जयसिंह ने जरा रूखी आवाज़ में कहा.
'प्लीज मेरी बात समझो ना...प्लीज?' मनिका ने मिन्नत की.
जयसिंह समझ गए थे कि अब उनका सामना अपने प्लान के सबसे आखिरी और जटिल हिस्से से हो रहा था. मनिका भले ही उनके साथ कितनी भी फ्रैंक हो चुकी थी पर अभी भी उसके मन में सामाज के नियम-कायदों का एहसास मजबूत था और अगर उन्होंने जबरदस्ती उसे बदलने की कोशिश की तो उनको कुएँ के पास आकर भी प्यासा लौटना पड़ सकता है. सो उन्होंने अभी के लिए पीछे हटना ही उचित समझा,
'ओके मनिका आई अंडरस्टैंड...पर जो हो गया सो हो गया. मैंने उस बात को बिल्कुल माइंड नहीं किया और बस इतना चाहता हूँ कि तुम भी उस पर इतनी फ़िक्र ना करो...कैन यू डू थैट?'
'ओके पापा...' मनिका ने हौले से कहा.
'देन गिव मी अ स्माइल...ऐसे उदासी नहीं चलेगी...' जयसिंह ने मुस्काते हुए उसे उकसाया.
'हेहे..पापा. मैं कहाँ उदास हूँ...' कह मनिका हँस दी.
'गुड़ गर्ल.' जयसिंह ने उसे स्माइल देते देख कहा था और फिर अपने सूटकेस की तरफ चले गए थे.
'हाय...पापा तो लिटरली कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हैं...इतना तो मैंने भी नहीं सोचा था. मैंने तो उन्हें मनाने के लिए कहा था बट उन्होंने तो मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकाल लिया...अफ्टेरॉल वो हैं तो मेरे पापा ही, उन्हें नहीं तो मुझे तो लाज आएगी ही...बट पापा तो इतना कूल एक्ट कर रहें हैं और मजाक में ले रहे हैं...और यहाँ मैं शरम से मरी जा रही हूँ...क्यूँकि बात सिर्फ अंडरवियर की नहीं है, आई वियर थोंगस् (छोटी और सेक्सी पैंटी)...इसलिए और ज्यादा एमबैरेस हो रही हूँ...' जयसिंह को स्माइल दे कर भी मनिका अपनी दुविधा में फंसी बैठी थी.
'मनिका जरा रूम-सर्विस पर कॉल करके लॉन्ड्री वाले को बुलाना. मेरे सारे कपड़े धोने वाले हो रहे हैं.' जयसिंह की आवाज़ सुन मनिका का ध्यान टूटा.
जयसिंह और मनिका को दिल्ली आए आज बारह दिन हो चले थे और उनके साथ लाए कपड़े एक-दो बार पहन लेने और दिल्ली के प्रदूषण भरे वातावरण के कारण अब धुलाई योग्य हो गए थे. मनिका को भी अपनी कुछ पोशाकें धुलने देने का ख्याल आया था. सो उसने कुर्सी से उठ, अपने मन की उलझन को एक ओर कर, जयसिंह के कहे अनुसार लॉन्ड्री वाले को बुलाने के लिए कॉल किया.
थोड़ी देर में लॉन्ड्री से एक लड़का आया और उनके कपड़े अगली शाम तक ड्राई-क्लीन कर वापस देने का बोल ले गया. अब जयसिंह और मनिका को बाकी का दिन साथ ही बिताना था और अभी तो उनका ब्रेकफास्ट भी नहीं हुआ था. जयसिंह ने सजेस्ट किया क़ि वे नीचे रेस्टॉरेंट में जा कर नाश्ता करें और मनिका को लेकर नीचे चल दिए.
रेस्टॉरेंट में जा उन्होंने ऑर्डर किया और बैठे बतियाने लगे. जयसिंह ने मनिका को याद दिलाया क़ि उसके इंटरव्यू का दिन करीब आ चुका था और उसे थोड़ी तैयारी कर लेनी चाहिए जिस पर मनिका बुरा मानते हुए बोली थी क़ि वे उसकी इंटेलिजेंस की कोई कद्र ही नहीं करते और उसे सब आता है. दरअसल मनिका के ताऊ कॉलेज में प्रोफेसर थे और उन्होंने उसे बहुत अच्छे से तैयारी करवाई थी सो मनिका का ओवर-कॉन्फिडेंट होना लाजमी था.
खैर इस तरह बातें करते हुए अब उन्हें एहसास हुआ कि उनका वापस घर जाने का समय भी आने वाला था. मनिका और जयसिंह की पिछली रात ही फिर से बढ़ी आत्मीयता और सुबह कमरे में हुई बातचीत ने मनिका को इमोशनली थोड़ा सेंसिटिव कर दिया था और घर वापस जाने की बात आने पर उसने वहाँ बैठे-बैठे जयसिंह से अपने मन की कुछ बातें शेयर कर दी थी, कि कैसे उसे उनके इतने खुले विचारों पर अचरज होता है और उनका उसे एक बच्चे की तरह नहीं बल्कि एक समझदार एडल्ट की तरह ट्रीट करना कितना अच्छा लगता है. उसने उन्हें यह भी बताया कि कैसे उसने सोचा था कि काश घर वापस जाने के बाद भी उनके बीच का ये बॉन्ड न टूटे लेकिन वह ये भी समझती थी कि घर जा कर उनके बीच कुछ दूरी आ ही जाएगी क्यूँकि वहाँ का माहौल अलग था व वे अपनी-अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में लगें होंगे.
मन ही मन खुश होते जयसिंह ने सोचा था 'साली कुतिया इतनी भोली भी नहीं है जितना मैंने समझा था. बस इसपर यह दोस्ती का भूत इसी तरह चढ़ा रहे तो आखिरी बाजी भी जीती जा सकती है.' और फिर उसे आश्वाशन दिया था कि वे बिल्कुल नहीं बदलेंगे और उनके बीच का यह दोस्ती का रिश्ता नहीं टूटने देंगे बशर्ते कि वह भी उन पर भरोसा बनाए रखे.
इसपर मनिका ने बहुत खुश हो कर उन्हें आश्वस्त किया था कि वह भी यही चाहती थी. जयसिंह ने उसे एक और दफा अपनी मम्मी के सामने थोड़ा सोच-समझ कर रहने की हिदायत दी थी. उनका वही पुराना तर्क था कि उसकी माँ संचिता सोचती है कि उन्होंने अपने लाड़-प्यार से मनिका को बिगाड़ दिया था, जिसपर मनिका ने भी उनसे हाँ में हाँ मिलाई थी. उनके यूँ बातें करते-करते उनका खाना भी आ गया था.
जयसिंह ब्रेकफास्ट के बाद मनिका को लेकर कुछ देर हॉटेल के गार्डन में घूमने निकल गए थे. एक बार फिर मनिका अब उनकी बाहँ थामे चल रही थी. जब वे गार्डन में घूम कर वापस लौट रहे थे तो मनिका की नज़र एक तरफ लगे बोर्ड पर गई. जिसपर हॉटेल के विभिन्न हिस्सों और फैसिलिटीज़ के नाम और डायरेक्शन लिखे हुए थे. उनमें से एक नाम ने उसका ध्यान आकर्षित किया था 'ब्यूटी एंड स्पा'.
एक-दो दिन से नहाते वक़्त मनिका ने पाया था कि उसके बदन पर फिर से वैक्सिंग करने की जरुरत थी, उसके बदन पर हलके रोएँ आने लगे थे. मनिका ने जवानी की देहलीज पर कदम रखने के साथ ही अपने बदन के सौंदर्य का अच्छे से ख्याल रखना शुरू कर दिया था और इस मामले में उसने कभी भी लापरवाही नहीं बरती थी. घर पर तो उसके पास अपना वैक्सिंग किट था लेकिन यहाँ दिल्ली में अपने पिता के साथ सिर्फ दो दिन का कार्यक्रम बना कर आई होने की वजह से वो उसे लेकर नहीं आई थी. फिर जयसिंह के साथ रूम शेयर करते हुए वह वैसे भी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकती थी. सो जब उसने वह साईन-बोर्ड देखा तो जयसिंह से बोली,
'पापा आज तो हम हॉटेल में ही हैं ना?'
'हाँ हैं तो...कहीं बाहर घूमने का मन है तुम्हारा?' जयसिंह ने पूछा.
'नहीं पापा...वो मैं इसलिए पूछ रही थी कि वहाँ पीछे -ब्यूटी एंड स्पा- का बोर्ड लगा था और मैं सोच रही थी कि हेयर-कट और फेशियल करा लूँ.' मनिका जयसिंह से वैक्सिंग का तो कैसे कहती सो उसने बाल कटवाने की बात कही थी, वैसे दोनों ही स्थितियों में कटने तो बाल ही थे.
'हाँ तो करा लो न...' जयसिंह ने कहा.
सो मनिका जयसिंह से उनका क्रेडिट-कार्ड ले उस सैलून में चल दी. जयसिंह, जो उसे गेट तक छोड़ने साथ आए थे, वहाँ से मुड़ कर अपने कमरे में चले गए और मनिका के वापस आने का इंतज़ार करने लगे. उधर मनिका ने सैलून के काउंटर पर जा वैक्सिंग, हेयर-कटिंग और ब्यूटी-फेशियल के लिए पूछा था, काउंटर मैनेज कर रही लड़की ने एक ब्यूटिशियन को बुला दिया था जो मनिका को अंदर ले गई थी.
***
जयसिंह कमरे में आ बेड पर लेट गए थे. मनिका ने उनसे कहा था कि उसे आने में थोड़ा वक़्त लग जाएगा सो उन्होंने सोचा कि वे थोड़ी देर सुस्ता लेंगे. वैसे भी टी.वी. देखने का उनका मन नहीं था और अब तो बस उनको मनिका को लेकर ख्याली पुलाव पकाने में ही मजा आता था. सो वे बिस्तर पर लेट मनिका की कही बातों और अपने आगे के क़दमों के बारे में सोच रहे थे. यह सब सोचते-सोचते वे उत्तेजित होने लगे और उनका लंड खड़ा हो गया. उन्होंने उसे हौले से दबा कर करवट बदली, सामने बेड के पास नीचे मनिका का सूटकेस पड़ा था. जयसिंह बेड से उठ खड़े हुए.
वे उठ कर मनिका के सूटकेस के पास पहुँचे और उसे उठा कर बेड पर रख खोल लिया. सूटकेस में नंबर-लॉक सिस्टम था और मनिका ने उसे लॉक नहीं कर रखा था. जयसिंह के दिल की धड़कने बढ़ गईं थी. सूटकेस खोलते ही उन्हें मनिका के कपड़ों में से उसके परफ्यूम और तन से आने वाली भीनी खुशबू का एहसास हुआ था. वे सूटकेस में उसके कपड़े टटोलने लगे, लेकिन जो वे ढूँढ़ रहे थे वो उन्हें नहीं मिला. वे थोड़े असमंजस में पड़ गए, आखिर उन्हें होना तो यहीं चाहिए था. अब उन्होंने जरा ध्यान से सूटकेस में रखी चीज़ें चेक करना शुरू की, उसमें मनिका के कुछ कपड़े थे जो उन्होंने उसे अभी तक पहने नहीं देखा था, बाकी तो आज उसने उनके साथ ही लॉन्ड्री में दिए ही थे. एक दो डिब्बों में झुमके-रिबन-बालों की क्लिप-बैंड इत्यादि सामान था. एक छोटा मेकअप किट भी उनके हाथ लगा. फिर उन्होंने सूटकेस के ऊपर वाले पार्टीशन में देखना शुरू किया. वहाँ भी मनिका के कुछ कपड़े और एक कपड़े व नायलॉन से बना किट रखा था. जयसिंह ने पाया कि उसने पहली रात जो शॉर्ट्स और गन्जी पहनी थी वे वहाँ रखे हुए थे. पहली रात के मनिका के हुस्न के दीदार की याद आते ही उनका कुछ शांत होता लंड फिर से उछल पड़ा था. अब उन्होंने वह किट बाहर निकाला, उसके साइड में ज़िप लगी हुई थी और वह एक बक्से की तरह खुलता था. जयसिंह ने उसे खोला और उन्हें अपने मन की मुराद मिल गई, उसमें मनिका के अंतवस्त्र थे. उस किट के अंदर लगे एक लेबल से जयसिंह को पता चला कि वह एक लॉनजुरे कैरिंग-केस था. जिसमे ब्रा रखने के लिए अलग से स्तननुमा जगह बनी हुई थी ताकि उनके कप मुड़े ना, और साइड में छोटी-छोटी पॉकेट्स थीं जिनमें मनिका ने बड़े करीने से अपनी पैंटीज़ समेट कर डाल रखीं थी 'कैसी-कैसी चीज़ें है इस रंडी के पास देखो जरा...ब्रा और कच्छियों के लिए भी अलग से केस...वाह'.
अपनी जवान बेटी के अंतवस्त्र हाथ में लेने का मौक़ा जयसिंह एक बार गँवा चुके थे लेकिन इस बार उन्होंने एक पल भी सोचे बिना मनिका की ब्रा-पैंटीयों को निकाल-निकाल कर देखना शुरू किया. कुल मिलाकर उसमे तीन जोड़ी रंग-बिरंगी ब्रा-पैंटीयाँ थीं (ब्रा: पर्पल, गुलाबी और सफ़ेद, पैंटी: पर्पल, हरी और स्काई-ब्लू). मनिका के ये सभी अंतवस्त्र बेहद छोटे-छोटे थे. जयसिंह मनिका की छोटी सी और कोमल पर्पल पैंटी को अपने हाथ में लेकर देख रहे थे. उसकी तीनों ही पैंटी थोंग स्टाइल की थीं 'और एक गुलाबी वाली जो चिनाल ने पहन रखी होगी' उन्होंने सोचा था. जयसिंह की पैंट में अब तक उनका लंड उनके अंडरवियर में छेद करने पर उतारू हो चुका था. जयसिंह रह नहीं सके और मनिका की पैंटी अपने नाक के पास ले जा कर उसकी गंध ली थी. पैंटी धुली हुई थी लेकिन फिर भी उसमें से एक हल्की मादा गंध आ रही थी 'आह्ह्ह...' एक जोरदार आह भर जयसिंह ने अपनी पैंट की ज़िप खोल अंडरवियर के अँधेरे से अपने लंड को आज़ाद किया. लंड उछल कर बाहर आ उनके हाथ से टकराया था और 'थप्प..' की आवाज़ आई थी. जयसिंह ने नीचे देखा और अपने काले घनघोर लंड पर अपनी बेटी की छोटी सी पैंटी लपेट बेड पर पीछे की ओर गिर पड़े.
जयसिंह बेसुध से हो गए थे. पैंटी का कोमल कपड़ा उनके खड़े लंड को गुदगुदा कर और उत्तेजित कर रहा था और उनका लंड फ़ुफ़कारें मार-मार हिल रहा था, उनके दोनों अंड-कोषों ने भी अपने अंदर भरी आग को बाहर निकालने की कोशिशें तेज़ कर दीं थी और दर्द से बिलबिला रहे थे. लेकिन आनंद की चरम् सीमा पर पहुँचने से पहले ही जयसिंह को अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा याद आ गई थी, कि वे मुठ नहीं मारेंगे, और उन्होंने किसी तरह अपने आप को संभाल लंड पर से हाथ हटा लिया.
कुछ देर हाँफते हुए पड़े रहने के बाद जयसिंह ने मनिका की पैंटी अपने लंड से उतारी और उसके सभी अंतवस्त्रों के साथ वापस पहले जैसे ही जँचा कर रख दीं. अब उनकी नज़र किट में ही रखे एक काले लिफाफे पर गईं. कौतुहलवश उन्होने उसे भी खोला, उसमें लड़कियोँ द्वारा पीरियड्स में लगाए जानेवाले पैड्स थे और दो कॉटन की नॉर्मल अंडरवियर भी रखी थी जिनका इस्तेमाल भी वे समझ गए 'साली की उन छोटी-छोटी पैंटीज़ में तो पैड टिकते नहीं होंगे...हम्म तो पीरियड्स का सामान अभी तक पैक पड़ा है...पर आज बारह दिन हमें यहाँ आए हो चुके हैं मतलब वक्त करीब है.' जयसिंह जानते थे कि पीरियड्स के वक्त लड़कियों के मन की स्थिति थोड़ी बदल जाती हैं और वे इमोशनल जल्दी हों जाने की प्रवृति में आ जातीं है. जयसिंह के खड़े लंड के मुहाने पर गीलापन आने लगा था.
मनिका के पास कमरे में घुसने के लिए दूसरा की-कार्ड था और उन्हें आए हुए थोड़ी देर हो चुकी थी. उसके लौट कर आने का अंदेशा होने पर उन्होंने धीरे-धीरे सारा सामान वापिस रखना शुरू किया. सामान रख जब वे सूटकेस बंद करने लगे थे तो उनकी नज़र एक बार फिर मनिका के मेकअप किट पर पड़ी. किट तो बंद था परन्तु उसके पास ही मनिका का लिप-ग्लॉस, जो वह रोज लगाया करती थी, बाहर ही रखा था. जयसिंह ने उसे उठाया और ढक्कन खोल उसकी खुशबू ले कर देखा, बिल्कुल वही खुशबू थी जो उन्होंने मनिका के होंठों से आते हुए महसूस की थी. जयसिंह ने अपने लंड के मुहाने पर आए पानी को अपने हाथ के अंगूठे पर लगाया और मनिका के लिप-ग्लॉस के ऊपर-ऊपर फैला कर ढक्कन लगा दिया. लिप-ग्लॉस और प्री-क्म दोनों में ही चिकनापन होने की वजह से किसी को भी देखने पर कोई अंतर पता नहीं लग सकता था. उन्होंने जल्दी से सूटकेस बन्द कर जस का तस रखा और फिर से बेड पर पीठ के बल गिर पड़े, अपनी उस हरकत ने उन्हें उत्तेजना से निढ़ाल कर दिया था.
कुछ पल बाद उनका अपने-आप पर कुछ काबू हुआ और उन्होंने उठ कर बाथरूम में जा अपने हाथ धोए, उनका लंड अभी भी बाहर लटक रहा था, जयसिंह ने पंजो के बल खड़े हो अपना लंड आगे कर वॉशबेसिन के नल के नीचे किया और उसे भी ठंडे पानी की धार से शांत करने लग गए. तभी कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई. जयसिंह हड़बड़ा गए, बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और जल्दी से अपना लंड अंदर ठूँस ज़िप बंद कर के हाथ धोए.
'पापा? क्या कर रहे हो? ' मनिका की आवाज़ आई.
'कुछ नहीं बस थोड़ा आलस आ रहा था तो हाथ-मुहँ धो रहा था. आ गईं तुम?' जयसिंह ने कहा.
'हाँ पापा...आ गई हूँ तभी तो आवाज़ आ रही है मेरी...' मनिका ने उनकी खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा.
'हाहाहा.. हाँ भई मान लिया...' जयसिंह बाथरूम से बाहर आते हुए बोले थे. मनिका बेड के पास अपना मोबाइल चार्ज लगा रही थी, उनकी आहट सुन वह पलटी और एक बार फिर जयसिंह के होश फाख्ता हो गए.
***
'आप कौन हैं मिस?' जयसिंह ने अचँभे से कहा.
'हीहीहाहाहा...पापा! क्या है आपको...इट्स मी ना...' मनिका ने कुछ हँसते कुछ लजाते हुए कहा.
जयसिंह वैसे तो अपने ज्यादातर इमोशन मनिका से दिखावे के लिए ही व्यक्त करते थे पर अपने सामने खड़ी खूबसूरत लड़की को देख वे आश्चर्यचकित रह गए थे. मनिका की खूबसूरती के कायल जयसिंह ने देखा कि ब्यूटी-सैलून जाने के बाद तो उसका काया-पलट ही हो गया था. मनिका ने बालों में स्टेप-कट करवाया था जिससे उसके बाल किसी मॉडल से प्रतीत हो रहे थे. उसका चेहरा भी मेकअप से दमक रहा था और गोरे-गोरे गालों पर लालिमा फैली थी. मनिका की आँखों को काले मस्कारा ने और अधिक मनमोहक बना दिया था व उसके होंठों पर एक गाजरी रंग की स्पार्कल-लिपस्टिक लगी थी जिससे वे काम-रस से भरे हुए जान पड़ रहे थे, जब वे उसे तकते रहे और कुछ नहीं बोले तो मनिका ने खीखियाते हुए फिर से कहा,
'पापा! स्टॉप इट ना...' वह तो बस मस्ती-मस्ती में हल्का सा मेकअप करवा आई थी और जयसिंह का रिएक्शन देख उसे लग रहा था कि वे उसकी टाँग खींच उसे सताने के लिए ऐसा कर रहे थे.
'पहले यह तो बता दो कि आप हैं कौन?' जयसिंह ने भी जरा मुस्कुरा कर मजाक करने के अंदाज़ से कहा.
कुछ देर तक यूँ ही उन दोनों के बीच खींच-तान चलती रही, उसकी खूबसूरती को निहारने के मारे जयसिंह रह-रह कर उसे देख मुस्काए जा रहे थे और उसके उनकी तरफ देखने पर कोई कमेंट कर उसे चिढ़ा रहे थे. आखिर मनिका को भी थोड़ी लाज आने लगी और वह बाथरूम में जा कर अपना मुहँ धो कर मेकअप साफ़ कर आई.
'अरे वो लड़की कहाँ गई जो अभी यहाँ बैठी थी?' जयसिंह ने मनिका को मेकअप उतारने के बाद देखते हुए पूछा.
'पापा आप फिर चालू हो गए...' मनिका हँसते हुए बोली.
'अरे भई इतनी सुन्दर लड़की के साथ बैठा था अभी मैं कि क्या बताऊँ?' जयसिंह ने उसे देखते हुए मुस्का कर कहा, 'पर पता नहीं कहाँ गई उठ कर अभी तुम्हारे आने से पहले...'
'हाहाहा पापा...भाग गई वो मुझे देख...' मनिका हँसते हुए बोली.
'ओह...मेरा तो दिल ही टूट गया फिर...' जयसिंह ने झूठा दुःख प्रकट किया.
'ऊऊऊ...क्यों पापा आपकी गर्लफ्रेंड थी क्या वो?' मनिका मजाक करते हुए बोली, जयसिंह को एक बार फिर मौके पर चौका मारने का चाँस मिल गया था.
'मेरी किस्मत में कहाँ ऐसी गर्लफ्रेंड...' जयसिंह ने मगर के आँसू बहाए.
'हाहाहा पापा...गर्लफ्रेंड चाहिए आपको? मम्मी को बता दूँ? बहुत पिटोगे देखना...' मनिका ने ठहाका लगाते हुए कहा था. उसे भी जयसिंह की टांग खिंचाई का मौका जो मिला था.
पर जयसिंह भी उसके पिता यूँ ही नहीं थे, 'बता दो भई...मेरा क्या है तुम ही फँसोगी.' जयसिंह ने शरारत से कहा.
'हैं? वो कैसे?' मनिका ने अचरज जताया.
'तुम ही तो कह रहीं थी उस दिन कि तुम्हारी सहेलियाँ मुझे तुम्हारा बॉयफ्रेंड कहती हैं.' जयसिंह बोले.
'हाँ...ओ शिट...पापा! कितने खराब हो आप...हमेशा मुझे हरा देते हो...' मनिका ने मुहँ बनाकर पाँव पटकते हुए नखरा किया.
'हाहाहा...' जयसिंह हँसते हुए बैठे रहे. 'और वो तो मेरी फ्रेंड्स कहतीं है मैं कोई सच्ची में आपकी गर्लफ्रेंड थोड़े ही ना हूँ...' मनिका ने नाराजगी दिखाते हुए उनके पास बैठते हुए कहा.
जयसिंह बस मुस्का दिए और उसकी तरफ हाथ बढ़ा दूसरे से अपनी जांघ थपथपा उसे गोद में आने का इशारा किया.
'जाओ मैं नहीं आती...गंदे हो आप...' मनिका नखरे कर ही थी.
'अरे भई सॉरी अब नहीं हँसता तुम पर...बस...' जयसिंह के चेहरे पर अभी भी शरारत थी.
'आप हँसोगे देख लेना...मुझे पता है ना...' मनिका ने उन्हें अविश्वास से देखते हुए कहा.
'अरे भई अभी तो नहीं हँस रहा ना...' जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे, 'सो अभी तो आ जाओ...' उन्होंने फिर अपनी जांघ पर हाथ रखते हुए उसे अपनी गोद में बुलाया.
'देख लेना पापा अगर आपने मुझे फिर तंग किया तो आपसे कभी बात नहीं करुँगी...' मनिका ने शिकायत भरे लहजे से कहा था पर उठ कर उनकी गोद में आ गई थी.
'लेकिन तुमने तो मुझसे नाराज ना होने का प्रॉमिस किया था न?' जयसिंह ने उसका मुहँ अपनी तरफ करते हुए पूछा.
'वो...वो तो मैंने ऐसे ही आपको उल्लू बनाने के लिए कर दिया था.' मनिका के चेहरे पर भी शरारती मुस्कान लौट आई थी.
'अच्छा ये बात थी...' जयसिंह ने मुस्का कर कहा और अपने दोनों हाथ मनिका के पेट पर ले जा उसे गुदगुदा दिया. 'आह क्या कच्चा बदन है...कुतिया हर वक़्त महकती भी रहती है...आह...' उन्होंने मनिका के जवान जिस्म पर इस तरह हाथ सेंकते हुए सोचा था, मनिका भी हिल-डुल रही थी सो उनका चेहरा उसके बालों में आ गया था.
'ईईईईईई...हाहाहा...पापाआआअ...नहीं नाराज होती...ईई...' मनिका उनकी गोद में उछलती हुई हँस रही थी.
जयसिंह ने उसे एक दो बार और गुदगुदा कर छोड़ दिया था क्यूंकि उसके इस तरह हिलने से उनकी पैंट में भी तूफ़ान उठने लगा था. मनिका अब खिलखिलाती हुई उनके साथ लग बैठी थी, उसकी साँस जरा फूली हुई थी. पहली बार उसका पूरा भार जयसिंह के शरीर पर था. जयसिंह अपने बदन पर इस तरह उसके यौवन भरे जिस्म का एहसास पाकर अपनी उत्तेजना को बड़ी मुस्किल से कंट्रोल कर पा रहे थे.
कुछ देर बाद जयसिंह की मुश्किल मनिका ने हल कर दी जब उसने उनकी गोद से उठते हुए उनसे भूख लगी होने का कहा था. सो आज एक बार फिर से वे नीचे रेस्टोरेंट में खाना खाने को चले गए थे.
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