FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--150
रंजी - गुड्डी लीला
अब तक
" ले लूँ मैं , बोल " डबल मीनिंग डायलॉग की आदत बड़ी मुश्किल से जाती है , लेकिन रंजी कौन कम थी , बोली।
" लो न , मैं ने कब मना किया है। " फुसफुसा कर वो बोली।
मैं और रंजी बरामदे की ओर मुड़े तो गुड्डी ने पीछे से हंकार लगायी।
" यहाँ नहीं , ऊपर इनके भाभी के कमरे में। "
और हम तीनो ऊपर भाभी के बेडरूम में पहुँच गए।
बेड रुम तो बड़ा था ही उसके बीचों बीच , डबलबेड काफी बड़ा था।
और वो दोनों धम्म से उसपर कूद के बैठ गयीं।
मैं सोच रहा था की आमची मुम्बई का कोई बिल्डर इस बेड को देख लेता तो १ बी एच के तो प्लान कर ही लेता।
और जैसे ही मैंने उस बेड पर बैठने की कोशिश की दोनों ने एक साथ मना कर दिया। ।नहीईईईईईइ
क्यों ,चकित होकर मैंने पुछा।
" पलंग हम दोनों का है , और तुम्हारी जगह , " रंजी बात पूरी करती की उसके पहले गुड्डी ने मुझे पकड़ कर सामने रखी एक कुर्सी पर बैठा दिया।
" भैया ,आप वहीँ से अच्छे लगते हो " मुझे बेड पर से बैठ कर के,टुकुर टुकुर देखती खिलखिलाती , रंजी बोली।
" साल्ली , भैय्या की बहना , खाली दूर से नैन मटक्का करती रहेगी , या जो पकोड़े इत्ते प्यार से अपने भइया के लिए बना के ले आई है ,उन्हें देगी भी। "
………………….
गुड्डी ने रंजी को हड़काया।
आगे
" ऊप्स , क्यों भैया बहुत भूखे हो , अभी देती हूँ न " और झट से डबल बेड पर से मेरी कुर्सी पर आ गयी और एक गरमागरम पकौड़ा अपने नरम हाथों से मेरे प्यासे होंठों के पास ले गयी और मैंने बड़ा सा मुंह खोल दिया , लेकिन उस शोख ने झट से पकौड़ा अपने मुंह में , और गुड्डी से बोली ,
" देख भैय्या ने कितना बड़ा मुंह खोल रखा है। "
गुड्डी जोर से हंसी , " अरे यार लगता है तेरा असर पड़ गया है , खोलने पर। तू भी तो सबके सामने खोल के खड़ी हो जाती है , घोंटने के लिए। "
और साथ में गुड्डी ने मुझे जोर से आँख मारी।
इत्ता इशारा काफी था।
और मैंने रंजी को धर दबोचा।
बहुत देर से ललचा रही थी।
मैंने दोनों हाथो से जोर से उसके सर को पकड़ रखा था ,मेरे होंठ उसके रसीले गुलाबी होंठों पर रगड़ रहे थे। जोर जोर से मैं उसके गाल दबा रहा था और थोड़ी देर में मेरी प्यारी सेक्सी बहना का मुंह खुल गया और मेरी जीभ अंदर।
कुछ देर तक जीभ की कुश्ती हुयी और फिर उसका आधा खाया कुचला पकौड़ा मेरे मुंह में।
गुड्डी भी मैदान में आ गयी और आग लगाते हाथ में पकौड़ा ले कर उसने पूछा ,
" क्यों तुम खाली अपनी बहन का ही लोगे या मेरा भी लोगे। "
मैं ऐसे डायलॉग बोलने में क्यों पीछे रहता , " तुम दोनों की लूंगा ,और जो सीधे से नहीं देगा उसकी जबरदस्ती लूंगा। " मैंने जवाब चिपकाया।
" न बाबा न ,मैं तो सीधे से दे दूंगी " गुड्डी भोली सूरत बना के बोली और अपने हाथ से पकौड़ा खिला दिया।
भैय्या आप बहुत नदीदे हो अकेले अकेले खा रहे हो। रंजी ने छेड़ा।
गुड्डी ने आग भरी निगाह से रंजी की ओर देखा , लेकिन मैंने फिर अपने मुंह का कुछ गुड्डी के मुंह में ठेल दिया।
लेकिन दोनों ने मिल के आधी प्लेट मेरे मुंह में डाल ही दी।
मेरा माथा चकरा रहा था , कुछ कुछ हो रहा था। बस के अलग ढंग का नशा।
और मैं समझ गया।
भांग।
ये सब पकौड़े भांग के थे , और इसीलिए गुड्डी ने मुझे किचेन में घुसने नहीं दिया था और एक घंटे किचेन से दूर रखा।
उसे मालूम था की होली में आई भांग कहाँ रखी है , अब भाभी ने किचेन की मालकिन उसे ही बना दिया था जो।
और ये सबसे नशीली भांग थी , जिससे सिर्पफ सेक्स का नशा हो जाता है। आखिर लाने वाला तो मैं ही था।
और इसलिए दोनों मिल के मुझे कुछ प्यार से कुछ जबरन ,… रंजी भी इस साजिश में पूरी तरह शामिल थी।
और अब मैंने पकड़ पकड़ के दोनों को खिलाना शुरू किया और बाकी के पकौड़े , उन दोनों बाँकी कन्याओं के पेट में।
असर तुरंत हुआ।
पहले वो दोनों खिलखिलाती रहीं।
फिर गुड्डी ने रंजी को धर दबोचा और उसकी टी शर्ट के अंदर से झांकते कबूतरों को धर दबोचा और उन्हें जोर से दबाते मसलते मुझे दिखा के पूछा,
" हैं न मस्त तेरे माल के माल। "
लेकिन रंजी क्यों चुप रहती बोली , “माल होगी तू , मैं तो अपने प्यारे प्यारे भैय्या की प्यारी बहन हूँ , क्यों भैया।“
मेरे कुछ बोलने से पहले गुड्डी बोल पड़ी ,
" क्यों क्या बहना माल नहीं हो सकती। "
" एकदम हो सकती है। " मैंने जवाब दिया। मैं भी भांग के नशे में पूरी तरह था और सब कुछ भूलके रंजी की गोलाइयाँ देख रहा था।
क्या मस्त मम्मे थे। एकदम टॉप फाड़ , इसके लिए तो कोई भी बहनचोद बनने के लिए तैयार हो जाता और जो उचकाती थी , तो छोटे छोटे शॉर्ट्स में चिपके हुए चूतड़ , जंगबहादुर एकदम बेचैन हो रहे थे।
और ऊपर से उन दोनों की छेड़छाड़।
लेकिन रंजी गुड्डी से भी ज्यादा एथलेटिक थी। छटक के उसने गुड्डी को गिरा दिया और चढ़ के उसके ऊपर से उसके दोनों मम्मे मुझे दिखा के दबाने लगी और बोली , क्यों भैया किसके ज्यादा दबाने लायक है , बनारस में पता नहीं किस किस से दबवाती रहती है , मेरे भैया से दबवाओ तो पता चले।
मेरे कुछ बोलने के पहले गुड्डी ने अपना दांव दिखा दिया और एक झटके में रंजी की टी शर्ट उतार फेंकी सीधे मेरे मुंह पे।
बहुत ही छोटी ब्रा उसके किशोर कबूतर दबोचे हुयी थी। मेरा बस ये मन कर रहा था , काश रंजी की ब्रा की जगह मेरे हाथ होते , वही सपना जो पूरे शहर के लौंडो का था।
" नौटंकी साल्ली , " गुड्डी ने ब्रा के ऊपर से उसके निपल बाइट करते बोला। 'चलेगी न बनारस , इतने लौंडे दबाएंगे तेरी चूंची , तब पूछूंगी , बनारस वाले जोर से दबाते हैं की तेरे भैया। "
उईई ,… रंजी जोर से चीखी और मेरी ओर मुस्करा के देखा , कुछ दर्द , कुछ मजा और कुछ नौटंकी।
जवाब में गुड्डी ने उसकी ब्रा में हाथ डाल के जोर से उसके उभार मसल दिए और कान में बोली ( इस तरह की मुझे आराम से सुनाई दे )
" देख साल्ली , तेरे भैय्या का तेरे मम्मे देख के कैसे टनटना रहा है। एक बार ब्रा खोल के अपनी चूंची दिखा दे तो शार्ट फाड़ के उनका औजार बाहर आ जाएगा। "
बात गुड्डी की एकदम सही थी और ऊपर से मैं उसे शार्ट के ऊपर से दबा भी रहा था।
रंजी की निगाहें भी वहीँ चिपकी थी , मेरे बावरे लंड पे।
" मेरे भइया का औजार है कोई मामूली चीज नहीं। " रंजी ने इतरा के बोला और जब तक गुड्डी सम्हले , रंजी ने उसकी टी शर्ट उतार के सीधे मेरे तने तम्बू पे फ़ेंक दी।
दो जवानी से लबरेज , मचलती, बलखाती टीनेजर्स , और वो भी आलमोस्ट टॉपलेस , ब्रा ऐसी जो उभारों को नुमाया ज्यादा कर रही थी और छुपा कम रही थी।
मेरी हालत का आप अंदाजा लगा सकते है.
रंजी ने लगे हाथ गुड्डी के पैरों पे पैर फंसा के उसे उलट दिया , आखिर वो आपने स्कूल कब्बडी टीम की क्लास ८ से लगातार कैप्टेन थी।
और अब रंजी ऊपर गुड्डी नीचे।
क्या कोई मर्द अपने सीने से किसी जवान होती लड़की की जवानी मसलेगा , जिस तरह से रंजी अपने उभारो से गुड्डी के जोबन को दबा रही थी , रगड़ रही थी।
और साथ में अपने दोनों हाथों से गुड्डी की कलाइयों को उसने पूरी जोर से दबा रखा था।
दोनों की चुड़ियां साथ साथ रुनझुन रुनझुन कर रही थीं।
और रंजी ने एक झटके में चूम लिया , सीधे होंठों पर और सिर्पफ चूमा नहीं , कचकचा के उसके होंठों को काट लिया।
रंजी के दोनों होंठों के बीच गुड्डी के रसीले होंठ बंद थे।
लेकिन रंजी की शरारतें यही कम नहीं हुईं।
उसने अपनी लम्बी टांगों को गुड्डी की टांगों के बीच फंसाया और अब उसकी जांघे गुड्डी को जांघो को रगड़ रही थी , और ठीक 'सेंटर ' पर वो जम के घिस्सा दे रही थी।
पिछली दो रात की गुड्डी की आल नाइट पाठशाला में पढ़ा हुआ हर पाठ , रंजी एक अच्छी शिष्या की तरह दुहरा रही थी।
और गुड्डी सिसक रही थी , उचक रही थी , चूतड़ उचका रही थी।
लेकिन एक गलती मैंने कर दी।
मैं भी आऊं क्या ,मैंने पूछ लिया।
बस वही गलती हो गयी।
दोनों सहेलियां बोलें , ननद भाभी बोलें , दोनों एक होगयी।
"बताती हूँ " दोनों समवेत स्वर में बोली और झप्प से मेरी कुर्सी के पास।
" हाथ बाँध दो इसका " गुड्डी ने हुकम सुनाया।
" लेकिन किस चीज से " इधर उधर देखते रंजी ने परेशानी से पुछा।
" अरे इसकी प्यारी बहना की ब्रा से अच्छी चीज कौन हो सकती है " गुड्डी मुस्करा के बोली और जब तक रंजी समझे , सम्हले , उसकी छोटी सी गुलाबी ब्रा खुल के गुड्डी के हाथ में , और गुड्डी मेरे हाथ बांधने में जुट गयी।
मैं तो टुकुर टुकुर रंजी के जोबन निहार रहा था।रंजी एक पल के लिए अचकचाई फिर उसने झुकी हुयी गुड्डी के ब्रा का हुक पीछे से खोल दिया और बोली ,
" सिर्फ हाथ बाँधने से काम थोड़े ही चलेगा पैर भी तो बांधना पड़ेगा , और इसके लिए तेरी ब्रा से अच्छी कौन सी चीज हो सकती है। "
बिचारी गुड्डी मेरे हाथ कुर्सी के पीछे बाँधने में लगी थी।
और थोड़ी ही देर में मेरे हाथ पैर दोनों बांध दिए गए।
रंजी कब्बडी के साथ गाइड की भी अपने स्कूल की हेड थी। उसने अच्छी तरह गाँठ चेक कर ली और मैं उसे किसी तरह खोल नहीं सकता था।
हाथ और पैर का तो नुकसान हो गया , लेकिन आँखों का भरपूर फायदा हो गया।
दो किशोरयों के गदराये , उन्नत वक्ष , पूरी तरह आवरण विहीन, .... बस कुछ इंच दूर।
और फिर उन दोनों की चुहल चालू हो गयी।
गुड्डी ने एक बार फिर पीछे से रंजी को दबोच लिया और एक हाथ से उसके गदराये जोबन उभार के रंजी की आवाज मिमिक कर के बोलने लगी,
“भैय्या देखो न मेरे मस्त गुलाबी गोरे मम्मे , देख कित्ते बड़े हो गए हैं। हैं न मस्त , खूब दबाने चूसने लायक। लो न भैया , सारे शहर के लड़के इन्हे देख के पागल हो जाते हैं और, … एक तुम हो। बोलो न कैसे लग रहे हैं मेरी नयी आई जवानी के फूल। "
और इसी के साथ गुड्डी खूब हौले हौले , रंजी के मस्त गदराये कड़े कड़े उभार , मुझे दिखाते ललचाते , सहला रही थी। कभी वो जोर से दबा देती , तो कभी निपल पिंच कर देती और रंजी सिसक उठती।
उसके उभार एकदम मेरे मुंह के पास लाकर फिर उसने रंजी की आवाज बनाकर , बड़ी अदा से बोला , " भैया एक बार तो लिक कर लो ना। "
मेरे हाथ पैर तो बंधे थे थे , मैंने किसी तरह झुक कर अपने होंठ रंजी के निप्स के पास किये , गोल गोल मटर के दाने की तरह कड़े कड़े।
लेकिन गुड्डी भी , उसने रंजी को पीछे खींच लिया।
" हे बहुत मन कर रहा है , अपनी इस प्यारी बहना की चूंची चाटने का , तो जीभ निकाल के चाट ले न। "
मैं जीभ निकाल के और झुका। मुझे उस वक्त सिर्फ रंजी के गदराये उरोज नजर आ रहे थे , जो कपड़ो के अंदर से भी मुझे ललचाते रहते थे और कदम खुले सामने ,
लेकिन दुष्ट गुड्डी उसने रंजी को और पीछे खींच लिया और बोली ,
" देखा ये तेरे भैय्या हैं की तेरे आशिक , कित्ते बेताब है तेरे उभारों के लिए। दे दे बिचारे को। तुझे मालूम है तेरे बारे में सोच सोच कर कित्ती बार मुट्ठ मारी है इन्होने। "
रंजी कुछ शर्म से कुछ ख़ुशी से लाल हो गयी और बोल उठी ,
" सच्च में भैया। "
" हाँ , एकदम " मेरे मुंह से झटके में सच निकल गया।
" मुझसे क्यों नहीं कहा। कितनी मलाई बर्बाद की। तुझे मालूम है मैं भी कितना तड़पती थी , तुझसे ज्यादा मेरा मन करता था , भैय्या। " रंजी केमुँह से निकल पड़ा।
" चल पलंग पर तेरी सारी तड़पन निकालती हूँ , फिर अपने भैय्या से निकलवाना रात भर। "
और यह कहते हुए गुड्डी ने उसे पलंग पर धकेल दिया ,
और अब एक बार , रंजी नीचे , गुड्डी ऊपर
और टीन लेस्बियन रेस्लिंग चालू हो गयी।
बस वो हुआ जो न कहा जा सकता है न सुना जा सकता है।
और टीन लेस्बियन रेस्लिंग चालू हो गयी।
बस वो हुआ जो न कहा जा सकता है न सुना जा सकता है।
बस आप मेरी हालत महसूस कर सकते हैं।
गुड्डी बनारस के कन्या प्रेमी दंगल के अखाड़े की कुशल खिलाड़ी , चंदा भाभी और दूबे भाभी की सिखाई पढ़ाई , पटु शिष्या , और जो कमी थोड़ी बहुत बाकी रह गयी थी , यहाँ शीला भाभी और मिश्रायिन भाभी ने पूरी कर दी .
इसलिए शुरू की बाजी गुड्डी के ही हाथ थी।
और वो थी भी थोड़ी डॉमिनेटिंग और रंजी थोड़ी सब्मिसिव एक आइडियल भाभी ननद की जोड़ी।
और साथ में गुड्डी रंजी के मस्त उभारों को दिखा दिखा के मुझे ललचा रही थी , तड़पा रही थी।
अगर उन दोनों बाँकी हिरणियों ने मुझे कुर्सी से न बाँधा होता तो मैं कब का उन दोनों के बीच होता।
और रंजी भी कम नहीं थी , वो प्रेयसी की भूमिका पूरी तरह निभा रही थी , ऐसी प्रेयसी जो ललचाये , आग लगाये , तड़पाये।
तड़पा वो गुड्डी को रही थी पर चुपके से कनखियों से देख मेरी ओर रही थी। निशाना तो मैं ही था उसकी बाँकी अदाओं का।
गुड्डी अपने होंठ चूमने के लिए पास लाती तो रंजी अपना सर ऐन मौके पे हिला देती ,नतीजा उसके होंठ गुड्डी के होंठों की गिरपफ्त से बच जाते। और रंजी खिलखिला उठती।
लेकिन गुड्डी , गुड्डी थी। बनारस की खेली। उसने दोनों हाथों से रंजी के सर को पकड़ लिया और चालू हो गयी ,
( रिश्ता ननद का हो और बिना गाली के बात हो , ये तो सख्त नाइंसाफी है )
" छिनार , चूत मरानो , तेरे सारे खानदान की फुद्दी मारूं , ये अदाएं अपने भैय्या को दिखाना । चल दे सीधे से चुपचाप। "
और अगले पल रंजी के होंठ गुड्डी के होंठों के कब्जे में थे. गुड्डी न सिर्फ चूम रही थी , बल्कि कभी रंजी के गुलाबी गाल कचकचा के काट लेती।
उसका एक हाथ लगातार रंजी की कड़ी कड़ी चूंची दबा , मसल रहा था।
जो मेरा करने को मन कर रहा था , वो रंजी के साथ गुड्डी कर रही थी , वोभी मुझे दिखाकर ललचा कर।
लेकिन थोड़ी देर में दोनों मिल कर बराबर मजा ले रही थीं।
कभी गुड्डी रंजी को चूमती चाटती ,तो कभी रंजी के गीले होठ गुड्डी के होंठों से सरक कर उसके उभारो तक पहुँच जाती और कुछ देर जोबन का रस लेकर , फिर से रंजी की गीली जुबान गुड्डी के होंठ , गाल गीले करने लग जाती। कुछ देर के खेल तमाशे के बाद गुड्डी ने रंजी को पीछे से पकड़ लिया और मुझे चिढ़ाने लगी ,
" थोड़ा सा ठहरो ,
करती हूँ तुमसे वादा , पूरा होगा तेरा इरादा।
ये है सारी की सारी तुम्हारी , रात भर इसे चोदा करो। "
" बोल भैय्या की प्यारी बहना चुदवायेगी ना ,अपने प्यारे भैय्या से " और ये कह के गुड्डी ने रंजी के मटर के दाने केबराबर मस्ताई कड़ी , खड़ी निपल की घुंडी को जोर से मरोड़ दिया।
रंजी सिसक उठी लेकिन जिस निगाह से वोमुझे देख रही थी जैसे पूरी जनम जिंदगी की वासना उन बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में उमड़ आई है। एकदम चुदवासी।
और अब गुड्डी ने बातों का रुख मेरीओर मोड़ दिया ,
" क्यों चुदवासी छिनार बहना के चुदक्कड़ भैय्या , है न चोदने लायक माल। अरे चोद दो इसे हचक हचक के , वरना परसों तो इसे बनारस ले ही जा रही हूँ। दस दिन रहेगी वहां और सेंचुरी बना के लौटेगी। अगवाड़ा पिछवाड़ा सब। ये संकरी गली , फोर लेन हो जायेगी। गुंडे , पण्डे सब डुबकी लगाएंगे। और इसके अलावा एक पूरी रात दालमंडी में , अभी से सोनल बयाना ले रही है , इसकी फोटो दिखा दिखा के। बोल है न चोदने लायक। "
मेरे मुंह ने तो जवाब नहीं दिया लेकिन मेरा शार्ट फाड़ता बित्ता भर का खूंटा , और जिस तरह से मैंने कमर उचकाई , मेरा इरादा न गुड्डी से छिपा न रंजी से।
टिपिकल बनारसी गालियों के साथ गुड्डी की उंगलिया और जुबान भी रंजी की देह पर कबड्डी खेल रहे थे।
एक हाथ कब से छोटे से शार्ट के ऊपर से उसकी रेशमी जाँघों के बीच में घुस कर मुझे दिखा दिखा कर , खजाने की खोज कर रहा था।
लेकिन खजाने की ताली तो मेरी पास थी और आज कुछ भी हो उस खजाने का दरवाजा खुलना ही था।
फागुन के दिन चार--150
रंजी - गुड्डी लीला
अब तक
" ले लूँ मैं , बोल " डबल मीनिंग डायलॉग की आदत बड़ी मुश्किल से जाती है , लेकिन रंजी कौन कम थी , बोली।
" लो न , मैं ने कब मना किया है। " फुसफुसा कर वो बोली।
मैं और रंजी बरामदे की ओर मुड़े तो गुड्डी ने पीछे से हंकार लगायी।
" यहाँ नहीं , ऊपर इनके भाभी के कमरे में। "
और हम तीनो ऊपर भाभी के बेडरूम में पहुँच गए।
बेड रुम तो बड़ा था ही उसके बीचों बीच , डबलबेड काफी बड़ा था।
और वो दोनों धम्म से उसपर कूद के बैठ गयीं।
मैं सोच रहा था की आमची मुम्बई का कोई बिल्डर इस बेड को देख लेता तो १ बी एच के तो प्लान कर ही लेता।
और जैसे ही मैंने उस बेड पर बैठने की कोशिश की दोनों ने एक साथ मना कर दिया। ।नहीईईईईईइ
क्यों ,चकित होकर मैंने पुछा।
" पलंग हम दोनों का है , और तुम्हारी जगह , " रंजी बात पूरी करती की उसके पहले गुड्डी ने मुझे पकड़ कर सामने रखी एक कुर्सी पर बैठा दिया।
" भैया ,आप वहीँ से अच्छे लगते हो " मुझे बेड पर से बैठ कर के,टुकुर टुकुर देखती खिलखिलाती , रंजी बोली।
" साल्ली , भैय्या की बहना , खाली दूर से नैन मटक्का करती रहेगी , या जो पकोड़े इत्ते प्यार से अपने भइया के लिए बना के ले आई है ,उन्हें देगी भी। "
………………….
गुड्डी ने रंजी को हड़काया।
आगे
" ऊप्स , क्यों भैया बहुत भूखे हो , अभी देती हूँ न " और झट से डबल बेड पर से मेरी कुर्सी पर आ गयी और एक गरमागरम पकौड़ा अपने नरम हाथों से मेरे प्यासे होंठों के पास ले गयी और मैंने बड़ा सा मुंह खोल दिया , लेकिन उस शोख ने झट से पकौड़ा अपने मुंह में , और गुड्डी से बोली ,
" देख भैय्या ने कितना बड़ा मुंह खोल रखा है। "
गुड्डी जोर से हंसी , " अरे यार लगता है तेरा असर पड़ गया है , खोलने पर। तू भी तो सबके सामने खोल के खड़ी हो जाती है , घोंटने के लिए। "
और साथ में गुड्डी ने मुझे जोर से आँख मारी।
इत्ता इशारा काफी था।
और मैंने रंजी को धर दबोचा।
बहुत देर से ललचा रही थी।
मैंने दोनों हाथो से जोर से उसके सर को पकड़ रखा था ,मेरे होंठ उसके रसीले गुलाबी होंठों पर रगड़ रहे थे। जोर जोर से मैं उसके गाल दबा रहा था और थोड़ी देर में मेरी प्यारी सेक्सी बहना का मुंह खुल गया और मेरी जीभ अंदर।
कुछ देर तक जीभ की कुश्ती हुयी और फिर उसका आधा खाया कुचला पकौड़ा मेरे मुंह में।
गुड्डी भी मैदान में आ गयी और आग लगाते हाथ में पकौड़ा ले कर उसने पूछा ,
" क्यों तुम खाली अपनी बहन का ही लोगे या मेरा भी लोगे। "
मैं ऐसे डायलॉग बोलने में क्यों पीछे रहता , " तुम दोनों की लूंगा ,और जो सीधे से नहीं देगा उसकी जबरदस्ती लूंगा। " मैंने जवाब चिपकाया।
" न बाबा न ,मैं तो सीधे से दे दूंगी " गुड्डी भोली सूरत बना के बोली और अपने हाथ से पकौड़ा खिला दिया।
भैय्या आप बहुत नदीदे हो अकेले अकेले खा रहे हो। रंजी ने छेड़ा।
गुड्डी ने आग भरी निगाह से रंजी की ओर देखा , लेकिन मैंने फिर अपने मुंह का कुछ गुड्डी के मुंह में ठेल दिया।
लेकिन दोनों ने मिल के आधी प्लेट मेरे मुंह में डाल ही दी।
मेरा माथा चकरा रहा था , कुछ कुछ हो रहा था। बस के अलग ढंग का नशा।
और मैं समझ गया।
भांग।
ये सब पकौड़े भांग के थे , और इसीलिए गुड्डी ने मुझे किचेन में घुसने नहीं दिया था और एक घंटे किचेन से दूर रखा।
उसे मालूम था की होली में आई भांग कहाँ रखी है , अब भाभी ने किचेन की मालकिन उसे ही बना दिया था जो।
और ये सबसे नशीली भांग थी , जिससे सिर्पफ सेक्स का नशा हो जाता है। आखिर लाने वाला तो मैं ही था।
और इसलिए दोनों मिल के मुझे कुछ प्यार से कुछ जबरन ,… रंजी भी इस साजिश में पूरी तरह शामिल थी।
और अब मैंने पकड़ पकड़ के दोनों को खिलाना शुरू किया और बाकी के पकौड़े , उन दोनों बाँकी कन्याओं के पेट में।
असर तुरंत हुआ।
पहले वो दोनों खिलखिलाती रहीं।
फिर गुड्डी ने रंजी को धर दबोचा और उसकी टी शर्ट के अंदर से झांकते कबूतरों को धर दबोचा और उन्हें जोर से दबाते मसलते मुझे दिखा के पूछा,
" हैं न मस्त तेरे माल के माल। "
लेकिन रंजी क्यों चुप रहती बोली , “माल होगी तू , मैं तो अपने प्यारे प्यारे भैय्या की प्यारी बहन हूँ , क्यों भैया।“
मेरे कुछ बोलने से पहले गुड्डी बोल पड़ी ,
" क्यों क्या बहना माल नहीं हो सकती। "
" एकदम हो सकती है। " मैंने जवाब दिया। मैं भी भांग के नशे में पूरी तरह था और सब कुछ भूलके रंजी की गोलाइयाँ देख रहा था।
क्या मस्त मम्मे थे। एकदम टॉप फाड़ , इसके लिए तो कोई भी बहनचोद बनने के लिए तैयार हो जाता और जो उचकाती थी , तो छोटे छोटे शॉर्ट्स में चिपके हुए चूतड़ , जंगबहादुर एकदम बेचैन हो रहे थे।
और ऊपर से उन दोनों की छेड़छाड़।
लेकिन रंजी गुड्डी से भी ज्यादा एथलेटिक थी। छटक के उसने गुड्डी को गिरा दिया और चढ़ के उसके ऊपर से उसके दोनों मम्मे मुझे दिखा के दबाने लगी और बोली , क्यों भैया किसके ज्यादा दबाने लायक है , बनारस में पता नहीं किस किस से दबवाती रहती है , मेरे भैया से दबवाओ तो पता चले।
मेरे कुछ बोलने के पहले गुड्डी ने अपना दांव दिखा दिया और एक झटके में रंजी की टी शर्ट उतार फेंकी सीधे मेरे मुंह पे।
बहुत ही छोटी ब्रा उसके किशोर कबूतर दबोचे हुयी थी। मेरा बस ये मन कर रहा था , काश रंजी की ब्रा की जगह मेरे हाथ होते , वही सपना जो पूरे शहर के लौंडो का था।
" नौटंकी साल्ली , " गुड्डी ने ब्रा के ऊपर से उसके निपल बाइट करते बोला। 'चलेगी न बनारस , इतने लौंडे दबाएंगे तेरी चूंची , तब पूछूंगी , बनारस वाले जोर से दबाते हैं की तेरे भैया। "
उईई ,… रंजी जोर से चीखी और मेरी ओर मुस्करा के देखा , कुछ दर्द , कुछ मजा और कुछ नौटंकी।
जवाब में गुड्डी ने उसकी ब्रा में हाथ डाल के जोर से उसके उभार मसल दिए और कान में बोली ( इस तरह की मुझे आराम से सुनाई दे )
" देख साल्ली , तेरे भैय्या का तेरे मम्मे देख के कैसे टनटना रहा है। एक बार ब्रा खोल के अपनी चूंची दिखा दे तो शार्ट फाड़ के उनका औजार बाहर आ जाएगा। "
बात गुड्डी की एकदम सही थी और ऊपर से मैं उसे शार्ट के ऊपर से दबा भी रहा था।
रंजी की निगाहें भी वहीँ चिपकी थी , मेरे बावरे लंड पे।
" मेरे भइया का औजार है कोई मामूली चीज नहीं। " रंजी ने इतरा के बोला और जब तक गुड्डी सम्हले , रंजी ने उसकी टी शर्ट उतार के सीधे मेरे तने तम्बू पे फ़ेंक दी।
दो जवानी से लबरेज , मचलती, बलखाती टीनेजर्स , और वो भी आलमोस्ट टॉपलेस , ब्रा ऐसी जो उभारों को नुमाया ज्यादा कर रही थी और छुपा कम रही थी।
मेरी हालत का आप अंदाजा लगा सकते है.
रंजी ने लगे हाथ गुड्डी के पैरों पे पैर फंसा के उसे उलट दिया , आखिर वो आपने स्कूल कब्बडी टीम की क्लास ८ से लगातार कैप्टेन थी।
और अब रंजी ऊपर गुड्डी नीचे।
क्या कोई मर्द अपने सीने से किसी जवान होती लड़की की जवानी मसलेगा , जिस तरह से रंजी अपने उभारो से गुड्डी के जोबन को दबा रही थी , रगड़ रही थी।
और साथ में अपने दोनों हाथों से गुड्डी की कलाइयों को उसने पूरी जोर से दबा रखा था।
दोनों की चुड़ियां साथ साथ रुनझुन रुनझुन कर रही थीं।
और रंजी ने एक झटके में चूम लिया , सीधे होंठों पर और सिर्पफ चूमा नहीं , कचकचा के उसके होंठों को काट लिया।
रंजी के दोनों होंठों के बीच गुड्डी के रसीले होंठ बंद थे।
लेकिन रंजी की शरारतें यही कम नहीं हुईं।
उसने अपनी लम्बी टांगों को गुड्डी की टांगों के बीच फंसाया और अब उसकी जांघे गुड्डी को जांघो को रगड़ रही थी , और ठीक 'सेंटर ' पर वो जम के घिस्सा दे रही थी।
पिछली दो रात की गुड्डी की आल नाइट पाठशाला में पढ़ा हुआ हर पाठ , रंजी एक अच्छी शिष्या की तरह दुहरा रही थी।
और गुड्डी सिसक रही थी , उचक रही थी , चूतड़ उचका रही थी।
लेकिन एक गलती मैंने कर दी।
मैं भी आऊं क्या ,मैंने पूछ लिया।
बस वही गलती हो गयी।
दोनों सहेलियां बोलें , ननद भाभी बोलें , दोनों एक होगयी।
"बताती हूँ " दोनों समवेत स्वर में बोली और झप्प से मेरी कुर्सी के पास।
" हाथ बाँध दो इसका " गुड्डी ने हुकम सुनाया।
" लेकिन किस चीज से " इधर उधर देखते रंजी ने परेशानी से पुछा।
" अरे इसकी प्यारी बहना की ब्रा से अच्छी चीज कौन हो सकती है " गुड्डी मुस्करा के बोली और जब तक रंजी समझे , सम्हले , उसकी छोटी सी गुलाबी ब्रा खुल के गुड्डी के हाथ में , और गुड्डी मेरे हाथ बांधने में जुट गयी।
मैं तो टुकुर टुकुर रंजी के जोबन निहार रहा था।रंजी एक पल के लिए अचकचाई फिर उसने झुकी हुयी गुड्डी के ब्रा का हुक पीछे से खोल दिया और बोली ,
" सिर्फ हाथ बाँधने से काम थोड़े ही चलेगा पैर भी तो बांधना पड़ेगा , और इसके लिए तेरी ब्रा से अच्छी कौन सी चीज हो सकती है। "
बिचारी गुड्डी मेरे हाथ कुर्सी के पीछे बाँधने में लगी थी।
और थोड़ी ही देर में मेरे हाथ पैर दोनों बांध दिए गए।
रंजी कब्बडी के साथ गाइड की भी अपने स्कूल की हेड थी। उसने अच्छी तरह गाँठ चेक कर ली और मैं उसे किसी तरह खोल नहीं सकता था।
हाथ और पैर का तो नुकसान हो गया , लेकिन आँखों का भरपूर फायदा हो गया।
दो किशोरयों के गदराये , उन्नत वक्ष , पूरी तरह आवरण विहीन, .... बस कुछ इंच दूर।
और फिर उन दोनों की चुहल चालू हो गयी।
गुड्डी ने एक बार फिर पीछे से रंजी को दबोच लिया और एक हाथ से उसके गदराये जोबन उभार के रंजी की आवाज मिमिक कर के बोलने लगी,
“भैय्या देखो न मेरे मस्त गुलाबी गोरे मम्मे , देख कित्ते बड़े हो गए हैं। हैं न मस्त , खूब दबाने चूसने लायक। लो न भैया , सारे शहर के लड़के इन्हे देख के पागल हो जाते हैं और, … एक तुम हो। बोलो न कैसे लग रहे हैं मेरी नयी आई जवानी के फूल। "
और इसी के साथ गुड्डी खूब हौले हौले , रंजी के मस्त गदराये कड़े कड़े उभार , मुझे दिखाते ललचाते , सहला रही थी। कभी वो जोर से दबा देती , तो कभी निपल पिंच कर देती और रंजी सिसक उठती।
उसके उभार एकदम मेरे मुंह के पास लाकर फिर उसने रंजी की आवाज बनाकर , बड़ी अदा से बोला , " भैया एक बार तो लिक कर लो ना। "
मेरे हाथ पैर तो बंधे थे थे , मैंने किसी तरह झुक कर अपने होंठ रंजी के निप्स के पास किये , गोल गोल मटर के दाने की तरह कड़े कड़े।
लेकिन गुड्डी भी , उसने रंजी को पीछे खींच लिया।
" हे बहुत मन कर रहा है , अपनी इस प्यारी बहना की चूंची चाटने का , तो जीभ निकाल के चाट ले न। "
मैं जीभ निकाल के और झुका। मुझे उस वक्त सिर्फ रंजी के गदराये उरोज नजर आ रहे थे , जो कपड़ो के अंदर से भी मुझे ललचाते रहते थे और कदम खुले सामने ,
लेकिन दुष्ट गुड्डी उसने रंजी को और पीछे खींच लिया और बोली ,
" देखा ये तेरे भैय्या हैं की तेरे आशिक , कित्ते बेताब है तेरे उभारों के लिए। दे दे बिचारे को। तुझे मालूम है तेरे बारे में सोच सोच कर कित्ती बार मुट्ठ मारी है इन्होने। "
रंजी कुछ शर्म से कुछ ख़ुशी से लाल हो गयी और बोल उठी ,
" सच्च में भैया। "
" हाँ , एकदम " मेरे मुंह से झटके में सच निकल गया।
" मुझसे क्यों नहीं कहा। कितनी मलाई बर्बाद की। तुझे मालूम है मैं भी कितना तड़पती थी , तुझसे ज्यादा मेरा मन करता था , भैय्या। " रंजी केमुँह से निकल पड़ा।
" चल पलंग पर तेरी सारी तड़पन निकालती हूँ , फिर अपने भैय्या से निकलवाना रात भर। "
और यह कहते हुए गुड्डी ने उसे पलंग पर धकेल दिया ,
और अब एक बार , रंजी नीचे , गुड्डी ऊपर
और टीन लेस्बियन रेस्लिंग चालू हो गयी।
बस वो हुआ जो न कहा जा सकता है न सुना जा सकता है।
और टीन लेस्बियन रेस्लिंग चालू हो गयी।
बस वो हुआ जो न कहा जा सकता है न सुना जा सकता है।
बस आप मेरी हालत महसूस कर सकते हैं।
गुड्डी बनारस के कन्या प्रेमी दंगल के अखाड़े की कुशल खिलाड़ी , चंदा भाभी और दूबे भाभी की सिखाई पढ़ाई , पटु शिष्या , और जो कमी थोड़ी बहुत बाकी रह गयी थी , यहाँ शीला भाभी और मिश्रायिन भाभी ने पूरी कर दी .
इसलिए शुरू की बाजी गुड्डी के ही हाथ थी।
और वो थी भी थोड़ी डॉमिनेटिंग और रंजी थोड़ी सब्मिसिव एक आइडियल भाभी ननद की जोड़ी।
और साथ में गुड्डी रंजी के मस्त उभारों को दिखा दिखा के मुझे ललचा रही थी , तड़पा रही थी।
अगर उन दोनों बाँकी हिरणियों ने मुझे कुर्सी से न बाँधा होता तो मैं कब का उन दोनों के बीच होता।
और रंजी भी कम नहीं थी , वो प्रेयसी की भूमिका पूरी तरह निभा रही थी , ऐसी प्रेयसी जो ललचाये , आग लगाये , तड़पाये।
तड़पा वो गुड्डी को रही थी पर चुपके से कनखियों से देख मेरी ओर रही थी। निशाना तो मैं ही था उसकी बाँकी अदाओं का।
गुड्डी अपने होंठ चूमने के लिए पास लाती तो रंजी अपना सर ऐन मौके पे हिला देती ,नतीजा उसके होंठ गुड्डी के होंठों की गिरपफ्त से बच जाते। और रंजी खिलखिला उठती।
लेकिन गुड्डी , गुड्डी थी। बनारस की खेली। उसने दोनों हाथों से रंजी के सर को पकड़ लिया और चालू हो गयी ,
( रिश्ता ननद का हो और बिना गाली के बात हो , ये तो सख्त नाइंसाफी है )
" छिनार , चूत मरानो , तेरे सारे खानदान की फुद्दी मारूं , ये अदाएं अपने भैय्या को दिखाना । चल दे सीधे से चुपचाप। "
और अगले पल रंजी के होंठ गुड्डी के होंठों के कब्जे में थे. गुड्डी न सिर्फ चूम रही थी , बल्कि कभी रंजी के गुलाबी गाल कचकचा के काट लेती।
उसका एक हाथ लगातार रंजी की कड़ी कड़ी चूंची दबा , मसल रहा था।
जो मेरा करने को मन कर रहा था , वो रंजी के साथ गुड्डी कर रही थी , वोभी मुझे दिखाकर ललचा कर।
लेकिन थोड़ी देर में दोनों मिल कर बराबर मजा ले रही थीं।
कभी गुड्डी रंजी को चूमती चाटती ,तो कभी रंजी के गीले होठ गुड्डी के होंठों से सरक कर उसके उभारो तक पहुँच जाती और कुछ देर जोबन का रस लेकर , फिर से रंजी की गीली जुबान गुड्डी के होंठ , गाल गीले करने लग जाती। कुछ देर के खेल तमाशे के बाद गुड्डी ने रंजी को पीछे से पकड़ लिया और मुझे चिढ़ाने लगी ,
" थोड़ा सा ठहरो ,
करती हूँ तुमसे वादा , पूरा होगा तेरा इरादा।
ये है सारी की सारी तुम्हारी , रात भर इसे चोदा करो। "
" बोल भैय्या की प्यारी बहना चुदवायेगी ना ,अपने प्यारे भैय्या से " और ये कह के गुड्डी ने रंजी के मटर के दाने केबराबर मस्ताई कड़ी , खड़ी निपल की घुंडी को जोर से मरोड़ दिया।
रंजी सिसक उठी लेकिन जिस निगाह से वोमुझे देख रही थी जैसे पूरी जनम जिंदगी की वासना उन बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में उमड़ आई है। एकदम चुदवासी।
और अब गुड्डी ने बातों का रुख मेरीओर मोड़ दिया ,
" क्यों चुदवासी छिनार बहना के चुदक्कड़ भैय्या , है न चोदने लायक माल। अरे चोद दो इसे हचक हचक के , वरना परसों तो इसे बनारस ले ही जा रही हूँ। दस दिन रहेगी वहां और सेंचुरी बना के लौटेगी। अगवाड़ा पिछवाड़ा सब। ये संकरी गली , फोर लेन हो जायेगी। गुंडे , पण्डे सब डुबकी लगाएंगे। और इसके अलावा एक पूरी रात दालमंडी में , अभी से सोनल बयाना ले रही है , इसकी फोटो दिखा दिखा के। बोल है न चोदने लायक। "
मेरे मुंह ने तो जवाब नहीं दिया लेकिन मेरा शार्ट फाड़ता बित्ता भर का खूंटा , और जिस तरह से मैंने कमर उचकाई , मेरा इरादा न गुड्डी से छिपा न रंजी से।
टिपिकल बनारसी गालियों के साथ गुड्डी की उंगलिया और जुबान भी रंजी की देह पर कबड्डी खेल रहे थे।
एक हाथ कब से छोटे से शार्ट के ऊपर से उसकी रेशमी जाँघों के बीच में घुस कर मुझे दिखा दिखा कर , खजाने की खोज कर रहा था।
लेकिन खजाने की ताली तो मेरी पास थी और आज कुछ भी हो उस खजाने का दरवाजा खुलना ही था।
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