FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--162
मेजर वाहिद
लेकिन आज उनका प्रोटीजी जो प्राबलम लाया था वो सबसे टेढ़ी थी।
नाम उसका मेजर वाहिद था , जब वह सबसे पहले उनके साथ काम करने आया था।
सबसे पहले अफगानी लोगों की ट्रेनिंग स्कूल उसने ही शुरू की थी , और शायद ही कोई अफगानी ग्रुप हो , जिसकी सीनियर लीडरशिप में उसका ट्रेन किया हो न।
और फिर उसके साथ चेचन्या , सोमालिया , सीरियाई , और कुछ लोकल लश्कर , हिज्बुल , जोश , सबकी ट्रेनिंग पर उसका स्टाम्प था।
और १९८९ के बाद पडोसी देश की केसर की घाटी में भेजने का काम ,
और जब वो जासूसी संस्था के हेड हुए तो वो एक्सटर्नल एसपीओनेज का हेड रहा लेकिन कुछ दिन में उसका दायरा बढ़ गया और ट्रेंड टेररिस्ट भेजने से अटैक की प्लानिंग , लॉजिस्टिक्स और फायनेंस सब काम उसके जिम्मे।
उनके ऐक्टिव सर्विस छोड़ने के बाद लेकिन उन्ही की सलाह पर एक आर्गेनाइजेशन बना जो सेमी गर्वमेंट था , यानी गवर्नमेंट का पीछे से तो सपोर्ट था , लेकिन उसमे काम करने वालो का कोइ रिकार्ड गवर्नमन्ट में नहीं था। गवर्नमेंट कभी भी उनको डिसओन कर सकती थी। और वो पेड वालंटियर से , काम चलाते थे।
और मेजर वाहिद उस के हेड बन के सरकार से अलग हुए।
वह प्रमोट होकर अब तक ब्रिगेडियर हो चुके थे लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल गुल उन्हें मेजर कह के ही बुलाते।
……………
आज सुबह जब उन्होंने जियो चैनेल पर एक घर के ध्वस्त होने की खबर सुनी थी और उस की लोकेशन देखी तो वो सिहर गए थे। वो उन गिनती के लोगों में थे जिन्हे मालूम था की वो जगह एकदम सुरक्षित , कमांड कंट्रोल सेंटर है , जहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता। और फिर उन्होंने फोन खड़काने शुरू कर दिए। हर फोन के बाद उनके माथे पर चिंता की रेखाएं और चेहरे पर दुःख का भाव बढ़ता गया। मरने वालों की फेहरिस्त बहुत लम्बी थी और वो सारे जो टेरर नेटवर्क उन्होंने १५-२० साल पहले बनाया था , उसके चुंनिंदा लोग थे।
उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
ऑपरेशन ट्राइडेंट के बारे में उन्हें कुछ इमकान जरूर था की एक के बाद एक बनारस , बड़ौदा और मुम्बई पर भयावह हमले होने वाले हैं। लेकिन जब अखबार या भारत में उनके सूत्रों से कोई पुष्टि नहीं हुयी तो उनका माथा ठनका , लेकिन बरसों से उन्होंने अपने कोएक्टिव आपरेशन से अलग कर रखा था , और धीरे धीरे वो लोग भी उन्हें बहुत कुछ पिक्चर में नहीं रखते थे।
लेकिन आज का दिन कुछ अलग ही था। इस तरह के हमले के बारे में वो कभी सोच नहीं सकते थे , जैसे कोई शेर की मांद में घुस के उसे चैलेन्ज कर दे।
उन्होंने अपने सारे पुराने कांटैक्ट खड़काने शुरू कर दिए।
उनकी एक सबसे बड़ी ताकत थी ,हर नेटवर्क में ऐसे लोग थे जिन्हे या तो उन्होंने ट्रेन किया था या फिर वो उनके उपकृत थे।
और पिक्चर जीतनी क्लियर होती गयी , उतनी ही और असफलता की भयावह तस्वीर बन के उभरती गयी।
और तभी मेजर आये , बल्कि ब्रिगेडियर वाहिद। लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल गुल , अभी भी उन्हें मेजर ही कहते थे।
और जो उन लोगों की बात शुरु हुयी तो कब घंटे बीत गए पता नहीं चला।
ये सिर्फ किस्मत की बात थी की मेजर उस मीटिंग में नहीं पहुँच पाये थे जो कमांड और कंट्रोल सेंटर में हुयी थी और जिसे उड़ा दिया गया था।
वह उस समय बिल्डिंग से मुश्किल से ५०० गज दूर थे , और मलबे उड़ के उन तक पहुंचे थे।
उन्होंने पहले डैमेज कन्टेन्मेंट और मिडिया मैनेजमेंट का काम किया और उस एक्सप्लोजन को बिल्डिंग गिरने में तब्दील कर दिया।
जब वो दोनों लोग बात ही कर रहे थे की गुल साहब के फोन बजने शुरू हो गए ड्रोन अटैक्स के बारे में ,चार पांच जगहों पर हमले हुए थे , लेकिन अबकी पहली बार ये पंजाब और सिंध के इलाके में हुए थे और बहोत ही प्रिसिसजन के साथ जैसे हमले वालों को एक्यूरेट लोकेशन मालूम हो।
दोनों को ये बताने की जरूरत नहीं थी की ये पेरीफेरल टेरर नर्व सेंटर्स थे।
कमरे में बड़ी देर तक चुप्पी छायी रही।
फिर मेजर ने पूरा डैमेज असेस करना शुरू किया , बनारस बड़ौदा और मुम्बई में हुयी असफलता के साथ उनका स्लीपर नेटवर्क भी चूर होगया है। करीब ८५ फीसदी स्लीपर पकड़े गए हैं और ८०-९० गहरे सपोेर्टस भी। अगले ४-५ साल तक कोई भी अंदरुनी कार्यवाही करना मुश्किल होगा।
लेफिटनेंट जनरल ने उनसे सब इंफोर्मेशन मांगी , कम्युनिकेशन के ट्रांसक्रिप्शन , लॉग , तीनो जगह के आपरेशन के डिटेल ,
और मेजर ने कहा की वो एक दो घंटे में एक स्पेशल कूरियर से सब कागज़ भिजवा देंगे।
गुल साहब , इलेक्ट्रानिक ट्रांसमिशन में वसूल नहीं रखते थे। कहा जाता है की ओसामा पर जब उसके सेटलाइट फोन को ट्रैक करके मिसाइल हमला अमेरिका ने किया तो उन्होंने ही ओसामा को वार्निंग दी थी।
तय ये भी हुआ की मेजर शाम को फिर आएंगे तब तक लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड ) सारे कागज पढ़कर कुछ सोच लेंगे ये सब हुआ कैसे।
मेजर के निकलने के पहले उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने कुछ और इन्क्वायरी के लिए उन्हें बताया।
घंटे भर के लिए कुरियर सारे पेपर दे गया।
फिर तो खाना पीना सब धरा रह गया ,
बस उन पेपर्स के बीच वो पेन्सिल से ककह लिखते , जैसे कोई पज़ल सॉल्व कर रहे हों , फोन लगाते।
शाम होने को आई , और वो बार बार चहल कदमी कर रहे थे। फिर उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने गहरी सांस लेकर जुनैद को फोन लगाया ,
ये उनका यंगेस्ट प्रोटीजी था , एक थिंक टैंक में अमेरिका में काम करता था और अब किसी बड़ी कन्सलटेनसी में बिग डाटा का काम करता था , नंबर क्रंचिंग , ऐनलिसिस , डाटा माइनिंग , उसके लिए हॉबी थे।
अब जब उनके पुराने साथी बहुत कम आते थे , ये लड़का महीने में एक दो बार आता था और रात भर वो लोग चेस और क्रास वर्ड में उलझे रहते थे।
सारी प्राबलम उन्होंने उसे समझायी और बोला रात को खाने पे आये।
देर शाम को मेजर फिर आया , और आते ही लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने उनसे कई सवाल दागे , और सबसे पहला सवाल ये था अरिमर्दन से कांटैक्ट हुआ।
मेजर ने ठंडी सांस लेकर बोला हाँ , लेकिन रात दस बजे के आसपास जो उससे बात करेगा , उसका फोन आएगा।
मेजर अभी भी शाक में था।
इतनी जबरदस्त प्लानिंग के बावजूद , तीन तीन आपरेशन फेल हो गए। और उस से भी बढ़कर दुश्मन ने उनके घर में घुस कर उनकी रेड लगा दी। आज से पहले भी पडोसी देश की सिक्योरटी एजेंसीज ने उनके कई आपरेशन फेल किये थे , लेकिन कभी भी उनकी ये हिम्मत नहीं हुयी थी की टेरर नेटवर्क के सेण्टर पर हमला करें।
एक कंसोलेशन की तरह मेजर बोला ,
" उन दो लोगों का पता चल गया है , जो सुबह के सेंटर के ब्लास्ट के पीछे थे। "
उस की बात पूरी होने के पहले , गुल मुस्करा के बोले ,
"और वो दोनों सिंगापुर एयर लाइंस की फ्लाइट से निकल गए हैं , एक इंडियन एक अमरीकन। '
" आपको कैसे पता चला " मेजर की सांस रुक गयी। " ये तो टॉप सीक्रेट है और मुझे भी आधे घंटे पहले पता चला। "
" एलीमेंट्री माई डियर मेजर " , वो हँसे और उसके प्याले में काफी ढाली।
" मुझे किसी ने नहीं बताया , सिम्पल अनैलिसिस। " और फिर अपने प्याले में काफी निकाल के वो बोले।
" हमला होने के दो घंटे के अंदर ये अकेली फ्लाइट थी , उसकी बुकिंग उन्होंने पहले से की , बोर्डिंग पास भी रास्ते में कंप्यूटर से निकाला होगा , और फिर तो फ्लाइट छूटने के एक घंटे पहले पहुँच के भी , वो आराम से जहाज पकड़ सकते थे। हमले की कोशिश इण्डिया पर थी , इसलिए एक इंडियन होना ही था। और उन्होंने अमेरिका के लिए इंट्रेस्टिंग असेट पकड़े हैं , इसलिए दूसरा अमेरिकन होगा। एक बात और तुम लोगों ने सिंगापुर एयर पोेर्ट के एराइवल के सी सी टी वि केरिकार्ड के चेक किये होंगे , लेकिन वो वहां नहीं मिले होंगे। "
" हाँ " मेजर ने स्वीकार किया।
" पहला स्टापेज , कोलम्बो था , दोनों वहीँ उतर गए। एक शिप से इण्डिया चला गया होगा और दूसरा किसी फ्लाइट से यूरोप। लेकिन उनकी खोज बेकार है। चेहरा पासपोर्ट सब बदल लिए होंगे। पर सवाल है हमने करना क्या है। दुखी हो के बैठने से तो कुछ होगा नहीं। " गुल बोला।
" लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं , उन्होंने तो हमारी ले ली और वो भी तेल लगा के। सारे स्लिपर अंदर है , और उनके सेल वाले भी सब अब तक पकड़े गए होंगे और राग भीम पलासी सुर में गा रहे होंगे। उनकी पुलिस के बारे में और चाहे जो भी कुछ कहें , लेकिन उनका जूता , बहुत तेज चलता है।
फिर हमारे सारे सिक्योरिटी कोड कम्प्रोमाइज हो चुके हैं , जो मुट्ठी भर लोग बचे भी हैं उनसे कांटैक्ट नहीं कर सकते। जो नेपाल और बँगला देश में हमने अड्डे बनाये थे वहां भी उन्होंने छापा मार दिया और सब पकड़े गए , वरना वहां से कुछ भेज देते। हम अब कुछ नहीं कर सकते। "
लेफ्टिनेंट जनरल गुल मुस्कराये , और बोले ,
" तुमने मेरी सब ट्रेनिंग बेकार कर दी। देखो असली बुद्धी का इम्तहान ,मुसीबत में होता है , जब तुम्हारे पास रिसोर्सेज न हों , योर बैक इज आन द वॉल। सब कुछ भूल जाओ और सोचो। "
मेजर चुप बैठा रहा फिर बोला क्या सोचूं सिर्फ अँधेरा दिख रहा है।
लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने फिर पूछा , अच्छा तुम क्या करते मानलो रिसोर्स हों तो।
" साल्ले के यहाँ बम लगा देता , १०- १२ जगह , दो तीन शहरों में एक साथ धड़ाका करता ," मेजर गुस्से में बोला।
लेफ्टिनेंट जनरल गुल जोर से मुस्कराये ,
" वो तो तुमने करने की कोशिश की थी , फेल हो गए। सवाल ये नहीं है क्या करना है ,सवाल ये है की किसके खिलाफ करना है। मान लो तुम्हारे पार कुछ अक्ल की डेफिसिट है तो कोई बात नहीं ,अपने दुश्मन से सीखो न। उसने क्या किया , जिस ने और जिस जगह से प्लानिंग हो रही सीधे वही टारगेट किया , तिहरा फायदा हुआ , पहले तो हमारी हमले की ताकत कम्प्रोमाइज हो गयी।
दूसरे जिन्होंने हमले की प्लानिंग की उसे एलिमिनेट कर दिया
और तीसरी सबसे बड़ी बात ये उन्होंने हमें वार्निंग दे दी , की हम कहाँ प्लान करते हैं है क्या प्लान करते हैं ये सब उन्हें मालूम है. ये कैपेबिलिटी उनकी पहले नहीं थी। वो रिएक्ट करते थे ,अब ऐन्टिसिपेट कर रहे हैं। हमें भी ये सोचना है की कुछ करना है तो किसके खिलाफ करना है , और ये अटैक की तरह प्वाइंटेड होना चाहिए। "
दोनों चुप होकर बैठे रहे।
फिर मेजर ने बात शुरू की , मुम्बई की कुछ रिपोर्ट्स मिली है।
लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने फिर बात काट दी " फिर गलत ,हमें बनारस से बात शुरू करनी चाहिए। फेल्योर्स बनारस से शुरू हुयी , इसलिए क्ल्यु वहीँ मिलेंगे। "
" एक लड़की के बारे में पता चला है " मेजर ने बोलने की कोशिश की लेकिन , लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने उसे दुबारा चुप करा दिया।
"मैंने रिपोर्ट्स पढ़ी हैं ,अपने काॅन्टैक्ट्स से बात भी की है , तुम्हे मालूम है वो लड़की कहाँ है अभी। "
" नहीं " मेजर ने उदास होकर कहा।
" देखिये , मैं जानता हूँ , वो जहाँ भी होगी हाईएस्ट प्रोएटेक्शन में होगी , इसलिए उसपर हाथ उठाने की बात सोचना भी मत। दूसरे वो काउण्टर अटैक के फोरफ्रंट पर जरूर थी , लेकिन कोई रहा होगा जो उसे इंटेलिजेंस प्रोवाइड कर रहा होगा और वो कोई सरकारी आर्गनाइजैशन नहीं था क्योंकि ज्यादातर में हमारा पेन्ट्रेशन है।
पता ये करना है वो कौन है। जैसे उन्होंने हमारे इंटेलिजेंस नेटवर्क को कृपिल कर दिया , उसके कमांड सेंटर को तबाह कर , हमें उस आदमी के बारे में पता करना चाहिए। इसलिए अपना दिमाग सिर्फ उसका पता करने के लिए लगाओ और उसका क्ल्यु बनारस में मिलेगा। और जो कुछ भी करना है उसी के ऊपर होगा।
लेकिन हम चुप नहीं बैठ सकते अगर हमने उस पर हमला किया और कामयाब रहे तो इंडियन सिक्योरिटी एजेंसीज को पता चल जाएगा की हम भी रिटलिएट कर सकते हैं। "
मेजर ने हामी भरी। तब तक वली ने आकर पुछा खाना लगाऊं।
' जुनैद आनेवाला है , उस का वेट कर लेते हैं। 'लेफ्टिनेंट जनरल गुल बोले।
"उनका मेसज आ गया है , बस वो पांच मिनट में पहुँच रहे हैं। " वली बोला।
" लगाओ "लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने बोला और अपने फोन पे लग गए , पांच मिस्ड काल और ७ मेसेज थे।
और फोन के बाद उनके माथे पर चिंता की रेखाएं बढ़ गयीं।
तब तक जुनेद आ गया , और आते ही वली से उसने पुछा ,आज का शेफ स्पेशल।
" पाये का सूप , रेशमी कबाब और रोगन जोश " वली ने मुस्करा के बोला , और जोड़ा , "मुझे मालूम था आप आ रहे हैं। "
सूप के साथ चर्चा फिर शुरू हुयी।
फागुन के दिन चार--162
मेजर वाहिद
लेकिन आज उनका प्रोटीजी जो प्राबलम लाया था वो सबसे टेढ़ी थी।
नाम उसका मेजर वाहिद था , जब वह सबसे पहले उनके साथ काम करने आया था।
सबसे पहले अफगानी लोगों की ट्रेनिंग स्कूल उसने ही शुरू की थी , और शायद ही कोई अफगानी ग्रुप हो , जिसकी सीनियर लीडरशिप में उसका ट्रेन किया हो न।
और फिर उसके साथ चेचन्या , सोमालिया , सीरियाई , और कुछ लोकल लश्कर , हिज्बुल , जोश , सबकी ट्रेनिंग पर उसका स्टाम्प था।
और १९८९ के बाद पडोसी देश की केसर की घाटी में भेजने का काम ,
और जब वो जासूसी संस्था के हेड हुए तो वो एक्सटर्नल एसपीओनेज का हेड रहा लेकिन कुछ दिन में उसका दायरा बढ़ गया और ट्रेंड टेररिस्ट भेजने से अटैक की प्लानिंग , लॉजिस्टिक्स और फायनेंस सब काम उसके जिम्मे।
उनके ऐक्टिव सर्विस छोड़ने के बाद लेकिन उन्ही की सलाह पर एक आर्गेनाइजेशन बना जो सेमी गर्वमेंट था , यानी गवर्नमेंट का पीछे से तो सपोर्ट था , लेकिन उसमे काम करने वालो का कोइ रिकार्ड गवर्नमन्ट में नहीं था। गवर्नमेंट कभी भी उनको डिसओन कर सकती थी। और वो पेड वालंटियर से , काम चलाते थे।
और मेजर वाहिद उस के हेड बन के सरकार से अलग हुए।
वह प्रमोट होकर अब तक ब्रिगेडियर हो चुके थे लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल गुल उन्हें मेजर कह के ही बुलाते।
……………
आज सुबह जब उन्होंने जियो चैनेल पर एक घर के ध्वस्त होने की खबर सुनी थी और उस की लोकेशन देखी तो वो सिहर गए थे। वो उन गिनती के लोगों में थे जिन्हे मालूम था की वो जगह एकदम सुरक्षित , कमांड कंट्रोल सेंटर है , जहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता। और फिर उन्होंने फोन खड़काने शुरू कर दिए। हर फोन के बाद उनके माथे पर चिंता की रेखाएं और चेहरे पर दुःख का भाव बढ़ता गया। मरने वालों की फेहरिस्त बहुत लम्बी थी और वो सारे जो टेरर नेटवर्क उन्होंने १५-२० साल पहले बनाया था , उसके चुंनिंदा लोग थे।
उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
ऑपरेशन ट्राइडेंट के बारे में उन्हें कुछ इमकान जरूर था की एक के बाद एक बनारस , बड़ौदा और मुम्बई पर भयावह हमले होने वाले हैं। लेकिन जब अखबार या भारत में उनके सूत्रों से कोई पुष्टि नहीं हुयी तो उनका माथा ठनका , लेकिन बरसों से उन्होंने अपने कोएक्टिव आपरेशन से अलग कर रखा था , और धीरे धीरे वो लोग भी उन्हें बहुत कुछ पिक्चर में नहीं रखते थे।
लेकिन आज का दिन कुछ अलग ही था। इस तरह के हमले के बारे में वो कभी सोच नहीं सकते थे , जैसे कोई शेर की मांद में घुस के उसे चैलेन्ज कर दे।
उन्होंने अपने सारे पुराने कांटैक्ट खड़काने शुरू कर दिए।
उनकी एक सबसे बड़ी ताकत थी ,हर नेटवर्क में ऐसे लोग थे जिन्हे या तो उन्होंने ट्रेन किया था या फिर वो उनके उपकृत थे।
और पिक्चर जीतनी क्लियर होती गयी , उतनी ही और असफलता की भयावह तस्वीर बन के उभरती गयी।
और तभी मेजर आये , बल्कि ब्रिगेडियर वाहिद। लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल गुल , अभी भी उन्हें मेजर ही कहते थे।
और जो उन लोगों की बात शुरु हुयी तो कब घंटे बीत गए पता नहीं चला।
ये सिर्फ किस्मत की बात थी की मेजर उस मीटिंग में नहीं पहुँच पाये थे जो कमांड और कंट्रोल सेंटर में हुयी थी और जिसे उड़ा दिया गया था।
वह उस समय बिल्डिंग से मुश्किल से ५०० गज दूर थे , और मलबे उड़ के उन तक पहुंचे थे।
उन्होंने पहले डैमेज कन्टेन्मेंट और मिडिया मैनेजमेंट का काम किया और उस एक्सप्लोजन को बिल्डिंग गिरने में तब्दील कर दिया।
जब वो दोनों लोग बात ही कर रहे थे की गुल साहब के फोन बजने शुरू हो गए ड्रोन अटैक्स के बारे में ,चार पांच जगहों पर हमले हुए थे , लेकिन अबकी पहली बार ये पंजाब और सिंध के इलाके में हुए थे और बहोत ही प्रिसिसजन के साथ जैसे हमले वालों को एक्यूरेट लोकेशन मालूम हो।
दोनों को ये बताने की जरूरत नहीं थी की ये पेरीफेरल टेरर नर्व सेंटर्स थे।
कमरे में बड़ी देर तक चुप्पी छायी रही।
फिर मेजर ने पूरा डैमेज असेस करना शुरू किया , बनारस बड़ौदा और मुम्बई में हुयी असफलता के साथ उनका स्लीपर नेटवर्क भी चूर होगया है। करीब ८५ फीसदी स्लीपर पकड़े गए हैं और ८०-९० गहरे सपोेर्टस भी। अगले ४-५ साल तक कोई भी अंदरुनी कार्यवाही करना मुश्किल होगा।
लेफिटनेंट जनरल ने उनसे सब इंफोर्मेशन मांगी , कम्युनिकेशन के ट्रांसक्रिप्शन , लॉग , तीनो जगह के आपरेशन के डिटेल ,
और मेजर ने कहा की वो एक दो घंटे में एक स्पेशल कूरियर से सब कागज़ भिजवा देंगे।
गुल साहब , इलेक्ट्रानिक ट्रांसमिशन में वसूल नहीं रखते थे। कहा जाता है की ओसामा पर जब उसके सेटलाइट फोन को ट्रैक करके मिसाइल हमला अमेरिका ने किया तो उन्होंने ही ओसामा को वार्निंग दी थी।
तय ये भी हुआ की मेजर शाम को फिर आएंगे तब तक लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड ) सारे कागज पढ़कर कुछ सोच लेंगे ये सब हुआ कैसे।
मेजर के निकलने के पहले उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने कुछ और इन्क्वायरी के लिए उन्हें बताया।
घंटे भर के लिए कुरियर सारे पेपर दे गया।
फिर तो खाना पीना सब धरा रह गया ,
बस उन पेपर्स के बीच वो पेन्सिल से ककह लिखते , जैसे कोई पज़ल सॉल्व कर रहे हों , फोन लगाते।
शाम होने को आई , और वो बार बार चहल कदमी कर रहे थे। फिर उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने गहरी सांस लेकर जुनैद को फोन लगाया ,
ये उनका यंगेस्ट प्रोटीजी था , एक थिंक टैंक में अमेरिका में काम करता था और अब किसी बड़ी कन्सलटेनसी में बिग डाटा का काम करता था , नंबर क्रंचिंग , ऐनलिसिस , डाटा माइनिंग , उसके लिए हॉबी थे।
अब जब उनके पुराने साथी बहुत कम आते थे , ये लड़का महीने में एक दो बार आता था और रात भर वो लोग चेस और क्रास वर्ड में उलझे रहते थे।
सारी प्राबलम उन्होंने उसे समझायी और बोला रात को खाने पे आये।
देर शाम को मेजर फिर आया , और आते ही लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने उनसे कई सवाल दागे , और सबसे पहला सवाल ये था अरिमर्दन से कांटैक्ट हुआ।
मेजर ने ठंडी सांस लेकर बोला हाँ , लेकिन रात दस बजे के आसपास जो उससे बात करेगा , उसका फोन आएगा।
मेजर अभी भी शाक में था।
इतनी जबरदस्त प्लानिंग के बावजूद , तीन तीन आपरेशन फेल हो गए। और उस से भी बढ़कर दुश्मन ने उनके घर में घुस कर उनकी रेड लगा दी। आज से पहले भी पडोसी देश की सिक्योरटी एजेंसीज ने उनके कई आपरेशन फेल किये थे , लेकिन कभी भी उनकी ये हिम्मत नहीं हुयी थी की टेरर नेटवर्क के सेण्टर पर हमला करें।
एक कंसोलेशन की तरह मेजर बोला ,
" उन दो लोगों का पता चल गया है , जो सुबह के सेंटर के ब्लास्ट के पीछे थे। "
उस की बात पूरी होने के पहले , गुल मुस्करा के बोले ,
"और वो दोनों सिंगापुर एयर लाइंस की फ्लाइट से निकल गए हैं , एक इंडियन एक अमरीकन। '
" आपको कैसे पता चला " मेजर की सांस रुक गयी। " ये तो टॉप सीक्रेट है और मुझे भी आधे घंटे पहले पता चला। "
" एलीमेंट्री माई डियर मेजर " , वो हँसे और उसके प्याले में काफी ढाली।
" मुझे किसी ने नहीं बताया , सिम्पल अनैलिसिस। " और फिर अपने प्याले में काफी निकाल के वो बोले।
" हमला होने के दो घंटे के अंदर ये अकेली फ्लाइट थी , उसकी बुकिंग उन्होंने पहले से की , बोर्डिंग पास भी रास्ते में कंप्यूटर से निकाला होगा , और फिर तो फ्लाइट छूटने के एक घंटे पहले पहुँच के भी , वो आराम से जहाज पकड़ सकते थे। हमले की कोशिश इण्डिया पर थी , इसलिए एक इंडियन होना ही था। और उन्होंने अमेरिका के लिए इंट्रेस्टिंग असेट पकड़े हैं , इसलिए दूसरा अमेरिकन होगा। एक बात और तुम लोगों ने सिंगापुर एयर पोेर्ट के एराइवल के सी सी टी वि केरिकार्ड के चेक किये होंगे , लेकिन वो वहां नहीं मिले होंगे। "
" हाँ " मेजर ने स्वीकार किया।
" पहला स्टापेज , कोलम्बो था , दोनों वहीँ उतर गए। एक शिप से इण्डिया चला गया होगा और दूसरा किसी फ्लाइट से यूरोप। लेकिन उनकी खोज बेकार है। चेहरा पासपोर्ट सब बदल लिए होंगे। पर सवाल है हमने करना क्या है। दुखी हो के बैठने से तो कुछ होगा नहीं। " गुल बोला।
" लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं , उन्होंने तो हमारी ले ली और वो भी तेल लगा के। सारे स्लिपर अंदर है , और उनके सेल वाले भी सब अब तक पकड़े गए होंगे और राग भीम पलासी सुर में गा रहे होंगे। उनकी पुलिस के बारे में और चाहे जो भी कुछ कहें , लेकिन उनका जूता , बहुत तेज चलता है।
फिर हमारे सारे सिक्योरिटी कोड कम्प्रोमाइज हो चुके हैं , जो मुट्ठी भर लोग बचे भी हैं उनसे कांटैक्ट नहीं कर सकते। जो नेपाल और बँगला देश में हमने अड्डे बनाये थे वहां भी उन्होंने छापा मार दिया और सब पकड़े गए , वरना वहां से कुछ भेज देते। हम अब कुछ नहीं कर सकते। "
लेफ्टिनेंट जनरल गुल मुस्कराये , और बोले ,
" तुमने मेरी सब ट्रेनिंग बेकार कर दी। देखो असली बुद्धी का इम्तहान ,मुसीबत में होता है , जब तुम्हारे पास रिसोर्सेज न हों , योर बैक इज आन द वॉल। सब कुछ भूल जाओ और सोचो। "
मेजर चुप बैठा रहा फिर बोला क्या सोचूं सिर्फ अँधेरा दिख रहा है।
लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने फिर पूछा , अच्छा तुम क्या करते मानलो रिसोर्स हों तो।
" साल्ले के यहाँ बम लगा देता , १०- १२ जगह , दो तीन शहरों में एक साथ धड़ाका करता ," मेजर गुस्से में बोला।
लेफ्टिनेंट जनरल गुल जोर से मुस्कराये ,
" वो तो तुमने करने की कोशिश की थी , फेल हो गए। सवाल ये नहीं है क्या करना है ,सवाल ये है की किसके खिलाफ करना है। मान लो तुम्हारे पार कुछ अक्ल की डेफिसिट है तो कोई बात नहीं ,अपने दुश्मन से सीखो न। उसने क्या किया , जिस ने और जिस जगह से प्लानिंग हो रही सीधे वही टारगेट किया , तिहरा फायदा हुआ , पहले तो हमारी हमले की ताकत कम्प्रोमाइज हो गयी।
दूसरे जिन्होंने हमले की प्लानिंग की उसे एलिमिनेट कर दिया
और तीसरी सबसे बड़ी बात ये उन्होंने हमें वार्निंग दे दी , की हम कहाँ प्लान करते हैं है क्या प्लान करते हैं ये सब उन्हें मालूम है. ये कैपेबिलिटी उनकी पहले नहीं थी। वो रिएक्ट करते थे ,अब ऐन्टिसिपेट कर रहे हैं। हमें भी ये सोचना है की कुछ करना है तो किसके खिलाफ करना है , और ये अटैक की तरह प्वाइंटेड होना चाहिए। "
दोनों चुप होकर बैठे रहे।
फिर मेजर ने बात शुरू की , मुम्बई की कुछ रिपोर्ट्स मिली है।
लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने फिर बात काट दी " फिर गलत ,हमें बनारस से बात शुरू करनी चाहिए। फेल्योर्स बनारस से शुरू हुयी , इसलिए क्ल्यु वहीँ मिलेंगे। "
" एक लड़की के बारे में पता चला है " मेजर ने बोलने की कोशिश की लेकिन , लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने उसे दुबारा चुप करा दिया।
"मैंने रिपोर्ट्स पढ़ी हैं ,अपने काॅन्टैक्ट्स से बात भी की है , तुम्हे मालूम है वो लड़की कहाँ है अभी। "
" नहीं " मेजर ने उदास होकर कहा।
" देखिये , मैं जानता हूँ , वो जहाँ भी होगी हाईएस्ट प्रोएटेक्शन में होगी , इसलिए उसपर हाथ उठाने की बात सोचना भी मत। दूसरे वो काउण्टर अटैक के फोरफ्रंट पर जरूर थी , लेकिन कोई रहा होगा जो उसे इंटेलिजेंस प्रोवाइड कर रहा होगा और वो कोई सरकारी आर्गनाइजैशन नहीं था क्योंकि ज्यादातर में हमारा पेन्ट्रेशन है।
पता ये करना है वो कौन है। जैसे उन्होंने हमारे इंटेलिजेंस नेटवर्क को कृपिल कर दिया , उसके कमांड सेंटर को तबाह कर , हमें उस आदमी के बारे में पता करना चाहिए। इसलिए अपना दिमाग सिर्फ उसका पता करने के लिए लगाओ और उसका क्ल्यु बनारस में मिलेगा। और जो कुछ भी करना है उसी के ऊपर होगा।
लेकिन हम चुप नहीं बैठ सकते अगर हमने उस पर हमला किया और कामयाब रहे तो इंडियन सिक्योरिटी एजेंसीज को पता चल जाएगा की हम भी रिटलिएट कर सकते हैं। "
मेजर ने हामी भरी। तब तक वली ने आकर पुछा खाना लगाऊं।
' जुनैद आनेवाला है , उस का वेट कर लेते हैं। 'लेफ्टिनेंट जनरल गुल बोले।
"उनका मेसज आ गया है , बस वो पांच मिनट में पहुँच रहे हैं। " वली बोला।
" लगाओ "लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने बोला और अपने फोन पे लग गए , पांच मिस्ड काल और ७ मेसेज थे।
और फोन के बाद उनके माथे पर चिंता की रेखाएं बढ़ गयीं।
तब तक जुनेद आ गया , और आते ही वली से उसने पुछा ,आज का शेफ स्पेशल।
" पाये का सूप , रेशमी कबाब और रोगन जोश " वली ने मुस्करा के बोला , और जोड़ा , "मुझे मालूम था आप आ रहे हैं। "
सूप के साथ चर्चा फिर शुरू हुयी।
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