FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--149
मैं , रंजी और गुड्डी , दो दिन
और जब मैंने रिक्शे में उन दोनों के साथ बैठने की कोशिश की ,
' नहीं नहीं नहीं" दोनों ने एक साथ मना कर दिया।
मेरे कुछ समझ में नहीं आया , तो मैं झुँझला कर बोल पड़ा , " ठीक है मैं पैदल आ जाऊँगा। "
रंजी मेरी खिंचाई का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती थी , बोल पड़ी ,
" अरे नहीं भैया , चप्पल घिस जायेगी। मेरी गुलाबी एक्टिवा है न ,मेरी धन्नो आप आ जाओ उससे न , नहीं गिराएगी प्रॉमिस। "
" वो लड़कियों वाली बाइक , उस पे ,… " मैंने मुंह बनाया।
" अच्छा जी मेरी बिल्ली मुंझी से म्याऊं , बनारस में क्या क्या पहना था , लड़कियों का और मिश्रायिन भाभी ने यहाँ होली के दिन, मेरे पास तो फोटो भी हैं कहो तो तेरे फेसबुक पेज पे पोस्ट कर दूँ। " गुड्डी मैदान में आ गयी।
एक से पार पाना मुश्किल था और दोनों एक साथ , मैंने तुरंत सरेंडर कर दिया।
बात सही थी , सबसे पहले बनारस में चंदा भाभी की साडी पहननी पड़ी , फिर गूंजा का बरमूडा और बाद में जब रीत आ गयी गुड्डी के साथ तो फिर तो ,…
उन दोनों का रिक्शा जैसे ही थोड़े आगे निकल गया , मैं समझ गया उन दोनों का असली मतलब।
रंजी की आती जवानी ने तो वैसे ही मोहल्ले में आग लगा रखी थी और ऊपर से ये कातिलाना ड्रेस और फिर गुड्डी का साथ।
मैं साथ होता तो शायद , मोहल्ले और गली कूचे वाले उस जोश में कॉमेंट न पास कर पाते।
मैं जान बूझ के थोड़ा पीछे रह गया , और फिर तो हर मोड़ पे , हर कोने पे २-४ लड़के कोई घटिया कमेंट मारता तो कोई सीधे रंजी का नाम ले के फोश मजाक , लेकिन सबसे अचरज की बात ये थी ज्यादातर को गुड्डी का नाम मालूम पड़ गया। और सिर्फ नाम ही नही सैडल से लेकर ब्रा तक का नंबर भी।
लेकिन दोनों बुरा नहीं मान रही थी ,बल्कि अपनी आँखों से , अदाओं से कभी झुक कर कभी जोबन उचका कर और उन्हें भड़काती , सैन दिखातीं।
मैंने एक्टिवा तेज की और जब दोनों के पास से गुजरा , तो गुड्डी ने आवाज लगाई की बाजार के पास रुक जाऊं , भाभी ने लम्बी फेहरिस्त दी है।
और बाजार में भी उन दोनों ने कम चरस नहीं बोई।
हाँ सामान ढोने का काम मेरे जिम्मे आया और जब मैंने शिकायत की , कि तुम दोनों का बोझ मैं उठा रहा हूँ , तो हंस के गुड्डी ने रंजी को दबोचते कहा
" कोई बात नहीं आज रात मेरी सहेली तेरा बोझ उठा लेगी , बात बराबर। हम दोनों किसीका अहसान उधार नहीं रखते। "
घर पहुंचा तो भैया बेताब।
बाहर कार में तैयार बैठे , जैसे न जाने कब से इन्तजार कर रहे हों।
अभी पौने तीन भी नहीं बजा था और भाभी ने तीन का टारगेट दिया था।
भाभी बेचारी , वो बरामदे में चहल कदमी कर रही थी। बार बार सड़क की ओर निगाहें घूम रही थी।
पहले रिक्शा उतरा और साथ में दोनों शोख बलाएँ।
और पीछे पीछे ऐक्टिवा पे मैं।
भाभी ने मुश्किल से हंसी रोकी। कोई और मौका होता तो मेरी वो हंसी उड़ती की , लेकिन भैया की जल्दी बाजी के चक्कर में बच गया मैं।
" चलो भी अब " उन्होंने कार में बैठे बैठे हंकार लगाई।
बेचारी भाभी। लेकिन जब मेरी निगाह उन पर पड़ी तो मेरे भी होश उड़ गए। आज एकदम जबरदस्त मेकअप कर रखा था उन्होंने और साडी भी ,
लेकिन मेरे कुछ कहने के पहले वो हम तीनो को घर के अंदर ले गयीं।
और इंस्ट्रकशन की एक लम्बी फेहरिस्त पकड़ा दी पकड़ा दी गयी। किसी २५ सूत्रीय प्रोग्राम से कम नहीं थी।
और मुझे नहीं गुड्डी को।
लिस्ट का सारांश यही था की मेरे ऊपर कत्तई यकीन न किया जाय और कड़ी निगाह रखी जाय।
घर के सारे दरवाजे बंद रखना , घर में रहना , जबतक भाभी न आएं बाहर नहीं जाना , किसी का फोन भैया भाभी के बारे में आये तो कुछ न बताना , दूध फ्रिज में रखना , बत्तिया बंद करना , खाते समय बहस न करना।
ये सारे काम करने मुझे थे , लेकिन सर जोर जोर से रंजी गुड्डी हिला रही थीं।
उन कामो को मैं सही ढंग से अंजाम दूँ , भाभी ने ये जिम्मेदारी गुड्डी के हवाले की थी और मेरे लिए सिर्फ एक बात गुड्डी की सब बात मानूं।
चलते चलते भाभी को एक और बात याद आई
" हे तुम लोग नीचे मत सोना , ऊपर हमारे कमरे में , नीचे के कमरे बंद कर के रखना "
रंजी की पुरानी आदत उसने एक सवाल उछाल दिया ,
" भाभी हम दोनों तो डबल बेड पे सो जाएंगे , लेकिन आपके देवर ?"
जवाब गुड्डी ने दिया " रंजी , तू भी न। कोई स्पेयर मैट्रेस होगा न , बिछा देंगे जमीं पे। और वो भी नहीं हुआ तो कोई पुराना चद्दर होगा , जिसे जमींन पर बिछा देंगे , पड़ रहेंगे ये ऐसा क्या है। "
तब तक बाहर से भैया की फिर से हंकार आई , और भाभी बाहर निकली लेकिन दरवाजे के पास पहुँच के रुक गयीं और गुड्डी और रंजी को बुलाया पास में।
मैंने उस आल विमेंस कांफ्रेंस में शिरकत करने की कोशिश की लेकिन मुझे शु कर दिया गया, आल गर्ली टाक।
लेकिन मेरे जासूस कानो ने सुन लिया।
" हे मेरे कमरे में कुछ आलमारियां हैं और ड्राअर , वो मत खोलना तुम लोग। ताला वाला नहीं है लेकिन उस पे मैंने चिट लगा दी है " नाट फॉर लिटिल गर्ल्स ".
तब तक दो बार हार्न की आवाज आई और भाभी , भैया के बगल में कार में बैठ गयी और कार पूरी स्पीड से धूल उड़ाती निकल गयी।
हम तीनो घर के अंदर घुसे और वही हुआ जो होना था।
मुझे जोर की डांट पड़ गयी।
हम तीनो घर के अंदर घुसे और वही हुआ जो होना था।
मुझे जोर की डांट पड़ गयी।
" तेरी भाभी अभी मोड़ पे भी नहीं पहुंची होंगी की सब भूल गए। क्या सिखाया था उन्होंने " गुड्डी घुड़की।
मुझे रंजी के उभार और कटाव देखने से फुरसत हो तो कुछ याद रहे। फिर भाभी ने तो लिस्ट इन दोनों को पहाड़े की तरह रटाई थी , मुझे कहाँ से याद होनी थी।
" भाभी ने बोला था दरवाजा हमेशा बंद रखना " रंजी ने याद दिलाया , और मुझे याद आ गया और मैंने बाहर का दरवाजा बंद कर दिया।
" ऐसे नहीं बुद्धू , " गुड्डी ने एक ढाई किलो का ताला दे दिया भुन्नासी ताला और बोली , " इसे ले जा के बंद कर दो बाहर दरवाजे पे और पिछवाड़े वाले दरवाजे से आ जाना। और फिर उसे भी बंद कर दो। "
मैंने वही किया।
और फिर उस फेहरिस्त के बाकी काम।
फ्रिज में दूध रखने से सारे दरवाजे चेक करने तक।
लेकिन आधे घंटे में सब काम खत्म हो गया। और मेरी किस्मत ने भी पलटा खाया।
गुड्डी रंजी के पीछे पड़ गयी ,
" हे मेरी छमकछल्लो , ये टॉप जींस घर में भी पहने रहोगी क्या , उतारो इसे न ".
" लेकिन मैं तो कुछ कपडे लाइ नहीं क्या पहनूंगी । " भोला सा मुंह बना के आँख नचाती रंजी बोली।
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया कुछ भी नहीं। लेकिन गुड्डी क्यों चुप रहती।
उसने तुरंत बोला ,
" अरे ये तेरा ६ फीट का जो आशिक खड़ा है , मांग ले उससे न। जबसे तू आई है मैं देख रही हूँ टुकुर टुकुर तेरे जुबना निहार रहा है। "
रंजी भी , वो मेरे पीछे खड़ी थी और उसने मुझे पीछे से ही बाँहों में भींच लिया। उसके जोबन की बरछी मेरे पीठ में छेद कर रही थी। अपने गरम गर्म होंठो को आलमोस्ट मेरे इयर लोब्स के पास लाके , वो शोख बोली ,
" ये तो मेरे प्यारे प्यारे भैया हैं। "
" तो क्या भैया आशिक नहीं हो सकते। " गुड्डी ने चिढ़ाया।
" एकदम हो सकते हैं , क्यों नहीं हो सकते। क्यों भैया। " और ये कहते कहते उसके दहकते होंठ ने मेरे कानो को छू लिया।
मेरी पूरी देह सुलग उठी।
लेकिन गुड्डी रंजी को खींच के अंदर ले गयी।
और जब दोनों निकली , तो बस मेरी जान नहीं निकली।
"देख क्या रहे हो तेरे ही कपडे हैं। अब तुम बुला के लाये थे अपनी प्यारी बहना कम माल को तो कपडे कौन देता। "
आँख नचा के गुड्डी अदा से बोली।
कपडे कौन देख रहा था। कपडे केबाहर जो दिख रहा था और कपडे फाड़ के जो जवानी चालक रही थी , मेरी हालत तो उससे खराब हो रही थी।
मेरी स्लीवलेस आलमोस्ट ट्रांसपेरेंट सफेद टी और मेरे मेश्ड बॉक्सर शार्ट , जो गुड्डी मेरे लिए लायी थी , घर में पहनने के लिए , रंजी ने वही पहन रखा था।
टी शर्ट एकदम उसके देह से चिपकी , सारे कटाव उभार झलकाती ,यहाँ तक की उसकी गुलाबी हाफ कप टीन ब्रा भी साफ दिख रही थी , जो उसके कबूतरों को दबोचे हुए थी।
लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक थी शॉर्ट्स , चूतड़ के बीच की दरार साफ दिख रही थी। और आगे की भी ,
एक लहरियादार कटीली नचनिया की तरह चक्कर लगा कर रंजी बड़ी शोख अदा से बोली , " क्यों भैया कैसी लगती हूँ तेरे कपड़ों में। "
और यही नहीं जान बूझ के अपने गदराये चूतड़ मेरे तन्नाये लंड पे उसने जोर से रगड़ दिया।
गुड्डी ने उसके कान में इतने धीरे से कहा की मुझे साफ सुनाई पड़ गया।
" हे ऐसी हरकत करेगी , तो आज तेरा पिछवाड़ा नहीं बचने वाला , फट के रहेगा। "
जवाब रंजी ने जोर से दिया , वो भी मुझे देखते हुए अपनी गोल गोल आँखे नचाकर ,
" फटती हो तो फट जाय या , और तेरी क्यों फटती है , मेरी फटने की बात सोच कर। " और जोर से खिलखिला पड़ी।
गुड्डी ने भी वही कपडे पहन रखे थे और वो भी शोला हो रही थी।
लेकिन मुझे डाटने से गुड्डी को कौन रोक सकता था , ये हक़ तो वो ऊपर से लिखवा के ले आई थी।
" हे , अगर अपनी बहन की जवानी से आँखे सेंक चुके हो न तो तुम भी कपडे बदल लो। चलो मैं चल के देती हूँ। "
और मैं उसके पीछे पीछे कमरे के अंदर ,
मुझे पहनने के लिए सिरफ बनियाइन और शॉर्ट्स मिली। इस ग्राउंड पे की अगर मैं भी टी पहन लूंगा , तो उन दोनों से कोई फरक नहीं होगा।
मुझे लगा की अब सीन बनेगा , लेकिन चाहने से कुछ होता थोड़े ही है। गुड्डी की प्लानिंग ज्यादा इम्पोर्टेन्ट थी।
वो दोनों किचेन की ओर मुड़ी तो मैं पीछे पीछे, और मैं अपने को बोलने से नहीं रोक पाया ,
" मंजू ने रात के लिए पराठे बना के रख दिए हैं। और कुछ बनाने की ,… "
हमेशा की तरह गुड्डी ने मेरी बात बीच में काट दी।
"तुम्हारी भाभी ने घर की सब जिम्मेदारी किसे सौंपी है। '
" तुम्हे " मैंने दबी जुबान में बोला।
" फिर, और पराठे रात के लिए हैं अभी के लिए थोड़े , तुम्हारे अभी किचेन में आने की जरूरत नहीं है। जब बुलाऊंगी तब आना। "
और ये कह के वो रंजी को खींच के किचेन में ले गयी।
साढ़े चार बज रहे थे।
किचन गुड्डी और रंजी के कब्जे में और फिर क्या करता ,
मन मसोस कर वापस अपने कमरे में चला गया।
और करता भी क्या।
क्या क्या सोचा था। सिर्फ गुड्डी और रंजी होंगी , क्या क्या मस्ती होगी। वो टेरर की कहानी भी खत्म , उसका टेंशन भी खत्म। अब फुल मस्ती। फिर गुड्डी खुद ही जोश दिलाती रहती थी और जब आज रंजी खुद ग्रीन सिग्नल दे रही है , घर में कोई है नहीं तो फिर उसे खीच के किचेन में ले गयी।
रीत , करन
थोड़ी देर ऐसे बैठा रहा , कुछ करने को था नहीं। कंप्यूटर खोल कर मेल देखने बैठ गया।
और फिर जबरदस्त खुशखबरी मिली।
करन का मेल था।
रीत एकदम ठीक है।
उसे होश भी आ गया और उसने करन से देर तक बातें भी की।
डॉक्टर्स ने कहा की उसे स्ट्रेस था और जो थोड़ी बहुत चोटें थी , उनकी बहुत फास्ट रिकवरी भी हुयी।
लेकिन सिस्टर ने करन को वहां से हटा दिया है। बोला , की अगर वो चाहता है की वो लोग रीत को कल डिस्चार्ज कर दें , तो अब रात भर उसे वो डिस्टर्ब न करे।
कुछ देर मैं सोचता रहा , फिर सिक्योर फोन से करन को फोन लगाया।
मुझे लगा की वो कुछ सीक्रेसी बरत रहा है। उसने कल का प्रोग्राम नही बताया , न ही रीत के डिस्चार्ज होने का टाइम बताया।
और फोन पर बात होने पर उसने पूरी बात बतायी।
मेरी धड़कन रुक रुक गयी।
पडोसी देश में घुस के जो धड़ाका हुआ था , उस के पहले जो बात चीत रिकार्ड हुयी थी , उसके हिसाब से दुश्मन ये जानने की कोशिश कर रहा था की आखिर ये मांद में घुस के शिकार करने की हिम्मत किसकी हुयी। उन्हें कुछ ख़ास नहीं पता लग पाया लेकिन कुछ लोगों ने कहा की एक लड़की का हाथ नजर आता है। जिस पर वहां के आकाओ को यकीं नहीं हुआ। लेकिन बनारस और बड़ौदा में जिस तरह कालिया ने हमला किया था , ये लोग रिस्क नहीं ले सकते थे। इसलिए हाई सिक्योरिटी नेवल हॉस्पिटल में रीत को रखा गया था। अगले चार दिन तक भी रिकार्ड में रीत को वो लोग हॉस्पिटल में ही रखेंगे। लेकिन सुबह होने के पहले ही करन और रीत नेवी के सिक्योर पेट्रोल बोट से हजीरा के लिए रवाना हो जाएंगे , जहाँ मीनल है।
२४ घण्टे तक वो वहीँ रहेंगे।
तब तक आई बी के लोग बनारस की पोजीशन चेक कर उसे सेनिटाइज कर लेंगे।
बनारस से ग्रीन सिग्नल मिलने पर , अगले दिन सुबह यानी की परसों सुबह , वो लोग सूरत से एक चार्टर्ड प्लेन से बनारस पहुँच जाएंगे।
रीत परसों से बनारस में ही रहेगी , लेकिन करन को दिल्ली जाना होगा , डी ब्रीफिंग के लिए।
मैंने सोचा परसों , यानी जब मैं , गुड्डी और रंजी वहां पहुंचेगें , रीत पहुँच गयी होगी।
करन ने भरोसा दिलाया की अब रीत पर खतरा नहीं है। क्योंकि दुश्मन का कमांड कंट्रोल सिस्टम नष्ट हो गया है। बचे खुचे जगहें भी ड्रोन अटैक से खत्म हो गयी हैं और यहाँ के भी रिसोर्सेज भी सब दबोच लिए गए हैं।
करन को मैंने बोला टेक केयर
.
करन ने ये भी बोला की रात में अब वो फोन नहीं करेगा।
मैंने कुछ हैकर दोस्तों से बात की कुछ रिपोर्टें पढ़ी। लेकिन मन तो वो सारंग नयनी चुराके ले गयी थी , जिसे गुड्डी खीच कर किचेन में ले गयी थी।
किचेन से उन दोनों की खिलखिलाने की आवाजे आ रही थीं।
फिर कुछ तलने की। कड़ाही में कलछुल चलने की।
साढ़े पांच बज चुके थे।
भाभी का मेसेज भी आ गया था की वो लोग करीब पांच बजे रिसार्ट में पहुंच गए हैं।
तब तक गुड्डी का बुलावा आया , किचेन से।
गुड्डी बुलाये और मैं,…
मैं दौड़ा दौड़ा चला गया।
किचेन के पास पहुंचते ही मेरे नथुनों में गरम गरम पकोड़ौ की महक भर रही थी।
रंजी के हाथ में एक बड़ी सी प्लेट में ढेर सारे पकौड़े थे और उसने तुरंत मुझे पकडा दिए और मुस्करा कर अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचाकर बोली ,
" लो न भैय्या। "
" ले लूँ मैं , बोल " डबल मीनिंग डायलॉग की आदत बड़ी मुश्किल से जाती है , लेकिन रंजी कौन कम थी , बोली।
" लो न , मैं ने कब मना किया है। " फुसफुसा कर वो बोली।
मैं और रंजी बरामदे की ओर मुड़े तो गुड्डी ने पीछे से हंकार लगायी।
" यहाँ नहीं , ऊपर इनके भाभी के कमरे में। "
और हम तीनो ऊपर भाभी के बेडरूम में पहुँच गए।
बेड रुम तो बड़ा था ही उसके बीचों बीच , डबलबेड काफी बड़ा था।
और वो दोनों धम्म से उसपर कूद के बैठ गयीं।
मैं सोच रहा था की आमची मुम्बई का कोई बिल्डर इस बेड को देख लेता तो १ बी एच के तो प्लान कर ही लेता।
और जैसे ही मैंने उस बेड पर बैठने की कोशिश की दोनों ने एक साथ मना कर दिया। ।नहीईईईईईइ
क्यों ,चकित होकर मैंने पुछा।
" पलंग हम दोनों का है , और तुम्हारी जगह , " रंजी बात पूरी करती की उसके पहले गुड्डी ने मुझे पकड़ कर सामने रखी एक कुर्सी पर बैठा दिया।
" भैया ,आप वहीँ से अच्छे लगते हो " मुझे बेड पर से बैठ कर के,टुकुर टुकुर देखती खिलखिलाती , रंजी बोली।
" साल्ली , भैय्या की बहना , खाली दूर से नैन मटक्का करती रहेगी , या जो पकोड़े इत्ते प्यार से अपने भइया के लिए बना के ले आई है ,उन्हें देगी भी। "
फागुन के दिन चार--149
मैं , रंजी और गुड्डी , दो दिन
और जब मैंने रिक्शे में उन दोनों के साथ बैठने की कोशिश की ,
' नहीं नहीं नहीं" दोनों ने एक साथ मना कर दिया।
मेरे कुछ समझ में नहीं आया , तो मैं झुँझला कर बोल पड़ा , " ठीक है मैं पैदल आ जाऊँगा। "
रंजी मेरी खिंचाई का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती थी , बोल पड़ी ,
" अरे नहीं भैया , चप्पल घिस जायेगी। मेरी गुलाबी एक्टिवा है न ,मेरी धन्नो आप आ जाओ उससे न , नहीं गिराएगी प्रॉमिस। "
" वो लड़कियों वाली बाइक , उस पे ,… " मैंने मुंह बनाया।
" अच्छा जी मेरी बिल्ली मुंझी से म्याऊं , बनारस में क्या क्या पहना था , लड़कियों का और मिश्रायिन भाभी ने यहाँ होली के दिन, मेरे पास तो फोटो भी हैं कहो तो तेरे फेसबुक पेज पे पोस्ट कर दूँ। " गुड्डी मैदान में आ गयी।
एक से पार पाना मुश्किल था और दोनों एक साथ , मैंने तुरंत सरेंडर कर दिया।
बात सही थी , सबसे पहले बनारस में चंदा भाभी की साडी पहननी पड़ी , फिर गूंजा का बरमूडा और बाद में जब रीत आ गयी गुड्डी के साथ तो फिर तो ,…
उन दोनों का रिक्शा जैसे ही थोड़े आगे निकल गया , मैं समझ गया उन दोनों का असली मतलब।
रंजी की आती जवानी ने तो वैसे ही मोहल्ले में आग लगा रखी थी और ऊपर से ये कातिलाना ड्रेस और फिर गुड्डी का साथ।
मैं साथ होता तो शायद , मोहल्ले और गली कूचे वाले उस जोश में कॉमेंट न पास कर पाते।
मैं जान बूझ के थोड़ा पीछे रह गया , और फिर तो हर मोड़ पे , हर कोने पे २-४ लड़के कोई घटिया कमेंट मारता तो कोई सीधे रंजी का नाम ले के फोश मजाक , लेकिन सबसे अचरज की बात ये थी ज्यादातर को गुड्डी का नाम मालूम पड़ गया। और सिर्फ नाम ही नही सैडल से लेकर ब्रा तक का नंबर भी।
लेकिन दोनों बुरा नहीं मान रही थी ,बल्कि अपनी आँखों से , अदाओं से कभी झुक कर कभी जोबन उचका कर और उन्हें भड़काती , सैन दिखातीं।
मैंने एक्टिवा तेज की और जब दोनों के पास से गुजरा , तो गुड्डी ने आवाज लगाई की बाजार के पास रुक जाऊं , भाभी ने लम्बी फेहरिस्त दी है।
और बाजार में भी उन दोनों ने कम चरस नहीं बोई।
हाँ सामान ढोने का काम मेरे जिम्मे आया और जब मैंने शिकायत की , कि तुम दोनों का बोझ मैं उठा रहा हूँ , तो हंस के गुड्डी ने रंजी को दबोचते कहा
" कोई बात नहीं आज रात मेरी सहेली तेरा बोझ उठा लेगी , बात बराबर। हम दोनों किसीका अहसान उधार नहीं रखते। "
घर पहुंचा तो भैया बेताब।
बाहर कार में तैयार बैठे , जैसे न जाने कब से इन्तजार कर रहे हों।
अभी पौने तीन भी नहीं बजा था और भाभी ने तीन का टारगेट दिया था।
भाभी बेचारी , वो बरामदे में चहल कदमी कर रही थी। बार बार सड़क की ओर निगाहें घूम रही थी।
पहले रिक्शा उतरा और साथ में दोनों शोख बलाएँ।
और पीछे पीछे ऐक्टिवा पे मैं।
भाभी ने मुश्किल से हंसी रोकी। कोई और मौका होता तो मेरी वो हंसी उड़ती की , लेकिन भैया की जल्दी बाजी के चक्कर में बच गया मैं।
" चलो भी अब " उन्होंने कार में बैठे बैठे हंकार लगाई।
बेचारी भाभी। लेकिन जब मेरी निगाह उन पर पड़ी तो मेरे भी होश उड़ गए। आज एकदम जबरदस्त मेकअप कर रखा था उन्होंने और साडी भी ,
लेकिन मेरे कुछ कहने के पहले वो हम तीनो को घर के अंदर ले गयीं।
और इंस्ट्रकशन की एक लम्बी फेहरिस्त पकड़ा दी पकड़ा दी गयी। किसी २५ सूत्रीय प्रोग्राम से कम नहीं थी।
और मुझे नहीं गुड्डी को।
लिस्ट का सारांश यही था की मेरे ऊपर कत्तई यकीन न किया जाय और कड़ी निगाह रखी जाय।
घर के सारे दरवाजे बंद रखना , घर में रहना , जबतक भाभी न आएं बाहर नहीं जाना , किसी का फोन भैया भाभी के बारे में आये तो कुछ न बताना , दूध फ्रिज में रखना , बत्तिया बंद करना , खाते समय बहस न करना।
ये सारे काम करने मुझे थे , लेकिन सर जोर जोर से रंजी गुड्डी हिला रही थीं।
उन कामो को मैं सही ढंग से अंजाम दूँ , भाभी ने ये जिम्मेदारी गुड्डी के हवाले की थी और मेरे लिए सिर्फ एक बात गुड्डी की सब बात मानूं।
चलते चलते भाभी को एक और बात याद आई
" हे तुम लोग नीचे मत सोना , ऊपर हमारे कमरे में , नीचे के कमरे बंद कर के रखना "
रंजी की पुरानी आदत उसने एक सवाल उछाल दिया ,
" भाभी हम दोनों तो डबल बेड पे सो जाएंगे , लेकिन आपके देवर ?"
जवाब गुड्डी ने दिया " रंजी , तू भी न। कोई स्पेयर मैट्रेस होगा न , बिछा देंगे जमीं पे। और वो भी नहीं हुआ तो कोई पुराना चद्दर होगा , जिसे जमींन पर बिछा देंगे , पड़ रहेंगे ये ऐसा क्या है। "
तब तक बाहर से भैया की फिर से हंकार आई , और भाभी बाहर निकली लेकिन दरवाजे के पास पहुँच के रुक गयीं और गुड्डी और रंजी को बुलाया पास में।
मैंने उस आल विमेंस कांफ्रेंस में शिरकत करने की कोशिश की लेकिन मुझे शु कर दिया गया, आल गर्ली टाक।
लेकिन मेरे जासूस कानो ने सुन लिया।
" हे मेरे कमरे में कुछ आलमारियां हैं और ड्राअर , वो मत खोलना तुम लोग। ताला वाला नहीं है लेकिन उस पे मैंने चिट लगा दी है " नाट फॉर लिटिल गर्ल्स ".
तब तक दो बार हार्न की आवाज आई और भाभी , भैया के बगल में कार में बैठ गयी और कार पूरी स्पीड से धूल उड़ाती निकल गयी।
हम तीनो घर के अंदर घुसे और वही हुआ जो होना था।
मुझे जोर की डांट पड़ गयी।
हम तीनो घर के अंदर घुसे और वही हुआ जो होना था।
मुझे जोर की डांट पड़ गयी।
" तेरी भाभी अभी मोड़ पे भी नहीं पहुंची होंगी की सब भूल गए। क्या सिखाया था उन्होंने " गुड्डी घुड़की।
मुझे रंजी के उभार और कटाव देखने से फुरसत हो तो कुछ याद रहे। फिर भाभी ने तो लिस्ट इन दोनों को पहाड़े की तरह रटाई थी , मुझे कहाँ से याद होनी थी।
" भाभी ने बोला था दरवाजा हमेशा बंद रखना " रंजी ने याद दिलाया , और मुझे याद आ गया और मैंने बाहर का दरवाजा बंद कर दिया।
" ऐसे नहीं बुद्धू , " गुड्डी ने एक ढाई किलो का ताला दे दिया भुन्नासी ताला और बोली , " इसे ले जा के बंद कर दो बाहर दरवाजे पे और पिछवाड़े वाले दरवाजे से आ जाना। और फिर उसे भी बंद कर दो। "
मैंने वही किया।
और फिर उस फेहरिस्त के बाकी काम।
फ्रिज में दूध रखने से सारे दरवाजे चेक करने तक।
लेकिन आधे घंटे में सब काम खत्म हो गया। और मेरी किस्मत ने भी पलटा खाया।
गुड्डी रंजी के पीछे पड़ गयी ,
" हे मेरी छमकछल्लो , ये टॉप जींस घर में भी पहने रहोगी क्या , उतारो इसे न ".
" लेकिन मैं तो कुछ कपडे लाइ नहीं क्या पहनूंगी । " भोला सा मुंह बना के आँख नचाती रंजी बोली।
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया कुछ भी नहीं। लेकिन गुड्डी क्यों चुप रहती।
उसने तुरंत बोला ,
" अरे ये तेरा ६ फीट का जो आशिक खड़ा है , मांग ले उससे न। जबसे तू आई है मैं देख रही हूँ टुकुर टुकुर तेरे जुबना निहार रहा है। "
रंजी भी , वो मेरे पीछे खड़ी थी और उसने मुझे पीछे से ही बाँहों में भींच लिया। उसके जोबन की बरछी मेरे पीठ में छेद कर रही थी। अपने गरम गर्म होंठो को आलमोस्ट मेरे इयर लोब्स के पास लाके , वो शोख बोली ,
" ये तो मेरे प्यारे प्यारे भैया हैं। "
" तो क्या भैया आशिक नहीं हो सकते। " गुड्डी ने चिढ़ाया।
" एकदम हो सकते हैं , क्यों नहीं हो सकते। क्यों भैया। " और ये कहते कहते उसके दहकते होंठ ने मेरे कानो को छू लिया।
मेरी पूरी देह सुलग उठी।
लेकिन गुड्डी रंजी को खींच के अंदर ले गयी।
और जब दोनों निकली , तो बस मेरी जान नहीं निकली।
"देख क्या रहे हो तेरे ही कपडे हैं। अब तुम बुला के लाये थे अपनी प्यारी बहना कम माल को तो कपडे कौन देता। "
आँख नचा के गुड्डी अदा से बोली।
कपडे कौन देख रहा था। कपडे केबाहर जो दिख रहा था और कपडे फाड़ के जो जवानी चालक रही थी , मेरी हालत तो उससे खराब हो रही थी।
मेरी स्लीवलेस आलमोस्ट ट्रांसपेरेंट सफेद टी और मेरे मेश्ड बॉक्सर शार्ट , जो गुड्डी मेरे लिए लायी थी , घर में पहनने के लिए , रंजी ने वही पहन रखा था।
टी शर्ट एकदम उसके देह से चिपकी , सारे कटाव उभार झलकाती ,यहाँ तक की उसकी गुलाबी हाफ कप टीन ब्रा भी साफ दिख रही थी , जो उसके कबूतरों को दबोचे हुए थी।
लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक थी शॉर्ट्स , चूतड़ के बीच की दरार साफ दिख रही थी। और आगे की भी ,
एक लहरियादार कटीली नचनिया की तरह चक्कर लगा कर रंजी बड़ी शोख अदा से बोली , " क्यों भैया कैसी लगती हूँ तेरे कपड़ों में। "
और यही नहीं जान बूझ के अपने गदराये चूतड़ मेरे तन्नाये लंड पे उसने जोर से रगड़ दिया।
गुड्डी ने उसके कान में इतने धीरे से कहा की मुझे साफ सुनाई पड़ गया।
" हे ऐसी हरकत करेगी , तो आज तेरा पिछवाड़ा नहीं बचने वाला , फट के रहेगा। "
जवाब रंजी ने जोर से दिया , वो भी मुझे देखते हुए अपनी गोल गोल आँखे नचाकर ,
" फटती हो तो फट जाय या , और तेरी क्यों फटती है , मेरी फटने की बात सोच कर। " और जोर से खिलखिला पड़ी।
गुड्डी ने भी वही कपडे पहन रखे थे और वो भी शोला हो रही थी।
लेकिन मुझे डाटने से गुड्डी को कौन रोक सकता था , ये हक़ तो वो ऊपर से लिखवा के ले आई थी।
" हे , अगर अपनी बहन की जवानी से आँखे सेंक चुके हो न तो तुम भी कपडे बदल लो। चलो मैं चल के देती हूँ। "
और मैं उसके पीछे पीछे कमरे के अंदर ,
मुझे पहनने के लिए सिरफ बनियाइन और शॉर्ट्स मिली। इस ग्राउंड पे की अगर मैं भी टी पहन लूंगा , तो उन दोनों से कोई फरक नहीं होगा।
मुझे लगा की अब सीन बनेगा , लेकिन चाहने से कुछ होता थोड़े ही है। गुड्डी की प्लानिंग ज्यादा इम्पोर्टेन्ट थी।
वो दोनों किचेन की ओर मुड़ी तो मैं पीछे पीछे, और मैं अपने को बोलने से नहीं रोक पाया ,
" मंजू ने रात के लिए पराठे बना के रख दिए हैं। और कुछ बनाने की ,… "
हमेशा की तरह गुड्डी ने मेरी बात बीच में काट दी।
"तुम्हारी भाभी ने घर की सब जिम्मेदारी किसे सौंपी है। '
" तुम्हे " मैंने दबी जुबान में बोला।
" फिर, और पराठे रात के लिए हैं अभी के लिए थोड़े , तुम्हारे अभी किचेन में आने की जरूरत नहीं है। जब बुलाऊंगी तब आना। "
और ये कह के वो रंजी को खींच के किचेन में ले गयी।
साढ़े चार बज रहे थे।
किचन गुड्डी और रंजी के कब्जे में और फिर क्या करता ,
मन मसोस कर वापस अपने कमरे में चला गया।
और करता भी क्या।
क्या क्या सोचा था। सिर्फ गुड्डी और रंजी होंगी , क्या क्या मस्ती होगी। वो टेरर की कहानी भी खत्म , उसका टेंशन भी खत्म। अब फुल मस्ती। फिर गुड्डी खुद ही जोश दिलाती रहती थी और जब आज रंजी खुद ग्रीन सिग्नल दे रही है , घर में कोई है नहीं तो फिर उसे खीच के किचेन में ले गयी।
रीत , करन
थोड़ी देर ऐसे बैठा रहा , कुछ करने को था नहीं। कंप्यूटर खोल कर मेल देखने बैठ गया।
और फिर जबरदस्त खुशखबरी मिली।
करन का मेल था।
रीत एकदम ठीक है।
उसे होश भी आ गया और उसने करन से देर तक बातें भी की।
डॉक्टर्स ने कहा की उसे स्ट्रेस था और जो थोड़ी बहुत चोटें थी , उनकी बहुत फास्ट रिकवरी भी हुयी।
लेकिन सिस्टर ने करन को वहां से हटा दिया है। बोला , की अगर वो चाहता है की वो लोग रीत को कल डिस्चार्ज कर दें , तो अब रात भर उसे वो डिस्टर्ब न करे।
कुछ देर मैं सोचता रहा , फिर सिक्योर फोन से करन को फोन लगाया।
मुझे लगा की वो कुछ सीक्रेसी बरत रहा है। उसने कल का प्रोग्राम नही बताया , न ही रीत के डिस्चार्ज होने का टाइम बताया।
और फोन पर बात होने पर उसने पूरी बात बतायी।
मेरी धड़कन रुक रुक गयी।
पडोसी देश में घुस के जो धड़ाका हुआ था , उस के पहले जो बात चीत रिकार्ड हुयी थी , उसके हिसाब से दुश्मन ये जानने की कोशिश कर रहा था की आखिर ये मांद में घुस के शिकार करने की हिम्मत किसकी हुयी। उन्हें कुछ ख़ास नहीं पता लग पाया लेकिन कुछ लोगों ने कहा की एक लड़की का हाथ नजर आता है। जिस पर वहां के आकाओ को यकीं नहीं हुआ। लेकिन बनारस और बड़ौदा में जिस तरह कालिया ने हमला किया था , ये लोग रिस्क नहीं ले सकते थे। इसलिए हाई सिक्योरिटी नेवल हॉस्पिटल में रीत को रखा गया था। अगले चार दिन तक भी रिकार्ड में रीत को वो लोग हॉस्पिटल में ही रखेंगे। लेकिन सुबह होने के पहले ही करन और रीत नेवी के सिक्योर पेट्रोल बोट से हजीरा के लिए रवाना हो जाएंगे , जहाँ मीनल है।
२४ घण्टे तक वो वहीँ रहेंगे।
तब तक आई बी के लोग बनारस की पोजीशन चेक कर उसे सेनिटाइज कर लेंगे।
बनारस से ग्रीन सिग्नल मिलने पर , अगले दिन सुबह यानी की परसों सुबह , वो लोग सूरत से एक चार्टर्ड प्लेन से बनारस पहुँच जाएंगे।
रीत परसों से बनारस में ही रहेगी , लेकिन करन को दिल्ली जाना होगा , डी ब्रीफिंग के लिए।
मैंने सोचा परसों , यानी जब मैं , गुड्डी और रंजी वहां पहुंचेगें , रीत पहुँच गयी होगी।
करन ने भरोसा दिलाया की अब रीत पर खतरा नहीं है। क्योंकि दुश्मन का कमांड कंट्रोल सिस्टम नष्ट हो गया है। बचे खुचे जगहें भी ड्रोन अटैक से खत्म हो गयी हैं और यहाँ के भी रिसोर्सेज भी सब दबोच लिए गए हैं।
करन को मैंने बोला टेक केयर
.
करन ने ये भी बोला की रात में अब वो फोन नहीं करेगा।
मैंने कुछ हैकर दोस्तों से बात की कुछ रिपोर्टें पढ़ी। लेकिन मन तो वो सारंग नयनी चुराके ले गयी थी , जिसे गुड्डी खीच कर किचेन में ले गयी थी।
किचेन से उन दोनों की खिलखिलाने की आवाजे आ रही थीं।
फिर कुछ तलने की। कड़ाही में कलछुल चलने की।
साढ़े पांच बज चुके थे।
भाभी का मेसेज भी आ गया था की वो लोग करीब पांच बजे रिसार्ट में पहुंच गए हैं।
तब तक गुड्डी का बुलावा आया , किचेन से।
गुड्डी बुलाये और मैं,…
मैं दौड़ा दौड़ा चला गया।
किचेन के पास पहुंचते ही मेरे नथुनों में गरम गरम पकोड़ौ की महक भर रही थी।
रंजी के हाथ में एक बड़ी सी प्लेट में ढेर सारे पकौड़े थे और उसने तुरंत मुझे पकडा दिए और मुस्करा कर अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचाकर बोली ,
" लो न भैय्या। "
" ले लूँ मैं , बोल " डबल मीनिंग डायलॉग की आदत बड़ी मुश्किल से जाती है , लेकिन रंजी कौन कम थी , बोली।
" लो न , मैं ने कब मना किया है। " फुसफुसा कर वो बोली।
मैं और रंजी बरामदे की ओर मुड़े तो गुड्डी ने पीछे से हंकार लगायी।
" यहाँ नहीं , ऊपर इनके भाभी के कमरे में। "
और हम तीनो ऊपर भाभी के बेडरूम में पहुँच गए।
बेड रुम तो बड़ा था ही उसके बीचों बीच , डबलबेड काफी बड़ा था।
और वो दोनों धम्म से उसपर कूद के बैठ गयीं।
मैं सोच रहा था की आमची मुम्बई का कोई बिल्डर इस बेड को देख लेता तो १ बी एच के तो प्लान कर ही लेता।
और जैसे ही मैंने उस बेड पर बैठने की कोशिश की दोनों ने एक साथ मना कर दिया। ।नहीईईईईईइ
क्यों ,चकित होकर मैंने पुछा।
" पलंग हम दोनों का है , और तुम्हारी जगह , " रंजी बात पूरी करती की उसके पहले गुड्डी ने मुझे पकड़ कर सामने रखी एक कुर्सी पर बैठा दिया।
" भैया ,आप वहीँ से अच्छे लगते हो " मुझे बेड पर से बैठ कर के,टुकुर टुकुर देखती खिलखिलाती , रंजी बोली।
" साल्ली , भैय्या की बहना , खाली दूर से नैन मटक्का करती रहेगी , या जो पकोड़े इत्ते प्यार से अपने भइया के लिए बना के ले आई है ,उन्हें देगी भी। "
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