Tuesday, March 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--156

 FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--156

 उधर गुड्डी अब पलंग पे ही आके बैठ गयी थी और रंजी को चिढ़ा रही थी , अपनी सहेली और छुटकी ननदिया को ,…


मैं तो पिया से नैना मिला आई ,

हो मैं तो पिया से आज चुदवा आई

पूरा लौंड़ा घोंट आई न , मैं तो






लेकिन बिचारी रंजी दर्द से कराह रही थी , चीख रही थी।


पर अबकी न मैंने धक्को की रफतार कम की न जोर कम किया।

और साथ साथ कभी उसके मुलायम गाल काट लेता तो कभी निपल पिंच कर लेता।

दस बारह मिनट तक उसे नान स्टाप मैं चोदता रहा वह चीखती कराहती रही।

लेकिन धीमे धीमे एक बार फिर मैंने महसूस किया उसके चूत की अंदर की हरकत और उसके साथ , जब पूरे तेजी के साथ मेरा सुपाडा उसकी बच्चेदानी से टकराता ,

उसकी कराहें सिसकियों में बदल जाती।

वो जोर से पलकें बंद कर लेती।

उसके हाथ और पैरों की जकड मेरी देह पर बहुत कड़ी हो जाती , वो मुझे अपनी ओर खींचने लगती।

और उसकी चूत मेरे लंड को जोर से भींचने लगती , जैसे कोई प्रेमिका कब के बिछड़े प्रेमी का हाथ पकड़ के रोक रही हो , अब न जा मेरे सैयां। जोर से गलबहियां ले रही हो भींच रही हो कस कस के अपनी बाँहों की मजबूत हथकड़ी में।


और वो चूत की पकड़ , उसकी मसल्स का भींचना अब सिर्फ मेरे मोटे मस्त सुपाड़े पर नहीं था बल्कि पूरे लंड पे , और एक लहर की तरह , वो मस्लस सुपाड़े को भींचना छोड़ देती तो फिर सुपाडे से ऊपर लंड को भींचने लगती , करीब दो इंच तक और वहां से खत्म होने पर फिर और ऊपर। जैसे ही लंड के बेस तक वो पहुंचती ,रंजी की चूत पहले से दूने तेज के साथ मेरे सुपाड़े को निचोड़ने लगती , जैसे रस निकाल के छोड़ेगी।

मेरी केलि सखी अब काम क्रीड़ा में लीड ले रही थी , और मैं फॉलो कर रहा था।

उसकी उत्तेजना , मस्ती , अब रंजी की देह से मेरी देह में आ रही थी और मैं सुधबुध खो रहा था।

उस सारंग नयनी की आँखों में मैंने आँखे डाली , और वो मुस्करा उठी। जहाँ पल भर पहले दर्द था अब काम का सागर हिलोरे ले रहां था।

मैं पल भर रुका और उसने नीचे से चूतड़ उचकाने शुरू कर दिए।

जैसे कह रही हो, हे चोदो न रुक काहें गए।

बरसों से मजबूत बांध में बाँध कर रखा गया , यौवन सरोवर का आज जैसे बाँध टूट गया था , और काम की बाढ़ में वो डूब उतरा रही थी और साथ में मैं भी ,


अब लड़ाई दोनों ओर से बराबर की थी।

मेरे हर धक्के का जवाब वो चूतड़ उठा के देती।

उसकी कराहें अब भी निकल जाती , लेकिन सिसकियों की आवाजें कराहों से भी तेज थी।


मेरा एक हाथ उसकी चूंची पे था और दूसरा उसके मस्त गांड पर।

और हचक हचक कर मैं चोद रहा था।

वो चुदवा रही थी।

दस बारह मिनट के बाद , एक बार फिर उसकी देह कांपने लगी , आँखे बंद होने लगी , साँसे लम्बी होने लगी।

उसने जोर से मुझे भींच लिया था।

वोएक बार फिर झड़ रही थी लेकिन ,… 

अबकी उसके साथ मैं भी कगार पे था ,


मेरे लिंग के आसपास की मसल्स भी सिकुड़ रही थी

और मैं जानता था की अब किसी पल मैं भी ,


दूर कही १२ का गजर बज रहा था ,

टन टन टन टन ,

और मैंने जोर का अबकी धक्का जो मारा ,

सुपाड़ा उसकी बच्चेदानी से टकराया , और ,


लेकिन उसके साथ ही मन्त्र ,…

मेरी आँखे बंद थी , मेरी उंगलिया उसके पेट के ऊपर निशान बना रही थी ,

ओम मम्म अच्युत , कौमार्य ,…फु ,… ॐ,…

साथ में पहली बूँद गिरी उसकी योनि में

सीधे गर्भाशय में।


और उसके बाद तो बाँध टूट गया।

मैं झड़ता रहा ,झड़ता रहा , झड़ता रहां

और साथ में मन्त्र


कुछ देर बार जब लगा की ,.... हो गया ,…

रंजी ने अपनी दीये की तरह बड़ी बड़ी आँखे खोली ,शरारत से उसकी आँखे मुस्कराई और ,

अब तक से सबसे ज्यादा जोर से ,

उसकी चूत ने लंड भींचना शुरू किया

और मैंने एक बार फिर झड़ना शुरू कर दिया।

दो तीन बार , और हर बूँद सीधे उसकी बच्चेदानी में।

बहुत देर तक मैं उसके बाद भी ऊपर उसके , धंसा रहा।

मेरे निगाह नीचे उसकी चम्पई जाँघों पर गयी जहाँ कुछ देर पहले जवाकुसम के थक्के थे

अब उसके ऊपर जूही और चमेली के सफेद फूल भी खिल गए थे.

थोड़ी देर में हम लोग बिस्तर पर एक दूसरे को पकड़े लेट गए ,

लेकिन अभी भी मैं पूरी तरह उसके अंदर घुसा था और उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ रखा था।

आधे घंटे तक ऐसे ही शिथिल आधे सोये आधे जागे हम दोनों लेटे रहे।

फिर अलग हुए।
रंजी एक बार मुझे देख के मुस्करा दी , फिर अचानक जोर से शर्मा गयी।

बिस्तर पर रखी चद्दर उसने ओढ़ ली। और उसके अंदर छुप गयी।


रंजी ने अपनी दीये की तरह बड़ी बड़ी आँखे खोली ,शरारत से उसकी आँखे मुस्कराई और ,

अब तक से सबसे ज्यादा जोर से ,

उसकी चूत ने लंड भींचना शुरू किया

और मैंने एक बार फिर झड़ना शुरू कर दिया।

दो तीन बार , और हर बूँद सीधे उसकी बच्चेदानी में।

बहुत देर तक मैं उसके बाद भी ऊपर उसके , धंसा रहा।

मेरे निगाह नीचे उसकी चम्पई जाँघों पर गयी जहाँ कुछ देर पहले जवाकुसम के थक्के थे

अब उसके ऊपर जूही और चमेली के सफेद फूल भी खिल गए थे.

थोड़ी देर में हम लोग बिस्तर पर एक दूसरे को पकड़े लेट गए ,

लेकिन अभी भी मैं पूरी तरह उसके अंदर घुसा था और उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ रखा था।

आधे घंटे तक ऐसे ही शिथिल आधे सोये आधे जागे हम दोनों लेटे रहे।

फिर अलग हुए।
रंजी एक बार मुझे देख के मुस्करा दी , फिर अचानक जोर से शर्मा गयी।

बिस्तर पर रखी चद्दर उसने ओढ़ ली। और उसके अंदर छुप गयी।


.....................


अब फिर एक नयी जंग शुरू हुयी गयी और मैं खाली एक दर्शक था।

गुड्डी और रंजी के बीच।

गुड्डी , रंजी की चद्दर खीच रही थी और रंजी उसे अपने चारो ओर लपेट रही थी और थोड़ी देर में उसने उसे तम्बू जैसे बना लिया और उसके अंदर छिप गयी।

' अभी खुले आम कबड्डी खेल रही थी अब इतना शर्मा रही हो , चल अच्छा बात तो कर " गुड्डी ने छेड़ा।

" बात करने से किसने मना किया , कर न बात , बोल तो रही हूँ " चददर के अंदर से रंजी खिलखिलाते हुए बोली।

" बोल न मजा आया " गुड्डी ने सीधे सवाल दाग दिया।

रंजी चुप रही।

" बोल न , वरना अभी खींचती हूँ चद्दर " गुड्डी चददर पकड़ के बोली।
" क्या बोलूं। " रंजी चददर के अंदर से बोली।

" अरे वही मजा आया अंदर लेने में " गुड्डी कहाँ छोड़ने वाली थी उसे।
" धत्त " शर्माकर चददर के अंदर से रंजी बोली , फिर जोड़ा ," अरे उनसे पूछो न जो तेरे पास बैठे हैं। "

" अच्छा चल बताने में शरम आ रही , तो एक बार दिखा तो दे , इस्तेमाल के बाद कैसी लग रही है तेरी गुलाबी परी " गुड्डी पीछे पड़ गयी थी।

और फिर दोनों में जबरदस्त धींगामस्ती चालू हो गयी। गुड्डी चददर खींचने के पीछे पड़ गयी थी और रंजी चददर बचाने के लिए।

लेकिन हर बार जीत बचाने वाले की हो इसकी कोई गारंटी नहीं

और बनारस वालियों से वैसे भी कौन जीत पाया है।

रंजी के चददर के खेमे में गुड्डी ने सेंध लगा दी , फिर तो ज़रा सा छेद , गुड्डी के लिए काफी था।

और रंजी को गुदगुदी बहुत लगती थी ये बात भी गुड्डी को मालुम थी।


गुड्डी ने घुटने तक चादर उठा दी।

रंजी ने बहुत जोर से बाकी चादर लपेट ली।

लेकिन गुदगुदी के आगे क्या बिसात , और गुड्डी ने बोला भी ,

" हे बस ज़रा सी दिखा दे न , बस एक बार। "

पता नहीं रंजी मानी या गुड्डी की गुदगुदी का असर ,

उसकी जांघे खुल गयीं और उनके बीच का खजाना नजर आने लगा।

बस गुड्डी ने जोर से हाथ लगा के खोल दिया और एक झटके में रंजी की गुलाबी सुरंग का दीदार हो गया।



जहाँ पहले छोटी बहुत पतली सी दरार दिखती थी , वहां अब एक हल्का सा सुराख नजर आ रहां था , बहुत छोटा सा छेद।

और जांघे खुलते ही गाढे थक्केदार वीर्य का एक कतरा उसमें से गिर कर जांघ पर आ गया।

थकी चिकनी जाँघों पर अभी भी सूखे खून और वीर्य के धब्बे थे।


जब तक रंजी जांघे बंद करती , गुड्डी ने वहां एक किस ले लिया।
जैसे गरम तवे पर पानी की बूंदे पड़े बस उसी तरह रंजी छनछना उठी।

" क्या करती हो " झटक के वो बोली और कस के अपनी जांघे जोर से भींच ली।

लेकिन गुड्डी भी ,

उसने झटके चांटा तेजी से रंजी की जांघ पे मारा और जोर से उसकी चुनमुनिया जोर से मसलती हुयी बोली ,

" साल्ली , कमीनी , मुझ से छिनारपना, अब भरतपुर लूट गया तो ताला लगाने से क्या होगा। उस समय जांघे समेटती , जब गपागप घोंट रही थी। इत्ता मोटा मूसल चूतड़ उठा उठा के सटासट लील रही थी और अब मुझ से , … अरे रानी जी परसों बनारस पहुँच रही हो ंदेखना इस पोखरिया में १० -१२ तो रोज डुबकी लगाएंगे। अब दूकान एकबार खुल गयी है तो बंद नहीं होने वाली "
लेकिन गुड्डी भी ,

उसने झटके चांटा तेजी से रंजी की जांघ पे मारा और जोर से उसकी चुनमुनिया जोर से मसलती हुयी बोली ,

" साल्ली , कमीनी , मुझ से छिनारपना, अब भरतपुर लूट गया तो ताला लगाने से क्या होगा। उस समय जांघे समेटती , जब गपागप घोंट रही थी। इत्ता मोटा मूसल चूतड़ उठा उठा के सटासट लील रही थी और अब मुझ से , … अरे रानी जी परसों बनारस पहुँच रही हो ंदेखना इस पोखरिया में १० -१२ तो रोज डुबकी लगाएंगे। अब दूकान एकबार खुल गयी है तो बंद नहीं होने वाली "

और ये कहते हुए , गचाक से गुड्डी ने अपनी मंझली उंगली रंजी की ताज़ी फटी चूत में पेल दी।

उईईईईईई रंजी की चीख और सिसकी एक साथ निकल गयी।

लेकिन गुड्डी की पूरी कोशिश के बाद एक पोर से ज्यादा ऊँगली नहीं घुसी।



"छोड़ न मुझे जाना है " रंजी कसमसा के उठने की कोशिश करते हुए बोली।

" इत्ती रात में कहाँ जाओगी , इससे मन नहीं भरा क्या " गुड्डी और चिढ़ाते हुए बोली लेकिन ऊँगली चुन्मुनिया से नहीं निकाली।

" अरे यार , कमीनी साल्ली छोड़ न , बाथरूम आ रहा है। " रंजी चददर चारो ओर लपेट के उठने की कोशिश करते हुए कहा।

अब गुड्डी ने तोप का रुख मेरी ओर मोड़ दिया , " हे तुमने कभी बाथरूम को चलते देखा है "

मैंने बड़ी जोर से ना में सर हिलाया। एक बार दाए से बाएं फिर बाएं से दायें।

बिचारी रंजी।

जोर से उसने जैसे छोटी लड़कियां क्लास में ऊँगली दिखाती है , नंबर १ की परमिशन माँगने के लिए , उस तरह की ऊँगली दिखाई।

उस के चेहरे से लग रहा था जोर की आ रही है।

" अरे ऊँगली करवाने का मन कर रहा है , घबड़ाओ मत ऊँगली क्या चल रही हो न बनारस। ऊँगली क्या मुट्ठी होगी पूरी , वो भी दोनों ओर , चूत में चंदा भाभी और गांड में दूबे भाभी। ज़रा सा ना नुकुर की न तो बस कुहनी तक पेल देंगी हचाक से ,पूरा मजा मिलेगा बनारस जा जानू। " उसकी चूत में ऊँगली गोल गोल घुमाते गुड्डी बोली।

ऊँगली घुसते ही छलछला कर चार पांच बूँद मलाई बाहर आ गयी।

जोर से धक्का मार के उसे हटाते रंजी बोली

" छोड़ साली , जोर की सुसु आरही है। "

फिर भी गुड्डी उसे छेड़ते हुए बोली

' अरी जानू , गजब की जवानी आ गयी। कसम से जोबन पे क्या निखार है और अब तो भरतपुर भी लुट गया है। ये कहो न मूतवास लगी है "

रंजी मुस्करा के एक बार फिर से अपने को चददर से अच्छी तरह ढक के बाथरूम जाते मुड़ के बोली ,

" हाँ मेरी नानी मूतना है , बड़ी जोर से मूतवास लगी है अब तो खुश , छीनार। "

"अरे इसको भी लेजाओं , दोनों साथ मूतना बड़ा मजा आएगा। "

रंजी फिर शर्मा गयी और जोर से ब्लश करती बोली ,धत्त।

लेकिन आखिरी बाजी गुड्डी के ही हाथ रही उसने तेजी से पलंग से उठ के चददर खींच लिया और बिचारी रंजी निघारे ही बाथरूम गयी।


लेकिन गुड्डी की आवाज बाथरूम तक उसका पीछा कर रही थी , उसके दरवाजा बंद करने तक।

" अरे इतना लजा रही हो , कल इसके सामने ही मूतवाउंगी तुम्हे , सारी लाज गांड में चली जायेगी , "

" सिर्फ मूतवाओगी ,… " मैं भी गुड्डी के रंग में आ रहा था।

" न सब कुछ ,… " गुड्डी जोर से खिलखिला पड़ी और मेरे आँखों के सामने होली के पहले की वो सीन याद आ गयी जब रंजी दो दो भौजाइयों के बीच सैंडविच बनी थी ( मेरी भाभी और मंजू भौजी ) और बनारस से चंदा भाभी का फोन आ रहा था। भाभी स्पीकर फोन आन कर के रखी थीं , और चंदा भाभी की आवाज आ रही थी , रंजी के बारे में ,

" आवै दा न बनारस ऊह रन्डी क , अरे दोनों टाइम करिया झांटन छन्ने से छान के पिलाऊंगी सुनहरा शरबत , नमकीन दोनों टाइम , और पी के एक दम जिल्ला टॉप माल हो जायेगी ,एकदम मस्त नमकीन। "

गुड्डी एकदम मुझसे सट के बैठ गयी और कान में बोली ,

" क्यों कैसा लगा माल ?"

"एकदम मस्त" मुस्करा के मैं बोला।

मेरी नाक पकड़ के हिलाते बोली , " जानू , देख तुझे बना दिया न बहनचोद। अरे अभी तो शुरुआत है , देखना अभी तो ये शुरुआत है , तोहार एक से एक , एहु से कच्ची उमरिया के जेकर झांट अभी बस निकलना शुरू हुयी है न उनके ऊपर भी , आखिर तुम्हारे साले सब तो चोद चोद के ,… अभी बहन चोद बनाया है न उसके बाद मादर … "
मेरी नाक पकड़ के हिलाते बोली , " जानू , देख तुझे बना दिया न बहनचोद। अरे अभी तो शुरुआत है , देखना अभी तो ये शुरुआत है , तोहार एक से एक , एहु से कच्ची उमरिया के जेकर झांट अभी बस निकलना शुरू हुयी है न उनके ऊपर भी , आखिर तुम्हारे साले सब तो चोद चोद के ,… अभी बहन चोद बनाया है न उसके बाद मादर … "

गुड्डी की बात ख़तम होने के पहले ही बाथरूम का दरवाजा खुला और , रंजी निकली।

गुड्डी की बात वहीँ की वहीँ रह गयी ,

क्या मस्त माल लग रही थी , एकदम झक्कास।

पिंक बेबी डाल पहन लिया था ,

टॉप तो एकदम उसके उभार से चिपका, ट्रांसपेरेंट ,मटर के दाने से खड़े निपल साफ दिख रहे थे टन्नाटन्न।

कटाव , उभार सब दिख रहा था।

और स्कर्ट कमर से बस एक बित्ते नीचे तक , वो भी पूरी खुली।


यहाँ वैसे गुड्डी ने भी अपने ऊपर एक छोटा सा बस रैप डाल लिया था ,अपने ऊपर और मैंने बॉक्सर शार्ट पहन लिया था।



मस्त कटीली नचनिया लग रही हो गुड्डी ने कमेंट मारा पर उसका ध्यान किये बिना रंजी मुझसे चिपक कर बैठ गयी थी बल्कि आलमोस्ट मेरे उपर।


गुड्डी उधर रंजी के टैब पर कुछ बिजी थी , अचानक मुड़ कर हम दोनों के पास आई और बोली ,

" हे देख ,तेरा फेसबुक पेज "

अभी हुए ताजातरीन हम दोनों के बेड पोलो की पांच गरमागरम फोटुएं , ( ट्रिपल एक्स नहीं खाली डबल एक्स , और किसी में मेरा चेहरा नहीं था लेकिन रंजी का चेहरा दमक रहा था).

रंजी बिचारी ने पल भर ये सोचा की उसका फेसबुक पेज गुड्डी ने कैसे खोल दिया ,लेकिन उसे क्या मालूम था की मैंने ही हैकर विद्या का प्रयोग कर न रंजी का फेसबुक खोल दिया था बल्कि उसका पासवर्ड , सीक्रेट क्वेशचन , फोन नंबर सब गुड्डी को बता दिया था और काफी कुछ फेसबुक का पेज हैक करने लायक हैकर विद्या भी सीखा दी थी।

लेकिन अगले पल उसका चेहरा चमक गया जब उसने फोटो के नीचे देखा और मुझे भी दिखा दिया।

" हे देख न , इत्ती जल्दी ८५ लाइक्स और नीचे वाले में तो १४८ लाइक्स आ गए हैं। ओह्ह और ये देख दिया , दिया के भाई का का कित्ता मस्त कमेंट भी आ गया है। " लगी रहो , लगवाती रहो। " रंजी चहक के बोली।

'और असली मस्त फोटो तो इस ग्रुप में है , " गुड्डी ने दो क्लोज्ड ग्रुप खोल दिए एक, तो चांडाल चौक्क्डी थी , जिसकी एडमिन दिया ही थी और उसमें उसकी क्लोज सहेलिया थी , जिसमें रंजी भी थी और अब गुड्डी और जिया भी आ गयी थी।


लेकिन ज्यादा मजेदार दूसरा ग्रूप था ,

" मैं तेरी बहना , तू मेरा भाई
सारी रात करो, चुदाई "

और असली फोटुएं उसमें थी लेकिन गनीमत थी ज्यादातर में न मेरा चेहरा था न रंजी का।

एक में जंगबहादुर जड़ तक धंसे थे। ये फोटो कमर के नीचे से थी।

दूसरे में रंजी की चम्पई जांघे पूरी तरह फैली थी और उस की चूत में मेरा सुपाड़ा अंदर घुसा हुआ था।

एक दो में रंजी का चेहरा भी था वो दिव्या वाली चांडाल चौक्क्डी में , लेकिन हल्का सा ब्लर्ड , आलमोस्ट फूल फोटुए थी ,

मेरा हाथ उसकी चूंची दबा रहा था , जंगबहादुर दो तिहाई धंसे थे।


गुड्डी को शायद अहसास हो गया की कुछ ज्यादा ही हो गया तो उसने तुरंत बात पलटी।



" अरे दिया की फोटो दो देख ये दिया के भाई के ग्रुप में थी। " गुड्डी की उंगलिया तेजी से चली और एक और क्लोज्ड ग्रुप खुल गया।

और पहली फोटो ही देखते रंजी के मुंह से निकल पड़ा ,

वाउ ,और उसने मेरी और बढ़ा दिया ,

भैया देखो।
 






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