FUN-MAZA-MASTI
गुमराह पिता की हमराह बेटी--8
अलमारी में कुछ एक्स्ट्रा लिनन (चादर तौलिए इत्यादि) था और एक ओर उसके शॉपिंग बैग्स रखे हुए थे.
जयसिंह से लड़ाई हो जाने के बाद मनिका ने अपना खरीदा हुआ सामान यह कर के नहीं खोला था कि वो सब उन्होंने उसे दिलाया था. फिर जब उनके बीच सुलह हो गई थी तो ख़ुशी के मारे उसके दीमाग से यह बात निकल गई थी जबकि जयसिंह ने बीच में एक बार उसकी शॉपिंग को ले कर उसे कुछ कहा भी था. जयसिंह ने वह बैग्स लाकर उनके लगेज के पास ही रखे थे लेकिन शायद हाउस-कीपिंग (कमरे की साफ़ सफाई करने वाले) में से किसी ने उठाकर उन्हें अलमारी में रख दिया था. मनिका ने सारे बैग्स निकाले और उत्साह से बेड पर बैठ एक-एक कर उनमें से अपनी लाई चीज़ें निकालने लगी. जयसिंह की पीठ उसकी तरफ थी और वे कुर्सी पर बैठे अभी भी फोन पर लगे थे.
अपने नए कपड़े देख-देख मनिका खुश होती बैठी रही, 'ओह वाओ...मेरे वार्डरॉब में कितनी सारी नई ड्रेसेस आ गईं हैं...सबको दिखाने में कितना मजा आएगा...हहा...' अपनी सहेलियों की प्रतिक्रियाएँ सोच वह आनंदित हो रही थी. 'पर...मम्मी देखेंगी जब..? फिर से वही लड़ाई होगी...खर्चा कम...ढंग के कपड़े...और तेरे पापा...ले-देके यही चार बातें हैं उनके पास...' संचिता से लड़ाई अभी भी उसके जेहन में ताज़ी थी और उसके विचार घूम-फिर के फिर उन्हीं बातों पर लौट आए थे. 'बट पापा ने कहा कि वे सँभाल लेंगे...हाह... पापा के सामने फ़ुस्स हो जातीं है मम्मी की तोप भी...हीहाहा...अरे कल पापा ने कहा था कि उन्हें तो दिखाया ही नहीं कि क्या कुछ शॉप कर के लाई हूँ..?' मनिका ने अपने सामने फैली पोशाकों पर एक नज़र घुमाते हुए सोचा और मुस्काते हुए एक ड्रेस उठा ली थी.
कुर्सी पर बैठे हुए जयसिंह को बाथरूम का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ तो आई थी पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया था और अपने असिस्टेंट को ऑफिस में आ रही दिक्कतों को हैंडल करने के इंस्ट्रक्शन देते रहे,
'पापा..' बाथरूम का दरवाज़ा खुला और आवाज़ आई.
जयसिंह ने कुर्सी पर बैठे हुए ही मुड़ कर पीछे देखा और फोन में बोले, 'हाँ माथुर, जो मैंने कहा है वो कैरी आउट करो और कोई दिक्कत हो तो कल मुझे कॉल कर लेना, अभी थोड़ा बिजी हूँ...' माथुर ने उधर से कुछ कहा था लेकिन जयसिंह फोन काट चुके थे.
'औकात में रहना है.' उनके दीमाग ने लंड को संदेश भेज चेताया था.
मनिका ने बाथरूम में जा कर अपने नए लिए कपड़ों को पहना था, वह एक पल के लिए नर्वस हुई तो थी के 'पता नहीं पापा क्या सोचेंगे?' पर फिर उसे अपनी माँ की समझाइशें याद आ गईं और अपनी माँ को चिढ़ाने (जबकि वे वहाँ नहीं थीं) के चक्कर में उसने कपड़े बदल लिए थे. बाथरूम के शीशे में उसने अपने-आप को निहारा था और अपनी चटख लाल स्लीवलेस टी-शर्ट और काली शार्ट स्कर्ट को देख उसके संकोच ने फिर एक बार उसे आगाह किया था, लेकिन उसे जयसिंह की बात याद आ गई थी 'कपड़े ही तो हैं...' और वह मुस्कुराती हुई बाहर निकल आई थी. उसने यह नहीं सोचा था कि कपड़ों के अंदर जिस्म भी तो होते हैं.
जयसिंह कुछ समझ पाते उससे पहले ही मनिका बाथरूम के दरवाज़े से बाहर निकल आई थी,
'तो पापा? कैसी लग रही हूँ मैं? ये ड्रेस ली थी मैंने...मतलब और भी हैं, पहन के दिखाती हूँ अभी...पहले ये बताओ कैसी है?' मनिका ने चहक कर पूछा.
'अच्छी है...' जयसिंह ऊपर से नीचे तक उसे देखते हुए बोले, मनिका को हल्की सी लाज भी आई पर वह खड़ी रही.
उसकी गोरी-गोरी बाँहें और जांघें देख जयसिंह को पहली रात याद आ गई थी 'ओह्ह मैं तो भूल ही गया था कि कितनी चिकनी है ये कमीनी...' मनिका का स्कर्ट उसके घुटनों से थोड़ा ऊपर तक का था.
'पापा मेरी पिक्स तो क्लिक कर दो इन ड्रेसेस में प्लीज...फ्रेंड्स को भेजूंगी और जलाऊँगी... हीही...' मनिका ने अपना फोन उनकी तरफ बढ़ाया.
लेकिन जयसिंह ने उसके बोलते ही अपने फोन, जो अभी उनके हाथ में ही था, का कैमरा ऑन कर लिया था. मनिका ने अपना फोन पास रखे टेबल पर रख दिया और पोज़ बनाते हुए बोली,
'अच्छा फिर मुझे सेंड कर देना पिक्स बाद में...'
'हम्म..' जयसिंह उसका फोटो खींचते हुए बोले. चिड़िया पिंजरे में आ बैठी थी.
अब मनिका बारी-बारी से कपड़े बदल-बदल उनके सामने आने लगी और जयसिंह उसके फोटो लेने लगे, मनिका ने स्कर्ट के बाद उनको अपनी नई जीन्स पहन कर दिखाईं थी और उसके बाद दो जोड़ी डेनिम हॉट-पैंट्स(डेनिम या कपड़े से बनी शॉर्ट्स) पहन कर आई थी, उसकी ज्यादातर नई टी-शर्ट्स स्लीव्लेस हीं थी. जयसिंह का लंड उनके हर एनकाउंटर पर उछाल मार रहा था लेकिन जयसिंह भी मनिका के बाथरूम में चेंज करने को घुसते ही लंड को शांत करने के प्रयास चालु कर देते थे ताकि बात हाथ से निकलने के पहले ही संभाली जा सके.
उसके बाद मनिका एक काली पार्टी-ड्रेस पहन कर बाहर निकली थी, ड्रेस का कपड़ा सिल्की सा था, जयसिंह देखते ही तड़प गए थे. ड्रेस में क्लीवेज थोड़ा सा गहरा था (इतना ज्यादा भी नहीं कि कुछ दिखे) जिससे मनिका की क्लीवेज-लाइन का थोड़ा सा आभास मिल रहा था और ड्रेस की लंबाई भी इस बार पहले वाले स्कर्ट और हॉट-पैंट्स के मुकाबले कम थी. पर सबसे ज्यादा उत्तेजक बात यह थी कि ड्रेस के चिकने कपड़े ने मनिका के बदन से चिपक कर उसके उभारों को तो निखार ही दिया था लेकिन साथ ही उसकी ब्रा-पैंटी की आउटलाइनस् भी साफ़ नज़र आ रहीं थी.
मनिका ने जब पहली कुछ ड्रेसेस पहन कर उन्हें दिखाईं थी तो पहले वह अपने-आप को शीशे में अच्छे से देख-भाल कर फिर बाहर आती थी लेकिन बार-बार कपड़े बदल कर आने के कारण हर बार उसका ध्यान जल्दी से बाहर आने की तरफ बढ़ता गया था और इस बार वह ड्रेस पहनते ही एक नज़र अपने आप को देख बाहर आ गई थी जबकि उसकी ड्रेस का कपड़ा उसके बाहर आते-आते ही उसके बदन से चिपकना शुरू हुआ था (क्योंकि चिकने मैटेरियल से बने कपड़े में बदन से होने वाले घर्षण से ऐसा होता है). फोटो खींचते वक्त जयसिंह का हाथ एकबारगी काँप गया था.
मनिका के पास दिखाने को अब और कोई ड्रेस नहीं बची थी सो वह खड़ी रही व इस बार जयसिंह ने उसके ज्यादा ही फोटो ले लिए थे.
'बस पापा इतनी ही थीं..' मनिका ने उन्हें बताया.
'बस? इतने से कपड़ों का बिल था वो..?' जयसिंह ने हैरानी जताई.
'हाहाहा...मैंने कहा था ना पापा...क्या हुआ शॉक लग गया आपको?' मनिका ने हँसते हुए उनके थोड़ा करीब आते हुए कहा.
'नहीं-नहीं...पैसे की फ़िक्र थोड़े ही कर रहा हूँ. मुझे लगा और भी ड्रेस होंगी...' जयसिंह ने मुस्का कर कहा और उसे अपनी गोद में आने का इशारा किया. मनिका इतनी कातिल लग रही थी के लाख न चाहने के बाद भी वे अपने लंड की डिमांड को अनसुना नहीं कर सके थे. पर इस बार मनिका ने ही उन्हें बचा लिया,
'और तो पापा दो पर्स लिए थे मैंने और एक वॉच...एंड और क्या था..? हाँ बेल्ट और...सैंडिलस्...' मनिका सोच-सोच कर गिनाने लगी, पर वह उनकी गोद में नहीं बैठी थी क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि उसने अंदर पैंटी पहन रखी थी जबकि इन ड्रेसेस के अंदर नीचे अमूमन बॉय-शॉर्ट्स (शॉर्टसनुमा पैंटी) पहनी जातीं हैं. अगर वह जयसिंह की जांघ पर बैठ जाती तो नीचे से खुली ड्रेस ऊपर उठ जाती जिसमें उसके अंडरवियर के एक्सपोज़ हो जाने का खतरा था. मनिका को यह आभास अजीब सा लगा था पर इस बार उसने अपने चेहरे पर शरम की अभिव्यक्ति नहीं होने दी थी, आखिर बेटी तो वह भी जयसिंह की ही थी.
'अच्छा-अच्छा ठीक है.' जयसिंह ने अपनी शॉपिंग लिस्ट सुनाती मनिका को थमने के लिए कहा और एक बार फिर अपने पास बुलाया, पर मनिका ने पीछे हटते हुए कहा,
'पापा मैं चेंज कर के आती हूँ...फिर मुझे पिक्स दिखाना.'
जयसिंह ने भी फिर से उसे नहीं बुलाया और थोड़ी राहत महसूस की थी. फिर उन्हें याद आया,
'मनिका..!?'
'जी पापा?' मनिका बाथरूम के दरवाजे पर पहुँच रुक गई थी.
'वो मेरी दिलाई चीज़ तो तुमने दिखाई ही नहीं पहन कर..' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा.
'कौनसी चीज़...? ओह्ह...हाँ पापा...भूल गई मैं...रुको.' मनिका एक पल बाद समझ गई थी और बेड की तरफ जा कर झुक कर वहाँ रखे कपड़ों में लेग्गिंग्स की जोड़ी खोजने लगी. जयसिंह ने देखा कि उसने अपना एक घुटना मोड़ कर बेड पर रखा हुआ था और उसका दूसरा पैर नीचे फर्श पर था, वह आगे झुकी हुई थी सो उसकी कमर और नितम्ब ऊपर हो गए थे और साथ ही वह ड्रेस भी, जयसिंह का बदन एक बार फिर से गरमा गया था. उन्होंने अपने बचे-खुचे विवेक का इस्तेमाल कर कैमरा वीडियो मोड पर कर लिया था और उस मादक से पोज़ में झुकी अपनी बेटी की गांड का वीडियो बनाने लगे.
कुछ दस सेकंड यह वाकया चला जिसके बाद मनिका ने सीधी होकर मुस्कुराते हुए जयसिंह को अपने हाथ में ली हुई लेग्गिंग्स दिखाई थी और पहन कर आने का बोल बाथरूम में चली गई थी. जयसिंह ने फटाफट वीडियो बंद कर दिया था और उसके जाते ही जल्दी से अपने फोन की गैलरी में जा कर देखा क़ि वो सेव तो हुआ था के नहीं? वीडियो सेव हो गया था लेकिन गैलरी में उसकी थंबनेल (फोटो या वीडियो की झलक देता आइकॉन) देख मनिका को जयसिंह की कारस्तानी का साफ़ पता चल जाना था. जयसिंह ने जल्दी से वीडियो और साथ ही अभी ली हुई तस्वीरों का बैकअप ले उस वीडियो को वहाँ से डिलीट कर दिया था.
मनिका को लेग्गिंग पहन कर बाहर आने में थोड़ा वक्त लग गया था. खड़े-खड़े इतनी पतली पजामी पैरों में पहनने में उसे थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. तब तक जयसिंह ने भी अपनी सेफ साइड रख ली थी. मनिका ने ऊपर से एक टी-शर्ट डाली और इस बार बिना आईना देखे ही बाहर आ गई. जयसिंह, जो अभी उसकी गांड को अपने मन से निकालने की कोशिश करने में लगे ही थे, पर कहर बरप पड़ा था.
एक तो जयसिंह ने पहले ही लेग्गिंग दो साइज़ छोटी ले कर दी थी उस पर उसका कपड़ा बिल्कुल झीना था तिस पर उसका रंग भी लाइट-स्किन कलर जैसा था; और मनिका यह सब बिन देखे ही बाहर निकल आई थी.
जयसिंह के बदन में करंट दौड़ने लगा था, लेग्गिंग्स के रंग की वजह से उसके कुछ भी न पहने हुए होने का आभास होता था व मनिका के अधो-भाग का एक-एक उभार नज़र आ रहा था. जयसिंह को अभी तक तो अपनी बेटी के कपड़ों में से उसकी जाँघों और नितम्बों का ही दीदार अच्छे से होता आया था लेकिन यह लेग्गिंग्स इतनी ज्यादा टाइट कसी हुई थी कि उसकी टांगों के बीच का फासला 'ᴨ' भी नज़र आने लगा था. कपड़ा पूरी तरह से उसकी जाँघों और योनि पर चिपक गया था और मनिका की योनि का उभार साफ़ दिख रहा था.
'कैसी लग रहीं है पापा?' मनिका चहकते हुए बाहर आई थी.
'उह्ह ह..' जयसिंह ने कुछ शब्द निकालने का प्रयास किया था पर सिर्फ आह ही निकल सकी.
मनिका उनके पास आ पहुंची थी. जयसिंह को इस बार पहले से ही इल्म था की कहाँ-कहाँ ध्यान से देखने पर मनिका के जिस्मानी जादू का लुत्फ़ उठाया जा सकता है. उनकी नज़र सीधी उसके प्राइवेट पार्ट्स (गुप्तांग) पर जा टिकीं थी और उसके करीब आते-आते उन्हें उसकी पहनी हुई पैंटी के रंग और साइज़ का पता चल चुका था. उसने आज अपनी स्काई-ब्लू रंग वाली अंडरवियर पहन रखी थी. मनिका की उभरी हुई योनि देख जयसिंह वैसे ही आपा खो रहे थे जब मनिका उनके ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी,
'बताओ न पापा?'
'बहुत...बहुत अच्छी ल..लग रही है..' जयसिंह ने तरस कर कहा. अपने लंड को काबू करने की उनकी सारी कोशिशें बेकार जा चुकीं थी.
मनिका उनकी गोद में आ बैठी, जयसिंह को अपनी बेटी की कच्ची सी योनि अपनी जांघ पर टिकती हुई महसूस हुई थी, उनकी रूह कांप गई थी.
'ओह मनिका यू आर सो ब्यूटीफुल...' उनके मुहँ से निकला.
'इश्श पापा. यू आर मेकिंग मी शाय (शरम)...' मनिका ने मुस्काते हुए जवाब दिया 'इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मैं..मुझे बहलाओ मत..'
'तुम्हें क्या पता?' जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा और उस दिन ट्रेन वाली तरह अपना दूसरा हाथ उसकी जांघ पर रख लिया. मनिका की योनि का आभास उन्हें पागल किए जा रहा था. 'आज तो रेप होगा मुझसे लग रहा है..!' जयसिंह ने मन ही मन अपनी लाचारी व्यक्त की थी.
असल में मनिका को भी जयसिंह की तारीफ़ बहुत भायी थी. एक बात और थी जिसने आज मनिका को अपनी ये फैशन परेड करने के लिए उकसाया था लेकिन जिसका भान अभी उसके चेतन मन को नहीं हुआ था; पिछली रोज जब जयसिंह टी.वी. में दिखाई जा रही लडकियाँ ताड़ रहे थे तो मनिका ने नोटिस कर लिया था व उन्हें छेड़ा था. उस बात ने भी उसके आज के फैसले में कहीं ना कहीं एक भूमिका निभाई थी.
जयसिंह उसकी जांघ सहलाना शुरू कर चुके थे.
'पापा फ़ोन दो ना. पिक्स देखते हैं..' मनिका बोली.
जयसिंह ने उसकी जांघ से हाथ हटा अपने बाजू में रखा फ़ोन उठा कर उसे पकड़ा दिया और फिर से उसकी जाँघों पर हाथ ले गए. मनिका फ़ोन की फोटो-गैलरी खोल जयसिंह की ली हुई तस्वीरें देखने लगी. शुरुआत की कुछ फोटो देख वह बोली,
'पापा! कितनी अच्छी पिक्स क्लिक की है आपने...एंड ये ड्रेसेस कितनी अमेजिंग लग रही है ना?' उसने जयसिंह और अपनी, दोनों की ही तारीफ़ करते हुए पूछा था. जयसिंह ने तो हाँ कहना ही था, उनका खड़ा हुआ लिंग भी उनके अंडरवियर में कसमसा कर हाँ कह रहा था.
फिर आगे मनिका की पार्टी-ड्रेस वाले फोटो आने शुरू हो गए, इस बार वह झेंप गई. जयसिंह ने फोटो भी ज्यादा ले रखे थे सो उन्हें आगे कर-कर देखते हुए उसकी झेंप शरम में तब्दील होती जा रही थी. उसने एक फोटो पर रुकते हुए डिलीट-बटन दबाया था, जयसिंह ने तपाक से पूछा कि वह क्या कर रही है? तो उसने थोड़ा सकुचा कर कहा कि वे फोटोज़ ज्यादा अच्छे नहीं आए थे, उसका मतलब था कि उनमें उसके पहने अंडर-गारमेंट्स का पता चल रहा था.
मनिका ने एक दो फोटो ही डिलीट किए थे कि जयसिंह के फ़ोन पर एक बार फिर से रिंग आने लगी, ऑफिस से माथुर का फ़ोन था,
'ओहो आज तो कुछ ज्यादा ही कॉल्स आ रहीं है आपको..!' मनिका ने झुंझला कर कहा.
'बजने दो..अभी तो बात की थी..' जयसिंह ने कहा, उनका चेहरा अब मनिका के बालों के पास था और वे उनकी भीनी-भीनी खुशबू में खोए थे. मनिका ने फ़ोन के अपने आप डिसकनेक्ट हो जाने तक इंतज़ार किया और फिर से उन पिक्स को डिलीट करने लगी जो उसे ज्यादा ही रिवीलिंग लगीं थी. बैक-अप ले चुके जयसिंह बेफिक्र थे. फ़ोन एक बार फिर से बजने लगा.
'हाँ माथुर बोलो?' जयसिंह ने तल्खी से पूछा. उन्होंने मनिका को एक बार फिर से कॉल न उठाने को कहा था लेकिन फ़ोन डिसकनेक्ट होते ही वापस रिंग आने लग गई थी.
उनके सेक्रेटरी ने उन्हें बताया की उनका एक बहुत बड़ा क्लाइंट जो पिछले कुछ दिनों से उनसे बात करने के लिए रोज कॉल कर रहा था, वह भी अभी दिल्ली में था. उसने जब आज फिर से कॉल किया तो उनके सेक्रेटरी ने उसको जयसिंह के दिल्ली गए होने की सूचना दी थी, जिस पर उसने उससे मीटिंग फिक्स करने के लिए कहा था और इसी बाबत उनका सेक्रेटरी उन्हें कॉल पर कॉल कर रहा था.
जयसिंह सोच में पड़ गए. यह क्लाइंट बहुत बड़ी आसामी थी और उनकी कंपनी की बैलेंस-शीट में मौजूद बड़े नामों में से एक था, मीटिंग करनी जरूरी थी; उन्होंने सेक्रेटरी से मीटिंग फिक्स कर उन्हें कॉल करने को कहा. अचानक घटनाक्रम में हुए परिवर्तन ने एक बार फिर उनके हवस के मीटर की सुई को चरम पर पहुँच कर टूटने से बचा लिया था, 'कुछ करना पड़ेगा...जल्द.' जयसिंह ने सोचा और मनिका से बोले,
'जाना पड़ेगा मुझे...एक क्लाइंट यहाँ आया हुआ है.' जयसिंह ने मनिका से कहा.
'बट पापा! वी आर ऑन अ हॉलिडे ना?' मनिका ने बेमन से कहा.
'येस डार्लिंग आई क्नॉ बट ये काफी मालदार क्लाइंट है...इसी जैसों से तो तुम्हारी शॉपिंग पूरी होती है.' जयसिंह ने उसके गाल सहला उसे बहलाया 'चलो गेट उप नाओ, मुझे रेडी भी होना है.' जयसिंह ने आगे कहा था और अभी भी काम-वासना के वशीभूत अपने हाथ से, उनकी जांघ पर बैठी हुई मनिका को उठाने के लिए, उसके नितम्ब पर हल्की सी थपकी दे दी थी.
'आउच...ओके-ओके पापा.' मनिका को उनके इस स्पर्श का अंदेशा नहीं था और वह उचक कर खड़ी हो गई थी, जयसिंह ने बिल्कुल भी ऐसा नहीं दर्शाया कि उन्होंने कोई गलत या अजीब हरकत कर दी हो और उठ कर मीटिंग के लिए तैयार होने चल दिए.
मनिका को अपनी गांड में एक हल्की सी तरंग उठती महसूस हुई थी और वह कुछ पल वैसे ही खड़ी उनको जाते हुए देखती रही थी.
***
जयसिंह रात को लेट वापस आए थे. उन्होंने मनिका को कॉल करके बता दिया था कि आज उन्हें आने में देर हो जाएगी, उनके क्लाइंट ने उन्हें अपने एक-दो जानकार इन्वेस्टर्स से मिलवाया था और निकट भविष्य में जयसिंह को उनसे एक बड़ी डील होती नज़र आ रही थी. मीटिंग से निकल उन्होंने माथुर को फ़ोन कर आज की अपनी मीटिंग का ब्यौरा दिया था और जल्द से जल्द अपने नए क्लाइंट्स के लिए एक पोर्टफोलियो तैयार करने को कहा था.
'अब तो दिल्ली चक्कर लगते रहेंगे..' वे फ़ोन रखते हुए बोले थे.
जब तक जयसिंह अपने हॉटेल रूम में पहुँचे थे मनिका सो चुकीं थी. जयसिंह ने भी बाथरूम में जा कर चेंज किया और आकर लेट गए, 'हे भगवान् ये डील फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए.' उन्होंने प्रार्थना की, उनके दीमाग में आज की उनकी बिज़नस मीटिंग के विचार उठ रहे थे. काफी पैसा आने की सम्भावना ने मनिका पर उनका ध्यान अभी जाने नहीं दिया था, पर फिर उन्होंने करवट बदली और उनके विचार भी बदल गए 'और ये डील हो जाए तो डबल मजा आ जाए...' उन्होंने अपनी बेटी के जिस्म की तरफ हाथ बढ़ाते हुए सोचा.
जयसिंह ने शुक्र मनाया कि उन्होंने हाथ मनिका के गाल पर रख उसे सहलाया था. मनिका अभी पूरी तरह से नींद में नहीं थी और उनका स्पर्श पाते ही उसने आँखें खोल लीं थी.
'आह...पापा? आ गए आप?' उसने अंगडाई लेते हुए पूछा.
'हाँ...सोई नहीं अभी तक?' जयसिंह उसे जागती हुई पा कर थोड़ा घबरा गए थे.
'उहूँ...बस नींद आने ही लगी थी आपका वेट करते-करते..' मनिका ने नींद भरी आवाज़ से कहा.
'ह्म्म्म..वो मीटिंग जरा देर तक चलती रही सो लेट हो गया.' जयसिंह ने बताया.
उनींदी हुई मनिका से कुछ देर बात करने के बाद जयसिंह ने उसे सो जाने को कह और एक बार फिर से लाइट ऑफ कर दी थी. मनिका अभी सोई नहीं थी और आज वे भी थक चुके थे, सो उन्होंने भी अपने सिर उठाते लंड को हल्का सा दबा कर शांत करने का प्रयास किया था और कुछ ही देर में उनकी आँख लग गई थी.
जयसिंह सपना देख रहे थे; सपने में वे एक बिज़नस मीटिंग में बैठे थे और एक बेहद बड़ी डील साईन करने के लिए निगोशिएट कर रहे थे. उन्हें आभास हो रहा था जैसे उनके साथ उनका सेक्रेटरी और ऑफिस के कर्मचारी कागजात लेकर बैठे हुए हैं और काफी गहमा-गहमी का माहौल है लेकिन जयसिंह किसी का भी चेहरा साफ-साफ़ नहीं देख पा रहे थे. कुछ देर इसी तरह सपना चलता रहा जब आखिर सामने बैठा क्लाइंट डील साईन करने को राजी हो गया और उसने उठते हुए उनसे हाथ मिलाया. जयसिंह ने भी उठ कर हाथ आगे बढाया था लेकिन अब उनके सामने क्लाइंट की जगह मनिका खड़ी थी और मुस्का रही थी, 'आई अग्री (मान जाना) पापा..!' सपने वाली मनिका ने कहा, उसने एक छोटी सी काली ड्रेस पहन रखी थी. जयसिंह ने नीचे देखा और पाया कि वे खुद नंगे खड़े थे और उनका लंड खड़ा हो कर हिलोरे ले रहा था, तभी मनिका ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया; जयसिंह की आँख खुल गई, उनका हाथ पजामे के अन्दर लंड को थामे हुए था और उनके दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.
जयसिंह ने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, उन्होंने सिरहाने रखे फ़ोन में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा, वह पेट के बल लेटी सो रही थी. उनका लंड अभी भी उनके हाथ में था पर मनिका को सोते हुए पा कर भी उन्होंने उसे छूने की कोशिश नहीं की थी. वे लेटे-लेटे सोचने लगे,
'उफ़...अब तो साली के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है इसकी जवानी...पर कुछ होता दिखाई नहीं देता, इसके सिर पर तो दोस्ती का भूत सवार है और मेरे लंड पर इसकी ठुकाई का. दोनों के बीच मेरी बैंड बजी रहती है. क्या करूँ समझ नहीं आता...आज आखिरी दिन है, कल तो चिनाल का इंटरव्यू होगा.' जयसिंह अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए मनिका की उभरी हुई गांड देख रहे थे. 'हर तरह से इसे बहला चुका हूँ...पर आगे दीमाग में कोई तरकीब आ ही नहीं रही है...' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद उनके लंड ने एक जोरदार हिचकोला खाया. यकायक जयसिंह के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...दीमाग नहीं...अब लंड की बारी है...'
जयसिंह ख़ुशी-ख़ुशी सो गए, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.
सूरज निकल आने के साथ ही जयसिंह और मनिका भी उठ गए थे. उन्होंने अपनी दिनचर्या के काम निपटाए और मनिका के कहने पर नाश्ता कमरे में ही मंगवा लिया. मनिका को भी अगले दिन का अपना इंटरव्यू नज़र आने लगा था और जयसिंह को अपनी बुद्धिमता के लाख उदाहरण देने के बावजूद अब वह भी कुछ नर्वस हो गई थी. उसने अपने पिता से कहा कि आज वह इंटरव्यू के लिए पढ़ कर थोड़ा रिवीजन करने का सोच रही थी सो अगर उन्हें भी अपने बिज़नस का कोई जरूरी काम हो तो वे बेफिक्र कर सकते हैं. जयसिंह ने मुहँ-अँधेरे आँख खुलने पर जो तरकीब सोची थी उसे इस्तेमाल करने की हिम्मत अभी तक नहीं बाँध सके थे. उस वक्त तो नींद में उन्होंने फैसला कर लिया था लेकिन सुबह मनिका के उठ जाने के बाद उनका असमंजस और व्याकुलता बढ़ गए थे. एक मौका आ कर हाथ से निकल भी चुका था. उन्होंने मनिका की बात पर सहमत होते हुए कहा कि वैसे तो आज वे फ्री थे और रूम में ही रहेंगे बट अगर कोई काम आन पड़ता है तो शायद उन्हें जाना पड़ जाए.
नाश्ता करने के बाद मनिका अपनी किताबें ले कर बैठ गई और जयसिंह कुछ देर कमरे में इधर-उधर होने के बाद उस से पूल खेलने जाने का बोल कर नीचे चले गए. कुछ घंटों बाद उन्होंने रूम में कॉल कर के मनिका को नीचे लंच के लिए बुलाया, जब वे खाना खत्म कर चुके तो जयसिंह के आग्रह के बाद भी मनिका उनके साथ पूल एरिया में न जा कर पढ़ने के लिए रूम में लौट गई थी.
जयसिंह शाम हुए रूम में लौट कर आए. वे बहुत खुश नज़र आ रहे थे, उनको इस कदर मुस्काते देख बेड पर किताब लिए बैठी मनिका ने उन्हें छेड़ते हुए पूछा,
'क्या हुआ पापा? बड़ा मुस्कुरा रहे हो आज तो...कोई गर्लफ्रेंड बना आए हो क्या?'
'हाहाहा...नहीं-नहीं कहाँ गर्लफ्रेंड...पर हाँ अपनी एक गर्लफ्रेंड की शॉपिंग का जुगाड़ कर आया हूँ...' जयसिंह ने भी हँस कर उसे आँख मार दी थी, उनका इशारा मनिका की तरफ ही था.
'हाहाहा...ये बात है? मुझे भी बताओ फिर तो...' मनिका ने किताब एक तरफ रखते हुए पूछा.
जयसिंह ने उसे बताया कि आज वे पूल में जीत कर आए हैं और जीत की राशि उनके हारे हुए अमाउंट के दोगुने से भी ज्यादा थी व उसे चेक दिखाया. मनिका भी खुश हो गई थी. मनिका ने बताया कि उसने तो बस पढाई ही करी थी दिन भर और अब उसे नींद आ रही थी. जयसिंह ने डिनर भी रूम में ही मंगवा लेने का सुझाव दिया.
खाना खा लेने के बाद मनिका नहाने चली गई और जयसिंह बेड पर बैठ सोच में डूब गए, 'क्या वे यह कर सकेंगे?' कुछ पल बैठे रहने के बाद वे उठे और जा कर सूटकेस में रखे अपने शेविंग-किट में से एक छोटी सी बोतल निकाल लाए. उनका दिल जोरों से धड़क रहा था.
मनिका नहाते वक्त अगले दिन की टेंशन में डूबी थी. उसके पापा आज पूल में जीत कर आए थे इस बात से वह खुश भी थी लेकिन इतने दिन दिल्ली की हवा लग जाने के बाद अब उसे यह डर सता रहा था कि अगर उसका सेलेक्शन नहीं हुआ तो उसे वापस बाड़मेर जाना पड़ सकता है 'अगर कल मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ तो पापा से बोलूंगी कि यहीं किसी और कॉलेज में एडमिशन लेना है मुझे...वापस तो मैं भी नहीं जाने वाली.' उसने सोचा था और नहा कर बाथरूम से बाहर निकली. जयसिंह रोज की तरह सामने काउच पर ही बैठे थे. टी.वी चल रहा था.
मनिका को जैसे काटो तो खून नहीं, उसका दिल, दीमाग और तन तीनों चक्कर खा गए थे.
जयसिंह ने अपने किट से तेल की शीशी निकाली थी और बेड पर आ बैठे थे. फिर उन्होंने अपनी पेंट और अंडरवियर निकाल दिए व हाथों में तेल लेकर अपने काले लंड पर लगाने लगे, लंड तो पहले से ही खड़ा था, अब तेल की मालिश से चमकने लगा था. उस सुबह नहाते वक़्त जयसिंह ने अपने अंतरंग भाग पर से बाल भी साफ़ कर लिए थे, सो उनके लंड के नीचे उनके अंडकोष भी साफ नज़र आ रहे थे. कुछ देर अपने लंड को इसी तरह तेल पिलाने के बाद जयसिंह ने उठ कर अलमारी में रखे एक्स्ट्रा तौलियों में से एक निकाल कर लपेट लिया और अपनी उतारी हुई पेंट और चड्डी को सूटकेस में रख दिया. तेल की शीशी को भी यथास्थान रखने के बाद वे काउच पर जा जमे और मनिका के बाहर आने का इंतज़ार करने लगे थे.
मनिका जब नहा कर बाहर आई तो अपने पिता को काउच पर बैठ टी.वी देखते पाया. वे ऊपर तो शर्ट ही पहने हुए थे लेकिन नीचे उन्होंने एक टॉवल लपेट रखा था और पैर पर पैर रख कर बैठे थे. टॉवल बीच से ऊपर उठा हुआ था और उनकी टांगों के बीच उनका 'डिक!' नज़र आ रहा था. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा.
मनिका ने अपनी सहेलियों के साथ गुपचुप खिखीयाते हुए एक दो पोर्न फ़िल्में देखीं हुई थी लेकिन असली लंड से उसका सामना पहली बार हुआ था और वह भी उसके पिता का था. जयसिंह के भीषण काले लंड को देख उसका बदन शरम और घबराहट से तपने लगा था.
'बस अभी नहाता हूँ...' जयसिंह ने मनिका की तरफ एक नज़र देख कर कहा. उनका हाल भी मनिका से कोई बेहतर नहीं था, दिल की धड़कने रेलगाड़ी सी दौड़ रहीं थी. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी इछाश्क्ति से अपने चेहरे के भाव नॉर्मल बनाए रखे थे. मनिका के चेहरे का उड़ा रंग देख उन्होंने झूठी आशंका व्यक्त की, 'क्या हुआ मनिका?'
'क..क...कुछ...कुछ नहीं...पापा..' मनिका ने हकलाते हुए कहा और पलट कर बेड की तरफ चल दी.
जयसिंह उसे जाते हुए देखते रहे, उसकी पीठ उनकी तरफ थी और उसने अपना सूटकेस खोल रखा था, जयसिंह ने अपनी नज़रें टी.वी पर गड़ा लीं, उसी वक्त मनिका ने एक बार फिर उन्हें पलट कर देखा. जयसिंह अपनी बेटी के सामने अपने आप को यूँ एक्सपोस (दिखाना) करने के बाद थोड़े और बोल्ड हो गए थे, हालाँकि डर उन्हें भी लग रहा था कि कहीं कुछ उल्टा रिएक्शन ना हो जाए उसकी तरफ से,
'मनिका!?' उन्होंने पुकारा.
'ज..जी पापा?' मनिका ने थोड़ा सा मुहँ पीछे कर के पूछा. उसकी आवाज़ भर्रा रही थी.
'ये मेरा फ़ोन चार्ज में लगा दो जरा...' जयसिंह ने अपना फ़ोन हाथ में ले उसकी तरफ बढ़ाया.
'जी..हाँ अभी...अभी लगाती हूँ..पापा..' मनिका ने उनकी तरफ देखा और एक बार फिर से सिहर उठी.
थोड़ी हिम्मत कर मनिका पलटी और बिना जयसिंह की टांगों के बीच नज़र ले जाए उनके पास आने लगी, जयसिंह को हाथ में फ़ोन उठाए कुछ पल बीत चुके थे, जैसे ही उन्हें मनिका पास आती दिखी उन्होंने फ़ोन अपने आगे रखे एक छोटे टेबल पर रख दिया था. मनिका की नज़र भी उनके नीचे जाते हाथ के साथ नीची हो गईं, वह जयसिंह से चार फुट की दूरी पर खड़ी थी और उसने झुक कर फ़ोन उठाया, ना चाहते हुए भी उसकी नज़र एक बार फिर से जयसिंह के चमकते लंड और आंडों पर जा टिकी. जयसिंह भी उत्तेजित तो थे ही, मनिका की नज़र कहाँ है इसका आभास उन्हें कनखियों से हो गया था. उन्होंने अपने उत्तेजित हुए लंड की माश्पेशियाँ कसते हुए उसे एक हुलारा दिला दिया, मनिका झट से उछल कर सीधी हुई और लघभग भागती हुई बेड के पास जा कर उनका फ़ोन चार्जर में लगाने की कोशिश करने लगी, उसके हाथ कांप रहे थे.
गुमराह पिता की हमराह बेटी--8
अलमारी में कुछ एक्स्ट्रा लिनन (चादर तौलिए इत्यादि) था और एक ओर उसके शॉपिंग बैग्स रखे हुए थे.
जयसिंह से लड़ाई हो जाने के बाद मनिका ने अपना खरीदा हुआ सामान यह कर के नहीं खोला था कि वो सब उन्होंने उसे दिलाया था. फिर जब उनके बीच सुलह हो गई थी तो ख़ुशी के मारे उसके दीमाग से यह बात निकल गई थी जबकि जयसिंह ने बीच में एक बार उसकी शॉपिंग को ले कर उसे कुछ कहा भी था. जयसिंह ने वह बैग्स लाकर उनके लगेज के पास ही रखे थे लेकिन शायद हाउस-कीपिंग (कमरे की साफ़ सफाई करने वाले) में से किसी ने उठाकर उन्हें अलमारी में रख दिया था. मनिका ने सारे बैग्स निकाले और उत्साह से बेड पर बैठ एक-एक कर उनमें से अपनी लाई चीज़ें निकालने लगी. जयसिंह की पीठ उसकी तरफ थी और वे कुर्सी पर बैठे अभी भी फोन पर लगे थे.
अपने नए कपड़े देख-देख मनिका खुश होती बैठी रही, 'ओह वाओ...मेरे वार्डरॉब में कितनी सारी नई ड्रेसेस आ गईं हैं...सबको दिखाने में कितना मजा आएगा...हहा...' अपनी सहेलियों की प्रतिक्रियाएँ सोच वह आनंदित हो रही थी. 'पर...मम्मी देखेंगी जब..? फिर से वही लड़ाई होगी...खर्चा कम...ढंग के कपड़े...और तेरे पापा...ले-देके यही चार बातें हैं उनके पास...' संचिता से लड़ाई अभी भी उसके जेहन में ताज़ी थी और उसके विचार घूम-फिर के फिर उन्हीं बातों पर लौट आए थे. 'बट पापा ने कहा कि वे सँभाल लेंगे...हाह... पापा के सामने फ़ुस्स हो जातीं है मम्मी की तोप भी...हीहाहा...अरे कल पापा ने कहा था कि उन्हें तो दिखाया ही नहीं कि क्या कुछ शॉप कर के लाई हूँ..?' मनिका ने अपने सामने फैली पोशाकों पर एक नज़र घुमाते हुए सोचा और मुस्काते हुए एक ड्रेस उठा ली थी.
कुर्सी पर बैठे हुए जयसिंह को बाथरूम का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ तो आई थी पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया था और अपने असिस्टेंट को ऑफिस में आ रही दिक्कतों को हैंडल करने के इंस्ट्रक्शन देते रहे,
'पापा..' बाथरूम का दरवाज़ा खुला और आवाज़ आई.
जयसिंह ने कुर्सी पर बैठे हुए ही मुड़ कर पीछे देखा और फोन में बोले, 'हाँ माथुर, जो मैंने कहा है वो कैरी आउट करो और कोई दिक्कत हो तो कल मुझे कॉल कर लेना, अभी थोड़ा बिजी हूँ...' माथुर ने उधर से कुछ कहा था लेकिन जयसिंह फोन काट चुके थे.
'औकात में रहना है.' उनके दीमाग ने लंड को संदेश भेज चेताया था.
मनिका ने बाथरूम में जा कर अपने नए लिए कपड़ों को पहना था, वह एक पल के लिए नर्वस हुई तो थी के 'पता नहीं पापा क्या सोचेंगे?' पर फिर उसे अपनी माँ की समझाइशें याद आ गईं और अपनी माँ को चिढ़ाने (जबकि वे वहाँ नहीं थीं) के चक्कर में उसने कपड़े बदल लिए थे. बाथरूम के शीशे में उसने अपने-आप को निहारा था और अपनी चटख लाल स्लीवलेस टी-शर्ट और काली शार्ट स्कर्ट को देख उसके संकोच ने फिर एक बार उसे आगाह किया था, लेकिन उसे जयसिंह की बात याद आ गई थी 'कपड़े ही तो हैं...' और वह मुस्कुराती हुई बाहर निकल आई थी. उसने यह नहीं सोचा था कि कपड़ों के अंदर जिस्म भी तो होते हैं.
जयसिंह कुछ समझ पाते उससे पहले ही मनिका बाथरूम के दरवाज़े से बाहर निकल आई थी,
'तो पापा? कैसी लग रही हूँ मैं? ये ड्रेस ली थी मैंने...मतलब और भी हैं, पहन के दिखाती हूँ अभी...पहले ये बताओ कैसी है?' मनिका ने चहक कर पूछा.
'अच्छी है...' जयसिंह ऊपर से नीचे तक उसे देखते हुए बोले, मनिका को हल्की सी लाज भी आई पर वह खड़ी रही.
उसकी गोरी-गोरी बाँहें और जांघें देख जयसिंह को पहली रात याद आ गई थी 'ओह्ह मैं तो भूल ही गया था कि कितनी चिकनी है ये कमीनी...' मनिका का स्कर्ट उसके घुटनों से थोड़ा ऊपर तक का था.
'पापा मेरी पिक्स तो क्लिक कर दो इन ड्रेसेस में प्लीज...फ्रेंड्स को भेजूंगी और जलाऊँगी... हीही...' मनिका ने अपना फोन उनकी तरफ बढ़ाया.
लेकिन जयसिंह ने उसके बोलते ही अपने फोन, जो अभी उनके हाथ में ही था, का कैमरा ऑन कर लिया था. मनिका ने अपना फोन पास रखे टेबल पर रख दिया और पोज़ बनाते हुए बोली,
'अच्छा फिर मुझे सेंड कर देना पिक्स बाद में...'
'हम्म..' जयसिंह उसका फोटो खींचते हुए बोले. चिड़िया पिंजरे में आ बैठी थी.
अब मनिका बारी-बारी से कपड़े बदल-बदल उनके सामने आने लगी और जयसिंह उसके फोटो लेने लगे, मनिका ने स्कर्ट के बाद उनको अपनी नई जीन्स पहन कर दिखाईं थी और उसके बाद दो जोड़ी डेनिम हॉट-पैंट्स(डेनिम या कपड़े से बनी शॉर्ट्स) पहन कर आई थी, उसकी ज्यादातर नई टी-शर्ट्स स्लीव्लेस हीं थी. जयसिंह का लंड उनके हर एनकाउंटर पर उछाल मार रहा था लेकिन जयसिंह भी मनिका के बाथरूम में चेंज करने को घुसते ही लंड को शांत करने के प्रयास चालु कर देते थे ताकि बात हाथ से निकलने के पहले ही संभाली जा सके.
उसके बाद मनिका एक काली पार्टी-ड्रेस पहन कर बाहर निकली थी, ड्रेस का कपड़ा सिल्की सा था, जयसिंह देखते ही तड़प गए थे. ड्रेस में क्लीवेज थोड़ा सा गहरा था (इतना ज्यादा भी नहीं कि कुछ दिखे) जिससे मनिका की क्लीवेज-लाइन का थोड़ा सा आभास मिल रहा था और ड्रेस की लंबाई भी इस बार पहले वाले स्कर्ट और हॉट-पैंट्स के मुकाबले कम थी. पर सबसे ज्यादा उत्तेजक बात यह थी कि ड्रेस के चिकने कपड़े ने मनिका के बदन से चिपक कर उसके उभारों को तो निखार ही दिया था लेकिन साथ ही उसकी ब्रा-पैंटी की आउटलाइनस् भी साफ़ नज़र आ रहीं थी.
मनिका ने जब पहली कुछ ड्रेसेस पहन कर उन्हें दिखाईं थी तो पहले वह अपने-आप को शीशे में अच्छे से देख-भाल कर फिर बाहर आती थी लेकिन बार-बार कपड़े बदल कर आने के कारण हर बार उसका ध्यान जल्दी से बाहर आने की तरफ बढ़ता गया था और इस बार वह ड्रेस पहनते ही एक नज़र अपने आप को देख बाहर आ गई थी जबकि उसकी ड्रेस का कपड़ा उसके बाहर आते-आते ही उसके बदन से चिपकना शुरू हुआ था (क्योंकि चिकने मैटेरियल से बने कपड़े में बदन से होने वाले घर्षण से ऐसा होता है). फोटो खींचते वक्त जयसिंह का हाथ एकबारगी काँप गया था.
मनिका के पास दिखाने को अब और कोई ड्रेस नहीं बची थी सो वह खड़ी रही व इस बार जयसिंह ने उसके ज्यादा ही फोटो ले लिए थे.
'बस पापा इतनी ही थीं..' मनिका ने उन्हें बताया.
'बस? इतने से कपड़ों का बिल था वो..?' जयसिंह ने हैरानी जताई.
'हाहाहा...मैंने कहा था ना पापा...क्या हुआ शॉक लग गया आपको?' मनिका ने हँसते हुए उनके थोड़ा करीब आते हुए कहा.
'नहीं-नहीं...पैसे की फ़िक्र थोड़े ही कर रहा हूँ. मुझे लगा और भी ड्रेस होंगी...' जयसिंह ने मुस्का कर कहा और उसे अपनी गोद में आने का इशारा किया. मनिका इतनी कातिल लग रही थी के लाख न चाहने के बाद भी वे अपने लंड की डिमांड को अनसुना नहीं कर सके थे. पर इस बार मनिका ने ही उन्हें बचा लिया,
'और तो पापा दो पर्स लिए थे मैंने और एक वॉच...एंड और क्या था..? हाँ बेल्ट और...सैंडिलस्...' मनिका सोच-सोच कर गिनाने लगी, पर वह उनकी गोद में नहीं बैठी थी क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि उसने अंदर पैंटी पहन रखी थी जबकि इन ड्रेसेस के अंदर नीचे अमूमन बॉय-शॉर्ट्स (शॉर्टसनुमा पैंटी) पहनी जातीं हैं. अगर वह जयसिंह की जांघ पर बैठ जाती तो नीचे से खुली ड्रेस ऊपर उठ जाती जिसमें उसके अंडरवियर के एक्सपोज़ हो जाने का खतरा था. मनिका को यह आभास अजीब सा लगा था पर इस बार उसने अपने चेहरे पर शरम की अभिव्यक्ति नहीं होने दी थी, आखिर बेटी तो वह भी जयसिंह की ही थी.
'अच्छा-अच्छा ठीक है.' जयसिंह ने अपनी शॉपिंग लिस्ट सुनाती मनिका को थमने के लिए कहा और एक बार फिर अपने पास बुलाया, पर मनिका ने पीछे हटते हुए कहा,
'पापा मैं चेंज कर के आती हूँ...फिर मुझे पिक्स दिखाना.'
जयसिंह ने भी फिर से उसे नहीं बुलाया और थोड़ी राहत महसूस की थी. फिर उन्हें याद आया,
'मनिका..!?'
'जी पापा?' मनिका बाथरूम के दरवाजे पर पहुँच रुक गई थी.
'वो मेरी दिलाई चीज़ तो तुमने दिखाई ही नहीं पहन कर..' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा.
'कौनसी चीज़...? ओह्ह...हाँ पापा...भूल गई मैं...रुको.' मनिका एक पल बाद समझ गई थी और बेड की तरफ जा कर झुक कर वहाँ रखे कपड़ों में लेग्गिंग्स की जोड़ी खोजने लगी. जयसिंह ने देखा कि उसने अपना एक घुटना मोड़ कर बेड पर रखा हुआ था और उसका दूसरा पैर नीचे फर्श पर था, वह आगे झुकी हुई थी सो उसकी कमर और नितम्ब ऊपर हो गए थे और साथ ही वह ड्रेस भी, जयसिंह का बदन एक बार फिर से गरमा गया था. उन्होंने अपने बचे-खुचे विवेक का इस्तेमाल कर कैमरा वीडियो मोड पर कर लिया था और उस मादक से पोज़ में झुकी अपनी बेटी की गांड का वीडियो बनाने लगे.
कुछ दस सेकंड यह वाकया चला जिसके बाद मनिका ने सीधी होकर मुस्कुराते हुए जयसिंह को अपने हाथ में ली हुई लेग्गिंग्स दिखाई थी और पहन कर आने का बोल बाथरूम में चली गई थी. जयसिंह ने फटाफट वीडियो बंद कर दिया था और उसके जाते ही जल्दी से अपने फोन की गैलरी में जा कर देखा क़ि वो सेव तो हुआ था के नहीं? वीडियो सेव हो गया था लेकिन गैलरी में उसकी थंबनेल (फोटो या वीडियो की झलक देता आइकॉन) देख मनिका को जयसिंह की कारस्तानी का साफ़ पता चल जाना था. जयसिंह ने जल्दी से वीडियो और साथ ही अभी ली हुई तस्वीरों का बैकअप ले उस वीडियो को वहाँ से डिलीट कर दिया था.
मनिका को लेग्गिंग पहन कर बाहर आने में थोड़ा वक्त लग गया था. खड़े-खड़े इतनी पतली पजामी पैरों में पहनने में उसे थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. तब तक जयसिंह ने भी अपनी सेफ साइड रख ली थी. मनिका ने ऊपर से एक टी-शर्ट डाली और इस बार बिना आईना देखे ही बाहर आ गई. जयसिंह, जो अभी उसकी गांड को अपने मन से निकालने की कोशिश करने में लगे ही थे, पर कहर बरप पड़ा था.
एक तो जयसिंह ने पहले ही लेग्गिंग दो साइज़ छोटी ले कर दी थी उस पर उसका कपड़ा बिल्कुल झीना था तिस पर उसका रंग भी लाइट-स्किन कलर जैसा था; और मनिका यह सब बिन देखे ही बाहर निकल आई थी.
जयसिंह के बदन में करंट दौड़ने लगा था, लेग्गिंग्स के रंग की वजह से उसके कुछ भी न पहने हुए होने का आभास होता था व मनिका के अधो-भाग का एक-एक उभार नज़र आ रहा था. जयसिंह को अभी तक तो अपनी बेटी के कपड़ों में से उसकी जाँघों और नितम्बों का ही दीदार अच्छे से होता आया था लेकिन यह लेग्गिंग्स इतनी ज्यादा टाइट कसी हुई थी कि उसकी टांगों के बीच का फासला 'ᴨ' भी नज़र आने लगा था. कपड़ा पूरी तरह से उसकी जाँघों और योनि पर चिपक गया था और मनिका की योनि का उभार साफ़ दिख रहा था.
'कैसी लग रहीं है पापा?' मनिका चहकते हुए बाहर आई थी.
'उह्ह ह..' जयसिंह ने कुछ शब्द निकालने का प्रयास किया था पर सिर्फ आह ही निकल सकी.
मनिका उनके पास आ पहुंची थी. जयसिंह को इस बार पहले से ही इल्म था की कहाँ-कहाँ ध्यान से देखने पर मनिका के जिस्मानी जादू का लुत्फ़ उठाया जा सकता है. उनकी नज़र सीधी उसके प्राइवेट पार्ट्स (गुप्तांग) पर जा टिकीं थी और उसके करीब आते-आते उन्हें उसकी पहनी हुई पैंटी के रंग और साइज़ का पता चल चुका था. उसने आज अपनी स्काई-ब्लू रंग वाली अंडरवियर पहन रखी थी. मनिका की उभरी हुई योनि देख जयसिंह वैसे ही आपा खो रहे थे जब मनिका उनके ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी,
'बताओ न पापा?'
'बहुत...बहुत अच्छी ल..लग रही है..' जयसिंह ने तरस कर कहा. अपने लंड को काबू करने की उनकी सारी कोशिशें बेकार जा चुकीं थी.
मनिका उनकी गोद में आ बैठी, जयसिंह को अपनी बेटी की कच्ची सी योनि अपनी जांघ पर टिकती हुई महसूस हुई थी, उनकी रूह कांप गई थी.
'ओह मनिका यू आर सो ब्यूटीफुल...' उनके मुहँ से निकला.
'इश्श पापा. यू आर मेकिंग मी शाय (शरम)...' मनिका ने मुस्काते हुए जवाब दिया 'इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मैं..मुझे बहलाओ मत..'
'तुम्हें क्या पता?' जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा और उस दिन ट्रेन वाली तरह अपना दूसरा हाथ उसकी जांघ पर रख लिया. मनिका की योनि का आभास उन्हें पागल किए जा रहा था. 'आज तो रेप होगा मुझसे लग रहा है..!' जयसिंह ने मन ही मन अपनी लाचारी व्यक्त की थी.
असल में मनिका को भी जयसिंह की तारीफ़ बहुत भायी थी. एक बात और थी जिसने आज मनिका को अपनी ये फैशन परेड करने के लिए उकसाया था लेकिन जिसका भान अभी उसके चेतन मन को नहीं हुआ था; पिछली रोज जब जयसिंह टी.वी. में दिखाई जा रही लडकियाँ ताड़ रहे थे तो मनिका ने नोटिस कर लिया था व उन्हें छेड़ा था. उस बात ने भी उसके आज के फैसले में कहीं ना कहीं एक भूमिका निभाई थी.
जयसिंह उसकी जांघ सहलाना शुरू कर चुके थे.
'पापा फ़ोन दो ना. पिक्स देखते हैं..' मनिका बोली.
जयसिंह ने उसकी जांघ से हाथ हटा अपने बाजू में रखा फ़ोन उठा कर उसे पकड़ा दिया और फिर से उसकी जाँघों पर हाथ ले गए. मनिका फ़ोन की फोटो-गैलरी खोल जयसिंह की ली हुई तस्वीरें देखने लगी. शुरुआत की कुछ फोटो देख वह बोली,
'पापा! कितनी अच्छी पिक्स क्लिक की है आपने...एंड ये ड्रेसेस कितनी अमेजिंग लग रही है ना?' उसने जयसिंह और अपनी, दोनों की ही तारीफ़ करते हुए पूछा था. जयसिंह ने तो हाँ कहना ही था, उनका खड़ा हुआ लिंग भी उनके अंडरवियर में कसमसा कर हाँ कह रहा था.
फिर आगे मनिका की पार्टी-ड्रेस वाले फोटो आने शुरू हो गए, इस बार वह झेंप गई. जयसिंह ने फोटो भी ज्यादा ले रखे थे सो उन्हें आगे कर-कर देखते हुए उसकी झेंप शरम में तब्दील होती जा रही थी. उसने एक फोटो पर रुकते हुए डिलीट-बटन दबाया था, जयसिंह ने तपाक से पूछा कि वह क्या कर रही है? तो उसने थोड़ा सकुचा कर कहा कि वे फोटोज़ ज्यादा अच्छे नहीं आए थे, उसका मतलब था कि उनमें उसके पहने अंडर-गारमेंट्स का पता चल रहा था.
मनिका ने एक दो फोटो ही डिलीट किए थे कि जयसिंह के फ़ोन पर एक बार फिर से रिंग आने लगी, ऑफिस से माथुर का फ़ोन था,
'ओहो आज तो कुछ ज्यादा ही कॉल्स आ रहीं है आपको..!' मनिका ने झुंझला कर कहा.
'बजने दो..अभी तो बात की थी..' जयसिंह ने कहा, उनका चेहरा अब मनिका के बालों के पास था और वे उनकी भीनी-भीनी खुशबू में खोए थे. मनिका ने फ़ोन के अपने आप डिसकनेक्ट हो जाने तक इंतज़ार किया और फिर से उन पिक्स को डिलीट करने लगी जो उसे ज्यादा ही रिवीलिंग लगीं थी. बैक-अप ले चुके जयसिंह बेफिक्र थे. फ़ोन एक बार फिर से बजने लगा.
'हाँ माथुर बोलो?' जयसिंह ने तल्खी से पूछा. उन्होंने मनिका को एक बार फिर से कॉल न उठाने को कहा था लेकिन फ़ोन डिसकनेक्ट होते ही वापस रिंग आने लग गई थी.
उनके सेक्रेटरी ने उन्हें बताया की उनका एक बहुत बड़ा क्लाइंट जो पिछले कुछ दिनों से उनसे बात करने के लिए रोज कॉल कर रहा था, वह भी अभी दिल्ली में था. उसने जब आज फिर से कॉल किया तो उनके सेक्रेटरी ने उसको जयसिंह के दिल्ली गए होने की सूचना दी थी, जिस पर उसने उससे मीटिंग फिक्स करने के लिए कहा था और इसी बाबत उनका सेक्रेटरी उन्हें कॉल पर कॉल कर रहा था.
जयसिंह सोच में पड़ गए. यह क्लाइंट बहुत बड़ी आसामी थी और उनकी कंपनी की बैलेंस-शीट में मौजूद बड़े नामों में से एक था, मीटिंग करनी जरूरी थी; उन्होंने सेक्रेटरी से मीटिंग फिक्स कर उन्हें कॉल करने को कहा. अचानक घटनाक्रम में हुए परिवर्तन ने एक बार फिर उनके हवस के मीटर की सुई को चरम पर पहुँच कर टूटने से बचा लिया था, 'कुछ करना पड़ेगा...जल्द.' जयसिंह ने सोचा और मनिका से बोले,
'जाना पड़ेगा मुझे...एक क्लाइंट यहाँ आया हुआ है.' जयसिंह ने मनिका से कहा.
'बट पापा! वी आर ऑन अ हॉलिडे ना?' मनिका ने बेमन से कहा.
'येस डार्लिंग आई क्नॉ बट ये काफी मालदार क्लाइंट है...इसी जैसों से तो तुम्हारी शॉपिंग पूरी होती है.' जयसिंह ने उसके गाल सहला उसे बहलाया 'चलो गेट उप नाओ, मुझे रेडी भी होना है.' जयसिंह ने आगे कहा था और अभी भी काम-वासना के वशीभूत अपने हाथ से, उनकी जांघ पर बैठी हुई मनिका को उठाने के लिए, उसके नितम्ब पर हल्की सी थपकी दे दी थी.
'आउच...ओके-ओके पापा.' मनिका को उनके इस स्पर्श का अंदेशा नहीं था और वह उचक कर खड़ी हो गई थी, जयसिंह ने बिल्कुल भी ऐसा नहीं दर्शाया कि उन्होंने कोई गलत या अजीब हरकत कर दी हो और उठ कर मीटिंग के लिए तैयार होने चल दिए.
मनिका को अपनी गांड में एक हल्की सी तरंग उठती महसूस हुई थी और वह कुछ पल वैसे ही खड़ी उनको जाते हुए देखती रही थी.
***
जयसिंह रात को लेट वापस आए थे. उन्होंने मनिका को कॉल करके बता दिया था कि आज उन्हें आने में देर हो जाएगी, उनके क्लाइंट ने उन्हें अपने एक-दो जानकार इन्वेस्टर्स से मिलवाया था और निकट भविष्य में जयसिंह को उनसे एक बड़ी डील होती नज़र आ रही थी. मीटिंग से निकल उन्होंने माथुर को फ़ोन कर आज की अपनी मीटिंग का ब्यौरा दिया था और जल्द से जल्द अपने नए क्लाइंट्स के लिए एक पोर्टफोलियो तैयार करने को कहा था.
'अब तो दिल्ली चक्कर लगते रहेंगे..' वे फ़ोन रखते हुए बोले थे.
जब तक जयसिंह अपने हॉटेल रूम में पहुँचे थे मनिका सो चुकीं थी. जयसिंह ने भी बाथरूम में जा कर चेंज किया और आकर लेट गए, 'हे भगवान् ये डील फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए.' उन्होंने प्रार्थना की, उनके दीमाग में आज की उनकी बिज़नस मीटिंग के विचार उठ रहे थे. काफी पैसा आने की सम्भावना ने मनिका पर उनका ध्यान अभी जाने नहीं दिया था, पर फिर उन्होंने करवट बदली और उनके विचार भी बदल गए 'और ये डील हो जाए तो डबल मजा आ जाए...' उन्होंने अपनी बेटी के जिस्म की तरफ हाथ बढ़ाते हुए सोचा.
जयसिंह ने शुक्र मनाया कि उन्होंने हाथ मनिका के गाल पर रख उसे सहलाया था. मनिका अभी पूरी तरह से नींद में नहीं थी और उनका स्पर्श पाते ही उसने आँखें खोल लीं थी.
'आह...पापा? आ गए आप?' उसने अंगडाई लेते हुए पूछा.
'हाँ...सोई नहीं अभी तक?' जयसिंह उसे जागती हुई पा कर थोड़ा घबरा गए थे.
'उहूँ...बस नींद आने ही लगी थी आपका वेट करते-करते..' मनिका ने नींद भरी आवाज़ से कहा.
'ह्म्म्म..वो मीटिंग जरा देर तक चलती रही सो लेट हो गया.' जयसिंह ने बताया.
उनींदी हुई मनिका से कुछ देर बात करने के बाद जयसिंह ने उसे सो जाने को कह और एक बार फिर से लाइट ऑफ कर दी थी. मनिका अभी सोई नहीं थी और आज वे भी थक चुके थे, सो उन्होंने भी अपने सिर उठाते लंड को हल्का सा दबा कर शांत करने का प्रयास किया था और कुछ ही देर में उनकी आँख लग गई थी.
जयसिंह सपना देख रहे थे; सपने में वे एक बिज़नस मीटिंग में बैठे थे और एक बेहद बड़ी डील साईन करने के लिए निगोशिएट कर रहे थे. उन्हें आभास हो रहा था जैसे उनके साथ उनका सेक्रेटरी और ऑफिस के कर्मचारी कागजात लेकर बैठे हुए हैं और काफी गहमा-गहमी का माहौल है लेकिन जयसिंह किसी का भी चेहरा साफ-साफ़ नहीं देख पा रहे थे. कुछ देर इसी तरह सपना चलता रहा जब आखिर सामने बैठा क्लाइंट डील साईन करने को राजी हो गया और उसने उठते हुए उनसे हाथ मिलाया. जयसिंह ने भी उठ कर हाथ आगे बढाया था लेकिन अब उनके सामने क्लाइंट की जगह मनिका खड़ी थी और मुस्का रही थी, 'आई अग्री (मान जाना) पापा..!' सपने वाली मनिका ने कहा, उसने एक छोटी सी काली ड्रेस पहन रखी थी. जयसिंह ने नीचे देखा और पाया कि वे खुद नंगे खड़े थे और उनका लंड खड़ा हो कर हिलोरे ले रहा था, तभी मनिका ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया; जयसिंह की आँख खुल गई, उनका हाथ पजामे के अन्दर लंड को थामे हुए था और उनके दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.
जयसिंह ने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, उन्होंने सिरहाने रखे फ़ोन में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा, वह पेट के बल लेटी सो रही थी. उनका लंड अभी भी उनके हाथ में था पर मनिका को सोते हुए पा कर भी उन्होंने उसे छूने की कोशिश नहीं की थी. वे लेटे-लेटे सोचने लगे,
'उफ़...अब तो साली के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है इसकी जवानी...पर कुछ होता दिखाई नहीं देता, इसके सिर पर तो दोस्ती का भूत सवार है और मेरे लंड पर इसकी ठुकाई का. दोनों के बीच मेरी बैंड बजी रहती है. क्या करूँ समझ नहीं आता...आज आखिरी दिन है, कल तो चिनाल का इंटरव्यू होगा.' जयसिंह अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए मनिका की उभरी हुई गांड देख रहे थे. 'हर तरह से इसे बहला चुका हूँ...पर आगे दीमाग में कोई तरकीब आ ही नहीं रही है...' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद उनके लंड ने एक जोरदार हिचकोला खाया. यकायक जयसिंह के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...दीमाग नहीं...अब लंड की बारी है...'
जयसिंह ख़ुशी-ख़ुशी सो गए, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.
सूरज निकल आने के साथ ही जयसिंह और मनिका भी उठ गए थे. उन्होंने अपनी दिनचर्या के काम निपटाए और मनिका के कहने पर नाश्ता कमरे में ही मंगवा लिया. मनिका को भी अगले दिन का अपना इंटरव्यू नज़र आने लगा था और जयसिंह को अपनी बुद्धिमता के लाख उदाहरण देने के बावजूद अब वह भी कुछ नर्वस हो गई थी. उसने अपने पिता से कहा कि आज वह इंटरव्यू के लिए पढ़ कर थोड़ा रिवीजन करने का सोच रही थी सो अगर उन्हें भी अपने बिज़नस का कोई जरूरी काम हो तो वे बेफिक्र कर सकते हैं. जयसिंह ने मुहँ-अँधेरे आँख खुलने पर जो तरकीब सोची थी उसे इस्तेमाल करने की हिम्मत अभी तक नहीं बाँध सके थे. उस वक्त तो नींद में उन्होंने फैसला कर लिया था लेकिन सुबह मनिका के उठ जाने के बाद उनका असमंजस और व्याकुलता बढ़ गए थे. एक मौका आ कर हाथ से निकल भी चुका था. उन्होंने मनिका की बात पर सहमत होते हुए कहा कि वैसे तो आज वे फ्री थे और रूम में ही रहेंगे बट अगर कोई काम आन पड़ता है तो शायद उन्हें जाना पड़ जाए.
नाश्ता करने के बाद मनिका अपनी किताबें ले कर बैठ गई और जयसिंह कुछ देर कमरे में इधर-उधर होने के बाद उस से पूल खेलने जाने का बोल कर नीचे चले गए. कुछ घंटों बाद उन्होंने रूम में कॉल कर के मनिका को नीचे लंच के लिए बुलाया, जब वे खाना खत्म कर चुके तो जयसिंह के आग्रह के बाद भी मनिका उनके साथ पूल एरिया में न जा कर पढ़ने के लिए रूम में लौट गई थी.
जयसिंह शाम हुए रूम में लौट कर आए. वे बहुत खुश नज़र आ रहे थे, उनको इस कदर मुस्काते देख बेड पर किताब लिए बैठी मनिका ने उन्हें छेड़ते हुए पूछा,
'क्या हुआ पापा? बड़ा मुस्कुरा रहे हो आज तो...कोई गर्लफ्रेंड बना आए हो क्या?'
'हाहाहा...नहीं-नहीं कहाँ गर्लफ्रेंड...पर हाँ अपनी एक गर्लफ्रेंड की शॉपिंग का जुगाड़ कर आया हूँ...' जयसिंह ने भी हँस कर उसे आँख मार दी थी, उनका इशारा मनिका की तरफ ही था.
'हाहाहा...ये बात है? मुझे भी बताओ फिर तो...' मनिका ने किताब एक तरफ रखते हुए पूछा.
जयसिंह ने उसे बताया कि आज वे पूल में जीत कर आए हैं और जीत की राशि उनके हारे हुए अमाउंट के दोगुने से भी ज्यादा थी व उसे चेक दिखाया. मनिका भी खुश हो गई थी. मनिका ने बताया कि उसने तो बस पढाई ही करी थी दिन भर और अब उसे नींद आ रही थी. जयसिंह ने डिनर भी रूम में ही मंगवा लेने का सुझाव दिया.
खाना खा लेने के बाद मनिका नहाने चली गई और जयसिंह बेड पर बैठ सोच में डूब गए, 'क्या वे यह कर सकेंगे?' कुछ पल बैठे रहने के बाद वे उठे और जा कर सूटकेस में रखे अपने शेविंग-किट में से एक छोटी सी बोतल निकाल लाए. उनका दिल जोरों से धड़क रहा था.
मनिका नहाते वक्त अगले दिन की टेंशन में डूबी थी. उसके पापा आज पूल में जीत कर आए थे इस बात से वह खुश भी थी लेकिन इतने दिन दिल्ली की हवा लग जाने के बाद अब उसे यह डर सता रहा था कि अगर उसका सेलेक्शन नहीं हुआ तो उसे वापस बाड़मेर जाना पड़ सकता है 'अगर कल मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ तो पापा से बोलूंगी कि यहीं किसी और कॉलेज में एडमिशन लेना है मुझे...वापस तो मैं भी नहीं जाने वाली.' उसने सोचा था और नहा कर बाथरूम से बाहर निकली. जयसिंह रोज की तरह सामने काउच पर ही बैठे थे. टी.वी चल रहा था.
मनिका को जैसे काटो तो खून नहीं, उसका दिल, दीमाग और तन तीनों चक्कर खा गए थे.
जयसिंह ने अपने किट से तेल की शीशी निकाली थी और बेड पर आ बैठे थे. फिर उन्होंने अपनी पेंट और अंडरवियर निकाल दिए व हाथों में तेल लेकर अपने काले लंड पर लगाने लगे, लंड तो पहले से ही खड़ा था, अब तेल की मालिश से चमकने लगा था. उस सुबह नहाते वक़्त जयसिंह ने अपने अंतरंग भाग पर से बाल भी साफ़ कर लिए थे, सो उनके लंड के नीचे उनके अंडकोष भी साफ नज़र आ रहे थे. कुछ देर अपने लंड को इसी तरह तेल पिलाने के बाद जयसिंह ने उठ कर अलमारी में रखे एक्स्ट्रा तौलियों में से एक निकाल कर लपेट लिया और अपनी उतारी हुई पेंट और चड्डी को सूटकेस में रख दिया. तेल की शीशी को भी यथास्थान रखने के बाद वे काउच पर जा जमे और मनिका के बाहर आने का इंतज़ार करने लगे थे.
मनिका जब नहा कर बाहर आई तो अपने पिता को काउच पर बैठ टी.वी देखते पाया. वे ऊपर तो शर्ट ही पहने हुए थे लेकिन नीचे उन्होंने एक टॉवल लपेट रखा था और पैर पर पैर रख कर बैठे थे. टॉवल बीच से ऊपर उठा हुआ था और उनकी टांगों के बीच उनका 'डिक!' नज़र आ रहा था. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा.
मनिका ने अपनी सहेलियों के साथ गुपचुप खिखीयाते हुए एक दो पोर्न फ़िल्में देखीं हुई थी लेकिन असली लंड से उसका सामना पहली बार हुआ था और वह भी उसके पिता का था. जयसिंह के भीषण काले लंड को देख उसका बदन शरम और घबराहट से तपने लगा था.
'बस अभी नहाता हूँ...' जयसिंह ने मनिका की तरफ एक नज़र देख कर कहा. उनका हाल भी मनिका से कोई बेहतर नहीं था, दिल की धड़कने रेलगाड़ी सी दौड़ रहीं थी. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी इछाश्क्ति से अपने चेहरे के भाव नॉर्मल बनाए रखे थे. मनिका के चेहरे का उड़ा रंग देख उन्होंने झूठी आशंका व्यक्त की, 'क्या हुआ मनिका?'
'क..क...कुछ...कुछ नहीं...पापा..' मनिका ने हकलाते हुए कहा और पलट कर बेड की तरफ चल दी.
जयसिंह उसे जाते हुए देखते रहे, उसकी पीठ उनकी तरफ थी और उसने अपना सूटकेस खोल रखा था, जयसिंह ने अपनी नज़रें टी.वी पर गड़ा लीं, उसी वक्त मनिका ने एक बार फिर उन्हें पलट कर देखा. जयसिंह अपनी बेटी के सामने अपने आप को यूँ एक्सपोस (दिखाना) करने के बाद थोड़े और बोल्ड हो गए थे, हालाँकि डर उन्हें भी लग रहा था कि कहीं कुछ उल्टा रिएक्शन ना हो जाए उसकी तरफ से,
'मनिका!?' उन्होंने पुकारा.
'ज..जी पापा?' मनिका ने थोड़ा सा मुहँ पीछे कर के पूछा. उसकी आवाज़ भर्रा रही थी.
'ये मेरा फ़ोन चार्ज में लगा दो जरा...' जयसिंह ने अपना फ़ोन हाथ में ले उसकी तरफ बढ़ाया.
'जी..हाँ अभी...अभी लगाती हूँ..पापा..' मनिका ने उनकी तरफ देखा और एक बार फिर से सिहर उठी.
थोड़ी हिम्मत कर मनिका पलटी और बिना जयसिंह की टांगों के बीच नज़र ले जाए उनके पास आने लगी, जयसिंह को हाथ में फ़ोन उठाए कुछ पल बीत चुके थे, जैसे ही उन्हें मनिका पास आती दिखी उन्होंने फ़ोन अपने आगे रखे एक छोटे टेबल पर रख दिया था. मनिका की नज़र भी उनके नीचे जाते हाथ के साथ नीची हो गईं, वह जयसिंह से चार फुट की दूरी पर खड़ी थी और उसने झुक कर फ़ोन उठाया, ना चाहते हुए भी उसकी नज़र एक बार फिर से जयसिंह के चमकते लंड और आंडों पर जा टिकी. जयसिंह भी उत्तेजित तो थे ही, मनिका की नज़र कहाँ है इसका आभास उन्हें कनखियों से हो गया था. उन्होंने अपने उत्तेजित हुए लंड की माश्पेशियाँ कसते हुए उसे एक हुलारा दिला दिया, मनिका झट से उछल कर सीधी हुई और लघभग भागती हुई बेड के पास जा कर उनका फ़ोन चार्जर में लगाने की कोशिश करने लगी, उसके हाथ कांप रहे थे.
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