Tuesday, March 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--153

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--153

 भोजन , रंजी का










" आज सेमीफायनल है , जोरदार मुकाबला होगा मेरी छुटकी ननदिया से। "

वो कमरे से बाहर निकल रही थी।

" सेमीफायनल आज तो , मेरा मतलब,… फायनल किससे। "

वो दरवाजे पे खड़ी हो गयी और मुस्करा के आँख मार के बोली ,

" अरे फाइनल और किससे , मम्मी की समधन और मेरी सास से , लेकिन अभी चलो। "

मैं उसके पीछे पीछे बाहर चला आया जहाँ टेबल पे रंजी खाना सेट कर रही थी।


टेबल पर एक ओर दो चेयर्स लगी थी और एक ओर एक।

जिधर दो लगी थीं मैं वहीँ बैठ गया और जब तक रंजी कुछ समझे , गुड्डी सामने वाली सीट पर बैठ गयी।

दोनों के बीच में कुछ देर तक झिक झिक होती रही कौन मेरे पास बैठेगा , गुड्डी रंजी को उकसा रही थी की वो बैठे और रंजी , गुड्डी को बोल रही थी तू बैठ।

लेकिन गुड्डी ने फुसफुसा कर कुछ कहा , जो मुझे साफ साफ सुनाई दिया ,

" हे अभी थोड़ी देर में उछल उछल कर इसी के लंड पे बैठेगी और बगल में बैंठने शरमा रही है "

और बिचारी रंजी हार कर मेरे बगल में बैठ गयी।

और गुड्डी फिर चालु हो गयी।

" बहोत मस्त जोड़ी लग रही है , अच्छा चल पहले अपने भैया को स्वीट डिश तो खिला "

" अरे स्वीट डिश तो खाने के बाद मिलती है " मैंने बोला
"अरे है न सामने ये छमक छल्लो तेरे मायके वाली ,न सतरह से ज्यादा न सोलह से कम। ये मिलेगी न खाने के बाद , रात भर खाना , लेकिन अभी जो दे रही है वो तो ले ले। " गुड्डी इतनी आसानी से पीछा छोड़ने वाली नहीं थी

रंजी थोड़ा शरमा , थोड़ी झिझक रही थी। नीचे पलके किये मुस्करा रही थी।

एकदम मुझसे चिपक कर बैठी थी।

मैंने पहले तो उसके कंधे पे हाथ रखा , फिर थोड़ा खींच कर और अपने पास भींच लिया।

वोऔर सिकुड़ गयी और अब एकदम मुझसे चिपकी थी।

" हे दे न अपने भैय्या को , स्वीट डिश , तुझे इन्तजार कराने की आदत पड़ गयी है , गुड्डी ने बोला।

रंजी ने बाउल उठाया और खोला। खूब बड़े बड़े ८-१० गुलाब जामुन होंगे।

और जब मैंने हाथ बढ़ाया तो फिर गुड्डी ने टोक दिया।

" हे इत्ती सेक्सी मस्त माल , बहन के रहते भैया को अपना हाथ इस्तेमाल करना पड़े कितने शर्म की बात है। अभी तो जोर जोर से गा रही थी और देने का समय आया तो सिकुड़ी जा रही है। "

और रंजी ने मुस्कराते हुए एक बड़ा सा गुलाब जामुन उठाया लेकिन अब उसे तंग करने की बारी मेरी थी।

' हे हाथ नहीं '

लेकिन रंजी कौन कम थी , आँख नचाते , मुस्करा के उसने गुलाब जामुन अपने गुलाबी होंठों के बीच पकड़ा और सीधे मेरे होंठों पे।

गपाक से मैंने मुंह खोल दिया , पहले गुलाब जामुन गपका और फिर रंजी के होंठ , क्या रस था क्या मिठास , गुलाब जामुन से कहीं ज्यादा।

लेकिन गुलाब जामुन में भी कुछ गड़बड़ था और मैं समझ गया। गुड्डी ने नत्था हलवाई के यहाँ से बनारस में जोस्पेशल गुलाब जामुन लिए थे ,डबल डोज भांग वाले ये उसी कैटगरी का था। और नशे का सुरुर शुरू हो गया था।

"हे भैया बहन की चुम्मा चाटी खत्म हो गयी हो आगे बढ़ें। "

लेकिन गुड्डी की बात हर बार मानना जरुरी नहीं था।
मैने भी रंजी को अपने होंठो में फंसा कर एक गुलाब जामुन खिला दिया और साथ में मेरी जीभ उसके मीठे मुंह में घुस गयी और वो जैसे लंड चूसे , वैसे मेरी जीभ चूस रही थी। क्या मस्त चूसती थी।

थोड़ी देर में मैंने रंजी और गुड्डी ने , दो दो गुलाब जामुन भांग के गड़प कर लिए और इसका नतीजा सामने था।
और सबसे ज्यादा असर गुड्डी पे था , वो मुझे और रंजी को बहुत छेड़ रही थी।

मैंने भी रंजी से बोल दिया हे तू गाना बहुत अच्छा गाती है , सैयां वाला हनी सिंह का।

रंजी झेंप गयी , एक दम गुलाब हो गयी।

लेकिन गुड्डी को मौका मिल गया , चढ़ने का।

" हे झूठे , सैयां नहीं भैय्या बोल रही थी और गाने का नाम चूत है। तेरी ये छुटकी बहना गाना नहीं गा रही थी अपनी दिल की बात कह रही थी। भईया चोदोगे तो खाना खिला दूंगी , अब खाना खिला रही है , तो ,.... "

गुड्डी की बात काट के मैंने काउंटर अटैक किया ,बिचारी रंजी झेंप रही थी।

" अरे यार जिसे आएगा वही न गायेगा , बाकी तो खाली चिढ़ाएगा। "

बस रंजी को मेरा साथ मिल गया और वो भी चढ़ गयी गुड्डी के ऊपर।

" भैया , आप एकदम सही कह रहे हैं। गुड्डी अगर तुझे आता है तो सूना दे न। "

अब गुड्डी फँस गयी ।

' सुना दूँ " मुझसे वो मुस्करा के बोली।

उसकी गालियां मैं खाने पर सुन चूका था। अपनी मम्मी , मेरा मतलब मम्मी की आलमोस्ट टक्कर की , और एक बार चालू हो जाती तो रंजी क्या मेरी किसी भी मायकेवाली को नहीं छोड़ती।

मैंने कंडीशन और टफ की ,

"रंजी ने हनी सिंह का गाना गाया था वो भी 'स्पेशल' वाला। तुझे भी हनी सिंह का वैसा ही सुनाना पडेगा। नहीं आता तो कोई बात नहीं "

गुड्डी ने जवाब मुझे ही दिया ,

" सूना दूँ तो , और हे अपनी सो काल्ड बहना कम रखैल ज्यादा के भैय्या , तुझे ही सुनाऊँगी , लेकिन शर्त ये ही की तुम सबको मेरे साथ गाना होगा। "

रंजी चहक कर बोल उठी , " अरे साल्ली कहानी मत सुना , गाना सुना। मेरे भैय्या डरने वाले नहीं है। फट रही हो तेरी तो बात अलग है। दे देंगे हम सब साथ चल चालु हो जा। "

और गुड्डी वास्तव में चालू हो गयी।

और साथ में हम लोग चम्मच ,प्लेट ,ग्लास पे ताल दे के। 



खाना और,… गाना


और गुड्डी वास्तव में चालू हो गयी।

और साथ में हम लोग चम्मच ,प्लेट ,ग्लास पे ताल दे के।


काल से पहले वही था , काल के बाद वही।

गुड्डी बहुत सुर में गा रही थी।

मैं तो समझ गया था गाना कौन सा है , और जब मैंने कनखियों से रंजी की ओर देखा तो जिस तरह से वो ब्लश कर रही थी साफ था की उसे भी मालुम था की गाना कौन सा है .


और गुड्डी अगली लाइन में ही मुद्दे पे आगयी और उसने वॉल्यूम भी बढ़ा दिया।

गांड में डंडा दे अरे गांड में डंडा दे।

ना बांस की बंसी , न सोने की सरिया ,

गांड में डंडा दे अरे गांड में डंडा दे ,

अरे तेरी गांड में डंडा दे अरे गांड में डंडा दे।

ना बांस की बंसी , न सोने की सरिया ,
अरे तेरी गांड में डंडा दे.


गाना अब पूरे जोर में चल रहा था और बीच बीच में गुड्डी रंजी को छेड़ भी रही थी।

लेकिन रंजी भी पूरे मूड में थी। वो बोली " अरे गांडू होंगे तेरे भैया , मेरे भैय्या एकदम वैसे नहीं है। " और मुझसे चिपट गयी।

गुड्डी ने बस एक प्वाइंट माना , और कहा

" सुन यार माना अभी नहीं है लेकिन हो जाएंगे , फटने में कितनी देर लगती है। मम्मी जो अपनी समधन का जुगाड़ करवा रही हैं तो इनकी भी नथ उतरवा देंगी। बस एक बार मेरे गाँव पहुंचने तो दो।

और फिर गुड्डी ने तोप मेरी ओर मोड़ दी।

" अरे यार घबडा क्यों रहे हो , इस रंजी से सीखो न। दोनों ओर का मजा लेगी न पूछ इससे। और बनारस में तो एक साथ दोनों ओर से , बल्कि तीनो छेद भरे रहेंगे। तो फिर तो तू भी मजा ले लेना पिछवाड़े का , और वैसे भी तुझसे पूछेगा कौन जब मम्मी का फैसला है।


डालने का मजा लोगे तो ज़रा कभी कभी ससुराल में डलवाने का भी मजा ले लेना। दो चार बार मरवाने से कोई गांडू थोड़े ही हो जाता है। "

मैं चुप ही रहा।

बचाव रंजी ने किया , बात बदल के।

" भैया हम दोनों ने सूना दिया अब तेरा नंबर है सुनाने का। "

मैंने भी सांस ली गहरी और रंजी की ओर देख के चालु हो गया
और उस समय तक हम सब नशे में थे।

और मेरी आँखे रंजी के मस्त जोबन पे टिकी थीं टेनिस बाल्स से थोड़े बड़े खूब कड़े कड़े। पतली सी शर्ट से उभार कटाव , सब दिखता था। यहाँ तक की मटर के के दाने के बराबर कड़े कड़े निपल्स भी साफ दिख रहे थे।

बस मन कर रहा था की रंजी की चूंची दबोच लूँ , मसल दूँ , रगड़ दूँ।

" गाओ न " जिस अदा से रंजी बोली अब मैं सिर्फ उसे देख कर गा रहां था।

" आजा तेरी चूत मारूं ,

तेरे सर से चुदने का भूत उतारूँ।

कर दूँ तेरी फुद्दी खराब ,

कोई मुझ सा नहीं ,

मेरी बुद्धी ख़राब।


" आजा तेरी चूत मारूं ,

तेरे सर से चुदने का भूत उतारूँ। "


गा मैं रहा था। सिसक रंजी रही थी। मस्ती से उसकी हालत ख़राब हो रही थी।

सिस्कियों के बीच , रंजी की हलकी हलकी आवाजें आ रही थी। ,

मारो न भैया ,मार लो तेरे लिए ही तो बचा के रखी थी।


और अब मैं अपना लंड उचका रहा था जैसे रंजी को चोद ही रहा होऊं।

गोरा बदन तेरी पतली कमर

सोलह सत्रह साल की तेरी उमर

रहती टिप टॉप सुनती हिप हॉप

चुसाउ तुझे मैं मोटा लॉलीपॉप।


चोदा होगा तुझ को हजारों ने

महंगे महंगे कमरो में ,

लम्बी लम्बी कारों में



मेरा गाना रोक कर रंजी बोली ,

नहीं ऐसा नहीं है मेरी एकदम कोरी है अब तक किसी ने नहीं ,

लेकिन उसकी बात गुड्डी ने काट दी।

अरे अब तक नहीं चुदी तो अब चुदेगी न। एक बार आज नथ उतर जाने दे फिर , परसों तो बनारस चलना है। १५ की बुकिंग तो अब तक हो चुकी है। फिर एक रात सोनल के कोठे पे दालमंडी में ,कम से कम दस उतारेगी वो एक रात में। और यहाँ लौट के अपने यारों को बांटना। देखना शलवार का नाड़ा बाँध नहीं पाओगी की खोलने टाइम आ जाएगा। 


 लेकिन स्वीट डिश थी , पता नहीं रंजी ने पहचाना की नहीं , लेकिन मैं पहचान गया।

बखीर , गन्ने के ताजे रस में , चावल की देर तक पकाई गयी ख़ास खीर।

जो गौने की रात , नयकी भौजी को उसकी शरारती ननदें , अनुभवी जेठानियां , पीछे पड़ पड़ कर खिलाती हैं।

और उसकी तासीर इतनी गरम होती है की नयी दुल्हन ऊपर से नीचे तक गरम होके बराबर का साथ देती है , सुहागरात में।

और आज गुड्डी वो काम कर रही थी रंजी के साथ , पहले तो उसने खिलाया , फिर गुड्डी ने मुझसे बोला और अपने हाथ से गाढ़ी गाढ़ी बखीर मैंने रंजी को खिलाई। ( नो चम्मच )

हाँ गुड्डी तो गुड्डी , उसने खिलाते खिलाते रंजी के गोरे गालों पे भी बखीर लगा दी और साफ करवाया मुझसे , चटवा चटवा कर।



बरतन तो दोनों ने मिल के हटाया लेकिन जब रंजी वापस आई तो झटके से गुड्डी ने उसकी कुर्सी हटा दी और उसको मैंने गिरने से बचाया ,तो वो सीधे मेरे गोद में बल्कि खड़े खूंटे पे।

और मेरे दोनों हाथ उसके उभारों के नीचे।


गुड्डी फिर थोड़ी देर में प्रकट हुयी , दो खूब लम्बे , गाढ़े दूध से लबरेज ग्लास लिए हुए और उसके ऊपर कम से कम ढाई इंच गाढ़ी मलाई और ढेर सारी महकती हुई हर्बस उपर ,…



अचानक मुझे याद अाया ,

यस्स्स यही ग्लास था जो चंदा भाभी ने मुझे पिलाया था , जिस रात उन्होंने मेरी नथ उतारी थी।

सीधा असर ये हुआ था की मेरी सारी झिझक गायब हो गयी। बल्कि मस्ती से मैं चूर था और खूंटा टनाटन्न था वो अलग ,



पहले डांट मुझे पड़ी , हाथ तो सही जगह रखो और मेरा हाथ पकड़ के सीधे रंजी के उभार पे।

और फिर रंजी के हाथ में दूध का ग्लास पकड़ाया ,

"मैं जरा पांच मिनट के लिए ऊपर जा रही हूँ और मेरे आने के पहले दोनों ग्लास खत्म हो जाने चाहिए। तुम दोनों के लिए है। "


पांच के बदले वो दस मिनट में आई और ग्लास सिर्फ एक ही खत्म हुआ।

और अबकी रंजी और मैंने मिलके उसे पिलाया।

फिर भी एक ग्लास वो हर्ब मिक्स्ड दूध मेरे पेट में गया और बाकी रंजी , गुड्डी के पेट में



गुड्डी रंजी को को ले के ऊपर चली गयी और मुझे पहले तो रोक दिया फिर इशारे से बोली , दस मिनट बाद.
और जाते जाते रंजी ने ऐसे मस्ती से अपने गोल गोल चूतड़ मटकाए , बस बेहोश नहीं हुआ मैं।


वो दस मिनट कैसे गुजरे बस मैं ही जानता हूँ।

अपडेट के लिए वेट करते पाठक /पाठिकाओं से भी ज्यादा बुरी हालत थी मेरी।


दस मिनट बीते और मैं एकदम दबे पाँव , खामोशी से ऊपर कमरे की ओर चल दिया।






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