Tuesday, March 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--152

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--152


 थोड़ी देर में गुड्डी आई।
और मुझे खड़ी होकर चुपचाप अपनी गोल गोल आँखे नचाकर देखती रही , मुस्कराती रही।

"खोलो न " मैंने गुहार लगायी।

" खुला तो है और खोल दूँ "

दुष्ट गुड्डी ने शार्ट के बाहर निकले तन्नाये जंगबहादुर की ओर इशारे करते हुए कहा और शार्ट थोड़ा और नीचे सरका दिया।

" बस , चलूँ , नीचे तेरा माल इन्तजार कर रहा होगा। " और ये कह के वो शोख फिर कमरे के बाहर की ओर मुड़ ली।

कसे शार्ट में कसमस करते चूतड़ को देख के मैं चिल्लाया , " यार प्लीज हाथ पैर खोल दो ,वरना तेरी गांड मार लूंगा। "

वो रुक गयी और मुड़ के मेरी ओर कुछ देर टुकटुक देखती रही , फिर बोली

" वो तो आज तुझसे तेरी बहन की मरवाउंगी , बहुत गांड मटका मटका के पूरे शहर में आग लगा रखी है। "


बात गुड्डी की सोलहो आना सही थी , टाइट जींस में जब चूतड़ मटका के चलती थी तो बस , और मुझे देख के कुछ ज्यादा ही मटकाती थी।


" प्लीज हाथ ,पैर खोल दो न " मैंने हाथ पैर जोड़ के गुड्डी से विनती की।

लेकिन बनारस की वो इतने आसानी से नहीं मानने वाली थी।

" ऐसी थोड़े पहले हाँ बोल , " मुस्करा के वो बोल दी।

" हाँ , हाँ , हाँ " मैं उस समय कुछ भी मान सकता था।

गुड्डी ने झुक के पहले एक पैर से ब्रा खोली फिर दूसरे पैर को खोलने के पहले वो रुक गयी और हंस के बोली ,

" तुझे लेनी है न अपनी इस प्यारी बहना की , बोल "

" हाँ एकदम , आज किसी भी हालत में और तूने तो बोला था आज मन्त्र का भी मुहूर्त है " मैं एकदम बेसबरा था।

बिना पैर खोले वो बोली ,मेरे पास एक ऑफर है ,बोलो मंजूर है की नहीं।

गुड्डी हो या मम्मी , दोनों में से किसी की भी बात मना करने की मैं सोच भी नहीं सकता था।

एकदम तुरंत मैं बोला और फिर विनती की हे प्लीज हाथ भी तो खोलो न।

लेकिन गुड्डी कहाँ आसानी से मेरी बात सुनने वाली थी , बिना अपनी सुनाये।

और डांट पड़ी सो अलग।

" ये तेरी बीच में बोलने वाली आदत सुधरेगी नहीं , पहले चुपचाप सुन तो मेरा ऑफर और नहीं मंजूर हो तो दूसरा ऑफर भी है ,"

मैं चुपचाप सुनता रहा।

" सुन अब तुम अच्छे बच्चे की तरह हो तो तेरे लिए स्पेशल ऑफर है , एक के साथ एक फ्री। बोल मंजूर वरना , दूसरा ऑफर है , बालकनी सीट का। तुझे ऐसे बंधा छोड़ देती हूँ। रात भर बालकनी सीट पे , मेरी और रंजी की कुश्ती देखना। हाथ पैर बंधे बंधे। "

" नहीं नहीं पहला ऑफर , अरे एक के साथ एक फ्री कौन छोड़ेगा , यार आज रंजी की प्लीज प्लीज दिलवा दे न। " मैं चिल्लाया।

और गुड्डी ने रहमदिली दिखाई मेरा पैर खोल दिया और अपनी ब्रा , जिससे रंजी ने मेरे पैर बांधे थे , उसे मेरे चेहरे पे सहलाते हुए लहरा दिया और मेरे खड़े खूंटे पे टांग दिया।

" तो मंजूर है न फ्री वाला ऑफर , लेकिन ये समझ लो , बिना फ्री के रंजी भी नहीं मिलेगी। " शरारत से गुड्डी ने मेरे बेताब लंड को जोर से भींचते बोला।


" एकदम मंजूर है " बेसबरा मैं बोला।
गुड्डी अब मेरे पीछे थी।

मेरे हाथ रंजी की मुलायम ३२ सी साइज की गुलाबी ब्रा से बंधे थे।

गुड्डी ने अपने टॉप उठा दिए थे और अब सीधे उसके कड़े कड़े जोबन मेरी पीठ पे रगड़ खा रहे थे।


लेकिन अभी भी उसने हाथ नहीं खोला और मेरे इयर लोब्स को उसने पहले चूम लिया , जीभ की टिप से कान में सुरसुरी की और फुसफुसा के बोली ,

" सुन मालूम है फ्री वाला ऑफर क्या है , रंजी के साथ। "

फिर जोर से अपने लम्बे नाखून से मेरे निप्स को स्क्रैच कर के बोली , " एक कसी कच्ची चूत के साथ एक रस से भरा भोसड़ा , बोल है न मंजूर "

मेरे आँख के सामने आज सुबह मंजू के भोंसड़े का रस घूूम गया और शीला भाभी की बात असली रस तो भोसड़े में हैं।


" एकदम मंजूर " मैं बोला।

गुड्डी का दूसरा हाथ मेरे खूंटे को जोर जोर से मुठिया रहा था।

गुड्डी ने कचकचा के मेरे गाल जोर से काटे और बोली ," जानते हो कौन है वो भोसंडे वाली , मम्मी की सगी समधन , मेरी सगी सास और तेरी ,… "

मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो उसने चुप करा दिया और मेरे हाथ खोलते बोली ,

" मालूम मालूम है तेरा बहुत मन कर रहां है , लेकिन वो काम मम्मी का है , पहले आज तेरी बहन। ज्यादा इन्तजार नहीं करना होगा और तुझे कुछ ख़ास काम भी नही करना होगा सेटिंग मम्मी करा देंगी अपनी समधन की , और उसके बाद , …आज बहनचोद और कर्टसी मम्मी , जल्द ही मादर… ,"

गुड्डी ने रंजी की खुली ब्रा मेरे मुंह में ठूंस दी और मेरी शर्ट लेके नीचे , सीढ़ी से धड़धड़ नीचे।

अरे मेरी शर्ट तो दे दे , मैंने गुहार लगाई।

"गनीमत मनाओ की मैंने शार्ट छोड़ दी। तुम टॉपलेस बहुत अच्छे लगते हो। और शर्मा किससे रहे हो मुझसे की रंजी से , हम दोनों ने तो तुम्हारा सब कुछ देख रखा है "

सीढ़ी पे खड़ी वो खिसखिस हंस रही थी और मेरा इंतजार कर रही थी।

हम दोनों साथ साथ नीचे उतरे।

रंजी की कुछ गुनगुनाने की आवाज किचेन से आ रही थी और कुछ पकने की खुशबु।

" तू अपने कमरे में चल , मैं अभी आती हूँ। " गुड्डी ने धक्का देके मुझे मेरे कमरे में कर दिया और खुद रंजी के पास किचेन में चली गयी।

मैं बिचारा कमरे में अकेले , पलंग पर लेटा सामने घड़ी देख रहा था।


कितने धीमे धीमे चल रही थी।

सात चालीस हो रहा था। कितने समय बाद एक मिनट गुजरा , फिर दो मिनट।

घंटे भर लग गए होंगे पांच मिनट गुजरने में।


मैंने आँख बंद कर ली। गहरी सांस ली। पता नहीं कितना अरसा गुजरा और आँखे खोली , सात सैतालिस।

और फिर घडी रुक गयी।


कमरे में गुड्डी आ गयी थी।

" क्यों बहना के भैया सबर नहीं हो रहा है , मिलेगी , जल्द ही मिलेगी। " हँसते हुए वो बोली और बिना मेरे पास आये अलमारी के पास जाके उसने वो डिब्बा निकाला जो चंदा भाभी ने दिया था। एकदम देशी बनारसी माल।

शिलाजीत ,शतावरी श्वेत मूसली , अश्वगंधा , अर्जुन की छाल , मधु , स्वर्ण भस्म और न जाने क्या क्या मिला कर पाक कर देसी घी में बनाया हुआ लड्डू था। साथ में मकरध्वज स्वर्ण , वृष्यावटी और भी बहुत सी चीजें।

चंदा भाभी का कहना था की आधा लड्डू रोज और ,सिर्फ एक लड्डू तो बकरे को सांड बना देता है और वो भी बनारस का।


वियाग्रा से ७ गुना ज्यादा जोशीला। सिर्फ खड़ा ही नहीं करता है बल्कि अत्यंत काममोत्तेजक भी है। इसका पूरा असर होने में घंटे भर का समय लगता है , लेकिन उसके बाद बारह घंटे तक एकदम टन्नाटन्न।

गुड्डी पूरा डिब्बा लेकर ही मेरे बगल में बैठ गयी. और बोली , " खोल पूरा , अभी तू खोल बाद में तेरी बहन सारी रात खोलेगी। और बड़ा , और बड़ा , हाँ एकदम " और झट्ट से चन्दा भाभी का स्पेशल लड्डू पूरा मेरे मुंह में।

" हे एक बार में पूरा " लड्डू पूरा मुंह में होने के बावजूद किसी तरह मैंने बोलने की कोशिश की।

हँसते हुए उसने मेरी नाक पकड़ के जोर दबा दी।

कहते हैं लड़कियां अपनी भावनाए कई ढंग से व्यक्त करती है।

और गुड्डी भी एक लड़की थी। और बाकियों से एक दरजा आगे।



"बुद्धू , चुबुद्धु , इसलिए की तुम भी उस कच्ची कली , मेरी छुटकी ननदिया , अपनी प्यारी बहिनिया की कसी कुँवारी चूत में एक बार पे पूरा खूंटा पेल दो। जितना जोर से फटेगी , जितना चीखेगी चिल्लाएगी , टसुए बहाएगी , उतना ही मजा आएगा। और एक बात और. मै कई बार उस साल्ली की चूत में दो दिन से उंगली करने कोशिश कर चुकी हूँ , लेकिन छोटी ऊँगली का एक पोर भी बहुत मुश्किल से घुसता है , टाइट माल तो है , झिल्ली भी बहुत सख्त है , और मोटी भी। बहुत मेहनत लगेगी तुम्हे और खून खच्चर भी होगा बहुत। .लेकिन यार सबकी फटती है , और पहली बार खून खच्चर तो होगा ही , हाँ इस रंजी के लगता है थोड़ा ज्यादा होगा। पर हैं न मेरे जंगबहादुर , मेरी ननद की फाड़ने के लिए। "


जंगबहादुर को प्यार से मुठियाते , उकसाते जोश चढ़ाते , गुड्डी बोली।


और तबतक मैं लड्डू पूरा घोंट चूका था।


लेकिन मेरे होंठ खुल नहीं पाये। गुड्डी के होंठों ने मेरे होंठों को सील कर दिया , और मेरे मुंह में बचा खुचा लड्डू भी उसने जीभ से अंदर ठेल दिया।

साथ में एक हाथ हौले हौले मेरे खड़े पगलाए लंड को सहला रहा था , समझा रहा था , और दूसरे हाथ के लम्बे नाखूनों से मेरे सीने पे वो हलके हलके स्क्रैच कर रही थी।


और मैं एकदम रिलॅक्स हो गया था।

यह कहना गलत होगा की मैंने अपने को गुड्डी के हाथों में छोड़ चुका था। वो तो बहुत पहले ही मैं कर चुका था साथ में आज कल के जरुरी सामानों के साथ , कार्ड , पिन , सारे पासवर्ड , पर्स के साथ।


और गुड्डी ने रिलॅक्स होने का फायदा उठाया।

एक हाथ से मेरा गाल दबाया और जैसे ही मैंने चिड़िया की तरह मुंह खोला , एक और लड्डू मेरे खुले मुंह में।

और अबकी सील किया उसे गुड्डी के टॉप फाड़ते उरोज ने।

" चुपचाप जल्दी से खत्म करो। " हुकम मिला।

मेरे पासकोई चारा था क्या।

मुंह भरा था , और लिप के ऊपर गुड्डी के टेनिस बाल से कड़े कड़े ,गोल पथरीले उरोज और मटर के दाने के बराबर खड़े निपल।


बिचारे होंठ की क्या बिसात जो खुलते।

किचेन से बीच बीच में रंजी की हलकी हलकी कुछ गुनगुनाने की , कलछी चलाने की आवाज आ रही थी।

मेरे होंठ भले ही बंद हों , गुड्डी के खुले थे और उसने अबकी मेरे पलकों को चूम लिया और आँखों के झरोखों को बंद कर दिया।


लोरी सुनाने का ये उसका अपना तरीका था।

मेरे मन की तरह , मेरे तन के हर अंग मैं उसे हार चुका था।

अब मजाल मेरी पलकों की जो वो खुलें , जब तक उनकी मालकिन खुद उन्हें चूम कर न उठाये।

" हे तुमने बुरा तो नहीं माना जो मैंने रंजी के साथ फ्री वाला ऑफर दिया था "

वो मेरे बगल में लेटी थी और उसकी जीभ मेरे कान के अंदर छेड़ रही थीं।

फुसफुसाते हुए वो बोली।

होंठो पर अब उरोजों का पहरा नहीं था , और लड्डू भी आधा खत्म हो गया था। इसलिए किसी तरह मैंने बोला ,

" ससुराल वालियों की मजाक का क्या बुरा मानना। "

और तुरंत जवाब मिलगया , पहले गुड्डी की उँगलियों से फिर गुड्डी के होंठों से।

जोर से उसने जंगबहादुर को भींच दिया , बल्कि निचोड़ दिया।

और खिलखलाते हुए बोली , " बुद्धू लोग बुद्धू ही रहते हैं। वो कतई मजाक नहीं था , एकदम सीरियस। अब तो तुम्हे लेना ही पडेगा , भोसड़े का मजा। और वैसे भी वो मम्मी का एरिया है और तुम उन्हें जानते ही हो वो उधार बाकी नहीं रखती। फिर मैंने मोबाइल पर तुम्हारी तीन बार की हाँ रिकार्ड भी कर ली। लेकिन तू काहें चिंता करता है , मम्मी है न दिलवाएगी तुझे। "

लड्ड़ु तो खतम हो गया था लेकिन गुड्डी का संवाद फिर चालु हो गया।


" अरे दूसरा लड्डू इसलिए खिला दिया की कहीं मेरा नाम न डुबोओ। अब तुम इस शहर के नहीं बनारस के दामाद हो। और उसकी गांड भी फाड़नी है आज रात को और वो चूत से भी कसी है। इसलिए और ये मत कहना की मंतर जगाना भी भूल गए। "

" याद है " मैं बोला। वो कोई भूलने वाली चीज थी। मैं कितने दिनों से उस मौके का इन्तजार कर रहा था। तीन बार ,एक बार आगे ,एक बार पीछे और एक बार मुंह में।

" अच्छा अब सो जाओ। आधे घंटे आराम कर लो, रतजगा होगा ही। फुल नाइट कबड्डी। "


गुड्डी की उंगलिया जिस तरह मेरे तन को जगाने में , उन्चासो पवन चलाने में सिद्धस्त थीं , उसी तरह मुझे सुलाने में। जैसे मेरा सारा तनाव , थकावट सब कुछ मेरी देह से उसकी उँगलियों में ट्रांसफर हो जाता था।

और यही हुआ। मेर्री देह शिथिल होने लगी तब भी मैंने मुस्कराकर , जंगबहादुर की ओर इशारा करके पूछा ,

" और इसका क्या होगा। "

"इसको सुलाने जगाने वाली किचेन में हैं। " गुड्डी मुस्कराकर बोली।

पांच मिनट में मैं गहरी नींद में था।

यह भी नहीं पता चला की कब गुड्डी गयी , कब उसने दरवाजा उठँगाया।


आधे घंटे के लिए गुड्डी ने मेरी देह का अलार्म का सेट किया था और ठीक आधे घंटे बाद नींद खुली।

साढ़े आठ बजने वाले थे।


पता नहीं रंजी की जोर जोर से गाने की आवाज , गुड्डी से उसकी छेड़छाड़ , ( मैं आँखे बंद कर के कान पारे सुन रहा था ) या फिर गुड्डी के फिर से कमरे में आने की आहट , लेकिन पलकें तभी अलग हुयी जब उन्हें गुड्डी के होंठों का स्वाद मिला।

मैं आँखे बंद किये था , रंजी के गाने की की हल्की हलकी आवाज आ रही थी , फिर गुड्डी की छेड़ने की आवाज और 'वॉल्यूम ' एकदम से बढ़ गया ,

रंजी की आवाज बहुत मीठी और सेक्सी थी और इस समय तो वो एकदम आग लगा रही थी।

सैयां ,.... सैयां याां , सैयां अरे सैयां चोदोगे , अरे सैयां चोदोगे तो ,अरे सैयां चोदोगे तो ,



मैं कान खोले सुन रहा था की गुड्डी ने टोक दिया ,

" अरी , कमीनी सैयां नहीं भैया , भैया बोल। "


और रंजी ने तुरंत करेकशन किया लेकिन पहले से भी तेज और हस्की आवाज में

" भैय्या , अरे भैय्या ,भैय्या चोदोगे अरे भैय्या चोदोगे तो रोटी बना दूंगी।
अरे भैय्या ,भैय्या चोदोगे अरे भैय्या चोदोगे तो रोटी बना दूंगी।

वरना आंटन में , वरना आंटन में झांटन मिलाय दूंगी।

अरे भैय्या ,भैय्या चोदोगे अरे भैय्या चोदोगे तो रोटी बना दूंगी।





" साल्ली , खाली पीली झूठ बोलती है। "गुड्डी ने हड़काया।

"अभी चेक किया है , एक भी झांटे नहीं है सब साफ है। "

रंजी , खिलखिलाई और गाना फिर से चालू कर दिया

अरे भैय्या ,भैय्या चोदोगे अरे भैय्या चोदोगे तो रोटी बना दूंगी।

वरना आंटन में , वरना आंटन में झांटन मिलाय दूंगी।

अरे भैय्या ,भैय्या चोदोगे अरे भैय्या चोदोगे तो रोटी बना दूंगी।

मेरी चूत है बर्फखाना ,…


हनी सिंह का ये गाना कितनी बार सुन चूका था , गा भी चूका था लेकिन आज रंजी के मुंह से सुन के एकदम ,


और तबतक दरवाजा खुला और गुड्डी आ गयी।

" हे उठ जा देख बिचारी कैसे गुहार कर रही है। कर दो उस का कल्याण। "

गुड्डी के होंठ मेरी पलकों से लगे और आँखे टूक टूक खुल गयीं।

और उस के हाथ जंगबहादुर से लगे और वो फिर सीधे ९० डिग्री की हालत में हो गए।

फूल अटेंशन।

रंजी की आवाज अब और साफ साफ आ रही थी।

अरे भैय्या ,भैय्या चोदोगे अरे भैय्या चोदोगे तो रोटी बना दूंगी।

वरना आंटन में , वरना आंटन में झांटन मिलाय दूंगी।

अरे भैय्या ,भैय्या चोदोगे अरे भैय्या चोदोगे तो रोटी बना दूंगी।

अचानक जैसे गुड्डी को कुछ याद आ गया।

' ओह मैं तो भूल ही गयी थी , उचक के वो बोली , और आलमारी से तेल की बोतल निकाली।


ये कोई ऐसी वैसी तेल की बोतल नहीं थी।


ये चंदा भाभी ने मुझे मेरी नथ उतराई के लिए गिफ्ट में दी थी।

ये उनके पति दुबई से लाये थे और बहुत महंगा था।

कहने को ये सांडे का तेल था , लेकिन ये अप्रीकंन सलमंडार से बना था और उसमे साथ में स्पेनिश फ्लाई , जिनसेंग और न जाने क्या क्या मिला था।


चंदा भाभी के अनुसार जब कुछ काम नहीं करता था तो उसकी दो चार बूंदे उनके पति को ' काम लायक ' बना देती थीं।

लेकिन उनके आदेश के अनुसार मैं एक दो बूँद जरूर रोज मालिश करूँ।


पर आज तो गुड्डी जोश में थी , उसने पांच छ बूँद सीधे अपनी हथेली में ली और एक एक्सपर्ट मसाज वाली की तरह सीधे नीचे से ऊपर , मेरेलिंग के ऊपर हलके हलके दबाते हुए मालिश शुरू कर दी।

चार पांच मिनट में सारा तेल लिंग ने सोख लिया था और एकदम चमक रहा था।


गुड्डी के हाथ का असर , या उस तेल का पता नहीं , लेकिन वास्तव में वो लोहे का खम्भा हो गया था।

" खाना बन गया है " किचेन से रंजी की आवाज आई।

" लगाओ लेकिन स्वीट डिश पहले फ्रिज से निकाल के लगा दो , वही जो मैंने बताया था। बस पांच छ मिनट और " गुड्डी ने लंड मुठियाते , दबाते जवाब दिया।

और फिर एक झटके में सुपाड़ा खोल दिया।


खूब गुस्सैल , बड़ा सा पहाड़ी आलू के बराबर , लाल गुलाबी।

उसने बोतल से दो उँगलियों में तेल लगा के फिर सारे सुपाड़े पे लपेड दिया।

तेल से वो चमक रहा था।

शरारत से गुड्डी की आँखे चमक रही थीं , वो सुपाड़े की 'आँख ' ( पी होल ) को देख के मुस्कराई, उँगलियों से सुपाडे को जोर से दबाया और सीधे बोतल से तेल
की धार , उस खुली 'आँख' में।


गुड्डी का निशाना कभी खाली नहीं जाता था और कम से कम सात -आठ बूँद तेल की सीधे अंदर।

पहले तो बहुत जोर से छरछराया।

फिर अंदर तक , एकदम , कैसे मालूम हो रहा था बता नहीं सकता।

बस यही लग रहा था सामने जो भी हो उसे बस पकड़कर चोद दूँ।

हचक हचक कर।

लेकिन गुड्डी , जो उस की आदत है वो अब जंगबहादुर से बात कर रही थी।

" नाक मत कटवाना , फाड़ देना एक बार में चूत भी , गांड भी। "

और उसे शार्ट के अंदर बंद कर के उठी ,

तब तक रंजी की दुबारा गुहार लग चुकी थी।

" खाना लग गया है। "

शार्ट के ऊपर से झुक के गुड्डी ने खड़े खूंटे को चूमा और बोली

" आज सेमीफायनल है , जोरदार मुकाबला होगा मेरी छुटकी ननदिया से। "

वो कमरे से बाहर निकल रही थी।

" सेमीफायनल आज तो , मेरा मतलब,… फायनल किससे। "
 





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