Tuesday, March 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--158

 FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--158

 मेरी निगाह लेकिन बस उसके मस्त चूतड़ों पे टिकी थी।
पहली बार उन्हें इस तरह , खुला उठा और तैयार देख रहा था।

गोरे गोरे , गुदाज , गदराये और कड़े खूब उभरे।

और गुड्डी उसकी पोजीशन सेट करवा रही थी , क्योंकि वही जानती थी , की असल में कहाँ क्या घुसना है ,

और कितना बेसाख्ता चिल्लाएगी रंजी , चूत फटने से भी ज्यादा गांड फटने में दर्द होता है।

गुड्डी ने अपनी छुटकी ननदिया का एक हाथ डबल बेड के हेड बोर्ड पर रखवाया और कान में बोली , " पकड़ ले इसे कस के , कुछ भी हो छोड़ना मत। जित्ता भी दर्द हो इससे और जोर से भींच लेना। "
दूसरा हाथ , एक मोटी तकिया पे रखवाया और रंजी ने उसे भी जोर से दबोच लिया।

एक छोटा सा सॉफ्ट कुशन , गुड्डी ने रंजी के घुटनों के नीचे रखा , जिससे जब जोरदार धक्के पड़े तो वहां दर्द न हो।

और फिर सारे कुशन तकिये उठाकर रंजी की धनुषाकार उठी हुयी कमर के नीचे।
अब धक्के कित्ते भी जोरदार होंगे , वो डॉगी पोज में ही रहेगी।


जब गुड्डी उसे सेट कर रही थी , किसी बाँकी हिरनिया की तरह मुड़ मुड़ के मुझे देख रही थी।


और मुझे शीला भाभी की बात याद आ रही थी , जब वो किचेन में भाभी के सामने , मंजू के साथ मिल कर मुझे छेड़ रही थीं।

" साल्ली पैदायशी छिनार है। " शीला भाभी ने रंजी के बारे में बोला।

" पैदायशी की खानदानी , तबै तो ई रंडी नाम धरे हैं " हँसते हुए मंजू बोली।

मेरी भाभी भी मौका क्यों चूकतीं ,उन्होंने टुकड़ा लगाया।

" अरे मेरी सारी ननदें बचपन की छिनार है और देवर ,…"

" बहनचोद " बात शीला भाभी ने पूरी की।

और उधर बिस्तर पे गुड्डी ने रंजी ,अपनी सेकसी ननदिया को पूरी तरह सेट कर दिया था पहली बार डॉगी पोज में मरवाने के लिए।

गुड्डी ने छेड़ते हुए दो हलकी हलकी चपत रंजी के चूतड़ों पे लगायी और अपनी मंझली ऊँगली , गचाक से उसकी मलाई भरी चूत में पेल दी।

जब अंगुली बाहर निकली तो उसमें खूब रबड़ी मलाई लगी थी।


रंजी को दिखा के उसने उसे चिढ़ाते ललचाते हुए सब चाट लिया और ,मेरे पास आके कान में बोली ,

" हचक के पेल अब साल्ली को , पूरे मोहल्ले में चीख सुनाई पड़नी चाहिए। आखिर सब को पता चल जाए की तेरी बहना की गांड फट गयी। "
मुझे न कुछ दिखाई पड़ रहा था ,न सुनाई पड़ रहा था।

सिवाय रंजी के मस्त मस्त चूतड़ों के।

जब से बनारस से आया था वो कभी मचका के , कभी कसर मसर लेफ्ट राइट मटका के वो जान बूझ के तड़पा रही थी।

उसे मालूम था बिचारे जंगबहादुर पे क्या असर होता है उसकी कसी कसी भारी भारी गांड देखने का , कभी टाइट कैप्री में तो कभी स्किन टाइट हिप हगिंग जींस में और कभी तो इत्ती छोटी सी माइक्रो स्कर्ट में की ज़रा सा झुके तो गांड क्या , गांड की दरार तक दिख जाय।

आज तो मुझे मारना ही था उसकी गांड , चाहे वो रोये चाहे चिल्लाये

और गांड मारने का तो पहला रूल ही यही , खूब बेरहमी से मारना चाहिए और बिना जोरजबरद्स्ती के ऐसी कच्ची गांड का कसा कसा गांड का छल्ला खुलेगा भी नहीं।

और ये रंजी पे भी रहम होगा और मेरे शहर के लड़को पे भी।

एक बार जब उसकी कलाई की मुटाई ऐसा मेरा लंड , उसके कसे गांड के छल्ले को रगड़ रगड़ कर , दरेर दरेर कर ढीला कर देगा ,

तो फिर आगे से किसी और केसाथ गांड मराने में न रंजी को उतना दर्द होगा ,

न पेलने में मेरे शहर के लौंडो को उतनी मेहनत लगेगी।

आखिर पूरे शहर में उस के मस्त चूतड़ों ने आग लगा रखी थी।


" क्या हुआ भैया ऐसे क्या देख रहे हो "

उस की शहद में डूबी सेक्सी हस्की आवाज ने मेरा ध्यान तोडा और मैं सीधे उसके पीछे।

उस्की कच्ची अमिया ऐसी चूंचियां मेरे हाथों में ,और झुक के उसके कानो में मैंने बोला ,

" अरे देखने वाली चीज हो तो कोई भी देखेगा ही। "

" और " उसकी चुदवासी आवाज ने और उकसाया मुझे ,

" और चोदने वाली चीज हो तो कोई चोदेगा ही। "

" तो चोदो न " फुसफुसाते हुए वो बोली और खुद अपनी टाँगे फैला ली।

मार दे धक्का , लंड गचक्का ,चूत चुदासी ,

एक हाथ कमर पर और एक हाथ की उँगलियों से मैंने चूत की पुत्तियों को फैलाया , सुपाड़ा सटाया ,

और पूरी ताकत से

गचाक

पूरा सुपाड़ा अंदर।

चूत में घुसी लंड की मलाई से अच्छा कोई लुब्रिकेंट नहीं होता और अभी तो उसकी ताजी ताज़ी चुदी चूत मेरे लंड की रबड़ी मलाई से लबरेज थी। छलक रहा था बाहर तक।


वो चीखी , पूरे जोर से , उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह फट गईइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लगताआआ है।


और मैंने दूसरा धक्का मार दिया , पहले से भी जोर से।

फट गईइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ , ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आह्ह उईई चिल्लाई वो।

लेकिन यहाँ कौन रुकने वाला था , पांच छः धक्को में दो तिहाई लंड अंदर था।

और अब मैं उसे गोल गोल घुमा रहा था जिससे उसमे चूत का रस और मेरी मलाई अच्छी तरह , लंड में लिथड़ जाए।
अब रंजी को चुदाई में मजा आने लगा था।

लेकिन ये बात नहीं थी की दर्द कम हो गया था , हाँ चीखों और कराहों के बीच अब कभी कभी मीठी सिसकियाँ भी आने लगी थीं और एक बार फिर संकरी प्रेम गली ने मेरे मोटे गन्ने को जोर जोर से निचोड़ना शुरू कर दिया था।

बस। 

लेकिन ये बात नहीं थी की दर्द कम हो गया था , हाँ चीखों और कराहों के बीच अब कभी कभी मीठी सिसकियाँ भी आने लगी थीं और एक बार फिर संकरी प्रेम गली ने मेरे मोटे गन्ने को जोर जोर से निचोड़ना शुरू कर दिया था।

बस।

अब मेरे हाथों ने वहां का रुख किया जहाँ चोरी छुपे मेरी आँखे कनखियों से ललचाई निगाहों से बार बार देख रही थीं। उसकी गोरी गोरी गोल गोल भरी भरी , भारी गांड को।
मस्त मुलायम मीठी ऐसी जैसे गुड की डली।

कभी मेरे हाथ रंजी की गोल मटोल बड़ी बड़ी गांड सहलाते , दुलराते तो कभी जोर से दबोच लेते और कभी चूतड़ों के दोनों फांको को पूरी ताकत से फैला देते।


पूरी ताकत से फैलाने पर भी गांड का छेद दिखता नहीं था।

बस एक बहुत पतली सी भूरी दरार , और

,.... अभी वहां मेरा बियर कैन सा मोटा मस्त लंड घुसना था। वो भी जड़ तक पूरे ९ इंच।



जो मैंने गांड फैलाई तो अब एक ऊँगली उस भूरी सी पतली दरार पर जोर जोर से रगड़ने लगी।

और रंजी की सिसकी और जोर से हो गयी।


उई ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह अच्छा उन्ह्ह करो न,

गुड्डी कैमरे का ज़ूम अब गांड की दरार और मेरी ऊँगली की प्रेम लीला को कैप्चर कर रहा था।

और गुड्डी की मसुकान मुझे उकसा रही थी , लगे रहो , मार लो साली की।

लेकिन बड़ी मुश्किल से मंझली ऊँगली की पहली पोर का आधा हिस्सा ही घुसा और वो भी तब जब पूरी ताकत से मैंने घचाक से पेला।

गुड्डी ने कुछ इशारा किया और मैं समझ गया।


वीर्य से लबलबाती चूत से मैंने लंड निकाल दिया ,

लेकिन रंजी ने हिरणी की तरह गरदन मोड़ के मेरी ओर शिकायत से देखा जैसे बोल रही हो , क्या करते हो अभी तो मजा आना शुरू ही हुआ था।


लेकिन उसकी शिकायत का कुछ निवारण मैंने किया एक साथ दो ऊँगली पेलकर।

एक बार में घचाक से जड़ तक।

मंझली जो गांड में सेंध लगाने की कोशिश कर रही थी और उस की सहेली तर्जनी।

और जोर जोर से गोल गोल चक्कर।

कभी कभी जो काम तलवार नहीं कर पाती वो काम सुई कर देती है।

बस दोनों उँगलियाँ वही काम कर रही थी।

चम्मच की तरह मैंने उन्हें मोड़ दिया था और चूत की दीवाल की नर्व्स की वो ऐसी की तैसी कर रही थीं।

यही नहीं अंदर छिपे उस भुन्नासी ताले को भी उन्होंने ढूंढ लिया था ,

जी प्वाइंट , और वहां भी आग लगा रही थीं।

मस्ती से रंजी बार बार झड़ने के कगार पे पहुँच रही थी। लेकिन दो चार मिनट उंगलीओं को गोल गोल घुमाने के बाद मैंने उन्हें बाहर खींच लिया और उन्हें उनके असली मिशन पर लगा दिया।

गांड में सेंध ल गाने के।

चूत रस और लंड की मलाई के मिश्रण से अच्छा लुब्रिकेंट कोई और हो नहीं सकता।

अब मेरी दोनों उँगलियाँ गांड के छेद को उससे लथेड़ रही थी , चुपड़ रही थी और गांड में घुसने की जुगत लगा रही थी।

और लंड राज वो काम कर रहे थे जो उन्हें सदैव प्रिय है ,

सद्य चुदी चूत का भोग लगाने का।

रंजी हचक हचक कर चुद रही थी और अब कराहें कम सिसकियाँ ज्यादा निकल रही थीं।

लंड कभी कभी हलके हलके प्यार से घुसता तो कभी मैं जड़ तक निकाल कर एक झटके में ६ इंच पेल देता और एक जोर की चीख गूँज उठती।

मेरी लंड एंव चूत रस से लिथड़ी मंझली ऊँगली , अब गांड के छेद में घुसने की कोशिश कर रही थी।

दोनों अंगूठों से गांड के छेद को मैंने पूरी ताकत से चियार कर , ऊँगली को हल्का सा सेट करदिया था , और अब सेंध लगने की तैयारी पूरी थी।


लंड को मैंने आलमोस्ट पूरा बाहर निकाला।

सुपाड़ा भी आधा रंजी की कसी गुलाबी चूत से बाहर था।

मेरे एक हाथ ने जोर से कच्ची अमिया की तरह की उसकी कसी छोटी कड़ी चूंची को जोर से पकड़ रखा था ,और दूसरा उसके मस्त चूतड़ पे था।

रंजी नेभी जोर से डबल बेड के हेड बोर्ड को पकड़ रखा था।


और मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा , एक के बाद एक ,

दरेरता रगड़ता लंड पूरा अंदर घुस गया और पूरी तेजी से उसकी बच्चेदानी पे धक्का लगा



जोर की चीख कमरे में गूँज उठी।

और साथ में मेरे हाथ ने पूरी धक्का मारा , मंझली ऊँगली के दो पोर गांड के अंदर थे।

फिर गोल गोल घुमाते , अंदर बाहर करते , जड़ तक ,…


रंजी की कच्ची अमिया के निपल को मैंने जोर से मरोड़ दिया और वो फिर चीखी , और अबकी मंझली ऊँगली आलमोस्ट बाहर तक निकाल के एक धक्के में मैंने जड़ तक ठेल दिया।

अब दोनों और हहचहच चुदाई चालु हो गयी।

चूत में लंड से ,

गांड में मंझली ऊँगली से।

गुड्डी बार बार इशारा कर , एक से क्या होगा दो ऊँगली डालो इसकी गांड में।

इरादा मेरा भी यही था लेकिन थोड़ा रुक कर।

दूसरे अब उसकी गांड ने जोर से मंझली ऊँगली को दबोच लिया था , खासतौर पर गांड के छल्ले ने और उसका भी आगे पीछे हिलना मुश्किल हो रहा था।

मैंने स्पैकिंग शुरू कर दी , हलकी। .
बस गोरी गांड पे गुलाबी निशान , एक के बाद एक गुलाब खिल रहे थे।


और अचानक एक तमाचा जोर का , और साथ में मैंने गांड पे नाख़ून भी धंसा दिए।

ये डायवर्सन की ट्रिक थी , साथ में मजे का मजा ,

वो दर्द से दुहरी हो गयी , और साथ में चीख पर चीख।


मौके का फायदा उठाकर दूसरी ऊँगली भी अंदर।  

मौके का फायदा उठाकर दूसरी ऊँगली भी अंदर।

मैंने मंझली ऊँगली को आलमोस्ट बाहर निकाल लिया था और तर्जनी उसके ऊपर चढ़ी हुयी थी ,यानी मोटाई भले ही दो उंगली की हो लेकिनचौड़ाई एक ऊँगली की ही थी।


उधर रंजी दर्द से चीखी और साथ में कुहनी की पूरी ताकत से मैंने दोनों ऊँगली पूरी अंदर ठेल दी।

पूरी ताकत के बावजूद मुश्किल से एक पोर घुस पायी।

उसी को गोल गोल घुमा , धीमे धीमे अंदर बाहर कर मैं रास्ता बना रहा था।

और साथ में एक बार फिर धकापेल चुदाई.

गुड्डी मुझे देख के मुस्करा रही थी और धीरे धीरे न न में सर हिला रही थी।

मेरी सारी कोशिश के बावजूद दोनों ऊँगली का एक, पोर से ज्यादा नहीं घुस पा रहा पा।

गुड्डी ने इशारा किया की मैं दोनों ऊँगली बाहर निकाल लूँ और फिर उसने के वाई जेली की एक बड़ी ट्यूब का नोजल सीधा रंजी की गांड के अंदर धंसा दिया।
नोजल कम से कम दो तीन इंच अंदर घुस गया होगा और फिर गुड्डी ने पिच्च , ट्यूब पूरी की पूरी रंजी की कसी गांड में खाली कर दी।

डॉगी पोज में रंजी के भरे भरे चूतड़ खूब ऊपर उठे हुए थे और फिर उसकी पतली कमर को मैंने भी पकड़ कर उठा रखा था।

पूरी १०० ग्राम के वाई जेली की ट्यूब गुड्डी ने रंजी की गांड में पिचका दी।


जैसे लोग टूथपेस्ट को मोड़ मोड़ के आखिरी बार तक निकालते हैं बस उसी तरह गुड्डी भी पीछे से के वाई जेली की ट्यूब को दबा दबा कर मोड़ कर , सारी की सारी निकाल ली।
नोजल तो तीन इंच गांड में धंसा था इसलिए सारी जेली अंदर।


लेकिन तब भी गुड्डी ने नोजल बाहर नहीं किया , दो तीन मिनट तक उसे घुसेड़े रही और मैं रंजी की कमर उठाये रहा।

और जब ट्यूब बाहर निकली तो रंजी की गांड चपाचप कर रही थी।


गुड्डी ने इशारा किया और मेरी दोनों उंगलिया एक बार फिर अंदर थी और अबकी दो पोर कसी कसी गांड के अंदर थे।


कुछ देर तक मैं गोल गोल घुमाता रहा , फिर थोड़ा बाहर निकाल कर पूरी ताकत के साथ जोरदार धक्का ,


दोनों उंगलियां जड़ तक अंदर धंस गयीं।

पहला दरवाजा पार था।

दोनों उँगलियों ने गांड का छल्ला पार कर लिया था।

कुछ देर तक चुपचाप रहने के बाद उन्होंने करतब दिखाना शुरू कर दिया।

पहले थोड़ी देर मैं गोल गोल घुमाता रहा ,फिर सटासट ,अंदर बाहर अंदर बाहर।


और फिर मैंने उन्हें चम्मच की तरह मोड़ लिया और नक्कल से गांड की अंदरुनी दीवालों को फैलाना शुरू किया।


गुड्डी दूर बैठी फोटो खींचती , मुस्करा रही थी।

और फिर दुहरे हमले फायदा उठाया मैंने , लंड अभी भी हचक हचक के बुर चोद रहा था।

एकदम बाहर तक निकाल के मैंने एक करारा धक्का मारा , और रंजी एक बार फिर मजे और दर्द से दुहरी हो गयी थी।


दर्द सुपाड़े के पूरी ताकत से बच्चेदानी को ठोंकने का भी था और साथ साथ पहली बार उसे गांड में दर्द का अहसास हुआ ,

मेरी दोनों उंगलिया जो गांड के छल्ले के अंदर धंसी थी , उन्हें मैंने कैंची की फाल की तरह फैला दिया था V की तरह और गांड का छल्ला एकदम स्ट्रेच हो गया था।

गुड्डी अब मेरे पीछे खड़ी थी , कभी मेरी पीठ सहलाती ,शरारत से अपने गुदाज जोबन की नोक मेरी पीठ पे गड़ाती , मेरे निपल जोर से स्क्रैच करती , इयर लोब पे बाइट करती ,मुझे उकसाती , भड़काती ,


और मेरे कान में उसने गुनगुनाया ,


हे मुन्ना ढेर भईल चोरवा सिपहिया , अरे चोरवा सिपहिया

फाड़ दा अब अपनी बहिनी क गांड ,तनी भैया।
 


 और खुद खींच कर उसने मेरा लंड रंजी की चूत से गपाक से बाहर निकाल लिया।

और एक बार फिर सुपाड़े पे चमड़ा चढ़ा दिया।


एक कटोरी में असली कच्ची घानी का सरसों का तेल वो लिए थी और सुपाड़े पे टप टप चुआने लगी।

गुड्डी चुप रहे ये तो हो नहीं सकता था।

" क्यों बचपन में , मेरी सास ऐसे ही लगाती थी न सु सु में तेल ,अरे शरमाते काहें हो अरे उसी तेल का कमाल है तो इत्ता मस्त औजार हुआ है "

फिर झट से उसने एक झटके में सुपाड़ा खोल दिया और एक हाथ से जोर से कड़वे तेल में डूबे सुपाड़े को भींच के उसका मुंह चियार दिया और ८-१० बूँद कड़वे तेल की सीधे सुपाड़े के अंदर।


अगर कभी जिसने गाँव में कोल्हू से परे गए गन्ने के ताजे रस से कड़ाह में बनते गुड़ को खाया होगा , वो उसका स्वाद नहीं भूल सकता।

भोर की उगती हुयी धूप या सांँझ के हलके अँधेरे में , छुपछुप कर गन्ने के खेत में या अरहर के खेत में चोदने /चुदवाने का मजा ही और है।

और उसी तरह सरसो का तेल या कड़वे तेल का भी ,… गौने की रात को दुलहन की शरारती ननदें या जेठानी सरसों का तेल जरूर रख जाती हैं।

होली में राजा पेलमपेल होई ,

महंगा अब सरसों क तेल होई।

गुड्डी ने अपने दोनों हाथों को रंजी के चूतड़ों पर रख दिया था और दोनों हाथों के अंगूठे से रंजी की गांड चियार दी थी।

बस हथौड़ा मारने की देरी थी।


मेरा तेल में डूबा सुपाड़ा रंजी की गांड पे था और फिर दोनों गोल गोल चूतड़ पकड़ के ,…
हच्चाक से सटाक एक धक्का मैंने पूरी ताकत से मारा ,


और आलमोस्ट पूरा सुपाड़ा एक बार में अंदर ,



रंजी की चीख पूरे मुहल्ले में सुनाई दी होगी जरूर।

उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ ओह्ह फट गईइइइइइइइइइइइइइइइइइइ मरीईईईईईईईईईईईईई रे रे रे रे।


लगातार वो चीख रही थी।

और उस चीख के बीच मेरा मन्त्र ,

गुड्डी के कैमरे का ज़ूम सीधे गांड में अटके मोटे सुपाड़े पे था और साथ में एक मीडियम शॉट भी , जिसमें रंजी के चेहरे सेलेकर उसकी गांड का छेद साफ नजर आ रहा था।


बिचारी रंजी कमर मटका रही थी , चूतड़ पटक रही थी , मेरे चंगुल से छूटने की कोशिश कर रही थी।


लेकिन मैंने जोर से उसकी कमर दबोच रखी थी , दोनों पैरों के बीच उसके पैर कस रखे थे , वो सूत भर भी हिल डुल नहीं सकती थी।

और सबसे बढ़ कर गांड में एक बार सुपाड़ा पूरा अटक जाय फिर वो लाख चूतड़ पटके , बिना हचक के गांड मराये कोई बचत नहीं।

कुछ देर बाद रंजी की चीखें कुछ कम हुयी।शायद उसने स्वीकार कर लिया था की फटनी तो है ही।

मेरी उंगलिया अब उसके पीठ के निचले भाग पर एक यंत्र लिख रही थीं। मन्त्र समाप्त हो गया था।


और अब मैंने पूरी ताकत से पुश कर रहा था , धक्के नहीं मार रहा था बस अपने खूंटे को उसकी गांड में ढकेल रहा था , लगातार , पूरी ताकत से।

एक हाथ जोर से उसकी कमर पकड़े था और दूसरा उसके मस्त उरोजों को मसल रगड़ रहा था।

दर्द तो अभी भी रंजी को हो रहा था लेकिन वो अपने होंठ भींचे हुए थी , पर बीच बीच में कराह निकल जाती थी।
ढकेलते , पेलते , ठेलते , सुपाड़ा तो पूरा घुस गया (शायद सरसों के तेल का भी कमाल था , जिसके जोर से गाँव में कोई भी दुल्हन , गौने की रात बिना फटे बच नहीं पाती ) और एकाध इंच लंड का बाकी हिस्सा भी।

लेकिन फिर चीन की दीवाल सामने आगयी या

खैबर का दर्रा।

इत्ती मुश्किल से तो जुगत लगाकर मेरी ऊँगली ने गांड का छल्ला पार किया था और अब सुपाड़े के लिए बहुत मुश्किल हो रही थी।

एक तो मोटा बहुत था , पहाड़ी आलू की तरह बड़ा , कडा और ऊपर से रंजी बिचारी उसके चाहने के बावजूद उसकी देह उसका साथ नहीं दे पा रही थी .
सुपाड़े की चोट लगते ही छल्ला वो सिकोड़ लेती थी। और फिर लंड घुसने का सवाल नहीं था।


 मेरा तेल में डूबा सुपाड़ा रंजी की गांड पे था और फिर दोनों गोल गोल चूतड़ पकड़ के ,…
हच्चाक से सटाक एक धक्का मैंने पूरी ताकत से मारा ,


और आलमोस्ट पूरा सुपाड़ा एक बार में अंदर ,



रंजी की चीख पूरे मुहल्ले में सुनाई दी होगी जरूर।

उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ ओह्ह फट गईइइइइइइइइइइइइइइइइइइ मरीईईईईईईईईईईईईई रे रे रे रे।


लगातार वो चीख रही थी।

और उस चीख के बीच मेरा मन्त्र ,

गुड्डी के कैमरे का ज़ूम सीधे गांड में अटके मोटे सुपाड़े पे था और साथ में एक मीडियम शॉट भी , जिसमें रंजी के चेहरे सेलेकर उसकी गांड का छेद साफ नजर आ रहा था।


बिचारी रंजी कमर मटका रही थी , चूतड़ पटक रही थी , मेरे चंगुल से छूटने की कोशिश कर रही थी।


लेकिन मैंने जोर से उसकी कमर दबोच रखी थी , दोनों पैरों के बीच उसके पैर कस रखे थे , वो सूत भर भी हिल डुल नहीं सकती थी।

और सबसे बढ़ कर गांड में एक बार सुपाड़ा पूरा अटक जाय फिर वो लाख चूतड़ पटके , बिना हचक के गांड मराये कोई बचत नहीं।

कुछ देर बाद रंजी की चीखें कुछ कम हुयी।शायद उसने स्वीकार कर लिया था की फटनी तो है ही।

मेरी उंगलिया अब उसके पीठ के निचले भाग पर एक यंत्र लिख रही थीं। मन्त्र समाप्त हो गया था।


और अब मैंने पूरी ताकत से पुश कर रहा था , धक्के नहीं मार रहा था बस अपने खूंटे को उसकी गांड में ढकेल रहा था , लगातार , पूरी ताकत से।

एक हाथ जोर से उसकी कमर पकड़े था और दूसरा उसके मस्त उरोजों को मसल रगड़ रहा था।

दर्द तो अभी भी रंजी को हो रहा था लेकिन वो अपने होंठ भींचे हुए थी , पर बीच बीच में कराह निकल जाती थी।
ढकेलते , पेलते , ठेलते , सुपाड़ा तो पूरा घुस गया (शायद सरसों के तेल का भी कमाल था , जिसके जोर से गाँव में कोई भी दुल्हन , गौने की रात बिना फटे बच नहीं पाती ) और एकाध इंच लंड का बाकी हिस्सा भी।

लेकिन फिर चीन की दीवाल सामने आगयी या

खैबर का दर्रा।

इत्ती मुश्किल से तो जुगत लगाकर मेरी ऊँगली ने गांड का छल्ला पार किया था और अब सुपाड़े के लिए बहुत मुश्किल हो रही थी।

एक तो मोटा बहुत था , पहाड़ी आलू की तरह बड़ा , कडा और ऊपर से रंजी बिचारी उसके चाहने के बावजूद उसकी देह उसका साथ नहीं दे पा रही थी .
सुपाड़े की चोट लगते ही छल्ला वो सिकोड़ लेती थी। और फिर लंड घुसने का सवाल नहीं था।

मैंने झुक कर रंजी को चूम लिया , थोड़ी देर तक उसके होंठों को चूसता रहा और फिर उसके कान में बोला ,

" प्लीज थोड़ा ढीला करो न , एकदम अपनी देह को हलका छोड़ दो। दर्द तो होगा ,लेकिन यार मेरा बहुत मन कर रहा है , एकदम मत सोचो उसके बारे में।

प्लीज थोड़ा सा दर्द बर्दास्त कर लो मेरे लिए , एकदम एकदम ढीला छोड़ दो , मेरी खातिर। "


रंजी ने खूब जोर से भींच कर डबल बेड का हेडबोर्ड पकड़ लिया था। उसकी लम्बी उंगलिया पूरी ताकत से उसे जकड़े हुये थीं।

होने वाले दर्द को सोच कर ही रंजी ने अपने संतरे के फांक की तरह रसीले होंठों को जोर से भींच लिया था ,जिससे चाहे जो हो चीख न निकले


और

उसने अपनी देह को ढीला छोड़ दिया था।

गुदा का बंधन मेरे लिंग पर कुछ हलका हो गया था।


मैंने भी हल्का सा लिंग बाहर निकाल लिया और सिर्फ मोटा सख्त सुपाड़ा ही अंदर धंसा रह गया।

मैं गिनगिना रहा था। मेरे दोनों हाथ जोर से रंजी के नितम्ब पर जकड़े हुए थे।


और मैंने मन्त्र फिर शुरू किया ,

चूत के लिए जैसे झिल्ली फाड़ते वकत अलग मन्त्र था उसी तरह गुदा मैंथुन में , छल्ले के अंदर धँसाने और पार करने के लिए अलग ,

उस के साथ गोल गोल आकृति मेरी उंगलिया रंजी के गोल गोल उठे हुए नितम्बो पर बनाने लगीं।


मम्म म ही ओम हु गुदा वेधनम , निज भगिनी , कौमार्य , ही पृष्ठ भाग , निज भगिनी गुदा ,…


और मंत्रोचार के साथ ही मेरे ऊपर एक नशा सा तारी हो गया , मुझे बस रंजी के गोलकुंडा का गोल द्वार नजर आ रहा था , कुह भी हो जाए मुझे उस का गांड़ आज फाड़ कर चिथड़े चिथड़े कर देनी है। बहुत तड़पाया है साल्ली ने ,

मम्म म ही ओम हु गुदा वेधनम , निज भगिनी , कौमार्य , ही पृष्ठ भाग , निज भगिनी गुदा ,


मैंने जब तीसरी बार मन्त्र की पहली पंक्ति दुहरायी , मेरे नितम्बो में न जाने कितने अश्वों का बल आ गया था , और

मैंने जोर का धक्का मारा पूरी ताकत से , फिर दुबारा तिबारा और

सुपाड़ा गांड के छल्ले के पार हो गया था।



लेकिन मैं रुकने वाला नहीं था और वैसे भी मन्त्र की आवृत्ति तब तक होनी थी जब तक पूरा लंड अंदर न धंस जाय और फिर उसके बाद बीज मन्त्र ,



जैसे कोई जोर से बल्लम ढकेले , बस उसी तरह फिर मैंने लंड चीखती हुयी रंजी की गांड में पेला और पेलता रहा ,जब तक आधे से ज्यादा लंड गांड में नहीं घुस गया।

लेकिन परेशानी बाहर खींचने की थी , थोडा बाहर खींचने के बाद , सुपाड़ा जब गांड के छल्ले पर आता तो फिर अटक जाता।

मुझे बनारस की बात याद आ रही थी जब रीत और गुड्डी मुझे चिढ़ा रही थीं , रंजी का नाम ले ले के और कैसे जब वो बनारस आएगी तो उनके चाहे रिश्ते के भाई लगें या मोहल्ले के रिश्ते के , सब उसके ऊपर चढ़ेंगे।
रीत बोली यार तू हम लोगों के एक भाई को तो भूल गयी।


गुड्डी के भी कुछ समझ में नहीं आया , कौन परेशान हो के वो बोले।

" अरी बुद्धू राकी , आखिर हम लोगों की रक्षा करता है तो भाई ही हुआ न। फिर वो हमारी रक्षा करता है तो हमारा भी फर्ज बनता है न उसका भी ख्याल करें , तो बस चढ़ा देंगे उसको भी इनकी बहन पर , आखिर पूरे बनारस को छिनार बांटेगी तो बिचारे रॉकी का क्या दोष , थोड़ा मजा वो भी लेले। "

और फिर दोनों खिलखिलाते हुए लहालोट हो गयीं।

रॉकी दूबे भाभी का कुत्ता था किसी फॉरेन ब्रीड का , शायद जर्मन शेफर्ड और लोग ब्रीडिंग के लिए अपनी कुतिया उसके पास ले के आते थे।

" अरे यार दूबे भाभी सारी कुतिया वालियों से पैसा चार्ज करती हैं , एडवांस बुकिंग कराती है अब इनके लिए तो , ,… पैसा नहीं चार्ज करेंगी। " रीत गोल गोल आँख नचाते बोली।


" लेकिन उसकी गाँठ बहुत मोटी है अटक गयी तो ,याद है पड़ोस की वो कुतिया क्या नाम था उसका ,… " गुड्डी बोली और बात रीत ने पूरी की।

" मिनी , हाँ दो घंटे तक पूरे घर में घिर्राया था रॉकी ने। मेरी तेरी मुट्ठी से तो मोटा ही होगा , लेकिन उसको असली मजा भी तो आएगा , जब भरतपुर की गली में जाकर अटक जाएगा और निकलेगा नहीं। "

रीत हँसते हुए बोली।



मेरे सुपाड़े की भी यही हालत थी।

लेकिन गुड्डी मेरे पीछे खड़ी थी , मेरी पीठ सहलाते , मुझे उकसाते और जोर से पूरी ताकत लगा के लंड मैंने बाहर खींचा।

रगड़ते ,दरेरते ,फाड़ते गांड के छल्ले में रगड़ते सुपाड़ा बाहर निकल आया , फिर तो मैंने लंड आलमोस्ट बाहर खिंच लिया और दुगुने जोर से मन्त्र पढ़ते


मम्म म ही ओम हु गुदा वेधनम , निज भगिनी , कौमार्य , ही पृष्ठ भाग , निज भगिनी गुदा ,…

ठेल दिया।

जीता दर्द रंजी को गांड के छल्ले में घुसते समय हुआ था उसका दस गुना तब हुआ जब , सुपाड़ा चीरते हुए बाहर निकला।


और अबकी दो तिहाई लंड अंदर ,


मम्म म ही ओम हु गुदा वेधनम , निज भगिनी , कौमार्य , ही पृष्ठ भाग , निज भगिनी गुदा ,…

गुड्डी ने मेरे कान में बोला आगे मन्त्र वो पढ़ लेगी मेरे कान में असर वही होगा , बस मैं पूरी ताकत से गांड मारने के काम में लगूं।

एक बार फिर मैंने पूरी ताकत से लंड को बाहर खींचा और सुपाड़ा गांड के छल्ले को दरेरता बाहर निकला।


उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ जान गयी मर गईइइइइइइइइइइइइइइ ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह नहीईईईईईईई प्लिज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज

रंजी की चीख पूरे मोहल्ले में गूँज रही होगी ,

लेकिन मेरे कान में सिर्फ गुड्डी का पढ़ा जा रहा मन्त्र ,


मम्म म ही ओम हु गुदा वेधनम , निज भगिनी , कौमार्य , ही पृष्ठ भाग , निज भगिनी गुदा ,… निज,… निज ,…




गूँज रहा था , सिर्फ गूँज रहा था मैं उसका कुछ भी मतलब नहीं समझ रहा था ,

जैसे शादी करते समय मन्त्र दोनों ओर के पंडित पढ़ते हैं और शादी लड़के लड़की की हो जाती है। मन्त्र से रिश्ता उनका पक्का हो जाता है।

बस गुड्डी पंडित , नाउन सबका काम कर रही थी।


और उस मन्त्र का असर मेरे मन और तन , विशेषकर तन के एक ख़ास भाग पर साफ हो रहा था।

कम से कम दस बार सुपाड़ा , गांड के छल्ले को रगड़ता फाड़ता अंदर बाहर हुआ ,

उसके बाद जाकर लंड जड़ तक धंसा।


और मैंने सांस ली ,


गुड्डी ने मन्त्र पांच बार और पढ़ा , मुझे लग रहा था की शायद वो कुछ और ,… लेकिन मैं तो सिर्फ रंजी की गांड देख रहा था।

एक दो मिनट मैं चुपचाप पड़ा रहा।

अब मेरा ९ इंच का लंड रंजी की गांड में जड़ तक धंस गया था।

अब मुझे अहसास हुआ रंजी की चीखों और आंसुओं का लेकिन चंदा भाभी की बात मुझे याद थी ,


बिना बेरहमी के गांड नहीं मारी जा सकती ,खास तौर पे पहली बार।



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