FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--146
फागुन के दिन चार--146
सालियां : बनारस की
और बुआ के जाते ही सबकी निगाह एक साथ घडी पे पड़ी और सब एक साथ चिल्लाये , ' अरे नौ बजने वाले हैं खाना। "
सवा दस बजे तक मुझे मेस पहुँचना था , ये सब को मालूम था।
काम करने में भी दोनोंसालियां मेरी भूत थी , और नौ बजते खाना लग भी गया और तब तक भाभी भी आगयी थी।
खाने में भी चुहुल जारी रही। और अब भाभी भी मेरी खिंचाई में शामिल थीं।
अंत में मैंने छेड़ा , हे स्वीट डिश नहीं है।
जवाब भाभी ने दिया , इत्ती मीठी मीठी दो साली हैं तो स्वीट डिश।
लेकिन तब तक गुड्डी ने मंझली के कान में कुछ कहा और वो चहकने लगी।
" एकदम मिलेगी स्वीट डिश , बनारस की ख़ास लेकिन आराम से मिलेगी "
मेरी निगाह तो गुड्डी पे टिकी थी।
कित्ते दिन से सोच रहा था , गुड्डी से मिलूंगा तो ये करूँगा , वो करूँगा , बाँहों में भरकर भींच लूंगा, खूब चूमूंगा उसके किशोर उभारों का रस लूंगा। कितनी रात जंगबहादुर को समझाने में निकल गयी। जब से होली से गया था , तब से जंगबहादुर का उपवास चल रहा था। और जब से भाभी ने मुझे इंगेजमेंट के लिए बनारस आने को कहा , बस तभी से प्लानिंग बन रही थी। ऐसे करूँगा , वैसे करूँगा , कचकचा कर उसके भरे भरे गाल काटूंगा , और हचक हचक कर ,…
लेकिन सुबह से एक बार उसको भींच कर बाहों में भी दबोच नहीं पाया। सुबह से पहले आफिस , फिर गुड्डी मिली भी तो भाभी मेरी और सारा समय शॉपिंग में और शाम को यहाँ आया तो , साल्ली सालियाँ हरदम साथ , और गुड्डी और आग में घी डाल रही थी , कभी चिढ़ाती तो कभी रगड़ती , दरेरती , जोबन का धक्का मारती निकल जाती। और मैं मन मसोस कर रह जाता। अब सिर्फ २०-२५ मिनट बचे थे यहाँ से निकलने में , यहां तो लग नहीं रहा था कुछ हो पायेगा। अगर किसी तरह से ये लड़की मेरे साथ आधे पौन घंटे के लिए चल पाती न मेस में जहाँ मैं रुका था। बस एक बार , वरना कल तो इंगेजमेंट की गहमा गहमी में और टाइम मिलने का चांस नहीं है। मैंने कई बार सोचा मम्मी से बोलूं , की गुड्डी को अपने साथ , लेकिन बहाना क्या बनाऊ , और मम्मी के आगे मुंह खोलने में भी हिचकता था मैं. समय निकलता जा रहा था।
गुड्डी ने मुझे दुलराती आँखों से निहारा , और मैं उस बनारसी ठगिनी के पीछे ठगा ठगा सा कमरे में चला आया।
दरवाजा गुड्डी ने ही उठंगा दिया और अब मैं सोचने समझने से बहुत दूर निकल आया था।
मैंने गुड्डी को जोर से बाँहों में भींच लिया , बिना ये परवाह किये की कभी भी दरवाजा खोल के कोई आ सकता है , दरवाजे के उस पार मेरी सालियां और सास हैं।
मेरे प्यासे होंठ , गुड्डी के गुलाबी रसीले दहकते होंठों पर चिपक गए।
लेकिन गुड्डी से ज्यादा मुझे , मेरी भूख को , मेरी प्यास को कोई समझता है क्या।
मुझे से भी ज्यादा जोर से उसने मुझे दबोच रखा था।
उसके हाथों ने मेरे हाथ को पकड़ के सीधे उसके उभारों पे रख दिया ,
और फिर एक झटके में मेरी सारी झिझक गयी तेल लेने।
और मैं जिस तरह से सोच रहा था , उस से भी ज्यादा जोर से बेताबी से उन उरोजों का रस लेने लगा , दबाने निचोड़ने लगा।
गुड्डी भी न , उसने जोर से मेरे होंठों पे होंठ रगड़ा और मेरे इयर लोब्स काटते हुए बोली ,
मेरे बेसबरे बालम ,
मेरे बोल फूटे ,
मेरा बहुत मन , लेकिन मेरी बात बीच में ही रुक गयी। गुड्डी के होंठों ने , न सिर्फ मेरे होंठों को सील कर दिया था बल्कि उस की जीभ मेरे मुंह में घुस गयी थी।
अपनी दोनों लम्बी टाँगे फैला कर उसने मेरी टांगों को भी उनके अंदर दबोच लिया था। और अब मेरी बात का जवाब उसकी गुलाबी चुनमुनिया ने दिया जोर जोरसे मेरे तन्नाये , पगलाए जंगबहादुर को रगड़ कर।
और मेरी भूख और बढ़ गयी।
जंगबाहदुर और पगला गए।
लेकिन तभी मुझे लगा कमरे में कोई और है।
पर गुड्डी भी न , अब वो ड्राइविंग सीट पर आ गयी।
वो मुझे चूम रही थी ,मेरे सीने पे अपने उभार रगड़ रही थी।
और अगले पल मैं भी उतनी ही जोर से उसे चूमने लगा , उसके उभार मसलने लगा।
दो चार मिनट बाद ,.... मेरा शक सही निकला।
मेरी छोटी साली की शोख मीठी आवाज ने मेरा ध्यान तोडा ,
जीजू आपकी स्वीट डिश ,
लेकिन गुड्डी मुझे तभी भी भींचे रही , उसके होंठ मेरे होंठों पे चिपके रहे और जब हम दोनों ने एक साथ छुटकी को देखा , तो तब भी हम एक दूसरेकी बाँहों में थे।
" मुझे क्या मालूम था आप आलरेडी स्वीट डिश खा रहे हैं " शरारत से वो बोली।
" पिटेगी छुटकी तू मेरे हाथ से " गुड्डी ने खिलखिला के मुझे छोड़ते कहा और बोली ,
"जाओ पहले साली की स्वीट डिश खाओ "
मैं कुछ बोलता उसके पहले छुटकी बोल पड़ी।
" एकदम दी , ये साली कभी अपने जीजू को मना करने वाली नहीं है। "
" और तू मना करेगी तो मैं मानने वाला भी नहीं हूँ " उसकी पीठ पर मजाक में धौल जमाते हुए , मैं उसके साथ निकल आया बाहर जहाँ मेज पर मझली बैठी थी और सामने एक कवर्ड प्लेट थी।
मंझली के बगल में सिर्फ एक कुर्सी खाली थी , उससे सटी। और मैं वहां बैठ गया , लेकिन मेरे बगल में छुटकी भी ठसके से आके बैठ गयी।
" जीजू जरा सरको न। "
जवाब मंझली ने दिया , " कैसी छोटी साली हो , सीधे जीजू की गोद में बैठ जाओ न। "
छुटकी ने कुछ ललचाती कुछ चिढ़ाती नज़रों से मेरी पैंट में तने तम्बू की ओर इशारा किया, मंझली को और बोली।
" आप बड़ी हो , आप बुरा मान जाओगी , पहला हक़ इस पर तेरा है। "
" अरे छुटकी साल्ली का हक़ सबसे ज्यादा होता है। " मंझली ने समझाया।
छुटकी पूरी तरह गोद में तो नहीं बैठी , लेकिन आधी गोद में थी और उसकी एक जांघ सीधे जंगबहादुर के ऊपर और वो जान बुझ के मुझे चिढ़ाते , देखते उसे हलके हलके रगड़ भी रही थी।
"जीजू , मुझे ठीक से पकड़ लो न वरना मैं गिर जाउंगी " बड़ी इसरार से , शोख अदा से छुटकी बोली।
किसकी हिम्मत है जो ऐसे सेक्सी छोटी साली को मना करे।
उसकी फ्राक थोड़ी पुरानी दरकी हुयी थी जिसमे से उसकी कच्ची अमिया का उभार कटाव सब दिख रहा था , और वो जिस तरह मेरी ओर झुकी हुयी थी , फ्राक और स्ट्रेच हो गयी थी।
मैंने पकड़ लिया।
और छुटकी ने जैसे बड़े भोलेपन से मेरा हाथ एडजस्ट कर रही हो , मेरा हाथ थोड़ा और अपने कच्चे उरोजों पे खींचा और मेरी उँगलियों की टिप अब सीधे मटर केदाने ऐसे निपल्स पे थे।
" हूँ ,अब ठीक है " तिरछी निगाह से मुझे देखते बाँकी अदा से बोली और जब मैंने उसकी ओर देखा तो मेरा गला सूख गया।
चट चट करते हुए चुटपुटिया बटन खुल गए थे और अब उसका क्लीवेज एकदम अंदर तक दिख रहा था। बस मैं जरा सा और ऊगली बढ़ाता तो मेरा हाथ फ्राक के अंदर होता।
मन तो मेरा भी कसमस हो रहा था , फिर उसका इसरार , " जीजू जरा जोर से पकड़ो न , क्या सारी ताकत दी के पास खर्च हो गयी "
" दी नहीं बुद्धू , दी की नन्दो के साथ " मंझली ने और आग ऊगली।
मेरी हथेली छुटकी के उरोजों को दबाना शुरू कर दिया।
और फिर मंझली चालु हो गयी।
"जीजू आँख बंद , तभी मिलेगी स्वीट डिश। "
मैंने थोड़ा ना नुकुर किया , लेकिन तब तक मम्मी आ गयी और पास में बैठ गयी।
और मेरी सालियों को चिढ़ाने उकसाने लगी।
" कैसे साली हो तुम लोग और कैसे जीजू है तुम्हारे , छोटी सी बात भी नहीं मानते तुम्हारी। और कहते थे जीजू साली की गुलामी मंजूर "
" जीजू इज्जत का सवाल है " मंझली मुस्करा के बोली।
मैंने तुरंत आँखे बंद कर ली और मम्मी की ओर मुड़ के बोला , " मम्मी ,ऐसी सालियां हो तो एक नहीं सात जनम गुलामी मंजूर "
मंझली ने मेरे कान में फुसफुसाया।
" जीजू बेईमान , छुटकी का कितने प्यार से , मस्ती से पकड़ा है और मेरा नहीं " और मैं कुछ रिएक्ट करूँ , उसके पहले , उसने खुद मेरा हाथ खीच कर अपने उरोज पर रख दिया , उसके तो और गदरा रहे थे , एक दम कड़े , टेनिस बाल की तरह बल्कि थोड़े और बड़े।
मेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हो गए।
मैं जोर जोर से नहीं मसल रहा था , लेकिन हलके हलके दबाने से मेरे हाथ खुद को नहीं रोक पा रहे थे। और छुटकी तो और , वो अपने हाथ को मेरे हाथ के ऊपर रख कर खुद दबा रही थी। अब इसके बाद तो , मेरे हाथ भी अब उसकी कच्ची अमिया का स्वाद ले रहे थे लहक लहक कर , मन तो मेरा कह रहा था उसके खुले फ्राक के अंदर हाथ डाल दूँ , लेकिन ,
तब तक मंझली बोली
" जीजू खोलो न मुंह अपना ,खूब बड़ा सा "
और मैंने झट से बड़ा सा मुंह खोल दिया।
"देख मम्मी खोलने में मेरे जीजू कितने फास्ट है " मंझली ने चिढ़ाया।
" तेरे जीजू ही नहीं , इनकी सारी मायकेवालियाँ भी , खोलना , डलवाना उन्ही से सीखा है " मम्मी ये मौका क्यों छोड़तीं।
अचानक मेरी चमकी।
मेरे दोनों हाथ तो मेरे सालियों के कब्जे में है मैं खाऊंगा कैसे , स्वीट डिश।
मंझली से तो मैने धीमे से पूछा , लेकिन जवाब उसने जोर से दिया।
" क्या जीजू , ससुराल में रहकर और वो भी दो दो सालियों के होते हुए आपको अपना हाथ इस्तेमाल करने पड़े , "
और बात पूरी की छुटकी ने ,
" ये आपके साथ हम दोनों सालियों की बेइज्जती है। हम दोनों है न आपको अपने प्यारे प्यारे हाथ से खिलाने वाले "
" एकदम ससुराल में सालियां और आपके मायके में , दी की ननदे ,अब आपका हाथ का इस्तेमाल बंद " मंझली बोली।
आपके दोनों हाथ किशोर , कच्ची कली सालियों के आते उभारों पे हों , आँखे बंद हो और मुंह खुला हो , फिर आप कर भी क्या सकते हैं।
बस यही हालत मेरी थी।
" हे डाल दूँ , " छुटकी ने पुछा।
" एकदम तू छोटी साली है तेरा हक़ तो दी के भी पहले है , डाल दे ना "मंझली ने और उकसाया। " जीजू खोलने और डलवाने में एकदम दी की ननदों पे पड़े हैं " मंझली ने और जोड़ा
और छुटकी ने डाल दिया।
और उसके तुरंत बाद , मंझली ने।
और फिर दुबारा।
"जीजू जल्दी जल्दी घोंटो न " मंझली ने शिकायत की फिर बोला , इससे तेज तो आपकी बहनें घोंटती है गपागप गपागप "
" अरे दी , इनकी बहनो के झांटे बाद में आती हैं और घोंटना पहले शुरू कर देती हैं " छुटकी खिलखिलाती बोली।
अब मैं मान गया की मेरी सालियों में सास का ही खून है।
…….
और उसके बाद फिर छुटकी के हाथ से ,
मैंने इसके पहले वो ' स्वीट डिश ' कभी नहीं खायी थी।
लेकिन पहचान गया मैं।
बस वही जिसका नाम ले के लोग मुझे चिढ़ाते थे , खाना तो दूर मैं उसे छू भी नहीं सकता था , नाम भी नहीं लेता था।
लेकिन अब होभी क्या सकता था , दोनों सालियों के बीच मैं सैंडविच बना ,
और फिर मंझली और छुटकी ने एक साथ ,
पांच मिनट से ज्यादा ही हो गये थे , फिर मंझली बोली , चलिए जीजू आप भी क्या याद करेंगे। आँखे खोल दीजिये।
प्लेट में लंगड़े आमो की रसीली फांके , लेकिन २/३ से ज्यादा प्लेट खाली हो गयी थी ५-६ फांके बची थी।
और अब मंझली बोली , जीजू आप अकेले अकेले , चलिए एक फांक मैं भी लेती हूँ
और उसने एक खूब मोटी लम्बी आम की फांक लेके अपने होंठों पे इस तरह लगाया की जैसे कोई सुपाड़े को चाट रहा हो, फिर मुझे दिखा के उसने आधा गप्प कर लिया और उसे मोटे लंड की तरह चूसने लगी , सपड सपड।
जंगबहादुर की हालत ख़राब थी।
और बची खुची हालत छुटकी की हरकते , उसके ब्वायिश चूतड़ अब सीधे जंगबहादुर के ऊपर थे और उन्हें रगड़ रहे थे।
मंझली ने फिर एक बार में आम की फांक पूरी गप्प ली और उसे जोर से कुचलने दबाने लगी।
फिर अपनी जीभ निकाल कर उसने एकदम मेरे मुंह से आलमोस्ट सटा दिया , सुनहले आम के टुकड़े उसके सैलिएवा में लिपटे सने ,
मेरे लिए ये चैलेंज था , और मैंने उसे अपनी ओर खीच कर उसकी जीभ अपने मुंह में ले ली और सारे आम के टुकड़े , गड़प।
तब तक गुड्डी आ गयी।
" कित्ते आम खिला रही हो जीजू को अपने। " हँसते हुए वो भी वहीँ बैठ गयी।
सिर्फ चार दी , दो मेरे , दो मंझली के " मुंह बना कर छुटकी बोली।
द्विअर्थी डायलॉग बोलने में वो कम नहीं थी।
और फिर गुड्डी मेरे पीछे पड़ गयी।
" हे तुम तो आम के नाम से चिढ़ते थे क्या हो गया। तेरे मायके वालियां देख लेंगी तो फट के उनकी हाथ में आ जायेगी "
आखिरी की दो फांक एक साथ छुटकी ने उठा ली और मेरे मुंह में डाल रही थी की मेरी भाभी आ गयीं।
और वही हुआ ,
वो एकदम सकते में
" हे तुम और आम, मैं क्या देख रही हूँ "
" एकदम , और पूरा प्लेट साफ कर दिया उन्होंने चलिए निकालिये २,००० रुपये अभी। " मंझली हंस के बोली।
तब मुझे पता चला , मेरी चिढ तो गुड्डी ने बताई थी और फिर भाभी से इन दोनों ने शर्त लगायी थी की वो आज मुझे लंगड़ा आम खिला के रहेंगी।
अगर वो जीत गयीं तो भाभी उन्हें २,००० रुपये तो देंगी ही और ये भी मान लेंगी की उनका देवर अब पूरी तरह सालियों का गुलाम हो गया है।
बिचारी भाभी , उन्होंने पैसे निकाल के दिए। उन्हें आज चंदा भाभी के पास सोना था तो वो उधर चली गयी और मैंने घडी पे नजर डाली , तो साढ़े दस बजने वाले थे मेरे जाने का समय कब का बीत रहा था।
और बुआ के जाते ही सबकी निगाह एक साथ घडी पे पड़ी और सब एक साथ चिल्लाये , ' अरे नौ बजने वाले हैं खाना। "
सवा दस बजे तक मुझे मेस पहुँचना था , ये सब को मालूम था।
काम करने में भी दोनोंसालियां मेरी भूत थी , और नौ बजते खाना लग भी गया और तब तक भाभी भी आगयी थी।
खाने में भी चुहुल जारी रही। और अब भाभी भी मेरी खिंचाई में शामिल थीं।
अंत में मैंने छेड़ा , हे स्वीट डिश नहीं है।
जवाब भाभी ने दिया , इत्ती मीठी मीठी दो साली हैं तो स्वीट डिश।
लेकिन तब तक गुड्डी ने मंझली के कान में कुछ कहा और वो चहकने लगी।
" एकदम मिलेगी स्वीट डिश , बनारस की ख़ास लेकिन आराम से मिलेगी "
मेरी निगाह तो गुड्डी पे टिकी थी।
कित्ते दिन से सोच रहा था , गुड्डी से मिलूंगा तो ये करूँगा , वो करूँगा , बाँहों में भरकर भींच लूंगा, खूब चूमूंगा उसके किशोर उभारों का रस लूंगा। कितनी रात जंगबहादुर को समझाने में निकल गयी। जब से होली से गया था , तब से जंगबहादुर का उपवास चल रहा था। और जब से भाभी ने मुझे इंगेजमेंट के लिए बनारस आने को कहा , बस तभी से प्लानिंग बन रही थी। ऐसे करूँगा , वैसे करूँगा , कचकचा कर उसके भरे भरे गाल काटूंगा , और हचक हचक कर ,…
लेकिन सुबह से एक बार उसको भींच कर बाहों में भी दबोच नहीं पाया। सुबह से पहले आफिस , फिर गुड्डी मिली भी तो भाभी मेरी और सारा समय शॉपिंग में और शाम को यहाँ आया तो , साल्ली सालियाँ हरदम साथ , और गुड्डी और आग में घी डाल रही थी , कभी चिढ़ाती तो कभी रगड़ती , दरेरती , जोबन का धक्का मारती निकल जाती। और मैं मन मसोस कर रह जाता। अब सिर्फ २०-२५ मिनट बचे थे यहाँ से निकलने में , यहां तो लग नहीं रहा था कुछ हो पायेगा। अगर किसी तरह से ये लड़की मेरे साथ आधे पौन घंटे के लिए चल पाती न मेस में जहाँ मैं रुका था। बस एक बार , वरना कल तो इंगेजमेंट की गहमा गहमी में और टाइम मिलने का चांस नहीं है। मैंने कई बार सोचा मम्मी से बोलूं , की गुड्डी को अपने साथ , लेकिन बहाना क्या बनाऊ , और मम्मी के आगे मुंह खोलने में भी हिचकता था मैं. समय निकलता जा रहा था।
गुड्डी ने मुझे दुलराती आँखों से निहारा , और मैं उस बनारसी ठगिनी के पीछे ठगा ठगा सा कमरे में चला आया।
दरवाजा गुड्डी ने ही उठंगा दिया और अब मैं सोचने समझने से बहुत दूर निकल आया था।
मैंने गुड्डी को जोर से बाँहों में भींच लिया , बिना ये परवाह किये की कभी भी दरवाजा खोल के कोई आ सकता है , दरवाजे के उस पार मेरी सालियां और सास हैं।
मेरे प्यासे होंठ , गुड्डी के गुलाबी रसीले दहकते होंठों पर चिपक गए।
लेकिन गुड्डी से ज्यादा मुझे , मेरी भूख को , मेरी प्यास को कोई समझता है क्या।
मुझे से भी ज्यादा जोर से उसने मुझे दबोच रखा था।
उसके हाथों ने मेरे हाथ को पकड़ के सीधे उसके उभारों पे रख दिया ,
और फिर एक झटके में मेरी सारी झिझक गयी तेल लेने।
और मैं जिस तरह से सोच रहा था , उस से भी ज्यादा जोर से बेताबी से उन उरोजों का रस लेने लगा , दबाने निचोड़ने लगा।
गुड्डी भी न , उसने जोर से मेरे होंठों पे होंठ रगड़ा और मेरे इयर लोब्स काटते हुए बोली ,
मेरे बेसबरे बालम ,
मेरे बोल फूटे ,
मेरा बहुत मन , लेकिन मेरी बात बीच में ही रुक गयी। गुड्डी के होंठों ने , न सिर्फ मेरे होंठों को सील कर दिया था बल्कि उस की जीभ मेरे मुंह में घुस गयी थी।
अपनी दोनों लम्बी टाँगे फैला कर उसने मेरी टांगों को भी उनके अंदर दबोच लिया था। और अब मेरी बात का जवाब उसकी गुलाबी चुनमुनिया ने दिया जोर जोरसे मेरे तन्नाये , पगलाए जंगबहादुर को रगड़ कर।
और मेरी भूख और बढ़ गयी।
जंगबाहदुर और पगला गए।
लेकिन तभी मुझे लगा कमरे में कोई और है।
पर गुड्डी भी न , अब वो ड्राइविंग सीट पर आ गयी।
वो मुझे चूम रही थी ,मेरे सीने पे अपने उभार रगड़ रही थी।
और अगले पल मैं भी उतनी ही जोर से उसे चूमने लगा , उसके उभार मसलने लगा।
दो चार मिनट बाद ,.... मेरा शक सही निकला।
मेरी छोटी साली की शोख मीठी आवाज ने मेरा ध्यान तोडा ,
जीजू आपकी स्वीट डिश ,
लेकिन गुड्डी मुझे तभी भी भींचे रही , उसके होंठ मेरे होंठों पे चिपके रहे और जब हम दोनों ने एक साथ छुटकी को देखा , तो तब भी हम एक दूसरेकी बाँहों में थे।
" मुझे क्या मालूम था आप आलरेडी स्वीट डिश खा रहे हैं " शरारत से वो बोली।
" पिटेगी छुटकी तू मेरे हाथ से " गुड्डी ने खिलखिला के मुझे छोड़ते कहा और बोली ,
"जाओ पहले साली की स्वीट डिश खाओ "
मैं कुछ बोलता उसके पहले छुटकी बोल पड़ी।
" एकदम दी , ये साली कभी अपने जीजू को मना करने वाली नहीं है। "
" और तू मना करेगी तो मैं मानने वाला भी नहीं हूँ " उसकी पीठ पर मजाक में धौल जमाते हुए , मैं उसके साथ निकल आया बाहर जहाँ मेज पर मझली बैठी थी और सामने एक कवर्ड प्लेट थी।
मंझली के बगल में सिर्फ एक कुर्सी खाली थी , उससे सटी। और मैं वहां बैठ गया , लेकिन मेरे बगल में छुटकी भी ठसके से आके बैठ गयी।
" जीजू जरा सरको न। "
जवाब मंझली ने दिया , " कैसी छोटी साली हो , सीधे जीजू की गोद में बैठ जाओ न। "
छुटकी ने कुछ ललचाती कुछ चिढ़ाती नज़रों से मेरी पैंट में तने तम्बू की ओर इशारा किया, मंझली को और बोली।
" आप बड़ी हो , आप बुरा मान जाओगी , पहला हक़ इस पर तेरा है। "
" अरे छुटकी साल्ली का हक़ सबसे ज्यादा होता है। " मंझली ने समझाया।
छुटकी पूरी तरह गोद में तो नहीं बैठी , लेकिन आधी गोद में थी और उसकी एक जांघ सीधे जंगबहादुर के ऊपर और वो जान बुझ के मुझे चिढ़ाते , देखते उसे हलके हलके रगड़ भी रही थी।
"जीजू , मुझे ठीक से पकड़ लो न वरना मैं गिर जाउंगी " बड़ी इसरार से , शोख अदा से छुटकी बोली।
किसकी हिम्मत है जो ऐसे सेक्सी छोटी साली को मना करे।
उसकी फ्राक थोड़ी पुरानी दरकी हुयी थी जिसमे से उसकी कच्ची अमिया का उभार कटाव सब दिख रहा था , और वो जिस तरह मेरी ओर झुकी हुयी थी , फ्राक और स्ट्रेच हो गयी थी।
मैंने पकड़ लिया।
और छुटकी ने जैसे बड़े भोलेपन से मेरा हाथ एडजस्ट कर रही हो , मेरा हाथ थोड़ा और अपने कच्चे उरोजों पे खींचा और मेरी उँगलियों की टिप अब सीधे मटर केदाने ऐसे निपल्स पे थे।
" हूँ ,अब ठीक है " तिरछी निगाह से मुझे देखते बाँकी अदा से बोली और जब मैंने उसकी ओर देखा तो मेरा गला सूख गया।
चट चट करते हुए चुटपुटिया बटन खुल गए थे और अब उसका क्लीवेज एकदम अंदर तक दिख रहा था। बस मैं जरा सा और ऊगली बढ़ाता तो मेरा हाथ फ्राक के अंदर होता।
मन तो मेरा भी कसमस हो रहा था , फिर उसका इसरार , " जीजू जरा जोर से पकड़ो न , क्या सारी ताकत दी के पास खर्च हो गयी "
" दी नहीं बुद्धू , दी की नन्दो के साथ " मंझली ने और आग ऊगली।
मेरी हथेली छुटकी के उरोजों को दबाना शुरू कर दिया।
और फिर मंझली चालु हो गयी।
"जीजू आँख बंद , तभी मिलेगी स्वीट डिश। "
मैंने थोड़ा ना नुकुर किया , लेकिन तब तक मम्मी आ गयी और पास में बैठ गयी।
और मेरी सालियों को चिढ़ाने उकसाने लगी।
" कैसे साली हो तुम लोग और कैसे जीजू है तुम्हारे , छोटी सी बात भी नहीं मानते तुम्हारी। और कहते थे जीजू साली की गुलामी मंजूर "
" जीजू इज्जत का सवाल है " मंझली मुस्करा के बोली।
मैंने तुरंत आँखे बंद कर ली और मम्मी की ओर मुड़ के बोला , " मम्मी ,ऐसी सालियां हो तो एक नहीं सात जनम गुलामी मंजूर "
मंझली ने मेरे कान में फुसफुसाया।
" जीजू बेईमान , छुटकी का कितने प्यार से , मस्ती से पकड़ा है और मेरा नहीं " और मैं कुछ रिएक्ट करूँ , उसके पहले , उसने खुद मेरा हाथ खीच कर अपने उरोज पर रख दिया , उसके तो और गदरा रहे थे , एक दम कड़े , टेनिस बाल की तरह बल्कि थोड़े और बड़े।
मेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हो गए।
मैं जोर जोर से नहीं मसल रहा था , लेकिन हलके हलके दबाने से मेरे हाथ खुद को नहीं रोक पा रहे थे। और छुटकी तो और , वो अपने हाथ को मेरे हाथ के ऊपर रख कर खुद दबा रही थी। अब इसके बाद तो , मेरे हाथ भी अब उसकी कच्ची अमिया का स्वाद ले रहे थे लहक लहक कर , मन तो मेरा कह रहा था उसके खुले फ्राक के अंदर हाथ डाल दूँ , लेकिन ,
तब तक मंझली बोली
" जीजू खोलो न मुंह अपना ,खूब बड़ा सा "
और मैंने झट से बड़ा सा मुंह खोल दिया।
"देख मम्मी खोलने में मेरे जीजू कितने फास्ट है " मंझली ने चिढ़ाया।
" तेरे जीजू ही नहीं , इनकी सारी मायकेवालियाँ भी , खोलना , डलवाना उन्ही से सीखा है " मम्मी ये मौका क्यों छोड़तीं।
अचानक मेरी चमकी।
मेरे दोनों हाथ तो मेरे सालियों के कब्जे में है मैं खाऊंगा कैसे , स्वीट डिश।
मंझली से तो मैने धीमे से पूछा , लेकिन जवाब उसने जोर से दिया।
" क्या जीजू , ससुराल में रहकर और वो भी दो दो सालियों के होते हुए आपको अपना हाथ इस्तेमाल करने पड़े , "
और बात पूरी की छुटकी ने ,
" ये आपके साथ हम दोनों सालियों की बेइज्जती है। हम दोनों है न आपको अपने प्यारे प्यारे हाथ से खिलाने वाले "
" एकदम ससुराल में सालियां और आपके मायके में , दी की ननदे ,अब आपका हाथ का इस्तेमाल बंद " मंझली बोली।
आपके दोनों हाथ किशोर , कच्ची कली सालियों के आते उभारों पे हों , आँखे बंद हो और मुंह खुला हो , फिर आप कर भी क्या सकते हैं।
बस यही हालत मेरी थी।
" हे डाल दूँ , " छुटकी ने पुछा।
" एकदम तू छोटी साली है तेरा हक़ तो दी के भी पहले है , डाल दे ना "मंझली ने और उकसाया। " जीजू खोलने और डलवाने में एकदम दी की ननदों पे पड़े हैं " मंझली ने और जोड़ा
और छुटकी ने डाल दिया।
और उसके तुरंत बाद , मंझली ने।
और फिर दुबारा।
"जीजू जल्दी जल्दी घोंटो न " मंझली ने शिकायत की फिर बोला , इससे तेज तो आपकी बहनें घोंटती है गपागप गपागप "
" अरे दी , इनकी बहनो के झांटे बाद में आती हैं और घोंटना पहले शुरू कर देती हैं " छुटकी खिलखिलाती बोली।
अब मैं मान गया की मेरी सालियों में सास का ही खून है।
…….
और उसके बाद फिर छुटकी के हाथ से ,
मैंने इसके पहले वो ' स्वीट डिश ' कभी नहीं खायी थी।
लेकिन पहचान गया मैं।
बस वही जिसका नाम ले के लोग मुझे चिढ़ाते थे , खाना तो दूर मैं उसे छू भी नहीं सकता था , नाम भी नहीं लेता था।
लेकिन अब होभी क्या सकता था , दोनों सालियों के बीच मैं सैंडविच बना ,
और फिर मंझली और छुटकी ने एक साथ ,
पांच मिनट से ज्यादा ही हो गये थे , फिर मंझली बोली , चलिए जीजू आप भी क्या याद करेंगे। आँखे खोल दीजिये।
प्लेट में लंगड़े आमो की रसीली फांके , लेकिन २/३ से ज्यादा प्लेट खाली हो गयी थी ५-६ फांके बची थी।
और अब मंझली बोली , जीजू आप अकेले अकेले , चलिए एक फांक मैं भी लेती हूँ
और उसने एक खूब मोटी लम्बी आम की फांक लेके अपने होंठों पे इस तरह लगाया की जैसे कोई सुपाड़े को चाट रहा हो, फिर मुझे दिखा के उसने आधा गप्प कर लिया और उसे मोटे लंड की तरह चूसने लगी , सपड सपड।
जंगबहादुर की हालत ख़राब थी।
और बची खुची हालत छुटकी की हरकते , उसके ब्वायिश चूतड़ अब सीधे जंगबहादुर के ऊपर थे और उन्हें रगड़ रहे थे।
मंझली ने फिर एक बार में आम की फांक पूरी गप्प ली और उसे जोर से कुचलने दबाने लगी।
फिर अपनी जीभ निकाल कर उसने एकदम मेरे मुंह से आलमोस्ट सटा दिया , सुनहले आम के टुकड़े उसके सैलिएवा में लिपटे सने ,
मेरे लिए ये चैलेंज था , और मैंने उसे अपनी ओर खीच कर उसकी जीभ अपने मुंह में ले ली और सारे आम के टुकड़े , गड़प।
तब तक गुड्डी आ गयी।
" कित्ते आम खिला रही हो जीजू को अपने। " हँसते हुए वो भी वहीँ बैठ गयी।
सिर्फ चार दी , दो मेरे , दो मंझली के " मुंह बना कर छुटकी बोली।
द्विअर्थी डायलॉग बोलने में वो कम नहीं थी।
और फिर गुड्डी मेरे पीछे पड़ गयी।
" हे तुम तो आम के नाम से चिढ़ते थे क्या हो गया। तेरे मायके वालियां देख लेंगी तो फट के उनकी हाथ में आ जायेगी "
आखिरी की दो फांक एक साथ छुटकी ने उठा ली और मेरे मुंह में डाल रही थी की मेरी भाभी आ गयीं।
और वही हुआ ,
वो एकदम सकते में
" हे तुम और आम, मैं क्या देख रही हूँ "
" एकदम , और पूरा प्लेट साफ कर दिया उन्होंने चलिए निकालिये २,००० रुपये अभी। " मंझली हंस के बोली।
तब मुझे पता चला , मेरी चिढ तो गुड्डी ने बताई थी और फिर भाभी से इन दोनों ने शर्त लगायी थी की वो आज मुझे लंगड़ा आम खिला के रहेंगी।
अगर वो जीत गयीं तो भाभी उन्हें २,००० रुपये तो देंगी ही और ये भी मान लेंगी की उनका देवर अब पूरी तरह सालियों का गुलाम हो गया है।
बिचारी भाभी , उन्होंने पैसे निकाल के दिए। उन्हें आज चंदा भाभी के पास सोना था तो वो उधर चली गयी और मैंने घडी पे नजर डाली , तो साढ़े दस बजने वाले थे मेरे जाने का समय कब का बीत रहा था।
सपने में सजन से दो बातें
बिचारी भाभी , उन्होंने पैसे निकाल के दिए। उन्हें आज चंदा भाभी के पास सोना था तो वो उधर चली गयी और मैंने घडी पे नजर डाली , तो साढ़े दस बजने वाले थे मेरे जाने का समय कब का बीत रहा था।
सालियां दोनों प्लेट ले के अंदर चली गयी थीं , साथ में गुड्डी भी।
और मेरी निगाह घडी पे चिपकी थी।
कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या बोलूं , मम्मी से क्या बोलूं , कैसे कहूँ गुड्डी को थोड़ी देर के लिए मेरे साथ जाने दें।
मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी। क्या बहाना बनाउं , और आज मौका नहीं मिला तो फिर तो शादी के ही , और पूरे ४० दिन शादी के बचे हैं और वो भी तीन दिन की बरात , मतलब ४२ दिन का इन्तजार।
बोला मम्मी ने ,
' क्या सोच रहे हो देर हो गयी। अरे ससुराल में थोड़ा देर सबेर तो हो ही जाती है। इसी लिए तो मैं कह रही थी , …चलो कोई बात नहीं कल सब सामान लेके आजाना , तो ये देर सबेर आना जाना बचे। हाँ याद रखना , वो कल सबेरे गुड्डी की मौसी आएंगे और तेरी दोनों सालियां भी , "
बात मैंने पूरी की , " हां मम्मी , गुड्डी ने बोला था। मेरा रेस्ट हाउस स्टेशन के एकदम पास में है। मैं चला जाऊँगा लेने। "
तब तक गुड्डी आगयी।
कपडे बदल के , तैयार। मेरी फेवरिट उसकी दो साल पुरानी टॉप में ,जिसमें तब भी उसके उभार नहीं समाते थे और स्कर्ट।
"मम्मी मैं इनके साथ जा रही हूँ , आधे घंटे में आ जाउंगी "
मम्मी ने तुरंत हामी भर दी , लेकिन गुड्डी कहानी सुनाने से कहाँ चूकती।
" मम्मी , इनका कपड़ा निकालना पड़ेगा की कल क्या पहन के आएं , वरना इनका क्या। कुछ भी पहन के आ जाएंगे। ऊदबिलाव की तरह।
नाक तो कटेगी हम लोगों की , और जहाँ तक इनकी नाक का सवाल है , तो इनकी बहनो ने कब की कटवा दी , इनके बचपन में ही , तो इन्हे तो कुछ फरक पड़ता नहीं , लेकिन हम लोगो की तो इज्जत है न। और सामान भी सब इन्होने फैला रखा होगा , वो भी समेटना पड़ेगा। वरना कुछ भूल आएंगे , और बोलेंगे , हे टूथ पेस्ट भूल आया , मंजन है क्या।
हाथ फैलाने की पुरानी आदत है इनकी। "
मम्मी ने सिर्फ ये बोला " लौटेगी कैसे ".
"इनका ड्राइवर छोड़ देगा। " और वो नीचे चल दी। मैं उसके पीछे मुड़ा तो उसकी तिरछी निगाहो ने बरजा ,कुछ याद दिलाया।
और मुझे याद आगया।
मैंने झुक कर मम्मी के पैर छुए , दोनों , बारी बारी से , एक नयी दुल्हन की तरह।
और उन्होंने आशीर्वाद भी नयी दुल्हन की तरह ही दिया ,मेरे सर पे हाथ रख के ,
" सदा सुहागिन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो। तेरी गोद हरदम भरी रहे। "
और फिर अपना वाला स्पेशल आशीर्वाद भी ऐडड कर दिया ,
" तेरी बहनों को , मेरी समधनो को खूब लम्बे लम्बे , मोटे मोटे मिलें। मेरी समधन के भों ,… " लेकिन तब तक सीढ़ी पर से गुड्डी की आवाज आई और मैं नीचे चल दिया.
कार में बैठते ही मैंने गुड्डी को जोर से बाँहों में भींच लिया ,
" तेरे बिना मेरा काम नहीं चलने वाला। "
" बुद्धू " मेरे पीठ पे धौल मारती हुयी गुड्डी बोली ,
" ये बात तो जब मैं तुमसे पहले पहल मिली थी , तभी पता चल गया था मुझे की इस लड़के का काम मेरे बिना नहीं चलने वाला। बस तभी मैंने फैसला कर लिया था।
और साथ ही गुड्डी की जीभ मेरे कान में सुरसुरी कर रही थी।
मेरी हालत खराब थी। जींस में तम्बू तना हुआ था।
और गुड्डी की लम्बी उंगलिया , उसे ऊपर से सहला रही थीं।
" क्यों मुन्ना , बहुत भूख लगी है न। लेकिन अब चिंता मत करो। तेरी किस्मत खुल गयी यार , अब तेरे मायके में भी एक से एक कच्ची कलियाँ से लेके खेली खायी , भोंसड़ी , सब कुछ तेरा , अब एक दिन का भी उपवास नहीं होगा। "
और ये कह के उसने जंगबहादुर को जींस के ऊपर से कस के भींच दिया।
" मतलब ,… " गाडी चलाते हुए मैंने गुड्डी से पूछा।
मेरी ओर देखते हुए , बुरा सा मुंह बना के गुड्डी मुझसे बोली ,
" बुद्धू तुझसे कौन बोल रहा है। मैं तो अपने दोस्त से बात हूँ। "
और फिर वो जंगबहादुर की ओर मूड गयी।
ज़िप खुल गयी।
तोता आजाद हो गया।
जैसे कोई स्प्रिंग वाला चाक़ू , खटका दबाते ही बाहर निकल जाए , वैसे ही बालिश्त भर का टनटनाया , पगलाया , भूखा , बाहर ,…
गुड्डी की कोमल कोमल उँगलियों ने उसे प्यार से सहलाया , दबाया और भींच लिया , जैसे कोई सजनी बरसों से बिछड़े साजन को गले लगा ले। बस उसी तरह। और साथ में उसका अंगूठा , खुले मोटे सुपाड़े को जोर जोर से दबा रहा था।
तभी तो जंगबहादुर , अब मुझसे ज्यादा उसके हो चुके थे।
" अबे साल्ले , बहनचोद , तेरी,… " उसे दबाते सहलाते गुड्डी उससे ऐसे बात कर रही थी , जैसे लोग पक्के लंगोटिया यार से गाली दे दे के बात करते हैं।
गुड्डी ने बात जारी रखी ,
“ साले तेरी तो किस्मत खुल गयी। मम्मी को थैंक बोल. एक से एक कच्ची कलियाँ , अरे एक तो ऐसी है , जिसकी कायदे से झांटे भी नहीं आई हैं . सोच ले , छुटकी से भी छोटी है। एकदम कसी ,कच्ची कली . उंगली भी नहीं झेल पाएगी आसानी से।
घबड़ा मत साल्ली लाख हाथ पैर पटके , उसके हाथ तो मेरे कब्जे में रहंगे , हिलने नहीं दूंगी सूत भर भी। हाँ चिल्लाएगी, गांड पटकेगी, रोयेगी बहुत। पर रोने देना साल्ली को , चार गाँव तक आवाज जायेगी , आखिर तब पता चलेगा न किसकी बहना चुद रही है।“
बनारस की सूनी सड़क पर मैं गाडी चला रहा था , निगाहें मेरी सड़क पर चिपकी थीं लेकिन कान गुड्डी की बातों पे।
और गुड्डी -जंगबहादुर चर्चा जारी थी
" मैं तो उस छिनार की चीख और रोई रोहट के बारे में सोच सोच के अभी से मजे ले रही हूँ , सोच तुझे कितना मजा आएगा , जब उसकी एकदम कसी , कच्ची , कुँवारी गली में रगड़ता दरेरता फाड़ता घुसेगा मेरा शेर।
बहुत परपरायेगी उसकी। पूरी ताकत से एक बार में पूरा ठेलना। जब चरचरा कर झिल्ली फटेगी न उसकी , फ़चफ़चा कर मुट्ठी भर खून कम से कम फेंकेंगी ,… साल्ली। बिना रुके हचक हचक कर चोदना। और सारी मलाई सीधे बच्चेदानी पे। "
बोल गुड्डी रही थी , लेकिन अब मेरा मन भी ,… मेरी आँखों के सामने उसकी किशोर देह घूम रही थी। मैंने कभी मिनी, अपनी कजिन के बारे में ऐसा नहीं सोचा था।
लेकिन आज जब से मम्मी ने उस का नाम उस लिस्ट में शामिल कर लिया था जिनकी सील टूटनी थी , मुझसे ५ बार उसके चुदवाने के बारे में जबरन हामी भरवाई थी , और उससे भी बढकर छुटकी , गुड्डी की सबसे छोटी बहन , खुल के उसके नाम के साथ मेरा नाम जोड़के , मजाक कर रही थी गालियां दे रही थी ,
मेरी आँखों के सामने भी उसके गोरे गुलाबी गाल , बस जस्ट आ रही छोटी छोटी चूंचियां , … और गुड्डी जो जैसे माइंड रीडिंग मशीन थी।
मैंने गियर बदला और उसने भी।
बिचारी भाभी , उन्होंने पैसे निकाल के दिए। उन्हें आज चंदा भाभी के पास सोना था तो वो उधर चली गयी और मैंने घडी पे नजर डाली , तो साढ़े दस बजने वाले थे मेरे जाने का समय कब का बीत रहा था।
सालियां दोनों प्लेट ले के अंदर चली गयी थीं , साथ में गुड्डी भी।
और मेरी निगाह घडी पे चिपकी थी।
कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या बोलूं , मम्मी से क्या बोलूं , कैसे कहूँ गुड्डी को थोड़ी देर के लिए मेरे साथ जाने दें।
मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी। क्या बहाना बनाउं , और आज मौका नहीं मिला तो फिर तो शादी के ही , और पूरे ४० दिन शादी के बचे हैं और वो भी तीन दिन की बरात , मतलब ४२ दिन का इन्तजार।
बोला मम्मी ने ,
' क्या सोच रहे हो देर हो गयी। अरे ससुराल में थोड़ा देर सबेर तो हो ही जाती है। इसी लिए तो मैं कह रही थी , …चलो कोई बात नहीं कल सब सामान लेके आजाना , तो ये देर सबेर आना जाना बचे। हाँ याद रखना , वो कल सबेरे गुड्डी की मौसी आएंगे और तेरी दोनों सालियां भी , "
बात मैंने पूरी की , " हां मम्मी , गुड्डी ने बोला था। मेरा रेस्ट हाउस स्टेशन के एकदम पास में है। मैं चला जाऊँगा लेने। "
तब तक गुड्डी आगयी।
कपडे बदल के , तैयार। मेरी फेवरिट उसकी दो साल पुरानी टॉप में ,जिसमें तब भी उसके उभार नहीं समाते थे और स्कर्ट।
"मम्मी मैं इनके साथ जा रही हूँ , आधे घंटे में आ जाउंगी "
मम्मी ने तुरंत हामी भर दी , लेकिन गुड्डी कहानी सुनाने से कहाँ चूकती।
" मम्मी , इनका कपड़ा निकालना पड़ेगा की कल क्या पहन के आएं , वरना इनका क्या। कुछ भी पहन के आ जाएंगे। ऊदबिलाव की तरह।
नाक तो कटेगी हम लोगों की , और जहाँ तक इनकी नाक का सवाल है , तो इनकी बहनो ने कब की कटवा दी , इनके बचपन में ही , तो इन्हे तो कुछ फरक पड़ता नहीं , लेकिन हम लोगो की तो इज्जत है न। और सामान भी सब इन्होने फैला रखा होगा , वो भी समेटना पड़ेगा। वरना कुछ भूल आएंगे , और बोलेंगे , हे टूथ पेस्ट भूल आया , मंजन है क्या।
हाथ फैलाने की पुरानी आदत है इनकी। "
मम्मी ने सिर्फ ये बोला " लौटेगी कैसे ".
"इनका ड्राइवर छोड़ देगा। " और वो नीचे चल दी। मैं उसके पीछे मुड़ा तो उसकी तिरछी निगाहो ने बरजा ,कुछ याद दिलाया।
और मुझे याद आगया।
मैंने झुक कर मम्मी के पैर छुए , दोनों , बारी बारी से , एक नयी दुल्हन की तरह।
और उन्होंने आशीर्वाद भी नयी दुल्हन की तरह ही दिया ,मेरे सर पे हाथ रख के ,
" सदा सुहागिन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो। तेरी गोद हरदम भरी रहे। "
और फिर अपना वाला स्पेशल आशीर्वाद भी ऐडड कर दिया ,
" तेरी बहनों को , मेरी समधनो को खूब लम्बे लम्बे , मोटे मोटे मिलें। मेरी समधन के भों ,… " लेकिन तब तक सीढ़ी पर से गुड्डी की आवाज आई और मैं नीचे चल दिया.
कार में बैठते ही मैंने गुड्डी को जोर से बाँहों में भींच लिया ,
" तेरे बिना मेरा काम नहीं चलने वाला। "
" बुद्धू " मेरे पीठ पे धौल मारती हुयी गुड्डी बोली ,
" ये बात तो जब मैं तुमसे पहले पहल मिली थी , तभी पता चल गया था मुझे की इस लड़के का काम मेरे बिना नहीं चलने वाला। बस तभी मैंने फैसला कर लिया था।
और साथ ही गुड्डी की जीभ मेरे कान में सुरसुरी कर रही थी।
मेरी हालत खराब थी। जींस में तम्बू तना हुआ था।
और गुड्डी की लम्बी उंगलिया , उसे ऊपर से सहला रही थीं।
" क्यों मुन्ना , बहुत भूख लगी है न। लेकिन अब चिंता मत करो। तेरी किस्मत खुल गयी यार , अब तेरे मायके में भी एक से एक कच्ची कलियाँ से लेके खेली खायी , भोंसड़ी , सब कुछ तेरा , अब एक दिन का भी उपवास नहीं होगा। "
और ये कह के उसने जंगबहादुर को जींस के ऊपर से कस के भींच दिया।
" मतलब ,… " गाडी चलाते हुए मैंने गुड्डी से पूछा।
मेरी ओर देखते हुए , बुरा सा मुंह बना के गुड्डी मुझसे बोली ,
" बुद्धू तुझसे कौन बोल रहा है। मैं तो अपने दोस्त से बात हूँ। "
और फिर वो जंगबहादुर की ओर मूड गयी।
ज़िप खुल गयी।
तोता आजाद हो गया।
जैसे कोई स्प्रिंग वाला चाक़ू , खटका दबाते ही बाहर निकल जाए , वैसे ही बालिश्त भर का टनटनाया , पगलाया , भूखा , बाहर ,…
गुड्डी की कोमल कोमल उँगलियों ने उसे प्यार से सहलाया , दबाया और भींच लिया , जैसे कोई सजनी बरसों से बिछड़े साजन को गले लगा ले। बस उसी तरह। और साथ में उसका अंगूठा , खुले मोटे सुपाड़े को जोर जोर से दबा रहा था।
तभी तो जंगबहादुर , अब मुझसे ज्यादा उसके हो चुके थे।
" अबे साल्ले , बहनचोद , तेरी,… " उसे दबाते सहलाते गुड्डी उससे ऐसे बात कर रही थी , जैसे लोग पक्के लंगोटिया यार से गाली दे दे के बात करते हैं।
गुड्डी ने बात जारी रखी ,
“ साले तेरी तो किस्मत खुल गयी। मम्मी को थैंक बोल. एक से एक कच्ची कलियाँ , अरे एक तो ऐसी है , जिसकी कायदे से झांटे भी नहीं आई हैं . सोच ले , छुटकी से भी छोटी है। एकदम कसी ,कच्ची कली . उंगली भी नहीं झेल पाएगी आसानी से।
घबड़ा मत साल्ली लाख हाथ पैर पटके , उसके हाथ तो मेरे कब्जे में रहंगे , हिलने नहीं दूंगी सूत भर भी। हाँ चिल्लाएगी, गांड पटकेगी, रोयेगी बहुत। पर रोने देना साल्ली को , चार गाँव तक आवाज जायेगी , आखिर तब पता चलेगा न किसकी बहना चुद रही है।“
बनारस की सूनी सड़क पर मैं गाडी चला रहा था , निगाहें मेरी सड़क पर चिपकी थीं लेकिन कान गुड्डी की बातों पे।
और गुड्डी -जंगबहादुर चर्चा जारी थी
" मैं तो उस छिनार की चीख और रोई रोहट के बारे में सोच सोच के अभी से मजे ले रही हूँ , सोच तुझे कितना मजा आएगा , जब उसकी एकदम कसी , कच्ची , कुँवारी गली में रगड़ता दरेरता फाड़ता घुसेगा मेरा शेर।
बहुत परपरायेगी उसकी। पूरी ताकत से एक बार में पूरा ठेलना। जब चरचरा कर झिल्ली फटेगी न उसकी , फ़चफ़चा कर मुट्ठी भर खून कम से कम फेंकेंगी ,… साल्ली। बिना रुके हचक हचक कर चोदना। और सारी मलाई सीधे बच्चेदानी पे। "
बोल गुड्डी रही थी , लेकिन अब मेरा मन भी ,… मेरी आँखों के सामने उसकी किशोर देह घूम रही थी। मैंने कभी मिनी, अपनी कजिन के बारे में ऐसा नहीं सोचा था।
लेकिन आज जब से मम्मी ने उस का नाम उस लिस्ट में शामिल कर लिया था जिनकी सील टूटनी थी , मुझसे ५ बार उसके चुदवाने के बारे में जबरन हामी भरवाई थी , और उससे भी बढकर छुटकी , गुड्डी की सबसे छोटी बहन , खुल के उसके नाम के साथ मेरा नाम जोड़के , मजाक कर रही थी गालियां दे रही थी ,
मेरी आँखों के सामने भी उसके गोरे गुलाबी गाल , बस जस्ट आ रही छोटी छोटी चूंचियां , … और गुड्डी जो जैसे माइंड रीडिंग मशीन थी।
मैंने गियर बदला और उसने भी।
जंगबहादुर को हलके हलके मुठियाते बोली , "सोच रहे हो न
अपने माल के बारे में। मस्त खटमिठ्वा आम के कच्चे कच्चे टिकोरे ऐसे हैं
उसके।
तुम्ही ने तो बोला था एकदम छुटकी के साइज के। बस। कचकचा के काटने लायक। जम के दांत के निशान छोड़ना , और ख़ास तौर से ऊपर , जब लौट के जाए न तो स्कूल में टॉप के ऊपर से बाइट के निशान दिखेंगे न तो सहेलियां छेड़ेंगी , जम के उसको। "
गुड्डी ने झुक के जंगबहादुर के खुले बलबलाते सुपाड़े कोचुमा और उनकी फेवरिट चीज का लालच दे दिया . अरे गांड भी मरवाउंगी उसकी। बचपन में जिन लौंडो की गांड मारी होगी न तुमने दर्जा ८-९ वाली , बस उसी तरह के चूतड़ है तेरे माल के , एकदम ब्वायिश , लौंडा मार्का। "
जंगबहादुर तो एकदम फूल के कुप्पा हो गए। और अब वो गुड्डी की एक मुट्ठी में नहीं समा रहे थे।
गुड्डी ने उन्हें आजाद कर दिया लेकिन उसका अंगूठा अब फिर सुपाड़े को रगड़ दबा रहा और आँख मार के उसने एक पुराना डायलाग मारा , अपनी स्टाइल में थोड़ा बदल कर ।
" बहना , रिश्ते में तो हम तुम्हारे भाई लगते हैं लेकिन हैं पैदाइशी बहनचोद।“
और जोर से सुपाड़े को दबा दिया। साथ में इत्ती देर में पहली बार मेरी ओर देख के बोली ,
" तेरे साथ तेरी बहनो की भी किस्मत खुल गयी है , कर्टसी मम्मी। सोच न , अभी जो शहर में टॉप जींस में चूतड़ मटकाती , जोबना उभार के लड़को की नींद हराम करती रहती हैं।
अब, आम की अमराई में , गन्ने के खेत में , अरहर में अररर्रायी कर , एक के बाद एक गाँव के लौंडे चढ़ेंगे , कभी आगे से कभी पीछे से। चूतड़ में मिटटी के ढेले गड़ंगे और रगड़ रगड़ कर चोदी जाएंगी। "
फिर कुछ रोक कर उसने तुरप का पत्ता जड़ा और हंस कर बोली , " असली मजा तो तेरी शादी शुदा मायकेवालियों का होगा। याद है मम्मी ने क्या कहा था , दो महीने के अंदर उल्टियाँ , पेट फूलना शुरू और ९ महीने बाद के हाँ ,के हाँ , सेंट परसेंट गाभिन हो के जाएंगी , मेरे गांव से।
और सारी लड़कियां होंगी , पैदायशी छिनार लेकिन वल्द नामालूम। आखिर एक एक पर , सात आठ चढ़ेंगे , तीन दिन में तो कैसे पता चलेगा किसका शॉट निशाने पर लगा। "
मैंने सोचा की बोलूं , यार मम्मी मजाक कर रही थीं , तुझे भी मालूम है , मुझे भी। लेकिन हिम्मत किसकी बोलने की। मैंने ये दिखाया की मेरा ध्यान ड्राइव करने पे है।
लेकिन दिल के साथ अब दिमाग भी तो उसी सारंग नयनी के पास है। मुझसे पहले उसे पता चल जाता है , मैं क्या सोच रहा हूँ।
कुहनी से मुझे मारती , मुस्करा के बोली , कहीं ये तो नहीं सोच रहे हो की मम्मी मजाक कररही थी? एकदम नहीं , तेरे मायकेवालियों के मामले में मम्मी की बात सेंट परसेंट सही होगी , बल्कि उम्मीद से दूना मिलेगा मेरी जान। और सब की सब हाट सीट पे बैठेंगी।
नो फिंगर विंगर सीधे असली मजा। और नो लाइफ लाइन। सटासट , गपागप , सटासट , गपागप। अरे यार असली फायदा तो तेरे मयकेवालों का भी होगा न , जब लौटेंगी तो सब की बिल में इतने चींटे काटेंगे , की किसी लौंडे को मना नहीं कर पाएंगी बल्कि पांच दस यार खुद ही खोजेंगी। दूज की चाँद सी चूत सी चूत लिए , फिरती थी एक नार चुदासी। तेरी ससुराल में चुद गयी तो फैल के हो गयी पूरन मासी।
और साथ में मुठियाने की जगह अब वो दोनो हाथों से कई नयी जवान होती ग्वालन , दोनों हाथों से मथानी पकड़ के दही बिलोड़े , उसी तरह मेरे लंड को मथ रही थी।
गाडी एक संकरी गली में मुड़ी , मैंने गियर बदला साथ में गुड्डी ने भी।
उसका अंगूठा अब फिर जोर जोर से फूले सुपाड़े को रगड़ रहा था। अपने लम्बे नाख़ून से वो मेरे पी होल पे गुड्डी बार बार सुरसुरी कर रही थी। मस्ती से मेरी हालत ख़राब हो रही थी और गुड्डी ने फिर जंगबाहदुर से वार्ता शुरू कर दी।
" असली ब्रेकिंग न्यूज तो मैंने दी ही नहीं। सुनोगे तो हालत खराब हो जायेगी , अरे जिसके साथ कच्ची कली से भी ज्यादा मजा आएगा , मम्मी ने उस से भी तेरी सेटिंग पक्की कर दी है। सही सोचा तूने , भोंसड़े का मजा , वो भी खूब खेली खायी , चुदी चुदाई , कोई नौसिखिया नहीं की खाली चीखे चिल्लाये , खुद बढ़ बढ़ कर , और इन्होने भी हाँ कर दी है। सबसे बढ़ कर तो मम्मी की सगी समधन , मेरी सगी , "
अब मुझसे नहीं रहा गया और मैं बोल पड़ा ,
" अरे यार तू भी जानती है , मैं भी जानता हूँ , चिढ़ाने में मजाक करने में मम्मी का , "
लेकिन गुड्डी ने मेरी बात भी काट दी और मुझे डांट भी पड़ गयी।
"मन मन भावे मूड हिलावे , झूठे , बुआ के सामने पांच बार बोले थे , मैं मादर , और मझली ने तो रिकार्ड किया है मुझे भी एम एम एस कर दिया था , कहो तो सुनाऊ। तेरे दिल की बात झूठे मुझे मालूम है , तू सोच रहा है न कैसे होगा , मम्मी को प्रॉमिस तो कर दिया है लेकिन मैं तो इतना अच्छा बच्चा हूँ। मुन्ने तुझे सोचने की परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। मम्मी हैं न , सब सेटिंग करा देंगी। बस तुझे धक्के मारने होंगे , और उसमें तो तुम उस्ताद हो ही। और उस समय भी तुमने कुछ झिझक की न तो मम्मी उस का भी इलाज कर देगीं। तुम सोच रहे हो न , कब होगा कैसे होगा। कैसे होगा , ये सोचने की अब तुम्हे जरूरत नहीं सेट करने के साथ मम्मी अपने हाथ से पकड़ कर सटाएँगी , घुसाएंगी। बस। और कब तक तो बस हमारी शादी के छ महिने के अंदर कोई तेरी मायकेवालियन नहीं बचेंगी , सब इसका मजा ले चुकी होंगी और जिसने एक बार चख लिया इस बांस बहादुर का मजा , फिर तो खुद फैलाये आएगी। रोको जल्दी।
मेरी आँखों ने बाद में देखा ,लेकिन हाथों ने गुड्डी की बात पे तुरंत इमरजेंसी ब्रेक लगाया।
दो नतीजा हुआ।
गाडी ७-८ मीटर में घिसटती रुक गयी और गुड्डी जो आधी मेंरी गोद में थी पूरी तरह मेरी गोद में आ गयी। खुले जंगबहादुर उसकी दोनों फैली जांघो के बीच और मेरा एक हाथ उसके किशोर उरोजों पे।
सामने वही दृश्य था , जो बनारस में होना था।
संकरी सड़क पे रास्ता रोके , एक बृहदाकार वृषभ महोदय।
लेकिन वो अकेले नहीं थे , उनके नीचे एक कोमल कमनीय कच्ची बछेड़ी , जो शर्माती लजाती शायद पहली बार सांड सुख ले रही थी।
दो तीन बार नाम के लिए उसने दुलत्ती मारने की कोशिस की , दिखावे का छुड़ाने का प्रतिरोध किया। लेकिन बनारसी सांड उसने अपने अगले दोनों पैरों से उसे दबोच रखा था और अपना विशाल लिंग ,… मैथुन क्रिया बस शुरू ही हुयी थी।
मुझे वाल्मीकि का क्रौंच वाला श्लोक याद आया और मैंने हेड लाइट बंद कर दी।
स्ट्रीट लाइट पहले ही गली के लड़को की निशाने बाजी प्रतियोगिता का शिकार हो चुकी।
तुम्ही ने तो बोला था एकदम छुटकी के साइज के। बस। कचकचा के काटने लायक। जम के दांत के निशान छोड़ना , और ख़ास तौर से ऊपर , जब लौट के जाए न तो स्कूल में टॉप के ऊपर से बाइट के निशान दिखेंगे न तो सहेलियां छेड़ेंगी , जम के उसको। "
गुड्डी ने झुक के जंगबहादुर के खुले बलबलाते सुपाड़े कोचुमा और उनकी फेवरिट चीज का लालच दे दिया . अरे गांड भी मरवाउंगी उसकी। बचपन में जिन लौंडो की गांड मारी होगी न तुमने दर्जा ८-९ वाली , बस उसी तरह के चूतड़ है तेरे माल के , एकदम ब्वायिश , लौंडा मार्का। "
जंगबहादुर तो एकदम फूल के कुप्पा हो गए। और अब वो गुड्डी की एक मुट्ठी में नहीं समा रहे थे।
गुड्डी ने उन्हें आजाद कर दिया लेकिन उसका अंगूठा अब फिर सुपाड़े को रगड़ दबा रहा और आँख मार के उसने एक पुराना डायलाग मारा , अपनी स्टाइल में थोड़ा बदल कर ।
" बहना , रिश्ते में तो हम तुम्हारे भाई लगते हैं लेकिन हैं पैदाइशी बहनचोद।“
और जोर से सुपाड़े को दबा दिया। साथ में इत्ती देर में पहली बार मेरी ओर देख के बोली ,
" तेरे साथ तेरी बहनो की भी किस्मत खुल गयी है , कर्टसी मम्मी। सोच न , अभी जो शहर में टॉप जींस में चूतड़ मटकाती , जोबना उभार के लड़को की नींद हराम करती रहती हैं।
अब, आम की अमराई में , गन्ने के खेत में , अरहर में अररर्रायी कर , एक के बाद एक गाँव के लौंडे चढ़ेंगे , कभी आगे से कभी पीछे से। चूतड़ में मिटटी के ढेले गड़ंगे और रगड़ रगड़ कर चोदी जाएंगी। "
फिर कुछ रोक कर उसने तुरप का पत्ता जड़ा और हंस कर बोली , " असली मजा तो तेरी शादी शुदा मायकेवालियों का होगा। याद है मम्मी ने क्या कहा था , दो महीने के अंदर उल्टियाँ , पेट फूलना शुरू और ९ महीने बाद के हाँ ,के हाँ , सेंट परसेंट गाभिन हो के जाएंगी , मेरे गांव से।
और सारी लड़कियां होंगी , पैदायशी छिनार लेकिन वल्द नामालूम। आखिर एक एक पर , सात आठ चढ़ेंगे , तीन दिन में तो कैसे पता चलेगा किसका शॉट निशाने पर लगा। "
मैंने सोचा की बोलूं , यार मम्मी मजाक कर रही थीं , तुझे भी मालूम है , मुझे भी। लेकिन हिम्मत किसकी बोलने की। मैंने ये दिखाया की मेरा ध्यान ड्राइव करने पे है।
लेकिन दिल के साथ अब दिमाग भी तो उसी सारंग नयनी के पास है। मुझसे पहले उसे पता चल जाता है , मैं क्या सोच रहा हूँ।
कुहनी से मुझे मारती , मुस्करा के बोली , कहीं ये तो नहीं सोच रहे हो की मम्मी मजाक कररही थी? एकदम नहीं , तेरे मायकेवालियों के मामले में मम्मी की बात सेंट परसेंट सही होगी , बल्कि उम्मीद से दूना मिलेगा मेरी जान। और सब की सब हाट सीट पे बैठेंगी।
नो फिंगर विंगर सीधे असली मजा। और नो लाइफ लाइन। सटासट , गपागप , सटासट , गपागप। अरे यार असली फायदा तो तेरे मयकेवालों का भी होगा न , जब लौटेंगी तो सब की बिल में इतने चींटे काटेंगे , की किसी लौंडे को मना नहीं कर पाएंगी बल्कि पांच दस यार खुद ही खोजेंगी। दूज की चाँद सी चूत सी चूत लिए , फिरती थी एक नार चुदासी। तेरी ससुराल में चुद गयी तो फैल के हो गयी पूरन मासी।
और साथ में मुठियाने की जगह अब वो दोनो हाथों से कई नयी जवान होती ग्वालन , दोनों हाथों से मथानी पकड़ के दही बिलोड़े , उसी तरह मेरे लंड को मथ रही थी।
गाडी एक संकरी गली में मुड़ी , मैंने गियर बदला साथ में गुड्डी ने भी।
उसका अंगूठा अब फिर जोर जोर से फूले सुपाड़े को रगड़ रहा था। अपने लम्बे नाख़ून से वो मेरे पी होल पे गुड्डी बार बार सुरसुरी कर रही थी। मस्ती से मेरी हालत ख़राब हो रही थी और गुड्डी ने फिर जंगबाहदुर से वार्ता शुरू कर दी।
" असली ब्रेकिंग न्यूज तो मैंने दी ही नहीं। सुनोगे तो हालत खराब हो जायेगी , अरे जिसके साथ कच्ची कली से भी ज्यादा मजा आएगा , मम्मी ने उस से भी तेरी सेटिंग पक्की कर दी है। सही सोचा तूने , भोंसड़े का मजा , वो भी खूब खेली खायी , चुदी चुदाई , कोई नौसिखिया नहीं की खाली चीखे चिल्लाये , खुद बढ़ बढ़ कर , और इन्होने भी हाँ कर दी है। सबसे बढ़ कर तो मम्मी की सगी समधन , मेरी सगी , "
अब मुझसे नहीं रहा गया और मैं बोल पड़ा ,
" अरे यार तू भी जानती है , मैं भी जानता हूँ , चिढ़ाने में मजाक करने में मम्मी का , "
लेकिन गुड्डी ने मेरी बात भी काट दी और मुझे डांट भी पड़ गयी।
"मन मन भावे मूड हिलावे , झूठे , बुआ के सामने पांच बार बोले थे , मैं मादर , और मझली ने तो रिकार्ड किया है मुझे भी एम एम एस कर दिया था , कहो तो सुनाऊ। तेरे दिल की बात झूठे मुझे मालूम है , तू सोच रहा है न कैसे होगा , मम्मी को प्रॉमिस तो कर दिया है लेकिन मैं तो इतना अच्छा बच्चा हूँ। मुन्ने तुझे सोचने की परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। मम्मी हैं न , सब सेटिंग करा देंगी। बस तुझे धक्के मारने होंगे , और उसमें तो तुम उस्ताद हो ही। और उस समय भी तुमने कुछ झिझक की न तो मम्मी उस का भी इलाज कर देगीं। तुम सोच रहे हो न , कब होगा कैसे होगा। कैसे होगा , ये सोचने की अब तुम्हे जरूरत नहीं सेट करने के साथ मम्मी अपने हाथ से पकड़ कर सटाएँगी , घुसाएंगी। बस। और कब तक तो बस हमारी शादी के छ महिने के अंदर कोई तेरी मायकेवालियन नहीं बचेंगी , सब इसका मजा ले चुकी होंगी और जिसने एक बार चख लिया इस बांस बहादुर का मजा , फिर तो खुद फैलाये आएगी। रोको जल्दी।
मेरी आँखों ने बाद में देखा ,लेकिन हाथों ने गुड्डी की बात पे तुरंत इमरजेंसी ब्रेक लगाया।
दो नतीजा हुआ।
गाडी ७-८ मीटर में घिसटती रुक गयी और गुड्डी जो आधी मेंरी गोद में थी पूरी तरह मेरी गोद में आ गयी। खुले जंगबहादुर उसकी दोनों फैली जांघो के बीच और मेरा एक हाथ उसके किशोर उरोजों पे।
सामने वही दृश्य था , जो बनारस में होना था।
संकरी सड़क पे रास्ता रोके , एक बृहदाकार वृषभ महोदय।
लेकिन वो अकेले नहीं थे , उनके नीचे एक कोमल कमनीय कच्ची बछेड़ी , जो शर्माती लजाती शायद पहली बार सांड सुख ले रही थी।
दो तीन बार नाम के लिए उसने दुलत्ती मारने की कोशिस की , दिखावे का छुड़ाने का प्रतिरोध किया। लेकिन बनारसी सांड उसने अपने अगले दोनों पैरों से उसे दबोच रखा था और अपना विशाल लिंग ,… मैथुन क्रिया बस शुरू ही हुयी थी।
मुझे वाल्मीकि का क्रौंच वाला श्लोक याद आया और मैंने हेड लाइट बंद कर दी।
स्ट्रीट लाइट पहले ही गली के लड़को की निशाने बाजी प्रतियोगिता का शिकार हो चुकी।
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