Saturday, March 14, 2015

FUN-MAZA-MASTI गुमराह पिता की हमराह बेटी--10

FUN-MAZA-MASTI

 गुमराह पिता की हमराह बेटी--10

जयसिंह उसे देख कर मुस्कुराए और उठ खड़े हुए. मनिका बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और उसने एक तरफ हट कर अपने पिता को बाथरूम में जाने के रास्ता दिया था. जयसिंह ने बाथरूम में घुस दरवाज़ा बंद कर लिया. उधर मनिका भी जा कर बेड पर बैठ गई थी.
बाथरूम से बाहर आने से पहले मनिका ने एकबारगी सोचा था कि अगर आज भी उसके पिता पिछली रात की भाँती सामने नंगे बैठे हुए तो वह क्या करेगी? पर फिर उसने यह सोचकर अपने मन से वह बात निकाल दी थी कि वो सिर्फ एक बार अनजाने में हुई घटना थी. लेकिन बाथरूम से बाहर निकलते ही जयसिंह से रूबरू हो जाने पर मनिका की नज़र सीधा उनकी टांगों के बीच गई थी. आज भी जयसिंह ने टांगें इस तरह खोल रखीं थी के उनके गुप्तांग प्रदर्शित हो रहे हों लेकिन आज जयसिंह ने एक सफ़ेद अंडरवियर पहन रखा था. मनिका की धड़कन बढ़ गई थी. अंडरवियर पहने होने के बावजूद जयसिंह के लंड का उठाव साफ़ नज़र आ रहा था. अंडरवियर में खड़े उनके लिंग ने उसके कपड़े को पूरा खींच कर ऊपर उठा दिया था, मनिका ने झट से अपनी नज़र ऊपर उठा कर अपने पिता की आँखों में देखा था, वे मुस्कुराते हुए उठे थे और बाथरूम में जाने लगे थे. उनके करीब आने पर मनिका की साँस जैसे रुक सी गई थी, बिना शर्ट के जयसिंह के बदन का ऊपरी भाग पूरी तरह से उघड़ा हुआ था, उन्होंने बनियान भी नहीं पहन रखी थी. जयसिंह का चौड़ा सीना और बलिष्ठ बाँहे देख हया से मनिका की नज़र नीचे हो गई थी और उसने एक तरफ हो उन्हें बाथरूम में जाने दिया व आ कर बेड पर बैठी थी,
'ओह्ह...थैंक गॉड आज पापा अंडरवियर पहने हुए थे...बट फिर से मैंने उनके प्राइवेट पार्ट्स को एक्सपोस होते देख लिया...मतलब अंडरवियर में से भी उनका बड़ा सा डिक...हे राम मैं फिर से ऐसा-वैसा सोचने लगी...' ब्लू-फिल्म में देखने से मनिका को यह तो पता था कि मर्द जब उत्तेजित होते हैं तो उनका लिंग सख्त हो जाता है पर उसने कभी बैठे हुए लिंग का दीदार तो किया नहीं था सो उसे उनके बीच के अंतर का पता नहीं था. एक बार फिर उसका बदन तमतमा गया था और वह सोचने लगी थी 'पता नहीं पापा कैसे इतना बड़ा...पैंट में डाल के रखते हैं? नहीं-नहीं...ऐसा मत सोच...अनकम्फर्टेबल फील नहीं होता क्या उन्हें..? हाय...ये मैं क्या-क्या सोच रही हूँ...पापा को पता चला तो क्या सोचेंगे?'
जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो मनिका को टी.वी देखते हुए पाया. मनिका ने ध्यान बंटाने के लिए टेलीविज़न चला रखा था. जयसिंह भी आकर उसके पास बैठ गए. मनिका ने कनखियों से उनकी तरफ देखा था वे आज भी बरमूडा और टी-शर्ट पहने हुए थे.
जयसिंह ने मनिका की बाँह पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा, वह उनका इशारा समझ गई थी और उनकी तरफ देखा, जिस पर जयसिंह ने उसे उठ कर गोद में आने का इशारा किया. मनिका थोडा सकुचा गई थी पर फिर भी उठ कर उनकी गोद में आ बैठी. आज वह उनकी जाँघ पर बैठी थी.
'क्या कुछ चल रहा है टी.वी में..?' जयसिंह ने पूछा.
'कुछ नहीं पापा...वैसे ही चैनल चेंज कर रही थी बैठी हुई. आज दिन में सो लिए थे तो नींद भी कम आ रही है.' मनिका ने बताया.
'हम्म...' जयसिंह ने टी.वी की स्क्रीन पर देखते हुए कहा.
कुछ देर वे दोनों वैसे ही बैठे टेलीविज़न देखते रहे, मनिका थोड़ी-थोड़ी देर में चैनल बदल दे रही थी. कुछ पल बाद जब मनिका ने एक बार फिर चैनल चेंज किया तो 'ईटीसी' चल पड़ा और उस पर 'जन्नत' फिल्म का ही ट्रेलर आ रहा था. जयसिंह को बात छेड़ने का मौका मिल चुका था.
आज जयसिंह ने जानबूझकर अंडरवियर पहने रखा था ताकि मनिका को शक न हो जाए कि वे उसे अपना नंगापन इरादतन दिखा रहे थे. लेकिन फिर कुछ सोच कर उन्होंने अपन शर्ट और बनियान निकाल दिए थे, आखिर मनिका को सामान्य हो जाने का मौका देना भी तो खतरे से खाली नहीं था. बाथरूम से निकलते ही मनिका की प्रतिक्रिया को वे एक क्षण में ही ताड़ गए थे और मुस्कुराते हुए नहाने घुस गए थे. लेकिन नहाने के बाद उन्होंने अपना अंडरवियर धो कर सुखा दिया था और अब बरमूडे के अन्दर कुछ नहीं पहने हुए थे. उन्होंने बात शुरू की,
'अरे मनिका! बताया नहीं तुमने कि मूवी कैसी लगी तुम्हें? पिछली बार तो फिल्म की बातों का रट्टा लगा कर हॉल से बाहर निकली थी तुम...'
'हेहे...ठीक थी पापा...' मनिका ने फिल्म के दौरान हुई घटनाओं को याद किया तो और झेंप गई थी.
'हम्म..मतलब जंची नहीं फिल्म आज..?' जयसिंह ने मनिका से नजर मिलाई.
'हेह..नहीं पापा ऐसा नहीं है...बस वैसे ही, मूवी की कास्ट (हीरो-हीरोइन) कुछ खास नहीं थी...और क्राउड भी गंवार था एकदम...सो...आपको कैसी लगी?' मनिका ने धीरे-धीरे अपने मन की बात कही और पूछा.
'मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं आई.' जयसिंह ने कहा.
'हैं? क्या सच में..?' मनिका ने आश्चर्य से पूछा.
'और क्या जो चीज़ तुम्हें नहीं पसंद वो मुझे भी नहीं पसंद...' जयसिंह ने डायलॉग मारा.
'हाहाहा पापा...कितने नौटंकी हो आप भी...बताओ ना सच-सच..?' मनिका हंस पड़ी.
'हाह...मुझे तो ठीक लगी...' जयसिंह ने कहा, 'और क्राउड तो अब हमारे देश का जैसा है वैसा है.'
'हुह...फिर भी बदतमीजी की कोई हद होती है. पब्लिक प्लेस का कुछ तो ख्याल होना चाहिए लोगों को...' मनिका ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा.
'हाहाहा...अरे भई तुम क्यूँ खून जला रही हो अपना?' जयसिंह ने मनिका की पीठ थपथपाते हुए कहा.
'और क्या तो पापा...गुस्सा नहीं आएगा क्या आप ही बताओ?' मनिका का आशय थिएटर में हुए अश्लील कमेंट्स से था.
'अरे अब क्या बताऊँ...हाहाहा.' जयसिंह बोले 'माना कि कुछ लोग ज्यादा ही एक्साइटेड हो जाते हैं...'
'एक्साइटेड? बेशर्म हो जाते हैं पापा...और सब के सब आदमी ही थे...आपने देखा किसी लड़की या लेडी को एक्साइटेड होते हुए?' मनिका ने जयसिंह के ढुल-मुल जवाब को काटते हुए कहा.
'हाहाहा भई तुम तो मेरे ही पीछे पड़ गई...मैं कहाँ कह रहा हूँ के लडकियाँ एक्साइटेड हो रहीं थी.' जयसिंह को एक सुनहरा मौका दिखाई देने लगा था और उन्होंने अब मनिका को उकसाना शुरू किया 'अब हो जाते हैं बेचारे मर्द थोड़ा उत्साहित क्या करें...'
'हाँ तो पापा और भी लोग होते है वहाँ जिनको बुरा लगता है...और ये वही मर्द हैं आपके जिनका आप कह रहे थे कि बड़ा ख्याल रखते हैं गर्ल्स का...' मनिका ने मर्द जात को लताड़ते हुए कहा.
'अच्छा भई...ठीक है सॉरी सब मर्दों की तरफ से...अब तो गुस्सा छोड़ दो.' जयसिंह ने मामला सीरियस होते देख मजाक किया.
'हेहे...पापा आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो...आप उनकी तरह नहीं हो.' मनिका ने भी अपने आवेश को नियंत्रित करते हुए मुस्का कर कहा.
इस पर जयसिंह कुछ पल के लिए चुप हो गए. मनिका ने उनकी तरफ से कोई जवाब ना मिलने पर धीरे से कहा,
'पापा?'
'देखो मनिका ये बात तुम्हारे या मेरे सही-गलत होने की नहीं है. हमारे समाज में बहुत सी ऐसी पाबंदियां हैं जिनकी वजह से हम अपनी लाइफ के बहुत से आस्पेक्ट्स (पहलु) अपने हिसाब से ना जी कर सोसाइटी के नियम-कानूनों से बंध कर फॉलो करते हैं और यह भी उसी का एक एक्साम्प्ल (उदहारण) है.' जयसिंह ने कुछ गंभीरता अख्तियार कर समझाने के अंदाज़ में मनिका से कहा. चुप हो जाने की बारी अब मनिका की थी.
'पर पापा...ये आप कैसे कह सकते हो? दोज़ पीपल वर एब्यूजिंग सो बैडली...' मनिका ने कुछ पल जयसिंह की बात पर विचार करने के बाद कहा.
'हम्म...वेल लुक एट इट लाइक दिस...जिस तरह का सीन फिल्म में आ रहा था...' जयसिंह का मतलब फिल्म में आए उस किसिंग सीन से था, मनिका की नज़र झुक गई 'क्या वह हमारे समाज में एक्सेप्टेड है..? मेरा मतलब है कुछ साल पहले तक तो इस तरह की फिल्मों की कल्पना तक नहीं कर सकते थे.'
'इह...हाँ पापा बट इसका मतलब ये थोड़े ही है की आप ऐसा बिहेव करो सबके सामने..' मनिका ने तर्क रखा.
'नहीं इसका यह मतलब नहीं है...पर पता नहीं कितने ही हज़ार सालों से चली आ रही परम्परा के नाम पर जो दबी हुई इच्छाएँ...और मेरा मतलब सिर्फ लड़कों या मर्दों से नहीं है, औरत की इच्छाओं का दमन तो हमसे कहीं ज्यादा हुआ है...लेकिन जो मैं कहना चाह रहा हूँ वह यह है कि जब सोसाइटी के बनाए नियम टूटते हैं तो इंसान अपनी आज़ादी के जोश में कभी-कभी कुछ हदें पार कर ही जाता है.' जयसिंह ने ज्ञान की गगरी उड़ेलते हुए मनिका को निरुत्तर कर दिया था 'अब तुम ही सोचो अगर आज जब लड़कियों को सामाज में बराबर का दर्जा मिल रहा है तो भी क्या उन लड़कियों को बिगडैल और ख़राब नहीं कहा जाता जो अपनी आजादी का पूरा इस्तेमाल करना चाहती हैं...जिनके बॉयफ्रेंड होते हैं या जो शराब-सिगरेट पीती हैं..?'
'हाँ...बट...वो भी तो गलत है ना..? आई मीन अल्कोहोल पीना...' मनिका ने तर्क से ज्यादा सवाल किया था.
'कौन कहता है?' जयसिंह ने पूछा.
'सभी कहते हैं पापा...सबको पता है इट्स हार्मफुल.' मनिका बोली.
'सभी कौन..? लोग-समाज-सोसाइटी यही सब ना? अब शराब अगर आपके लिए ख़राब है तो यह बात उनको भी तो पता है...अगर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता तो समाज कौन होता है उनहें रोकनेवाला?' जयसिंह अब टॉप-गियर में आ चुके थे. 'अगर उन्हें अपने पसंद के लड़के के साथ रहना है तो तुम और मैं कौन होते हैं कुछ कहने वाले..? सोचो...सही और गलत की डेफिनिशन भी तो समाज ने ही बना कर हम पर थोपी है.'
'अब मैं क्या बोलूँ पापा..? आप के आइडियाज तो कुछ ज्यादा ही एडवांस्ड हैं.' मनिका ने हल्का सा मुस्का कर कहा. 'बट हमें रहना भी तो इसी सोसाइटी में है ना.' उसने एक और तर्क रखते हुए कहा.
'हाँ रहना है...' जयसिंह बोलने लगे.
'तो फिर हमें रूल्स भी तो फॉलो करने ही पड़ेंगे ना..?' अपना तर्क सिद्ध होते देख मनिका ने उनकी बात काटी.
'हाहाहा...कोई जरूरी तो नहीं है.' जयसिंह ने कहा.
'वो कैसे?' मनिका ने सवालिया निगाहें उनके चेहरे पर टिकाते हुए पूछा.
'वो ऐसे कि रूल्स को तो तोड़ा भी जा सकता है...बशर्ते यह समझदारी से किया जाए.' जयसिंह ने कहा.
'मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा पापा...क्या कहना चाहते हो आप?' मनिका ने उलझन में पड़ते हुए सवाल किया.
'देखो...आज जब हॉल में वे लोग हूटिंग कर रहे थे तो कोई एक आदमी अकेला नहीं कर रहा था बल्कि चारों तरफ से आवाजें आ रही थी. अब सोचो अगर सिर्फ कोई एक अकेला होता तो तुम जैसे समाज के ठेकेदार उसे वहाँ से भगाने में देर नहीं लगाते पर क्यूंकि वे ज्यादा थे तो कोई कुछ नहीं बोला...अगर वे इतने ही ज्यादा गलत थे तो किसी ने आवाज़ क्यूँ नहीं उठाई?' जयसिंह का एक हाथ अब मनिका की कमर पर आ गया था 'मैं बताऊँ क्यूँ..? क्यूंकि असल में उस हॉल में ज्यादातर लोग उसी तरह के सीन देखने आए थे. पर बाकी सबने सभ्यता का नकाब ओढ़ रखा था और उन लोगों पर नाक-भौं सिकोड़ रहे थे जिन्होंने अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने की हिम्मत दिखाई थी. सो एकजुट होकर अपनी इच्छा मुताबिक करना पहला तरीका है जिससे समाज के नियमों को तोड़ नहीं तो मोड़ तो सकते ही हैं.'
जयसिंह के तर्क मनिका के आज तक के आत्मसात किए सभी मूल्यों के इतर जा रहे थे लेकिन उनका प्रतिरोध करने के लिए भी उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था.
'पर पापा वो इतना रुडली बोल रहे थे उसका क्या? किसी को तो उन्हें रोकना चाहिए था...और आपका पता नहीं मैं तो वहां कोई सीन देखने नहीं गई थी.' मनिका ने सफाई देते हुए कहा.
'हाँ जरूर समाज का तो काम ही है रोकना. पहले दिन से ही समाज रोकना ही तो सिखाता है कभी लड़का-लड़की के नाम पर तो कभी घर-परिवार के नाम पर तो कभी धर्म-आचरण के नाम पर...अब तुम बताओ क्या फिर भी तुम रुकी?' जयसिंह का बात की आखिर में किया सवाल मनिका के समझ नहीं आया.
'क्या मतलब पापा...मैंने क्या किया?' उसने हैरानी से पूछा.
'क्या संचिता से तुम्हारी लड़ाई नहीं होती? वो तुम्हारी माँ है...क्या उनके सामने बोलना तुम्हें शोभा देता है? और फिर समाज भी यही कहता है कि अपने माता-पिता का आदर करो...नहीं कहता तो बताओ?' जयसिंह ने कहा.
'पर पापा मम्मी हमेशा बिना बात के मुझे डांट देती है तो गुस्सा नहीं आएगा क्या? मेरी कोई गलती भी नहीं होती...और मैं कोई हमेशा उनके सामने नहीं बोलती पर जब वो ओवर-रियेक्ट करने लगती है तो क्या करूँ..? अब आप भी मुझे ही दोष दे रहे हो.' मनिका जयसिंह की बात से आहत होते हुए बोली.
'अरे!' जयसिंह ने अब अपना हाथ मनिका की कमर से पीठ तक फिरा कर उसे बहलाया 'मैं तो हमेशा तुम्हारा साथ देता आया हूँ...'
'तो आप ऐसा क्यूँ कह रहे हो कि मैं मम्मी से बिना बात के लड़ती हूँ?' मनिका ने मुहं बनाते हुए अपना सिर उनके कंधे पर टिकाया.
'मैंने ऐसा कब कहा...मैं जो कह रहा हूँ वो तुम समझ नहीं रही हो. तुम संचिता से लड़ाई इसीलिए तो करती हो ना क्यूंकि वो गलत होती है और तुम सही...फिर भी तुम्हे उसके ताने सहने पड़ते हैं क्यूंकि वो तुम्हारी माँ है. लेकिन इस बारे में अगर सोसाइटी में चार जानो के सामने तुम अपना पक्ष रखोगी तो वे तुम्हें ही गलत मानेंगे कि नहीं?' जयसिंह ने इस बार प्यार से उसे समझाया.
'हाँ पापा.' मनिका को भी उनका आशय समझ आ गया था.
'सो अब तुम अपनी माँ से हर बात शेयर नहीं करती क्यूंकि तुम्हें उसके एटीटयुड का पता है और यही तुम्हारी समझदारी है व वह दूसरा तरीका है जिस से समाज में रह कर भी हम अपनी इच्छा मुताबिक जी सकते हैं.'
'मतलब...पापा?' मनिका को उनकी बात कुछ-कुछ समझ आने लगी थी.
'मतलब समाज और लोगों को सिर्फ उतना ही दिखाओ जितना उनकी नज़र में ठीक हो, जैसे तुम अपनी माँ के साथ करती हो...लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम गलत हो और तुम्हारी माँ या समाज के लोग सही हैं. कुछ समझी?'
'हेहे...हाँ पापा कुछ-कुछ...' मनिका अब मुस्का रही थी.
'और ये बात मैंने तुम्हें पहले भी समझाई थी के अगर मैं भी समाज के हिसाब से चलने लगता तो क्या हम यहाँ इतना वक्त बिताते? हम दोनों ही घर से झूठ बोल कर ही तो यहाँ रुके हुए हैं...' जयसिंह ने आगे कहा.
'हाँ पापा आई क्नॉ...आई थिंक आई एम् गेटिंग व्हाट यू आर ट्राइंग टू से...कि सोसाइटी इज नॉट ऑलवेज राईट...और ना ही हम हमेशा सही होते हैं...है ना?' मनिका ने जयसिंह की बात के बीच में ही कहा.
'हाँ..फाइनली.' जयसिंह बोले.
'हीहीही. इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ मैं पापा...' मनिका हँसी.
'हाहाहा. बस समझाने वाला होना चाहिए.' जयसिंह ने हौले से मनिका को अपनी बाजू में भींच कर कहा.
'तो आप हो ना पापा...' मनिका भी उनसे करीबी जता कर बोली.
'हाहाहा...हाँ मैं तो हूँ ही पर मुझे लगा था तुम अपने आप ही समझ गई होगी दिल्ली आने के बाद.' जयसिंह ने बात ख़त्म नहीं होने दी थी.
'वो कैसे?' मनिका ने फिर से कौतुहलवश पूछा.
'अरे वही हमारी बात...कुछ नहीं चलो छोड़ो अब...' जयसिंह आधी सी बात कह रुक गए.
'बताओ ना पापा!? कौनसी बात..?' मनिका ने हठ किया.
'अरे कुछ नहीं...कब से बक-बक कर रहा हूँ मैं भी...' जयसिंह ने फिर से टाला.
'नहीं पापा बताओ ना...प्लीज.' मनिका ने भी जिद नहीं छोड़ी. सो जयसिंह ने एक पल उसकी नज़र से नज़र मिलाए राखी और फिर हौले से बोले,
'भूल गई जब तुम्हें ब्रा-पैंटी लेने के लिए कहा था?' मनिका के चेहरे पर लाली फ़ैल गई थी.

***

'क्या हुआ मनिका?' मनिका के चुप हो जाने पर जयसिंह ने पूछा था.

2 comments:

Unknown said...

kahan chale gaye bhai

aage ke part post karo

Unknown said...

Yar itni a6i story likh k jis chiz ka intzar tha vo kiya hi nahi 'sex' manika aur jaysing k bich me sex dikhana chahiye tha aur shath hi ise full family sex story bana shkte ho tum manika ka bhai-aur ma ka sex manika ka uske bhai k shath sex, manika kanika lasbian sex etc.you are telented guy and this is not end plz yahi story aur aage badao

Raj-Sharma-Stories.com

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