Thursday, April 2, 2015

FUN-MAZA-MASTI गुमराह पिता की हमराह बेटी--11

FUN-MAZA-MASTI

 गुमराह पिता की हमराह बेटी--11

'क्या हुआ मनिका?' मनिका के चुप हो जाने पर जयसिंह ने पूछा था.
'कुछ नहीं पापा...' मनिका ने धीमी आवाज़ में कहा.
'बुरा मान गई क्या?' जयसिंह बोले 'मैंने तो पहले ही कहा था रहने दो...'
'उह...हाँ पापा. मुझे क्या पता था कि...आप उस बात का कह रहे हो.' मनिका ने संकोच के साथ कहा. इतने दिन बीत जाने के बाद उस घटना के जिक्र ने उसे फिर से शर्मिंदा कर दिया था.
'हाहा अरे तुम न कहती थीं के कपड़े ही तो हैं..?' जयसिंह ने मनिका की झेंप कम करने के उद्देश्य से हंस कर कहा.
'हेहे...हाँ पापा.' मनिका बोली 'बट पापा उस बात का हमारे डिस्कशन से क्या लेना-देना?' मनिका ने सवाल उठाया.
'लेना-देना क्यूँ नहीं है? तुमने उस दिन जब मुझसे माफ़ी मांगी थी तब तुम्हारे मन में यही बात तो थी ना कि तुमने ओवर-रियेक्ट कर दिया था और तुम्हारा वो बर्ताव इसीलिए तो रहा था कि तुमने सिर्फ हमारे सामाजिक रिश्ते के बारे में सोचा और आग-बबूला हो उठी थी.' जयसिंह ने उसे याद दिलाते हुए कहा 'अगर वही मेरी जगह तुम्हारा कोई मेल-फ्रेंड (लड़का) होता तो शायद तुम्हारी प्रतिक्रिया वह नहीं होती जो मेरे साथ तुमने की थी...और जब तुमने सॉरी बोला था तो मुझे लगा तुम्हें इस बात का एहसास हो गया है...अब तुमने क्या सोच कर माफ़ी मांगी थी यह तो तुम ही बता सकती हो...' जयसिंह ने बात-बात में सवाल पूछ लिया था.
मनिका एक और दफा कुछ पल के लिए खामोश हो गई थी.
'वो पापा...आपसे बात नहीं हो रही थी और आप रूम में भी नहीं रुकते थे तब मैंने टी.वी पर एक इंग्लिश-मूवी देखी थी जिसमें...एक फैमिली को दिखाया था और उसमे जो लड़की थी वो बीच (समुद्र-किनारे) पर अपने घरवालों के सामने बिकिनी पहने हुए थी...सो आई थॉट कि उसके पेरेंट्स उसे एन्जॉय करने से नहीं रोक रहे तो आपने भी तो डेल्ही में मुझे इतना फन (मजा) करने दिया...एंड मैंने आपसे थोड़ी सी बात पर इतना झगडा कर लिया...' मनिका ने धीरे-धीरे कर अपने पिता को बताया.
'ह्म्म्म...मैंने कहा वो सच है ना फिर?' जयसिंह ने मुस्का कर मनिका से पूछा, उनके दिल में ख़ुशी की लहर दौड़ गई थी.
'हाँ पापा...' मनिका ने सहमति जताई.
'लेकिन एक बात और जो मैं पहले भी कह चुका हूँ, और जैसा की तुमने अभी कहा कि न ही सोसाइटी और न हम हमेशा सही होते हैं, उसका भी ध्यान तुम्हें रखना होगा.' जयसिंह ने कहा. अभी तक तो जयसिंह समाज और आदमी-औरत के उदाहरण देकर मनिका से बात कर रहे थे लेकिन इस बार जयसिंह ने सीधा मनिका को संबोधित करते हुए यह बात कही थी.
'वो क्या पापा..?' मनिका ने पूछा.
'वो यही कि हर वह बात जो हमारे लिए सही नहीं है और समाज के लिए सही है या समाज के लिए सही नहीं है पर हमारे लिए सही है उसे जग-जाहिर ना करना ही अच्छा रहता है. जैसे तुम अपनी मम्मी से झूठ बोलने लगी हो...उस बात का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है.' जयसिंह ने कहा.
'हाहाहा...हाँ पापा डोन्ट वरी (चिंता) इसका ध्यान तो मैं आपसे भी ज्यादा रखने लगी हूँ...' मनिका ने हंस कर कहा.
'वैरी-गुड गर्ल..!' जयसिंह ने मनिका का गाल थपथपाते हुए कहा. मनिका भी इठला कर मुस्कुरा दी थी. 'चलो अब सोयें रात काफी हो गई है. कल काफी काम बाकी पड़ा है तुम्हारे एडमिशन का..' कहते हुए जयसिंह ने अपना दूसरा हाथ, जो अभी तक मनिका की कमर पर था, और नीचे ले जा कर उसके नितम्बों पर दो हल्की-हल्की चपत लगा कर उसे उठने का इशारा किया था.
'बट पापा! नींद नहीं आ रही आज...कुछ देर और बैठते हैं ना?' मनिका बोली.
'ह्म्म्म...ठीक है, वैसे भी एक-दो दिन की ही बात और है फिर तो हम अलग-अलग हो जाएंगे.' जयसिंह ने कुछ सोच कर कहा.
'ओह पापा ऐसे तो मत कहा करो. हमने प्रॉमिस किया था ना कि नथिंग विल चेंज बिटवीन अस..?' मनिका ने उदासी से कहा.
'अरे हाँ भई मुझे याद है पर फिर भी घर जाने के बाद कहाँ हम इस तरह साथ रह पाएंगे? और फिर कुछ दिन बाद तुम्हें वापिस भी तो आना है यहाँ...' जयसिंह मनिका को भावुक करने में लग गए थे.
'हाँ पापा...वो भी है.' मनिका बोली 'कुछ और बात करते हैं ना पापा...ऐसी सैड बातें मत करो.'
'ह्म्म्म. मैं तो कबसे बातें कर रहा हूँ...अब बोलने की बारी तुम्हारी है.' जयसिंह ने पासा पलटते हुए कहा.
'मैं क्या बोलूँ..?' मनिका ने उलझते हुए कहा.
'कुछ भी...जो तुम्हारा मन हो...' जयसिंह बोले. तभी मनिका को एक और बात याद आ गई जो उसके पिता ने कही थी और जिसका सच उसने बाद में महसूस किया था.
'पापा! एक बात बोलूँ?' मनिका ने कहा 'आप सही थे आज...' उसने उनके जवाब का इन्तजार किए बिना ही आगे कहा.
'किस बात के लिए?' जयसिंह ने कौतुहल से पूछा.
'वही जो आप कह रहे थे ना कि लड़कों से ज्यादा...वो मेन (आदमी)...मर्द या जो कुछ भी अपनी गर्लफ्रेंडस का ज्यादा ख्याल रख सकते हैं.' मनिका ने बताया.
'हाहाहा. हाँ पर ये तुमने कैसे जाना?' जयसिंह ने मजाक में पूछा था पर अपने दिल की हालत तो वे ही समझ सकते थे.
'फिर वही टी.वी. से पापा...हाहाहा!' मनिका ने हँसते हुए बताया 'आप सो गए थे तब टी.वी में देखा मैंने कि ज्यादातर हीरो-हिरोइन्स में ऐज डिफरेंस बहुत होता है फिर भी वे एक-दूसरे को डेट करते हैं. आई मीन कुछ तो लिटरली (ज्यों के त्यों) आपकी और मेरी ऐज के होते हैं. सो आई रियलाईज्ड कि मे-बी आप सही थे...'
'हाहाहा...धन्य है ये टी.वी. अगर इसके चरण होते तो अभी छू लेता...' जयसिंह ने मजाक किया.
'हहहहाहा...हेहेहे...' मनिका एक बार फिर से उनकी बात पर लोटपोट होते हुए हँस दी थी 'क्या पापा कितना ड्रामा करते हो आप हर वक्त..हाहाहा!'
'अरे भई मेरी कही हर बात टी.वी. पर दिखाते हैं तो मैं क्या करूँ..?' जयसिंह बोले.
'हाहाहा...तो आप भी किसी सेलेब्रिटी से कम थोड़े ही हो.' मनिका ने हँसते हुए कहा.
'हाहा...और मेरी गर्लफ्रेंड भी है किसी सेलेब्रिटी जैसी ही...' जयसिंह ने मौका न चूकते हुए कहा.
'हेहेहे...पापा आप फिर शुरू हो गए.' मनिका बोली.
'लो इसमें शुरू होने वाली क्या बात है?' जयसिंह बोले 'खूबसूरती की तारीफ़ भी ना करूँ..?'
'हाहा...पापा! इतनी भी कोई हूर नहीं हूँ मैं...' मनिका ने कहा. लेकिन मन ही मन उसे जयसिंह की तारीफ़ ने आनंदित कर दिया था और वह मंद-मंद मुस्का रही थी.
'अब तुम्हें क्या पता इस बात का के हूर हो की नहीं?' जयसिंह भी मुस्काते हुए बोले 'हीरे की कीमत का अंदाज़ा तो जौहरी को ही होता है...'
'हहहहाहा...क्या पापा..? क्या बोलते जा रहे हो...बड़े आए जौहरी...हीही!' मनिका ने मचल कर कहा 'क्या बात है आपने बड़े हीरे देख रखें हैं..हूँ?' और जयसिंह को छेड़ते हुए बोली.
'भई अपने टाइम में तो देखें ही हैं...' जयसिंह शरारत भरी आवाज़ में बोले.
'हा..!' मनिका ने झूठा अचरज जता कर कहा 'मतलब आपकी भी गर्लफ्रेंडस होती थी?'
'हाहाहा अरे ये गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड का चलन तो अब आया है. हमारे जमाने में तो कहाँ इतनी आजादी मिलती थी सब कुछ लुका-छिपा और ढंका-ढंका होता था.' जयसिंह ने बताया.
'हेहेहे! हाँ बेचारे आप...' मनिका ने मजाक करते हुए कहा 'तभी अब कसर पूरी कर रहे थे उस दिन टी.वी. में हीरोइनों को देख-देख कर...है ना?' उसने जयसिंह को याद कराया.
'हाहाहा..!' जयसिंह बस हंस कर रह गए.
'देखा उस दिन भी जब चोरी पकड़ी गई थी तो जवाब नहीं निकल रहा था मुहं से...बोलो-बोलो?' मनिका ने छेड़ की.
'अरे भई क्या बोलूँ अब...मैं भी इन्सान ही हूँ.' जयसिंह ने बनावटी लाचारी से कहा.
'हाहाहा!' मनिका हंस-हंस कर लोटपोट होती जा रही थी.
उधर उसकी करीबी ने जयसिंह के लिंग को तान रखा था. जयसिंह को भी इस बात का एहसास नहीं हुआ था कि उनका लंड खड़ा है क्यूंकि दिल्ली आने के बाद से उनके लिए यह एक रोजमर्रा की बात हो गई थी. बरमूडे के आगे के हिस्से को उनके लंड ने पूरा ऊपर उठा दिया था.
'तो मतलब आप मेरी झूठी तारीफ़ कर रहे थे ना? आपको तो वो कटरीना-करीना ही पसंद आती है...जिनका सब कुछ ढंका-ढंका नहीं होता है!' मनिका ने आगे कहा. वह उत्साह के मारे कुछ ज्यादा ही खुल कर बोल गई थी.
जयसिंह ने मन ही मन विचार किया 'आज तो किस्मत कुछ ज्यादा ही तेज़ चल रही है...क्या करूँ? बोल दूँ के नहीं?' फिर उन्हें अपना निश्चय याद आया कि दीमाग से ज्यादा वे अपनी काम-इच्छा का पक्ष लेंगे और वे बोले,
'हाहाहा. कुछ भी कह लो मनिका पर तुम भी कोई कटरीना-करीना से कम तो नहीं हो..! फैशन में तो तुम भी काफी आगे हो...'
'हीहीही...क्या बोल रहे हो पापा? आपको क्या पता?' मनिका ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.
'पता तो मुझे दिल्ली आते ही लग गया था...' जयसिंह ने मनिका की आँखों में झांकते हुए कहा. उनकी आवाज़ में एक बात छिपी थी.
'हैं? वो कैसे पापा?' मनिका ने पहले की भाँती ही मुस्कुराते हुए पूछा. उसे अभी भी जयसिंह की बातें मजाक लग रहीं थी.
'याद करो वो नाईट-ड्रेस जो तुमने पहली रात को पहनी हुई थी...' जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा.
मनिका ने अभी भी उनसे नज़र मिला रखी थी. उनकी बात सुनते ही उसके चेहरे पर एक पल के लिए खौफ भरा भाव आ गया था और फिर उसकी नज़र नीची हो गई और चेहरे पर एक बार फिर से लाली आ गई.
'क्या हुआ?' जयसिंह ने मनिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.
'कुछ नहीं...' मनिका ने हौले से कहा. एक ही पल में पासा पलट गया था और उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी. 'पापा ने सब नोटिस किया था मतलब..! ओह गॉड!' उसके मन में उथल-पुथल मच चुकी थी. आज यह दूसरी बार था जब जयसिंह ने मनिका को धर्म-संकट में डाल फिर से वही सवाल दोहराया था.


मनिका और जयसिंह के बीच चुप्पी छा गई थी.
कुछ पल बीतने के बाद मनिका रुक ना सकी और भर्राई आवाज में बोली,
'पापा? आई एम् सॉरी..!'
'अरे किस बात के लिए?' जयसिंह ने झूठी हैरानी व्यक्त की.
'वो...वो पापा उस रात है ना मुझे ध्यान नहीं रहा...वो मैं अपने घर वाले कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई थी और फिर...फिर पहले वाली ड्रेस शावर में भीग गई सो...आई हैड टू वियर दोज़ क्लॉथस एंड कम आउट...' उसने उन्हें बताया 'मैंने सोचा भी था की आप क्या सोचोगे मेरे बारे में कि कैसी बिगड़ैल हूँ मैं...बट आपने जैसे रियेक्ट किया उससे मुझे लगा कि आप भी एम्बैरेस हो तभी मुझे डांटा नहीं...आई एम् सो सॉरी...' मनिका ने एक्सप्लेनेशन दिया.
'अरे! पागल हो तुम...ऐसा क्यूँ सोच रही हो? मैं तो यहाँ तुम्हारी तारीफ़ कर रहा था और तुम कुछ भी सोचती चली जा रही हो..!' जयसिंह ने मनिका की ठुड्डी पकड़ उसका चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा.
'पापा?' मनिका की नज़र में अचरज था. 'क्या कह रहे हैं पापा?' उसने सोचा. जयसिंह ने उसके चेहरे से उसके मन की बात पढ़ ली थी.
'और नहीं तो क्या...मैं तुम्हें डांटूंगा ऐसा क्यूँ लगा तुम्हें?' जयसिंह धीमे-धीमे बोलने लगे थे ताकि मनिका को पता रहे कि वे मजाक नहीं कर रहे थे और उनकी आवाज़ में एक अंतरंगता भी आ गई थी.
'वो मैं...' मनिका को कुछ नहीं सूझा था और वह फिर से चुप हो गई थी.
'तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें इतना खूबसूरत लगने के लिए डांटने वाला हूँ?' मनिका की चुप्पी का फायदा उठा कर जयसिंह बोलते जा रहे थे 'भई मुझे तो इस बात का पता ही नहीं लगता कि तुम इतनी बड़ी हो गई हो अगर उस रात तुम कुछ और पहन कर आ जाती तो के जिसे मैं छोटी बच्ची समझता था वह इतनी बड़ी हो गई है. इन-फैक्ट (दरअसल) तुम्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि तुमने वो ड्रेस पहनी हुई थी...'
'क..क्या मतलब पापा?' मनिका के कानों में जयसिंह की आवाज़ गूँज सी रही थी.
'अरे भई तभी से तो मैंने तुम्हें एक एडल्ट-समझदार लड़की की तरह ट्रीट करना शुरू किया बिकॉज़ आई क्न्यु कि इंटरव्यू कैंसिल होने के बाद तुम इतना जल्दी वापस नहीं जाना चाहोगी और हम यहाँ रुके रहे.' जयसिंह ने शब्द-जाल बुनना शुरू कर दिया था.
'ओह...' मनिका ने हौले से कहा.
'क्या हुआ मनिका तुम कुछ बोल नहीं रही हो?' जयसिंह ने मनिका को कुरेदते हुए कहा.
'कुछ नहीं ना पापा. वो मैं थोडा एम्बैरेसड फील कर रही हूँ...आपके सामने ऐसे...आई मीन वो ड्रेस इनडिसेंट (अभद्र) सा था ना थोड़ा?' मनिका ने अंत में आते-आते अपने जवाब को सवाल बना दिया था और एक पल जयसिंह से नज़र मिलाई थी.
'ओहो...अभी दो घंटे के डिस्कशन के बाद हम फिर वहीँ आ खड़े हुए जहाँ से चले थे!' जयसिंह उत्साहविहीन आवाज़ में बोले 'मनिका डोन्ट फील एम्बैरेसड ओके? अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ...लुक एट मी...' उन्होंने मनिका के एक बार फिर नज़र झुका लेने पर कहा.
'जी...' मनिका ने उन्हें देखते हुए कहा.
'देखो मनिका अभी हम क्या बातें कर रहे थे..? यही ना कि सोसाइटी के नॉर्म्स (नियम) एक हद तक ही फॉलो करने चाहिएं...अब देखो वही बात तो यहाँ अप्लाई हो रही है.' वे उसे समझाते हुए बोले 'तुम सिर्फ इसलिए एम्बैरेस हो रही हो कि मैं तुम्हारे साथ था. पर मैंने तो तुम्हें सपोर्ट ही किया था, डिड आई मेक यू फील अनकम्फ़र्टेबल?'
'नो पापा...बट...' मनिका एक-दो शब्दों में ही जवाब दिए जा रही थी.
'बट क्या मनिका?' जयसिंह बोले 'तुम इतनी खूबसूरत लग रही थी अब इज़ दैट ए क्राइम? नहीं ना...एंड आई एडमायरड (प्रशंशा) यू फॉर इट...एंड वो भी कोई जुर्म तो है नहीं. पर तुम ये सोच रही हो कि मैंने तुम्हें बिगड़ा हुआ समझ लिया और जाने क्या-क्या?'
'हूँ...आपने नहीं सोचा ऐसा?' मनिका ने हौले से उनसे पूछा.
'बिलकुल नहीं...क्या मैं तुम्हें जानता नहीं हूँ? यू आर इनसल्टिंग (अपमान) मी बाय सेयिंग दैट..?' वे बोले.
'सॉरी पापा आई डिड नॉट मीन टू हर्ट यू..!' मनिका बोली.
'आई क्नॉ आई क्नॉ...अरे भई मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि मेरी मनिका इतनी ब्यूटीफुल हो गई है...हम्म?' जयसिंह ने मनिका का गाल सहलाते हुए कहा.
जयसिंह ने देखा की मनिका के झेंप भरे चेहरे पर एक पल के लिए छोटी सी मुस्कान आई और चली गई थी.
'इतनी खूबसूरत तो संचिता भी कभी नहीं थी...वो फ़िल्मी हिरोइन्स भी तुम्हारे सामने कुछ नहीं लगती सच कहूँ तो.' जयसिंह ने मख्खन लगाते हुए कहा.
'इश्श पापा...बस करो इतना भी हवा में मत उड़ाओ मुझे...' मनिका ने काफी देर बाद एक वाक्य पूरा किया था.
'सच कह रहा हूँ...हाहा.' जयसिंह ने टेंशन थोड़ी कम करने के उद्देश्य से हंस कर कहा.
'हीही पापा...' मनिका की झेंप कुछ मिटी थी.
अब जयसिंह ने मनिका को थोड़ा और करीब खींचा जिससे वह उनकी जाँघ पर खिसक कर उनसे सट गई, ऐसा करते ही उसकी एक जाँघ जयसिंह के खड़े लिंग से जा टकराई. मनिका को कुछ पल तो पता नहीं चला था, पर फिर उसे अपनी जाँघ के साथ लगे जयसिंह के ठोस लंड का आभास होने लगा और उसने नज़र नीचे घुमा जयसिंह की गोद में देखा था व मनिका एक बार फिर से होश खोने के कागार पर आ खड़ी हुई थी.
जयसिंह के बरमूडे के अन्दर से तन कर उनका लंड उनकी गोद में किसी डंडे सी आकृति बना रहा था और उसकी जाँघ से सटा हुआ था. यह देखते ही मनिका चिहुँक कर थोड़ा पीछे हट गई. उधर जयसिंह को भी मनिका की जाँघ के अपने लंड से हुए स्पर्श का पता चल चुका था और वे उसके चेहरे पर ही नज़र गड़ाए हुए थे जब उसने उनकी गोद में झाँक कर अनायास ही अपने-आप को पीछे हटाया था.
मनिका ने भी झट नज़र उठा कर जयसिंह की तरफ देखा था कि उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है पर उन्हें बिल्कुल सामान्य पाया, उन्होंने उसका गाल फिर से थपथपाया और पूछा,
'नींद नहीं आ रही आज?'
'हाँ...हाँ पापा...स्स...सोते हैं चलो.' मनिका ने थर्राते हुए कहा.

जयसिंह के लंड का आभास होने के बाद से मनिका की इन्द्रियां जैसे पहली बार जाग उठी थी, उसे अब अपने पिता के बदन के हर स्पर्श का एहसास साफ़-साफ़ हो रहा था. उसके गाल पर रखा हाथ उन्होंने नीचे कर के उसकी गर्दन पर रखा हुआ था वहीं उनके दूसरे हाथ की पोजीशन ने उसकी हया को और ज्यादा बढ़ा दिया था, उसने पाया कि जब से जयसिंह ने उसकी बम्स (कूल्हे) पर थपकी दे कर उसे उठने को बोला था तब से उनका हाथ उन्होंने वहाँ से हटाया नहीं था. जयसिंह ने हाथ पूरी तरह से तो उसके अधो-भाग पर नहीं रखा हुआ था बल्कि उसे एक हल्के से टच (स्पर्श) की अनुभूति हो रही थी. अपने नीचे दबी जयसिंह की माँसल जाँघ की कसावट भी वह महसूस कर रही थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके और उनके बीच हर पॉइंट ऑफ़ कांटेक्ट (मिलन-बिंदु) से एक गर्माहट सी प्रज्ज्वलित हो रही हो. वह सोने का बोल कर उनकी गोद से उठने लगी.
'पट्ट' की आवाज आई. जयसिंह ने हल्के से उसके कूल्हे पर एक और चपत लगा दी थी लेकिन इस बार मनिका को उनका ऐसा करना पहली-दूसरी बार से ज्यादा इंटेंसिटी (प्रवेग) से महसूस हुआ था व उसकी आवाज़ भी उसके कानों में आन पड़ी थी.
'चलो फिर सोते हैं...' वे भी मुस्काते हुए उठ गए थे.
बिस्तर की तरफ बढती हुई मनिका के क़दमों में एक तेज़ी थी. जयसिंह भी पीछे-पीछे ही आ रहे थे. बेड पर चढ़ कर मनिका ने दूसरी तरफ से बिस्तर पर चढ़ते हुए अपने पिता की तरफ देखा, उसको जैसे ताव आ गया था, पहली रात जब जयसिंह ने बरमूडा-शॉर्ट्स पहनी थी तो उनमें से उनके लिंग के उठाव का पता मनिका को इसलिए चला था कि वह पहले से ही उनकी नग्नता के दर्शन कर चुकी थी और उसकी नज़र सीधा वहीं गई थी. लेकिन आज तो जयसिंह का लंड पूरी तरह से तना हुआ था और शॉर्ट्स के आगे के भाग को पूरा ऊपर उठाए इस तरह खड़ा हुआ था की मनिका की नज़र ना चाहते हुए भी उस पर चली गई थी. जयसिंह मुस्कुराते हुए बिस्तर में घुस कर उसकी ओर करवट लिए लेट गए.
उन दोनों की नज़रें मिली. जयसिंह उसकी निगाहों को ताड़ चुके थे और मुस्काए, मनिका भी क्या करती सो वह भी मुस्का दी. जयसिंह को जैसे कोई छिपा हुआ इशारा मिल गया था, वे खिसक कर मनिका के बिलकुल करीब आ गए. इस तरह उनके अचानक पास आ जाने से मनिका असहज सी हो गई पर उसका शरीर उस एक पल के लिए जड़ हो गया था. जयसिंह ने उसके करीब आ कर अपना हाथ उसकी कमर में डाल लिया और अपना चेहरा उसके चेहरे के बिलकुल पास ले आए, उधर मनिका से हिलते-डुलते भी नहीं बन रहा था.
'गुड-नाईट डार्लिंग!' जयसिंह ने धीरे से कहा.
'ओह...गुड-नाईट पापा...' मनिका उनकी इस हरकत का आशय समझ थोड़ी सहज होने लगी.
जयसिंह ने मुस्का कर उसकी कमर पर रखा हाथ उठा कर एक बार फिर उसकी ठुड्डी पकड़ी और अगले ही पल अपना मुहँ उसके चेहरे की तरफ बढ़ा दिया; 'पुच्च' मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही उन्होंने उसके गाल पर एक छोटा सा किस्स कर दिया था और पीछे हो कर लेट गए.
मनिका की नज़रें उठाए नहीं उठ रहीं थी. जयसिंह के यकायक किए इस बर्ताव ने उसे स्तब्ध कर दिया था. किसी तरह उसने एक पल को उनकी तरफ देखा था और झट-पट नज़र झुका ली, जयसिंह को इतना इशारा काफी था,
'वैसे तुमसे एक शिकायत भी है मुझे अब...' वे बोले.
'क्या पापा?' मनिका ने हैरानी से पूछा, उसकी नज़र फिर से उठ गई थी.
'यही कि मैंने तुमसे ये एक्स्पेक्ट नहीं किया था कि तुम मुझे इतना पराया और गलत समझोगी...' जयसिंह के चेहरे से मुस्कुराहट हट चुकी थी.
'पापा! मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती...कभी नहीं...आप ऐसा क्यूँ बोल रहे हो?' मनिका ने भावुक हो कर कहा और उठ बैठी.
'वैसे ही कह रहा हूँ, हो सकता है मैं गलत होऊं पर जब से तुमने बताया है तब से सोच रहा हूँ अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा होता तो पहली रात के बाद तुम नाईट-ड्रेस चेंज करके रोज यह अभी वाले कपड़े न पहन कर सोती.' जयसिंह ने चेहरे पर ऐसा भाव प्रकट किया जैसे वे बहुत दुखी व विचलित हों.
'नहीं ना पापा ऐसा मत कहो...ऐसा बिल्कुल नहीं है!' मनिका ने अपने तर्क की सच्चाई जताने के लिए थोड़ा सा उनकी तरफ झुकते हुए कहा 'वो तो...मुझे शर्म...शर्म आती है इसलिए नहीं पहनती...प्लीज़ ना पापा आप मुझे मिसअंडरस्टैंड मत करो...'
'हम्म...' जयसिंह ने सोचते हुए प्रतिक्रिया की.
'पापा! प्लीज..?' मनिका ने हाथ बढ़ा कर उनका हाथ थाम कर मिन्नत की.
'ओके ओके...मान ली तुम्हारी बात भई.' जयसिंह ने मुस्का कर उसकी तरफ देखा.
'ओह पापा.' मनिका ने राहत की साँस ली 'ऐसा मत सोचा करो आप...'
'ठीक है...' जयसिंह बोले 'चलो अब यहाँ आओ और मुझे मेरी गुड-नाईट किस्स दो...'
मनिका एक पल के लिए ठिठकी और उसकी नज़र फिर से जयसिंह के लिंग पर चली गई फिर उसने धीरे से आगे झुक कर जयसिंह के गाल पर पप्पी दे दी 'पुच्च'.
अब मनिका पीछे हट कर फिर से अपनी जगह पर लेट गई. जयसिंह ने लाइट बुझा कर नाईट-लैंप जला दिया और वे दोनों एक-दूसरे की तरफ करवट लिए सोने लगे. पर कुछ-कुछ पल में ही कभी मनिका तो कभी जयसिंह आँख खोल कर देख रहे थे और जब कभी दोनों की आँखें साथ में खुल जाती थी तो दोनों झट से आँखें मींच लेते थे.
यूँ तो जब से वे दोनों दिल्ली आए थे मनिका और जयसिंह दुनिया-जहान की बातें कर चुके थे और कभी-कभी जयसिंह की चालाकी से उनके बीच की बातचीत ने कुछ रोचक मोड़ भी ले लिए थे परन्तु अभी तक उन्होंने अपने रिश्ते के दायरों का उलंघन नहीं किया था. लेकिन आज जिस तरह से जयसिंह ने बात घुमाते-घुमाते मनिका के सामने हर रिश्ते की परिभाषा को एक मर्द और औरत के बीच समाज की खड़ी की दीवारों के रूप में पेश किया था उसने मनिका के मन को अशांत और आतंकित कर दिया था. मनिका लेटी हुई सोच रही थी,
'ओह पापा भी कैसी अजीब बातें सोचते हैं...सबसे डिफरेंट...मर्द-औरत...लड़की...सोसाइटी के बनाए हर रूल से उलट..! वैसे वे भी कुछ गलत तो नहीं कह रहे थे...आई मीन (मेरा मतलब) अगर हम अपनी लाइफ अपने हिसाब से जीना चाहते हैं तो उससे सोसाइटी और लोगों को क्यूँ दिक्कत होती है? एंड उन फूहड़ लोगों का भी अपना लाइफ स्टाइल है वो चाहें मूवी में हूटिंग करें या कुछ और...बात तो तब गलत होगी जब वे किसी और को जान-बूझ कर परेशान करें या छेड़ें.' मनिका ने अब आँख खोल-खोल कर जयसिंह की ओर देखना बंद कर दिया था 'एंड पापा ने कहा कि मैं भी तो मम्मी से बातें छुपाने लगी हूँ...हाँ क्यूंकि वे हमेशा मुझसे चिढती रहती हैं...पापा ने भी तो कहा कि सब बातें हर किसी को बताने की नहीं होती...पहले भी तो मैंने यह सोचा था कि अगर मम्मी को पता चले कि हम यहाँ दिल्ली में ऐश कर रहे थे तो कितना बखेड़ा खड़ा हो जाएगा...हमें तो ज़िन्दगी भर ताने सुनने पड़ें शायद...और अगर...ओह गॉड! अगर किसी तरह मम्मी को हमारे बीच होने वाली इंटरेक्शन (मेल-जोल, बातें) का पता चल गया तो फिर तो गए समझो...कैसे हम दोनों एक ही रूम में इतने दिनों से रह रहे हैं और...वो अंडरर्गार्मेंट्स वाली बात पर हुई लड़ाई...पापा ने कहा कि अगर उनकी जगह कोई और होता तो मैं शायद इतना रियेक्ट नहीं करती...क्या सच में? कभी किसी ने ऐसी बात तो कही नहीं है मुझसे...पर हाँ शायद इतना बड़ा इशू (बतंगड़) नहीं बनता...आखिर मूवीज में ये सब कॉमन है. पर पापा थे इसलिए...सुबह उनसे फिर से सॉरी कहूँगी...पापा कितने मैच्योर (समझदार) हैं और कितने कूल भी...उन्होंने कहा कि वे सच में मुझे एक एडल्ट की तरह ट्रीट करते हैं...हाँ वो तो है!' सोचते हुए मनिका ने करवट बदल ली.
उधर जयसिंह लेटे हुए उसे देख रहे थे, उसके करवट बदलने पर उन्होंने अच्छे से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा था, 'आज तो पता नहीं क्या-क्या बोल गया मैं...पर कुतिया ने ज्यादा विरोध नहीं किया...साली के मन में पता नहीं क्या चल रहा होगा. कैसी मचकी थी चिनाल जब पैर पे लंड महसूस हुआ था...पर फिर भी सब लग तो सही ही रहा है वरना चुम्मा ना देती इतने आराम से...देखो कल कितना काम आता है ये ज्ञान...' जयसिंह ने सोचते हुए मनिका की तरफ एक नज़र और डाली; वे जानते थे कि आज उनके बीच जिस तरह की बातें हुई थी वे आज से पंद्रह दिन पहले तक नामुमकिन थी और ये उनके रचे चक्रव्यूह का ही कमाल था कि मनिका अब उनके चंगुल में फंसती चली जा रही थी. उन्होंने पूरे समय मनिका के साथ एक कदम आगे बढ़ने के बाद दो कदम पीछे खींचे थे और उनकी यह स्ट्रेटेजी कामयाब रही थी. एक पल तो वे मनिका को शर्मिंदगी के कागार पर पहुंचा देते और फिर अगले ही पल खुद ही उसे आश्वस्त कर देते कि उनके बीच होनेवाली बातों में कुछ भी गलत नहीं था और मनिका उनकी और ज्यादा कायल हो जाती थी. वैसे भी २२ साल की मनिका जयसिंह जैसे मंझे हुए व्यापारी के साथ क्या होड़ कर सकती थी? उन्होंने देखा कि मनिका ने अपना हाथ उठा कर अपने नितम्ब पर रखा हुआ था और एक बार उसे हल्के से सहलाया था. उनके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान तैर गई और ख़ुशी से उन्होंने एक पल को आँखें बंद कर ली थी.
'और मम्मी ने मुझे आज तक इस तरह अच्छे से ट्रीट नहीं किया है...छोड़ो मम्मी की किसे जरूरत है?' मनिका के विचार भी अभी बराबर चल रहे थे 'अगर उन्हें पता चले कि पापा ने मेरी ब्रा-पैंटी देख ली थी तो...हाहाहा हाय! पापा ने कैसा सताया था...और मैंने जो उनका डिक...देख लिया था? पापा बार-बार कहते हैं कि हमें घर पर सावधान रहना होगा...और ये बात तो किसी से शेयर भी नहीं कर सकती...कितना बड़ा है पापा का! हाय...कैसे खिसिया जाते हैं जब उनको सताती हूँ उन मूवी वाली हिरोइन्स के नाम पर...क्या उनके छोटे-छोटे कपड़े देख कर पापा टर्न-ऑन (उत्तेजित) हो जाते हैं..? और उनका डिक इरेक्ट (खड़ा)...हाय... बोल रहे थे कि उन्होंने उस रात मुझे नोटिस किया था...शॉर्ट्स में...पर कुछ कहा नहीं था ताकि मुझे बुरा ना लग जाए...कितने केयरिंग है पापा...बट कितना अडौर (तारीफ) कर रहे थे आज मुझे...कि आई वास् लुकिंग वैरी ब्यूटीफुल...सब कुछ देख लिया था उन्होंने सुबह-सुबह मतलब...शॉर्ट्स तो पूरी ऊपर हुई पड़ी थी...ही सॉ माय नेकेड बम्स (नंगी गांड)...ओह गॉड और बोले की मैं मम्मी से भी ज्यादा खूबसूरत हूँ...तो क्या उनको इरेक्शन हुआ होगा मुझे देखने के...नहीं-नहीं वो तो पापा हैं मेरे ऐसा थोड़े ही सोचेंगे...पर पापा तो कहते हैं कि सब रिश्ते समाज ने बनाए हैं! मैंने भी तो उन्हें बताया था कि सब मुझे उनकी गर्लफ्रेंड समझते हैं...कैसे मजाक बनाते हैं उस बात का भी वे...यहाँ आने से पहले तो कभी मैं उनकी गोद में नहीं बैठी...आई मीन बड़ी होने के बाद से...पर अब तो मुझे अपने लैप में ही बिठाए रखते हैं...और दो-तीन बार तो मुझे डार्लिंग भी कह चुके हैं...मनिका डार्लिंग...ये तो मैंने सोचा ही नहीं था...और जो मेरे बम्स पर उन्होंने हाथ से...पहले किसी ने नहीं टच किया मुझे वहाँ पर...पापा ने...कैसी आवाज़ आई थी उनके स्लैप (थपकी) की...हे भगवान मैं क्या सोचती जा रही हूँ आज ये..?' मनिका याद कर-कर के सम्मोहित होती जा रही थी, उसे अचानक अपनी गांड में एक स्पंदन का एहसास होने लगा था और उसने हाथ से वहाँ पर सहलाया था जहाँ उसके पिता ने उसे छुआ था. यही देख जयसिंह की बाँछें खिल उठी थीं. उधर मनिका के मन में लगी आग ने ज्वाला का रूप धारण कर लिया था,

No comments:

Raj-Sharma-Stories.com

Raj-Sharma-Stories.com

erotic_art_and_fentency Headline Animator