FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--173
गुड्डी --- रंजी
और फिर वही हुआ जो होना था ,गुड्डी नीचे थी और रंजी ऊपर।
…………………
रंजी ने गालियों की बौछार लगा दी और गुड्डी कोई जवाब देती उसके पहले उसके मीठे बनारसी पान से होंठ , रंजी के होंठ के कब्जे में।
मेरे होंठ कैसे इन होंठों की कुश्ती से दूर रहते , तो वो भी मैदान में आगये और गुड्डी के निचले होंठ उन्होंने गपुच लिया।
तीन दिन का उपवास होगया था मेरे होंठों का। दो दिन गुड्डी ने रंजी के घर बिताये और कल रात मैंने रंजी की बिल में सेंध लगाने में गुजार दी।
सूद मूल समेत मेरे होंठ सुधा रस का पान कर कर रहे थे , और रंजी की तरह गुड्डी के निचले होंठ भी शैम्पेन में नहाये थे।
कुछ ही देर में गुड्डी सिसकियाँ भर रही थी , चूतड़ उचका रही थी।
लेकिन उसकी मस्ती का कारण मुझसे ज्यादा रंजी थी।
लेस्बियन काम क्रीड़ा में रंजी का कोई सानी नहीं था। और बची खुची कमी गुड्डी के साथ गुजारी रातों ने कर दिया था।
और साथ में गालियों की बहार , एक से एक ,
पर अब गुड्डी जवाब नहीं दे पा रही थी। मामला साफ था दोनों 69 की पोज में थी , रंजी ऊपर और उसकी गुलाबी चूत जोर से गुड्डी के होंठों को रगड़ रही थी ,
" चाट चूत चटोरी चाट न और जोर से , हाँ ऐसे बचपन से ही किसकी चूत चाट चाट के छिनार एकदम पक्की चूत चटोरन हो गयी है। एक मिनट भी रुकी न तो सात पुश्तों की गांड मरवाउंगी तेरी ,अपने भैया से ,चूस जोर से और जोर से ,… "
हाँ 69 कम्प्लीट नही था क्योंकि गुड्डी की चूत तो मेरे चूत चटोरे होंठों के कब्जे में थी इसलिए रंजी के होंठों ने जो मिला वही लूट लिया।
वो जादुई बटन , जिसपर एक बार हाथ पड़ने पर १६ साल का बचाया हुआ खजाना ,खुद अपने आप दरवाजा खोल देता है।
सिमसिम जिससे जवानी का कारुं का खजाना खुल जाता है।
हरदम न न करने वाली ,शर्माती लजाती किशोरी भी खुद नितम्ब उचका के बुलाती है , आ जा न लूट ले मेरी , …
वही क्लिट , गुड्डी का रंजी के कब्जे में था।
पहले तो रंजी ने अपनी लम्बी जीभ की नोक से बस उसकी उत्तेजित मस्त कड़ी गुलाबी क्लिट को छू भर दिया।
४४० वोल्ट का झटका ,
गुड्डी नागिन की तरह लहरा गयी।
और इसके बाद तो एक पर एक झटके ,
कुछ ही देर में रंजी के होंठ जोर जोर से गुड्डी की क्लिट कभी चाटते कभी चूसते ,
गुड्डी झड़ने के कगार पे थी।
लेकिन रंजी इत्ती आसानी से उसे झड़ने थोड़े ही देती।
उसकी बड़ी बड़ी शरबती शरारती आँखों ने मुझसे इसरार किया , और मेरी हिम्मत जो मैं उस हिरणी सी आँखों का हुकुम टालूं।
मैंने अपना कब्ज़ा गुड्डी की निचली गुलाबी पंखुड़ियों से हटा लिया।
अब मेरा चेहरा बस थोड़ी दूर हट खेल तमाशा देख रहे थे।
और खेल तमाशा शुरू भी जल्द हो गया।
पहले तो रंजी की दुष्ट जुबान ने , गुड्डी की रस कूप की परिक्रमा की , उसे चाटा सहलाया और फिर सीधे उसमें डुबकी लगा दी।
मेरी चुसाई चटाई ने वैसे ही उसे सुधा रस से लबरेज कर दिया था ,छलक रहा था गुड्डी के योनि के प्याले से मधु रस और अब ऊपर से रंजी ,नंबरी चूत चटोरी।
लेकिन उसके बाद जो हुआ वो मैंने न कभी देखा न सुना न सोचा।
रंजी ने अपना चेहरा हटा लिया लेकिन उसकी दो जालिम अंगूठों ने गुड्डी के योनि छिद्र को , उसकी गुलाबी मखमली पुत्तियों को पूरी तरह से ,अपनी सारी ताकत लगा के फैला दिया,
उसकी प्रेम गली का रस्ता अंदर तक साफ दिख रहा था।
योनि का प्याला पूरी तरह खुला था।
और फिर रंजी ने शैम्पेन के ग्लास से बूँद बूँद अंगूर की बेटी का रस उस खुले मधु के प्याले में चुआना शुरू कर दिया।
कुछ देर में ही वो यौवन का प्याला , मधु कूप , मद से लबरेज था। छलक रहा था।
रंजी की उठती गिरती पलकों का आमंत्रण साफ था।
जैसे रात भर गिरी बूँद बूँद ओस , गुलाब की अधःखिली , अधखुली कली से हमिंग बर्ड या मधुचूसनी , चूस जाती है ,
बस उसी तरह मेरे प्यासे होंठ , चुहुक चुहुक , उस यौवन के प्याले से मधु रस पी रहे थे।
रंजी झरने की तरह शैम्पेन के पेग से शराब बरसा रही थी। मेरे होंठ गुड्डी के योनि के प्याले से उसे खत्म करते उसके पहले ही रंजी उसे भर देती।
रंजी ऐसी साकी हो , जवानी और जोबन से भरपूर
आंखों को बचाये थे हम अश्के-शिकायत से,
साकी के तबस्सुम ने छलका दिया पैमाना।
गुड्डी के मधुकूप ऐसा प्याला हो
तो फिर कौन पीनेवाला रुकेगा
कुछ देर में ही ग्लास खाली था लेकिन
साकी तो रंजी थी
साकी तू मेरे जाम पर कुछ पढ़ के फूंक दे,
पीता भी जाऊं और भरी की भरी रहे।
और ग्लास फिर भर गया , हाँ उसने पिलाने की अदा बदल दी।
गुड्डी की जाँघों के बीच जवानी की घाटी से शराब का दरिया बह रहा था , और मैं मुंह लगाए उसे पी रहा था।
लेकिन कुछ देर में साकी भी इस महफिल में शामिल हो गयी , इस जवानी और शराब के दरिया में गोता लगाने को ,
हाँ अब हमने बटवारा कर लिया , अगवाड़ा रंजी के हवाले और पिछवाड़ा मेरे ,
भरतपुर की मालकिन वो और चितौड़ गढ़ पे मेरा कब्ज़ा।
उसकी जीभ गुड्डी की चूत में चरखी की तरह घूम रही थी और गुड्डी के दोनों गदराये चूतड़ फैलाकर , सीधे गांड के छेद में मुंह लगाकर , जीभ मैंने अंदर तक पेल दिया।
गुड्डी की सिसकियाँ , गालियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थी लेकिन अब न मैंने छोड़ने वाला था ,न रंजी।
बल्कि रंजी ने गियर चेंज कर एक्सीलरेटर पूरा दबा दिया।
उसके होंठों ने चूत को आजाद कर दिया लेकिन एक साथ घचाक से उसने दो उंगली गुड्डी की चूत में पेल दी और वो भी चम्मच की तरह नक़ल से मोड़ कर ,
और धीमें धीमे घुमाने लगी , जैसे उसकी उंगलियां कुछ ढूंढ रही हो ,
और एक दो मिनट में उसे वो चीज मिल भी गयी
खजाने की चाभी ,
वो खटका जिसे दबाने से तिलस्म खुल जाता है।
रंजी के चेहरे की चमक देखकर मैं भांप गया ,रंजी ने क्या ढूँढा है और अगले पल गुड्डी की जोर दार सिसकियों ने उसे कन्फर्म कर दिया।
बस अब रंजी उसी एक जगह उँगलियों से दबाव बना रही थी , खुरच रही थी
और गुड्डी मस्ती से अपने चुतड पटक रही थी।
रंजी ने गुड्डी का जी प्वाइंट ढूंढ लिया था।
और मैंने भी रंजी के साथ जुगलबंदी शुरू कर दी थी। मेरी लपलपाती , लालची जीभ पीछे से आगे , गांड से चूत तक लपर लपर चाट रही थी , आग और भड़का रही थी।
गुड्डी की प्यासी आँखे बार बार मुड़के मुझे देख रही थीं , कुछ करो न।
जंगबहादुर भी व्याकुल हो रहे थे , जैसे कोई बछड़ा खूंटा तुड़ा कर गाय के थन तक जाने के लिए उछल रहा हो बस उसी बेकरारी से।
लेकिन रंजी इत्ती आसानी से ये मौका नहीं छोड़ने वाली थी।
उसकी उंगलिया जी प्वाइंट को छेड़ रही थी और होंठों ने क्लिट को अपने कब्जे में ले लिया और वैक्यूम क्लीनर से भी तेज चूसने लगी।
अब गुड्डी से रहा नहीं गया वो जोर जोर से बोलने लगी ,
" ओह्ह्ह्ह्ह आह्ह , उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ , रहा नहीं जा रहा , कुछ करो न अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह "
" अरे क्या करवाना चाहती है मेरे भैया से बनारस की रानी , कमीनी छिनार , जरा खुल के तो बोल , वरना ऐसे ही तड़पती रहेगी सारी रात। " रंजी ने चिढ़ाया और गुड्डी की क्लिट निबल कर ली।
" ओह्ह साल्ली क्या करती है " जोर से गांड पटकते गुड्डी बोली और अपनी मंशा जाहिर कर दी ,
" चोदो न , चोद न इत्ती आग लगी है। "
गुड्डी को इतनी चुदवासी मैंने कभी नहीं देखा था। लेकिन मैं कुछ करता उसके पहले रंजी की आँखों ने मुझे बरज दिया और जोर जोर से चूत मंथन करने लगी , और बोली ,,
" अरे साली , हरामन रंडी की जनी , तेरे सारे खानदान की गांड मारूं , साफ साफ बोल कहाँ चुदवाना चाहती है मेरे प्यारे भैया से , मुंह में गांड में चूत में। कहाँ आग लगी है. पैदायशी छिनार। "
"ओह्ह प्लीज चोदो न मेरी चूत , आग लगी है मेरे चूत में " गुड्डी चूतड़ पटकते बोली। उसकी चूत से झरना बह रहा था।
अब मेरे लिए रुकना असंभव था। लेकिन रंजी की आँखों ने मनुहार किया , बस एक मिनट और ,
और गुड्डी से बोली ,
" बहुत चुदवासी हो न मेरे भैय्या के मोटे लंड के लिए , लेकिन तेरे साथ तेरी दोनों छोटी बहने भी तेरी चुदेंगी मेरे भैय्या से , दो की सील फाड़ेगा वो ये समझ लेना। " रंजी ने एक और कंडीशन लगाई।
" अरे यार मेरी बहने चुदे , मेरा सारा खानदान चुदे , लेकिन अभी मुझे तो चुदवा कमीनी , गदहा चोद। " गुड्डी की हालत बहुत खराब थी।
अब मैं किसी तरह से नहीं रुक सकता था।
अगले ही पल गुड्डी की केले के तने ऐसी चिकनी जांघे फैली थी , दोनों पैर मेरे कंधे पर आसीन और मैंने पूरी ताकत से एक करारा धक्का मारा।
पहले ही धक्के में दो तिहाई लंड , ६ इंच अंदर।
और अब गुड्डी की सिसकी के साथ चीख भी गूँज रही थी।
ये ऐसा मजा है जो बिना दर्द के होता नहीं।
लेकिन रंजी और गुड्डी की बातें उसमें और तड़का लगा रही थीं।
" काहे घबड़ा रही हो , बनारस की रानी , २७ मई की रात होगी न कबड्डी रात भर " गुड्डी के गाल पे जोर से चिकोटी काट के रंजी ने चिढ़ाया और जोड़ा ,
" और हाँ याद रखना , २८ को बाकी लोग तो ऊपर वाली मुंह की मुंह दिखाई करेंगे , लेकिन हम सब ननदे ,सिर्फ नीचे वाले मुंह की मुंह दिखाई करेंगी , कैसा लगता है इस्तेमाल के बाद। "
मेरी तो बत्ती जल गयी वो भी बिना बिजली के। ऊपर वाली भी और नीचे वाली भी।
' यानी रंजी को पूरा प्रोग्राम मालुम है।
२५ मई को गुड्डी के गाँव में शादी ,तीन दिन की बारात और २७ को दिन में विदाई।
२७ मई की रात में सुहागरात। और भाभी और मम्मी ( गुड्डी की मम्मी ) का हुकुम भी , इंगेजमेंट के बाद २७ मई के पहले गुड्डी को छू भी नहीं सकते। गुड्डी और रंजी खैर बचपन की सहेली है, गुड्डी ने पूरा गाना सुनाया होगा और भाभी ने भी रंजी को लगता है पूरा किस्सा बता दिया है। '
लेकिन तब तक गुड्डी ने रंजी को जवाब सूना दिया ,
" अरे छुटकी ननदी , मेरी छिनार माल। २७ मई और २८ मई के पहले २५ मई आएगी जानम। गांव में आम के बाग़ में पूरा इंतजाम है कुटाई का। पूरे तीन दिन।
अभी से लिस्ट बन गयी है , तीन मस्त लड़के तेरे नाम लिख दिए गए हैं , कभी आम के बाग़ में तो कभी गन्ने और अरहर के खेत में , जब मट्टी के ढेले पे चूतड़ रगड़ रगड़ कर चुदायी होगी न तो मजा आएगा। २७ को लौटोगी न अपने भैय्या की बारात से तो पैर फैलाये फैलाये चलोगी।
और उसमें तो अभी दो महीने करीब है , अभी कल बनारस में देखना गिनती भूल जाओगी इतने लौंडे चढ़ेंगे "
" अरे यार मैं बनारस चल रही हूँ मजे लेने या गिनती सीखने , लेकिन मेरी जनिया अभी तू तो घोंट हचक हचक के "
रंजी कौन सी कम थी जवाब देने में।
गुड्डी रंजी संवाद का असर ये हुआ की मैंने गुड्डी के दोनों गदराये चूतड़ जोर से पकड़े , सुपाड़ा आलमोस्ट बाहर निकाला और एक झटके में पूरा ९ इंच अंदर। सुपाड़े का धक्का सीधे बच्चेदानी पे।
उईइइइइइइइइइइइइइइइइइ माँ जान गयी , ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह अह्ह्हह्ह हलके से , ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उफ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लगता है।
गुड्डी ने जोर की चीख भरी।
गुड्डी की चीख जीतनी जोरदार होती उतना ही रंजी को मजा आरहा था। उसने चिढ़ाया ,
" अरे कमीनी , अभी तो चूत में आग लगी थी अब फटी पड़ रही है , ये छिनारपना किसी और को दिखाना। और फिर ये माँ माँ क्यों बोल रही है क्या उनको भी मेरे भैय्या से ,… "
रंजी की बात पूरी भी नहीं हुयी थी की मैंने फिर ऑलमोस्ट पूरा निकाल के पहले से भी दूनी ताकत से जोरदार धक्का मारा और कसी , किशोर चूत में रगड़ते दरेरते मेरा मोटा लंड सीधे अंदर और अबकी सुपाड़े का धक्का , गुड्डी की बच्चेदानी पे डबल जोर से लगा और वो चूतड़ उछाल के सिसक उठी , चीख पड़ी।
" उईइइइइइइइइइइ माँआआआआआआआ , ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह इइइइइ माँआआआअ "
"अच्छा चल यार तू भी क्या याद करेगी ,तेरी मम्मी का भी नंबर भैया से लगवा दूंगी ,बार बार माँ माँ कह रही है , लेकिन अभी तू तो कुटवा अपने ओखल में धान। " रंजी ने तड़का लगाया।
मैं एक पल के लिए ठहर गया और गुड्डी को सांस लेने के लिए मौका मिल गया और फिर उसने वो गालियों की झड़ी लगायी ,
" बहनचोद , मादर ,… अरे आम के बाग़ में सिर्फ तुम्हारी कुश्ती थोड़े ही होगी , मम्मी की सारी समधन का नाड़ा खुलेगा। गपागप गपागप , मेरे सारे चाचा ,मामा , मौसा फूफा अभी से तेल लगा के खड़ा किये हैं , तेरी सारी खानदान की मारी जायेगी। "
लेकिन उसके बाद जंगबहादुर ताबड़तोड़ चालु हो गए हैं। धक्के पे धक्का ,धक्के पे धक्का ,
फागुन के दिन चार--173
गुड्डी --- रंजी
और फिर वही हुआ जो होना था ,गुड्डी नीचे थी और रंजी ऊपर।
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रंजी ने गालियों की बौछार लगा दी और गुड्डी कोई जवाब देती उसके पहले उसके मीठे बनारसी पान से होंठ , रंजी के होंठ के कब्जे में।
मेरे होंठ कैसे इन होंठों की कुश्ती से दूर रहते , तो वो भी मैदान में आगये और गुड्डी के निचले होंठ उन्होंने गपुच लिया।
तीन दिन का उपवास होगया था मेरे होंठों का। दो दिन गुड्डी ने रंजी के घर बिताये और कल रात मैंने रंजी की बिल में सेंध लगाने में गुजार दी।
सूद मूल समेत मेरे होंठ सुधा रस का पान कर कर रहे थे , और रंजी की तरह गुड्डी के निचले होंठ भी शैम्पेन में नहाये थे।
कुछ ही देर में गुड्डी सिसकियाँ भर रही थी , चूतड़ उचका रही थी।
लेकिन उसकी मस्ती का कारण मुझसे ज्यादा रंजी थी।
लेस्बियन काम क्रीड़ा में रंजी का कोई सानी नहीं था। और बची खुची कमी गुड्डी के साथ गुजारी रातों ने कर दिया था।
और साथ में गालियों की बहार , एक से एक ,
पर अब गुड्डी जवाब नहीं दे पा रही थी। मामला साफ था दोनों 69 की पोज में थी , रंजी ऊपर और उसकी गुलाबी चूत जोर से गुड्डी के होंठों को रगड़ रही थी ,
" चाट चूत चटोरी चाट न और जोर से , हाँ ऐसे बचपन से ही किसकी चूत चाट चाट के छिनार एकदम पक्की चूत चटोरन हो गयी है। एक मिनट भी रुकी न तो सात पुश्तों की गांड मरवाउंगी तेरी ,अपने भैया से ,चूस जोर से और जोर से ,… "
हाँ 69 कम्प्लीट नही था क्योंकि गुड्डी की चूत तो मेरे चूत चटोरे होंठों के कब्जे में थी इसलिए रंजी के होंठों ने जो मिला वही लूट लिया।
वो जादुई बटन , जिसपर एक बार हाथ पड़ने पर १६ साल का बचाया हुआ खजाना ,खुद अपने आप दरवाजा खोल देता है।
सिमसिम जिससे जवानी का कारुं का खजाना खुल जाता है।
हरदम न न करने वाली ,शर्माती लजाती किशोरी भी खुद नितम्ब उचका के बुलाती है , आ जा न लूट ले मेरी , …
वही क्लिट , गुड्डी का रंजी के कब्जे में था।
पहले तो रंजी ने अपनी लम्बी जीभ की नोक से बस उसकी उत्तेजित मस्त कड़ी गुलाबी क्लिट को छू भर दिया।
४४० वोल्ट का झटका ,
गुड्डी नागिन की तरह लहरा गयी।
और इसके बाद तो एक पर एक झटके ,
कुछ ही देर में रंजी के होंठ जोर जोर से गुड्डी की क्लिट कभी चाटते कभी चूसते ,
गुड्डी झड़ने के कगार पे थी।
लेकिन रंजी इत्ती आसानी से उसे झड़ने थोड़े ही देती।
उसकी बड़ी बड़ी शरबती शरारती आँखों ने मुझसे इसरार किया , और मेरी हिम्मत जो मैं उस हिरणी सी आँखों का हुकुम टालूं।
मैंने अपना कब्ज़ा गुड्डी की निचली गुलाबी पंखुड़ियों से हटा लिया।
अब मेरा चेहरा बस थोड़ी दूर हट खेल तमाशा देख रहे थे।
और खेल तमाशा शुरू भी जल्द हो गया।
पहले तो रंजी की दुष्ट जुबान ने , गुड्डी की रस कूप की परिक्रमा की , उसे चाटा सहलाया और फिर सीधे उसमें डुबकी लगा दी।
मेरी चुसाई चटाई ने वैसे ही उसे सुधा रस से लबरेज कर दिया था ,छलक रहा था गुड्डी के योनि के प्याले से मधु रस और अब ऊपर से रंजी ,नंबरी चूत चटोरी।
लेकिन उसके बाद जो हुआ वो मैंने न कभी देखा न सुना न सोचा।
रंजी ने अपना चेहरा हटा लिया लेकिन उसकी दो जालिम अंगूठों ने गुड्डी के योनि छिद्र को , उसकी गुलाबी मखमली पुत्तियों को पूरी तरह से ,अपनी सारी ताकत लगा के फैला दिया,
उसकी प्रेम गली का रस्ता अंदर तक साफ दिख रहा था।
योनि का प्याला पूरी तरह खुला था।
और फिर रंजी ने शैम्पेन के ग्लास से बूँद बूँद अंगूर की बेटी का रस उस खुले मधु के प्याले में चुआना शुरू कर दिया।
कुछ देर में ही वो यौवन का प्याला , मधु कूप , मद से लबरेज था। छलक रहा था।
रंजी की उठती गिरती पलकों का आमंत्रण साफ था।
जैसे रात भर गिरी बूँद बूँद ओस , गुलाब की अधःखिली , अधखुली कली से हमिंग बर्ड या मधुचूसनी , चूस जाती है ,
बस उसी तरह मेरे प्यासे होंठ , चुहुक चुहुक , उस यौवन के प्याले से मधु रस पी रहे थे।
रंजी झरने की तरह शैम्पेन के पेग से शराब बरसा रही थी। मेरे होंठ गुड्डी के योनि के प्याले से उसे खत्म करते उसके पहले ही रंजी उसे भर देती।
रंजी ऐसी साकी हो , जवानी और जोबन से भरपूर
आंखों को बचाये थे हम अश्के-शिकायत से,
साकी के तबस्सुम ने छलका दिया पैमाना।
गुड्डी के मधुकूप ऐसा प्याला हो
तो फिर कौन पीनेवाला रुकेगा
कुछ देर में ही ग्लास खाली था लेकिन
साकी तो रंजी थी
साकी तू मेरे जाम पर कुछ पढ़ के फूंक दे,
पीता भी जाऊं और भरी की भरी रहे।
और ग्लास फिर भर गया , हाँ उसने पिलाने की अदा बदल दी।
गुड्डी की जाँघों के बीच जवानी की घाटी से शराब का दरिया बह रहा था , और मैं मुंह लगाए उसे पी रहा था।
लेकिन कुछ देर में साकी भी इस महफिल में शामिल हो गयी , इस जवानी और शराब के दरिया में गोता लगाने को ,
हाँ अब हमने बटवारा कर लिया , अगवाड़ा रंजी के हवाले और पिछवाड़ा मेरे ,
भरतपुर की मालकिन वो और चितौड़ गढ़ पे मेरा कब्ज़ा।
उसकी जीभ गुड्डी की चूत में चरखी की तरह घूम रही थी और गुड्डी के दोनों गदराये चूतड़ फैलाकर , सीधे गांड के छेद में मुंह लगाकर , जीभ मैंने अंदर तक पेल दिया।
गुड्डी की सिसकियाँ , गालियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थी लेकिन अब न मैंने छोड़ने वाला था ,न रंजी।
बल्कि रंजी ने गियर चेंज कर एक्सीलरेटर पूरा दबा दिया।
उसके होंठों ने चूत को आजाद कर दिया लेकिन एक साथ घचाक से उसने दो उंगली गुड्डी की चूत में पेल दी और वो भी चम्मच की तरह नक़ल से मोड़ कर ,
और धीमें धीमे घुमाने लगी , जैसे उसकी उंगलियां कुछ ढूंढ रही हो ,
और एक दो मिनट में उसे वो चीज मिल भी गयी
खजाने की चाभी ,
वो खटका जिसे दबाने से तिलस्म खुल जाता है।
रंजी के चेहरे की चमक देखकर मैं भांप गया ,रंजी ने क्या ढूँढा है और अगले पल गुड्डी की जोर दार सिसकियों ने उसे कन्फर्म कर दिया।
बस अब रंजी उसी एक जगह उँगलियों से दबाव बना रही थी , खुरच रही थी
और गुड्डी मस्ती से अपने चुतड पटक रही थी।
रंजी ने गुड्डी का जी प्वाइंट ढूंढ लिया था।
और मैंने भी रंजी के साथ जुगलबंदी शुरू कर दी थी। मेरी लपलपाती , लालची जीभ पीछे से आगे , गांड से चूत तक लपर लपर चाट रही थी , आग और भड़का रही थी।
गुड्डी की प्यासी आँखे बार बार मुड़के मुझे देख रही थीं , कुछ करो न।
जंगबहादुर भी व्याकुल हो रहे थे , जैसे कोई बछड़ा खूंटा तुड़ा कर गाय के थन तक जाने के लिए उछल रहा हो बस उसी बेकरारी से।
लेकिन रंजी इत्ती आसानी से ये मौका नहीं छोड़ने वाली थी।
उसकी उंगलिया जी प्वाइंट को छेड़ रही थी और होंठों ने क्लिट को अपने कब्जे में ले लिया और वैक्यूम क्लीनर से भी तेज चूसने लगी।
अब गुड्डी से रहा नहीं गया वो जोर जोर से बोलने लगी ,
" ओह्ह्ह्ह्ह आह्ह , उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ , रहा नहीं जा रहा , कुछ करो न अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह "
" अरे क्या करवाना चाहती है मेरे भैया से बनारस की रानी , कमीनी छिनार , जरा खुल के तो बोल , वरना ऐसे ही तड़पती रहेगी सारी रात। " रंजी ने चिढ़ाया और गुड्डी की क्लिट निबल कर ली।
" ओह्ह साल्ली क्या करती है " जोर से गांड पटकते गुड्डी बोली और अपनी मंशा जाहिर कर दी ,
" चोदो न , चोद न इत्ती आग लगी है। "
गुड्डी को इतनी चुदवासी मैंने कभी नहीं देखा था। लेकिन मैं कुछ करता उसके पहले रंजी की आँखों ने मुझे बरज दिया और जोर जोर से चूत मंथन करने लगी , और बोली ,,
" अरे साली , हरामन रंडी की जनी , तेरे सारे खानदान की गांड मारूं , साफ साफ बोल कहाँ चुदवाना चाहती है मेरे प्यारे भैया से , मुंह में गांड में चूत में। कहाँ आग लगी है. पैदायशी छिनार। "
"ओह्ह प्लीज चोदो न मेरी चूत , आग लगी है मेरे चूत में " गुड्डी चूतड़ पटकते बोली। उसकी चूत से झरना बह रहा था।
अब मेरे लिए रुकना असंभव था। लेकिन रंजी की आँखों ने मनुहार किया , बस एक मिनट और ,
और गुड्डी से बोली ,
" बहुत चुदवासी हो न मेरे भैय्या के मोटे लंड के लिए , लेकिन तेरे साथ तेरी दोनों छोटी बहने भी तेरी चुदेंगी मेरे भैय्या से , दो की सील फाड़ेगा वो ये समझ लेना। " रंजी ने एक और कंडीशन लगाई।
" अरे यार मेरी बहने चुदे , मेरा सारा खानदान चुदे , लेकिन अभी मुझे तो चुदवा कमीनी , गदहा चोद। " गुड्डी की हालत बहुत खराब थी।
अब मैं किसी तरह से नहीं रुक सकता था।
अगले ही पल गुड्डी की केले के तने ऐसी चिकनी जांघे फैली थी , दोनों पैर मेरे कंधे पर आसीन और मैंने पूरी ताकत से एक करारा धक्का मारा।
पहले ही धक्के में दो तिहाई लंड , ६ इंच अंदर।
और अब गुड्डी की सिसकी के साथ चीख भी गूँज रही थी।
ये ऐसा मजा है जो बिना दर्द के होता नहीं।
लेकिन रंजी और गुड्डी की बातें उसमें और तड़का लगा रही थीं।
" काहे घबड़ा रही हो , बनारस की रानी , २७ मई की रात होगी न कबड्डी रात भर " गुड्डी के गाल पे जोर से चिकोटी काट के रंजी ने चिढ़ाया और जोड़ा ,
" और हाँ याद रखना , २८ को बाकी लोग तो ऊपर वाली मुंह की मुंह दिखाई करेंगे , लेकिन हम सब ननदे ,सिर्फ नीचे वाले मुंह की मुंह दिखाई करेंगी , कैसा लगता है इस्तेमाल के बाद। "
मेरी तो बत्ती जल गयी वो भी बिना बिजली के। ऊपर वाली भी और नीचे वाली भी।
' यानी रंजी को पूरा प्रोग्राम मालुम है।
२५ मई को गुड्डी के गाँव में शादी ,तीन दिन की बारात और २७ को दिन में विदाई।
२७ मई की रात में सुहागरात। और भाभी और मम्मी ( गुड्डी की मम्मी ) का हुकुम भी , इंगेजमेंट के बाद २७ मई के पहले गुड्डी को छू भी नहीं सकते। गुड्डी और रंजी खैर बचपन की सहेली है, गुड्डी ने पूरा गाना सुनाया होगा और भाभी ने भी रंजी को लगता है पूरा किस्सा बता दिया है। '
लेकिन तब तक गुड्डी ने रंजी को जवाब सूना दिया ,
" अरे छुटकी ननदी , मेरी छिनार माल। २७ मई और २८ मई के पहले २५ मई आएगी जानम। गांव में आम के बाग़ में पूरा इंतजाम है कुटाई का। पूरे तीन दिन।
अभी से लिस्ट बन गयी है , तीन मस्त लड़के तेरे नाम लिख दिए गए हैं , कभी आम के बाग़ में तो कभी गन्ने और अरहर के खेत में , जब मट्टी के ढेले पे चूतड़ रगड़ रगड़ कर चुदायी होगी न तो मजा आएगा। २७ को लौटोगी न अपने भैय्या की बारात से तो पैर फैलाये फैलाये चलोगी।
और उसमें तो अभी दो महीने करीब है , अभी कल बनारस में देखना गिनती भूल जाओगी इतने लौंडे चढ़ेंगे "
" अरे यार मैं बनारस चल रही हूँ मजे लेने या गिनती सीखने , लेकिन मेरी जनिया अभी तू तो घोंट हचक हचक के "
रंजी कौन सी कम थी जवाब देने में।
गुड्डी रंजी संवाद का असर ये हुआ की मैंने गुड्डी के दोनों गदराये चूतड़ जोर से पकड़े , सुपाड़ा आलमोस्ट बाहर निकाला और एक झटके में पूरा ९ इंच अंदर। सुपाड़े का धक्का सीधे बच्चेदानी पे।
उईइइइइइइइइइइइइइइइइइ माँ जान गयी , ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह अह्ह्हह्ह हलके से , ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उफ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लगता है।
गुड्डी ने जोर की चीख भरी।
गुड्डी की चीख जीतनी जोरदार होती उतना ही रंजी को मजा आरहा था। उसने चिढ़ाया ,
" अरे कमीनी , अभी तो चूत में आग लगी थी अब फटी पड़ रही है , ये छिनारपना किसी और को दिखाना। और फिर ये माँ माँ क्यों बोल रही है क्या उनको भी मेरे भैय्या से ,… "
रंजी की बात पूरी भी नहीं हुयी थी की मैंने फिर ऑलमोस्ट पूरा निकाल के पहले से भी दूनी ताकत से जोरदार धक्का मारा और कसी , किशोर चूत में रगड़ते दरेरते मेरा मोटा लंड सीधे अंदर और अबकी सुपाड़े का धक्का , गुड्डी की बच्चेदानी पे डबल जोर से लगा और वो चूतड़ उछाल के सिसक उठी , चीख पड़ी।
" उईइइइइइइइइइइ माँआआआआआआआ , ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह इइइइइ माँआआआअ "
"अच्छा चल यार तू भी क्या याद करेगी ,तेरी मम्मी का भी नंबर भैया से लगवा दूंगी ,बार बार माँ माँ कह रही है , लेकिन अभी तू तो कुटवा अपने ओखल में धान। " रंजी ने तड़का लगाया।
मैं एक पल के लिए ठहर गया और गुड्डी को सांस लेने के लिए मौका मिल गया और फिर उसने वो गालियों की झड़ी लगायी ,
" बहनचोद , मादर ,… अरे आम के बाग़ में सिर्फ तुम्हारी कुश्ती थोड़े ही होगी , मम्मी की सारी समधन का नाड़ा खुलेगा। गपागप गपागप , मेरे सारे चाचा ,मामा , मौसा फूफा अभी से तेल लगा के खड़ा किये हैं , तेरी सारी खानदान की मारी जायेगी। "
लेकिन उसके बाद जंगबहादुर ताबड़तोड़ चालु हो गए हैं। धक्के पे धक्का ,धक्के पे धक्का ,
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