Sunday, May 10, 2015

FUN-MAZA-MASTI शुभारम्भ-32

FUN-MAZA-MASTI

शुभारम्भ-32

 साला जब भी मुझे ठरक चढ़ती है मेरे कान गरम होने लगते है.....

कोमल भाभी क्या समझा रही थी मेरे समझ में तो आ रहा था मगर हमेशा कि तरह गांड की फटफटी चल निकली........और मैं चुप चाप प्लग बदलने की कोशिश करने लगा.....क्या पता भाई......यह गुजरातन सच्ची में प्लग और खांचे के बारे में बोल रही हो और अपुन अपने चोदु दिमाग में १ और १ ग्यारह कर रहे हो.

मैंने जला हुआ प्लग तो पेंचकस से खोल कर उससे तार अलग कर दिए.....अब मेरे एक हाथ में तीन टार थे और एक हाथ में नया प्लग.....मादरचोद घंटा समझ नहीं आ रहा था की कोनसा तार कोनसे पिन में कसना है.

मैंने सकपका कर कोमल भाभी को देखा, वो बड़े ही गौर से मेरी हरकते देख रही थी,.....मुझे अपनी और देखते हुए बोली, " अरे भैया......लगाओ न......" ( क्या लगाउ भेनचोद ???? )

मैं हकलाया, " हैं.....हा....मैं.......वो.......यह तार छीलना है....कुछ है क्या....? "

जवाब में कोमल भाभी ने मेरे पास आकर मेरे हाथो से तार लिया और दांतों में दबा कर खिंच दिया.......

तार छिल गया था और इधर मेरे बाबूराव के तार भी खींचने लगे.....क्या अदा थी......अपना बाबूराव तो पहले से ही पारखी नज़र वाला था.....मैं दिवार की और मुंह कर के अपने बाबूराव की चूल छुपाने में लगा था.......साला मादरचोद यह कॉटन के शॉर्ट्स भोसड़ी के, लंड और हंडवे के दर्शन ऊपर से ही करा देते है और अपना बाबूराव तो कुत्ते का पिल्ला.....खड़ा होकर ठरकी कुत्ते के जैसे हांफ रहा था .

कोमल भाभी मेरे पीछे खड़े होकर मेरी कारगुजारिश देखने लगी......भाभी की साँसे मेरे कंधे पर और मेरे कान के पिछले हिस्से पर पड़ रही थी........लोग औरत को गरम करने के लिए उसके कानो को छेड़ते है और यहां भेनचोद मेरे पहले से ही खड़े बाबूराव पर यह सितम और हो रहा था.

साला बिजली के प्लग में तीन तार होते ही क्यों है मादरचोद........लंड समझ नहीं आ रहा था की क्या करू......फिर सोचा की चलो......ट्राय करते है.......मैंने लाल तार बिच में .....काला और हरा निचे लगा दिया.....प्लग तो खांचे में लगाया.......यह वाला प्लग खांचे में आसानी से नहीं जा रहा था ......मैंने ज़ोर लगाया और धीरे धीरे खांचे में प्लग को पूरा फसा दिया.

भाभी मेरे पीछे खड़े खड़े ही धीरे से बोली, " हुम्म्म.......अब इस खांचे को सही प्लग मिला है.....इतना मोटा है तो कस कस के जायेगा अंदर और अब जलेगा भी नहीं,,,,,"

भाभी क्या बोल रही थी और क्या बोलना चाह रही थी अपने भेजे में समझ आ नहीं रहा था.....अब स्थिति ये थी की मेरा बाबूराव फुल अटेंशन में मेरे शॉर्ट्स में तम्बू बना चूका था और मैं ऐसी हालत में पलट नहीं सकता था......मैंने एक ठंडी सांस ली और प्लग को अंदर दबाते हुए बिजली का स्विच ऑन कर दिया.....

मुझे ऐसा लगा मानो मेरे हाथ पर हजारो मधुमखियों से एक साथ डंक मार दिया....जैसे मेरा पूरा हाथ सेकण्ड के सौवे हिस्से में हज़ार बार हिल गया....मैंने चिल्लाने की कोशिश की मगर मेरे मुंह से आवाज़ ही नहीं निकली......मेरी आँखों पर अँधेरा सा छा गया.

लल्ला की फटफटी में शॉर्ट सर्किट हो गया था.

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मेरी आँख खुली तो मैं जमीं पर पड़ा था और कोमल भाभी मेरे चेहरे पर झुकी हुयी थी......वो धीरे धीरे मेरे गालों को थपथपा रही थी......और मुझे पुकार रही थी......मेरे मुंह से एक कराह निकली और मैं उठने की कोशिश करने लगा......कोमल भाभी ने मेरे सीने पर हाथ रखकर मुझे फिर से लेता दिया और बोली,

"हे भगवन.......भैया......मेरी तो जान ही निकल गयी थी......हाय....हाय.....अगर बिजली का काम नहीं आता तो हां क्यों किया जी.....?........देखो अब लगता है पुरे घर का फ्यूज उड़ गया है......."

मैंने नज़रे घुमाई तो सची में घर अँधेरे में डूबा था.....मगर बाहर से ढलते सूरज को कुछ किरणे अभी भी घर के अंदर तक आ रही थी.......और वो साली सब की सब मादरचोद किरणे.......कोमल भाभी की गोरे गोरे गले और उसके निचे लगे तोतापरी आमो पर पड़ रही थी. भाभी का अंचल तो कब का गिर चूका था.

ढलते सूरज की सोने जेसे किरणे भाभी के दूधिया मम्मो पर पढ़ रही थी......उनका लाल रंग का रुबिया ब्लाउस जेसे पारदर्शी हो गया था और उसके निचे काली नेट वाली ब्रा भी दिख रही थी....

और दिख रहे थे उस ब्रा में कैद....भाभी के नरम नरम निप्पल.....मादरचोद दोनों मम्मो के निप्पल साफ़ दिख रहे थे......क्योकि निप्पल किसी कारण से कड़क हो गए थे.

बिजली के झटके कि माँ की चूत...बाबूराव तोप से निकले गोले जैसी तेज़ी में तुरंत खड़ा हो गया.

कीड़ा सारी टांगे ऊपर कर के पूरी तेज़ी में कुलबुलाने लगा.

मुझे लगा कि भाभी शायद कुछ बोल रही है.....

लगता है जब भी लंड खड़ा होता है तो दिमाग का सारा खून लौड़े में ही चला जाता है. न कुछ सुनाई देता है और न ही कुछ समझ में आता है.

मैं हड़बड़ाया, " हाँ,.....क..क..क..क्या ...भाभी.....?"

"अरे क्या क्या...क्या लगा रखा है.....यह फ्यूज भी ना.....अब तुम कर लोंगे ? हाय...मगर तुमको तो बिजली का काम ही नहीं आता है ......चलो मैं ही देखती हूँ........."

मैंने सर हिलाया और खड़ा होने लगा.....मुझे ऐसा लगा कि भाभी ने कनखियों से उनको सलामी दे रहे बाबूराव को भी देख लिया था...मगर उन का चेहरा अँधेरे में था....सारी की सारी किरणे जो उनके सीने पर पद रही थी..उनके खड़े होने के बाद उनके पेट पर पड़ने लगी......और मेरी साँसे रुकने लगी....

झुकने उठने में भाभी के पेट पर से साड़ी हट गयी थी और सूर्य देव अपनी किरणे सीधे उनकी.........

नाभि पर गिरा रहे था.......लोगो से सुना है की नाभि में नाभि....सबसे सेक्सी नाभि दो ही हिरोइनो की है.

या तो शिल्पा शेट्टी की या फिर उर्मिला मार्तोंडकर की......

बाबा जी के भुट्टे........

कोमल भाभी जैसी नाभि तो भेनचोद सनी लेओनी की भी नहीं होगी.,..

मैं बार बार नज़रे हटता और मेरी नज़रे कुत्ते की पूँछ जैसे बार बार वही पर आ कर टिक जाती.
मुझे लग रहा था की भाभी मेरी नज़रो का डायरेक्शन कभी भी पकड़ लेगी....

पकड़ ले तो पकड़ ले......माँ की चूत......भाभी की नाभि की बनावट तो अंडाकार थी मगर शादी के बाद बेचारी थोड़ी सी मांसल हो गयी थी...और नाभि के चारो और सॉफ्ट सॉफ्ट पेट निकल थोडा निकल आया था.....और इसी नरम नरम पेट में जड़ी नाभि ने मेरे बाबूराव को कड़क कड़क कर डाला.

"अरे,......शॉक में हो क्या भैया......हल्लो.....?", भाभी ने थोडा ज़ोर से बोला....

"हैं......नहीं.....न...न....नहीं......म....म.....मैं......वो......"

यह हकलाने की माँ का भोसड़ा यार.......

मैंने तुरंत नज़रे इधर उधर कर ली.....शायद भाभी को भी लग गया था की मैं नज़रों से उनकी नाभि का अमृतपान कर रहा था....उन्होंने साड़ी का पल्लू सामने से फैला लिया....

लो लंड मेरा.....गिर गया पर्दा.

मेरी तो इच्छा हुयी की भाभी की साड़ी ही......नहीं नहीं......कंट्रोल......

मैं चूतिये जैसे इधर उधर देखने लगा.....तभी भाभी बोली, "अरे लल्ला भैया......चलो भी.....फ्यूज बदलना है ना.....फिर मुझे खाना भी बनाना है.....आज यह भी टूर से लोट कर आ रहे है.....इतने दिनों बाद...."

हाँ भेनचोद .....वो तो आएगा थकाहारा और तू साली तेरी खुजाल के चक्कर में उस गरीब लंड को रात भर नहीं सोने देगी......

मैंने सोचने लगा....पहली ट्रिप तो भैया लगा लेता होगा....मगर उसके बाद की २-३ ट्रिप तो भाभी ही उसको उकसा उकसा कर लगवाती होगी.....ऐसा गद्दर माल है.....एक ट्रिप में तो इस भेनचोद का इंजन गरम होता होगा......

"अरे तुम्हारे सर का कोई तार वार हिल गया है क्या.....ऐसे कैसे खड़े हो......चुपचाप.....

मेरी ख्यालों कि ट्रेन ने ब्रेक मारा......"हैं....हाँ....हाँ......म...म...मेरा मतलब है कि नहीं मुझे नहीं आता......"

"चलो.....हर बार जब ये फ्यूज बदलते है तो मैं टॉर्च पकड़ के रखती हूँ ........अब तुम पकड़ लेना....."

क्या पकड़ लेना जानेमन.....मेरी इच्छा तो तुझे पकड़ने कि हो रही है.....मेरे दिमाग में तो भाभी के कड़क निप्पल और जानलेवा नाभि ही घूम रही थी....मन में तो ऐसा आ रहा था कि इस साली हरामन को यही पटक के रगेद दूँ....मगर फटफटी .......चल पड़ती है यार.....

भाभी मुझे वहीँ छोड़ कर अंदर गयी और टॉर्च ढूंढ कर ले आयी......और उसे ऑन करके फ्यूज बॉक्स कि और चल पड़ी......

किरणे अब भाभी की लाल साड़ी में कसी हुयी गांड पर पड़ रही थी...

मेरे कमज़ोर दिल पर ऐसा इमोशनल अत्याचार......

भाभी की चाल में ही कुछ ऐसी बात थी यार......गप....गप......एक ऊँचा एक निचा.....ओये होये.

भाभी अचानक रुकी और सिर्फ अपनी गर्दन को थोडा सा मोड़ कर मुझसे कहा,

"अब आओगे भी या....ऐसा ही बुत बने देखते रहोगे.....?"

इसकी माँ की.....इसको कैसे पता चला की मैं इसको टाप रहा था.....तभी मेरी नज़र सामने लगे शीशे पर पड़ी और शीशे में ही हमारी ऑंखें चार हो गयी

आके सीधी लगी दिल पे मेरे नजरिया......ओ गुजरिया....

भाभी ने हलकी सी स्माइल दी और आगे चलने लगी.....और मैं उनके पीछे चाल पड़ा जैसे भूखा कुत्ता हड्डी की पीछे.

भाभी एक छोटी सी कोठरी में घुस गयी और मैं उनके पीछे दरवाजे पर ही खड़ा हो गया, उन्होंने टॉर्च की रोशनी में फ्यूज बॉक्स देखा और उसका ढक्कन खोला......फिर मेन स्विच गिराया.....और फ्यूज को बाहर खींचने की कोशिश करने लगी.

फ्यूज भोसड़ी का जाम था......टस से मस नहीं हो रहा था...

भाभी एक हाथ से टॉर्च पकडे दूसरे हाथ से उसको खींचने लगी.....पर वो तो ठान के बैठा था की बॉस आज तो लंड नहीं निकलूंगा......

भाभी ज़ोर लगते हुए बोली, "ऊओह.....यह तो बहुत टाइट फंसा है......हिल भी नहीं रहा...."

"हाँ भाभी लगता है गरम होने से दोनों चिपक गए है....", मैं टर्राया.

"हाँ .......हैं......क्या.......??"

मेरी गांड फटी. "न...न....नहीं......आप खींचो इसको......"

"आहन.....हाँ.....पर.....ये.....तो......बहुत.......ही......टाइट......है.......ऊओह....."

मादरचोद फ्यूज निकाल रही है या मोटे लंड से चुदवा रही है ? ?

"आह.....नहीं......निकलता........उह......अरे आप क्या खड़े हो वहाँ पर......लो यह टॉर्च पकड़ो और इधर लाइट मारो.........मैंने दोनों हाथ से हिलाती हूँ"

मेरा ही हिला दो भाभी.......

मैंने टॉर्च पकड़ ली.....और फ्यूज बॉक्स पर लाइट मारने लगा.....भाभी पूरी जान लगा कर फ्यूज पर पिली हुयी थी और वो भड़वा तो निकलना दूर हिल भी नहीं रहा था.

इस जोराजोरी में कोमल भाभी पूरी हिल रही थी.....और उनकी हर हरकत पर उनकी विकराल गांड थर्रा रही थी......माँ की भोसड़ी फ्यूज की.......भाभी की गांड में तो जैसे भूकम्प आया हुआ था.

मेरी नज़रे भाभी की थर्राती थिरकती गांड पर शहद पर मख्खी चिपके ऐसी चिपक गयी......

बेचारी पसीना पसीना हो रही थी......और पसीना ऑन हसीना हमेशा ही बड़ा खतरनाक कॉम्बिनेशन होता है

बाबूराव ने तुरंत अपना सर उठाया और मेरे पजामे में अपने तम्बू तन लिया.

कोमल भाभी अपने नाज़ुक नाज़ुक हाथों से फ्यूज पर लटके जा रही थी और वो भड़वा तो मज़े ले रहा था.

मज़े तो अपुन का बाबूराव भी ले रहा था .....भाभी के हिलती गांड को देख कर बाबूराव ने भी ठुनकी मार कर
सिग्नल देना शुरू कर दिया.

मैं पजामे में हाथ डालकर अण्डरवियर एडजस्ट करने लगा, टॉर्च वाला हाथ मुड़ कर पजामे पर ही फोकस मारने लगा.....साला लंड लटका रहता है तो गरीब आदमी जेसे २ इंच की जगह में भी एडजस्ट हो जाता है और जो कहीं भेनचोद चूत की खुशबु मिल गए तो भोसड़ी का सवा सात इंच का नाग बन कर अपना फन लहराने लगता है.....बाबूराव ने उत्तेजना और ख़ुशी के मारे अपना मुंह ( सुपाड़ा......भाई) अण्डरवियर के इलास्टिक से बाहर निकाल लिया था......और मैं उसको जैसे तेसे अण्डरवियर के अण्डर करने के कोशिश कर रहा था..

"अरे.....लाइट इधर करो.......कहाँ......कर रहे हो......हाआआआय राआआआम"

भाभी घूम गयी और इधर मैं खड़ा.... अपने लंड पकडे टॉर्च का फुल फोकस बाबूराव की चमकीले टोपे पर.

एक छोटी सी प्रीकम की बूंद सुपाड़े के छेद पर थी......टॉर्च की रोशनी में वो बूंद मोती जेसे चमक रही थी.

भाभी फिर चिल्लाई....."हाय राम....."

अब छोटी से चड्डी में इतने बड़े लौड़े को कहा छुपायूं.....मैंने पजामे का इलास्टिक छोड़ दिया.....
सटाक की आवाज़ के साथ इलास्टिक सुपाड़े पर जा टकराया.

"आआह.........", मैं चिल्लाया.....

"हाय.......राम......", भाभी चिल्लाई....

मेरे और बाबूराव.....दोनों के खेल लग गए थे.

फटफटी का इंजन सीज़.


सुपाड़ा यानि कि लंड का टोपा लंड का सबसे नाज़ुक स्थान होता है...पजामे के इलास्टिक ने वो चोट मारी थी कि बस......मेरी तो बैंड बज गयी थी..


"ऊओह.....शिट........आउ....आह.......आह.....", मेरी तो आवाज़ ही बैंड नहीं हो रही थी....

मैं सहारा लेकर वही फर्श पर बैठ गया. और अपने बाबूराव को हाथों से दबा लिया....

कोमल भाभी एक दो सेकंड मुझे देखती रही और फिर तीखी आवाज़ में बोली,

" बेशरम कहीं के......क्या कर रहे....थे....हाँ ?......अपने हाथ हटाओ......वहाँ से....."

माँ की चूत......यहाँ मेरे लंड में भूचाल आया हुआ था.....बेचारा दर्द के मारे दोहरा हो रहा था....

मैंने हाथ हटाया तभी मेरे बाबूराव में एक टीस उठी और मैं उसे हाथों से दबाकर फिर दोहरा हो गया.

अब कोमल भाभी ने चिंता जताई, "हाय.,..हाय......ज़ोर से लग गयी क्या.......दबाओ मत.....और दुखेगा......"

मैंने तो उनकी परवाह ही छोड़ दी थी....लंड की परवाह करना ज्यादा जरुरी था भाई.

मैंने कराहते हुए उठने की कोशिश करने लगा......थोडा दर्द हुआ तो मैं फिर बैठ गया.....

हुआ यूँ था की इलास्टिक सुपाड़े को रगड़ता हुआ गया था.....और इसी लिए दर्द हुआ....अब धीरे धीरे दर्द तो कम हो रहा था...मगर मेरी गांड की फटफटी ये सोच सोच कर रेस मार रही थी की यह साली बहनचोद भाभी सबको बता देगी और मेरा जालिम बाप मेरी गांड में सरिया डाल कर मुंह से निकाल देगा.

दिमाग के घोड़े तो सरपट दौड़ ही रहे थे......अब मैंने नाटक करना शुरू कर दिया.......
मैं और ज़ोर ज़ोर से हाय हाय आह आह करने लगा.

अब गांड फटने की बारी कोमल भाभी की थी....

"हाय.....हाय.....अरे क्या हुआ जी.........अरे हुआ क्या.....ज्यादा दुःख रहा है क्या.......?"

मैं ना में सर हिलाता रहा और अपने बाबूराव को मसलता भी रहा......

मैं बैठा था निचे......जब पजामा छूटा तो टॉर्च भी मेरे हाथ से छुट गयी थी...टॉर्च अभी तक ऑन थी.....कमरे में रोशनी दे रही थी मगर मेरी तरफ अँधेरा था..

फोकस तो कहीं और बन रहा

भाभी की टांगों के बीच

भाभी ठिक टॉर्च के उपर खड़ी थी।

कमरा अंधेरा था और थोड़ा टॉर्च की रोशनी तेज़.


कोमल भाभी की जाँघों का पूरा शेप दिख रहा था ….

साड़ी की ये खासियत होती है की साड़ी के अंदर आए औरत की कमर और गांड़ का शेप तो दिख जाता है मगर उसकी जाँघों को साड़ी पूरि तरह से छुपा लेती है.

टॉर्च की रोशनी मे कोमल भाभी की जांघे तो एकदम मस्त चौड़ी और मांसल दिख रही थी ….मेरी नज़रें जा कर उन पर ही टिक गयी ….तभी कोमल भाभी फिर से चिल्ला.

“ अरे लल्ला भैया …..बोलो ना ….डरा क्यू रहे हो …….ज़ोर से लग गयी क्या …..हाय हाय आपकी तो आवाज़ भी नहीं निकल रही …….”

ये सुनते ही मैने फिर से कराहना शुरू कर दिया ….

भाभी ने तुरंत टॉर्च उठाई और बोली,
“ भैया प्लीज़ उठो ….देखो धीरे से …..चलो बाहर ….आपको तो ज्यादा लग गयी है,….”
मैं अपने बाबूराव को दोनो हाथों से थामे धीरे से उठने लगा ….तभी मेरा बॅलेन्स बिगड़ा और भाभी ने बला की फुर्ती दिखते हुये मेरे हाथ को पकड़ लिया ….उनके मम्मे मेरे हाथों से सट गये …

भाभी धीरे धीरे सहारा देकर मुझे बाहर ले आई और मुझे सोफे पर बिठा दिया और सोफे पर ही मेरे पास बैठ गयी ….

बॉस अब मेरी गांड़ फटी …….कोमल भाभी ने अगर हंगामा कर दिया तो ….ये साली भेनचोद पूछेगी की मैं अपने पाजामा को खींच कर अपना लॅंड पकड़े क्या कर रहा था तो मैं क्या जवाब दूंगा …

यह बोलू की भाभी आपके मम्मे देखकर लॅंड खड़ा हो गया था और पाजामा मे हाथ डाल कर मे मेरे खड़े लॅंड को सेट कर रहा था ….अपने तो काम लग गये बॉस.

भाभी अलग बडबडा रही थी, “ अरे राम ….अब मैं क्या करू ….आप नीलू चाची या किसी को भी मत बताना की ऐसा हुआ ….आप ठीक तो हो …..”

ये लो … यहाँ अपनी गांड़ फट रही थी और इस बेचारी की उल्टा अपने से फट रही है …..

मगर देखो भाई....... नाटक करो तो पूरा करो …..

मैने तुरंत ना मे सर हिलाया और अपने वफादार को दबाते हुये फिर से हाय हाय मचाने लगा.


भाभी की गांड़ फटी और वो कभी मुझे देखती और कभी मेरे हाथों मे दबे मेरे बाबुराओ को …

भाभी बोली, “ राम राम ….लल्ला भैया इतना ज्यादा दुख रहा है क्या ….. कहीं .......खून.... तो.... नहीं .....आया.….”

भेन
चोद कही ये खून तो नहीं आया के चक्कर मे लॅंड का चेकप ना कर डाले … इस फनफनाते सपोले का मैं क्या जवाब दूंगा …


मैं तुरंत टर्राया, “ अरे भाभी …..म.म.म … मेरा मतलब है की …..अब इतना नहीं दुख रहा ….अब तो ठीक है …. मसलने पर अचछा लग रहा है ”

भाभी जल्दी से बोली, “ हाँ हाँ तो थोड़ा मसल लो ….. मसलने से दर्द कम होता है …”

सोचो भाई लोग ….मैं टी-शर्ट पाजामा मे..भाभी के सोफे पर अपना खड़ा लॅंड पकड़ के बैठा हूँ और ये गेलचोदी कह रही है की मसल लो ….

साली तेरे मम्मे ना मसल लूँ...

डूबता सूरज भाभी के चेहरे और ब्लाउस पर अपनी किरणे डाल रहा था. भाभी के गोरे रंग पर किरणो का ऑरेंज रंग......ब़स.

मैं अभी तक तो पजामे के उपर से ही अपने पालतू तो सहला रहा था......कभी कभी सच्ची मे भी दुख जाता था। आखिर चोट तो लगी थी।

भाभी कभी मुझे देखती कभी लॅंड को सहलाते हुये मेरे हाथ को।

तभी मेरे हाथ से बाबुराओ की स्किन खींच गयी। और मेरे मुंह से दर्द भरी सिसकारी और फिर हल्की चीख निकल गयी।..

भाभी की बची खुची हिम्मत भी जवाब दे गयी।

वो घबरा कर बोली, "हाय.....हाय.....इतना दुख रहा है............म...म....मैं क्या करू राम...... "

मैने एक सिसकारी और मार दी....

मेरी सिसकारिया असली थी भाई....

दर्द की नहीं.......मस्ती की

भाभी बोली, " हाय.........ज्यादा चोट लग गयी है लगता है.........अब क्या करू.....डॉक्टर....."

मैं चिल्लाया, "नहीं ....डॉक्टर नहीं......."

बेचारी मेरी आवाज से और डर गयी

"हाय......तो अब क्या करू..........", भाभी ने बेबसी से कहा

मुझे क्या पता.....मुझे तो भाभी के ब्लाउस से दिखते मम्मे और चिकनी गर्दन से फिसलते पसीने की बूंदें देख देख कर मज़ा आ रहा था।

तभी एक पसीने की बूंद भाभी की गर्दन से चली और सीधे उनके मम्मो के बीच बनी खाई मे समाने लगी।

मेरी ठरक ने मेरे मुंह से एक सिसकारी और निकलवा दी।

मेरी सिसकारी सुन कर भाभी मानो किसी निर्णय पर पहुंच गयी....

"हटाओ हाथ....."

" क क क क्या ?????"



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