FUN-MAZA-MASTI
ज़मीन जायदाद में से हिस्सा ना छोड़ने की वजह से माँ ने दूसरी शादी नहीं करी थी, हमारी पढ़ाई लिखाई का बहाना लगा गाँव से शहर आई और यहाँ उसके कई मर्दों के साथ नाजायज़ सम्बन्ध थे, हम लोगों को स्कूल भेज कर माँ पीछे से चुदाई करवाती!
एक रोज़ स्कूल में मुझे डेट्स (महीना) आई तो मैडम ने मुझे घर भेज दिया। मेन गेट तो खुला था, अंदर से लॉक था, मुझे हंसने की आवाजें आई तो मैं पीछे गई, पंखे की वजह पर्दा उठा था, बिस्तर पर माँ नंगी थी और उसके साथ हमारे ही मोहल्ले के दो लड़के सोनू और बबलू… तीनों नंगे थे।
आखिर लड़की थी मैं… मुझे गुदगुदी सी होने लगी, उनके लण्ड बहुत बड़े और मोटे थे। एक माँ को चोद रहा था, दूसरा मुँह में लंड डाले मजे लूट रहा था।
खैर उस दिन के बाद मुझे अपने में बदलाव आना महसूस होने लगा था, वो दोनों हरामी थे, घर में जाकर मेरी माँ चोदते और गली में मुझ पे लाइन मारते थे। अब मैं उनके लंड देख चुकी थी, उन्हें देख मुझे कुछ कुछ होने लगा।
दीदी के भी एफेयर थे।
बबलू ने अकेले ने मुझे परपोज़ किया, उसने मुझे स्कूल के पास एक सुनसान सी गली में रोक लिया और ‘आई लव यू’ I LOVE YOU कह दिया।
मैं मुस्कुरा कर वहाँ से आगे निकली, वो आया और बोला- रानी, इतनी गर्मी है, आ जा, कहीं बैठ कर ठंडा पीते हैं।
मुझे मालूम नहीं कि क्या हुआ कि मैंने मना नहीं किया, एक रेस्टोरेंट में बैठ ठंडा पिया।
तब से हम रोज़ मिलने लगे।
एक दिन स्कूल से खिसक कर उससे मिलने उसके दोस्त के कमरे में गई जहाँ पहली बार मैंने चूत में अपने आशिक का लंड लिया, पहली मीठी पीड़ा से गुज़र उससे मैंने जन्नत की सैर की, उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और पहली बार किसी लड़के ने मेरे कुंवारे रसीले होंठ चूसे थे। उसकी बाँहों में जाकर मुझे अलग सा सुख मिल रहा था, मेरी कमसिन जवानी उबलने लगी, खुद पर काबू खोने लगी।
और फिर अचानक से उसके हाथ मेरी कमीज़ के अंदर घुस मेरी ब्रा के ऊपर से मेरे चूचों को दबाने लगे जिसने मेरी जवानी की आग पर घी का काम किया और जोर से उसके साथ लिपटने लगी।
उसने आँख झपकने से पहले मेरी कमीज़ मेरे जिस्म से अलग कर दी। जैसे जैसे उसके होंठ मेरे नंगे जिस्म पर रगड़ने लगे, मैं मचलने लगी।
कहते हैं ना कि ‘समय सब कुछ सिखा देता है।’ खुद ही मेरा हाथ उसके लंड पर रेंगने लगा, पैंट के अन्दर उसका लंड जोश दिखा रहा था, मेरे छूते ही अचानक से उसने मानो सलामी दी।
उसने मुझे बाँहों में उठाया और जाकर धीरे से नर्म बिस्तर पर लिटा दिया। उसने मेरे सामने अपनी शर्ट उताई, क्या बॉडी थी… दूर से देख चुकी थी, आज करीब थी… चौड़ा सीना उस पे घने बाल, एक सच्चे मर्द की निशानी थे।
उसने मुझे देखते देखते अपनी पैंट उतारी, वो सिर्फ अंडरवियर में था, वह भी तंबू बन चुका था, मुझे दिखा कर उसने लंड को सहलाया, अंडरवियर खिसका मुझे दर्शन करवा वापस अंदर घुसा लिया, मेरे ऊपर छलांग लगाते हुए उसने वापस मुझे बाँहों में भर लिया, उसने मेरी ब्रा को भी उतार फेंका।
पहली बार किसी मर्द ने मेरे चुचूक को मुँह में लेकर चूसा, मैं तो तड़पने लगी, मचलने लगी। दबाते दबाते कभी एक चूचा चूसता, कभी दूसरा… कब उसने मेरी सलवार के नाड़े को खोला, मालूम ही नहीं चला। जब जांघों तक सलवार सरकी, तब मुझे एहसास हुआ कि अब मेरी बची हुई इज्ज़त भी सरक चुकी है, मैंने खुद चूतड़ उठाए, उसने झट से पैंटी को भी उतार फेंका।
हाय मैं अलफ नंगी हो गई, पहली बार किसी मर्द के आगे नंगी हुई लेटी थी, मैंने अपनी चूत पर दोनों हाथ रख दिए लेकिन उस ताकतवर मर्द के सामने मेरी क्या पेश चलती, एकदम साफ़ सुथरी कुंवारी गुलाबी चूत देख उसके भी होश उड़ने लगे।
फ्रेश चूत थी, चूमते चूमते मेरी नाभि को चूमते हुए उसने होंठ मेरी चूत के होंठों से लगा दिए।
हाय… मैं मर गई… मेरे मुख से सिसकारी फूटने लगी, कमरा मेरी मधुर आवाज़ों से गूंजने लगा था। जब जब उसकी जुबान घूमती, उतनी ही सिसकारियाँ मुख से फूटने लगतीं, उसने मेरी चूत को आज़ाद किया और मेरे पास आकर अपने लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा।
पहली बार किसी लौड़े को होंठों से लगवाया था।
‘मुँह खोल मेरी जान…’
‘नहीं… यह क्या कर रहे हो?’
‘चुप कर साली रण्डी…’
मैंने मुँह खोल दिया और उसके लण्ड का सुपारा मेरे मुँह में घुस गया और धीरे धीरे काफी लंड चूसने लगी।
मुझे मजा आने लगा उसके लंड को चूस कर…
मुझे मूड में लण्ड चूसते देख उसको और मजा आने लगा और वो मेरे बालों से पकड़ लण्ड चुसवाने लगा।
अचानक से वो रुक गया, अल्टा पलटा कर अपने होंठ मेरी चूत पर और अपना लंड मेरे मुँह में घुसा मजे लेने-देने लगा।
‘हाय… सी… सी… और चाटो मेरी जान…’
‘और चूसो मेरा लंड…’
‘हाय तुम भी और चाटो मेरी…’ कहते कहते जब में रुक गई तो वह बोला- बोल ना जान क्या चाटूँ तेरी? बोल ना मेरी जान बोल!
‘क्या बोलूँ?’
‘कह कि और चाटो मेरी चूत को !’
‘मुझसे नहीं कह होता…’
‘बोल… वरना मैं नाराज़ हो जाऊँगा और चाटूंगा भी नहीं!’
‘हाय राजा और चाटो मेरी चूत को…’
‘हाय मेरी रानी, तेरी चूत का तो बबलू आशिक बन गया है!’ जोर जोर से जुबां घुमाता मेरे दाने को जब रगड़ता तब तो जान निकल जाती!
और फिर वो उठा, मेरे बालों से पकड़ लिया अपना लण्ड मुँह में घुसा कर हिलाने लगा और बोला- ले मेरी जान मलाई खा मेरी!
मुझे क्या मालूम था कि कौन सी मलाई!
उसने मेरा मुँह किसी तरल पदार्थ से भर दिया… अजीब सा गर्म गर्म सा पानी कच्चे अंडे जैसा स्वाद था!
जब तक मैं निगल नहीं गई, उसने लण्ड नहीं निकाला और जब छोड़ा तो मैंने नाराज़गी दिखाई।
‘क्या हुआ मेरी जान? यह सब इसका हिस्सा है!’
उसे कुछ नहीं कह सकी पर मेरी चूत की आग मची हुई थी, कुछ देर साथ लेट चूमता रहा और दुबारा मेरे मुँह में घुसा दिया।
‘यह क्या कर रहे हो बबलू?’
‘रुक तो जा जान… खड़ा कर इसको, तेरी चूत की आग तो अभी बुझानी है!’
जब उसका खड़ा हो गया, उसने बीच में आकर मेरी दोनों एड़ियाँ मेरे चूतड़ों के साथ जोड़ नीचे तकिया लगाया और चूत बिल्कुल सामने थी, उसने लंड रखा तो मैंने मस्ती से आँखें बन्द कर ली लेकिन जब झटका लगाया तो आँखें खुली की खुली रह गई, दिमाग सुन्न सा होने लगा, आवाज़ गले में अटक गई।
दूसरे झटके ने दिन में तारे दिखा दिए, तीसरे झटके में और दर्द, चौथे में उसका पूरा लंड मेरी चूत की सील को तोड़कर अन्दर समां गया था।
‘हाय निकालो!’
मुश्किल से यह आवाज़ मुख से निकली, ज़ालिम ने एकदम से निकाल लिया- देख तेरी रानी ने मेरे मुन्ना के साथ अंदर होली खेली है।
मैंने कोहनियों के सहारे उठकर देखा, उसका लौड़ा खून से भीगा था।
मेरी ही पैंटी से लौड़ा साफ़ करके उसने दुबारा घुसा दिया पर अब दर्द उतना नहीं था, पर काफी था।
देखते देखते बड़े आराम से उसका लंड अंदर बाहर होने लगा, मस्ती छाने लगी, सारा आलम रंगीन हो गया था।
वो जोर जोर से पटक पटक चोद रहा था मेरी चूत को… मेरी चूत की गर्मी से उसका लंड दूसरी बार पिंघला लेकिन इस बार मेरी पूरी तस्सली करवा कर मुझे कच्ची कलि से फूल बना दिया था… मेरी माँ के आशिक ने उसकी बेटी की चूत हासिल कर ली थी।
बबलू मौका देख मुझे मिलने लगा कभी घर में, कभी उसकी बाईक पर बैठ हम किसी खाली जगह जाते और किसी झाड़ी के पीछे, कभी किसी खेत में…
माँ का आशिक
मेरा काल्पनिक नाम सीमा है मेरी उमर बीस साल की है, मैं एक बेहद आकर्षक युवती हूँ, मेरे बहके कदम देख माँ ने मेरी शादी करवा दी, मैं भी बहुत चुदक्कड़ बन चुकी थी, क्या करती… बाप का साया सर से उठा और माँ हमें लेकर गाँव से शहर आ गई हम दोनों बहनें चुदक्कड़ निकली क्यूंकि हमारी माँ एक नंबर की चुदक्कड़ थी।ज़मीन जायदाद में से हिस्सा ना छोड़ने की वजह से माँ ने दूसरी शादी नहीं करी थी, हमारी पढ़ाई लिखाई का बहाना लगा गाँव से शहर आई और यहाँ उसके कई मर्दों के साथ नाजायज़ सम्बन्ध थे, हम लोगों को स्कूल भेज कर माँ पीछे से चुदाई करवाती!
एक रोज़ स्कूल में मुझे डेट्स (महीना) आई तो मैडम ने मुझे घर भेज दिया। मेन गेट तो खुला था, अंदर से लॉक था, मुझे हंसने की आवाजें आई तो मैं पीछे गई, पंखे की वजह पर्दा उठा था, बिस्तर पर माँ नंगी थी और उसके साथ हमारे ही मोहल्ले के दो लड़के सोनू और बबलू… तीनों नंगे थे।
आखिर लड़की थी मैं… मुझे गुदगुदी सी होने लगी, उनके लण्ड बहुत बड़े और मोटे थे। एक माँ को चोद रहा था, दूसरा मुँह में लंड डाले मजे लूट रहा था।
खैर उस दिन के बाद मुझे अपने में बदलाव आना महसूस होने लगा था, वो दोनों हरामी थे, घर में जाकर मेरी माँ चोदते और गली में मुझ पे लाइन मारते थे। अब मैं उनके लंड देख चुकी थी, उन्हें देख मुझे कुछ कुछ होने लगा।
दीदी के भी एफेयर थे।
बबलू ने अकेले ने मुझे परपोज़ किया, उसने मुझे स्कूल के पास एक सुनसान सी गली में रोक लिया और ‘आई लव यू’ I LOVE YOU कह दिया।
मैं मुस्कुरा कर वहाँ से आगे निकली, वो आया और बोला- रानी, इतनी गर्मी है, आ जा, कहीं बैठ कर ठंडा पीते हैं।
मुझे मालूम नहीं कि क्या हुआ कि मैंने मना नहीं किया, एक रेस्टोरेंट में बैठ ठंडा पिया।
तब से हम रोज़ मिलने लगे।
एक दिन स्कूल से खिसक कर उससे मिलने उसके दोस्त के कमरे में गई जहाँ पहली बार मैंने चूत में अपने आशिक का लंड लिया, पहली मीठी पीड़ा से गुज़र उससे मैंने जन्नत की सैर की, उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और पहली बार किसी लड़के ने मेरे कुंवारे रसीले होंठ चूसे थे। उसकी बाँहों में जाकर मुझे अलग सा सुख मिल रहा था, मेरी कमसिन जवानी उबलने लगी, खुद पर काबू खोने लगी।
और फिर अचानक से उसके हाथ मेरी कमीज़ के अंदर घुस मेरी ब्रा के ऊपर से मेरे चूचों को दबाने लगे जिसने मेरी जवानी की आग पर घी का काम किया और जोर से उसके साथ लिपटने लगी।
उसने आँख झपकने से पहले मेरी कमीज़ मेरे जिस्म से अलग कर दी। जैसे जैसे उसके होंठ मेरे नंगे जिस्म पर रगड़ने लगे, मैं मचलने लगी।
कहते हैं ना कि ‘समय सब कुछ सिखा देता है।’ खुद ही मेरा हाथ उसके लंड पर रेंगने लगा, पैंट के अन्दर उसका लंड जोश दिखा रहा था, मेरे छूते ही अचानक से उसने मानो सलामी दी।
उसने मुझे बाँहों में उठाया और जाकर धीरे से नर्म बिस्तर पर लिटा दिया। उसने मेरे सामने अपनी शर्ट उताई, क्या बॉडी थी… दूर से देख चुकी थी, आज करीब थी… चौड़ा सीना उस पे घने बाल, एक सच्चे मर्द की निशानी थे।
उसने मुझे देखते देखते अपनी पैंट उतारी, वो सिर्फ अंडरवियर में था, वह भी तंबू बन चुका था, मुझे दिखा कर उसने लंड को सहलाया, अंडरवियर खिसका मुझे दर्शन करवा वापस अंदर घुसा लिया, मेरे ऊपर छलांग लगाते हुए उसने वापस मुझे बाँहों में भर लिया, उसने मेरी ब्रा को भी उतार फेंका।
पहली बार किसी मर्द ने मेरे चुचूक को मुँह में लेकर चूसा, मैं तो तड़पने लगी, मचलने लगी। दबाते दबाते कभी एक चूचा चूसता, कभी दूसरा… कब उसने मेरी सलवार के नाड़े को खोला, मालूम ही नहीं चला। जब जांघों तक सलवार सरकी, तब मुझे एहसास हुआ कि अब मेरी बची हुई इज्ज़त भी सरक चुकी है, मैंने खुद चूतड़ उठाए, उसने झट से पैंटी को भी उतार फेंका।
हाय मैं अलफ नंगी हो गई, पहली बार किसी मर्द के आगे नंगी हुई लेटी थी, मैंने अपनी चूत पर दोनों हाथ रख दिए लेकिन उस ताकतवर मर्द के सामने मेरी क्या पेश चलती, एकदम साफ़ सुथरी कुंवारी गुलाबी चूत देख उसके भी होश उड़ने लगे।
फ्रेश चूत थी, चूमते चूमते मेरी नाभि को चूमते हुए उसने होंठ मेरी चूत के होंठों से लगा दिए।
हाय… मैं मर गई… मेरे मुख से सिसकारी फूटने लगी, कमरा मेरी मधुर आवाज़ों से गूंजने लगा था। जब जब उसकी जुबान घूमती, उतनी ही सिसकारियाँ मुख से फूटने लगतीं, उसने मेरी चूत को आज़ाद किया और मेरे पास आकर अपने लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा।
पहली बार किसी लौड़े को होंठों से लगवाया था।
‘मुँह खोल मेरी जान…’
‘नहीं… यह क्या कर रहे हो?’
‘चुप कर साली रण्डी…’
मैंने मुँह खोल दिया और उसके लण्ड का सुपारा मेरे मुँह में घुस गया और धीरे धीरे काफी लंड चूसने लगी।
मुझे मजा आने लगा उसके लंड को चूस कर…
मुझे मूड में लण्ड चूसते देख उसको और मजा आने लगा और वो मेरे बालों से पकड़ लण्ड चुसवाने लगा।
अचानक से वो रुक गया, अल्टा पलटा कर अपने होंठ मेरी चूत पर और अपना लंड मेरे मुँह में घुसा मजे लेने-देने लगा।
‘हाय… सी… सी… और चाटो मेरी जान…’
‘और चूसो मेरा लंड…’
‘हाय तुम भी और चाटो मेरी…’ कहते कहते जब में रुक गई तो वह बोला- बोल ना जान क्या चाटूँ तेरी? बोल ना मेरी जान बोल!
‘क्या बोलूँ?’
‘कह कि और चाटो मेरी चूत को !’
‘मुझसे नहीं कह होता…’
‘बोल… वरना मैं नाराज़ हो जाऊँगा और चाटूंगा भी नहीं!’
‘हाय राजा और चाटो मेरी चूत को…’
‘हाय मेरी रानी, तेरी चूत का तो बबलू आशिक बन गया है!’ जोर जोर से जुबां घुमाता मेरे दाने को जब रगड़ता तब तो जान निकल जाती!
और फिर वो उठा, मेरे बालों से पकड़ लिया अपना लण्ड मुँह में घुसा कर हिलाने लगा और बोला- ले मेरी जान मलाई खा मेरी!
मुझे क्या मालूम था कि कौन सी मलाई!
उसने मेरा मुँह किसी तरल पदार्थ से भर दिया… अजीब सा गर्म गर्म सा पानी कच्चे अंडे जैसा स्वाद था!
जब तक मैं निगल नहीं गई, उसने लण्ड नहीं निकाला और जब छोड़ा तो मैंने नाराज़गी दिखाई।
‘क्या हुआ मेरी जान? यह सब इसका हिस्सा है!’
उसे कुछ नहीं कह सकी पर मेरी चूत की आग मची हुई थी, कुछ देर साथ लेट चूमता रहा और दुबारा मेरे मुँह में घुसा दिया।
‘यह क्या कर रहे हो बबलू?’
‘रुक तो जा जान… खड़ा कर इसको, तेरी चूत की आग तो अभी बुझानी है!’
जब उसका खड़ा हो गया, उसने बीच में आकर मेरी दोनों एड़ियाँ मेरे चूतड़ों के साथ जोड़ नीचे तकिया लगाया और चूत बिल्कुल सामने थी, उसने लंड रखा तो मैंने मस्ती से आँखें बन्द कर ली लेकिन जब झटका लगाया तो आँखें खुली की खुली रह गई, दिमाग सुन्न सा होने लगा, आवाज़ गले में अटक गई।
दूसरे झटके ने दिन में तारे दिखा दिए, तीसरे झटके में और दर्द, चौथे में उसका पूरा लंड मेरी चूत की सील को तोड़कर अन्दर समां गया था।
‘हाय निकालो!’
मुश्किल से यह आवाज़ मुख से निकली, ज़ालिम ने एकदम से निकाल लिया- देख तेरी रानी ने मेरे मुन्ना के साथ अंदर होली खेली है।
मैंने कोहनियों के सहारे उठकर देखा, उसका लौड़ा खून से भीगा था।
मेरी ही पैंटी से लौड़ा साफ़ करके उसने दुबारा घुसा दिया पर अब दर्द उतना नहीं था, पर काफी था।
देखते देखते बड़े आराम से उसका लंड अंदर बाहर होने लगा, मस्ती छाने लगी, सारा आलम रंगीन हो गया था।
वो जोर जोर से पटक पटक चोद रहा था मेरी चूत को… मेरी चूत की गर्मी से उसका लंड दूसरी बार पिंघला लेकिन इस बार मेरी पूरी तस्सली करवा कर मुझे कच्ची कलि से फूल बना दिया था… मेरी माँ के आशिक ने उसकी बेटी की चूत हासिल कर ली थी।
बबलू मौका देख मुझे मिलने लगा कभी घर में, कभी उसकी बाईक पर बैठ हम किसी खाली जगह जाते और किसी झाड़ी के पीछे, कभी किसी खेत में…
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