raj sharma stories
बलात्कार--1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ कहानी आप सब को अच्छी लगेगी .
कैसे दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनो में बदल गये, मानो पता ही नहीं चला. अचानक ही एक दिन रूपाली को एहसास हुआ कि हवेली के चारों तरफ झाड़-घास-फूस बढ़ गये हैं. रूपाली को खुद पर गुस्सा आने लगा कि क्यूँ इतने वक़्त से उसने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया.
आँगन में आकर उसने चंदर को आवाज़ लगाई,”चंदर……ओ चंदर.” तभी उसने देखा वो पेड़ के नीचे बैठा है और पेड़ पे बैठे कबूतर को एकटक निहार रहा है. एकदम गुम सूम…….रूपाली को गुस्सा आ गया. वो पास गयी और चिल्लाते हुए चंदर से कहने लगी कि उसकी आँखें फुट गयी हैं क्या? उसे रोज़ सफाई करते रहना चाहिए ताकि हवेली सॉफ सुथरी बनी रहे. हाथ हिला हिला कर उसने चंदर को सफाई करने के लिए कहा.
चंदर ने एक नज़र उसकी तरफ देखा और रूपाली ने देखा चंदर की आँखों में रूपाली के लिए सिर्फ़ नफ़रत थी. वो अचानक उठा और तेज़ी से भौचक्की सी रूपाली के आगे से निकल गया और दूर कहीं गुम हो गया. रूपाली के होंठो तक चंदर के लिए एक भद्दी से गाली आई, पर वो मंन मार कर रह गयी.
रूपाली ने एक नज़र आसमान की ओर देखा….कोई शाम के 6 बज रहे थे. उसके दिमाग़ में ख़याल आया, क्यूँ ना वो खेतों की तरफ जाए और अगर वहाँ कोई मज़दूर दिख जायें तो उनके साथ अगले दिन के लिए हावीली की आस पास सफाई का काम तय कर ले. उसे ये विचार अच्छा लगा.
अंदर आई और उसने जल्दी जल्दी अपने लंबे, घने बालों को संवारा, बगल में खुशबूदार फ्रांसीसी खुश्बू लगाई जो उसको कभी ससुर शौर्या सिंग ने दी थी….हल्के गुलाबी रंग का ब्लाउस पहना और गुलाबी सी साड़ी भी. शीशे में देखा, बहुत अच्छी लग रही थी रूपाली. बाहर पसीना आने का ख़तरा था, इसलिए रूपाली ने अपने गालों, गर्देन और ब्लाउस के अंदर हल्का सा पॉंड्स पाउडर लगा लिया. रूपाली ने एक बार खुद को निहारा…..और किसी 17 साल की लड़की की तरह शर्मा के रह गयी……वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी वो.
हवेली से चलते चलते काफ़ी दूर आ गयी थी रूपाली. इक्का दुक्का गाओं के बूढ़े उसको हुक्का पीते हुए नज़र आए और जैसे ही उन्होने ठकुराइन को देखा, अचकचा कर, “प्रणाम ठकुराइन”, कह कर उसका अभिवादन किया. रूपाली को अच्छा लगा कि आज भी हवेली का इतना रुतबा है. उन बूढ़े लोगों से काम के लिए कहना बेकार था, इसलिए वो आगे निकलती चली गयी.
सूरज ढालने लगा था और उसकी लालिमा चारों ओर फेल रही थी. रूपाली का चेहरा भी तपिश के कारण चमचमा उठा था और हल्का पसीना माथे पे मोती की तरह चमक रहा था. रूपाली को लगा अब कोई नहीं मिलेगा और उसे वापस हवेली की ओर चलना चाहिए. मुड़ने की वाली थी की उसे लगा उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दी हों.
आवाज़ खेतों की तरफ से आई थी. रूपाली के कदम उसी तरफ बढ़ गये. अचानक उसे किसी मर्द के हँसने की आवाज़ आई और फिर से कुछ अस्पष्ट आवाज़ें. खेत गन्ने के होने की वज़ह से बहुत घना था……अचानक रूपाली को लगा उसने चूड़ियों के टूटने की आवाज़ सुनी और फिर एक लड़की की चीख आई,”ना कर सत्तू चाचा, हाथ जोड़ू तेरे…..” और एक गुर्राहट भरी मर्दानी आवाज़,”चुप्प साली…”……..और तभी रूपाली के आगे सारा नज़ारा सॉफ था…
गाओं में जात-पात थी. ऊँची जात वाले ब्राह्मण और ठाकुर, गाओं की ऊपर ओर रहते थे, और सब डोम-चमार-कहार, नाई, गाओं की निचली ओर. सारा मामला निचली जात का था. 2 काले कलूटे, 40 साल से ऊपर के चमारों ने एक 20-22 साल की मांसल से लड़की के हाथ पकड़ रखे थे और एक 50 साल से ऊपर का कलूटा उसके पैरों को खोल कर, अपना काला लंड लड़की की बुर में घुसाने की कोशिश कर रहा था. एक और 45-50 साल का अधेड़, साँवले रंग का बुज़ुर्ग ये सब ऐसे देख रहा था मानो कोई किसी गाय को चारा चरता हुआ देख रहा हो.
“ना कर सत्तू चाचा, जान दे, मैं तेरी मौधी (बेटी) जैसी हूँ रे….”…….”चुप्प कमला साली……हमरी मौधी ऐसे गांद ना फिराती फिरे गाओं भर में….अब चोद्ने दे नाहीं तो चीर देई तोहरा के….”…ये कहते हुए उसने एक असफल कोशिश और की. मगर लड़की शरीर सेमजबूत थी और उसकी टांगे अलग होने का नाम नहीं ले रही थी. झल्लाहट में सत्तू ने एक झापड़ रसीद दिया. कमला ज़ोर से रोने लगी,”हाए दैयया रे…..कोई बचाआऊऊ……बचहाआआााऊऊ.” खेत गाओं से इतनी दूर थे कि किसी के आस पास होने का सवाल ही नहीं था. तीनो कलूटों ने उसका मुँह बंद करने तक की ज़हमत नहीं उठाई और हंसते रहे.
“क्या हो रहा है ये???.......बंद करो….सालो”, किसी बूखी शेरनी की तरह रूपाली गुर्राते हुए चीखी और एक पल के लिए मानो वक़्त थम गया था…….सब सुन्न रह गये थे. ना कमला चीखी, ना सत्तू कुछ बोला और चारों मर्द रूपाली को ऐसे देख रहे थे मानो पूछ रहे हों,”आप कौन हैं?” सांवला आदमी, जिसकी उमर 45-50 के बीच थी, धीरे से बोला,”सत्तू, कालू, मोतिया……ये हवेली की ठकुराइन हैं……परणाम ठकुराइन.”. तीनो कल्लुओं ने घबराहट में कमला को छ्चोड़ दिया जो अपने कपड़े झाड़ते हुए उठी और भाग के रूपाली के पीछे जा छुपि.
“तो यह सब हो रहा है हमारे गाओं में अब? हैं? कोई शरम लाज नहीं है आप लोगों को?”, किसी बिफरी हुई शेरनी की तरह रूपाली आग उगल रही थी. “कौन हे रे तू?” रूपाली ने कमला से पूछा तो पता चला वो झूरी मल्लाह की बेटी है और मोतिया उसे सस्ती साड़ी वाले से मिलवाने के बहाने फुसला के गाओं से कुछ दूर लाया था, जहाँ कालू और सत्तू ने उसको पकड़ लिया और तीनों उसको खेत की ओर ले आए थे. बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना वाली हालत थी साँवले मुंगेरी की और वो ऐसे ही इन तीनो के साथ हो लिया था की कुछ देसी शराब पी लेगा और कुछ चने खा लेगा. चारों 2 बॉटल देसी शराब गटक चुके थे और उन्होने कमला को भी ज़बरदस्ती शराब पिलाने की कोशिश की थी, पर उसने सब शराब बाहर थूक दी थी. उन्होने शराब बर्बाद करने से अच्छा सोचा साली को बस कुछ देर पकड़ कर रखें और फिर नशे के सुरूर में चुदाई का प्रोग्राम चालू ही किया था की रूपाली ने आकर सब गुड-गोबर कर दिया.
रूपाली ने चिल्ला कर कहा,”चल कमला तू मेरे साथ…….और हरामजादो, कल गाओं की पंचायत लगेगी, उसमें दिखाना तुम अपने ये गंदे-काले चेहरे.” मुंगेरी,जो सिर्फ़ शराब के लालच में आया था, गिड़गिदा रहा था,”जाने दो ठकुराइन, ये बहक गये थे.”. बाकी तीनो नशे और शर्म की मिली जुली हालत में कभी आँखें झपका रहे थे, कभी खेत के ज़मीन की तरफ देख रहे थे. एक तेज़ हवा का झोंका आया और एक पल के लिए रूपाली की सारी का पल्लू सरक गया. ढलती शाम में तीनों कलूटों ने एक पल के लिए गुलाबी ब्लाउस में क्वेड दो उन्नत उरोज़ देखे और उनकी आँखें चौंधिया गयी.
सकपका कर रूपाली ने झट से आँचल ठीक किया और कदक्ते हुए बोली,”चल कमला.” मुड़कर चलने लगी, गाओं की ओर. चारों आदमी वहीं हक्के-बक्के से खड़े रह गये थे.
300 मीटर चले होंगे रूपाली और कमला कि अब सन्न होने की बारी रूपाली की थी. शायद उन कलूटों ने छ्होटा रास्ता लिया था, या तेज़ तेज़ चलते हुए बराबर के रास्ते से आए थे. जो भी था, सच्चाई यह थी कि सत्तू, मोतिया, कालू और मुंगेरी भी, उन दोनो के सामने खड़े थे. “क्या है?” रूपाली चीखी. नीच जात के मोतिया ने एक थप्पड़ रूपाली के गाल पे रसीद दिया और बोला,”हरामजादि. हमको पंचायत के हवाले करेगी? कर साली. पर उनको पूरी बात बताना. कि कैसे हम ने तेरी चुदाई की रांड़.” एक पल के लिए रूपाली को अपने कानो पे विश्वास नहीं हुआ. ये नीच जात के लोग, जो ठाकुरों की छाया पे भी पैर रखने के कारण पिट जाया करते थे, उसकी इज़्ज़त लूटने की बात कर रहे थे…….ठाकुर साहब की बहू की इज़्ज़त.
“खबरदार…”, रूपाली चिल्लाई…..मगर उसके इतना बोलते ही मोतिया ने उसे तड़ातड़ 4-5 थप्पड़ लगा दिए. पीड़ा और अपमान से रूपाली के आँसू छल-छला आए. “जाने दो…”, उसकी कराह निकली. कमला, जिसकी गदराई हुई जवानी को पाने के लिए कलूटों ने ये सब किया था बोली,”सत्तू चाचा, मोतिया भाय्या….ठकुराइन को जाने दो….आपको जो करना है, हमरे संग कर लेव भाय्या…” कालू और मोतिया वहशियो की तरह हँसने लगे. कालू ने कसकर कमला का हाथ पकड़ लिया और सत्तू और मोतिया ने रूपाली के दोनो हाथ पकड़े और वो वापस खेत के उसी हिस्से की ओर बढ़ने लगे, जहाँ उन्होने खेत के बीच कुछ जगह सॉफ की थी और कमला को चोद्ने की कोशिश ही कर रहे थे कि रूपाली आ पहुची थी……..
रूपाली और कमला की हालत ऐसी थी मानो बकरियों को कसाई घसीट रहे हों. बीच बीच में धमकाने के लिए मोतिया उसके हाथ को ज़ोर से मरोड़ देता था और हर बार उसके मुँह से आआआः, निकल जाती थी. मुंगेरी ने एक दो बार ज़रूर कहा,”अरे जानो दे रे ठकुराइन को….क्यूँ आफ़त मोले ले रहे हो….”, मगर शायद उसकी बातों की कोई अहमियत थी ही नहीं.
थोड़ी ही देर में वो सब वहीं पहुँच चुके थे जहाँ खेत के बीचों-बीच कुछ गन्ने उखाड़ कर कुच्छ सॉफ जगह बनाई गयी थी. खेत के गन्ने इतने ऊँचे थे कि अगर कोई भूले भटके आस पास आ भी जाए, उसे कुछ दिखाई देने का सवाल ही नहीं उठता था.
रूपाली और कमला को बीच में बैठा कर, उन्होने शराब की बोतलें खोल ली. सत्तू ने एक बड़ा सा घूँट लगाया और कड़वा सा मुँह बनाते हुए, बोतल रूपाली के होंठो पे लगाई और बोला,”ले, पी ले…” ये सब अचानक हुआ था, इसलिए कुछ ज़हर जैसे कड़वे घूँट रूपाली के अंदर चले ही गये. खाँसते हुए उसने थूकते हुए कहा,”देखो….कल हवेली आ जाना और हम तुम सबको 2000 रुपये देंगी. हम वादा करते हैं, बात यहीं ख़तम हो जाएगी, पंचायत नहीं होगी.”
मुंगेरी झट से बोला,”परेशान की कोई बात नहीं ठकुराइन,…….अरे सत्तू, जाने दो इन्हें.” सत्तू गुर्राया,”चुप साले. हीज़ड़ा की माफिक बात करे है हमेसा…..अब इस पार या उस पार………………….ठकुराइन, लाख टके की चूत के बदले दूई हज़ार रुपय्या? कच्ची हैं आप हिसाब की…..”
अब बहुत ही हल्की रोशनी बची थी सूरज की. रूपाली समझ चुकी थी अब कुछ नहीं हो सकता था. खुद को कोस रही थी कि क्यूँ घर से निकली. कमला, जो रूपाली के आने तक इतने हाथ पैर मार रही थी, भी अब ढीली पड़ चुकी थी. उसको लग रहा था अगर वो भाग भी जाए तो ये ग़लत होगा, क्योंकि ठकुराइन, जिन्होने अपनी ज़िंदगी उसकी खातिर दावं पे लगा दी थी, फिर भी लूट जाएँगी.
कालू और मोतिया नशे की हालत कें उन ख़ूँख़ार कुत्तों की तरह लग रहे थे जो किसी घायल चिड़िया को मारने से पहले उसको कुछ देर के लिए दाँत दिखाते हैं और गुर्राते हैं. कालू अपनी लूँगी हटा चुका था. रूपाली ने नफ़रत से उसकी तरफ देखा. नीच जात के कालू ने नारंगी रंग का कच्छा पहन रखा था.बैठी हुई रूपाली को उसने छ्होटी पकड़ कर उठाया, खुद बैठ गया और उसको अपनी नंगी, काली जाँघ पे बिठा लिया. रूपाली सन्न रह गयी.
सत्तू सामने की तरफ से आया और उसने कालू की पीठ को इस तरह से जाकड़ लिया कि रूपाली उन दोनो के बीच में भींच गयी. रूपाली के पीठ, कालू के बदबूदार सीने से चिपकी हुई थी और सट्टी ने अपने काले, भद्दे होंठ, उसके खूबसूरत, रसीले होंठो पर चिपका दिए. सस्ती शराब की बदबू और काले पसीनेदार बदनों से निकलती हुई सदान्ध ने रूपाली का माथा चकरा दिया था…..उसे लगा उसको उल्टी आ जाएगी. सत्तू रूपाली के होंठ चूस रहा था. कालू ने अपने हाथ सरकाए और रूपाली के मम्मे सहलाने लगा. रूपाली की पीठ से उसे पॉंड्स की भीनी भीनी महक आ रही थी और उसने ज़िंदगी में कभी भी इतनी खूबसूरत और खुशबूदार औरत का दीदार किया ही नहीं था. उसकी हालत उस पागल मक्खी जैसी थी जो जानती है कि शहद से चिपटने का अंज़ाम मौत है मगर फिर भी वो कुछ और नहीं सोच पाती.
कालू पागलों की तरह रूपाली के बॅबल ट्रक को भोंपु की तरह बजाने लगा और रूपाली की हर सिसकी, सत्तू के बदबूदार होंठों तक पहुँच कर रुक जाती थी. सत्तू ने रूपाली की खूबसूरत जीभ को अपने तंबाखू से सड़े हुए दाँतों के बीच पकड़ लिया और उसको चूसने लगा. इतना भरोसा था अब उन सबको कि आराम से फिर शारब पीने लगे और फिर से रूपाली को थोड़ी सी शराब पीला दी. सत्तू केबदबूदार चुंबन के बाद रूपाली का गला ऐसे सूख रहा था कि इस बार उसको ये कड़वी शराब भी इतनी बुरी नहीं लगी.
रूपाली की गोरी चूत और सुनेहरी गांद ने कभी किसी काले लंड को अपने पास तक नहीं फटकने दिया था. और आज ये बदबूदार, नीच जात के गंदे आदमी उसके साथ मनमानी कर रहे थे. मज़बूरी में रूपाली के आँसू छलक आए.
“जाने दो हमें….हमें हवेली पहुँचना है….” रुंधी हुई आवाज़ में एक नाकाम कोशिश की उसने. मोतिया बोला,”हाँ हां, तेरे ख़सम, ससुर और देवर के भूत तेरा इंतेज़ार कर रहे हैं वहाँ ना? चुप कर रंडी.”
तीन बोतल शराब गटक चुके थे वो चारों लोग. मुंगेरी को उन्होने पैसे दिए और जल्दी से 4 बोतल शराब, मुर्गी-रोटी ले आने को कहा और वो झट से गाओं की ओर चल दिया. शराब में मुंगेरी के प्राण बस्ते थे मानो.
कालू ने हंसते हुए मोतिया से कहा,”मोतिया…..ज़रा ठकुराइन को तोहार लौदा की मार तो दिखाई देब भाई……”, और मोतिया ने पहले कमला की अंगिया-चोली हटा दी और फिर उसका लहंगा भी. हल्की रोशनी में कमला का सांवला, गदराया बदन मादार-जात नंगा था और वो सिसक रही थी. मज़बूत साँवले स्तन जिनपर काली सी गोल चूचियाँ थी…….सपाट, सांवला पेट (स्टमक), साँवली मांसल, भारी-भारी जांघें और डरी हुई, हिरनी जैसी आँखें. मोतिया को ऐसी मस्त जवानी की कोई कदर नही थी ही नहीं…….रोमॅंटिक तरीके से चूमने, चूसने की जगह, साला कमला की चूत में उंगली घुसेड कर सिर्फ़ ये कोशिश कर रहा था कि वो जल्दी से कुछ गीली हो जाए, ताकि हू अपना लॉडा उसके अंदर डाल के चोद दे बस…….
मोतिया ने कमला के होंठों को अपने होंठों के बीच में लिया, दोनो हाथों से उसकी जांघों को अलग किया और अपने एक हाथ में ढेर सारा थूक लेकर उसकी कोरी चूत और अपने काले मूसल लंड पे रगड़ने लगा. उसके बाद उसने अपना काला मोटा लॉडा कमला की चूत के मुँह पे रखा और धीरे से कुछ अंदर किया……कमला की फटी हुई आँखें और सिसकियाँ बता रही थी कितना दर्द हो रहा है उसको……….मोतिया ने कमला के बंद दरवाज़े पे दबाव बढ़ाया…..और अचानक,”ले मादरच्चोड़…….” कह कर कमला का बंद दरवाज़ा फाड़कर वो उसके अंदर घुस गया.
“उई मैययययययययययययययययाआआआआआआआआआअ रीईईईईई……………..मर गाइिईईईईईईई………आआआआआआआआआआआआआआन्
कालू की नंगी जाँघ पे रूपाली बैठी थी और उसको सॉफ महसूस हो रहा था कालू का काला, अकड़ता हुआ लंड. कालू से रहा नहीं जा रहा था, उसने ब्लाउस के हुक खोले, ब्लाउस हटाया और ब्रा-ब्लाउस हटा के रूपाली के बंद कबूतरों को आज़ाद कर दिया. अब रूपाली ऊपर से नंगी थी. गोरी पीठ को चूम चूम के कालो दीवाना हुआ जा रहा था. सत्तू ने अपनी बोतल अलग रखी और रूपाली के मम्मे बारी बारी से चूसने लगा. नफ़रत और अपमान से रूपाली सिसक रही थी.
कालू ने रूपाली की गर्देन को चूमना चूसना शुरू कर दिया था और सत्तू के तंबाखू से सड़े हुए दाँत उसकी गुलाबी चूचियों को काट रहे थे. रूपाली ने आँखें बंद कर ली थी और अजीब से सिहरन महसूस कर रही थी. दोनो चमारों का गोरी ठकुराइन को आध-नंगा देख कर वैसे ही बुरा हाल था…
क्रमशः...........
Balaatkaar--1
dosto main yaani aapka dost raj sharma ek our nai kahaani lekar haajir hun kahaani aap sab ko achchi lagegi .
Kaise din hafton mein aur hafte maheeno mein badal gaye, maano pata hi naheen chala. Achanak hi ek din Roopali ko ehsaas hua ki haweli ke chaaron taraf jhaad-ghaas-foos badh gaye hain. Roopali ko khud par gussa aane laga ki kyun itne waqt se usne bilkul dhyaan naheen diyaa.
Aangan mein aakar usne Chandar ko awaaz lagayi,”Chandar……O Chandar.” Tabhi usne dekha who ped ke neeche baitha hai aur ped pe baithe kabootar ko ektak nihaar raha hai. Ekdum gum sum…….Roopali ko gussa aa gaya. Who paas gayi aur chillate hue Chandar se kehne lagi ki uski aankhein foot gayi hain kya? Use roz safai karte rehna chaahiye taaki haweli saaf suthri bani rahe. Haath hila hila kar usne Chandar ko safai karne ke liye kaha.
Chandar ne ek nazar uski taraf dekha aur Roopali ne dekha Chandar ki aankhon mein Roopali ke liye sirf nafrat thhi. Wo achanak utha aur tezi se bhauchakki si Roopali ke age se nikal gaya aur door kahin gum ho gaya. Roopali ke hontho tak Chandar ke liye ek bhaddi se gaali aayi, par who mann maar kar reh gayi.
Roopali ne ek nazar aasmaan ki ore dekha….koi shaam ke 6 baj rahe thhe. Uske dimaag mein khayaal aaya, kyun naa who kheton ki taraf jaaye aur agar wahaan koi mazdoor dikh jayein toh unke saath agle din ke liye Haweeli kea as paas safayi ka kaam tay kar le. Use ye vichaar accha laga.
Andar aayi aur usne jaldi jaldi apne lambe, ghane baalon ko sanwaara, bagal mein khushboodaar Francici khushboo lagayi jo usko kabhi sasur Shaurya Singh ne di thhi….halke gulaabi rang ka blouse pehna aur gulaabi se saadi bhi. Sheeshe mein dekha, bahut acchi lag rahi thhi Roopali. Baahar paseena aane ka khatra thha, isliye Roopali ne apne gaalon, garden aur blouse ke andar halka sa Ponds powder laga liya. Roopali ne ek baar khud ko nihaara…..aur kisi 17 saal ki ladki ki tarah sharma ke reh gayi……waquai bahut khoobsoorat lag rahi thhi wo.
Haweli se chalet chalet kaafi door aa gayi thhi Roopali. Ikka dukka gaon ke boodhe usko hukka peete hue nazar aaye aur jaise hi unhone thakurain ko dekha, achkacha kar, “Pranaam thakurain”, keh kar uska abhiwaadan kiya. Roopali ko accha laga ki aaj bhi haweli ka itna rutba hai. Un boodhe logon se kaam ke liye kehna bekaar thha, isliye wo aage nikalti chali gayi.
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Aawaaz kheton ki taraf se aayi thhi. Roopali ke kadam usi taraf badh gaye. Achanak use kisi mard ke hansne ki aawaaz aayi aur phir se kuch aspasht aawaazein. Khet ganne ke hone ki wazah se bahut Ghana thha……achanak Roopali ko laga usne choodiyon ke tootne ki aawaaz suni aur fir ek ladki ki cheekh aayi,”Naa kar Sattu chaacha, haath jodu tere…..” aur ek gurrahat bhari mardaani aawaaz,”CHUPP SAALI…”……..aur tabhi Roopali ke aage saara nazaara saaf thha…
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“Toh yeh sab ho raha hai humaare gaon mein ab? Hain? Koi sharam laaj naheen hai aap logon ko?”, kisi bifri hui sherni ki tarah Roopali aag ugal rahi thhi. “Kaun he re tu?” Roopali ne Kamla se poochha toh pata chala who Jhoori Mallah ki beti hai aur Motia use sasti saari waale se milwaane ke bahaane fusla ke gaon se kucch door laya thha, jahaan Kaalu aur Sattu ne usko pakad liya aur teenon usko khet ki ore le aaye thhe. Beygaani shaadi mein Abdullah deewana waali haalat thhi saanwle Mungeri ki aur wo aise hi in teeno ke saath ho liya thha ki kuch desi sharaab pee lega aur kucch chane khaa lega. Chaaron 2 bottle desi sharaab gatak chuke thhe aur unhone Kamla ko bhi zabardasti sharaab pilaane ki koshish ki thhi, par usne sab sharaab baahar thhook di thhi. Unhone sharaab barbaad karne se accha socha Sali ko bas kucch der pakad kar rakhein aur phir nashe ke suroor mein chudayi ka program chaalu hi kiya thha ki Roopali ne aakar sab gud-gobar kar diya.
Roopali ne chiilakar kaha,”Chal Kamla tu mere saath…….aur haraamzaado, kal gaon ki panchaayat lagegi, usmein dikhaana tum apne ye gande-kaale chehre.” Mungeri,jo sirf sharaab ke laalch mein aaya thha, gidgida raha thha,”Jaane do thakurain, ye behak gaye thhe.”. Baaki teeno nashe aur sharm ki mili juli haalat mein kabhi aankhein jhapka rahe thhe, kabhi khet ke zameen ki taraf dekh rahe thhe. Ek tez hawa ka jhonka aaya aur ek pal ke liye Roopali ki saari ka pallu sarak gaya. Dhalti shaam mein teenon kalooton ne ek pal ke liye gulaabi blouse mein quaid do unnat uroz dekhe aur unki aankhein chaundiyaa gayi.
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“Khabardaar…”, Roopali chillayi…..magar uske itna bolte hi Motiya ne use tadatad 4-5 thappad laga diye. Peeda aur apmaan se Roopali ke aansoo chhal-chhala aaye. “Jaane do…”, uski karaah nikli. Kamla, jiski gadraayi hui jawaani ko pane ke liye kalooton ne ye sab kiya thha boli,”Sattu chaacha, Motia bhaiyya….thakurain ko jaane do….aapko jo karna hai, humre sang kar levo bhaiyya…” Kaalu aur Motiya vehshion ki tarah hansne lage. Kaalu ne kaskar Kamla ka haath pakad liya aur Sattu aur Motiya ne Roopali ke dono haath pakde aur who waapas khet ke usi hisse ki ore badhne lage, jahaan unhone khet ke beech kucch jagah saaf ki thhi aur Kamla ko chodne ki koshish hi kar rahe thhe ki Roopali aa pahnuchi thhi……..
Roopali aur Kamla ki haalat aisi thhi maano bakriyon ko kasaai ghaseet rahe hon. Beech beech mein dhamkaane ke liye Motiya uske haath ko zor se marod detaa thaa aur har baar uske munh se aaaaaah, nikal jaati thhi. Mungeri ne ek do baar zaroor kaha,”Are jaano de re Thakurain ko….kyun aafat mole le rahe ho….”, magar shaayad uski baton ki koi ahmiyat thhi hi naheen.
Thodi hi der mein woh sab waheen pahunch chukey thhe jahaan khet ke beechon-beech kucch gannne ukhaad kar kuchh saaf jagah banaayi gayi thhi. Khet ke ganne itne oonche thhe ki agar koi bhoole bhatke aas paas aa bhi jaaye, use kucch dikhaayi dene ka sawaal hi naheen uththa thha.
Roopali aur Kamla ko beech mein baitha kar, unhone sharaab ki botalein khol lee. Sattu ne ek bada saa ghoont lagaaya aur kadwaa sa munh banaate hue, botal Roopali ke hontho pe lagayi aur bola,”Le, pee le…” ye sab achanak hua thha, isliye kucch zahar jaise kadwe ghoont Roopali ke andar chale hi gaye. Khaanste hue usne thookte hue kaha,”Dekho….kal haweli aa jana aur hum tum sabko 2000 rupaye dengi. Hum waada karte hain, baat yaheen khatam ho jaayegi, panchayat naheen hogi.”
Mungeri jhat se bola,”Paisan ki koi baat naheen thakuraain,…….arey Sattu, jaane do inhein.” Sattu gurraya,”Chup saale. Heezda ki maafik baat kare hai hamesa…..ab is paar ya us paar………………….Thakurain, laaakh take ki choot ke badle dui hazaar rupaiyya? Kacchi hain aap hisaab ki…..”
Ab bahut hi halki roshni bachi thhi sooraj ki. Roopali samajh chuki thhi ab kucch naheen ho sakta thha. Khud ko kose rahi thhi ki kyun ghar se nikli. Kamla, jo Roopali ke aane tak itne haath pair maar rahi thhi, bhi ab dheeli pad chuki thhi. Usko lag raha thha agar who bhaag bhi jaaye toh ye galat hoga, kyonki Thakurain, jinhone apni zindagi uski khaatir daon pe laga di thhi, phir bhi lut jaayengi.
Kaalu aur Motiya nashe ki haalat kein un khoonkhaar kutton ki tarah lag rahe thhe jo kisi ghaayal chidiya ko maarne se pehle usko kuch der ke liye daant dikhaate hain aur gurrate hain. Kaalu apni lungi hata chukka thha. Roopali ne nafrat se uski taraf dekha. Neech jaat ke Kaalu ne naarangi rang ka kaccha pehan rakha thha.Baithi hui Roopali ko usne chhoti pakad kar uthhaya, khud baith gaya aur usko apni nangi, kaali jaangh pe bitha liya. Roopali sann reh gayi.
Sattu saamne ki taraf se aaya aur usne Kaalu ki peeth ko is tarah se jakad liya ki Roopali un dono ke beech mein bhinch gayi. Roopali ke peeth, Kaalu ke badboodar seene se chipki hui thhi aur Satti ne apne kale, bhadde honth, uske khoobsoorat, raseele hontho par chipka diye. Sasti Sharaab ki badboo aur kaale paseenedaar badanon se nikalti hui sadaandh ne Roopali ka maatha chakra diyaa thha…..use laga usko ulti aa jayegi. Sattu Roopali ke honth choos raha thha. Kaalu ne apne haath sarkaaye aur Roopali ke mammey sehlaane laga. Roopali ki peeth se use Ponds ki bheeni bheeni mehak aa rahi thhi aur usne zindagi mein kabhi bhi itni khoobsoorat aur khushboodar aurat ka deedar kiya hi naheen thha. Uski haalat us paagal makkhi jaisi thhi jo jaanti hai ki shahad se chipatne ka anzaam maut hai magar phir bhi wo kucch aur naheen soch paati.
Kaalu paaglon ki tarah Roopali ke bable truck ke bhonpu ki tarah bajaane laga aur Roopali ki har siski, Sattu ke badboodaar honthon tak pahunch kar ruk jaati thhi. Sattu ne Roopali ki khoobsoorat jeebh ko apne tambakhoo se sade hue daanton ke beech pakad liya aur usko choosne laga. Itna bharosa thha ab un sabko ki aaram se phir shaarab peene lage aur phir se Roopali ko thodi si sharaab pila di. Sattu kebadboodar chumban ke baad Roopali ka gala aise sookh raha thha ki is baar usko ye kadwi sharaab bhi itni buri naheen lagi.
Roopali ki gori choot aur sunehri gaand ne kabhi kisi kaale lund ko apne paas tak naheen fatakne diya thha. Aur aaj ye badboodar, neech jaat ke gande aadmi uske saath manmaani kar rahe thhe. Mazboori mein Roopali ke aansoo chhalak aaye.
“Jaane do hamein….hamein haweli pahunchna hai….” Rundhi hui awaaz mein ek naakam koshish ki usne. Motiya bola,”Haan haan, tere khasam, Sasur aur Devar ke bhoot tera intezaar kar rahe hain wahaan naa? Chup kar randee.”
Teen botal sharaab gatak chuke thhe wo chaaron log. Mungeri ko unhone paise diye aur jaldi se 4 botal sharaab, murgi-roti le aane ko kahaa aur wo jhat se gaon ki ore chal diya. Sharaab mein mungeri ke praan baste thhe maano.
Kaalu ne hanste hue Motiya se kaha,”Motiya…..zara thakurain ko tohaar lauda ki maar toh dikhayi deb bhaai……”, aur Motiya ne pehle Kamla ki angiyaa-choli hataa di aur phir uska lehanga bhi. Halki roshni mein Kamla ka saanwala, gadraaya badan maadar-jaat nanga thha aur woh sisak rahi thhi. Mazboot saanwale stan jinpar kaali si gole choochiyaan thhi…….sapaat, saanwla payte (stomach), saanwli maansal, bhari-bhari jaanghein aur dari hui, hirni jaisi aankhein. Motia ko aisi mast jawaani ki koi quadar thhi hi naheen…….romantic tareeke se choomne, choosne ki jagah, saala Kamla ki choot mein ungli ghused kar sirf ye koshish kar raha thha ki who jaldi se kucch geeli ho jaaye, taaki who apna lauda uske andar daal ke chod de bas…….
Motiya ne Kamla ke honthon ko apne honthon ke beech mein liya, dono haathon se uski jaanghon ko alag kiya aur apne ek haath mein dher saara thook lekar uski kori choot aur apne kaale moosal lund pe ragadne laga. Uske baad usne apna kaala mota lauda Kamla ki choot ke munh pe rakha aur dheere se kucch andar kiya……Kamla ki fati hui aankhein aur siskiyaan bata rahee thhi kitna dard ho raha hai usko……….Motiya ne Kamla ke band darwaaze pe dabaav badhaaya…..aur achanak,”Le maadarchhod…….” Keh kar Kamla ka band darwaaza phaadkar who uske andar ghus gaya.
“Uyi maiyyyyyyyyyyyyyyyyaaaaaaaaaaa
Kaalu ki nangi jaangh pe Roopali baithi thhi aur usko saaf mehsoos ho raha thha Kaalu ka kaala, akadta hua lund. Kaalu se raha naheen jaa raha thha, usne blouse ke hook khole, blouse hataaya aur bra-blouse hataa ke Roopali ke band kabootaron ko aazaad kar diya. Ab Roopali oopar se nangi thhi. Gori peeth ko choom choom ke Kaalo deewana hua jaa raha thha. Sattu ne apni botal alag rakhi aur Roopali ke mamme baari baari se choosne laga. Nafrat aur apmaan se Roopali sisak rahi thhi.
Kaalu ne Roopali ki garden ko choomna choosna shuru kar diya thha aur Sattu ke tambakhoo se sade hue daant uski gulaabi choochiyon ko kaat rahe thhe. Roopali ne aankhein band kar li thhi aur ajeeb se sihran mehsoos kar rahee thhi. Dono chamaaron ka gori Thakurain ko adh-nanga dekh kar waise hi bura haal thha…
kramashah...........
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